- 14,647
- 38,230
- 259
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयासुगंधा के कमरे का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था,,, अंकित ने अपने बनावटी शब्दों से कमरे का माहौल पूरी तरह से गर्म कर दिया था,,, अंकित को पता था कि यही मौका है अपनी मां के सामने खुलने का और अपनी मां के साथ अश्लील बातें करने का क्योंकि इसमें दोनों की रजा मंदी नजर आ रही थी,,, अगर सुगंध चाहती तो वहां दवा खाने में क्या हुआ कैसे हुआ कैसे सैंपल दिया गया इस बारे में पूछती ही नहीं,, लेकिन उसका भी मन था अपने बेटे के मुंह से कुछ अलग सुनने का और इसी मौके का फायदा उठाते हुए अंकित भी अपने मन की कल्पनाओं को शब्दों में रच कर अपनी मां के आगे सुना दिया था जिसमें कुछ सच्चाई भी थी और कुछ सच्चाई से बिल्कुल परे था,,,।
सुगंधा अपने बेटे के साथ
जब सुगंधा को इस बात का पता चला कि बाथरूम के अंदर वह पेशाब करने के लिए बैठ नहीं पा रही थी,, और उसे खड़े-खड़े पेशाब करना पड़ा था और तो एक वह अपने हाथ में परखनली भी नहीं पकड़ पा रही थी जिसकी वजह से उसके बेटे को अपने हाथ से परखनली पकड़कर उसकी बुर के गुलाबी छेद पर लगाकर पेशाब का सैंपल देना पड़ा था यह सुनते ही वह एकदम स्तब्ध रह गई थी एकदम खामोश,, शुन्य मनस्क,,, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उसकी जहां से बड़ी तेजी से चल रही थी और सांसों की गति के साथ-साथ उसके दोनों दशहरी आम भी ऊपर नीचे हो रहे थे जो की ब्लाउज में कैद होने के बावजूद भी अपनी आभा को पूरी तरह से उजागर किए हुए थे,,, अंकित की नजर तो उसकी मां की छातियों पर ही चली जा रही थी,,, अपनी मां के सुर्ख लाल चेहरे को देखकर अंकित को समझ में आ रहा था कि उसकी बात का असर उसकी मां पर बहुत ही बुरा पड़ रहा है,,,,।
Kalpna me sugandha
इस बात को वह अच्छी तरह से जानता था कि दवा खाने की आधी से ज्यादा कहानी उसने झूठ बोला था जिसमें सच्चाई भी थी लेकिन सच्चाई से ज्यादा झूठ था,,,, लेकिन इस झूठ में कितनी मादकता और कितना आनंद छुपा हुआ था इस बात को केवल वह खुद और उसकी मां समझ पा रही थी सुगंधा तो अपने मन में कल्पना कर करके पूरी तरह से गीली होती चली जा रही थी,,, बार-बार वह अपने मन में कल्पना करने लग रही थी कि वह बाथरूम के अंदर खड़ी होकर पेशाब कर रही है उसके गुलाबी छेद से पेशाब की धार टूट रही है और उसका बेटा हाथ में परखनली लेकर उसकी बुर के गुलाबी छेद पर लगाकर उसमें से पैसाब को इकट्ठा कर रहा है,,,,आहहहहह,,,, गजब का एहसास पूरी तरह से मदहोशी से सरोबोर हो चुकी थी सुगंधा,,,।
सुगंधा दीवार का सहारा लेकर बैठी हुई थी और छत की तरफ देख रही थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था जिसका असर उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में बड़े अच्छे से महसूस हो रही थी ठीक उसके सामने बिस्तर पर अंकित बैठा हुआ था और अंकित मन ही मन बहुत खुश हो रहा था क्योंकि आज दवा खाने के बहाने उसने अपने मन की बहुत सारी बातें अपनी मां से कर दिया था वह अपनी मां के सामने लंड बुर और चूची जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहता था लेकिन अभी तक उसके मुंह से इस तरह के शब्द निकल नहीं पाए थे बस इशारे से ही वह अपनी मां को उन अंगों के बारे में बता रहा था,,,। और उसकी मां उसके इशारों को समझ जा रही थी,,। अंकित अपनी मां को ही देख रहा था उसके कहे गए एक-एक शब्द उसकी मां के बदन में उत्तेजना की चिंगारी को और ज्यादा भड़का रहे थे इस तरह की बात करते हुए अंकित खुद उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था,,,।
Sugandha ki kalpna
कुछ देर कमरे में पूरी तरह से खामोशी छाई रही,,, अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि अच्छा हुआ कि उसकी दीदी उसे घर पर रुकने के लिए बोल कर गई और उसे पूरा मौका मिल गया अपनी मां से अपने मन की बात बताने की दवा खाने के बारे में बनी बनाई बात बताने का और उसकी मां भी बड़ी गौर से उसकी एक-एक बात को सुन रही थी उसके हर एक शब्द उसके तन बदन में उत्तेजना का तूफ़ान पैदा कर रहे थे,,, जिस तरह से सुगंध को अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में गीलापन महसूस हो रहा था उसे डर था कि कहीं आज ही इसी समय अपने ही बिस्तर पर अपने बेटे के साथ हम बिस्तर न हो जाए,,,,। लेकिन वह जानती थी कि वह बेहद सुखद घड़ी होगी जब उसका बेटा बरसों से सूखी जमीन पर सावन की बूंदों की बौछार करेगा,,,,,,।
Sugandha ki adhbhut kalpna
अपनी मम्मी को खामोश देखकर अंकित धीरे से बोला,,,,।
क्या हुआ मम्मी चुप क्यों हो गई,,,,,?
