rajeev13
Active Member
- 1,145
- 1,693
- 159
मिल गया ना अकाउंट, अब अपना username और password कहीं नोट करके सुरक्षित रख लो!
Click anywhere to continue browsing...
मिल गया ना अकाउंट, अब अपना username और password कहीं नोट करके सुरक्षित रख लो!
Dhanywad rajeev bhai I'd recover ho gayiआप Lucifer से संपर्क कर लो, उनको क्या लिखना है वो सब मैंने PM करके बता दिया है!
Welcome
चलो देर आए दुरुस्त आए, लेकिन मैं अब भी यही कहूंगा की अगर इस मंच के बाहर हम संपर्क में रहे तो आप बहुत सी समस्याओं से बच सकते हो जैसे बाकी मित्र dirty_thoughts vyabhichari xoxo0781 ajay bhai moms_bachha मेरे संपर्क में है बाकी आपकी मर्जी, ये मेरी अंतिम पोस्ट है इस बारे में... मैंने आपको मोबाइल और फोरम की ओर से कुछ धन देने की भी कोशिश की मगर आपने कोई सीधा जवाब नहीं दिया, इसलिए आगे से ये बिलकुल मत कहिएगा की हमें इतना समय देकर यहां से कुछ नहीं मिलता, क्योंकि आपने खुद इस पेशकश को ठुकराया है!
Kya Baat haiअंकित और सुगंधा दोनों बहुत खुश थे,,, दोनों को आपस में बात करने का काफी समय मिल जा रहा था और तृप्ति के न होने की वजह से किसी भी प्रकार का डर भी नहीं था,, दोनों को इस बात की खुशी थी की तृप्ति की गैरमौजूदगी में दोनों के बीच आगे बढ़ने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ चुकी थी जिसे दोनों मौका मिलने पर भरपूर फायदा उठा लेना चाहते थे वैसे तो दोनों के बीच काफी बातें होने लगी थी,,, और सुगंधा इस बात से कुछ ज्यादा ही खुश थी की,,, कि आज बात ही बात में उसके बेटे ने उसके भरावदार नितंबों की तारीफ की थी। वैसे तो एक मां के लिए अपने बेटे के मुंह से उसके नितंबों के बारे में भले ही वह उसकी तारीफ में दो-चार शब्द ही क्यों ना हो यह पल एक मां के लिए शर्मसार कर देने वाला होता है लेकिन यहां पर हालात पूरी तरह से बदल चुके थे,, यहां पर सुगंधा खुद अपने बेटे के मुंह से इस तरह के शब्दों को इस तरह की बातों को सुनने के लिए तड़प रही थी इसलिए तो अपने बेटे के मुंह से अपनी गांड की तारीफ सुनकर वह गदगद हो गई थी और इस बात का भी एहसास उसे हो गया था कि उसके बेटे की नजर कितनी तेज है एक औरत के मामले में।
Ankit or uski ma
सुगंधा को यकीन नहीं हो रहा था कि आज वह अपने बेटे के साथ जॉगिंग पर गई थी,,, जॉगिंग पर जाने का अनुभव उसका बेहद रोमांचकारी रहा था,,, आते जाते सड़कों पर वह बहुत से मर्दों को अपनी खूबसूरत अंगों पर घूमती हुई महसूस की थी वैसे तो घर में वह अपने बेटे को अपने अंगों का अच्छी तरह से प्रदर्शन करके उसे सब कुछ दिखा चुकी थी लेकिन खुली सड़क पर अपने बेटे की नजरों को अपनी खूबसूरत अंगों के उभार पर घूमता हुआ महसूस करके वह उत्तेजना से गनगना गई थी। सही मायने में सुगंधा आज पहली बार खूबसूरत सुबह का एहसास की थी,,, आज पहली बार उसे पता चल रहा था कि सुबह की खूबसूरती क्या होती है सुबह की सोच क्या होती है,,यह अहसास पुरी तरह से बेहद अद्भुत रहा था,, सुगंधा के लिए भी और उसके बेटे के लिए भी,,, जॉगिंग करके घर लौटने के बाद सुगंधा बाकी के दिनचर्या में लग गई थी,,, लेकिन अब वह पूरी तरह से अपना मन बना ली थी कि चाहे जो हो जाए अपनी बेटी की गहराई में अपने बेटे के साथ संबंध बनाकर ही रहेगी क्योंकि आज जॉगिंग के दरमियान जो कुछ भी हुआ था वह उसे पूरी तरह से मदहोश कर गया था।
