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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

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komaalrani

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भाग ३३ - अंदर की बात - महक
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गुन्जा ने पूरी बात बतानी शुरू कि वो और महक एक्स्ट्रा क्लास में सबसे पहले बैठ गईं थी और लास्ट बेंच खिड़की के पास वाली हथिया ली थी। महक ने जब खिड़की खोली, तो कोई नहीं था। क्लास में लड़कियां धीरे-धीरे आ रही थीं। तब तक गुन्जा को रज्जऊ दिखा।

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महक ने चिढ़ाया- “सुबह तुम्हारे बायें वाले पे मारा था। और अब एक बचा था उसपे। कर दे ना उसके सामने…”

दोपहर में जब गुंजा स्कूल से आई थी तो उसका बायां उभार रंग से लथपथ था। रज्जऊ ने रंग भरा गुब्बारा फेन्का था जो सटीक निशाने पे लगा था।

गुंजा ने महक की बात मान ली और अपने उभार रजऊ के सामने उभार दिये और चिढ़ाते हुये हल्की सी आँख मार दी। दूसरा कोई दिन तो होता तो वो कुछ कमेंट करता, कम से कम मुश्कुराता। लेकिन आज उसने कोई रिएक्सन नहीं दिखाया।

गुंजा महक से बोली- “यार हो क्या गया इसको, कहीं तबीयत वबीयत तो नहीं गड़बड़ है…” और तब तक मामला साफ हो गया।



पीछे से चुम्मन आया, एक बड़ा सा चाकू लहराते हुये और रज्जऊ से बोला- “पटरा लगा तुरन्त…”

महक चुम्मन को देखकर जोर से चीखी। पलक झपकते, पटरा लगाकर वो दोनों अंदर घुस गये और रज्जू ने पटरा उठाकर वापिस बन रही बिल्डिन्ग की छत पे फेंक दिया।



शाज़िया उन लोगों के आगे वाली बेंच पे बैठी थी। महक की चीख सुनकर उसका ध्यान खिड़की की ओर गया और एक चाकू लहराते आदमी को देखकर वो बहुत जोर से चिल्लायी-

“भाग। जल्दी भाग…” वो तब तक चिल्लाती रही जब तक क्लास कि बाकी सब लड़कियां बाहर नहीं निकल गईं।

चुम्मन पीछे से चिल्लाया-

“साले दरवाजा बन्द कर। ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को रोकना है…”

और चाकू दिखाकर उसने गुंजा और महक को रोक रखा था। चाकू की नोक उसने महक के गले पे रखी और बोला- “रुक जा सब सालियों वरना तुम सबको चीर के रख दूँगा…”

एक पल के लिये ठिठकी और इतना समय काफी था, रजऊ को उसे धर दबोचने के लिये। चुम्मन ने चाकू की नोक महक के गले पे और जोर से दबायी, तो एक बूंद खून छलछला उठा।

चुम्मन बोला- “तुम तीनों में सो कोई जरा सा भी हिला ना तो ये चाकू अन्दर घुस जायेगा…”

रजऊ ने पहले बाहर निकलकर देखा की किसी कमरे में, बरामदे में कोई है तो नहीं फिर अंदर घुसकर, उसने दरवाजा खिड़की बंद कर दिया।


चुम्मन-

“बेन्च लगा यहाँ… खिड़की के सामने हाँ थोड़ा दूर। हाँ यहीं अब कोई साल्ला गोला गोली फेंकेगा इ खिड़की से, तो पहला निशाना यही सब बनेंगी और हम लोगों के लिये काफी टाईम मिल जायेगा। तू तीनों बैठ जा इधर…” और जब तीनों लड़कियां बेंच पर बैठ गईं तो उसने रजऊ से बोल- “जरा देख इन सालियों को। मैं काम करता हूँ…”

चुम्मन ने बैग से बाम्ब निकाला जो शायद दो पार्ट में था। उसने उसे जोड़कर बेंच के नीचे रख दिया और एक तार निकालकर बेंच के दो पायों में अच्छी तरह लगा दिया।



रजऊ ने महक की ओर इशारा करके बोला- “बास, एक तार इस ससुरी के पैर में भी बांध दो…”

चुम्मन- “साले बहुत फिल्लम देखता है। अरे इसको कौन सुसाईड बाम्बर बनाना है। फिर तार भी कम है…” फिर हम लोगों को सुनाते हुये बोला- “अगर तुम लोग हिली डुली, किसी भी सूरत में इस बेंच के पाये एक इंच से ज्याद हिले तो तार मिल जायेंगे। और बूम…”

चुम्मन महक से ज्यादा नाराज था। महक के सामने खड़े होकर वो बोल रहा था-

“हे अपनी बहना को तो भेज दिया ना। तो चल वो ना सही तो तू सही। अरे मैंने उस साली से क्या कहा था, मेरे खूंटे पे बैठने के लिये तो बैठ जाती, कौन मैं उससे शादी करने वाला था। चल वो ना सही तू सही। तू तो उससे भी ज्यादा मस्त है रे। तुझे अपने खूंटे पे बिठाऊँगा और दो-चार दिन में मन भर गया तो मेरे चमचे। एक-एक दिन में 10-10 खूंटे, तू तो मजे से मर जायेगी बन्नो। लेकिन नहीं, सबसे बाद में तुझे इस खूंटे पे बिठाऊँगा…”

और फिर से उसने अपना 10…” इंच का चाकू निकालकर लहराया।



चुम्मन फिर बोला-

“ना डर मेरी छमिया, बहुत मजा आयेगा। तुझे ना आये लेकिन मेरे इस रामपुरिया को तो आयेगा। डर मत यार धीरे-धीरे घुसाऊँगा, ये चाकू तेरी चूत में और फिर ऊपर के हिस्से पे भी पूरी आर्ट बनाऊँगा। बाडी आर्ट। इसका मैं आर्टिस्ट हूँ। ये मेरा ब्रश है और तेरी बाडी कैन्वास…”

जब गुंजा ये सब सुना रही थी हम सब सकते में थे। पिन ड्राप साईलेन्स। मैंने महक का हाथ अच्छी तरह अपने हाथ में पकड़ लिया था। उसने भी अंगुलिया मेरे उंगलियों पे भींच ली।

गुन्जा ने एक पल रुक के फिर बोलना शुरू किया-

चुम्मन बोल रहा था और उसका चाकू महक के ड्रेस पे गड़ा हुआ था, उसके सीने पे। उसने बोला-

“और 5-6 दिन बाद तेरी बाडी। मेरी पेंटिंग मेरे बहुत काम आयेगी, 5-6 दिन बाद कब तुम्हारा आखिरी काम होगा ना। तो वो तेरी डरपोक बहन आयेगी। और अगला नम्बर उसका…”

और ये कहकर उसने महक की चूचियों के ऊपर चाकू हल्का सा दबा दिया। कपड़ा थोड़ा सा फट गया और उसका सीना हल्के से दिखने लगा। चाकू की नोक वहां उसने कसकर दबा दी थी।

महक ने अपना सिर मेरे कंधे पे रख दिया था और मेरे एक हाथ ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली थी। मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। छोटी सी लड़की और कहां-कहां से गुजर गई। और उसके बाद ये मुश्कान, ये चुहल। और किस तरह रुक कर उसने बिना सोचे अपना दुपट्टा फाड़कर मेरे हाथ में बांधा।

एक पल सब चुप रहे।

गुड्डी ने बोला- “फिर?”



अबकी महक बोली-

“फिर क्या थोड़ी देर बाद। फटा पोस्टर निकला हीरो। मेरा हीरो आ गया और चुम्मन कि ऐसी की तैसी। बिचारे की कलात्मक भावनाओं को बहुत आघात पहुँचा होगा…”
 

komaalrani

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शाज़िया
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तब तक मुझे अपनी जेब में कुछ चुभा और मैंने बाहर निकाल लिया। एक मोबाइल। हाँ तब मुझे याद आया ये वही मोबाइल है जो मैंने फर्श पर से उठाया था।

शाज़िया बोली- “ये तो चुम्मन का मोबाइल है…”

मैंने पूछा- “तुम्हें कैसे पता?”

शाज़िया बोली-

“जैसे ही हम तीनों को उसने बेंच पर बिठाया। उसने हम सबके मोबाइल ले लिये। गुंजा और महक के मोबाइल तो उसने तुरंत पटककर, जूते से दबाकर कुचल-कुचलकर तोड़ दिये। मेरा मोबाइल लेकर थोड़ी देर वो कुछ सोचता रहा, फिर रजऊ से बोला-

“यार सबको बता दें वरना स्कूल में कोई दुम उठाये चला आयेगा और उसकी मुसीबत हो जायेगी अपना काम बढ़ जायेगा…”

फिर मेरे ही फोन से पहले तो उसने किसी न्यूज चैनेल को फोन किया और फिर कोतवाली में।

एक-दो बार जब मेरे फोन पे रिंग आने लगे तो स्विच आफ करके, जिस बेंच पे हम बैठे थे वहीं रख दिया। फिर उसके फोन पे कोई घंटी बजी, शायद साईलेंट मोड में रहा होगा। उसने फोन, यही फोन जो आपके हाथ में है उठाया और कमरे के कोने में बात करने के लिये चला गया। वो धीरे-धीरे बोल रहा था। इसलिये सुनायी नहीं दे रहा था। बात खतम करके वो रजऊ को हम लोगों पे निगाह रखने के लिये बोलकर चला गया, नीचे…”



शाज़िया की बात सुनकर एक पल के लिये मैं सोच में पड़ गया। फिर मैंने शाज़िया से पूछा- “क्यों तुम बक्सर गई थी क्या?”

शाज़िया ने मुश्कुराते हुये चौंक कर कहा- “ये आपको कैसे पता?”

