• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest रजनी की आत्मकथा

abmg

Active Member
1,013
2,107
159
Episode 1

मैं हूँ आभा। मैं और रजनी हमउम्र हैं – 21 की। एक ही कालेज में पढ़ती हैं और हॉस्टल के एक ही कमरे में रहती हैं।

कमरा ही नहीं और भी हम एक दूसरे का बहुत कुछ सांझा करती हैं – एक दूसरे के कपड़े, खाना, बिस्तर और राज़ भी – और कभी कभी तो एक दूसरी के बॉय फ्रेंड का लंड भी । और अगर कभी लंड की तलब आ जाये और लंड ना मिले तो एक दूसरी की चूत भी चाट लेती हैं, या फिर उंगली कर लेती हैं – “काम ही तो चलाना है”।

रजनी के 52 वर्षीय पिता रोशन लाल, रजनी के सौतेले पिता हैं। उनकी पहली पत्नी का चार साल पहले देहांत हो चुका है। उनका पहली पत्नी से 22 साल का बेटा दीपक है जो अभी तक कुंवारा है – पढ़ाई पूरी करके तीन महीने पहले ही अपने घर करनाल वापस आया है, अभी फ़िलहाल नौकरी की तलाश कर रहा है। पुश्तैनी अमीरी के कारण नौकरी की कोइ जल्दी नहीं है।

करनाल शहर के बाहरी भाग में उन लोगों का एक एकड़ में बना फार्म हाउस है। करनाल से सात किलोमीटर दूर उनके खेत हैं और एक बड़ा डेयरी फार्म है। वहां भी उनका एक बड़ा घर है।

रजनी की 41 वर्षीय तलाकशुदा मां उषा रोशन लाल की दूसरी पत्नी है – सुन्दर और स्वस्थ – उनकी शादी तीन साल पहले हुई थी। रजनी के सौतेले पिता रोशन लाल अक्सर खेतों वाले घर में ही रहते हैं, सप्ताह के अंत में ही करनाल आते हैं। रजनी ने मुझे बताया था की उसके सौतेले पिता को चूत और चुदाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है – शादी उन्होंने इस लिए की थी की घर संभालने वाली कोइ घर में आ जाएगी और उसके बेटे को मां मिल जाएगी।

करनाल वाला फार्म हाउस बहुत बड़ा है – रसोई के सामने बड़ा हाल है जो ड्राइंग रूम की तरह प्रयोग होता है। रसोई की बाईं तरफ का कमरा रजनी की माँ और उसके सौतेले पिता का है। रसोई की दाईं तरफ दो कमरे हैं – एक रजनी के सौतेले भाई दीपक का, दूसरा रजनी का। दो कमरे और हैं जो मेहमानों के लिए काम आते हैं।
हाल से ही एक गलियारा बाहर की तरफ जाता है जहां 25 वर्षीय नौकर संतोष ( जो घर का सदस्य ही है ) का कमरा है। संतोष हायर सेकंडरी पास है और बाहर के सारे काम करता है। कई बार दिन में डेरी फार्म पर भी चला जाता है। संतोष की 22 वर्षीय पत्नी है सरोज। सरोज घर के अंदर का काम संभालती है। सरोज साफ़ सुथरी सुन्दर और BA के “पहले साल” तक पढ़ी है – मतलब कालेज क्या होता है उसे मालूम है।

संतोष का एक 23 वर्षीय छोटा भाई भी है – सरोज का देवर – राकेश। करनाल में ही नौकरी करता है। अभी तक कुंवारा है। जब कभी चुदाई की तलब लगती है तो भाभी सरोज को चोदने आ जाता है – सरोज का प्यारा देवर है, मगर गांड का शौक़ीन है।

पिछले हफ्ते जब दो महीने की छुट्टियां काट कर रजनी वापस आयी तो कुछ ज़्यादा ही खुश थी। बात बात पर हंसना मेरी चूचियों पर हाथ फेरना या मेरी चूत या गांड पर हाथ लगाना – पहले वो ऐसी नहीं थी।

लड़की इतनी खुश तभी होती है जब या तो उसके मनपसंद लड़के के साथ उसकी शादी हो रही हो या फिर डाक्टरी के कोर्स के लिए मेडिकल कालेज में दाखला मिल गया को। तीसरा कारण है की लड़की की बढ़िया मस्त चुदाई हुई हो।

रजनी की ना तो सगाई हुई थी ना ही मेडिकल कालेज में दाखला ही मिला था – मतलब करनाल से मस्त चुदाई करवा कर आयी थी। सोच सोच कर मेरी तो अपनी चूत ही गीली होने लग गयी।

बस, फिर तो मैं रजनी की खुशी का राज़ जानने के लिए उसके पीछे ही पड़ गयी की। पहले तो हंस हंस कर रजनी ने टाला मगर फिर बोली “ठीक है, आज रात को तुम्हें सारा किस्सा बताऊंगी।”
मगर मैं तो सुनंने के लिए बेताब हो रही थी, “रात को क्यों, अभी क्यों नहीं “।

“अरी क्यों बेचैन हो रही है, किस्सा गरमा गरम और मस्त भी। ऐसे किस्से रात को ही सुने सुनाए जाते हैं। अगर हमारी भी गरम हो गयी तो ठंडी कैसे करेंगे” ?
अब तो मेरी जिज्ञासा और भी बढ़ गयी – मैं जानने के लिए बेचैन हो गयी की आखिर रजनी के साथ क्या और कैसे हुआ है। ये तो मैं समझ गयी की थी लड़की मस्त चुद कर आयी है – मगर किससे और कैसे। दिन भर मैं रात होने का ही इंतज़ार करती रही।

रात आयी, हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट गयीं। रजनी बुदबुदाई, ” क्या छुट्टियां कटीं, कभी ना भूलने वाली छुट्टियां “।
जिज्ञासा के मारे मेरी हालत खराब थी, “अब बताओ भी, रहा नहीं जा रहा”।
और फिर जो किस्सा रजनी ने सुनाया, वाकई सेक्सी, गरम करने वाला और मस्त था।

