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Incest मुझे प्यार करो,,,

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rohnny4545

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तृप्ति के गांव जाने के बाद अंकित और उसकी मां के लिए हर एक रात बेहद मधुर होती जा रही थी,,,हर एक रात को कुछ ना कुछ एक दूसरे को देखने दिखाने का मौका मिल रहा था और यह मौका उन दोनों के जीवन का सबसे अद्भुत पल होता जा रहा था,,, हर एक पल में मधुरता मादकता मदहोशी छाई हुई थी,,,अंकित अपनी मां को बाहों में लेकर उसके होठों पर चुंबन करके अपने मन की मनसा को दर्शा चुका था अगर उसकी मां उससे अलग ना हुई तो शायद दोनों मंजिल तक पहुंच जाते,,, एन मौके पर सुगंधा क्यों अपने पैर पीछे खींच ली यह सुगंधा को भी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि सुगंधा भी तो यही चाहती थी,,,, शायद यह मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते की वजह से हुआ था क्योंकिसुगंधा अपने बेटे के साथ एकाकार होना चाहती थी एक औरत के रूप में लेकिन जब कभी भी दोनों के बीच ऐसा कुछ होता है तबन जाने क्यों सुगंधा के अंदर से औरत अलग हो जाती है और वह एक मां के रूप में सामने होती है जिसकी वजह से वह अपने बेटे के साथ कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो जाती है।





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लेकिन एक चुंबन से वह समझ गई थी उसका बेटा भी वही चाहता है जैसा कि वह चाहती है। इसलिए वह बहुत खुश थी,,, और चुंबन करने की वजह भी वह खुद बताई थी इसलिए उसके बेटे को एक मौका मिल गया था इस तरह से चुंबन करने का जिसके चलते उसने रात में छत पर अपने बेटे को अपनी लंबी गांड के दर्शन कर रही थीऔर सुबह जब उठी तो उसके लंड को अपनी गांड के बीचों बीच महसूस करके वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,,, जिसके चलते वह कुछ देर तक उसी तरह से लेटी रह गई थी,,, और आज तो उसे कुर्ता पजामा पहनकर दौड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था वह अपने बेटे पर उसकी नजरों पर गौर कर रही थी वह उसके खूबसूरत बदन को ही निहार रहा था,,, पजामे में उसकी गांड और ज्यादा बड़ी लग रही थीजिसे अंकित प्यासी नजरों से देख रहा था और आगे एक बटन नीचे होने की वजह से उसके चूचियों के बीच की गहरी पतली लकीर एकदम साफ दिखाई दे रही थी जिसके बारे में उसका बेटा खुद पहनते समय जिक्र कर चुका था और इसमें कोई आपत्ति नहीं है यदि जता दिया था,,, और खुद चूचियों को प्यासी नजरों से देखकर मस्त हो रहा था,,, अपने बेटे की इस तरह की नजर से सुगंधा बार-बार मदहोश हो रही थी।







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जोगिंग करने के बाद मां बेटे दोनों घर पर पहुंच चुके थे,,,,,,, चाय नाश्ता और खाना बना लेने के बाद वह घर की सफाई में लग गई थी,,,,, कुछ देर तक अंकित अपने कमरे में ही आराम कर रहा थालेकिन बहुत देर से अपनी मां को ना देखने के बाद बहुत धीरे से अपने कमरे से बाहर निकाला और अपनी मां के कमरे में पहुंच गया तो देखा उसकी मां कमरे की सफाई कर रही थी यह देखकर वह बोला,,,।

यह क्या कर रही हो मम्मी,,,?

अरे बहुत दिन हो गए थे कमरे की सफाई नहीं की थी तो सोची चलो आज कमरे की सफाई ही कर लुंं।

चलो मैं भी तुम्हारा हाथ बंटा लेता हूं,,,(इतना कहकर वह भी सफाई काम में लग गया,,, सुगंधा उसे इस तरह से काम करते देखकर मन ही मन में मुस्कुरा रही थी लेकिन तभी उसके दिमाग में कुछ और चलने लगा उसे याद आया की अलमारी में उसने मां बेटे वाली कहानी वाली किताब रखी हुई है जो वह किसी भी तरह से अपने बेटे को दिखाना चाहती थी ताकि उसका बेटा हुआ कहानी को पड़े और उसके मन में मां बेटे के बीच के रिश्ते को लेकर कुछ-कुछ और ऐसा वह पहले भी कर चुकी थी लेकिन शायद सुगंधा को लगता था कि उसका बेटा उस किताब पर ध्यान नहीं दिया था,,, इसलिए आज मौका अच्छा थाआज वह किसी भी तरह से अपने बेटे को वह किताब दिखाना चाहती थी इसलिए वह बोली,,,)






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तू यह सब रहने दे तू अलमारी की सफाई करना उसमें बहुत सारी किताबें पड़ी है तो एक जगह पर रख दे वह सब रद्दी हो चुकी है कबाड़ी वाले को बेचने के काम आएगी,,,।

ठीक है मम्मी मैं अभी अलमारी साफ कर देता हूं,,,,(इतना कहकर अंकितअलमारी खोलकर अलमारी की सफाई करने लगा उसमें ढेर सारी किताबें रखी हुई थी जिन्हें देख-देख कर वह एक तरफ रख रहा था और जरूरी किताब को एक तरफ रख रहा था तिरछी नजर से सुगंधा अपने बेटे की तरफ देख रही थी वह देखना चाहती थी कि वह किताब उसके हाथ लगती है तब वह क्या करता है,,,, कुछ देर तक अंकित अलमारी की सफाई करता रहा लेकिन वह किताब उसे नहीं मिली थी तब उसे याद आया कि वह किताब तो उसने ड्रोवर के अंदर रखी थी,,, इसलिए वह तुरंत बोली,,,)

नीचे अगर सफाई हो गई हो तो ड्रोवर भी देख लेना,,, बहुत रद्दी किताबें पड़ी है,,, सब बेच दूं तो,,, कचरा कम हो जाए,,,।

मम्मी तुम सच कह रही हो तुम्हारी अलमारी में काम से ज्यादा तो बेकार की चीजे पड़ी है,,,,।(इतना कहते हुए वह अंदर से जूनी पुरानीतीन-चार ब्रा निकाला जो कि हर एक जगह से फटी हुई थी और उसे अपने हाथ में लेकर अपनी मां के सामने दिखने लगा उसे देखकर सुगंधा शर्म से पानी पानी हो गई और बोली,,,)

अरे यह क्या दिख रहा है मैं यह सब नहीं पहनती ये तो बहुत पुरानी है फटी हुई है,,,,।

इसलिए तो बता रहा हूं इसे पहनना भी नहीं,,,।

क्यों,,,?