और शाजिया की दूध खील सी खिलखिलाती हंसी पूरे कमरे में बिखर गयी, जैसे डर घबड़ाहट को किसी ने झाड़ू मार के कमरे से बाहर कर दिया हो, जैसे पुचारा लेकर किसी बच्चे ने अपनी स्लेट साफ़ कर दी हो,

और पहली बार मैंने शाज़िया को उस नजर से देखा, जिस नजर से जवानी के दरवाजे पर जोर जोर से दस्तक दे रही हो, को देखा जाना चाहिए। जैसी दर्जा नौ वाली बनारसवालियाँ होती हैं, जिसका जोबन अंगड़ाई मार रहा हो, जोड़े के कबूतर उड़ने को बेचैन हों, और गुंजा से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं थे, कटाव, उभार, कड़ाई, छलकते रस किसी मामले में नहीं,



और मेरी नजर को पहचान के शाज़िया की नजर हल्के से मुस्करायी और मुझे थोड़ी देर पहले ही तो गुंजा ने जो अपनी क्लास की होली के बारे में, ख़ास तौर से शाज़िया के बारे में जो बताया था सब मेरे जेहन में आ गया ,

चाहे होली में रगड़ाई करनी हो, या गालियां देनी हो दोनों में गुंजा के क्लास में, सबसे तेज थी, नो होल्स बार्ड वाली, और जितना गुड्डी, रीत और संध्या भाभी ने रंग लगाया था उसके बराबर गुंजा ने अकेले, और कोई जगह छोड़ी नहीं थी, यहाँ तक की पिछवाड़े भी, दो अंगुल अंदर तक, सूखा रंग और पेण्ट दोनों, और जब मैं चिल्लाया, तो हँसते हुए गुंजा बोली,

" जीजू, गनीमत है आप शाज़िया के हाथ नहीं पड़े हैं, मैं तो दो ऊँगली में छोड़ रही हूँ, वो तो पूरी मुट्ठी अंदर करती आपके, "

और बताया की कैसे सुनीता उसकी क्लास की, जिसकी सबसे पहले फटी थी उसके क्लास में आज से डेढ़ दो साल पहले, कोई दूर के पड़ोस के रिश्ते के जीजा ने उसकी भाभी के साथ मिल के होली में भांग पिला के उसकी फाड़ी थी, और तब से अब तो कोई चचेरा, ममेरा, फुफेरा भाई नहीं है जिसका उसने न घोंटा हो और सब के किस्से आ के सुनाती है, अभी भी चार पांच लौंडे पटा रखे हैं उसने, तो उसी सुनीता की,

उस दिन क्लास की होली में न सिर्फ पैंटी फटी, ब्रा लूटी गयी, सबके सामने ऊँगली की गयी, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर, और करने वाली यही शाज़िया, और गालियां अलग सुनीता से ही दिलवाई, उसके सो काल्ड भाइयों को,

यहाँ तक की गुंजा की ब्रा भी उसने ही लूटी थी और गुंजा के दोनों जोबन पे जो पक्के सुनहरे पेंट में लगे उँगलियों के निशान थे, वो भी शाज़िया के ही थे,

और गुंजा भी शाज़िया की ब्रा लूट के लायी थी,



लड़कियां न सिर्फ अपनी भावनाएं कहने के दर्जनों तरीके जानती हैं बल्कि लड़कों के मन में क्या तूफ़ान चल रहा है, वो भी उन्हें पटा चल जाता है, तो शाज़िया को कुछ अंदाज तो हो गया था, पर वो बात को पटरी पे ले आयी और मुस्करा के फिर से उसने मुझसे पुछा, वही बक्सर वाली बात

आपको कैसे पता बक्सर वाली बात

महक हँसकर बोली और मेरी एक उंगली कसकर दबा दी- “मेरे जीजू शर्लाक होम्स हैं पैंटी देखकर बता देते हैं की भरतपुर स्टेशन पे कब कौन गाड़ी खड़ी हुई, कितने मुसाफिर उतरे…”

अब शाज़िया एकदम उछल पड़ी, बनावटी गुस्से से, महक के ऊपर भी और गुंजा के ऊपर भी, अब वो पूरे मूड में आ गयी थी,

" स्सालियों, मैं तुम दोनों से छोटी हूँ, इसलिए तुम दोनों से पहले मेरे जीजू हुए, "

गुड्डी जो अबतक चुप बैठी थी, अपना हक़ जताती, मुस्करा के शाज़िया से बोली, " घबड़ा मत, होली के बस दो दिन बाद यहीं आयंगे, और मैं लाऊंगी कान पकड़ के, अपनी छोटी बहनो से होली खेलने के लिए, रंगपंचमी तक यहीं रुकेंगे, कर लेना तुम सब मनमर्जी, "

शाज़िया ने बड़े खतरनाक अंदाज में मुस्करा के मेरी ओर देखा, जैसे कसाई बकरा काटने के पहले देखता है, कितन गोश्त निकलेगा इसमें और फिर महक पर चढ़ाई करते बोली, " सुन स्साली, पहली बात मैं उन सालियों में नहीं हूँ जो जीजू के सामने पैंटी पहन के आऊं, जीजू का टाइम और मेहनत दोनों वेस्ट होगी, "

और अगली बात मुझे सुनाई, " और गुंजा और महक की तरह मेरे भी भरतपुर स्टेशन पे अबतक कोई गाडी आसपास भी नहीं फटकी है, एकदम कोरी है मेरी गुल्लक, कच्ची मिटटी की लेकिन, "

रुक के उसने अपनी दोनों सहेलियों को देखा और अपना इरादा साफ़ कर दिया,

" लेकिन बस अब दो चार दिन और, होली के बाद होगी असली होली, जब मेरे ये जीजू आएंगे, लेकिन तू दोनों कान और बाकी सब छेद खोल के सुन ले, छोटी साली होने का मेरा फायदा, ऐसा निचोड़ूँगी, ऐसा निचोड़ूँगी न की तुम दोनों के लिए एक बूँद भी सफ़ेद रंग नहीं बचेगा, "

लेकिन गुंजा कौन कम थी, और उसने नापा जोखा भी था और सफेद रंग का स्वाद भी लिया था, वो मैदान में आ गयी,



" स्साली, मेरे जीजू हैं, समझती क्या है, तुझे, तेरी बड़ी बहन को और तेरी अम्मी को तीनो को चोद के रख देंगे, फिर भी इतनी ताकत बचेगी की चू दे स्कूल की पूरे क्लास नौ की लड़कियों की फाड़ने की ताकत बची रहेगी, '



कौन मरद नहीं खुश होगा ऐसा तारीफ़ से लेकिन मैं बक्सर वाली बात सुनने के लिए बेताब था इसलिए बड़ी मुश्किल से मैं बात को ट्रैक पर ले आया



और शाज़िया ने राज खोला- “नहीं मैं बक्सर नहीं गई थी। मेरे एक कजिन हैं मेरी बुआ के लड़के, मुझसे वैसे तो 7-8 साल बड़े हैं लेकिन हम दोनों की बहुत बनती है। अभी तीन-चार दिन पहले आये थे। मैंने उनसे खूब झगड़ा किया। उनको नई-नई नौकरी मिली है और पहली पोस्टिंग बक्सर में है। वो बोलने लगे की होली के पहले उनकी फर्स्ट सैलेरी मिल जायेगी। तब वो ले आयेंगे मेरे लिये नये ड्रेसेज। मैंने उनका फोन तब तक के लिये जब्त कर लिया…”

मैंने बोला- “रोमिंग बहुत लगेगी…”

शाज़िया हँसते हुए बोली- “बिल्कुल ठीक…” यही बात भैय्या ने भी कही। लेकिन मैं भी कम चालाक थोड़े ही हूँ। मैंने बोल दिया- “जब आप ड्रेसेज दिलायेंगे ना तो रोमिंग का बिल मैं वहीं पेश कर दूँगी। वैसे मैंने आज सोचा था कि स्कूल से लौटते हुये नया सिम ले लूँगी…”

सहेलियां क्यों छोड़तीं, गुंजा ने छेड़ा, " कमीनी शाज़िया, कौन सा बिल पेश करती, अपने सो काल्ड भैया के आगे, आगे वाला, या पीछे वाला या दोनों, अपने भैया के सामने "

लेकिन शाज़िया कम नहीं थी, और जब मुस्कराती तो उसके खूब भरे भरे रसीले होंठ, और जिस अंदाज से वो अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाती, बस उसी अंदाज में देख वो मुझे रही थी, पर बोल गुंजा और महक से रही थी,

" यार, सुन स्सालियों, अब तो मेरे तीनो बिलों पर, तुम दोनों से पहले, मेरे इस जीजू का नाम लिखा है, जब सामने ऐसा हैंडसम जीजू हो, तो फिर पूरी की पूरी वेटिंग लिस्ट कैंसल,



आँखे तो मेरी शाज़िया के रसीले होंठों और गदराये उभारों पर चिपकी थीं, मन भी लेकिन दिमाग बक्सर और सिम के बारे में सोच रहा था,



मैंने सोचा- “मेरी और डी॰बी॰ की सिम के जरिये ट्रेस करने की स्टोरी गई पानी में…” चुम्मन ने जिस नंबर से फोन किया था और जिसकी रिकार्डिंग में आवाज सुन के गुड्डी ने पहचाना था, गुंजा की आवाज को और चुम्मन को भी, वो असल में शाज़िया का फोन था और उस सिम शाज़िया पे लाइन मार रहे उसके भाई की बक्सर की थी,

