दो चार झोर के झटके महारानी के मम्मों पर मारते हुए शक्तिसिंह का शरीर अकड़ने लगा, होंठ टेढ़े हो गए और चरम सुख की प्राप्ति की स्वर्गीय अनुभूति को ज्यादा से ज्यादा लंबे समय तक महसूस करने के लिए, उसने अपने शरीर में एक कसाव सा पैदा किया, लेकिन फुस्ससससस... एक तेज पिचकारी की धार की तरह, गरमागरम लस्सेदार वीर्य, महारानी के स्तनों और मुंह पर छिड़क गया... उसका लंड और भी पिचकारियाँ मारता उससे पहले ही, महारानी ने शक्तिसिंह का लंड अपने मुंह में ले कर उसका बाकी वीर्य चूस लिया..
शक्तिसिंह के लंड का वीर्य पूर्णतः चूसने के बाद भी महारानी ने चूसना जारी रखा... उद्देश्य स्पष्ट था.. अभी उनकी चुत की प्यास कहाँ बुझी थी..!! लंड चूसते हुए महारानी ने अपने गोरे चिकने हाथों को शक्तिसिंह की मर्दाना पीठ पर फेरना शुरू कर दिया। साँसे तेज होने लगी। स्तनों पर दबाव पड़ने से बीच बीच में दूध की धराएं निकलकर स्तनों की दोनों ओर बहती जा रही थी।
महारानी के मुंह का लसलसित गरमागरम स्पर्श, आँड़ों के नीचे दबी उनकी गोलमटोल चूचियों की छुअन, शक्तिसिंह का लंड अब फिर से सख्ती धारण करने लगा.. महारानी की चुत तो कब से गीली हो रखी थी...पानी की द्रव्यता का एहसास उनके गुप्तांग में खलबली मचा रहा था.. और अब शक्तिसिंह का लंड भी फिर से नई उचाई प्राप्त कर चुका था।
शक्तिसिंह ने अपना लंड महारानी के मुंह से बाहर निकाला और अब अपना पूरा शरीर सटाकर उनके बगल में लेट गया। उसका लंड फनफनाते हुए निचले चुतनुमा द्वार में प्रवेश करने के लिए व्याकुल था। शरीर के गरम होने से जो ऊर्जा पैदा हो रही थी वह खिड़की के रास्ते आती ठंडी हवा के साथ दोनों शरीरों को ठंडा और शीतल कर रही थी। रह रह क दोनों एक दूसरे को भींच रहे थे और कोशिश कर रहे थे की उनके जिस्म जो एक दूसरे से पूरी तरह से सटे हुए थे उनको और ज्यादा आपस में सटा दे। मानो एक दूसरे के अंदर ही प्रवेश हो जाए और दो बदन एक जान की बजाए दो जान एक बदन हो जाए।
एक दूसरे की मादकता और कामुकता में ऐसी कशिश थी की मानों यह दोनों जिस्म एक दूसरे से संभोग करने के लिए इस धरती पर अवतरित हुए हो!! होंठ सूखने लगे थे, गला अवरुद्ध हो रहा था... अपनी पीठ पर हल्का मखमली एहसास जो कभी कभी नितंबों तक पहुँच जाता था वह शक्तिसिंह को मदहोशी की चरमसीमा का एहसास करवाता था।
शक्तिसिंह ने अब एक भूखे भेड़िये की तरह महारानी की गर्दन और कान के पीछे चूमना और चाटना शुरू कर दिया। वह सिसकारियाँ भरने लगी और उनका शरीर एक नागिन की तरह अकड़ने और लोटने लगा.. जैसे ही कान का निचला हिस्सा मुंह में कैद हुआ तो महारानी के मुख से हल्की सी आह निकल गई। गर्दन से नीचे जाते हुए दो सुंदर बड़े मम्मों के ऊपरी छोर पर शक्तिसिंह के होंठ अपना चमत्कार दिखाने लगे।
महारानी की चूचियों से दूध चूसते हुए और कुछ मिनटों दोनों पहाड़ियों का रसपान करते हुए अब वह उनकी नाभि तक पहुँच गया। नाभि की गहरी खाई को चूमकर उसने जीभ को उस छिद्र में घुमाना शुरू किया। सिसकारियों की गूंज पूरे कमरे में सुनाई दे रही थी। अब उसने नाभि के आसपास के कमर के हिस्से को जैसे ही चूमना शुरू किया की नागिन के रेंगने की गति बहुत तेज हो गई।
