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Adultery मै परिणीता (पति - पत्नी अंतर्दवंद)

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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बेहतरीन लिखा है बहुत ही उम्दा , उत्तेजक और नया

Thanks you so much Rekha Mam.
आपकी कहानी सिर्फ शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि भावनाओं की गहराई का उद्गार है

वैसे एक बात बिना पूर्वाग्रह के कहना चाहता हूं, एक पुरुष होने के नाते...... :D
एक पुरुष की भावनाएं इतनी मुखर नहीं दिख रहीं जितनी एक स्त्री की भावनाएं निकल कर सामने आ रही हैं
सम्भोग सिर्फ एक माध्यम है स्त्री पुरुष के बीच भावनात्मक संबंध जोड़ने का.... जो प्रयास सफल रहा

Saamaanya Purush ki bhaavnaaye sirf paarivaarik daayitvo k nirvahn tak hi simat kar rah jaati hai, saamanya purush kabhi bhi apni takleefo athwa khushiyo ko khul kar pradarshit ni karta hai, kyoki use pta hota h kuch bhi jeevan me ek jaisa ni rahene waala hai, jabki iske ult striya swaabhik roop se kalpnaao me jeena pasand karti hai, or isi wajh se aksar kisi bhi vyakti k behkaawe me turant aa jaati hai...!

Choonki kahaani ek crossdesar ki icchao, bhaavnaao ko kendtrit kar likhi jaa rahi hai, to poora focus usi par rakha gya hai. Aapne to suna hi hoga ki mahila agar purush ki tarah talwaar utha leti to uski taareefo me kavitaaye likhi jaati h " Khoob ladi mardaani" Jabki purush agar stri swaabhv pradshit kare to uska mjaak bnaa kar use jaanaani shabdo se trskrit kiya jaata hai. Isi bhedwaabh ko khatam kar samaan vyvhaar or samman k lie is kaahani k maadhyam se ek pehal hai.
Shaandar Mast Super hot update 🔥 🔥 🔥
Nice update
Thanks all my friend.

New update posted.
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: जब से होश संभाला है, मैं जानती हूँ कि मेरे अंदर एक औरत बसी हुई है। पर दुनिया की नज़र में मैं हमेशा प्रतीक, एक लड़का बनकर रही। कुछ साल पहले जब मेरी शादी परिणीता से हुई, तो उसे भी मेरे अंदर की औरत कभी पसंद न आयी। हम दोनों पति-पत्नी US में डॉक्टर बन गए। पर मेरे अंदर की औरत हमेशा बाहर आने को तरसती रही। किसी तरह मैं अपने अरमानों को घर की चारदीवारियों के बीच सज संवर कर पूरा करती थी। पर आज से ३ साल पहले ऐसा कुछ हुआ जो हम दोनों को हमेशा के लिए बदल देने वाला था। उस सुबह जब हम सोकर उठे तो हम एक दूसरे में बदल चुके थे। मैं परिणीता के शरीर में एक औरत बन चुकी थी और परिणीता मेरे शरीर में एक आदमी। हमारा पहला दिन अपने नए रूप को समझने में बीत गया। और हमारी पहली रात, हमारी सुहागरात उसके बारे में तो पहले ही बहुत बातें कर चुकी हूँ| अब मैं रिश्ते में पत्नी बन चुकी थी और परिणीता पति| इसके बाद, अगला दिन शुरू हुआ जब हमें काम पर हॉस्पिटल जाना था| अब आगे –

हम दोनों घर से निकल कर हॉस्पिटल काम पर जाने को तैयार थे| हम दोनों एक दुसरे का हाथ पकडे कार की ओर चल पड़े| मेरे कंधे पर मैंने लेडीज पर्स टंगा रखा था| यूँ तो मैंने यह कल भी किया था पर आज मैं कल से ज्यादा कॉंफिडेंट औरत थी| सच कहूं तो मुझे अब तक पता नहीं था कि उस पर्स में आखिर परिणीता क्या क्या रखा करती थी| पर अब वो मेरा पर्स हो गया था! और परिणीता मेरा पुरुष वाला बटुआ पैंट की जेब में रख कर चल रही थी? या चल रहे थे? चल रहे थे ज्यादा सही होगा। क्योंकि वो अब आखिर पति है मेरे! मैं तो अपने स्त्री वाले तन में बेहद खुश थी| किसी नाज़ुक कली की तरह महसूस कर रही थी खुद को! अच्छा हुआ जो कल हम दोनों ने अपनी सुहागरात मना ली थी| उस वजह से आज चलते वक़्त मन में कामुकता थोड़ी कम थी और मैं अपने तन और सौंदर्य को प्यार से अनुभव कर पा रही थी| सालो से औरत बन कर बाहर खुली हवा में घुमने की तमन्ना थी पर वो ऐसी पूरी होगी मैं कभी सोची भी नहीं थी| यदि मेरी तरह किसी का लिंग अचानक ही बदल जाए तो उनके जीवन में कई परेशानियाँ आएँगी, पर उन सबसे निश्चिन्त मैं तो बेहद खुश थी इस परिवर्तन से| मेरे पति परिणीता भी खुश लग रहे थे| पर शायद मैं अपने स्वार्थ में खो गयी थी जो उनके मन को उस वक़्त पढ़ न सकी थी| यह सब बाद में बताऊंगी|



पहले पति होने की वजह से मेरी आदत थी कि कार हमेशा मैं ही चलाती थी| आज भी वही करने वाली थी पर परिणीता ने मुझे रोका और कहा, “रुको ज़रा| आज मैं पति हूँ तुम्हारा, कार मुझे चलाने दो”| हाय, मैं कितनी खुश हुई यह बात सुनकर आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते| परिणीता मुझे पत्नी होने का सुख दे रहे थे| मैं ख़ुशी से पैसेंजर सीट पर बैठ गयी| चलने के पहले मैंने कहा, “सुनो जी! पति सिर्फ कार ही नहीं चलाते, अपनी पत्नी की तारीफ़ भी करते है! लगता है आपको पति की जिम्मेदारी सिखने में थोडा समय लगेगा|” वो मुस्कुराये और कहा, “तुम बेहद खुबसूरत लग रही हो!” मैंने कहा, “चलो झूठे, सच्ची तारीफ़ करो तो माने!” मेरी बात सुनकर वो बोले, “हम्म, शायद मुझे पति होना क्या होता है सिखने में समय लगेगा, पर तुम पहले ही परफेक्ट पत्नी बन चुकी हो!” उनकी बात सुनकर हम दोनों हंस पड़े और अपनी मंजिल की ओर चल दिए| सुहानी सुबह में बाहर सब कुछ सुन्दर लग रहा था| शायद सब कुछ पहले से ही था बस मैं एक नयी नज़र से दुनिया को देख रही थी| आखिर अब मैं आज़ाद थी, एक आदमी एक पति होने के बंधन से मुक्त जो हो गयी थी |

जल्दी ही हॉस्पिटल आ गया| पहले जब मैं पति थी तो कार से निकल कर काम पर जाने के पहले हमेशा परिणीता को किस करती थी| पर अब तो मैं औरत थी, अब भला मैं कैसे आगे बढ़कर अपने पति को चुमू? पर मेरे होंठ तो तरस रहे थे| शायद परिणीता ने मेरे मन को भांप लिया था, वो मेरी ओर पलते, मेरे चेहरे को अपने हांथो में लेकर उन्होंने मुझे बड़ा प्यार भरा चुम्बन दिया| अब मैं भला कहाँ रुकने वाली थी? मैंने भी बढ़कर अच्छे से उन्हें ज़ोरो से चुम्बन दिया| औरत के होंठो पे जो गज़ब सी अनुभूति होती है मैं तो उसको एक बार फिर अनुभव करना चाहती थी| क्या कहूँ मैं अपने पति से एक पल भी दूर नहीं रहना चाहती थी। उनके तन से लगकर हमेशा एक बने रहने की ख्वाहिश थी।


काम पर जाने के पहले मैंने भी उन्हें बड़े प्यार से चुम्बन दिया । मैं उनसे एक पल भी दूर नहीं रहना चाहती थी।


उसके बाद उन्होंने मुझसे कहा, “प्रतीक, आज हॉस्पिटल में तुम्हे सभी परिणीता कहेंगे और मुझे डॉ प्रतीक| दिल में एक डर भी है। प्रतीक, आज सब ठीक होगा न?” वो शायद थोड़े से इस नयी परिस्थिति से घबराये हुए थे, और शायद उनके अन्दर की परिणीता कह रही थी जो अपने पति प्रतीक का सहारा चाहती थी| मुझे इस बात का अहसास हो गया था| कुछ देर के लिए मेरे अन्दर का आदमी जाग गया जो अपनी पत्नी को सहारा देना चाहता था| मैंने कहा, “परी, तुम तो बेहद हिम्मतवाले हो| मुझे यकिन है कि सब ठीक होगा|” मैंने उन्हें गले लगाया| उसके बाद उन्हें अच्छा लगा और वो अपने (यानि डॉ प्रतीक) के कैबिन की तरफ चल दिए| मेरा नया केबिन (यानि डॉ परिणीता का केबिन), उनके यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था| मैं भी वहां चल दी| अब ज़रा परिस्थिति का अहसास हुआ| और मेरे पैर डर से कांपने लगे|

मेरे कैबिन पहुँचते ही मुझे मेरी असिस्टेंट नतालिया मिली| मुझे तो उसका नाम तक पता नहीं था पर परिणीता की याददाश्त मेरे पास थी इसलिए उसका नाम याद आ गया| हमारी बातें इंग्लिश में हुई पर मैं हिंदी में बताती हूँ|

“हाय नतालिया| गुड मोर्निंग”, मैंने मुस्कुराकर कहा|

“गुड मोर्निंग डॉ. परिणीता| वाह आज तो आपके चेहरे पे नयी दमक दिख रही है!”, नतालिया बोली| मैं मन ही मन खुश हुई और बोली, “कैसी दमक?” “डॉक्टर, वही दमक जो सुहानी रात के बाद चेहरे पे दिखती है| लगता है डॉ. प्रतीक की किस्मत कल काफी अच्छी रही”, नतालिया मसखरी कर रही थी| औरतें ऐसी बातें आपस में करती है मुझे अंदाज़ा न था| मैंने जवाब में कहा, “डॉ. प्रतीक से ज्यादा मैं किस्मत वाली रही, अगर तुम समझ रही हो मेरी बात?” कहकर मैं हँस दी| नतालिया मेरी ओर आश्चर्य से देखती रह गयी| मैं सोच में पड़ गयी कि वह मेरी ओर ऐसे क्यों देख रही थी| तब मेरे दिमाग से आवाज़ आई, “इडियट, अपनी असिस्टेंट को यह कहने की क्या ज़रुरत थी? वो तो मसखरी करती ही रहती है|” पर वो आवाज़ मेरी नहीं थी| वो आवाज़ इस शरीर में चल रहे परिणीता के दिमाग की थी! आखिर यह शरीर यह दिमाग और उसमे सारी यादें परिणीता की ही थी, जिसमे अब मैं अपनी नयी यादें जोड़ रही थी| इसी कारण अब मैं जब भी कुछ करती तो पहले परिणीता का दिमाग कुछ कहता जिसमे सालो की कुछ आदतें थी, और मेरा मन कुछ और कहता| कभी परिणीता का दिमाग जीत जाता तो कभी मेरा मन| पर धीरे धीरे मेरा मन परिणीता के दिमाग को बदल रहा था| पर फिलहाल तो यह बस दूसरा दिन था इस बदन में| और अब तक परिणीता का दिमाग पूरी तरह मेरे वश में न था।

दिन में कई मरीज़ आये मेरे ऑफिस में| मुझे कई बार एहसास हुआ कि कुछ पुरुष मरीज़ मेरे स्तनों की ओर घूरने लगते| मुझे थोड़ी शर्म सी आ रही थी| अच्छा हुआ मेरी ड्रेस से मेरा उपरी हिस्सा गले तक ढंका हुआ था और बाकी का तन डॉक्टर के सफ़ेद कोट से| पर फिर भी स्तनों का आकार ड्रेस में अच्छी तरह से उभर कर आ रहा था। शायद मेरी ब्रा का असर था कि मेरे स्तन काफी बड़े लग रहे थे। यदि आदमियों की निर्लज्जता परेशान करने वाली थी तो औरतें भी कम नहीं थी। औरतें जब आती तो वो तो अपनी पूरी जीवन की कहानी सुनाने बैठ जाती| जब तक मैं आदमी थी, ऐसा कुछ नहीं होता था| मरीज़ काम की बात करते थे, और मैं भी| जल्दी जल्दी सब कुछ हो जाता था| पर मुझे औरत देख कर न जाने क्यों औरतें लम्बी कहानियाँ सुनाने लगती|


एक औरत जो अपनी बेटी को दिखाने आई थी वह मुझसे बोली, “तीन तीन बच्चे सँभालने में मेरा दिन निकल जाता है, पर माँ होने का सुख भी तो बहुत है| आप भी तो माँ होंगी न?” मैंने कहा, “नहीं, अब तक नहीं|” मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती थी पर वो मुझसे कहती है, “क्यों? कितनी उम्र है आपकी?” मैं बोली, “३०| आप ये दवाई अपनी बेटी को दिन में दो बार दीजियेगा। ” मैंने उन्हें दवाई के नाम लिख कर दिए| “आप ३० साल की है? और अब तक बच्चे नहीं? कोई परेशानी?”, औरत ने पूछा| मुझे बेहद गुस्सा आने लगा पर किसी तरह काबू करके बोली, “मेरे अगले मरीज़ का समय हो गया है| धन्यवाद्|” उफ़ क्या चिपकू औरत थी जैसे औरत का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है| हम्म कुछ देर सोचने पर मुझे माँ बनने का ख्याल थोडा अच्छा लगा पर अभी मैंने औरत का जीवन जीया ही कितना था| और यह भी नहीं पता था कि कब मैं दोबारा पुरुष बन जाऊंगी| हम पति पत्नी का शरीर परिवर्तन अब तक एक अनसुलझी पहेली था|

कुछ और मरीज़ देखने के बाद लंच का समय हो गया| जैसे ही समय हुआ मैं पतिदेव के कैबिन चली गयी और वहां जाते ही कैबिन का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दी| उनको देख कर उन्हें गले लगाऊं या अपने दिल की भड़ास निकालू, समझ नहीं आया।

