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Erotica छाया ( अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता एव उभरता प्रेम) (completed)

Alok

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Atayant Adhbudh Lovely Anand ji.........

Iss kahani ki jitni prashansa ki jaye woh bhi kam hai, bahut samay baad koi aise kahani padh rahe hai jis mein sambhog ka samay bhi pyaar jhalakta hain.........


Aise hi likhte rahiye........ :love3::love3::love3::love3::love3::love3::love3:
 

Lovely Anand

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sunoanuj

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Bahut hee badhiya kahani hai ...
 

juhi gupta

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superb,is fourm par kai story padne ke baad me sochti thi ki ,bs,ab isse behtar story or koi nhi likh sakta,lekinapne mjhe galat sabit kar diya,aapki kahani me vo realty he jo hamari life me kisi na kisi roop me ghat chuki hoti he ,mujhe kabhi kabhi movie ka song yaad aata he "kal or aayenge mujse behtar kahne wale tumse behtae suune wale ,vo bhi ek pal ke hissa he me bhi ak pal ka hissa hu "
 

Lovely Anand

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superb,is fourm par kai story padne ke baad me sochti thi ki ,bs,ab isse behtar story or koi nhi likh sakta,lekinapne mjhe galat sabit kar diya,aapki kahani me vo realty he jo hamari life me kisi na kisi roop me ghat chuki hoti he ,mujhe kabhi kabhi movie ka song yaad aata he "kal or aayenge mujse behtar kahne wale tumse behtae suune wale ,vo bhi ek pal ke hissa he me bhi ak pal ka hissa hu "
बहुत-बहुत धन्यवाद आपको कहानी का तीसरा भाग आज मैं प्रस्तुत कर रहा हूं जैसे-जैसे आप कहानी पढ़ते जाएंगे आपको छाया से प्यार होता जाएगा
 

Lovely Anand

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छाया - भाग 3

जन्मदिन और अनूठा उपहार.
2 दिन बाद छाया का जन्मदिन था. वह १९ वर्ष की होने वाली थी. माया जी ने मुझसे राय कर उस दिन घर में पूजा का आयोजन रखा था. इस शुभ अवसर पर माया जी ने मेरे द्वारा लाई गई साड़ी पहनी थीं. छाया भी मेरे द्वारा लाये खूबसूरत गुलाबी रंग का लहंगा चोली पहनी.

Smart-Select-20201218-110740-Chromeमाया जी ने मेरे लिए भी एक सफेद रंग का मलमल का कुर्ता मंगाकर रखा था. छाया आज पूजा का केंद्र बिंदु थी. वह अत्यंत खूबसूरत लग रही थी आस पड़ोस की स्त्रियों ने उसे खूब अच्छे से तैयार किया था. उसके केस खुले और व्यवस्थित थे. मुझसे नजर मिलते ही वह शरमा गई. पूजा खत्म होने के पश्चात सभी मेहमान अपने अपने घर वापस चले गए. माया जी भी थक चुकी थी वह भी भोजन करने के उपरांत अपने कक्ष में विश्राम के लिए चली गई. मैं अभी भी नीचे था व्यवस्था में शामिल अपने दोस्तों को विदा करने के बाद मैं अपने कमरे में आया.
मेरे कमरे से मनमोहक खुशबू आ रही थी.

मेरे बिस्तर पर सफेद चादर बिछी हुई थी. और उस पर मेरी छाया लाल तकिए पर सर रख कर सो रही थी. मैं उसे देखते हुए अपनी कुर्सी पर बैठ गया. छाया मेरी तरफ करवट ली हुई थी. चोली में बंद उसके दोनों स्तन उभरे हुए दिखाई पड़ रहे थे. उसकी दोनों जांघें लहंगे के पीछे से अपने सुडोल होने का प्रमाण दे रहीं थीं. उसका लहंगा थोड़ा ही ऊपर था उसके पैर में लगा हुआ आलता और पाजेब अत्यंत मोहक लग रहे थे. मैं इस खूबसूरती को बहुत देर तक निहारता रहा.
अपने स्वभाव बस मैं छाया के लहंगे को ऊपर उठाने की चेष्टा करने लगा. मैंने उसके लहंगे को घुटनों तक उठा दिया. लहंगे को इससे ऊपर उठाना संभव नहीं हो पा रहा था. तभी छाया करवट से अपनी स्थिति बदलते हुए पीठ के बल आ गई. कुछ देर बाद मैंने उसके लहंगे को थोड़ा और ऊपर किया. अब लहंगा उसकी जांघों तक आ गया. लहंगे को इसके ऊपर ले जाने में मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. बिना छाया की अनुमति के मेरे लिए यह करना उचित नहीं था. छाया अभी भी शांत थी परंतु उसकी धड़कनें तेज थी. मैंने धड़कते हृदय से छाया पुकारा. उसने एक पल के लिए अपनी आंखें खोली मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए दोनों हथेलियों से अपनी आंखें बंद कर लीं मानो वह राजकुमारी दर्शन के लिए अपनी मौन स्वीकृति दे रही हो.
मेरे प्रसन्नता की सीमा न रही मैं छाया के चेहरे के पास गया और उसे गाल पर चुंबन दिया वह मुस्कुरा रही थी. मैंने उसकी चोली के धागों को खोल दिया. स्तनों के आजाद होने से चोली का ऊपरी भाग एसा लग रहा था जैसे उसने स्तनों को सिर्फ ढका हुआ है. मैंने एक झटके में उसे भी हटा दिया छाया के नग्न और पूर्ण विकसित स्तन मेरी नजरों के सामने थे. मेरे मन में उन्हें छूने की तीव्र इच्छा हुई पर मैं इस खूबसूरत पल का धीरे धीरे आनंद लेना चाह रहा था. छाया के दोनों स्तन उसकी धड़कनों के साथ थिरक रहे थे. मैं छाया के लहंगे की तरफ बढ़ा और कमर में बंधी लहंगे की डोरी को ढीला कर दिया. छाया के पैरों की तरफ आकर मैंने लहंगे को नीचे की तरफ खींचने की कोशिश की परंतु लहंगा छाया के नितंबों के नीचे दबा हुआ था. छाया स्थिति को भांप कर अपने अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर उठाया और मैंने लहंगे को उसकी जांघों के रास्ते खींचते हुए बाहर निकाल दिया. छाया ने सुर्ख लाल रंग की मेरे द्वारा लाई गई पेंटी पहनी हुई थी. मैंने उसके खूबसूरत लहंगे को अपनी टेबल पर रख दिया. मेरी छाया लाल रंग की पेंटी में अपने खुले स्तनों के साथ लाल तकिए पर अपना सर रखे हुए अधखुली आंखों से मेरी प्रतीक्षा कर रही थी.
मैं छाया के चेहरे के पास गया तथा उससे राजकुमारी दर्शन की अनुमति मांगी. उसने मेरे गालों को पकड़कर मेरे होठों पर चुंबन कर दिया. मैं इस प्रेम की अभिव्यक्ति को बखूबी समझता था. मैंने बिना देर किए उसके होठों को अपने होठों से चूसने लगा. उसके होंठ इतने कोमल थे कि मुझे डर लग रहा था कहीं उसके होठों से रक्त ना आ जाए. इस दौरान मेरे हाथ बिना उसकी अनुमति लिए उसके स्तनों को सहला रहे थे.
मैंने उसके होंठों से अपने होंठ हटाए. मेरे होठों पर रक्त देखकर उसने अपनी उंगलियों से उसे पोछने की कोशिश की. उसकी कोमल उंगलियों के होठों पर आते ही मैंने उन्हें अपने मुंह में लेकर चूसने लगा. उसने मुस्कुराकर अपनी उंगलियां वापस खींच ली.
राजकुमारी दर्शन का वक्त आ चुका था मैं उठकर उसके दोनों पैरों के बीच आ गया. मैंने अपने दोनों हाथों की उंगलियां उसकी पैंटी में फसाई और धीरे-धीरे नीचे की तरफ खींचने लगा. छाया ने एक बार फिर अपने नितंबों को ऊपर उठाया. और पेंटी जांघों से होते हुए घुटनों तक आ गई. क्योंकि मैं दोनों पैरों के बीच बैठा था इसलिए पेंटी का बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था.