(अंकित की आवाज सुनकर सुगंधा एकदम से अपनी आंखों को खोल दे ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने उसे नींद से जगाया और वह अपने बेटे की तरफ देखने लगी,,,, तो अंकित फिर से बोला,,,)
क्या हुआ मम्मी तुम नाराज तो नहीं हो क्या मेरी बात तुम्हें बुरी लगी,,,, मैं तो वही बता रहा हूं जो कल दवा खाने में हुआ है,,,,।
वही तो मैं सोच रही हूं रे,,, यह कैसा बुखार था कि मुझे बिल्कुल भी होश नहीं था मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है दवा खाने में जो कुछ भी हुआ उसके बारे में मुझे कुछ भी याद नहीं है तेरी कहीं एक एक बात मुझे अंदर ही अंदर चोट पहुंचा रही है,,।
KAlpna me Ankit apni ma ki peticoat utarta hua
कैसी चोट मम्मी तुम्हें मन छोटा करने की कोई जरूरत नहीं है वैसे भी हम दोनों दवा खाने में थे और दवा खाने में डॉक्टर के कहे अनुसार सब कुछ करना पड़ता है,,,।
वो सब तो ठीक है,,, लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे कुछ याद क्यों नहीं है और मैं तो इस बात पर बेहद शर्मिंदा हूं कि बाथरूम में मैं बैठ नहीं पा रही थी,,,,।
(अपनी मां को बाथरूम वाली बात याद करते देखकर उसकी अधूरी बात को पूरा करते हुए जल्दी से अंकित बोला)
हां मम्मी बिल्कुल सच है तू पेशाब करने के लिए नीचे बैठ नहीं पा रही थी इसलिए तुम्हें खड़े-खड़े करनापड़ा था,,,,।
(फिर से अपने बेटे के मुंह से पेशाब शब्द सुनकर सुगंधा उसे आश्चार्य से देखने लगी,,, क्योंकि उसका बेटा है इस तरह के शब्दों का प्रयोग खास करके उसके सामने बिल्कुल भी नहीं करता था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अंकित इतना खुल कैसे गया शायद नूपुर के बेटे की संगत का कमाल है वरना वह जानती थी कि उसका बेटा किस तरह के शब्दों का प्रयोग उसके सामने बिल्कुल भी नहीं करेगा लेकिन इससे सुगंधा नाराज नहीं थी बल्कि अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,, अपने बेटे की बात सुनकर गहरी सांस लेते हुए सुगंधा बोली,,,,)
Kalpna me Ankit apni ma ki chuchi pita hua
लेकिन अंकित तुझे बुरा नहीं लगा पैसाब का सैंपल लेते समय,,,।
नहीं मम्मी मुझे तो लेना ही था आखिर जांच जो करवाना था,,हां यह बात है कि,,, जब मैं परखनली को तुम्हारी बुर,,,,(इतना कहते हैं एकदम से अंकित घबरा गया और तुरंत अपने शब्दों को बदलते हुए बोला) मेरा मतलब है कि जब परखनली में पेशाब का सैंपल ले रहा था तो पेशाब के छींटें मेरे ऊपर आए थे और कोई दिक्कत नहीं,,,,।
(सुगंधा समझ नहीं पा रही थी कि उसके बेटे के मुंह से औरत का सबसे बेश कीमती अंग का नाम बुर अपने आप ही आ गया या जानबूझकर वह ईस शब्द का प्रयोग किया था,,,, अंकित जानता था कि उसके मुंह से निकले शब्द बुर को सुनकर उसकी मां हैरान हो जाएगी और इसीलिए वह खुद एकदम हैरान होने वाला हाव-भाव अपने चेहरे पर ला रहा था जिसे देखकर सुगंध को लगने लगा था कि उसके बेटे के मुंह से अनजाने में ही वह शब्द फूट पड़े थे लेकिन वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका बेटा यह जानता है कि औरत की दोनों टांगों के बीच के पतली दरार को बुर कहा जाता है,,, अपने बेटे के इसी ज्ञान से सुगंधा अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,, पेशाब के छिंटे वाली बात सुनकर,,, सुगंधा अपने चेहरे का सहज करते हुए बोली,,,,)
Kalpna me Ankit apni ma ki chudai karta hua
तुझे कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन मेरा तो बुरा हाल हो रहा है मुझे तो बहुत शर्म आ रही है और मैं शर्मिंदा हूं कि तुझे इस तरह की तकलीफ झेलनी पड़ी,,,।
