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Incest बरसात की रात,,,(Completed)

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rohnny4545

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रघु और रामू दोनों सीधा पहुंचे हलवाई के पास जहां पर गरमा गरम जलेबीया छन रही थी,,,, गरमा गरम जलेबी को जानते देख रामू और रघु दोनों के मुंह में पानी आ गया लेकिन रघु के मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आना शुरू हो गया था क्योंकि,,,, जलेबियां छानने वाली हलवाई की बीवी थी,,, दोपहर का समय था और दुकान पर कोई भी ग्राहक नहीं था,,, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था शाम की ग्राहकी की तैयारी के लिए जलेबियां छानी जा रही थी,,,, बड़ा सा चूल्हा जल रहा था उसके ऊपर बड़ी सी कड़ाही रखी हुई थी जिसमें गरमा गरम तेल में जलेबी छन रही थी,,, गर्मी का महीना था ऊपर से गरम चूल्हा और आग फूंक रही थी,,, ऐसे में हलवाई की बीवी पूरी तरह से पसीने से लथपथ हो चुकी थी और वह अपनी दोनों टांगे फैलाकर जलेबी छान रही थी उसकी साड़ी घुटनों तक उठी हुई थी जिससे उसकी गोरी गोरी पिंडलिया,,, साफ नजर आ रही थी,,,, जिसे देख कर रघु के मुंह में पानी आ रहा था और साथ ही उसके ब्लाउज के खुले हुए दो बटन और उसमें से झांकते हुए उसके दोनों बड़े-बड़े कबूतर को देखकर उसके लंड में पानी आ रहा था,,,,। रघु तो हलवाई की बीवी को देखता ही रह गया,,, तुम गोरी चिट्टी माथे पर बड़ी सी बिंदी गोल मटोल मो शरीर से थोड़ी मोटी थोड़ी मोटी नहीं थोड़ा सा ज्यादा मोटी थी लेकिन एक नंबर की करारा माल लगती थी,,,, हलवाई की बीवी हर जगह से लेने लायक थी कोई भी मर्द दुकान पर मिठाई लेने आता तो सबसे पहले मिठाई नहीं बल्कि उसे देखकर ही उसके मुंह में पानी आ जाता,,,,
रामू तो उतावला हुआ जा रहा था गरम गरम जलेबी को मुंह में डालकर लकने के लिए,,, रघु हलवाई की बीवी को निहार रहा था कि तभी वह कढ़ाई में बड़े चमचे को हिलाते हुए बोली,,,,

क्या लोगे बबुआ,,,,( रघु की तरफ देखे बिना ही वह बोली,,,)

चाची आज तो घर में गरम जलेबी और समोसे दे दो आज की जलेबी कुछ ज्यादा ही गोल गोल और रस से भरी हुई दिखाई दे रही,,, है,,,

ये हमारी जलेबी है बबुआ इसका रस कम नहीं होने वाला और गोल तो हम ऐसा बनाते हैं जैसे खेत में उगा हुआ खरबूजा,,,

सच कह रही हो चाची वह तो दिखाई दे रहा है,,,,( रघु ऐसा कहते हुए मन ही मन में सोच रहा था कि काश ये अपना तीसरा बटन भी खोल देती तो मजा आ जाता,,, पर बनाता हुआ कबूतर कैद से आजाद हो जाता,,,, यही सब सोचते हुए रघु के तन बदन में आग लग रही थी,,,)

दूर-दूर से आते हैं यहां पर जलेबी लेने,,,,( वह बड़े से जानने वाले चमचे में ढेर सारी जलेबी छानते हुए बोली,,,)

लेने जैसी है तभी तो लोग दूर-दूर से आते हैं,,,( रघु उसकी बड़ी बड़ी चूचियों की गहरी दरार में से चु रहे पसीने की बूंद को ललचाए आंखों से देखता हुआ बोला,,, उसका बस चलता है तो उस पसीने की बूंद को अपनी चीज से चाट डालता,,,)



तुम भी लोगे बबुआ,,,,,,


ककककक, क्या चाची,,,?( रघु एकदम से सकपकाते हुए बोला,,,,)

