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Incest दीदी ने चखाया अपना गीलापन

Premkumar65

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Update 4

शाम करीब सात बजे मैं उनकी दोस्त के घर पहुंचा। दीदी ने मुझे देखा तो उनका चेहरा थोड़ा अजीब सा हो गया। उन्होंने मुझे देखा, फिर नज़रें हटा लीं, जैसे सोच रही हों कि मैं यहां कैसे आया था। मैं कार से उतरा और उनके दोस्त और परिवार से हाथ मिलाया। सब ने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया, लेकिन दीदी बार-बार मेरी तरफ देख रही थी, पर कुछ कहने से बच रही थी।

थोड़ी देर बाद दीदी ने कहा कि चलो, अब चलना चाहिए। मैंने उनकी मदद की और दोनों कार में बैठे। अंदर बैठते ही मैं सोच रहा था कि ये पल हमारे लिए कितना खास था। लेकिन उनकी चुप्पी और अजीब एहसास ने मेरे मन को बेचैन कर दिया।

कार चलाते हुए मेरी नजरें सुधा दीदी की छाती पर अक्सर टिक जाती थी। उनकी टाइट टी-शर्ट के नीचे उनके बड़े और गोल स्तन हर हल्की हरकत में ऊपर-नीचे होते रहे। जब कार के झटकों या मोड़ों पर उनका शरीर हल्का हिलता, तो उनकी छाती का उछाल साफ दिखता था। उस नजारे को देख मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगता था, और मैं खुद को रोकने की कोशिश करता था, लेकिन उनकी हरकतें मेरी नजरों से छुप नहीं पाती थी।

रास्ते में थोड़ी दूरी चलने के बाद मुझे भूख लगने लगी। मैंने धीरे से कहा, “मुझे थोड़ी भूख लग रही है, अगर आप कहें तो पास में किसी होटल पर रुक लें?” वह अब भी मुझसे नाराज़ थी, यह उनके चुप और सख्त हाव-भाव से साफ था, लेकिन उन्होंने हल्के स्वर में कहा, “ठीक है, अगर तुम्हें रुकना है तो रुक लो।” उनके लहजे में ठंडापन था, पर फिर भी उन्होंने इजाज़त दे दी। मैंने सड़क किनारे दिख रहे एक छोटे से होटल की ओर गाड़ी मोड़ दी, ताकि कुछ खाकर आगे का सफर जारी रख सकूं।

होटल के अंदर हम दोनों एक कोने की मेज़ पर बैठ गए और खाना ऑर्डर किया। माहौल साधारण था, पर खाने की खुशबू अच्छी लग रही थी। खाना आने के बाद मैंने कोशिश की कि माहौल हल्का हो जाए, और धीरे से कहा, “सुधा दीदी, मुझे उस दिन के लिए माफ़ कर दो… मेरी गलती थी।” मैंने उनकी आंखों में देखा, उम्मीद थी कि वह कुछ नरम पड़ेंगी, लेकिन उनका चेहरा सख्त रहा। उन्होंने बस इतना कहा, “गोलू, कुछ बातें माफ़ करना आसान नहीं होता, खास कर जब कोई बिना इजाज़त भाई-बहन की सीमाएं तोड़े।”

मैंने थोड़ा रुक कर अपनी बात रखने की कोशिश की, “सुधा दीदी, मैं मानता हूं कि मैंने ग़लत किया… लेकिन याद है पिछली बार जब आपने मुझे अपनी नाज़ुक जगह दिखाई थी? उसके बाद से ही मैं बस उसे महसूस करना चाहता था, छूना चाहता था। इसी वजह से मैंने वो ग़लत हरकत कर दी।” मेरी आवाज़ धीमी थी, जैसे मैं अपनी सफाई देने की कोशिश कर रहा था।

सुधा दीदी ने मेरी बात सुनने के बाद कुछ देर तक मुझे देखा, फिर प्लेट में नज़रें गड़ाए चुप-चाप खाने लगी। मैंने महसूस किया कि वह जान-बूझ कर मुझे नज़र-अंदाज़ कर रही थी।

थोड़ी देर में हम दोनों ने अपना खाना खत्म किया और फिर वापस गाड़ी में बैठ कर सफ़र जारी रखा। कार एक बार फिर से चलने लगी। घर पहुंचने के लिए अब भी तीन घंटे का सफर तय करना था। सुधा दीदी अब भी मुझ पर गुस्सा थी, और उनको किस तरह मनाना चाहिए, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

करीब रात के दस बजे उन्होंने मेरी तरफ हिचकते हुए देखा और हौले से कहा, “गोलू, मुझे जोर से बाथरूम जाना है। क्या तुम गाड़ी रोक सकते हो?” मैंने तुरंत कार सुनसान सड़क किनारे खड़ी कर दी।
वह अब भी मुझसे नाराज़ दिख रही थी, लेकिन जैसे ही वह कार से उतरी, मैंने सामने वाले शीशे से उन्हें देखना शुरू कर दिया।

वह कार से थोड़ी दूर जाकर रुकीं, फिर धीरे-धीरे अपनी पैंट नीचे करने लगी। चांदनी की हल्की रोशनी में उनकी टांगों की झलक मुझे साफ़ दिख रही थी। वह बैठ गई,‌ और फिर हल्की-सी आवाज़ के साथ पानी की धार गिरने लगी, तेज़, साफ़, चमकती हुई, जो छोटे-छोटे पत्थरों पर टकरा कर बिखर रही थी। उस पल में वह झलक उतनी सुखद नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं उससे अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था।

कुछ देर बाद वह उठीं, कपड़े ठीक किए और वापस कार में आकर बैठ गई। मैंने इंजन स्टार्ट करने के लिए चाबी घुमाई ही थी कि उन्होंने हल्के से कहा, “रुको, गोलू… मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
मैंने उनकी ओर देखा, वह थोड़ी गंभीर थी। उनकी नज़रें मेरी आंखों में टिकी थी, और मैं भी बिना पलक झपकाए उन्हें देखता रहा।

उन्होंने धीमे स्वर में कहना शुरू किया, “तुम्हें पता है, उस दिन जब तुमने मुझे छूने की कोशिश की थी… मुझे बहुत डर लगा था। ऐसा लगा जैसे कुछ टूट गया हो। लेकिन बाद में… मैंने सोचा, शायद मैंने ज़्यादा रिएक्ट किया। क्योंकि तुमने पहले भी… मेरे सीने को छुआ था, और तब भी हमारा भाई-बहन का रिश्ता टूटा नहीं था।”
वह कुछ पल रुकी, फिर हल्की सांस लेकर आगे बोली, “गोलू, तुम मेरे भाई हो… मैं तुम्हारी परवाह करती हूं। तुम्हारी खुशी मेरे लिए मायने रखती है, और अगर मैं तुम्हें खुश देख सकती हूं, तो मैं वो करना चाहती हूं।”

इतना कह कर उन्होंने बिना कुछ और बोले धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। मेरे सामने उनका गला और फिर सीना नज़र आने लगा। मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा। उन्होंने पूरी तरह टी-शर्ट उतार दी, और फिर धीरे से अपनी ब्रा की हुक खोली। ब्रा हटते ही उनकी नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी, गोलाई से भरी, मुलायम और गर्माहट लिए हुए।

मेरी सांसें रुक-सी गई, जैसे पल थम गया हो। इतने दिनों से जिस सुधा दीदी के कपड़ों के साथ मुझे खुदको अच्छा महसूस करवाना पड़ा था, वहीं सुधा दीदी एक बार मेरे सामने नंगी बैठी थी। हल्की चांदनी में उनके गुब्बारे साफ साफ दिखाई दे रहे थे, जैसे दूध से भरे हों और बस छूने के इंतज़ार में हों।
मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा, “दीदी, मैं तुम्हारे सीने को पहले ही छू चुका हूं… अब मैं तुम्हारे चुत को महसूस करना चाहता हूं।”

वो हल्का-सा शर्मा गई, आंखें झुका ली, फिर धीरे से बोली, “ठीक है, गोलू… तुम्हें इजाज़त है।” उन्होंने अपनी फिटेड जींस उतारने की कोशिश की, लेकिन कार के छोटे से इंटीरियर में यह मुश्किल हो रहा था। फिर वो खिड़की से सिर टिका कर लेट गईं और धीरे से बोली, “गोलू, तुम ही इसे उतार दो।”

मैंने दोनों हाथों से उनकी जींस पकड़ी और धीरे-धीरे नीचे खींचने लगा। उनकी टांगों की चमकती त्वचा, जांघों की मुलायम रेखाएं और पतली कमर पर टिकी छोटी-सी पैंटी, सब कुछ चांदनी में बेहद खूबसूरत लग रहा था। उनके पूरी बदन का हर हिस्सा मेरी आंखों में बस गया था, और मेरी सांसें तेज़ हो चुकी थी।

जैसे ही जींस उनके बदन से अलग हुई, उनके चेहरे पर एक लाली सी छा गई। वो शर्माने लगी, और उसी के साथ उनका चेहरा धीमी मुस्कान के साथ खिल उठा। हल्की चांदनी में उनका चेहरा कुछ ज्यादा ही प्यारा लग रहा था।

वो फिर कार की सीट पर लेट गई। कार का छोटा सा इंटीरियर उनके बदन को फैलाने के लिए काफी नहीं था, जिससे उन्हें करवट बदलने और आराम से लेटने में मुश्किल हो रही थी। फिर भी उन्होंने खुद को संभाला और उसी तंग जगह में लेट कर अपनी नज़रें मुझ पर टिकाए रखी, जबकि मैं उनके पैरों के पास बैठा था।

वो कार की सीट पर तंग जगह में लेटी थी, आंखें मुझ पर टिकाए, और मैं उनके पैरों के पास बैठा था। मैंने धीरे से उनके दोनों पैरों को पकड़ कर ऊपर किया और फिर सावधानी से उनकी पैंटी की किनारी पकड़ कर नीचे सरका दी। पतली कपड़े की परत हटते ही उनकी नंगी त्वचा की गरमाहट और महक महसूस हुई, और वो हल्का-सा सिहर उठी।

