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दीदी अब तक कुछ नहीं बोली, इसका मतलब ग्रीन सिग्नल है और वो गरम हो गई है, और हो सकता है आज बात बन जाये, अब कंट्रोल नहीं हो पा रहा था मेरा दायां हाथ धीरे-धीरे दीदी की चूची की तरफ सरकने लगा और अब दिल कर रहा था कि बायें हाथ को झटके से उठाकर दीदी की चूत पे रखकर मसलना शुरू कर दूं। मैंने दीदी का चेहरा पढ़ने की कोशिश की तो वो पूरे ध्यान से टीवी में मस्त लग रही थी। आज दिमाग़ में आ रहा था कि जो होगा देखा जायगा, आर या पार कर डालना है आज।
मेरे जिश्म में जैसे 440 वोल्ट का करेंट दौड़ने लगा था, हाथ काँपने लगे थे। मैंने बाये हाथ को सरकाते-सरकाते आख़िरकार हल्के से दीदी की चूत पे रख दिया। कुछ सेकेंड के लिये मेरा सारा जिश्म फ्रीज हो गया, कोई हरकत नहीं हुई। फिर दिल में आया कि साले तू टारगेट पे तो पहुँच चुका है, अब आगे बढ़। मेरा हाथ दीदी की दोनों टांगों के बीच उसकी पटियाला सलवार के ऊपर हल्के से पड़ा था, अब अगला काम चूत को मसाज देना था। मैंने हिम्मत करके टांगों के बीच चूत के ऊपर हल्के से रखे अपने बायें हाथ को दीदी की चूत पे सलवार के ऊपर से ही ग्रिप कर लिया। अगले ही पल दीदी की दोनों टांगें पूरी खुल गईं, मेरा हाथ पूरा चूत पे टांगों के बीच चला गया।
और फिर उससे अगले पल ही झटके से दीदी उठकर सोफे पे बैठ गई और तड़ातड़ 4-5 थप्पड़ मेरे सर और कानों पे दिए, और बोली-“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह सब करने की?”
मेरा रंग पीला पड़ गया होंठ सूखने लगे, मैंने अपने गालों और कानों पे दोनों हाथ रख लिये और मैं-“सारी दीदी, सोरी दीदी…” कहकर अपना मुँह छुपाने लगा।
सनडे की दोपहर होने की वजह से मम्मी अपने कमरे में में रेस्ट कर रही थीं।
दीदी जोर-जोर से चिल्लाने लगी-“मैं अभी तुम्हारा इलाज करती हूँ…”
मैं-“सोरी… सोरी दीदी, प्लीज़्ज़ धीरे बोलो…”
दीदी-“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मम्मी को भी तो पता चले कि तुम्हारी नियत क्या है?” यह कहती हुई वो सोफे पे फिर उसी तरह मम्मीके रम की तरफ देख दूसरी तरफ लेटी हुई मम्मी को आवाज़ लगाने लगी।
तो मैंने झट से दीदी के मुँह पे अपना हाथ रख दिया, तो उसके मुँह से ‘उम्म्म्माआ’ ही निकल सका। फिर मैं दबी हुई आवाज़ में बोला-
“दीदी, मैं सोरी बोल रहा हूँ, और यह भी कहता हूँ कि दुबारा ऐसा नहीं करूँगा, लेकिन प्लीज़्ज़ अब चुप हो जाओ…मेरी मा”
वो अपने दोनों हाथों से अपने मुँह से मेरा हाथ उठाने की कोशिश करने लगी। मैंने थोड़ा सा हाथ ढीला किया तो उसके मुँह से फिर जोर से आवाज़ निकलने लगी-“मुंम्म्म…”
मैंने फिर जोर से दीदी के होंठ पे अपना बायां हाथ दबा दिया। मेरा भी अब दिमाग़ खराब हो गया था, गुस्से से भी और सेक्स से भी।
सोफे पे आधी लेटी हुई दीदी की टांगों के नीचे से दायां हाथ डालकर मैंने उसका सारा जिश्म सोफे पे रख दिया और बायें हाथ से दीदी के होंठ दबाये हुए ही मैं दायें हाथ को दीदी की चूत के अंदर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा।