जलेबी और क्या,,,,

हां हां दे दो,,,,,, दे दो चाची,,,,,

( हलवाई की बीवी गरम गरम जलेबी को तराजू में तौल कर देने लगी और साथ में दो दो समोसे भी रघु आगे हाथ बढ़ाकर जलेबी और समोसे को थामते हुए बोला,,,।)

चाचा जी नजर नहीं आ रहे हैं,,,,

अरे वह बाजार गए हैं सामान लेने,,,,( वह उसी तरह से जलेबी को कड़ाही में छानते हुए बोली,, उसे अभी भी इस बात का आभास तक नहीं था कि रघु जलेबी के साथ-साथ उसके खरबूजा पर भी आंख गड़ाए हुए था,,,, वह पागलों की तरह ब्लाउज में से झांकते उसके दोनों गोलाईयों को ललचाए आंखों से देखे जा रहा था,,,, हाथों से भले ही वह उसकी चुचियों को स्पर्श नहीं कर पा रहा था लेकिन अपनी आंखों से बराबर उसे छु भी रहा था वह पी भी रहा था,,,। आंखों के जरिए अपने तन की प्यास बुझाने की कोशिश करते हुए रघु पागल की तरह हलवाई की बीवी की बड़ी बड़ी चूचीयओ को ब्लाउज के ऊपर से ही देख देख कर अपनी प्यास बुझाता रहा,,,, रघु रामू दोनों जलेबी और समोसे का स्वाद बराबर ले चुके थे,,,,।)

चाची कुछ पीने को मिलेगा,,,,( रघु उसकी चुचियों को भरते हुए बोला,,,)

हां हां क्यों नहीं,,,, पीछे चला जा वही हैंड पंप से चला कर पानी पी लेना,,,,( वह उसी तरह से अपना काम करते हुए बोली,,,)

ठीक है चाची,,,,( इतना कहकर वह पीछे की तरफ जाने लगा,,, तो रामू से भी पूछा,,) तू भी पानी पीने चलेगा,,,

नहीं नहीं तू ही जा,,,,

ठीक है मैं ही चला जाता हूं तु यहीं बैठ,,,, ( इतना क्या कर रहा है हलवाई के घर के पीछे चला गया खड़ी दुपहरी होने की वजह से इस समय कोई भी नजर नहीं आ रहा था,,, चारों तरफ खेत ही खेत नजर आ रहे थे,,,, चार पांच कदम की दूरी पर ही हैंडपंप था,,, जैसे ही रघु हैंडपंप की तरफ कदम आगे बढ़ाया उसके पैर वहीं के वहीं ठिठक गए,,, हेड पंप के लग का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए वहां पर एक लड़की नहा रही थी जो कि पूरी तरह से पानी में भीगी हुई थी,,, उसके बदन पर मात्र टॉवल ही था जिसे वह अपने नितंबों और गोलाकार संतरो को छुपाते हुए अपने बदन पर बांधी हुई थी,,,,, बेहद उत्तेजना से भरपूर नजारा था वैसे तो यह दृश्य बेहद सहज था लेकिन रघु जैसे नौजवान होते लड़के के लिए तो यह नजारा बेहद कामुकता से भरा हुआ था,,,, वह अपने आप को छुपा कर उससे दृश्य का भरपूर रसपान कर पाता इससे पहले ही सूखे हुए पत्तों पर उसके पैर पड़ने की वजह से उसकी आवाज से हुई हलचल की वजह से उस लड़की का ध्यान पीछे की तरफ चला गया,,, पर जैसे ही बार रघु को अपने पीछे खड़ा पाई वो एकदम से हड़बड़ा गई,,,, और हेड पंप के करीब रखे हुए अपने कुर्ती को एक झटके से उठाकर अपने बाकी के नंगे बदन को ढकने की कोशिश करने लगी,,, वह काफी गुस्से में थी और गुस्से में बोली,,,।