“ओह माय गॉड| इतना ख़राब दिन जा रहा है मेरा! जाहिल आदमी मुझे, तुम्हारी पत्नी, को घूरते है और औरतें अपनी बेकार की बातें बंद ही नहीं करती| उनकी वजह से मेरा काम इतना धीरे हो रहा है|”, मैं अपनी भड़ास परिणीता यानी मेरे पति पर निकाल रही थी| वो मुस्काए और बोले, “मेरा दिन तो बहुत अच्छा रहा| इतने सारे मरीज़ मैंने पहले कभी इतने कम समय में पूरे नहीं किये थे|” हम दोनों को अब कुछ समझ आ रहा था| मैं एक औरत होने का चैलेंज देख रही थी और परिणीता एक आदमी होने का फायदा देख पा रही थी| यह तो सिर्फ शुरुआत थी, मुझे और भी कई सारी बातें सीखनी थी औरत होने के बारे में| वहीँ परिणीता तो खुश लग रहे थे| उन्होंने मुझे अपनी गोद में बैठा लिया| उनकी गोद में बैठ कर मैंने कहा, “परी प्लीज़ बोलो तुम मुझे प्यार करते हो? और मुझे खुश करो प्लीज़! आखिर पत्नी हूँ तुम्हारी! ” यह क्या कर रही थी मैं? मैं ऐसी तो नहीं थी? शायद परिणीता वाला दिमाग मुझ पर हावी था| उन्होंने मुझे कहा कि वो मुझसे बेहद प्यार करते है| उनकी बात सुनकर मैं खुश हो गयी|

“पता है आज एक औरत मुझसे कहती है कि मेरे अब तक बच्चे क्यों नहीं है? मैं माँ क्यों नहीं बनी? तुम सोच सकते हो?”, मैं उनसे बोली| “हाहा”, वो हँस दिए और बोले, “अरे ये औरतें यह सब कहती रहेंगी| तुम उनकी बातों को अनसुना कर देना या कह देना कि तुम प्लान कर रही हो| यकीन करो जल्दी ही ये बातें सुनने की तुमको आदत हो जायेगी| ये औरतें तो ठीक है पर जब तुमसे मेरी माँ या अपनी माँ से बात करोगी और वो तुमसे यह कहेंगी, तब क्या करोगी?”, उन्होंने कहा| हाय, मेरी माँ तो मुझे अब अपना बेटा नहीं अपनी बहु समझ कर यह बोलेगी| मुझे तो सोच कर ही बेहद अजीब लग रहा था| सोचते सोचते मैं अपनी उँगलियों से अपने मंगलसूत्र के साथ खेल रही थी। औरतें नर्वस हो जाए तो ऐसा करती है, और मैं भी बिना सोचे ही यह कर रही थी।


“क्या कभी मेरी या तुम्हारी माँ ने तुमसे बच्चो के बारे में कुछ कहा था? जब तुम औरत थे?”, मैंने परिणीता से पूछा| “कभी? अरे जब भी बात करो तब| तुम्हारी माँ से ज्यादा मेरी माँ पीछे पड़ी थी कि मेरी उम्र बीती जा रही है| जल्द से जल्द उन्हें नाती चाहिए। चलो अब तुम्हे यह सुनने को मिलेगा! अब तुम निपटो!”, परिणीता ने कहा| “मैं क्या करूंगी?”, मैं सोचने लगी| पर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर लंच के लिए बाहर ले गए| वो भी अब जेंटलमैन बन रहे थे| मुझे बेहद प्यार से रख रहे थे वो|

किसी तरह फिर दिन का काम ख़त्म हुआ| और घर पहुँचते ही मैंने ड्रेस बदल कर एक घरेलु साड़ी पहन ली| परिणीता तो मुझे ऐसे झट से साड़ी पहनते देखते ही रह गए| वो खुद जब औरत थे तब तो वो साल में २ या ३ बार ही साड़ी पहनते थे और वो भी बहुत समय लगा कर! मुझे साड़ी में देख कर उनकी आँखों में प्यार तो था पर कुछ और विचार भी थे, जो उस वक़्त मैं पढ़ न सकी थी| मैं तो ख़ुशी ख़ुशी उनके लिए खाना बना रही थी| मेरे हाथ का बना खाना खाकर वो बेहद खुश हुए| सच में पत्नी को जब पति को संतुष्ट देखने का अवसर मिलता है तो खुद पत्नी का मन भी संतोष अनुभव करता है| खाने के बाद हम सोफे पर बैठ गए| मैं उनके सीने पे सर रख कर बैठी हुई थी| और हमने साथ टीवी में एक प्रोग्राम देखा| कुछ देर बातें की| हँसे खेले| उनको मौका मिलने पर मेरे स्तनों को छेड़ना न भूलते थे| पत्नी होने का भरपूर मज़ा ले रही थी मैं| और वो भी बेहद अच्छे पति होने का रोल अदा कर रहे थे| उन्होंने हर पल मुझे बेहद प्यार दिया|


घर आकर मैंने साडी पहन ली और एक अच्छी पत्नी की तरह खाना बनाने लग गयी। मैं परिणीता को इस बदलाव की वजह से कोई दिक्कत नहीं आने देना चाहती बल्कि उन्हें सारे सुख और आराम देना चाहती थी।


और इन सबके बाद, मैं एक लम्बी सी सैटिन नाईटी जो की स्लीवेलेस थी, वह पहन कर उनकी बांहों में सोने आ गयी| मखमली बदन पे सैटिन का अहसास, वो भी पति की बांहों में, अद्वितीय है| आश्चर्य था कि पूरे जीवन औरतों की तरह आकर्षित रहने के बाद मैं इतनी आसानी से एक पुरुष के इतने करीब आ चुकी थी| मैं एक पुरुष से प्यार करने लगी थी| पर पुरुष का तो सिर्फ तन था, आखिर अन्दर तो मेरी परिणीता ही थी| काश कि मैं उसके दिल की बात पहले पढ़ सकी होती, तो आगे जो होने वाला था उस बारे में मैं पहले ही कुछ कर पाती| पर उस वक़्त तो मैं अपने पति की बांहों में एक सुखी पत्नी की नींद सो गयी|

To be continued …
Shaandar jabardast Romanchak Update 👌 💓
 

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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तीन हफ्ते बाद

अब तक करीब तीन हफ्ते बीत चुके थे जबसे हम पति-पत्नी के तन बदल गए थे| इन तीन हफ्तों में कुछ दिक्कतें भी आई, औरत होने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मैं वह सीख रही थी जो कभी प्रतीक, एक आदमी रहकर मुझे पता भी न चलता| परिणीता, जो अब मेरे पतिदेव है, उन्हें भी शायद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर उन्हें देखकर मुझे कभी ऐसा महसूस न हुआ| वो पहले से ही मुश्किलों का सामना हिम्मत से कर लेते थे, जब वो औरत थे तब भी| पर इन तीन हफ्तों में हमें अब तक ज़रा भी अंदाजा न था कि आखिर हमारे तन क्यों और कैसे बदल गए? रोज़ हम इस बारे में सोचते थे| लगता था कि भगवान हमें कुछ सिखाना चाहते है और यदि हम ख़ुशी ख़ुशी वह बात जल्दी से सीख जाए तो हम शायद वापस अपने पहले वाले रूप में आ जाए| इसके बावजूद हमारा जीवन ख़ुशी से चल रहा था| जब भी कोई नयी परिस्थिति आती जिसमे मुझे पता न होता कि क्या करना है, तब मेरे इस तन में चल रहे परिणीता के दिमाग में बसी यादों को थोडा जोर लगाकर पढ़ लेती कि परिणीता ऐसी स्थिति में क्या करती| ऐसा ही कुछ आज भी हुआ पर मुझे ध्यान ही न रहा कि मैं अपने दिमाग में बसी परिणीता की यादों का सहारा ले सकती हूँ| आज मेरे पेट में जोरो का दर्द हो रहा था| उस दर्द से परेशान होकर मैं आज काम से जल्दी ही घर वापस आ गयी|

मैं कार लेकर घर आ गयी थी| घर पहुच कर मैंने इन्हें फ़ोन लगाया कि आज वो टैक्सी लेकर वापस आये| पर मुझे उनके फ़ोन की घंटी अन्दर बेडरूम से सुनाई दे रही थी| क्या वो आज फोन घर पर ही भूल गए? मैं अन्दर कमरे में जाकर देखती हूँ तो वो वहीँ थे| वो बिस्तर पे बैठे रो रहे थे और उनके बगल में कुछ मेरी ड्रेसेज, जो पहले उनकी हुआ करती थी, बिखरी पड़ी हुई थी| मेरी अलमारी भी खुली हुई थी और सब कुछ बिखरा हुआ था| मैं समझ नहीं सकी कि आखिर हुआ क्या था| चिंतित होकर मैं तुरंत उनके पास गयी और उन्हें गले लगा ली| उनका सिर अपने सीने पे रख कर मैं उन्हें चुप कराने की कोशिश करने लगी| मैं जानती थी कि एक औरत के सीने में सर रख कर हर किसी को प्यार अनुभव होता जो किसी की भी परेशानियों को दूर करने में मदद करता है| मेरे दिल से सच में चिंता और प्यार के बीच यह सवाल आ रहा था कि आखिर वह रो क्यों रहे है? आखिर क्या हुआ? सच तो यह था कि उनके दिल में बहुत समय से कुछ बातें चल रही थी| परिणीता ने एक हफ्ते पहले उन बातों को अपनी प्राइवेट डायरी में लिखा भी था| पर न मैं उनकी दिल की बातें न समझ सकी थी और न ही मैंने उनकी डायरी पढ़ी थी| आप ही पढ़ के देखे तो आपको समझ आ जाएगा|


प्रिय डायरी,

तुमसे बातें किये न जाने कितना समय हो गया. पिछली बार जब तुमसे बात की थी तब मैं कितनी ख़ुशी थी. तब मैं एक औरत थी, परिणीता थी. पर आज मैं एक आदमी के तन में हूँ, और दुनिया मुझे प्रतीक कहती है, पर मैं हूँ तो परिणीता! जब से आदमी बनी हूँ, हमेशा मन में सवाल आता रहता है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया मेरे साथ? पर इस सवाल का कोई जवाब नहीं है मेरे पास .

इस दौरान मैं आदमी होने के फायदे भी देख रही हूँ. लोग मेरी बात एक ही बार में सुन लेते है. मुझे तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता. कपडे मैचिंग करने का झंझट नहीं और न ही सैंडल पहन कर दिन भर अपने पैर दुखाने का झंझट. साथ ही पति बनने के फायदे भी है. मेरी पत्नी मेरी खूब सेवा करती है!

मेरी तरह प्रतीक भी बदल कर अब औरत हो चुके है. एक औरत के रूप में वो कितने खिल गए है. बातूनी, कॉंफिडेंट, उनकी पर्सनालिटी में ज़बरदस्त बदलाव आया है. जैसे उन्हें दुनिया में अब कोई कुछ करने से रोक नहीं सकता. बहुत खुश है वो औरत बन कर. पारंपरिक पत्नी के सारे गुण है उनमे, और इतनी ख़ुशी से मेरी सेवा करते है जैसे हमेशा से ही वो औरत ही बनना चाहते थे. और यह सच भी है. मैं जानती हूँ कि वो औरतों की तरह पहले से ही सजना संवरना पसंद करते थे, पर मैं उन्हें मौका नहीं देती थी. और अब जब उन्हें मौका मिला है तो वो खुलकर जी रहे है. मैं भी अब उनका साथ दे रही हूँ. उनको खुश देखकर मुझे भी अच्छा लगता है. और उनके लिए मुझे पति बनकर उन्हें प्यार से ट्रीट करना भी बड़ा आसान है. आखिर मेरे दिमाग में उनकी यादें भी तो है, जो मुझे याद दिला देती है कि यदि वो होते तो अपनी पत्नी के साथ कैसे सलूक करते. तो अब मैं भी समय समय पर उनकी खूबसूरती की तारीफ़ कर देती हूँ, समय समय पर किस देती हूँ, अपनी बांहों में भर लेती हूँ. और इन छोटी छोटी बातों से ही वो खुश हो जाते है. या ख़ुशी हो जाती है? न जाने क्या कहूँ मैं?

वैसे मेरे मना करने पर भी उन्होंने आखिर हॉस्पिटल में साड़ी पहनकर जाना शुरू कर दिया है. US में काम करते हुए भला कौन साड़ी पहन कर जाता है ? पर वो मेरी बात सुनते ही नहीं . कहते है कि ड्रेस में उन्हें ठण्ड लगती है . हाँ मुझे भी लगती थी पर इस देश के पहनावे को अपनाना भी ज़रूरी है . खैर, कई बार ड्रेस भी पहन कर जाते है बाहर. पर घर में तो बस पक्की भारतीय नारी . न जाने कैसे इतनी आसानी से साड़ी पहन लेते है वो. और हॉस्पिटल में सभी उनकी तारीफ़ करते है. डॉ परिणीता हॉस्पिटल में इतनी पोपुलर हो गयी है कि लोग मुझे आकर बधाई देते ही कि बहुत खुबसूरत पत्नी पाई है आपने! मैं मन ही मन सोच कर हँस लेती हूँ कि डॉ. परिणीता के अन्दर अब परिणीता ही नहीं है, बल्कि प्रतीक है, जिसने परिणीता को इतना पोपुलर बना दिया! पर कहाँ है परिणीता? मैं हूँ परिणीता? अब एक आदमी बन कर …


याद आता है मुझे वह सब कुछ, कैसे मैंने प्यार से ढेरो ड्रेसेस अपने लिए खरीदी थी और उनसे मैचिंग सैंडल, आज जिनमे प्रतीक घूमते है. उन्हें साड़ी में देख कर मेरा भी मन करने लगा है कि मैं भी अपना औरत वाला जीवन फिर से जी सकू. जितनी आसानी से वो पत्नी बन चुके हैं, मैं वैसी तो नहीं थी, पर वैसी होने की तमन्ना है मेरी| मैं भी पति की सेवा करना चाहती हूँ. मैं भी चहकना चाहती हूँ. फिर से ड्रेस पहनकर बाहर घूमना चाहती हूँ, एक फूल की तरह नाज़ुक राजकुमारी जैसे फिर से महसूस करना चाहती हूँ मैं. पर अब मैं इस आदमी के तन में कैद हो गयी हूँ. मैं तो शायद अब अपनी ड्रेस में फिट भी न आऊंगी और इस मर्दाने शरीर में न जाने कैसी लगूंगी मैं. मेरे शरीर पर इतने बालों से नफरत सी हो रही है मुझे . और रोज़ रोज़ शेव करके तंग आ चुकी हूँ. क्या मैं फिर से औरतों के कपडे पहन कर स्त्री होने का अनुभव कर सकती हूँ? पर प्रतीक से क्या कहूँगी मैं? जब वो आदमी थे, मैं उन्हें यह करने से रोकती थी. अब मैं खुद आदमी होकर यह कैसे कर सकती हूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. क्या अब मैं पहले वाले प्रतीक की तरह क्रोस्ड्रेसर बन चुकी हूँ? मेरे दिमाग में प्रतीक की याद है और मैं जानती हूँ कि उसका एक क्रोस्ड्रेसर के रूप में एक फेसबुक अकाउंट है, जिसका पासवर्ड मुझे याद है. क्या मुझे वहां जाकर देखना चाहिए कि इस आदमी के तन में मैं औरत कैसे बनू? पर न जाने प्रतीक की कैसी कैसी बातें मुझे जानने को मिलेगी. क्या मैं उनको जानने को तैयार हूँ? वैसे भी मेरे दिमाग में उनकी क्रोस्ड्रेसिंग से जूडी यादें थोड़ी थोड़ी आती रहती है जिनको मैं दबाती रहती हूँ पर अब मैं खुद वैसा ही महसूस करने लगी हूँ. क्या करूँ मैं ?

