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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.

भाग १०४, पृष्ठ १०८१ , बुकवा ( उबटन ) और इमरतिया

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पेटीकोट का नाड़ा


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इमरतिया अब तक जांघ पर बुकवा लगा रही थी और सोच रही थी जबरदस्त ताकत होगी इस के धक्के में , लेकिन देवर को छेड़ते बोली

" पंचमी से भी तगड़ी कुश्ती होगी बारह दिन बाद एहि कोठरिया में, आ रही है तगड़ी पहलवान,। असली कुश्ती उस दिन होगी, देखती हूँ हमरी देवरानी को कितनी देर में पटखनी देते हो , इन्तजार नहीं कराउंगी। सांझ होते ही पहुंचा दूंगी लड़ना रात भर कुश्ती, "

सुरजू सोच सोच के मुस्कराने लगा, और जांघ पे एक कस के चिकोटी काट के इमरतिया ने एक सवाल पूछ लिया,

" ये बताओ, अब तक कितनो के पेटीकोट का नाड़ा खोले हो "


देवर भौजाई में अब दोस्ती हो गयी थी और झिझक भी ख़तम हो गयी थी, आधे घंटे से वो नंग धडंग, खूंटा खड़ा किये , सुरजू ने कबूल किया

" एक भी नहीं भौजी "

" अरे चलो तब तोहसे बुच्ची क शलवार का नाड़ा खुलवाउंगी,नाड़ा खोल लिए तो बुच्ची के शलवार के अंदर वाली बुलबुल तेरी, "
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हँसते हुए इमरतिया बोली और अब बुकवा सीधे देवर के खूंटे पे और थोड़ा सीरियस हो के समझाया,
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" अरे हमार और अपनी माई दुनो का नाक कटवाइबा ससुराल में। कोहबर में सलहज कुल सात गाँठ बाँध के गठरी देंगी और बोलेंगी, पाहुन बाएं हाथ से खोलो और खोल लिए तो समझूंगी की हमरे ननद क पेटीकोट क नाड़ा खोल पाओगे। दुल्हिन क, भौजाई, महतारी अस सिखाय समझाय के पेटीकोट का नाड़ा बाँधने का बता के भेजेंगी न घंटा भर तो लगा जाएगा, गाँठ ढूंढने में और रात गुजर जायेगी नाड़ा नहीं खुलेगा, ….

तो जैसे वो दंगल में तोहार गुरु थे न, और सब ट्रिक सीख के गए थे दंगल जीतने तो यह दंगल में भी गुरु,… बिना गुरु के न ज्ञान मिलता है न कोई बड़ा से बड़ा पहलवान दंगल जीत पाता है। "



इमरतिया की बात काट के उसको अपनी ओर खींचते उनके देवर बोले, " हमार गुरु हैं न हमार भौजी "


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इमरतिया क सीना ३६ से ३८ हो गया और कस कस के लंड को बुकवा लगाते मुठियाते बोली, " तो गुरु क कुल बात माननी होगी और जो जो सिखाऊं सीखना होगा "



" एकदम भौजी " सुरजू ने हाँ कर दी।

और मुस्करा के मक्खन लगाते जोड़ा, " जउन हमरे भौजी क हुकुम "

और भौजी ने उस मोटे खूंटे को मुठियाने की रफ्तार तेज कर दी। इतना बढ़िया लग रहा था पकड़ के दबाने में, बार बार इमरतिया यही सोच रही थी, इस मोटू को अंदर लेने में कितना मजा आएगा, हर छेद का मजा दूंगी इसको, स्साले को चूत का भूत न बना दिया,

लेकिन मुठियाने का असर सुरजू पर हुआ , वो बेचारा पहली बार किसी औरत के हाथ से मुठियाया जा रहा था, बस उसे लग रहा था अब गिरा, तब गिरा, और भौजी के हाथ में गिरने पे कितना ख़राब लगेगा, घबड़ा के वो बोला



" भौजी, हमार भौजी, छोड़ दा, नहीं तो, …"

" ना छोड़ब, हमरे देवर क है, काहें छोड़ी "

