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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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Apki kahani ki catagory incest ki bajay non-erotic chunkar sahi kiya apne...
Vastav me sex jindgi ka ek hissa to hai lekin jindgi to nahin......
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लेखक जी की तरह सेक्स के बारे में मैं लिख नहीं सकती...............मुझसे वो शब्द नहीं लिखे जाते.............आपने बताया की आपने एक्स बी पर पी ऍम किया था लेकिन तबतक हम दोनों ही वो फोरम छोड़ चुके थे..................फोरम छोड़ने के बाद कुछ समय तक तो समय बड़ा प्यार भरा बीता.......लेकिन फिर................
 
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meko lagta sayad waisa hi kuch is baar bhi hoga kyuki Manu bhai to gayab hui gaye apne dil ki sunakar aur abhi tak bapach na aaye hain
आप सभी ने तो उनसे कहा था की मुझसे दूर रहे....................इसलिए आप सबकी बात को सीरियसली लेते हुए उन्होंने मुझसे बात चीत बंद कर रखी है...................और इस फोरम पर वो इसलिए नज़र नहीं आ रहे क्योंकि यहाँ जो सबने उनकी मेहनत को फिक्शन कह दिया उससे उनके दिल को बहुत चोट पहुंची....................पता नहीं वो यहाँ दुबारा आएंगे भी या नहीं :verysad:
 

king cobra

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आप सभी ने तो उनसे कहा था की मुझसे दूर रहे....................इसलिए आप सबकी बात को सीरियसली लेते हुए उन्होंने मुझसे बात चीत बंद कर रखी है...................और इस फोरम पर वो इसलिए नज़र नहीं आ रहे क्योंकि यहाँ जो सबने उनकी मेहनत को फिक्शन कह दिया उससे उनके दिल को बहुत चोट पहुंची....................पता नहीं वो यहाँ दुबारा आएंगे भी या नहीं :verysad:
Aapse door rahne ki baat hamne boli thi bhawnao ma bah gaye the us time ye pata nai tha ki aapka pach bhi sunna hai abhi ektarfa faisla kar baithe lekin aapne bhi to galtiyan ki hain badi badi aur faisla reader ke hath me chhod diya to kya karen.fir baat aa gayi unki mata ji ki to wahan bhi unki jimmedariyan hain ki unke sapne pure karen jinna ho paye.Abhi unko bol deo aap ki wo aapko bhi mauka den kuch kahne ka yahan aur batao ki humne unko yaad kiya hai
 

Arjun2000

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Aapse door rahne ki baat hamne boli thi bhawnao ma bah gaye the us time ye pata nai tha ki aapka pach bhi sunna hai abhi ektarfa faisla kar baithe lekin aapne bhi to galtiyan ki hain badi badi aur faisla reader ke hath me chhod diya to kya karen.fir baat aa gayi unki mata ji ki to wahan bhi unki jimmedariyan hain ki unke sapne pure karen jinna ho paye.Abhi unko bol deo aap ki wo aapko bhi mauka den kuch kahne ka yahan aur batao ki humne unko yaad kiya hai
Bilkul....Bhawanao me Beh kar kafi kuch kaha he....q ki sams esa hi mere sath b hua h....Apka paksh sunna b jruri h...

But jaha tak bat h Manu ki to me yhi kahunga wo apni life me age bdhe...maa sbse jyada imp he...abhi unke sapne or unke prti apni jimmedariyan wo puri kre....

Ap dono jante ho ap dono ek sath ni ho skte....kai sare reasons he...Bcche, Priwar, Samaj.... Practically sath rehna mumkin ni h ......ese me manu ko age bdhna hi shi....Ese m unhe age bdh k apni maa aur apne priwar ka sochna chahiye....ek ese life partner ki talash shuru krni chahiye jo sb k samne unka hath tham ske...

Baki unke Papa ne to kaha hi h ki Unki Kubdli me 2 shadiyo ka yog h....unmid h unk jivan m khushiyaan jld hi aayegi
 

king cobra

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Bilkul....Bhawanao me Beh kar kafi kuch kaha he....q ki sams esa hi mere sath b hua h....Apka paksh sunna b jruri h...

But jaha tak bat h Manu ki to me yhi kahunga wo apni life me age bdhe...maa sbse jyada imp he...abhi unke sapne or unke prti apni jimmedariyan wo puri kre....

Ap dono jante ho ap dono ek sath ni ho skte....kai sare reasons he...Bcche, Priwar, Samaj.... Practically sath rehna mumkin ni h ......ese me manu ko age bdhna hi shi....Ese m unhe age bdh k apni maa aur apne priwar ka sochna chahiye....ek ese life partner ki talash shuru krni chahiye jo sb k samne unka hath tham ske...

