sunoanuj
Well-Known Member
- 3,790
- 9,916
- 159
मुझ जैसे नौसिखिये को इस तरह हौंसला अफ़ज़ाई करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...![]()
Mitr har legend ek din nausikhiya hee hota hai… and your humblenesses showing you are a legendary writer…
मुझ जैसे नौसिखिये को इस तरह हौंसला अफ़ज़ाई करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...![]()
ऐसा कहना आप का बड़प्पन है...Mitr har legend ek din nausikhiya hee hota hai… and your humblenesses showing you are a legendary writer…
आप का ऐसा कहना बहुत मायने रखता है...Waiting for next update mitr …
बहुत ही बेहतरीन कहानी है।(४- ये तो सोचा न था…)
[३ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :एक आदमी ने बड़ा छुरा दिखाते हुए कहा ‘ओ हीरो, चल.’
‘कहाँ ?’ जगदीश ने हैरान होकर पूछा.
‘तेरी माँ की शादी में. चल रे छमक छल्लो बाहर निकल.’ दूसरे ने कार का दरवाजा खोल कर शालिनी को बाहर खींचते हुए कहा.’
‘अरे अरे उसे कुछ मत…’ ऐसा जगदीश बोलने गया पर पहले आदमी ने जगदीश के पेट पर छुरा लगाते हुए कहा. ‘चल बोला ना?’
जगदीश और शालिनी को कार छोड़ कर उनके साथ जबरन जाना पड़ा.]
जगदीश और शालिनी एक गोडाउन जैसे बड़े कमरे में गुनहगार की तरह खड़े किये गए थे.
उस कमरे में सात आठ गुंडे और खड़े थे. गोडाउन काफी बड़ा था. छत पर काच का एक बड़ा झुमर लगा हुआ था. उस झुमर के बराबर नीचे एक सिंहासन जैसा भव्य आसन था. उस आसन पर उनका सरदार जैसा दिखने वाला एक हट्टा कट्टा आदमी रुआब से बैठा हुआ था. और जगदीश के हाथों मार खाया था वो दोनों गुंडे उस सरदार को क्या हुआ यह बता रहे हे.
सरदार के आसन के सामने एक टेबल था उस पर अपना हाथ मारते हुए सरदार ध्यान से उन की बात सुन रहा था. बात ख़त्म होने के बाद उस सरदार ने जगदीश से पूछा ‘क्यों भाई ? तुम कहाँ के दादा हो जो साजन भाई के एरिये में मारपीट करने आ गए?’
‘मैंने कोई मारपीट नहीं की. बदतमीजी से बात कर रहे थे ये दोनों.’
‘कोई बदतमीजी नहीं की हमने भाई, सिर्फ इतना पूछा इस से की यह रांड तेरे साथ है क्या? तो इसने कब कैसे मारा पता ही नहीं चला!’ बाइक वाले ने अपने सरदार साजन भाई को सफाई दी.
साजन भाई ने शालिनी को निहारा फिर जगदीश को पूछा. ‘रांड को रांड नहीं बोलेंगे तो क्या बोलेंगे?’
जगदीश का माथा फिर ठनका. वो चीख कर बोला ‘ये क्या रांड रांड लगा रखा है? ये कोई रांड नहीं है…’
जगदीश के इस तरह चिल्लाने से सभी चौंक पड़े, सारे गुंडे, साजन भाई और यहाँ तक की शालिनी भी. क्योंकि वो गोडाउन गुंडों से भरा पड़ा था और यहाँ पर इस तरह से चीख कर ललकारना याने मौत को दावत देना.
शालिनी जगदीश के क्रोध से अचंभित थी और सभी गुंडे जगदीश की हिम्मत से.
क्या जगदीश को किसी का डर नहीं था ?
बिल्कुल था. जगदीश को भली भांति समझ में आ रहा था की वो दोनों बुरी तरह फंस चुके है और किसी भी वक्त उन को मारा जा सकता है. जगदीश को गुंडों का डर था भी और नहीं भी. नहीं इसलिए क्योंकि उसे पता था जो डरता है उसे लोग और डराते है. डरा डरा कर मार डालते है. इस लिए वो ऐसे मौके पर डरता कभी नहीं था बल्कि डट कर सामना करता था.
