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Non-Erotic बेटी- माँ मुझे कोख में ही मार दे!

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kingkhankar

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बेटी- माँ मुझे कोख में ही मार दे!



सुनंदा आज बहुत खुश हैं | आज बहुत अरसे बाद उसे ये खुशी नशीब हुयी हैं| इस खुशी को न पाने कि वजह से दुनिया भर के ताने सहे |

इस खुशी को पाने के लिए पाता नहीं कितने पीर-फकीर, बाबा, मंदिर, कोई द्वर नहीं छोड़ा |जहाँ भी थोड़ी आस कि किरण दिखती वहाँ दोनों पति पत्नी पहुँच जाते | बड़े बड़े डाॅक्टर के पास गये वहाँ से इन्हें बस इतना ही सुनने को मिलता, आप दोनों में कोई कमी नहीं हैं फिर भी पता नहीं क्यों सुनंदा जी प्रेग्नेंट नहीं हो पा रहीं हैं |
आपको बस इंतेजार करना है शायद कुछ समय बाद सुनंदा जी प्रेग्नेंट हो जाये |इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कह सकते हैं |

कहते हैं कि भगवान अगर अपको किसी चीज के लिए इंतेजार कराती हैं तो उसके पिछे कोई रहस्य छुपा है | अब इनके इंतेजार के पिछे कौन सा रहस्य छुपा हैं ये वक्त आने पे पता चलेगा | दोनों पति-पत्नी द्वार-द्वार भटकते रहते हैं फिर भी इनके समस्या का कोई हल नहीं निकल पाता हैं|

जिसकी वजह से ग्रह कलेश दिन-प्रतिदिन बढता जाता हैं| सासु माँ के तने जहर लगे बाण के सामान ऐसा घाव देती है | जिसका मलहम शायद ही किसी वैध के पास हो | ये घाव सुंनदा के अंतरमन में जिंदगी भर न मिटने वाली एक अमिट दाग की तरह अपना छाप छोड़ जाती हैं |

सुंनदा जहाँ भी जाती लोगों के ताने, "देखो बांझ आ गया हैं, बजंर भूमि की तरह इसकी कोख भी बंजर हैं जिसमें अन्न का एक भी दाना उत्पन्न नहीं हो सकता | इस बांझ कि सुरत देखना तो दुर की बात, इसके हाथ से एक गिलास पानी पिना जहर पिने के समान हैं | फिर भी पता नहीं क्यू ये कुलटा अपनी सुरत दिखाने आ जाती हैं | लगता हैं ये भी अपनी तरह हमारी बहु- बेटियों के कोख को बंजर बना देना चाहतीं हैं|

इन तानो से परेशान होकर सुंनदा ने खुद को एकांत बांस दे रखा हैं | घर के कोने में बैठकर सुबकति रहतीं इस आस में कि शायद भगवान उसकी सुन ले और उसकी कोख को हरी कर दे | परंतु भगवान ने शायद, बिना ताने के पल और शांति के कुछ क्षण उसके भाग्य में लिखना जैसे भूल ही गया हो |

सुनंदा की सुबह कि शुरुआत सास के ताने से होती--अरे हो कलमुँही तेरा कोख तो बंजर हैं | उसमें कुछ पैदा नहीं हो सकता लेकिन हमनें हमारे लिए अन्न पैदा कर रखा हैं | उसमें से ही हमारे लिए कुछ खाने को बना दे |

सुर्कण को कितनी बार कहा हैं कि इस कलमुँही को इसके घर भेज ओर तु दुसरा विहा कर ले ताकि हम भी पोतो- पोती का मुॅंह देखे, परललोक सिधारने से पहलें पर ये नालायक हमारी सुनता कहा हैं |

पता नहीं इस कुलटा ने मेरे बेटे पे किया जादू कर रखा हैं| न इस घर को छोडती हैं न ही हमारे बेटे को छोड़ती हैं| इसकी वजह से हम कही मुॅंह दिखाने के लायक भी तो नहीं रहे | ये बांझ मरती भी तो नहीं, मर जाती तो हमे इस बांझ से छुटकारा तो मिल जाता |

सुनंदा की दिन की शुरुआत सास कि जली-कटी बातों से होतीं हैं परंतु दिन का अन्त बहुत ही सुखद होता हैं | सुर्कण काम से लौटकर कुछ समय हर रोज, अपने पत्नी के साथ बिताता हैं |

सुर्कण को अपने घर के हालात के बारे में पूणतय ज्ञात हैं कि उसके प्राण प्रिय को दिन भर किन-किन यतनाओ से गुजरना होता हैं | सुर्कण के प्रेम के कुछ क्षण, सुनंदा के जख्मों पर दवा का काम करता तो हैं पर कुछ ही पल के लिए क्योंकि सुबह फिर सास कि जली कटि बातो से हरी हो जाती हैं |