पहले आँख नचा के चिढ़ाते इमरतिया बोली, फिर अचानक सुरजू को हड़काते चालू हो गयी,

" अबे स्साले नाम लेने में तो तेरी गाँड़ फट रही है, मेरी देवरानी की कैसे फाड़ेगा ? तोहरे सामने, तोहार बहिन महतारी खुल के बोल रही थी और तू लजा रहे हो उहो भौजी से, अरे कल जउन कच्ची कली को को बियाह के ले आओगे, उससे अगले दिन जब उसकी नंदे पूछेंगी, " भौजी कल रात को क्या घोंटी" तो वो खुल के बोलेगी, " अरे तोहरे भैया क लंड, पूरा जड़ तक और निचोड़ के रख दिए " और तू, बोल क्या छोड़ू दू "



सुरजू को भी लगा की बात तो भौजी की सही है।

अभी थोड़ी देर पहले उनकी महतारी तो उनके सामने, कोई ठंड की बात कर रहा था , और कौन बुच्ची, तो कैसे बोलीं की अरे ठंड का इलाज लंड है। और वो यहाँ भौजाई के सामने



थोड़ा झिझकते बोला, " भौजी, हमार वो, ....हमार लंड,.... छोड़ दा "

" ना छोड़ब "
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चिढ़ाते हुए इमरतिया बोली, लेकिन उसने मुठियाना बंद कर दिया और खूंटे के जड़ पर जैसे डाक्टर नाड़ी देखते हैं छू के देखा। अभी झड़ने वाला नहीं था, बेकार घबड़ा रहा था और दबाये दबाये बोली

" चला छोट देवर क बात,… लेकिन एक बात और हमार सुन ला, आज से कउनो लड़की, मेहरारू को देखा तो सीधे ओकर चूँची, चाहे तोहरी बुच्ची क कच्चा टिकोरा हो या ओहु से छोट व खूब बड़ा बड़ा, बस सीधे उहे देखा और सोचा की केतना मजा आएगा, मीसने में रगड़ने में , न उम्र न नाता रिश्तेदारी,.... बस चूँची "



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सुरजू अब बदमाश हो रहा था, सीधे उसकी निगाह इमरतिया के चोली फाड़ जोबन पर थी, नुकीली चोली में एकदम पहाड़ लग रहे थे और जिस तरह इमरतिया सरजु के ऊपर झुकी थी , घाटी भी साफ़ दिख रही थी

" केहू क भौजी " मुस्करा के सीधे घूरते बोला,



इमरतिया समझ रही थी, मुस्करा के बोली " हाँ केहू क भी " और सुरजू का हाथ पकड़ के अपने जोबन पे खींच के रख दिया और बोली

" ऐसे ललचाते रह जाओगे, अरे मन करे तो सीधे ले लो, मांगो नहीं "
Imritiya to gajab dha rahi hai.
 
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Chalakmanus

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बुच्ची,.... और चाशनी से भरा कुल्हड़
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लेकिन तभी इमरतिया को अहसास हुआ की अभी भी आधा कटोरा बुकवा बचा है और पैरो में बुकवा लगाना है और थोड़ी देर में बुच्ची और शीला नीचे से खाना ले के आ रही होंगी और चार आने का खेल अभी बचा है तो वो पैरो में बुकवा लगाने लगी। और फिर थोड़े देर में ही सुका हाथ पूरे देह का बुकवा छुड़ाने के बाद वापस खूंटा पर



" अरे इसका भी बुकवा तो छुड़ा दूँ, लेकिन देवर जी अब आप आँख बंद कर लीजिये और जो कहूं वही सोचिये। " वो बोली।
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और खूंटा उसी तरह टनटनाया, फनफनाया, खड़ा था, लेकिन अब टाइम आ गया था, इमरतिया ने एक बार अपने देवर को ललचावाते, ललचाते, होठों पर जीभ फेर के, नीचे झुक के अपने जोबन की घाटियों को थोड़ा उभार के, देखा, और खूंटे को पकड़ के प्यार से बोली,