Smart-Select-20201218-111020-Chrome छाया ने अपने दोनों पैर छत की तरफ उठा दिए. और मैंने उसकी पैंटी को धीरे-धीरे बाहर निकाल दिया. मैंने अपनी आंखें बंद की हुई थीं. मैंने छाया से कहा
“मैं राजकुमारी के दर्शन को यादगार बनाना चाहता हूं मेरा सहयोग करना”
कुछ देर बाद मैंने अपनी आंखें खोली. छाया ने अपने दोनों घुटने अपने स्तनों से सटा रखे थे. उसके दोनों जांघें पूरी तरह फैली हुई थी. उसने अपने कोमल हाथों से अपनी राजकुमारी के मोटे मोटे होठों को को यथासंभव अलग किया हुआ था. रस से भरी हुई राजकुमारी मेरे सामने थी. राजकुमारी का रंग अत्यंत गुलाबी था. उसके ऊपर उसका मांसल मुकुट थोड़ा गहरे रंग का था और अत्यंत मोहक एवं आकार में बड़ा था. मैंने छाया की तरफ प्यार से देखा और बिना किसी अनुमति के अपने होंठों से उसे चूम लिया.
मैंने छाया से कहा
“आज इस राजकुमारी का भी जन्मदिन है” वह मुस्कुरा रही थी.
मैंने अपनी जीभ को राजकुमारी के अंदर प्रवेश करा दिया. रस में डूबी हुई राजकुमारी मेरे जीभ का स्पर्श पाते ही अपना रस बहाने लगी. मेरे होंठ राजकुमारी के होठों से टकरा रहे थे. कुछ ही पलों में छाया ने अपनी कोमल जांघें मेरे दोनों गालों से सटा दीं . मैं पूरी तन्मयता से उसकी राजकुमारी से निकलने वाले रस का स्वाद ले रहा था. मैंने अपनी जीभ से उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो छाया में अपनी दोनों जांघों से मेरे मेरे गालों को जोर से दबाया. मैं राजकुमारी में इतना खो गया था कि मुझे छाया के स्तनों का ध्यान भी नहीं रहा. यह उसके खूबसूरत स्तनों से बेईमानी थी. मेरे हाथ उसके स्तनों की तरफ बढ़ चले. अपनी दोनों हथेलियों से मैं उसके दोनों स्तनों को सहलाने लगा. मेरी जीभ राजकुमारी के अंदर बाहर हो रही थी. छाया अपनी उंगलियां से कभी मुझे बाहर की तरफ धकेलती की कभी अपनी तरफ खींच लेती. मैंने एक बार नजर उठाकर छाया की तरफ देखा उसने आंखें बंद कर रखी थी. और बहुत तेजी से हाफ रही थी. मैंने इस बार उसके मुकुट ( भग्नाशा ) को अपने दोनों होंठों के बीच ले लिया. छाया से अब बर्दाश्त नहीं हुआ उसने लगभग चीखते हुए पुकारा
“मानस भैया…….”