जैसे ही जीभ का स्पर्श नाभि के नीचे कमर के पास होता तो जैसे वह बर्दाश्त ही नही कर पाती और शक्तिसिंह के सिर के बालों को जोर से पकड़ कर, मानों न चाहते हुए हटाना चाहती थी। लेकिन इतना मज़ा आ रहा था की खुद ही फिर से उसके सिर को अपने शरीर से दबा लेती। चुत के ऊपर के हल्के रेशमी बालों पर जीभ फेरते हुए वह उन्हे भिगो रहा था। महारानी ने अपनी दोनों टांगों को उठाकर शक्तिसिंह की कमर के ऊपर एक फंडा बना दिया और अपने दोनों पाँवों को उसकी कमर के पीछे जोड़ दिया।
अब महारानी की चुत इतनी गीली हो चुकी थी की नारी-रस की कुछ बूंदें बाहर के होंठों पर दिखाई देने लगी थी। शक्तिसिंह के होंठ जैसे ही फुली हुई दोनों गुलाबी पंखुड़ियों पर पड़े की उनके मुंह से "आह्हहहहहह" का उदगार निकल गया। शक्तिसिंह ने महारानी के बुर की फाँकों को चूस चूस कर इतना मस्त कर दिया की फिजा में गंगा-यमुना बहने लगी।
महारानी के दाने पर जैसे ही शक्तिसिंह की जीभ टकराई, "मैं मर जाऊँगी... हाययय... ईशशशश... आहहह.. " की आवाज़े उनके मुंह से निकलती ही रही। शक्तिसिंह ने अपने दांतों के बीच भींचते हुए बड़े प्रेम से दाने को हल्का सा काटा तो महारानी के सब्र का बांध टूट गया...
झर्झराती, अटखेलियाँ करती स्त्री-वीर्य की नदी सी बहने लगी.. शरीर अकड़ कर मानों सिकुड़ सा गया और भूकंप से झटके खाने लगा.. कपकपाते हुए शरीर ने दर्जनों झूले झूल लिए और रह रह कर महारानी कराहते हुए झड़ गई.. शक्तिसिंह ऐसे उनकी चुत का रस चाट रहा था जैसे बिल्ली बर्तन से दूध चाट रही हो..
महारानी की चुत को पूर्णतः साफ कर तृप्त होकर शक्तिसिंह ऊपर उठा... स्खलन से थकी हुई पर मुसकुराती महारानी ने आँखों से ही, अगले चरण को शुरू करने का न्योता दिया.. जैसे इसी संकेत का इंतज़ार कर रहा हो वैसे शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों जंघाओं को पकड़ा और अपने पैर के ऊपर सटाकर अपने लंड को बिल्कुल उनकी चुत के सामने लाकर रख दिया..
लंड को चिकना करने की कोई आवश्यकता नही थी... महारानी की चुत ऐसे पानी छोड़ रही थी जैसे बांध से पानी को छोड़ा जा रहा हो..!! जैसे ही उसने अपने सुपाड़े को महारानी की चुत के गुलाबी होंठों के बीच रखा, उन्होंने खुद ही अपने चूतड़ उठाकर एक मजबूत झटका लगाया और शक्तिसिंह का आधे से ज्यादा लंड उनकी लसलसित चुत के अंदर घुस गया..!!
महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर जमाकर शक्तिसिंह ने धक्के लगाने का दौर शुरू कर दिया। महारानी की योनि के गिलेपन की वजह से उसका लंड छपाक छपाक की आवाज़े करता हुआ चुत की गहराइयों को नापने लगा। नाचती उछलती हुई चूचियों को हाथों से दबोच दबोच कर शक्तिसिंह मजबूत धक्के लगाने लगा.. महारानी की उछलकूद बहुत तेज हो गई थी। वह लंड को अपने भीतर चुत की दीवारों की मांसपेशियों से भींचते हुए जोर जोर से निचोड़ने और दबाने लगी। अपने लंड की ऐसी मरम्मत पाकर शक्तिसिंह भी धन्य हो रहा था।
महारानी के शरीर में सैलाब सा उमड़ रहा था। संभोग का हर धक्का उनके शरीर को ऊपर से नीचे तक झकझोर कर रख देता.. प्रत्येक धक्के के साथ उनके पेट की चर्बी बड़ी ही मादकता से थिरक रही थी। शक्तिसिंह के धक्कों का वह माकूल जवाब दे रही थी... अपने चूतड़ उछाल उछाल कर...!!
