rahul king
New Member
- 94
- 180
- 33
Bhut shandaar update.... बुखार का बहाना करके मम्मी से बच गए....Episode 7
सुधा दीदी के चेहरे पर अब भी सफेद पानी चिपका हुआ था। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि आगे क्या करना चाहिए। उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था, जैसे किसी मासूम को अचानक किसी अजनबी हालात में डाल दिया गया हो। तभी एक बार फिर दरवाज़े पर माँ की दस्तक हुई। मैं घबरा कर तुरंत अपनी पैंट पहनने लगा और सुधा दीदी हड़बड़ा कर अपने चेहरे से पानी पोंछने लगी।
लेकिन मुझे लगा कि यह ज्यादा नहीं था। मैंने जेब से अपना रूमाल निकाला, उसे हल्के असली पानी से भिगोया, और धीमे स्वर में उससे कहा, “तुम बस बिस्तर पर लेट जाओ।” दीदी कंफ्यूजन में थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैं ऐसा क्यों कह रहा था, लेकिन वह धीरे-धीरे बिस्तर पर लेट गई।
मैंने उसके माथे पर गीला रूमाल रख दिया, जैसे कि उसे बुखार हो और मैं उसकी देखभाल कर रहा हूँ। दीदी की साँसें अब भी तेज़ थी, चेहरे पर घबराहट और डर की झलक बाकी थी। मैं उसके पास बैठ कर उसे शांत करने की कोशिश करने लगा। कमरे का माहौल भारी था, बाहर माँ की आवाज़ अब भी गूंज रही थी, लेकिन भीतर हम दोनों के बीच एक खामोश समझौता बन रहा था।
कुछ पल बाद मैंने दरवाज़ा खोला। माँ ने तुरंत पूछा, “इतनी देर से दरवाज़ा बंद करके क्या कर रहे हो?”
मैं झिझकते हुए बोला “माँ, सुधा दीदी को अचानक बुखार जैसा लग रहा है।”
माँ ने हैरानी से मेरी ओर देखा, फिर बोली, “अभी आधा घंटा पहले तो तुम दोनों सब के सामने नाच रहे थे, और अब उसे बुखार कैसे हो गया?” माँ ने आगे बढ़ कर सुधा दीदी के गाल छुए, मानो यकीन करना चाहती हों कि सचमुच उसे तेज़ बुखार था।
माँ की उँगलियों दीदी के गालों को छूते ही उन्हें गालों पर हल्की गर्मी महसूस हुई। मैं भीतर ही भीतर हैरान था कि यह कैसे संभव हुआ। शायद कुछ देर पहले जो हुआ था, जब उसने मुझे छुआ था और मैंने उसके सीने को दबाया था, उसी वजह से दीदी के शरीर में यह गर्माहट बनी होगी।
पर सही वज़ह चाहे जो भी रहा हो, मेरे लिए राहत की बात यह थी कि माँ को अब कोई शक नहीं हुआ। मैंने मन ही मन खुद को शुक्रिया कहा कि मैंने दीदी पूरी तरह नंगी नहीं किया, सिर्फ उतना ही महसूस किया जितना ज़रूरी लगा।
माँ ने आखिरकार राहत की साँस ली और बोली, “ठीक है, तुम बाहर जाओ। मैं सुधा के पास रह लूँगी।” उनके यह कहते ही मेरे दिल से बोझ हट गया। मैं तुरंत कमरे से बाहर निकला और गहरी साँस लेते हुए राहत महसूस करने लगा कि अब मामला संभल गया था।
अगला दिन शादी का था। पूरे घर में रौनक और तैयारियों की गहमागहमी थी। दुल्हन ने एक बार हम दोनों को अकेले में रोक कर साफ शब्दों में कहा था कि जो कुछ भी हम कर रहे थे, वह गलत था, क्योंकि हम भाई-बहन थे। लेकिन उस पल हमने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। शादी की सारी रस्में पूरी होने के बाद सबने मिल कर खाना खाया। मैं और सुधा दीदी भी परिवार के साथ बैठे थे, मानो सब कुछ आम हो। खाना होने पर हम सब लोग घर लौट आए।
शाम तक हम घर पहुँच गए। घर पहुँचते ही सबसे पहले हम दोनों अपने-अपने कमरे में गए और शादी के कपड़े बदल कर हल्के कपड़े पहन लिए। कपड़े बदलने के बाद हम आँगन की ओर आ गए, जो ड्रॉइंग रूम के सामने था। ड्रॉइंग रूम के भीतर माँ-पापा आराम से बैठे बातें कर रहे थे, जबकि मैं और सुधा दीदी आँगन में रखी लकड़ी की सोफ़ा कुर्सियों पर बैठ गए।
हमारी कुर्सियाँ इस तरह रखी थी कि पीछे से देखने पर सिर्फ हमारे सिर ही नज़र आते थे और बाक़ी शरीर पीछे छिपा रहता था। आँगन चारों ओर से ढका हुआ था, ऊँची दीवारों और छज्जों ने इसे पूरी तरह बंद जैसा बना दिया था। बाहर से कोई भी यह नहीं देख सकता था कि भीतर क्या हो रहा था, और अंदर बैठे हुए हमें भी बाहर का कोई नज़ारा नहीं दिखता था।