सुर्कण के घर में चल रही कलेश कि वजह से उसका शांत स्वभाव पूणतय भंग हो चुका हैं | उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया जिसका असर उसके काम पे भी पड रहा हैं | वो अपना काम मन लागाकर नहीं कर पा रहा हैं |

सुर्कण का चिड़चिड़ापन इतना बड़ गया कि एक बार तो अपने माँ पर ही भड़क गया जब माजी सुनंदा को जलिकटी सुना रहीं थीं| तो सुर्कण खुद को ओर रोक नहीं पाया |सुर्कण अपने तरकश शब्दों से माॅं पर ही हमला कर दिया, माँ हमारें बच्चे नहीं हो रहे इसमें, इस विचारी का क्या दोश है | हर बात के लिए इसको दोशी ठहराना कह तक जायज है

हम कोशिश तो कर रहें हैं न हम कितने ही डाक्टरों के पास गये फिर भी कुछ नहीं हुआ मुझे तो लगता हैं मुझमें ही कुछ कमी हैं जो डाक्टरों के पकड़ में नहीं आ रहा हैं पर ये बात आप को समझ कहाँ आतीं | आपको समझ आती तो आप इस विचारी को ऐसा न कहतीं |

हाँ, हाँ,हाँ मुझे कहाँ समझ आती सारी सजझ तो भगवान ने थाली में सझाकर तुझे दे रखा हैं| तुझें कितनी बार कहा हैं कि तु दुसरी विहा कर ले, कर लेता तो हम पोते-पोतिऔ का मुंह तो देख लेते पर नहीं, पता नहीं इस कुलटा ने तुझपे किया जादू कर रखा हैं जो किसी कि सुनता ही नहीं |

बस माँ बहुत हो गया अपने शादी-विया को गुड्डे-गुडियो का खेल समझ रखा हैं | बच्चें नहीं हुई तो दूसरी कर लो आपको किया पता एक बाप को अपनी बेटी को विदा करने मे उस पर किया बितता हैं | कितनी नाजों से पाली हुयी कलेजे के टुकड़े को पल भर में दुसरे को दे देता हैं बिना ये जाने कि उसकी नाजों से पाली हुयी बेटी को ये लोग बैसे ही रख पायेंगे जैसे सहज कर वो रखता था|

आप कैसे समझेंगे आप की तो कोई बेटी हैं ही नहीं अगर होती तो ही न आप समझतें, मैं तो भागवान का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने आप को कोई बेटी नहीं दी वरना उसको भी इस बिचारी की तरह पड़ताड़ीत किया जाता | मैं तो कहता हूँ कि हमारे बच्चे न होने की वजह भी आप ही हो आप कि ये जलिकटी बाते ही उसकी बजह हैं|

ये कहकर सुर्कण गुस्से मे गुरराता हुआ अपने रुम की ओर चल देता हैं | सुनंदा भी सुर्कण के पिछे अपने आंसू को बहाता हुआ चल देता हैं ओर इधर माँ सुना न अपने सुर्कण के बापू ये नालायक मुझे कितनी जलिकटी सुनाकर चला गया और आप हैं की चुॅं तक नहीं बोला|

मैं किया बोलू शुरू तो तुम ने ही किया हैं सुर्कण की माँ |मैंने तुम्हें कितनी बार माना किया पर तुम सुनती कहाँ हो | तुम बहारी लोगों की बातों में आकर अपने घर कि शांति को भंग कर रहीं हो |

मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया कि तुम दूसरे की बातों में आकर अपने ही घर में क्लेश न फैलाओ पर तुम सुनती कहाँ हो अब देखो न जिन हितेषींओ के बातों में आकर रोज तुम बहु को जलिकटी सुनाती हो आज जब वही जलिकटी बातें तुम्हें अपने बेटे से सुनने को मिला तो तूम्हें पिढा़ हुयी न अब सोचो बहु को तुम्हारी बातों से कितनी तकलीफ होती होगी जिसकों तुम बेवजह सुनाती रहती हो

हाँ, हाँ, हाँ मैं तो बुरी हूँ मैं दुसरों कि बातों में आ जाती हूँ मैंने तो पहलें ही कहा था कि ये लडकी मेरेे सुर्कण के लिए सही नहीं है मगर आप माने नहीं ये कहकर बुदबुदाता हुआ घर से बहार निकल जाती हैं |

अरे भाग्यवान अब भी वक्त हैं समहल जाओ वरना अपने हितैषियों के घर कि तरह अपने घर को भी नरक बना दोगी सारी सुख-शांती को तिलांजलि दे दोगी |

साला मेरा कोई सुनता ही नहीं हैं | मुझे तो लगता हैं में इस घर में पडा हुआ वो बेकार समान हूं जो सिर्फ लोगों को दिखानें के लिए हैं अन्यथा उसका कोई विशेष उपयोग नहीं हैं |