इसमें तकलीफ वाली कौन सी बात है मम्मी यह तो मेरा फर्ज था,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंध अपने मन में ही बोली हां यह तेरा फर्ज था ना मां को बाथरूम में ले जाकर खड़ी-खड़ी पेशाब करवाना परखनली को उसकी बुर पर रखकर उसके पेशाब का सैंपल देना यही सब फर्ज में आता है,,,,,, अपने आप से ही बात करते हुए सुगंधा के तन बदन में आग लग रही थी,,,, वह खामोश हो चुकी बोलने लायक उसके पास कोई शब्द नहीं बाथरूम में जो कुछ भी हुआ था वह उसकी कल्पना और सोच के बिल्कुल परे था,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बेटे के द्वारा बताया गया दृश्य नजर आ जा रहा था जब वह बाथरूम में खड़ी खड़ी पेशाब कर रही थी और उसका बेटा परखनली को उसकी बुर के छेद से लगाया हुआ था,,,। यह दृश्य यह ख्याल किसी भी मा के लिए बेहद शर्मनाक है,,, क्योंकि कोई भी सीधी शादी ममता से भरी हुई मां यह नहीं चाहेगी कि उसका बेटा उसके साथ बाथरुम में आए ,, और किसी भी सूरत में एक मां अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपनी साड़ी कमर तक उठा दे अपना पिछवाड़ा दिखा दे,,,, और तो और वह बिल्कुल भी नहीं चाहेगी कि उसका बेटा अपने हाथों से उसकी चड्डी उतारे उसे पेशाब करने के लिए बोले,,,, और ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचेगी कि उसका बेटा दवा खाने में दवा खाने के बाथरूम में परखनली को लेकर खुद अपने हाथों से अपनी मां की बुर पर लगाए पेशाब का सैंपल लेने के लिए,,, यह सब एक मां के लिए बेहद शर्मनाक और शर्मिंदगी से भर देने वाला क्रियाकलाप है,,,,।
Ankit jam k chudai karta hua
लेकिन एक सीधी साधी साधारण ममता से भरी हुई मां की जगह एक ऐसी मां हो जिसके तन बदन में जवानी उफान मारती हो उसकी आंखों में वासना के डोरे नजर आते हो और वह खुद अपने बेटे के साथ हम बिस्तर होना चाहती हो तो ऐसी मां के लिए यह सारे क्रियाकलाप आनंददायक और मदहोश कर देने वाले हैं,,,, और यही क्रियाकलाप का जहां एक तरफ सुगंधा पर बुरा असर पड़ रहा था वही वह अंदर ही अंदर इन सारे क्रियाकलाप से बहुत खुश हो रही थी क्योंकि एक तरह से उसके मन का ही हो रहा था वह अपने बेटे को नूपुर के बेटे की तरह बनना चाहती थी ताकि बेचकर उसका बेटा उसके अंगों से खेल सके,,,, और वह जानती थी किसी तरह की हरकत से उसका बेटा नूपुर के बेटे की तरह खुल जाएगा और फिर दोनों मिलकर जवानी का मजा लूटेंगे,,,, अपने मन में आए इस तरह के ख्याल से सुगंधा अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी लेकिन अपने चेहरे के भाव को एकदम औपचारिक रूप से गंभीर बनाए हुए थी,,,,, और वह धीरे से बोली,,,)
सुगंधा अपने बेटे के साथ
और फिर बाथरूम से निकलने के बाद क्या हुआ,,,?
बाथरूम से निकलने के बाद में धीरे-धीरे फिर से तुम्हें डॉक्टर के केबिन में लेकर आया,,, डॉक्टर तुम्हें इंजेक्शन लगाना चाहता था ताकि तुम्हें जल्दी आराम हो जिसके लिए उसने मुझे सहारा देकर तुम्हें टेबल पर बिठाने के लिए बोला था और मैं धीरे-धीरे तुम्हें टेबल के पास लेकर गया और सहारा देकर टेबल पर बैठा दिया,,, डॉक्टर अपने इंजेक्शन में दवा भरकर,,, तुम्हारे पास पहुंच गया मैं भी वही था मुझे लग रहा था कि वह तुम्हारे हाथ में सुई लगाएगा,,, लेकिन जब उसने तुम्हें लेट जाने के लिए बोला तो मेरा हैरान रह गया,,,।
क्या ,,,उसने मुझे लेट जाने के लिए बोला,,(हैरान होते हुए सुगंधा बोली,,)
Kalpna me mast hoti huyi sugandha
हां मम्मी वाले जाने के लिए बोला और मैं जब उसे बोला कि हाथ में लगा दो तो वह बोला कि सुई भारी है हाथ दर्द करेगा,,,,। सच कहूं तो मुझे तो डॉक्टर की नियत कुछ साफ नहीं लग रही थी,,,,,।
(अंकित की बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से समझ रही थी,,,, इसलिए वह बोली,,,)
मुझे भी ऐसा ही लग रहा है फिर क्या किया उसने,,,?