Baki unke Papa ne to kaha hi h ki Unki Kubdli me 2 shadiyo ka yog h....unmid h unk jivan m khushiyaan jld hi aayegi
Are bhai me reader hai story ka bas aur kuch noi jo samjh aaya bataya bas baki writer ko batao aap
 

ashik awara

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भाग 1

मेरे पिताजी के छोटे से किसान थे......ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े से हमारा गुज़र बसर होता था| पिताजी को मैं 'बप्पा' कह कर बुलाती थी.........वो शुरू से ही बड़े सख्त स्वभाव के व्यक्ति थे| उन्हें अपने बच्चों से कोई मोह नहीं था.........क्योंकि मैंने बप्पा को कभी मुझे या मेरे भाई-बहन को गोदी ले कर खिलाते हुए नहीं देखा| हमें जब भी बप्पा से मोह चाहिए होता था तो हम खुद ही उनके पास चले जाते..............कभी उनकी थाली से थोड़ा खा लेते तो कभी उनकी काम में मदद कर उनके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान देख कर खुश हो लेते| हाँ बप्पा को अपने नाती नातिन से मोह जर्रूर था…………… सबसे ज्यादा आयुष ने अपने नाना जी का प्यार पाया| आयुष में अपने पापाजी..........यानी लेखक जी के सारे गुण थे| मनमोहनी सी सूरत............प्यार और अदब से बात करने का ढंग..................सबको 'जी' लगा कर बुलाना!!!! ये सब आदतें बप्पा को बहुत पसंद थी इसलिए वो आयुष को सर आँखों पर बिठा कर रखते थे| नेहा सबसे बड़ी थी लेकिन फिर भी उसे अपने नाना जी का थोड़ा बहुत प्यार मिला.................पर जब नेहा स्कूल में अव्वल आने लगी तो बप्पा पूरे गॉंव में नेहा की तारीफ करते नहीं थकते थे| हाँ वो ये तारीफ कभी नेहा के सामने नहीं करते थे.................नेहा को प्यार के रूप में कभी कभी बप्पा एक टॉफी देते थे और ये ही नेहा के लिए सब कुछ होता था| वो बड़े गर्व से मुझे ये टॉफी दिखाती और मैं हमेशा कहती की "बेटा तो बहुत खुसकिस्मत है जो तुझे टॉफी मिली!"





मेरे बड़े भैया जिन्हें मैं भाईसाहब कह कर बुलाती हूँ..........उनका नाम प्रताप मौर्या है| जैसा भाईसाहब का नाम था वैसे ही उनका गाँव में रुआब था| जैसे शहरों में कॉलेज में लीडर होते हैं....................जिसकी अलग ही धाक होती है................ वैसे ही मेरे भाईसाहब की गॉंव में अलग ही धाक थी| जब भी गॉंव में किसी को मदद की जर्रूरत पड़ती तो सबसे पहले मेरे भाईसाहब को बुलाया जाता और वो अपना दल बल ले कर मदद करने पहुँच जाते......................फिर चाहे छप्पर छाना हो................भागवत बैठानी हो.......................भोज करवाना हो......................या किसी दूसरे गॉंव से कोई जानबूझ कर जानवर हमारे खेतों में छोड़ने पर हुए नुक्सान की भरपाई करवानी हो...............मेरे भाईसाहब हमेशा आगे रहते|



भाईसाहब ने पहलवानी शुरू कर दी थी इसलिए उनकी कद काठी इतनी बड़ी थी की अच्छे खासे लोग उनसे घबराने लगते थे| बप्पा..........जिनसे हम सब डरते थे वो तक भाईसाहब के इस रुआब से डरते थे!!!! पिताजी चाहते थे की भाईसाहब एक साधरण किसान की तरह रहे जबकि मेरे भाईसाहब की सोच अलग थी..............उन्हें तो बड़ा बनना था..........ढेर सारे पैसे और शोहरत कमानी थी!!!! यही कारन है की दोनों बाप बेटे में नहीं बनती थी!!!!!!!!!!



जब गॉंव में चुनाव होते तब तो भाईसाहब की अलग ही चौड़ रहती थी...............हमारे गॉंव के मुखिया सारा समय भाईसाहब को अपने संग लिए फिरते| कई बार दूसरे गॉंव के मुखिया के हमारे गॉंव में आने पर दोनों दलों के बीच झड़प होती जिसमें मेरे भाईसाहब सब पर अकेले भारी पड़ते! बप्पा को इस मार पिटाई से नफरत थी इसलिए वो हमेशा भाईसाहब से खफा रहते|





सन १९८० के दिसंबर माह में मेरा जन्म हुआ तो मुझे माँ से ज्यादा मेरे भाईसाहब का लाड मिला| भाईसाहब मुझसे उम्र में ५ साल बड़े हैं इसलिए जब मैं पैदा हुई तो भाईसाहब ने मुझे खूब लाड-प्यार किया| मेरे जीवन के शुरआती दो साल मेरे भाईसाहब के कारण सबसे ज्यादा प्यारभरे साल थे| दिन के समय जब भाईसाहब स्कूल जाते तो मैं घर पर अकेली हो जाती..................लेकिन जैसे ही भाईसाहब घर लौटते वो अपना झोला फेंक मुझे गोदी में उठा लेते और मैं ख़ुशी से चहकने लगती| मेरे जन्मदिन वाले दिन भाईसाहब मुझे संतरे की गोली वाली टॉफी ला कर देते और...............कभी मुझे पीठ पर लादे.........कभी मुझे गोदी लिए हुए............तो कभी मेरा हाथ पकड़े गॉंव भर में टहला लाते| भाईसाहब की दी हुई वो एक टॉफी मेरे लिए क्या मोल रखती थी ये लिख पाना मुश्किल है...................हाँ इतना कह सकती हूँ की उस ख़ुशी के आगे आजकल के फैंसी केक फ़ैल हैं!!!!