इधर सुर्कण अपने कमरें में पहुँच कर बैड पर धम से बैठ जाता है ओर गुस्से में सांप की तरह फूंफकारने लगता हैं सुनंदा कमरें में पहुॅंचकर अपने पति को इतनी गुस्से में देखकर तुरंत भागकर किचन से ठांडा पानी लाकर सुर्कण को देता हैं |

ये लिजिए पानी पी जियें ओर अपने गुस्से को ठांडा किजिए सुर्कण पर मैं... मैं वै कुछ नहीं पहले पानी पिजिए फिर बात करते हैं | थोड़ी देर तक कोई कुछ नहीं बोलता फिर सुर्कण कुछ बोलने के लिए मुहं खोलता हैं तभी

ये अपने ठीक नहीं किया आप को माजी को ऐसे नहीं बोलना चाहिए था | आखिर वो एक माँ हैं वो अपके लिए बुरा क्यों सोचिंगी |अपको उनसे मापी मांगनी चाहिए |

मैं मानता हूँ कि आवेश में आकर मैंने माँ जी को कुछ ज्यादा ही बोल दिया मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था | परंतु मैंने जो कुछ भी बोला हैं सब सत्य ही बोला है | तुम कहतीं हो तो मैं माँ जी से माफी मांग लूंगा | लेकिन इस घर में तुम्हारे बारें में कूछ भी गलत, आज के बाद सुनना नहीं चाहूंगा | ये भी बाता दूंगा |

इतना गुस्सा करना सही नहीं हैं | आप घर वालो को तो मना कर देंगे | परंतु बहार के लोगों का आप किया करेंगे |उनकों तो मना नहीं कर सकतें न | जब इतने लोग कह रहें हैं तो सही ही कह रहे होंगे | शायद मुझमें ही कोई कमी होगी जिसकी वजह से मैं इस घर को वारिश नहीं दे पा रहीं हुं |

मैनें तुम्हें कितनी बार कहा हैं कि हर बात के लिए खुद को दोषी न ठहराया करो | ऐसा भी तो हो सकता हैं कि कमी मुझमें हो, तुममें नहीं जो पकड़ में नहीं आ रहा हैं या फिर कुछ और ही वजह हो सकता हो | वजह कुछ भी हो, न मैं प्रयास करना छोडूंगा, न तुम्हें हार मानने दुगां, समझी मैंने किया कहा हां हां हां हां

सुनंदा अपने पति के बातों का मतलब समझकर, नारी सुलभ लज्जा के वसिभुत होकर कुछ क्षण रुक कर, मुझे तो लगता हैं आप में पहलें जैसी बात नहीं रही, आप में उम्र का असर दिखता है, खीं खीं खीं खीं कर हांस देता हैं |

उम्र का असर कितना हैं और कितना नहीं ये तो बाद में बताउँगा | अभी कुछ खाने को दो मुझे कुछ काम से बहार जाना हैं आकर रात में तुम्हें दिखाता हूँ कि मुझमें किया और कितनी बात हैं |

सुनंदा जल्दी करो पहलें से बहुत लेट हो गया हैं |
नाश्ते के टेबल पर सुर्कण आकर बैठता हैं और सुनंदा नाश्ता दे कर आप नाश्ता किजिए मैं बाबूजी को बुलाकर लाता हूँ | ओर हा माँ जी को भी बुलाकर लाना ठीक हैं जी |

सुनंदा बाबूजी के कमरें के पास पहूँचा कर बाबूजी आपके लिए नाश्ता यहाँ कमरे में भेजा दु या आप बहार आयें.......... नहीं बहु मैं बही आ रहा हूँ | तुम बहार ही खाना लगा दो और सुर्कण को भी बुला लाना |

बाबुजी वो खाने के मेज पर बैठे है | आप की प्रतिक्षा कर रहे हैं | अच्छा ठीक हैं तुम चलो मैं आता हूँ | अरे सुनो तो बहु किया तुम्हारी सासुमां आयी हैं | सुनंदा मुंह भिचकाकर... नहीं आयी हैं| ये कह कर सुनंदा किचन कि ओर चल देता हैं|

बापूजी आकर जैसे ही अपनी कुर्सी किसकाकर बैठता हैं | सुर्कण बाबूजी प्रणाम… बाबूजी नारजगी जताते हुए अभी तो गला फाड़कर , अपनी माँ पर चिल्ला रहे थें | ओर अब प्रणाम कर रहें हो | कैसे निर्लज्ज बेटा हो तुम सुर्कण| मुझे तुम से ये उम्मीद नहीं था |