धीरे-धीरे सुधा दीदी मेरे पास में आकर बैठ गई। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था, जिसके दुपट्टे का सिरा ढीला होकर नीचे लटक गया था। उसके गले की कटिंग इतनी खुली थी कि उसके सीने की गहराई साफ़ झलक रही थी। मेरे सामने उसकी उभरी हुई छातियाँ कपड़े से दब कर और उभर आई थी। कपड़े के भीतर से झाँकती गुलाबी ब्रा की झलक मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी। उसका गला झुकते ही उसकी गहरी क्लीवेज और स्तनों की आधी झलक मेरी आँखों के सामने थी, जिसे देख मैं ही सांस रोक कर उसे निहारने लगा।
वह समझ गई कि मेरी नज़रें उसके सीने पर अटकी हुई हैं। बिना कुछ कहे उसने अपना दुपट्टा उतार कर एक ओर रख दिया, मानो मुझे और खुल कर देखने की इजाज़त दे रही हो। उसके बाद हम दोनों ने आपस में बातें शुरू की। बातें उसी दुल्हन की, जिसने कल हमें रोकने की कोशिश की थी। सुधा दीदी हल्की मुस्कान के साथ बोली, “कल वो हमें कह रही थी कि हम भाई-बहन होकर ये सब क्यों कर रहे हैं। लेकिन आज देखो, खुद शादी करके किसी अजनबी आदमी के साथ बिस्तर पर जाने को तैयार है।”
मैंने उसकी बात पकड़ते हुए हँस कर कहा, “हाँ दीदी, लोग हमें पापी समझते हैं, लेकिन असली मज़े तो वही ले रही होगी आज सुहागरात में… किसी के नीचे कराह रही होगी और हमसे कहती थी रुक जाओ।”
दीदी ने और भी गंदे अंदाज़ में कहा, “हाँ, उसका तो अब हर रात कोई और चूत मारने वाला है। और हमें रोकती थी कि हम ग़लत कर रहे हैं।” उसने मेरे कान में झुक कर धीरे से फुसफुसाया, “सच्चाई ये है कि मैं तूमसे प्यार करती हूं और कोई मुझे छू नहीं सकता।”
मैं उसकी बात सुन कर और गर्म हो गया। पिछे ड्राइंग रूम में मम्मी पापा अब भी अपनी ही बातों में लगे थे, उन्हें हमारी तरफ़ देखने की फुर्सत ही नहीं थी। उनकी तरफ़ से बस पीछे के सिर ही नज़र आ रहे थे। मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ बढ़ाया और सुधा दीदी के कपड़ों के ऊपर से ही उनके नाजुक हिस्से पर रख दिया। कपड़े के नीचे की गर्मी और नरमाई मेरी हथेली में उतर आई। उँगलियों के नीचे का स्पर्श ऐसा था जैसे कोई राज़ खुल रहा हो।
सुधा दीदी हल्के से सिहर उठी, उसके चेहरे पर डर और उत्तेजना दोनों साफ दिख रहे थे। उसकी साँसें तेज़ होने लगी, होंठ काँपने लगे, पर उसने हाथ हटाया नहीं। डर के बावजूद उसकी आँखों में चमक थी, मानो उसे भी इस छुपी हुई हरकत का मज़ा आ रहा हो।
वह हल्की शरारती मुस्कान के साथ बोली, “ऐसा तो कोई भी कर सकता है… अगर सच में मुझसे प्यार करता है तो कपड़ों के नीचे हाथ डाल कर दिखा।” उसकी चुनौती सुन कर मैं मुस्कुरा दिया। धीरे से मैंने उसके कपड़ों की डोरी ढीली की ताकि हाथ अंदर जा सके। फिर मेरी हथेली उसके कपड़ों के भीतर पहुँची। पहले मेरी उँगलियाँ उसकी मुलायम पैंटी से टकराई। उस पतले कपड़े के आर-पार भी उसकी गरमी महसूस हो रही थी।
मैंने और आगे बढ़ कर पैंटी के भीतर हाथ सरका दिया। जैसे ही मेरी उँगलियाँ उसके असली नर्म हिस्से को छूई, मेरी पूरी हथेली में बिजली-सी दौड़ गई। उसकी गरमी और गीलापन मेरे स्पर्श को और गहरा बना रहे थे। सुधा दीदी ने आँखें कस कर बंद कर ली, डर और आनंद एक साथ उसकी साँसों में घुल गए।
अब मैंने धीरे से अपनी दो उँगलियाँ उसके भीतर सरकाने की कोशिश की। जगह तंग थी, उसे तकलीफ़ भी हो रही थी, लेकिन एक हल्की सी कराह उसके होंठों से निकल गई। मेरी उँगलियाँ धीरे-धीरे अंदर घुस गई। भीतर की गर्मी और नमी का एहसास मेरी उँगलियों को पिघला देने जैसा था। उसका शरीर हल्के-हल्के कांपने लगा, डर और उत्तेजना की मिली-जुली लहरें उसे बहा ले जा रही थी। उसके चेहरे पर लालिमा और होंठों पर अनजानी सिहरन थी।
वह हल्की मुस्कान के साथ बोली, “बस… अब बहुत हुआ, अगर किसी ने हमें देख लिया तो?” उसकी आँखों में डर और शरारत दोनों झलक रहे थे। मैंने उसकी बात सुन कर धीरे से अपनी उँगलियाँ वापस खींच ली। जब बाहर निकाली तो वे पूरी तरह गीली थी। उस नमी का एहसास मेरी उँगलियों पर चिपका हुआ था।
