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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

LustyArjuna

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चिड़ियों की चहचहाट से जंगल की सुबह हो गई... सेवक सफाई में जुट गए थे और खानसामे सुबह का नाश्ता बनाने में... शक्तिसिंह अपने तंबू में खर्राटे मार कर सो रहा था... आधी रात तक राजमाता के भूखे भोंसड़े को पेलने के बाद वह सुबह चार बजे चुपके से अपने तंबू में लौटकर, चुदाई की थकान उतार रहा था...

शाही तंबूओ के बीचोंबीच सेवकों ने बड़ा सा मेज और कुर्सियाँ लगाई थी... महाराज और उनके परिवार के लिए विविध प्रकार के व्यंजन और फलों का इंतेजाम नाश्ते के लिए किया गया था...

राजमाता और महारानी काफी समय से मेज पर बैठे बैठे महाराज के आने का इंतज़ार करते रहे... अंत में थककर उन्होंने नाश्ता शुरू कर दिया.. थोड़ी देर बाद, महाराज लड़खड़ाती चाल से चलते हुए खाने के मेज तक आए... उनकी आँखें नशे के कारण लाल थी.. पर थकान की असली वजह तो केवल वह और चन्दा ही जानते थे...

"बड़ी देर कर दी आने में... ?" राजमाता ने सेब का टुकड़ा खाते हुए पूछा

"हाँ... रात को नींद आते काफी वक्त लग गया... इसी लिए जागने में थोड़ी देर हो गई.. "

"मुझे तो लगता है की इसका कारण तुम्हारा अधिक मात्रा में मदिरा सेवन ही है..." राजमाता ने ऋक्ष आवाज में कहा

"क्या माँ... आप हर बार यही बात क्यों निकालती है?" महाराज परेशान हो गए

"क्योंकी तुम्हारी ये आदत तुम्हारा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है.. अब इस स्थिति में तुम शिकार करने कैसे जाओगे?"

इस बात को बदलने के उद्देश्य से महाराज ने प्रस्ताव रखा

"शिकार पर तो में जाऊंगा ही... में सोच रहा था, क्यों न आप और महारानी भी शिकार पर मेरे साथ चलें? अच्छा अनुभव रहेगा... "

"इस अवस्था में महारानी को ले जाना ठीक नहीं रहेगा..." राजमाता ने कहा

"तो फिर आप ही चलिए... एक बार देखेंगी तो विश्वास होगा की आपके बेटे का निशान कितना सटीक है.. "

राजमाता ने कुछ सोचकर कहा "ठीक है... में तुम्हारे साथ चलूँगी.. इससे पहले मुझे महारानी की देखभाल का प्रबंध करना होगा... तुम तैयार हो जाओ... जब निकलोगे तब में शामिल हो जाऊँगी.. " राजमाता मेज से उठकर अपने तंबू की ओर चल पड़ी।

राजमाता के शिकार पर जाने का प्रयोजन सुनकर महारानी की आँखों में चमक आ गई... वह धीरे से खाने के मेज से उठ खड़ी हुई और तंबुओं के पीछे ओजल हो गई... कुछ दूरी पर स्थित शक्तिसिंह के तंबू में वह दबे पाँव घुस गई... शक्तिसिंह घोड़े बेचकर सो रहा था... उसने शक्तिसिंह को जगाया...

"अरे महारानी आप फिरसे आ गई... !!" अपनी आँखों को हथेलियों से मलते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"ध्यान से सुनो... मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है... आज महाराज के साथ राजमाता भी शिकार पर जा रही है... तुम कुछ बहाना बनाकर यहीं रुक जाओ... फिर शाम तक हमारे पास बहुत समय रहेगा... !!" उत्सुक महारानी ने कहा

"आप जानती है की क्या कह रही है? राजमाता ऐसा कदापि होने नहीं देगी... उन्हे जरा भी भनक लगी की में यहाँ रुक गया हूँ तो वह शिकार पर जाएगी ही नहीं... यदि जाएगी भी तो बीच रास्ते वापिस लौटकर हमें रंगेहाथों पकड़ लेगी... "

"तो फिर क्या किया जाए... इस तरह तो हम मिल ही नहीं पाएंगे... " महारानी उदास हो गई

"थोड़ी धीरज रखिए, कुछ ना कुछ रास्ता जरूर निकलेगा... हम जरूर मिल पाएंगे"

"पर कैसे? मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता..."

शक्तिसिंह मौन रहा... उसके पास इसका कोई उत्तर या इलाज नहीं था...

"नहीं, हमे आज ही मिलना होगा... तुम बीमारी का बहाना बना लो... और सब के जाते ही मेरे तंबू में चले आना" व्याकुल महारानी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी..

"यह मुमकिन नहीं है महारानी जी... बहुत खतरा है ऐसा करने में "

"तो तुम नहीं मानोगे... ठीक है... लगता है वक्त आ गया है की राजमाता को बता दिया जाएँ की कैसे तुम राजमहल में वापिस लौटकर भी मेरे जिस्म को नोचते रहे हो... साथ ही महाराज को भी इस बारे में सूचित कर देती हूँ..." महारानी ने अपना अंतिम हथियार आजमाया

"ये आप क्या कह रही है महारानी जी? ऐसा मत कीजिए, में हाथ जोड़ता हुए आपके" शक्तिसिंह के होश गुम हो गए.....

"तो फिर जैसा में कहती हूँ वैसा करो..."

"मुझे एक तरकीब सूझ रही है महारानी जी... में दस्ते के साथ शिकार पर जाऊंगा... मौका देखकर में वहाँ से गायब हो जाऊंगा.. पर वापिस यहाँ छावनी में आना मुमकिन न होगा... आप एक काम कीजिए... टहलने के बहाने आप दूर नदी के किनारे, जहां बीहड़ झाड़ियाँ है, वहाँ मेरा इंतज़ार कीजिए... में वहीं आप से मिलूँगा.."

महारानी आनंदित हो गई.. उनके चेहरे पर चमक आ गई..

"ठीक है... फिर यह तय रहा... में तुम्हें नदी के किनारे मिलूँगी... पर जल्दी आना.. मुझे ज्यादा इंतज़ार मत करवाना... "

"जी जरूर... अब आप यहाँ से जल्दी जाइए.. "

उछलते कदमों के साथ महारानी वापिस चली गई। शक्तिसिंह तुरंत बिस्तर से उठा और अपने दैनिक कामों से निपटकर, सैनिकों के साथ शिकार पर जाने की तैयारी करने लगा।

शिकार पर जाने के लिए महाराज का खेमा तैयार हो गया था... आगे दो हाथी पर महाराज और राजमाता बिराजमान थे... पीछे २५ घोड़ों पर सैनिक सवार थे जिसका नेतृत्व शक्तिसिंह कर रहा था... साथ ही करीब ५० सैनिक पैदल भाला लिए चल रहे थे। महाराज कअंगरक्षक चन्दा भी हाथी के बिल्कुल बगल में चल रही थी... कुछ सैनिक ढोल नगाड़े गले में लटकाए हुए थे.. जिसका उपयोग जानवारों को भड़काकर एक दिशा में एकत्रित करने के लिए किया जाता था। साथ ही साथ एक बग्गी भी थी जिसमे भोजन और अन्य जरूरी चीजें लदी हुई थी।

जंगल में चलते चलते एक घंटा हो गया था.. महाराज ने अब तक दो हिरनों को अपने बाण का शिकार बनाया था... अभी उन्हे किसी खूंखार जंगली जानवर की तलाश थी.. पैदल चल रहे सैनिक चारों दिशा में घूम रहे थे... कुछ सैनिक पेड़ पर चढ़कर जानवर को ढूंढकर खेमे को इत्तिला कर रहे थे...