पागल हो गए हो क्या तुम्हें इतना भी समझ में नहीं आता कि यहां पर कोई नहा रहा है और चले आए मुंह उठा के,,,

देखो हमसे इस तरह की बातें ना किया करो हम कोई अपने मन से नहीं आए हैं,,,, तुम्हारी अम्मा हमको पीछे भेजी पानी पीने के लिए समझी,,,,

हां तो पानी पीने के लिए आए थे तो पानी पीकर चले जाना चाहिए था जो पीछे से खड़े होकर चोरी छुपे हमको देख रहे हो,,,,

तुम पगला गई हो क्या हमें यहां कितना देर हुआ दो-चार सेकंड ही तो हुआ है,,,,।

तो क्या हमें घंटे ताकते रहोगे क्या,,,,?

हम तुम्हें कहा कि नहीं रहे बस हमारी नजर पड़ गई,,, और वैसे भी हम कुछ देखे ही नहीं है तुम्हारे बदन पर तो यह टावल पड़ा हुआ है,,,,


तो तुम्हें क्या लगता है क्या तुम्हारे सामने नंगी होकर नहाए,,,
( एक लड़की के मुंह से नंगी शब्द सुनकर रघु के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,,।)

हम एेसा थोड़ी कह रहे हैं तुम जो कह रही हो इसके लिए कह रहे हैं,,,,,, पानी पीने दोगी या ऐसे ही चले जाएं,,,,।

आ जाओ पी लो आइंदा से देख कर आना,,,,,

( उसकी आवाज में जादू था वह मंत्रमुग्ध सा आगे बढ़ा और हेडपंप एक हाथ से चला कर पीने की कोशिश करने लगा तो वह खुद ही अपना एक हाथ ऊपर की तरफ करके हैंडपंप पकड़ ली और उसे चलाने लगी,,, रघु तिरछी नजर से उस लड़की को देखते हुए पानी पीने लगा वह लड़की भी बार-बार तिरछी नजर से रघु को देख ले रही थी जो कि उसे बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी,,, रघु पानी पीकर चला गया और उसके जाते हैं वह लड़की मुस्कुरा दी और वापस नहाने लगी,,,। रघु अपने घर के लिए भी जलेबी और समोसे बंधवा लिया,,,,, और जाते जाते हलवाई की बीवी से बोला,,,।)

चाची आज तो मजा आ गया तुम्हारी गोल गोल चु्ं,,,,,, मेरा मतलब है कि जलेबी खाकर,,,,, बहुत अच्छा बनाती हो चाची मैं रोज आता रहूंगा,,,,,( इतना कह कर रखो और रामू दोनों गांव की तरफ जाने लगी,,,, हलवाई की बीवी को उसके कहने का मतलब समझ में आते ही वह अपनी नजर को अपनी चूचियों की तरफ की तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए,,, उसे इस बात का आभास तक नहीं था कि उसके ब्लाउज के दो बटन खुले हुए हैं और उनमें से उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर नजर आ रही थी,,, रघु के बात का मतलब समझते हैं उसे रघु के ऊपर गुस्सा तो बहुत आया,,, लेकिन ना जाने क्यों उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई,,,, वह जल्दी से अपने ब्लाउज के खुले दो बटनो को बंद करके वापस अपने काम में लग गई,,,,।)

रामू आज तो बहुत मजा आ गया आज का दिन बहुत अच्छा है सुबह-सुबह तेरी दोनों बहनों को नंगी देखने के बाद आज सब कुछ मस्त मस्त नजर आ रहा है,,,, सुबह सुबह में तेरी बहनों जो अपनी सलवार का नाड़ा खुल कर अपनी गोल गोल गांड को दिखा कर मेरा दिन बनाई है तो अब तक सब कुछ वैसा ही नजर आ रहा है,,,, झरने के नीचे तालाब में बिरजू बाबू के साथ उस नंगी लड़की की बड़ी बड़ी गांड का नजारा और हलवाई की बीवी की मस्त मस्त चूचियां,,,आहहहहहहा,,,,, साली की चूचियां इतनी बड़ी बड़ी है कि लगता है कि जैसे ब्लाउज के बटन तोड़कर बाहर आ जाएंगी,,,, तू देखा था ना रामू,,,,