मैंने बिना कुछ कहे वे उँगलियाँ उसके होंठों के पास ले गया। सुधा दीदी ने मेरी तरफ़ देखा, हल्की मुस्कान दी और फिर अपनी कोमल होंठों से मेरी उँगलियों को पकड़ लिया। उसने उन्हें धीरे-धीरे भीतर खींचा और अपनी जीभ से लपेटते हुए चूसने लगी। उसके होंठों की नरमी मेरी त्वचा को कसकर थामे हुए थी और उसकी गर्म, गीली जीभ मेरी उँगलियों के हर कोने को सहला रही थी। वह बार-बार जीभ फेरते हुए और हल्के दबाव के साथ चूसते हुए मुझे अपने अंदर तक महसूस करा रही थी।
हर बार उसकी चूसने की आवाज़ मेरे कानों में उतर कर दिल की धड़कन और तेज़ कर देती। वह अपनी आँखों से मुझे घूरती रही, मानो चाह रही हो कि मैं उसकी हर हरकत को महसूस करूँ। उसकी साँसों की गर्मी, होंठों की कसी हुई पकड़ और जीभ की लहर ने मेरे भीतर ऐसी सनसनी पैदा की जिसे शब्दों में बयाँ करना मुश्किल था।
उस रात मैं खुद पर काबू नहीं रख पा रहा था। बार-बार दिल कर रहा था कि उसके कमरे में चला जाऊँ, लेकिन हर बार कुछ ना कुछ हो जाता। कभी कोई पानी पीने के लिए उठ जाता, कभी कोई खाँसने लगता, तो कभी पापा देर रात तक क्रिकेट देखते रहते। ये सब मुझे रोकते रहे और मेरी बेचैनी बढ़ाते रहे। आधी रात के बाद थककर नींद ने मुझे घेर लिया।
सुबह लगभग छह बजे मेरी आँख खुली। उस वक्त सब सोए हुए थे और घर बिल्कुल शांत था। मैं सुबह की कड़ी उत्तेजना के साथ उठा, और उस पल सब कुछ मुझे सही और परफ़ेक्ट लग रहा था।
मैं चुप-चाप उठ कर उसके कमरे के सामने पहुँचा और धीरे-धीरे दरवाज़े पर दस्तक देने लगा। कुछ देर तक कोई हलचल नहीं हुई, फिर हल्की आहट के साथ दरवाज़ा खुला। सुधा दीदी नींद से भरी आँखों और शरमाई मुस्कान के साथ सामने खड़ी थी। मैं तेज़ी से भीतर घुसा और दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने हौले से हँसते हुए कहा, “मुझे लगा तुम बहुत पहले ही आ जाओगे…” उसकी शर्मीली मुस्कान और यह बता रही थी कि वह भी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। बस अचानक उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सुबह की ठंडी हवा और उसका गरम मुलायम स्पर्श में उसके होंठ बेहद कोमल और ताज़गी से भरे थे। उनमें हल्की नमी थी, जो मेरे होंठों से टकराते ही पूरे शरीर में सिहरन भर गई। उसकी साँसें अब तेज़ हो चुकी थी और उसके होंठों की हर हलचल मेरे अंदर की आग को और भड़काती जा रही थी।
वह अचानक मेरे होंठों से अलग हुई और हल्की शर्माते हुए मुस्कुराई। फिर धीमे स्वर में बोली, “सुनो… कहीं मेरी साँस से बदबू तो नहीं आ रही? अभी सुबह है, मैंने ब्रश भी नहीं किया…” उसकी आँखों में थोड़ी झिझक और घबराहट झलक रही थी।
मैंने उसकी बात सुनते ही उसके चेहरे को अपने हाथों में पकड़ लिया और मुस्करा कर कहा, “तुम्हारी साँस से नहीं, तुम्हारे होंठों से नशा आ रहा है।” यह सुनते ही वह और भी शरमा गई, उसके गालों पर हल्की लालिमा उतर आई।
मैंने बिना रुके फिर से उसके होंठों को चूम लिया। उसकी झिझक धीरे-धीरे पिघलने लगी और वह पूरी तरह मेरे स्पर्श में खो गई। उसके होंठ अभी भी ताज़गी और कोमलता से भरे हुए थे, मानो सुबह की ओस में भीगी पंखुड़ियाँ हों। उसकी साँसों की गर्माहट और हल्की कंपकंपी मेरे भीतर और गहराई तक उतरती चली गई।
मैंने बिना रुके फिर से उसके होंठों को चूम लिया। इस बार किस्स और भी गहरा और धीमा था। उसके होंठ मेरे होंठों पर धीरे-धीरे सरकते गए, और हमारी साँसें एक-दूसरे में घुलने लगी। कुछ ही पल में हमारी लार आपस में मिलने लगी, उसकी नमी मेरे मुँह में उतरने लगी।
धीरे-धीरे हमारी जीभें भी एक-दूसरे को छूने लगी। पहले हल्का-सा स्पर्श, फिर गहराई में डूबता हुआ लिपटाव। उसकी जीभ का स्वाद और उसकी गर्माहट मेरी जीभ को लपेटे जा रही थी। हर हलकी हरकत हमें और ज़्यादा पागल बना रही थी।
मैंने उसे चूमते हुए अपने हाथों से कस कर थाम लिया और कुछ क़दम चलते हुए उसे बिस्तर तक ले आया। फिर बिना होंठ अलग किए, उसे धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। उसके सीने की धड़कनें मेरी छाती से टकरा रही थी, और हमारे होंठ अब भी प्यासेपन से एक-दूसरे में डूबे हुए थे।
