सुबह जब रूबी की नींद खुली तो उसने देखा की वो और वर्षा नंगी ही सो गई थी। उसने पास रखे चादर को उठाया और वर्षा के ऊपर डाल दिया और बाथरूम में चली गई। बाहर आकर उसने एक छोटी सी नाइटी पहन ली जो मुश्किल से उसके जांघों तक आ रही थी। ऊपर ये कंधे से सिर्फ एक पतली सी डोरी से लटक रही थी। उसने आईने में खुद को थोड़ा आगे झुका कर देखा। ब्रा के बंधनो से मुक्त उसके दोनों मुम्मे बाहर आने को बेताब थे। वो पीछे की ओर मुड़ी और अपने गांड को मटकाते हुए कमरे से बाहर निकल गई। उसने निर्णय कर लिया था की अब अपने पिता को वो रिझाएगी और बहन की तरह ही उन्हें पूरा सुख देगी।
वो कमरे से निकल कर किचन में गई और उसने चाय चढ़ा दिया। उसे तभी ख्याल आया की अपने पापा के लिए दूध भी तो निकलना है। उसने निचे से भगोना निकाला और कंधे के एक साइड से डोरी हटा कर अपने एक स्तन को बाहर निकाल लिया। फिर अपने हाथो से अपने निप्पल को खींचते हुए दूध निकालने लगी। दुध की धार बर्तन में गिरते हुए अजीब से आवाज कर रही थी। उसके मन में ख्याल आया की काश उसके पापा इस समय उसे दूध रहे होते। ऐसा सोचते ही उसके चूत में गिला गिला सा होने लगा। उसने अपने दोनों मुम्मो को बाहर करके भगोने में दूध निकाल लिया। चूल्हे पर छड़ी चाय उबलने लगी थी तो उसने भगोने को छोड़ अपने स्तनों की धार को चाय के पतीले की तरफ कर दिया। कुछ देर बाद उसने जब स्तनों नाइटी को ठीक किया तो नाइटी उसके निप्पल के पास भीग गई थी। उसने निचे देखा और मुश्कुरा उठी। उसके पापा को पता तो चलना चाहिए की चाय ताजे दूध से बानी है।
रूबी चाय लेकर अनुराग के कमरे में जा पहुंची। अनुराग भी सुनहरे सपनो में खोया हुआ था। रात जागते हुए चुदाई के बाद भी लग रहा था की सपने में किसी को चोद रहा हो। क्योंकि उसका लंड एकदम कड़क टाइट था। अनुराग के तन्नाए लौड़े को देख कर रूबी के मन में आया की वो बस चढ़ ही जाए पर उसने सब्र रखना ही उचित समझा। उधर अनुराग सच में सपने में जिसे चोद रहा था वो कोई और नहीं रूबी ही थी। वो सपने में रूबी को कुतिया बना कर चोद रहा था।
बस उसका स्खलन होने ही वाला था की उसके कानों में रूबी की आवाज आई - पापा उठिये। चाय ले लीजिये।
अनुराग नींद में ही बड़बड़ा उठा - बस मेरा होने वाला है। मस्त गांड है तेरी मार लेने दे।
रूबी ने ये सुना तो दांतो टेल ऊँगली दबा ली। उसने सोचा क्या सच में पापा उसे सपने में चोद रहे हैं। एक बार तो उसका मन हुआ की वो वापस लौट जाए। काम से काम सपने में तो चोद लेने दे। पर वो एक नंबर की कमीनी तो थी ही।
उसने दोबारा आवाज दी - पापा , पापा उठिये। सुबह हो गई है। चाय ले लीजिये।
अनुराग अबकी झटके से उठ पड़ा। उसने आँखे खोली तो देखा रूबी उसके बिलकुल बगल में झुकी हुई खड़ी थी और उसके दोनों मुम्मे बाहर आने को बेताब थे। पहले तो उसका लंड इस तरह अचानक जागने से शांत हुआ फिर रूबी को इस तरह नजदीक देखते ही झटके लेते हुए उसकी लुंगी गीली करने लगा। जब तक अनुराग अपने आपको ढकता , काण्ड हो चूका था। रूबी की नजर उसके लंड पर जा पहुंची थी जहाँ उसका लंड झटके लेते हुए माल निकाल रहा था।
रूबी ने उस तरफ देखते हुए मुश्कुरा कर कहा - रात भर वर्षा दी के साथ रहने पर भी आपका दिल भरा नहीं शायद।
अनुराग झेंप गया और लुंगी संभाल कर तेजी से उठते हुए बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
रूबी ने हँसते हुए कहा - दीदी को भेजूं क्या ?