जब मैं दो साल की हुई तो मेरी छोटी बहन जानकी पैदा हुई……….जानकी के पैदा होने पर भाईसाहब को इतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी मेरे पैदा होने पर हुई थी| जानकी और मेरी शुरू से नहीं बनती थी................जब भी मैं उसके पास खेलने के लिए जाती तो मुझे देखते ही वो रोने लगती| मैं उसे छू भर लूँ तो वो ऐसे रोती मानो मैंने उसे कांटें चुभो दिए हों!!!!! ऊपर से उसके रोने पर मुझे मेरी माँ जिन्हें मैं 'अम्मा' कह कर बुलाती हूँ..............वो डाँटने लगती!!! मुझे जानकी पर बहुत गुस्सा आता और मैं सीधा अपने भाईसाहब के पास शिकायत ले कर पहुँच जाती| “ई.....छिपकली का कहीं बहाये आओ!!!” मैं मुँह बिदका कर कहती और भाईसाहब अपना पेट पकड़ कर हंसने लगते!!!!!



जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो माँ ने जानकी को खिलाने की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी| मेरे साथ खेलना तो जानकी को पसंद था नहीं मगर फिर भी वो मेरे पीछे पीछे 'दुम' की तरह घूमती रहती थी| जब मैं उससे अपने साथ खेलने को कहती तो वो दूर जा कर मिटटी में खेलने लगती!!!! जब अम्मा जानकी को मिटटी में खेलते हुए देखती तो वो मुझे डाँटने लगतीं की मैंने क्यों नहीं उसे रोका! अब ये छिपकली की दुम मेरी बात माने तब न!!!!!!



जानकी और भाईसाहब की ज्यादा बनती नहीं थी.............कभी कभी तो बिना कोई नखरा किये भाईसाहब की गोदी में चली जाती..............तो कभी कभी ऐसे नखड़े करती मानो कोई महारानी हो!!!!!!!! भाईसाहब किसी बात का बुरा नहीं लगाते और जानकी को भी थोड़ा बहुत लाड प्यार करते...................मगर मेरे जितना लाड नहीं करते|



जब मैं तीन साल की हुई तो मेरी सबसे छोटी बहन सोनी पैदा हुई........... शुरू से ही सोनी के नयन नक्श तीखे थे.............वो इतनी सुन्दर थी की क्या कहूं............जहाँ जानकी हमेशा रोती रहती थी..............सोनी हमेशा मुस्कुराती रहती थी..............और किसी की भी गोद में जाने में कोई नखरा नहीं करती थी| जब मैंने सोनी को पहलीबार गोदी में लिया तो वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी..............उसी पल मुझे अपनी छोटी बहन से प्यार हो गया| मैं सारा समय उसके ऊपर किसी मक्खी की तरह भिनभिनाती रहती और उसे खिलाने की कोशिश करती रहती| जानकी को ये देख कर जलन होती इसलिए वो कभी कभी सोनी से लड़ना आ जाती और तब मैं बड़ी बहन होते हुए जानकी को पीछे से उठा कर दूर बिठा आती ताकि वो मेरी छोटी बहन को तंग न करे|




भाईसाहब को सोनी पसंद थी मगर मुझे भाईसाहब अपनी बड़ी बेटी मानते थे और सबसे ज्यादा मुझे ही लाड करते थे| कभी कभी वो हम तीनों बहनों के साथ बैठ कर खेलते थे और ये दृश्य इतना प्यारा होता था की अम्मा खाना बनाना छोड़ कर हमारे पास खेलने आ जातीं| अम्मा का भाईसाहब से लगाव बहुत था...........और ये बात हम तीनों बहनें जानती थीं| लेकिन जब माँ अपने चारों बच्चों के साथ खेलने आ जाती तो हम तीनो बहनें ख़ुशी से भर जातीं| उस पल लगता था मानो यही स्वर्ग है और इस ख़ुशी से ज्यादा कुछ चाहिए ही नहीं!!!
नमस्कार एवं मेरी और से बधाई और शुभकामनायें आपका लेखन उम्दा हे धन्यवाद
 
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अब वो मुझसे बता करें तब तो कुछ कहूं..................अब तो बस यही उम्मीद है की वो ये सब देख और पढ़ रहे हों!!!!!!!!!!! बाकी आप सब उन्हें टैग करते रहिये...................जब ऑनलाइन आयेंगे तो हो सकता है देख लें
Bilkul....Bhawanao me Beh kar kafi kuch kaha he....q ki sams esa hi mere sath b hua h....Apka paksh sunna b jruri h...

But jaha tak bat h Manu ki to me yhi kahunga wo apni life me age bdhe...maa sbse jyada imp he...abhi unke sapne or unke prti apni jimmedariyan wo puri kre....

Ap dono jante ho ap dono ek sath ni ho skte....kai sare reasons he...Bcche, Priwar, Samaj.... Practically sath rehna mumkin ni h ......ese me manu ko age bdhna hi shi....Ese m unhe age bdh k apni maa aur apne priwar ka sochna chahiye....ek ese life partner ki talash shuru krni chahiye jo sb k samne unka hath tham ske...

Baki unke Papa ne to kaha hi h ki Unki Kubdli me 2 shadiyo ka yog h....unmid h unk jivan m khushiyaan jld hi aayegi
हालात तो तब भी यही थे जब लेखक जी ने मुझसे शादी का प्रस्ताव रखा था...............तब अगर मैंने हिम्मत दिखाई होती तो मिलकर लड़ सकते थे...................फर्क बस इतना है की तब वो मेरा साथ चाहते थे और मैं पीछे हो गई थी.........और अब मैं उनका साथ चाहती हूँ तो आप सब की बातें सुन वो पीछे हो रहे हैं!!!!!!!!!!
 
