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Bahut hi badhiya update. Komal ji you are a great writer of erotika.और,
और दंगा नहीं हुआ।
बहुत लोग दंगा चाहते थे, छोटे ठाकुर, सरकार बदनाम होती, होम मिन्स्टर की कुर्सी हिलती, चीफ मिनिस्टर पर भी आंच तोआती ही
पुलिस वाले भी, ये डीबी का सस्पेंशन तो पक्का है बहुत आग मूतता था, दो चार महीने तक तो पोस्टिंग का सोचना भी मत और उसके बाद भी कहीं इधर उधर,
रियल एस्टेट वाले, --दंगा होगा आग लगेगी तो स्साले सब जो पुराने पुराने मकान प्राइम प्रॉपर्टी की जगह दबा के बैठे हैं, सब बेच बाच के चले जाएंगे, वो भी औने पौने दाम में और फिर एक एक मकान की जगह दस दस फ्लैट निकलेंगे
मिडिया वाले - कुछ दिन तक टी आर पी मिलेगी, वरना ये सास बहुत के सीरियल के आगे न्यूज कौन पूछता है
और भी बहुत लोग थे, मजे लेने वाले,
लेकिन ज्यादातर लोगों को फरक नहीं पड़ता था
हाँ कुछ लोग थे, जो बहुत शिद्दत के साथ चाहते थे दंगा न हो और उनमे मैं भी था,
दंगा मतलब कर्फ्यू, मतलब गुड्डी के साथ जाने का प्रोग्राम अटक जाता और जो माला डी, आई पिल वैसलीन की बड़ी शीशी, चंदा भाभी के दिए लड्डू और सांडे का तेल, और सालों का इन्तजार की गुड्डी के साथ ये करूँगा वो करूँगा, जो चंदा भाभी और संध्या भाभी ने पढ़ाया, ट्रेन किया सब बेकार और गुड्डी की डांट अलग पड़ती,
" कहती हूँ, ज्यादा प्लानिंग मत किया करो "
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लेकिन दंगा नहीं हुआ, इसका मतलब की बस थोड़ी देर में मैं गुड्डी के साथ घर के लिए और प्रोग्राम पक्का और एक बार घर पहुंच गए
नहीं नहीं ज्यादा प्लानिंग नहीं,
लेकिन एक बात और थी जो बाद में मालूम चली
संजरपुर, आजमग़ढ में ही है, वहां होली के जस्ट बाद एक तब्लीगी या किसी और जमात का जबरदस्त जमावड़ा था, ग्लोबल लेवल का , दो तीन लाख लोग आते दो तीन दिन का
लेकिन ख़ास बात ये थी की उसमे कुछ ख़ास लोग भी आ रहे थे, एक तो यहीं के थे जो कई पीढ़ी पहले गल्फ में चले गए जब अदन हिन्दुस्तान का हिस्सा था, तब से और अब वहां के सबसे बड़े बिजनेसमैन में एक है, चार पांच खाड़ी के देशो में मॉल, रियल एस्टेट, हॉस्पिटलिटी सबमें नंबर दो पर और उन के साथ, उन के अच्छे दोस्त, कतर के कोई छोटे मंत्री, लेकिन शेख के खानदान से सीधे ताल्लुक रखते थे और उस लेवल के तो नहीं लेकिन आस पास के लेवल के खाड़ी देशो के आठ दस और इन्फ्लुएंशियल लोग आने वाले थे
अब बनारस में दंगा होता और होली इतनी नजदीक तो आस पास के जिलों में आंच पहुंचती और उस जमावड़े पर तो जरूर ही, अभी से कुछ स सोशल मिडिया वाले आग उगल रहे थे, तो वर्स्ट सिनेरियो में उस जमावड़े के लोग भी कहीं, और बहुत सेफ्टी होती की उसे कैंसिल कर दिया जाता
लेकिन उसी जमावड़े के समय ही एक ग्लोबल इन्वेस्टमेंट मीट भी लखनऊ में थी, तीन दिन की और उस जमावड़े में आने वाले वो बिजनेसमैन, उनकी मुख्या भागीदारी होती। करीब डेढ़ दो सौ करोड़ का उनका इन्वेस्टमेंट का प्लान था और मुख्य मंत्री से बात हो चुकी थी एक मॉल उनके शहर में भी खुलेगा, उसका अनाउंसमेंट भी, और भी बड़े प्रोाजेक्ट, गल्फ की हिस्सेदारी काफी होनी थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात थी की उस इन्वेस्टमेंट मीट का उद्घाटन केंद्र के गृह मंत्री को ही करना था और कुछ लोगों का यह कहना था की केंद्र के एक मंत्री के लड़के के साथ कुछ ज्वाइंट वेंचर्स पर भी शायद बात होती, और उसमे वो क़तर के छोटे मंत्री का भी रोल रहता।
दस दिन बाद प्रधान मंत्री की खाड़ी देशो की यात्रा भी थी, और इलेक्शन अभी चार साल दूर थे
तो मौसम भी दंगे के लिए ठीक नहीं था।
तो सौ बात की एक बात, दंगा नहीं हुआ और मेरा और गुड्डी का प्रोग्राम पक्का, और अब मैं लालची थी सोच रहा था की चंदा भाभी की बात सच्ची हो जाए, गुड्डी हरदम के लिए,...