और अपने दोनों पैर हवा में तान दिए मैंने अपने होठों पर राजकुमारी के कंपन महसूस किये. उसके हाथ अब मेरे सिर को राजकुमारी के पास आने की इजाजत नहीं दे रहे थे. वह कांप रही थी. उसकी राजकुमारी से प्रेमरस बह रहा था. मैं इस अद्भुत दृश्य को देख कर खुश हो रहा था. कुछ सेकंड बाद उसके हवा में तने हुए पैर नीचे आए और मेरे कंधे से छूते हुए बिस्तर पर आ गए. छाया ने अपनी आंखें खोली और इशारे से मुझे ऊपर बुलाया और मेरे होंठों को अपने होंठो में ले लिया. एक पल के लिए मुझे लगा . शायद वो अपने प्रेम रस को मेरे होठों से चूसकर उसका स्वाद लेना चाहती हो.
छाया ने आज एक दिन में इतना कुछ पा लिया था जिसे पाने में कई युवतियों को विवाह तक और कईयों को जीवन भर इंतजार करना पड़ता है. बहुत खुश लग रही थी. उसने कमरे से जाते समय शरमाते हुए बोली
“मानस भैया अपने जन्मदिन पर राजकुमारी को दिया गया आपका यह उपहार मैं कभी नही भूलूंगी.” इतना कहकर वह मेरे पास आयी और मेरे कान में बोला
“अब आपको सीमा दीदी की याद भी कम आएगी” कहकर वह बाथरूम में चली गयी.
मैंने अपने राजकुमार को इंतज़ार करने की सलाह दी और कमरे से बाहर चला आया.

राजकुमार से मित्रता
अगले कई दिनों तक छाया मुझसे नहीं मिली. शायद वह शर्मा रही थी. एक दिन वह मेरे कमरे में कुछ सामान निकालने आई. सामाँन काफी उचाई पर था. वह मुझसे उतारने के लिए बोली. मैंने उससे कहा
“मैं तुम्हें ही उठाता हु तुम खुद ही निकाल लो.”
वह हँस पड़ी और बोली
“ठीक है:
मैंने उसे उसकी जांघो से पकड़ कर ऊपर उठा लिया . उसके कोमल नितम्ब मेरे हांथों से सटे हुए थे. उसकी राजकुमारी लहंगे के अन्दर से मेरे चहरे से सटी हुए थी. मेरे नथुनों में उसकी खुशबू आ रही थी. मैंने अपने होंठों से उसे चूमने की कोशिश की तो छाया में कहा
“ मानस भैया मैं गिर जाउंगी.”
मैं रुक गया. उसने सामान निकाल लिया था. वह मुझसे सटे हुए फिसलते हुए नीचे आ रही थी. उसके स्तनों की रगड़ मैंने अपने चहरे पर भी महसूस की. मेरे हाथ उसके नितंबो को भी सहला चुके थे.
उसने अपने कपडे ठीक किये. और बोली
“आप तो हमेशा राजकुमारी के साथ ही छेड़खानी करते हैं मुझे तो राज कुमार से कभी मिलवाया ही नहीं. उस दिन भी आप मुझे बाथरूम में छोड़कर चले गए.” कह कर वह सामान लेकर जाने लगी.
मैंने कहा
“ वो तब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा है.”
“अच्छा ? तो मैं सामान माँ को दे कर आती हूँ.”
वह चली गयी और मैं और मेरा राजकुमार उम्मीद लिए उसका इंतज़ार करने लगे.
छाया आई और उसमे मुझे आंखे बाद करने के लिया कहा. मैंने भी अपनी आंखे वैसे ही बंद कर लीं जैसे वह राजकुमारी के दर्शन के समय की थी. छाया ने राजकुमार को बाहर निकाल लिया था. उसने कौतूहल भरी निगाहों से मेरे राजकुमार को देखा. उसने उसकी कोमलता और तनाव को नापने की कोशिश की. उसके कोमल हाथों में आते ही राजकुमार उछलने लगा. राजकुमार की धड़कन छाया को बहुत पसंद आ रही थी. जब वह अपने हाथों से उसे दबाती तो राजकुमार ऊपर की तरफ उछलता. छाया को इस कार्य में बहुत मजा आ रहा था. उसने अपनी उंगलियों से राजकुमार की चमड़ी को पीछे किया. चमड़ी पीछे आते हैं मेरा शिश्नाग्र जो अभी आधा खुला था पूरी तरह उसके सामने आ गया. उसके मुंह से निकल गया
“मानस भैया यह कितना सुंदर है” मैं हँस पड़ा. वह शर्मा गयी. उसने अपनी उंगलियों से उसे छुआ. राजकुमार फिर उछला वह इस खेल में तल्लीन हो गई थी. वह मेरे राजकुमार को अपने दोनों हाथों से अपनी इच्छा अनुसार खिलाने लगी. यह उसका पहला अनुभव था और मैं इसमें अपना अनुभव नहीं डालना चाह रहा था. जैसे जैसे वह राजकुमार से अपना परिचय बढ़ाती गयी मेरा तनाव बढ़ता गया मैं अभीअब स्खलित होने वाला था. वह मेरे बिल्कुल समीप बैठी थी जैसे ही उसने अपनी हथेली से शिश्नाग्र को छूना चाहा ज्वालामुखी फूट गया. स्खलित हो रहे लिंग को पकड़ पाना छाया जैसी कोमल युवती के लिए असंभव था. राजकुमार में अपना वीर्य छाया के ऊपर ही छिडक दिया छाया इस अप्रत्याशित वीर्य वर्षा से हतप्रभ थी. उसे शायद इसका अंदाजा नहीं था वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखी जैसे पूछ रही हो यह क्या हुआ. मैं मुस्कुराने लगा और उसे अपने आलिंगन में खींच लिया.
