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Erotica मेरी बीवी अनुश्री

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आपकी पसंदीदा कौन है?

  • अनुश्री

    Votes: 197 72.4%
  • रेखा

    Votes: 45 16.5%
  • अंब्दुल

    Votes: 57 21.0%
  • मिश्रा

    Votes: 18 6.6%
  • चाटर्जी -मुख़र्जी

    Votes: 28 10.3%
  • फारुख

    Votes: 12 4.4%

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andypndy

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Mr. Unique

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हाहाहाहा....दिख जाये तो होश खो बैठेगा🤣
Andy bhai mai abhi aapke blog par visit krke aa rha hu...aapne ek nai story start ki hai "मेरी बेवफा बीवी" ye story bhi achhi lag rhi hai lekin mujhe ye samjh nahi aa rha ki aap ek saath do stories ko kaise sambhaloge....aur upr se aapka personal kaam bhi hoga to kya aap aise me dono stories ko time de paayege
 
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andypndy

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Andy bhai mai abhi aapke blog par visit krke aa rha hu...aapne ek nai story start ki hai "मेरी बेवफा बीवी" ye story bhi achhi lag rhi hai lekin mujhe ye samjh nahi aa rha ki aap ek saath do stories ko kaise sambhaloge....aur upr se aapka personal kaam bhi hoga to kya aap aise me dono stories ko time de paayege
हाँ अभी कर सकता हूँ फिलहाल.... Time है मेरे पास.
जब जो स्टोरी लिखें का मन होगा उसके अपडेट दे दिया करूंगा 🤣👍
 

andypndy

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अपडेट -46

सुबह का सूरज निकाल आया था, तूफान एक दम शांत था ऐसा जैसे कभी था ही नहीं. फारुख कि नजर रसोई घर के पर्दे पर ही टिकी हुई थी, जैसे इंतज़ार मे हो कि वो सुंदर अप्सरा कब निकलेगी. "खो...खो....पानी....पानी..." अचानक मंगेश भी खासते हुए उठ गया रात भर मे उसका गला सुख गया था. "लो साहब पानी " फारुख ने पास पड़े पानी के जग को मंगेश कि ओर बढ़ा दिया. मंगेश का सर अभी भी घूम रहा था, पानी ने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई थी.. "सुबह हो गई क्या?" मंगेश ने आंखे मसलते हुए इधर उधर देखा उजाला हो चूका था, कमरा अस्त व्यस्त था, कमीन गीली थी, टेबल पर गिलास लुड़का पड़ा था. "लेकीन अनुश्री कहाँ है? क्या हुआ है यहाँ फारुख?"


वो....वो...वो....साब " फारुख कि जबान लड़खड़ा गई हालांकि मंगेश के मन मे कोई शक नहीं था उसका प्रश्न सामान्य सा था.
फिर भी फारुख हड़बड़ा गया, अक्सर चोर किसी भी प्रश्न को अपनी चोरी से ही जोड़ के घबरा जाता है वही हाल फारुख का था.

"अरे उठ गये आप? तभी पीछे से अनुश्री कि आवाज़ ने दोनों का ध्यान खिंच लिया" मंगेश जहाँ उन्नीदा था वही फारुख उस हसीन परी को देखता ही रह गया. कैसा हुस्न दिया था खुदा ने.
अनुश्री फारुख कि तरफ नहीं देख पा रही थी शायद कपड़ो के साथ उसकी हया शर्म वापस लौट आई थी.

अनुश्री वापस से दमक रही थी.


"हाँ उठ गया रात को तो ऐसे नींद आई जैसे जन्मो बाद सोया हुआ हूँ " मंगेश भी उठ कर अपने कपड़े पहन चूका था.

"लो फारुख तुम्हारे पैसे, तुमने बहुत मदद कि हमारी " मंगेश ने एक 2000rs का नोट ओर बढ़ा दिया फारुख कि तरफ. फारुख कभी पीछे खड़ी अनुश्री को देखता तो कभी मंगेश के हाथ मे थमे नोट को. परन्तु उसके हाथ नहीं बढ़ रहे थे.