अंकित भी अपने बदन की गर्मी बाथरूम में जाते ही अपने सारे कपड़े उतार कर अपने हाथ से ही काम चला कर बाहर निकाल दिया था वैसे उसके पास अब संभोग का अनुभव था जो कि उसकी नानी ने उसे बराबर का दिया था। अपनी नानी के साथ के अनुभव के जोर पर वह पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरा हुआ था कि अगर उसे मौका मिला तो वह अपनी मां को पूरी तरह से खुश कर देगा, जिसमें वह भी पूरी तरह से लगा हुआ था जॉगिंग के दरमियान बात ही बात में वह जॉगिंग करती दूसरी औरतों की बड़ी-बड़ी गांड की तुलना अपनी मां की गांड से कर दिया था और बातों ही बातों में तारीफ भी कर दिया था कि उसकी मां की गांड कितनी कसी हुई और आकर्षक है जिसे सुनकर सुगंधा उत्तेजना से गदगद हो गई थी। यह सब मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी थी जिस पर दोनों बराबर कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे थे,। मां बेटे दोनों नहा कर तैयार हो चुके थे स्कूल तो जाना नहीं था गर्मियों की छुट्टी जो पड़ी थी इसलिए दोनों के पास समय ही समय था।
Ankit apni ma k sath
सुगंधा नाश्ता तैयार कर रही थी वह अपने बेटे के लिए पराठा बना रही थी और वह भी घी का सुगंध को एहसास होने लगा था कि उसके बेटे को अब शारीरिक ताकत की कितनी ज्यादा जरूरत थी वैसे तो वह अपनी बेटी पर पूरा विश्वास करती थी कि उसे यह सब ना दिया जाए तो भी उसकी शारीरिक क्षमता पूरी तरह से मर्द की है। शारीरिक क्षमता में वह किसी से भी काम नहीं था लेकिन फिर भी वह दुलार के तौर पर घी के पराठे बना रही थी,,, जो कि उसकी खुशबू अंकित को अपने कमरे तक आ रही थी और वह अपने आप को रोक नहीं पाया और सीधे रसोई घर के दरवाजे पर पहुंच गया दरवाजे पर ही खड़ा होकर वह अपनी मां की तरफ देखने लगा नहाने के बाद उसकी खूबसूरती में इजाफा दिखाई दे रहा था और उसके नितंबों का आकार कसी हुई साड़ी में कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रहा था जिसे देखकर अंकित मन ही मन प्रसन्न और उत्तेजित हो रहा था,,, दरवाजे पर खड़े-खड़े ही वह अपनी मां से बोला।
मम्मी आज ऐसा क्या बन रहा है कि जिसकी खुशबू पूरे घर में फैली हुई है।
तेरे लिए घी के पराठे बना रही हूं,,, सुबह-सुबह नाश्ते के साथ खाएगा तो तेरी ताकत और ज्यादा बढ़ जाएगी।
(अंकित अपनी मां की बात के कहने का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था और उसकी बात सुनकर वह अपने मन में ही बोला कि अभी भी उसमें बहुत दम है अगर मौका दो तो इसी समय दिखा दुं,,, यह तो उसके मन का ख्याल था कि उसके जुबा तक नहीं आ पा रहा था लेकिन फिर भी वह अच्छी तरह से समझ गया था कि उसकी मां उसे घी के पराठे क्यों खिलाना चाहती है इसलिए वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था फिर भी वह अंजान बनता हुआ बोला,,,)
घी के पराठे इससे पहले तो तुम कभी नहीं बनाई।
Ankit or uski ma