बकौल रजनी –
मैं (रजनी) जब करनाल पहुंची तो मेरी माँ बड़ी खुश हुई । सब से मेरा परिचय करवाया – दीपक, सरोज, सरोज का पति संतोष। सभी बड़े ही प्यार से मिले – मेरा तो बड़ा ही अच्छा स्वागत हुआ। दीपक को देख कर तो मेरा मन कुछ और ही सोचने लगा। सोचने लगी क्या डील डौल है – लंड भी बढ़िया होगा।
तभी ख्याल आया की वो मेरा भाई है। मगर दिल के एक कोने से आवाज़ आई भाई तो है, मगर है तो “सौतेला” ही। ख्याल आते ही फिर उसके लंड के बारे में सोचने लगी। तीन चार दिन यों ही निकल गए।

एक दिन रात को प्यास लगी तो मेरे जग में पानी नहीं था। मैं रसोई में से पानी लेने निकली। रसोई जाने के लिए दीपक का कमरा लांघना पड़ता है। जब उसके कमरे के सामने से गुज़री तो उसके कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था।

मैंने उत्सुकतावश अंदर झाँका तो दीपक कमरे में नहीं था – सोचा शायद टॉयलेट गया होगा। पानी ले कर जब वापस आयी, तब भी दीपक कमरे में नहीं था और दरवाजा वैसे ही खुला था। मैं बड़ी हैरान हुई की इतनी रात को दीपक कहाँ जा सकता है – घर के सारे दरवाजे तो बंद हैं।

मैं सोच ही रही थी की ऐसा लगा की मेरी माँ के कमरे से कुछ आवाजें आ रही हैं। मैं देखने के लिए गयी और थोड़ी सी खुली खिड़की में से झांका – अंदर का नज़ारा देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए। दीपक पूरी तरह से नंगा बिस्तर पर लेता हुआ था और मेरी माँ उसके ऊपर बैठी थी – पूरी तरह नंगी। साफ़ पता लग रहा था की दीपक का लंड मेरी माँ की चूत में है और मेरी माँ दीपक का लंड चोद रही है।

मेरी माँ ऊपर नीचे हिल हिल कर झटके लगा रही थी और दीपक नीचे से झटके लगा रहा था। कुछ ही देर में माँ नीचे उतर गयी। दीपक का लंड खूटे की तरह खड़ा था। माँ बिस्तर पर लेट गयी और दीपक माँ की टांगें उठा कर ऊपर से माँ को चोदने लगा।

“अजीब नज़ारा था। मेरी सगी माँ मेरे ही सौतेले भाई से चुद रही थी और मैं देख रही थी “।
मुझ से और नहीं देखा गया और में भाग कर अपने कमरे में चली गयी। मेरी साँस फूल रही थी। दीपक का खूंटे जैसा लंड मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। मेरी तो अपनी चूत ही गरम हो गयी। बड़ी मुश्किल से उंगली से रगड़ रगड़ कर चूत का पानी छुड़ाया, मगर आँखों के आगे वही नज़ारा था दीपक नीचे, माँ ऊपर। माँ नीचे दीपक ऊपर – और दीपक का मोटा लम्बा लंड।

अगले दिन मैंने देखा माँ और दीपक बिलकुल सामान्य हैं मगर मैं ना माँ से ना ही दीपक से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मुझे तो सरोज से भी शर्म आ रही थी। मैं सोच रही थी की क्या सरोज भी इस माँ बेटे की चुदाई के बारे में जानती है ? पूरा दिन ऐसे ही गुज़र गया। रात को नींद ही नहीं आ रही थी। बार बार उठ कर देखती थी की दीपक मेरी माँ को चोदने उसके कमरे में गया या नहीं – मगर उस रात वो नहीं गया। मेरी रात जागते जागते ही कट गयी।

अगले दिन मेरे चेहरे से साफ़ लग रहा था की मैं रात भर नहीं सोई। माँ ने एक दो बार पूछा भी, मगर मैंने टाल दिया। माँ ने भी सोचा होगी कोइ बात, रात ढंग की नींद नहीं आयी होगी। दीपक ने सरसरी नज़र मुझ पर डाली लेकिन बोला कुछ नहीं।

सरोज ने ज़रूर हँसते हुए कहा, ” क्या बात है जीजी रात को डरावना सपना देखा या कोइ भूत देख लिया”। मुझे उसकी ये भूत वाली बात कुछ अजीब लगी। मुझे लगा की ये दीपक और माँ के चूत चुदाई के रिश्ते के बारे में जानती है या मेरा वहम है। खैर !!

नींद मुझे अगली रात भी नहीं आयी। मैं तो जानना चाहती थी की दीपक माँ के पास जाता है की नहीं। उस रात दीपक आधी रात को माँ के कमरे में गया। मैं तो इस ताक में ही थी। फिर खिड़की की तरफ गयी। खिड़की आज भी थोड़ी सी खुली थी। खिड़की का पल्ला या तो खराब था या जान बूझ कर खुला रखा गया था।
अंदर देखा तो दीपक आज माँ को पीछे से चोद रहा था। माँ फर्श पर खड़ी थी और पलंग पर झुकी हुई थी। दीपक ने माँ की कमर पकड़ी हुई थी और दबा कर चुदाई कर रहा था।

तभी माँ ने सिर घुमा कर दीपक को कुछ कहा। दीपक ने भी हाँ में अपना सिर हिलाया और लंड चूत में से बाहर निकल लिया। मैंने सोचा की अब माँ पलंग पर लेटेगी और दीपक ऊपर से चोदेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। माँ वैसे ही झुकी हुई खड़ी रही। दीपक आया, उसके हाथ में कुछ ट्यूब जैसा कुछ था। दीपक ने ट्यूब में से सफेद सफेद कुछ निकाल कर माँ की गांड के छेद पर लगाया।

“ओह !! तो क्या अब दीपक माँ की गांड चोदेगा ” ?
मैं समझ गयी दीपक माँ की गांड के छेद को चिकना करने के लिए जैल – क्रीम लाया था। दीपक ने क्रीम लगा कर अपने लंड का टोपा माँ की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे लंड अंदर डालना शुरू किया। कुछ ही पलों में दीपक का मोटा लंड माँ की गांड के अंदर था।

