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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

भाग १०२ - सुगना और उसके ससुर -सूरजबली सिंह पृष्ठ १०७३

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" सूरजु क लंगोट किसने खोला "
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एक बात और थी, सुगना के खानदान में उनके ससुर अपने माँ बाप के इकलौते थे, कोई सगी बहन भी नहीं, और उनके ससुर के पिता जी भी अकेले। उससे बढ़ के बाबू सूरज बली सिंह को नवासा मिला था, उनके ननिहाल में न मौसी न मामा। तो कुल जमीन, .....बीस पचीस कोस दूर ही,....सुगना के गाँव से सटा। १०० बीघा से ऊपर तो खाली गन्ना होता था और चीनी मिल बगल में, तो कुल गन्ना सीधे वहीं, उसके अलावा आम की बाग़,

और बाकी खेत में धान गेंहू, तो गाँव क्या पूरे ब्लाक में उनसे बड़ा काश्तकार कोई नहीं था, सब जोड़ कर,

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लेकिन सबसे ज्यादा मजेदार बात बतायी उनकी भौजाइयों ने, मेरी सास, हिना की अम्मा, ग्वालिन भौजी ने

" सूरजु क लंगोट किसने खोला "


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और उन सब भौजाइयां हंसी ले लहालोट, मेरी सास ही बोलीं,

" गाँव में सुगना के ससुर ऐसा कोई लजाधुर नहीं था,.....जवान भौजाई को देख के रस्ता छोड़ देता था,..... और भौजाई कुल उतने पीछे, "



और अब तो ये बात मैं भी अच्छी तरह समझ गयी थी,


जवान होते लजाते देवरों को रगड़ने, छेड़ने से जयादा मजा किसी में नहीं आता, जो जितना लजाता है उसकी उतनी ही खिंचाई होती है।

चुन्नू
का अभी हाईस्कूल का रिजल्ट नहीं आया, चार दिन पहले इम्तहान ख़तम हुआ था लेकिन, नेकर में हाथ डाल के न सिर्फ मैंने हाल चाल लिया बल्कि अपनी पतली लम्बी गली का रस्ता भी दिखा दिया।
" अरे अभी तो मेरी तेरी होली उधार है , अब तो इम्तहान का बहाना भी नहीं है , " उसका गाल सहलाते मैं बोली।
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" नहीं नहीं , भाभी प्लीज मैं होली नहीं खेलता, ... " छटकते चुन्नू बोला।

और इसी अदा पे तो मैं निहाल हो गयी। बहुत मज़ा आता है इन कमसिन उमर वालों पर जबरदस्ती करने में,

" तुम मत खेलना, मैं तो खेलूंगी, सबसे छोटे देवर हो मेरे, होली में भले बच गए इम्तहान के चक्कर में लेकिन अब थोड़ी , और अभी तो चार दिन पूरे बचे हैं "
और एक बार फिर गुदगुदी लगाते मैं पहले पेट , फिर मेरा हाथ नेकर की अंदर और मैंने उसे पकड़ लिया,
ठीक ठाक बल्कि अच्छा खासा था, ...
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मेरे पकड़ते ही वो कसमसाने लगा, जैसे कोई जीजा होली में साली की नयी नयी आती चूँची पकड़ के दबा दे,... पर न जीजा छोड़ते हैं और न मैं छोड़ने वाली थी


और थोड़ी ही देर में सोते से वो जग गया, मूसल चंद तो नहीं लेकिन साढ़े पांच छह से तो कम नहीं ही रहा होगा, और कड़ा भी बहुत ,
लेकिन सबसे अच्छी बात, जो इस उमर के लड़कों में होती है छूते ही टनटना गया. वो छटपटा रहा था छूटने की कोशिश कर रहा था, लेकिन बार चिड़िया चंगुल में आ जाए तो फिर,... कुछ देर तक तो मैं दबाती रही, बस उसके कड़ेपन का मोटापे का अंदाज ले रही थी, बहुत अच्छा लग रहा था, फिर हलके हलके सहलाते मैंने छेड़ा,

" हे देवर जी, एच पी,... अरे हैंडप्रैक्टिस करते हो न,... किसका नाम ले ले कर,... अपनी किस बहन,...

"
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वो जितना शर्मा रहा था, मैं उतने ही कस कस के मुठिया रही थी, और एक झटके में उसका ऊपर का चमड़ा खींच के, अच्छा खासा मोटा सुपाड़ा, लीची ऐसा रसदार, गप्प से मुंह में लेने लायक,....
' हे आज से ये ऐसे ही खुला रहेगा, समझे ' खुले सुपाड़े पर अंगूठा रगड़ते मैं बोली,
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वो गहरी गहरी साँसे ले रहा था, देह उसकी एकदम टेन्स हो गयी थी, और वो एकदम लोहे की रॉड, इतना कड़ा, मैं बिना रुके पूरी तेजी से आगे पीछे आगे पीछे, ...