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भाग 2

जानकी के पैदा होने से पहले ही मुझे पढ़ाई का शौक लग चूका था| जब भाईसाहब स्कूल से लौट अपनी तख्ती पर लिखते तो उन्हें यूँ लिखते हुए देख मैं खिलखिलाने लगती..........मेरा बालपन देखते हुए भाईसाहब मुझे अपनी गोदी में बिठा कर मेरे हाथ में चौक पकड़ा कर लिखते| मेरे लिए ये बड़ा ही रोचक खेल था क्योंकि हरबार मैं कोई न कोई नया अक्षर लिखती थी................मतलब भाईसाहब मेरा हाथ पकड़ कर नए नए अक्षर बनाते थे! ज्यों ज्यों मैं बड़ी होती गई मेरी रूचि पढ़ाई में बढ़ती गई..............मैं अक्षरों पर ऊँगली रख कर भाईसाहब से पूछती की ये क्या है और भाईसाहब मुझे उस अक्षर को बोल कर बताते................फिर मैं भी उनके पीछे पीछे अक्षर को बोलकर दुहराती| मुझे अपने भाईसाहब के पास रहना अच्छा लगता था और पढ़ाई मेरे लिए एक माध्यम थी जिसके जरिये मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने भाई साहब के साथ बिता पाती थी|



फिर जब जानकी और सोनी पैदा हुए तो मेरे सर पर दोनों की जिम्मेदारी आ गई...................तो दूसरी तरफ भाईसाहब बड़े हो रहे थे और अब वो अपनी बहन के साथ कम समय बिताते थे और बाकी का समय वो अपने दोस्तों के साथ बिताने लगे थे| लेकिन फिर भी दिन में दो बार खाना खाते समय वो हम तीनों बहनों को अपने साथ बिठा कर खाना खाते| सोनी खाती तो कुछ नहीं थी............पर वो भाईसाहब की थाली में अपने दोनों हाथ से खाना छू कर खुश हो जाती थी| उसकी इस शैतानी पर भाईसाहब हँसते थे.........जबकि मैं और जानकी उसे डाँटने लगते!



जैसा की हमारे लेखक जी कहते आये हैं की अच्छी चीजें जल्दी ही खत्म हो जाती हैं.....................वैसे ही सुख का ये समय इतनी जल्दी बीता की पता ही नहीं चला|





भाईसाहब की दबंगई बढ़ती जा रही थी...........आये दिन उनकी मार पीट करने की खबर घर आने लगी थी| इन खबरों से बप्पा का दी बहुत दुखता और वो भाईसाहब को डांटने लगते..............जब बप्पा डांट कर चले जाते तब मैं भाईसाहब के गले लग कर उन्हें सांत्वना देती| मुझे लगता था की अगर मेरे भाईसाहब किसी को मार रहे हैं तो ठीक ही है............वो मार भी कितना लेते होंगें..........२ ४ थप्पड़.............उससे किसी का क्या बिगड़ जाता होगा???? लेकिन फिर एक दिन वो हुआ जिसे देख मैं अपने भाईसाहब से डरने लगी!!!!!!!



दोपहर का समय था...........हम चारों भाई-बहन खाना खा कर तख्त पर आराम कर रहे थे| तभी भाईसाहब का एक दोस्त आया............उसने बताया की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने जानबूझ कर हमारे खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए हैं!!!!! ये खबर सुनते ही भाईसाहब उठ बैठे............"मुन्नी तू दुनो लगे पहुरो..........हम आभायें आईथ है!!!" इतना कह भाईसाहब अपने दोस्त के साथ एक डंडा ले कर दौड़ गए|



मुझे उत्सुकता हुई की आखिर क्या हुआ है इसलिए मैं भी उनके पीछे पीछे नंगे पॉंव दौड़ गई| हमारे खेतों में 4 भैसें घुस आई थीं.................और उन्होंने हमारे एक चौथाई खेत को रोंद कर तबाह कर दिया था!!! मेरे भाईसाहब ने अकेले चारों को डंडे से हाँक कर बाहर निकाला!!! तभी उन चारों भैंसों के मालिक..............दो लड़के दौड़ते हुए आये| उन्हें देख मेरे भाईसाहब को बहुत गुस्सा आया और वो सीधा उनसे भिड़ गए!!! भाईसाहब ने डंडे को किसी लाठी की तरह घुमाया..................फिर उन दोनों लड़कों को ऐसे सूता की दोनों ने दर्द से चिल्लाना शुरू कर दिया!!!





मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी जिसने ने लड़ाई झगड़ा कभी नहीं देखा था....................मेरे लिए तो गुस्से में अपनी बहन के बाल खींचना ही लड़ाई झगड़ा होता था...............ऐसे में जब मैंने ये हाथापाई देखि..........चीख पुकार देखि तो मैं डर के मारे थरथरकाने लगी!!!!!!!! पता नहीं मेरे भाईसाहब पर कौनसा भूत सवार हो गया था की उन्होंने उन दोनों लड़कों को ऐसे पीटना शुरू कर दिया जैसे धोबी कपड़ों को पटकता है!!!!!!! भाईसाहब का वो रौद्र रूप मेरे दिल में घर घर गया और मैं अपने भाईसाहब के गुस्से से घबराने लगी और घर दौड़ कर वापस आ गई|