नहीं यार मैं कहां देखा था मेरा ध्यान तो समोसे और जलेबी पर ही था,,,,

साला तू एकदम झांटु ही है,,,, ब्लाउज में से रसमलाई टपक रही थी और तू समोसे और जलेबी के पीछे पड़ा था और उसके बाद क्या हुआ तुझे पता है जब मैं पानी पीने उसके घर के पीछे गया,,

नहीं नहीं यार बता ना क्या हुआ,,,

साले पीछे उसकी लड़की नहा रही थी और सिर्फ टावल पहन कर,,

क्या बात कर रहा है रघु,,,

एक दम सच कह रहा हूं,,,

यार मुझे भी तो बुला लिया होता,,,,


बोला था तो तुझे चल पानी पीने लेकिन तू ही इंकार कर दिया,,,, यार उसकी बेटी भी उसी की तरह एकदम गोरी चिट्टी है,,, यार कसम से अगर आज वह बिना टावल के नहाती तो मजा आ जाता उसके नंगे बदन को देखने में,,,,
आहहहहह,,,, आज तो मजा आ गया रामू काश आज रात को कोई चोदने के लिए मिल जाती तो मजा आ जाता,,, यार रामू मुझे एक बार तेरी बहनों की दिलवा दें तो मजा आ जाएगा,,,, कसम से तेरे दोनों बहनों को देखता हूं तो अपने आप ही मेरा लंड खड़ा होने लगता है,,,

देख रामु अब ज्यादा हो रहा है,,,,,

यार तू नाराज क्यों होता है मैं तो मजाक कर रहा हूं चल बहुत देर हो गई है,,,,

( आज सुबह से ही रघु की आंखों के सामने ऐसे ऐसे कामोत्तेजना से भरपूर नजारे आ रहे थे कि वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने सुबह से लेकर शाम तक का नजारा घूम रहा था,,,, इधर उधर भटकते हुए एकदम रात हो गई,,, घर पर शालू खाना खा चुकी थी और बार-बार अपनी मां को खाना खाने के लिए बोल रही थी लेकिन उसकी आदत के अनुसार बिना रघु को खिलाए नहीं खाती थी और रात को तो उसके साथ ही खाती थी,,, गर्मी का महीना था इसलिए शालू और उसकी मां छत पर ही सोते थे,,,, शालू अपनी मां और अपने भाई के हिस्से का खाना छत पर लाकर उसे बर्तन से ढक दी और अपना एक किनारे पर चटाई बिछाकर सो गई उससे 5 कदम की दूरी पर कजरी चटाई बिछाकर रघु का इंतजार करते करते सो गई,,,,,

रात के करीब 10:00 बज रहे थे सारागांव गहरी नींद में सो रहा था और रघु अपने दोस्तों से गप्पे लगाकर अपने घर पर पहुंचा,,,, वह यह भी भूल गया था कि अपने घर के लिए वह जलेबी और समोसे भी खरीद कर रखा हुआ था जो कि अभी भी उसके हाथ में ही था वह जानता था कि इस समय सब लोग छत पर होंगे,,, सो रहे होंगे कि जाग रहे होंगे यह उसे बिल्कुल भी पता नहीं था,,, लेकिन यह जरूर जानता था कि उसकी मां बिना उसके खिलाए खाना नहीं खाई होगी इसलिए वह थोड़ा चिंतित हो गया क्योंकि रात काफी हो गई थी,,, गांव के हिसाब से तो 10:00 का समय बहुत ज्यादा था,,,,।
रघु दवे पांव सीढ़ियां चढ़ते हुए छत पर पहुंच गया,,,,,,,,,, चांदनी रात होने की वजह से छत पर चांदनी छिटकी हुई थी सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था,,, छत पर पहुंचते ही वह इधर उधर नजरे घुमा कर अपनी मां को ढूंढने लगा,,, जैसे ही उसकी नजर अपनी मां पर गई उसके तो होश उड़ गए,,,,
 