फिर क्या सहारा देकर मैं तुम्हें लिटा दिया क्योंकि वैसे भी तुम्हें होश नहीं था तुम पेट के बल लेट रही थी,,,, कुछ इस तरह से तुम लेती थी डॉक्टर तो तुम्हें देखता ही रह गया था,,,।
मैं कुछ समझी नहीं मैं कैसे लेटी थी,,,,,!
मतलब की मम्मी तुम पेट के बल लेटी हुई थी लेकिन तुम्हारा जो पीछे वाला भाग है,,,,(अंकित खुद से हाथ के सारे से अपना पिछवाड़ा दिखाते हुए बोला उसकी मां समझ गई थी) एकदम उभर कर सामने दिखाई दे रहा था एकदम बड़ी-बड़ी डॉक्टर की तो आंखें फटी की फटी रह गई थी वह हाथ में सी लिए हुए कुछ देर तक तुम्हारी कमर के नीचे वाले भाग को ही देखता रह गया,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा अंदर ही अंदर खुश हो रही थी क्योंकि वह डॉक्टर की हालत को समझ सकती थी डॉक्टर उसकी बड़ी-बड़ी गांड को ही देख रहा होगा ,,,पागलों की तरह देख रहा होगा,,, क्योंकि इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने का श्रेय उसके नितंबों पर भी जाता है,,,,,)
फिर,,,,,,।
फिर न जाने उसके मन में क्या आया वह एक हाथ में इंजेक्शन लिए दूसरे हाथ से तुम्हारी साड़ी को ऊपर वाले भाग को पकड़ कर उसे नीचे की तरफ सरकाने लगा मैं तो उसकी हरकत देखकर एकदम हैरान था,,, लगभग लगभग तुम्हारी साड़ी को इतना नीचे की तरफ अपने हाथ से खींचा था कि तुम्हारे पिछवाड़े की ऊपरी लकीर दिखाई देने लगी थी,,,।
हाय दइया क्या कह रहा है तू,,,,(शर्म के मारे अपने मुंह पर हाथ रखते हुए सुगंधा बोली,,,)
हां मम्मी में सच कह रहा हूं,,,, डॉक्टर की नियत सच में साफ नहीं थी वह कुछ देर तक हाथ में इंजेक्शन दिए तुम्हारे पिछवाड़े को ही देखता रह गया जो की ट्यूबलाइट की रोशनी में एकदम दूध की तरह चमक रही थी,,,,।
क्यों तू भी देख रहा था क्या,,,,?
नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है मैं तो तुम्हारे पैर के पास तुम्हारे पैर को पकड़ के खड़ा था मुझे डर था कि कहीं तुम पलटने लगोगी तो नीचे गिर जाओगी,,,, डॉक्टर कैसा लग रहा था कि तुम्हें सुई लगाने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था वह तो सिर्फ तुम्हारे पिछवाड़े को ही देख रहा था और उसने अपनी हथेली को तुम्हारी गोरी गोरी पिछवाड़े पर रख भी दिया था कुछ देर के लिए मुझे बहुत गुस्सा आया था लेकिन मैं जानता था कि कुछ कहूंगा तो यह इलाज करने से इनकार कर देगा इसलिए मैं खामोश रहा,,,, और फिर वह धीरे से तुम्हारे पिछवाड़े में सुई लगाने लगा,,,।
अच्छा एक बात बता तुझे कैसे पता चला कि उसकी नियत खराब है,,,,।
जब वह तुम्हें सुई लगाने जा रहा था तो मेरी नजर अचानक ही उसके पेट के आगे वाले भाग पर पहुंच गई थी,,,, पर मैंने देखा तो उसके पेंट में तंबू बना हुआ था,,,,,।
(अब तो अपने बेटे के मुंह से यह सुनकर सुगंधा के तो होश उड़ गए सुगंधा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया,,, क्योंकि सुगंध पेट में तंबू बनाने के मतलब को अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि उसकी जवानी देखकर डॉक्टर का लंड खड़ा हो गया,,, था जहां इस बात से वहां एकदम हैरान हो रही थी वहीं दूसरी बात से वहां अपनी जवानी पर गर्व कर रही थी कि अभी भी वह किसी का भी लंड खड़ा करने में सक्षम है,,,,,,, अब उससे कुछ भी बोल नहीं जा रहा था और ना ही कुछ पूछने लायक वह बच्ची थी दवा खाने का सफर बेहद रोमांचक और उत्तेजना से भरा हुआ था इस बारे में उसे समझ में आ गया था,,, यह सब के बारे में सोच कर उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो रहा था वह अपने मन में सोच रही थी कि जब उसकी जवानी को देखकर डॉक्टर का इतना बुरा हाल था तब उसके बेटे के बदन में भी तो कुछ-कुछ हुआ होगा उसकी भी तो हालत खराब हो गई होगी लेकिन ऐसा पूछने की उसमें ताकत नहीं दे कुछ देर की खामोशी के बाद वह सिर्फ इतना बोली,,,)