मैंने उसे बताया
“ ये तुम्हारी मेहनत का फल था. अब राजकुमार तुम्हारा मित्र हो गया है” इसका ध्यान रखना.
वयस्क छाया
बैंगलोर आगमन
15 दिन बाद मुझे बेंगलुरु मैं अपनी नई नौकरी ज्वाइन करनी थी मैंने सीमा का इंजीनियरिंग में दाखिला बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित कालेज में कराने के लिए आवेदन कर दिया. माया जी को मैंने जाकर यह सूचना दी कि अब हम सब बेंगलुरु में ही रहेंगे. छाया और माया जी की खुशी का ठिकाना ना रहा. छाया बहुत खुश थी यह आप समझ सकते हैं पर माया जी की खुशी इस बात से भी थी कि उन्हें यहां अकेले नहीं रहना
पड़ेगा. उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि मैं उन्हेंअपने साथ ले जाऊंगा. मेरे और छाया के बीच बन चुके इस नए रिश्ते के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.
छाया और माया जी ने अपने जरूरी सामानों की पैकिंग चालू कर दी.
कुछ ही दिनों में बेंगलुरु जाने का वक्त आ गया छाया और माया जी का यह पहला हवाई सफर था. वह दोनों ही बहुत
उत्सुक और खुश थे. माया जी मेरी बहुत शुक्रगुजार थी. छाया तो मेरी प्रेमिका बन चुकी थी. हम हवाई सफर का आनंद लेते हुए बेंगलुरु आ गए.
बेंगलुरु में मेरी कंपनी द्वारा दिया गया नया घर बहुत ही सुंदर था इस घर में दो कमरे बाथरूम सहित एक बड़ा हाल
और एक किचन था सभी कमरे पूरी तरह सुसज्जित थे . उनमें आधुनिक साजो सामान लगे हुए थे कुछ ही घंटों में हम सब घर में व्यवस्थित हो गए. छाया ने तो किचन में जाकर चाय भी बना लाई. माया जी बहुत खुश थी उन्होंने इतने अच्छे घर की कल्पना नहीं की थी. शाम को मैं घर से बाहर जाने लगा ताकि जरूरत की सामग्री ले आऊं तो छाया भी मेरे साथ आ गई. हम दोनों ने घर के आस-पास आवश्यक साजों सामग्री की दुकानें देखीं और अपनी जरूरत का सारा सामान ले आए.
रास्ते में आते समय मुझे एक बढ़िया रेस्टोरेंट दिखा मेरे मन में छाया और माया जी को खुश करने का एक और विचार आया मैंने छाया को बोला तुम घर पहुंचो मैं आता हूं. मैंने फूलों की दुकान से दो खूबसूरत गुलदस्ते लिए और मुस्कुराते हुए घर चल पड़ा. वह अभी लिफ्ट का ही इंतजार कर रही थी. मेरे हाथों में दो गुलदस्ते देखकर वह कौतूहल से भर गई उसने कहा
“यह किसके लिए” मैं कुछ बोलता इससे पहले लिफ्ट आ गइ. और हम दोनों लिफ्ट के अंदर प्रवेश कर गये. लिफ्ट खाली थी हम ऊपर की तरफ चल पड़े. छाया ने दोनों हाथों में सामान पकड़ा हुआ था. मैंने उसे सामान नीचे रखने के लिए कहा और अपने हाथ में लिया हुआ गुलदस्ता उसे दिया. मैंने उसे बड़े प्यार से कहा...
“मेरी प्रेयसी का बैंगलोर और मेरी जिंदगी में स्वागत है.”
वह भावुक हो गइ और मुझसे लिपट गई.
“मानस भैया आप बहुत अच्छे हैं” मैंने उसकी गाल पर चपत
लगाई और बोला अब भी भैया बोलोगी क्या. वह मुस्कुराइ और बोली
“घर में तो बोलना ही पड़ेगा”
घर पहुंच कर मैंने दूसरा गुलदस्ता माया जी को दे दिया वह भी बहुत खुश हुयीं और मुझे जी भर कर आशीर्वाद दिया. यह वही माया जी थी जो आज कुछ साल पहले मेरे सपने में आयीं थी पर अब रिश्ते बदल चुके थे उनकी पुत्री मेरी प्रेयसी बन चुकी थी. मैंने माया जी से कहा..
“आप लोग तुरंत अच्छे से तैयार हो जाइए हमें किसी से मिलने जाना है.”
माया जी ने कहा...
“मानस अभी बहुत देर हो चुकी है खाना भी बनाना है क्यों ना हम लोग कल चलें”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा..
“आज ही जरूरी है ज्यादा समय नहीं लगेगा” थोड़ी ही देर में हम सब तैयार होकर घर से बाहर आ गए. मैं उन लोगों को लेकर रेस्टोरेंट में गया उनकी प्रसन्नता की सीमा न रही मैंने अपनी पसंद से सभी के लिए भोजन मंगाया और खाना खाकर हम खुशी खुशी घर वापस आ गए. माया जी के रूम में जाते ही छाया मेरे से लिपट गई. उसके स्तनों का मेरे सीने पर दबाव उसके खुश होने की गवाही दे रहा था. अगले कुछ दिनों में धीरे धीरे हम सब नए परिवेश में अपने आप को ढाल रहे थे.