बाबूजी आप सब कुछ जानकर भी अनजान बन रहें हो | माना कि मैंने गलती की हैं | उसके लिए मैं आप से माफी मांगता हूँ | परंतु माँ जो सुनंदा के संग अब तक करती आयी हैं |क्या वो सही हैं? अगर वो सही हैं तो मेरा, माँ को कहाँ हुआ हर शब्द सही होना चाहिए |

बेटा तेरा माँ जो कुछ भी कर रहा हैं | वो सही नहीं हैं| तुम्हारा अपनी माँ को इस तरह कहना ठीक नहीं हैं | मैं अब भी जिंदा हूँ | बहु को कही हुयी हर बात के लिए, मैं तुम्हारे माँ को टोकता हूँ और समझाता भी हूँ |

माँ, आपके समझाने से, समझ गयी होतीं या आप के टोकने से, रूक गयी होती तो आज बात इतनी आगें न बढ़ी होती और आज मुझे माँ से इस तरह का व्यवहार नहीं करना पड़ता | मुझे माप कर देना पिताजी अगर मेरी किसी भी बात से आपका व माँ का दिल दुखा हो तो | ओर हाँ अगर माँ अब भी नहीं सुधरी तो मैं सुनंदा को लेकर घर छोड़कर कहीं दूर चला जाऊँगा |

बाबुजी परेशान होकर ये किया कह रहें हो बेटा, इतनी सी बात के लिए कोई घर छोडकर जाता हैं किया | ये इतनी सी बात नहीं हैं बाबुजी ये बहुत बड़ी बात हैं | अब मैं इस बारे में ओर बात नहीं करूँगा | मेरा खाना हो गया मैं दफ़्तर जा रहा हूँ | ये कहकर सुर्कण थाली को थोड़ा सा धक्का देकर उठ जाता हैं ओर बैग लेकर दफ़्तर को चल देता हैं |

सुर्कण को ऐसे अधूरा खाना खाॅं कर जातें हुए देखकर रोकने कि कोशिश करता हैं, ऐसे खाना छोड़कर नहीं जाते ये कहकर सुबकने लगता हैं, ये सब कुछ मेरे बजह से हो रहा हैं | पता नहीं किस मनहूस घड़ी में मैं इन से मिलीं थी, न मैं इनसे मिलता, न हमारी शादी होती और न आज ये दिन देखना पढता |

बाबुजी बहू की बातो से नाराज होकर, अभी जो कहा सो कहा आगे से ऐसा दुबारा मत कहना | गलती तुम्हारी नहीं हैं बहु गलती किसकी हैं ये मैं भलिभाति जानता हूँ | अब लगता हैं मुझे इस घर कि असली मुखिया का रूप धरना होगा वरना तुम्हारी सास अपने हितैषीऔ के बातो में आकर अपने घर को नरक बना देगा, जिसकी शुरुआत हो चुकी हैं |

ऐसे ही बहु को समझा बुझा कर खाना खिलाती हैं ओर खुद भी खाता है | और सुर्कण के दफ़्तर में खुद खाना लेकर जाता हैं | उसे खाना खिलाने के बाद समझा बुझा करा घर न छोडने के लिए माना लेता हैं |

इस घटना के होने के बाद से बाबुजी घर के मुल मुखिया होना का अपना दबदबा दिखानें लगा | सुर्कण कि माँ बहार जिन लोगो से मिलकर घर मे आकर बवाल करती थी | उनसे मिलना जुलना, बाबुजी न बिल्कुल बंद करवा दिया, माँ जी का |

जब कभी भी माँ जी सुनंदा को गलत सलत या जलिकटि सुनाती तो बाबुजी माँ जी को टोकती और ढाटती | संग में ये हिदायत भी देती कि आगे से बहु को कुछ भी मत कहना वरना बहु को तो मैं इस घर से कही नहीं भेजुंगा परंतु तुम इस घर से अपने माईके भेज दिए जा सकती हो |

बाबुजी के इस रवाये को देखकर माँ जी सुनंदा को जलिकटि सुनाना बंद कर देता हैं | और बाबुजी द्वारा माँ जी को समझायें जानें पर उनको अपनी गलती का एहसास होता हैं कि उन्होंने सुनंदा के साथ कितना गलत किया हैं |

मैंने बहु को इतनी गालियाँ दी, इतनी बाते सुनाई परंतु बहु ने पलटकर कभी जबाब नहीं दिया | भगवान ने मुझे इतनी अच्छी बहु दी | उसे अपनी बेटी मानने के जगह दुसरो कि बातो मे आकर अपनी ही बेटी को भला बुरा कहता रहा | हे भगवान मुझे माप करना और मुझे बहु से भी अपने किये की माफ़ी मांगनी होगी |

जैसे- जैसे घर कि स्थित सुधरने लगती है | वैसे-वैसे घर का माहौल खुशनुमा होने लगता हैं | घर के सभी सदस्य अपने मन में जमें मैल को धोकर, एक संग मिलकर हासी - खुशी से अपना जीवन बिताने लगते हैं |

