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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८
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वाह मजा आ गया कोमल मैममहक के अंकल,
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लेकिन सवाल था की हम सब पांचो निकले कैसे, पुलिस को पता नहीं चलना था तो जिस पुलिस की गाडी से मैं और गुड्डी आये थे, उसका तो सवाल ही नहीं था। और डीबी की बात सही थी, मिडिया वाले उन तीनो लड़कियों को सूंघ रहे थे, तो कोई पुलिस वाला ही बता दे, फिर कहीं कोई एस टी ऍफ़ वाला ही सुरागरसी कर रहा हो तो पूछताछ के नाम पर, और मेरा रोल तो एकदम ही अनऑफिशियल था और न मैं चाहता था न डीबी की ये बात कहीं बाहर निकले।
तो बस हम लोगों का दबे पांव चुपके से निकल जाना ही ठीक था, और मैं देख चुका था की बाहर टेंशन बढ़ ही रहा है।
मेरी और गुड्डी की घंटी साथ-साथ बजी। महक के अंकल-
मैंने डीबी से धीरे से कहा की महक के अंकल हैं, बाहर, उनके साथ निकल जाएंगे,
" उनसे कहना की गाड़ी अपनी पीछे लगा दें, और तुम लोग पीछे वाले रस्ते से निकल जाओ, जल्दी। चपरासी से बोल देना वो उन्हें बता देगा, की गाड़ी कहाँ लगानी है, और हाँ ये दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना, " और वो वापस कंट्रोल रूम में।
वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे। जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैंने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे।
हम दोनों एक साथ बोल पड़े- “महक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से इंतेजार कर रहे हैं…”“कहां?” वो उछल पड़ी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी।
मैंने बोला- “तुम बैठो। मैं ढूँढ़कर लाता हूँ…” और बाहर निकला।
वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था। मैंने उसी को बोला, उन्हें बुलाने के लिये चपरासी को जो बात डीबी ने बोली थी वही मैंने भी समझा दी, उनसे बोलने के लिए की गाड़ी पीछे वाले दरवाजे के पास लगा दें और वो अंकल को ले आये।
और बाथरूम चला गया हाथ मुँह धोने।
जब मैं निकला तो महक और उसके अंकल, दोनों ने एक दूसरे को बांहों में पकड़ रखा था और बिना बोले दोनों की आँखों में आँसू थे।
उन्होंने पूछा- “तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं? ये कपड़े पे खरोंच…” उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था।
“ये?” मुश्कुराकर महक बोली- “कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गई थी…”
महक के अंकल बोले- “ये तो बहुत अच्छा हुआ। टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया। मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे। कोई चैनेल कह रहा था की दोनों पकड़े भी गये…”
उस समय टीवी पे आ भी रहा था, ब्रेकिंग न्यूज- “कमांडो ऐक्शन में तीनों लड़कियां छुड़ायी गई। तीनों सुरक्षित, मेडिकल जांच जारी। फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो। दूसरे चैनेल पे गृह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमली एस॰टी॰एफ॰ के ऐक्शन से लड़कियों को बचा लिया गया है। एक और चैनेल पे एस॰टी॰एफ॰ के प्रवक्ता लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुड़ा लिया गया। स्थानीय पुलिस ने भी बहुत सहयोग दिया…”
सब लोगों की आँखें टीवी पे लगी थी।
अचानक महक के अंकल की आँखें मुझ पे पडीं, और उन्होंने पूछा- “ये कौन है?”
“ये?” महक मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी कमर में हाथ डालकर बोली- “वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही। कमांडो। पुलिस सब कुछ…”
गुन्जा भी मेरे पास खड़ी हो गई- “ये मेरे जीजू हैं…”
महक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढ़ाते हुये कहा- “झूठ। थे, अब मेरे हैं…”
महक के अंकल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
फिर तीनों लड़कियां एक साथ चालू हो गईं। मेरी वीर गाथा। साथ में थोड़ी नमक मिर्च। पांच मिनट में बिना कामर्सियल ब्रेक के लगातार सुनाकर ही वो रुकीं।
महक के अंकल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने अब सीधे मुझसे पूछा-
“आप अकेले थे? आप कमांडो में है?”
मैंने दोनों सवालों का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया- “नहीं…” और मैंने बताया- “ गुड्डी का और डी॰बी॰ का बहुत योगदान है…”
मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले- “आप उन्हें जानते हैं?”
अबकी गुड्डी ने जवाब दिया- “हाँ इनके बहुत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से…”
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहूँ। मैं आपको इसके बदले में कुछ दे भी नहीं सकता, धन्यवाद भी नहीं। मेरे लड़का लड़की कुछ भी नहीं, जो भी है बस ये है और अगर इसे कुछ। कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता…”
महक के अंकल मेरे पास आकर बोल रहे थे। उनका हाथ मेरे कंधे पे था और अबकी बार आँसू का एक कतरा बाहर निकल आया था। गनीमत था लड़कियों ने, चुम्मन ने उनसे जो कुछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी।
मैं- “देखिये आप मुझसे बुजुर्ग हैं। लेकिन मैं एक बात बोलूं। इसे कुछ नहीं होगा। जिसपर आप जैसे बुजुर्गों का साया है, और मुझे जितना मैं सोच सकता था। उससे बहुत ज्यादा इस काम में मिल गया है…”
महक के अंकल मुश्कुराने लगे और बोले- “अरे क्या मिला, जरा हमें भी तो बताओ?”