छाया की मालिश
दो हफ्ते बाद छाया का एडमिशन था. उसका कॉलेज मेरे ऑफिस के रास्ते में ही था. छाया के एडमिशन कराने मैं उसके साथ गया. छाया की एडमिशन की प्रक्रिया काफी थकाने वाली थी. एक काउंटर से दूसरे काउंटर दूसरे से तीसरे ऐसा करते करते पूरा दिन बीत गया. हम दोनों बुरी तरह थक चुके थे. वापस टैक्सी में आते समय वह मेरे कंधे पर अपना सर रख कर सो गइ. घर पहुंचते ही पता लगा माया जी सोसाइटी में चल रहे कीर्तन में गई हुई हैं. हम दोनों घर पर आ चुके थे मैं और छाया दोनों ही अपने बाथरूम में नहाने चले गए. कुछ ही देर में फूल की तरह खिली हुई छाया बाथरूम से बाहर आई. मैं उससे पहले ही बाहर आ चुका था. उसने मुझसे कहा पूरे शरीर में दर्द हो रहा है. वह वास्तव में थकी हुई थी. यह बात में भली-भांति समझता था. मैंने कहा
“छाया लाओ में तुम्हारी पीठ में तेल लगा दूं.” मेरे मुंह से यह सुनकर वह खुश भी हुई और शर्मा भी गई पर बात निकल चुकी थी उसने कहा
“ठीक है” वह भी रोमांचित लग रही थी.
कुछ ही देर में मैंने किचन से सरसों का तेल ले आया. गांव में सरसों
के तेल की बड़ी अहमियत होती है. मैंने तेल को थोड़ा गर्म कर लिया था. उसने अपनी बिस्तर पर एक बड़ी और मोटी सी पुरानी चादर डाली और पेट के बल लेट गई.
उसने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. बैंगलोर आने के बाद उसका लहंगा चोली भी स्कर्ट टॉप में बदल गया था. उसे इस तरह तुरंत तैयार होते देखकर मुझे एहसास हो रहा था कि शायद वह इस मालिश से कुछ और भी आनंद लेना चाह रही है. पता नहीं क्यों मुझे यह बात छठी इंद्रिय बता रही थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और बिस्तर पर आकर अपने दोनों हाथों से उसके पैरों में तेल लगाने लगा.उसकी पिंडलियों तक पहुंचते-पहुंचते मैंने अपने राजकुमार में तनाव महसूस करना शुरू कर दिया. वह पूरी तरह तन कर खड़ा था. कुछ ही देर में मेरी उंगलियां उसकी जांघो तक पहुंच गई थी वह शांत भाव से लेटी हुई थी. उसने चेहरा एक तरफ किया हुआ था. मुझे उसके गालों पर
लालिमा स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. मैंने अपने हाथ नहीं रोके और मैं उसकी जांघों पर तेल से मालिश करता रहा. कुछ ही देर में स्कर्ट बिल्कुल ऊपर तक उठ गया था. उसके नितम्ब दिखाई पड़ने शुरू हो गए थे. शायद उसने पैंटी मेरे किचन में जाते समय उतार दी थी. . मुझे उसकी दासी की हल्की झलक दिखाई पड़ी. उसके नीचे से उसकी राजकुमारी भी अपनी झलक दिखा रही थी. मैंने उसको उसी अवस्था में रोक दिया और वापस स्कर्ट को थोड़ा सा नीचे कर दिया. अब मैं सीमा की कमर पर तेल लगा रहा था. मैंने स्कर्ट को इतना नीचे किया था जिससे उसके नितंबों का अधिक से अधिक भाग पर मैं तेल लगा सकूं. मेरे हाथ स्कर्ट के अंदर जाकर भी अब पूरे नितंबों को तेल से सराबोर कर चुके थे. धीरे धीरे मैं उसके कमर पीठ और गर्दन तक तेल से सराबोर कर दिया था. मेरे हाथ उसके कोमल शारीर पर फिसल रहे थे. इससे निश्चय ही उसके दर्द और थकान में राहत मिली होगी. मैंने छाया का स्कर्ट व टॉप उतारे बिना उसके नितंबों और पूरे शरीर पर तेल मालिश कर ली थी. उसके नितंबों की मालिश करते समय जितना सुख उसे प्राप्त हो रहा था उतना ही सुख मुझे भी मिल रहा था.
उसके नितंब अत्यंत कोमल थे जब मेरी उंगलियां जांघों के बीच होते हुए नितंबो तक पहुंचती तो कभी-कभी वह उसकी दासी से भी टकरा जाती. उन मांसल जांघों और नितंबों के बीच के बीच उंगलियां फिसलाते हुए मुझे अद्भुत आनंद मिल रहा था. कुछ ही देर में मुझे उंगलियों पर राजकुमारी के प्रेम रस की अनुभूति हुई. उंगलियों के राजकुमारी के होठों से टकराहट से राजकुमारी उत्तेजित हो चुकी थी और उसका प्रेमरस उसके होठों पर आ चुका था.