इस खुशनुमा महौल का असर सर्कण के काम पर दिखता है | वो पहले से ज्यादा ध्यान लगाकर काम करता हैं | ओर संग मे अपने जीवन संगिनी, अपने प्राण प्रिय एक मात्र पत्नी के साथ पहले से अधिक समय बिताने लागा |

अपने पत्नी के साथ विभिन्न जगह घुमने जाना | खशकर अपने पत्नी के हर खुशी का ध्यान रखना, उसके हार पसंद न पसंद का विशेष ध्यान रखना | दोनों पति- पत्नी अपने एकांत समय में अपने अंतारंग पलो का पहलें से अधिक आनंद के संघ बिताने लेगे |

इन्हीं सब कारणों कि बजह से जिस पल का दोनों पति-पत्नी को एवं परिवार के बाकी सदस्यों को इंतेजार था वो पल इनके जीवन में आखिर आ ही गया |

कुछ ही दिन पुरानी बात हैं | सुनंदा दोपहर को सो रही थी की अचानक ऊठकर बैठ गाया | उसे कुछ अजिब सा महसुस हो रही थी पर किया ये समझ नहीं पा रही थी | कभी तो उसके मुह में लार की मात्रा बड जाती अगले ही पल मुहॅं सूख जाता | जैसे गरमी के मौसम में अकाल पड़ गया कही पर पानी की एक बुंद का नाम- औ निसान नहीं हैं|

कभी उसे अपने सर के अंदर कुछ घुमता हुआ लगता | जैसे किसी ने उसे पंखे से बाद दिया हो, जो उसे चकरघिन्नी कि तरहा घुमा रहा हो | कभी उसे लगता कि उसके पेट के अंदर बहुत बड़ी जंग छिड़ी हो | उस जंग से उत्पन्न हुयी मलबा उसके मुह के रास्ते बहार आना चहता हो |

किया हो रहा हैं उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर अचानक उसे उबकाई जैसी आयीं | सुनंदा उठकर, अपने मुंह को पकड़कर गुशलखाने की ओर भागी | गुशलखाने पहुँच कर, दोपहर के खाने में खायी हुयी हर चीज बहार निकल दी |

जब उसे थोड़ी रहात मिली तो आकर बिस्तर पर बैठ गाया | थोड़ी समय बाद उसे महसूस हुआ जैसे उसका जि मिचला रहा हो उसे कुछ खाने का मन कर रहा हो परन्तु किया ये समझ ही नहीं पा रही थीं | बडा ही अजीब स्थिति में फंसी हुई थी सुनंदा कभी जि मिचलता फिर उबकाई आती और गुसलखाने को भागता ऐसा उसके संग दोपहर से शाम तक कईं बार हो चुका | सुनंदा सोचने पर मजबूर हो गया की उसनें दोपहर में ऐसा किया खाॅंं लिया जिससे उसकी तबियत इतनी खरब हो गयी |

सुनंदा इसी सोच विचार में डुबी हुयी थीं कि सुनंदा की सास उसके कमरे पहुँच कर किया सोच रही हो बहु… कुछ नहीं बस इतना ही कह पाता हैं | उसे फिर से उबकाई आती हैं ओर गुशलखाने को भागती हैं|

सुनंदा को ऐसे गुसलखाने भागता देख सास भी उसके पिछे-पिछे गुसलखाने को भागती हैं | गुसलखाने पहुँच कर सुनंदा को उलटी करता हुआ देखकर | उसके पास पहुंचा कर उसके सर पर पानी डालता हैं जब सुनंदा की उलटी बंद होती हैं तो सास उसे लाकर बिस्तर पर लिटा देता हैं|

कब से हो रहा हैं बहु ये उल्टियां | ओ माँ जी दोपहर से रहा हैं | किया तुम्हें दोपहर से उल्टियां हो रही हैं ओर तुम ने हमें बताया नहीं | सुर्कण के बापू कहा हो जी, जल्दी से डाक्टर को बुलाकर लाईये बहु की तबियत खरब हैं |

किया कह रही हो सुर्कण की माँ | अपको एक बार कहने से सुनाई नहीं आती किया | आप जल्दी से जाओ और डाक्टर को बुलाकर लाओ बहु की तबियत बहुत खरब हैं| दोपहर से बहु उलटी पे उलटी कर रहीआ हैं |

किया बहु दोपहर से उलटी कर रही हैं | हाँ अब आप आगे कुछ भी मत पुछना जल्दी से डाक्टर साहेब को बुलाकर लाईये तब तक मैं बहु का ध्यान रखता हूँ |माँ जी बाते सुनकर बाबुजी तुरंत ही डाक्टर साहब को लिबाने भागते हैं|