भगवान यदि मेरी आवाज़ सुन रहे हो तो प्लीज़ मुझे वापस औरत बना दो. यदि तुम यही चाहते थे कि मैं एक अच्छी पत्नी बनू तो मैं उसके लिए तैयार हूँ. प्लीज़ मुझे फिर से औरत बना दो.

अब तो आप समझ ही गए होंगे की परिणीता के दिमाग में क्या चल रहा था| काश कि परिणीता ने मुझसे यह बातें पहले ही बता दी होती| मैं भी अपनी नयी ज़िन्दगी की ख़ुशी में मगन थी| और मेरा ध्यान उनकी ओर कभी गया ही नहीं| आखिर उस दिन परिणीता ने मुझे सब कुछ बताया| उन्होंने कहा कि कैसे वो मेरी अपनी ड्रेसेज पहन कर फिर से औरत बनना चाह रहे थे पर उनके बड़े से तन में एक भी ड्रेस नहीं गयी| और तो और उन्हें लग रहा था कि वो औरतों के कपडे पहन कर बड़े ख़राब लगेंगे| परिणीता उन्ही बातों से गुज़र रहे थे जो मैंने सालो तक महसूस किया था| कैसी अजीब सी स्थिति थी हमारी| वो कुछ देर तक मुझसे गले लग कर रोते रहे| मुझे पता था आगे क्या करना है| पर मेरे पेट में दर्द और मरोड़े मुझे बेहद तकलीफ दे रही थी| मैं अपने पेट को पकड़ कर दबाने की कोशिश करने लगी|


प्रतीक, क्या हुआ तुम्हे?”, परिणीता ने मुझसे पूछा| “तुम चिंता मत करो परी, बस पेट में बड़ा दर्द हो रहा है| शायद मैंने कुछ ज्यादा खाना खा लिया था| जल्दी ठीक हो जाएगा| पर ऐसा पेट दर्द पहले कभी नहीं हुआ”, मैंने परिणीता की चिंता दूर करने की कोशिश की|

परिणीता ने अपना फोन चेक किया| फिर मेरी ओर देख कर बोले, “पगली, तुम्हारे पीरियड शुरू होने वाले है! ये दर्द ऐसे बैठे बैठे नहीं जाएगा|”

“क्या? मेरे … मेरे पीरियड?”, मैं तो यकीन ही नहीं कर पा रही थी| अब तक औरत बनना तो बस सब हँसने खेलने जैसा था| पीरियड के बारे में तो मैं कभी सोची भी नहीं थी| हम क्रोस्ड्रेसर बस सोचते है कि औरत बन कर जीवन बस सुन्दर होगा पर यह भी हकीकत है और आसान नहीं! मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था|

“तुम यहाँ बैठो, मैं एक मिनट में आता हूँ”, ऐसा कहकर परिणीता बाथरूम चले गए और फिर किचन| वापस आये तो उनके हाथ में कुछ गोलियां थी और एक पैड| “ये ३ गोली खा लो, कुछ देर बाद तुम्हे दर्द से आराम मिलेगा|” उन्होंने मुझे पानी भी दिया| “क्या पीरियड के लिए गोलियां भी आती है?”, मैंने अंजान होंते हुए मासूमियत से पूछा| “नहीं पगली, यह दवा सिर्फ दर्द कम करने के लिए है”, उन्होंने कहा| मैंने गोलियां खा ली|

फिर वो नीचे झुके और मेरे पैरो के पास आकर बैठ गए| फिर अचानक ही वो मेरी साड़ी पैरो पर से सरकाकर हाथों से उठाने लगे| “यह क्या कर रहे हो तुम?”, मैंने झट से वापस अपनी साड़ी को नीचे करते हुए उनसे कहा| “मुझे करने दो जो मैं कर रहा हूँ|”, वो भी बेहद तेज़ी से मेरी साड़ी उठाकर मेरी पैंटी तक अपना हाथ ले गए| मैं गुस्से में आकर बोली, “ये कोई तरीका है परी? मैं यहाँ दर्द में हूँ और तुम यह कर रहे हो?” मैंने गुस्से में उनका हाथ हटाया| मुझे शर्म सी भी आ रही थी|

वो मेरी ओर देखे और बोले, “देखो, क्या तुम्हे सेनेटरी पैड लगाना आता है? जल्दी से न लगाया तो कुछ देर बाद, तुम्हारी साड़ी में दाग लग जाएगा| चाहोगी तुम कि ऐसा हो? तुम्हारी साड़ी ख़राब हो जाए?” मैं अब थोड़ी शांत हो गयी| वो मेरे बारे में ही सोच रहे थे| फिर उन्होंने मेरी पैंटी नीचे घुटनों तक उतारकर उसमे पैड फिट किया और मुझे बताया की उसे कैसे एडजस्ट करना है| मुझे उनके सामने पैड पहन कर एडजस्ट करने में शर्म तो आ रही थी पर अगले कुछ दिनों तक दाग धब्बे का डर तो था ही| फिर उन्होंने मेरे पैरो को उठाकर मुझे लिटा दिया और बोले, ” तुम कुछ देर आराम करो| जल्दी ही दर्द कम होगा|” मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका| उनके हाथ को प्यार से चूमा और बोली, “मैं क्षमा चाहती हूँ कि मैं तुमसे नाराज़ हो गयी थी जबकि तुम मेरे मदद कर रहे थे|” वो मुस्कुरा दिए|


दवाई लेकर कुछ देर मैंने लेटकर आराम किया| आधे घंटे के बाद दर्द कुछ कम हुआ| यदि आज परिणीता न होती तो पीरियड के दाग मेरी साड़ी में लग गए होते|
करीब आधे घंटे दवाई के असर से मेरा दर्द कम होने लगा| तो मैं उठ कर उस कमरे में गयी जहाँ मैं पहले प्रतीक के रूप में जाकर छुप छुप कर औरत बना करती थी| मैंने अपना वो बॉक्स उठाया जिसे परिणीता ने कभी नहीं उठाया था| अब मुझे परिणीता के दिल का दर्द दूर करना था| मैं बॉक्स लेकर उनके पास गयी|

“मेरी प्यारी धरमपतनी, तुम उठ क्यों गयी? अभी तो दर्द ख़त्म भी नहीं हुआ होगा तुम्हारा”, वो मेरी चिंता करते हुए बोले|

“क्योंकि जानू, मुझे तुम्हे कुछ दिखाना है”, मैंने कहा|

वो जानते थे कि वह बॉक्स मैं किस लिए उपयोग लाती थी पर परिणीता ने कभी उसके अन्दर झांककर भी नहीं देखा था| मैंने बॉक्स खोलकर उन्हें एक तस्वीर दिखाते हुए बोली, “ज़रा इस औरत को देख कर बताओ कि कैसी लग रही है? सच सच बताना|”

उन्हें वह तस्वीर देख कर जैसे यकीं ही नहीं हुआ| वो तस्वीर को पकड़ कर देखते ही रह गए| मैंने फिर कहा, “तुम्हे चिंता थी न कि उस तन में तुम औरत की तरह नहीं लगोगे| इस तस्वीर को देख कर बताओ, यह औरत कैसी लग रही है?”


मैंने उन्हें अपने पुराने बक्से से निकाल कर अपनी तस्वीर दिखाई जब मैं प्रतीक से एक औरत बना करती थी| वो मेरी तस्वीर को देखते ही रह गए| उन्हें यकीं ही नहीं हुआ कि मैं एक खुबसूरत औरत लग सकती थी
वो थोड़ी देर रूककर मेरी आँखों में देखते रहे और फिर मुझे गले लगाकर बोले, “बहुत सुन्दर औरत है| मुझे यकीन नहीं होता कि तुम पहले खुद को इतनी सुन्दर औरत के रूप में तब्दील कर लेते थे| मुझे माफ़ कर दो प्रतीक कि मैंने तुम्हे कभी खुलकर जीने नहीं दिया|”

मैं मुस्कुराते हुए बोली, “पतिदेव, उस बक्से में तुम्हारी साइज़ की ड्रेस भी है और साड़ियां भी, और उनसे मैच करते ब्लाउज भी| पर तुम्हे सिर्फ उन्ही कपड़ो को पहनना ज़रूरी नहीं है| फिलहाल तुम उसमे से कोई एक साड़ी सेलेक्ट कर लो, मैं तुम्हे तैयार करूंगी, और हम साथ में तुम्हारी पसंद के कपडे खरीदने जायेंगे|”

“क्या सच में? तुम ऐसा करोगी मेरे लिए? मैं ऐसे कैसे साड़ी पहन कर बाहर जाऊँगा?”, उनकी आवाज़ में ख़ुशी भी थी और एक डर भी|

“मेरे पति के लिए कुछ भी करूंगी मैं| और साड़ी पहन कर तुम वैसे ही जाओगे जैसे तुम पहले जाया करती थी| एक बार फिर उस तस्वीर की औरत को देखो और बताओ, वो बाहर जायेगी तो लोग उसकी खूबसूरती को देखते रह जायेंगे या नहीं?” मैं खुश थी| हमारे रिश्ते में वो मोड़ जो आ गया था जहाँ परिणीता अब मेरे जीवन के उस पहलू को समझने वाली थी जिसे मैंने सालों तक दबा कर रखा था| इत्तेफाक देखिये, मैं औरत बन गयी और मुझे पति मिला, वह भी क्रोस्ड्रेसर!

To be continued …
 

Rekha rani

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तीन हफ्ते बाद

अब तक करीब तीन हफ्ते बीत चुके थे जबसे हम पति-पत्नी के तन बदल गए थे| इन तीन हफ्तों में कुछ दिक्कतें भी आई, औरत होने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मैं वह सीख रही थी जो कभी प्रतीक, एक आदमी रहकर मुझे पता भी न चलता| परिणीता, जो अब मेरे पतिदेव है, उन्हें भी शायद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर उन्हें देखकर मुझे कभी ऐसा महसूस न हुआ| वो पहले से ही मुश्किलों का सामना हिम्मत से कर लेते थे, जब वो औरत थे तब भी| पर इन तीन हफ्तों में हमें अब तक ज़रा भी अंदाजा न था कि आखिर हमारे तन क्यों और कैसे बदल गए? रोज़ हम इस बारे में सोचते थे| लगता था कि भगवान हमें कुछ सिखाना चाहते है और यदि हम ख़ुशी ख़ुशी वह बात जल्दी से सीख जाए तो हम शायद वापस अपने पहले वाले रूप में आ जाए| इसके बावजूद हमारा जीवन ख़ुशी से चल रहा था| जब भी कोई नयी परिस्थिति आती जिसमे मुझे पता न होता कि क्या करना है, तब मेरे इस तन में चल रहे परिणीता के दिमाग में बसी यादों को थोडा जोर लगाकर पढ़ लेती कि परिणीता ऐसी स्थिति में क्या करती| ऐसा ही कुछ आज भी हुआ पर मुझे ध्यान ही न रहा कि मैं अपने दिमाग में बसी परिणीता की यादों का सहारा ले सकती हूँ| आज मेरे पेट में जोरो का दर्द हो रहा था| उस दर्द से परेशान होकर मैं आज काम से जल्दी ही घर वापस आ गयी|

मैं कार लेकर घर आ गयी थी| घर पहुच कर मैंने इन्हें फ़ोन लगाया कि आज वो टैक्सी लेकर वापस आये| पर मुझे उनके फ़ोन की घंटी अन्दर बेडरूम से सुनाई दे रही थी| क्या वो आज फोन घर पर ही भूल गए? मैं अन्दर कमरे में जाकर देखती हूँ तो वो वहीँ थे| वो बिस्तर पे बैठे रो रहे थे और उनके बगल में कुछ मेरी ड्रेसेज, जो पहले उनकी हुआ करती थी, बिखरी पड़ी हुई थी| मेरी अलमारी भी खुली हुई थी और सब कुछ बिखरा हुआ था| मैं समझ नहीं सकी कि आखिर हुआ क्या था| चिंतित होकर मैं तुरंत उनके पास गयी और उन्हें गले लगा ली| उनका सिर अपने सीने पे रख कर मैं उन्हें चुप कराने की कोशिश करने लगी| मैं जानती थी कि एक औरत के सीने में सर रख कर हर किसी को प्यार अनुभव होता जो किसी की भी परेशानियों को दूर करने में मदद करता है| मेरे दिल से सच में चिंता और प्यार के बीच यह सवाल आ रहा था कि आखिर वह रो क्यों रहे है? आखिर क्या हुआ? सच तो यह था कि उनके दिल में बहुत समय से कुछ बातें चल रही थी| परिणीता ने एक हफ्ते पहले उन बातों को अपनी प्राइवेट डायरी में लिखा भी था| पर न मैं उनकी दिल की बातें न समझ सकी थी और न ही मैंने उनकी डायरी पढ़ी थी| आप ही पढ़ के देखे तो आपको समझ आ जाएगा|


प्रिय डायरी,

तुमसे बातें किये न जाने कितना समय हो गया. पिछली बार जब तुमसे बात की थी तब मैं कितनी ख़ुशी थी. तब मैं एक औरत थी, परिणीता थी. पर आज मैं एक आदमी के तन में हूँ, और दुनिया मुझे प्रतीक कहती है, पर मैं हूँ तो परिणीता! जब से आदमी बनी हूँ, हमेशा मन में सवाल आता रहता है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया मेरे साथ? पर इस सवाल का कोई जवाब नहीं है मेरे पास .

इस दौरान मैं आदमी होने के फायदे भी देख रही हूँ. लोग मेरी बात एक ही बार में सुन लेते है. मुझे तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता. कपडे मैचिंग करने का झंझट नहीं और न ही सैंडल पहन कर दिन भर अपने पैर दुखाने का झंझट. साथ ही पति बनने के फायदे भी है. मेरी पत्नी मेरी खूब सेवा करती है!

मेरी तरह प्रतीक भी बदल कर अब औरत हो चुके है. एक औरत के रूप में वो कितने खिल गए है. बातूनी, कॉंफिडेंट, उनकी पर्सनालिटी में ज़बरदस्त बदलाव आया है. जैसे उन्हें दुनिया में अब कोई कुछ करने से रोक नहीं सकता. बहुत खुश है वो औरत बन कर. पारंपरिक पत्नी के सारे गुण है उनमे, और इतनी ख़ुशी से मेरी सेवा करते है जैसे हमेशा से ही वो औरत ही बनना चाहते थे. और यह सच भी है. मैं जानती हूँ कि वो औरतों की तरह पहले से ही सजना संवरना पसंद करते थे, पर मैं उन्हें मौका नहीं देती थी. और अब जब उन्हें मौका मिला है तो वो खुलकर जी रहे है. मैं भी अब उनका साथ दे रही हूँ. उनको खुश देखकर मुझे भी अच्छा लगता है. और उनके लिए मुझे पति बनकर उन्हें प्यार से ट्रीट करना भी बड़ा आसान है. आखिर मेरे दिमाग में उनकी यादें भी तो है, जो मुझे याद दिला देती है कि यदि वो होते तो अपनी पत्नी के साथ कैसे सलूक करते. तो अब मैं भी समय समय पर उनकी खूबसूरती की तारीफ़ कर देती हूँ, समय समय पर किस देती हूँ, अपनी बांहों में भर लेती हूँ. और इन छोटी छोटी बातों से ही वो खुश हो जाते है. या ख़ुशी हो जाती है? न जाने क्या कहूँ मैं?