इसी बीच शक्तिसिंह ने अपने घोड़े की गति कम करते हुए एक जगह स्थगित कर दिया... पूरा खेमा शिकार की तलाश में आगे निकल गए... जब उनके और शक्तिसिंह के बीच सुरक्षित दूरी बन गई तब उसने घोड़े का रुख मोड़ा और वह छावनी के पास नदी के तट की ओर चल पड़ा...

तेज दौड़ रहे घोड़े के साथ शक्तिसिंह का ह्रदय भी उछल रहा था... राजमहल में छुपकर महारानी से मिलना अलग बात थी... पर यहाँ जंगल में उन से मिलना खतरे से खाली नहीं था... किसी के देख लेने का खतरा तो कम था क्योंकी नदी का तट छावनी की विपरीत दिशा में था.. पर उसे भय यह था की अकेली महारानी का सामना किसी जंगली जानवर से ना हो जाए। इसी लिए वह दोगुनी तेजी से घोड़े को दौड़ाते हुए नदी की और जा रहा था।

नदी के तट पर पहुंचते ही शक्तिसिंह ने अपने घोड़े को रोका... उसे थोड़ा सा पानी पिलाया और नजदीक के पेड़ के साथ बांध दिया... उसे महारानी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी... वो काफी देर तक यहाँ वहाँ ढूँढता रहा और आखिर थक कर वह एक पेड़ की छाँव में खड़ा हो गया...

अचानक पीछे से दो हाथों ने शक्तिसिंह को धर दबोचा... प्रतिक्रिया में शक्तिसिंह ने अपना बरछा निकाला और वार करने के लिए मुड़कर देखा तो वह महारानी थी... वह शक्तिसिंह का डरा हुआ मुंह देखकर खिलखिलाकर हँस रही थी... शक्तिसिंह की सांस में सांस आई... उसने बरछा वापिस म्यान में रख दिया।

"आपने तो मुझे डरा ही दिया महारानी जी... " गर्मी के कारण शक्तिसिंह के सिर पर पसीने की बूंदें जम गई थी

महारानी ने बिना कोई उत्तर दिए शक्तिसिंह को अपनी ओर खींचा और उसकी विशाल छाती में अपना चेहरा दबाते हुए उसे बाहुपाश में जकड़ लिया... शक्तिसिंह ने आसपास नजर दौड़ाई... के कोई देख ना रहा हो... फिर निश्चिंत होकर उसने महारानी को अपनी बाहों में भर लिया...

काफी देर इसी अवस्था में रहने के बाद महारानी ने अपना चेहरा उठाया और शक्तिसिंह को पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया... उनके हाथ शक्तिसिंह की बलिष्ठ भुजाओं को सहला रहे थे.. चूमते वक्त उनके कदम ऐसे डगमगा रहे थे जैसे संभोग के पहले गरम घोड़ी चहलकदमी कर रही हो। शक्तिसिंह भी इस गर्माहट भरे चुंबनों का योग्य उत्तर दे रहा था। उसने चूमते हुए महारानी की चोली में अपना हाथ घुसा दिया... और बड़ी नारंगी जैसे दोनों स्तनों को मसलने लगा। महारानी की निप्पल अब सख्त होकर ऐसा कोण बना रही थी की उनका आकार चोली के वस्त्र के ऊपर से भी नजर आने लगा था। स्तनों को सहलाने में सहूलियत हो जाए इस उद्देश्य से महारानी ने चुंबन जारी रखते हुए अपनी चोली खोल दी... शक्तिसिंह की हथेलियों से ढंके उनके दोनों पंछी मुक्त होकर खुले वातावरण का आनंद लेने लगे...

थोड़ी देर यूँ ही चूमते रहने के बाद महारानी ने शक्तिसिंह को अपने बाहुपाश से मुक्त किया... कमर से ऊपर नंगी खड़ी महारानी की अद्वितीय सुंदरता को आँखें भर कर देखता ही रहा शक्तिसिंह...!!

अब महारानी ने अपने घाघरे का नाड़ा खोलना शुरू ही किया था की शक्तिसिंह ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया...

"आप यह क्या कर रही है महारानी जी?"

"वही, जो यहाँ करने आए है... "

"मेरे कहने का यह अर्थ है की... बाकी सब तो ठीक था... पर इस अवस्था में योनिप्रवेश करना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा... लिंग के झटके से आने वाली संतान को नुकसान पहुँच सकता है"

यह सुन महारानी मुस्कुराई... और अपने पेट पर हाथ फेरने लगी... उसने शक्तिसिंह का हाथ पकड़ा और अपने पेट पर रख दिया...

"अंदर पनप रहे इस नन्हे जीव को महसूस करो... इसकी स्थापना तुम्हारे बीज और मेरे अंड से ही हुई है... कहने के लिए यह राजा की संतान होगी... पर हमारे लिए यह सदैव तुम्हारी संतान ही रहेगी... " बड़े ही वात्सल्य से शक्तिसिंह की हथेली को अपने पेट पर घुमाते हुए महारानी ने कहा

"और उसी संतान के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए कह रहा हूँ... इस हालत में संभोग कर हम उसे जोखिम में नहीं डाल सकते"

"तो फिर क्या करूँ में इस नीचे लगी आग का? तुम ही कोई रास्ता निकालो" उदास महारानी ने कहा

"ऐसी स्थिति में तो कुछ हो नहीं सकता... आप अगर स्वयं भी खुदको आनंदित करने का प्रयास करेगी तो गर्भाशय के संकुचन के कारण शिशु को खतरा हो सकता है"

"एक तरीका है मेरे दिमाग में... जिससे मेरी आग भी बुझ जाएगी और गर्भस्थ शिशु को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचेगा... " महारानी का उपजाऊ दिमाग किसी भी सूरत में अपनी हवस की आग मिटाना चाहता था

"कौन सा तरीका?" असमंजस में शक्तिसिंह ने पूछा

महारानी ने नाड़ा खोलकर अपना घाघरा गिरा दिया और पूर्णतः नंगी हो गई... प्रकृति के सानिध्य में, पंछियों की चहकने की और नदी के कलकल बहने की ध्वनि के बीच... इस अति सुंदर महारानी का नग्न रूप बड़ा ही दिव्य प्रतीत हो रहा था... कितना भी देख लो मन ही नहीं भरता था..

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पास के एक घने पेड़ के थड़ पर अपने दोनों हाथ टिकाकर उन्होंने शक्तिसिंह की ओर अपनी गर्दन घुमाई और फिर अपनी गांड उचककर उसे इशारा किया...

महारानी की इस इशारे को शक्तिसिंह समझ ना पाया। अपने चूतड़ हाथों से फैलाकर जब संकेत दिया तब जाकर शक्तिसिंह के दिमाग की बत्ती जली और उसे झटका लगा...

"यह आप क्या कह रही है महारानी जी...?"

"अगर योनि-प्रवेश नहीं कर सकते तो पीछे से तो डाल ही सकते हो... समझ सकती हूँ की तुम एक योद्धा हो और पीछे से वार करने में नहीं मानते... पर यह कोई युद्ध नहीं है.. इस लिए मेरे प्यारे सैनिक... तैयार हो जाओ... और प्यास बुझा दो अपनी महारानी की.. " हँसते हुए महारानी ने कहा और वापिस अपने हाथ पेड़ पर रखकर अपनी गांड पेश कर दी...

शक्तिसिंह अभी भी सदमे में था... महारानी के दो गोल गोरे गोरे चूतड़ों को देखकर उसका मन तो बड़ा ही कर रहा था, पर दो कारण थे उसकी विडंबना के.. एक के उसने कभी किसी की गाँड़ नहीं मारी थी... और दूसरा के क्या महारानी उसके मूसल जैसे लंड को अपनी कोमल गाँड़ में ले पाएगी? वह अपना सिर खुजाता हुआ महारानी के उभरे नितंबों को ताकता रहा...