भाईसाहब ने जो मार पिटाई की थी उसकी खबर बप्पा को लग गई थी................. कुछ देर बाद जब भाईसाहब घर लौटे तो बप्पा उन पर बरस पड़े| दोनों में बहुत बहस हुई और गुस्से में भाईसाहब घर से निकल गए| उनके जाने के बाद अम्मा भाईसाहब का बचाव करते हुए बोलीं की उन्होंने जो भी किया वो ठीक था.............मगर बप्पा को अम्मा की बातें बस माँ की ममता लग रही थीं इसलिए अब दोनों लड़ पड़े! घर में हो रहे इस झगड़े का असर जानकी और सोनी पर पड़ रहा था..................दोनों डर के मारे अंदर वाले कमरे में लिपटी हुई थीं|



पता नहीं उस पल मुझ में कैसे प्यार जागा...........मैंने दोनों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बातें कर बहलाने लगी| सोनी सबसे छोटी थी इसलिए वो जल्दी ही मुस्कुराने लगी...............वहीं जानकी बड़ी थी इसलिए वो मेरी चालाकी समझ गई...............थोड़ा समय लगा उसे मगर आखिर वो भी मुस्कुराने लगी| वो पहला दिन था जब जानकी मेरे सामने मुस्कुराई थी................क्योंकि उसके बाद हम दोनों में हमेशा ही ठनी रही|



मैं अपने भाईसाहब का रौद्र रूप देख चुकी थी इसलिए मैं अब उनके पास जाने से थोड़ा घबराने लगी थी| धीरे धीरे भाईसाहब को मेरा डर दिखने लगा और उन्होंने मेरे इस डर के बारे में पुछा................तो मैंने भाईसाहब को सारा सच कह सुनाया| मेरी बात सुन भाईसाहब मुस्कुराये और बोले "ई गुस्सा.........मार पीट हम बाहर का लोगन से करित है.........हम कभौं हमार मुन्नी पर थोड़े ही हाथ उठाब??? अरे तू तो हमार नानमुन मुन्नी हो..............तोह से लड़ाई करब तो हमका नरक मेओ जगह न मिली!" .............भाईसाहब की कही ये बात मुझे आज भी याद है|उस दिन भाईसाहब की बात से मेरा डर कुछ कम तो हुआ था मगर मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी की मैं उन्हें गुस्सा न दिलाऊं वरना...............क्या पता मेरी भी कुटाई हो जाए!!!!





दिन धीरे धीरे बीत रहे थे............ और ज्यों ज्यों हम चारों बड़े हो रहे थे.............त्यों त्यों पिताजी और भाईसाहब के बीच लड़ाई झगड़ा बढ़ता जा रहा था| भाईसाहब की दबंगई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी...............गॉंव में कभी भी लड़ाई झगड़ा होता तो भाईसाहब अपने दाल को ले कर आ पहुँचते| इसी दबंगई के चलते भाईसाहब की संगत कुछ गलत लड़कों के साथ बढ़ गई थी......................जिसके फल स्वरूप उन्होंने गलत संगत में पड़ नशा करना शुरू कर दिया था|



नशा रिश्तों का नाश कर देता है..............मेरी ज़िंदगी का ये पहला सबक मुझे जल्द ही सीखने को मिला|



परधानी के चुनाव होने थे और मेरे भाईसाहब चुनाव प्रचार में लगे थे................की तभी एक दिन पता चला की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने प्रधान के खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए!!! ये खबर मिलते ही भाईसाहब अपने दाल को ले कर पहुँच गए दूसर गॉंव………………फिर शुरू हुई मार पीट..............लाठी डंडे चले...........और आखिर पुलिस केस बना| पुलिस भाईसाहब और उनके साथीदारों को पकड़ कर ले गई................लेकिन घंटे भर में ही हमारे गॉंव के प्रधान ने सबकी छूट करवा दी|



जब ये बात बप्पा को पता चली तो वो बहुत गुस्सा हुए...............भाईसाहब के घर आते ही बप्पा उन पर बरस पड़े| भाईसाहब ने थोड़ी देर तो बप्पा की गाली गलोज सुनी.............फिर वो बिना कुछ कहे चले गए|मुझे और अम्मा को भाईसाहब की बहुत चिंता हो रही थी मगर हम दोनों करते क्या???? हमें पता नहीं था की भाईसाहब कहाँ होंगें????? अम्मा बप्पा को प्यार से समझाने लगीं की वो शांत हो जाएँ मगर बप्पा का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था|



आखिर रात हुई और भाईसाहब घर लौटे............लेकिन वो इस वक़्त अकेले घर नहीं आये थे...........वो आज पहलीबार अपने दोस्तों के साथ दारु पी कर घर आये थे! भाईसाहब को पिए हुए देख बप्पा का गुस्सा बेकाबू हो गया.................वो भाईसाहब को थप्पड़ मारने वाले हुए थे की अम्मा बीच में आ गईं| बप्पा को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए उन्होंने गुस्से में माँ को एक तरफ धक्का दे दिया!!!



मेरे बाद भाईसाहब सबसे ज्यादा प्यार अम्मा से करते थे..............जब उन्होंने बप्पा को माँ को धक्का देते हुए देखा तो भाईसाहब के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट गया..................और उन्होंने गुस्से में आ कर बप्पा पर हाथ उठा दिया!!!!