वैसे मेरे मना करने पर भी उन्होंने आखिर हॉस्पिटल में साड़ी पहनकर जाना शुरू कर दिया है. US में काम करते हुए भला कौन साड़ी पहन कर जाता है ? पर वो मेरी बात सुनते ही नहीं . कहते है कि ड्रेस में उन्हें ठण्ड लगती है . हाँ मुझे भी लगती थी पर इस देश के पहनावे को अपनाना भी ज़रूरी है . खैर, कई बार ड्रेस भी पहन कर जाते है बाहर. पर घर में तो बस पक्की भारतीय नारी . न जाने कैसे इतनी आसानी से साड़ी पहन लेते है वो. और हॉस्पिटल में सभी उनकी तारीफ़ करते है. डॉ परिणीता हॉस्पिटल में इतनी पोपुलर हो गयी है कि लोग मुझे आकर बधाई देते ही कि बहुत खुबसूरत पत्नी पाई है आपने! मैं मन ही मन सोच कर हँस लेती हूँ कि डॉ. परिणीता के अन्दर अब परिणीता ही नहीं है, बल्कि प्रतीक है, जिसने परिणीता को इतना पोपुलर बना दिया! पर कहाँ है परिणीता? मैं हूँ परिणीता? अब एक आदमी बन कर …


याद आता है मुझे वह सब कुछ, कैसे मैंने प्यार से ढेरो ड्रेसेस अपने लिए खरीदी थी और उनसे मैचिंग सैंडल, आज जिनमे प्रतीक घूमते है. उन्हें साड़ी में देख कर मेरा भी मन करने लगा है कि मैं भी अपना औरत वाला जीवन फिर से जी सकू. जितनी आसानी से वो पत्नी बन चुके हैं, मैं वैसी तो नहीं थी, पर वैसी होने की तमन्ना है मेरी| मैं भी पति की सेवा करना चाहती हूँ. मैं भी चहकना चाहती हूँ. फिर से ड्रेस पहनकर बाहर घूमना चाहती हूँ, एक फूल की तरह नाज़ुक राजकुमारी जैसे फिर से महसूस करना चाहती हूँ मैं. पर अब मैं इस आदमी के तन में कैद हो गयी हूँ. मैं तो शायद अब अपनी ड्रेस में फिट भी न आऊंगी और इस मर्दाने शरीर में न जाने कैसी लगूंगी मैं. मेरे शरीर पर इतने बालों से नफरत सी हो रही है मुझे . और रोज़ रोज़ शेव करके तंग आ चुकी हूँ. क्या मैं फिर से औरतों के कपडे पहन कर स्त्री होने का अनुभव कर सकती हूँ? पर प्रतीक से क्या कहूँगी मैं? जब वो आदमी थे, मैं उन्हें यह करने से रोकती थी. अब मैं खुद आदमी होकर यह कैसे कर सकती हूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. क्या अब मैं पहले वाले प्रतीक की तरह क्रोस्ड्रेसर बन चुकी हूँ? मेरे दिमाग में प्रतीक की याद है और मैं जानती हूँ कि उसका एक क्रोस्ड्रेसर के रूप में एक फेसबुक अकाउंट है, जिसका पासवर्ड मुझे याद है. क्या मुझे वहां जाकर देखना चाहिए कि इस आदमी के तन में मैं औरत कैसे बनू? पर न जाने प्रतीक की कैसी कैसी बातें मुझे जानने को मिलेगी. क्या मैं उनको जानने को तैयार हूँ? वैसे भी मेरे दिमाग में उनकी क्रोस्ड्रेसिंग से जूडी यादें थोड़ी थोड़ी आती रहती है जिनको मैं दबाती रहती हूँ पर अब मैं खुद वैसा ही महसूस करने लगी हूँ. क्या करूँ मैं ?

भगवान यदि मेरी आवाज़ सुन रहे हो तो प्लीज़ मुझे वापस औरत बना दो. यदि तुम यही चाहते थे कि मैं एक अच्छी पत्नी बनू तो मैं उसके लिए तैयार हूँ. प्लीज़ मुझे फिर से औरत बना दो.

अब तो आप समझ ही गए होंगे की परिणीता के दिमाग में क्या चल रहा था| काश कि परिणीता ने मुझसे यह बातें पहले ही बता दी होती| मैं भी अपनी नयी ज़िन्दगी की ख़ुशी में मगन थी| और मेरा ध्यान उनकी ओर कभी गया ही नहीं| आखिर उस दिन परिणीता ने मुझे सब कुछ बताया| उन्होंने कहा कि कैसे वो मेरी अपनी ड्रेसेज पहन कर फिर से औरत बनना चाह रहे थे पर उनके बड़े से तन में एक भी ड्रेस नहीं गयी| और तो और उन्हें लग रहा था कि वो औरतों के कपडे पहन कर बड़े ख़राब लगेंगे| परिणीता उन्ही बातों से गुज़र रहे थे जो मैंने सालो तक महसूस किया था| कैसी अजीब सी स्थिति थी हमारी| वो कुछ देर तक मुझसे गले लग कर रोते रहे| मुझे पता था आगे क्या करना है| पर मेरे पेट में दर्द और मरोड़े मुझे बेहद तकलीफ दे रही थी| मैं अपने पेट को पकड़ कर दबाने की कोशिश करने लगी|


प्रतीक, क्या हुआ तुम्हे?”, परिणीता ने मुझसे पूछा| “तुम चिंता मत करो परी, बस पेट में बड़ा दर्द हो रहा है| शायद मैंने कुछ ज्यादा खाना खा लिया था| जल्दी ठीक हो जाएगा| पर ऐसा पेट दर्द पहले कभी नहीं हुआ”, मैंने परिणीता की चिंता दूर करने की कोशिश की|

परिणीता ने अपना फोन चेक किया| फिर मेरी ओर देख कर बोले, “पगली, तुम्हारे पीरियड शुरू होने वाले है! ये दर्द ऐसे बैठे बैठे नहीं जाएगा|”

“क्या? मेरे … मेरे पीरियड?”, मैं तो यकीन ही नहीं कर पा रही थी| अब तक औरत बनना तो बस सब हँसने खेलने जैसा था| पीरियड के बारे में तो मैं कभी सोची भी नहीं थी| हम क्रोस्ड्रेसर बस सोचते है कि औरत बन कर जीवन बस सुन्दर होगा पर यह भी हकीकत है और आसान नहीं! मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था|

“तुम यहाँ बैठो, मैं एक मिनट में आता हूँ”, ऐसा कहकर परिणीता बाथरूम चले गए और फिर किचन| वापस आये तो उनके हाथ में कुछ गोलियां थी और एक पैड| “ये ३ गोली खा लो, कुछ देर बाद तुम्हे दर्द से आराम मिलेगा|” उन्होंने मुझे पानी भी दिया| “क्या पीरियड के लिए गोलियां भी आती है?”, मैंने अंजान होंते हुए मासूमियत से पूछा| “नहीं पगली, यह दवा सिर्फ दर्द कम करने के लिए है”, उन्होंने कहा| मैंने गोलियां खा ली|

फिर वो नीचे झुके और मेरे पैरो के पास आकर बैठ गए| फिर अचानक ही वो मेरी साड़ी पैरो पर से सरकाकर हाथों से उठाने लगे| “यह क्या कर रहे हो तुम?”, मैंने झट से वापस अपनी साड़ी को नीचे करते हुए उनसे कहा| “मुझे करने दो जो मैं कर रहा हूँ|”, वो भी बेहद तेज़ी से मेरी साड़ी उठाकर मेरी पैंटी तक अपना हाथ ले गए| मैं गुस्से में आकर बोली, “ये कोई तरीका है परी? मैं यहाँ दर्द में हूँ और तुम यह कर रहे हो?” मैंने गुस्से में उनका हाथ हटाया| मुझे शर्म सी भी आ रही थी|

वो मेरी ओर देखे और बोले, “देखो, क्या तुम्हे सेनेटरी पैड लगाना आता है? जल्दी से न लगाया तो कुछ देर बाद, तुम्हारी साड़ी में दाग लग जाएगा| चाहोगी तुम कि ऐसा हो? तुम्हारी साड़ी ख़राब हो जाए?” मैं अब थोड़ी शांत हो गयी| वो मेरे बारे में ही सोच रहे थे| फिर उन्होंने मेरी पैंटी नीचे घुटनों तक उतारकर उसमे पैड फिट किया और मुझे बताया की उसे कैसे एडजस्ट करना है| मुझे उनके सामने पैड पहन कर एडजस्ट करने में शर्म तो आ रही थी पर अगले कुछ दिनों तक दाग धब्बे का डर तो था ही| फिर उन्होंने मेरे पैरो को उठाकर मुझे लिटा दिया और बोले, ” तुम कुछ देर आराम करो| जल्दी ही दर्द कम होगा|” मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका| उनके हाथ को प्यार से चूमा और बोली, “मैं क्षमा चाहती हूँ कि मैं तुमसे नाराज़ हो गयी थी जबकि तुम मेरे मदद कर रहे थे|” वो मुस्कुरा दिए|


दवाई लेकर कुछ देर मैंने लेटकर आराम किया| आधे घंटे के बाद दर्द कुछ कम हुआ| यदि आज परिणीता न होती तो पीरियड के दाग मेरी साड़ी में लग गए होते|
करीब आधे घंटे दवाई के असर से मेरा दर्द कम होने लगा| तो मैं उठ कर उस कमरे में गयी जहाँ मैं पहले प्रतीक के रूप में जाकर छुप छुप कर औरत बना करती थी| मैंने अपना वो बॉक्स उठाया जिसे परिणीता ने कभी नहीं उठाया था| अब मुझे परिणीता के दिल का दर्द दूर करना था| मैं बॉक्स लेकर उनके पास गयी|

“मेरी प्यारी धरमपतनी, तुम उठ क्यों गयी? अभी तो दर्द ख़त्म भी नहीं हुआ होगा तुम्हारा”, वो मेरी चिंता करते हुए बोले|

“क्योंकि जानू, मुझे तुम्हे कुछ दिखाना है”, मैंने कहा|

वो जानते थे कि वह बॉक्स मैं किस लिए उपयोग लाती थी पर परिणीता ने कभी उसके अन्दर झांककर भी नहीं देखा था| मैंने बॉक्स खोलकर उन्हें एक तस्वीर दिखाते हुए बोली, “ज़रा इस औरत को देख कर बताओ कि कैसी लग रही है? सच सच बताना|”

उन्हें वह तस्वीर देख कर जैसे यकीं ही नहीं हुआ| वो तस्वीर को पकड़ कर देखते ही रह गए| मैंने फिर कहा, “तुम्हे चिंता थी न कि उस तन में तुम औरत की तरह नहीं लगोगे| इस तस्वीर को देख कर बताओ, यह औरत कैसी लग रही है?”


मैंने उन्हें अपने पुराने बक्से से निकाल कर अपनी तस्वीर दिखाई जब मैं प्रतीक से एक औरत बना करती थी| वो मेरी तस्वीर को देखते ही रह गए| उन्हें यकीं ही नहीं हुआ कि मैं एक खुबसूरत औरत लग सकती थी
वो थोड़ी देर रूककर मेरी आँखों में देखते रहे और फिर मुझे गले लगाकर बोले, “बहुत सुन्दर औरत है| मुझे यकीन नहीं होता कि तुम पहले खुद को इतनी सुन्दर औरत के रूप में तब्दील कर लेते थे| मुझे माफ़ कर दो प्रतीक कि मैंने तुम्हे कभी खुलकर जीने नहीं दिया|”

मैं मुस्कुराते हुए बोली, “पतिदेव, उस बक्से में तुम्हारी साइज़ की ड्रेस भी है और साड़ियां भी, और उनसे मैच करते ब्लाउज भी| पर तुम्हे सिर्फ उन्ही कपड़ो को पहनना ज़रूरी नहीं है| फिलहाल तुम उसमे से कोई एक साड़ी सेलेक्ट कर लो, मैं तुम्हे तैयार करूंगी, और हम साथ में तुम्हारी पसंद के कपडे खरीदने जायेंगे|”

“क्या सच में? तुम ऐसा करोगी मेरे लिए? मैं ऐसे कैसे साड़ी पहन कर बाहर जाऊँगा?”, उनकी आवाज़ में ख़ुशी भी थी और एक डर भी|

“मेरे पति के लिए कुछ भी करूंगी मैं| और साड़ी पहन कर तुम वैसे ही जाओगे जैसे तुम पहले जाया करती थी| एक बार फिर उस तस्वीर की औरत को देखो और बताओ, वो बाहर जायेगी तो लोग उसकी खूबसूरती को देखते रह जायेंगे या नहीं?” मैं खुश थी| हमारे रिश्ते में वो मोड़ जो आ गया था जहाँ परिणीता अब मेरे जीवन के उस पहलू को समझने वाली थी जिसे मैंने सालों तक दबा कर रखा था| इत्तेफाक देखिये, मैं औरत बन गयी और मुझे पति मिला, वह भी क्रोस्ड्रेसर!