मैं हैरान थी इतना मोटा लंड गांड में चला कैसे गया – लेकिन हक़ीक़त में दीपक का लंड माँ की गांड के अंदर ही था। मेरी तो अपनी गांड में खुजली होने लग गयी। चूत तो पानी छोड़ ही रही थी। माँ की गांड की चुदाई शुरू हो चुकी थी। तभी माँ ने सिर घुमा कर दीपक से कुछ कहा। दीपक ने भी सिर हिलाया और लंड पूरा बाहर निकाल कर पूरे जोर से अंदर पेला, अब गांड चुदाई फुल स्पीड पर चल रही थी।
माँ एक पक्की चुदक्क्ड़ की तरह चुदाई करवा रही थी।

मुझ से और नहीं देखा गया, मेरी हालत खराब हो रही थी। कमरे में आ कर फिर अपनी चूत को उंगली से रगड़ा – एक उंगली अपनी गांड में भी डालने की कोशिश की। रात ऐसे निकल गयी।

आगे की कहानी अगले भाग में।
 

abmg

Active Member
1,013
2,107
159
Episode 2

अगले दिन माँ ने तो कुछ नहीं कहा, दीपक मुझे अजीब नज़रों से देख रहा था। “हे भगवान कहीं इसको भनक तो नहीं लग गयी की मैंने इसे माँ को चोदते देख लिया है, कहीं खिड़की जान बूझ कर तो नहीं खुली छोड़ी गयी जिससे मैं सारा नज़ारा देख सकूं”? उधर सरोज भी मुझे देख देख कर मुस्कुरा रही थी। मैं हैरान थी की आखिर ये हो क्या रहा है ?


दस दिन गुज़र गए। मैं जान चुकी थी की दीपक हर दुसरे दिन माँ को चोदता है। मुझे भी हर चुदाई देखने का चस्का लग गया था। सरोज अब अजीब अजीब सी बातें करने लगी थी, बात को घुमा कर मुझसे जाना चाहती थी मेरा कोइ बॉय फ्रेंड है क्या ? कहाँ तक है हम लोगों की दोस्ती – मैं मतलब समझती थी।

सरोज जानना चाहती थी की क्या मैंने चूत चुदवाई है या नहीं ? मगर क्यों ? कहीं इसने मुझे खिड़की में से चुदाई देखते हुए देख तो नहीं लिया ? क्या ये सरोज माँ और दीपक की चुदाई के बारे में जानती है ?

एक दिन तो कमाल ही हो गया। मैं माँ और दीपक की चुदाई देख कर अपने कमरे की तरफ जा ही रही – जैसे ही रसोई के दरवाजे के सामने से गुज़री अंदर से सरोज ने दबी आवाज में मुझे अंदर बुलाया। मेरे तो पसीने छूट गए। तो मेरा शक ठीक ही था। सरोज जान गयी थी की मैं छुप छुप कर दीपक और माँ की चुदाई देखती हूँ।
मैं रसोई में गयी। सरोज ने पूछा, “क्या देखा ?” मेरी तो आवाज ही नहीं निकल रही थी। वो बोली, “चलो तुम्हारे कमरे में चलते हैं।” मैंने सरोज से पूछा ये कब से चल रहा है।

“क्या कब से चल रहा है “? उसने पूछा। यही सब, मैंने माँ के कमरे की तरफ इशारा करके कहा।”
ओह तुम्हारा मतलब बीबी जी (सरोज माँ को बीबी जी बुलाती थी) और दीपक बाबा की चुदाई का चक्कर”? मैं हैरान हुई की ये कैसे बात कर रही है।

“अरे जीजी ये तो शुरू से – जब से दीपक घर आये हैं तब से ही चल रहा है। बाबू जी को काम से फुर्सत नहीं। ये चूत चुदाई उनके लिए बेमानी है और बीबी जी अभी जवान हैं, उनको लंड चाहिए – वो उनको दीपक बाबा से मिल रहा है “।

मुझे सुन कर बड़ी ही हैरानी हुई। अगर दीपक को चूत ही मारनी है तो सरोज की क्यों नहीं ? सच्चाई तो यही है माँ की चूत 41 साल की उम्र में तो अब भोसड़ा बन चुकी होगी – या फिर वो सरोज को भी चोदता होगा या फिर माँ को चुदाई से मना नहीं कर पाता होगा।

“जो भी हो, घर मैं चुदाई का खेल तो चल ही रहा था”।
मैंने सरोज से पूछ ही लिय। अगर दीपक को चूत ही चाहिए तो तुम भी तो हो। तुम तो जवान भी हो। सरोज ने मेरे गाल पर चिकोटी काटी,”हाँ मैं भी हूँ मगर मेरा काम संतोष बढ़िया चलाता है – आगे और पीछे, दोनों छेद चोदता है। इस लिए जरूरत नहीं पड़ती”। मैं हैरान तो थी, मगर मुझे सरोज की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
तभी अचानक सरोज ने मेरी सलवार के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूत में उंगली डाल दी और बोली, “अरे इसमें तो बरसात हो रही है। लंड मांग रही है ये”।

बात तो सरोज ठीक ही कह रही थी। लंड तो मांग ही रही थी मेरी चूत। मगर मैं बोली कुछ नहीं – बोलती भी तो क्या बोलती।
ज़रा सा रुकने के बाद सरोज बोली, “चलो”।
मैंने पूछा, “कहाँ” ?
“चलो तो, आज तुम्हारी चुदाई का इंतज़ाम करते हैं “। मैं एक दम ठिठक गयी, “क्या “? मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
सरोज बोली, “अरे जीजी घबराओ नहीं, चलो “।
“मगर कहाँ “, मैं हैरान थी।
“हमारे कमरे में, संतोष के पास। उसे बोलूंगी तुम्हारी चूत को ठंडा करे “।
“मगर”, सरोज मेरी बात काट कर बोली, “कोइ अगर मगर नहीं, चलो”।
“मगर माँ, दीपक ?” मैंने दबी आवाज मैं पूछा।

सरोज बोली, “दीपक तड़का होने से पहले बाहर नहीं आने वाला, ना ही बीबी जी। दूसरे दीपक तुम्हाई चूत चोदने वाला नहीं जब तक बीबी जी घर में हैं। अगले हफ्ते बीबी जी और बाबू जी तीन दिनों के लिए अम्बाला एक शादी में जाने वाले हैं। दीपक घर पर ही होगा तब उससे चुदवा लेना – अब चलो संतोष का लंड ट्राई करो “। बात करते करते सरोज का कमरा ही आ गया।