अब मैं नहाना चाहती हूं,,,,।
ठीक है मम्मी मैं बाथरूम में तुम्हारे लिए पानी रख देता हूं,,,,,(और इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया और जैसे ही वह उठकर खड़ा हुआ उसके पेट में बना तंबू एकदम से सुगंधा की आंखों के सामने चमकने लगा हालांकि अंकित उसे पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और तुरंत कमरे से बाहर निकल गया लेकिन सुगंधा को समझ में आ गया था जिस तरह से डॉक्टर की नियत उसकी जवानी देखकर खराब हो रही थी उसी तरह से उसके बेटे की भी नियत उसकी मदद कर देने वाली जवानी को देखकर खराब हो रही थी,,,,।)
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयादवा खाने में जो कुछ भी हुआ था उसमें से अधिकतर बातों को अंकित ने झूठ बताया था,,,, जो कुछ भी हुआ था उसे नमक मिर्च लगाकर बताया था और सुगंधा अपने बेटे की बात पर पूरी तरह से विश्वास कर ली थी और विश्वास के साथ-साथ उसके बातों की जो मादकता थी उसके हर एक शब्द को अपने अंदर उतार कर वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,,, सुगंधा इस बात से भी बहुत खुश थी उसका बेटा उसके सामने काफी हद तक खुल चुका था और यही तो वह चाहती थी,,,, सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,, उसकी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी है इतनी अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव तो उसने अपनी सुहागरात वाली रात को भी महसूस की थी जितना कि आज अपने बेटे की बातों को सुनकर वह उत्तेजित हुए जा रही थी,,,,।
उसे आज भी अपनी सुहागरात की पहली रात बहुत अच्छे से याद थी आखिरकार यह रात औरत के जीवन का सबसे अहम हिस्सा बन जाता है चाहे जितना भी भूलने की कोशिश अगर औरत करें तो भी इस रात को नहीं भूल सकती क्योंकि उसके जीवन की सुहागरात उसके कौमार्य भंग की पहली रात होती है,,, एक मर्द के साथ मिलन की पहली रात होती है इस रात को औरत बहुत कुछ सिखाती है और बहुत कुछ मर्दों को सिखाती भी है यही रात उसके समर्पण की रात होती है यही रात उसके विश्वास की रात होती है जिसमें मर्द ओर औरत दोनों जिंदगी भर के लिए विश्वास के धागे से बंध जाते हैं,,, या यू कह लो की वैवाहिक जीवन की शुरुआत ही सुहागरात के संभोग क्रिया से होती है संभोग सुख के अद्भुत एहसास से होती है,,,, और ऐसा ही कुछ सुगंधा के साथ भी हुआ था,,,,।
free image hosting
सुगंध को अपने वैवाहिक जीवन की पहली रात बड़ी अच्छे से याद थी जिसे सुहागरात कहा जाता है जब उसकी शादी तय हो चुकी थी तब सुहागरात का जिक्र अक्सर उसकी सहेलियां उसके सामने छेड़ देती थी,,, जिसे सुनकर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,, क्योंकि सुगंधा के सहेलियां में कुछ लोगों की शादी हो चुकी थी और उसकी सहेलियां शादी की रात के पहले अनुभव को उसे बताती थी जिनमें रोमांच भी भरा होता था,, और एक अजीब प्रकार का डर भी होता था,,, रोमांच तो उसे समझ में आता था लेकिन डर उसे इस बात से लगता था कि उसकी एक सहेली ने उसे बताई थी कि,,, देखना सुगंधा शादी की पहली रात को बचकर रहना और मेरी मां सरसों के तेल की शीशी अपने साथ रख लेना अगर तेरे पति का लंड मोटा हुआ तो पहली रात में ही तेरी बर फट जाएगी और उसमें से खून निकलने लगेगा तुझे दर्द भी बहुत होगा,,,।
उसकी इस बात को सुनकर सुगंधा पूरी तरह से डर गई थी उसे डर का एहसास उसे और ज्यादा परेशान करता था,,,, और वह नादानी भरे सवाल अपनी सहेली से पूछती थी,,,।
मोटा लंड (इस शब्द को कहने के लिए सुगंध पहले चारों तरफ नजर घुमा कर देख लेती थी कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है लेकिन यह शब्द को बोलते हुए भी उसकी ज़बान लडखड़ा जाती थी,,,) मुझे कुछ समझ में नहीं आया इससे फटने वाली कौन सी बात है,,,.