अरे इतनी खूबसूरत औरत हो और फटी ब्रा पहनोगी तो कितना खराब लगेगा,,,,।

खूबसूरत,,,,(मुस्कुराते हुए सुगंधा बोली,,)






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तो क्या खूबसूरत है ही तो हो मेरा बस चलता तो रोज तुम्हें नए कपड़े पहनाता लेकिन क्या करूं अभी कमाता नहीं हूं नहीं इसलिए मजबूर हूं,,,,।

तो कमाना शुरू कर दे फिर रोज मेरे लिए नए कपड़े लेकर आना,,,।


मैं भी यही सोच रहा हूं अगर कमाता होता तो रोज तुम्हारे लिए गिफ्ट लेकर आता,,,,,,।


तेरे पापा भी मेरे लिए रोज कुछ ना कुछ लेकर ही आते थे,,,,(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को अनायास ही अपने पति की याद आ गई थी और अपनी मां की बात सुनकर अंकित बोला,,,)

तो क्या हुआ मम्मीमैं भी तुम्हारे लिए रोज गिफ्ट लेकर आऊंगा पापा नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूं ना,,,।
(अंकित अपनी मां को दिलासा देते हुए बोल रहा थालेकिन उसकी इस भावुकता में एक सारे एक आकर्षक और एक पति के द्वारा पूरी करने वाली शारीरिक जरूरत भी शामिल थी जिसे वह इशारे में अपनी मां को समझा रहा था और शायदशब्दों के द्वारा दिए गए थे सारे को उसकी मां अच्छी तरह से समझ रही थी वह जानती थी कि उसका बेटा उसे एक पति की तरह शारीरिक सुख भी जरूर देगा इसलिए मुस्कुराते हुए बोली,,,)





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मुझे पूरा यकीन है कि तु एकदीन तेरे पापा की ही तरह मेरी सारी जरूरतें पूरी करेगा,,,,(सुगंधा के द्वारा भी यह एक इशारा ही था,,,, और इस ईशारे को अंकित समझने की कोशिश कर रहा था और फिर से वह अलमारी की सफाई करना शुरू कर दिया,,,, देखते ही देखते वह अलमारी के ड्रोवर को खोल दियाऔर उसमें से बेकार की वस्तुओं को निकाल कर एक तरफ रखना लगा और तभी अंदर की तरफ जब हाथ डाला तो उसे वही किताब मिल गई और वह ड्रोवर में से उस किताब को बाहर निकाल कर,,,देखने लगा सुगंधा अपने बेटे की हरकत को तिरछी नजर से देख रही थी उसके हर एक हाव-भाव को देख रही थी,,, अंकित के हाथों में वह किताब आते ही उसके मुख्य पृष्ठ को देखकर अंकित के चेहरे का भाव बदलने लगा था उसे याद आ गया था कि इस किताब को वह पहले भी पढ़ चुका था औरअपनी मां के बारे में सोच रहा था किस तरह की किताब क्या हुआ सच में पढ़ती होगी अगर पढ़ती होगी तो उन्हें भी एक मां बेटे के बीच का रिश्ता इसी तरह से दिखाई देता होगा इस बात को सोचकर वह काफी खुश हुआ था,,, और इस समय भी उसके मन में यही सब चल रहा था वह धीरे से उसे किताब के पन्नों को पलटने लगा जिसमें कुछ रंगीन गंदे चित्र भी छुपे हुए थे और मां बेटे के बीच की कहानी भी थी,,,सुगंधा तिरछी नजर से अपने बेटे की हरकत पर बराबर नजर रखी हुई थी उसके चेहरे पर प्रश्न है क्या भाव नजर आ रहे थे जब उसने देखी कि उसके बेटे के हाथ में वही किताब लग गई है जिसे वह दिखाना चाहती थी लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि उसका बेटा उस किताब को पहले भी पढ़ चुका था,,,,।




Sugandha ka khwab

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मां बेटे दोनों के दिल की धड़कन तेज होने लगी थी अपनी मां से नजर बचाकर वह किताब के पन्नों को पलट कर उसमें लिखी गई कहानी के शब्दों को जल्दी-जल्दी पढ़ रहा था तभी उसकी आंखों के सामने कहानी का कुछ भाग लिखा हुआ नजर आया जिसे पढ़कर उसका लंड एकदम से टन्ना गया,,,,।

मम्मी की बड़ी-बड़ी गांड ट्यूब लाइट की दूरी और रोशनी में चमक रही थी मैंने कभी अपनी मां को पेशाब करते हुए नहीं देखा था,, लेकिन पहली बार जब अनजाने में ही मेरी नजरमां पर पड़ी तो मैं देखता ही रह गया पहली बार मां की नंगी गांड मेरे लिए किसी अजूबे से काम नहीं थी और वह भी मम्मी पेशाब कर रहे थे उनकी बड़ी-बड़ी गांड एकदम कसी हुई थी,,,, मां ने साड़ी कमर तक उठाकर पेशाब कर रही थी जिसकी वजह सेकमर के नीचे का पूरा भाग दिखाई दे रहा था उनके पेशाब की आवाज किसी मधुर ध्वनि की तरह मेरे कानों में पड़ रही थी जिसे सुनकर मैं पागल हुआ जा रहा था मैं दीवार के पीछे से यह सब नजर देख रहा था मां को इस बात का अहसास तक नहीं था कि मैं उन्हें इस हालत में देख रहा हूं,,,,मेरी टांगों के बीच अजीब सी हलचल हो रही थी जिसे महसूस करके बदन में मस्ती से चढ रही थी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं।