मेरे हाथ धीरे-धीरे उसके गालों को सहलाने लगे, कभी हल्की गुदगुदी-सी छेड़ते तो कभी कस कर पकड़ लेते। उसके गालों की गर्माहट मेरी उंगलियों को सिहरन से भर रही थी। वहीं, उसकी उंगलियाँ मेरे बालों में फँस कर खेल रही थी। कभी कस कर पकड़ लेती, तो कभी प्यार से उन्हें सहलाने लगती। उस स्पर्श से मेरे पूरे जिस्म में एक और लहर दौड़ गई।
वह मेरे होंठों पर पूरी प्यास से झुकी हुई थी। हमारे बीच की दूरी मानो ख़त्म हो चुकी थी। अचानक उसने और गहराई से मुझे थाम लिया और हमारी किसिंग और भी तेज़ और गहरी हो गई। उसकी साँसें मेरे मुँह के भीतर उतर रही थी और मेरी साँसें उसकी। हमारे होंठ आपस में ऐसे टकरा रहे थे जैसे दो प्यासे एक ही प्याले से पानी पी रहे हों।
मैं उसके होंठों को इतना कस कर चूस रहा था कि कभी-कभी मेरे दाँत उसके नर्म होंठों को हल्का-सा काट लेते। हर बार जब मैं उसे काटता, वह हल्की सी सिसकारी लेकर और ज़्यादा पागलपन से मुझे थाम लेती। उसकी उँगलियाँ मेरे बालों को कसकर पकड़ लेती, मुझे और करीब खींच लेती।
मेरी जीभ उसकी जीभ से टकराती, लिपटती और गहराई में उतर जाती। उसके मुँह का स्वाद मुझे और पागल बना रहा था। जब मैं उसके होंठों को हल्का-हल्का काटता, तो उसकी कराह मेरे मुँह में ही दब जाती। उसके होंठों की गर्माहट और भी बढ़ रही थी, और मैं हर पल और गहराई में खोता जा रहा था।
अचानक मैंने रुक कर देखा तो उसके होंठों पर हल्का-सा खून झलक रहा था। वह मुस्कराई और बोली, “क्या हुआ?” उसकी आँखों में अजीब-सा सुख चमक रहा था। अब मैं और रोक नहीं पाया। मैंने उससे धीरे से पूछा कि क्या मैं उनकी नाइटी ड्रेस खोल सकता हूं। उसने शरमाते हुए हामी भर दी।
मैंने उसके बदन से धीरे-धीरे कपड़े उतारने शुरू किए। वह बस बिस्तर पर लेटी रही, आँखों से मुझे देखती रही और मेरे हर स्पर्श को महसूस करती रही। जब उसकी नाइट ड्रेस पूरी तरह उतर गई तो वह केवल ब्रा और पैंटी में मेरे सामने थी। गुलाबी रंग की ब्रा के अंदर उसके उभरे हुए गोल-मटोल स्तन और भी साफ़ झलक रहे थे। उसके सीने की गोलाई और बीच से झांकती गहरी दरार मेरे होश पूरी तरह से छीन रही थी।
मैंने झुक कर उसके पीछे हाथ ले जाकर उसकी ब्रा की हुक खोल दी। जैसे ही हुक ढीली हुई, मैंने वह ब्रा उतार कर अपनी नाक के पास ले जाकर गहरी साँस ली, उसकी खुशबू मेरे भीतर समा गई। फिर मैंने उसे एक तरफ फेंक दिया।
अब उसके स्तन पूरी तरह मेरे सामने खुले थे, सफेद, भरे-भरे और बिल्कुल गोल। उनके बीच की दरार और भी गहरी लग रही थी। उसके निपल्स गुलाबी और कड़े होकर मेरी तरफ खड़े थे। बिना किसी कपड़े के, उसका सीना इतना आकर्षक था कि मेरी साँसें खुद-ब-खुद तेज़ हो गई।
मैंने उसकी खुली छाती को देख कर खुद पर काबू खो दिया। धीरे से झुक कर अपना चेहरा उसके स्तनों पर रख दिया। मेरी गरम साँसें उसकी नर्म त्वचा से टकरा रही थी। मैंने होंठों को उसके गोल-मटोल स्तनों पर टिका कर धीरे-धीरे किस्स करना शुरू किया। उसकी मुलायम त्वचा मेरे होंठों के नीचे ऐसी लग रही थी जैसे रेशम छू रहा हूँ।
मैं कभी उसके गोल हिस्से पर किस्स करता, तो कभी नीचे की ओर सरक कर उसके गुलाबी निप्पल के पास रुक जाता। हर बार होंठ लगाते ही उसकी साँसें गहरी होने लगीं। मेरे होंठों की हल्की नमी उसकी त्वचा पर फैलती जा रही थी। जब मैंने उसके निप्पल पर होंठ रखे, तो मेरी जुबान ने भी वहाँ हल्का-सा स्पर्श किया। वह एक-दम सिहर उठी, जैसे उसके भीतर बिजली दौड़ गई हो। उसकी उंगलियाँ मेरे बालों में उलझ गई और उसने मुझे और पास खींच लिया। मेरे होंठ उसके सीने पर घूमते रहे, और उसकी हल्की कराह मेरे कानों में उतर कर मुझे और पागल बना रही थी।
मैंने उसके उभरे हुए स्तनों को देख कर अपनी प्यास और बढ़ा दी। झुक कर पहले हल्के-हल्के होंठ रखे और फिर अचानक अपना मुँह उसके एक स्तन पर जमा दिया। मेरे होंठ और जीभ उसके निप्पल के चारों ओर घूमते रहे और फिर मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया। हर खींच के साथ मेरी जीभ उस पर रगड़ खाती और उसके बदन में झटके दौड़ जाते।