जल्दी ही बाबुजी गली के नुक्कड़ पर बैठने वाले डाक्टर, जो की बहुत ही प्रसिद्ध डाक्टर हैं उनको बुलाकर लाते हैं| घर पहुँच कर दोनों सुनंदा के कमरे में जाता हैं जहाँ सुनंदा बिस्तर पर लेटी हुयी थी और माँ जी सुनंदा के सर पर हाथ फिरा रहीं थीं |

डाक्टर को देखकर माँ जी, डाक्टर साहब जल्दी से देखिए न मेरी बेटी को किया हुआ हैं | माँ जी को ऐसे बेटी कहता सुनकर सुनंदा अपने सास को ऐसे देखती हैं जैसे उनके मुँह से कोई चमत्कारी शाब्द निकला हो | और सुनंदा के आंखों से आंसू निकल आते हैं|

डाक्टर साहब माँ जी की बातों को सुनकर, आप हटेंगे तभी न मैं आपकी बिटिया रानी को देख पाऊंगा की उनको हो किया रहा हैं | डाक्टर साहब कुछ समय तक सुनंदा का परिक्षण करने के बाद और सुनंदा से कुछ सवालों के जवाब लेकर, अब डाक्टर साहब के सवाल तो पता ही हैं, कब से हो रहा हैं, खाने में किया खाॅंया था, किया पिया था फलाना- डिमाका, ये सब पुछकर अपने एक निष्कर्ष पर पहुँच कर |

डाक्टर साहब मुस्कुराकर भाभी जी बहुत अच्छी खबर हैं | भाभी जी बहुरानी के पाव भारी है, आप के घर में किलकारियां गुजंने वाली हैं, अब आप दोनों अपने पोते-पोतियों से खेलने के लिए तैयार हो जाईये | माँ जी खुशहोकर आप सच कहा रहे हैं डाक्टर सहाब | हाँ भाभी जी जल्दी से मुहॅं मिठा कराईये |


आ जी आप सिग्र जाईये ओर अच्छी सि मिठाई लेकर आये | माँ की बाते सुनकर बाबुजी सरपट दौड़ लगा देते हैं | बाबुजी के जाने के बाद माँ जी, डाक्टर सहाब ये लिजिए आपकी फीस और ये रखिये मिठाई के पैसे इससे आप अपने घर भी मिठाई ले जाना | डाक्टर साहब पैसे पकड़कर अरे भाभी जी ये किया आप ने तो मेरी मांग से भी ज्यादा फीस दे दी ओर ये मिठाई के पैसे मैं नहीं ले सकता बस आप ये रख लिजिए |

थोड़े समय की नोक झोक के बाद डाक्टर साहब पैसे लेने को राजी हो जाते हैं तब तक बाबुजी भी मिठाई लेकर आ जाते हैं | डाक्टर अपने हिस्से की मिठाई खांकर चलता बनते हैं | घर का माहौल खुशखबरी सुनने के बाद बहुत खुशनुमा हो गया | घर में सबके चहरे ऐसे खिले हुए हैं जैसे भोर के समय कली से खिले फूल पर ओस कि बुंदे अपनी मनमोहक छवि से सब को अपनी ओर आकर्षित करती हैं |

डाक्टर के जाने के बाद सुनंदा उठकर बहार जाने लगती हैं | माँ जी कहाँ को चल दी बहु | माँ जी रसोई घर जा रही हूँ शाम का खाना बनाने | कहीं जाने कि जरूरत नहीं हैं |मैं जा रहीं हूँ खाना बनाने अब से तुझें कोई काम करने की जरूरत नहीं है तु सिर्फ आराम करेगी और घर का सारा काम मैं करूँगा | ये कहकर माँ जी सुनंदा को कमरे में छोड़कर खाना बनाने चल देतीं हैं |

माँ जी के जाने के बाद सुनंदा सुनंदा समझ ही नहीं पा रही थी की वो किया कर हांसे या नाच -नाच कर खुशी मानाये | उसे जिस पल का इंतेजार था आज वो पल उसके जीवन में आ ही गया | सुनंदा बैठे- बैठे अब तक उसके संग हुयी घटनाओं के बारे मे सोचकर मुस्कुरा रही थीं ओर आंसू भी बहा रहीं थीं | जो सास उसे इतना खरी खोटी सुनाती थी आज उसी ने खूशी के मारे पुरे घर को सर पर उठा रखी हैं ओर साथ ही घर के सारे काम करने को रजी हो गयी जो सुनंदा के इस घर में बहु बनकर आने के बाद कभी पाकशाला में झाकने तक नहीं गयी |

सुनंदा इन्हीं सब बातो को सोच रहीं थीं और इसी बीच सुर्कण दफ्तर से घर आकर अपने सुटकेश को सोफे पर रखकर, रसोई घर में सुनंदा को देखने जाता हैं | (ये सुर्कण का रो का काम है दफ्तर से आने के बाद सबसे पहले वो अपने पत्नी से मिलता हैं जो कि इस समय रसोई घर में ही होता है )