और यहाँ पुलिस ने दुनिया भर की फोरेंसिक ताकत लगा के उस फोन की अनेलिस, नंबर की ट्रैकिंग कर के पता किया था की सिम बक्सर की है , वो तो डीबी ने रोक दिया वरना सिम से सिम वाले का पता करना, उस का नाम और फोटो, और कहीं वो पुलिस से ' विश्वस्त सूत्रों ' के नाम पर मिडिया तक पहुंच जाता तो फिर तो शाज़िया के उस भाई की मुसीबत आ जाती



डी॰बी॰ ने बोला था की सिम बक्सर की है, जिससे पुलिस स्टेशन में फोन आया था। चार-पाँच घंटे में बक्सर से सब कुछ पता चल जायेगा। हालांकी डी॰बी॰ ने ये भी बताया था की सिम से सब कुछ नहीं पता चलता।

और सिम ने बिहार पुलिस से हेल्प या कोआर्डिनेशन मना कर दिया और बोला की अभी हमारी पहली प्रायॉरिटी, लड़कियों को सेफ रखना और उन्हें सेफली छुड़ाना है, बाकी सब तो वो सब जो पकड़ में आएंगे तो पता चल ही जाएगा,
 
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komaalrani

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डीबी और चीफ मिनिस्टर
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और तभी डीबी कमरे में आ गए, उनके चेहरे पे भयानक टेंशन था, एकदम परेशान लग रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने गुड्डी के साथ तीनों लड़कियों को देखा, एकदम से टेंशन कम हो गया, चेहरे पर ख़ुशी आ गयी, और मैं कुछ बोलता उसके पहले ही उन्होंने हाथ के इशारे से चुप रहने का इशारा किया। एक खिड़की उन्होंने देखा थोड़ी सी खुली थी और एक दरवाजा जिधर से वो आये थे, वो आधा खुला रह गया था,

उन्होंने मुझे इशारा किया, लेकिन मैं कुछ समझता, कुछ कर पाता, गुड्डी ने पहले तो खिड़की बंद कर दी, फिर उस पर पर्दा खींच दिया और गुंजा और उसकी सहेलियों को इशारा किया तो वो भी एकदम दीवार के सहारे, एकदम इस तरह की वो किसी ओर से नहीं दिखतीं,

मैंने दरवाजा बंद कर दिया और डीबी ने अपनी जेब से फोन निकाल लिया, और कोई नंबर लगाया,



एक बार फिर से वो टेन्स लग रहे थे। लेकिन निगाह उनकी एकदम गुड्डी के अगल बगल खड़ी गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर घूम रही थी ,

लगता है फोन लग गया, लेकिन फोन स्पीकर पर था, डीबी बोले, " सर का मेसेज था बात करने के लिए "

" हाँ, बस लगाता हूँ, आप लाइन पर रहिएगा " उधर से आवाज आयी और डीबी ने इशारे से मुझे एकदम चुप रहने को कहा, वो लड़कियां भी हल्की सी टेन्स, गुड्डी के आसपास

और उधर से आवाज जो आयी, एकदम रिलैक्स, कम्फर्टेबल और जिसको मैं सपने में भी पहचान सकता था, कितनी बार तो टीवी पर सुन चूका था, चीफ मिनिस्टर खुद थे, पहला सवाल उन्होंने डीबी से एक शब्द में किया, और उस शब्द में भी चिंता झलक रही थी

" लड़कियां, "

" सर, मिल गयीं हैं, एकदम सेफ हैं, तीनो ही सेफ और सिक्योर हैं, " डीबी की निगाह गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर चिपकी थी

" मिडिया, वीडिया या कोई " उधर से सी एम् का दूसरा सवाल आया,

" नहीं सर, मिडिया, को कुछ पता नहीं है, वो एकदम सेफ हैं " डीबी ने जवाब दिया और फिर अपनी परेशनी बताई,

" वो एस टीएफ, वाले "

लेकिन सीएम ने उनकी बात काट दी और हलके से खिलखिलाये,

" अरे तुम्हे कब से फोटो खिंचवाने का शौक हो गया, थोड़ा लाइम लाइट में रहने दो उनको और उसी बहाने से छोटे साहब भी, तुम एक काम करो, एक बड़ी जबरदस्त सी उनकी प्रेस कांफ्रेंस करवा दो, मिडिया वालों को लगा दो, आधे पौन घण्टे में, और आधे घंटे तक तो चलेगी ही, तो बस शाम को वो सब लखनऊ आ जायेगे, नेशनल चैनेल्स के टाक टाइम तक, "

लेकिन मैंने अंदाज लगा लिया था की डीबी की परेशानी क्या थी, वो चुम्मन और रजऊ का पोजेशन चाहते थे, उनसे पूछताछ के लिए। रजऊ से तो कुछ खास नहीं पता चलता लेकिन चुम्मन से शायद कुछ और काम की बात निकल पाती, दूसरे आज कल जो रेपुटेशन थी, कहीं एनकाउंटर में वो दोनों निपट गए तो फिर सब मामला दबा रह जाएगा,

डीबी ने यही बात साफ़ करने की कोशिश की लेकिन इतना अंदाजा तो था सीएम को भी बिना बताये, डीबी को उन्होंने रोक दिया और बोले,

" चिंता मत करो, थोड़ा दो दिन उन लोगों को फोटो वोटो खिंचवा लेने दो, तुम्हारे पास दो दिन में दोनों पहुँच जाएंगे, अगर सेंट्रल एजेंसी वाले नहीं कूदे तो, और हाँ गाडी पलटेगी भी नहीं ये मैं बोल देता हूँ , और कुछ, "

डीबी ने जैसे पहले से सोच रखा हो क्या क्या हेल्प मांगनी है, तुरंत बोले, " कुछ लोग जमालो टाइप, आंच सेंकने की कोशिश में हैं और कुछ मीडिया वाले भी "

एक बार फिर सीएम ने बात काट दी और बोले,

" लोकल वालों को तुम सम्हाल ही लोगे, बाकी मैं डायरेक्टर इंफॉरमशन को बोल देता हैं, वो जानता है किसकी पूँछ कहा दबती है, और मैं यहां पार्टी में भी लगाता हूँ कुछ लोगों को, लेकिन तुम जानते हो यहाँ भी हर तरह के लोग हैं, और, फ़ोर्स की ज्यादा जरूरत तो नहीं, मैं एड़ीजी साहेब को बोल दूँ , कुछ और पी ए सी, "

लेकिन अबकी बात काटने की बारी डीबी की थी,

" नहीं नहीं पी ए सी की जरूरत नहीं है , यहाँ रामनगर वाली बारहवीं वाहनी है न, उसे बुला लिया था , हाँ दो बटालियन आर ए ऍफ़, एक बार आप होम सेक्रेट्ररी से बोल दीजियेगा, सेंटर से बात कर लेंगे "

" ठीक है लेकिन बस तुम एक बात पर ध्यान दो, वो तीनो लड़कियां, बहुत ट्रॉमेटाइज्ड होंगी, तो जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच जाए, मिडिया से तो दूर रखना ही और कोई एजेंसी वाले, पूछताछ के नाम पे तो साफ़ मना कर देना नाम बताने से, बल्कि तुम्हे भी नाम जानने की जरूरोर्ट नहीं है, उन्हें जल्द से जल्द घर रवाना कर दो, घर वाले परेशान होंगे, ये काम अच्छा हो गया, बाकी सब तो राज काज है चलता रहता है "

और डीबी ने भी जयहिंद कह के फोन जेब में रख लिया और एक बार फिर से गुंजा और उसकी सहेलियों की ओर देखा, फिर गुड्डी की ओर जैसे सब क्रेडिट गुड्डी की ही है, और वो कुछ बोलते उसके पहले बगल वाले कमरे से आवाज आयी,

सर एक मिनट,

और डीबी ने इशारे से मुझे बुलाया और साथ में मैं भी उसी दरवाजे से कंट्रोल रूम में, जहाँ अभी भी काफी पुलिस के और सिवल आफिसर्स बैठे थे,

मैंने उस दरवाजे को बंद कर दिया जो उस कमरे में खुलता था जहाँ गुंजा, शाजिया और महक थीं।
 

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निज़ाम, टेंशन और परेशानियां,
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मैं बस खड़ा देख रहा था, एक साथ इतने लोग बात कर रहे थे, इतने फोन बज रहे थे और डीबी एकदम आर्केस्ट्रा के कंडकटर की तरह,



मुझे तो लगा की अब सभी लोग रिलैक्स होंगे,

गुंजा, शाजिया और महक बच गयीं,

दोनों दुष्ट पकडे भी गए और एस टी ऍफ़ वाले उन्हें बोरे में बंद करके ले भी गए,

अब तो सब लोग रिलैक्स होंगे, एक दूसरे की तारीफ़ कर रहे होंगे, और समोसे खा रहे होंगे, लेकिन यहाँ तो टेंशन ही टेंशन अभी तक था, और अब उन लड़कियों को लोगो ने भुला भी दिया था, कुछ अलग तरह की प्रॉब्लम्स चल रही थीं, और अब मुझे लगा पुलिस प्रशासन सिर्फ चोर सिपाही का खेल ही नहीं होता और एक आई पी एस अफसर को सिर्फ सिंघम नहीं होना होता।

एक तरह से मेरी भी असली ट्रेनिंग हो रही थी।

किसी ने एक फोन पकड़ा दिया, डीबी को, सांसद महोदय का फोन है, वही चू दे विद्यालय के बारे में, और डीबी ने स्पीकर फोन ऑन कर के बात शुरू कर दी,

" नमस्कार सर कैसे हैं आप,"