Sugandha ki kalpna

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इतना पढ़कर तोअंकित की हालत एकदम से खराब होने लगी उसका दिल जोरो से धड़कने लगा हालांकि वह अपनी मां को बहुत बार पेशाब करते हुए देख चुका था लेकिन कहानी में पहली बार इस तरह का वर्णन पढ रहा था जिसे पढ़कर उसके बाद में सुरसुरी से दौड़ने लगी थी,,, पल भर में उसके मन में ढेर सारे सवालढेर सारे विचार जन्म लेने लगे वह अपने मन में सोचने लगा कि अगर उसकी मां इस तरह की किताब अपनी अलमारी में रखी है तो इस तरह की कहानी भी पढ़ती होगी उसे मां बेटे के बीच के रिश्ते के बारे में अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि एक कमरे के अंदर मां बेटे अगर अकेले रह रहे हो तो उन दोनों के बीच क्या होना संभव है यही सोचकर उसकी हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह उसकी किताब के बारे में अपनी मां से जिक्र करना चाहता था लेकिन इसके लिए उसे काफी हिम्मत जुटाना थाऔर तिरछी नजर से काम करते समय सुगंधा अपने बेटे को देख रही थी उसकी हरकत को देख रही थी,,,, सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि किताब में लिखी हुई कहानी उसके बेटे कोपसंद आ रही थी जिसमें वह रुचि ले रहा था तभी तो वह सब कुछ भूल चुका था तभी उसका ध्यान भंग करने के लिए उसकी मां बोली,,,)

क्या हुआ जल्दी-जल्दी कर जल्दी से काम खत्म करना है अभी मैं नहाई भी नहीं हूं कपड़े भी धोना है,,,।






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हां मम्मी कर रहा हूं लेकिन यह तुम्हारी अलमारी में मुझे क्या मिला है,,,?

क्या मिला है,,,?(सुगंधा अनजान बनते हुए बोली)

कोई किताब है लेकिन यह कोई स्कूल की किताब नहीं है,,,,।

क्या ऐसी कौन सी किताब आ गई कोई मैगजीन होगी सरस सलिल जैसी,,,।

नहीं मम्मी ऐसी तो कोई भी मैगजीन नहीं है,,,,।


ला अच्छा मुझे दिखा तो ऐसी कौन सी किताब मेरे अलमारी में आ गई जिसके बारे में मुझे पता नहीं है,,,।

लो तुम ही देख लो,,,, मैं तो इसके पन्ने पलट कर देखा बहुत गंदी कहानी है,,,(अपनी मम्मी की तरफ घूम कर उसे वह गंदी किताब उसके हाथ में थमाते हुए वह बोला,,,सुगंधा भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर उस गंदी किताब को अपने हाथ में ले ली और उसके मुख्य पृष्ठ को देखकर एकदम से जानबूझकर शर्मिंदगी का नाटक करते हुए बोली,,,)

हाय दैया यह तुझे कहां मिल गई रे,,,,।





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तुम्हारी अलमारी में और कहां बहुत गंदी किताब है,,,।

यह तो मैं भी जानती हूं कि बहुत गंदी किताब है,,,।

तो क्या तुमने ईसको पढ़ी हो,,,


मेरी अलमारी में है तो पढी ही होंऊंगी,,,, लेकिन तूने क्या पढ़ लिया जो एकदम हैरान हो गया है,,,,(किताब के पन्नों को पलटते हुए और वो भी अपने बेटे के सामने वह बोली,,,)

क्या बताऊं मम्मी मुझे तो बताते भी शर्म आ रही है क्या ऐसी भी किताबें होती हैं मैं तो पहली बार देख रहा हूं,,,।

मैं भी पहली बार देखी थी तब मैं भी तेरी तरह हिरण हो गई थी मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था कि इस तरह की भी किताबें होती है और इस तरह की कहानी भी होती है जब पहली बार तेरे पापा लेकर आए थे,,,।

पापा लेकर आए थे,,,,(अंकित हैरान होता हुआ बोला क्योंकि वह किताब नहीं लग रही थी)

हां तेरे पापा लेकर आए थे लेकिन खरीद कर नहीं लाए थे यह किताब के साथ दो-तीन किताबें और थी जो कि तेरे पापा के दोस्त ने उन्हें पढ़ने के लिए दिया था,,,, और तब से यह किताब घर पर ही पड़ी थी लेकिन बस एक ही बची है,,,।

तो क्या पापा इस तरह की कहानी पढ़ते थे,,,,।

नहीं उन्हें लगा कि कोई नोवल होगा कोई जासूसीलेकिन जब पढ़ने लगे तो वो भी हैरान हो गए मैं भी उनके साथ ही बैठी थी तो मेरी नजर भी पड़ गई और मैं भी हैरान हो गई,,,, वैसे तु क्या पढ़ लिया जो तेरी हालत खराब हो गई,,,,।





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नहीं जाने दो मुझसे तो बताया भी नहीं जाएगा,,,, इस तरह की कहानी तो मैं पहली बार पढ़ रहा हूं,,,

लेकिन बता तो सही ,,,,।


अरे कैसे बताऊं मुझे तो शर्म आती है,,,,।

इसमें शरम कैसी जो पड़ा है बता दे वैसे तो सबकुछ सामने ही है,,,, और तु कोई चोरी छुपे तो पढ़ा नहीं,,, वैसे तो पूरी किताब ही गजब की है लेकिन तू कौन सी लाइन पढ़ लिया जो तेरी हालत खराब हो गई बात भी दे,,,,,(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे को उकसा रही थी बताने के लिएऔर अंकित भी समझ रहा था कि उसकी मां क्या सुनना चाह रही है इसलिए वह अपने मन में सोचा कि जब उसे कोई एतराज नहीं है तो भला हुआ क्यों शर्मा की चादर ओढ़ कर इतने अच्छे मौके को अपने हाथ से गंवा दे,,,,। इसलिए वह हीम्मत करके अपनी मां से बोला,,,)

जो पढ़ा वह तो मेरे दिमाग को एकदम सन्न कर दिया,,,,,।

पढ़ा क्या यह तो बता,,,,,(सुगंधा लालायित हुए जा रही थी अपने बेटे के मुंह से उस गंदी किताब के शब्द को सुनने के लिए,,,,,, अपनी मां की उत्सुकता देखकर अंकित के मन में भी प्रसन्नता हो रही थी इसलिए वह हिम्मत दिखा कर बोला ,,,)