एक ओर मैं उसके बाएं स्तन को मुँह में लेकर चूस रहा था, तो दूसरी ओर मेरा हाथ उसके दूसरे स्तन को कस कर दबा रहा था। मैंने उसे बार-बार भींचा, कभी हल्के से तो कभी इतनी जोर से कि उसकी कराह मेरे कानों में और तेज़ गूँज उठी। मेरी उंगलियाँ उसकी नर्म गोलाई को मसलती रहीं और हथेली में उसकी गर्माहट पिघलती चली गई।
उसका सीना मेरी हर हरकत से ऊपर-नीचे हो रहा था। जब भी मैं चूसता, वह गहरी साँस लेकर दबे स्वर में “आह…” निकालती। उसकी सिसकियाँ और मीठी कराहें मुझे और तेज़ करने पर मजबूर कर रही थी। मेरा मुँह और हाथ दोनों उसके स्तनों पर खेल रहे थे, और उसके पूरे शरीर से आनंद की थरथराहट निकल रही थी।
मैंने उसके दोनों स्तनों पर खेलते-खेलते जब उसे चरम सिहरन तक पहुँचा दिया तो उसने हल्के से मेरा चेहरा पकड़ा और धीरे से कहा, “अब और नहीं… मैं खुद को रोक नहीं पा रही, प्लीज़ मुझमें उतर जाओ।” मेरी हालत भी वैसी ही थी। उसकी आँखों में वही चाहत साफ़ झलक रही थी।
मैं धीरे से उसके पैरों के बीच आकर बैठ गया। उसने बिना किसी रोक-टोक के अपनी जाँघें थोड़ा और खोल दी। मैंने झुक कर उसकी पैंटी की किनारी पकड़ी और बहुत सलीके से उसे नीचे खींचने लगा। हर इंच नीचे खिसकाने के साथ उसकी साँसें तेज़ होती जा रही थी।
जब उसकी पैंटी जाँघों तक आ गई तो मुझे उसकी नाज़ुक जगह की हल्की झलक मिलने लगी। वहाँ की कोमल त्वचा गुलाबी चमक में दमक रही थी। मैंने और धीरे किया ताकि हर पल को जी सकूँ। उसकी पैंटी जब टखनों तक पहुँच गई और मैंने पूरी तरह उतार दी, तो वह मेरे सामने केवल नंगी लेटी थी।
उसका नाज़ुक हिस्सा मेरी आँखों के सामने खुला हुआ था। नर्म और भीगा हुआ, मानो किसी बंद कली ने पहली बार अपने पंख खोले हों। उसके भीगे गुलाबी होंठ हल्के-हल्के हिल रहे थे, बीच-बीच में नमी की चमक उस हिस्से को और ज्यादा लुभावना बना रही थी। उसके रोमकूप खड़े थे और उस जगह से हल्की गर्माहट और मीठी गंध निकल रही थी। उसने आँखें बंद कर लीं, जाँघों को ज़रा-सा मोड़ कर और खोल दिया, जैसे खुद बुला रही हो कि मैं वहीं से शुरू करूँ।
मैंने पल भर ठहर कर उस नज़ारे को खुली आँखों से देखा। शाम को जब मैंने कपड़ों के ऊपर से वहाँ हाथ लगाया था तो बस एहसास ही था, लेकिन अब बिना किसी रुकावट के सामने खुली उस जगह को देखना अलग ही मजा दे रहा था। मेरी धड़कनें और तेज़ हो गई, हाथ अपने आप उसकी जाँघों पर फिसलते हुए उस भीगे गुलाबी हिस्से की ओर बढ़ने लगे।
मैंने धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ उसकी भीगी जगह पर रखी। जैसे ही मेरी उंगलियाँ वहाँ पहुँचीं, उसका शरीर हल्के-से काँप उठा। उसकी गर्माहट मेरी उंगलियों तक सीधे पहुँच रही थी। नमी से लबालब उस नाज़ुक हिस्से को छूते ही मेरी उंगलियाँ फिसल-सी गई। मुलायम और भीगी त्वचा पर जैसे ही स्पर्श हुआ, एक अनोखी सरसराहट मेरी नसों में दौड़ पड़ी। उसकी भीगी दरार को महसूस करते ही ऐसा लगा जैसे मेरी उंगलियाँ किसी गहरे राज में उतर रही हों। उसकी भीतरी गरमी और गीलापन मेरी उंगलियों को कस कर पकड़ रहे थे।
उसके चेहरे पर एक साथ डर और चाहत दोनों झलक रहे थे। उसने आँखें कस कर बंद कर ली, होंठों से दबी-दबी सिसकियाँ निकलने लगी। कभी वह दाँतों से अपने होंठ दबाती तो कभी गर्दन इधर-उधर मोड़ती। उसकी साँसें इतनी तेज़ हो गई कि मानो दिल बाहर निकल आएगा। मैंने उसकी आँखों में झाँक कर देखा तो उनमें एक गहरी चमक थी। यह साफ़ था कि अब वह भी उसी पल का इंतज़ार कर रही थी। इतने दिनों की चाह और इंतज़ार के बाद अब वह लम्हा आ गया था। मेरे भीतर आग और भड़क चुकी थी।
मैंने उसके कान के पास झुक कर फुसफुसाया, “अब और इंतज़ार नहीं… मैं तुम्हारे साथ पूरा होना चाहता हूँ, सुधा दीदी।” और उसी पल मैंने खुद को उसके लिए तैयार कर लिया।
To Be Continued
Bhut shandaar update.... बुखार का बहाना करके मम्मी से बच गए....
