Naina
Nain11ster creation... a monter in me
- 31,619
- 92,346
- 304
Click anywhere to continue browsing...
daal daal kachchi matlab I think hota hai bhulakkad tipe ka aise sayad ladkiyan karti baat hum to mard hain to hum bolte hain wo mai noi bol sakta![]()
Yaha pe gif upload kyu nahi hotaकाश...
Aapke story pe update kab doge ye bata dijiye pehleओह ओ
तो इतना बड़ा कांड हो गया घर में
पहले पहलवानी फिर नशा के कारण अपने पिता पर हाथ चला दिए
परिणाम यह रही कि आपके बचपन में ही भाई साहब स्वयं को बनवास दे दिए
और उस पर आपके नजरों में उनके प्रति इज़्ज़त कम हो गया
Dekh nain11ster unkil wajah se chup hu.. Warna.नवी बाई
Jaldi se jaake pucho & xforum or discord pe msg karo mujheनवी बाई
हम जंगल में रहते है, इधर सुपर मार्केट क्या मार्केट भी नही है।Dekh nain11ster unkil wajah se chup hu.. Warna.
(.. Acha ek baat baatao ye LG ka new wala washing machine price kitna hai , aur haan puchna supermarket market price zyada hai ki aise town areas ke shop me... Jaldi pusho sabhi se model no chahiye kya?)
हाँ इस घटना का पूर्वाभास थाभाग 3
वो पूरी रात अम्मा अपने बेटे को याद कर कर रोती रहीं................वहीं मैं ये सोच रही थी की आखिर एक माँ अपने उस बेटे के जाने का दुःख क्यों मना रही हैं जिसने उनके ही सुहाग पर....................यानी अपने ही पिता पर हाथ उठाया हो!!!!!!!! अम्मा का अपने बेटे के प्रति ये मोह मुझे तब समझ में आया जब मैं माँ बनी.....................जब चन्दर मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आया था और आयुष को अपने साथ जबरदस्ती ले जाना चाहता था उस समय मुझे अम्मा का मोह समझ में आया था|
अगली सुबह हुई तो माँ ने पड़ोस के लड़कों को भाईसाहब को खोज लाने के लिए लगा दिया....................मगर पूरा गॉंव छानने के बाद भी भाईसाहब का पता नहीं लगा!!!! भाईसाहब के गॉंव छोड़ कर जाने की खबर से मेरी अम्मा टूट गई थीं.....................जबकि बप्पा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था| आस-पडोसी आकर भाईसाहब के बारे में पूछ रहे थे और बप्पा घर की इज्जत बचाने के लिए सभी से ये झूठ कह रहे थे की भाईसाहब की गुंडा गर्दी उन्हें बर्दश्त नहीं थी इसलिए उन्होंने भाईसाहब को घर से निकाल दिया!!!
सबने बप्पा को बहुत समझाया की वो अपना गुस्सा थूक दें..............पर बप्पा नहीं माने| बप्पा तो कठोर थे.................मगर अम्मा बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थीं इसलिए सभी माँ को सांत्वना देने लगे| जब भाईसाहब का गुस्सा ठंडा होगा तो वो घर लौट आएंगे.................ये कहते हुए सभी अम्मा को ढांढस बंधा रहे थे| अम्मा पहले ही कमज़ोर थीं............जब सबने उन्हें झूठ दिलासा दिया तो वो सबकी बातों में आ गईं और उम्मीद करने लगीं की उनका बेटा एक न एक दिन वापस आएगा!
दिन बीतने लगे............. हम सबके जख्म भरने लगे..........और मेरे जीवन में आया नया मोड़!!!!!