To be continued …
Very interesting update
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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116,780
304
तीन हफ्ते बाद

अब तक करीब तीन हफ्ते बीत चुके थे जबसे हम पति-पत्नी के तन बदल गए थे| इन तीन हफ्तों में कुछ दिक्कतें भी आई, औरत होने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मैं वह सीख रही थी जो कभी प्रतीक, एक आदमी रहकर मुझे पता भी न चलता| परिणीता, जो अब मेरे पतिदेव है, उन्हें भी शायद कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर उन्हें देखकर मुझे कभी ऐसा महसूस न हुआ| वो पहले से ही मुश्किलों का सामना हिम्मत से कर लेते थे, जब वो औरत थे तब भी| पर इन तीन हफ्तों में हमें अब तक ज़रा भी अंदाजा न था कि आखिर हमारे तन क्यों और कैसे बदल गए? रोज़ हम इस बारे में सोचते थे| लगता था कि भगवान हमें कुछ सिखाना चाहते है और यदि हम ख़ुशी ख़ुशी वह बात जल्दी से सीख जाए तो हम शायद वापस अपने पहले वाले रूप में आ जाए| इसके बावजूद हमारा जीवन ख़ुशी से चल रहा था| जब भी कोई नयी परिस्थिति आती जिसमे मुझे पता न होता कि क्या करना है, तब मेरे इस तन में चल रहे परिणीता के दिमाग में बसी यादों को थोडा जोर लगाकर पढ़ लेती कि परिणीता ऐसी स्थिति में क्या करती| ऐसा ही कुछ आज भी हुआ पर मुझे ध्यान ही न रहा कि मैं अपने दिमाग में बसी परिणीता की यादों का सहारा ले सकती हूँ| आज मेरे पेट में जोरो का दर्द हो रहा था| उस दर्द से परेशान होकर मैं आज काम से जल्दी ही घर वापस आ गयी|

मैं कार लेकर घर आ गयी थी| घर पहुच कर मैंने इन्हें फ़ोन लगाया कि आज वो टैक्सी लेकर वापस आये| पर मुझे उनके फ़ोन की घंटी अन्दर बेडरूम से सुनाई दे रही थी| क्या वो आज फोन घर पर ही भूल गए? मैं अन्दर कमरे में जाकर देखती हूँ तो वो वहीँ थे| वो बिस्तर पे बैठे रो रहे थे और उनके बगल में कुछ मेरी ड्रेसेज, जो पहले उनकी हुआ करती थी, बिखरी पड़ी हुई थी| मेरी अलमारी भी खुली हुई थी और सब कुछ बिखरा हुआ था| मैं समझ नहीं सकी कि आखिर हुआ क्या था| चिंतित होकर मैं तुरंत उनके पास गयी और उन्हें गले लगा ली| उनका सिर अपने सीने पे रख कर मैं उन्हें चुप कराने की कोशिश करने लगी| मैं जानती थी कि एक औरत के सीने में सर रख कर हर किसी को प्यार अनुभव होता जो किसी की भी परेशानियों को दूर करने में मदद करता है| मेरे दिल से सच में चिंता और प्यार के बीच यह सवाल आ रहा था कि आखिर वह रो क्यों रहे है? आखिर क्या हुआ? सच तो यह था कि उनके दिल में बहुत समय से कुछ बातें चल रही थी| परिणीता ने एक हफ्ते पहले उन बातों को अपनी प्राइवेट डायरी में लिखा भी था| पर न मैं उनकी दिल की बातें न समझ सकी थी और न ही मैंने उनकी डायरी पढ़ी थी| आप ही पढ़ के देखे तो आपको समझ आ जाएगा|


प्रिय डायरी,

तुमसे बातें किये न जाने कितना समय हो गया. पिछली बार जब तुमसे बात की थी तब मैं कितनी ख़ुशी थी. तब मैं एक औरत थी, परिणीता थी. पर आज मैं एक आदमी के तन में हूँ, और दुनिया मुझे प्रतीक कहती है, पर मैं हूँ तो परिणीता! जब से आदमी बनी हूँ, हमेशा मन में सवाल आता रहता है कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे हो गया मेरे साथ? पर इस सवाल का कोई जवाब नहीं है मेरे पास .

इस दौरान मैं आदमी होने के फायदे भी देख रही हूँ. लोग मेरी बात एक ही बार में सुन लेते है. मुझे तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता. कपडे मैचिंग करने का झंझट नहीं और न ही सैंडल पहन कर दिन भर अपने पैर दुखाने का झंझट. साथ ही पति बनने के फायदे भी है. मेरी पत्नी मेरी खूब सेवा करती है!

मेरी तरह प्रतीक भी बदल कर अब औरत हो चुके है. एक औरत के रूप में वो कितने खिल गए है. बातूनी, कॉंफिडेंट, उनकी पर्सनालिटी में ज़बरदस्त बदलाव आया है. जैसे उन्हें दुनिया में अब कोई कुछ करने से रोक नहीं सकता. बहुत खुश है वो औरत बन कर. पारंपरिक पत्नी के सारे गुण है उनमे, और इतनी ख़ुशी से मेरी सेवा करते है जैसे हमेशा से ही वो औरत ही बनना चाहते थे. और यह सच भी है. मैं जानती हूँ कि वो औरतों की तरह पहले से ही सजना संवरना पसंद करते थे, पर मैं उन्हें मौका नहीं देती थी. और अब जब उन्हें मौका मिला है तो वो खुलकर जी रहे है. मैं भी अब उनका साथ दे रही हूँ. उनको खुश देखकर मुझे भी अच्छा लगता है. और उनके लिए मुझे पति बनकर उन्हें प्यार से ट्रीट करना भी बड़ा आसान है. आखिर मेरे दिमाग में उनकी यादें भी तो है, जो मुझे याद दिला देती है कि यदि वो होते तो अपनी पत्नी के साथ कैसे सलूक करते. तो अब मैं भी समय समय पर उनकी खूबसूरती की तारीफ़ कर देती हूँ, समय समय पर किस देती हूँ, अपनी बांहों में भर लेती हूँ. और इन छोटी छोटी बातों से ही वो खुश हो जाते है. या ख़ुशी हो जाती है? न जाने क्या कहूँ मैं?

वैसे मेरे मना करने पर भी उन्होंने आखिर हॉस्पिटल में साड़ी पहनकर जाना शुरू कर दिया है. US में काम करते हुए भला कौन साड़ी पहन कर जाता है ? पर वो मेरी बात सुनते ही नहीं . कहते है कि ड्रेस में उन्हें ठण्ड लगती है . हाँ मुझे भी लगती थी पर इस देश के पहनावे को अपनाना भी ज़रूरी है . खैर, कई बार ड्रेस भी पहन कर जाते है बाहर. पर घर में तो बस पक्की भारतीय नारी . न जाने कैसे इतनी आसानी से साड़ी पहन लेते है वो. और हॉस्पिटल में सभी उनकी तारीफ़ करते है. डॉ परिणीता हॉस्पिटल में इतनी पोपुलर हो गयी है कि लोग मुझे आकर बधाई देते ही कि बहुत खुबसूरत पत्नी पाई है आपने! मैं मन ही मन सोच कर हँस लेती हूँ कि डॉ. परिणीता के अन्दर अब परिणीता ही नहीं है, बल्कि प्रतीक है, जिसने परिणीता को इतना पोपुलर बना दिया! पर कहाँ है परिणीता? मैं हूँ परिणीता? अब एक आदमी बन कर …


याद आता है मुझे वह सब कुछ, कैसे मैंने प्यार से ढेरो ड्रेसेस अपने लिए खरीदी थी और उनसे मैचिंग सैंडल, आज जिनमे प्रतीक घूमते है. उन्हें साड़ी में देख कर मेरा भी मन करने लगा है कि मैं भी अपना औरत वाला जीवन फिर से जी सकू. जितनी आसानी से वो पत्नी बन चुके हैं, मैं वैसी तो नहीं थी, पर वैसी होने की तमन्ना है मेरी| मैं भी पति की सेवा करना चाहती हूँ. मैं भी चहकना चाहती हूँ. फिर से ड्रेस पहनकर बाहर घूमना चाहती हूँ, एक फूल की तरह नाज़ुक राजकुमारी जैसे फिर से महसूस करना चाहती हूँ मैं. पर अब मैं इस आदमी के तन में कैद हो गयी हूँ. मैं तो शायद अब अपनी ड्रेस में फिट भी न आऊंगी और इस मर्दाने शरीर में न जाने कैसी लगूंगी मैं. मेरे शरीर पर इतने बालों से नफरत सी हो रही है मुझे . और रोज़ रोज़ शेव करके तंग आ चुकी हूँ. क्या मैं फिर से औरतों के कपडे पहन कर स्त्री होने का अनुभव कर सकती हूँ? पर प्रतीक से क्या कहूँगी मैं? जब वो आदमी थे, मैं उन्हें यह करने से रोकती थी. अब मैं खुद आदमी होकर यह कैसे कर सकती हूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. क्या अब मैं पहले वाले प्रतीक की तरह क्रोस्ड्रेसर बन चुकी हूँ? मेरे दिमाग में प्रतीक की याद है और मैं जानती हूँ कि उसका एक क्रोस्ड्रेसर के रूप में एक फेसबुक अकाउंट है, जिसका पासवर्ड मुझे याद है. क्या मुझे वहां जाकर देखना चाहिए कि इस आदमी के तन में मैं औरत कैसे बनू? पर न जाने प्रतीक की कैसी कैसी बातें मुझे जानने को मिलेगी. क्या मैं उनको जानने को तैयार हूँ? वैसे भी मेरे दिमाग में उनकी क्रोस्ड्रेसिंग से जूडी यादें थोड़ी थोड़ी आती रहती है जिनको मैं दबाती रहती हूँ पर अब मैं खुद वैसा ही महसूस करने लगी हूँ. क्या करूँ मैं ?

भगवान यदि मेरी आवाज़ सुन रहे हो तो प्लीज़ मुझे वापस औरत बना दो. यदि तुम यही चाहते थे कि मैं एक अच्छी पत्नी बनू तो मैं उसके लिए तैयार हूँ. प्लीज़ मुझे फिर से औरत बना दो.

अब तो आप समझ ही गए होंगे की परिणीता के दिमाग में क्या चल रहा था| काश कि परिणीता ने मुझसे यह बातें पहले ही बता दी होती| मैं भी अपनी नयी ज़िन्दगी की ख़ुशी में मगन थी| और मेरा ध्यान उनकी ओर कभी गया ही नहीं| आखिर उस दिन परिणीता ने मुझे सब कुछ बताया| उन्होंने कहा कि कैसे वो मेरी अपनी ड्रेसेज पहन कर फिर से औरत बनना चाह रहे थे पर उनके बड़े से तन में एक भी ड्रेस नहीं गयी| और तो और उन्हें लग रहा था कि वो औरतों के कपडे पहन कर बड़े ख़राब लगेंगे| परिणीता उन्ही बातों से गुज़र रहे थे जो मैंने सालो तक महसूस किया था| कैसी अजीब सी स्थिति थी हमारी| वो कुछ देर तक मुझसे गले लग कर रोते रहे| मुझे पता था आगे क्या करना है| पर मेरे पेट में दर्द और मरोड़े मुझे बेहद तकलीफ दे रही थी| मैं अपने पेट को पकड़ कर दबाने की कोशिश करने लगी|


प्रतीक, क्या हुआ तुम्हे?”, परिणीता ने मुझसे पूछा| “तुम चिंता मत करो परी, बस पेट में बड़ा दर्द हो रहा है| शायद मैंने कुछ ज्यादा खाना खा लिया था| जल्दी ठीक हो जाएगा| पर ऐसा पेट दर्द पहले कभी नहीं हुआ”, मैंने परिणीता की चिंता दूर करने की कोशिश की|

परिणीता ने अपना फोन चेक किया| फिर मेरी ओर देख कर बोले, “पगली, तुम्हारे पीरियड शुरू होने वाले है! ये दर्द ऐसे बैठे बैठे नहीं जाएगा|”

“क्या? मेरे … मेरे पीरियड?”, मैं तो यकीन ही नहीं कर पा रही थी| अब तक औरत बनना तो बस सब हँसने खेलने जैसा था| पीरियड के बारे में तो मैं कभी सोची भी नहीं थी| हम क्रोस्ड्रेसर बस सोचते है कि औरत बन कर जीवन बस सुन्दर होगा पर यह भी हकीकत है और आसान नहीं! मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था|

“तुम यहाँ बैठो, मैं एक मिनट में आता हूँ”, ऐसा कहकर परिणीता बाथरूम चले गए और फिर किचन| वापस आये तो उनके हाथ में कुछ गोलियां थी और एक पैड| “ये ३ गोली खा लो, कुछ देर बाद तुम्हे दर्द से आराम मिलेगा|” उन्होंने मुझे पानी भी दिया| “क्या पीरियड के लिए गोलियां भी आती है?”, मैंने अंजान होंते हुए मासूमियत से पूछा| “नहीं पगली, यह दवा सिर्फ दर्द कम करने के लिए है”, उन्होंने कहा| मैंने गोलियां खा ली|

फिर वो नीचे झुके और मेरे पैरो के पास आकर बैठ गए| फिर अचानक ही वो मेरी साड़ी पैरो पर से सरकाकर हाथों से उठाने लगे| “यह क्या कर रहे हो तुम?”, मैंने झट से वापस अपनी साड़ी को नीचे करते हुए उनसे कहा| “मुझे करने दो जो मैं कर रहा हूँ|”, वो भी बेहद तेज़ी से मेरी साड़ी उठाकर मेरी पैंटी तक अपना हाथ ले गए| मैं गुस्से में आकर बोली, “ये कोई तरीका है परी? मैं यहाँ दर्द में हूँ और तुम यह कर रहे हो?” मैंने गुस्से में उनका हाथ हटाया| मुझे शर्म सी भी आ रही थी|

वो मेरी ओर देखे और बोले, “देखो, क्या तुम्हे सेनेटरी पैड लगाना आता है? जल्दी से न लगाया तो कुछ देर बाद, तुम्हारी साड़ी में दाग लग जाएगा| चाहोगी तुम कि ऐसा हो? तुम्हारी साड़ी ख़राब हो जाए?” मैं अब थोड़ी शांत हो गयी| वो मेरे बारे में ही सोच रहे थे| फिर उन्होंने मेरी पैंटी नीचे घुटनों तक उतारकर उसमे पैड फिट किया और मुझे बताया की उसे कैसे एडजस्ट करना है| मुझे उनके सामने पैड पहन कर एडजस्ट करने में शर्म तो आ रही थी पर अगले कुछ दिनों तक दाग धब्बे का डर तो था ही| फिर उन्होंने मेरे पैरो को उठाकर मुझे लिटा दिया और बोले, ” तुम कुछ देर आराम करो| जल्दी ही दर्द कम होगा|” मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका| उनके हाथ को प्यार से चूमा और बोली, “मैं क्षमा चाहती हूँ कि मैं तुमसे नाराज़ हो गयी थी जबकि तुम मेरे मदद कर रहे थे|” वो मुस्कुरा दिए|


दवाई लेकर कुछ देर मैंने लेटकर आराम किया| आधे घंटे के बाद दर्द कुछ कम हुआ| यदि आज परिणीता न होती तो पीरियड के दाग मेरी साड़ी में लग गए होते|
करीब आधे घंटे दवाई के असर से मेरा दर्द कम होने लगा| तो मैं उठ कर उस कमरे में गयी जहाँ मैं पहले प्रतीक के रूप में जाकर छुप छुप कर औरत बना करती थी| मैंने अपना वो बॉक्स उठाया जिसे परिणीता ने कभी नहीं उठाया था| अब मुझे परिणीता के दिल का दर्द दूर करना था| मैं बॉक्स लेकर उनके पास गयी|

“मेरी प्यारी धरमपतनी, तुम उठ क्यों गयी? अभी तो दर्द ख़त्म भी नहीं हुआ होगा तुम्हारा”, वो मेरी चिंता करते हुए बोले|

“क्योंकि जानू, मुझे तुम्हे कुछ दिखाना है”, मैंने कहा|

वो जानते थे कि वह बॉक्स मैं किस लिए उपयोग लाती थी पर परिणीता ने कभी उसके अन्दर झांककर भी नहीं देखा था| मैंने बॉक्स खोलकर उन्हें एक तस्वीर दिखाते हुए बोली, “ज़रा इस औरत को देख कर बताओ कि कैसी लग रही है? सच सच बताना|”

उन्हें वह तस्वीर देख कर जैसे यकीं ही नहीं हुआ| वो तस्वीर को पकड़ कर देखते ही रह गए| मैंने फिर कहा, “तुम्हे चिंता थी न कि उस तन में तुम औरत की तरह नहीं लगोगे| इस तस्वीर को देख कर बताओ, यह औरत कैसी लग रही है?”