rohnny4545

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रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी चांदनी रात होने की वजह से छत पर चांदनी अपनी आभा बिखेरे हुए थी,,, रघु छत पर पहुंचकर अपनी मां को भी इधर उधर नजर घुमाकर ढूंढ रहा था,,, तभी उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी लेकिन अपनी मां पर नजर पड़ते ही उसका दिल धक्क से कर गया,,,, अपनी मां को देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,
उसकी मां उससे 5 कदम की दूरी पर ही चटाई बिछाकर सोई हुई थी,,, लेकिन जिस तरह से वह सोई हुई थी उसे देख कर रघु की हालत खराब होने लगी,,,, कजरी के दोनों पर घुटनों से जुड़े हुए थे और वह सीधा रघु की तरफ ही थे नींद में होने की वजह से उसकी साड़ी पूरी कमर तक चढ़ गई थी और उसने अपने दोनों टांगों को घुटनों से मोड़कर फैला रखी थी ऐसा वह जानबूझकर नहीं की थी नींद की वजह से हो गया था,,,,, लेकिन इस समय रखो की आंखों के सामने उसकी मां की दोनों टांगे खुली हुई थी भरी बदन की औरत होने के नाते उसकी टांगे एकदम सुडोल और चिकनी नजर आ रही थी उसकी मोटी मोटी जांगे केले के पेड़ के तने की तरह एकदम चिकनी और मांसल थी,,,, इस तरह के हालात में रघु ने अपनी मां को कभी भी नहीं देखा था,,, इसलिए जैसे उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी थी वैसे उसकी निगाहें उस पर गड़ी की गड़ी रह गई थी,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था चांदनी रात होने की वजह से छत पर उजाला फैला हुआ था और उजाले में उसकी मां की नंगी गोरी चिकनी टांग एकदम साफ नजर आ रही थी,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह धीरे-धीरे दबे पांव आगे बढ़ने लगा वह नहीं चाहता था कि किसी भी तरह की आहट हो और उसकी मां की नींद खुल जाए और वह एक खूबसूरत नजारे को देखने से वंचित हो जाए,,,, जवान होते हर लड़कों के मन में जिस तरह की इच्छा होती है उसी तरह की चाह इस समय रघु के मन में भी उठ रही थी,,, जवान होते लड़कों के मन में एक ही ख्वाइश होती है औरत के गुप्त अंगो को नजर भर कर देखना, सबसे ज्यादा लड़कों और मर्दों की चाह औरतों की बुर देखने की ही होती है,,, रघु भी उनमें से अछूता नहीं था,,,, अपनी मां की नंगी गोरी चिकनी टांगों को देखकर ना चाहते हुए भी उसके मन की लालच बढ़ती जा रही थी वह चोरी-छिपे ही सही अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करना चाहता था जो कि जिस हालत में वह सो रही थी मुमकिन था कि उसे उसकी मां की बुरी नजर आ जाए,,, क्योंकि अब तक तो उसने यदा-कदा जाने अनजाने में लड़की है और गांव की औरतों के नंगे बदन के दर्शन कर ही चुका था उनकी गोल गोल चूचियां और मदमस्त गांड देखकर अपने लंड की गर्मी को अपने हाथ से हिला कर शांत भी कर चुका था लेकिन अब तक उसने औरतों के सबसे अमूल्य अतुल्य और कामुकता से भरे हुए उस अंग के दर्शन नहीं कर पाया था जिसे देसी लहजे में बुर कहा जाता है और यह शब्द हर जवान होते हुए लडको के लिए एक अनमोल शब्द होता है जिसे वह अपनी जबान पर लाकर ही मस्त हो जाते हैं और मन में कल्पना करने लगते हैं कि वास्तविक बुर्का आकार क्या होता होगा,,, कैसी दिखती होगी कैसा लगता होगा उसका पूरा भूगोल जानने की ख्वाहिश और उत्सुकता हमेशा उन में पनपती रहती है,,,।