भाईसाहब इस समय होश में नहीं थे...............उन्होंने जैसे ही बप्पा पर हाथ उठाया वैसे ही उन्हें थोड़ा बहुत होश आया| इधर बप्पा के गुस्से की सीमा नहीं थी................उनके अपने खून ने उन पर हाथ उठाया था..........ये जिल्ल्त वो बर्दश्त नहीं कर सकते थे इसलिए बप्पा ने गुस्से में आ कर भाईसाहब को पीछे की और धक्का दिया| वैसे तो भाईसाहब बलिष्ठ थे..........मगर नशे में होने के कारन बप्पा के दिए धक्के के कारन वो पीछे की और गिर पड़े! “मरी कटौ.................निकर जाओ हमार घरे से........... अउर आज के बाद हमका आपन शक्ल न दिखायो......नाहीं तो तोहका मारकर गाड़ देब!!!!!” बप्पा ने बहुत सी गालियां देते हुए भाईसाहब को घर से निकलने को कहा|



मैं चौखट पर खड़ी ये सब देख रही थी..............बप्पा बहुत कठोर थे मगर मैं उनकी सदा इज्जत करती थी....................जब भाईसाहब ने उनपर हाथ उठाया तो उसी पल मेरे भाईसाहब जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे..................वो मेरी नजरों से नीचे गिर गए!!! मुझे उनसे नफरत होने लगी थी..............फिर जब बप्पा ने उन्हें घर से निकल जाने को कहा.................तब न जाने क्यों मेरा दिल रोने लगा!!!!!!! मैं नहीं चाहती थी की भाईसाहब घर छोड़ कर जाएँ..................और कहीं न कहीं उम्मीद कर रही थी की वो बप्पा से माफ़ी मांग कर बात को यहीं दबा दें|



पर शायद भाईसाहब को अपनी गलती का एहसास हो गया था............इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा और सर झुकाये हुए खड़े हुए तथा बिना कुछ कहे चले गए!!!!! भाईसाहब का ये रवैय्ये देख मैं दंग थी!!!!!!!!! क्यों भाईसाहब ने बप्पा से माफ़ी नहीं मांगी????????? अगर वो माफ़ी मांग लेते तो बप्पा का गुस्सा शांत हो जाता...........कम से कम मेरे लिए तो भाईसाहब माफ़ी मांग लेते.................ताकि उन्हें घर छोड़ कर ना जाना पड़े| ये बातें मेरे दिल में घर कर गईं और मेरे मन में मेरे ही भाईसाहब के लिए ज़हर घुल गया!!!!!!!!!!
 

Rekha rani

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भाग 2

जानकी के पैदा होने से पहले ही मुझे पढ़ाई का शौक लग चूका था| जब भाईसाहब स्कूल से लौट अपनी तख्ती पर लिखते तो उन्हें यूँ लिखते हुए देख मैं खिलखिलाने लगती..........मेरा बालपन देखते हुए भाईसाहब मुझे अपनी गोदी में बिठा कर मेरे हाथ में चौक पकड़ा कर लिखते| मेरे लिए ये बड़ा ही रोचक खेल था क्योंकि हरबार मैं कोई न कोई नया अक्षर लिखती थी................मतलब भाईसाहब मेरा हाथ पकड़ कर नए नए अक्षर बनाते थे! ज्यों ज्यों मैं बड़ी होती गई मेरी रूचि पढ़ाई में बढ़ती गई..............मैं अक्षरों पर ऊँगली रख कर भाईसाहब से पूछती की ये क्या है और भाईसाहब मुझे उस अक्षर को बोल कर बताते................फिर मैं भी उनके पीछे पीछे अक्षर को बोलकर दुहराती| मुझे अपने भाईसाहब के पास रहना अच्छा लगता था और पढ़ाई मेरे लिए एक माध्यम थी जिसके जरिये मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने भाई साहब के साथ बिता पाती थी|



फिर जब जानकी और सोनी पैदा हुए तो मेरे सर पर दोनों की जिम्मेदारी आ गई...................तो दूसरी तरफ भाईसाहब बड़े हो रहे थे और अब वो अपनी बहन के साथ कम समय बिताते थे और बाकी का समय वो अपने दोस्तों के साथ बिताने लगे थे| लेकिन फिर भी दिन में दो बार खाना खाते समय वो हम तीनों बहनों को अपने साथ बिठा कर खाना खाते| सोनी खाती तो कुछ नहीं थी............पर वो भाईसाहब की थाली में अपने दोनों हाथ से खाना छू कर खुश हो जाती थी| उसकी इस शैतानी पर भाईसाहब हँसते थे.........जबकि मैं और जानकी उसे डाँटने लगते!



जैसा की हमारे लेखक जी कहते आये हैं की अच्छी चीजें जल्दी ही खत्म हो जाती हैं.....................वैसे ही सुख का ये समय इतनी जल्दी बीता की पता ही नहीं चला|





भाईसाहब की दबंगई बढ़ती जा रही थी...........आये दिन उनकी मार पीट करने की खबर घर आने लगी थी| इन खबरों से बप्पा का दी बहुत दुखता और वो भाईसाहब को डांटने लगते..............जब बप्पा डांट कर चले जाते तब मैं भाईसाहब के गले लग कर उन्हें सांत्वना देती| मुझे लगता था की अगर मेरे भाईसाहब किसी को मार रहे हैं तो ठीक ही है............वो मार भी कितना लेते होंगें..........२ ४ थप्पड़.............उससे किसी का क्या बिगड़ जाता होगा???? लेकिन फिर एक दिन वो हुआ जिसे देख मैं अपने भाईसाहब से डरने लगी!!!!!!!