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मान गए राव को. इलेक्शन के वक्त इस्तेमाल की हुई गाड़ियों को किस तरह से यूज किया. और एक नकली चहल पहल दिखा कर माहोल नार्मल कर दिया. ताकि पब्लिक को सब नार्मल लगे. दूसरा मिठाई की दुकाने तो खुल ही चुकी है. क्या जबरदस्त प्लान है.मिस्टर राव, कलेकटर,
तभी मिस्टर राव भी अंदर आये, कलेकटर, डीबी से करीब ६-७ साल सीनियर, उनकी चौथी , कलेकटर, की पोस्टिंग थी। आई एआई ए एस में २२ साल की उम्र में सेलेक्शन के पहले वो इंडियन इंस्टीयूट आफ साइंस से एस्ट्रोफोजिक्स का कोर्स कर रहे थे, मुख्य रूचि तेलगु साहित्य और कर्नाटक संगीत में थी और अब बनारस आने के बाद हिन्दुस्तानी संगीत में भी , थोड़े अंतर्मुखी, मितभाषी और डीबी को छोटे भाई की तरह मानते थे , दोनों लोग हर जगह साथ ही जाते, एक गाडी में।
एक तो उन्हें लगा की दंगे की आशंका बढ़ती जा रही है और जब उन्हें पता चला की डीबी कंट्रोल रूम में हैं तो वो भी, निकल पड़े। उसके पहले चीफ मिनिस्टर आफिस से भी उनके पास फोन आ गया था, कुछ भी हो दंगा नहीं होना चाहिये।
कमिश्नर श्री अयंगर का भी फोन आया और कुछ टिप भी। अयंगर, तमिल ब्राहम्ण, संस्कृत के प्रकांड पंडित, और दर्शन में भी दखल रखते थे। कमिश्नर पदेन काशी के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ट्रस्टों के हेड होते हैं पर यह ज्ञान के आधार पर भी बाकी से बीस पड़ते थे और जब पूजा करने बैठते थे तो बाकी के पंडित बस देखते थे, इसलिए उनका सम्मान बहुत था। पर वह सीधे प्रशाशन में दखल कम देते थे क्योंकि उनका मानना था की यह डी एम् और एस एस पी का क्षेत्र हैं हाँ निगाह रखते थे और अपने अनुभव से हेल्प भी करते थे।
कलेकटर साहेब ने सेन को आर टी ओ को इंस्ट्रकशन देते सुना तो मुस्कराये और उसकी पीठ पर हाथ रख के बोलै ' वेल डन और अपना इनपुट भी दिया। उनके साथ एक एस डी एम् थे, उन्हें काम पर लगा दिया,
" सारे सरकारी डिपार्टमनेट्स के पास पुलिस को छोड़ के कितनी गाड़ियां होंगी, इलेक्शन के टाइम पे हम लोग लगाते हैं न ड्यूटी पे ?"
" ४२८ सर, कार्पोरेशन छोड़ के " तुरंत जवाब आया।
" उन को भी पकड़ो और सब पंद्रह मिनट में सड़क पे होनी चाहिए, कम से कम साढ़े पांच बजे तक और रुट प्लान बना के मॉनिटर शुरू कर दो "
उन्होंने ने उसे काम पर लगाया और खुद एक नया मोर्चा खोलने में जुट गए, पीस कमिटी। हर शहर में जिला और शहर के लेवल पर, फिर मोहल्ले के लेवल पर पीस कमेटिया होती हैं, दोनों सम्प्रदयों के लोग , विधायक कार्पोरेटर और प्रशासन। डीएम उसका पदेन अध्यक्ष होता है। वह पांच साल पहले भी बनारस में पोस्टेड थे, सिटी मजिस्ट्रेट, तो बहुत से लोगों को पहले से जानते थे।
कौन डीएम खुद फोन करेगा, और वैसे भी वो मितभाषी थे और उनकी बात में बहुत वजन था, तो पहले दोनों सम्प्रदायों के लोगो से, और उनकी बात के बाद दंगे की अफवाहों पर न सिर्फ विराम लगा बल्कि एक विश्वास भी जगा और बाई वर्ड आफ माउथ वः जानते थे की दस पन्दरह मिनट में हवा में फैला डर घुलने लगेगा, हल्का पड़ जाएगा, और साथ में दुकाने भी खुल रही थीं , सड़क पर ट्रैफिक भी नजर आ रहा था।
स्थिति सामान्य होनी शुरू हो गयी थी।
राव साहेब ने फिर जो हर बार सबसे ज्यादा दंगो में झुलसने वाले मोहले थे, जिनके बारे में हर तरह के नैरेटिव थे उनके लोगो से बात करना शुरू किया और यह भी कहा की शाम को पांच बजे चौराहे पर मोहल्ले के लोगो से और मोहल्ले की शान्ति कमिटी से मिलेंगे।
जो सबसे बुजुर्ग थे एक मौलवी साहेब उन्होंने साफ़ मना कर दिया , बोले आप ने कह दिया हम लोग मुतमइन हैं , हाँ ईद में आप जरूर आइये। मुस्कराकर राव साहेब ने सेन की ओर देखा और बोले, तो ठीक है मैं सेन साहेब को भेज दूंगा और साथ में सी ओ साहेब भी ।
तय हो गया और ये भी की उसके पहले वो लोग भी यहीं आएंगे।
उसके बाद कमिश्नर साहेब ने जिन जिन से बात की थी, तमाम धार्मिक स्थलों के लोगो से और उनसे अपील करने के लिए अपील की और फिर सबसे अंत में विधयकों और सारे दलों के नेताओं से बारी बारी कर के, लेकिन मिस्टर राव का असली रोल था लखनऊ की भूमिका ठीक करने में