मुझे बाहर ही रुकने के लिए बोल कर सरोज अंदर चली गय। कुछ देर बाद बाहर आयी और बोली, “जाओ जीजी अंदर जाओ और मौज लो”। इतना कह कर सरोज ने मुझे अंदर धकेल दिया। मैं दरवाजे के पास ही खड़ी हो गयी। संतोष चारपाई पर बैठा मुस्कुरा रहा था – वो उठा और मुझे पकड़ कर बिस्तर की तरफ ले गया।
संतोष ने मेरी चूचियां पकड़ ली और दबाने लगा। उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोला और बिस्तर पर लिटा दिया। मेरी टांगें चौड़ी कर के मेरी चूत चाटने लगा I फिर संतोष ने अपनी जीभ मेरे चूत के दाने भग्नाशा – क्लोरिटिस – पर फेरनी शुरू कर दी। मेरी तो सिसकारियां निकल रही थी। मैंने संतोष का सर चूत से हटाया और दबी आवाज में बोली, मुंह में डालो।

वो एक सेकण्ड के लिए रुका फिर उलटा मेरे ऊपर लेट गया – अब उसका लंड मेरे मुंह में था और वह मेरी चूत चाट रहा था। लंड वाकई मोटा था। लग रहा था चुदाई का सही मजा आने वाला है। अगले पांच सात मिनट तक यही चलता रहा।

फिर संतोष ने अपना लंड मेरे मुंह में से निकला और उठ गया, लगता था गर्म हो गया है। मैं भी तैयार ही थी। संतोष ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊंची की – टांगें फैलाई, लंड मेरी चूत पर रक्खा और फच्च – फच्च की एक आवाज़ के साथ आधा लंड मेरे अंदर था।

कुछ सेकण्ड रुक कर संतोष ने पूरा लंड चूत के अंदर डाल दिया और चुदाई शुरू कर दी। क्या चुदाई थी। हालांकि मैं अपने बॉय फ्रेंड से भी चुदी थी और तुम्हारे (उसने मेरी और इशारा कर के कहा) बॉय फ्रेंड से भी चुदी – लेकिन वो चुदाई जल्दबाज़ी वाली थी – यहाँ संतोष मस्त चोद रहा था – न कोई जल्दी न कोई डर। लगभग बीस मिनट की चुदाई के बाद संतोष ने अचानक ही धक्कों के स्पीड बढ़ा दी लगता था झड़ने वाला था। मैं खुद भी झड़ने के लिए तैयार थी।

अचानक संतोष के मुंह से एक आवाज़ निकली ओ… ओ… आह… आह… मजा आ गया आह… आह… और मेरी चूत उसने अपने गरम गरम वीर्य से भर दी। मैं भी झड़ चुकी थी। मन तृप्त हो गया। दो मिनट के बाद संतोष उठा कपडे उठा कर टॉयलेट में चला गया। मैंने अपनी सलवार से ही चूत साफ़ की – संतोष का लेसदार वीर्य बाहर तक आ गया था। कपड़े पहने और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।
सरोज मेरे कमरे में ही बैठी थी। मुझे उससे शर्म सी आ रही थी – आखिर उसके पति से चुदवा कर आ रहे थी। मेरी नज़रें नीचे की तरफ थी। सरोज उठी और मेरे पास आ कर बोली, “शर्माओ मत जीजी, जब तक यहां हो संतोष से चुदवा सकती हो। मुझ से पूछने की भी ज़रूरत नहीं है। बस जब मौक़ा मिले जाओ और मजे ले कर आ जाओ”।

यह कह कर सरोज जाने लगी, मगर दरवाजे पर रुकी, “और हाँ याद रखना बीबी जी और बाबू जी तीन दिन के लिए अम्बाला जा रहे हैं, दीपक बाबा अकेले होंगे”। इतना कह कर सरोज चली गयी।

मैं भी टॉयलेट में गयी कपड़े उतारे और छह फुट लम्बे शीशे में अपने नंगा जिस्म देखा।संतोष का वीर्य अभी भी मेरी चूत से निकल कर टांगों पर बह रहा था। मैं टॉयलेट सीट पर बैठ गयी और जोर लगा कर सारा वीर्य बाहर निकाला पेशाब किया, स्नान किया और सो गयी। क्या नींद आयी सुबह जब नींद खुली तो नौ बज चुके थे। मुंह धो कर बाहर निकली तो सामने ही माँ थी, “क्या बात है, लगता है आज थकान दूर हुई है, आज तो बड़ी तरोताजा लग रही हो”, कह कर वो चली गयी, मैं शर्मा गयी, सरोज पीछे खड़ी हंस रही थी।

शुक्रवार को मेरे पिता जी (सौतेले) आ गए, माँ तैयार ही थी। अम्बाला अपनी कार से ही जा रहे थे – 80 किलोमीटर ही तो सफर था। जाते जाते माँ बोली अच्छा रजनी तीन या चार दिन लगेंगे। मेरा मन तो हुआ की कहूँ तीन या चार ही क्यों ? चार या पांच क्यों नहीं, पांच या छः क्यों नहीं। मेरी चूत तो दीपक के खूंटे के लिए बेचैन थी।

खैर शाम हुई और सब खाना खा कर इधर उधर समय बिताने लगे। जल्दी सोने की दिनचर्या थी। साढ़े आठ बजे सरोज अपने कमरे की तरफ जाने लगी। जाते जाते बोल गयी, “जीजी एक बात बोलूं मैंने दीपक को बीबीजी की चुदाई करते देखा है। बढ़िया चोदता है। लंड चुसवाने का बड़ा शौक़ीन है, वहीं से शुरू करना”। और वो चली गयी।

