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रेखा ने उसे चूमा और कहा- “पति के अलावा केवल परम का लंड ही इस चूत के अदर जायेगा।“
शादी के बाद जब भी वो यहाँ आयेगी तो वो चुदाई के लिए परम के घर आयेगी। परम उसकी चूत से खेलता रहा और उसका लंड फिर खड़ा हो गया। रेखा फिर से सीधा लेट गई और परम को उसके पैरों के बीच बैठने के लिए कहा। उसने परम से उसके ऊपर लेटने को कहा और उसने लंड को अपनी चूत की दरार पर रगड़ा। परम अपना लंड पकड़ना चाहता था लेकिन रेखा ने उसे रोक दिया और उसने खुद लंड को अपनी क्लिट और चूत के छेद पर रगड़ा। रगड़ने से चूत की फांकें चौड़ी होने के साथ चूत गीली हो गयी। परम ने महसूस किया कि उसका लंड चूत की फांकों के बीच फँस गया है तो उसने दबा दिया।यह कहानी नीता और मैत्री का अनुवादित है।
रेखा ने चेतावनी दी- “तुम दबाओ मत दो, मुझे करने दो…प्लीज़!”
उसने लंड चलाने की गति बढ़ाई और थोड़ा लंड चूत में घुस गया । रेखा बंद आँखों से मज़ा ले रही था लेकिन उसका हाथ बड़ी सफाई से चल रहा था। परम अपने लंड पर रेखा की चूत की कोमलता और गीलापन महसूस कर सकता था। उसने उसके गालों और होठों को चूमा और अपने चूतड़ों को धक्का दिया जिससे आधा लंड चूत के अंदर सरक गया।
परम ने रुकावट महसूस की, रेखा ने भी दर्द महसूस किया और वो तुरंत लंड को थोड़ा ऊपर खींची। लेकिन परम नियंत्रण नहीं रख सका और चूत के अंदर ही वीर्य छोड़ दिया ।
दोनों ने आराम महसूस किया । उसने उसके टांगों को उसकी कमर पे लपेट लिया, उसे सहलाया और मज़ा देने के लिए धन्यवाद दिया ।
“तुमने तो मुझे लगभग चोद ही दिया है…परम तुम्हारा यह सुपारा बहोत अच्छा है मुझे ऐसे ही छोड़ दिया इस सुपारे ने और मेरी चूत फैला दी।” यह कहकर रेखा ने परम को नीचे धकेल दिया । दोनों ने कपड़े पहने और रेखा ने परम को आश्वासन दिया की ससुराल से वापस आने पर वो उसका पूरा लंड अपनी चूत के अंदर लेगी।
कुछ समय के बाद शेठानी कुछ अन्य महिलाओं के साथ लौट आई। उसने नशीली आँखों से परम को देखा लेकिन परम के लंड को उसकी चूत में लेने का कोई मौका नहीं था। उसने परम को आँख मारी और उसने सिर हिलाया जैसे कह रहा हो कि उसने उसकी बेटी को नहीं चोदा है।
उसने उसे आते रहने और जितना हो सके काम में उनकी मदद करने के लिए कहा।
जो हुआ उससे रेखा खुश थी ।
अगर परम उसकी चूत के अंदर लंड पुरा पेल भी देता, तो निश्चित रूप से वो उसे मना नहीं करती। उसने उसके कौमार्य को बरकरार रखते हुए लंड का मजा देने के लिये परम को मन ही मन धन्यवाद दिया।
परम बहुत बहुत खुश था। उसने विनोद के प्रति मन ही मन आभार भी व्यक्त किये की सुंदरी (अपनी मां) के बारे में उसकी अश्लील बातों ने ही उसे महिलाओं के साथ चुदाई करने के लिये प्रेरित किया था और पिछले कुछ दिनों में वह दो कुंवारी और दो परिपक्व महिलाओं के साथ चुदाई का मजा ले चुका था।
परम सोच रहा था की उसकी खुद की आंखों के सामने में विनोद द्वारा चोदे जाने के लिए सुंदरी को समझाना पडेगा । तभी उसे याद आ गया कि सुंदरी ने शेठजी से पैसे लेके आने के लिए उससे कहा था। उसने शेठजी के कार्यालय में प्रवेश किया और अपने पिता वहाँ बैठे देखा। उसके पिता ने पूछताछ की कि वह वहां क्या कर रहा है!