पतला कपड़ा हटते ही पहली बार उनकी नंगी जगह मेरी आंखों के सामने थी, गुलाबी आभा लिए, नर्म और कोमल त्वचा से घिरी, बीच में हल्की-सी दरार जैसी रेखा, जिसके किनारों पर महीन, मुलायम बाल थे। चांदनी में वहां की नमी चमक रही थी, जैसे किसी गुप्त फूल की पंखुड़ियां खुल कर अपनी खुशबू बिखेर रही हों।

मैं कुछ पल वहीं ठहर गया, आंखें उनकी उस जगह पर टिकी रही। उनकी सांसें तेज़ हो गई, चेहरे पर गहरी लाली छा गई और पलकों के नीचे से झिझक भरी निगाहें मुझ पर पड़ी। होंठ हल्के-से कांप रहे थे, जैसे वो बोलना चाहती हो, पर शब्द गले में अटक गए हों।

मैंने धीरे से अपना हाथ उनकी जांघों के पास ले जाकर उस नर्म हिस्से की तरफ बढ़ाया, तो उन्होंने झटके से अपनी दोनों टांगें आपस में भींच ली। उनकी आंखों में झिझक और गहरी लाज साफ दिख रही थी, जैसे वो किसी अनजाने डर और उत्सुकता के बीच फंसी हो।

मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उनके घुटनों पर हाथ रखा और फुसफुसाया, “दीदी… बस एक बार।” उन्होंने पलकें झुका ली, होंठ भींच लिए, और चेहरा लाल हो गया। उनकी सांसें गहरी थी, मानो वो खुद को संभालने की कोशिश कर रही हों। मैंने धीरे-धीरे उनके घुटनों पर दबाव देकर टांगों को अलग किया। वो हल्का-सा कांपी, लेकिन मैंने नरमी से उनकी जांघों को थाम कर ऊपर उठाया, ताकि उनका नाजुक हिस्सा पूरी तरह मेरी नज़रों में आ जाए।

चांदनी में उनकी नर्मी और हल्की गुलाबी आभा को देख मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। हम भाई-बहन होते हुए भी, उस पल हम दोनों के बीच की सारी सीमाएं टूटने को तैयार थी। कांपते हाथों से मैंने पहली बार उनकी उस जगह को छुआ, वो गर्म और मुलायम अहसास मेरी उंगलियों से होते हुए सीधे दिल में उतर गया। वो हल्के से सिहर उठी, आंखें बंद कर ली, जैसे उस पल में समय थम गया हो।

To be continued
Wah Sudha didi bahut jaldi pighal gai.
 

Premkumar65

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Episode 5

उस कार के छोटे से इंटिरियर में सुधा दीदी मेरे सामने पूरी तरह नंगी लेटी थी। रात के वक्त चांदनी उनके खुले बदन पर ऐसे चमक रही थी, मानो उनका पूरा शरीर किसी मोती से बना हो।

मैं हिचकते हुए धीरे-धीरे उनके करीब गया। दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि जैसे सीने से बाहर निकल आएगी। हाथ काँप रहे थे, लेकिन चाहत ने हिम्मत दी। पहली बार मेरी उंगलियाँ उनके निजी हिस्से को छूने लगी।

जैसे ही मेरी उंगलियाँ वहां पहुँची, दीदी का बदन हल्का-सा कांप उठा। उन्होंने आँखें बंद कर ली, और होंठों से एक धीमी-सी कराह निकल गई। मेरे लिए वो पल बिल्कुल नया था। पहली बार मैंने उन्हें उस तरह छुआ था। उनकी गर्माहट और नमी मेरी उंगलियों पर महसूस हो रही थी, और मेरा दिल मानो रुक-रुक कर धड़क रहा था।

मैंने उंगलियाँ धीरे-धीरे उनके अंदरूनी हिस्से में फेरनी शुरू की। हर हल्की हरकत के साथ उनकी साँसें और भारी होती जा रही थी। उनका चेहरा कसक और आनंद के बीच डूबा हुआ था। माथे पर हल्की-सी शिकन थी, आँखें कस कर बंद, और होंठ दाँतों के बीच दबे हुए।

उनके होंठों से कभी धीमी-सी सिसकारी, तो कभी गहरी कराह निकलती। उनकी आवाज़ में वो चाहत साफ झलक रही थी, जो मेरे मन को और ज्यादा बेचैन कर रही थी। मेरे हर स्पर्श के साथ उनके चेहरे पर नए-नए भाव आते, कभी आँखें आधी खुल कर मुझे देखने लगती, तो कभी होंठ काँपते हुए कराह से भर जाते।

इसी बीच सुधा दीदी ने अपने दोनों हाथों से अपने बड़े-बड़े स्तनों को सहलाना, और रगड़ना शुरू कर दिया। उनकी उंगलियाँ निप्पलों पर घूमते ही उनका पूरा शरीर और भी ज्यादा मचल उठा। नीचे मेरी उंगलियाँ उनके नाजुक हिस्से से खेल रही थी और ऊपर उनके हाथ उनकी छाती में आग भर रहे थे। उनकी कराहें और तेज़ हो गई, चेहरा और लाल हो गया, और बदन अनियंत्रित होकर मेरी ओर और सिमटता चला गया।

बंद कार के भीतर उनकी आवाज़ गूंजने लगी। हर कराह, हर सिसकारी शीशों से टकरा कर लौटती और माहौल को और भी मदहोश बना देती। बाहर गहरी रात का सन्नाटा था, और अंदर सुधा दीदी की मधुर कराहें गूंजकर पूरे इंटीरियर को गर्म और बेचैन कर रही थी।

कुछ देर बाद उन्होंने आँखें खोली, और हल्की मुस्कान के साथ मुझसे बोली, “गोलू… मेरी पीठ दुख रही है, ये फ्रंट सीट बहुत छोटी है। यहाँ ज़्यादा देर लेटना मुश्किल हो रहा है।” उन्होंने मेरे कान के पास फुसफुसा कर कहा, “चलो पीछे वाली सीट पर चलते है, वहाँ हम और आराम से रह पाएँगे।”

मैंने उन्हें सहारा दिया और हम दोनों धीरे-धीरे पीछे वाली सीट पर आ गए। सुधा दीदी ने फिर से लेटने की कोशिश की, लेकिन मैंने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया और मुस्कुरा कर कहा, “नहीं दीदी… लेटो मत। मेरी जाँघों पर बैठो।” मेरी आवाज़ में चाहत और हुक्म दोनों मिले हुए थे। उन्होंने मेरी तरफ देखा, हल्की मुस्कान दी और धीरे-धीरे आकर मेरी जाँघों पर बैठ गईं।

जैसे ही उनका खुला नंगा पिछला हिस्सा मेरी जाँघों से सटा, मैंने अपने कपड़ों के ऊपर से उनकी गर्माहट महसूस की। उनकी मुलायम त्वचा मेरी जाँघों से रगड़ खा रही थी और उस स्पर्श से मेरे पूरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। उनका नंगा पिछवाड़ा मेरी जाँघों पर टिकते ही मुझे ऐसा लगा जैसे आग सीधे मेरी रगों में भर गई हो।

मैंने दोबारा अपनी उंगलियाँ उनके निजी हिस्से की ओर बढ़ाई, और धीरे-धीरे वहाँ खेलने लगा। उसी वक्त मेरा दूसरा हाथ ऊपर गया और उनके एक स्तन को कस कर पकड़ लिया। मेरी हथेली में उनकी गर्म, मुलायम गोलाई भर गई थी। निप्पल मेरी हथेली पर सख्त होकर चुभ रहा था, जिसे मैं अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर सहलाने लगा।

उनकी छाती की गर्माहट मेरी हथेली को भिगोती जा रही थी, मानो वहाँ से लपटें उठ रही हो। हर बार जब मैं नीचे उंगलियों से खेलता और ऊपर हथेली से उनके स्तन को मसलता, उनकी सिसकारियाँ और कराहें इतनी तेज़ हो जाती कि कार का हर शीशा हिल उठता।

हम दोनों उस पल में पूरी तरह डूबे हुए थे, हर स्पर्श का मज़ा ले रहे थे। तभी अचानक मेरी जेब में रखा मोबाइल जोर-जोर से बजने लगा। घंटी की तेज़ आवाज़ ने उस गर्म और मदहोश माहौल को चीर दिया। सुधा दीदी ने आँखें खोली, और मुझे देखा, उनकी साँसें अब भी तेज़ थी, और मैंने महसूस किया कि वो भी उतना ही चौंक गई थी जितना मैं।

मैंने जल्दी से एक हाथ से मोबाइल निकाला और कॉल रिसीव कर लिया, लेकिन मेरा दूसरा हाथ अब भी सुधा दीदी के भीगे हिस्से पर खेल रहा था। फोन पर किसी की आवाज़ मेरे कान में गूँज रही थी, लेकिन मेरा ध्यान पूरा उनके बदन पर था। सुधा दीदी ने होंठ काट लिए, उनकी आँखें कस कर बंद थी। वो कोशिश कर रही थी कि कोई आवाज़ बाहर ना निकले, पर उनकी रुक-रुक कर निकलती सिसकारियाँ और काँपता बदन बता रहा था कि वो अपनी आवाज़ रोकने के लिए कितनी जद्दोजहद कर रही है।

फोन पर माँ की आवाज़ आई। उन्होंने धीमे लेकिन सख़्त लहजे में पूछा, “गोलू… कितना समय लगेगा घर आने में?” उनके सवाल ने मुझे पल भर को सकपका दिया। एक तरफ मेरी उंगलियाँ अब भी सुधा दीदी के गीलेपन को छू रही थी और दूसरी तरफ माँ की आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी।