कभी अंगूठे से बेस को दबा देती तो कभी बॉल्स भी सहला देती, ... बीच बीच में मैं घड़ी भी देख रही थी, दस मिनट हो गए मुठियाते,...




लेकिन अभी,उस दिन इस हाईस्कूल वाले चुन्नू का पानी निकाला और अगले दिन खुद ऊपर चढ़ के चोद दिया, जबरदस्ती। अरे देवरों की नथ भौजाई नहीं उतारेगी तो क्या उनकी बहने आएँगी ससुराल से


लेकिन असली मजा आया ऐन होली के दिन, जब हम लोग मिश्राइन भाभी के यहाँ से होली खेल के लौट रही थीं, नंदों की शलवार चड्ढी फाड़ के तो एक नयी उमर की नयी फसल टाइप दिख गया तो मंजू भाभी ने चढ़ा दिया

" हे नयको देख तोहार छोट देवर, स्साला भाग न पावे "

" अरे भागेगा तो यहीं निहुरा के गाँड़ मारूंगी स्साले की, " हंस के मैं बोली। भागा तो वो पूरी ताकत से और मैंने दौड़ा के पकड़ लिया और उसके नेकर में हाथ डाल के मुठियाते बोली, " हे खड़ा वड़ा होता है की नहीं अभी। अपनी बहिनिया से जाके चुसवाओ तो झट से खड़ा हो जाएगा "
" कोमलिया , नूनी है की लौंड़ा" एक मेरी जेठान ने हँसते हुए पूछा।

नेकर सरका के खेत में फेंकते हुए मैं बोलीं, " अरे देवर तो देवर , चाहे नूनी हो या लौंड़ा, भौजाई कौन जो फागुन में छोड़ दे "

तो जो मैं अपने कच्ची उम्र के देवरों को नहीं छोड़ती तो मेरी सास लोग, सूरजबली सिंह की भौजाई लोग कैसे ,....तो मेरी सास लोग तो हम लोगों की पीढ़ी से भी दस हाथ आगे, तो सब की सब उनके पीछे,

और देह भी उनकी कसरती, सुबह सुबह भोर भिन्सारे वो मुगदर लेकर कसरत करते, डंड पेलते,


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तो कहीं न कहीं कहीं से कोई न कोई भौजाई, और फिर चिढ़ाना शुरू

" अरे लंगोट में का बाँध रखे हो, कउनो ख़ास चीज है का "

" अरे एक बार खोल के दिखाई तो दो, दे दूंगी, मुंह दिखाई "

" नहीं नहीं अपनी बहिनिया के लिए रखे हैं " कोई भौजाई और पीछे पड़ती।

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उन्होंने एक बँसवाड़ी के पीछे कसरत शुरू की तो देवर गंध,..... वहां भी कोई न कोई

और भौजाइयां आपस में भी, " बित्ते भर से कम का ना होगा "



और बात भी ऐसी थी पूरे बबुआने में लौंडों का लंगोट जवान होने के बहुत पहले खुल जाता था, कोई घर में काम करने वाली , मजाक करते करते , तो कभी कोई घास वाली , और घर की बड़ी औरते, माई दादी भी बुरा नहीं मानती, बोलतीं,

" मरद क जवानी कउनो खाली मूंछ आने से थोड़ो पता चलती है,.... यही तो खेलने खाने की उमर है। "



लेकिन सरजू खाली अखाडा, कसरत, खेती बाड़ी और घर का काम और जबरदस्त देह बना रखी थी और वो देख के सब और पनियाती।



उनकी माँ तो उनकी भौजाइयों से भी आगे

अपनी गाँव के रिश्ते की बहुओं, उनके भौजाइयों को उकसाती

" कइसन भौजाई हो तुम सब,.....हमार देवर अस होत तो पटक के जबरदस्ती पेल देती। ये लंगोट खोलने की उमर है, बाँधने क थोड़ी”
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और ये बात नहीं थी की ठाकुर सूरजबली सिंह ने कोई ब्रम्हचारी होना तय किया था या उनका मन नहीं करता था या पजामे में फड़फड़ाता नहीं था । लेकिन असली बात वही थी जो मेरी सास ने बोली थी,

" लजाधुर, " बस लाज और झिझक, वो पहल नहीं कर सकते थे , और एक बात और की' कोई क्या कहेगा