अरे अब तू बड़ा हो गया है तुझे विटामिन प्रोटीन की ज्यादा जरूरत है अगर यह सब नहीं खाएगा तो काम कैसे चलेगा,,,,(ऐसा कहते हुए वहां तवे पर रखे हुए पराठे को चिमटी से पकड़कर ऊपर नीचे घूमा रही थी लेकिन इस दौरान वह जानबूझकर अपने नितंबों को कुछ ज्यादा ही मटका रही थी,, ऐसा हुआ जानबूझकर कर रही थी अपने बेटे का ध्यान अपने नितंबों की तरफ आकर्षित करना चाहती थी और ऐसा हो भी रहा था अंकित की नजरे उसकी मां की भारी भरकम गोल-गोल गांड पर टिकी हुई थी जो कि इस समय उसमें एक अजीब सा उन्माद था एक थीरकन थी,,, जिसकी लय के साथ अंकित थीरकना चाहता था,,, अपनी मां के पिछवाड़े पर अपनी मर्दाना अंग को सटाकर अपनी कमर को आगे पीछे करना चाहता था,,,, लेकिन इसमें अभी शायद वक्त था लेकिन कितना वक्त था यह वह खुद नहीं जानता था। अपनी मां की बात सुनकर वह बोला,,,)
तुम्हें ऐसा क्यों लगने लगा कि अब मुझे प्रोटीन विटामिन की ज्यादा जरूरत है मैं कल भी ऐसा ही था और आज भी वैसे ही हूं तो ऐसा बदलाव क्युं,,,?
यह तो नहीं समझेगा अब तो बड़ा हो रहा है अगर एक मां की नजर से देखेगा तो तुझे सब कुछ समझ में आ जाएगा तेरे अंदर आ रही बदलाव को एक माही अच्छी तरह से समझ सकती है तु अब कितना जिम्मेदार हो चुका है,,,।
(सुगंधा इस तरह की बातें एकदम मुस्कुरा कर कर रही थी अगर इस तरह की बातें सुगंध और अंकित के बीच औपचारिक रूप से हुआ होता तो शायद अंकित को अपनी मां के इन शब्दों में एक दुलार नजर आता लेकिन जो कुछ भी दोनों के बीच हो रहा था उसे देखकर अपनी मां की कही गई बातों के एक शब्द में मदहोशी और वासना नजर आ रही थी,,, अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसके अंदर किस तरह के बदलाव आ रहे हैं यही बदलाव उसकी मां को भा रहे थे और अपनी मां की बात सुनकर अंकित मन में मन खुश भी हो रहा था उसे रहने की और वह एकदम से रसोई घर में दाखिल हुआ और पीछे से अपनी मां को अपनी बाहों में जागते हुए एक बेटापन दिखाते हुए दुलार में बोला,,,)
ओहहह मम्मी तुम कितनी अच्छी हो मेरा कितना ख्याल रखती हो,,,,,(ऐसा कहते हुए वह अपनी मां को पूरी तरह से बाहों में भर लिया था और अपने होठों को अपनी मां के गर्दन पर रख दिया था यह अंकित की तरफ से उसकी मां के लिए एक अद्भुत तोहफा था जिसके बारे में सुगंधा ने इस समय तो सोची भी नहीं थी इसलिए अपने बेटे के व्यवहार से वह पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद हो गई थी पहले तो उसे ऐसा ही लगा कि उसका बेटा भावनाओं में भाकर दुलार की वजह से ऐसा कर रहा है लेकिन जैसे ही उसे अपने नितंबों के बीचों बीच अपने बेटे का लंड चुभता हुआ महसूस हुआ वह एकदम से मदहोशी के सागर में डूबने लगी,,, सुगंधा को अच्छी तरह से अपनी गांड के बीचों बीच अपने बेटे का खड़ा लंड महसूस हो रहा था। यह पल सुगंधा के लिए बेहद अद्भुत और मदहोशी भरा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,, इस पल में वह पूरी तरह से खो चुकी थी अपने बेटे की गर्म सांसों को अपनी गर्दन और गाल पर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी जिसे उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ती जा रही थी उसे अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार से मदन रस रीसता हुआ महसूस हो रहा था,,, यह पल वाकई में सुगंधा के लिए बेहद अद्भुत था।
अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर अपने लंड को महसूस करके भले ही वह साड़ी के ऊपर से था लेकिन फिर भी साड़ी के ऊपर से भी उसे अपनी मां की गांड की गर्मी एकदम साफ महसूस हो रही थी जिसे महसूस करके वह उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुका था और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका लंड उसकी मां की साड़ी सहित उसकी गुलाबी छेद में घुस जाएगा,,, सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह इस पल को इसी तरह से आगे बढ़ने देना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या करता है क्योंकि वह भी पूरी तरह से उत्तेजना से ग्रस्त हो चुकी थी अगर कुछ सीमाएं कुछ बंधन ना होते तो शायद वह इस समय अपनी साड़ी को कमर तक उठा देती और अपने बेटे के आगे अपनी गांड को परोस देती कि ले डाल दे अपने लंड को,,, लेकिन कुछ मर्यादाएं थी जो भी पूरी तरह से धराशाई नहीं हुई थी और यही उसे रोक रही थी लेकिन फिर भी वह अपने बेटे को रोक नहीं पा रही थी किसी तीसरे के देखे जाने की अाशंका बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि तृप्ति गांव गई थी और इस समय घर में उसके और उसके बेटे के सिवा कोई नहीं था।
अंकित भी पूरी तरह से मदहोश चुका था उसे भी इतना तो समझ में आ गया था कि उसकी मां क्या चाहती है अगर वह थोड़ी और हिम्मत दिखा कर अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा देता तो शायद एक अद्भुत सुख को वह इसी समय प्राप्त कर लेता लेकिन फिर भी अपनी नानी की चुदाई करने के बावजूद भी एक अद्भुत एहसास और अनुभव प्राप्त करने के बावजूद भी हुआ इस समय अपनी मां के सामने हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था इसलिए वह ऐसा कुछ करने की सिर्फ सोच सकता था उसे अंजाम देने से डर रहा था लेकिन फिर भी इतने से ही वह पूरी तरह से मत हो चुका था। यह प्रक्रिया थोड़ी देर और आगे बढ़ती तो शायद अंकित के साथ-साथ उसकी मां की बुर से भी पानी फेंक देता लेकिन तभी तवे पर रखा हुआ पराठा उसमें से धुआं उठने लगा था वह चलने लगा था जिस पर सुगंधा का ध्यान पडते ही वह एकदम से होश में आई थी,,, और वह एकदम से चौंकते हुए बोली।
बाप रे यह तो जल रहा है,,,।(सुगंधा का इतना कहना था कि मौके की नजाकत को समझते हुए ना चाहते हुए भी अंकित को अपनी मां की खूबसूरत बदन से अलग होना पड़ा उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बना हुआ था उसे भी एहसास हो गया था कि इस समय अलग होना ही उचित है वरना तवे पर रखा हुआ पराठा पूरी तरह से चल जाएगा लेकिन वह जैसे ही अपनी मां से अलग हुआ तो उसकी नजर अपनी मां की बड़ी बडी भारी भरकम कसी हुई गांड पर गई,,, जिसके बीचो-बीच उसकी साड़ी अंदर घुसी हुई थी जो कि उसके लंड की वजह से ही ऐसा हुआ था,,, उस धसी हुई साड़ी को देखकर अंकित को एहसास हुआ कि उसके लंड में कितना ताकत है और वह मन ही मन खुश होने लगा लेकिन फिर भी पराठे की दशा को देखकर वह बोला,,,)
ओहहह यह तो जल गई यह सब मेरी वजह से हुआ,,,, मैं ही भावनाओं में बह गया था,,,।
चल ऐसा कुछ भी नहीं है तू बहुत अच्छा लड़का है और एक अच्छा बेटा है मैं दूसरा बना देती हुं,,,,।