मेरी गिनी चुनी सहेलियां थीं.................उनके साथ भी मैं बस अपने घर के आंगन में खेलती थी.................मैं सबसे बड़ी थी तो मेरे ऊपर जानकी और सोनी की जिम्मेदारी थी| मैं अगर खेल कूद में लग जाती तो ये दोनों भी मेरी तरह करतीं.................इसलिए अम्मा ने मुझे घर के कामों में लगा दिया| द्वार पछोना.................लिपाई..............गोबर से कंडे बनाना.............. सिलाई...........बुनाई.............बेना बनाना आदि के कामों में अम्मा ने मुझे लगाना शुरू कर दिया| जानकी थोड़ी बड़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने उसे भी मेरे साथ काम में लगा दिया..................बस एक सोनी थी जो कुछ नहीं नकारती थी और हम दोनों का काम करता देख हंसती रहती थी| धीरे धीरे अम्मा ने अपनी पाकशाला में मेरी भर्ती की और मुझे खाना पकाना सिखाने लगीं|
हमारे घर के ठीक सामने चरण काका का घर था..............चरण काका बप्पा के भाई समान दोस्त थे.................और माँ उनके लिए मुँहबोली बहन थीं| उन दिनों चरण काका की भतीजी................जिसे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करते थे...............वो अपने स्कूल की छुट्टियों में गॉंव आती थी……उसका नाम था मालती.............जब मालती आती तो वो अपने साथ अपनी स्कूल की किताबें ले कर आती| उन किताबों को देख मेरा दिल मचलने लगता.............मैं किसी भँवरे की तरह उन किताबों तक खींची जाती| किताबों में बनी वो तसवीरें देख कर मेरी आँखें ख़ुशी से टिमटिमाने लगती थीं! मेरे इस दीवानेपन को समझ मालती ने मुझे पढ़ाना शुरू किया.................. पढ़ाई के प्रति मेरा ये खिंचाव............मेरी लगन...........मेरे बहुत काम आया|
उस समय हमारे गॉंव में बस एक स्कूल था जो की मेरे घर से करीब ३ किलोमीटर दूर था..................ये वही स्कूल है जहाँ नेहा ने दूसरी क्लास तक पढ़ाई की थी| उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता था.............न ही कोई सरकारी योजना लड़कियों के पढ़ाने के लिए बनाई गई थी...............और अगर बनाई भी गई होगी तो हमारे गॉंव तक नहीं पहुंची थी| तब लड़कियों के पैदा होते ही माँ बाप उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ने लगते थे...............लड़की को पढ़ाने पर कौन खर्चा करता???
मैं जानती थी की मुझे कभी भी स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाएगा...........और अगर कहीं बप्पा को पता चला की मैं पढ़ना चाहती हूँ तो वो मुझे कूटेंगे अलग से इसलिए मैं और मालती चोरी छुपे पढ़ाई करते थे| हमार घर के पीछे एक खेत था जहाँ पर गूलर का पेड़ लगा था.............दोपहर को खाना खाने के बाद खेत सूनसान होता था इसलिए मैं और मालती पेड़ की छॉंव तले खटिया डाल कर बैठ जाते| मालती मुझे हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर बोलना सिखाती और मेरा हाथ पकड़ कर लिखना सिखाती| उन अक्षरों को बोलने और लिखने का सुख जादुई था............वो ख़ुशी ऐसी होती थी की लगता था की मानो मुझ में कोई शक्ति आ गई हो...........ऐसी शक्ति जिससे मैं किसी को भी हरा सकती हूँ| चंद अक्षरों को सीख कर ही मैं खुद को विद्वान समझने लगी थी...............ऐसा लगता था मानो मैं जनपदों की क्ष्रेणी से ऊपर उठ चुकी हूँ!!!
जैसा की हमारे लेखक साहब कहते हैं की हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है.............. वही मेरे साथ हुआ जब चरण काका ने हम दोनों को पढ़ते हुए देख लिया!!!!!
"हम नाहीं जानत रहन हमार मुन्नी पढ़े म इतना होसियार है!!!!" चरण काका मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले| चरण काका ने जब मेरी पढ़ाई की तारीफ की तो मालती फौरन बोली की कैसे मैं पढ़ने में बहुत तेज़ हूँ....................आज पहलीबार अपनी इस तारीफ को सुन कर मैं गदगद हो गई थी और ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!!!!!!! मेरी पढ़ाई की तरफ लग्न देखते हुए चरण काका बोले की वो बप्पा से बात करेंगे................ये सुन कर मुझे लगा की मुझे भी स्कूल जाने को मिलेगा.................नतीजन मैंने स्कूल जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी|
मैंने ये नहीं सोचा की बप्पा मुझे पढ़ने देने के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे!
शाम के समय हम सब आंगन में बैठे थे..............बप्पा खेत से लौटे थे इसलिए वो सौथा रहे थे.............की तभी चरण काका आ पहुंचे| उन्होंने बप्पा को बताया की मैं मालती के साथ छुप कर पढ़ाई कर रही थी..................और मैं पढ़ाई में कितनी तेज़ हूँ की बिना स्कूल जाए ही मैंने आधी अंग्रजी वर्णमाला सीख ली है| बप्पा को मेरी ये उपलब्धि सुन कर ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई...............उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो दी ही नहीं और चरण काका से दूसरी बात करने लगे| जब आप लायक हो और आपके मा बाप इसकी कोई ख़ुशी न मनाएं तो जो चिढ़ मन में पैदा होती है.................वही चिढ़ मुझे हो रही थी| लग रहा था मानो मैं गलत घर में पैदा हो गई............मुझे तो मालती के घर में पैदा होना चाहिए था...............जहाँ उसके मा बाप कम से कम उसे पढ़ा तो रहे थे!!!