दोपहर का समय था...........हम चारों भाई-बहन खाना खा कर तख्त पर आराम कर रहे थे| तभी भाईसाहब का एक दोस्त आया............उसने बताया की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने जानबूझ कर हमारे खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए हैं!!!!! ये खबर सुनते ही भाईसाहब उठ बैठे............"मुन्नी तू दुनो लगे पहुरो..........हम आभायें आईथ है!!!" इतना कह भाईसाहब अपने दोस्त के साथ एक डंडा ले कर दौड़ गए|



मुझे उत्सुकता हुई की आखिर क्या हुआ है इसलिए मैं भी उनके पीछे पीछे नंगे पॉंव दौड़ गई| हमारे खेतों में 4 भैसें घुस आई थीं.................और उन्होंने हमारे एक चौथाई खेत को रोंद कर तबाह कर दिया था!!! मेरे भाईसाहब ने अकेले चारों को डंडे से हाँक कर बाहर निकाला!!! तभी उन चारों भैंसों के मालिक..............दो लड़के दौड़ते हुए आये| उन्हें देख मेरे भाईसाहब को बहुत गुस्सा आया और वो सीधा उनसे भिड़ गए!!! भाईसाहब ने डंडे को किसी लाठी की तरह घुमाया..................फिर उन दोनों लड़कों को ऐसे सूता की दोनों ने दर्द से चिल्लाना शुरू कर दिया!!!





मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी जिसने ने लड़ाई झगड़ा कभी नहीं देखा था....................मेरे लिए तो गुस्से में अपनी बहन के बाल खींचना ही लड़ाई झगड़ा होता था...............ऐसे में जब मैंने ये हाथापाई देखि..........चीख पुकार देखि तो मैं डर के मारे थरथरकाने लगी!!!!!!!! पता नहीं मेरे भाईसाहब पर कौनसा भूत सवार हो गया था की उन्होंने उन दोनों लड़कों को ऐसे पीटना शुरू कर दिया जैसे धोबी कपड़ों को पटकता है!!!!!!! भाईसाहब का वो रौद्र रूप मेरे दिल में घर घर गया और मैं अपने भाईसाहब के गुस्से से घबराने लगी और घर दौड़ कर वापस आ गई|



भाईसाहब ने जो मार पिटाई की थी उसकी खबर बप्पा को लग गई थी................. कुछ देर बाद जब भाईसाहब घर लौटे तो बप्पा उन पर बरस पड़े| दोनों में बहुत बहस हुई और गुस्से में भाईसाहब घर से निकल गए| उनके जाने के बाद अम्मा भाईसाहब का बचाव करते हुए बोलीं की उन्होंने जो भी किया वो ठीक था.............मगर बप्पा को अम्मा की बातें बस माँ की ममता लग रही थीं इसलिए अब दोनों लड़ पड़े! घर में हो रहे इस झगड़े का असर जानकी और सोनी पर पड़ रहा था..................दोनों डर के मारे अंदर वाले कमरे में लिपटी हुई थीं|



पता नहीं उस पल मुझ में कैसे प्यार जागा...........मैंने दोनों को अपने गले लगा लिया और उन्हें बातें कर बहलाने लगी| सोनी सबसे छोटी थी इसलिए वो जल्दी ही मुस्कुराने लगी...............वहीं जानकी बड़ी थी इसलिए वो मेरी चालाकी समझ गई...............थोड़ा समय लगा उसे मगर आखिर वो भी मुस्कुराने लगी| वो पहला दिन था जब जानकी मेरे सामने मुस्कुराई थी................क्योंकि उसके बाद हम दोनों में हमेशा ही ठनी रही|



मैं अपने भाईसाहब का रौद्र रूप देख चुकी थी इसलिए मैं अब उनके पास जाने से थोड़ा घबराने लगी थी| धीरे धीरे भाईसाहब को मेरा डर दिखने लगा और उन्होंने मेरे इस डर के बारे में पुछा................तो मैंने भाईसाहब को सारा सच कह सुनाया| मेरी बात सुन भाईसाहब मुस्कुराये और बोले "ई गुस्सा.........मार पीट हम बाहर का लोगन से करित है.........हम कभौं हमार मुन्नी पर थोड़े ही हाथ उठाब??? अरे तू तो हमार नानमुन मुन्नी हो..............तोह से लड़ाई करब तो हमका नरक मेओ जगह न मिली!" .............भाईसाहब की कही ये बात मुझे आज भी याद है|उस दिन भाईसाहब की बात से मेरा डर कुछ कम तो हुआ था मगर मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी की मैं उन्हें गुस्सा न दिलाऊं वरना...............क्या पता मेरी भी कुटाई हो जाए!!!!





दिन धीरे धीरे बीत रहे थे............ और ज्यों ज्यों हम चारों बड़े हो रहे थे.............त्यों त्यों पिताजी और भाईसाहब के बीच लड़ाई झगड़ा बढ़ता जा रहा था| भाईसाहब की दबंगई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी...............गॉंव में कभी भी लड़ाई झगड़ा होता तो भाईसाहब अपने दाल को ले कर आ पहुँचते| इसी दबंगई के चलते भाईसाहब की संगत कुछ गलत लड़कों के साथ बढ़ गई थी......................जिसके फल स्वरूप उन्होंने गलत संगत में पड़ नशा करना शुरू कर दिया था|



नशा रिश्तों का नाश कर देता है..............मेरी ज़िंदगी का ये पहला सबक मुझे जल्द ही सीखने को मिला|