अनुराग कुछ नहीं बोला। रूबी कुटिलता से मुस्कुराई और बाथरूम के दरवाजे के पास पहुँच कर बोली - टेंशन मत लीजिये मैंने ज्यादा कुछ नहीं सुना है। और हाँ आपकी चाय रखी है। ताजे दुध की बनी है। जल्दी से आइये वार्ना दी को भेजना पड़ेगा।
रूबी फिर किचन में चली गई। वो सोच रही थी की अब अनुराग उसको चोदने के लिए बेताब है। अब उसे देर नहीं करनी चाहिए। एक दो दिन में ही उसे कुछ करना पड़ेगा। फिर फूफा के साथ भी तो मजे लेने है। वैसे बहुत दिन हो चुके हैं उसके दोनों छेद में असली मास डाले हुए। उसकी चूत कुलबुला रही थी। पर अब उसे अपनी चूत रानी की खुजली दूर करनी थी। उसने चाय के दो प्याले लिए और अपने कमरे में जा पहुंची। वर्षा उठ चुकी थी और बाथरूम में थी। दोनों बच्चे सोये हुए थे। वर्षा बाथरूम से एक शार्ट और टी शर्ट में बाहर निकली। उसने भी अंदर कुछ नहीं पहना हुआ था। बाहर निकलते ही उसने रूबी को चाय पिटे देखा तो बोली - पापा को भी दे दिया ?
रूबी - हाँ। पर उन्हें चाय से ज्यादा चूत चाहिए थी। सुबह सुबह लेने की आदत है।
वर्षा को कुछ समझ नहीं आया तो उसने कहा - दे आती फिर उन्हें ? चाय के साथ गरमा गरम चूत और ताजा दूध।
रूबी - भाई उन्हें पहले अपनी बीवी की लेने की आदत थी , अब तुम्हारी लेने की आदत है।
वर्षा ने चाय उठा ली और पीते हुए बोली - तेरी भी ले लेंगे। तू ही नखड़े किये जा रही है।
रूबी ने अपने चूत को सहलाते हुए कहा - फिलहाल तो सपने में किसी की ले रहे थे।
वर्षा को अब समझ आया। उसने कहा - तूने देखा क्या ?
रूबी ने लम्बी सांस ली और कहा - हा। कमर इतने झटके से हिला रहे थे जैसे किसी की चूत फाड़ रहे हो।
वर्षा ने उसके गाल पर हलके से तमाचा मारते हुए कहा - तूने केएलपीडी तो नहीं कर दी।
रूबी - सोचा तो था। पर आँख खोल कर जैसे ही मुझे देखा , उनके लौड़े ने माल उगल दिया।
ये सुनकर वर्षा हंसने लेगी - हा हा हा हा इसका मतलब तेरी ले रहे होंगे।
रूबी - काश।
वर्षा ने रूबी को चूमते हुए कहा - कहो तो आज ही चुदवा दूँ तुम्हे।
रूबी - जाने दो। जिस स्पीड में जैसा हो रहा है होने दो। वैसे अब मुझसे बर्दास्त नहीं होता।
खैर इसी चुहलबाजी के साथ दू ने चाय ख़त्म की और बाहर आ गईं। अनुराग अभी तक अपने कमरे में था।
वर्षा उसके कमरे में गई और बोली - अरे आपकी तबियत तो ठीक है ? बाहर आइये। अब बच्चों के जागने का भी टाइम हो गया है।
अनुराग - चलो मैं आता हूँ।
वर्षा - हाँ , जल्दी आइये। नाश्ते और दवा का टाइम भी हो रहा है।
बाहर आकर वर्षा ने रूबी से कहा - तू इसी ड्रेस में रहेगी ? चेंज नहीं करेगी ?