रसोई घर में सुनंदा के जगह माँ को देखकर सुर्कण मन ही मन सोचता है की आज ये सुरज पूर्व को छोड़कर पश्चिम से कैसे निकल आया | आज ये अनहोनी कैसे हो गयी | माँ सुनंदा कहाँ हैं और आप रसोई में, माँ हर वक्त सिर्फ बीबी को ही ढुढ़ेगा कभी माँ के बारे में भी पुछ लिया कर |

अरे माँ जल्दी बताओ ना सुनंदा कहा हैं कहीं उसकी तबियत तो खरब नहीं हैं, माँ बस इतना ही कहती हाॅं पर… इतना ही सुनते ही सुर्कण अपने कमरें की तरफ भागता हैं | इधर माँ जी अरे बेटा मेरी पुरी बात तो सुनता जा | सुर्कण को इस तरहा भागता देखकर , कितना प्यार करता हैं अपनी बीवी से ओर मैं इन दोनों को अलग करने के बारे में सोच रही थी | हे भगवान मुझे माप करना | मुझसे बहुत बडा़ पाप हो जाता अगर मैं समय पर नहीं समलती तो | इन्हीं सब बातो को सोचकर माँ जी भी सुर्कण और सुनंदा के कमरे की तरफ चल देता |

सुर्कण कमरें में घुसता हैं सुनंदा को आवज देता हुआ | अपने पति की अवाज सुनकर सुनंदा अपने अपने सोचो की दुनिया से बार आकर अपने पति के गले लगकर रोने लगतीं हैं | सुनंदा को इस तरह रोता देककर सुर्कण परेशान हो जाता हैं और सुनंदा को पुछता हैं माँ ने फिर कुछ कहा हैं किया | सुनंदा रोता हुआ नहीं | तो फिर क्यूँ रो रही हो?

ओ जी मैं ना, मैं ना माँ बनाने लिए वाली हूँ | सुर्कण खुशी के मारे किया करेंगा ये समझ न पाकर अपने पत्नी को ही गोद में उठा कर | किया सच में तुम माँ और मैं बाप बनाने वाला हूँ जब तक सुनंदा कुछ कहीं | तब तक माँ जी कमरें में परवेश कर जाती हैं ओर सुर्कण को इस तरह, सुनंदा को गोद में उठाया देखकर |

पहले तु बहु को गोद से उतार नालायक उतार पहले बहु को, बाप बनाने वाला हैं ओर बच्पना अभी तक गया नहीं | अभी तक तूने बहु को नहीं उतारा नालयक उतार जल्दी | सुर्कण अपने माँ की बातो को सुनकर किया करू माँ सुनंदा ने खबर ही ऐसा सुनाया हैं कि मैं खुशी के मारे बावला हो गया हूँ | ये कहकर सुनंदा को अपने गोद से निचे उतरता हैं |

अब घर का महौल ही बदल गया हर कोई सुनंदा की देखभाल करने लग गये | किया सास और किया या तक कि सुर्कण भी सुनंदा कि पहले ज्यादा देखभाल करने लगा

ऐसे ही एक रात दोनों पति-पत्नी सोये हुए थे तभी एक बच्ची कु करूणा मयी आवाज उनकें कमरे में गुंजता हैं | माँ, ओ माँ, माँ उठो न मुझे आप से कुछ बात करनी हैं | माँ, ओ माँ उठो न |
ऐ ही शब्द को तो सुनने के लिए सुनंदा कब से तरस रही थीं और आज उसी आवाज को सुनकर सुनंदा उठकर बैठ जाती हैं |

कौन हो आप और मुझे माँ क्यूँ कह रहीं हो मेरा तो अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ हैं फिर आप मुझे माँ क्यूँ कह रही हो | अरे माँ आप कितनी भोली हो मैं आप की ही बेटी हु और आप की गर्व से बोल रहीं हूँ | सुनंदा ये सुनकर डर जाती हैं ओर अपने पति को हिलाकर जगाती है | सुर्कण जगकर किया हुआ सुनंदा कुछ दिक्कत हो रही है किया | ओ जी हमारे रूम न भूत बूत घुस आया है ओर किया अनप शनप बोल रही है |

तभी फिर से बो आवज गुंजती है माँ आप डरो नहीं | मै अपकी होने वाली बेटी हूँ | आप समझाये न माँ को मुझे ऐसे न डरें | कोई भला अपने बेटी से ऐसे डरता है किया | तभी सुनंदा बोलती हैं मैं डरूँ नहीं तो ओर किया करू बोलो |