परधानी के चुनाव होने थे और मेरे भाईसाहब चुनाव प्रचार में लगे थे................की तभी एक दिन पता चला की पड़ोस के गॉंव में से किसी ने प्रधान के खेतों में अपने जानवर छोड़ दिए!!! ये खबर मिलते ही भाईसाहब अपने दाल को ले कर पहुँच गए दूसर गॉंव………………फिर शुरू हुई मार पीट..............लाठी डंडे चले...........और आखिर पुलिस केस बना| पुलिस भाईसाहब और उनके साथीदारों को पकड़ कर ले गई................लेकिन घंटे भर में ही हमारे गॉंव के प्रधान ने सबकी छूट करवा दी|



जब ये बात बप्पा को पता चली तो वो बहुत गुस्सा हुए...............भाईसाहब के घर आते ही बप्पा उन पर बरस पड़े| भाईसाहब ने थोड़ी देर तो बप्पा की गाली गलोज सुनी.............फिर वो बिना कुछ कहे चले गए|मुझे और अम्मा को भाईसाहब की बहुत चिंता हो रही थी मगर हम दोनों करते क्या???? हमें पता नहीं था की भाईसाहब कहाँ होंगें????? अम्मा बप्पा को प्यार से समझाने लगीं की वो शांत हो जाएँ मगर बप्पा का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था|



आखिर रात हुई और भाईसाहब घर लौटे............लेकिन वो इस वक़्त अकेले घर नहीं आये थे...........वो आज पहलीबार अपने दोस्तों के साथ दारु पी कर घर आये थे! भाईसाहब को पिए हुए देख बप्पा का गुस्सा बेकाबू हो गया.................वो भाईसाहब को थप्पड़ मारने वाले हुए थे की अम्मा बीच में आ गईं| बप्पा को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए उन्होंने गुस्से में माँ को एक तरफ धक्का दे दिया!!!



मेरे बाद भाईसाहब सबसे ज्यादा प्यार अम्मा से करते थे..............जब उन्होंने बप्पा को माँ को धक्का देते हुए देखा तो भाईसाहब के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट गया..................और उन्होंने गुस्से में आ कर बप्पा पर हाथ उठा दिया!!!!



भाईसाहब इस समय होश में नहीं थे...............उन्होंने जैसे ही बप्पा पर हाथ उठाया वैसे ही उन्हें थोड़ा बहुत होश आया| इधर बप्पा के गुस्से की सीमा नहीं थी................उनके अपने खून ने उन पर हाथ उठाया था..........ये जिल्ल्त वो बर्दश्त नहीं कर सकते थे इसलिए बप्पा ने गुस्से में आ कर भाईसाहब को पीछे की और धक्का दिया| वैसे तो भाईसाहब बलिष्ठ थे..........मगर नशे में होने के कारन बप्पा के दिए धक्के के कारन वो पीछे की और गिर पड़े! “मरी कटौ.................निकर जाओ हमार घरे से........... अउर आज के बाद हमका आपन शक्ल न दिखायो......नाहीं तो तोहका मारकर गाड़ देब!!!!!” बप्पा ने बहुत सी गालियां देते हुए भाईसाहब को घर से निकलने को कहा|



मैं चौखट पर खड़ी ये सब देख रही थी..............बप्पा बहुत कठोर थे मगर मैं उनकी सदा इज्जत करती थी....................जब भाईसाहब ने उनपर हाथ उठाया तो उसी पल मेरे भाईसाहब जो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे..................वो मेरी नजरों से नीचे गिर गए!!! मुझे उनसे नफरत होने लगी थी..............फिर जब बप्पा ने उन्हें घर से निकल जाने को कहा.................तब न जाने क्यों मेरा दिल रोने लगा!!!!!!! मैं नहीं चाहती थी की भाईसाहब घर छोड़ कर जाएँ..................और कहीं न कहीं उम्मीद कर रही थी की वो बप्पा से माफ़ी मांग कर बात को यहीं दबा दें|




पर शायद भाईसाहब को अपनी गलती का एहसास हो गया था............इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा और सर झुकाये हुए खड़े हुए तथा बिना कुछ कहे चले गए!!!!! भाईसाहब का ये रवैय्ये देख मैं दंग थी!!!!!!!!! क्यों भाईसाहब ने बप्पा से माफ़ी नहीं मांगी????????? अगर वो माफ़ी मांग लेते तो बप्पा का गुस्सा शांत हो जाता...........कम से कम मेरे लिए तो भाईसाहब माफ़ी मांग लेते.................ताकि उन्हें घर छोड़ कर ना जाना पड़े| ये बातें मेरे दिल में घर कर गईं और मेरे मन में मेरे ही भाईसाहब के लिए ज़हर घुल गया!!!!!!!!!!
Awesome update, एक बालिका जिसने अपने जीवन मे पहले पड़ाव में जवान होते भाई को ऐसे गुमराह होते, बाप भाई के बीच अनबन, जो भाई स्नेह से सभी बहनों को रखता था धीरे- धीरे बहनों से घर से दूर होना, इन सब का एक बालिका के अंतमन पर क्या असर हुआ होगा ये हम समझ सकते है, फिर उसी अबोध उम्र में छोटी बहनों की जिम्मेवारी छोटे कंधों पर आ पड़ी,
बड़े भाई का ऐसे बाप पर हाथ उठा कर गलत आचरण के कारण घर छोड़कर चले जाना, बाल मन मे एक डर का जन्म हुआ शायद यही डर अभी तक आपके मन मे समाया हुआ है
 
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