दुल्हन की सुहागरात वाली बात तो ग़ज़ब कहीं दोनों ने
...
आखिरकार दोनों प्रेमियों को लगभग एकांत मिल ही गया.....
लगभग इसलिए कि सुबह का समय है कभी मम्मी पापा कोई सा जाग कर इनको कहीं फिर अधूरा ही नहीं रख दे....
हमेशा की तरह ही lajawab update....
अगले अपडेट का इंतजार रहेगा
Lajwab bhai . Maza aagaya phale update main hiUpdate 2
सेक्स कहानी अब आगे-
एक दिन जब मैं काॅलेज से घर आया तो पाया कि पूरा घर खाली था, बस सुधा दीदी सोफे पर बैठ कर टीवी पर कुछ देख रही थी। मुझे देखते ही उन्होंने टीवी को बंद कर दिया और मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया।
मैं जाकर उनके पास बैठ गया।
“गोलू हमारा रिश्ता क्या है?” उन्होंने सख्त आवाज में पूछा।
पहले तो मैं कुछ नहीं समझा। फिर बाद में हौले से कहा “भाई-बहन का। आप मेरी दीदी हो।”
“तो तुम अपनी दीदी के प्रायवेट पार्ट को रात में क्यों छू रहे हो?” उन्होंने पुछा। उनकी आवाज में सख्ती थी, लेकिन गुस्सा नहीं था। जैसे वह सच-मुच जानना चाहती हो की मैं उस तरह क्यों कर रहा था।
मैंने घबरा कर कहा। “क्या दीदी? मैं कुछ समझ नहीं रहा।”
“तू भोला मत बन गोलू।” उन्होंने उसी आवाज में कहा। “मैं गुस्सा नहीं, बस बता कि तू ऐसा क्यों कर रहा है?”
मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीमे से बोला, “दीदी… जब आपने उस रात अपनी सेक्स स्टोरी बताई थी ना… बस उसी दिन से मैं खुद को रोक नहीं पा रहा। मैं बस उस अहसास को महसूस करना चाहता हूं… आप जिस तरह महसूस कर रही थी… मैं भी चाहता हूं कि आप मेरी सांसों के पास हों… मेरे जिस्म पर महसूस हों…”
मैंने उनकी ओर देखते हुए धीमे से जोड़ा, “मैं चाहता हूं कि आपके हाथ… आपके होंठ… आपका स्पर्श मेरे लंड पर हो… जैसे आपने उस लड़के को महसूस किया था… मैं भी आपकी छुअन चाहता हूं।”
मैंने यह सब बहुत धीमे से कहा, लेकिन मेरे अंदर की आग अब थमने वाली नहीं थी।
उन्होंने कुछ देर मुझे हैरान होकर देखा, मानो कुछ सूझ ही नहीं रहा हो। फिर कुछ देर बाद कहा, “तू अपने डिक पर सिर्फ मेरा स्पर्श चाहता है या फिर मेरे साथ सेक्स करना चाहता है?”
मैंने घबराते हुए कहां, “मुझे नही मालूम मैं बस चाहता हूं मेरा लंड आपको छुए।”
उन्होंने मेरी बात को ध्यान से सुना, फिर हल्के से मुस्कुराई। “गोलू, तू अभी छोटा है… और मैं तेरी दीदी भी हूं… मैं तुझे मना नहीं करूंगी कि तू मुझे महसूस मत कर… लेकिन सेक्स… वो मैं नहीं कर सकती।”
मैं कुछ कह नहीं सका, बस उनका हाथ अपने लंड के ऊपर महसूस करना चाहता था। उन्होंने समझदारी से मेरी बात को समझा, और अपना हाथ धीरे से मेरी पैंट के ऊपर रखा। मैं कांप उठा… वो बस कुछ पल के लिए था… लेकिन वो एहसास, मेरे जिस्म में आग लगा गया।
फिर उन्होंने कहा, “तू अपने सारे कपड़े उतार दे और सोफे पर लेट जा।” उनकी इस लाइन ने जैसे मुझे सुन्न कर दिया। मेरे शरीर में एक तीव्र झनझनाहट दौड़ गई। मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, और एक पल को यकीन नहीं हुआ कि दीदी ने सच में ऐसा कहा था। मैं उनकी ओर देखने लगा। वो बिल्कुल गंभीर थी, उनकी आंखें मेरी आंखों से टकरा रही थी, कोई मुस्कान नहीं, कोई मज़ाक नहीं।
मैंने धीरे से सिर हिलाया, फिर चुप-चाप अपने कपड़े उतारने लगा। एक-एक कर मैंने अपनी टी-शर्ट, फिर पैंट और अंत में अंडरवियर तक निकाल दिया। मेरा लंड सख्त हो चुका था, और हवा लगते ही और भी तन गया था। मैं जैसे-जैसे कपड़े उतारता गया, दीदी की नज़रें मेरे जिस्म पर बनी रही। वो कुछ नहीं बोली।
मैंने कपड़े एक ओर रखे और धीरे से जाकर सोफे पर बैठ गया, फिर लेट गया। मेरी धड़कनें तेज़ थी, बदन गर्म हो चुका था और मन में अजीब सी घबराहट और उत्तेजना दोनों साथ चल रहे थे। मैंने आंखें बंद कर ली, लेकिन अंदर ही अंदर दीदी के अगले कदम का इंतजार कर रहा था, बेसब्री से।
