जय भारत। के साथ अब आगे.........
मुनीम उसे पकड़ कर चूमना चाहता था लेकिन वहाँ कई राहगीर थे। उन्होंने नियंत्रण किया। पूनम के घर आये और उन्होंने देखा कि पूनम के पिता बाहर खड़े थे। पूनम अंदर चली गई लेकिन मुनीम ने उसके पिता से कुछ बात की और फिर वह ऑफिस की ओर चला गया।
घर पर, परम और महक अपने कॉलेज के लिए तैयार हो गए। इस दौरान सुंदरी ने परम से पूनम के बारे में पूछा तो परम ने जवाब दिया कि वह भी कुंवारी थी। इस पर महक हैरान रह गई और उसने सोचा कि उसका भाई भले ही कम औरतों के साथ संभोग करता हो, फिर भी नौसिखिया है, वरना उसे कैसे पता नहीं चलता कि पूनम के साथ पहले भी संभोग हो चुका है! परम ने फिर कहा कि वह उसके साथ चुदाई करना चाहता है और महक के खूबसूरत जिस्म से खेलना चाहता है। उसने एक साथ माँ और बहन, दोनों के स्तन दबा दिए।
सुंदरी ने कहा कि “आज रात वह बेटी की मौजूदगी में फिर से उससे चुदवाएगी, ठीक है!। मैत्री और फनलवर की रचना है।
“लेकिन आज रात में तुम्हारी गांड मारूँगा।” परम ने दोनों की जांघों के बीच हाथ डाला और उनकी चूत रगड़ी। “कभी गांड मरवाई हो, माँ?”
“नहीं रे.. लेकिन सुना है कि गांड मरवाने में भी मज़ा आता है…।” सुंदरी ने सोचा की वह भी सफ़ेद झूठ बोल सकती है।
“तभी तो रेखा रोज़ मेरे लंड से गांड मरवाती है…” परम ने जवाब दिया और उनकी गांड में उंगली डाली।
“आह… भैया…। उतना बोलते ही परम घर से बहार निकल गया।
महक ने अपनी माँ की तरफ रुख करते “मम्मी, मेरी चूत की प्यास कब बुझेगी? माँ अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही है, जल्दी से मेरे लिए लंड का इंतज़ाम करो नहीं तो मैं बाबूजी का लंड ही चूत के अन्दर ले लुंगी। महक ने सुंदरी की चुची को दबाया और कहा:
“बाप रे कितना बड़ा और मस्त सुपाड़ा है, चूत को तो फाड़ ही डालता होगा..तुम कैसे रोज रोज चुदवाती हो माँ..!”
“अब तो आदत हो गई है बेटी, लेकिन तू चिंता मत कर, आज ही मैं सेठ को बोलती हूं कि तुम्हारी सील तोड़ने के लिए किसी सेठ को ढूंढो…” सुंदरी ने जवाब दिया और महक का हाथ अपनी चूत से खींच लिया।
सुंदरी ने देखा की अब कोई नहीं है तो दो बात महक से भी की जाए। मैत्री और फनलवर की रचना है।
“हां, तो अब तुम्हे तुम्हारे बाबूजी का लंड पसंद आने लगा है। परम और विनोद तो अब बेचारे की केटेगरी में चले गए।“ सुंदरी ने महक की फ्रोक को थोडा ऊपर किया और चूत की दरार को थोडा फैलाया।
महक ने सुदरी का हाथ को थोडा ऊपर पेट तक ले गई और बोली: “ओह्ह मम्मी, आपको चुदते हुए देखा, सुधा की सिल मेरे सामने टूटी, और अब पूनम की सिल भी टूट गई। आप समजो मेरी मनोदशा क्या होती होगी जब इतने लडकिया को अपने ही सामने औरत बनते देखा और सामने परम और बाबूजी का लंड हो फिर भी कुछ पैसो के लिए आपने मेरी सिल को बंद कर के रखा है।“
“हा बेटी, मैं समज सकती हु।“ सुंदरी को कल रात की बात याद आ गई और उसे लगा की अब मौक़ा है बेटी को अपने बाप की ओर धकेलना।
“देखो बेटी, अब मुझे यह बताओ की तुम्हारे बाबूजी का लोडा कैसा लगा! तुम्हारी चूत के लायक है?”