दीदी हैरानी से मुझे देखने लगी, और अपने आपको छुड़ाने के लिये स्ट्रगल करने लगी। मैं उस पे भारी पड़ रहा था, मैंने दायें हाथ से दीदी का सूट ऊपर करके अंदर हाथ डाल दिया, फिर उसकी चूचियों को जा के ऊपर से ही दबाने लगा, फिर चिकने पेट पे हाथ फिराता सलवार को खोलने की कोशिश करने लगा। लेकिन जब नाड़ा नहीं खुला तो ऐसे ही हाथ अंदर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा।
लेकिन दीदी ने नाड़ा कस के बांधा हुआ था और अब उसके हाथ मेरे दायें हाथ को सलवार के अंदर जाने से रोकने की कोशिश करने लगे थे। मैंने काफ़ी कोशिश की लेकिन मेरा हाथ सलवार के अंदर नहीं जा पाया तो मैंने सलवार के ऊपर से ही अपने दायें हाथ से दीदी की चूत को मसलना शुरू कर दिया। उसके दोनों हाथ मेरे दायें हाथ को रोकने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसका बस नहीं चल रहा था। वो अपनी टांगों की उछल-कूद करके मेरी पकड़ से निकलने की कोशिश कर रही थी।
तभी मैं अपना मुँह अपने बायें हाथ के करीब उसके होंठों के पास ले जाकर बोला-“ठीक है, अब अगर तुमने बताना ही है तो डर किस बात का? अब जो मेरा दिल कहेगा वोही करूँगा, अब यह बताना कि मेरी चुदाई हो गई…”
दीदी के मुँह से ‘म् म्म्मम’ ही निकल पाया। वो अपने सर को झटके देकर आज़ाद होने की कोशिश कर रही थी, उसकी टांगें ऊपर-नीचे चलती रही। वो अपने आपको आज़ाद करने के लिये पूरा स्ट्रगल कर रही थी, लेकिन उसका बस नहीं चल रहा था। वोही दीपक जो अपनी इस बहन से थर-थर काँपता था, आज उसी बहन पे जबरदस्ती सवार होने जा रहा था। आज मुझे भी और उसे भी यह एहसास हो गया कि मर्द मर्द होता है और औरत औरत।
करीब 5-10 मिनट तक हम बहन भाई कुश्ती करते रहे और इस 5-10 मिनट में दीदी की चूत को जबरदस्ती अपने हाथ से मसाज करते हुये, मुझे जो मज़ा आया था वो आज तक पहले कभी नहीं मिला था। कभी-कभी दीदी की टांगें अपने आप खुल जाती और वो स्ट्रगल करना बंद कर देती, जैसे थक गई हो, लेकिन यह ज़रूरी नहीं था कि थक गई हो, यह भी हो सकता था कि उसे भी मज़ा आने लगा हो? जब वो ढीली पड़ जाती तो मैं कोशिश करता कि अपनी बिचली उंगली को दीदी की चूत के अंदर घुसेड़ सकूँ। लेकिन बाहर से ऐसा करना मुश्किल था, एक तो दीदी की सलवार और उसके बाद पैंटी, और जब मैं उंगली घुसेड़ने की कोशिश करता तो दीदी फिर अपनी टांगों से मुझे हिट करने की कोशिश करती, और कभी उसके हाथ मेरे बायें हाथ को मुँह से उठाने की कोशिश करते और कभी मेरे दायें हाथ को चूत से उठाने की, कभी-कभी मुझे यह भी लगता कि अब दीदी को मज़ा आ रहा है।
लेकिन साली फिर भी नाटक पूरा कर रही थी। मेरा लण्ड भी बेकाबू हो रहा था। कुश्ती करते-करते दीदी का गरम जिश्म महसूस करके मुझे लग रहा था कि पता नहीं कब मेरी पिचकारी निकल जाये… बस थोड़ा जोर जबरदस्ती करते-करते ध्यान बँट जाता था, इसलिये अब तक वीर्य निकलने से बचा हुआ था। अब मैंने अपना हाथ दीदी की चूत से उठा लिया और फिर से उसकी सलवार खोलने की कोशिश करने लगा। लेकिन साली ने मेरा हाथ तक तो अंदर नहीं जाने दिया था तो सलवार का नाड़ा कैसे खोलने देती?
