#20
भीड़ जमा थी , चीखपुकार मची थी , भीड़ हटाते हुए मैं आगे गया और मैंने अपनी आँखे बंद कर ली. सामने चाचा की लाश पड़ी थी. बस यही नहीं देखना था. जैसे ही चाची की नजर मुझ पर पड़ी वो चिल्ला पड़ी ,”तूने , कबीर तूने मारा है मेरे पति को ” चाची ने मेरा गला पकड़ लिया.
मैंने उसे अपने से दूर किया.
“होश में रह कर बात कर चाची , तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर आरोप लगाने की ” मैंने गुस्से से कहा
चाची- तूने ही मेरी बेटी की शादी में तमाशा किया तू ही है वो जिसे हमारी खुशिया रास नहीं . गाँव वालो ये ही है कातिल इसी ने मेरा पति मारा है मुझे इंसाफ चाहिए.
मैं- खुशिया, बहन की लौड़ी . अपने करम देख . अरे भूल गयी तू वो मैं ही था जिसने तेरे पाप अपने सर लिए. मेरा मुह मत खुलवा , मैंने लिहाज छोड़ा न तो बहुत कुछ याद आ जायेगा मुझे भी और तुझे भी . तेरा पति अपने कर्मो की मौत मरा है . और गाँव वाले क्या करेंगे सारे गाँव को पता है तुम्हारी औकात . तेरे से जो हो वो तू कर ले , जहाँ जाना है जा , किसी भी थाने -तहसील में जा . मैंने मारा ही नहीं इस चूतिये को तो मुझे क्या परवाह .
गुस्से से मैंने थूका और वहां से चल दिया. पर आने वाले कठिन समय का अंदेशा मुझे हो गया था चाची ने जिस प्रकार आरोप लगाया था , गाँव वालो ने शादी में तमाशा देखा ही था तो सबके मन में शक का बीज उपज जाना ही था . मुझे जरा भी दुःख नहीं था चाचा के मरने का . हवेली आकर मैंने पानी पिया और गहरी सोच में डूब गया . परिवार का एक स्तम्भ और डूब गया था , तीन भाई तीनो अब दुनिया से रुखसत हो चुके थे .
शाम होते होते पुलिस आ पहुंची थी मैं जानता था की शिकायत तो देगी ही वो . दरोगा को मैंने अपनी तरफ से संतुष्ट करने की पूरी कोशिश की पर चूँकि मर्डर का मामला था तो वो भी अहतियात बरत रहा था
“दरोगा , चाहे कितनी बार पूछ लो मेरा जवाब यही रहेगा की पूरी रात मैं हवेली में ही था . ”मैंने जोर देते हुए कहा
दरोगा- गाँव में बहुत लोगो ने बताया की तुम्हारी दुश्मनी थी तुम्हारे चाचा के साथ , उसकी बेटी की शादी में भी तुमने हंगामा किया
मैं- दुश्मनी , बरसो पहले परिवार ख़तम हो गया था दरोगा साहब . परिवार के इतिहास के बारे में गाँव वालो से आपने पूछताछ कर ही ली होगी ऐसा मुझे यकीं है .फिर भी आप अपनी तहकीकात कीजिये , यदि आपको मेरे खिलाफ कोई सबूत मिले तो गिरफ्तार कर लेना. लाश आपने देख ली ही होगी. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी आएगी
मेरी बातो से दरोगा के चेहरे पर असमंजस के भाव आ गए.
दरोगा- तुम्हारी बाते जायज है पर फिर भी आरोप तुम पर ही है . कोई ऐसा सबूत दे सकते हो जो ये पुष्टि करे की तुम तमाम रात हवेली में ही थे.
“मैं हूँ गवाह की कबीर पूरी रात हवेली में ही था ” मंजू ने आते हुए कहा और मैंने माथा पीट लिया
“और आप कौन मोहतरमा ” दरोगा ने सवाल किया
मंजू- मैं मंजू, इसी गाँव की हूँ और आपका वो सबूत जो कहता है की कबीर पूरी रात हवेली में था क्योंकि उसके साथ मैं थी .
दरोगा की त्योरिया चढ़ गयी पर वो कुछ बोल नहीं पाया .क्योंकि ठीक तभी हवेली के दर पर एक गाडी आकर रुकी और उसमे से जो उतरा मैं कभी सोच भी नहीं सकता था की वो यहाँ आयेगा.