मुझे यकीन हो गया दीपक ने सरोज की भी चुदाई की है, वार्ना इसे कैसे पता की दीपक को लंड चुसवाने मैं मज़ा आता है।
मैं भी अपने कमरे में आ गयी और टीवी देखने लगी। साढ़े दस बजे मैं उठी और पानी का जग ले कर पानी लेने के बहाने बाहर निकली। जग रसोई में रख क़र, धीरे से दीपक के कमरे की तरफ गयी। दरवाजे को धीरे से धक्का दिया, दरवाजा खुला ही था। नाईट लैंप में दीपक बिस्तर पर लेटा दिखाई दे रहा था। बनियान और वेस्ट (कच्छे) में। लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था।

मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। दीपक और माँ की चुदाई आखों के आगे आ गयी – बढ़िया चुदाई करता था। मैं आगे बढ़ी और जा कर घुटनों के बल पलंग के साथ बैठ गयी। मेरा मुंह दीपक के लंड के बिलकुल सामने था।
थोड़ी देर मैं ऐसे ही बैठी रही, फिर सोचा जब चुदाई की करवानी है तो शर्म कैसे और डर कैसा। मैंने दीपक का लंड धीरे से उसकी वेस्ट से बाहर निकाला और अपने मुंह में ले कर चूसना शुरू कर दिया।

To be continued
 
  • Like
Reactions: Mannu_ji and rkv66

abmg

Active Member
1,013
2,107
159
Episode 3

दीपक कच्ची नींद में था , या फिर बहाना बना रहा था, “अरे रजनी” ? मैंने लंड मुंह से बाहर निकल दिया और दीपक की तरफ देखने लगी की देखें क्या कहता है। वो बोला, “नीचे क्यों बैठी हो ऊपर आओ “। मैं पलंग के ऊपर बैठ गयी। दीपक ने अपना लंड अपने हाथ में लिया और बोला, ये लो आराम से चूसो। मैंने लंड पकड़ा और अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। संतोष के लंड की तरह का ही मोटा लंड ।


पांच सात मिनट की चुसवाई के बाद दीपक ने लंड मेरे मुंह से निकाल लिया। मुझे पूरी तरह नंगा करके, मेरी चूचियां चूसने लगा। साथ ही मेरी चूत में उसने उंगली डाल दी। जब उसे लगा की मेरी चूत अब लंड मांग रही है तो उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टांगें उठा दी।

मुझे संतोष की चुदाई याद आ गयी – कैसे संतोष ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊपर उठाई थी। मगर दीपक ने तो ऐसा कुछ नहीं किया – मगर जो दीपक ने किया वो वाकई अलग था। दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दी। मेरी हालत ये थी की मैं अपने चूतड़ हिला भी नहीं पा रही थी।

दीपक ऊपर की तरफ खिसका और मेरी चूत खुदबखुद ऊपर उठ गयी। मेरी चूत का छेद दीपक के लंड के बिलकुल सामने था। बस फिर क्या था एक दो और तीन – लंड चूत के अंदर था और चुदाई शुरू थी। दस मिनट धक्कों के बाद दीपक हटा और बोला “अब ज़रा चुदाई का ढंग बदलते है। पीछे से चुदाई करूँ “?

मुझे अपनी माँ की चुदाई याद आ गयी जिसमे दीपक माँ को पीछे से चोद रहा था। मैंने सर हिला कर हामी भरी और पलंग से नीचे उतर गयी। मेरी माँ की ये वाली चुदाई मेरी आखों के आगे घूम गयी। अपनी माँ की तरह ही मैं पलंग पर झुक गयी, अपनी टांगें चौड़ी कर दी और दीपक के लंड का इंतज़ार करने लगी।

अब सबर नहीं हो रहा था। दीपक ने अपना लंड मेरी चूत पर फेरना शुरू किया। बीच बीच में वो अपना लंड मेरी गांड के छेद पर भी रख देता था। आनंद के मारे मेरी तो सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी और मैं हिलने लग गयी। दीपक समझ गया भट्टी गर्म है। उसने एक ही बार में पूरा लंड अंदर कर दिया और मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी। मैं सोच रही थी क्या लंड है और क्या चुदाई है।

अगले आठ दस मिनट तक ऐसी ही चुदाई चली, फिर दीपक ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल लिया और बिस्तर पर सीधा लेट गया और बोला, ” बैठो मेरे लंड पर और अंदर लो इसको “। मेरी आँखों के आगे माँ का दृश्य घूम गया, जब वो दीपक के खूंटे जैंसे लंड पर बैठी थी और जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी।

अब वही “खूंटा ” मेरी आँखों की सामने था और मेरी चूत में घुसने के लिए बेताब था। मैंने एक टांग उठाई, दीपक के दूसरी ओर रखी, लंड को एक हाथ से पकड़ कर चूत पर रखा और उसकी ऊपर बैठ गयी। लंड पूरी गहराई तक अंदर था – मजा ही आ गय। यही जन्नत थी। थोड़ी और चुदाई के बाद दोनों झड़ गए।
मेरी चूत एक बार फिर सफ़ेद गर्म लेसदार वीर्य से भर गयी थी। कुछ देर मैं ऐसे ही बैठी रही। जैसे ही मैं टांग उठा कर दीपक के ऊपर से उतरी, ऐसा लगा जैसे आधा कप वीर्य मेरी चूत में से निकल कर दीपक के लंड और अंडकोषों (टट्टों) पर फ़ैल गया।

ना जाने मेरे मन में क्या आया, मैं झुकी और वीर्य चाटने लगी – और तब तक चाटती रही जब तक दीपक का लंड और टट्टे बिलकुल साफ़ नहीं हो गए। दीपक भी वैसे ही पड़ा रहा। जब सारा काम हो गया तो बोला,”रजनी तुम बहुत अच्छा चुदवाती हो। मजा आ गया।”

मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “चुदाई तो तुम भी कमाल की करते हो। अच्छा एक बात बताओ माँ के तो तुमने पीछे भी डाला था।”

वह हंसा और बोला, “ओ ओ ओ तो तुमने पूरी फिल्म देखी है !”
अब कहने को कुछ नहीं था। मस्त चुदाई हो चुकी थी। अब पीछे की छोड़ आगे का सोचना था – कल क्या होगा ? मैंने दीपक से कहा, “माँ और बाबू जी तो सोमवार को वापस आने वाले हैं – मतलब दो दिन और ” I
दीपक ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोला ,” हाँ दो दिन चुदाई के और। एक बात और – कल तुम्हारे लिए एक सरप्राइज भी होगा “।