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लाओ में पढ़कर ही बता दु ऐसे तो मुझसे बताया नहीं जाएगा,,,(अंकित अपनी मां की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला सुगंधा भी मौके की नजाकत को समझते हुए तुरंत अपने हाथ मिली हुई किताब को आगे बढ़कर अपने बेटे को थमा दी और अंकित उस किताब को लेकर उसके पन्ने पलटने लगा और जो शब्द उसने पढे थे वह बोलने लगा,,,,)

मम्मी की बड़ी-बड़ी गांड ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में चमक रही थी मैंने कभी अपनी मां को पेशाब करते हुए नहीं देखा था,, लेकिन पहली बार जब अनजाने में ही मेरी नजरमां पर पड़ी तो मैं देखता ही रह गया पहली बार मां की नंगी गांड मेरे लिए किसी अजूबे से काम नहीं थी और वह भी मम्मी पेशाब कर रहे थे उनकी बड़ी-बड़ी गांड एकदम कसी हुई थी,,,, मां ने साड़ी कमर तक उठाकर पेशाब कर रही थी जिसकी वजह सेकमर के नीचे का पूरा भाग दिखाई दे रहा था उनके पेशाब की आवाज किसी मधुर ध्वनि की तरह मेरे कानों में पड़ रही थी जिसे सुनकर मैं पागल हुआ जा रहा था मैं दीवार के पीछे से यह सब नजर देख रहा था मां को इस बात का अहसास तक नहीं था कि मैं उन्हें इस हालत में देख रहा हूं,,,,मेरी टांगों के बीच अजीब सी हलचल हो रही थी जिसे महसूस करके बदन में मस्ती सी चढ रही थी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। मम्मी की बुर से लगातार पेशाब की धार फूट रही थी उसमें से मधुर संगीत नहीं कर रही थी और उसे मधुर संगीत ने मेरे लंड को खड़ा करने में बिल्कुल भी समय नहीं लियामैं अपनी मां की नंगी गांड को देख रहा था वह पेशाब कर रही थी और मेरा हाथ अपने आप पेंट के ऊपर से मेरे लंड को दबा रहा था,,,,।



सुगंधाकी तड़प

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(अंकित इस कहानी को पढ़ते समय अपनी मां की तरफ तिरछी नजर से देख ले रहा था जैसे वह उसके हवाओं को देख रही थी वैसे ही अंकित भी अपनी मां के चेहरे के हाव भाव को देखने की कोशिश कर रहा था,,,, अंकित के मुंह से निकले एक-एक शब्द मदहोशी से भरे हुए थे जो उसकी मां के कानों में घुलकर उसे मस्त कर रहे थे।यह देखकर अंकित को भी आनंद आ रहा था और वह बड़ी दिलचस्पी दिखाकर कहानी को आगे पढ़ रहा था,,,,।)

मम्मी निश्चिंत होकर पेशाब कर रही थी,,,,और उसे देखना और वह इस हालत में शायद संभावना होता अगर 2 दिन पहले ही बाथरूम का दरवाजा टूट कर अलग ना हो गया होता उसकी रिपेयरिंग करना बाकी था और उसेबाथरूम से निकाल कर दूसरी तरफ दिए थे इसलिए बाथरूम पूरी तरह से बेपर्दा हो चुका था और इसीलिए मुझे यह खूबसूरत नजारा देखने का मौका मिला,,,,मुझे पहली बार एहसास हुआ की मम्मी कितनी खूबसूरत है उसकी गांड कितनी खूबसूरत है उसका गोरा रंग उसे और भी कितना ज्यादा सेक्सी बनाता है,,,,,मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मम्मी कितना पेशाब करती है बड़ी देर से उसकी बुर से पेशाब की धार फुटते जा रही थी,,, मन तो कर रहा था कि मैं भी बाथरुम में घुस जाऊं और पीछे से मम्मी की बुर में लंड डाल दु और उनकी चुदाई कर दुं,,, लेकिन डर इस बात का था कि कहीं मम्मी शोर ना मचा दे,,,, किसी को पता चल गया तो क्या होगा लेकिन इतना तो मुझे मालूम था कि मम्मी को भी इसी चीज की जरूरत है क्योंकि बरसों से उन्होंने अपनी जवानी को संभाल कर रखी थी,,,, मैं 10 साल का था तभी पापा गुजर गए थे तब से मम्मी अकेले ही थी,,,, घर में बस में मम्मी और मेरी दो बड़ी बहनें,,, मम्मी की गदराई जवानी देखकर मुझे मालूम था उन्हें मोटे तगड़े लंबे लंड की जरूरत थी,,,,,(जब यह लाइन अंकित ने पढा तो तिरछी नजर से अपनी मां की तरफ देखने लगा अंकित को एहसास हुआ कि उसकी मां उसकी पेंट की तरफ देख रही थी और जब उसने गौर किया तो वाकई में उसके पेट में तंबू सा बन गया था लेकिन अंकित अपने पेट में बने तंबू को छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था और आगे की लाइन पढ़ने लगा,,,)




अप से ही मजा लेती हुई सुगंधा

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मेरा लंड पेंट से बाहर आने के लिए तड़प रहा था और मम्मी की बुर में जाने के लिए मचल रहा था मम्मी की तरफ से बस इशारा आना बाकी थाअगर इसी समय ऐसा हो जाता तो मैं मम्मी को बाथरूम में हीं जमकर चुदाई कर देता,,,इतना तुम्हें जानता था कि अगर मम्मी मौका देती तो मैं मम्मी की जवानी कर रहा था अपने लंड से मुझे छोड़ देता उन्हें पूरी तरह से संतुष्ट करने का दम मेरे में बहुत था बस मम्मी के इसारे की देरी थी,,,,,।


बस बस रहने दे बाप रे इतनी गंदी कहानी मैं तो कभी सोची भी नहीं थी,,,,(बीच में ही अंकित को रोकते हुए सुगंधा बोली तो अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए अाशचर्य से बोला,,,)


लेकिन तुमने तो पढ़ी हो ना,,,।

अरे पूरी किताब थोड़ी पढी हूं तेरी ही तरह एक दो पन्ने ही पढ़ी हूं,,,,,,।


सच में बहुत गंदी किताब है ना मम्मी मेरी तो हालत खराब हो गई,,,,।

ला ईस किताब को मुझे दे,,,, इसे तो रद्दी में बेचने में भीबदनामी हो जाएगी किसी को पता चल गया कि जिस घर से यह किताब बेची गई है तो गजब हो जाएगा,,,।