रूबी - सुबह सुबह जब उन्होंने देख ही लिया है तो और क्या शर्माना।
वर्षा हँसते हुए - लगता है पापा की दुलारी बिटिया आज चुद के रहेगी।
रूबी - दुलारी तो तुम हो। मैं तो बिगड़ैल जिद्दी हूँ।
वर्षा - हीहीहीहीही मतलब बिगड़ैल जिद्दी लड़की चुद कर रहेगी।
दोनों हंसी मजाक करते हुए किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही थी। अनुराग भी ड्राइंग रूम में आ चूका था। वो रूबी से नजरे तो चुरा रहा था पर चोरी छुपे उसके गदराये बदन का स्वाद भी ले रहा था। बिना पैंटी के उसके लहराते गांड को देख कर उसका मन बार बार यही कर रहा था की वो जाकर उसकी गांड मार ले। पर वो रूबी के बारे में सेऊर नहीं था। अभी वो सोच में डूबा ही हुआ था कि दरवाजे पर घंटी बजी। अनुराग उठ कर दरवाजा खोलने गया तो वह लता और उसके पति शेखर खड़े थे। उसने दोनों को अंदर बुलाया।
शेखर ने जैसे ही किचन में वर्षा और रूबी को देखा उसकी हालत ख़राब हो गई। ख़ास कर रूबी के लहराते गांड और नंगे गोर जांघों और कंधे को देख कर। अनुराग ने उसकी तरफ देखा तो समझ गया कि शेखर भी वही सोच रहा है जो वो सोच रहा था।
लता ने जब इन दोनों कि हालत देखि तो बोल पड़ी - बेटीचोदों , बस भी करो। आँखों से ही रेप कर लोगे क्या ?
शेखर झेप गया। अनुराग भी।।
तभी रूबी और वर्षा भी किचन से निकल कर बाहर आईं। सामने से रूबी को देखते ही अनुराग और शेखर का मुँह फिर से खुला का खुला ही रह गया। कंधे से डोरी से लटकी नाइटी से आधे से अधिक मुम्मे बाहर थे। अकड़े हुए निप्पल पतले से कपडे फाड़ने को बेताब थे। चौड़े गोर कंधे और केले के तने जैसे गोर और चिकने जाँघों और पैरो को देख कर कोई भी उनसे लिपटने को बेताब हो जाए। मन तो लता का भी खराब हो चूका था। कल रात उसके फ़ोन के बाद ही वो समझ चुकी थी कि रूबी के सब्र का बाँध टूट चूका है। पर रूबी कि चुदास इस कदर हावी हो जाएगी उसे उम्मीद नहीं थी।
तभी रूबी - अरे बुआ , फूफा जी आप लोग।
वर्षा ने आगे बढ़ कर दोनों का पेअर छुआ और रूबी भी उसके पीछे पीछे बढ़ी। जैसे ही वो शेखर के पेअर छूने को झुकी उसके मुम्मे लगभग बाहर ही निकल पड़े। अनुराग का मन किया पकड़ ले उन्हें। शेखर तो बस उसके चुकने कंधे और गांड पर ही अटक गया था। शेखर के बाद रूबी लता कि तरफ झुकी और जान बुझ कर इस तरह से लता के पेअर छुई जिससे उसकी नाइटी कमर तक चली आये और उसके पापा और फूफा दोनों को उसकी गांड के दर्शन हो जाएँ। वो उसमे सफल हो चुकी थी।
लता ने उसे ऊपर उठाया और गले लगाते हुए बोली - ये क्या ड्रामा है ? आज चुद कर मानेगी क्या ?