मैंने गहरी साँस लेकर कहा, “माँ… लगभग तीन घंटे लगेंगे।”
माँ ने फिर पूछा, “और सुधा? वो कैसी है?”
मैंने सुधा दीदी की ओर देखा, उनकी आँखें बंद थी और वो अपनी साँसों को दबाने की कोशिश कर रही थी। मैंने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “वो तो सो रही है माँ… आराम कर रही है।”
माँ ने आख़िर में कहा, “ठीक है बेटा, लेकिन जल्दी घर आ जाना। ज़्यादा देर मत करना।” उनके शब्दों में हिदायत और चिंता दोनों झलक रही थी।

माँ की आवाज़ कान में गूँजते ही मेरे दिल में एक झटका-सा लगा, पर मेरा हाथ अब भी सुधा दीदी के भीगे-पन से खेलता रहा।

जैसे ही कॉल कट हुई, सुधा दीदी ने गहरी सांस ली, मानो अचानक से बंधन से मुक्त हुई हो। उनके चेहरे पर राहत साफ दिख रही थी। अगले ही पल उनकी कराहें फिर से हवा में गूंज उठी।

उन्होंने आँखें खोल कर मुझे देखा और काँपती आवाज़ में बोली, “गोलू… अब मत रोकना… मुझे और चाहिए… जोर से करो… आह्ह…” उनकी आवाज़ में अब कोई रोक-टोक नहीं थी, बस खुल कर चाहत और प्यास छलक रही थी। उनकी हर कराह, हर सिसकारी मेरे अंदर और आग भर रही थी, और कार का माहौल फिर से उनके शोर से मदहोश हो गया।

मैं एक पल को और गहराई में जाना चाहता था, लेकिन दिमाग ने चेताया कि रात बहुत हो चुकी है। इतनी देर और रुकना खतरे से खाली नहीं होगा। दिल उनकी प्यास बुझाना चाहता था, मगर समझदारी ने मुझे रोक दिया। मैंने गहरी सांस लेकर अपनी हरकतें थाम ली, और धीरे से उनके कान में कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है… हमें रुकना होगा।” सुधा दीदी ने आँखें खोली, उनके चेहरे पर अधूरा सुख और हल्की थकान झलक रही थी, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा, सिर्फ चुप-चाप मेरी बाहों में सिर रख दिया।

मैंने कार की चाबी घुमाई और धीरे-धीरे गाड़ी स्टार्ट की। इंजन की हल्की गुनगुनाहट के साथ मैं सड़क पर आगे बढ़ा। सुधा दीदी धीरे-धीरे अपने कपड़े पहनने लगी, फ़र्श से उठा कर। उनकी हर हलचल में अभी भी रात की गर्माहट की परछाई थी, लेकिन मैं ध्यान रखते हुए ड्राइव करता रहा। बाहर की ठंडी रात और कार की मंद रोशनी में उनके हर मूवमेंट को महसूस करना अभी भी एक अलग तरह का अहसास था।

उस रात की घटना के बाद, मेरा मन बार-बार उसी पल को दोहराने को बेचैन रहता। मैं चाहता था कि हम वह अधूरी चीज़ पूरी करें, लेकिन जीवन ने फिर से बाधा खड़ी कर दी। दो दिन बाद हमारा परिवार एक रिश्तेदार की शादी में जाने के लिए तैयार हो गया। यह शादी मेरे कज़िन की थी, इसलिए हमें शादी से तीन दिन पहले ही वहाँ जाना पड़ा। इस वजह से हमें अकेले रहने का बिल्कुल भी मौका नहीं मिला, और हमारी बीच की अंतरंगता को आगे बढ़ाना असंभव हो गया।

गाँव पहुँचते ही मैं और सुधा दीदी अपने कज़िनों से मिलने के लिए उत्साहित हो गए। लंबे समय के बाद हम सभी एक साथ थे और यह मिलन बेहद रोमांचक लग रहा था। दुल्हन भी हमारे साथ जुड़ गई और उसने हमें गाँव का दौरा कराया, घर-घर और गलियों की सैर करवाई। हर जगह की हलचल, लोगों का गर्मजोशी से स्वागत और गाँव की छोटी-छोटी बातें हमें नया उत्साह दे रही थी।

रात के समय, खाना खाने के बाद सभी ने तय किया कि चूँकि घर बहुत छोटा है, इसलिए सभी जवान छत पर सोने जाएंगे। वहाँ कुल 11 लोग थे, 5 लड़कियाँ और 6 लड़के। खुली हवा में तारों भरे आकाश के नीचे, सभी ने अपने-अपने बिछौने बिछा लिए और बैठ कर बातें करने लगे। हम सब बहुत दिनों बाद एक-दूसरे से मिल रहे थे, तो‌ बातों का सिलसिला आधी रात तक चलता रहा।

हम सभी लोग एक-दूसरे का मज़ाक़ उड़ाते और जोर-जोर से हंसते। जब सब की आंखों पर नींद आने लगी तो हर कोई धीरे-धीरे अपनी जगह पर लेट गया, और सोने की कोशिश करने लगा। ठंडी हवा और खुले आकाश के नीचे, सभी सगे भाई बहन पास-पास लेट गए ताकि किसी को अजीब महसूस ना हो। बाकी सभी कज़िन भी धीरे-धीरे सोने की स्थिति में आ गए।

मैं भी सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी आँखें खुद-ब-खुद खुली रह गई। सुधा दीदी मेरे बगल में सो रही थी और उनकी मौजूदगी मुझे पूरी तरह से जागृत कर रही थी। उनकी साँसें मेरे चेहरे के पास आती, और उनके शरीर की गर्माहट महसूस होती।

उनका चेहरा बेहद शांत लग रहा था, हल्की मुस्कान उनके होंठों पर खेल रही थी। नींद में उनकी पलकों की हल्की हलचल देखी जा सकती थी। उन्होंने अपना आधा शरीर छोटी चादर में ढक रखा था, केवल चेहरा और छाती दिखाई दे रही थी। उनके साँस लेने के साथ उनकी छाती धीरे-धीरे उठती और गिरती, और हल्के कपड़े के नीचे उनके निप्पल कड़े नजर आ रहे थे। उनकी छाती गोल और कोमल दिख रही थी, साँसों के साथ धीरे-धीरे फूलती और सिकुड़ती, हर हल्की हलचल में नाजुक बनावट और ताप महसूस हो रहा था। कपड़े की हल्की पारदर्शिता और निप्पल की कठोरता उनके आकर्षण को और बढ़ा रही थी।

मैं अपनी इच्छाओं को और रोक ना पाया। मैंने अपना आधा शरीर भी चादर के नीचे ले जाकर उनके पास रखा, और धीरे-धीरे उन्हें छूना शुरू किया। हाथ की हल्की स्पर्श उनके शरीर की नाजुकता और गर्माहट को महसूस कर रहा था। फिर मैंने उनके कपड़े के ऊपर धीरे-धीरे उनकी छाती को दबाया। उनका नरम और गर्म स्पर्श मेरी हथेली में पूरी तरह महसूस हो रहा था, और उनके निप्पल की कठोरता कपड़े से महसूस होते हुए मेरी संवेदनाओं को और तेज कर रही थी। हर हल्की हरकत में उनकी छाती की गोलाई और मुलायमता मेरे लिए एक अलग ही अनुभव ला रही थी।

अचानक, मैं थोड़ा ज़्यादा दबा बैठा और अनजाने में उन्हें जगा दिया। उन्होंने हल्का सा हिलते हुए आवाज़ निकालने की कोशिश की, और मैंने तुरंत अपनी दूसरी हथेली उनके मुँह पर रख दी ताकि कोई आवाज़ ना हो। थोड़ी देर बाद, उन्होंने धीरे से मेरा हाथ हटाया और कान के पास फुसफुसाते हुए कहा, “तुम क्या कर रहे हो? अगर कोई जाग गया तो?”

मैंने उन्हें भरोसा दिलाया, “कोई नहीं जागा, सब सो रहे है। अब बहुत देर हो चुकी है।”
सुधा दीदी ने हल्की सी डर और शर्म महसूस की, लेकिन उनकी आँखों में एक चमक और चेहरे पर मुस्कान आई। फिर उन्होंने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, “ठीक है, तुम कर सकते हो।” उनकी आवाज़ में डर और शरम थी, लेकिन वह इशारा कर रही थी कि उन्होंने अनजाने में मुझे अनुमति दे दी थी।

इसके बाद, उन्होंने अपनी पीठ को हल्का सा उठाया और टी-शर्ट के नीचे ब्रा पूरी तरह से खोल दी। इसके तुरंत बाद, उन्होंने फिर से अपनी जगह ठीक की और सोने का नाटक किया, जैसे यह सब सामान्य और आरामदायक हो।

मैं महसूस कर रहा था कि मेरी उत्तेजना चरम पर थी। सुधा दीदी ने मेरी ओर देख कर हल्की मुस्कान दी, और उनकी आँखों में शरम और उत्सुकता दोनों झलक रहे थे। धीरे-धीरे, मैंने अपना हाथ उनकी टी-शर्ट के नीचे डालते हुए उनकी गर्माहट और मुलायमता को महसूस करना शुरू किया।

उनके खुले स्तनों को हाथ में लेते ही महसूस हुआ कि वे कितने नरम और गर्म है। हर हल्की हरकत में उनकी त्वचा की नाज़ुकता और कोमलता मेरे हाथों में पूरी तरह महसूस हो रही थी। सावधानी से, मैं उन्हें धीरे-धीरे दबाने लगा, ताकि आस-पास सो रहे किसी को भी कोई आवाज़ ना सुनाई दे, लेकिन हर स्पर्श मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था।

सुधा दीदी का चेहरा भी सब कुछ बयां कर रहा था। उनकी आँखें आधी बंद थी, होंठ हल्के से हिल रहे थे, और चेहरे पर शर्म के साथ हल्की मस्ती और उत्सुकता झलक रही थी। कभी-कभी उनकी सांसें तेज़ होती, और हर छोटे-छोटे भाव में यह साफ दिख रहा था कि वह मेरी हरकतों को महसूस कर रही थी, और उसे मज़ा आ रहा है।