दोपहर को जो मैंने स्कूल जाने के सपने सजाये थे वो सारे टूट कर चकना चूर हो गए थे.............तब लग रहा था की अगर मेरे भाईसाहब होते तो वो बप्पा से लड़ कर मुझे स्कूल भेजते.............या फिर कम से कम वो मुझे अपने साथ ले जाते तो मैं स्कूल में पढ़ तो लेती!!!!! मुझे अपने भाईसाहब के यूँ स्वार्थी होने और मुझे अकेला छोड़ कर जाने पर गुस्सा आने लगा था................और मैं मन ही मन अपने भाईसाहब को कोस रही थी की क्यों वो मुझे अपने साथ नहीं ले कर गए| मैंने तब ये नहीं सोचा की भाईसाहब घर से अकेले निकले हैं.............पता नहीं वो कहाँ रह रहे होंगे........क्या खाते होंगें............कहाँ सोते होंगें............कैसे अपना अकेला गुज़ारा करते होंगें??????
खैर.............मैंने स्कूल जाने की उम्मीद छोड़ दी थी और अपने घर के कामों में लग गई थी| अगले दिन दोपहर को खाने के बाद मालती मुझे बुलाने आई................मैं जानती थी की वो मुझे पढ़ने के लिए बुलाने आई है मगर मेरा मन अब पढ़ने का नहीं था इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया| मालती ने हार न मानते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर खेत में ले आई...................मुझे हिम्मत देने के लिए मालती बोली की मुझे पढ़ाई करना नहीं छोड़ना चाहिए| वो मुझे हिम्मत दे रही थी ताकि मैं अपने बप्पा से खुद पढ़ने देने की बात करूँ...............वो नहीं जानती थी की मेरे बप्पा कितने सख्त स्वभाव के हैं.............वो मुझे स्कूल में पढ़ने तो नहीं देते.............अलबत्ता मेरे कान पर एक धर जर्रूर देते!!!!! बप्पा के डर के मारे मैं बस न में सर हिलाये जा रही थी.................मुझ में ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने बप्पा का सामना करूँ!!!!
उसी दिन शाम के समय चरण काका ने मुझे अपने पास बुलाया..............बप्पा थक कर पहुडे थे की तभी चरण काका ने मेरे पढ़ने की बात छेड़ी| मुझे लगा था की बप्पा इस बार भी इस बात पर गौर नहीं करेंगे..................पर इस बार बप्पा उठ कर बैठे और चरण काका से बोले "का करी ई का पढ़ाये के? आखिर करे का तो एकरा ब्याह है!............. और पइसवा कहाँ है हमरे लगे जो ई का पढ़ाई?...............फिर हमार दुइ ठो बच्चा और हैं..........कल को ऊ दुनो कईहैं की बप्पा हमहुँ स्कूल जाब तो हम कइसन तीनो बच्चा का पढ़ाब?" बप्पा की आवाज़ में एक गरीब पिता होने का दर्द था............अगर मेरे बप्पा के पास खूब सारा पैसा होता तो वो एक बार को मुझे पढ़ने भी देते............लेकिन तीन बच्चों...........और वो भी लड़कियों को पढ़ाना............उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ना आसान बात नहीं थी!!!!!
"कउनो जर्रूरत नाहीं............का करी ई पढ़ी लिखी के??? चुपए घरे रही के काम धाम सीखो!!!" अम्मा अचानक से परकट होते हुए बोली| बप्पा की बातें सुन कर मुझे सच्चाई का पता चला था और मैं अब खुद भी नहीं चाहती थी की मैं पढूं इसलिए मैं सर झुका कर खामोश खड़ी थी……………..पर चरण काका मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख बोले................."हमार मुन्नी बहुत प्रतिभसाली है...........ओकरा का पढ़ाये खतिर हम दुनो जन मेहनत करब................अगर कल को जानकी और सोनी पढ़ा चाहियें तो उनका पढ़ाये खतिर हम दुनो जन और मेहनत करब...........आखिर माँ बाप केह का लिए जीयत हैं????? केह का लिए इतना मेहनत करत हैं???" मेरी पढ़ाई को ले कर घर में खिंचा तानी शुरू हो गई थी......................और आखिर में जीत पढ़ाई की हुई!!! गाँव में कोई लड़की स्कूल नहीं जाती थी..............ऐसे में सब लड़कों के बीच मैं अकेली कैसे पढ़ती???? तो ये तय हुआ की मैं अम्बाला में अपनी मौसी के घर रह कर पढूंगी..............वहां मेरी मौसेरी बहन भी रहती थी तो उसी के साथ मैं स्कूल जा सकती थी|
jangal ma sher bhi rahte hain wo toka kha jayegen bahar niklo wahan seहम जंगल में रहते है, इधर सुपर मार्केट क्या मार्केट भी नही है।
शेर को खाना बराबर मिलता है, और इस मामले में वो इंसानों से अच्छा है।jangal ma sher bhi rahte hain wo toka kha jayegen bahar niklo wahan se![]()