“देखो मम्मी, मुझे बाबूजी लोडा बहोत अच्छा लगा लेकिन परम का लंड भी कुछ कम नहीं।और आप ही कह रही थी की हम चूतो का काम ही है लंडो को ढीला करना। मैंने बस बाबूजी का लंड देखा।“
“सच????? देख झूठ मत बोल।” उसने शरारती आँखों से महक की निपल को खिंचा। मैत्री और फनलवर की रचना है।
“मम्मी......” महक ने सिर्फ इतना कहा और अपनी निपल को छुड़ाया।
मम्मी ने फिर से आँखे चौड़ी की और उसके सामने देखा।
महक ने जमीन की ओर नजर रख के बोला ”तुमको कैसे पता??”
“देखो बेटी, जब बेटी की उम्र हो जाती है, चूत में फड़क आने लगती है तब वह भूल जाती है की उसकी माँ भी वही राह से गुजर चुकी है, जिस राह पर तुम चल रही हो, और माँ को चोदु बनाने लगती है, और देखो हर माँ चोदु बनती भी है,जानबुज कर। जब तुम अपनी जवानी पर थी तब तुम अपने पापा के सामने छोटे फ्रॉक पहनके उनके सामने बैठती हो और जैसे सामान्य है उस तरह से पापा की नजर को देखती हो की उनकी नजर तुम्हारी चूत पर पड़ती है या नहीं, अपनी चूत को खोलना फिर तुरंत सिकोड़ना.....पापा भी मजे लेते है और दोनों यह समजते है की माँ को कुछ पता नहीं चलता। पर मैं तुम्हारी माँ हु, और सब से पहले मैं भी उस राह से जा चुकी हु और इन सब से खास बात मैं औरत हु। पर जैसे की अपने गाँव में ऐसा होता आया है और आगे होगा भी यह समज के मैंने तुम को मौन रह के खुली छुट दे राखी थी ताकि अपने पापा को ललचा सको और अपने प्रति आकर्षण बना रखो।“
“ओह्ह माँ, सो सोरी। मुझे यह सब समजना चाहिए था।“ महक सुंदरी के नजदीक आई और उसके गाल पर किस कर दी और एक ऊँगली उसकी गांड में पेरो दी।
मम्मी ने भी कोई विरोध नहीं किया और थोडा झुकी ताकि उसकी ऊँगली सफलता पा सके।
“और आज सुबह तुम्हे पता था फिर भी तुमने उनके लंड को अपनी झांगो के बिच आराम करने दिया, मैंने यह देखा था और हाँ, मैंने ही उनको रूम में भेजा था और उनको नहीं बताया की महक वह नंगी सो रही है।“
“थेंक यु मम्मी, लेकिन अब मुझे लंड की जरुरत है।” उसने अपनी ऊँगली सुंदरी की गांड में आगे पीछे करती हुई बोली।
“देख बेटे, बस थोड़ी देर और रुक जा तेरा सिल एक मालदार व्यक्ति को भेट कर दे और बाद में मैं तुम्हे अपने सामने तेरे बाबूजी से चुदवाउंगी। मेरी सौतन बनेगी ना, इमली काकी की तरह!”
“हां मम्मी, अगर तुम पति-पत्नी मुझे स्विकारोगी तो मैं तो तैयार हु पर सौतन नहीं बनूँगी, लेकिन शादी के बाद अगर बाबूजी का लंड चाहेगा तो मैं उनके लंड से फुग्गा फुला लुंगी (प्रेग्नेंट बन जाउंगी)।“
“तब तो तुम्हे मुझे माँ नहीं पर सुंदरी ही कहना पड़ेगा। हा... हा... हा.... हा, मुझे कोई आपत्ति नहीं है बेटे, जिस से मन करे चुदवाओ लेकिन बस पैसा लाओ। अभी फिलहाल तो तेरे इस माल को सही सलामत रखो। जल्द ही कुछ करती हु बेटे। लेकिन फिलहाल तो यह सब बाते हम दोनों के बिच में ही रखो। ओके?“
उसी समय एक दस्तक हुई। मैत्री और फनलवर की रचना है।
बने रहिये और इस एपिसोड के बारेमे आपका मन्तव्य दे..............प्लीज़...................
जय भारत।
शुक्रिया।