मैंने उन्हें अपने पुराने बक्से से निकाल कर अपनी तस्वीर दिखाई जब मैं प्रतीक से एक औरत बना करती थी| वो मेरी तस्वीर को देखते ही रह गए| उन्हें यकीं ही नहीं हुआ कि मैं एक खुबसूरत औरत लग सकती थी
वो थोड़ी देर रूककर मेरी आँखों में देखते रहे और फिर मुझे गले लगाकर बोले, “बहुत सुन्दर औरत है| मुझे यकीन नहीं होता कि तुम पहले खुद को इतनी सुन्दर औरत के रूप में तब्दील कर लेते थे| मुझे माफ़ कर दो प्रतीक कि मैंने तुम्हे कभी खुलकर जीने नहीं दिया|”

मैं मुस्कुराते हुए बोली, “पतिदेव, उस बक्से में तुम्हारी साइज़ की ड्रेस भी है और साड़ियां भी, और उनसे मैच करते ब्लाउज भी| पर तुम्हे सिर्फ उन्ही कपड़ो को पहनना ज़रूरी नहीं है| फिलहाल तुम उसमे से कोई एक साड़ी सेलेक्ट कर लो, मैं तुम्हे तैयार करूंगी, और हम साथ में तुम्हारी पसंद के कपडे खरीदने जायेंगे|”

“क्या सच में? तुम ऐसा करोगी मेरे लिए? मैं ऐसे कैसे साड़ी पहन कर बाहर जाऊँगा?”, उनकी आवाज़ में ख़ुशी भी थी और एक डर भी|

“मेरे पति के लिए कुछ भी करूंगी मैं| और साड़ी पहन कर तुम वैसे ही जाओगे जैसे तुम पहले जाया करती थी| एक बार फिर उस तस्वीर की औरत को देखो और बताओ, वो बाहर जायेगी तो लोग उसकी खूबसूरती को देखते रह जायेंगे या नहीं?” मैं खुश थी| हमारे रिश्ते में वो मोड़ जो आ गया था जहाँ परिणीता अब मेरे जीवन के उस पहलू को समझने वाली थी जिसे मैंने सालों तक दबा कर रखा था| इत्तेफाक देखिये, मैं औरत बन गयी और मुझे पति मिला, वह भी क्रोस्ड्रेसर!

To be continued …
Shaandar jabardast Emotional Update 👌👌
 

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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: यह कहानी है मेरी भावनाओं की, एक आदमी से औरत बनकर जो भी मैंने अपने बारे में समझा| मेरे दिल से निकली इस कहानी में प्यार है, सुकून है, सेक्स भी है, और औरत होना क्या होता उसकी सीख भी| जब से होश संभाला है, मैं जानती हूँ कि मेरे अंदर एक औरत बसी हुई है। पर दुनिया की नज़र में मैं हमेशा प्रतीक, एक लड़का बनकर रही। कुछ साल पहले जब मेरी शादी परिणीता से हुई, तो उसे भी मेरे अंदर की औरत कभी पसंद न आयी। हम दोनों पति-पत्नी US में डॉक्टर बन गए। पर मेरे अंदर की औरत हमेशा बाहर आने को तरसती रही। किसी तरह मैं अपने अरमानों को घर की चारदीवारियों के बीच सज संवर कर पूरा करती थी। पर आज से ३ साल पहले ऐसा कुछ हुआ जो हम दोनों को हमेशा के लिए बदल देने वाला था। उस सुबह जब हम सोकर उठे तो हम एक दूसरे में बदल चुके थे। मैं परिणीता के शरीर में एक औरत बन चुकी थी और परिणीता मेरे शरीर में एक आदमी। हमारे नए रूप में सुहागरात मनाने के बाद हमारा जीवन अच्छा ही चल रहा था, और एक औरत के बदन में मैं बेहद खुश थी| पर परिणीता, जो अब मेरी पति थे? अब आगे –

“साड़ी के पल्ले को ऐसे अपने कंधे पर यूँ फैलाते है और बाकी की साड़ी से अपने पूरे तन को ऐसे फैलाकर ढँककर देखने से आपको बिना साड़ी को पहने ही बेहतर अंदाज़ा हो जाता है कि ये साड़ी पहनने के बाद आप पर कैसी लगेगी| अब बताओ मुझ पर कैसी लगेगी ये साड़ी?” मेरे पतिदेव बड़ी ही ख़ुशी से खुद पर साड़ी लगाकर प्रदर्शन कर रहे थे और मैं उनकी ख़ुशी देख कर हँस हँस कर पागल हो रही थी| अपने पति के तन पर साड़ी देख कर किसी भी औरत को अटपटा ज़रूर लगता पर मैं सामान्य औरत न थी| आज से तीन हफ्ते पहले तक मैं एक क्रॉस ड्रेस करने वाला आदमी थी और मेरे पति तब एक औरत होने के साथ साथ मेरी पत्नी परिणीता थे|


मैंने ठान लिया था कि मैं अपने पति को साड़ी पहनने में सहयोग करूंगी| जिस स्थिति से मैं खुद गुज़र चुकी थी मैं नहीं चाहती थी की वो भी उस दुःख से गुज़रे|


हाँ जी, मेरे पति, परिणीता, को मैं साड़ी पहनने वाली थी! ज़िन्दगी भी कैसे कैसे खेल खेलती है| “पत्नी ने पहनाई पति को साड़ी”, जब मैं क्रॉस-ड्रेसर थी, तब न जाने क्यों, कितनी ही बार मैं इन्टरनेट पर यह गूगल में खोजा करती थी| तब मेरी पत्नी परिणीता ने मुझे साड़ी पहनाना तो दूर, वह तो मुझे साड़ी में देखना तक नहीं चाहती थी| मैं सोचती थी कि दुनिया में क्या कोई भाग्यशाली क्रॉस-ड्रेसर है जिनकी पत्नियाँ उनको सहयोग करती है और अपने हाथो से साड़ी पहनाती है? तब मुझे क्या पता था कि एक दिन मैं खुद ही औरत बन जाऊंगी और मेरी तब की पत्नी परिणीता, मेरे पति बन जायेंगे| आदमी बनने के बाद भी परिणीता के अन्दर दिल तो औरत का ही था! और वो फिर से औरत की तरह से सजना संवरना चाहता था| पर उनके दिल में यह चिंता थी कि जब उन्होंने पहले मुझे हमेशा औरतों के कपडे पहनने से मना किया था तो अब जब वह खुद आदमी बन चुके है तो कैसे वह अब औरतों के कपडे पहने? इसी बात से मेरे पति दुखी थे| अब एक औरत के रुप में मुझे वह करना था जो मैं पहले एक आदमी होते हुए अपनी पत्नी से उम्मीद करती थी| मुझे एक सहयोगी पत्नी बनना था! मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति उस दुःख से गुज़रे जो मैंने सहा था| मैंने ठान लिया था कि मैं उनकी पत्नी, उन्हें अपने हाथो से एक बेहद खुबसूरत औरत बनाऊँगी!

और इसीलिए मैं अपना पुराना क्रॉसड्रेसिंग का बक्सा लेकर उनके सामने बैठी थी| और वो, मेरी खरीदी हुई मखमली साड़ियों को खोल खोलकर अपने हाथो से छूकर अपने तन पर लगा कर देख रहे थे कि वो कौनसी साड़ी पहनेंगे| मैंने उन्हें अपनी ड्रेस्सेस भी दिखाई थी पर उन्हें कोई पसंद नहीं आई थी| उनके विचार में मेरी ड्रेस की चॉइस बड़ी ख़राब थी| पर ६ फूट की औरत के कद के लिए अच्छी ड्रेस मिलना आसान भी तो नहीं होता! पर फिर भी आज बड़े दिनों बाद उनकी आँखों में मैं ख़ुशी की चमक देख रही थी|

“प्रतीक, मानना पड़ेगा कि तुम्हारी साड़ियों की चॉइस बड़ी है|”, उन्होंने कहा| वो अब भी मुझे प्रतीक कहते है| आखिर में मैं प्रतीक ही हूँ भले अब एक औरत के शरीर में हूँ| मैं मुस्कुरा दी| उन्हें साड़ियों को खोलते हुए देख कर मुझे बेहद ख़ुशी मिल रही थी| वो एक एक साड़ी को खोल कर पल्ले को अपने कंधे पर लगाकर देखते, जैसे औरतें करती है| यह भी ज़िन्दगी का अजीब पल था, परिणीता जब औरत थे, तब उनका साड़ियों में कम और ड्रेस में ज्यादा इंटरेस्ट था पर अब इस नए जीवन में साड़ियों के लिए कितने उत्साहित लग रहे थे| वैसे सच कहूँ तो शायद उन्हें ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि वह फिर से औरत होना महसूस करने वाले थे|


जहाँ मैं उन्हें खुश देखने में खोयी हुई थी, मेरा ध्यान ही न रहा कि मेरे पास उस बक्से में कुछ ऐसे कपडे भी थे जो मुझे सेक्सी औरत की तरह महसूस करने में मदद करते थे| मैं नहीं चाहती थी कि उनकी नज़र उन पर पड़े| पर अब तो देर हो चुकी थी|उन्ही में से एक था मेरा ब्लाउज जो कि सच कहू तो बेहद सेक्सी था| उसमे पीठ काफी खुली रहती थी और पीछे से हुक लगती थी|उन्होंने उसे उठा कर कहा, “हम्म तो तुम्हे सेक्सी ब्लाउज पसंद है! इतना एक्स्पोस तो मैं औरत होकर भी नहीं करता था! और ब्लाउज की कटोरियों को देख कर तो लगता है कि तुम्हे बड़े बूब्स बहुत पसंद है|” वो मसखरी कर रहे थे|


अपने पति को साड़ी पसंद करते देख मुझे बेहद ख़ुशी हो रही थी| अब वो मेरे जीवन का क्रॉस ड्रेसर वाला पहलु समझ सकते थे
“पतिदेव! जब मैंने वो ब्लाउज सिलवाई थी तब मैं एक ६ फूट की आदमी थी| और जब ६ फूट की औरत बनना हो तो स्वाभाविक दिखने के लिए बड़े बूब्स ही चाहिए|”, मैंने थोडा शरमाते हुए कहा| मुझे थोड़ी लाज तो आ ही रही थी क्योंकि मेरे क्रॉस ड्रेसर जीवन का पहलु मैं उनके साथ पहली बार इस तरह खुलकर शेयर कर रही थी| और यह सच था कि परिणीता से कहीं अधिक सेक्सी ब्लाउज थे मेरे पास|

“चलो पतिदेव, अब तुमने साड़ी पसंद कर ली हो तो मैं तुम्हे तैयार कर दूं|”, मैंने कहा| मैं भी अपनी पहनी हुई साड़ी की प्लेट ठीक करते हुए उठी और उनसे बोली की चलो अब कपडे उतारो|

“मुझे तैयार करना है? मैडम मैं तुम्हारे सामने कपडे नहीं उतारूंगा|”, उन्होंने कहा| “मेरे प्यारे पतिदेव, आपको याद न हो तो पिछले तीन हफ्तों में आपकी पत्नी बन कर रातों को मैंने आपको कई बार नग्न देखा है| तब तो आपको कोई परेशानी न थी|”, मैंने उनके चेहरे के बेहद करीब आकर कहा और उनके शर्ट के बटन खोलने लगी| भला वो उन हसीं रातों को कैसे भूल सकते थे जब मैंने पत्नी बन कर उनको सुख दिया था| मेरी सेक्सी मुस्कान से वो थोडा शर्मा गए|

“सुनिए मैडम, तुम भूल रही हो कि तुम्हे सिर्फ तीन हफ्ते हुए है औरत बने, जबकि मैं सालो तक औरत था| मुझे साड़ी पहनना आता है| मैं खुद पहन लूँगा| तुम्हे सिखाने की ज़रुरत नहीं है|”, उन्होंने कहा| मैं देख सकती थी कि उनमे अभी भी एक झिझक थी| एक सुन्दर औरत से आदमी बन जाना और फिर आदमी होते हुए पत्नी के सामने साड़ी पहनना उनके लिए आसान नहीं था| वो मुझसे और इस स्थिति से थोडा बौखला गए थे|


पर मैं भी एक प्यारी पत्नी थी| मैंने उन्हें अपने गले से लगा लिया और उनका सर अपने सीने पे रख दिया| मेरे स्तनों के बीच उन्हें ज़रूर प्यार महसूस हुआ होगा| फिर मैंने कहा, “मैं जानती हूँ कि तुम एक सुन्दर औरत थे| मैं जानती हूँ कि तुम खुद तैयार हो सकते हो| पर मैं भी जानती हूँ कि आदमी के शरीर को स्त्री रूप में सँवारने में क्या क्या दिक्कत आती है| मुझ पर भरोसा करो|”

मेरी बात मानते हुए उन्होंने अपने कपडे उतार लिए| जब तक वे साड़ियां खुद पर लगा लगा कर पसंद कर रहे थे, मैं उन्हें देख कर मुस्कुराती हुई उनके पहनने के लिए पॉकेट ब्रा और हिप पैड लेकर आई| आखिर में उन्होंने एक लाल रंग की मखमली साड़ी अपने कंधे पर लगायी और उससे अपने तन को ढंकते हुए मेरी ओर देख कर उत्साहित होकर बोले, “यह कैसी लगेगी मुझ पर?” उनका चेहरा खिल गया था|

उन्हें देख कर मेरी आँखें भर आई| वो आज मेरी उन भावनाओं को महसूस कर रहे थे जो मैं पहले क्रॉस ड्रेस करते वक़्त महसूस करती थी| वो साड़ी से अपने पूरे तन को ढकने की कोशिश कर रहे थे, पर एक चीज़ थी जो छुप न पा रही थी| मखमली साड़ी के स्पर्श से उनका पुरुष लिंग तन गया था और साड़ी में वह उभर कर दिख रहा था| वो थोडा शर्मा गए| अपने अनुभव से मैं जानती थी कि एक क्रॉस ड्रेस करने वाले पुरुष के लिए कई बार ऐसा होना स्वाभाविक है| मैंने उसे नज़रंदाज़ करते हुए उन्हें अपने हाथो से उन्हें हिप पैड वाली पैंटी पहनाई| पर एक औरत होते हुए तना हुआ लिंग ऐसे ही नज़रंदाज़ नहीं हो जाता| उस लिंग को पैंटी के अन्दर करते हुए मेरे तन में कुछ कुछ होने लगा| पर इस वक़्त मुझे मेरे पति, परिणीता, को औरत बनाना था| न कि उन्हें पुरुष होने का शारीरिक सुख देना था|