उसने आज तक अपनी मां को इस नजरिए से नहीं देखा था लेकिन आज ना जाने क्या हो गया था कि वह अपनी मां की नंगी टांगों को देखकर उसकी तरफ और ज्यादा आकर्षित होने लगा था,,,, कजरी सुगठित मांसल देह वाली थी जिसकी वजह से उसका बदन बेहद आकर्षक और गठीला था यही वजह था कि हर मर्दों की नजर उस पर पड़ी जाती है और उसे देखकर उसकी तरफ आकर्षित हुए बिना उनका मन नहीं मानता था,,,, वही हाल रघु का भी था हालांकि उसने अब तक अपनी मां को गलत नजरिए से कभी नहीं देखा था,,, लेकिन आज अपनी मां की नंगी चिकनी टांगों को देखकर उसका मन देखने लगा था उसके सोचने की दिशा भटक चुकी थी वह किसी भी हाल में अपनी मां की बुर के दर्शन करना चाहता था और अपनी इच्छा को पूरी करना चाहता था,,,, वह देखना चाहता था बुर की बनावट उसकी भूगोल उसकी संरचना को पूरी तरह से समझना चाहता था भले ही उसे छू ना सके लेकिन अपनी आंखों से देख कर उसे से भलीभांति होना चाहता था,,, इसलिए धीरे-धीरे दबे पांव आगे बढ़ रहा था,,, खुली चांदनी में कजरी एकदम साफ नजर आ रही थी,,, देखते ही देखते रहो अपनी मां के बेहद करीब पहुंच गया वह भी भी अपनी मां के पैरों की तरफ खड़ा था जहां से उसकी मां एकदम साफ नजर आ रही थी उसकी साड़ी पूरी तरह से कमर तक चढ़ चुकी थी,,,,, कजरी के कमर के नीचे का पूरा हाल बयां हो रहा था लेकिन जिस पन्ने को रघु अपने होठों से पढ़ना चाहता था अपनी आंखों से देखना चाहता था वह पन्ना खुला ही नहीं था,,, रघु के अरमानों पर पानी फिर गया था क्योंकि कजरी की साड़ी पूरी तरह से कमर तक चली गई थी लेकिन उसकी साड़ी के नीचे की किनारी दोनों टांगों के बीच कजरी के बुर वाली जगह को अपनी आगोश में लिए हुए थी ऐसा लग रहा था कि जैसे,,, यह सब रघु के लिए ही था कजरी की साड़ी नहीं चाहती थी कि रघु उस अनमोल अंग को देखें जिसे वह खुद अपनी आगोश में लेकर दुनिया वालों की नजरों से छुपाए हुए होती है,,,, रघु पूरी तरह से निराश हो चुका था उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह बुर के दर्शन कर लेगा और शुरुआत अपनी ही मां की बुर से करेगा,,,,
रघु बार बार इधर उधर नजर करके ऊपर नीचे हो कर किसी भी तरह से अपनी मां की बुर के दर्शन करना चाहता था जो कि बस हल्का सा साड़ी ऊपर उठ जाने से उसके अरमान पूरे हो जाते हैं लेकिन ऐसा हो सकना इस समय संभव नहीं लग रहा था या तो फिर उसे अपने ही हाथों से अपनी मां की साड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठा कर उसके रसीले गुलाबी बुर के दर्शन कर सकता था,,, लेकिन ऐसा करने की उसके में हिम्मत नहीं थी फिर भी जितना भी अपनी मां के नंगे बदन को भले ही कमर के नीचे की मोटी चिकनी जांघों को देखा था उसने भर मात्र से ही वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था उसके पजामे में उसका लंड गदर मचाया हुआ था,,,,। उसे इस तरह से अपनी मां को चोरी-छिपे देखना खराब भी लग रहा था लेकिन वह नजारा इतना ऊन्मादक था कि वह चाह कर भी अपनी नजरों को अपनी मां के ऊपर से हटा नहीं पा रहा था,,,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था बार-बार अपनी मां की नंगी चिकनी टांगो को देखकर पजामे के ऊपर से ही अपने लंड को दबा दे रहा था,,,, यह सब करते हुए अपने मन में सोच रहा था कि नहीं यह सब गलत है यह सब से नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उसकी मां है मां को इस नजरिए से नहीं देखा जाता पाप लगेगा यह सब भावना उसके मन में आ रही थी लेकिन रघु जवान हो रहा था अरमान मचल रहे थे ऐसे में औरतों के नंगे बदन का दीदार मात्र जवानी की आग भड़काने के लिए काफी होता है,,, रघु तो पहले से ही इधर-उधर इसी ताक में रहता है कि कब किस औरत या लड़की के नंगे बदन के दर्शन हो जाए ऐसे में उसकी मां का इस तरह से टांगे खोल कर गहरी नींद में सोना रघु की उफान मारती जवानी पर लगाम कस पाने में असमर्थ साबित हो रही थी रघु अपनी मां की नंगी चिकनी टांगों को देखकर बेलगाम होता जा रहा था,,,