" मैं तो बढ़िया हूँ और टीवी देख रहा हूँ, बड़ी कुशलता से आप ने उन दुष्टों को पकड़ा और लड़कियों को बचाया, आपकी तो मैं हमेशा ताइर्फ करता हूँ, सीएम साहेब से मैंने कहा भी की बनारस के लिए असली कप्तान तो अब आया है , बस एक छोटी सी रिक्वेस्ट है, वो लड़कयों वाला स्कूल, अब बेचारे मैनेजेमेंट की कोई गलती तो है नहीं, लेकिन उन का फोन आया था, सुना है आप लोग स्कूल बंद करा रहे हैं , बेचारी लड़कयों का क्या होगा । उनके मालिक आप से मिलना चाहिते हैं , बाहर वेट कर रहे हैं , आप जो भी करेंगे ठीक ही होगा। अब वो हमारी पार्टी के सपोर्टर भी हैं, बस अब आप देख लीजियेगा "

यह कह के फोन उन्होंने रख दिया और डीबी ने किसी से बोला, " वो पी डबलू डी के एक्स इन साहेब आये होंगे जरा उनको और स्कूल वाले होंगे उनको "

और मुझे समझ में आयी बात। बॉम्ब से स्कूल में डैमेज हुआ है तो उसकी स्ट्रेंथ, स्ट्रक्चलरल ताकत चेक करनी होगी और जो भी रिपयेर करना हो उसके लिए वो इंजिनियर साहेब आये हैं, वो स्कूल वालों को गाइड करेंगे

और एडमिनिस्ट्रेशन ने स्कूल बंद करने का कोई हुकुम दे दिया होगा, लेकिन मान गया मैं डीबी साहेब को,

एकदम शहद, और जो स्कूल के मालिक थे, कोई झुनझुनवाला, नाम बताया था उन्होंने पूरा, और डीबी के साथ मुझे भी नमस्कार किया लेकिन डीबी ने पहले तो उन्हें कुर्सी ऑफर की और बहुत बधाई दी,

" आप लोग तो बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, आते जाते मैं देखता था आपके स्कूल के, कन्या शिक्षा के मामले में इतनी बड़ी आपने पहल की, और पढ़ाई वढ़ाई तो ये कान्वेंट वाले भी करवा देते हैं, रो पीट के, लेकिन आपके चू दे कन्या विद्यालय में शुद्ध भारतीय संस्कार जो दिए जाते हैं वो कहाँ मिलेंगे, और कितनी बहादुर हैं आपकी लड़कियां, और कितनी संस्कारी, "

मैं सुन रहा था, मुस्करा रहा था, मन ही मन और कुढ़ भी रहा था, चार नमूने तो मैं देख चुका था, एक अकेली काफी है किसी लड़के की ऐसी की तैसी करने के लिए, स्साले चुम्मन की मति मारी गयी थी,



लेकिन वो स्कूल वाले, वो भी कम नहीं थे, डीबी के आगे झुके जा रहे थे, और बीच बीच में मेरी ओर भी देखते की मैं शायद डीबी का ख़ास होऊं और उनकी हेल्प कर दूँ,

" हुजूर की कृपा है, हुक्मरानों की तो कृपादृष्टि हरदम से रही है, बस एक बात कहनी है आप से "

" अरे आप हुकुम दें, आप अपनी प्रिंसिपल या किसी टीचर को भेज देते, आप ने खुद जहमत फ़रमाई, और देखिये बेचारे एक्जीक्यूटिव इंजिनियर साहेब खुद आपका नक्शा और ये सब ले के पहले से खड़े हैं , ये आप से अभी या जब आप को फुर्सत हो तो डिटेल में बात कर लेंगे,

असल में बॉम्ब जो फूटा है, था तगड़ा, तो हर कमरे की जांच पड़ताल होगी, अब स्कूल आपने शुरू कर दिया तो कहीं कोई दीवाल, कमरा गिर पड़े, बेचारी लड़कियों को चोट लग जाए तो आपकी भी बदनामी और प्रशासन की भी, है न तो और आप आये हैं तो एम् पी साहेब का भी फोन आया था, आपकी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे, तो बस पन्दरह दिन, और चलिए हम अपनी ओर से स्कूल नहीं बंद करेंगे आप खुद होली की छुट्टी, कब तक है ये होली की छुट्टी,

" पांच दिन की, बस आज से बंद हो गया है " स्कूल मालिक साहेब बोले,

" अरे मैंने सुना है की बनारस में तो रंगपंचमी भी जबरदस्त होती है, पांच दिन होली के बाद तक तो, फिर रंग खेलने के बाद आराम करना, कपडे धुलने के लिए भी तो, बस ऐसा करिये आप की होली की छुट्टी दस दिन बढ़ा के पन्दरह दिन कर दीजिये, सिंपल और आप के यहां तो अभी बोर्ड का सेंटर भी नहीं है, सिर्फ नौ और ग्यारह वालियों की बात है तो बस, एक थोड़ी लम्बी छुट्टी कर दीजिये और उसी बीच, ऊपर वाले जो कमरे डैमेज हुए हैं उन्हें रिपयेर कर देंगे, इंजीनयर साहेब आपको समझा देंगे,


वो कुछ बोलते उसके पहले इंजिनियर साहेब चढ़ गए,

" देखिये मैं प्लान लाया हूँ, सैंक्शन प्लान और आप के बनाये इलाके में बहुत फरक है और ये जो चाय की पान की दुकाने और बाकी सब आस पास है वो भी तो स्कूल की जमीन पर ही है, "



अब मालिक साहेब थोड़ा नरम पड़े, लेकिन डीबी मामला जल्दी ख़तम करना चाहते थे, यहाँ पर और भी बहुत से तमाशे चल रहे थे

डीबी ने अब इंजिनियर साहेब का ईगो मसाज किया, " अरे साहेब आप टेक्नीकल एक्सपर्ट है, आप समझा दीजिये, बस एक बार असेसमेंट कर लीजिये, कोई आपका जानने वाला कांट्रेक्टर है उसे लगा दीजियेगा, पंद्रह दिन में जो ज्यादा गड़बड़ हो उसे ठीक करा देंगे, बाकी ऊपर वाला पार्ट बंद कर देंगे, आखिर दसवीं और बारहवीं का क्लास तो अभी लगेगा नहीं और जो आपका मास्टर प्लान होगा तो गर्मी की छुटियों में, और इस बार गर्मी की छुट्टी थोड़ी लम्बी कर दीजियेगा और क्या। "



फिर वो मालिक साहेब से बोले, " बस, हम कोई नोटिस नहीं देंगे, बस आप थोड़ा होली की लम्बी छुट्टी, और बाकी काम गरमी की छूती में और एक बार आपके ये सब काम हो गए न तो मैं शिक्षा अधिकारी से कहूंगा, अगले साल से आपके स्कूल में हाईस्कूल और इंटर के बोर्ड का डेंटर बल्कि होम सेंटर, क्यों लड़कियां दूसरे स्कूल में जाएँ और फिर कोतवाली के इतना पास भी है तो पुलिस की भी रिकमेंडेशन रहेगी, एकदम ट्रांग बस अभी आप चलिए और आगे से बस आप फोन घुमा दीजियेगा, मैं आपने परसनल नंबर आपको दे दे रहा हूँ और एक बार आपका स्कूल खुलेगा तो मैं खुद आऊंगा, लड़कियों और टीचर्स को बधाई देने।

मैं देख रहा था उन्होंने कैसे निपटाया, एम् पी भी खुश, स्कूल वाले भी इम्प्रेस और सबसे ज्यादा मेरी सालियाँ खुश होंगी, स्कूल की छुट्टी बढ़ने से और अगले साल से होम एक्जाम से, गूंजा और उसकी सहेलियां दसवें में होंगी।

होम एग्जाम मतलब, नकल की सस्ती, टिकाऊ और विश्वासप्रद सुविधा,

लेकिन चार लोग डीबी से बात करने के लिए बेताब थे, पहले ने एसटीएफ के बारे में बताया,

" सर वो एसटीएफ वाले नदेसर कोठी में, सर्किट हाउस में हैं और उनका प्लेन शाम ६ बजे के लिए क्लियर है तो करीब तीन चार घण्टे रहेंगे '

और डीबी की निगाह एक यंग लड़के की तरह आफिसर की ओर घूमी,

"सेन यार ये झंझटिया काम तेरे ही बस का है। इन एस टी ऍफ़ वालों की एक जबरदस्त प्रेस कांफ्रेंस करवा दो तो हम सब यहाँ मिडिया मुक्त होकर चैन से समोसे खाएं।"

बाद में पता चला की सेन मुझसे दो साल सीनियर, आई ए एस, पहली पोस्टिंग थी, बनारस में सिटी मजिस्ट्रेट, प्रेसिडेंसी कालेज के पढ़े

सेन ने फिर एक साथ फोन घुमाना और दो चार लोगों से बात करना शुरू किया, और डीबी ने किसी को बोला, सुनो वो सीओ, वीआईपी को बोलै देना, जरा रेडिसन वालों को बोल देंगे, उनका खाना बढ़िया है, सर्किट हाउस में खाने का इंतजाम के साथ प्रेस कांफ्रेंस के बाद चाय वाय का जुगाड़ भी बढ़िया कर देंगे

और एक किसी दरोगा को बोला, " सुनो, ये बाहर जितने मिडिया वाले हैं इनको नदेसर कोठी की ओर हाँक दो, कोई इधर नजर न आये और जो लोकल चैनल वाले मालिक लोग हैं उनको भी खबर कर दो, की वाहियात सवाल नहीं पूछेंगे, कववरेज बढ़िया हो।

लेकिन काम कम नहीं हो रहा था।

' बैरकेडिंग हटा दें "

" स्कूल के आस पास से अभी नहीं, दो बैरिकेड १०० और २५० मीटर पर "

" एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड का क्या करना है "