हम पूरी तरह चुप रहने की कोशिश कर रहे थे। अगर किसी ने अपनी पोज़िशन बदली या खाँसी की, तो हम तुरंत रुक जाते और जैसे ही सब ठीक लगता, फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ते। हर बार पक्का हो जाने के बाद कि कोई जागा नहीं, हम फिर से अपनी हरकतें शुरू करते। यह सावधानी हमें और रोमांचित कर रही थी, और हर स्पर्श को और भी खास बना रही थी।

मैंने अब उनके स्तनों को जोर से दबाना शुरू किया। वह अपनी सांसें रोकते हुए हल्की-हल्की आवाज़ निकाल रही थी और अपने होंठ दबा कर अपनी आवाज़ को रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। उसके चेहरे पर शर्म और उत्तेजना का मिश्रण साफ़ दिखाई दे रहा था, और हर हल्की हरकत पर वह कुछ पल के लिए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।

मैं खुद समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या करूँ। बस मैं उनका स्पर्श महसूस करना चाहता था। धीरे-धीरे मैंने उनके निपल्स को अपने हाथ में लिया और उन्हें दबाना शुरू किया। हर हल्का दबाव उनकी प्रतिक्रिया को और स्पष्ट बना रहा था, और वह अपनी सांसें रोकते हुए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।

लेकिन जैसे ही मैंने थोड़ा और ज़ोर से दबाया, वह अपनी आवाज़ को रोक नहीं पाई और एक छोटी सी आवाज़ निकल गई। मैंने तुरंत अपना हाथ उसके मुँह पर रखा और कहा, “दीदी, आवाज़ मत निकालो।”
उसने धीरे से कहा, “मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ, धीरे और हल्का करो।” उसकी आवाज़ में हल्की हिचकी और शर्म दोनों थी, और वह चाह रही थी कि मैं थोड़ा ध्यान रखूँ और उसे आराम से महसूस करूँ।

मैंने उसके कहने पर धीरे-धीरे फिर से उनके स्तनों को छूना शुरू किया। हर हल्की दबावट, हर कोमल स्पर्श उसे इतना अच्छा लग रहा था कि वह अपनी सांसें और हल्की फुसफुसाहटों से खुद को रोक नहीं पा रही थी। मैं सावधानी से हर जगह अपना हाथ घुमा रहा था, निपल्स को धीरे-धीरे दबा रहा था, और देख रहा था कि उसके चेहरे पर कैसे शरम और खुशी का मिश्रण खिल उठा।

उसकी प्रतिक्रिया इतनी सजीव और सहज थी कि मुझे हर स्पर्श का असर और भी ज्यादा महसूस हुआ। यह सब इतना धीमा और कोमल था कि वह पूरी तरह लिपट कर मुझसे जुड़ी हुई महसूस कर रही थी और हर हल्की हरकत उसके लिए मोहक बन रही थी।

तभी अचानक किसी ने धीरे से फुसफुसाया, “तुम लोग क्या कर रहे हो?” यह आवाज़ इतनी अचानक आई कि मैं और वह दोनों ठिठक गए।
मैंने तुरंत अपना हाथ उसकी टी-शर्ट से हटा लिया और चारों ओर देखने लगा। मेरी नज़र सामने खड़े इंसान पर पड़ी और मैं चौंक गया। वह दुल्हन थी।

To be continued
Shadiyon cousins ko kai bar dabaya hai. Bahut masti hoti hai aise mahaul me.
 

Premkumar65

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Episode 6

सुधा दीदी और‌ मैं चांदनी में दुल्हन का चेहरा देखने लगे। वह हम दोनों को गुस्से से घूर रही थी। वैसे भी हम दोनों को दुनिया का कोई भी इंसान उस हालत में पकड़ लेता, तो हम पर गुस्सा हो जाता। हम दोनों भाई-बहन थे, और इस तरह की हरकत करना किसी को भी अजीब लगता। पर हम दोनों के लिए यह एक-दूसरे का प्यार था। हमें नहीं पता था कि दुल्हन से क्या कहें, और यही हाल मेरी दीदी का भी था।

दुल्हन ने एक बार फिर हमसे पूछा कि हम क्या कर रहे थे। लेकिन इस बार उसके शब्दों में पहले से कहीं अधिक गुस्सा झलक रहा था।

मैंने बात शुरू करने की कोशिश की, “हम दोनों कुछ भी नहीं कर रहे थे… बस ऐसे ही…”
लेकिन मेरी बात पूरी होने से पहले ही दुल्हन ने हाथ उठा कर मुझे रोक दिया और मेरे पास आकर धीमे से फुसफुसाई, “झूठ मत बोलो। मैंने सब देखा है, तुम दोनों क्या कर रहे थे। यह गलत है… भाई-बहन के बीच ऐसा नहीं होना चाहिए।”

उसकी आवाज़ से पास ही छत पर सोए हुए हमारे कुछ चचेरे भाई-बहन करवट लेने लगे। छत छोटी थी, सब एक-दूसरे के पास ही सोए हुए थे। तभी उनमें से एक ने उनींदी आँखें खोलते हुए पूछा, “क्या हुआ ऊपर? इतनी आवाज़ क्यों आ रही है?”

दुल्हन ने तुरंत मुस्कुराने की कोशिश की और ऊँची आवाज़ में बोली, “कुछ नहीं हुआ, बस हम लोग वैसे ही बातें कर रहे थे। तुम सब सो जाओ।” इतना कह कर वह धीरे-धीरे छत के दूसरे कोने की ओर चली गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

उसके जाते ही धीरे-धीरे सब फिर से सोने लगे। लेकिन मैं और सुधा दीदी वहीं छत पर लेटे हुए थे। हम दोनों की आँखों में नींद नहीं थी। हमें डर लग रहा था। अभी-अभी जो हुआ, अगर किसी और ने देख लिया होता तो क्या होता? और आगे हमसे क्या गलती हो सकती है? इन खयालों के साथ हम चुप-चाप करवट बदलते रहे और एक-दूसरे की तरफ देखने से भी कतराते रहे।

सुबह का उजाला फैला तो सब कुछ सामान्य लगने लगा। पंछियों की आवाज़, चाय की महक और घर में हलचल से माहौल बदल गया था। तभी दुल्हन ने हम दोनों को इशारे से बुलाया और कहा, “मेरे कमरे में आओ, मुझे तुम दोनों से कुछ ज़रूरी बात करनी है।”

हम दोनों धीरे-धीरे उसके कमरे में गए। जैसे ही हम अंदर पहुँचे, दुल्हन ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने हमें इशारा किया कि बिस्तर पर बैठ जाएँ। मैं और सुधा दीदी चुप-चाप जाकर पलंग पर बैठ गए, जबकि दुल्हन हमारे सामने खड़ी रही, जैसे वह कुछ बड़ा कहने वाली हो।

दुल्हन ने गहरी साँस ली और कहना शुरू किया, “जो तुम दोनों कल रात कर रहे थे, वो ठीक नहीं है… ये रिश्ते के ख़िलाफ़ है।”

लेकिन तभी सुधा दीदी ने उसकी बात बीच में काट दी और शांत स्वर में बोली, “हमें पता है हम क्या कर रहे हैं। यह हमारे लिए गलत नहीं है। हम दोनों ने इसे समझ कर ही अपनाया है।”
दुल्हन ने सख़्ती से जवाब दिया, “चाहे तुम दोनों इसे सही मानो या गलत, लेकिन सच यही है कि तुम भाई-बहन हो। और भाई-बहन के बीच ऐसा रिश्ता कभी भी सही नहीं हो सकता।”

सुधा दीदी ने धीरे से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरी आँखों में देख कर मुस्कराई। फिर उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। उनका किस्स नरम, गर्म और धीमा था, जैसे हर स्पर्श में चाहत और रोमांस का मिश्रण हो। मैं पलंग पर बैठा हुआ उनका स्पर्श महसूस कर रहा था। उनकी उंगलियाँ मेरे गालों पर हल्की-हल्की सरसराहट कर रही थी। उनका शरीर मेरे करीब था और उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।

यह किस्स इतनी मधुर और गहराई से भरी थी कि पलंग पर बैठा हुआ मैं पूरी तरह उस पल में खो गया। उनके होंठ मेरे होंठों के साथ जुड़ते और अलग होते रहे, दोनों की सांसें एक साथ मिल रही थी, और हर स्पर्श में एक अजीब रोमांच और नज़दीकी का एहसास था।

तभी दुल्हन ने अचानक बीच में हमारी ओर इशारा किया और कहा, “रुको! तुम दोनों क्या सोच रहे हो? तुम दोनों को समझना होगा कि यह सही नहीं है।” उसने गंभीर आँखों से हमें घूरते हुए सवाल किया, जैसे वह हमारी हरकतों के पीछे का कारण जानना चाहती हो। हमें एक पल के लिए चुप्पी छा गई, और पलंग पर बैठा हुआ मैं उनके शब्दों को महसूस करते हुए सोच में पड़ गया कि भाई बहन का इस तरह का रिश्ता आखिर क्यों गलत है?