मिस्टर राव २२ साल में सर्विस में आये थे, बैलेंस्ड थे और ईमानदार भी, इसलिए ज्यादातर लोग मानते थे की यह अगर कैबिनेट सेक्रेटरी नहीं भी बने तो यूपी के चीफ सेक्रेटरी होने से इन्हे कोई रोक नहीं सकता था, इसलिए प्रशानिक हलकों में इनसे सीनियर हों या जूनियर इनकी बात का लिहाज करते थे। और मिस्टर राव् को लग गया था की छोटी मोटी झड़प तो लोकली निपट सकते हैं , लेकिन जिस तरह से हर मोहल्लो से खबरे आ रही थीं ये बड़े स्तर का मामला हो सकता है और इसलिए इसके सूत्र लखनऊ से जुड़े होंगे और लखनऊ में बैठे आकाओं में कुछ की पीठ पर दिल्ली वालों का भी हाथ हो सकता है , इसलिए वहां कैंची चलाना जरूरी है।
राव और डीबी उस कमरे में बैठे थे जहाँ घंटे दो घंटे पहले गुड्डी थी, बाकी लोगो से थोड़ा अलग लेकिन कंट्रोल रूम से जुड़ा, कंट्रोल रूम में प्रशानिक और पुलिस के लोग भी बैठे और वहां से सूचनाएं आ रही थीं।
कहानी मे एक तो ऐसा दबंग चाहिये ही. आपने सिर्फ आनंद बाबू से ही लीड नहीं करवाई. बारी बारी हर एक की स्पेशलिटी उजागर की. अमेज़िंग.सिद्दीकी
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सिद्दीकी का रोल बड़ा ही इम्पोर्टेन्ट था उसके पास सात खून माफ़ जैसे एनकाउंटर वालों का समूह नहीं था, लेकिन उसकी अपनी रेप्युटेशन बड़ी जबरदस्त थी, माफिया वाले तो क्या पूरे जिले के थानेदार उसके नाम से थरथराते थे.
लेकिन सिद्द्की की ताकत उसकी अपनी थी और सबसे अलग, उसका नेटवर्क, अंडरग्राउंड वर्ड की समझ और पकड़ और उसमे पहुँच, उसकी ईमानदारी और हेल्प करने की ताकत, और जिसको जो जुबान दिया उसके लिए खड़े होने की ताकत और उसके इन सारे गुणों को डीबी ने समझा था।
माफिया उन्मूलन अभियान में वो सबसे आगे थे, और जितने बड़े माफिया थे, कुछ बिहार, उड़ीसा कुछ नेपाल चले गए , कुछ ने फुल टाइम ठीकेदारी शुरू कर दी लेकिन बनारस के बाहर। पर उन बड़े सरगनाओं की जो ताकत थे, जिनकी गली मुहल्लों में इज्जत थी, असर था, उनमे से बहुतो ने उस धंधे से तोबा कर ली, जब वो पेड़ ही नहीं रहा, जिस पर चिड़िया घोंसला बनाती थी तो फिर, लेकिन चिड़िया दाना तो खाएंगी ही, बीबी बच्चे।
सिद्द्की ने बहुतों की न सिर्फ जान बख्श दी बल्कि इस शर्त पर की वो बुरे धंधो से परहेज करेंगे, अभय भी दिया।
उनमे से एक तो पैसो की किसी को कमी नहीं थी फिर बहुतों के सफ़ेद धंधे भी थे, साइकिल स्टैंड, कार पार्किंग , कुछ तो कार्पोरेटर भी बन गए थे और सबसे बढ़कर जो माफीया के लोग मारे भी गए या शहर छोड़ के चले भी गए, उन के परिवार, बीबी बच्चो पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता था, न खिलाफ गैंग वाले, न पुलिस वाले वह खुद कभी जाता तो आँखे नीची किये, और दस बार बोल के, कि अगर कोई परदे में हो तो हट जाए,
और अंडरवर्ल्ड में सिद्द्की का जितना डर था उतनी ही इज्जत भी और उसके कहने पर लोग कुछ भी करने को तैयार होते थे
और उसी तरह पुलिस वाले, जो अपनी हनक के कारण, या किसी नेता को नाखुश करने के लिए साइड में हो गए थे, लेकिन उनमे हिम्मत और काबिलियत थी, उनमे से एक एक को चुन चुन के सिद्दीकी ने डीबी के आने के बाद फिर से बहाल करवाया, किसी को आर्गनाइज्ड क्राइम में , किसी को मर्डर स्क्वाड में, किसी को क्राइम ब्रांच में, और वो सब भी जितने बड़े से छोटे बदमाश थे, एक एक को पहचानते थे और वो बदमाश भी उन्हें पहचनते थे कि अगर उनके हत्थे पड़ गए तो उठाये नहीं जाएंगे, उठ जाएंगे।
फिर बाकी थानों से भी खबर उसके नाम कि वजह से आती रहती थी,
और सबसे बढ़कर वह खुद आठ दस बदमाशों के लिए काफी था, उसके ऊपर पांच बार जानलेवा हमले हुए, लेकिन हर बार वह बचा नहीं ,बल्कि गोली लगने के बाद भी फायर करने वाले का हाथ तोड़ कर उसकी पिस्तौल से, ….उसकी बुलेट दूर दूर से लोग पहचानते थे।
