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Thanks Friends
बहुत शानदार अपडेट दिया है बुच्ची तो बिल्कुल लेने ही बाली थीगाना नाच
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इमरतिया ने इशारे से सुरुजू को अपनी ओर बुलाया, और धीरे से बोली,
" अभिन थोड़ी देर में बगल में गाना नाच शुरू होगा "
सूरजु थोड़ा मुस्करा के थोड़ा उदास हो के उसी तरह धीमे से फुसफुसाते बोला, " तो हमें कौन देखे सुने के मिली, बाहर से कुण्डी लग जाई और सबेरे खुली। "
इमरतिया खुल के हंसी।
सच में होता यही था। इसी लिए रात के गाने का प्रोग्राम छत पर, मरद लड़के सब नीचे, और सीढ़ी का दरवाजा बंद , खाली सांकल ही नहीं ताला भी।
हाँ दूल्हे से उतनी लाज शर्म नहीं होती थी, उसी का नाम ले ले के तो सब बहिन महतारी गरियाई जाती थीं/ लेकिन ये बात भी सही थी की उसके कमरे के बाहर भी कुण्डी लगा दी जाती थी, थोड़ा बहुत आवाज सुनाई दे तो दे,
लेकिन देखने का कोई सवाल नहीं था और इसलिए भी की शायद ही किसी की साडी ब्लाउज बचती, और ज्यादा जोश हो तो बात उसके आगे भी बढ़ जाती, भौजाइयां ननदों की शलवार का नाड़ा पहले खोलती थीं।
गाल पे कस के चिकोटी काटते इमरतिया बोली,
" अरे हमरे देवर, तोहार ये भौजी काहें को है, कुल दिखाई देगा, तोहार बहिन महतारी सब का भोंसड़ा, लेकिन मैं बत्ती बंद करके जाउंगी और बत्ती खोलना मत, और ये देखो "
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इमरतिया ने बत्ती बंद की, और एक पतला सा काला कागज़ जो उसने खिड़की पे चिपका रखा था, उसे उचाड़ दिया, बस कई छोटे छोटे छेद, जैसे बच्चे बचपन में आँख लगा के ध्यान से बाइस्कोप देखते हैं, सूरजु ने आँख लगा लिया और उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था, एक एक आवाज साफ़ आ रही थी जैसे उसी के कमरे में कोई बोल रहा हो, अभी इंतजाम हो रहा था, फर्श पे दरी बिछ रही थी, एक भौजी नीचे से ढोलक ले आयी थीं।
वो जोर से मुस्कराया और इमरतिया ने फिर कागज चिपका दिया और आगे की हिदायत दे दी,
" हे अपनी बहिन महतारी क देख देख के अगर ये टनटना जाए तो मुट्ठ मत मारने लग जाना और इस मोटू को खोल के रखना, "
लेकिन सूरजु भी अब चालाक हो गए थे, भौजी से बोले, " और भौजी, अगर तोहें, हमरी रसीली भौजी को देख के टनटना जाए तो
" तो अगली बार जैसे मिलूंगी चोद लेना और अगली बार मैं ऊपर नहीं चढूँगी तुम चढ़ के पेलना, ....जैसे हमारी ननद बुच्ची को चोदोगे , "
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इमरतिया बोली, और झुक के खड़े खूंटे को कस के दबोच लिया और प्यार से मसल दिया ,और निकलते हुए बत्ती बंद कर दी।
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एकदम सटीक टिप्पणी दी आपने और सारगर्भित भीवाह कोमलजी. इस पोस्ट की मस्ती शारारत का लेवल तो सबसे हाई है. चुनिया को मान गए. पहले तो सूरज की महतारी का सन्मान कर के उनसे मज़ाक मस्ती करने की परमिशन ली. और गलती की माफ़ी मांगी. रिश्ते मे छोटे होने का एहसास दिया. सूरज के माई ने भी हस कर आशीर्वाद दिया. यह गांव की प्रथा मर्यादा बड़ो का मान सन्मान जताता है. और फिर क्या मस्त लाइन गई है.
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बन्ना पहले वादा करले पीछे माला डालूंगी
तेरी अम्मा के नखड़े मैं सारे उठाउंगी, तेरी माई के नखड़े मैं सारे उठाउंगी ,
लेकिन तेरी बहना पे अपने भाई को चढ़ाउंगी, तेरी बुच्ची पे अपने गप्पू को चढ़ाउंगी
बन्ना पहले वादा करले पीछे माला डालूंगी.
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चुनिया मौका चुकी नही. उसका इरादा पहले से ही अपने भाई की हसरत पूरी करना था. इसी लिए मज़ाक मज़ाक मे बुची से हामी भरवाना चाहती थी.
गांव की औरते ऐसे मौके पर अपनी नांदिया को कैसे ना छेड़े. बुची को जैसे हा बुलवाने समझा रही हो. अरे पगली तेरा फायदा तेरे भाई का फायदा. और कहे भी तो सही रही है. दूल्हे की बहन पर तो दुल्हन के मायके वालों का ही हक़ होता है. छिनार नांदिया को चाहे दुल्हन का भाई चोदे चाहे दुल्हन के मायके का कुत्ता. अमेज़िंग.
बुची को हा बुलवाना था तो चुनिया ने आगे गाना चालू ही रखा. और लाइन जोड़ती गई.
लेकिन तेरी बहना का जोबन अपने भाई से मिजवाउंगी
तेरी बुच्ची का जोबन गप्पू से मलवाउंगी
और ऐसे मौके पर रामपुर वाली चुनिया और गप्पू की बड़ी बहन ने तो बुची को रंडी बनाने के लिए कुछ अलग ही लाइन जोड़ दी.