शक्तिसिंह अब महारानी के शरीर पर झुककर प्रायः उनके स्तनों तक पहुँच गया... और अपना प्रिय दुग्धपान करने लगा... साथ ही साथ उसने महारानी के सख्त दाने को रगड़ना शुरू कर दिया.. इस तीन तरफा हमले के सामने महारानी और टीक नही पाई... बल खाता हुआ उनका शरीर बुरी तरह से अकड़कर हांफने लगा... शक्तिसिंह की पीठ पर अपने नाखूनों से खरोंचती हुई वह जोर से चीखी... और पराकाष्ठा तक पहुँच गई...
शक्तिसिंह भी अपनी मंजिल की ओर अग्रेसर था और उसने धमाधम धक्के लगाते हुए महारानी की चुत में अपने उपजाऊ वीर्य का अभिषेक कर दिया... हर धक्के के साथ पिचकारी महारानी की बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकरा रही थी... करीब आठ दस ऐसे धक्के लगाने के बाद वह पस्त हो गया और महारानी के बाजू में लाश की तरह गिर गया... दोनों की स्थिति ऐसी थी जैसे मल्लयुद्ध करके लौटे हो!!
अपने स्खलन से उभरकर महारानी लैटे लैटे शक्तिसिंह की ओर मुड़ी.. और उसके सिर के बालों में अपने हाथ फेरने लगी। दो बार चरमसीमा पर पहुंचकर वह थक चुका था... और आँखें बंद कर वह अपनी सांसें नियंत्रित होने का इंतज़ार कर रहा था... थोड़ी देर बाद उसने अपनी आँखें खोली और महारानी के सामने देखकर मुस्कुराया..
"मुझे अब चलना चाहिए... काफी देर हो गई... " शक्तिसिंह ने उठकर अपने वस्त्रों की ओर हाथ बढ़ाएं
"इतनी जल्दी!! थोड़ी देर और रुक जाओ... इतने समय बाद मिले हो.. मुझे मन भरकर देखने तो दो तुम्हें" बड़े ही प्यार से महारानी ने कहा
"महारानी जी, तालिम पूरे जोर से चल रही है, कल सुबह तो हमे सैन्य के साथ शौर्यगढ़ के लिए निकलना है... बहुत सारी तैयारियां अभी बाकी है.. मेरा दल मेरा इंतज़ार कर रहा होगा.. कृपया मुझे जाने की अनुमति दे" शक्तिसिंह ने विनती करते हुए कहा
"नहीं शक्तिसिंह... में तुम्हें नही जाने दूँगी... थोड़ी देर ओर रुक जाओ" महारानी ने नैन मटकाते हुए कहा
महारानी के इस प्यार भरे न्योते को शक्तिसिंह मना न कर पाया... वह फिरसे उनकी बगल में लेट गया और अपनी हथेली से महारानी के सुंदर चेहरे को सहलाने लगा...
"मेरी छातियों में फिर से दूध भर गया है... पी लो थोड़ा सा.. मेरा बोझ हल्का हो जाएगा" शैतानी मुस्कुराहट के साथ महारानी ने कहा
इसके लिए शक्तिसिंह को किसी आमंत्रण की जरूरत नही थी। वह महारानी के बगल में ही लेटे हुए थोड़ा सा नीचे की तरफ आ गया, इस तरह की महारानी की चुची बिल्कुल उसके मुंह के सामने आ जाए... करवट लेकर सोई महारानी की पहाड़ जैसी चूचियाँ थोड़ा सा ढह गई थी। श्वेत स्तनों पर गुलाबी निप्पलें बेहद सुंदर दिख रही थी!! दूध के भराव के कारण निप्पल पर सफेद बूंदें उमड़ आई थी...