“अपनी आंखें बंद मत कर गोलू,” उन्होंने कहा। मैंने आंखें खोली, तो देखा दीदी धीरे-धीरे अपने टॉप के नीचे हाथ डाल रही थी। उन्होंने धीरे से अपनी टी-शर्ट ऊपर खींची और उसे उतार दिया। फिर उन्होंने नीचे की ओर हाथ ले जाकर अपनी पजामा भी उतार दी। अब वो बस ब्रा और पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। उनका बदन हल्की पीली रोशनी में और भी ज्यादा चमक रहा था। उनकी भरी हुई छाती ब्रा के अंदर से उभरी हुई, और निचले हिस्से की गोलाई पैंटी के कपड़े से ढकी, मगर बेहद साफ-साफ उभरी हुई।
वो कुछ देर वैसे ही खड़ी रही, फिर मेरी ओर देखती हुई बोली, “अब बस लेटा रह और कुछ भी मत बोल।”
फिर वो धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ी, और मेरे पास आकर हल्के से झुक गई। उन्होंने अपने हाथों से बैलेंस बनाए रखा, ताकि उनका पूरा शरीर मुझ पर ना पड़े, लेकिन उनका चेहरा अब मेरे लंड के बेहद करीब था। उन्होंने अपने होंठ मेरे लंड के पास लाए और हल्के से उस पर एक चुम्बन दिया।
मैंने करवट लेते हुए धीरे से कहा, “दीदी… क्या मैं आपके ऊपर नहीं लेट सकता? मुझे आपका पूरा एहसास चाहिए।”
वो थोड़ा पीछे हटी, मेरी आंखों में देखा और बोली, “ठीक है गोलू… लेकिन तुम संभाल पाओगे ना?”
मैंने बिना झिझके सिर हिलाया। दीदी धीरे से सोफे पर लेटी, और मैं धीरे-धीरे उनके ऊपर गया। उन्होंने दोबारा मेरे लंड पर होंठ रखे और हल्के से चूमा, लेकिन जब मैंने उनका सिर नीचे की ओर धकेलना चाहा तो उन्होंने मेरा हाथ धीरे से हटाते हुए कहा, “गोलू, मैं सिर्फ चूम सकती हूं… ब्लोजॉब नहीं करूंगी।”
मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी आंखों में देखा और उनकी गर्दन पर हल्का सा चुंबन लिया। वो अब मेरे नीचे थी, और मैं उनके जिस्म के हर हिस्से को महसूस कर रहा था पूरी तरह से, पूरे होश के साथ।
कुछ देर तक मैं यही सोचता रहा कि अब क्या करूं। दीदी ने साफ कह दिया था कि सेक्स या ब्लोजॉब नहीं होगा। मैं उनके ऊपर था, मेरा लंड उनके पेट के ऊपर सख्ती से धड़क रहा था, लेकिन अब मैं असहाय महसूस कर रहा था।
शायद दीदी ने मेरी हालत समझ ली। उन्होंने मेरी आंखों में देखा, फिर बिना कुछ कहे अपनी पीठ को थोड़ा उठाया, और धीरे-धीरे अपनी ब्रा की हुक खोल दी। उनकी बड़ी, मांसल छातियां अब पूरी तरह मेरे सामने थी, खुली, नग्न और मेरी सांसों को थाम लेने वाली।
मैंने तुरंत अपने दोनों हाथ उनकी छातियों पर रख दिए। वो गर्म थी, एक खास तरह की औरत की गर्मी, जो सीधे हथेलियों से होकर बदन में उतर रही थी। उनकी त्वचा बेहद नरम थी, जैसे रेशम पर हाथ फिरा रहे हों। मैंने धीरे-धीरे दबाना शुरू किया, कभी उंगलियों के बीच से उठा कर, कभी हथेली से पूरे उभार को थाम कर। उनकी गोलाई मेरी अंगुलियों में समा नहीं रही थी।
मैंने हल्के से निपल्स के चारों ओर अंगुलियां घुमाई, तो उनकी गर्मी और भी गहराई से महसूस होने लगी। वो छातियां ना सिर्फ भारी थी, बल्कि उनमें जान थी। जैसे हर दबाव पर एक स्पंदन उठता हो, जो मेरे पूरे बदन में फैल रहा था।
मैंने अपना चेहरा उनकी छातियों के करीब ले जाकर धीरे से निपल्स को चूमना चाहा, लेकिन तभी उन्होंने मेरा सिर रोकते हुए कहा, “गोलू, वहां मत… बस हाथ से ही।”
दीदी ने फिर मेरी आंखों में देखा और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अपना लंड मेरी छातियों के बीच रखो।”
मैंने बिना कुछ कहे अपना लंड उनकी गोल और भरी हुई छातियों के बीच में रख दिया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से अपनी छातियां थोड़ी और पास लाई, जिससे मेरा लंड पूरी तरह उनके बीच दब गया। वो गर्म, मुलायम और भीगे से लग रहे थे। मेरी आँखें बंद हो गई उस एहसास में।
फिर उन्होंने धीमे से कहा, “अब अपने कूल्हे हिलाओ… जैसे ऊपर-नीचे करना होता है। मैं पकड़ कर रखूंगी।” मैंने वैसा ही किया। मेरा लंड उनकी छातियों के बीच फिसलता रहा, ऊपर-नीचे, और हर बार जब उसकी नोक उनकी ठुड्ढी के पास पहुंचती, तो एक अलग ही सनसनी मेरे शरीर में दौड़ जाती।