(इतना सुनते ही अंकित एक बार फिर से एकदम प्रसन्न हो गया और इस बार वह अपनी मां के कल पर चुंबन कर लिया और बोला)
ओ मम्मी तुम सच में कितनी अच्छी हो,,,,(और इतना कहने के साथ ही बार रसोई घर से बाहर निकल गया लेकिन अपने बेटे के व्यवहार से वह पूरी तरह से स्तब्ध थी और मन ही मन खुश भी हो रही थी कि उसके बेटे की हिम्मत अब बढ़ने लगी थी,,,, अंकित के रसोई घर से बाहर निकलते निकलते सुगंधा की नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबू पर पड़ चुकी थी और उसे तंबू को देखकर वह शर्म से पानी पानी होने लगी थी,,, अपने बेटे की हरकत से उत्तेजित होते हुए वह अपने हाथ को पीछे की तरफ ले गई और साड़ी को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी जो की उसकी गांड के बीचों बीच दासी हुई थी उसे बाहर खींच ली और अपनी साड़ी को व्यवस्थित कर ली और अपने मन में सोचने लगी की काश यह साड़ी ना होती तो उसके बेटे का लंड उसकी बुर में घुसा हुआ होता।
जो कुछ भी हो रहा था उसमें दोनों को मजा आ रहा था मां बेटे पूरी तरह से इन पलों का भरपूर मजा लूट रहे थे,,, सुगंधा अपने मन में कभी-कभी सोचती थी कि जिस तरह से उसके ख्यालात उसका नजरिया अपने बेटे को लेकर बदला था उसे दिन से लेकर आज दिन तक के बीच का सफर कुछ ज्यादा ही हो चुका था सुगंधा को लग रहा था कि वाकई में बहुत ज्यादा देर हो चुकी है इतनी देर में अगर किसी और के साथ होती तो अब तक दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गया होता लेकिन इन सबके बावजूद भी वह अपने मन को तसल्ली इस बात से दे रही थी कि अच्छा ही हुआ कि अभी तक दोनों की भी सारी संबंध स्थापित नहीं हुआ है क्योंकि जो कुछ भी प्रदर्शन और छेड़छाड़ चल रहा था इनमें काफी मजा आ रहा था यह पल बेहद आनंददायक थे और बेहद उत्तेजित कर देने वाले थे और शायद अगर दोनों के बीच सारी संबंध स्थापित हो गया होता तो इन सब फलों का उतना मजा नहीं आता जितना कि अब आ रहा है,,,, मां बेटे तृप्ति के जाने के बाद काफी खुला खुला सा महसूस करने लगे थे,,, और यह खुलापन दोनों के लिए काफी अासास्पद और मंजिल के करीब ले जाने वाला था,,,।
जैसे तैसे करके दिन गुजर चुका था रात का खाना खाकर कुछ देर तक मां बेटे दोनों टीवी देख रहे थे,,, अंकित अपने मन में यही सोच रहा था कि कोई रोमांटिक मूवी चल रही होती तो कितना मजा आता दोनों साथ-साथ देखते तो शायद दोनों के बीच कुछ होने की संभावना होती लेकिन टीवी पर भी साधारण सी मूवी चल रही थी इसलिए थोड़ी ही देर में सुगंधा को नींद आने लगी और वह सीधा अपने कमरे में जाकर सो गई आज पेशाब करने के लिए ना तो बाथरूम में गई और ना ही घर के पीछे गई और वैसे भी अंकित को इस बात का इंतजार था कि उसकी मां घर के पीछे का पेशाब करने जाएं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ इसलिए वह निराश होकर थोड़ी देर बैठे रहने के बाद अपने कमरे में जाकर सो गया,,,,। सुबह उसकी नींद तब खुली जब दरवाजे पर दस्तक हो रही थी सुबह के 5:00 रहे थे और उसकी मां जॉगिंग पर जाने के लिए उसे जग रही थी जल्दी से अंकित उठकर बिस्तर पर बैठ गया और कमरे से बाहर आकर हाथ में धोकर तैयार हो गया,,, उसे भी अच्छा लगता था अपनी मां के साथ जॉगिंग पर जाना,,, और सबसे अच्छा यह था कि वह अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख पाता था जब वह दौड़ती थी तो उसकी भारी भरकम गांड की थिरकन मदहोश कर देती थी,,, साड़ी में दौड़ने में थोड़ी तो तकलीफ होती थी लेकिन फिर भी सुगंधा को अपने बेटे के साथ दौड़ना अच्छा लगता था वह अपने बेटे पर एकदम भारी की नजर रखती थी वह देखी थी कि उसका बेटा क्या देख रहा है और उसे यह जानकर बेहद खुशी होती थी कि उसके बेटे की नजर हर पल उसके बदन पर ही टिकी हुई थी खास करके उसके नितंबों के घेराव पर और वैसे भी घर से निकलने से पहले वह अपनी साड़ी को और ज्यादा कसके अपनी कमर पर बांध दी थी ताकि नितंबों का उभार और आकर्षक लगे,,,,
आज भी मां बेटे वही तक गए थे जहां कल तक गए थे और सुगंधा को ही स्पीच अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसके बेटे के साथ-साथ दूसरे मर्दों की नजर भी उसके ऊपर बनी हुई थी खास करके उसकी चूची और उसकी बड़ी-बड़ी गांड की तरफ यह सब सुगंधा को बेहद प्रभावित कर रहा था उसे एहसास हो रहा था कि वाकई में अभी भी वह पूरी तरह से जवानी से भरी हुई है,,,, जोगिंग करने के बाद मां बेटे घर पहुंचे तो उसकी मां गहरी सांस लेते हुए बोली,,,,,।
सच में जिसे तू कहता है पजामा कुर्ता लेना पड़ेगा साड़ी में ठीक तरह से दौड़ा नहीं जाता और डर लगता है कि कहीं पैर लड़खड़ा ना जाए,,,,।
बात तो सही है,,,(सुगंधा के गहरी सांस लेने की वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी जिस पर अंकित की नजर बनी हुई थी और इस बात का एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से था और वह अपने बेटे की नजर से मस्त हो रही थी,,,, अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,) मैं तुमसे कह तो रहा हूं,,, साड़ी में ठीक तरह से दौड़ नहीं पाऊंगी ऐसा करते हैं आज शाम को ही चलकर तुम्हारे लिए पजामा और कुर्ता खरीद लेते हैं तब जोगिंग करने में बहुत अच्छा रहेगा,,,,।
सही है,,,, मुझे भी अच्छा लगेगा पजामा कुर्ता पहनने में,,,,,।
इसके बाद सुगंधा दिनचर्या में लग गई,,,,।
दोपहर के 4:00 बज रहे थे,,, अंकित अपने कमरे में आराम कर रहा था और तभी उसकी मां उसके कमरे के पास आई और बोली,,,,।
मैं मोहल्ले में अपनी पड़ोसन है उनके वहां जा रही हुं,,,।
लेकिन हमको तो मार्केट जाना है तुम्हारा कुर्ता और पैजामा खरीदने के लिए,,,।
हां जानती हूं घंटाघर में आ जाऊंगी,,,।
ठीक है जल्दी आना,,,,।
जल्दीआ जाऊंगी,,,(इतना कहकर सुगंधा घर से बाहर निकल गई गर्मी का महीना था इसलिए बिस्तर पर वापस लेटने का मन अंकित का बिल्कुल भी नहीं हुआ और वह बिस्तर पर से उठकर खड़ा हो गया गर्मी कुछ ज्यादा थी इसलिए वह दरवाजे की कड़ी बंद करके बाथरूम में घुस गया और अपने सारे कपड़े उतार कर नहाने लगा गर्मी में ठंडा पानी बदन को राहत प्रदान कर रहा था अभी वह नहा ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक होने लगी उसे लगा कि शायद उसकी मां वापस आ गई है लेकिन तभी बाहर जो आवाज सुनाई दे उसे सुनकर उसकी आंखों की चमक बढ़ गई,,,)
अरे सुगंधा दरवाजा तो खोल सो गई है क्या,,,,(सुमन की मम्मी दरवाजे पर दस्तक दे रही थी और दरवाजे पर सुमन की मां के होने का एहसास अंकित की आंखों की चमक बढा रहा था।)