मैं अपने कमरे में आ गयी, चूत और मन दोनों की तसल्ली हो गयी थी। पूरी चुदाई एक फिल्म जी तरह आखों के आगे थी। फिर ना जाने कब आँख लग गयी। ।

आँख खुली तो सरोज चाय का कप ले कर सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। “जीजी कैसी कटी रात ? ”
मुझे तो शर्म ही आ गयी। सरोज बोली, “अच्छा चाय पी लो तरो ताज़ा हो कर आ जाओ, बातें करने लिए सारा दिन पड़ा है।”

मैंने चाय का प्याला पकड़ा, चाय पी और टॉयलेट में घुस गयी। नहाते हुए जब चूत पर हाथ फेर रही थी तो पाया चूत अभी भी चिप चिप कर रही थी – दीपक का सफ़ेद लेसदार वीर्य था या फिर पूरी रात चूत मस्ती में पानी छोड़ती रही थी ?

नहा धो कर बाहर आयी, दीपक करनाल शहर जा चुका था। संतोष खेतों में गया हुआ था। घर में मैं और सरोज अकेली ही थी। सरोज फिर पूछने लगी, “जीजी रात का किस्सा तो बताओ।”

मैं सोचने लगी, अब सरोज से क्या शर्माना। सरोज के पति संतोष से चुदने के बाद तो मैं सरोज के सामने नंगी ही थी। मैंने पूरी की पूरी चुदाई सरोज को बताई। सरोज ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा, “जीजी बाकी तो सब ठीक है, इस सरप्राइज़ वाली बात का क्या मतलब है ?”

मैंने कहा, “मुझे भी नहीं पता,मैं भी हैरान हूँ। अब क्या सरप्राइज़ है ये तो रात को ही पता चलेगा “।
सरोज ने अपना हाथ अपनी चूत से हटाया और बोली, “अच्छा मैं भी चलूँ , काम पड़ा है “- वो हमारे कमरे की तरफ बढ़ गयी ।

अब वहाँ उसको क्या काम ? मेरी चुदाई सुन कर गरम हो गई होगी, ज़रूर चूत में उंगली करेगी।
दिन गुज़र गया। दीपक शाम को लौटा। काफी सामान ले कर आया था। घर का सामान वही लाता था। मेरे पास से गुज़रा तो मुझे देख कर मुस्कुराया। सब अपने अपने काम में व्यस्त थे। बाबू जी नहीं थे इसलिए संतोष रात को डेरी वाले घर में ही रुकने वाला था।सरोज खाना बना रही थी, मैं पास ही खड़ी थी। वो बोली, “जीजी, रात की तैयारी पूरी है ?” साथ ही हंस पड़ी। मैं थोड़ी शरमाई लेकिन चुप रही।

संतोष बोली, “जीजी एक बात बोलूं, मानोगी “?
“हाँ हाँ बोलो, इसमें ना मानने वाली क्या बात है “? मैंने कहा।
संतोष ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और बोली, “मुझे आप की चुदाई देखनी है “।
मैं हैरान हो गयी। इस बात की तो मुझे उम्मीद नहीं थी। पर फिर भी मैं बोली, “ठीक है, पर देखोगी कैसे “?
“बस दीपक के कमरे की खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।

मैंने सरोज की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया, “खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”। तो क्या माँ के कमरे की खिड़की भी जान बूझ कर खुली रखी गई थी ?
रात हुई, जब सब लाइटें बंद हो गयी तो मैं उठी और दीपक के कमरे की तरफ जाने लगी। सरोज बाहर ही खड़ी थी – बोली , “तुम चलो जीजी अपना खेल खेलो, बस खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।

मैं आगे बढ़ी और दीपक के कमरे में चली गयी। दीपक मेरा इंतज़ार ही कर रहा था। आज तो नंगा ही बिस्तर पर लेता हुआ था। लंड उसके हाथ में था, उसके साथ खेल रहा था। एक पल के लिए मैं रुकी फिर मैं भी उसके साथ ही लेट गयी और उसका लंड सहलाने लगी। जल्दी ही लंड फनफनाने लगा। दीपक बोला, “मैं पेशाब करके आता हूँ “, वो टॉयलेट की तरफ चला गया। मैं उठी और खिड़की थोड़ी सी खोल दी और वापस आ कर बिस्तर पर लेट गयी।

दीपक पांच मिनट के बाद आया, और मेरे साथ ही लेट गया। मेरी चूचियों के साथ खिलवाड़ करने लगा। मैंने भी उसका लंड हाथ में ले लिया। दोनों एक दुसरे की बाहों में समा गए। मेरी चूचियां उसकी छाती से लग रही थी और उसका लंड मेरी चूत पर रगड़ खा रहा था। जल्दी ही दोनों गरम हो गए।

दीपक ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे होंठ अपने होठों में ले कर चूसने लगा। मैंने भी नीचे से उसके चूतड़ अपने हाथों में ले लिए और दबाने लगी। जल्दी ही दोनों को चुदाई की तलब होने लगी।
कल रात की ही तरह दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रखी और ऊपर की तरफ होने लगा। मेरी चूत ऊपर उठने लगी। दीपक का लंड और मेरी चूत आमने सामने थे। दीपक ने लंड चूत पर रखा और थोड़ा खिलवाड़ करने के बाद अंदर पेल दिया। बस फिर चुदाई शुरू हो गयी।

आज चुदाई की गाड़ी सुपर फ़ास्ट थी – बिना रुके दीपक ने दबा कर मुझे चोदा। इतना मजा आ रहा था की चूतड़ उठा उठा कर झटके दे दे कर पूरा लंड अंदर ले रही थी। दीपक भी समझ गया होगा कि “ये तो गयी”, उसने आठ दस लम्बे धक्के लगाए और बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ लेसदार वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया। मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न पड़ गया – होश तब आया जब मैं झड़ गयी। घर में कोइ था नहीं इसलिए हम दोनों पूरे जोर शोर के साथ मजे ले रहे थे।

मैं सोच रही थी सरोज अगर चुदाई देख रही होगी तो क्या सोच रही होगी क्या कर रही होगी।
कुछ देर लेटने के बाद मेरी चूत ठंडी हो गयी। मेरा मन तृप्त हो गया। उठ कर टॉयलेट गयी, पेशाब कर के चूत को धो कर वापस आयी और कपड़े पहनने लगी।