" हे ललचा जिन, ...मिली १२ दिन बाद तोहार मिठाई, एकदम कसी कसी, टाइट, जैसे बुच्ची क है न एकदम वैसे ही। आ रही है घोंटने इस मोटू को, एकदम जड़ तक पेलना, अरे नहीं देखे तो हो तो बुच्ची को सोच के काम चलाओ बाबू। और ये जिन कहना बुच्ची छोट है, एकदम कुतरने लायक हैं उसकी कच्ची अमिया, पेलोगे तो पूरा घोंट लेगी जड़ तक। तोहरे भौजी क गारंटी, और वो तो, सोचो बाबू सूरज बली सिंह, बुच्ची क चोद रहे हो, आँख बंद कर के ओहि क ध्यान लगा के पेलो कस "

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और सुरजू की आंख बंद हो गयी, चेहरे पे एक गजब की मस्ती,.....इमरतिया की उँगलियों ने कस के उस मोटे गन्ने को दबोच लिया, क्या कोल्हू में गन्ना पिसता होगा, और हलके से नीचे से सुरजू ने चूतड़ उछाल के धक्का मारा, लेकिन इमरती ने उँगलियाँ ढीली नहीं की। पर पहलवान की ताकत उँगलियों के छल्ले से दरेररता, रगड़ता, लंड अंदर बाहर, और धीमे धीमे जोर और रफ़्तार दोनों बढ़ गयी।

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अब इमरतिया ने भी मुठियाना शुरू कर दिया। दोनों सिसक रहे थे, साँसे तेज तेज चल रही थीं, लग रहा था सुरजू सच में किसी कच्ची कली को अपनी पूरी ताकत से चोद रहे हैं,

हाँ हाँ हाँ और जोर से ओह्ह ओह्ह इमरतिया उकसा रही थी



नहीं नहीं भौजी, रुको निकल जाएगा, अबकी सच में निकल जाएगा, सूरज सिंह घबड़ा रहे थे

तो निकलने दो न, बस सोचो की बुच्ची की कच्ची बिन चुदी चूत में जा रहा है, एक एक बूँद बुच्ची घोंट रही है और जोर से धक्का मारो , आँखे एकदम बंद रखो इमरतिया बोली, और साड़ी के नीचे से ढका छुपा मिटटी का कुल्हड़ निकाल लिया। इमरतिया ने अब तेजी से हाथ चलाना शुरू कर दिया।

जैसे कोई ज्वालामुखी फटा हो, तेज सफ़ेद फव्वारा छूटा हो, सुरजू की आँखे बंद थी, चूतड़ ऊपर नीचे हो रहे थे, चेहरे पर अजब मजे का भाव था , पूरी देह का टेंशन अब धीरे धीरे ढीला हो रहा था।
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इमरतिया अनुभवी थी और इस पल के लिए पहले तैयार थी।




एक एक बूँद उसने कुल्हड़ में रोप लिया। जो सुपाड़े पे लिपटा था, उसे भी ऊँगली में लपेट के,। मन तो कर रहा था झुक के जीभ की टिप से चाट ले, सच में बहुत स्वादिष्ट लग रहा था, फिर लगा बुच्ची के साथ बेईमानी होगी, तो वो भी वापस कुल्हड़ के किनारे, और सरकते लुढ़कते पुढ़कते वो सफ़ेद बूंदे भी कुल्डह के अंदर,। लेकिन अभी भी थोड़ा माल अंदर बाकी था, और बेस पे जोर डाल के जैसे सहलाते सरकाते, इमरतिया ऊपर लायी एक दो बार हलके से मुठीयाया और दुबारा, ढेर सारा सफेदा सुपाड़े से निकल के बाहर और वो भी समेट के कुल्हड़ के अंदर, और चाशनी से भरा कुल्हड़ साड़ी के नीचे,

लेकिन अगले पांच दिन मिनट बहुत जरूरी थे, और सम्हल के, उस समय लड़के के मन में क्या गुजरता है, उसे देखना,