लेकिन पहले तेरी बहना को, तेरी बुच्ची को घोड़ी बनवाऊंगी, तेरी बुच्ची को कातिक की कुतिया बनवाऊंगी,
तेरी बुच्ची को घोड़ी बनवाऊंगी, तेरी बुच्ची को कातिक की कुतिया बनवाऊंगी,
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कार्तिक मास मे कुतिया कई कुत्तो से चुदती है तो बुची को कार्तिक की कुतिया बनाकर कइयों से चुदवाने की हामी भरवाने की कोसिस की.
बुची भी साली पक्की छिनार. खुद घोड़ी बन गई. और पजामा खुद निचे सरका दिया. चुनिया ने उसे कश लिया.
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और धमकी दे दी. की तीन उंगली डाल कर उसकी झील्ली फाड़ देगी. फिर अपने भाई सूरज से झील्ली फाड़वाने का सपना ख़तम. वो छिनार मान गई. और सबने पूरी लाइन एक बार जोर से.
लेकिन पहले तेरी बहना को, तेरी बुच्ची को घोड़ी बनवाऊंगी, तेरी बुच्ची को कातिक की कुतिया बनवाऊंगी,
तेरी बुच्ची को घोड़ी बनवाऊंगी, तेरी बुच्ची को कातिक की कुतिया बनवाऊंगी,
अपने गप्पू से तेरी बुच्ची को खूब चुदवाउंगी , गपागप चुदवाउंगी
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जिओ कोमलजी जिओ. क्या मस्ती और शारारत भरा अपडेट है. रामपुर वाली चुनिया की बहन ने बुची का साथ देते उसे छिनार रंडी का ही टाइटल दिलवा दिया. धोबी, मोची, कुत्ता गद्दा घोड़ा सब से चुदवाकर अपने भैया के लिए जूते लाएगी. पैसे कमएगी.
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लेकिन बुआ भी कोनसा मौका छुड़वाती. सूरजवा की माई. जो उसकी भाभी लगेगी. और वैसे भी दूल्हे की माई बहन को ना गरियो तो लगे ही नही की लड़के की शादी है. सूरजवा की महतारी के लिए भी गरियाना शुरू. गधे घोड़े कुत्ते मोची धोबी. अरे किसका पैदा किया है.
और सबसे लास्ट मे बुची और चुनिया का नाच. माझा ही ला दिया. शादी मे औरतों के प्रोग्राम मे यह सब होता ही है. और क्या क्या मस्ती मज़ाक होता है. लेकिन बुची तो बन्ना बनके भी फस गई. कोनसे कोनसे बातो पर अब चुनिया हामी भरवाएगी. तीन बार नाक रगड़वा के बात मान ने पर हामी बेचारी ने भर तो दी.
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अब अशली खेल तो मंजू भौजाई खेलेगी. एक से एक गाना जबरदस्त है कोमलजी. पर अभी तक गरियाना शुरू नही हुआ. माझा तो गरियाने मे ही आएगा.

और उससे भी बड़ी बातबाप रे बाप कोमल मैम
ई व्यवस्था ????
ये तो orgy को भी मात व्यवस्था है। एकदम बांध कर रख दिया और सरजू बाबू को जबरदस्त होमवर्क भी मिल गया है।
बस एक बार इमरतिया भौजी का तसल्लीबख्श इंतजाम और हो जाय फिर बुच्ची और फिर तो लाइन लगने वाली है।
सरजू बाबू को तो फुरसत है नहीं मिलती दीखती।
शानदार अपडेट
सादर
एक लाइन में आप ने सब बात कह दीक्या बात है. यह हुई टक्कर वाली बात. ऐसा महसूस हो रहा है. मै खुद किसी शादी मे शामिल हुई हु.
जवान लोंड़िया मुँह फट्टी फट नंगेपन तक गा देती है. लेकिन पुरानी खागड़ रुक रुक कर राज खोलती है. और हिसारो हिसारो मे नंगा करती है. वही असली मजाकिया लेवल होता है. और जब खागड़ नंगापन करती है तो लोंड़िया भी पानी मांगने लगे
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माझा तब आया जब बुची और चुनिया दोनों को सूरज की महतारी ने अपने गोद मे बैठा लिया. और दोनों की छोटी छोटी चूची बिंच दी. खागड़ कन्या रस की शोखिन है. वैसे भी उन दोनो बुलबुलो की महतारी उनकी ननंद छिनार थी. तो उन दोनों की महतारी की जवानी निचोड़ कन्या रस पिया है. तो उनकी बेटियों की क्यों नही.
रामपुर वाली बुची की बड़ी बहन ने क्या मस्त गया है.
जब तेरा मुन्ना छोटा था , जब ये बन्ना छोटा था, बोतल से दूध पीता था, तब ये बन्ना तेरा था,
मतलब सीधा पहले छोटी नुनी थी. तब यह तेरा था. जब तेरा दूध पिता था. तब यह तेरा था. अब विसकी पिता है. अब मोटा लम्बा खुटा है. अब यह बन्ना मेरा है. आखिर रामपुर वाली का सूरज देवर लगा. तो हक़ जताएगी. देवर पे भी. और देवर के खुटे पर भी.
पर सूरजकी माई असली खागड़ ने मुस्कुराते मुँह खोला. री उसका तो बचपन से मोटा खुटा है. यकीन ना हो तो बुची की महतारी से पूछ ले. खूब घोटी है. साथ ही इमरतिया से भी हामी भारवाई. इमरतिया अब सूरज के खुटे का सही बखान नही की तो और कौन करेगा.