“अरे ये क्या कर रही हो”, दीपक बोला। मैं रुक गयी और उसकी तरफ देखा और हंस कर कहा – “क्या एक बार और चोदना है “? वो बोला, “याद नहीं, अभी तो सरप्राइज़ बाकी है “।

To be continued
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,339
16,695
159
Episode 3

दीपक कच्ची नींद में था , या फिर बहाना बना रहा था, “अरे रजनी” ? मैंने लंड मुंह से बाहर निकल दिया और दीपक की तरफ देखने लगी की देखें क्या कहता है। वो बोला, “नीचे क्यों बैठी हो ऊपर आओ “। मैं पलंग के ऊपर बैठ गयी। दीपक ने अपना लंड अपने हाथ में लिया और बोला, ये लो आराम से चूसो। मैंने लंड पकड़ा और अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। संतोष के लंड की तरह का ही मोटा लंड ।


पांच सात मिनट की चुसवाई के बाद दीपक ने लंड मेरे मुंह से निकाल लिया। मुझे पूरी तरह नंगा करके, मेरी चूचियां चूसने लगा। साथ ही मेरी चूत में उसने उंगली डाल दी। जब उसे लगा की मेरी चूत अब लंड मांग रही है तो उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टांगें उठा दी।

मुझे संतोष की चुदाई याद आ गयी – कैसे संतोष ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊपर उठाई थी। मगर दीपक ने तो ऐसा कुछ नहीं किया – मगर जो दीपक ने किया वो वाकई अलग था। दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दी। मेरी हालत ये थी की मैं अपने चूतड़ हिला भी नहीं पा रही थी।

दीपक ऊपर की तरफ खिसका और मेरी चूत खुदबखुद ऊपर उठ गयी। मेरी चूत का छेद दीपक के लंड के बिलकुल सामने था। बस फिर क्या था एक दो और तीन – लंड चूत के अंदर था और चुदाई शुरू थी। दस मिनट धक्कों के बाद दीपक हटा और बोला “अब ज़रा चुदाई का ढंग बदलते है। पीछे से चुदाई करूँ “?

मुझे अपनी माँ की चुदाई याद आ गयी जिसमे दीपक माँ को पीछे से चोद रहा था। मैंने सर हिला कर हामी भरी और पलंग से नीचे उतर गयी। मेरी माँ की ये वाली चुदाई मेरी आखों के आगे घूम गयी। अपनी माँ की तरह ही मैं पलंग पर झुक गयी, अपनी टांगें चौड़ी कर दी और दीपक के लंड का इंतज़ार करने लगी।

अब सबर नहीं हो रहा था। दीपक ने अपना लंड मेरी चूत पर फेरना शुरू किया। बीच बीच में वो अपना लंड मेरी गांड के छेद पर भी रख देता था। आनंद के मारे मेरी तो सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी और मैं हिलने लग गयी। दीपक समझ गया भट्टी गर्म है। उसने एक ही बार में पूरा लंड अंदर कर दिया और मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी। मैं सोच रही थी क्या लंड है और क्या चुदाई है।

अगले आठ दस मिनट तक ऐसी ही चुदाई चली, फिर दीपक ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल लिया और बिस्तर पर सीधा लेट गया और बोला, ” बैठो मेरे लंड पर और अंदर लो इसको “। मेरी आँखों के आगे माँ का दृश्य घूम गया, जब वो दीपक के खूंटे जैंसे लंड पर बैठी थी और जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी।

अब वही “खूंटा ” मेरी आँखों की सामने था और मेरी चूत में घुसने के लिए बेताब था। मैंने एक टांग उठाई, दीपक के दूसरी ओर रखी, लंड को एक हाथ से पकड़ कर चूत पर रखा और उसकी ऊपर बैठ गयी। लंड पूरी गहराई तक अंदर था – मजा ही आ गय। यही जन्नत थी। थोड़ी और चुदाई के बाद दोनों झड़ गए।
मेरी चूत एक बार फिर सफ़ेद गर्म लेसदार वीर्य से भर गयी थी। कुछ देर मैं ऐसे ही बैठी रही। जैसे ही मैं टांग उठा कर दीपक के ऊपर से उतरी, ऐसा लगा जैसे आधा कप वीर्य मेरी चूत में से निकल कर दीपक के लंड और अंडकोषों (टट्टों) पर फ़ैल गया।

ना जाने मेरे मन में क्या आया, मैं झुकी और वीर्य चाटने लगी – और तब तक चाटती रही जब तक दीपक का लंड और टट्टे बिलकुल साफ़ नहीं हो गए। दीपक भी वैसे ही पड़ा रहा। जब सारा काम हो गया तो बोला,”रजनी तुम बहुत अच्छा चुदवाती हो। मजा आ गया।”

मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “चुदाई तो तुम भी कमाल की करते हो। अच्छा एक बात बताओ माँ के तो तुमने पीछे भी डाला था।”

वह हंसा और बोला, “ओ ओ ओ तो तुमने पूरी फिल्म देखी है !”
अब कहने को कुछ नहीं था। मस्त चुदाई हो चुकी थी। अब पीछे की छोड़ आगे का सोचना था – कल क्या होगा ? मैंने दीपक से कहा, “माँ और बाबू जी तो सोमवार को वापस आने वाले हैं – मतलब दो दिन और ” I
दीपक ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोला ,” हाँ दो दिन चुदाई के और। एक बात और – कल तुम्हारे लिए एक सरप्राइज भी होगा “।

मैं अपने कमरे में आ गयी, चूत और मन दोनों की तसल्ली हो गयी थी। पूरी चुदाई एक फिल्म जी तरह आखों के आगे थी। फिर ना जाने कब आँख लग गयी। ।

आँख खुली तो सरोज चाय का कप ले कर सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। “जीजी कैसी कटी रात ? ”
मुझे तो शर्म ही आ गयी। सरोज बोली, “अच्छा चाय पी लो तरो ताज़ा हो कर आ जाओ, बातें करने लिए सारा दिन पड़ा है।”

मैंने चाय का प्याला पकड़ा, चाय पी और टॉयलेट में घुस गयी। नहाते हुए जब चूत पर हाथ फेर रही थी तो पाया चूत अभी भी चिप चिप कर रही थी – दीपक का सफ़ेद लेसदार वीर्य था या फिर पूरी रात चूत मस्ती में पानी छोड़ती रही थी ?