"क्या सोच रहे हो तुम... हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है... में नदी किनारे सैर करने के बहाने निकली हूँ... ज्यादा देर मेरी अनुपस्थिति रही तो सैनिक ढूंढते हुए आ जाएंगे... जल्दी करो" बेचैन होकर महारानी ने कहा... वासना की आग उनके जिस्म को अब तपा रही थी।

हिचकते हुए शक्तिसिंह महारानी के करीब आया... उनके मक्खन के गोलों जैसे नितंबों को सहलाते ही उसका लंड खड़ा हो गया... उन चूतड़ों को चौड़ा कर उसने महारानी के गुदा-द्वार के दर्शन किए... छोटा गुलाबी छेद देखकर शक्तिसिंह और भी डर गया... यह सोचकर की लंड घुसने पर उसकी क्या दशा होगी..!!

अपने हाथ महारानी के जिस्म के आगे की ओर ले जाकर वह उनके स्तनों को मींजने लगा... महारानी के बड़े गोल स्तनों की निप्पल अब सहवास की अपेक्षा से तनकर खड़ी हो गई थी... पेड़ के सहारे खड़ी महारानी ने अपने दोनों पैरों को थोड़ा सा और फैला लिया.. शक्तिसिंह ने दो चूतड़ों के बीच हाथ घुसेड़कर महारानी की चुत तक ले गया... योनिरस से लसलसित चुत में अपनी उंगली डालकर आगे पीछे किया... उसका उदेश्य यह था की जितना हो सके महारानी को उत्तेजित किया जाए... ताकि उन्हे दर्द कम हो... महारानी की हवस अब उबल रही थी... अपनी गीली उंगलियों को चुत से बाहर निकालकर उसने महारानी की गाँड़ में एक उंगली घुसा दी...

"ऊईई.. जरा धीरे से... " कराह उठी महारानी

शक्तिसिंह ने थोड़ी देर उस उंगली को अंदर बाहर करते हुए गाँड़ के छेद का मुआयना किया... चुत के मुकाबले यह छेद काफी कसा हुआ और तंग महसूस हुआ... और अंदर जरा सी भी आद्रता नहीं थी.. शक्तिसिंह ने उंगली बाहर निकालकर अपने मुंह से थोड़ी सी लार निकाली... और उंगली को गीला कर वापस अंदर डाला.. इस बार महारानी के दर्द की कोई प्रतिक्रिया न दिखी...

अब धीरे से अपनी दूसरी उंगली गांड में सरकाते हुए उसने दूसरे हाथ से महारानी के भगांकुर का हवाला ले लिया... एक हाथ की दो उँगलियाँ अब महारानी की गाँड़ को कुरेद रही थी और दूसरा हाथ उनकी क्लिटोरिस को रगड़ रहा था। महारानी अब ताव में आकर भारी साँसे ले रही थी.. हर सांस के साथ उनका पूरा शरीर ऊपर नीचे हो रहा था... भगांकुर के लगातार घर्षण से वह सिसकियाँ भरते हुए झड़ गई..

अब शक्तिसिंह ने अपनी धोती की गांठ खोल दी। उसका तना हुआ हथियार बाहर निकलकर, सामने दिख रहे शिकार का निरीक्षण करने लगा। काफी मात्रा में मुंह से लार निकालकर शक्तिसिंह ने अपने पूरे लंड को पोत दिया... लार से चिपचिपा होकर लंड काले नाग जैसा दिख रहा था...

शक्तिसिंह ने संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से अपनी दोनों टांगों को फैलाकर अपने लंड को महारानी की गाँड़ के बिल्कुल सामने जमा दिया। दोनों हथेलियों से उसने चूतड़ों को फैलाकर अपने टमाटर जैसे सुपाड़े को महारानी की गांड के प्रवेश द्वार पर लगा दिया। चिकना सुपाड़ा गांड के छेद को फैलाता हुआ थोड़ा सा अंदर गया.. उतना दर्द अपेक्षित था इसलिए महारानी की मुंह से कोई आवाज ना आई..

अब शक्तिसिंह ने महरानी के चूतड़ों को ओर जोर से फैलाया.. और लंड को थोड़ा और अंदर दबाया... अब महारानी थोड़ी अस्वस्थ होने लगी.. अब तक तो उन्होंने दासी की दो उंगलियों को ही अंदर लिया था... शक्तिसिंह का लंड उनकी कलाई के नाप का था.. चिकनाई के कारण लंड का चौथाई हिस्सा अंदर घुस गया... दर्द के बावजूद महारानी ने उफ्फ़ तक नहीं की... आज वो किसी भी तरह चुदना चाहती थी..

लंड को अब ज्यों का त्यों रखकर शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को दबोच लिया... आटे की तरह गूँदते हुए वह उनकी धूँडियों को मसलने लगा.. महारानी के घने काले केश के नीचे छिपी सुराहीदार गर्दन को चूमकर उसने उनके कानों को हल्के से काट लिया...

महारानी थोड़ी सी पीछे की ओर आई ताकि शक्तिसिंह के बाकी के लंड को एक बार में अंदर ले सके.. पर सचेत शक्तिसिंह ने बड़ी सावधानी से खुदको भी थोड़ा सा पीछे कर लिया... महारानी के इरादे को भांपकर उसने थोड़ा सा ओर जोर लगाया और अपना आधा लंड उनकी गाँड़ में डाल दिया...

महारानी का दर्द अब काफी बढ़ गया.. उन्हे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई गरम सरिया उनकी गाँड़ में घुसा दिया गया हो... पूरा छेद जल रहा था... पर वह शक्तिसिंह को रोकना न चाहती थी.. वह धीरज धरकर अपने छेद को शक्तिसिंह के लंड की परिधि से अनुकूलित होने का इंतज़ार करने लगी... उन्होंने अपनी गर्दन को मोड़ा... और शक्तिसिंह ने उनके गुलाबी अधरों को चूम लिया...!!!
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आधे से ज्यादा लंड को अंदर घुसाना शक्तिसिंह ने मुनासिब न समझा... उसने अपने लंड को थोड़ा सा बाहर खींच और फिर से अंदर घुसेड़ा..

"ऊई माँ..." महारानी चीख उठी...

"महारानी जी, दर्द हो रहा हो तो में बाहर निकाल लेता हूँ इसे..." डरे हुए शक्तिसिंह ने कहा

"नहीं नहीं... बाहर मत निकालना... पहली बार है तो थोड़ा दर्द तो होगा ही... थोड़ी देर में मैं अभ्यस्त हो जाऊँगी...!!"

शक्तिसिंह ने थोड़ी सी और लार लेकर लंड और गाँड़ के प्रतिच्छेदन पर मल दिया... महारानी का छेद फैलकर चूड़ी के आकार का बन गया था.. वह पसीने से तर हुई जा रही थी...

अब शक्तिसिंह ने हौले हौले लंड को अंदर बाहर करना शुरू किया... हर झटके पर महारानी की धीमी सिसकियाँ सुनाई दे रही थी... यह अनुभव शक्तिसिंह को बेहद अनोखा लगा... चुत के मुकाबले यह छेद काफी कसा हुआ था... और लंड को मुठ्ठी से भी ज्यादा शक्ति से जकड़ रखे था... इतना तनाव लंड पर महसूस होने पर शक्तिसिंह को बेहद आनंद आने लगा... अगर महारानी के दर्द का एहसास न होता तो वह हिंसक झटके लगाकर इस गाँड़ को चोद देता...