और फिर मैंने उन्हें बड़े प्यार से तैयार करना शुरू किया। मैं चाहती थी कि आज वो अपने पुरुष तन में वही नज़ाकत महसूस कर सके जो एक स्त्री महसूस करती है। इसलिए आज मैंने उन्हें साटिन की पेंटी और ब्रा पहनाई। और फिर मैचिंग पेटीकोट। और फिर धीरे धीरे प्यार से उनके तन पर साडी लपेट कर प्लेट बनाने लगी। मेरे नाज़ुक हाथों का स्पर्श शायद उन्हें स्त्री होने का सुख भी दे रहा था। और वैसे भी कोई भी औरत आपको बता सकती है कि कितनी प्यारी भावना है जब कोई और औरत आपको प्रेम से साड़ी पहना रही हो। मैंने उनके ब्लाउज पर साड़ी चढ़ाते हुए पूछा, “आप खुला पल्ला पसंद करेंगे या प्लेट किया हुआ?” उन्होंने मेरी आँखों में देखा पर कुछ न बोल सके। मैंने ही निश्चय किया कि वो खुला पल्ला पहनेंगे। खुला पल्ला जब प्यार से आपके हाथो पर स्पर्श करता है , वह जो स्त्रीत्व की भावना जगाता है वह एक पल में ही एक क्रॉस ड्रेसर को बेहद ही भावुक स्त्री बना सकता है। जब मैं पल्ले को उनके ब्लाउज पर पिन से लगा रही थी, उन्होंने अपने हाथों से मखमली पल्ले को छूते हुए अपनी आँखें बंद कर ली। मैं जानती थी कि वह क्या अनुभव कर रहे थे। आखिर मैं भी पहले एक क्रॉस ड्रेसर रह चुकी थी।


हमने तय किया कि आज वो खुले पल्ला रखेंगे| स्त्रीत्व महसूस करना हो तो खुले पल्ले से बेहतर कुछ नहीं है| आखिर गिरते हुए पल्लू को सँभालने की नजाकत ही कुछ और होती है|



फिर मैंने उन्हें एक कुर्सी पर बैठाया ताकि मैं उनका मेकअप कर सकूँ। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “थैंक यू प्रतिक! पर मैं मेकअप खुद कर सकता हूँ। मुझे मेकअप करना आता है।”

“पतिदेव, पहले तो कहिये कि मैं मेकअप कर सकती हूँ! अब आप एक औरत है!” मेरी बात सुनकर उन्होंने एक औरत की तरह शर्मा कर नज़रे झुका ली। “पर आज मैं आपको मेकअप करने नहीं दूँगी। पुरुष के चेहरे को स्त्री की तरह निखारना एक अलग कला है जो अभी आपको आती नहीं है। पर मैं अच्छी तरह जानती हूँ। मेरा भरोसा करिये मैं आपको बेहद सुन्दर औरत बनाउंगी!”

हम दोनों मुस्कुराये| और जल्द ही मैंने उनका मेकअप भी कर दिया। मेकअप के बाद वो उस साड़ी में बेहद ही आकर्षक औरत में तब्दील हो गए थे। आखिर क्यों न होते, मैंने वह साड़ी बहुत सोच समझकर खरीदी थी उस तन के लिए। और आज मुझे खुद पर बड़ा गर्व था कि मैंने बहुत सलीके से उन्हें साडी पहनाई थी और मेकअप भी बहुत अच्छा कर सकी थी।

मैं फिर उनकी कुर्सी के पीछे से आकर अपने हाथों को उनके गले पर रख कर कुर्सी को शीशे की ओर घुमाया। परिणीता अब खुद को देख सकते थे। उन्हें यकीन ही न हुआ कि उनका पुरुष तन इतनी सुन्दर औरत में तब्दील हो सकता था। एक हाथ से उन्होंने अपने ब्लाउज की ऊपर की साड़ी की बॉर्डर के ऊपर फेर कर देखा। और फिर अपने चेहरे को हाथ लगाने लगे। उनकी आँखों में आज ख़ुशी के आंसू थे।


परिणीता अब एक औरत बन चुके थे और औरत बनने की ख़ुशी उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी|



“जानू, आज मैं एक भी आंसू और नहीं देखना चाहती।”, मैंने उन्हें प्यार से गले लगाते हुए कहा। वो भावुक होते हुए मुस्कुरा दिए। “थैंक यू प्रतिक। पर मेरे बालों का क्या होगा?”, उन्होंने अपने सर के छोटे छोटे बालों को हाथ लगाते हुए कहा।

मैं तो इसी पल के इंतज़ार में थी। सभी क्रॉस ड्रेसर जानते है कि जब तैयार होने के बाद अंत में आप लंबे बालो का विग लगाते है तो मानो एक पल में ही जादू हो जाता है। और मैं चाहती थी कि यह जादुई पल वह खुद अनुभव करे। और जैसे ही मैंने उन पर विग लगाया, वो ख़ुशी के मारे उठ खड़े हुए और अपने हाथों को हवा में फैलाकर अपनी साड़ी के पल्लू को लहराते हुए गोल गोल घूमने लगे। उनके शरीर में छुपी हुई मेरी पत्नी परिणीता वापस आ गयी थी। उनको ख़ुशी में झूमते देख मेरी आँखों में भी ख़ुशी थी। और फिर हमने एक दुसरे को गले लगा लिया। उनके सीने से लग कर मैं भी बेहद खुश थी।


आपका शरीर चाहे जैसा हो, साड़ी आपके तन की सभी कमियों को छुपा देती है, यह तो क्रॉस ड्रेसर बड़े अच्छे से जानते है| मेरे पति भी अब आकर्षक औरत लग रहे थे, बस उन्हें मेरी तरह खुला पल्लू सँभालने का अनुभव न था|
“सुनिये, क्योंकि आपका नाम परिणीता तो अब मेरा हो चूका है। क्या आपने अपने स्त्रीरूप के लिए कोई नया नाम सोचा है?”

“हाँ। वही नाम जिस नाम से तुम इस रूप में रहा करती थी। ‘अल्का’ ”

अल्का, यही नाम मैं उपयोग करती थी जब मैं प्रतिक से औरत बन जाया करती थी। अल्का का मतलब होता है खूबसूरत बालों वाली लड़की, और वही तो बनती थी मैं। और अब मेरे पति, मेरी सहेली अल्का बन चुके थे। आज हम दोनों के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत हो रही थी। सच कहूँ तो हमारे तन एक दुसरे में बदलने का सबसे बड़ा फायदा यही हुआ था। भले औरत का तन पाने की मुझे बहुत ख़ुशी थी पर सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि मुझे अब एक सहेली मिल गयी थी जिसके साथ मैं औरत होने का पूरा आनंद ले सकती थी! मैं परिणीता और मेरी प्यारी सहेली अलका! अगले भाग में हम दो सहेलियोँ की हॉट रात के बारे में पढना मत भूलियेगा, जब हम दो सहेलियाँ दो जिस्म एक जान हो गयी थी|


To be continue....!


 

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परिणीता, जो अब मेरी पति थे, वो तो पुरुष के तन में एक औरत ही थी| और उसी औरत की तलाश में अब मेरे पति क्रॉस ड्रेसर बन गए थे और उन्होंने अपने लिए नाम रखा था ‘अलका’!

६ महीने बाद

रात हो चुकी थी| हम पति-पत्नी खाना खा चुके थे और मैं बर्तन धोकर अब बस सोने के लिए तैयार थी| मैं जैसे ही अपने बेडरूम पहुंची उन्होंने मुझे कस के सीने से लगा लिया| मैं जानती थी कि वो क्या चाहते थे|

“नहीं, अल्का! प्लीज़ अभी नहीं”, मैंने कहा|

हाँ, पिछले ६ महीने में काफी कुछ बदल चूका था| अब मेरे पति जैसे ही घर लौटते, वह तुरंत स्त्री के कपडे पहनकर अल्का बन जाते| अब तो उन्होंने अपने बाल भी लम्बे कर लिए थे और तन को पूरी तरह से वैक्स करके उनकी त्वचा बेहद स्मूथ हो गयी थी| वो अब बेहद ही आकर्षक स्त्री बन चुके थे| और आज तो उन्होंने रात के लिए सैटिन की सेक्सी स्लिप पहन रखी थी| मैं जानती थी कि आज रात उनका इरादा क्या था| इसलिए तो उन्होंने एक बार फिर मुझे अपनी बांहों में जोर से पकड़ लिया|

मैंने धीरे से दर्द में आंह भरी और कहा, “कम से कम मुझे साड़ी तो बदल लेने दो|” मैं नखरे करने लगी| आखिर पत्नी जो ठहरी, एक बार यूँ ही थोड़ी मान जाती चाहे मेरा भी दिल मचल रहा हो|

“परिणीता, तुम तो जानती हो कि तुम मुझे साड़ी में कितनी सेक्सी लगती हो”, अलका ने कहा और मुझे जोरो का चुम्बन दिया| उफ्फ, उनके सेक्सी तन पर वो सैटिन नाईटी का स्पर्श और उनका चुम्बन मुझे उत्तेजित कर गया| अब तो अल्का मुझे प्रतीक नहीं परिणीता कहती थी, जो मुझे और भी सेक्सी लगता था| इन ६ महीनो में मैं तो लगभग भूल ही गयी थी कि मैं कभी प्रतीक एक आदमी हुआ करती थी|

अल्का ने मुझे दीवार से लगाकर पलटा और मेरी पीठ पर किस करने लगी और मेरे स्तनों को अपने दोनों हाथो से मसलने लगी| मैं आँखें बंद करके आंहे भरने लगी| आखिर क्यों न करती मैं ऐसा? मेरे ब्लाउज पर उनके हाथ जो कर रहे थे मुझे मदहोश कर रहे थे| मेरे ब्लाउज से झांकती नंगी पीठ पर उनकी सैटिन नाईटी/स्लिप का स्पर्श और चुम्बन मुझे उकसा रहा था|

उनकी स्लिप उनकी कमर से थोड़ी ही नीचे तक आती थी| और उसके अन्दर पहनी हुई सुन्दर सैटिन की पैंटी में उनका तना हुआ पुरुष लिंग मेरे नितम्ब पर मेरी साड़ी पर से जोर लगा रहा था| अलका आकर्षक स्त्री होते हुए भी आखिर एक पुरुष थी| मैं अपनी साड़ी पर उनका लिंग महसूस करके मचल उठी| मैंने अपने हाथ से उनकी स्लिप को उठा कर उनकी पैंटी में उनके लिंग को पकड़ लिया| सैटिन में लिपटा हुआ वो बड़ा तना हुआ लिंग बहुत ही सेक्सी महसूस हो रहा था|और उनकी नाज़ुक पैंटी उस मजबूत तने हुए लिंग को अन्दर अब रोक नहीं पा रही थी| फिर मैंने भी अपने हाथो से उसे पैंटी से बाहर निकाल कर आजाद कर दिया|

“अल्का, तुम तो पूरी तरह तैयार लग रही हो|”, मैंने आंहे भरते हुए कहा| पर अल्का तो मदहोशी से मेरी गर्दन को चूम रही थी| उसने मेरी बात का जवाब एक बार फिर मेरे स्तनों को ज़ोर से दबा कर दिया| आह, उसके मेरे स्तन को दबाने से होने वाले दर्द में भी एक मिठास थी|

अल्का ने मुझे फिर ज़ोरों से जकड लिया, अब उसके स्तन मेरी पीठ पर दबने लगे| मैं तो बताना ही भूल गयी थी कि अल्का की औरत बनने की चाहत में उसने ३४ बी साइज़ के ब्रेस्ट इम्प्लांट ऑपरेशन द्वारा लगवा लिए थे| अब तो वह भी बेहद सुन्दर सुडौल स्तनों वाली औरत थी| मेरे लिए तो मानो एक सुन्दर सपना था यह| अल्का के स्तन और उसका पुरुष लिंग, मुझे एक साथ एक औरत और एक पुरुष से प्रेम करने का सौभाग्य मिलने लगा था|

कामोत्तेजना में अल्का ने अपनी पैंटी उतार दी और मुझे बिस्तर के किनारे ले जाकर झुका दी| और तुरंत ही मेरी साड़ी और पेटीकोट को उठाकर मेरी पैंटी उतारने लगी| कामोत्तेजित अल्का अब रुकने न वाली थी और मैं भी उतावली थी कि कब उसका लिंग मुझमे प्रवेश करेगा| अल्का ने मेरी पैंटी उतार कर अपनी उँगलियों से मेरी योनी को छुआ| उसके लम्बे नाख़ून और लाल रंग की नेल पोलिश में बेहद सेक्सी लग रहे थे| मुझे छेड़ते छेड़ते उसने अपनी ऊँगली मेरी योनी में डाल दी| मैं उत्तेजना में उन्माद से चीख उठी| “अब और न तरसाओ मुझे अल्का!”, मैं मदहोशी में उससे कहने लगी|


जहाँ मैं साड़ी में खिल रही थी वहीँ अल्का अपनी सैटिन की स्लिप में गहरे रंग की लिपस्टिक के साथ बेहद सेक्सी लग रही थी| अल्का कोई और नहीं मेरे पति थे! और हम दोनों एक दुसरे के साथ रात बिताने को आतुर थे|
अल्का भी बिलकुल तैयार थी और देखते ही देखते उसका लिंग मेरी योनी को चुमते हुए मुझमे पूरा प्रवेश कर गया| मैं तो जैसे परम आनंद को महसूस कर रही थी| वो मेरी नितम्ब को अपने हाथो में पकड़ कर आगे पीछे करती तो मैं भी अपनी कमर को लहराते हुए और जोरो से आंहे भरती| और उसके हर स्ट्रोक के साथ हम दोनों के स्तन झूम उठते| मेरे स्तन तो अब भी ब्लाउज में कैद थे पर अल्का के स्तन उसकी सैटिन स्लिप में उछल रहे थे| अब अल्का खुद अपने एक हाथ से अपने ही स्तनों को मसलने लगी| और अपने ही होंठो को काटने लगी| गहरी लाल रंग की लिपस्टिक में उसके होंठ बेहद कामुक हो गए थे| वहीँ मैं अपनी साड़ी में लिपटी हुई इस पल का आँख बंद करके आनंद ले रही थी|