तो सिद्दीकी को जैसे ही अंदेशा हुआ था, उसने अपने नेटवर्क को एक्टिवेट कर दिया, और हर मोहल्ले के जो दादा थे या भूतपूर्व दादा , जिनकी हनक अभी थी न सिर्फ अपने मोहल्ले में बल्कि पूरे इलाके में, वो घर से निकल कर गलियों के मुहानो पर, फिर उनके साथ उनके भी दो चार चेले चपाडी, और जो भी गली में उत्पाती आते, बस एक नजर काफी होती। बिना कुछ बोले उनका घूरना काफी था, और एक दो आगे बढे तो चेलों ने ही सुताई कर दी।
गलियों का चक्कर ये था कि पुलिस कि ट्रक वहां घुस नहीं सकती थी, और कई बार पैदल पुलिस वाले फंस जाते थे। तो डनगायी पहले गलियों पर कब्ज़ा करते, जिन जिन इलाकों में उनकी ताकत होती वहीँ से शरुआत करते , और उन्ही गलियों से निकल कर सड़कों पर और गली, गली जिन महलों में उत्पात मचाना होता वहां भी
लेकिन सिद्द्की को हर गली का भूगोल, समाजशात्र और अर्थशास्त्र मालूम था और उसकी पैदल सेना ने गलियों पर कब्ज़ा करने कि योजना को नाकमयाब कर दिया।
जो थोड़ा बड़े गुंडे थे, उनके जिम्मे दंगो में भीड़ इकठा करना, हथियार, पेट्रोल, वोटर लिस्ट लेकर मोहल्ले मोहल्ले चेक करवाना
पर ये जो सिद्द्की के स्पैशल इंस्पेकर थे, कोई क्राइम में, कोई आर्गनाइज्ड क्राइम में उन्हें सब जानते थे और वो जगह जगह और वो न सिर्फ खबर पहुंचा रहे थे बल्कि उन गुंडों के पास जाकर कान में यही बोलते, घर में घुस जाओ, वरना सिद्दीकी साहेब आ रहे हैं "
तो जो कई जगह भीड़ इकठ्ठा होनी शुरू हुयी वो बड़ी नहीं हो पायी और धीरे धीरे कुशल नेतृत्व के अभाव में पीछे सरकने लगी
और सिद्द्की खुद अकेले, जिन इलाको से भीड़ कि खबर आती, अपनी बुलेट पर
तो जब दुकाने खुलना शुरू हुयी, भीड़ सड़क पर लौटी दुष्ट दमन चालु हो गया था।
क्या अमेज़िंग तिगड़ी बनाई है. DB, सिद्दीकी और खान. Amezing. ला ज़वाब. माहोल नार्मल कर के चहल पहल करवाई. उन्हें मालूम था की दगाई आएँगे. तैयारी पहले से थी. DB के लिए हथियार कहा से आए यह पता करना नार्मल बात है. लेकिन दगाई तो पकडे ही गए.डीबी
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डीबी की बात ही अलग थी,
जितना बाकी लोगों का कंट्रीब्यूशन था दंगा रोकने में उससे ज्यादा शायद डीबी का अकेले, और आज वो अपनी ताकत मेधा और ऊर्जा के १२० % पर काम कर रहे थे थे, और सबसे बड़ी बात उनके मन में कई दिनों से आशंका थी, की कहीं कुछ गड़बड़ होने वाला है लेकिन वो उस पर अपनी ऊँगली नहीं रख पा रहे थे। और जब चु दे बालिका विद्यालय में दर्जा नौ की लड़कियों के साथ घटना की उन्हें खबर मिली तभी वो उस घटना के आगे बढ़कर देखने लगे, और उन्हें अंदाज लग गया की कोई इस की आड़ में आग लगाएगा, भुस वैसे ही सूखा है बस एक तीली लगाने की देर है और लड़कियों को तो बचाना है ही लेकिन उसके बाद की भी तैयारी करनी होगी।
और उन्होंने अपने सारे सिस्टम को आखिरी गियर में पहुंचा दिया ।
एस एस पी , पुलिस कप्तान बहुत पावर होती है और वो भी ऐसा कप्तान हो जिसे खुद चीफ मिनिस्टर ने चुन के पोस्ट किया हो, जो अभी भी सी एम् को सीधे फोन घुमा सकता हो तो आगे आप सोच सकते हैं पर पुलिस की फ़ोर्स के ताकत के अलावा भी तीन चार बातें ऐसी थीं जो कम लोगो को मालूम थी और वो उन्हें अलग ही ताकत देती थी
पहला था उनका इन्फॉर्मेशन नेटवर्क और ये इन्फॉर्मर पुलिस के वो इन्फॉर्मर नहीं थे, न उनका नाम किसी थाने में था ायहैं तक की सिद्द्की को भी उनकी हवा नहीं थी, लेकिन शायद ही कोई मोहल्ला हो जिसमे डीबी के ये आँख कान न हों और सबसे बड़ी बात ये समाज के हर तबके , जाति और धर्म से आते थे, कुछ बड़े बिजनेसमैन, कुछ मिडिया वाले से लेकर रिक्शे वाले और स्टेशन के कुली भी इसमें थे
और सबके पास डीबी का ख़ास नंबर था। चुम्मन के मामले में भी डीबी से सोनारपुरा से एक आदमी को बुलाया और उसने न सिर्फ चुम्मन की कुंडली खोल के रख दी, बल्कि सीधे उसकी माँ को बुला लाया
और इस नेटवर्क को ऑरेंज अलर्ट पर तो तीन चार दिन से डीबी ने कर ही रखा था , लेकिन जैसे ही चु दे स्कूल वाली घटना घटी रेड अलर्ट पर कर दिया। और जो खबरे लोकल इंटेलीजेंस नेटवर्क से नहीं आ रही थीं वो भी डीबी के पास, यहाँ तक की गुंजा पर जब ऐसीड अटैक और बॉम्ब अटैक की कोशिश हुयी और गुंजा को उसके जीजू ने बचा लिया, वो भी दस मिनट के अंदर इसी नेटवर्क से डीबी तक पहुँच गयी