और ये बात नहीं की फड़फड़ाता नहीं था या रात बिरात, पजामे में,

एक दिन कहारिन जो घर में कपडे साफ़ करती थी, उनकी माई से, सूजबली सिंह के सामने ही उंनका पाजामा दिखाते हुए चिढ़ाया,

" अब इनका बियाह करवा दीजिये , इधर उधर रबड़ी मलाई, गिराने से तो अच्छा "

पजामे पे रात के सपने का बड़ा सा धब्बा था, लेकिन सूरज बली सिंह की महतारी अपने बेटवा की ओर से हंस के बोली

" अरे देवरानी जब आये तब आये तोहार, तब तक भौजाई लोगन क जिम्मेदारी है की देवर क ख्याल रखें । तो गलती तोहार सब का है, गगरी भर जाए तो जवानी में छलकबे करेगी। "

अगले दिन फिर पजामे में, और अबकी वही कपड़ा धुलने वाली दिखाते बोली

" केतना ढेर सारा मांड निकाले हैं देवर हमार "
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" अरे बेटवा केकर हैं "

कुछ गर्व से कुछ दुलार से उनकी माँ बोली और कुछ दिन बाद ही सूरजबली सिंह की शादी तय हो गयी।

घर परिवार अच्छा था, उस जमाने में लड़की देखने का तो था नहीं हाँ जो बीच में थे उन्होंने बता भी दिया की सुन्दर है, घर क काम आता है
Surajbali bhi mast hain. Aage bahut gul khilayenge.
 

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बुच्ची-..... फूफेरी बहन …सुमन
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और एक बार बियाह तय हो जाये तो घर का रंग बदल जाता है, महीने भर पहले से गेंहू, और अंजाज साफ़ करना, कूटना, पीसना और सब घर काम करने वालियों से भरा रहता था, कुछ मेहमान भी

और दर्जन भर काम करने वालियां, कहीं गेहूं सुखाया जा रहा है, पछोरा जा रहा है, पीसा जा रहा है, कहीं चक्की चल रही है, और साथ में जांते का गाना, बिना गाये काम सपड़ता नहीं और थोड़ी देर में गाना असली गारी में, जो सामने पड़ा, उसी पे

और सबसे ज्यादा दूल्हे की माँ, सूरजबली सिंह की महतारी, और वो खुद ही काम वालियों को उकसाती, कोई गाँव के रिश्ते से ननद लगती, कोई बहू, और उन्ही के साथ सूरजबली सिंह के एक रिश्ते की फूफेरी बहन, नाम तो सुमन था लेकिन सब लोग बुच्ची कहते थे। तो दूल्हे की बहन तो गरियाई ही जायेगी,

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बुच्ची के पीछे पड़ने का एक और कारण था, वो चिढ़ती बहुत थी। और अगर कोई ननद चिढ़े तो फिर तो भौजाइयां उसे, और गाँव का मजाक गाने तक नहीं रहता सीधे देह तक पहुँच जाता


और ऊपर से सूरजबली सिंह की माँ, और उन काम वालियों का साथ देतीं, बुच्ची को बचाने के बहाने,


' अरे बेचारी ये छिनार है तो इसका का दोष, एकर महतारी तो खानदानी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार, झांट आने के पहले गाँव भर के लौंडों का स्वाद चख ली थी, ( सूरज बली सिंह के फुफेरी बहन की महतारी, मतलब उनकी बूवा यानी उनकी माँ की ननद,... तो फिर तो गरियाने वाला रिश्ता हुआ ही )।
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और कोई नाउन कहारिन सूरजबली सिंह की महतारी क सह पाके और बोलती,

" हे बुच्ची, तोहार भैया लंगोट में बांध के रखे हैं, सबसे पहले तोहें खिलाएंगे, ....झांट वांट साफ़ कर के तैयार रहा "
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तो फिर सूरजबली सिंह की माई, मजा लेते बोलतीं,

" तो का हुआ, यह गाँव क तो रीत है, स्साली कुल लड़कियां भाई चोद हैं, सब अपने भाई को सीखा के पक्का कर देती हैं, बियाह के पहले तो इहो अपने भैया के साथे गुल्ली डंडा खेल लेगी, "

लेकिन मामला गाँव में एकतरफा नहीं रहता, जांता पीसती गाँव की कोई लड़की ( जो सूरज बली सिंह की माई की ननद लगती ) चटक के बोलती,