इमरतिया सुरजू को पकड़ के बगल में उसी चटाई पे लेट गयी और हलके हलके अपनी जीभ से कभी कान को छूती तो कभी गले को, कस नहीं बस टच। हाथ से खूब हलके से कभी उसके बाल सहला देती तो कभी हाथों को, इस समय सुरजू को जो महसूस हो रहा हो वो उसके मन के अंदर तक उतर आ जाय, उसे गलती से भी न लगे की उसने कुछ गलत किया, गलत सोचा, बुच्ची के बारे में ऐसा सोच के।

कभी ऊँगली की टिप से सुरजू के चौड़े सीने पे बस हलके से कुछ लिख देती, कुछ सहला देती

जैसे औरत नहीं चाहती की मरद झड़ने के तुरंत बाद उसके ऊपर से उठ के दूसरी ओर मुंह कर के लेट जाए उसी तरह आदमी भी, झड़ने के बाद के जो कुछ पल होते हैं वो धीरे धीरे कर के तन मन में उतर जाते हैं। दस मिनट तक इमरतिया ऐसे ही लेटी रही, फिर उठ के एक चादर सुरजू को ओढ़ा दिया और बोला,

" ऐसे लेटे रहो, कुछ देर तक और कुछ कपडा पहनने के चक्कर में मत रहना, नहीं तो देह क तेल बुकवा सब लग जाएगा। यह कोठरी में हमरे बिन कोई नहीं आएगा। बस थोड़ी देर में खाना ले के आती हूँ, जउन ताकत तोहार बुच्ची निचोड़ ली है न सब वापस आ जायेगी। आँखे बंद रखो और चददर ओढ़े रहो।



साड़ी बस इमरतिया ने लपेट ली और हाथ में कुल्हड़ ले के बाहर निकली। दरवाजा उसने कस के उठँगा दिया, और बाहर ही मुन्ना बहू मिल गयी। कुल्हड़ देख के मुस्करायी, जाते समय उसने देखा था।

इमरतिया ने मुस्करा के दिखाया, ' बुच्ची ननद के लिए शीरा "

"दैया रे इतना ज्यादा, एकबार क है " मुन्ना बहु बोली।

कुल्हड़ आधा से ज्यादा भरा था।
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तबतक मंजू भाभी दूल्हा के लिए रसगुल्ला ले के आ गयी, बस उसी में से थोड़ा सा शीरा उस मलाई वाले कुहड़ में



बुच्ची और शीला खाना ले कर आ रही थीं, लड़के को खाना खिलाने के बाद, जो औरतें लड़किया कोहबर की रखवारी में रहती थी वो सब एक साथ खाना खाती थीं और फिर छत का दरवाजा बंद हो जाता था, सुबह धूप निकलने के साथ ही खुलता।
Kitna khayal rakh rahi hai imritiya apni nanad ka.maza aa gaya
 

Chalakmanus

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Sach kahu to imritiya sachi bhaujai hai.dever ko puri tarah trained kar rahi hai.pehle apne se phir do nanado ki kuwari chut se.



Behtareen..................



Dekhiye shira kya rang dikhlata hai.

nanad bhabhi ki saitaniyo ka intejar rahega
 

Sutradhar

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बुच्ची-- रसमलाई
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तिलक से बियाह तक सब रस्म रिवाज में सबसे ज्यादा दुर्गत, दुलहा की होती है और जलवा भी उसी का रहता है।

और दुर्गत ज्यादा होगी की जलवा, डिपेंड करता है, नाउन और भौजाई पर। एक कमरे में बंद, बाहर निकलना मना, एक कपडा पहने पहने , और निकलेगा भी तो नाउन के साथ और सब रस्म रिवाज के लिए, कभी कोहबर तो कभी,मांडव तो कभी, और उसी के सामने खुल के उस की माई बहिन गरियाई जाएंगी, हल्दी लगाते समय तेज भौजाई होंगी तो जरूर, ' इधर उधर ' हल्दी भी लगाएंगी, और चुमावन करते समय धक्का देके गिराने की भी कोशिश करेंगी। लेकिन कुछ मामलों में जलवा भी है, दूल्हे को जो उसकी भावज, नाउन कहेगी, वो सब खाने को मिलेगा, वो अपने हाथ से खिलाने को भी तैयार रहेगी, दोनों टाइम बुकवा लगेगा,