महारानी का लचीला गुलाबी छेद अपनी पूर्ण परिधि को हासिल कर चुका था... इससे ज्यादा फैलता तो चमड़ी फट जाती और खून निकल आता... थोड़ी देर आधे लंड से आगे पीछे करने के बाद... शक्तिसिंह ने एक जोर का झटका लगाया और पौना लंड धकेल दिया.. महारानी झटके के साथ उछल पड़ी... उनकी चीख गले में ही अटक गई... इतना लंड अंदर घुसाने के बाद शक्तिसिंह बिना हिले डुले थोड़ी देर तक खड़ा रहा ताकि महारानी के छेद को थोड़ा सा विश्राम मिले और वह इस छेदन के अनुकूलित हो सके..

अब उसने चूतड़ों को छोड़ दिया... दोनों जिस्म अब लंड के सहारे चिपक गए थे.. महारानी अपनी पीड़ा कम करने के हेतु से अपने दोनों स्तनों को क्रूरतापूर्वक मसल रही थी... शक्तिसिंह ने अपने हाथ को आगे ले जाकर महारानी की चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। स्तन-मर्दन और चुत-घर्षण से उत्पन्न हुई उत्तेजना के कारण अब महारानी के गांड का दर्द कम हुआ..

"अब लगाओ धक्के... " महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह से कहा

महारानी की जंघाओं को दोनों हाथों से पकड़कर शक्तिसिंह ने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिया... कसाव भरे इस छेद ने शक्तिसिंह को आनंद से सराबोर कर दिया... महारानी भी अपने जिस्म को बिना हिलाए उन झटकों को सह रही थी... दर्द कम हो गया था अब उन्हे आनंद की अपेक्षा थी..

अब शक्तिसिंह ताव में आकर धक्के लगाने में व्यस्त हो गया। महारानी को गांड में अजीब सी चुनचुनी महसूस होने लगी... अब धीरे धीरे उन्हे मज़ा आने लगा... हर झटके के साथ उनके चूतड़ थिरक रहे थे।

मध्याह्न का समय हो चुका था... सूरज बिल्कुल सर पर था.. नीचे दो नंगे जिस्म अप्राकृतिक चुदाई में जुटे हुए थे.. दोनों के शरीर पसीने से लथबथ हो गए थे.. महारानी का जिस्म गर्मी और चुदाई के कारण लाल हो गया था..

बेहद कसी हुई गांड ने शक्तिसिंह को ओर टिकने न दिया... लंड के चारों तरफ से महसूस होते दबाव ने शक्तिसिंह को शरण में आने पर मजबूर कर दिया.. उसके अंडकोश संकुचित होकर अपना सारा रस लंड की ओर धकेलने लगे... एक तेज झटका देकर शक्तिसिंह के लंड ने महारानी की गांड को अपने वीर्य से पल्लवित कर दिया... तीन चार जबरदस्त पिचकारी मारकर लंड ने अपना सारा गरम घी महारानी की गांड में उंडेल दिया।

गरम वीर्य का स्पर्श अंदर होते ही महारानी को बेहद अच्छा लगा... जैसे उनके घाव पर मरहम सा लग गया.. पर अभी वह स्खलित नहीं हुई थी... इसलिए अपने भगांकुर को बड़ी ही तीव्रता से रगड़ते जा रही थी। इस बात से बेखबर शक्तिसिंह ने अपने लंड को महारानी की गांड से सरकाकर बाहर निकाल लिया... जंग से लौटे सिपाही जैसे उसके हाल थे.. वह बगल में खड़ा होकर हांफ रहा था..

अपनी चुत को रगड़ते हुए महारानी उसके तरफ मुड़ी... और इशारा कर शक्तिसिंह को घास पर लेट जाने को कहा... शक्तिसिंह के लेटते ही वह अपनी टांगों को फैलाकर उसके मुंह पर सवार हो गई... महारानी की स्खलन की जरूरत को भांपते ही शक्तिसिंह की जीभ अपने काम पर लग गई और उस द्रवित चुत को चाटने लगी... चुत के भीतर के गुलाबी हिस्सों को शक्तिसिंह की जीभ कुरेद रही थी... महारानी की उंगली भी अपनी क्लिटोरिस को रगड़कर अपनी मंजिल को तलाश रही थी...

शक्तिसिंह के मुंह को चोदते हुए महारानी का शरीर अचानक लकड़ी की तरह सख्त होकर झटके खाने लगा... शक्तिसिंह के मुंह पर चुत रस का भरपूर मात्रा में जलाभिषेक हुआ... सिहरते हुए महारानी झड़ गई... और काफी देर तक उसी अवस्था में शक्तिसिंह के मुंह पर सवार रही। थोड़ी देर बाद वह धीरे से ढलकर शक्तिसिंह के बगल में घास पर ही लेट गई...

"वचन दो मुझे की मुझसे और मेरे गर्भ में पनप रही हमारी संतान से मिलने तुम आओगे..."

"जी महारानी जी.. "

थोड़ी देर के विश्राम के बाद दोनों की साँसे पूर्ववत हुई और वास्तविकता का एहसास हुआ... सब से पहले शक्तिसिंह उठ खड़ा हुआ और उसने अपने वस्त्र पहने... फिर आसपास गिरे घाघरे और चोली को समेटकर उसने महारानी को दिए.. प्रथम गाँड़ चुदाई से उभरती हुई महारानी भी धीरे से उठी और अपने वस्त्र पहन लिए।

शक्तिसिंह अपने घोड़े पर सवार हुआ.. और महारानी भी छावनी की तरफ चल दी।


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शानदार अपडेट, गर्भवती महारानी की गाड़ चुदाई हो ही गई और शक्तिसिंह को भी गाड़ का स्वाद मिल गया अब तो राजमाता की भी गाड़ चुदाई नजदीक है।
 

LustyArjuna

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दो चार झोर के झटके महारानी के मम्मों पर मारते हुए शक्तिसिंह का शरीर अकड़ने लगा, होंठ टेढ़े हो गए और चरम सुख की प्राप्ति की स्वर्गीय अनुभूति को ज्यादा से ज्यादा लंबे समय तक महसूस करने के लिए, उसने अपने शरीर में एक कसाव सा पैदा किया, लेकिन फुस्ससससस... एक तेज पिचकारी की धार की तरह, गरमागरम लस्सेदार वीर्य, महारानी के स्तनों और मुंह पर छिड़क गया... उसका लंड और भी पिचकारियाँ मारता उससे पहले ही, महारानी ने शक्तिसिंह का लंड अपने मुंह में ले कर उसका बाकी वीर्य चूस लिया..

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शक्तिसिंह के लंड का वीर्य पूर्णतः चूसने के बाद भी महारानी ने चूसना जारी रखा... उद्देश्य स्पष्ट था.. अभी उनकी चुत की प्यास कहाँ बुझी थी..!! लंड चूसते हुए महारानी ने अपने गोरे चिकने हाथों को शक्तिसिंह की मर्दाना पीठ पर फेरना शुरू कर दिया। साँसे तेज होने लगी। स्तनों पर दबाव पड़ने से बीच बीच में दूध की धराएं निकलकर स्तनों की दोनों ओर बहती जा रही थी।

महारानी के मुंह का लसलसित गरमागरम स्पर्श, आँड़ों के नीचे दबी उनकी गोलमटोल चूचियों की छुअन, शक्तिसिंह का लंड अब फिर से सख्ती धारण करने लगा.. महारानी की चुत तो कब से गीली हो रखी थी...पानी की द्रव्यता का एहसास उनके गुप्तांग में खलबली मचा रहा था.. और अब शक्तिसिंह का लंड भी फिर से नई उचाई प्राप्त कर चुका था।