सही कह रही हो मम्मी,,,(इतना कहते हुए अंकित उसे किताब को अपनी मां की तरफ बढ़ा दिया और उसकी मां उसे किताब को अपने हाथ में लेकर बिस्तर के नीचे रख दी,,,, और अंकित की तरफ देखते हुए बोली,,,,,)

जल्दी से अब सफाई कर इस किताब ने तो मेरे पसीने छुड़ा दिए,,,,।

सच कह रही हो मेरी भी हालत खराब कर दिया इस किताब ने,,,,(ऐसा कहते हुए वह फिर से आलमारी साफ करने लगा,,,, लेकिन इस कहानी को पढ़ने के बाद मां बेटे दोनों के मन में उथल-पुथल चल रही थी अब उन दोनों के पास बात करने के लिए इस कहानी को लेकर बहुत सारे मुद्दे थे,,,, और अंकित भी अपनी मां से इस तरह की बातों की शुरुआत करना चाहता था इस कहानी को लेकर बहुत सारी बातें सवाल उसके मन में चल रहे थे।)



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rajeev13

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Dhanywad rajeev bhai I'd recover ho gayi

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चलो देर आए दुरुस्त आए, लेकिन मैं अब भी यही कहूंगा की अगर इस मंच के बाहर हम संपर्क में रहे तो आप बहुत सी समस्याओं से बच सकते हो जैसे बाकी मित्र dirty_thoughts vyabhichari xoxo0781 ajay bhai moms_bachha मेरे संपर्क में है बाकी आपकी मर्जी, ये मेरी अंतिम पोस्ट है इस बारे में... मैंने आपको मोबाइल और फोरम की ओर से कुछ धन देने की भी कोशिश की मगर आपने कोई सीधा जवाब नहीं दिया, इसलिए आगे से ये बिलकुल मत कहिएगा की हमें इतना समय देकर यहां से कुछ नहीं मिलता, क्योंकि आपने खुद इस पेशकश को ठुकराया है!
 
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Blackserpant

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अंकित और सुगंधा दोनों बहुत खुश थे,,, दोनों को आपस में बात करने का काफी समय मिल जा रहा था और तृप्ति के न होने की वजह से किसी भी प्रकार का डर भी नहीं था,, दोनों को इस बात की खुशी थी की तृप्ति की गैरमौजूदगी में दोनों के बीच आगे बढ़ने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी जिसे दोनों मौका मिलने पर भरपूर फायदा उठा लेना चाहते थे वैसे तो दोनों के बीच काफी बातें होने लगी थी,,, और सुगंधा इस बात से कुछ ज्यादा ही खुश थी की,,, कि आज बात ही बात में उसके बेटे ने उसके भरावदार नितंबों की तारीफ की थी। वैसे तो एक मां के लिए अपने बेटे के मुंह से उसके नितंबों के बारे में भले ही वह उसकी तारीफ में दो-चार शब्द ही क्यों ना हो यह पल एक मां के लिए शर्मसार कर देने वाला होता है लेकिन यहां पर हालात पूरी तरह से बदल चुके थे,, यहां पर सुगंधा खुद अपने बेटे के मुंह से इस तरह के शब्दों को इस तरह की बातों को सुनने के लिए तड़प रही थी इसलिए तो अपने बेटे के मुंह से अपनी गांड की तारीफ सुनकर वह गदगद हो गई थी और इस बात का भी एहसास उसे हो गया था कि उसके बेटे की नजर कितनी तेज है एक औरत के मामले में।
Ankit or uski ma

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सुगंधा को यकीन नहीं हो रहा था कि आज वह अपने बेटे के साथ जॉगिंग पर गई थी,,, जॉगिंग पर जाने का अनुभव उसका बेहद रोमांचकारी रहा था,,, आते जाते सड़कों पर वह बहुत से मर्दों को अपनी खूबसूरत अंगों पर घूमती हुई महसूस की थी वैसे तो घर में वह अपने बेटे को अपने अंगों का अच्छी तरह से प्रदर्शन करके उसे सब कुछ दिखा चुकी थी लेकिन खुली सड़क पर अपने बेटे की नजरों को अपनी खूबसूरत अंगों के उभार पर घूमता हुआ महसूस करके वह उत्तेजना से गनगना गई थी। सही मायने में सुगंधा आज पहली बार खूबसूरत सुबह का एहसास की थी,,, आज पहली बार उसे पता चल रहा था कि सुबह की खूबसूरती क्या होती है सुबह की सोच क्या होती है,,यह अहसास पुरी तरह से बेहद अद्भुत रहा था,, सुगंधा के लिए भी और उसके बेटे के लिए भी,,, जॉगिंग करके घर लौटने के बाद सुगंधा बाकी के दिनचर्या में लग गई थी,,, लेकिन अब वह पूरी तरह से अपना मन बना ली थी कि चाहे जो हो जाए अपनी बेटी की गहराई में अपने बेटे के साथ संबंध बनाकर ही रहेगी क्योंकि आज जॉगिंग के दरमियान जो कुछ भी हुआ था वह उसे पूरी तरह से मदहोश कर गया था।




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अंकित भी अपने बदन की गर्मी बाथरूम में जाते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपने हाथ से ही काम चला कर बाहर निकाल दिया था वैसे उसके पास अब संभोग का अनुभव था जो कि उसकी नानी ने उसे बराबर का दिया था। अपनी नानी के साथ के अनुभव के जोर पर वह पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरा हुआ था कि अगर उसे मौका मिला तो वह अपनी मां को पूरी तरह से खुश कर देगा, जिसमें वह भी पूरी तरह से लगा हुआ था जॉगिंग के दरमियान बात ही बात में वह जॉगिंग करती दूसरी औरतों की बड़ी-बड़ी गांड की तुलना अपनी मां की गांड से कर दिया था और बातों ही बातों में तारीफ भी कर दिया था कि उसकी मां की गांड कितनी कसी हुई और आकर्षक है जिसे सुनकर सुगंधा उत्तेजना से गदगद हो गई थी। यह सब मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी थी जिस पर दोनों बराबर कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे थे,। मां बेटे दोनों नहा कर तैयार हो चुके थे स्कूल तो जाना नहीं था गर्मियों की छुट्टी जो पड़ी थी इसलिए दोनों के पास समय ही समय था।
Ankit apni ma k sath