मैंने छाया को पीठ के बल लेट जाने का इशारा किया. उसके स्तन उसके टॉप के नीचे थे. जांघे खुली हुई थी. मैंने उसके पैरों पर तेल लगाना शुरू किया. उसके उंगलियों, टखनो और घुटनों पर तेल लगाने के पश्चात धीरे-धीरे मेरे हाथ उसकी जांघों तक पहुंचते गए. उसकी जांघे अत्यंत सुंदर थी. छाया ने अपना एक पैर थोड़ा ऊपर किया. मुझे राजकुमारी के दर्शन हो गए. यह समझते ही उसने अपना पैर पुनः नीचे कर लिया. मैं उसकी जांघों की मालिश करता रहा और मेरी उंगलियां राजकुमारी के करीब पहुंच चुकी थी. उसका स्कर्ट अभी भी राजकुमारी के ऊपर था. कुछ देर उसकी जांघों की मालिश करने के बाद मैंने अपनी उँगलियों से उसकी राजकुमारी को छुआ.
छाया के चेहरे पर तनाव दिख रहा था वह इस आनंद की अनुभूति कर तो रही थी पर थोड़ा घबराई हुई थी.मैंने अपनी उंगलियां राजकुमारी से हटा लीं और वापस उसकी नाभि प्रदेश में चला गया. धीरे-धीरे मैंने उसकी नाभि पर तेल लगाया और बढ़ते बढ़ते स्तनों तक आ पहुंचा. मैंने स्तनों को बिना छुए स्तनों के बीच की जगह और अगल-बगल तेल से सराबोर कर दिया. मैं उसके कंधे की भी मालिश कर रहा था और गर्दन पर अपनी उंगलियां फिरा रहा था. छाया पूरी तरह आनंद के आगोश में थी.
मैंने उसके माथे पर चुंबन दिया और अब मैं उसके स्तनों पर तेल लगाना शुरू कर चुका था. उसके स्तन अत्यंत कोमल थे. आज कई दिनों बाद मैं उसके नग्न स्तनों को इस प्रकार से छू रहा था. स्तनों को तेल लगाते वक्त मैं उन्हें उनके आकार में लाने की कोशिश कर रहा था. मैं अपनी हथेलियों से उन्हें आगे की तरफ खीचता . अपने हाथों से लेकर दबाते हुए ऊपर की तरफ आता और उनके निप्पलों को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच रखते हुए उन्हें सहलाता. जैसे मैं उसके स्तनों
को उचित आकार देने की कोशिश कर रहा था जो गुरुत्वाकर्षण की वजह से अभी थोड़ा दबे हुए लग रहे थे.
छाया आनंद से अभिभूत थी. उसके चेहरे पर संतुष्ट के भाव दिखाई पड़ रहे थे पर उत्तेजना से उसके गोरे चेहरे पर लालिमा आ गयी थी. कुछ देर स्तनों की मालिश करने के बाद मैंने उसके पैरो में हलचल देखी. उसके
पैर तन गए थे. छाया स्खलित होने की प्रतीक्षा कर रही थी. उसकी जाँघों का कसाव और उनमे हो रही हलचल इस बात का प्रतीक थी. छाया कभी अपने दोनों जाँघों को एक दूसरे में सटा लेती और कभी उन्हें फैलाती. मैं उसकी स्थिति को समझ रहा था. मैं अपनी उंगलियां
उसकी जांघों के बीच ले गया और अपनी हथेली और उंगलियों से उसकी राजकुमारी को एक आवरण दे दिया.
मेरी उंगलियां राजकुमारी के होंठों में घूमने लगी जो प्रेम रस से भीगे हुए थे. हुए थे. कुछ ही देर में मैंने छाया के जांघों का दबाव अपनी हथेलियों पर महसूस किया. उसने अपनी दोनों जांघों को ऊपर उठा लिया था. मुझे राजकुमारी के कंपन महसूस होने लगे थे. मैं कुछ देर राजकुमारी को यु ही सहलाता रहा. अपने दूसरे हाथ से मैं उसके स्तनों को भी सहला रहा था. अंततः राजकुमारी स्खलित हो गई. छाया के मुख से “ मानस भैया .............” की धीमी आवाज आयी जो अत्यंत उत्तेजक थी. सीमा की जांघें अब तनाव रहित हो चुकी थी. उसके पैर फैल चुके थे और धड़कन बढ़ी हुई थी.
मैंने फिर से उसे माथे पर चूमा और उसका स्कर्ट तथा टॉप को नीचे कर दिया और कमरे से बाहर आ गया.
कुछ देर बाद छाया भी हाल में आई वह बहुत खुश लग रही थी उसके चेहरे पर तृप्ती के भाव थे.