शक्तिसिंह ने अपना लंड महारानी के मुंह से बाहर निकाला और अब अपना पूरा शरीर सटाकर उनके बगल में लेट गया। उसका लंड फनफनाते हुए निचले चुतनुमा द्वार में प्रवेश करने के लिए व्याकुल था। शरीर के गरम होने से जो ऊर्जा पैदा हो रही थी वह खिड़की के रास्ते आती ठंडी हवा के साथ दोनों शरीरों को ठंडा और शीतल कर रही थी। रह रह क दोनों एक दूसरे को भींच रहे थे और कोशिश कर रहे थे की उनके जिस्म जो एक दूसरे से पूरी तरह से सटे हुए थे उनको और ज्यादा आपस में सटा दे। मानो एक दूसरे के अंदर ही प्रवेश हो जाए और दो बदन एक जान की बजाए दो जान एक बदन हो जाए।

एक दूसरे की मादकता और कामुकता में ऐसी कशिश थी की मानों यह दोनों जिस्म एक दूसरे से संभोग करने के लिए इस धरती पर अवतरित हुए हो!! होंठ सूखने लगे थे, गला अवरुद्ध हो रहा था... अपनी पीठ पर हल्का मखमली एहसास जो कभी कभी नितंबों तक पहुँच जाता था वह शक्तिसिंह को मदहोशी की चरमसीमा का एहसास करवाता था।

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शक्तिसिंह ने अब एक भूखे भेड़िये की तरह महारानी की गर्दन और कान के पीछे चूमना और चाटना शुरू कर दिया। वह सिसकारियाँ भरने लगी और उनका शरीर एक नागिन की तरह अकड़ने और लोटने लगा.. जैसे ही कान का निचला हिस्सा मुंह में कैद हुआ तो महारानी के मुख से हल्की सी आह निकल गई। गर्दन से नीचे जाते हुए दो सुंदर बड़े मम्मों के ऊपरी छोर पर शक्तिसिंह के होंठ अपना चमत्कार दिखाने लगे।

महारानी की चूचियों से दूध चूसते हुए और कुछ मिनटों दोनों पहाड़ियों का रसपान करते हुए अब वह उनकी नाभि तक पहुँच गया। नाभि की गहरी खाई को चूमकर उसने जीभ को उस छिद्र में घुमाना शुरू किया। सिसकारियों की गूंज पूरे कमरे में सुनाई दे रही थी। अब उसने नाभि के आसपास के कमर के हिस्से को जैसे ही चूमना शुरू किया की नागिन के रेंगने की गति बहुत तेज हो गई।

जैसे ही जीभ का स्पर्श नाभि के नीचे कमर के पास होता तो जैसे वह बर्दाश्त ही नही कर पाती और शक्तिसिंह के सिर के बालों को जोर से पकड़ कर, मानों न चाहते हुए हटाना चाहती थी। लेकिन इतना मज़ा आ रहा था की खुद ही फिर से उसके सिर को अपने शरीर से दबा लेती। चुत के ऊपर के हल्के रेशमी बालों पर जीभ फेरते हुए वह उन्हे भिगो रहा था। महारानी ने अपनी दोनों टांगों को उठाकर शक्तिसिंह की कमर के ऊपर एक फंडा बना दिया और अपने दोनों पाँवों को उसकी कमर के पीछे जोड़ दिया।

अब महारानी की चुत इतनी गीली हो चुकी थी की नारी-रस की कुछ बूंदें बाहर के होंठों पर दिखाई देने लगी थी। शक्तिसिंह के होंठ जैसे ही फुली हुई दोनों गुलाबी पंखुड़ियों पर पड़े की उनके मुंह से "आह्हहहहहह" का उदगार निकल गया। शक्तिसिंह ने महारानी के बुर की फाँकों को चूस चूस कर इतना मस्त कर दिया की फिजा में गंगा-यमुना बहने लगी।

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महारानी के दाने पर जैसे ही शक्तिसिंह की जीभ टकराई, "मैं मर जाऊँगी... हाययय... ईशशशश... आहहह.. " की आवाज़े उनके मुंह से निकलती ही रही। शक्तिसिंह ने अपने दांतों के बीच भींचते हुए बड़े प्रेम से दाने को हल्का सा काटा तो महारानी के सब्र का बांध टूट गया...

झर्झराती, अटखेलियाँ करती स्त्री-वीर्य की नदी सी बहने लगी.. शरीर अकड़ कर मानों सिकुड़ सा गया और भूकंप से झटके खाने लगा.. कपकपाते हुए शरीर ने दर्जनों झूले झूल लिए और रह रह कर महारानी कराहते हुए झड़ गई.. शक्तिसिंह ऐसे उनकी चुत का रस चाट रहा था जैसे बिल्ली बर्तन से दूध चाट रही हो..

महारानी की चुत को पूर्णतः साफ कर तृप्त होकर शक्तिसिंह ऊपर उठा... स्खलन से थकी हुई पर मुसकुराती महारानी ने आँखों से ही, अगले चरण को शुरू करने का न्योता दिया.. जैसे इसी संकेत का इंतज़ार कर रहा हो वैसे शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों जंघाओं को पकड़ा और अपने पैर के ऊपर सटाकर अपने लंड को बिल्कुल उनकी चुत के सामने लाकर रख दिया..

लंड को चिकना करने की कोई आवश्यकता नही थी... महारानी की चुत ऐसे पानी छोड़ रही थी जैसे बांध से पानी को छोड़ा जा रहा हो..!! जैसे ही उसने अपने सुपाड़े को महारानी की चुत के गुलाबी होंठों के बीच रखा, उन्होंने खुद ही अपने चूतड़ उठाकर एक मजबूत झटका लगाया और शक्तिसिंह का आधे से ज्यादा लंड उनकी लसलसित चुत के अंदर घुस गया..!!


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महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर जमाकर शक्तिसिंह ने धक्के लगाने का दौर शुरू कर दिया। महारानी की योनि के गिलेपन की वजह से उसका लंड छपाक छपाक की आवाज़े करता हुआ चुत की गहराइयों को नापने लगा। नाचती उछलती हुई चूचियों को हाथों से दबोच दबोच कर शक्तिसिंह मजबूत धक्के लगाने लगा.. महारानी की उछलकूद बहुत तेज हो गई थी। वह लंड को अपने भीतर चुत की दीवारों की मांसपेशियों से भींचते हुए जोर जोर से निचोड़ने और दबाने लगी। अपने लंड की ऐसी मरम्मत पाकर शक्तिसिंह भी धन्य हो रहा था।

महारानी के शरीर में सैलाब सा उमड़ रहा था। संभोग का हर धक्का उनके शरीर को ऊपर से नीचे तक झकझोर कर रख देता.. प्रत्येक धक्के के साथ उनके पेट की चर्बी बड़ी ही मादकता से थिरक रही थी। शक्तिसिंह के धक्कों का वह माकूल जवाब दे रही थी... अपने चूतड़ उछाल उछाल कर...!!

शक्तिसिंह अब महारानी के शरीर पर झुककर प्रायः उनके स्तनों तक पहुँच गया... और अपना प्रिय दुग्धपान करने लगा... साथ ही साथ उसने महारानी के सख्त दाने को रगड़ना शुरू कर दिया.. इस तीन तरफा हमले के सामने महारानी और टीक नही पाई... बल खाता हुआ उनका शरीर बुरी तरह से अकड़कर हांफने लगा... शक्तिसिंह की पीठ पर अपने नाखूनों से खरोंचती हुई वह जोर से चीखी... और पराकाष्ठा तक पहुँच गई...