और डाटा प्रॉसेसिंग के मामले में तो वो सुपर कंप्यूटर को टक्कर देते थे
लेकिन डाटा उनको खाली अपने इन्फॉर्मर से नहीं मिल रहा था,
तकनीक और टेलीफोन सर्वेलेंस के मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो का जवाब नहीं था लेकिन अकसर स्टेट पुलिस और आई बी में अक्सर ३६ का आंकड़ा रहता, और वैसे भी उनके लेवल का आफिसर जब आईबी में होता तो पूरे प्रदेश के लेवल का भार उसके ऊपर होता, उनके सीनियर अफसर अक्सर दिल्ली में ही रहते, लेकिन बिना लेवल का ख्याल किये एक ग्रुप बी लेवल के आफिसर से डीबी ने जबरदस्त दोस्ती बनायीं थी, उसे खूब रिस्पेक्ट भी देते और उसके जिम्मे सिर्फ बनारस का ही नहीं बल्कि पूर्वांचल का पूरा काम था, बस। डीबी का एक इशारा और उसने सारे रिसोर्सेज लगा दिए, उसकी सर्वेलेंस वान मोबाइल के हर टावर की हाल चाल ले रही थीं और अगर कोई कितना भी नंबर बदल बदल के बात करे, उसकी आवाज के प्रिंट से उसे ट्रेस कर लिया जाता था। उसके अलावा उनके पास ऐसे कैमरे थे, की बंद कमरे के अंदर क्या सामान है वो भी पता चल जाता ।
तो बस, जो जो बातें इन्फोर्मर्स से पता चलीं वो सब आई बी के पास और और फिर सबकी काल रिकार्डिंग और एक काल से दूसरी काल जुडी और आई बी ये भी नहीं देखती की वो किस पार्टी का नेता है या बिजनेसमैन हैं या किसके कनेक्शन कहाँ है, तो सब बातें डीबीबी को मालूम थीं, हथियार कहाँ हैं, आदमी कहाँ हैं, प्लान क्या है और सबके काल रिकार्ड के साथ सबूत। और कुछ काल उन्होंने लखनऊ और दिल्ली भी बढ़ा दी
और जब इन्फॉम्रेशन हो तो एक्शन की तैयारी भी पूरी थी, उनका प्लान था की जैसे लड़कियां बच के निकल जाएँ, …..लेकिन बीच में एस टी ऍफ़ वाले आ गए और उन्हें ये भी पता चला की गुंजा पर हमले से ही दंगे को ट्रिगर करने की प्लानिंग हैं, बस एक बार गुंजा निकल गयी और जैसे ही उन्हें गुंजा के ऊपर ऐसिड वाले हमले की और गुंजा के बचने की खबर मिली उन्होंने एक्शन के लिए ग्रीन सिंग्नल दे दिया।।
उस इलाके में इसलिए उन्होंने रैपिड एक्शन फ़ोर्स लगा रखी थी और बस उन्होंने पिटाई शुरू कर दी। उन्हें दंगे से निबटने की ख़ास ट्रेनिंग मिली थी और उनके साथ एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड की भी टुकड़ी थी, तो सड़कों पर टायर जलाकर हमला कर के गलियों में छुपाने की उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पायी।
गलियों में कहीं सिद्द्की के कहीं स्पेशल कमांडो वाले लोग थे बस, पहले बीस मिनट में ही सात जगहों पर करीब डेढ़ सौ लोग पकडे भी गए, पीटे भी गए, और उन्हें पकड़ के किसी लोकल थाने में या कोतवाली में ले जाने के बजाय गंगा पार, रामनगर के पी ए सी के कैम्प में पहुंचा दिया गया, जहाँ चिड़िया भी पर नहीं मार सकती थी और उन लोगो को बोला गया की अपने आका लोगों के नाम बताएं वो भी कैमरे के सामने भी और मजिस्ट्रेट के सामने भी वरना अगले दिन बनारस के ही नहीं प्रदेश के भी बाहर कर दिए जाएंगे।
डीबी मशहूर थे इस काम में और एक से एक बड़े बड़े माफिया बाहर कर दिए गए थे और उनके जितने नाते रिश्तेदार बचे थे सबकी जड़ें, रंगदारी और ठीके की काट दी गयी थीं, तो बस उन सबों ने सब उगल दिया।
कुछ उन की सूचना पर, कुछ आई बी की और इन्फॉर्मर की सूचना पर, जहाँ जहां पेट्रोल इकठ्ठा किया गया था, गाड़ियां खड़ी थीं, हथियार थे, गुंजा के औरंगबाद घर पहुँचने के पहले ही छापे शुरू हो गए। सिर्फ बड़े लोग छोड़ दिए गए, इसलिए की वो घबड़ा के लखनऊ के अपने आका लोगों को फोन करेंगे और वो सारे फोन रिकार्ड होंगे । हाँ उनके घरों के बाहर पुलिस मुस्तैद थी, हर आने जाने वाले का नाम नोट किया जा रहा था, आई बी की एक वान काल रिकार्ड कर रही थी,
यह भी बात सही थी की रात होते ही अगल बगल के जिलों से, गाँवों से लोगों के आने की खबर पक्की थी और कुछ चुने हुए मोहल्लों में ट्रांसफार्मर के उड़ाए जाने की, और बिजली विभाग के भी कई कर्मचारी मिले थे।