रूबी - रिश्ता फाइनल कर दो। चुद जाउंगी।
लता ने उसके गांड को सहलाते हुए कहा - लगता है आज शगुन करना ही पड़ेगा।
रूबी - ये तो तैयार बैठी है।
तभी अनुराग ने खुद को सँभालते हुए कहा - अरे जिज्जी बैठो न। वर्षा जरा फूफा के लिए चाय पानी ले आ।
दोनों बहाने फिर से किचन कि तरफ चल पड़ी।
लता ने तभी आवाज दिया - चाय ताजे दूध का बनाना। एक बार तेरे फूफा यहाँ ताजे दूध कि चाय पीते पीते रह गए थे।
रूबी ने वहीँ से आवाज दिया - दूध ताजा ही है। सुबह सुबह निकला है।
वर्षा वहीँ उसके बगल में खड़ी थी। उसने धीरे से कहा - क्या चाहती है ?
रूबी - वही जो रात तुमने किया था।
वर्षा - मन पापा के साथ थी। पर तुम बुआ और फूफा के सामने ~~
रूबी - मुझे पता है तुम भी उनके सामने पापा से चुद चुकी हो।
वर्षा चौंक गई। उसने कहा - तुझे ये सब कैसे पता ?
रूबी - मुझे सब पता है। पर मुझे पता है ये इन सबको पता नहीं चलना चाहिए। अनजाने में इतने दिनों तक जो खेल चला है वो चलने दो।
वर्षा - तू बड़ी कुत्ती चीज है।
रूबी - हाँ , और मुझे कुत्ती बन कर चुदवाने में मजा भी आता है।
चाय तैयार थी। वर्षा ने ट्रे में चाय और नाश्ता लिया और ड्राइंग रूम में पहुँच गई। वर्षा ने चाय रख कर कहा - आप लोग चाय पीजिये। मैं बच्चों को जगाती हूँ।
लता ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया और बोली - कभी कभी बड़ों को भी बाते कर लेनी चाहिए। सोने दे उन्हें। दिन भर तो रहूंगी ही।
तभी रूबी अंदर आई और बोली - फूफा जी चाय कैसी है ?
शेखर - बढ़िया।
लता - ताजे दूध कि है। वैसे नाश्ते के बाद अनुराग को दुध भी देना है।
रूबी - बहुत दूध रखा है। आप चिंता मत करो। यहाँ इतना दूध है कि पूरा परिवार पिए तो भी ख़त्म ना हो। क्यों दी ?
वर्षा कुछ नहीं बोली।
रूबी - वैसे बुआ आप बड़ो वाली क्या बात कर रही थी ?
लता - मैं कह रही थी जब घर के बड़े बैठे हों तो बच्चों को क्यों जगाएं।
ये सुन करके रूबी बोली - जब बड़े बात कर ही रहे हैं तो बुआ अब नैना कि शादी कि डेट भी फिक्स कर दो। पापा को कुछ तो आराम मिलेगा। कहाँ इधर उधर मुँह मारते फिरेंगे।
लता - अच्छा , बहुत बोलने लगी है तू। मेरे भाई के बारे में उत पटांग मत बोल। मेरा भाई बहुत शरीफ है।
रुबी - अच्छा , क्यों वर्षा दी , पापा कितने शरीफ हैं।
रूबी पुरे मूड में थी। शेखर और अनुराग को कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर दोनों के लंड सब समझ रहे थे।
बात बदलते हुए वर्षा बोली - हाँ बुआ , फूफा जी अब नैना कि शादी कर ही दीजिये।
लता - हम्म मैं तो तैयार हूँ। शर्त का पता है न ? तूने कुछ वादा किया था।
वर्षा कि नजरें झुक गईं। रूबी ने कहा - यार बुआ , आप दीदी को छोडो। मैं हर शर्त के लिए तैयार हूँ।
लता - सोच ले।
रूबी - अब क्या ही सोचना। पापा और नैना कि ख़ुशी के लिए मुझे सब मंजूर है।