" पुलिस का डिप्लायमेंट, ये पी ए सी रामनगर से आयी थी, वापस करना है, और रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स "



" नहीं नहीं वापस नहीं करना है, कामंडेण्ट साहेब से बात कराओ और आर ए ऍफ़ वाले भी, सिद्दीकी एक रफ प्लान बना के दिखाओ "



कई काम एक साथ चल रह थे लेकिन मेरी निगाहें टीवी पर लगी थीं, एक लोकल चैनल लगा था, जो बार बार चीख रहा था



' क्या हुआ लड़कियों के साथ, कौन है जो हमारी होली में आग लगा रहा है। पुलिस ने अभी तक लड़कियों को मिडिया के सामने क्यों नहीं पेश किया। कुछ तो है, दाल में काला है या पूरी दाल काली है। "

दूसरा चैनल भी अब आग में घी नहीं पेट्रोल डाल रहा था, एक आतंकवादी क्या मदनपुरा का है ? " क्या इन्ही बस्तियों में आतंकवादी पालते हैं हमे ही जवाब देना होगा कौन है आपके पड़ोस में जो आपके त्यौहार को बर्बाद कर रहा है।

और थोड़ी देर में कुछ और चैनल पे भी गरमी बढ़ रही थी, फिर पहले वाले के नीचे एक रनर आने लगा, मदनपुरा में टेंसन, शहर में तबाव

दूसरे वाले चैनल ने और चरस बोया, पूरे शहर में तनाव, अफवाहों का बाजार गर्म, अगर इस घटना के बारे में किसी को भी खबर मिले हमें तुरंत बताएं डीबी की भी निगाह इसी बीच टीवी चॅनेल पर पड़ी, और वो किसी से बोले, " जरा एल आई यू ( लोकल इंटेलिजेंस )वाले इंस्पेकटर साहेब को बुलाओ। और उन के आते ही डीबी कुछ पूछ पाते, उस ने खुद बोला, " थोड़ा थोड़ा टेंशन बढ़ रहा है मदनपुरा, सोनारपुरा, कबीरचौरा इलाके में कुछ ज्यादा प्रेशर है "



सीओ अरिमर्दन सिंह बोले, " सर इंटरनेट बंद करवा दें "



" अभी नहीं " डीबी बोले " और टेंशन बढ़ेगा, और फिर धुंआ देखकर ये तो पता चलेगा की आग कहाँ लग रही है कौन लगा रहा है, ज़रा सायबर सिक्योरटी वालों से बात कराओ "



और उन को डीबी ने कुछ इंस्ट्रक्शन दिए, फिर सिद्द्की को बुला के कुछ स्पेशल कमांडो का डिप्लायमेंट, फायर ब्रिगेड का और एम्बुलेंस का और फिर उस यंग आई ए इस अफसर को बुलाया,

" यार सेन, अब तेरी अक्ल के इम्तहान का टाइम है, ज़रा ये पीस कमेटी वालों से बात करना "



" उनकी मीटिंग बुलानी है क्या " सेन ने पूछा।

" नहीं नहीं मीटिंग से ही लोगो को लगेगा टेंशन है , बस सबको अश्योर करो और पता करो जो भी रयूमर हो सही , गलत सीधे तुझे फोन करें वो लोग, जरा पोटेंशियल ट्रबल स्पॉट का अंदाजा रहे " डीबी ने समझाया,

" करता हूँ, लेकिन ये स्साले चैनल वाले न " सेन ने टीवी देखते हुए बोला,

" करता हूँ इसका भी इलाज, यार जरा डायरेक्टर इन्फॉर्मेशन को फोन लगाना " अपना मोबाइल उन्होंने किसी को दिया और डायरेक्टर इन्फॉम्रेशन के फोन पर आते ही मोबायल लेकर वो कमरे के दूसरे कोने में जहाँ वो दरवाजा था जिधर गुड्डी, गुंजा महक और शाजिया थीं उधर आ गए।

" ये जरा चैनल वालों का कुछ करो " डीबी ने बोला

" कौन कौन ज्यादा उछल रहे हैं, लोकल को तो आप टैकल कर ही लेंगे बाकी को मैं देखता हूँ यहाँ से लेकिन उन्हें कुछ और मसाले वाली खबर देनी होगी न " उधर से डायरेक्टर इन्फो फोन पर थे।

डीबी ने कुछ नाम बताये, और सजेस्ट किया की एसटीएफ की प्रेस कांफ्रेंस को कवर कर सकते हैं अच्छे से, फिर असली परेशानी बताई,

" ये बनारस लोकल नेटवर्क वाला, इसका तो बंदा लखनऊ में बैठता है ये जयादा आग लगा रहा है "

" आपको तो मालूम है वो छोटे साहेब की रखैल का है, हाँ ऊपर से जो देखता है वो लखनऊ में है लेकिन वो भी छोटे साहेब का ख़ास है ' उधर से आवाज आयी



अबतक मैं समझ गया था, छोटे साहेब मतलब डिप्टी होम मिनिस्टर, १०-१२ एम् एल ए उनके ख़ास है इसलिए ये पोस्ट उन्हें मिल गयी पर होम मिनिस्टर से उनकी नहीं पटती और होम मीनिस्टर चीफ मिनिस्टर के नजदीक है, तो ये छोटे साहेब दोनों की जड़ खोदने में लगे रहते हैं। पर केंद्र में भी थोड़ी बहुत उनकी पूछ है और संगठन में इसलिए,



" अरे तो उन्ही का कवरेज करवा दे न यार, एस टिफ वाला उनका ख़ास है, फिर उनका भी स्टेटमेंट थोड़ा फोकस शिफ्ट हो : डीबी ने रास्ता बताया।

" आइड्या तो सही है और उनका जो नंबर दो है जो न्यूज देखता है उसको बोलता हूँ और आप उसको एकाध एक्सक्लूसिव शाम तक दे दीजियेगा, खुश रहेगा " कहकर उधर से फोन कट गया और डीबी मेरे साथ फिर उस कमरे में और अबकी दरवाजा उन्होंने खुद बंद कर दिया

गुड्डी भी मेरे पास आ के खड़ी हो गयी थी, डीबी बोले



" अब तुम सब यहाँ से जल्द से जल्द निकल जाओ और ऐसे की किसी को खबर न हो और पुलिस को तो एकदम नहीं। "फिर लड़कियों को देखकर बोले, " और किसी से कुछ बोलना भी नहीं "
 

komaalrani

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महक के अंकल,
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लेकिन सवाल था की हम सब पांचो निकले कैसे, पुलिस को पता नहीं चलना था तो जिस पुलिस की गाडी से मैं और गुड्डी आये थे, उसका तो सवाल ही नहीं था। और डीबी की बात सही थी, मिडिया वाले उन तीनो लड़कियों को सूंघ रहे थे, तो कोई पुलिस वाला ही बता दे, फिर कहीं कोई एस टी ऍफ़ वाला ही सुरागरसी कर रहा हो तो पूछताछ के नाम पर, और मेरा रोल तो एकदम ही अनऑफिशियल था और न मैं चाहता था न डीबी की ये बात कहीं बाहर निकले।



तो बस हम लोगों का दबे पांव चुपके से निकल जाना ही ठीक था, और मैं देख चुका था की बाहर टेंशन बढ़ ही रहा है।

मेरी और गुड्डी की घंटी साथ-साथ बजी। महक के अंकल-

मैंने डीबी से धीरे से कहा की महक के अंकल हैं, बाहर, उनके साथ निकल जाएंगे,

" उनसे कहना की गाड़ी अपनी पीछे लगा दें, और तुम लोग पीछे वाले रस्ते से निकल जाओ, जल्दी। चपरासी से बोल देना वो उन्हें बता देगा, की गाड़ी कहाँ लगानी है, और हाँ ये दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना, " और वो वापस कंट्रोल रूम में।



वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे। जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैंने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे।

हम दोनों एक साथ बोल पड़े- “महक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से इंतेजार कर रहे हैं…”“कहां?” वो उछल पड़ी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी।



मैंने बोला- “तुम बैठो। मैं ढूँढ़कर लाता हूँ…” और बाहर निकला।



वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था। मैंने उसी को बोला, उन्हें बुलाने के लिये चपरासी को जो बात डीबी ने बोली थी वही मैंने भी समझा दी, उनसे बोलने के लिए की गाड़ी पीछे वाले दरवाजे के पास लगा दें और वो अंकल को ले आये।

और बाथरूम चला गया हाथ मुँह धोने।



जब मैं निकला तो महक और उसके अंकल, दोनों ने एक दूसरे को बांहों में पकड़ रखा था और बिना बोले दोनों की आँखों में आँसू थे।



उन्होंने पूछा- “तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं? ये कपड़े पे खरोंच…” उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था।

“ये?” मुश्कुराकर महक बोली- “कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गई थी…”

महक के अंकल बोले- “ये तो बहुत अच्छा हुआ। टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया। मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे। कोई चैनेल कह रहा था की दोनों पकड़े भी गये…”



उस समय टीवी पे आ भी रहा था, ब्रेकिंग न्यूज- “कमांडो ऐक्शन में तीनों लड़कियां छुड़ायी गई। तीनों सुरक्षित, मेडिकल जांच जारी। फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो। दूसरे चैनेल पे गृह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमली एस॰टी॰एफ॰ के ऐक्शन से लड़कियों को बचा लिया गया है। एक और चैनेल पे एस॰टी॰एफ॰ के प्रवक्ता लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुड़ा लिया गया। स्थानीय पुलिस ने भी बहुत सहयोग दिया…”



सब लोगों की आँखें टीवी पे लगी थी।



अचानक महक के अंकल की आँखें मुझ पे पडीं, और उन्होंने पूछा- “ये कौन है?”