“ठाकुर साहब” दरोगा ने खड़े होते हुए हाथ जोड़ लिए
निशा के पिताजी हवेली आ पहुंचे थे .
“दरोगा, कबीर का सेठ की मौत में कोई हाथ नहीं है ऐसा हम आपको आश्वस्त करते है ” उन्होंने कहा
दरोगा- जी ठाकुर साहब पर इसकी चाची ने शिकायत इसके नाम की है तो पूछताछ करनी ही होगी.
“बेशक, तुम अपनी कार्यवाही करो , यदि जांच में ये दोषी निकले तो कानून अनुसार अपना कार्य करना पर गिरफ़्तारी नहीं होगी ” ठाकुर ने कहा
मैं हैरान था की मुझसे नफरत करने वाला ये इन्सान मेरे पक्ष में इतना मजबूती से खड़ा था .
दरोगा- जैसा आपका आदेश पर ये गाँव से बाहर नहीं जायेगा और जब भी जरुरत पड़ेगी तो इसे थाने आना हो गा.
ठाकुर- कोई दिक्कत नहीं.
दरोगा – मंजू जी , आपको लिखित में बयान देना होगा.
मंजू ने हाँ कहा और वो दोनों चले गये. रह गए हम दोनों और हमारे बीच का सन्नाटा. पर किसी न किसी को तो बर्फ पिघलाने की कोशिस करनी ही थी .
मैं- आपको इस मामले में नहीं पड़ना था .
ठाकुर- मुझे विश्वास है तुम पर
मैं- सुन कर अच्छा लगा.
ठाकुर- कैसी है वो
मैं- कौन
ठाकुर- हम दोनों बहुत अच्छी तरह से जानते है की मैं क्या कह रहा हूँ और तुम क्या सुन रहे हो .
मैं- - आपके आशीर्वाद के बिना कैसी हो सकती है वो . आज वो इतनी बड़ी हो गयी है की जमाना उसके सामने झुकता है और एक वो है की अपने बाप के मुह से बेटी सुनने को तरसती है .
“तो फिर क्यों गयी थी बाप को छोड़ कर ” ठाकुर ने कहा
मैं- कभी नहीं गयी वो आपको छोड़ कर.
ठाकुर- तुमने मुझसे मेरी आन छीन ली कबीर.
मैं- इस ज़माने की तरह आप भी उसी गुमान में हो. क्या माँ ने आपको बताया नहीं
ठाकुर- तो फिर भागे क्यों
मैं- कोई नहीं भागा, मेरी परिस्तिथिया अलग थी और निशा ने घर छोड़ा नौकरी के लिए. बस दोनों काम साथ हुए इसलिए सबको लगता है की हमने भाग कर शादी कर ली.
ठाकुर- सच कहते हो
मैं- हाथ थामा है निशा का , मान है वो मेरे मन का उसे बदनाम कैसे कर सकता हूँ, भाग कर ही शादी करनी होती तो कौन रोक सकता था हमें, ना तब ना आज पर उसकी भी जिद है की विदा होगी तो अपने आँगन से ही. बाप की इज्जत का ख्याल था उसे तभी वनवास का चुनाव किया उसने. हम आज भी साथ होकर अलग है ठाकुर साहब पर हमें उम्मीद है की एक दिन हमें हमारे हिस्से का सुख जरुर मिलेगा.
ठाकुर- मैं अपनी बेटी को देखना चाहता हु
मैं- आपकी बेटी है जब चाहे मिलिए एक पिता को बेटी से मिलने से कौन रोक सकता है .
ठाकुर- गाँव समाज में प्रेम का कोई महत्त्व नहीं
मैं- मेरे प्रेम पर तो थोड़ी देर पहले ही आपने स्वीक्रति प्रदान कर दी है
ठाकुर के चेहरे पर छिपी मुस्कुराहट को मैंने पहचान लिया.
“दरोगा बहुत इमानदार है , तह तक जायेगा मामले की वो ” बोले वो
मैं- अगर मैं गलत नहीं तो फिर मुझे भय नहीं
ठाकुर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- उसे ले आओ कबीर, उसे ले आओ..............