अब उसने दाहिनी निप्पल को अपने मुंह में लिए और बच-बच चटकारे लेते हुए चूसने लगा.. महारानी से मिलने से लेकर अब तक वह काफी मात्रा में उनका दूध चूस चुका था फिर भी उसका मन नही भर रहा था.. पीते पीते वह दाईं और के स्तन को हथेली से गोल गोल घुमाते हुए मसल रहा था। महारानी की हथेलियों ने शक्तिसिंह के लंड को ढूंढ निकाला और उसे मुरछावस्था से बाहर निकालने की भरसक कोशिश करने लगी। दो स्खलन के बाद वह बेजान मुर्दे की तरह शक्तिसिंह की जांघों पर आराम कर रहा था।
महारानी ने अब लेटे लेटे ही अपनी चुत के मांसल हिस्से को शक्तिसिंह के लंड पर रगड़ना शुरू किया.. कुछ समय तक तो उसके हथियार ने जीवंत होने के कोई आसार नही दिए पर धीरे धीरे हरकत में आने लगा... जैसे बेहोश व्यक्ति प्याज सूंघते ही होश में आ जाता है वैसे ही शक्तिसिंह का लंड महारानी की चुत की गंध सूंघते हुए अंगड़ाई लेकर खड़ा होने की तैयारी करने लगा था...
मुंह में लिए स्तन का सारा दूध चूस लेने के बाद शक्तिसिंह ने दूसरी चुची को गिरफ्त में लिया... दूध पीने से ताकत आती है यह तो हम सदियों से सुनते आ रहे है... इसका जीवंत उदाहरण यहाँ नजर आ रहा था.. शक्तिसिंह का लंड अब सख्त रूप धारण कर रहा था... और महारानी की चुत को दोबारा से भेदने के लिए तैयार हो गया था...
शक्तिसिंह ने अपने हाथ से महारानी के भगोष्ठ को मलना शुरू कर दिया... दो बार झड़ चुकी महारानी का दाना, अंगूर जितना बड़ा और चिपचिपा सा था... उसके छूने भर से ही महारानी कराहने लगी.. एक तरफ निप्पल की चुसाई और दूसरी तरफ क्लिटोरिस की रगड़न.. शक्तिसिंह ने देखा की महारानी अब धीरे धीरे बेकाबू होती जा रही थी...
उसने अपने एक हाथ को महारानी की दोनों जांघों के बीच डाल और उन्हे फैलाने की कोशिश की.. ताकि वह वापिस उनकी यौन गुफा में लिंग प्रवेश करने की तैयारी कर सके... पर महारानी ने अपनी जांघें खोली ही नही... इस पर अचंभित होकर जब शक्तिसिंह ने महारानी की और देखा तो वह हौले हौले मुस्कुराने लगी..
शक्तिसिंह का लंड अब तन्ना गया था... उस राक्षस की तरह जो जागने पर शिकार माँगता है... वह महारानी के शरीर के ऊपर सवार होने गया तो महारानी ने उसे रोक लिया.. वह समझ नही पा रहा था की वह आखिर क्या चाहती थी!! अगर फिर से चुदवाना नही था तो लंड को जागृत क्यों किया!!
इस पहेली का उत्तर उसे तब मिल जब महारानी करवट लेकर पेट के बल टांगें फैलाकर लेट गई.. शक्तिसिंह के जड़ दिमाग में अचानक बत्ती जल गई.. उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई.. वह अब धीरे से महारानी के चूतड़ों के दोनों तरफ घुटने टेक कर सवार हो गया... अपनी हथेलियों से वह महारानी के मदमस्त चरबीदार कूल्हों को गोल गोल सहलाने लगा.. फिर धीरे से उसने चूतड़ों को फैलाया और उनके बादामी रंग के गांड के छिद्र को उजागर किया।
आखिरी बार महारानी की गांड मारे हुए काफी समय बीत चुका था.. शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की वापिस वह उसका लंड अपने छेद में बर्दाश्त कर पाएगी या नही... पर जब महारानी ने ही पहल की थी फिर उसके लिए पीछे हटने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था..
सबसे बड़ी दिक्कत यह थी की यहाँ तेल या तो और कोई चीकना पदार्थ उपलब्ध नही था जिससे की वो महारानी की गांड को लसलसित कर सके.. अपनी मुंह की लार के अलावा ओर किया जरिया उसके दिमाग में नही आया इसलिए उसने वही इस्तेमाल करने का निश्चय किया...
पहले तो उसने विपुल मात्र में लार से अपने लंड को पूर्णतः गीला कर दिया... और फिर हथेली में लार लेकर उसने महारानी के छेद को रोग़न लगाया... अब लंड को छेद पर रखके उसने बड़ी ही बेरहमी से एक ही झटके में पूरा लंड अंदर दे मारा...