सुधा दीदी ने दुल्हन की तरफ देखा और धीरे से कहा, “यह गलत नहीं है। हमें भले ही भाई-बहन बन कर पैदा किया गया हो, लेकिन हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। और प्यार में कोई गलती नहीं होती। चाहे वह सिर्फ़ एक किस्स हो या इसके आगे का रिश्ता, सब में सच्चाई और भावना है।” उसने अपनी बात को मजबूती से कहते हुए मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुराई।

उसकी बातें सुन कर मुझे भी हिम्मत मिली। धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ उसके स्तनों पर रखा और हल्के से दबाने लगा। मेरा इरादा सिर्फ़ यह दिखाना था कि मैं भी उसके प्यार और नज़दीकी को महसूस करना चाहता था। सुधा दीदी ने मेरी ओर देखा और मुस्कान के साथ मेरी प्रतिक्रिया को स्वीकार किया।

दुल्हन सब कुछ देख रही थी, उसके चेहरे पर हैरानी और सदमे की झलक थी। उसकी आँखें बड़ी हो गई थी और उसने बस खड़ी होकर हमारी हरकतों को देखा, जैसे उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब सामने हो रहा है।

सुधा दीदी ने दुल्हन की हैरान आँखों की ओर देखा और धीरे से बोली, “कोई भी इसे समझ नहीं पाएगा, लेकिन हम सिर्फ भाई-बहन नहीं हैं। हम इस रिश्ते के लिए पैदा हुए हैं।” उसने मेरी तरफ़ देखते हुए मुस्कान दी और मेरा हाथ अपने स्तनों पर महसूस करते हुए उसे सहमति दी।

थोड़ी देर बाद दुल्हन कमरे से बाहर चली गई। जैसे ही उसने दरवाज़ा बंद किया, हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखने लगे और हंस पड़े, जैसे हमने कोई बड़ी जीत हासिल कर ली हो। हम जानते थे कि दुल्हन हमारे इस रिश्ते के बारे में किसी को नहीं बता सकती और यह बात उसके लिए भी मुश्किल थी। इसी समझ और सुरक्षा की भावना के बीच हम एक-दूसरे की ओर झुके और फिर से गहरी, रोमांचक किस्स करने लगे, यह जानते हुए कि हमारे प्यार का यह पल सिर्फ़ हमारे लिए है और कोई इसे रोक नहीं सकता।

कल शादी का दिन था, इसलिए आज रात सभी ने मिल कर जश्न मनाना शुरू कर दिया। घर के सामने सभी लोग इकट्ठा हुए और हल्दी की रस्म मना रहे थे। मैं पहले से ही हल्दी इवेंट में पहुँच कर इंतजार कर रहा था। सुधा दीदी कमरे में कपड़े बदल रही थी। थोड़ी देर बाद वह तैयार होकर इवेंट में आई। पीले और नारंगी रंग का हल्दी लहंगा उनके शरीर पर खूबसूरती से फिट था।

लहंगे की हल्की फैब्रिक उनके स्तनों और हिप्स की सुंदर आकार को सहज रूप से उभार रही थी। उनकी कमर स्लिम और सजीव दिख रही थी, और लहंगे के डिज़ाइन की सजावट उनके कंधों और हाथों पर चमक रही थी। हर कदम पर उनका चाल-चलन मोहक लग रहा था, और हल्दी के रंग में उनकी त्वचा पर नरमी और गर्माहट का एहसास हो रहा था। उनके बाल खुले और सजे हुए थे, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखों में चमक, पूरे हल्दी समारोह में उनकी सुंदरता और आकर्षण को बढ़ा रही थी।

जब हम दुल्हन के पास पहुंचे और हल्दी लगाने लगे, तो दुल्हन ने हमारी तरफ गुस्से भरी नजरों से देखा। लेकिन हमने उसे नजरअंदाज किया और हँसते हुए हल्दी की रस्म का मजा लिया। तभी डीजे ने संगीत चालू किया, और हम दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम कर डांस करना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर में हमारे कुछ चचेरे भाई और रिश्तेदार भी डांस में शामिल हो गए। सभी हँसी-खुशी और संगीत के ताल पर झूम रहे थे। डांस करते हुए मेरा हाथ कभी-कभी सुधा दीदी के शरीर के कुछ हिस्सों को छू जाता। कभी यह पूरी तरह से गलती से होता, तो कभी मैं जान-बूझ कर उसे महसूस करने के लिए अपने हाथ की दिशा बदलता। वह मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखती और मुझे रोकने की बजाय अपने आप में उस नज़दीकी का मजा लेती।

थोड़ी देर बाद, सुधा दीदी ने धीरे से कहा, “मुझे थोड़ा अजीब महसूस हो रहा है, मुझे कुछ समय के लिए ब्रेक चाहिए।”
चूंकि घर में बाकी कमरे भरे थे, इसलिए हम दोनों ब्रेक लेने के लिए दुल्हन के कमरे की ओर चले गए। वह थोड़ी हिचकिचाते हुए बोली, “इस समय सिर्फ यही कमरा खाली है, मुझे बस कुछ समय आराम चाहिए।” हम चुप-चाप कमरे में गए।

सुधा दीदी बिस्तर पर लेट गई और आँखें बंद कर लीं। हर सांस के साथ उनके स्तन हल्के से ऊपर-नीचे हो रहे थे, और उनके शरीर की हर हलचल उनके सीने के गोलाई को और भी स्पष्ट कर रही थी। हल्की सी पसीने की बूंद उनके होंठों पर झलक रही थी, जिससे उनकी थकान और गर्मी की झलक दिखाई दे रही थी।

मैं धीरे-धीरे कमरे से बाहर जाने लगा, लेकिन सुधा दीदी ने मुझे रोक दिया। थोड़ी शर्मीली सी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, ” इतना जल्दी क्यों जा रहा है? तुम्हारी दीदी अभी थोड़ा थकी हुई है, क्या तुम कुछ कर सकते हो?”
मैंने चौंक कर पूछा, “क्या ?”

सुधा दीदी ने धीरे से अपने हाथ फैलाए और मुझे अपने पास आने का इशारा किया। उनका शर्मीला चेहरा हल्की मुस्कान से झिलमिला रहा था। मैं उसके पास गया और वह अपने हाथ मेरे कंधों पर रख कर मुझे धीरे से अपने ऊपर लेटने का संकेत देने लगी। मैं उसके शरीर के ऊपर लेट गया, और वह मुस्कराते हुए मेरी पीठ पर अपने हाथ रख कर मुझे अपनी तरफ खींचती रही। उसके स्तन मेरे सीने के साथ हल्के से दब रहे थे, उनकी नरमी और गर्माहट हर सांस के साथ महसूस हो रही थी।

फिर सुधा दीदी ने मेरे होंठों की ओर झुकते हुए मुझे धीरे से चुमना शुरू किया। मैं तुरंत उसे सपोर्ट करने लगा, और हमारे जुड़ते होंठों के बीच उनकी जीभ धीरे-धीरे मेरी जीभ को छूने लगी। हर स्पर्श में गर्माहट और हल्की नमी थी। उनकी जीभ और मेरी जीभ का मिलना हमें और भी करीब ला रहा था। मैं उनके होंठों का स्वाद ले रहा था, जिसमें हल्की-हल्की उनकी लिपस्टिक की मिठास भी शामिल थी।

जैसे-जैसे किस्स गहराती गई, मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ उनके स्तनों की ओर बढ़ाए। उनके कपड़े की फैब्रिक के नीचे उनके स्तनों की नरमी और उभार मेरी हथेली में पूरी तरह महसूस हो रहा था। हर स्पर्श के साथ उनका ताप, हल्की नर्मी और हल्की भार वह महसूस करा रही थी कि जैसे शरीर और दिल एक-दूसरे के साथ पूरी तरह जुड़ गए हों। उनके स्तन मेरे हाथ में सिकुड़ते और फैलते महसूस हो रहे थे, और यह स्पर्श हर पल मुझे और अधिक रोमांचित कर रहा था, जैसे हर सांस और हर दबाव का असर मेरे पूरे शरीर में फैल रहा हो।

थोड़ी देर बाद, दीदी ने धीरे-धीरे किस्स रोक दी और शर्मीली सी आवाज़ में मुझसे पूछा, “क्या मैं… तुम्हारे लंड को चख सकती हूँ?” उसका चेहरा हल्का लाल था और आँखों में झिझक के साथ उत्सुकता झलक रही थी।
मैंने उसे देखा और महसूस किया कि वही शरम, जो दीदी को कुछ साल पहले छोटे शॉर्ट्स पहनने में होती थी और मेरे सामने शर्माती थी, आज पूरी तरह प्यार और चाहत में बदल गई है। अब वह खुले दिल से मेरे सामने आ रही थी और सीधे तौर पर पूछ रही थी कि क्या वह मेरे लंड को चख सकती है और उनका इस तरह कहना मुझे प्यारा लग रहा था।

मैं बिस्तर पर धीरे-धीरे लेट गया और अपने जीन्स उतार दिए। जैसे ही मैं अपनी अंडरवियर खोलने की कोशिश करने लगा, दीदी ने मुझे रोकते हुए हल्की शर्मीली मुस्कान के साथ पूछा, “क्या मैं इसे कर सकती हूँ?” उसकी यह बात सुन कर मैं पलंग पर पूरी तरह आराम से लेट गया और उसके सामने पूरी तरह सहज महसूस करने लगा।

दीदी ने धीरे-धीरे मेरी अंडरवियर उतारी और मेरी ओर देखा। उसका चेहरा लाल था और उसकी आँखों में हल्की शरम और उत्सुकता झलक रही थी। जब उसने मेरा लंड देखा, तो वह मुस्कराई, लेकिन उसकी शर्म अभी भी दिखाई दे रही थी। उसने अपने उंगलियों से धीरे-धीरे उसे छुआ। उस हल्की सी छुअन ने मेरे शरीर में गर्माहट और उत्तेजना फैला दी। हर स्पर्श मेरे लिए नया और रोमांचक था, और मैं उसकी हाथ की नर्मी से पूरी तरह खुश महसूस कर रहा था।

कुछ ही पल बाद, दीदी ने शर्मीली मुस्कान के साथ कहा, “मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।” और उसके लाल होंठ मेरे लंड को धीरे-धीरे चूमने लगे। जब उसके लिपस्टिक भरे होंठ मेरे लंड को छूते, तो मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। उसकी जीभ और होठों की गर्माहट ने मेरे शरीर में रोमांच की लहरें फैला दीं।

फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपने हाथ से मेरे लंड पर कुछ हल्की-हल्की स्ट्रोक्स देना शुरू किया। उसकी नर्म उंगलियों और हाथ के स्पर्श से मेरा लंड पूरी लंबाई में सख्त हो गया। उसकी यह हरकत मेरे लिए बेहद उत्तेजक और सुखद थी, और मैं पूरी तरह उसके स्पर्श और चाहत में खो गया।

कुछ पल बाद, दीदी ने हल्की शर्म के साथ पूछा, “क्या मैं इसे चूस सकती हूँ?”
मैं मुस्कराया और कहा, “तुम्हारा मुंह फूलों से भी बेहतर है, दीदी। तुम चूस सकती हो।” मेरी यह बात सुन कर वह मुस्कुराई और मेरे लंड को धीरे-धीरे अपने होंठों में ले लिया।