वो लोग भी पकडे गए।
दंगा शुरू होने के पहले ख़तम हो गया।
तो असली विलन अब सामने आया है. खुद पॉलिटिक्स मे है. और ऊपर तक की पहोच है. पर फिर भी बाजी छोटे ठाकुर के हाथ से निकल गई. बोखला गया ठाकुर तो. माझा आ गया.छोटे ठाकुर
और छोटे ठाकुर, जिनके पिता की भी कभी तूती बोलती थी, और जिस कारण वो छोटे ठाकुर ही कहे गए, इस समय छोटे गृह मंत्री, लखनऊ में माल एवेन्यू में एक बड़ी सी कोठी, अगल बगल भी मंत्री निवास, और उस समय वहां ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी, लेकिन पुलिस के जवान, बॉडीगार्ड और कमांडो तैनात थे, अगल बगल भी कुछ छोटे मंत्रियों के निवास और पास ही में एक भूतपूर्व महिला मखमंत्री का बड़ा सा बंगला, वो उप
गृह मंत्री थे, लेकिन जलवा कम नहीं था इलेक्शन के ठीक पहले उन्होंने पार्टी बदली थी और उम्मीद तो थी की पूरे मंत्री बनेंगे, लेकिन उन्हें ऑप्शन दिया गया की कोई छोटा मोटा विभाग, मछली या खाद्य प्रसंस्करण टाइप में या फिर बड़े मंत्रालय में नबर दो के पद पर
और केंद्र के गृह मंत्री जो केंद्र में भी नंबर दो थे, उनका आशीर्वाद था तो उप गृह मंत्री जरूर बने, लेकिन कई मामलों में उन्हें पूरा हक हासिल था और सबको मालुम था की केंद्र तक उनकी पहुँच है, केंद्र के गृह मंत्री उन्हें ताकतवर इसलिए बनाये रखना चाहते थे जिससे वो चीफ मिनिस्टर को चिकोटी काटते रहें और चीफ मिनिस्टर कभी एक सीमा से ज्यादा तगड़े न हों । और पूर्वांचल के दस बारह विधायक तो छोटे ठाकुर की मुट्ठी में थे ही अपनी बिरादरी के बाकी लोगों पर भी उनका असर था।
पर जिस ला एंड आर्डर के नाम पर ये सरकार आयी थी, जिस तरह से एनकाउंटर हुए थे और खास तौर से पूर्वांचल में उस को चोट पह्नुकंहना मुख्यमंत्री को कमजोर करने के लिए जरूरी था और ये मौका एकदम सामने था।
छोटे ठाकुर उस समय बनारस में किसी से फोन पर उलझे थे और उसे गरिया रहे थे,
“ " ससुर क नाती, एक ठो बित्ते भर क लौंडिया नहीं उठा पाए, अरे अगर वो ससुरी हमरे मुट्ठी में आ गयी होती, तो, "
" अरे सरकार स्साली की किस्मत अच्छी थी, नहीं तो जिसको लगाए थे उसका निशाना आज तक चूका नहीं और एसिड भी ऐसा वैसा नहीं था, और दुबारा एक और टीम लगाए थे लेकिन, दोनों बार, और एक बार पकड़ में आ गयी होती तो लौंडे सब तैयार थे, असा जबरदस्त रगड्याई करते, चीर के रख देते और ओकरे बाद तो लेकिन, और सबसे बड़ा गड़बड़ ये हुआ, "
अब छोटे ठाकुर की ठनकी, " हे ससुरे पकडे तो नहीं गए, वो कप्तनवा बहुत दुष्ट है, उसको तो मैं बनारस में रहने नहीं दूंगा चाहे जो हो जाए, बोलो " अब का कहें, दोनों को बोले थे मुगलसराय निकल जाए उन्हे से ट्रेन पे बैठ के जनरल डिब्बा में लेकिन, पता नहीं का गड़बड़ हो गया, लेकिन आप एकदम चिंता न करे, वो सब सर कटा देंगे, जबान न खोलेंगे और वैसे भी उन्हें हमार नाम नहीं मालूम है "
पर उन्हें क्या मालूम था की उन्हें जिसका नाम मालूम था वो भी धरा लिए गए हैं और उन्होंने आगे के नाम भी उगल दिए हैं।
छोटे ठाकुर ने निराश होके फोन काट दिया और एक बार दिल्ली फोन लगाया, सुबह से पांच बार लगा चुके थे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला
अब होम मिनिस्टर से बात तो मुश्किल थी लेकिन उनके एक पी ए थे, मंत्री जी बोले थे कोई अर्जेन्टी बात हो तो उससे बोल दीजियेगा और उस के लिए का का नहीं किया था, उसकी बिटिया का मेडिकल में एडमिशन से लेकर के उसके साले को पेट्रोल पम्प दिलवाने तक, लेकिन अब बड़के मंत्री का पी ए हो गया तो, और आज वही फोन नहीं उठा रहा था
एक दो एमपी को भी लगाए, लेकिन वो सब भी,
हार के अब उन्ही के सिक्योरिटी में एक था, पहले दरोगा था लेकिन छोटे ठाकुर ही उसको मंत्री के साथ रखवाए थे और अब परसनल सिक्योरिट में और उस के साथ कुछ पार्टी का भी काम
दो बार तो वो भी नहीं उठाया लेकिन अब मेसेज किये तो जाकर जवाब आया, बात किया। बात क्या किया बस अपनी बोला
और टोन भी उसका ऐसा था की कोई दूसरा दिन होता तो बताते उसको, और वो चुपचाप सुनते रहे,