(सुगंधा किस बात को सुनकर उसकी सहेली उसके नादानियत पर हंसने लगती थी और कहती थी,,,)
अरे बेवकूफ इसीलिए तुझे रहती हूं कि लड़कों को अपना दोस्त बना दे सबको सीख जाएगी लेकिन तू है कि एकदम सती सावित्री बनी रहना चाहती है अपने पति को अपनी बुर गिफ्ट करना चाहती है एकदम अनचुदी ,,,(और उसकी इस बात को सुनकर सुगंध नाराज होते हुए कहती थी)
Sugandha ki haseen boor
upload pic
चलिए सब रहने दे मुझे तेरे जैसा नहीं बना है आखिरकार शादी के बाद तो यह सब होना ही है तो दूसरों के साथ यह सब करके बदनामी क्यों मोल ले,,, लेकिन तू बताई नहीं जो मैं पूछ रही हूं,,,।
अच्छा बाबा बताती हूं देख सुगंधा इतना तो मैं जानती हूं कि तू किसी लड़के के साथ दोस्ती नहीं रखी है तो अब तक शारीरिक संबंध भी नहीं बनाई होगी और इसीलिए तेरी बुर का छेद बहुत ही शंकरा होगा,,, मतलब की बहुत छोटा और तूने तो अभी तक लंड भी नहीं देखी होगी देखी है कि नहीं,,,।
(उसके सवाल पर सुगंधा कुछ बोल नहीं पाई बस ना में सिर हिला दी वैसे भी उसकी ईस तरह की बातों को सुनकर उसके बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी वह मदहोश हुए जा रही थी,,,,,, सुगंधा का जवाब सुनकर उसकी सहेली मुस्कुराते हुए बोली,,,)
Sugandha ki kamuk harkat
मुझे मालूम था,,,,देख ,,, तु ऐसे नहीं समझेगी,,, रुक तुझे समझाती हूं,,,(और इतना कहने के साथ एक बात अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और सीधे रसोई घर में चली गई थोड़ी ही देर में वहां से एक मोटा तगड़ा बेगम लेकर के उसके सामने आई और उसे दिखाते हुए बोली,,,)
देख सुगंधा,,, ऐसा ही होता है मर्दों का दमदार लंड,,,(बैगन के आगे वाले मोटे हिस्से की तरफ उंगली रखकर बोली) अब तु यह बता ईतना मोटा बेगन तेरी बुर के छोटे से छेद में कैसे घुसेगा,,,,,,।
(सुगंधा को आज भी वह पल बड़े अच्छे से याद था,, उस बैगन के मोटे हिस्से को देखकर उसके तो होश उड़ गए थे,,, वह समझ गई थी की उसके बुरे के छोटे से छेद में इतना मोटा बैगन वाकई में नहीं घुस सकता,,,, अपनी सहेली की बात सुनकर वह बोली)
तू सही कह रही है मुझे तो बहुत डर लग रहा है,,,।
देख कर डरेगी तो सुहागरात का मजा नहीं ले पाएगी इसलिए तुझे समझा रही हूं कि अपने साथ सरसों के तेल की शीशी रखना,,,।
सरसों के तेल की सीसी क्यों,,,?
अरे बुद्धू सरसों के तेल को तू अपने पति के लंड पर लगा लेना एकदम चिकना कर लेना और थोड़ा सा तेल अपनी बुर पर भी लगा लेना,,,
इससे क्या होगा,,,?(सुगंधा फिर से नादानीयत भरा सवाल पुछी,,,)
तू सच मेंपागल है,,, अरे सरसों का तेल तेरी बर और लंड को एकदम चिकनाहट से भर देगा और उसके बाद तेरी बुर में जाने में आराम रहेगा,,,, तब तुझे मजा भी बहुत आएगा,,,,
(अपनी सहेली की बात सुनकर थोड़ी बहुत राहत उसे महसूस हुई थी लेकिन जल्द ही शादी की रात आ गई थी सुगंधा की शादी गांव में हुई थी उसके पति गांव में ही पढ़ाने का काम करते थे,,,,,,और शादी के बाद उनकी नौकरी शहर में लग गई एक अच्छे से स्कूल में जिसमें आज खुद सुगंधा भी पढाती है,,, शादी की पहली रात को ही इतनी खूबसूरत औरत पाकर सुगंधा का पति बहुत खुश था,,,,।
Sugandha or uska beta
सुगंधा को आज भी याद है पहली रात को ही,, सुगंधा के पति ने ज्यादा कुछ किया नहीं था बस बातचीत ही किया था और फिर बातचीत के अंत में केवल साड़ी को कमर तक उठाकर,, और सुगंधा की चड्डी उतार कर उसकी दोनों टांगों के बीच जाकर सिर्फ थोड़ा सा थूक लगाकर सुगंधा के बुर में डालने की कोशिश करने लगा लेकिन सुगंधा की बुर का छेद छोटा होने की वजह से सुगंधा का पति एकदम असफल रहा और उसका वीर्यपात हो गया,,,, ।
अपने पति के असफल रहने से वह पूरी तरह से निराश हो गई थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें इस बात को किसी से का भी नहीं सकती थी ना ही अपने पति से बता सकती थी क्योंकि सुगंधा दूसरी औरतों की तरह नहीं थी उसे इस बात का डर था कि अगर वह इस बारे में अपने पति से बात करेगी तो उसका पति उसके बारे में गलत धारणा बांध लेगा उसे चरित्रहीन समझेगा इसीलिए वह इस बात को का भी नहीं सकती थी,,,, उसे अपनी सहेली की बात याद आ रही थी मोटा और लंबा लंड बुर फाड़ देगा लेकिन उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके पति लंड कुछ ज्यादा लंबा और मोटा नहीं था बस काम भर का था,,,।