छाया और पूर्ण एकांत
बेंगलुरु आने के पश्चात मैं और छाया एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे पर हमें कभी एकांत नहीं मिल पाता था. हम दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आते एक दूसरे को सहलाते. कभी-कभी छाया मुझे इस स्खलित भी करा देती. परन्तु जिस तरीके का आनंद राजकुमारी दर्शन में आया था ऐसा आनंद कई दिनों से नहीं मिल पा रहा था. छाया की मालिश करने का सुख भी अद्भुत था पर उसे भी कई दिन हो चुके थे.
मुझे छाया को नग्न देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी.इन दिनों वह जींस और टॉप में और सुन्दर एवं आधुनिक लगती थी. हम दोनों ने एक दूसरे को पूर्ण नग्न देखा तो जरूर था पर जी भर कर नहीं. राजकुमारी दर्शन के समय मेरा सारा ध्यान उसकी राजकुमारी पर ही केंद्रित था. छाया को पूर्ण नग्न देखने के विचार से ही मेरा मन प्रसन्न हो उठता था.
अंततः एक दिन भगवान ने यह अवसर हमें दे ही दिया. माया जी को पड़ोस की एक महिला के साथ एक पूजा में जाना था. मैं और छाया दोनों घर पर ही थे. उनके जाने के बाद मेरे मन में छाया को पूर्ण नग्न देखने का विचार आया. मुझे पता नहीं था वह क्या सोचती पर मैंने पूरे
मन से ऊपर वाले से प्रार्थना की और इसके लिए अपने मन में निश्चय कर लिया. कुछ देर बाद छाया मेरे कमरे में चाय लेकर आई तो मैंने उसे एक छोटा खत उसे देते हुए बोला..
“ छाया इसे हाल में जाकर पढ़ लेना” खत में मैंने लिखा था
“ छाया मैं तुम्हें पूर्णतया नग्न देखना चाहता और तुम्हारे साथ कुछ घंटे इसी अवस्था में बिताना चाहता हूं . यदि तुम्हें यह स्वीकार हो तो कुछ देर बाद चाय का कप लेने वापस आ जाना अन्यथा इस टुकड़े को फाड़ कर फेंक देना. तुम मेरी प्यारी हो और हमेशा रहोगी. मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही आगे बढ़ता रहूंगा”
मुझे नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है क्या छाया इतनी हिम्मत जुटा पाएगी? १९ वर्ष की लड़की क्या मेरे साथ पूरी तरह नग्न होकर कुछ घंटे से व्यतीत कर पाएगी. मैं इसी उधेड़बुन में फंसा चाय पी रहा था. चाय कब ख़त्म हो गयी मुझे पता भी न चला. तभी दरवाजा खोलने की आवाज हुई. छाया अंदर आ रही थी. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. छाया अंदर आई उसने चाय का गिलास लिया और एक कागज रख कर वापस चली गई. मैंने वह कागज उठाया जिसमें लिखा था ठीक 10:30 बजे पर आप भी हॉल में उसी अवस्था में मेरा इंतजार कीजिएगा.
मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था. घड़ी 9:45 दिखा रही थी. मैं तेजी से बाथरूम की तरफ भागा और नहा धोकर तैयार हो गया. आज का दिन मेरे लिए विशेष होने वाला था. कुछ ही देर में मैं हॉल में सोफे पर बैठा छाया का इंतजार कर रहा था. मेरा राजकुमार छाया के इंतजार में
अपनी गर्दन उठाए हुए था. ठीक 10:30 बजे छाया ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और बाहर आ गई. वह दरवाजे के पास कुछ देर तक खड़ी रही. उसका एक पैर आगे की तरफ निकला था तथा उसके दोनों हाथ उसके कमर पर थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसने जानबूझकर मुझे खुश करने के लिए यह पोज बनाया थी. उसके स्तन अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे और पूरी तरह तने हुए थे .स्तनों के नीचे उसकी नाभि और राजकुमारी के बीच का भाग उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे. राजकुमारी के आसपास का भाग अत्यंत सुंदर लग रहा था. उसके बाल सामने की तरफ आए हुए थे तथा उसके बाएं स्तन को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. दोनों जांघें एक दूसरे से सटी हुई थीं . वो कुछ देर इसी तरह खड़ी रही फिर धीरे धीरे चलते हुए मेरे समीप आ गयी.
छाया जैसी खूबसूरत नवयौवना को नग्न देखकर मेरे मन में तूफान मचा हुआ था. वह मेरे पास आकर खड़ी हो गयी. मैं स्वयं भी उठ खड़ा हुआ उसकी आंखें झुक गई थी. वह मेरे राजकुमार पर अपनी नजरें गड़ाई हुई थी हम कुछ देर एक दूसरे को यूं ही देखते रहे. अंततः हमारे बीच दूरी कम होती गई. कुछ समय में हम दोनों आपस में आलिंगन बंद हो चुके थे. मैंने छाया को अपने से सटा लिया था और उसकी गालों पर लगातार चुंबन ले रहा था. वह भी मेरे चुम्बनों का जवाब दे रही थी. उसके स्तन मेरे सीने से सटे हुए थे. मेरा राजकुमार उसके पेट पर दबाव बनाया हुआ था. मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके दोनों नितंबों को छूने लगे. मैंने महसूस किया छाया की हथेलियाँ धीरे धीरे बढ़ते हुए मेरे राजकुमार तक जा पहुंची थीं. वो उसे पकड़ कर सहला रही थी. मैं उसके नितंबों पर ही पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए था. कभी कभी मेरी उंगलियाँ छाया की राजकुमारी के होठों को छू लेतीं. राजकुमारी उन्हें प्रेम रस की सौगात देती और वो भीग कर वापस सहलाने में लग जातीं.
छाया ने उसने अपनी एड़ियां ऊंची कर अपना चेहरा मेरे पास लाया. मैंने उसके होठों को फिर से चूम लिया. छाया ने अपना एक पैर ऊपर किया मेरा राजकुमार जो अभी तक छाया के पेट से टकरा रहा था उसमें और हरकत हुई. छाया ने अपने कोमल हाथों से उसे पकड़ा तथा अपनी जांघों के बीच ले आयी. मेरा लिंग अब उसकी दोनों जांघों के बीच था. उसके प्रेम रस से उसकी जांघों के बीच का हिस्सा चिपचिपा
हो गया था. मैंने अपने राजकुमार को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. राजकुमार का ऊपरी भाग छाया की राजकुमारी से स्पर्श करता हुआ आगे जाता और आगे जाकर मेरी उंगलियों से टकराता जो छाया के नितंबों को सहला रही होतीं
अचानक मेरे राजकुमार ने राजकुमारी के मुख पर अपनी दस्तक दे दी. मैंने उसे पुराने रास्ते पर ले जाने की कोशिश की पर पर उसे यह नया रास्ता ज्यादा पसंद आ रहा था. मैंने अपनी कमर को थोड़ा पीछे किया और दोबारा उसकी जांघों के बीच से ले जाने का प्रयास किया पर इस बार भी वह राजकुमारी के मुंह में जाने को तत्पर था. छाया चौंक गयी और मेरी तरफ शरारती नजरों से देखते हुए मुझ से थोड़ा दूर हो गई. उसके हाथ धीरे-धीरे राजकुमार की तरफ बढ़ने लगे जैसे वो इस गुस्ताखी की सजा देने जा रही हो.