नहा धो कर बाहर आयी, दीपक करनाल शहर जा चुका था। संतोष खेतों में गया हुआ था। घर में मैं और सरोज अकेली ही थी। सरोज फिर पूछने लगी, “जीजी रात का किस्सा तो बताओ।”

मैं सोचने लगी, अब सरोज से क्या शर्माना। सरोज के पति संतोष से चुदने के बाद तो मैं सरोज के सामने नंगी ही थी। मैंने पूरी की पूरी चुदाई सरोज को बताई। सरोज ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा, “जीजी बाकी तो सब ठीक है, इस सरप्राइज़ वाली बात का क्या मतलब है ?”

मैंने कहा, “मुझे भी नहीं पता,मैं भी हैरान हूँ। अब क्या सरप्राइज़ है ये तो रात को ही पता चलेगा “।
सरोज ने अपना हाथ अपनी चूत से हटाया और बोली, “अच्छा मैं भी चलूँ , काम पड़ा है “- वो हमारे कमरे की तरफ बढ़ गयी ।

अब वहाँ उसको क्या काम ? मेरी चुदाई सुन कर गरम हो गई होगी, ज़रूर चूत में उंगली करेगी।
दिन गुज़र गया। दीपक शाम को लौटा। काफी सामान ले कर आया था। घर का सामान वही लाता था। मेरे पास से गुज़रा तो मुझे देख कर मुस्कुराया। सब अपने अपने काम में व्यस्त थे। बाबू जी नहीं थे इसलिए संतोष रात को डेरी वाले घर में ही रुकने वाला था।सरोज खाना बना रही थी, मैं पास ही खड़ी थी। वो बोली, “जीजी, रात की तैयारी पूरी है ?” साथ ही हंस पड़ी। मैं थोड़ी शरमाई लेकिन चुप रही।

संतोष बोली, “जीजी एक बात बोलूं, मानोगी “?
“हाँ हाँ बोलो, इसमें ना मानने वाली क्या बात है “? मैंने कहा।
संतोष ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और बोली, “मुझे आप की चुदाई देखनी है “।
मैं हैरान हो गयी। इस बात की तो मुझे उम्मीद नहीं थी। पर फिर भी मैं बोली, “ठीक है, पर देखोगी कैसे “?
“बस दीपक के कमरे की खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।

मैंने सरोज की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया, “खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”। तो क्या माँ के कमरे की खिड़की भी जान बूझ कर खुली रखी गई थी ?
रात हुई, जब सब लाइटें बंद हो गयी तो मैं उठी और दीपक के कमरे की तरफ जाने लगी। सरोज बाहर ही खड़ी थी – बोली , “तुम चलो जीजी अपना खेल खेलो, बस खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।

मैं आगे बढ़ी और दीपक के कमरे में चली गयी। दीपक मेरा इंतज़ार ही कर रहा था। आज तो नंगा ही बिस्तर पर लेता हुआ था। लंड उसके हाथ में था, उसके साथ खेल रहा था। एक पल के लिए मैं रुकी फिर मैं भी उसके साथ ही लेट गयी और उसका लंड सहलाने लगी। जल्दी ही लंड फनफनाने लगा। दीपक बोला, “मैं पेशाब करके आता हूँ “, वो टॉयलेट की तरफ चला गया। मैं उठी और खिड़की थोड़ी सी खोल दी और वापस आ कर बिस्तर पर लेट गयी।

दीपक पांच मिनट के बाद आया, और मेरे साथ ही लेट गया। मेरी चूचियों के साथ खिलवाड़ करने लगा। मैंने भी उसका लंड हाथ में ले लिया। दोनों एक दुसरे की बाहों में समा गए। मेरी चूचियां उसकी छाती से लग रही थी और उसका लंड मेरी चूत पर रगड़ खा रहा था। जल्दी ही दोनों गरम हो गए।

दीपक ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे होंठ अपने होठों में ले कर चूसने लगा। मैंने भी नीचे से उसके चूतड़ अपने हाथों में ले लिए और दबाने लगी। जल्दी ही दोनों को चुदाई की तलब होने लगी।
कल रात की ही तरह दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रखी और ऊपर की तरफ होने लगा। मेरी चूत ऊपर उठने लगी। दीपक का लंड और मेरी चूत आमने सामने थे। दीपक ने लंड चूत पर रखा और थोड़ा खिलवाड़ करने के बाद अंदर पेल दिया। बस फिर चुदाई शुरू हो गयी।

आज चुदाई की गाड़ी सुपर फ़ास्ट थी – बिना रुके दीपक ने दबा कर मुझे चोदा। इतना मजा आ रहा था की चूतड़ उठा उठा कर झटके दे दे कर पूरा लंड अंदर ले रही थी। दीपक भी समझ गया होगा कि “ये तो गयी”, उसने आठ दस लम्बे धक्के लगाए और बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ लेसदार वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया। मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न पड़ गया – होश तब आया जब मैं झड़ गयी। घर में कोइ था नहीं इसलिए हम दोनों पूरे जोर शोर के साथ मजे ले रहे थे।

मैं सोच रही थी सरोज अगर चुदाई देख रही होगी तो क्या सोच रही होगी क्या कर रही होगी।
कुछ देर लेटने के बाद मेरी चूत ठंडी हो गयी। मेरा मन तृप्त हो गया। उठ कर टॉयलेट गयी, पेशाब कर के चूत को धो कर वापस आयी और कपड़े पहनने लगी।

“अरे ये क्या कर रही हो”, दीपक बोला। मैं रुक गयी और उसकी तरफ देखा और हंस कर कहा – “क्या एक बार और चोदना है “? वो बोला, “याद नहीं, अभी तो सरप्राइज़ बाकी है “।

To be continued

Sabhi update ek se badhkar ek he abmg Bro,

Story bahut hi mast chal rahi he........

Keep rocking Bro
 
Top