इस भाग के तीसरे ही पार्ट में लग गया था की सूरज को थोड़ी और ट्रेनिंग की और कॉन्फिडेंस की जरूरत है जब वो कमान खुद हाथ में ले, पहली बार तो विपरीत रति में इमरतिया ने देवर को सिर्फ स्त्री देह के सुख का परिचय कराया था
तीसरा पार्ट यानी बुच्ची और भैया संग मुख रस
लेकिन आग तो बुच्ची की चुनमुनिया में लगी थी और उसने अपने भैया को आखिर बोल दिया,....
और टाँगे खूब फैला के भैया के कंधे पे
लेकिन परेशानी वही थी, जो अभिमन्यु को थी, चक्रव्युह का आखिरी द्वार, लेकिन बेचारे सूरजु को पहला द्वार ही नहीं मालूम था, बिल कैसे ढूँढ़े, कैसे सटाये, कैसे पेलें, एक बार सुपाड़ा बस घुस जाए तो फिर उनके देह में इतनी ताकत थी की चीथड़े चीथड़े कर देते,
बुच्ची पूरा साथ दे रही थी, अपने हाथ से पकड़ के बिल पे लगा रही थी, हिम्मत भी बंधा रही थी
लेकिन अब इमरतिया ऐसी प्रौढ़ा के साथ दो दो राउंड, एक बार सूरज ऊपर, एक बार इमरतिया को निहुरा के
तो अगली बार बुच्ची के साथ ये परेशानी नहीं आएगी और इमरतिया अपने सामने
और कोशिश करुँगी अगले पोस्ट में ही बुच्ची भी इमरतिया की बिरादरी में आ जाए