मैंने पलट कर देखा तो अल्का अब भी अपने स्तनों को मसल रही थी| उसे देख कर मेरा भी मन उसके स्तनों को चूमने को मचल उठा| मैं अब उठ कर अपनी साड़ी से अपने पैरो को ढककर अपने घुटनों पर खड़ी हो गयी और उसकी ओर चंचल नजरो से देखने लगी| शायद वो भी इंतजार कर रही थी कि कब मैं उसके स्तनों को चुमुंगी| फिर क्या था? मैं उसके एक स्तन को अपने हाथो से पकड़ कर छूने लगी और उसे तरसाने लगी| उसके मुलायम सुडौल स्तन पर फिसलती हुई सैटिन स्लिप पर छूने का आनंद ही कुछ और था| उसने भी अपने दोनों हाथो से मेरे स्तनों को पकड़ लिया| मैंने उसका एक स्तन उसकी स्लिप से बाहर निकाला और फिर अपने होंठो से चूम ली| आनंद में अल्का ने अब अपनी आँखें बंद कर ली थी| मुझे एहसास था कि उसे बेहद मज़ा आ रहा है क्योंकि वो उस आनंद में मेरे स्तनों को और जोर से दबाने लगी| फिर अपनी जीभ से मैंने उसके निप्पल को थोडी देर चूमने के बाद, अपने दांतों से उसके निप्पल को काट दिया| अल्का अब दीवानी हो कर कहने लगी, “ज़रा और ज़ोर से कांटो”| फिर उसने मेरे सर को पूरी ताकत से अपने सीने से लगा लिया| मैंने अपने दुसरे हाथ से उसका लिंग पकड़ लिया| कहने की ज़रुरत नहीं है पर हम दोनों मदहोश हो रही थी| मैं तो सालो से एक स्त्री के साथ सेक्स करने में सहज थी और इस नए रूप में अब पुरुष तन का आनंद लेना भी सिख गयी थी मैं|और अल्का तो एक ही शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों ही थी|

उसी उन्माद में फिर हम दोनों एक दुसरे को चूमने लगी| अल्का ने मेरा सर अपने हाथो में पकड़ कर मुझे चूमना शुरू कर दिया था| उसकी सैटिन स्लिप का मखमली स्पर्श मुझे उतावला कर रहा था और वहीँ मेरी नाज़ुक काया पर लिपटी हुई साड़ी उसे दीवाना कर रही थी| और हम दोनों के स्तन एक दुसरे को दबाते हुए मानो खुद खुश हो रहे थे| अल्का ने मेरे सीने से मेरी साड़ी को उठा कर मेरे ब्लाउज के अन्दर हाथ डाल लिया| वह जो भी कर रही थी वो मेरे अंग अंग में आग लगा रहा था| और उसका लिंग मेरे हाथो में मानो और कठोर होता जा रहा था|

अल्का ने एक बार फिर मेरी साड़ी को कमर तक उठा लिया| उसका इरादा स्पष्ट था| अब उसका लिंग मेरी योनी में सामने से प्रवेश करने वाला था| मैं भी बस उसी पल के इंतजार में थी| मैंने अपना पेतीकोट उठा कर उसके लिए रास्ता भी आसान कर दिया था| साड़ी की यही तो ख़ास बात है, बिना उतारे ही आप झट से प्यार कर सकते है| यह मैं भी जानती थी और अल्का भी| अल्का ने फिर धीरे से अपना लिंग मेरी योनी से लगाया| और मैंने उस बड़े से लिंग को अपने अन्दर समा लिया| उसके अन्दर आते ही मैं और जोर जोर से आवाजें निकालने लगी| इस दौरान हम दोनों एक दुसरे के स्तन दबाकर उन्मादित थे| धीरे धीरे हमारी उत्तेजना बढती गयी, दोनों की आवाजें तेज़ होती गयी, हवा में अल्का के स्तन उसकी स्लिप से बाहर आकार झुमने लगे, और दोनों की आँखें बंद हो गयी| और उस उत्तेजना की परम सीमा पर पहुच कर हम दोनों ने एक दुसरे का हाथ कस कर पकड़ लिया| और फिर अल्का का एक आखिरी स्ट्रोक और हम दोनों एक ही पल में … बस मुझे कहने की ज़रुरत है क्या? यह वो रात थी जब मेरे तन में एक नए जीवन का प्रवेश हुआ| हाँ, उस रात के बाद अब मैं माँ बनने वाली थी!


पिछले ६ महीने हम पति पत्नी के जीवन में नयी खुशियाँ और नई परीक्षा लेकर आया था| मेरे पति अब घर आकर तुरंत स्त्री के कपडे पहनते, मेकअप करते और अल्का बन जाते| मेरे पति अब क्रॉस ड्रेसर बन चुके थे और मैं इस स्थिति से खुश थी| मुझे एक सहेली मिल गयी थी| जब भी मौका मिलता हम दोनों सहेलियाँ बाहर शौपिंग करने या घुमने फिरने निकल पड़ती| दोनों को एक बार फिर जैसे नए सिरे से प्यार हो गया था| हम दोनों के कद काठी अलग अलग थी तो ड्रेस अलग अलग ही खरीदते पर साड़ियां अब साथ मिल कर लेते थे| पर ब्लाउज हमें अलग अलग सिलवाने पड़ते थे| जहाँ मैं अब एक औरत बन कर थोड़े पारंपरिक से ब्लाउज कट सिलवाने लगी थी, वहीँ वो ज्यादा सेक्सी ब्लाउज सिलवाने लगे थे| पुरुष तन को स्त्री के रूप में निखारने में वो कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे|

पर समय के साथ उनकी स्त्री बनने की इच्छा तीव्र होती जा रही थी| उन्होंने बाल भी बढ़ाना शुरू कर दिया था| पर मुझे शॉक उस दिन लगा जब उन्होंने घर लौट कर कहा कि अब वो ऑपरेशन करा कर पूरी तरह स्त्री बनना चाहते है| मैं तो एक पल के लिए अन्दर ही अन्दर टूट गयी थी क्योंकि चाहे जो भी हो, अब मैं एक स्त्री थी और मुझे सम्पूर्ण करने वाले पति यानी पुरुष का साथ चाहिए था| पर उन्होंने बेहद प्यार से मुझे गले लगाया और फिर मुझसे इस बारे में और बात की| फिर हमने मिलकर निर्णय लिया कि वह ब्रेस्ट इम्प्लांट करवाएंगे पर पूरी तरह लिंग परिवर्तन नहीं कराएँगे| मैं नहीं चाहती थी की वो अपना पूरा पुरुषत्व ख़त्म कर दे| ऑपरेशन के बाद ३४ बी साइज़ के उनके स्तन इतने बड़े भी नहीं थे कि दिन में अपनी नौकरी में वो पुरुष रूप में जाए तो छुप न सके| पर इतने छोटे भी न थे उनका आनंद न लिया जा सके| मेरा जीवन अब बेहद सुखी था| और उनका भी| अब मुझे पूरी तरह औरत होने का अनुभव करने में बस एक ही कमी रह गयी थी, मैं माँ बनना चाहती थी| मुझे उन्हें मनाने में थोडा समय लगा पर एक दिन वो मान ही गए|

अगले ९ महीने

अपने शरीर में पलती हुई एक नयी जान को लेकर चलने के वो ९ महीने का अनुभव शायद मेरे जीवन का अब तक सबसे प्यारा अनुभव रहा| इस दौरान मुझे अल्का के रूप में मुझे समझने वाली सहेली मिली तो पति के रूप में सहारा बनने वाला पुरुष भी| पर धीरे धीरे उन्होंने अल्का बनना कम कर दिया था, क्योंकि वो जानते थे कि अब मुझे एक पुरुष का सहारा चाहिए था| आखिर वो प्यार भरे ९ महीनो में ,अपने अन्दर पलते हुए जीवन को अब बाहर लाने का वक़्त आ गया था| बड़े प्यार से ९ महीने पाला था उसे, पर अब मैं हॉस्पिटल में प्रसव पीड़ा में थी| उस दर्द में तड़पते हुए तो मानो एक पछतावा हो रहा था कि क्यों मैंने माँ बनने का निर्णय लिया| पर उस पीड़ा को तो सहना ही था|अब उससे पीछे नहीं पलट सकती थी|


9 महीने अपनी कोख में एक जान को पालना मेरे जीवन का सबसे प्यारा अनुभव था
मेरी प्रसव पीड़ा पूरे १४ घंटे रही| पर उसके बाद जब डॉक्टर ने मेरे हाथो में एक नन्ही सी जान को सौंपा तो मेरी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए| मैं एक बेटी की माँ बन गयी थी| माँ, सबसे प्यारा अनुभव| औरत होने के सारे सुख दुःख इस अनुभव के सामने फीके है! मैंने अपनी बेटी को प्यार से गले से लगा लिया| मैं भावुक होकर सारा दर्द भूल चुकी थी| इसके बाद मुझे नर्स ने सिखाया कि बच्चे को दूध कैसे पिलाना है| उस बच्ची ने जब मेरे स्तन से दूध पीया तो जैसे मेरे अन्दर से प्यार की अनंत प्रेम धारा बह निकली| मैं आँखें बंद करके उस प्यार को महसूस करने लगी| जब यह सब हो रहा था तब मेरे पति मेरे साथ ही थे| वो बहुत खुश थे पर उनकी आँखों में मैं एक बात देख सकती थी| उनके अन्दर हमारा शरीर बदलने के पहले वाली पत्नी परिणीता थी, जो सोच रही थी कि वो भी कभी माँ बन सकती थी और यह सुख वो भी पा सकती थी| पर किस्मत ने उनको अब आदमी बना दिया था| मैंने उनके दिल की बात सुनकर उन्हें पास बुलाकर कहा, “सुनो, अपनी बेटी को नहीं देखोगे?” उन्होंने प्यार से बेटी को गले लगा लिया| फिर मैंने उनके कान में धीमे से कहा, “हमारी बेटी भाग्यशाली है कि उसके पास एक पिता और दो माँ है!” मेरी बातें सुनकर उनकी आँखे भी नम हो गयी| उन्होंने कहा, “हाँ! और हमारी भाग्यशाली बेटी का नाम होगा प्रतीक और परिणीता की दुलारी “प्रणिता”!”



कुछ दिनों बाद

अब हम पति पत्नी घर आ गए थे| प्रणिता को दूध पिलाकर मैं उसे अपनी बगल में सुलाकर सोने को तैयार थी| वो भी आज बड़े दिनों बाद अल्का बन कर मेरी बगल में सोने आ गए| उन्होंने एक मुलायम सा गाउन पहना हुआ था उन्होंने मुझे प्यार से गले लगाकर गुड नाईट कहा और हमारा तीन सदस्यों का परिवार चैन की नींद सो गया|

अगली सुबह जब मैं उठी तो मेरे चेहरे पर खिड़की से सुनहरी धुप आ रही थी| लगता है मैं ज्यादा देर सो गयी थी| इतनी गहरी नींद लगी थी उस रात कि सुबह होने का अहसास ही न रहा| आज कुछ बदला बदला सा लग रहा था| अब तक मैंने अपनी आँखे नहीं खोली थी| पर मेरे स्तन आज हलके लग रहे थे जबकि उन्हें दूध से भरा होना चाहिए था| फिर भी अंगडाई लेती हुई जब मैंने आँखे खोली तो जो द्रिश्य था उसको देख कर आश्चर्य तो था पर ख़ुशी भी| मेरी आँखों के सामने मेरी पत्नी परिणीता बैठी हुई थी और उसकी गोद में हमारी बेटी प्रणिता सो रही थी| परिणीता ने ख़ुशी से मेरी ओर पलट कर देखा और चहकते हुए बोली, “हम फिर से अपने अपने रूप में आ गए प्रतीक! मैं फिर से परिणीता बन गयी हूँ और तुम मेरे पति प्रतीक!”

मैंने खुद को देखा तो मैंने वो गाउन पहना हुआ था जो कल रात मेरे पति पहन कर सोये थे| मैं फिर से आदमी बन गयी थी| मुझे एक पल को तो यकीन ही नहीं हुआ| इस नए बदलाव का मुझ पर क्या असर हुआ? क्या मुझे इस बात का दुख था कि अब मैं औरत नहीं थी? बिलकुल नहीं, मुझे बल्कि बेहद ख़ुशी थी| परिणीता की ख़ुशी देख कर स्त्रि का तन खोने का मुझे कोई दुख नहीं था| अब मैं फिर से एक क्रॉस ड्रेसर आदमी बनने को तैयार थी| पर अब मेरे पास वो कुछ था जो पहले न हुआ करता था| अब मेरे पास ऐसी पत्नी थी जो मेरे जीवन के क्रॉस ड्रेसिंग वाले इस पहलू को समझ सकती थी, एक ऐसी पत्नी जो मेरा सहयोग करने को तैयार थी| और तो और अब मेरे बाल लम्बे थे और मेरे पास स्तन भी थे! ज़रा सोच कर देखिये एक क्रॉस ड्रेसर को और क्या चाहिए इससे ज्यादा?


अब तो सोच कर यकीन ही नहीं होता कि मैं कभी संपूर्ण औरत बन कर एक बच्ची को जन्म भी दी थी या कभी किसी पुरुष से शारीरिक प्यार भी किया था| सब कुछ सपने की तरह है!


परिशिष्ट

आज लगभग २ साल हो चुके है उस रात से जब मैं प्रतीक से परिणीता बन गयी थी| और अब कुछ महीने बीत चुके है मुझे फिर से प्रतीक बने| आज भी हम दोनों पति-पत्नी को यकीन नहीं होता कि हमारे साथ ऐसा भी हुआ था| सोच कर ही अजीब लगता है कि मैं एक पुरुष से प्रेम करने लगी थी! या एक स्त्री के तन में मैं कभी थी भी| मैंने एक बच्चे को माँ बनकर जन्म दिया था, एक सपने सा लगता है| पर ऐसा सब हमारे साथ क्यों हुआ था? इसका जवाब हमारे पास नहीं है|पर जो हुआ उसने हमारा जीवन हमेशा के लिए बदल दिया था| हम दोनों के बीच अब बहुत प्यार है| हम दोनों एक दुसरे की परेशानियों को और दिल को बेहद अच्छे तरह से समझ सकते है, जो समझ हम दोनों में पहले न थी|अब मैं जानती हूँ कि औरत के रूप में परिणीता कितनी मुश्किलों का सामना करती है, और अब वो समझती है कि एक पुरुष होकर औरत बनने की लालसा क्या होती है| इसी समझ की वजह से अब मैं जब मन चाहे स्त्री रूप में अल्का बन सकती हूँ| पर इन सबसे ज्यादा, अब हमारे जीवन को पूरा करने वाली बेटी प्रणिता है जिसकी दो मांए है!

यह मेरी कहानी का अंतिम भाग था| फिर भी पिछले २ सालो में और भी बहुत कुछ हुआ था जिसके बारे में मैंने लिखा नहीं है| जैसे जब मैं परिणीता के शरीर में थी तब मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता कैसे बदल गया? उनकी नजरो में अब मैं उनका बेटा प्रतीक नहीं बल्कि बहु परिणीता थी? या मेरे सास ससुर के साथ मेरा रिश्ता जो अब मुझे अपनी बेटी की तरह देखते थे? या मेरी बहन के साथ उसकी शादी के समय मेरा समय कैसा बीता जब मैं उसका भैया न होकर प्यारी भी थी? इन सब के बारे में समय मिला तो ज़रूर लिखूंगी| उसके लिए आपका सब्र, प्यार और कमेन्ट भी चाहिए| आखिर आपको मेरी कहानी कैसी लगी थी ज़रूर बताना|


समाप्त........!!!!!!!!
 
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