" अरे भौजी, ननद लोगन का बड़ाई करा, की भाई लोगन क सिखा पढ़ा के, अरे तभी तो कुल दूर दूर से हमार भौजाई लोग आती है , उनकी महतारी भेजती हैं गुल्ली डंडा खेलने के लिए। ....और लंगोट खोलवाने का काम काम तो देवर के भौजाई लोगन क भी है "
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और सूरजबली सिंह की माई पाला बदल के अपनी गाँव की बहुओं को ललकारतीं,


" हे देखा,.... इतनी भौजाई बैठी हैं, हमको तो कुछ नहीं है हम तो सास है। महीना भर बाद तोहार देवरानी उतरी तोहीं लोगन क कोसी,.... की ये जेठानी लोग कुछ गुन ढंग अपने देवर को नहीं सिखाई, इतने दिन में लगोट भी नहीं खोल पायीं अपने देवर का "

और बात सही भी थी, गाँव में कोई भी ऐसा लड़का नहीं था जो शादी के पहले कम से कम दस बारह, और दस बारह बार नहीं, दस बारह से,गन्ने के खेत में तो, कोई छोड़ता नहीं था, ... बस पेटीकोट उठा, पाजामा सरका और निहुरा के गपागप गपागप


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और उनमे भी ज्यादातर खूब खेली खायी काम करने वाली, तो कोई और शादी शुदा, लेकिन सूरजबली सिंह का लंगोट,....



मुझसे नहीं रहा गया और मैं अपनी सासों की गोल में पूछ बैठी, " तो सूरज बली सिंह का लंगोट खोला किसने"



अब तो वो हंसी का दौर पड़ा, बड़ी मुश्किल से सब लोग चुप हुए फिर ग्वालिन चाची ने बड़की नाउन ( गुलबिया की सास ) की ओर इशारा करके बोला

" इनकी देवरानी ने, .....इमरतिया। "
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Ufff Imratiya bhi ekdam kadak hai.
 

komaalrani

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इमरतिया का जिक्र कहानी में पहले भी आया है जब सुगना का जिक्र आया था तभी

भाग ८२ -सुगना भौजी पृष्ठ ८३० पर ,

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भाग ८२ -सुगना भौजी १६१० १२७ बंटी अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद क़तर गया था, गौने के कुछ दिन बाद ही तब से लौटा नहीं। पच्छिम पट्टी की,... सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी...
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"अरे गुलबिया की चचिया सास ,.. उनके घर की नाउन, कभी तेल लगाने तो कभी गोड़ मींजने, इमरती नाम था,... और सब को मालूम था था की तेल कहाँ कहाँ लगता था,... और वो मुंह खोल के बताती भी थी, एक दिन में मेरी सास ने मजाक में मेरे सामने पूछ भी लिया हँसते हुए ओह बड़का औजार में तेल आज कल लगता है की नहीं, केतना बड़ा है,... तो जिस तरह बित्ता फैला के इमरतिया बोली की मेरा और मेरी सास दोनों का मुंह खुला रहा गया.
और साथ में हंस के साफ़ भी कर दिया अरे मोटा कड़ियल काला नाग है सब बिल के बस का नहीं है।

---
सबसे खतरनाक काम उसने किया अपने मरद के जाते ही इमरतिया का घर में आना जाना बंद कर दिया,...

और फिर
सुगना और सुगना के ससुर वाले प्रकरण में

" इमरतिया आती थी कभी एक दो दिन नागा कर के ही सही, उनका काम हो जाता था, और उम्र होने से क्या होता है न उनका शरीर बूढ़ा हो रहा था न मन, बल्कि जब से सुगना आयी थी मन और पागल हो रहा था।

आखिर उन्होंने कह ही दिया बिना सुगना से बोले,

" आज पैर में बहुत दर्द हो रहा है,... ससुरी इमरतिया भी बहुत दिन से आयी नहीं, मालिश कर देती तो,... " अपना दुःख खुद से कह रहे थे, तो सुगना बोल पड़ी

" तो मैं कर देती हूँ न मालिश, इमरतिया से ज्यादा ताकत है मेरी देह में"

---
तो कौन थी ये इमरतिया, क्या रिश्ता था उसका सुगना के ससुर से,

, क्यों सूरज बली सिंह का मन उसके बिना नहीं भरता था

 
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फागुन के दिन चार भाग ३८, रीत और चुम्मन का मोबाइल पृष्ठ ४२४ अपडेट पोस्टेड

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जोरू का गुलाम भाग 247 - मेरा दिन -बूआकी लड़की पृष्ठ १५३९

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Wonderful update. We all had been waiting to read Suguna's story. Time has come now.
Thanks, and it will be a very detailed story running in more than 10 parts. looking forward to your views.
 
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