मैं कोशिश करता रहा, और जब नाड़ा नहीं खुल पाया तो मैं उसके ऊपर चढ़ गया। और मैंने अपने दायें हाथ से दीदी की चूचियां दबानी शुरू कर दी। वो अभी भी अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़कर रोकने की कोशिश कर रही थी। मेरा बाया हाथ एक ही जगह पे दबाने की वजह से वो थोड़ा थक गई, तो मैंने झटके से अपना बायां हाथ दीदी के होंठों से उठाकर उस पे दायां हाथ रख दिया। फिर बायें हाथ को दीदी की कमीज़ के गले से अंदर कर दिया। मेरा हाथ सीधा दीदी की दाईं चूची की निपल पे चला गया। मैंने पहले अपनी पहली उंगली और अंगूठे से दीदी की निपल को थोड़ा मसला, निपल एकदम सख़्त था। फिर अपने हाथ से दीदी की गोल-गोल चूचियां दबाने लगा।
आज पहली बार मैंने दीदी के अंदरूनी जिश्म को छुआ था। अब कंट्रोल नहीं हो पा रहा था, लगता था कि मेरी पिचकारी निकल जायेगी, लेकिन तभी दीदी ने अपने दोनों हाथों से मेरे मुँह पे थप्पड़ मारने शुरू कर दिए। लेकिन मुझे उसकी परवाह नहीं थी, मेरे लिये तो अच्छा ही हुआ कि मेरा ध्यान फिर थोड़ा बँट गया और मेरी पिचकारी निकलने से बच गई।
अब मैंने अपने बायें हाथ को अंदर ही से दूसरी चूची की तरफ घुमा दिया। मैं बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां दबा रहा था, एकदम पत्थर के जैसे सख़्त टाइट चूचियां थीं दीदी की, लेकिन स्किन उतनी ही साफ्ट थी। मेरा लण्ड मेरे शॉर्ट में लोहे की रोड जैसा खड़ा था, और मेरा दिल कर रहा था कि किसी तरह जल्दी से इसे दीदी की चूत में डाल दूं। लेकिन दीदी साली नाड़ा तो खोलने नहीं दे रही थी।
मैंने फिर अपने बायें हाथ से कोशिश किया, लेकिन नाड़ा खोल पाना बहुत मुश्किल था, टाइम बरबाद करना ही लग रहा था। फिर मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया कि नाड़ा तोड़ दूं, तो मैंने वो भी कोशिश कर लिया। लेकिन शायद मेरी किस्मत खराब थी, मेरे कितने ही झटके देने के वाबजूद भी नाड़ा टूटने का नाम नहीं ले रहा था। फिर मैंने ऐसे ही बिना नाड़ा तोड़े और खोले सलवार को नीचे खींचकर उतारने की कोशिश की, तो सलवार थोड़ी सी नीचे सरकी फिर अटक गई।
सलचार दीदी की मोटी गाण्ड से ऐसे कैसे नीचे आ सकती थी, हो सकता था सलवार नीचे सरक भी जाती, लेकिन एक हाथ से उसे नीचे खींचना मुश्किल था, सारी कोशिश बेकार जा रही थी। फिर मैंने दीदी की कमीज़ उसके पेट से ऊपर उठा दी और उसके गोरे पेट और नाभि पे किस करने लगा। मेरे अंदर का गरम पानी अंतिम सीमा पे था, लग रहा था अब पिचकारी छूटने ही वाली है।