“ये?” महक मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी कमर में हाथ डालकर बोली- “वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही। कमांडो। पुलिस सब कुछ…”

गुन्जा भी मेरे पास खड़ी हो गई- “ये मेरे जीजू हैं…”

महक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढ़ाते हुये कहा- “झूठ। थे, अब मेरे हैं…”

महक के अंकल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

फिर तीनों लड़कियां एक साथ चालू हो गईं। मेरी वीर गाथा। साथ में थोड़ी नमक मिर्च। पांच मिनट में बिना कामर्सियल ब्रेक के लगातार सुनाकर ही वो रुकीं।

महक के अंकल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने अब सीधे मुझसे पूछा-

“आप अकेले थे? आप कमांडो में है?”

मैंने दोनों सवालों का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया- “नहीं…” और मैंने बताया- “ गुड्डी का और डी॰बी॰ का बहुत योगदान है…”



मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले- “आप उन्हें जानते हैं?”

अबकी गुड्डी ने जवाब दिया- “हाँ इनके बहुत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से…”

“मेरी समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहूँ। मैं आपको इसके बदले में कुछ दे भी नहीं सकता, धन्यवाद भी नहीं। मेरे लड़का लड़की कुछ भी नहीं, जो भी है बस ये है और अगर इसे कुछ। कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता…”



महक के अंकल मेरे पास आकर बोल रहे थे। उनका हाथ मेरे कंधे पे था और अबकी बार आँसू का एक कतरा बाहर निकल आया था। गनीमत था लड़कियों ने, चुम्मन ने उनसे जो कुछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी।



मैं- “देखिये आप मुझसे बुजुर्ग हैं। लेकिन मैं एक बात बोलूं। इसे कुछ नहीं होगा। जिसपर आप जैसे बुजुर्गों का साया है, और मुझे जितना मैं सोच सकता था। उससे बहुत ज्यादा इस काम में मिल गया है…”



महक के अंकल मुश्कुराने लगे और बोले- “अरे क्या मिला, जरा हमें भी तो बताओ?”



मैं- “दो नई सालियां। और फिर जब महक मेरी साली हो गई तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया। कहते हैं जामाता दसवां ग्रह। तो फिर तो मैं लगातार लेता रहूंगा। एक बार में थोड़े ही छोड़ूंगा। क्यों महक?”



महक के गाल थोड़े से लाल हो गये, मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर। मुश्कुरा कर वो बोली- “हाँ एकदम…”



गुड्डी और गुंजा से मैंने कहा- “चलें? वैसे भी बहुत देर हो गई है इसे घर ड्राप करके फिर सामान पिकअप करना है और बस पकड़नी है…”

अंकल बोले- “आप। तुम जाओगे कैसे?”

मैं- “क्यों रिक्शा कर लेंगें हम। पास में ही जाना है, नई सड़क के पास। गुंजा को छोड़कर हम चले जायेंगे। और अब तो रिक्शा चलने लगा होगा…”

“तुम ना कैसे दामाद हो? अरे मेरे साथ चलो…” और तब उनकी निगाह मेरे शर्ट पे पड़ी, और वो बोले- “अरे इतना खून। शर्ट तो बदल लेते…”

मैं बोला- “नही। वो तो मैं होटल में ही चेंज कर पाऊँगा। चलेगा तब तक…”

हम लोग गाड़ी में बैठ गये। गुड्डी आगे बैठ गई, पीछे हम चारों।

लेकिन मुझे उनकी बात में दम लगा, खून में लथपथ ये शर्ट देखकर है मैं भले कुछ नहीं कहता लेकिन चंदा भाभी की हालत खराब हो जाती और बात उनसे गुड्डी की मम्मी और मेरी भाभी तक पहुँच जाती, इसलिए शर्ट चेंज कर लेना ही ठीक था, लेकिन अब यहाँ से जाकर फिर शर्ट चेंज कर के गुंजा के यहाँ, औरंगाबाद आना, तो अच्छा तो यही था की यही शर्ट ले लूँ, पर मैं कहना नहीं चाहता था।



मेरी नगाह बीच बीच में सड़क पर भी दौड़ रही थी और देख कर लग रहा था की कुछ गड़बड़ होने वाला है, जब मैं गुड्डी के साथ शॉपिंग कर रहा था तो यहाँ कंधे छिलते थे, बस धककम धुक्का, और अभी सन्नाटा पसरा पड़ा था, गली के बाहर बस कहीं कहीं दो चार लोग खड़े दिखते, लेकिन वो भी सशंकित, बार बार इधर उधर देखते, और कोई पुलिस की गाडी दिखते ही गली में दुबक जाते , सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर।

महक बोली- “ऐसा कीजिये माल चलते हैं। वहां इनके लिये एक शर्ट ले लेते हैं। वर्ना हर चौराहे पे पुलिस वालों को ये जवाब देते फिरेंगे। और कहीं पकड़ लिये गये। तो रात थाने में गुजरेगी…”

गुड्डी बोली- “एकदम सही कहा तुमने। इसके पहले भी ये आज थाने जाते-जाते बचे हैं…”

ड्राइव करते हुए आगे से महक के अंकल ने पूछा- “उन लोगों के पास तो हथियार रहे होंगे?”

गुंजा और महक साथ-साथ पीछे से बोली- “दो बड़े-बड़े चाकू, एक रिवाल्वर और एक बाम्ब…”

उन्होंने फिर पूछा- “और तुम्हारे पास?”

अबकी जवाब गुड्डी ने दिया- “मेरी चिमटी, मेरे बाल का काँटा, चूड़ियां और पायल…”

चारों खिलखिलाने लगी।

गुड्डी फिर मुँह फुलाकर बोली- “हाँ और सब उन्होंने गुमा दिया…”

अंकल बोले- “अरे मत उदास हो सब तुम्हें हम दिलवा देंगे…” वो भी अब लड़कियों के ही स्प्रिट में आ गए थे।



मैंने पीछे से सही जवाब देने की कोशिश की- “मेरा असली हथियार था। मेरी सालियां, और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद…”

अंकल बोले- “मक्खन बहुत जबर्दस्त लगाते हो तुम…”

और पीछे से, समवेत स्वर साथ-साथ मेरे कमेंट पे उभरा- “डायलाग डायलाग…”

“डर नहीं लगा तुम्हें?” अंकल ने पूछा।

“बहुत लगा। अगर इन्हें कुछ भी हो जाता, एक खरोंच भी लग जाती तो गुड्डी बहुत मारती मुझे और। भूखा रखती सो अलग…” मैंने मुँह बनाकर बोला।



अंकल ने शायद नहीं समझा लेकिन सारी लड़कियां ‘भूखा रखने’ की बात समझ गईं और मेरे और गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराने लगी।

थोड़ी देर में हम मॉल में पहुँच गए, पर हाँ उसके थोड़ी देर पहले रस्ते में हम लोगो ने शाज़िया को ड्राप कर दिया,
शाजिया का घर एक गली में था, गली में ज्यादा अंदर नहीं, बस दो चार घर छोड़ के और जैसे बनारस की गलियों का उसूल है, जितनी पतली गली, उतना ही बड़ा मकान, तो शाज़िया का भी घर बहुत बड़ा था, शाज़िया जैसे ही कार से उतरी, और मेरे बिना पूछे बोली,
" मैं चली जाउंगी, देखिये मम्मी खड़ी वेट भी कर रही हैं, गली के ज्यादा अंदर नहीं जाना है "
पर अगली सीट से गुड्डी गरजी, " हे अकेली लड़की जायेगी, छोड़ के आओ गली के अंदर तक'

शाज़िया ने मुड़ के मेरी ओर देखा, हलके से मुस्करायी, होंठ उसके मना कर रहे थे, पर बड़ी बड़ी आँखे दावत दे रही थीं, और मैं कार का दरवाजा खोल के उसके साथ, और उसका हाथ पकड़ के,
" अब जाइये आप, मम्मी देख रही हैं, सामने तो खड़ी हैं " वो बोली,
मुश्किल से सौ कदम दूर, कुछ मामलों में तो शाज़िया की बड़ी बहन लग रही थी और ऊपर की मंजिल गुड्डी की मम्मी के टक्कर की, शाज़िया को देख के जोर से मुस्करायीं,

कभी नीम नीम कभी शहद शहद
थोड़ी देर पहले जो लड़की मुझे कार में इस तरह से छेड़ रही थी, मैं बीच में था पिछली सीट पर, एक ओर महक, एक ओर शाज़िया. तीनों एक से एक शातिर दुष्ट, दर्जा नौ वाली, टीनेजर्स, जबतक मैं कुछ समझता, थोड़ा सरको, थोड़ा सरको ( और वैसे भी तीन की सीट पर पीछे हम चार थे ), गूंजा ने शाज़िया को मेरी ओर ठेला और महक ने मुझे धकेला, बस, शाज़िया ने जैसे सहारे के लिए मुझे पकड़ा और आधे से ज्यादा मेरी गोद में, लेकिन बदमाशी उसकी भी कम नहीं थी, जिस तरह उसके नितम्ब मुझे दबा रहे थे, बदमाश उंगलिया और शरारती आंखे, ऊपर से महक बोली, ' पकड़ लीजिये न गिर जायेगी बेचारी ' और खुद मेरा हाथ पकड़ कर शाज़िया के,