पर आज वो डर भी रहा था. क्योंकि इस वक्त वो अकेला नहीं था. साथ में शालिनी थी. यह लोग शालिनी के साथ कुछ बुरा कर सकते है यह बात उसे अब तक बांधे हुई थी. पर जब शालिनी को इस तरह जलील किया जाने लगा तब उसने न आव देखा न ताव और जवालामुखी की तरह उसका दबाया हुआ गुस्सा फुट पड़ा.
साजन भाई ने जगदीश को कुछ कहना चाहा पर तभी उसका फोन बजा. उसने फोन पर बात की तो उसकी मुट्ठी गुस्से से भींच गई. ‘तुम वही रहो, मैं अभी आता हूँ.’ कह कर साजन भाई ने फोन काटा. फिर अपने गुंडों से कहा ‘पक्या और उस के आदमी दिखे है. मंदिर वाली गली में…’
साजन भाई का इतना कहने पर सारे गुंडे एकदम एलर्ट हो गए. साजन भाई ने उठते हुए कहा ‘चलो आज साले का किस्सा ही ख़त्म कर देते है.’
‘भाई आप को आने की जरूरत नहीं.’ एक गुंडे ने साजन भाई से कहा. तुरंत बाकी सब बोले. ‘भाई टेंशन मत लो हम सम्हाल लेंगे.’
साजन भाई ने सब की और देख कर पूछा. ‘पक्का ?’
‘पक्का.’ ‘पक्का.’ ‘पक्का’ सात आठ आवाज आई.
साजन भाई फिर अपने आसन पर बैठते हुए बोला. ‘ठीक. तुम सब पहुंचो और देखना पक्या का एक भी पिल्ला बचने न पाए.’
सारे गुंडे फटाफट चले गए. साजन भाई फोन लगा कर किसी को कुछ सूचना देने लगे.
जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. जगदीश ने आँखों से शालिनी को हौसला दिया.
साजन भाई ने अपना फोन करीब के टेबल पर रखा और जगदीश से कहा
‘वाव्वा..वाव्वा…. क्या दहाड़ा रे तू?’ फिर जगदीश की नकल करते हुए बोला ‘यह कोई रांड नहीं है !’
‘अबे साले!’ साजन भाईने जगदीश से कहा ‘इसके बोब्बे देख. कितने बड़े बड़े है! फिर इस के कपडे देख और तेरे कपड़े देख -ये क्या तेरी घरवाली है? घरवाली को कोई ऐसे रखता है?’
जगदीश सहम गया. शालिनी को भी अपने स्तन की साइज़ को ले कर कॉम्प्लेक्स हो गया.
जगदीश करारा जवाब देने ही वाला था की साजन भाई ने टेबल के ड्रॉअर से एक रिवाल्वर निकाल कर टेबल पर रखते हुए आगे कहा.
‘ये साजन भाई का अड्डा है. यहाँ साजन भाई से ऊँची आवाज में कोई बात नहीं कर सकता. तूने की. ठीक है. तेरी बात शायद सही है सो तू आपा खो बैठा. मैं यह भी मानता हूँ कि यह कोई रांड नहीं होगी. मैं सॉरी बोलता हूँ.’
शालिनी और जगदीश दोनों यह सुन कर दंग रह गए. साजन भाई का ऐसी नर्मी से बोलना दोनों के लिए आश्चर्य की बात थी. जगदीश चुप रहा. साजन भाई ने कहा.
‘पर मेरे कुछ सवाल है. मुझे उस के जवाब चाहिए.’
जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.
(४ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश
############
ऐसी प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ता है दोस्त, आभार.Behtreen story
बहुत शुक्रिया… ! इस तरह की प्रतिक्रिया लिखने का होंसला बढ़ाती है…बहुत ही बेहतरीन कहानी है।