और यहाँ तो नाउन और भावज दोनों ही एक ही थी, इमरतिया, तो सूरज बाबू का जलवा था और इमरतिया ने उनको समझा भी दिया, " लाला मैं हूँ न एकदम मत घबड़ाना "


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और दूल्हे को जो छप्पन भोग मिलता था उसमे जो कोहबर रखाती थीं ननद भौजाई उनका भी हिस्सा होता था, और रात को कोहबर में जब सब सो जाते थे, उन्ही का राज होता था, फुल टाइम मस्ती।

और वैसे तो शादी का घर वो भी, बड़के घर की,.... हलवाई दस दिन से बैठा था, लेकिन सब मिठाई बन के भंडारे में और ताला बंद।

हाँ दूल्हे के नाम पे जरूर न सिर्फ ताला खुल जाता था बल्कि, हलवाई अलग से थोड़ी दूल्हे के नाम पे बना भी देता था। तो इमरतिया ने मंजू भाभी से कहा था दूल्हे के लिए एक कुल्हड़ में रसगुल्ला ले आएँगी और खाना ले आने की जिम्मेदारी बुच्ची और शीला दोनों लड़कियों की थी।



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मंजू भाभी से रसगुल्ले वाला कुल्हड़ लेकर, इमरतिया ने जो कुल्हड़ सूरजु के पास से लायी थी, उसमें थोड़ा सा शीरा मिला दिया और झट से बुच्ची की आँख बचा के ताखे पर रख दिया और बुच्ची से बोली,


' ले आयी हो देना भी तुम ही,... और ये रसगुल्ले वाला कुल्हड़ भी रख लो, रसगुल्ला तोहार भैया खाएंगे और शीरा तोहे मिलेगा, आखिर बहिनिया का हिस्सा होता है, भाई की थाली में, चलो "


और बुच्ची के साथ इमरतिया कोठरी में जहँ सूरजु अभी भी सिर्फ एक चादर ओढ़े बैठे थे। बुच्ची उन्हें देख के मुस्कराने लगी,



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एकदम मस्त माल लग रही थी खूब टाइट छोटी सी फ्राक में दोनों छोटे छोटे चूजे बाहर निकलने को बेताब थे, गोरा, भोला चेहरा, शैतानी से भरी बड़ी बड़ी आँखे, और सबसे बढ़के दोनों कच्ची अमिया, बस जैसे अभी कुतर ले कोई। और जिस तरह से थोड़ी देर पहले इमरतिया भौजी ने बुच्ची का का नाम ले ले कर मुट्ठ मारी था,

" एकदम कसी कसी फांक है दोनों चिपकी, मेहनत बहुत लगेगी, लेकिन देवर जी मजा भी बहुत आएगा जब ये मोटा सुपाड़ा अंदर घुसेगा "


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और सिखाया भी था, अपनी कसम देकर, ....:जो भी हो, आज से, बहन, महतारी, कोई,.... सीधे चूँची पे देखना "

और सूरजु के सीधे मुस्करा के बुच्ची की चूँची पे देखने का असर दोनों पर हुआ, बुच्ची कुनमुना रही थी , अजीब भी लग रहा था और अच्छा भी

और सूरजु के भी मन में बुलबुले उठ रहे थे

लेकिन सबसे ज्यादा मजा इमरतिया को आ रहा था, यही तो वो चाहती थी। वैसे भी आज रात को वो और मुन्ना बहु मिल एक बुच्ची का रस लेने वाली थीं और फिर सुरजू को छेड़ने, का चिढ़ाने का एक मौका मिल गया था,


" देने आयी हैं ये, तोहार बुच्ची, बोलीं आज भैया को हम देब,… तो काव काव देबू"

बुच्ची मुस्करायी और सुरजू का मुर्गा फड़फड़ाया, अब तो लंगोट का पिंजड़ा भी नहीं था।