शक्तिसिंह भी अपनी मंजिल की ओर अग्रेसर था और उसने धमाधम धक्के लगाते हुए महारानी की चुत में अपने उपजाऊ वीर्य का अभिषेक कर दिया... हर धक्के के साथ पिचकारी महारानी की बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकरा रही थी... करीब आठ दस ऐसे धक्के लगाने के बाद वह पस्त हो गया और महारानी के बाजू में लाश की तरह गिर गया... दोनों की स्थिति ऐसी थी जैसे मल्लयुद्ध करके लौटे हो!!

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अपने स्खलन से उभरकर महारानी लैटे लैटे शक्तिसिंह की ओर मुड़ी.. और उसके सिर के बालों में अपने हाथ फेरने लगी। दो बार चरमसीमा पर पहुंचकर वह थक चुका था... और आँखें बंद कर वह अपनी सांसें नियंत्रित होने का इंतज़ार कर रहा था... थोड़ी देर बाद उसने अपनी आँखें खोली और महारानी के सामने देखकर मुस्कुराया..

"मुझे अब चलना चाहिए... काफी देर हो गई... " शक्तिसिंह ने उठकर अपने वस्त्रों की ओर हाथ बढ़ाएं

"इतनी जल्दी!! थोड़ी देर और रुक जाओ... इतने समय बाद मिले हो.. मुझे मन भरकर देखने तो दो तुम्हें" बड़े ही प्यार से महारानी ने कहा

"महारानी जी, तालिम पूरे जोर से चल रही है, कल सुबह तो हमे सैन्य के साथ शौर्यगढ़ के लिए निकलना है... बहुत सारी तैयारियां अभी बाकी है.. मेरा दल मेरा इंतज़ार कर रहा होगा.. कृपया मुझे जाने की अनुमति दे" शक्तिसिंह ने विनती करते हुए कहा

"नहीं शक्तिसिंह... में तुम्हें नही जाने दूँगी... थोड़ी देर ओर रुक जाओ" महारानी ने नैन मटकाते हुए कहा

महारानी के इस प्यार भरे न्योते को शक्तिसिंह मना न कर पाया... वह फिरसे उनकी बगल में लेट गया और अपनी हथेली से महारानी के सुंदर चेहरे को सहलाने लगा...

"मेरी छातियों में फिर से दूध भर गया है... पी लो थोड़ा सा.. मेरा बोझ हल्का हो जाएगा" शैतानी मुस्कुराहट के साथ महारानी ने कहा

इसके लिए शक्तिसिंह को किसी आमंत्रण की जरूरत नही थी। वह महारानी के बगल में ही लेटे हुए थोड़ा सा नीचे की तरफ आ गया, इस तरह की महारानी की चुची बिल्कुल उसके मुंह के सामने आ जाए... करवट लेकर सोई महारानी की पहाड़ जैसी चूचियाँ थोड़ा सा ढह गई थी। श्वेत स्तनों पर गुलाबी निप्पलें बेहद सुंदर दिख रही थी!! दूध के भराव के कारण निप्पल पर सफेद बूंदें उमड़ आई थी...

अब उसने दाहिनी निप्पल को अपने मुंह में लिए और बच-बच चटकारे लेते हुए चूसने लगा.. महारानी से मिलने से लेकर अब तक वह काफी मात्रा में उनका दूध चूस चुका था फिर भी उसका मन नही भर रहा था.. पीते पीते वह दाईं और के स्तन को हथेली से गोल गोल घुमाते हुए मसल रहा था। महारानी की हथेलियों ने शक्तिसिंह के लंड को ढूंढ निकाला और उसे मुरछावस्था से बाहर निकालने की भरसक कोशिश करने लगी। दो स्खलन के बाद वह बेजान मुर्दे की तरह शक्तिसिंह की जांघों पर आराम कर रहा था।

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महारानी ने अब लेटे लेटे ही अपनी चुत के मांसल हिस्से को शक्तिसिंह के लंड पर रगड़ना शुरू किया.. कुछ समय तक तो उसके हथियार ने जीवंत होने के कोई आसार नही दिए पर धीरे धीरे हरकत में आने लगा... जैसे बेहोश व्यक्ति प्याज सूंघते ही होश में आ जाता है वैसे ही शक्तिसिंह का लंड महारानी की चुत की गंध सूंघते हुए अंगड़ाई लेकर खड़ा होने की तैयारी करने लगा था...

मुंह में लिए स्तन का सारा दूध चूस लेने के बाद शक्तिसिंह ने दूसरी चुची को गिरफ्त में लिया... दूध पीने से ताकत आती है यह तो हम सदियों से सुनते आ रहे है... इसका जीवंत उदाहरण यहाँ नजर आ रहा था.. शक्तिसिंह का लंड अब सख्त रूप धारण कर रहा था... और महारानी की चुत को दोबारा से भेदने के लिए तैयार हो गया था...

शक्तिसिंह ने अपने हाथ से महारानी के भगोष्ठ को मलना शुरू कर दिया... दो बार झड़ चुकी महारानी का दाना, अंगूर जितना बड़ा और चिपचिपा सा था... उसके छूने भर से ही महारानी कराहने लगी.. एक तरफ निप्पल की चुसाई और दूसरी तरफ क्लिटोरिस की रगड़न.. शक्तिसिंह ने देखा की महारानी अब धीरे धीरे बेकाबू होती जा रही थी...

उसने अपने एक हाथ को महारानी की दोनों जांघों के बीच डाल और उन्हे फैलाने की कोशिश की.. ताकि वह वापिस उनकी यौन गुफा में लिंग प्रवेश करने की तैयारी कर सके... पर महारानी ने अपनी जांघें खोली ही नही... इस पर अचंभित होकर जब शक्तिसिंह ने महारानी की और देखा तो वह हौले हौले मुस्कुराने लगी..

शक्तिसिंह का लंड अब तन्ना गया था... उस राक्षस की तरह जो जागने पर शिकार माँगता है... वह महारानी के शरीर के ऊपर सवार होने गया तो महारानी ने उसे रोक लिया.. वह समझ नही पा रहा था की वह आखिर क्या चाहती थी!! अगर फिर से चुदवाना नही था तो लंड को जागृत क्यों किया!!

इस पहेली का उत्तर उसे तब मिल जब महारानी करवट लेकर पेट के बल टांगें फैलाकर लेट गई.. शक्तिसिंह के जड़ दिमाग में अचानक बत्ती जल गई.. उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई.. वह अब धीरे से महारानी के चूतड़ों के दोनों तरफ घुटने टेक कर सवार हो गया... अपनी हथेलियों से वह महारानी के मदमस्त चरबीदार कूल्हों को गोल गोल सहलाने लगा.. फिर धीरे से उसने चूतड़ों को फैलाया और उनके बादामी रंग के गांड के छिद्र को उजागर किया।

आखिरी बार महारानी की गांड मारे हुए काफी समय बीत चुका था.. शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की वापिस वह उसका लंड अपने छेद में बर्दाश्त कर पाएगी या नही... पर जब महारानी ने ही पहल की थी फिर उसके लिए पीछे हटने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था..

सबसे बड़ी दिक्कत यह थी की यहाँ तेल या तो और कोई चीकना पदार्थ उपलब्ध नही था जिससे की वो महारानी की गांड को लसलसित कर सके.. अपनी मुंह की लार के अलावा ओर किया जरिया उसके दिमाग में नही आया इसलिए उसने वही इस्तेमाल करने का निश्चय किया...

पहले तो उसने विपुल मात्र में लार से अपने लंड को पूर्णतः गीला कर दिया... और फिर हथेली में लार लेकर उसने महारानी के छेद को रोग़न लगाया... अब लंड को छेद पर रखके उसने बड़ी ही बेरहमी से एक ही झटके में पूरा लंड अंदर दे मारा...