रघु लगभग 20 मिनट से इस हालात में अपनी मां के नंगे बदन के दर्शन कर रहा था जो कि केवल कमर के नीचे से ही नंगी थी ऊपर से वह पूरी तरह से दुरुस्त थी लेकिन शायद अभी तक रघु ने ठीक से अपनी मां के कमर के ऊपर वाले बदन पर गौर नहीं किया था,,,, जैसे ही उसे इस बात का एहसास हुआ उसके बदन में करंट सा लगने लगा उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां की छातियां काफी बड़ी है साड़ी छातियों से नीचे सरक गई थी जिससे कजरी के ब्लाउज में कसी हुई जवानी से भरपूर गोलाइयां किसी तूफान की तरह नजर आ रही थी,,,, कजरी के ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे और पीठ के बल लेट होने की वजह से उसके ब्लाउज में कैद दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारे की तरह ऊपर की तरफ लुढ़के हुए थे जिससे उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर नजर आ रही थी,,,,।
उत्तेजना के मारे रघु का गला सूखता चला जा रहा था,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था बाहर जाकर दोनों चुचियों के बीच की गहरी लकीर जंगल में से गुजरती हुई गहरी नदी की तरह लग रही थी,,, जो कि बेहद मनमोहक प्रतीत हो रहा था,,, रघु का मन कभी-कभी ग्लानि से भर जा रहा था तो कभी-कभी अपनी मां के मनमोहक अंगों को देखकर मन बहक ने लग रहा था,,,, अपनी मां की मदमस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर उसकी इच्छा हो रही थी कि दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर उसे जोर जोर से दबाए,,,, उसे मुंह में लेकर पी जाए,,,, लेकिन ऐसा करने के लिए हिम्मत होनी चाहिए जो कि इस समय रघु में बिल्कुल भी नहीं थी,,,, अपनी मां की मौत हो चुकी हो को देखते हुए उसकी नजर जैसे ही एक बार फिर से कमर के नीचे की तरफ पहुंची तो एक बार फिर से उसके मन की लालसा अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करने के लिए बढ़ने लगी,,, वह बड़े गौर से अपनी मां को बेसुध सोया हुआ देख रहा था,,, और जिस तरह से उसके तन बदन में बिल्कुल भी हलचल नहीं थी उसे देखते हुए रघु की हिम्मत थोड़ी बढ़ने लगी थी वह मन में ऐसा सोचा था क्या करो अपने हाथ से अपनी मां की साड़ी की किनारी को उठाकर थोड़ा सा ऊपर कर दे तो उसकी मां की बुर उसे देखने को नसीब हो जाएगी,,, और यही करने के लिए वह मन में ठान लिया था एक बार फिर से वह अपनी मां के चेहरे की तरफ देखा वह पूरी तरह से निश्चल भाव से एकदम गहरी नींद में सो रही थी रघु समझ गया कि अगर वह अपने हाथ से अपनी मां की साड़ी थोड़ा सा ऊपर उठाएगा तो ऐसे में उसकी मां की नींद नहीं खुलेगी,,,, और वह अपनी मां की साड़ी उठाने के लिए थोड़ा सा नीचे की तरफ झुके कर अपने दो कदम पीछे लेकर उसकी कमर तक पहुंचने की कोशिश कर ही रहा था कि उसके पैर से टकराकर पास में रखा बर्तन गिर गया और वह झट से उस बर्तन को उठाने के लिए पीछे की तरफ घूम गया लेकिन बर्तन गिरने से उसकी आवाज से कजरी की नींद खुल गई और वह छटपटाते उठ कर बैठ गई,,, उसकी नजर शुभम पर गई तो वह नीचे गिरी बर्तन को उठा रहा था उसकी पीठ कजरी की तरफ थी और कचरी झट से अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों को दुरुस्त करने लगी,,,
अपनी पीठ पीछे हो रही चूड़ी और पायल की खनक इनकी आवाज सेवा इतना तो समझ गया कि उसकी मां जाग गई है इसलिए बहुत तेजी से अपना दिमाग घुमाते हुए मां अपनी मां की तरफ देखे बिना ही बोला,,,