Sugandha or uska beta
दूसरे दिन वह फिर से अपने पति का इंतजार कर रही थी उसे बहुत डर लग रहा था,,,, क्योंकि जिस तरह का उसने अपने मन में सुहागरात को लेकर सपना संजोए थी वह पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था,,, सब कुछ बिखरा हुआ सबसे नजर आ रहा था उसका इंतजार की घड़ी खत्म हुई और कमरे का दरवाजा खुला अपने पति को देखकर वह घबराने लगी थी,,, सुगंधा के चेहरे को देखकर उसके पति ने समझ लिया था कि सुगंधा क्या सोच रही है और वह उसके दर को दूर करके हुए बोला,,,।
Sugandha ki kalpna
मैं जानता हूं सुगंधा कल की मेरी हरकत की वजह से तुम डरी हुई हो,,, मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था,,,(ईतना सुनकर सुगंधा आश्चर्य से अपने पति की तरफ देखने लगी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसका पति क्या बोल रहा है वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) कल मैं जानबूझकर तुमसे प्यार किए बिना तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध बनाया था और असफल होने का नाटक किया था क्योंकि मैं देखना चाहता था कि अगर तुम दूसरी लड़कियों की तरह होगी तो इस बारे में जरूर मुझे शिकायत करो कि लेकिन तुमने मुझे एक शब्द भी नहीं कहा नहीं घर वालों को कुछ बताया और मैं समझ गया कि तुम बहुत ही सीधी शादी हो चरित्रवान हो ,,, तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो तुम्हें संतुष्ट करने की ताकत मुझ में है,,,,।
(अपने पति की बातें सुनकर सुगंधा पूरी तरह से भाव भीबोर हो गई थी कल रात को जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में सोच कर वह सोच रही थी कि उसका जीवन पुरा तहस-नहस हो गया है इस तरह का पति पाकर,,, लेकिन उसके पति ने सब कुछ साफ कर दिया था और उसके बाद रात भर जमकर सुगंधा की चुदाई किया था और पूरी तरह से संतुष्ट किया था लेकिन एक बात का हिसाब सुगंध का हो रहा था कि उसके पति का लंड उसकी सहेली ने जिस तरह से बताया था मोटा और लंबा उसे तरह का बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी वह अपने पति के लंड से पूरी तरह से संतुष्ट थी,,,,,।
Sugandha ki kalpna
अपने बिस्तर पर बैठी हुई सुगंध अपनी सुहागरात की रात के बारे में सोच ही रही थी कि तभी उसके कानों में उसके बेटे की आवाज सुनाई दी,,,।
क्या हुआ मम्मी नहाना नहीं है क्या तुम्हारे लिए बाथरुम में हल्का कुनकुना पानी रख दिया हूं क्योंकि अभी ठंडा पानी से नहाओगी तो तबीयत और खराब हो जाएगी ,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर वह एकदम से सपनों की दुनिया से वापस आ गई और अपने बेटे की तरफ देखने लगी,,,, गहरी सांस लेते हुए बोली,,,)
ठीक है तु चल मैं आती हूं,,,,।
(ईतना सुनते ही अंकित वहां से दूसरा काम करने के लिए चला गया था लेकिन उसकी जाते-जाते उसके पेट के आगे वाले भाग पर सुगंधा की नजर फिर से चली गई थी जिसमें अभी भी अच्छा खासा तंबू बना हुआ था उसे देखकर सुगंधा की बुर में हलचल होने लगी वह समझ गई थी कि उसका बेटा कितना ज्यादा उत्तेजित है,,,, थोड़ी देर बाद वह बिस्तर पर से उठी और बाथरूम की तरफ जाने लगी,,,,,,, और बाथरूम से पहले चलते समय उसके कदम थोड़े से डगमगा गए,,, अंकित बाथरूम में साबुन रख रहा था उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी तो वह एकदम से उसे संभालने के लिए उठकर खड़ा हो गया लेकिन तब तक सुगंधा दीवाल पर हाथ लगाकर संभल चुकी थी,,,)
संभाल कर मम्मी लगता है अभी भी तुम्हें चक्कर आ रहा है,,,,,।
(चक्कर की बात सुनते हैं सुगंधा के तन-बाद में अजीब सी हलचल होने लगी और वह जानबूझकर बोली,,,)
मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,,,,।
तब रहने दो मम्मी मत नहाओ,,,,
नहीं नहीं नहाना पड़ेगा मुझे अच्छा नहीं लग रहा है,,,,।
ठीक है लेकिन बाथरूम का दरवाजा खुला रखना ताकि कोई गड़बड़ हो तो मैं देख सकूं,,,,।