" मुझे मालूम है की सबेरे से आप बड़े साहब के पीछे लगे हैं, लेकिन वो, भूल जाइये मंत्री जी से बात करने को, अगले चार पांच दिन उनके आगे पीछे भी नाही आइयेगा, उनका मूड बहुत खराब है। बनारस में जो कुछ हो रहा है सबेरे से, आप सोच रहे हैं की सब आप ही को मालूम है, दर्जन भर तो, आई बी से लेकर सबकी रिपोर्ट, बस आपके हित में यही है जो चक्कर चला रहे हैं न वो सब रोक दीजिये और तुरंत रोक दीजिये, और नहीं भी रोकियेगा तो अपने आप रुक जायेगा। नहीं रुकता तो आप दस बार दिल्ली को फोन नहीं लगाते, "
किसी तरह से मौका निकाल के धीमी आवाज में वो बोले,
" लेकिन बड़े साहब भी तो यही चाहते थे, ये ला एंड आर्डर की हवा निकालने का सही मौका था, एक बार बस जरा सा, अरे होली आने वाली है, अक्सर इसी मौसम में दंगा थोड़ा बहुत हो ही जाता है "
लेकिन अब जो उनके चमचे का चमचा हुआ करता था, उनसे मिलने के लिए घंटो इन्तजार करता था, कभी नजर उठा के बात नहीं करता था, वो उबल पड़ा,
" तो यही मौका मिला था आग मूतने का, अरे पैंट के अंदर रहिये, वो चीफ मिनिस्टर चाकू तेज कर रहा है, जरा सा आपने इधर उधर किया कर और सीधे है कमांड में, बस अपने सब गुर्गों को बोलिये, की घर के अंदर घुस जाएँ, और मेहरारू के साथ बैठ के गुझिया तलवायें, और और
आपके तो पैर के नीचे से जमीन सरक जायेगी, और आपको पता भी नहीं चलेगा। आप जिन १२ एम् एल ए को लेकर उछालते थे ना, की गवर्मेंट गिरा देंगे, पूर्वांचल की १८ सीटों पे आपका असर है, मालूम है, श्रीनाथ सिंह बलिया वाले, विधायक
अब छोटे ठाकुर के सनकने की बारी थी, क्या हुआ श्रीनाथ को, हरदम पैर छूता है, भाई साहेब, भाई साहेब, पहली बार टिकट भी दिलवाये फंडिंग भी करवाए, १२ में से तो ७ एम् एल ए उसी के हैं
और थोड़ी देर सस्पेंस बनाने के बाद, छोटा मोहरा बोला, " सहकारिता का चेयरमैन बन गए हैं, राजयमंत्री का दर्जा भी और उनकी बहु, और आप भी जानते हैं बहुत से ज्यादा वो क्या है, वो बन रही है जिला पंचायत की अध्यक्ष, अभी शाम को अनांउस होगा और गाजीपुर वाले राजबली राय, जिला ग्रामीण बैंक के अध्यक्ष, अपनी कुर्सी बचाइए और कुछ दिन चुप हो के बैठिये " और यह कह के उधर का फोन कट गया।
तभी, ये श्रीनथवा, सुबह से एक बार फोन नहीं उठाया, पांच बार फोन कर चुके थे, बनारस शाम तक पांच ट्रक आदमी और सामान भेजने के लिए बोला था, लेकिन अभी तक कोई सुनगुन नहीं, मतलब कुछ नहीं होगा, उन्हें अपने गाजीपुर और बलिया के लोगो पर ही भरोसा था, बनरस में पुलिस जो हाथ पैर मार ले, बाहर वालों का क्या करेगी, लेकिन
उन्होंने एक बार फिर वो बनारस वाला लोकल चैनल लगाया, उनके ख़ास चमचे का था, कमसे कम उस पर तो कुछ और
दुकाने खुली हुईं थी, सड़क पर ट्रैफिक का उसी तरह जाम लगा था, दो चार सांड सब्जी के ठेलो के आसपास मुंह मरने के चआकर में थे और वो कटीली, क्षीण कटि, उन्नत जोबन वाली अब थोड़ी मुटा गयी थी, लेकिन स्साली में अभी भी आग थी। अब चैनल पर आग नहीं ऊगा रही थी बस बता रही थी की नगर प्रशासन ने जो व्यापार मंडल की ये बात मान ली की होली तक दुकानों का समय मध्य रात्रि तक बड़ा दिया जाय तो होली तक १० % की छूट और आज १५ % की विशेष छूट,
लेकिन उनकी निगाह एंकर पर टिकी थी, जब वो ज़रा सा मुड़ी और उसका पिछवाड़ा दिखा, और वो मुस्कराये
इसी बिस्तर पर पांच बार अपना पिछवाड़ा दी थी, रोज आती थी, और स्साली में क्या नमक था, अभी भी कम नहीं है और तब उसकी चैनलवा में नौकरी लगवाए थे, साल भर पहले उसकी बेटी का भी तो लखनऊ में बोर्डिंग में एडमिशन करवाए थे, अब तो वो भी बड़ी हो गयी होगी, पक्की लेने लायक, एक दिन उसका भी पिछवाड़ा जल्द ही ,
और उन्होंने चैनल बंद कर दिया, और यह सोचते सो गए, चल आज नहीं तो फिर मौका मिलेगा,
हा हा बिलकुल बिलकुल. अब तो आनंद बाबू आप सपने तो देख ही सकते हो. अब तो आप होने वाले ससुराल के हीरो जो हो. सायद कुछ वक्त के लिए अब एक्शन ख़तम और रोमांस और इरोटिका शुरू.और,
और दंगा नहीं हुआ।