"हाये दइयाँ... मर गई... ऊईईई माँ... " महारानी के कंठ से चीख निकल गई
दोनों हाथों को बिस्तर पर टिकाकर उन्होंने अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से को उठा लिया.. दर्द के मारे वह अपने छेद की मांसपेशियों को शक्तिसिंह के लंड के आकर के साथ अनुकूलित करने का प्रयास करने लगी ताकि दर्द की मात्रा कम हो जाए...
"थोडी क्षणों तक यूं ही लेटे रहिए महारानी जी, अभी दर्द कम हो जाएगा" ढाढ़स बांधते हुए शक्तिसिंह ने कहा
महारानी वापिस बिस्तर पर लेटकर दर्द कम होने का इंतज़ार करने लगी.. पर कसे हुए छेद में घुसाने के बाद शक्तिसिंह की धीरज न रही.. उसने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए..
"अरे थोड़ा सा रुको भी... शुरू हो गए तुम तो... " महारानी ने कराहते हुए कहा
"थोड़ा सा आगे पीछे करूंगा तो आपका शरीर मेरे लिंग के आकार से अभ्यस्त हो जाएगा... फिर कष्ट नही होगा" शक्तिसिंह जानता था की कितना भी इंतज़ार कर ले दर्द तो होने ही वाला था... दर्द को सिर्फ अधिक आनंद से कम किया जा सकता था.. और वह आनंद तभी मिलता अगर घर्षण शुरू हो जाए... इसके अतिरिक्त महारानी के अंगों को भी उकसाना आवश्यक था ताकि वह पूर्णतः सहयोग दे सके..
उसने बिस्तर और महारानी के बीच फंसे दोनों स्तनों को दबोचना शुरू कर दिया.. हर बार दबाने पर स्तनों से दूध की पिचकारी निकलती.. स्तनों के इर्दगिर्द दूध गिरने से बिस्तर पर दो धब्बे बन गए थे...
महारानी अब सिहरने लगी.. दर्द तो हो रहा था पर शक्तिसिंह के संसर्ग के आनंद ने उस दर्द से उभरने में काफी मदद मिली। शक्तिसिंह के हर धक्के पर उनके गोलमटोल कूल्हे पिचक जाते.. और लंड बाहर की तरफ जाते ही फिर से उभर आते...
फिर से एक बार नगाड़े बजने की आवाज सुनाई दी.. तालिम के दो चरण खतम हो चुके थे और तीसरा शुरू होने की तैयारी स्वरूप नगाड़ा बज रहा था.. शक्तिसिंह ने धक्कों की गति बढ़ाई... पर ज्यादा तीव्र धक्के लगाने पर महारानी सह नही पा रही थी... इसलिए अब वह ना ही धीरे, ना ही तेज, ऐसे धक्के लगाते हुए अनुकूलतम संतुलन साधने का प्रयत्न कर रहा था..
महारानी के कूल्हों पसीने से तर हो गए थे.. शक्तिसिंह ने धक्के लगा लगा कर उनके बादामी छिद्र को लाल कर दिया था... उनका छिद्र अपनी पराकाष्ठा तक चौड़ा हो चुका था... दो जांघों के बीच नजर आ रही चुत के रस से उनके झांट गीले हो चुके थे... दो बार वीर्य-स्खलन कर चुके शक्तिसिंह को चरमसीमा पर पहुँचने का रास्ता थोड़ा कठिन लग रहा था...
आखिरकार तेज धक्कों से महारानी की कसी हुई गांड में शक्तिसिंह के लंड ने वीर्य-विसर्जित कर दिया... आखिरी ५-६ धक्के लगाकर वह उनकी पीठ पर ढेर हो गया... थकान, उत्तेजना और दर्द के कारण महारानी लगभग मूर्छित अवस्था में चली गई...
सांसें सामान्य होने पर शक्तिसिंह ने महारानी के चूतड़ों के बीच से अपने लंड को बाहर निकाला और बगल में लेट गया... अब वह और आराम कर सके ऐसी स्थिति में न था.. उसने तुरंत कपड़े पहने और चुपके से पुराने महल के बाहर निकल। किसी की नजर न पड़े इसलिए वह झाड़ियों के रास्ते होते हुए तालीमशाला पहुँच गया...