दीदी ने अपने होंठों और जीभ का इस्तेमाल करते हुए उसे धीरे-धीरे चूसना शुरू किया। उसकी जीभ के हल्के स्पर्श और गर्माहट ने मेरे पूरे शरीर में रोमांच फैला दिया। जब उसकी जीभ मेरे लंड के चारों ओर घूमती, तो मुझे उसके स्पर्श की गहराई और उसकी चाहत का अहसास हुआ।

धीरे-धीरे, उसने अपनी गति और गहराई बढ़ाई, अपने मुंह को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे मूव करते हुए, ताकि मैं हर स्पर्श महसूस कर सकूँ। बीच-बीच में वह रुकती, मुझे देखती और शर्मीली मुस्कान के साथ पूछती, “मैं अच्छा कर रही हूँ ना?” इस तरह उसकी नजरों और हल्की मुस्कान ने मेरे उत्तेजना को और बढ़ा दिया।

जैसे-जैसे उसने धीरे-धीरे चूसना जारी रखा, मैं महसूस कर सकता था कि मेरा लंड उसके मुंह में और ज्यादा सख्त हो गया। कभी-कभी उसका मुंह पीछे तक तक जाता और उसकी जीभ के पीछे का स्पर्श मेरे लंड के टॉप पर महसूस होता। कभी-कभी वह हल्की गलती से उसके दांत मेरे लंड को छू लेते, जिससे हल्की चौंक और रोमांच पैदा होता। उसकी मासूम लेकिन जान-बूझ कर की गई हर हरकत ने मुझे और उत्तेजित कर दिया।
उस दौरान हमें एहसास हुआ कि कमरे के बाहर कुछ लोग थे। यह सुन कर हमारी धड़कनें तेज हो गई और हल्का डर भी महसूस हुआ। लेकिन दीदी ने अपना मुंह नहीं रोका; वह जैसे अपने काम में पूरी तरह लग गई थी, यह जान कर कि उसका काम सिर्फ़ अपने भाई को खुश करना था।

धीरे-धीरे, दीदी ने अपनी गति बढ़ानी शुरू की। उसका मुंह और हाथ दोनों ही अधिक तेज हो गए। मैं अपनी सीमा तक पहुँच चुका था और तेज़ी से बढ़ती आग के बीच मैंने पूछा, “क्या मैं अब तुम्हारे चेहरे पर कर सकता हूँ?” दीदी ने शर्मीली मुस्कान के साथ इजाजत दे दी।

फिर दीदी बिस्तर पर लेटी और मैं उसके शरीर पर बैठ गया। मेरा लंड धीरे-धीरे उसके होंठों और चेहरे से रगड़ने लगा।उसने हाथों से मुझे कुछ हल्के स्ट्रोक्स देना शुरू किए। उसकी यह हरकत मेरे उत्तेजना को और बढ़ा रही थी। मेरी सीमा के पास पहुंचते ही, मैंने उसे बताया कि मैं अब अपने आप को रोक नहीं सकता और उसके चेहरे पर खत्म करना चाहता हूँ।

जैसे ही मैंने अपनी इच्छा पूरी करना शुरू किया, मेरी पहली बूंद उसके होंठों को छू गई, जिससे वह हल्की सी चौंकी और मुस्कुराई। अगली बूंद उसकी ठोड़ी और गालों पर गिरी, धीरे-धीरे चेहरे को ढकते हुए। फिर मेरी सारी तरलता उसकी आँखों, गालों, होंठों और ठोड़ी पर फैल गई, उसके चेहरे को पूरी तरह ढकते हुए। उसके होंठ, गाल, और माथा मेरी गर्म रवानगी से सने हुए थे, और उसकी त्वचा पर मेरी गर्मी का पूरा एहसास हो रहा था। दीदी ने इसे सहते हुए हल्की मुस्कान दी, और उसका पूरा चेहरा मेरी तरलता से पूरी तरह सना हुआ था।

इसके बाद, मैं धीरे-धीरे उसके शरीर से उठ खड़ा हुआ। दीदी मेरी ओर मुस्कुराती हुई देख रही थी। कुछ पल के लिए, वह मुस्कान के साथ मेरे और देखती रही और फिर उसे याद आया कि कुछ बूंदें अभी भी उसके होंठों पर थी। उसने अपनी उंगलियों की मदद से उन बूंदों को चखा और शरम के साथ कहा, “यह बहुत अच्छा है।”
उसके यह कदम देख कर मैं थोड़ी शर्म महसूस करने लगा। दिल में एक अजीब सी घबराहट हुई क्योंकि मैं समझ रहा था कि यह अब सिर्फ भाई-बहन का रिश्ता नहीं रहा; यह हमारी सीमा से कहीं ज्यादा गहरा हो चुका था।

तभी अचानक कमरे का दरवाजा जोर से खटखटाया गया। हमारी सांसें अटक गई और हम दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। मम्मी की आवाज सुनाई दी, “सुधा! गोलू! तुम लोग कमरे में क्या कर रहे हो?” हमारा दिल धक-धक करने लगा और हम समझ गए कि अब छिपने या जल्दी संभालने का समय आ गया है।

To be continued
Har bar KLPD ho jati hai dono ki.
 

abmg

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Episode 8

सुधा दीदी सुबह की हल्की रोशनी में पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी और मेरे अगले कदम का इंतजार कर रही थी‌। उनके होंठों पर हल्की मुस्कान और चेहरे पर शर्म थी। मैं धीरे-धीरे खुद को भी कपड़ों से आजाद करने लगा। जैसे-जैसे मैंने अपनी शर्ट और फिर बाकी कपड़े उतारने शुरू किए, दीदी की आँखें चौड़ी हो गई। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान और गहरी चमक साफ झलक रही थी। कभी वह नज़रें चुरा लेती, तो कभी हिम्मत कर के मेरी ओर देखने लगती। उनके गालों की लाली और तेज़ हो गई थी, जैसे मेरे हर कपड़े उतारने के साथ उनकी साँसें और भारी हो रही हो।

जब मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए, तो मैं धीरे-धीरे दीदी के और पास आ गया। मैं उनके पैरों के बीच जाकर बैठा। दीदी ने हल्के से अपनी जाँघें खोल दी, ताकि मैं उनके और करीब आ सकूँ। उनकी इस हरकत से मुझे उनके सबसे गहरे हिस्से के पास आराम से जगह मिल गई। उनका बदन गर्म था, और मैं उनके बीच में बैठ कर उनकी साँसों की गर्मी महसूस कर सकता था। दीदी की आँखें शर्म से झुकी हुई थी, लेकिन उनके शरीर की भाषा साफ बता रही थी कि वह इस पल को पूरी तरह स्वीकार कर चुकी थी।

मैंने काँपते हाथों से उनकी जाँघों को सहलाना शुरू किया। उनकी त्वचा गर्म और मुलायम थी, मेरे हाथों के नीचे हल्की-सी नमी और उनकी गर्मी साफ महसूस हो रही थी। जैसे ही मेरी उँगलियाँ उनके और नाजुक हिस्से तक पहुँची, उनकी साँसों की रफ्तार बदलने लगी। हर सांस छोटी और भारी होती जा रही थी। उनके चेहरे पर हल्की घबराहट और चाह दोनों झलक रहे थे, वह लगातार होंठ काट रही थी और कभी आँखें खोल कर मुझे देखतीं तो कभी झट से पलके बंद कर लेती।

कुछ देर उनके उस हिस्से को छूने के बाद मैंने धीरे से अपना हाथ हटा लिया और अपना लंड उनके पास ले आया। जैसे ही मेरी गर्म और सख़्त नोक उनकी नर्मी से टकराई, मेरे पूरे शरीर में एक झटका-सा महसूस हुआ। दीदी की पलकों में हल्की हलचल हुई, उन्होंने आँखें खोली और मेरी तरफ देखा। उनकी नज़रों में डर नहीं था, बस एक गहरी झिझक और अंदर छुपी हुई चाह साफ दिखाई दे रही थी।

मैं धीरे-धीरे और झुक गया ताकि मेरा लंड उनके नाज़ुक हिस्से से लगातार लगा रहे। जैसे ही हल्की रगड़ शुरू हुई, मेरे पूरे शरीर में गर्मी दौड़ने लगी। दीदी का शरीर भी मेरी हर हल्की हरकत पर हलचल दे रहा था। उन्होंने अपने पैरों को और फैला दिया, इतना कि मैं आसानी से उनके और करीब बैठ सकूँ। उनके इस इशारे से मुझे और हिम्मत मिली।

अब मेरा लंड उनके नाजुक हिस्से के ऊपर रगड़ खा रहा था। कभी नोक हल्के से ऊपर की तरफ खिसक जाती, कभी नीचे। इस लगातार छूने से मेरे शरीर की धड़कन तेज़ हो रही थी। दीदी की साँसें तेज़ और भारी थी, उनके सीने का उठना-गिरना साफ दिखाई दे रहा था। उनके होंठ बार-बार काँप रहे थे, कभी वह उन्हें भींच लेती और कभी हल्का खोल देती, जैसे कुछ कहना चाह रही हों। लेकिन आवाज़ बाहर नहीं आ पा रही थी।

उन्होंने चादर को कस कर पकड़ रखा था। उनकी उंगलियाँ इतनी जोर से धंसी हुई थी कि गाठें सफेद पड़ गई थी। उनके चेहरे पर गहरी लाली थी और माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगी थी। जब मेरी नोक बार-बार उनके उसी हिस्से से टकरा रही थी, तो उनके पूरे शरीर में हल्का-सा झटका जाता दिख रहा था। उनकी जाँघें कभी कस जाती तो कभी ढीली हो जाती।