तुभी सुर्कण बोलता हैं अच्छा ठीक हैं हम नहीं डर रहें हैं | हम भाला क्यूँ डरें? अपनी बेटी से | मुझे न आप दोनों से कुछ बात करनी हैं आप मानेंगे ना मेरी बाता को | सर्कण बोल पड़ता हैं हा हा हम अपनी बेटी कि बात क्यूँ नहीं मानुंग | तो फिर सुनिए, बेटी- माँ मुझे कोख में ही मार दे |

ये सुनकर सुनंदा रोता हुआ ये किया कह रही हो | इतने वर्षों बाद तो मुझे ये खुशी मेरे घर आयीं हैं… तभी तो मैं कह रही हूँ माँ मुझे कोख में ही मार दे | सुनंदा पर क्यूँ.. क्यूँ तो फिर सुनों माँ मैं आज अपके गर्व मैं हूँ तो सब खुशी माना रहें हैं | क्योंकि इन्हें पाता नहीं की मैं किया हूँ|

जिस दिन मैं इस दुनियां में आऊंगी ओर इन्हें पाता चलेगा की मैं एक लड़की हूँ तब सब की धूमिल हो जायेंगे | सब आपको फिर से जलिकटी सुने लग जायेंगी | ये सब ऊपरी मन से तो सब को ये ही दिखायेंगे कि सब खुश हैं | परंतु अंतर मान से सब आपको कोसेंगी कि इतने वर्षों बाद एक बच्चा जनमा हैं वो एक बेटी ही जनमा हैं एक बेटे को जन्म नहीं दे पायी |

बस इतना ही नहीं जैसे -जैसे मैं बडी़ होने लुंगी तब -तब मैं इनको ओर चुभने लागुंगी मेरी हर अच्छे कामों के लिए भी मुझे ठोका जायेगा, मुझे चार दिवारी में कैद करने को कहा जायेगा, मुझे आगे बढ़ने से रोका जायेगा, पढ़ने लिखने से रोका जायेगा, आप तो चाहेंगे कि मैं आगें बढूं, पढ़ू लिखूँ पर ये ही लोग आप को रोकेंगे|

जैसे-जैसे मैं जवान होने लगूँगी वैसे-वैसे हर जगहा मुझे भुखे भेड़िये ओर गिद्ध के रुप में इंसान मिलेंगें जो मुझे नोचने-खशोटने के लिए हर वक़्त तत्पर रहेंगे | इनसे बच गयीं तो मूझे झूठे प्रेम जाल में फसाकर वासना के भुखे लोग मेरे जिस्म से अपनी वासना की भूख मिटायेँगे |

इन सब से अगर मैं बच गयीं तो फिर आप मेरी शादी करा देगें | मुझे मेरे ससुराल में दहेज के लिए पड़ताड़ीत किया जायेंगे | इन पड़ताणनाओ से अगर आप ने मुझे बचा भी लीया तो किया | हो सकता हैं मैं भी आप कि तरह गर्व धारण ना कर पाऊँ तो फिर से मुझे पड़ताड़ीत किया जायेगें| माँ अपने इतना कुछ झेल लिया मैं नहीं झेल पाऊँगी, क्योंकि माँ आप बहुत ही धार्यवान ओर समर्तवान स्त्री हैं | मैं ऐसा नहीं बन पाऊँगी, मैं तो अपकी ऩजो से पली बेटी कहलाऊॅंगी | जिस तरह आप दोनों मुझे सहज कर रखेंगे कोई दुसरा मुझे वैसे ही सहज कर नहीं रख पयेंगा इसलिए कह रहीं हैं अपकी बेटी- माँ मुझे कोख में ही मार दे ||

… . … समाप्त… . . . .
Kuch log duniya mein sirf andhera hi pasand karte hey. Duniya itni khubsuratg hey is se un ko kuch matlab hi nehi.
I agree that we can still make it more beutiful and happy place for next generation.
 

Aakash.

sᴡᴇᴇᴛ ᴀs ғᴜᴄᴋ
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Annual Story Contest - XForum
Hello everyone!
We are thrilled to present the annual story contest of XForum!
"The Ultimate Story Contest" (USC).

"Win cash prizes up to Rs 8500!"


Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 8000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 25th March ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th April 2025 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.

Important Links:
- Chit Chat Thread (For discussions)
- Review Thread (For reviews)
- Rules & Queries Thread (For contest details)
- Entry Thread (To submit your story)

Prizes
Position Rewards
Winner 3500 ₹ + image Award + 7000 Likes + 30-day Sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 2000 ₹ + image1 Award + 5000 Likes + 15-day Sticky Thread (Stories)
2nd Runner-Up 1000 ₹ + 3000 Likes + 7-day Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-Up 500 ₹ + 3000 Likes
Best Supporting Reader (Top 3) 500 ₹ (Each) + image2 Award + 1000 Likes
Reporting Plagiarized Stories imag3 200 Likes per valid report


Regards, XForum Staff
 
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