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सुगंधा नाश्ता तैयार कर रही थी वह अपने बेटे के लिए पराठा बना रही थी और वह भी घी का सुगंध को एहसास होने लगा था कि उसके बेटे को अब शारीरिक ताकत की कितनी ज्यादा जरूरत थी वैसे तो वह अपनी बेटी पर पूरा विश्वास करती थी कि उसे यह सब ना दिया जाए तो भी उसकी शारीरिक क्षमता पूरी तरह से मर्द की है। शारीरिक क्षमता में वह किसी से भी काम नहीं था लेकिन फिर भी वह दुलार के तौर पर घी के पराठे बना रही थी,,, जो कि उसकी खुशबू अंकित को अपने कमरे तक आ रही थी और वह अपने आप को रोक नहीं पाया और सीधे रसोई घर के दरवाजे पर पहुंच गया दरवाजे पर ही खड़ा होकर वह अपनी मां की तरफ देखने लगा नहाने के बाद उसकी खूबसूरती में इजाफा दिखाई दे रहा था और उसके नितंबों का आकार कसी हुई साड़ी में कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था जिसे देखकर अंकित मन ही मन प्रसन्न और उत्तेजित हो रहा था,,, दरवाजे पर खड़े-खड़े ही वह अपनी मां से बोला।

मम्मी आज ऐसा क्या बन रहा है कि जिसकी खुशबू पूरे घर में फैली हुई है।




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तेरे लिए घी के पराठे बना रही हूं,,, सुबह-सुबह नाश्ते के साथ खाएगा तो तेरी ताकत और ज्यादा बढ़ जाएगी।
(अंकित अपनी मां की बात के कहने का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था और उसकी बात सुनकर वह अपने मन में ही बोला कि अभी भी उसमें बहुत दम है अगर मौका दो तो इसी समय दिखा दुं,,, यह तो उसके मन का ख्याल था कि उसके जुबा तक नहीं आ पा रहा था लेकिन फिर भी वह अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी मां उसे घी के पराठे क्यों खिलाना चाहती है इसलिए वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था फिर भी वह अंजान बनता हुआ बोला,,,)

घी के पराठे इससे पहले तो तुम कभी नहीं बनाई।


Ankit or uski ma

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अरे अब तू बड़ा हो गया है तुझे विटामिन प्रोटीन की ज्यादा जरूरत है अगर यह सब नहीं खाएगा तो काम कैसे चलेगा,,,,(ऐसा कहते हुए वहां तवे पर रखे हुए पराठे को चिमटी से पकड़कर ऊपर नीचे घूमा रही थी लेकिन इस दौरान वह जानबूझकर अपने नितंबों को कुछ ज्यादा ही मटका रही थी,, ऐसा हुआ जानबूझकर कर रही थी अपने बेटे का ध्यान अपने नितंबों की तरफ आकर्षित करना चाहती थी और ऐसा हो भी रहा था अंकित की नजरे उसकी मां की भारी भरकम गोल-गोल गांड पर टिकी हुई थी जो कि इस समय उसमें एक अजीब सा उन्माद था एक थीरकन थी,,, जिसकी लय के साथ अंकित थीरकना चाहता था,,, अपनी मां के पिछवाड़े पर अपनी मर्दाना अंग को सटाकर अपनी कमर को आगे पीछे करना चाहता था,,,, लेकिन इसमें अभी शायद वक्त था लेकिन कितना वक्त था यह वह खुद नहीं जानता था। अपनी मां की बात सुनकर वह बोला,,,)

तुम्हें ऐसा क्यों लगने लगा कि अब मुझे प्रोटीन विटामिन की ज्यादा जरूरत है मैं कल भी ऐसा ही था और आज भी वैसे ही हूं तो ऐसा बदलाव क्युं,,,?






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यह तो नहीं समझेगा अब तो बड़ा हो रहा है अगर एक मां की नजर से देखेगा तो तुझे सब कुछ समझ में आ जाएगा तेरे अंदर आ रही बदलाव को एक माही अच्छी तरह से समझ सकती है तु अब कितना जिम्मेदार हो चुका है,,,।
(सुगंधा इस तरह की बातें एकदम मुस्कुरा कर कर रही थी अगर इस तरह की बातें सुगंध और अंकित के बीच औपचारिक रूप से हुआ होता तो शायद अंकित को अपनी मां के इन शब्दों में एक दुलार नजर आता लेकिन जो कुछ भी दोनों के बीच हो रहा था उसे देखकर अपनी मां की कही गई बातों के एक शब्द में मदहोशी और वासना नजर आ रही थी,,, अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसके अंदर किस तरह के बदलाव आ रहे हैं यही बदलाव उसकी मां को भा रहे थे और अपनी मां की बात सुनकर अंकित मन में मन खुश भी हो रहा था उसे रहने की और वह एकदम से रसोई घर में दाखिल हुआ और पीछे से अपनी मां को अपनी बाहों में जागते हुए एक बेटापन दिखाते हुए दुलार में बोला,,,)





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ओहहह मम्मी तुम कितनी अच्छी हो मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,,(ऐसा कहते हुए वह अपनी मां को पूरी तरह से बाहों में भर लिया था और अपने होठों को अपनी मां के गर्दन पर रख दिया था यह अंकित की तरफ से उसकी मां के लिए एक अद्भुत तोहफा था जिसके बारे में सुगंधा ने इस समय तो सोची भी नहीं थी इसलिए अपने बेटे के व्यवहार से वह पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद हो गई थी पहले तो उसे ऐसा ही लगा कि उसका बेटा भावनाओं में भाकर दुलार की वजह से ऐसा कर रहा है लेकिन जैसे ही उसे अपने नितंबों के बीचों बीच अपने बेटे का लंड चुभता हुआ महसूस हुआ वह एकदम से मदहोशी के सागर में डूबने लगी,,, सुगंधा को अच्छी तरह से अपनी गांड के बीचों बीच अपने बेटे का खड़ा लंड महसूस हो रहा था। यह पल सुगंधा के लिए बेहद अद्भुत और मदहोशी भरा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,, इस पल में वह पूरी तरह से खो चुकी थी अपने बेटे की गर्म सांसों को अपनी गर्दन और गाल पर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी जिसे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ती जा रही थी उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से मदन रस रीसता हुआ महसूस हो रहा था,,, यह पल वाकई में सुगंधा के लिए बेहद अद्भुत था।