और वही शाज़िया, अभी, , मम्मी के पास जाने से पहले , पल भर ठिठकी, मुड़ी एक बार उसने मुझे भर आँखों से देखा, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे उसकी डबडबा आयीं, मुझे देखती रही वो लड़की और अचानक बाँहों में भींच लिया। एक दो स्वाती की बूंदे ढलक गयीं, बाकी उसकी आँखे पी गयीं। जैसे बोल नहीं निकल पा रहे थे, फिर बड़ी मुश्किल से हिचकी लेते बोली,
" अगर आप नहीं आते, पांच मिनट, बस पांच मिनट, वो, वो बोल कर गया था, 'बस पांच मिनट, उसके बाद धूम,धड़ाम, धड़ाका, ,जिसको भी याद करना हो कर लो, बस पांच मिनट बचे हैं तुम तीनो के पास, मैंने तो एकदम उम्मीद खो दी थी, फिर से मम्मी को देखने की, पर आप, और और, सीढ़ी पर भी, एक गोली तो एकदम बगल से गुजरी, बहुत डर लग रहा था, "

मैंने भी उसे भींच रखा था और सोच रहा था जब मैंने पहली बार देखा था, गुंजा के बगल में बेंच पर, डर के मारे एकदम सफ़ेद, कस के दोनों हाथों से बेंच दबोच रखी थी, लेकिन एक बार शाज़िया ने फिर मुझे भींचा, एक मुस्कान होंठों पर चिपकायी, मुझे देखते हुए बच्चों की तरह तेजी से अपनी मम्मी की बांहो में

" कौन हैं ये " मम्मी ने उसकी मेरी ओर इशारा करके पूछा और शाज़िया अब फिर वही शरारती बच्ची हो गयी, मम्मी को छेड़ती बोली

" आपके दामाद " फिर मामले को साफ़ करके हलके से बोली
" अपनी गुड्डी दी के, अरे वही, और हम लोगों के जीजू "


जबतक उनकी मम्मी कुछ बोलतीं, कार में से गुड्डी ने इशारा किया मैं जल्दी आ जाऊं। कोई पुलिस की गाडी आ गयी थी और महक के अंकल से वहां से जल्दी जाने के लिए कह रही थी, थोड़ी देर में हम सब मॉल में पहुँच गए।
 
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फागुन के दिन चार भाग 33 महक - अंदर की बात , पृष्ठ ३९१

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आंनद लें और लाइक और कमेंट जरूर करें
 
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Sutradhar

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महक के अंकल,
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लेकिन सवाल था की हम सब पांचो निकले कैसे, पुलिस को पता नहीं चलना था तो जिस पुलिस की गाडी से मैं और गुड्डी आये थे, उसका तो सवाल ही नहीं था। और डीबी की बात सही थी, मिडिया वाले उन तीनो लड़कियों को सूंघ रहे थे, तो कोई पुलिस वाला ही बता दे, फिर कहीं कोई एस टी ऍफ़ वाला ही सुरागरसी कर रहा हो तो पूछताछ के नाम पर, और मेरा रोल तो एकदम ही अनऑफिशियल था और न मैं चाहता था न डीबी की ये बात कहीं बाहर निकले।



तो बस हम लोगों का दबे पांव चुपके से निकल जाना ही ठीक था, और मैं देख चुका था की बाहर टेंशन बढ़ ही रहा है।

मेरी और गुड्डी की घंटी साथ-साथ बजी। महक के अंकल-

मैंने डीबी से धीरे से कहा की महक के अंकल हैं, बाहर, उनके साथ निकल जाएंगे,

" उनसे कहना की गाड़ी अपनी पीछे लगा दें, और तुम लोग पीछे वाले रस्ते से निकल जाओ, जल्दी। चपरासी से बोल देना वो उन्हें बता देगा, की गाड़ी कहाँ लगानी है, और हाँ ये दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना, " और वो वापस कंट्रोल रूम में।



वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे। जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैंने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे।

हम दोनों एक साथ बोल पड़े- “महक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से इंतेजार कर रहे हैं…”“कहां?” वो उछल पड़ी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी।



मैंने बोला- “तुम बैठो। मैं ढूँढ़कर लाता हूँ…” और बाहर निकला।



वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था। मैंने उसी को बोला, उन्हें बुलाने के लिये चपरासी को जो बात डीबी ने बोली थी वही मैंने भी समझा दी, उनसे बोलने के लिए की गाड़ी पीछे वाले दरवाजे के पास लगा दें और वो अंकल को ले आये।

और बाथरूम चला गया हाथ मुँह धोने।



जब मैं निकला तो महक और उसके अंकल, दोनों ने एक दूसरे को बांहों में पकड़ रखा था और बिना बोले दोनों की आँखों में आँसू थे।



उन्होंने पूछा- “तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं? ये कपड़े पे खरोंच…” उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था।

“ये?” मुश्कुराकर महक बोली- “कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गई थी…”

महक के अंकल बोले- “ये तो बहुत अच्छा हुआ। टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया। मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे। कोई चैनेल कह रहा था की दोनों पकड़े भी गये…”



उस समय टीवी पे आ भी रहा था, ब्रेकिंग न्यूज- “कमांडो ऐक्शन में तीनों लड़कियां छुड़ायी गई। तीनों सुरक्षित, मेडिकल जांच जारी। फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो। दूसरे चैनेल पे गृह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमली एस॰टी॰एफ॰ के ऐक्शन से लड़कियों को बचा लिया गया है। एक और चैनेल पे एस॰टी॰एफ॰ के प्रवक्ता लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुड़ा लिया गया। स्थानीय पुलिस ने भी बहुत सहयोग दिया…”



सब लोगों की आँखें टीवी पे लगी थी।



अचानक महक के अंकल की आँखें मुझ पे पडीं, और उन्होंने पूछा- “ये कौन है?”

“ये?” महक मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी कमर में हाथ डालकर बोली- “वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही। कमांडो। पुलिस सब कुछ…”

गुन्जा भी मेरे पास खड़ी हो गई- “ये मेरे जीजू हैं…”

महक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढ़ाते हुये कहा- “झूठ। थे, अब मेरे हैं…”

महक के अंकल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

फिर तीनों लड़कियां एक साथ चालू हो गईं। मेरी वीर गाथा। साथ में थोड़ी नमक मिर्च। पांच मिनट में बिना कामर्सियल ब्रेक के लगातार सुनाकर ही वो रुकीं।

महक के अंकल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने अब सीधे मुझसे पूछा-

“आप अकेले थे? आप कमांडो में है?”

मैंने दोनों सवालों का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया- “नहीं…” और मैंने बताया- “ गुड्डी का और डी॰बी॰ का बहुत योगदान है…”



मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले- “आप उन्हें जानते हैं?”

अबकी गुड्डी ने जवाब दिया- “हाँ इनके बहुत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से…”

“मेरी समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहूँ। मैं आपको इसके बदले में कुछ दे भी नहीं सकता, धन्यवाद भी नहीं। मेरे लड़का लड़की कुछ भी नहीं, जो भी है बस ये है और अगर इसे कुछ। कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता…”



महक के अंकल मेरे पास आकर बोल रहे थे। उनका हाथ मेरे कंधे पे था और अबकी बार आँसू का एक कतरा बाहर निकल आया था। गनीमत था लड़कियों ने, चुम्मन ने उनसे जो कुछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी।



मैं- “देखिये आप मुझसे बुजुर्ग हैं। लेकिन मैं एक बात बोलूं। इसे कुछ नहीं होगा। जिसपर आप जैसे बुजुर्गों का साया है, और मुझे जितना मैं सोच सकता था। उससे बहुत ज्यादा इस काम में मिल गया है…”



महक के अंकल मुश्कुराने लगे और बोले- “अरे क्या मिला, जरा हमें भी तो बताओ?”



मैं- “दो नई सालियां। और फिर जब महक मेरी साली हो गई तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया। कहते हैं जामाता दसवां ग्रह। तो फिर तो मैं लगातार लेता रहूंगा। एक बार में थोड़े ही छोड़ूंगा। क्यों महक?”



महक के गाल थोड़े से लाल हो गये, मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर। मुश्कुरा कर वो बोली- “हाँ एकदम…”



गुड्डी और गुंजा से मैंने कहा- “चलें? वैसे भी बहुत देर हो गई है इसे घर ड्राप करके फिर सामान पिकअप करना है और बस पकड़नी है…”

अंकल बोले- “आप। तुम जाओगे कैसे?”

मैं- “क्यों रिक्शा कर लेंगें हम। पास में ही जाना है, नई सड़क के पास। गुंजा को छोड़कर हम चले जायेंगे। और अब तो रिक्शा चलने लगा होगा…”

“तुम ना कैसे दामाद हो? अरे मेरे साथ चलो…” और तब उनकी निगाह मेरे शर्ट पे पड़ी, और वो बोले- “अरे इतना खून। शर्ट तो बदल लेते…”

मैं बोला- “नही। वो तो मैं होटल में ही चेंज कर पाऊँगा। चलेगा तब तक…”

हम लोग गाड़ी में बैठ गये। गुड्डी आगे बैठ गई, पीछे हम चारों।

लेकिन मुझे उनकी बात में दम लगा, खून में लथपथ ये शर्ट देखकर है मैं भले कुछ नहीं कहता लेकिन चंदा भाभी की हालत खराब हो जाती और बात उनसे गुड्डी की मम्मी और मेरी भाभी तक पहुँच जाती, इसलिए शर्ट चेंज कर लेना ही ठीक था, लेकिन अब यहाँ से जाकर फिर शर्ट चेंज कर के गुंजा के यहाँ, औरंगाबाद आना, तो अच्छा तो यही था की यही शर्ट ले लूँ, पर मैं कहना नहीं चाहता था।



मेरी नगाह बीच बीच में सड़क पर भी दौड़ रही थी और देख कर लग रहा था की कुछ गड़बड़ होने वाला है, जब मैं गुड्डी के साथ शॉपिंग कर रहा था तो यहाँ कंधे छिलते थे, बस धककम धुक्का, और अभी सन्नाटा पसरा पड़ा था, गली के बाहर बस कहीं कहीं दो चार लोग खड़े दिखते, लेकिन वो भी सशंकित, बार बार इधर उधर देखते, और कोई पुलिस की गाडी दिखते ही गली में दुबक जाते , सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर।

महक बोली- “ऐसा कीजिये माल चलते हैं। वहां इनके लिये एक शर्ट ले लेते हैं। वर्ना हर चौराहे पे पुलिस वालों को ये जवाब देते फिरेंगे। और कहीं पकड़ लिये गये। तो रात थाने में गुजरेगी…”

गुड्डी बोली- “एकदम सही कहा तुमने। इसके पहले भी ये आज थाने जाते-जाते बचे हैं…”

ड्राइव करते हुए आगे से महक के अंकल ने पूछा- “उन लोगों के पास तो हथियार रहे होंगे?”