मैं- “दो नई सालियां। और फिर जब महक मेरी साली हो गई तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया। कहते हैं जामाता दसवां ग्रह। तो फिर तो मैं लगातार लेता रहूंगा। एक बार में थोड़े ही छोड़ूंगा। क्यों महक?”
महक के गाल थोड़े से लाल हो गये, मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर। मुश्कुरा कर वो बोली- “हाँ एकदम…”
गुड्डी और गुंजा से मैंने कहा- “चलें? वैसे भी बहुत देर हो गई है इसे घर ड्राप करके फिर सामान पिकअप करना है और बस पकड़नी है…”
अंकल बोले- “आप। तुम जाओगे कैसे?”
मैं- “क्यों रिक्शा कर लेंगें हम। पास में ही जाना है, नई सड़क के पास। गुंजा को छोड़कर हम चले जायेंगे। और अब तो रिक्शा चलने लगा होगा…”
“तुम ना कैसे दामाद हो? अरे मेरे साथ चलो…” और तब उनकी निगाह मेरे शर्ट पे पड़ी, और वो बोले- “अरे इतना खून। शर्ट तो बदल लेते…”
मैं बोला- “नही। वो तो मैं होटल में ही चेंज कर पाऊँगा। चलेगा तब तक…”
हम लोग गाड़ी में बैठ गये। गुड्डी आगे बैठ गई, पीछे हम चारों।
लेकिन मुझे उनकी बात में दम लगा, खून में लथपथ ये शर्ट देखकर है मैं भले कुछ नहीं कहता लेकिन चंदा भाभी की हालत खराब हो जाती और बात उनसे गुड्डी की मम्मी और मेरी भाभी तक पहुँच जाती, इसलिए शर्ट चेंज कर लेना ही ठीक था, लेकिन अब यहाँ से जाकर फिर शर्ट चेंज कर के गुंजा के यहाँ, औरंगाबाद आना, तो अच्छा तो यही था की यही शर्ट ले लूँ, पर मैं कहना नहीं चाहता था।
मेरी नगाह बीच बीच में सड़क पर भी दौड़ रही थी और देख कर लग रहा था की कुछ गड़बड़ होने वाला है, जब मैं गुड्डी के साथ शॉपिंग कर रहा था तो यहाँ कंधे छिलते थे, बस धककम धुक्का, और अभी सन्नाटा पसरा पड़ा था, गली के बाहर बस कहीं कहीं दो चार लोग खड़े दिखते, लेकिन वो भी सशंकित, बार बार इधर उधर देखते, और कोई पुलिस की गाडी दिखते ही गली में दुबक जाते , सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर।
महक बोली- “ऐसा कीजिये माल चलते हैं। वहां इनके लिये एक शर्ट ले लेते हैं। वर्ना हर चौराहे पे पुलिस वालों को ये जवाब देते फिरेंगे। और कहीं पकड़ लिये गये। तो रात थाने में गुजरेगी…”
गुड्डी बोली- “एकदम सही कहा तुमने। इसके पहले भी ये आज थाने जाते-जाते बचे हैं…”
ड्राइव करते हुए आगे से महक के अंकल ने पूछा- “उन लोगों के पास तो हथियार रहे होंगे?”
गुंजा और महक साथ-साथ पीछे से बोली- “दो बड़े-बड़े चाकू, एक रिवाल्वर और एक बाम्ब…”
उन्होंने फिर पूछा- “और तुम्हारे पास?”