परम ने उनको बताया कि शेठानीने शेठजी के लिए कुछ संदेश भिजवाया था। उसने शेठजी की केबिन में प्रवेश किया और शेठजी की तरफ देखकर मुस्कुराया।
बने रहिये
शादी के बाद जब भी वो यहाँ आयेगी तो वो चुदाई के लिए परम के घर आयेगी। परम उसकी चूत से खेलता रहा और उसका लंड फिर खड़ा हो गया। रेखा फिर से सीधा लेट गई और परम को उसके पैरों के बीच बैठने के लिए कहा। उसने परम से उसके ऊपर लेटने को कहा और उसने लंड को अपनी चूत की दरार पर रगड़ा। परम अपना लंड पकड़ना चाहता था लेकिन रेखा ने उसे रोक दिया और उसने खुद लंड को अपनी क्लिट और चूत के छेद पर रगड़ा। रगड़ने से चूत की फांकें चौड़ी होने के साथ चूत गीली हो गयी। परम ने महसूस किया कि उसका लंड चूत की फांकों के बीच फँस गया है तो उसने दबा दिया।यह कहानी नीता और मैत्री का अनुवादित है।
रेखा ने चेतावनी दी- “तुम दबाओ मत दो, मुझे करने दो…प्लीज़!”
उसने लंड चलाने की गति बढ़ाई और थोड़ा लंड चूत में घुस गया । रेखा बंद आँखों से मज़ा ले रही था लेकिन उसका हाथ बड़ी सफाई से चल रहा था। परम अपने लंड पर रेखा की चूत की कोमलता और गीलापन महसूस कर सकता था। उसने उसके गालों और होठों को चूमा और अपने चूतड़ों को धक्का दिया जिससे आधा लंड चूत के अंदर सरक गया।
परम ने रुकावट महसूस की, रेखा ने भी दर्द महसूस किया और वो तुरंत लंड को थोड़ा ऊपर खींची। लेकिन परम नियंत्रण नहीं रख सका और चूत के अंदर ही वीर्य छोड़ दिया ।
दोनों ने आराम महसूस किया । उसने उसके टांगों को उसकी कमर पे लपेट लिया, उसे सहलाया और मज़ा देने के लिए धन्यवाद दिया ।
“तुमने तो मुझे लगभग चोद ही दिया है…परम तुम्हारा यह सुपारा बहोत अच्छा है मुझे ऐसे ही छोड़ दिया इस सुपारे ने और मेरी चूत फैला दी।” यह कहकर रेखा ने परम को नीचे धकेल दिया । दोनों ने कपड़े पहने और रेखा ने परम को आश्वासन दिया की ससुराल से वापस आने पर वो उसका पूरा लंड अपनी चूत के अंदर लेगी।
कुछ समय के बाद शेठानी कुछ अन्य महिलाओं के साथ लौट आई। उसने नशीली आँखों से परम को देखा लेकिन परम के लंड को उसकी चूत में लेने का कोई मौका नहीं था। उसने परम को आँख मारी और उसने सिर हिलाया जैसे कह रहा हो कि उसने उसकी बेटी को नहीं चोदा है।
उसने उसे आते रहने और जितना हो सके काम में उनकी मदद करने के लिए कहा।
जो हुआ उससे रेखा खुश थी ।
अगर परम उसकी चूत के अंदर लंड पुरा पेल भी देता, तो निश्चित रूप से वो उसे मना नहीं करती। उसने उसके कौमार्य को बरकरार रखते हुए लंड का मजा देने के लिये परम को मन ही मन धन्यवाद दिया।
परम बहुत बहुत खुश था। उसने विनोद के प्रति मन ही मन आभार भी व्यक्त किये की सुंदरी (अपनी मां) के बारे में उसकी अश्लील बातों ने ही उसे महिलाओं के साथ चुदाई करने के लिये प्रेरित किया था और पिछले कुछ दिनों में वह दो कुंवारी और दो परिपक्व महिलाओं के साथ चुदाई का मजा ले चुका था।
परम सोच रहा था की उसकी खुद की आंखों के सामने में विनोद द्वारा चोदे जाने के लिए सुंदरी को समझाना पडेगा । तभी उसे याद आ गया कि सुंदरी ने शेठजी से पैसे लेके आने के लिए उससे कहा था। उसने शेठजी के कार्यालय में प्रवेश किया और अपने पिता वहाँ बैठे देखा। उसके पिता ने पूछताछ की कि वह वहां क्या कर रहा है!
परम ने उनको बताया कि शेठानीने शेठजी के लिए कुछ संदेश भिजवाया था। उसने शेठजी की केबिन में प्रवेश किया और शेठजी की तरफ देखकर मुस्कुराया।
बने रहिये