गुंजा और महक साथ-साथ पीछे से बोली- “दो बड़े-बड़े चाकू, एक रिवाल्वर और एक बाम्ब…”

उन्होंने फिर पूछा- “और तुम्हारे पास?”

अबकी जवाब गुड्डी ने दिया- “मेरी चिमटी, मेरे बाल का काँटा, चूड़ियां और पायल…”

चारों खिलखिलाने लगी।

गुड्डी फिर मुँह फुलाकर बोली- “हाँ और सब उन्होंने गुमा दिया…”

अंकल बोले- “अरे मत उदास हो सब तुम्हें हम दिलवा देंगे…” वो भी अब लड़कियों के ही स्प्रिट में आ गए थे।



मैंने पीछे से सही जवाब देने की कोशिश की- “मेरा असली हथियार था। मेरी सालियां, और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद…”

अंकल बोले- “मक्खन बहुत जबर्दस्त लगाते हो तुम…”

और पीछे से, समवेत स्वर साथ-साथ मेरे कमेंट पे उभरा- “डायलाग डायलाग…”

“डर नहीं लगा तुम्हें?” अंकल ने पूछा।

“बहुत लगा। अगर इन्हें कुछ भी हो जाता, एक खरोंच भी लग जाती तो गुड्डी बहुत मारती मुझे और। भूखा रखती सो अलग…” मैंने मुँह बनाकर बोला।



अंकल ने शायद नहीं समझा लेकिन सारी लड़कियां ‘भूखा रखने’ की बात समझ गईं और मेरे और गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराने लगी।

थोड़ी देर में हम मॉल में पहुँच गए, पर हाँ उसके थोड़ी देर पहले रस्ते में हम लोगो ने शाज़िया को ड्राप कर दिया,
शाजिया का घर एक गली में था, गली में ज्यादा अंदर नहीं, बस दो चार घर छोड़ के और जैसे बनारस की गलियों का उसूल है, जितनी पतली गली, उतना ही बड़ा मकान, तो शाज़िया का भी घर बहुत बड़ा था, शाज़िया जैसे ही कार से उतरी, और मेरे बिना पूछे बोली,
" मैं चली जाउंगी, देखिये मम्मी खड़ी वेट भी कर रही हैं, गली के ज्यादा अंदर नहीं जाना है "
पर अगली सीट से गुड्डी गरजी, " हे अकेली लड़की जायेगी, छोड़ के आओ गली के अंदर तक'

शाज़िया ने मुड़ के मेरी ओर देखा, हलके से मुस्करायी, होंठ उसके मना कर रहे थे, पर बड़ी बड़ी आँखे दावत दे रही थीं, और मैं कार का दरवाजा खोल के उसके साथ, और उसका हाथ पकड़ के,
" अब जाइये आप, मम्मी देख रही हैं, सामने तो खड़ी हैं " वो बोली,
मुश्किल से सौ कदम दूर, कुछ मामलों में तो शाज़िया की बड़ी बहन लग रही थी और ऊपर की मंजिल गुड्डी की मम्मी के टक्कर की, शाज़िया को देख के जोर से मुस्करायीं,

कभी नीम नीम कभी शहद शहद
थोड़ी देर पहले जो लड़की मुझे कार में इस तरह से छेड़ रही थी, मैं बीच में था पिछली सीट पर, एक ओर महक, एक ओर शाज़िया. तीनों एक से एक शातिर दुष्ट, दर्जा नौ वाली, टीनेजर्स, जबतक मैं कुछ समझता, थोड़ा सरको, थोड़ा सरको ( और वैसे भी तीन की सीट पर पीछे हम चार थे ), गूंजा ने शाज़िया को मेरी ओर ठेला और महक ने मुझे धकेला, बस, शाज़िया ने जैसे सहारे के लिए मुझे पकड़ा और आधे से ज्यादा मेरी गोद में, लेकिन बदमाशी उसकी भी कम नहीं थी, जिस तरह उसके नितम्ब मुझे दबा रहे थे, बदमाश उंगलिया और शरारती आंखे, ऊपर से महक बोली, ' पकड़ लीजिये न गिर जायेगी बेचारी ' और खुद मेरा हाथ पकड़ कर शाज़िया के,

और वही शाज़िया, अभी, , मम्मी के पास जाने से पहले , पल भर ठिठकी, मुड़ी एक बार उसने मुझे भर आँखों से देखा, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे उसकी डबडबा आयीं, मुझे देखती रही वो लड़की और अचानक बाँहों में भींच लिया। एक दो स्वाती की बूंदे ढलक गयीं, बाकी उसकी आँखे पी गयीं। जैसे बोल नहीं निकल पा रहे थे, फिर बड़ी मुश्किल से हिचकी लेते बोली,
" अगर आप नहीं आते, पांच मिनट, बस पांच मिनट, वो, वो बोल कर गया था, 'बस पांच मिनट, उसके बाद धूम,धड़ाम, धड़ाका, ,जिसको भी याद करना हो कर लो, बस पांच मिनट बचे हैं तुम तीनो के पास, मैंने तो एकदम उम्मीद खो दी थी, फिर से मम्मी को देखने की, पर आप, और और, सीढ़ी पर भी, एक गोली तो एकदम बगल से गुजरी, बहुत डर लग रहा था, "

मैंने भी उसे भींच रखा था और सोच रहा था जब मैंने पहली बार देखा था, गुंजा के बगल में बेंच पर, डर के मारे एकदम सफ़ेद, कस के दोनों हाथों से बेंच दबोच रखी थी, लेकिन एक बार शाज़िया ने फिर मुझे भींचा, एक मुस्कान होंठों पर चिपकायी, मुझे देखते हुए बच्चों की तरह तेजी से अपनी मम्मी की बांहो में

" कौन हैं ये " मम्मी ने उसकी मेरी ओर इशारा करके पूछा और शाज़िया अब फिर वही शरारती बच्ची हो गयी, मम्मी को छेड़ती बोली

" आपके दामाद " फिर मामले को साफ़ करके हलके से बोली
" अपनी गुड्डी दी के, अरे वही, और हम लोगों के जीजू "


जबतक उनकी मम्मी कुछ बोलतीं, कार में से गुड्डी ने इशारा किया मैं जल्दी आ जाऊं। कोई पुलिस की गाडी आ गयी थी और महक के अंकल से वहां से जल्दी जाने के लिए कह रही थी, थोड़ी देर में हम सब मॉल में पहुँच गए।
वाह मजा आ गया कोमल मैम

"गाड़ी नहीं पलटेगी" वाले डायलॉग ने तो प्रसिद्ध सी एम साब का भी खुलासा कर दिया।

कुल मिलाकर एक शानदार अपडेट।

सादर
 
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258
एक और खुबसूरत अपडेट ।
गली कूचे का एक मवाली एकाएक कुछ लड़कियों को बंधक बना लेता है , घातक हथियार और बम का प्रयोग करता है , पुरे प्रशासन और पुलिस महकमा को नाको चने चबाने को मजबूर कर देता है तो इसका मतलब वह अब एक साधारण मवाली तो हरगिज ही नही है ।
इसके तार अवश्य किसी टेररिस्ट संगठन से जुड़े हुए है ।

लड़कियों की भी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए । बंधक होने के दौरान वह बहुत ही मुश्किल घड़ी मे थी । उनकी जान कभी भी जा सकती थी । ऐसे हालात मे खुद को संभालना कोई आसान काम नही होता । इन्होने न केवल खुद को संभाला बल्कि एक दूसरे के लिए भी संबल का वायस बनी । यही नही इन्होने यहां से निकलने के लिए बड़े सब्र और बुद्धिमानी से आनंद के साथ ताल मे ताल भी मिलाई ।
और महज आधे घंटे के अंदर इन लड़कियों का अल्हड़पन , चुलबुलापन , शरारतीपन शुरू भी हो गया ।
यह दर्शा रहा है कि यह लड़कियाँ कितनी जिंदादिल है !

लोग-बाग लाइम लाइट मे रहने के लिए , अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया मे सुर्खी बनने के लिए न जाने क्या क्या तक कर जाते है ! कोई विवादास्पद बयान देता है , कोई जान पर खेलकर रील बनाता है , कोई ऊंची पानी के टंकी पर चढ़ जाता है , कोई अपने अफेयर्स की झूठी खबरे फैलाता है लेकिन , हमारे आनंद साहब हवा के झोंके की तरह आए , वगैर किसी हथियार के स्कूल मे प्रवेश किए , किडनैपर के आंखो मे धूल झोंका और चट से बंधकों को लेकर नौ दो ग्यारह हो गए ।
इस बहादुरी की कोई खबर नही , कोई सुर्खियां नही , कोई वाहवाही नही ।
ऐसा काम सिर्फ देश की सेना करती है ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
 

komaalrani

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