अबकी जवाब गुड्डी ने दिया- “मेरी चिमटी, मेरे बाल का काँटा, चूड़ियां और पायल…”
चारों खिलखिलाने लगी।
गुड्डी फिर मुँह फुलाकर बोली- “हाँ और सब उन्होंने गुमा दिया…”
अंकल बोले- “अरे मत उदास हो सब तुम्हें हम दिलवा देंगे…” वो भी अब लड़कियों के ही स्प्रिट में आ गए थे।
मैंने पीछे से सही जवाब देने की कोशिश की- “मेरा असली हथियार था। मेरी सालियां, और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद…”
अंकल बोले- “मक्खन बहुत जबर्दस्त लगाते हो तुम…”
और पीछे से, समवेत स्वर साथ-साथ मेरे कमेंट पे उभरा- “डायलाग डायलाग…”
“डर नहीं लगा तुम्हें?” अंकल ने पूछा।
“बहुत लगा। अगर इन्हें कुछ भी हो जाता, एक खरोंच भी लग जाती तो गुड्डी बहुत मारती मुझे और। भूखा रखती सो अलग…” मैंने मुँह बनाकर बोला।
अंकल ने शायद नहीं समझा लेकिन सारी लड़कियां ‘भूखा रखने’ की बात समझ गईं और मेरे और गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराने लगी।
थोड़ी देर में हम मॉल में पहुँच गए, पर हाँ उसके थोड़ी देर पहले रस्ते में हम लोगो ने शाज़िया को ड्राप कर दिया,
शाजिया का घर एक गली में था, गली में ज्यादा अंदर नहीं, बस दो चार घर छोड़ के और जैसे बनारस की गलियों का उसूल है, जितनी पतली गली, उतना ही बड़ा मकान, तो शाज़िया का भी घर बहुत बड़ा था, शाज़िया जैसे ही कार से उतरी, और मेरे बिना पूछे बोली,
" मैं चली जाउंगी, देखिये मम्मी खड़ी वेट भी कर रही हैं, गली के ज्यादा अंदर नहीं जाना है "
पर अगली सीट से गुड्डी गरजी, " हे अकेली लड़की जायेगी, छोड़ के आओ गली के अंदर तक'
शाज़िया ने मुड़ के मेरी ओर देखा, हलके से मुस्करायी, होंठ उसके मना कर रहे थे, पर बड़ी बड़ी आँखे दावत दे रही थीं, और मैं कार का दरवाजा खोल के उसके साथ, और उसका हाथ पकड़ के,
" अब जाइये आप, मम्मी देख रही हैं, सामने तो खड़ी हैं " वो बोली,
मुश्किल से सौ कदम दूर, कुछ मामलों में तो शाज़िया की बड़ी बहन लग रही थी और ऊपर की मंजिल गुड्डी की मम्मी के टक्कर की, शाज़िया को देख के जोर से मुस्करायीं,
कभी नीम नीम कभी शहद शहद
थोड़ी देर पहले जो लड़की मुझे कार में इस तरह से छेड़ रही थी, मैं बीच में था पिछली सीट पर, एक ओर महक, एक ओर शाज़िया. तीनों एक से एक शातिर दुष्ट, दर्जा नौ वाली, टीनेजर्स, जबतक मैं कुछ समझता, थोड़ा सरको, थोड़ा सरको ( और वैसे भी तीन की सीट पर पीछे हम चार थे ), गूंजा ने शाज़िया को मेरी ओर ठेला और महक ने मुझे धकेला, बस, शाज़िया ने जैसे सहारे के लिए मुझे पकड़ा और आधे से ज्यादा मेरी गोद में, लेकिन बदमाशी उसकी भी कम नहीं थी, जिस तरह उसके नितम्ब मुझे दबा रहे थे, बदमाश उंगलिया और शरारती आंखे, ऊपर से महक बोली, ' पकड़ लीजिये न गिर जायेगी बेचारी ' और खुद मेरा हाथ पकड़ कर शाज़िया के,
और वही शाज़िया, अभी, , मम्मी के पास जाने से पहले , पल भर ठिठकी, मुड़ी एक बार उसने मुझे भर आँखों से देखा, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे उसकी डबडबा आयीं, मुझे देखती रही वो लड़की और अचानक बाँहों में भींच लिया। एक दो स्वाती की बूंदे ढलक गयीं, बाकी उसकी आँखे पी गयीं। जैसे बोल नहीं निकल पा रहे थे, फिर बड़ी मुश्किल से हिचकी लेते बोली,
" अगर आप नहीं आते, पांच मिनट, बस पांच मिनट, वो, वो बोल कर गया था, 'बस पांच मिनट, उसके बाद धूम,धड़ाम, धड़ाका, ,जिसको भी याद करना हो कर लो, बस पांच मिनट बचे हैं तुम तीनो के पास, मैंने तो एकदम उम्मीद खो दी थी, फिर से मम्मी को देखने की, पर आप, और और, सीढ़ी पर भी, एक गोली तो एकदम बगल से गुजरी, बहुत डर लग रहा था, "
मैंने भी उसे भींच रखा था और सोच रहा था जब मैंने पहली बार देखा था, गुंजा के बगल में बेंच पर, डर के मारे एकदम सफ़ेद, कस के दोनों हाथों से बेंच दबोच रखी थी, लेकिन एक बार शाज़िया ने फिर मुझे भींचा, एक मुस्कान होंठों पर चिपकायी, मुझे देखते हुए बच्चों की तरह तेजी से अपनी मम्मी की बांहो में
" कौन हैं ये " मम्मी ने उसकी मेरी ओर इशारा करके पूछा और शाज़िया अब फिर वही शरारती बच्ची हो गयी, मम्मी को छेड़ती बोली
" आपके दामाद " फिर मामले को साफ़ करके हलके से बोली
" अपनी गुड्डी दी के, अरे वही, और हम लोगों के जीजू "
जबतक उनकी मम्मी कुछ बोलतीं, कार में से गुड्डी ने इशारा किया मैं जल्दी आ जाऊं। कोई पुलिस की गाडी आ गयी थी और महक के अंकल से वहां से जल्दी जाने के लिए कह रही थी, थोड़ी देर में हम सब मॉल में पहुँच गए।