बहुत लोग दंगा चाहते थे, छोटे ठाकुर, सरकार बदनाम होती, होम मिन्स्टर की कुर्सी हिलती, चीफ मिनिस्टर पर भी आंच तोआती ही
पुलिस वाले भी, ये डीबी का सस्पेंशन तो पक्का है बहुत आग मूतता था, दो चार महीने तक तो पोस्टिंग का सोचना भी मत और उसके बाद भी कहीं इधर उधर,
रियल एस्टेट वाले, --दंगा होगा आग लगेगी तो स्साले सब जो पुराने पुराने मकान प्राइम प्रॉपर्टी की जगह दबा के बैठे हैं, सब बेच बाच के चले जाएंगे, वो भी औने पौने दाम में और फिर एक एक मकान की जगह दस दस फ्लैट निकलेंगे
मिडिया वाले - कुछ दिन तक टी आर पी मिलेगी, वरना ये सास बहुत के सीरियल के आगे न्यूज कौन पूछता है
और भी बहुत लोग थे, मजे लेने वाले,
लेकिन ज्यादातर लोगों को फरक नहीं पड़ता था
हाँ कुछ लोग थे, जो बहुत शिद्दत के साथ चाहते थे दंगा न हो और उनमे मैं भी था,
दंगा मतलब कर्फ्यू, मतलब गुड्डी के साथ जाने का प्रोग्राम अटक जाता और जो माला डी, आई पिल वैसलीन की बड़ी शीशी, चंदा भाभी के दिए लड्डू और सांडे का तेल, और सालों का इन्तजार की गुड्डी के साथ ये करूँगा वो करूँगा, जो चंदा भाभी और संध्या भाभी ने पढ़ाया, ट्रेन किया सब बेकार और गुड्डी की डांट अलग पड़ती,
" कहती हूँ, ज्यादा प्लानिंग मत किया करो "
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लेकिन दंगा नहीं हुआ, इसका मतलब की बस थोड़ी देर में मैं गुड्डी के साथ घर के लिए और प्रोग्राम पक्का और एक बार घर पहुंच गए
नहीं नहीं ज्यादा प्लानिंग नहीं,
लेकिन एक बात और थी जो बाद में मालूम चली
संजरपुर, आजमग़ढ में ही है, वहां होली के जस्ट बाद एक तब्लीगी या किसी और जमात का जबरदस्त जमावड़ा था, ग्लोबल लेवल का , दो तीन लाख लोग आते दो तीन दिन का
लेकिन ख़ास बात ये थी की उसमे कुछ ख़ास लोग भी आ रहे थे, एक तो यहीं के थे जो कई पीढ़ी पहले गल्फ में चले गए जब अदन हिन्दुस्तान का हिस्सा था, तब से और अब वहां के सबसे बड़े बिजनेसमैन में एक है, चार पांच खाड़ी के देशो में मॉल, रियल एस्टेट, हॉस्पिटलिटी सबमें नंबर दो पर और उन के साथ, उन के अच्छे दोस्त, कतर के कोई छोटे मंत्री, लेकिन शेख के खानदान से सीधे ताल्लुक रखते थे और उस लेवल के तो नहीं लेकिन आस पास के लेवल के खाड़ी देशो के आठ दस और इन्फ्लुएंशियल लोग आने वाले थे
अब बनारस में दंगा होता और होली इतनी नजदीक तो आस पास के जिलों में आंच पहुंचती और उस जमावड़े पर तो जरूर ही, अभी से कुछ स सोशल मिडिया वाले आग उगल रहे थे, तो वर्स्ट सिनेरियो में उस जमावड़े के लोग भी कहीं, और बहुत सेफ्टी होती की उसे कैंसिल कर दिया जाता
लेकिन उसी जमावड़े के समय ही एक ग्लोबल इन्वेस्टमेंट मीट भी लखनऊ में थी, तीन दिन की और उस जमावड़े में आने वाले वो बिजनेसमैन, उनकी मुख्या भागीदारी होती। करीब डेढ़ दो सौ करोड़ का उनका इन्वेस्टमेंट का प्लान था और मुख्य मंत्री से बात हो चुकी थी एक मॉल उनके शहर में भी खुलेगा, उसका अनाउंसमेंट भी, और भी बड़े प्रोाजेक्ट, गल्फ की हिस्सेदारी काफी होनी थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात थी की उस इन्वेस्टमेंट मीट का उद्घाटन केंद्र के गृह मंत्री को ही करना था और कुछ लोगों का यह कहना था की केंद्र के एक मंत्री के लड़के के साथ कुछ ज्वाइंट वेंचर्स पर भी शायद बात होती, और उसमे वो क़तर के छोटे मंत्री का भी रोल रहता।
दस दिन बाद प्रधान मंत्री की खाड़ी देशो की यात्रा भी थी, और इलेक्शन अभी चार साल दूर थे
तो मौसम भी दंगे के लिए ठीक नहीं था।
तो सौ बात की एक बात, दंगा नहीं हुआ और मेरा और गुड्डी का प्रोग्राम पक्का, और अब मैं लालची थी सोच रहा था की चंदा भाभी की बात सच्ची हो जाए, गुड्डी हरदम के लिए,...
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Thanks so much for your graciousness and for supporting my story with your presenceInteresting update![]()
All in all part 37 is very interesting & suspensive.First part is very erotic.
Well donedidi
just awesome writing skills,u have.
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