मैंने छाया को अपनी अपनी बायीं जांघ पर बैठा लिया. मैंने अपने बाएं हाथ से उसकी पीठ को सहारा दिया तथा हथेलियों से उसके बाएं स्तन को सहलाने लगा. मेरा दाहिना हाथ उसके नाभि प्रदेश को सहलाता हुआ उसकी राजकुमारी तक पहुंच गया. उसका दाहिना स्तन मेरे सीने से चिपका हुआ था. मैंने अपनी हथेली से उसकी राजकुमारी को पूरी तरह आच्छादित कर लिया मेरी उंगलियां राजकुमारी के होठों से खेलने लगी.छाया का दाहिना हाथ मेरे राजकुमार को अपने आगोश में ले चुका था. वह अपनी हथेलियों से मेरे राजकुमार को आगे पीछे कर रही थी. हम दोनों इस अद्भुत आनंद में डूबे हुए थे. मैं छाया के गालों और गर्दन पर लगातार चुंबन ले रहा था. वह भी अपने होठों से मुझे चुंबन दे रही थी. हम दोनों एक दूसरे को बड़ी तन्मयता से सहला रहे थे. कुछ देर तक हम इसी तरह एक दूसरे को प्यार करते रहे. हमारी उंगलियां तरह-तरह की अठखेलियां करते हुए एक दूसरे को खुश कर रही थीं.
कुछ ही देर में छाया की जांघें तन रही थी. वह स्खलित होने वाली थी और अपनी जाँघों का दबाव लगातार मेरी हथेलियों पर बढ़ा रही थी. कुछ ही देर में छाया ने मुझे अपनी तरफ खींच कर सटा लिया उसकी जांघें पूरी तरह मेरी हथेलियों को दबा ली थीं. छाया के मुख से “ मानस भैया .............” की आवाज धीरे धीरे आ रही थी जो अत्यंत उत्तेजक थी. मुझे अपनी हथेलियों पर एक साथ ढेर सारे प्रेम रस की अनुभूति हुई. छाया स्खलित हो चुकी थी. मैंने उसके दोनों पैर अब अपने ऊपर रख लिए थे वह एकदम मेरी गोद में आ चुकी थी.
मेरा राजकुमार उसके नितंबों से टकरा रहा था. वह उसके हाथों से छूट चुका था. छाया खुद को नहीं संभाल पा रही थी वह मेरे राजकुमार को क्या संभालती. वह मासूम सी मेरी गोद में नग्न पड़ी हुई थी और अपनी स्खलित हो चुकी राजकुमारी को धीरे-धीरे शांत कर रही थी. इस अद्भुत दृश्य को देखकर मेरे मन में छाया के प्रति असीम प्यार उत्पन्न हो रहा था .
मैंने उसके स्तनों को चूम लिया. उसकी तंद्रा टूटी और वह उठकर खड़ी
होने लगी. उसकी जाँघों से बहते प्रेमरस की अनुभूति ने उसे शर्मसार कर दिया था. मैंने सोफे पर पड़े तकिए से उसकी जांघों को पोछ दिया. वह खुश हो गई धीरे-धीरे वह मेरे पास आयी और सोफे के पास रखे स्टूल पर बैठ गई.
उसका सारा ध्यान मेरे राजकुमार पर केंद्रित हो गया. वह अपने दोनों हाथों से उसे पूरी तरह से सहलाने लगी. मुझे उसकी राजकुमारी भी दिखाई पड़ रही थी मेरी नजर वहां पढ़ते ही छाया ने मेरी तरह शरारती निगाहों से देखा और अपनी जाँघों को सटा लिया. मैंने अपने दोनों पैरों
से उसकी जांघें फिर अलग कर दीं. राजकुमारी मुझे साफ दिखाई दे रही थी. छाया के हाथ लगातार अपने करतब दिखा रहे थे छाया मेरे बिल्कुल समीप थी. मैं उसके स्तनों को भी सहला ले रहा था. राजकुमार वीर्य स्खलन के लिए तैयार था. मैंने छाया के होंठो को चूमा
और वीर्य की धार फूट पड़ी जो छाया के चेहरे और स्तनों को भिगो दी. उसे इतने सारे वीर्य की उम्मीद न थी. इस कला में वह पारंगत हो गई थी . उसने राजकुमार को इसका पूर्णतयः शांत हो जाने पर हो छोड़ा और मेरे होठों पर चुंबन किया.
मैंने उसे अपने पास खींच लिया. अब उसकी दोनों जांघे मेरी दोनों जांघों के दोनों तरफ हो गई. उसके दोनों घुटने सोफे पर थे. वह मेरी गोद में थी. मेरा राजकुमार है जिसमें अब तनाव न था वह राजकुमारी के संसर्ग में चाह कर भी नहीं आ पा रहा था. धीरे-धीरे वह नीचे की तरफ झुक गया था. राजकुमारी मेरे पेट से सटी हुई थी. छाया का शरीर मेरे वीर्य से नहाया हुआ था. मैंने अपने हाथों से छाया के स्तनों पर उसकी मालिश कर दी. वह हंस रही थी और मुस्कुरा रही थी. उसके होठों पर लगा वीर्य हमारे होठों के बीच कब आ गया हमें पता ही नहीं चला. मैं लगातार उसे झूम रहा था. मेरे हाथ अभी भी उसके नितंबों को सहला रहे थे और बीच-बीच में दासी को छु रहे थे जब मेरे हाथ दासी को छूते वह मुझे शरारती निगाहों से देखती मैं उसे फिर चूम लेता. हम दोनों मुस्कुरा रहे थे.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद छाया मुझसे अलग हुई. मैंने उसे अलग हो जाने दिया वह मेरे बगल में कुछ देर बैठी रही. हम एक दूसरे को देखते रहे. आज हम दोनों पूर्णतयः तृप्त महसूस कर रहे थे. इसी अवस्था में मैंने छाया से चाय पीने की इच्छा जाहिर की छाया उसी तरह नग्न अवस्था में चाय बनाने चली गई. उसके नितंब पीछे से स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे. छाया के चलते समय उसके कम्पन मोहक लग रहे थे. उसके शरीर के उतार-चढ़ाव भी पीछे से स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे. उसके नितंबों के बीच थोड़ी सी जगह से उसकी राजकुमारी के होंठ भी दिखाई पड़ रहे थे. यह दृश्य देखकर राजकुमार में हलचल हुई और मैं छाया के पास दोबारा चल पड़ा. मैंने उसकी पीठ से अपने शरीर को सटा दिया मेरे दोनों हाथ उसके स्तनों को फिर से सहलाने लगे. चाय पीने के पश्चात हम दोनों फिर एक दूसरे के आगोश में थे. इसी प्रकार नग्न अवस्था में खेलते हुए छाया मेरे बाथरूम में आ चुकी थी. हम दोनों ने एक साथ स्नान किया और अंत में मैंने स्वयं अपनी छाया को कपड़े पहनाये इस दौरान वो मुझे चूमती रही. वह मुझसे लगभग चार साल छोटी थी और कभी कभी मैं खुद को बड़ा मानकर उसे प्यार करता था.
छाया ने मुझसे कहा..
“ कभी उत्तेजना के दौरान मेरा कौमार्य भेदन हो गया तो?
वह चिंतित लग रही थी.
मुझे भी इस बात की चिंता थी. मैं उसका हाँथ पकड़कर भगवान की मूर्ती के पास ले गया और उसे वचन दिया “ जब तक तुम्हारा विवाह नहीं हो जाता मैं तुम्हारा कौमार्य भेदन नहीं करूंगा तुम्हारे कहने पर भी नहीं.”
वह खुश थी और उसे मुझ पर पूरा विश्वाश भी था. यह एकांत हम दोनों के लिए हम दोनों के लिए ही
यादगार था.
 
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