"क्या हुआ ले लो कल रात तुमने ही तो मांगे थे?" मंगेश ने नोट वही टेबल पर रख दिया. "आओ चलते है अनु मकेनिक भी ढूंढना है" मंगेश आगे बढ़ चला अनुश्री पीछे.

"साब.....साब....मंगेश दरवाजे कि दहलीज पे ही था कि पीछे से फारुख कि आवाज़ ने रोक दिया.

"ये पैसे आपके है, मुझे नहीं चाहिए " फारुख ने पैसे वापस मंगेश कि तरफ बढ़ा दिये. " रख लो तुम्हरे हक़ के है "

"नहीं साहब ये आपके है" मंगेश दुविधा मे था, उसने अनुश्री कि तरफ देखा

"रख लो फारुख तुम्हे जरुरत पड़ेगी इन पैसो कि" अनुश्री कि आवाज़ मे ना जाने कैसा जादू था नोट फारुख कि जेब मे समा गये, उसकी आंखे नाम थी. मंगेश घर से निकल आगे बढ़ गया. पीछे अनुश्री चल पड़ी, दहलीज पे खड़ा फारुख उस जन्नत कि अप्सरा को देखता ही रह गया, सामने से पड़ती सूरज कि किरणे अनुश्री के जिस्म को दमका रही थी
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.


याकायाक अनुश्री पीछे पलटी ओर एक पल को फारुख को देख लिया उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी.. फारुख भी मंद मंद मुस्कुरा दिया. एक अनजाने अजनबी लेकीन अपनेपन के रिश्ते कि नीव रख दि थी इस मुस्कुराहट ने.


थोड़ी ही देर मे मंगेश ओर अनुश्री होटल मयूर के दरवाजे पे थे. "अय्यो......मंगेश कहाँ रह गया था जी कल रात? कार कहाँ होना?" होटल मालिक अन्ना उन्हें देख दौड़ता हुआ उनके पास पंहुचा.

"वो...वक...वो...मंगेश ने कल रात का किस्सा कह सुनाया "

"थैंक गॉड यहाँ आज भी अच्छा लोग होता जो टूरिस्ट कि मदद करता " अन्ना के चेहरे पे चिर परिचित मुस्कुराहट थी.

लेकीन अनुश्री उस मुस्कुराहट के पीछे के इंसान को देख पा रही थी.

"क्या फारुख सच बोल रहा था, ये अन्ना ऐसा तो नहीं दिखता लेकीन उसकी कहीं एक एक बात सही बैठ रही थी, उसकी आँखों मे सच्चाई थी " आज अनुश्री का दिल साफ था एक दम मौसम कि तरह उसे सब साफ दिख रहा था.

"आप चलिए मै चाय भिजवाता जी " मंगेश ओर अनुश्री दोनों रूम मे दाखिल हो चले

"तुम इतनी क्यों पी लेते हो " अनुश्री अंदर आते ही तुनक गई "अरे..वो...वो...मुझे पता नहीं था ये देशी दारू इतनी हार्ड होती है"

"हाँ तुम तो मस्त सो गये थे घोड़े बेच कर "

"तो क्या करता उस तूफान मे जग कर भी " मंगेश ने हसीं मे बात उड़ा दि.

"हाँ मंगेश तुम क्या करते, कुछ नहीं कर सकते तुम " अनुश्री मन मे उलझन लिए बाथरूम चली गई.

सामने ही उसका खूबसूरत अक्स चमक रहा था. अनुश्री के सामने किसी चलचित्र कि तरह घटना उभर आई थी,

उसका जो सफर अभी तक रहा वो किसी साजिश का हिस्सा थी, वो हैवानो के जाल मे फसी हुई थी, उसे बचाया भी किसने एक शराबी ने.

फारुख जिसके साथ वो कल रात मौजूद थी, उसने खुद अपनी इच्छा से वो सब किया जो उसे शोभा नहीं देता था.

अभी तक जो हुआ सब अकस्मात परिस्थिति जनक हुआ लेकीन कल रात वो खुद फारुख कि तरफ दौड पड़ी थी,अपनी प्यास बुझाने को.
 
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