दीदी की पकड़ ने उस स्पर्श को और भी टाइट बना दिया था, जिससे मेरा लंड और भी ज्यादा संवेदनशील हो गया था। कुछ मिनटों बाद जब मेरी रफ्तार तेज़ हुई, तो मैं खुद को रोक नहीं पाया और अचानक मेरा वीर्य उनकी छातियों पर बिखर गया। गर्म, चिपचिपा तरल उनकी स्किन पर फैलने लगा, लेकिन कुछ बूंदें इतनी तेज़ निकली, कि उनके चेहरे तक जा पहुंची। उनके गाल, और एक-दो बूंदें उनके होठों तक भी लग गई।
वो हल्का सा चौंकी, लेकिन कुछ बोली नहीं, बस मुझे देखती रहीं, और मैं हांफते हुए उन्हें देखता रहा, जैसे अभी-अभी कोई सपना पूरा हुआ हो।
मैं थोड़ा सहम गया था कि वीर्य उनके चेहरे तक चला गया, लेकिन उन्होंने बस हल्की मुस्कान दी। फिर मैंने धीरे से उनका चेहरा पोंछा और उनके पास ही सोफे पर बैठ गया। दीदी अब आराम से सोफे पर बैठ गई थीं, बिना किसी झिझक या तनाव के।
मैं उनके पास बैठा था। कुछ सेकंड बाद जब मैंने कपड़े उठाने हाथ बढ़ाया तो उन्होंने कहा। “देख गोलू मैं तेरी बड़ी बहन हूं, तो तेरी हर ख्वाहिश पूरी करना मेरा काम है। लेकिन मेरी भी कुछ सीमा है। पर फिर भी मैं तेरे लिए कुछ और भी करना चाहती हूं।”
उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा, “मेरे सामने घुटनों के बल बैठ जा।”
मैं बिना कुछ कहे उनके सामने ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया। वो अब मेरे एक-दम सामने थी। उन्होंने धीरे से अपना शरीर थोड़ा आगे किया, लेकिन पूरी तरह नहीं झुकी। उनके चेहरे की गर्मी और शरीर से आती गंध ने मेरे पूरे बदन में एक तेज़ सनसनी भर दी। फिर उन्होंने धीरे से कहा, “थोड़ा और करीब आ।”
उनके शब्द मेरे कानों में गर्म सांसों की तरह लगे। मैं थोड़ा और उनके पास सरक आया, अब मेरा चेहरा उनके जांघों के बेहद करीब था।
“और थौड़ा,” उन्होंने कहा। मैं और भी करीब चला गया।
फिर, उन्होंने धीरे से अपनी पैंटी की किनारी को अंगूठे से थोड़ा नीचे खिसकाया, सिर्फ़ इतना कि मैं एक झलक पा सकूं। सामने एक नरम, गुलाबी सी चीर हल्के भूरे बालों के बीच से झांक रही थी। किनारों पर हल्की नमी थी, जैसे वो अंग अपने आप में सांस ले रहा हो। होंठ हल्के फूले हुए थे, और बीच में की पतली दरार गहराई में उतरती हुई दिख रही थी। एक अजीब सी गर्मी और नमी की खुशबू मेरे नाक तक पहुंची, जिसने मेरी धड़कनों को और तेज़ कर दिया।
फिर दीदी ने मेरी आंखों में झांकते हुए, धीरे-धीरे अपनी दो उंगलियां अपने चीर की ओर ले गई। उन्होंने अपनी अंगुलियों को भीतर डाला, पहले हल्के से और फिर थोड़ा गहराई तक। उनकी सांसें तेज़ हो गईं, और वो उंगलियां वहां भीतर कुछ पल तक घूमती रहीं, मानो खुद से कुछ महसूस कर रही हों। जैसे ही उन्होंने उन्हें बाहर निकाला, उन पर चिपकी गाढ़ी, गर्म नमी की चमक मेरी आंखों के सामने थी।
उन्होंने उन उंगलियों को मेरी तरफ बढ़ाया, बेहद धीरे और तय इरादे से। फिर बिना कुछ कहे, उन्होंने अपनी वही गीली, नम उंगलियां मेरे होठों पर रख दी। वो छुअन गर्म थी, गाढ़ी, नम और बेहद निजी। जैसे कोई सीधा उनका अंग ही मेरे चेहरे से छू गया हो। मेरी सांस रुक सी गई, और वो नमी मेरे होठों पर एक अजीब सी कंपकंपी छोड़ गई। स्वाद नमकीन और तीखा था।
“तेरी दीदी तुझे सिर्फ इतना ही हक दे सकती है,” उन्होंने कहा।
थोड़ी देर बाद, उन्होंने अपनी पैंटी को वापस ठीक किया, और धीरे से मुस्कराते हुए कहा, “अब चल, कपड़े पहन ले। हम खाना खा लें।”
मैंने थोड़ी झिझक के साथ अपने कपड़े उठाए और पहनने लगा। दीदी भी अपने कपड़े पहनने लगी। उन्होंने ब्रा और टॉप पहना, और नीचे लेगिंग्स। जब तक हम तैयार होकर बाहर खाने के लिए निकले, मेरे मन में अभी भी बस वही छवि घूम रही थी, उनकी वो खुली चीर, वो गर्म नमी, वो बदन की महक।
खाने की थाली सामने थी, लेकिन मेरा ध्यान कहीं और था। मेरे दिमाग में हर बार उसी पल की वापसी होती रही, और एक अधूरी चाहत सीने में फंसी थी, कि काश मैं उन्हें पूरी तरह पा सकता। उनके भीतर समा सकता।
To be continued