क्या करती हो मैं इधर उधर बर्तन रख देती हो जैसे ही मैं छत पर आया वैसे ही मेरे पैर से बर्तन टकरा गया,,,, और यह गिलास में रखा हुआ पानी गिर गया,,,,

यह शालू भी ना इधर उधर रख देती है,,,,( इतना कहकर वो उठने लगी अभी भी रघु अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था उसके अंदर अंदर बैठ गया था कि कहीं उसकी मां को पता ना चल जाए कि वह सोते हुए उसे देख रहा था।) तू ही रुक मैं तेरे लिए पानी लेकर आती हूं तूने सुबह से आज कुछ नहीं खाया है तेरे इंतजार करते-करते मैं भी सो गई,,,

तू खाना नहीं खाई हो मां,,,,

नहीं रे क्या ऐसा कभी हुआ है कि मैं तेरे बगैर खाना खाकर आराम से सो गई हूं,,,, तू यहीं रुक मैं पानी लेकर आती हूं फिर हम दोनों खाना खाते हैं,,,,( इतना कहकर कजरी छत से नीचे चली गई और प्रभु उसे ज्यादा हुआ देखता रहा वह अपनी मां का वात्सल्य देख रहा था उसकी ममता देख रहा था कि उसको खिलाई भी ना वह खुद नहीं खाई है और वह कितना बड़ा पाप कर रहा था कि अपनी मां के नंगे बदन को देखकर उत्तेजित हो रहा था और तो और अपने हाथ से उसकी साड़ी उठाने जा रहा था उसकी बुर देखने के लिए वो कितना गंदा है कितना कमीना है पापी है अपनी मां को ही गंदी नजर से देख रहा था,,,, यह सब सोचकर रघु एकदम ग्लानि से भर गया और आइंदा कभी भी अपनी मां को गंदी नजर से नहीं देखेगा यह कसम मन ही मन खा लिया,,,, थोड़ी ही देर में उसकी मां पानी लेकर आई और दोनों बैठ कर खाना खाने लगे,,,, तभी रघु अपने साथ लाया हुआ जलेबी और समोसा अपनी मां की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोला,,,, मां मैं आज हलवाई के वहां गरमा गरम जलेबी छन रही थी तो जलेबी और समोसे लेकर आया था,,,

अच्छा-अच्छा शालू को भी जगा दें वह भी खा ले वरना सुबह तक खराब हो जाएगा,,,( कजरी अपने होठों पर मुस्कुराहट लाते हुए बोली और रघु जाकर अपनी बहन शालू को जगा कर ले आया और उसे भी समय से और जलेबी या दिया,,,, तीनों बहुत खुश थे लेकिन रखो अंदर ही अंदर घुटता सा महसूस कर रहा था क्योंकि आज जो उसने किया था वह बिल्कुल गलत था बात था और उसके प्रायश्चित के रूप में वह कसम खाकर आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी ऐसा मन में मान कर खाना खाकर सो गया,,,)
 
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