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अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर अपने लंड को महसूस करके भले ही वह साड़ी के ऊपर से था लेकिन फिर भी साड़ी के ऊपर से भी उसे अपनी मां की गांड की गर्मी एकदम साफ महसूस हो रही थी जिसे महसूस करके वह उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका लंड उसकी मां की साड़ी सहित उसकी गुलाबी छेद में घुस जाएगा,,, सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह इस पल को इसी तरह से आगे बढ़ने देना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या करता है क्योंकि वह भी पूरी तरह से उत्तेजना से ग्रस्त हो चुकी थी अगर कुछ सीमाएं कुछ बंधन ना होते तो शायद वह इस समय अपनी साड़ी को कमर तक उठा देती और अपने बेटे के आगे अपनी गांड को परोस देती कि ले डाल दे अपने लंड को,,, लेकिन कुछ मर्यादाएं थी जो भी पूरी तरह से धराशाई नहीं हुई थी और यही उसे रोक रही थी लेकिन फिर भी वह अपने बेटे को रोक नहीं पा रही थी किसी तीसरे के देखे जाने की अाशंका बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि तृप्ति गांव गई थी और इस समय घर में उसके और उसके बेटे के सिवा कोई नहीं था।





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अंकित भी पूरी तरह से मदहोश चुका था उसे भी इतना तो समझ में आ गया था कि उसकी मां क्या चाहती है अगर वह थोड़ी और हिम्मत दिखा कर अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा देता तो शायद एक अद्भुत सुख को वह इसी समय प्राप्त कर लेता लेकिन फिर भी अपनी नानी की चुदाई करने के बावजूद भी एक अद्भुत एहसास और अनुभव प्राप्त करने के बावजूद भी हुआ इस समय अपनी मां के सामने हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था इसलिए वह ऐसा कुछ करने की सिर्फ सोच सकता था उसे अंजाम देने से डर रहा था लेकिन फिर भी इतने से ही वह पूरी तरह से मत हो चुका था। यह प्रक्रिया थोड़ी देर और आगे बढ़ती तो शायद अंकित के साथ-साथ उसकी मां की बुर से भी पानी फेंक देता लेकिन तभी तवे पर रखा हुआ पराठा उसमें से धुआं उठने लगा था वह चलने लगा था जिस पर सुगंधा का ध्यान पडते ही वह एकदम से होश में आई थी,,, और वह एकदम से चौंकते हुए बोली।

बाप रे यह तो जल रहा है,,,।(सुगंधा का इतना कहना था कि मौके की नजाकत को समझते हुए ना चाहते हुए भी अंकित को अपनी मां की खूबसूरत बदन से अलग होना पड़ा उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बना हुआ था उसे भी एहसास हो गया था कि इस समय अलग होना ही उचित है वरना तवे पर रखा हुआ पराठा पूरी तरह से चल जाएगा लेकिन वह जैसे ही अपनी मां से अलग हुआ तो उसकी नजर अपनी मां की बड़ी बडी भारी भरकम कसी हुई गांड पर गई,,, जिसके बीचो-बीच उसकी साड़ी अंदर घुसी हुई थी जो कि उसके लंड की वजह से ही ऐसा हुआ था,,, उस धसी हुई साड़ी को देखकर अंकित को एहसास हुआ कि उसके लंड में कितना ताकत है और वह मन ही मन खुश होने लगा लेकिन फिर भी पराठे की दशा को देखकर वह बोला,,,)

ओहहह यह तो जल गई यह सब मेरी वजह से हुआ,,,, मैं ही भावनाओं में बह गया था,,,।

चल ऐसा कुछ भी नहीं है तू बहुत अच्छा लड़का है और एक अच्छा बेटा है मैं दूसरा बना देती हुं,,,,।
(इतना सुनते ही अंकित एक बार फिर से एकदम प्रसन्न हो गया और इस बार वह अपनी मां के कल पर चुंबन कर लिया और बोला)
ओ मम्मी तुम सच में कितनी अच्छी हो,,,,(और इतना कहने के साथ ही बार रसोई घर से बाहर निकल गया लेकिन अपने बेटे के व्यवहार से वह पूरी तरह से स्तब्ध थी और मन ही मन खुश भी हो रही थी कि उसके बेटे की हिम्मत अब बढ़ने लगी थी,,,, अंकित के रसोई घर से बाहर निकलते निकलते सुगंधा की नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू पर पड़ चुकी थी और उसे तंबू को देखकर वह शर्म से पानी पानी होने लगी थी,,, अपने बेटे की हरकत से उत्तेजित होते हुए वह अपने हाथ को पीछे की तरफ ले गई और साड़ी को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी जो की उसकी गांड के बीचों बीच दासी हुई थी उसे बाहर खींच ली और अपनी साड़ी को व्यवस्थित कर ली और अपने मन में सोचने लगी की काश यह साड़ी ना होती तो उसके बेटे का लंड उसकी बुर में घुसा हुआ होता।

जो कुछ भी हो रहा था उसमें दोनों को मजा आ रहा था मां बेटे पूरी तरह से इन पलों का भरपूर मजा लूट रहे थे,,, सुगंधा अपने मन में कभी-कभी सोचती थी कि जिस तरह से उसके ख्यालात उसका नजरिया अपने बेटे को लेकर बदला था उसे दिन से लेकर आज दिन तक के बीच का सफर कुछ ज्यादा ही हो चुका था सुगंधा को लग रहा था कि वाकई में बहुत ज्यादा देर हो चुकी है इतनी देर में अगर किसी और के साथ होती तो अब तक दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गया होता लेकिन इन सबके बावजूद भी वह अपने मन को तसल्ली इस बात से दे रही थी कि अच्छा ही हुआ कि अभी तक दोनों की भी सारी संबंध स्थापित नहीं हुआ है क्योंकि जो कुछ भी प्रदर्शन और छेड़छाड़ चल रहा था इनमें काफी मजा आ रहा था यह पल बेहद आनंददायक थे और बेहद उत्तेजित कर देने वाले थे और शायद अगर दोनों के बीच सारी संबंध स्थापित हो गया होता तो इन सब फलों का उतना मजा नहीं आता जितना कि अब आ रहा है,,,, मां बेटे तृप्ति के जाने के बाद काफी खुला खुला सा महसूस करने लगे थे,,, और यह खुलापन दोनों के लिए काफी अासास्पद और मंजिल के करीब ले जाने वाला था,,,।