"हाये दइयाँ... मर गई... ऊईईई माँ... " महारानी के कंठ से चीख निकल गई

दोनों हाथों को बिस्तर पर टिकाकर उन्होंने अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से को उठा लिया.. दर्द के मारे वह अपने छेद की मांसपेशियों को शक्तिसिंह के लंड के आकर के साथ अनुकूलित करने का प्रयास करने लगी ताकि दर्द की मात्रा कम हो जाए...

"थोडी क्षणों तक यूं ही लेटे रहिए महारानी जी, अभी दर्द कम हो जाएगा" ढाढ़स बांधते हुए शक्तिसिंह ने कहा

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महारानी वापिस बिस्तर पर लेटकर दर्द कम होने का इंतज़ार करने लगी.. पर कसे हुए छेद में घुसाने के बाद शक्तिसिंह की धीरज न रही.. उसने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए..

"अरे थोड़ा सा रुको भी... शुरू हो गए तुम तो... " महारानी ने कराहते हुए कहा

"थोड़ा सा आगे पीछे करूंगा तो आपका शरीर मेरे लिंग के आकार से अभ्यस्त हो जाएगा... फिर कष्ट नही होगा" शक्तिसिंह जानता था की कितना भी इंतज़ार कर ले दर्द तो होने ही वाला था... दर्द को सिर्फ अधिक आनंद से कम किया जा सकता था.. और वह आनंद तभी मिलता अगर घर्षण शुरू हो जाए... इसके अतिरिक्त महारानी के अंगों को भी उकसाना आवश्यक था ताकि वह पूर्णतः सहयोग दे सके..

उसने बिस्तर और महारानी के बीच फंसे दोनों स्तनों को दबोचना शुरू कर दिया.. हर बार दबाने पर स्तनों से दूध की पिचकारी निकलती.. स्तनों के इर्दगिर्द दूध गिरने से बिस्तर पर दो धब्बे बन गए थे...

महारानी अब सिहरने लगी.. दर्द तो हो रहा था पर शक्तिसिंह के संसर्ग के आनंद ने उस दर्द से उभरने में काफी मदद मिली। शक्तिसिंह के हर धक्के पर उनके गोलमटोल कूल्हे पिचक जाते.. और लंड बाहर की तरफ जाते ही फिर से उभर आते...

फिर से एक बार नगाड़े बजने की आवाज सुनाई दी.. तालिम के दो चरण खतम हो चुके थे और तीसरा शुरू होने की तैयारी स्वरूप नगाड़ा बज रहा था.. शक्तिसिंह ने धक्कों की गति बढ़ाई... पर ज्यादा तीव्र धक्के लगाने पर महारानी सह नही पा रही थी... इसलिए अब वह ना ही धीरे, ना ही तेज, ऐसे धक्के लगाते हुए अनुकूलतम संतुलन साधने का प्रयत्न कर रहा था..

महारानी के कूल्हों पसीने से तर हो गए थे.. शक्तिसिंह ने धक्के लगा लगा कर उनके बादामी छिद्र को लाल कर दिया था... उनका छिद्र अपनी पराकाष्ठा तक चौड़ा हो चुका था... दो जांघों के बीच नजर आ रही चुत के रस से उनके झांट गीले हो चुके थे... दो बार वीर्य-स्खलन कर चुके शक्तिसिंह को चरमसीमा पर पहुँचने का रास्ता थोड़ा कठिन लग रहा था...

आखिरकार तेज धक्कों से महारानी की कसी हुई गांड में शक्तिसिंह के लंड ने वीर्य-विसर्जित कर दिया... आखिरी ५-६ धक्के लगाकर वह उनकी पीठ पर ढेर हो गया... थकान, उत्तेजना और दर्द के कारण महारानी लगभग मूर्छित अवस्था में चली गई...


सांसें सामान्य होने पर शक्तिसिंह ने महारानी के चूतड़ों के बीच से अपने लंड को बाहर निकाला और बगल में लेट गया... अब वह और आराम कर सके ऐसी स्थिति में न था.. उसने तुरंत कपड़े पहने और चुपके से पुराने महल के बाहर निकल। किसी की नजर न पड़े इसलिए वह झाड़ियों के रास्ते होते हुए तालीमशाला पहुँच गया...
बहुत कामोत्तेजक अपडेट था ऐ, महारानी की प्रसव के बाद की घमासान चुदाई की आवश्यकता को अति उत्तेजक तरीके से पुरा किया है।
 
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LustyArjuna

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"तू मुझे अभी निचोड़ देगी... तो वहाँ राजमाता के पास पिचके हुए थन जैसा लिंग लेकर कैसे जाऊँ? निराश मत हो... में वचन देता हूँ... आने वाली रातों में, मैं तेरी सारी इच्छाएं पूर्ण कर दूंगा.... " उदास मन से चन्दा देखती ही रही और शक्तिसिंह उसकी आँखों से ओजल हो गया

राजमाता के तंबू की सारी रोशनीयां बुझा दी गई थी... कोने में केवल एक दीपक जल रहा था... उस दीपक की रोशनी में भी साफ दिखाई दे रहा था की राजमाता अपने बिस्तर पर टाँगे फैलाए लेटी हुई थी।

शक्तिसिंह ने बिस्तर तक पहुँचने से पहले ही अपना ऊपरी वस्त्र उतार फेंका और धोती की गांठ खोल दी। अब वह पूर्णतः नग्न होकर राजमाता के बिस्तर के करीब जा पहुंचा।

वह अपने कूल्हों पर हाथ रखकर और चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर खड़ा रहा और इंतजार करता रहा। राजमाता मखमली चिकने बिस्तर पर आगे की ओर बढ़ी और उसके लिंग के उभरे हुए सिरे को अपने मुँह में ले लिया। धीरे-धीरे उसने अपना मुंह, लंड के निचले हिस्से को अपनी जीभ से चाटते हुए चलाया, जब तक कि शक्तिसिंह के झांट के बाल उनके होंठों तक नहीं पहुंच गए। लंड चूसते हुए अपनी आँखों में कुटील मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। हमेशा से शक्तिसिंह को यह बात चकित कर देती थी की कितनी आसानी से राजमाता उसका पूरा लंड निगल जाती थी!!

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अपने हाथ कूल्हों से हटाकर राजमाता के रेशमी काले बालों को सहलाने लगा और राजमाता अपनी जीभ से उसके लंड के निचले हिस्से को सहलाती रही। शक्तिसिंह ने अचानक अपने दोनों हाथों से राजमाता का सिर पकड़ लिया और बड़ी बेरहमी से उसे अपने लंड पर आगे-पीछे करने लगा। राजमाता कराहने लगी लेकिन अपनी जीभ से लंड के निचले हिस्से चाटती रही क्योंकि शक्तिसिंह की बढ़ती उत्तेजना ने तेजी से उसके धक्कों की गति बढ़ा दी। अचानक, एक लम्बी चीख के साथ शक्तिसिंह झड़ गया। वीर्य के फव्वारे ने राजमाता का कंठ गीला कर दिया।वह जितना निगल सकती थी, निगल गई लेकिन आज काफी ज्यादा मात्रा में वीर्यस्त्राव हुआ था और वह अतिरिक्त वीर्य, राजमाता के मुंह से छलक कर उनकी ठुड्डी और छाती पर रिस गया।

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अपना मुरझाया हुआ लंड, शक्तिसिंह ने वापस राजमाता के मुँह में डाल दिया।

आज न तो दोनों के बीच कोई संवाद हुआ और ना ही कोई शरारत... शायद युद्धभूमि में होने के एहसास ने राजमाता को गंभीर कर दिया था.. और शायद उसी कारण शक्तिसिंह ज्यादा आक्रामक बन गया था... किसी और दिन राजमाता, शक्तिसिंह को यूं मनमानी नही करने देती और खुद ही संभोग का संचालन करती.. पर आज का माहोल अलग था...