सुबह से भौजाइयाँ सब मिल के बुच्ची के पीछे पड़ी थीं और सहेलियां भी डबल मीनिंग डायलॉग बोल बोल के उसे छेड़ रही थीं, फिर अभी तो सिर्फ इमरतिया भौजी और भैया थे और भैया तो वैसे बहुते सोझे, तो वो भी सुरजू से नजरे मिला के इमरतिया से शोख अदा में बोली,

" हमार भैया है,.... जउन जउन चीज माँगिहे, वो वो दे दूंगी "

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इमरतिया तो पक्की छिनार, बुच्ची के पीछे खड़ी थी, झट से हाथ बढ़ा क। उस किशोरी के दोनों हवा मिठाई को दबोच लिया और उभार के सुरजू को दिखाते बोली,

" मांग ला दुनो बालूशाही....., ये वाली। खूब मीठ है, मुंह में ले के चुभलाना, कुतर कुतर के खाना "

और इमरतिया अब खुल के बुच्ची के बस आते हुए छोटे छोटे जोबन मसल रही थी, क्या कोई लौंडा मसलेगा।

लेकिन ये देख के सुरजू लजा गए,पर लग उनको यही रहा था की जैसे इमरतिया नहीं वही बुच्ची की कच्ची अमिया दबा रहे हों। और बुच्ची भी समझ गयी तो बात बदलते बोली,

" भैया ला रसगुल्ला खा, हमरे हाथ से ,...वैसे मीठ मीठ भौजी मिलेंगी और खूब बड़ा सा मुंह खोला एक बार में "

सच में सुरजू ने बड़ा सा मुंह खोल दिया और बुच्ची ने एक बार में ही पूरा रसगुल्ला डाल दिया पर इमरतिया कैसे कच्ची ननद को चिढ़ाने का मौका छोड़ती, बोली

" ऐसे हमर देवर भी एक बार में पूरा डालेंगे तो,... पता चलेगा "

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और अबकी लजाने की बारी बुच्ची की थी, बहाना बना के जाते वो बोली,

" शीला, और मंजू भाभी इन्तजार कर रही होंगी, भौजी आप भैया को खाना खिला के आइये "



;लेकिन दरवाजे पे ही इमरतिया ने उसे दबोच लिया और सरजू को दिखाते बोली

" आज तो भैया को रसगुल्ला खिलाई हो, कल ये वाली रसमलाई चखा देना और जब तक बुच्ची समझे एक झटके में फ्राक उठा के चड्ढी में बंद गौरैया सुरजू को दिखा दी।


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खूंटा एकदम टाइट हो गया, फिर वो बुच्ची के हाथ से रसगुल्ले का कुल्हड़ ले के बोली



" रसगुल्ला तो भैया खाये हैं लेकिन शीरा उनकर बहिनी खाएंगी "

एकदम भौजी , कह के खिलखिलाती, छुड़ा के बुच्ची बाहर।

और दरवाजा बंद कर के इमरतिया मुड़ के सुरजू को देखते आँख नचा के मुस्करा के बोली,

" कैसा लगा माल,... है न मस्त पेलने लायक। "



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" एकदम भौजी " सुरुजू के मुंह से निकल पड़ा। और खाने के लिए सुरजू ने थाली की ओर हाथ बढ़ाया की इमरतिया ने डपट दिया,

" रुक, स्साले, तेरी बहन की, अरे अब यहाँ तोहार हाथ का इस्तेमाल बंद, ये भौजाई काहें हैं ? : और उनके बगल में बल्कि करीब करीब गोद में बैठ के वो बोली, और इमरतिया ने सुरजू का हाथ खींच के अपने ब्लाउज पे रख लिया। साड़ी तो दरवाजा बंद होते ही उतर गयी थी और सुरजू ने वैसे भी सिर्फ चादर ओढ़ रखा था जो अब दूर पड़ी थी।



घोडा एकदम खड़ा था तैयार, फनफनाया।


" छोट छोट चूँची, बिन चुदी कसी कसी चूत, बहुत मन कर रहा है बुच्ची को पेलने का ? "

खड़े घोड़े पर चढ़ती, अपने मोटे मोटे चूतड़ उसपर रगड़ती, इमरतिया ने पहला कौर अपने हाथ से सुरजू को खिलाते चिढ़ाया।