मैं धीरे-धीरे और दबाव से टच कर रहा था ताकि वह महसूस करें कि मैं पूरी तरह उनके पास हूँ। उनकी आँखें अब ज़्यादातर बंद थी, लेकिन कभी-कभी आधी खुलती और मेरी तरफ देखने की कोशिश करती। उनकी साँसें इतनी भारी थी कि वह मेरे चेहरे तक महसूस हो रही थी। मैं उनके बहुत करीब था, मेरा सीना उनके पैरों से लगा हुआ था और मेरा लंड लगातार उनके नाज़ुक हिस्से से सटा हुआ था।

हर सेकंड लंबा और भारी लग रहा था। मैं अपनी जगह पर रुक कर भी उनके बदन की हर हलचल को महसूस कर पा रहा था। दीदी पूरी तरह तनाव और सुख के बीच फंसी हुई लग रही थी। उनके होंठों से धीरे-धीरे कराह जैसी आवाज़ें निकलने लगी, बहुत हल्की लेकिन साफ। यह सब मुझे और करीब खींच रहा था। मैंने और जोर से उन्हें टच नहीं किया, बस लगातार वही टिका रहा ताकि वह आराम से उस एहसास में खो जाएँ।

वह अब धीरे-धीरे अपने पैरों को हिलाने लगीं, जैसे खुद मुझे और पास खींच रही हों। उनका चेहरा पूरी तरह लाल हो गया था, आँखों के कोनों में हल्की नमी दिख रही थी। उनकी साँसों की आवाज़ कमरे में साफ गूँज रही थी। मैं वहीं उनके पास, उनके पैरों के बीच, अपने लंड को उनके उस हिस्से से लगा कर टिका रहा और हर छोटे-से-छोटे बदलाव को महसूस करता रहा।

उसी दौरान दीदी ने आँखें खोली, मेरे चेहरे की तरफ देखा और धीमी लेकिन साफ आवाज़ में बोलीं “अब और मत खेलो, इसे अंदर डालो।”
मैंने जैसे ही अपनी नोक उनके बीच धकेलने की कोशिश की, उन्होंने अचानक मुझे रोक लिया। उनकी उंगलियाँ मेरे सीने पर आकर टिक गई। उन्होंने गहरी सांस लेकर धीरे से कहा – “रुको… अभी मत करो। यह बहुत सूखा और टाइट है। पहले अपने लंड पर कुछ लगा लो, नहीं तो दर्द होगा।” उनकी आवाज़ गंभीर थी लेकिन उसमें चाह साफ झलक रही थी। उनकी बात सुन कर मैंने रुक कर उनकी आँखों में देखा और महसूस किया कि वह तैयार तो थी, लेकिन चाहती थी कि सब आराम से और बिना तकलीफ़ के हो।

मैंने उनकी बात सुनते ही पास रखी टेबल की तरफ देखा। उस टेबल पर दीदी का छोटा-सा मेकअप किट हमेशा रहता था। मैं तुरंत उठ कर वहां गया और धीरे से ढक्कन खोला। अंदर अलग-अलग क्रीम और लोशन की बोतलें रखी थी। मेरी नज़र एक छोटे से क्रीम के डिब्बे पर गई। मैंने उसे उठाया और हाथ में पकड़ कर पलट-पलट कर देखा। उसके अंदर हल्की-सी खुशबू वाली क्रीम थी, जो नरम और चिकनी लग रही थी।

मैंने उस डिब्बे का ढक्कन खोलते ही हल्की मीठी महक महसूस की। क्रीम उँगलियों पर लेते ही ठंडी और मुलायम लगी। मैं डिब्बा हाथ में लेकर वापस दीदी के पास आया। वह अब भी पैरों को हल्का फैला कर लेटी थी, चेहरे पर गहरी लाली और आँखों में इंतजार साफ दिखाई दे रहा था। उनके होंठ कांप रहे थे जैसे वह खुद को रोक रही हों।

मैं उनके पैरों के बीच बैठ गया। दीदी ने थोड़ा कमर उठा कर जगह बनाई ताकि मैं आसानी से उनके और करीब आ सकूँ। मैंने उँगलियों पर थोड़ी-सी क्रीम ली और पहले अपने लंड पर लगाने लगा। क्रीम की ठंडक मेरी गर्म त्वचा पर फैल गई। मैंने धीरे-धीरे नोक से लेकर नीचे तक पूरी लंबाई पर उसे फैलाया। क्रीम लगाते ही मेरा लंड और चमकदार और फिसलन वाला हो गया।

मैंने एक नजर दीदी की तरफ डाली। वह चुप-चाप मुझे देख रही थी, उनकी आँखें आधी बंद थी और चेहरे पर चाह और बेचैनी थी। मैंने एक बार फिर उँगलियों पर थोड़ी क्रीम ली और अब धीरे से उनके नाजुक हिस्से पर लगाना शुरू किया।

जैसे ही मेरी उँगलियाँ उनके उस हिस्से से टकराई, वह हल्का-सा सिहर उठी। उनकी जाँघें अपने आप कस गई और उन्होंने होंठ काट लिए। मैंने धीरे-धीरे, बहुत सावधानी से उनकी त्वचा पर क्रीम फैलाना शुरू किया। नमी और चिकनाहट उनके नाजुक हिस्से में फैलने लगी। मैंने हल्के-हल्के गोलाई में अपनी उँगलियाँ चला कर क्रीम को अंदर तक पहुँचाया। दीदी की साँसें और भारी होती जा रही थी। उनकी छाती जोर-जोर से उठ-गिर रही थी, और उन्होंने चादर को कस कर पकड़ रखा था।

उनके चेहरे पर अब हल्की-हल्की कराह की आवाजें दिखने लगी। हर बार जब मेरी उँगलियाँ उनकी नाज़ुक जगह को छूती, वह हल्की-सी काँप जातीं। मैंने ध्यान से उनके पूरे हिस्से पर क्रीम फैलाई ताकि कोई जगह सूखी ना रहे। धीरे-धीरे उनकी जाँघें थोड़ी ढीली होने लगी और उनका शरीर अब पहले की तरह सख्त नहीं लग रहा था।

अब वह और ज्यादा आराम से लेट गई, आँखें बंद कर ली और होंठों से हल्की-हल्की आवाजें निकलने लगी। उनकी सांसें मेरे कानों तक साफ पहुँच रही थी। मैंने आखिरी बार अपना लंड देखा, क्रीम से पूरी तरह फिसलन भरा और तैयार। फिर मैंने उनकी तरफ झुक कर उनके गाल को हल्के से चूमा और उनके पैरों के बीच और मजबूती से बैठ गया।

काफी देर इंतजार और तैयारी के बाद आखिरकार वह पल आने वाला था, जब मैं सच में अपनी दीदी के साथ सेक्स करने के लिए तैयार हो चुका था। मैं उनके और करीब झुका ही था कि अचानक दरवाजे पर किसी ने जोर से दस्तक दी। कमरे का सारा माहौल एक-दम से बदल गया। दीदी घबरा कर तुरंत उठने की कोशिश करने लगी और मेरी धड़कनें तेज हो गई।

दीदी ने जल्दी से हल्की आवाज़ में पूछा, “कौन है?”
बाहर से भारी और परिचित आवाज़ आई—”मैं हूँ, पापा… दरवाज़ा खोलो, तुमसे बात करनी है।”
यह सुनते ही दीदी का चेहरा और भी सफेद पड़ गया और उन्होंने मेरी तरफ डर और बेचैनी से देखा। फिर उन्होंने धीरे से जवाब दिया, “पापा… मैं अभी ठीक से कपड़े पहने हुए नहीं हूँ। थोड़ी देर में ड्रॉइंग रूम में आकर आपसे मिलती हूँ।”

पापा चुप हो गए और बाहर से कोई आवाज़ नहीं आई। दीदी ने गहरी सांस ली, फिर जल्दी से चादर हटाई और पास रखे टिश्यू से अपने नाजुक हिस्से से क्रीम को साफ करने लगी। उन्होंने बड़ी सावधानी से पूरा हिस्सा पोंछा, ताकि कोई निशान ना रह जाए। इसके बाद वह तुरंत अपनी अलमारी की तरफ गई और कपड़े निकाल कर पहनने लगी।

मैं बस वहीं बैठा उन्हें देखता रहा, मन ही मन चाहता रहा कि हर पल उन्हें ऐसे ही देखता रहूँ। जब उन्होंने कपड़े पहन लिए, तो मेरी तरफ मुड़ी। चेहरे पर हल्की मुस्कान लाकर उन्होंने मेरे पास आकर मुझे एक आखिरी बार होंठों पर चूमा। वह किस्स छोटा था लेकिन उसके अंदर गहरी मोहब्बत और वादा छिपा हुआ था। फिर बिना कुछ कहे वह धीरे से दरवाज़ा खोल कर बाहर चली गई और मैं अकेला कमरे में रह गया।

मैं दीदी के बाहर जाने के बाद कुछ देर वहीं बैठा रह गया। उनकी खुशबू और उनके होंठों का अहसास अब भी मेरे साथ था। लेकिन मुझे भी जल्दी होश आया कि अगर पापा या माँ को शक हुआ तो बड़ी मुसीबत हो सकती थी। मैंने जल्दी-जल्दी चादर हटाई और उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा। शर्ट और पैंट पहनते हुए मेरे दिमाग में बस दीदी की ही तस्वीरें घूम रही थी—कैसे उन्होंने मुझे आखिरी बार चूमा और फिर बाहर चली गई।

कपड़े पहनने के बाद मैंने आईने में खुद को देखा। चेहरे पर अब भी लालिमा थी और आँखों में चाह साफ झलक रही थी। मैं सोच रहा था कि काश मैं भी उनके पीछे बाहर जाता, लेकिन फिर ध्यान आया कि मैं अक्सर देर तक सोया रहता हूँ। अगर अचानक अभी बाहर गया तो पापा-मम्मी को शक हो सकता है कि मैं दीदी के कमरे में क्यों था।

इसी सोच में मैंने धीरे से दरवाज़ा खोला और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। मेरे कदम हल्के थे ताकि कोई आवाज़ ना हो। कमरे में पहुँचकर मैंने दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर पर गिर गया। दिल अब भी तेजी से धड़क रहा था और दिमाग में वही लम्हे बार-बार दोहराए जा रहे थे। मैं बस यही चाहता था कि यह सब कभी खत्म न हो और हर रोज़ मुझे ऐसे ही दीदी के साथ पल बिताने को मिले।