(अंकित के मन में दोहरे विचार चल रहे थे एक तरफ से वह अपनी मां की चिंता भी कर रहा था और दूसरी तरफ वह बाथरूम का दरवाजा खुला रखने पर अपनी आंखों को सेंक भी सकता था,,,, अपने बेटे की बात पर सुगंधा को कोई एतराज नहीं था,,, क्योंकि उसके मन में भी बहुत कुछ चल रहा था वह अपने बेटे से खुलना चाहती थी,,,। इसलिए वह दीवार का सहारा लेकर बाथरूम के दरवाजे तक पहुंच कर बोली,, )
ठीक है,,,,(बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और वह धीरे से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गई,,, अंकित इतने में जल्दी से एक कुर्सी लेकर आ गया और ठीक बाथरूम के सामने किताब लेकर बैठ जा वह ऐसा जताना चाहता था कि वह पढ़ रहा है लेकिन वह अपनी मां पर ही नजर रखना चाहता था उसे देखना चाहता था नहाते हुए उसके खूबसूरत भजन को देखना चाहता था और इस बात का एहसास सुगंधा को भी था इसलिए उसके बदन में भी हलचल मची हुई थी,,,,।
कुछ देर तक सुगंधा बाथरूम में उसी तरह से खड़ी रही,,, जहां एक तरफ अपने बेटे की आंखों के सामने वह नहाने के लिए उत्सुक थी,,, वहीं दूसरी तरफ ना जाने क्यों उसे अपने बेटे की आंखों के सामने अपने कपड़े उतारने में शर्म महसूस हो रही थी जबकि उसके बेहोशी की हालत में उसके बेटे ने क्लीनिक के बाथरूम में उसकी चड्डी तक अपने हाथों से उतारा था ,,,,, फिर अपने मन में यह सोचकर की यही तो वह चाहती थी फिर अब क्यों शर्मा रही है अगर शर्माएगी तो जिंदगी का सुख नहीं ले पाएगी,,, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और यही सही मौका भी है,,,, मर्दों का दिमाग औरत की खूबसूरत बदन को देख कर ही खराब होता है फिर वह भले ही चाहे उसका भाई हो बेटा हो या चाहे जो भी हो उसे सिर्फ औरतों में सिर्फ औरत ही नजर आती है ना ही कोई रिश्ता नजर आता है,,,।
सुगंधा ऐसा अपने मन में सोच कर धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू अपने कंधे पर से नीचे गिरा दी,,, और उसके ऐसा करने से उसकी भारी भरकम छाती एकदम से उजागर हो गई,,,,,,, वह अंकित तरफ मुंह करके खड़ी थी,,,, अंकित उसे तिरछी नजर से देख रहा था अपनी मां को इस तरह से अपनी साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिरा था वह देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी,,, अंकित किताब का पन्ना खोलकर भले ही किताब पढ़ने का नाटक कर रहा था जबकि हकीकत यात्रा की वह अपनी मां की खूबसूरत बदन के पन्ने को खुलता हुआ देखना चाहता था,,,, जिसकी शुरुआत उसकी मम्मी अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा कर कर चुकी थी,,,।
अंकित बहुत उत्साहित और उत्तेजित था,,,, बाथरूम के दरवाजे में बने छोटे से छेद से वह अपनी मां को पूरी तरह से नग्न अवस्था में नहाते हुए देख चुका था लेकिन फिर भी उसके बदन की प्यास अपनी मां को नंगी देखने की चाहत कम नहीं हुई थी यहां तक कि वह खुद अपनी मां की अंतर्वस्त्र को अपने हाथों से उतारा था लेकिन फिर भी उसके मन की ललक कम नहीं हुई थी,,,,।
free image hosting
बाथरूम के अंदर का माहौल धीरे-धीरे कम हो रहा था एक मां अपने बेटे के सामने अपने कपड़े उतार रही थी नहाने के लिए,,,सुगंधा ऐसा बिल्कुल भी ना करती है अगर उसके अंदर की एक औरत न जागी होती,,, क्योंकि उसके मन के चरित्र पर औरत का चरित्र को ज्यादा ही हावी होता जा रहा था जिसके चलते वह अपने बेटे के सामने कपड़े उतारने के लिए अपने आप को तैयार कर चुकी थी धीरे-धीरे वह अपने कमर पर भरी हुई साड़ी को खोलने लगी थी वह अपने दोनों हाथों से अपनी साड़ी को खोल रही थी और अंकित को ऐसा लग रहा था कि मानो जैसे उसकी मां उसके लिए अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी होने जा रही है,,,। दोनों के बीच पूरी तरह से खामोशी छाई हुई थी आंखों ही आंखों में बहुत सी बातें हो रही थी अंकित बार-बार किताबों के पन्नों में अपनी आंखों को भरमाने की कोशिश करता था लेकिन उसका चित उसकी मां पर टिका हुआ था,,,, अपनी साड़ी को खोलकर सुगंधा अपनी साड़ी को बाथरूम में कोने में रख दी थी और वह बाथरूम में केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थी ब्लाउज और पेटीकोट में उसका गदराया बदन और भी ज्यादा मादक लग रहा था,,,, जिसे देख कर अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आ गया था,,,।