सुरजू के दोनों हाथ कस के इमरतिया के चोली फाड़ते जोबना पे, पहली बार वो खुल के किसी का जोबन दबा रहा था , पहलवान का हाथ चुटपुट चुटपुट करते सब चुटपुटिया बटन खुल गयी। दो सूरज बाहर आ गए, सीधे सुरजू के हाथों में। यही तो वो चाहता था, कस कस के भौजाई के जोबना मसलते वो बोला

" भौजी हमार मन तो केहू और के पेले के करत बा,.... और आज से ना,.... न जाने कहिये से "
इमरतिया की देह गनगना गयी, उसको याद आया एक दिन बड़की ठकुराइन को तेल लगाते लगाते, चिढ़ाते, इमरतिया ने उनकी, सुरजू की माई की बुलबुल में एक साथ तीन ऊँगली पेल दी और वो जोर से चिहुँक के चीख उठी और उसे गरियाते बोलीं, " बहुत छनछनात हाउ ना, अपना पहलवान बेटवा चढ़ाय देब तोहरे ऊपर, फाड़ के चिथड़ा कर देगा, बोल पेलवाओगी "

" तोहरे मुंहे में घी गुड़, लेकिन अरे उ का पेले हमका, हम खुदे ओकरे ऊपर चढ़ के पेल देब देवर है "

और ये बोल के इमरतिया ने तीनो ऊँगली सुरजू की महतारी की बुरिया में गोल गोल घुमानी शुरू कर दी और वो मस्ती से पागल हो गयी।



एक कौर सुरजू को दिखा के सीधे अपने मुंह में डालती हुयी इमरतिया बोली,



" देवर उ तो पेले के लिए ना मिली " और बेचारे सुरजू का मुंह झाँवा हो गया, एकदम उदास जैसे सूरज पर पूर्ण ग्रहण लग गया हो।

इमरतिया को भी लगा की बेचारा देवर, अपने मुंह का कौर अपने मुंह से सीधे उसके मुंह में डालते कस के दोनों हाथ से उसके सर को पकड़ के बोली,

" इसलिए की, वो खुदे तोहें पटक के पेल देई, तोहसे पूछी ना। तोहार भौजाई, घबड़ा जिन। "

और ग्रहण ख़त्म हो गया, सूरज बाहर निकल आया। लेकिन कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशन अप्लाई तो भौजाई ने शर्ते लगा दी।



"पहली बात, बिना सोचे, भौजाई क कुल बात माना, सही गलत के चक्कर में नहीं पड़ना और दूसरी न उमर न रिश्ता, कउनो लड़की मेहरारू को देखो तो बस मन में पहली बात आनी चाहिए, स्साली चोदने में कितना मजा देगी। और देखो, एकदम सीधे उसकी चूँची को, कितनी बड़ी, कितनी कड़ी और तुरंत तो तोहरे मन क बात समझ जायेगी वो, देखो आज बुच्ची k चूँची देख रहे थे तो वो केतना गरमा रही थी एकदम स्साली पनिया गयी थी।"

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और सुरजू मान गए " सही है भौजी, तोहार बात एकदम सही है, लेकिन, कुल बात मानब लेकिन,...."

"बस देवर कल,.... आज आराम कर लो कल से तो तोहार ,..."

कह के बिना अपनी बात पूरी किये थाली उठा के चूतड़ मटकाते इमरतिया कमरे से बाहर।
कोमल जी

मादक और रस से भरा शानदार अपडेट।

लेकिन वही भौजी जैसी शरारत, ऐसी जगह रोका है कि बस कुछ कहता ना बने, बस गनगना के रह जाए।

अब सबसे पहले इसके अपडेट का ही इंतजार रहेगा।

सादर
 
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rajkomal

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Mujhe lagta hai, Imartiya Singh Saab ko esa trained kar degi, ki wo ghar me saari aurto ki le lega. wese buchchi ki raat with bhabhi ka wait h.wese comment ka mood tabhi achcha rahta h, jab story read karo. instantly, ab to repeat chal raha h.
 
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