करीब तीन घंटे बाद, सुबह की हल्की रोशनी कमरे में फैल रही थी। मैं उठा और सोचने लगा कि आखिर पापा सुबह-सुबह दीदी से क्या बात करना चाहते थे। दीदी अभी ड्रॉइंग रूम में हैं, लेकिन मैं कुछ अंदाजा लगाना चाहता था। मैंने कपड़े पहन लिए और धीरे-धीरे सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, ताकि घर में किसी को भी मेरी आवाज़ सुनाई ना दे। मेरा मन बेचैन था, और हर कदम पर मैं सोच रहा था कि क्या सच में कुछ गंभीर बात हो सकती थी, या बस मामूली कोई चर्चा।

नीचे पहुँचते ही मैंने देखा कि घर में सुबह की हल्की हलचल हो रही थी। पापा अपने ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे, कपड़े पहन रहे थे और जल्दी में थे। माँ रसोई में थी, चाय बना रही थी और खाने के लिए कुछ तैयार कर रही थी। दीदी अभी बाथरूम में थी, शायद जल्दी से तैयार हो रही थी। घर में सब कुछ आम लग रहा था, लेकिन मैं यह जानने के लिए और भी चौकस हो गया कि पापा ने सुबह-सुबह दीदी को क्यों बुलाया था।

मैंने धीरे-धीरे डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठ गया और चाय का कप उठाया। चाय पीते-पीते मैं अपनी सोच में खो गया, और मन ही मन योजना बना रहा था कि आगे क्या करना था। पापा जल्दी में तैयार होकर घर से बाहर निकल गए और माँ रसोई में ही काम कर रही थी। अब मेरे लिए मौका था कि मैं देखूं कि दीदी बाथरूम में क्या कर रही थी। मैं चुप-चाप बाथरूम के पास गया, हर कदम बहुत आराम से रखा ताकि कोई आवाज़ ना हो और किसी का ध्यान मुझ पर ना जाए।

बाथरूम के बाहर खड़े होकर मैंने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी। भीतर से दीदी की आवाज़ आई, “कौन है?”
मैंने हल्की हिचकिचाहट के साथ कहा, “दीदी, यह मैं हूँ, गोलू।”
कुछ पल चुप्पी रही, फिर धीरे से कुंडी खुली। दीदी ने दरवाज़ा खोला और मुझे अंदर आने का इशारा किया। मैंने आस-पास देखा और फिर चुप-चाप अंदर चला गया।

अंदर भाप और पानी की हल्की-हल्की बूंदों की खुशबू थी। शॉवर चल रहा था और उससे उठती नमी पूरे बाथरूम में फैली हुई थी। दीदी के गीले बाल उनकी पीठ और गालों से चिपके हुए थे, और उनके चेहरे पर चमकती बूंदें किसी मोती की तरह दमक रही थी। उनकी आँखों में हल्की सी हैरानी और मुस्कान थी, जैसे अचानक मुझे देख कर वो थोड़ा चौंक भी गई और सहज भी रही।

शॉवर की धार से उनका पूरा बदन ढका हुआ था, पानी की लहरें उनकी त्वचा पर फिसलती हुई बह रही थी। उस पल में उनकी भीगी हुई सूरत और खुशी भरा अंदाज़ इतना खास लग रहा था कि मानो समय ठहर गया हो। मैंने चुप-चाप सांस रोक कर उन्हें देखा, और माहौल में सिर्फ पानी की गिरती आवाज़ और हमारी चुप्पी गूंज रही थी।

दीदी ने धीरे से कहा, “गोलू… तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उनकी आवाज़ में हैरानी थी।
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मैं बस उनके करीब गया। उस पल में हमारे बीच की दूरी बहुत छोटी रह गई थी। उनके होंठों पर हल्की थरथराहट थी, और मेरी सांसें उनके चेहरे को छू रही थी। धीरे-धीरे मैंने उनका हाथ थाम लिया और बिना कुछ कहे उन्हें अपने पास खींच लिया। हमारी नज़रों ने जैसे ही एक-दूसरे को पकड़ा, हर सवाल और हर जवाब उसी खामोशी में छिप गया।

फिर मैंने झुक कर उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। यह पल बहुत कोमल था—ना तो जल्दी, ना ही कोई दबाव। बस एक सहज अहसास, जैसे सारी दुनिया थम गई हो और हम दोनों उस एक छोटे से पल में खो गए हों।
दीदी पहले तो थोड़ी चौंकीं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी साँसें भी मेरे साथ मिल गई। भाप और पानी की महक के बीच यह खामोश लम्हा हमारे बीच एक अनोखी डोर बाँध गया।

हम दोनों बिल्कुल करीब खड़े थे। मैंने धीरे से उसके होंठों को छुआ, जैसे हल्का सा टेस्ट ले रहा हूँ। शुरुआत में बस हल्की सी टच थी, लेकिन उस छोटे से पल में भी मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। उसकी साँसें मेरे गाल पर गर्माहट छोड़ रही थी और होंठों पर उसका हल्का सा कांपना मुझे साफ़ महसूस हो रहा था।

कुछ सेकंड के लिए वो रुकी, फिर आँखें बंद करके और पास आ गई। इस बार हमारे होंठ पूरी तरह से मिले। गीले और मुलायम होंठ जब आपस में दबे, तो एहसास और गहरा हो गया। मेरा दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था, और वो भी बिना किसी झिझक के उसी पल में खो गई थी।

हम बार-बार अलग होते और फिर धीरे से एक-दूसरे को चूमते। हर बार का स्पर्श पिछले से ज्यादा साफ़ और गहरा था। अब उसके चेहरे पर कोई हिचकिचाहट नहीं थी, बस एक सीधी-सी मुस्कान और उसकी बंद आँखें, जैसे वो पूरी तरह से इस पल में डूबी हो।

शॉवर का पानी हमारे चेहरों पर गिर रहा था, बूंदें होंठों पर भी महसूस हो रही थी। लेकिन इन सबके बीच हमारी किस साफ़, गहरी और सच्ची लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया में सिर्फ हम दोनों रह गए हों।
मैंने उसे उसी दौरान अपनी बाँहों में कस कर थाम लिया। पानी की धार के बीच उसका भीगा हुआ बदन मेरे सीने से चिपक गया। वो भी हल्के से मेरे कंधे पर झुक गई, और हमारी किस्स और गहरी हो गई। उसका चेहरा मेरे हाथों के बीच आराम से था और मैं उसे जितना पास कर सकता था, उतना अपने पास खींच रहा था। शॉवर का पानी हमारे चेहरों पर गिर रहा था, बूंदें होंठों पर भी महसूस हो रही थी। लेकिन इन सबके बीच हमारी किस्स और हमारी गहरी झप्पी, दोनों साथ-साथ चल रही थी।

फिर अचानक मैंने हल्के से उसके होंठों से दूरी बनाई। उसने आँखें खोली और मुझे सवाल भरी नज़रों से देखा। मैंने धीरे से पूछा, “वैसे… सुबह पापा ने तुम्हें क्यों बुलाया था?”
ये सुन कर उसने खुद को मेरी बाहों से अलग किया और तुरंत शॉवर बंद कर दिया। कुछ पल के लिए चुप खड़ी रही, फिर धीमी आवाज़ में बोली, “उस दिन शादी में पापा की मुलाकात एक फैमिली से हुई थी। उन्हें मैं अच्छी लगी… और आज वो फैमिली मुझे देखने हमारे घर आने वाली है। वह रिश्ता देखने के लिए आ रहे हैं।”
मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। अभी कुछ सेकंड पहले हम दोनों किस में खोए हुए थे और अब अचानक शादी की बात सामने आ गई। मैं उलझन में उसकी तरफ देखने लगा, फिर धीरे से बोला, “ये सब तो बस एक फॉर्मेलिटी है ना? तुम उस लड़के से शादी करने वाली तो नहीं हो… है ना?”
वो थोड़ी देर के लिए चुप रही, फिर गंभीर होते हुए बोली, “अगर मम्मी-पापा को वो फैमिली पसंद है, तो मैं मना नहीं कर सकती।”
फिर उसने तौलिये में अपने आप को लपेट लिया। भीगे बाल उसके कंधों पर गिर रहे थे और उसके चेहरे पर अभी-अभी का शावर का असर साफ दिख रहा था। तौलिये की हल्की पट्टी उसके बदन पर ढकी हुई थी, लेकिन उसकी छाती का हल्का आकार और सीने के बीच की रेखा थोड़ी दिखाई दे रही थी। उसकी आँखों में खेल और थोड़ी मस्ती थी, और हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर अब भी थी। शावर के बाद उसकी ताजगी और नमी उसके पूरे अंदाज़ में झलक रही थी, और तौलिये के पीछे से उसके हल्के झुकाव और कंधों की हरकतें उसे और भी ध्यान देने लायक बना रही थी
कुछ पल बाद वह बाथरूम से बाहर निकली। मैं चुप-चाप खड़ा रह कर उसे निकलते देख रहा था। उसकी चाल में हल्की लचक थी, और तौलिये के पीछे से उसकी पीठ और पीछे का हल्का आकार दिखाई दे रहा था। उसके पीछे का हिस्सा तौलिये में ढका हुआ था, लेकिन हर हल्की झुकाव और कदम की गति के साथ उसकी पीठ की रेखा और पिछले हिस्से की हल्की गति भी झलक रही थी। वह धीरे-धीरे कमरे की तरफ बढ़ गई, और मैं बस वहीं खड़ा रह गया, उसकी चाल, मूड और हर हल्की हरकत को ध्यान से देखते हुए।

To be continued
 

Enjoywuth

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Bahut mast update ..par acchanak sudha itni badal kyun gayi yeh abhi tak samaj nahi qa raha...lagta hai woh ladke ko mana karne ke alli hai
 
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