राजमाता ने उसके लंड को ज़ोर-ज़ोर से तब तक चूसा जब तक कि वह फिर से सख्त नही हो गया। लंड कडा होते ही, शक्तिसिंह ने एक झटके से राजमाता के मुंह को अपने लंड से अलग किया और उन्हे बड़े बिस्तर पर पटक दिया। अब उसने राजमाता की ढीले घाघरे को ऊपर उठाया और उनका झांटेदार भोंसडा उजागर हो गया। बिना कोई विलंब किए वह राजमाता पर चढ़ गया।

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"आज आपको ऐसा चोदूँगा की आप बड़े लंबे काल तक याद रखेंगी!!" जैसे ही उसने अपना लंड राजमाता की गर्म और गीली योनी में डाला, उनके जिस्म में एक गरम झुरझुरी सी चल गई। शक्तिसिंह के इस आवेश को वह समझ नही पा रही थी.. कल वह लंबे अरसे तक उनसे दूर जाने वाला था इसलिए कसर पूरी कर रहा था... या फिर कुछ और कारण था.. जो भी हो... राजमाता को बड़ा ही मज़ा आ रहा था इसलिए वह शक्तिसिंह के निर्देश का पालन करती गई।

शक्तिसिंह ने अपना चेहरा नीचे किया और राजमाता के होठों को चूमा और फिर अपनी जीभ उनके मुँह में डाल दी और जैसे ही उसने अपनी जीभ को उसकी जीभ से मिलाया, उसने अपने लंड के धक्के के साथ उसे समय-समय पर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।

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फिर उसने राजमाता को बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया। उसने अंदर-बाहर उनके भोसड़े पर बुरी तरह से तब तक प्रहार किया जब तक कि वह दर्द से चिल्ला नहीं उठी। राजमाता की चिल्लाहट सुनकर शक्तिसिंह का जोश उतर गया। उसने धक्के लगाना रोक दिया

"आपको दर्द हुआ राजमाता?" चिंतित शक्तिसिंह ने पूछा

"बकवास बंद कर.. और चोदना जारी रख... मूर्ख" कराहते हुए राजमाता ने कहा... उन्हे इस पीड़ा में भी बेहद मज़ा आ रहा था और इस अंतराल को वह बर्दाश्त न कर पाई

वह गुर्राती रही और पूरी ताकत के साथ अपने चूतड़ उठाकर धक्के लगाती रही, अपनी जांघों को उन्होंने पूरा फैला दिया था ताकि शक्तिसिंह का लंड ज्यादा से ज्यादा अंदर तक वार कर सके। शक्तिसिंह ने अपना चेहरा राजमाता के कोमल चेहरे पर रगड़ा, और बारी-बारी से उनके चेहरे को चाटा। अब वह थोड़ा स नीचे पहुंचा और राजमाता की कढ़ाईदार रेशमी चोली को एक ही झटके में फाड़ दिया। उनके गुलाबी निप्पलों को पागलों की तरह चूसने लगा। अतिरिक्त उत्तेजना से कराहती हुई राजमाता अपने चरमसुख तक पहुंच गई। और स्खलित होते होते उन्होंने अपनी जांघों की कुंडली में शक्तिसिंह के लंड को ऐसे फसाया की वह भी कांपते हुए झड़ गया। राजमाता की चुत, शक्तिसिंह के पौष्टिक तरल पदार्थ से भर गई थी, और अब भी वह उसके विशाल लंड को लयबद्ध तरीके से निचोड़ रही थी।

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शक्तिसिंह निढाल हो कर राजमाता के स्खलन के नशे के उतरने का इंतजार कर रहा था। उनकी चुत की माँसपेशियाँ स्खलन के कारण अकड़ गई थी और शक्तिसिंह का लंड फंस गया था। अपने लंड को चुत से बाहर निकालने में असमर्थ होने के कारण वह लेटे लेटे उनकी निप्पलों को चबाता रहा.. तब तक चूसता रहा जब तक अंततः राजमाता की चुत ने उसके विशाल लंड को छोड़ नहीं दिया।

दो बार झड़ने के बावजूद शक्तिसिंह का लंड बैठने का नाम ही नही ले रहा था... उसने राजमाता को अपने हाथों और घुटनों के बल पलट दिया और वह उनके पीछे बिस्तर पर चढ़ गया और अपने घुटनों को उनके घुटनों के साथ मिला दिया।

शक्तिसिंह ने हौले से राजमाता के नितंबों को अलग किया और वहाँ उसका सिकुड़ा हुआ गुलाबी असुरक्षित द्वार नजर आते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने अपने हाथों पर थूका और राजमाता की गाँड़ के छिद्र की मांसपेशियों को महसूस करते हुए थूक को छेद के चारों ओर घुमाया। अचानक राजमाता की गाँड़ का छिद्र सिकुड़ गया, और उस कसाव को अपनी उंगली पर महसूस कर वह रोमांचित हो गया।

उसने अपनी तर्जनी को छेद पर रखा और धीरे-धीरे उसे अंदर धकेला जब तक कि उनका छेद फिर से शिथिल न हो गया। अब उसने अपनी दूसरी उंगली अंदर डाल दी। राजमाता भी इन एहसासों को बड़े ही मजे से महसूस कर रही थी। शक्तिसिंह ने उन्हे धीरे-धीरे अपनी गांड के छेद को भरने की अनुभूति का आदी बना दिया। राजमाता अब उस कगार पर आ गई थी की वह चिल्लाकर कहना चाहती थी कि शक्तिसिंह उसके लंड को अपनी गुदा में घुसाए, पर वह अपनी गांड मराने की तड़प को जताना नही चाहती थी।

अब शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ हटाईं, अपने लंड पर थूका और फिर उसकी गांड के छेद पर भी थूका और फिर अपना लंड राजमाता के उस झुर्रीदार छेद पर रख दिया। धीरे-धीरे उसने अपना शिश्नमणि अंदर घुसाय। जब उसका सुपाड़ा छेद के पार गया तो राजमाता दर्द से कराह उठी।

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पर इस बार शक्तिसिंह ने निश्चय कर लिया था की राजमाता कितना भी चिल्लाए, वह नही रुकेगा... उसने अपना आधा लंड अंदर घुसेड़ा तब राजमाता छटपटाने लगी पर फिर भी उन्होंने शक्तिसिंह को नही रोका... इस दर्द से कैसे आनंद उठाते है, वह शायद सिख चुकी थी।

आख़िरकार उसने अपना पूरा लंड अंदर घुसा दिया और फिर अंदर बाहर करना शुरू किया। मंत्रमुग्ध होकर वह लंड को आते जाते देखता रहा। बाहर निकालते वक्त उसका लंड तब तक फिसलता रहा जब तक कि केवल उसका सुपाड़ा ही उसमें नहीं फंसा रह गया। वह एक पल के लिए रुका और फिर लंड को जोर से अंदर घुसा दिया, इसबार राजमाता की वास्तविक चीख निकल गई। राजमाता की गांड पर उसने लगातार हमला करना शुरू कर दिया, उनके सिर को जबरदस्ती पकड़कर उनकी गर्दन के पिछले हिस्से को काटने लगा। इस स्थिति से संतुष्ट नहीं होने पर उसने राजमाता को पेट के बल लिटा दिया और उनकी गांड को धमाधम पेलने लगा। । राजमाता के चेहरे पर वासना से भरे भाव उसे और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए उत्साहित कर रहे थे।


ताव में आकर जबरदस्त धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह तीसरी बार झड़ गया... राजमाता की गांड को पावन कर उसने अपना लंड बाहर खींचा और उनके बगल में लाश की तरह ढल गया...


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बहुत ही उत्तेजक और कामुक चुदाई भरा अपडेट था।
 
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