जैसे तैसे करके दिन गुजर चुका था रात का खाना खाकर कुछ देर तक मां बेटे दोनों टीवी देख रहे थे,,, अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि कोई रोमांटिक मूवी चल रही होती तो कितना मजा आता दोनों साथ-साथ देखते तो शायद दोनों के बीच कुछ होने की संभावना होती लेकिन टीवी पर भी साधारण सी मूवी चल रही थी इसलिए थोड़ी ही देर में सुगंधा को नींद आने लगी और वह सीधा अपने कमरे में जाकर सो गई आज पेशाब करने के लिए ना तो बाथरूम में गई और ना ही घर के पीछे गई और वैसे भी अंकित को इस बात का इंतजार था कि उसकी मां घर के पीछे का पेशाब करने जाएं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ इसलिए वह निराश होकर थोड़ी देर बैठे रहने के बाद अपने कमरे में जाकर सो गया,,,,। सुबह उसकी नींद तब खुली जब दरवाजे पर दस्तक हो रही थी सुबह के 5:00 रहे थे और उसकी मां जॉगिंग पर जाने के लिए उसे जग रही थी जल्दी से अंकित उठकर बिस्तर पर बैठ गया और कमरे से बाहर आकर हाथ में धोकर तैयार हो गया,,, उसे भी अच्छा लगता था अपनी मां के साथ जॉगिंग पर जाना,,, और सबसे अच्छा यह था कि वह अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख पाता था जब वह दौड़ती थी तो उसकी भारी भरकम गांड की थिरकन मदहोश कर देती थी,,, साड़ी में दौड़ने में थोड़ी तो तकलीफ होती थी लेकिन फिर भी सुगंधा को अपने बेटे के साथ दौड़ना अच्छा लगता था वह अपने बेटे पर एकदम भारी की नजर रखती थी वह देखी थी कि उसका बेटा क्या देख रहा है और उसे यह जानकर बेहद खुशी होती थी कि उसके बेटे की नजर हर पल उसके बदन पर ही टिकी हुई थी खास करके उसके नितंबों के घेराव पर और वैसे भी घर से निकलने से पहले वह अपनी साड़ी को और ज्यादा कसके अपनी कमर पर बांध दी थी ताकि नितंबों का उभार और आकर्षक लगे,,,,

आज भी मां बेटे वही तक गए थे जहां कल तक गए थे और सुगंधा को ही स्पीच अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के साथ-साथ दूसरे मर्दों की नजर भी उसके ऊपर बनी हुई थी खास करके उसकी चूची और उसकी बड़ी-बड़ी गांड की तरफ यह सब सुगंधा को बेहद प्रभावित कर रहा था उसे एहसास हो रहा था कि वाकई में अभी भी वह पूरी तरह से जवानी से भरी हुई है,,,, जोगिंग करने के बाद मां बेटे घर पहुंचे तो उसकी मां गहरी सांस लेते हुए बोली,,,,,।

सच में जिसे तू कहता है पजामा कुर्ता लेना पड़ेगा साड़ी में ठीक तरह से दौड़ा नहीं जाता और डर लगता है कि कहीं पैर लड़खड़ा ना जाए,,,,।

बात तो सही है,,,(सुगंधा के गहरी सांस लेने की वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी जिस पर अंकित की नजर बनी हुई थी और इस बात का एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से था और वह अपने बेटे की नजर से मस्त हो रही थी,,,, अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) मैं तुमसे कह तो रहा हूं,,, साड़ी में ठीक तरह से दौड़ नहीं पाऊंगी ऐसा करते हैं आज शाम को ही चलकर तुम्हारे लिए पजामा और कुर्ता खरीद लेते हैं तब जोगिंग करने में बहुत अच्छा रहेगा,,,,।

सही है,,,, मुझे भी अच्छा लगेगा पजामा कुर्ता पहनने में,,,,,।

इसके बाद सुगंधा दिनचर्या में लग गई,,,,।


दोपहर के 4:00 बज रहे थे,,, अंकित अपने कमरे में आराम कर रहा था और तभी उसकी मां उसके कमरे के पास आई और बोली,,,,।

मैं मोहल्ले में अपनी पड़ोसन है उनके वहां जा रही हुं,,,।

लेकिन हमको तो मार्केट जाना है तुम्हारा कुर्ता और पैजामा खरीदने के लिए,,,।

हां जानती हूं घंटाघर में आ जाऊंगी,,,।

ठीक है जल्दी आना,,,,।

जल्दीआ जाऊंगी,,,(इतना कहकर सुगंधा घर से बाहर निकल गई गर्मी का महीना था इसलिए बिस्तर पर वापस लेटने का मन अंकित का बिल्कुल भी नहीं हुआ और वह बिस्तर पर से उठकर खड़ा हो गया गर्मी कुछ ज्यादा थी इसलिए वह दरवाजे की कड़ी बंद करके बाथरूम में घुस गया और अपने सारे कपड़े उतार कर नहाने लगा गर्मी में ठंडा पानी बदन को राहत प्रदान कर रहा था अभी वह नहा ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक होने लगी उसे लगा कि शायद उसकी मां वापस आ गई है लेकिन तभी बाहर जो आवाज सुनाई दे उसे सुनकर उसकी आंखों की चमक बढ़ गई,,,)

अरे सुगंधा दरवाजा तो खोल सो गई है क्या,,,,(सुमन की मम्मी दरवाजे पर दस्तक दे रही थी और दरवाजे पर सुमन की मां के होने का एहसास अंकित की आंखों की चमक बढा रहा था।)
Kya Baat hai
 
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