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Non-Erotic चरित्रहीन [Completed]

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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Now I am become Death, the destroyer of worlds
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hind section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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avsji भाई क्या शानदार कहानी थी। ऐसी खूबसूरत कहानियां विरले ही पढ़ने को मिलती हैं। गांव देहात की पृष्टभूमि और वहां के रीति रिवाज को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया है आपने। पहले के समय में यकीनन ऐसे ही दृश्य देखने को मिलते थे। ख़ैर, सबसे ज़्यादा मुझे आपकी लेखनी ने प्रभावित किया। सुंदर शब्दों के साथ सुंदर अलंकारों का प्रयोग बहुत ही खूबसूरत था और उससे भी ज़्यादा खूबसूरत था पात्रों के मनोभावों का चित्रण....लाजवाब। :applause:

बात करें कहानी की तो इस कहानी को पढ़ कर हिंदी फीचर फिल्म नदिया के पार की याद आ गई। काफी कुछ मिलता है उस फिल्म से, सिवाय इसके कि कहानी और फिल्म का समापन समान नहीं है। फिल्म की तरह गायत्री की शादी अपने जीजा से ही हुई किंतु सुहागसेज पर गायत्री अपने प्रेमी राजकुमार के साथ निर्वस्त्र अवस्था में दिखाई गई।
गायत्री और राजकुमार के बीच का प्रेम प्रसंग बहुत ही रोचक था। एक मां का रोटी बनाते समय ब्याह गीत गुनगुनाते हुए आंसू बहाना हृदय को चीर गया भाई। पहले के समय में निश्चल प्रेम ही देखने को मिलता था। दोनों ने शायद स्वप्न में भी नही सोचा था कि उनके प्रेम का प्रतिफल ईश्वर उन्हें इस तरह से देगा लेकिन आख़र में दोनों एक हो ही गए, भले ही वो समाज की दृष्टि में गलत हो या अनैतिक हो। बहुत ही खूबसूरत कहानी थी भाई, एकदम दिल को छू गई....आउटस्टैंडिंग। :superb:
 
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avsji

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avsji भाई क्या शानदार कहानी थी। ऐसी खूबसूरत कहानियां विरले ही पढ़ने को मिलती हैं। गांव देहात की पृष्टभूमि और वहां के रीति रिवाज को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया है आपने। पहले के समय में यकीनन ऐसे ही दृश्य देखने को मिलते थे। ख़ैर, सबसे ज़्यादा मुझे आपकी लेखनी ने प्रभावित किया। सुंदर शब्दों के साथ सुंदर अलंकारों का प्रयोग बहुत ही खूबसूरत था और उससे भी ज़्यादा खूबसूरत था पात्रों के मनोभावों का चित्रण....लाजवाब। :applause:

बात करें कहानी की तो इस कहानी को पढ़ कर हिंदी फीचर फिल्म नदिया के पार की याद आ गई। काफी कुछ मिलता है उस फिल्म से, सिवाय इसके कि कहानी और फिल्म का समापन समान नहीं है। फिल्म की तरह गायत्री की शादी अपने जीजा से ही हुई किंतु सुहागसेज पर गायत्री अपने प्रेमी राजकुमार के साथ निर्वस्त्र अवस्था में दिखाई गई।
गायत्री और राजकुमार के बीच का प्रेम प्रसंग बहुत ही रोचक था। एक मां का रोटी बनाते समय ब्याह गीत गुनगुनाते हुए आंसू बहाना हृदय को चीर गया भाई। पहले के समय में निश्चल प्रेम ही देखने को मिलता था। दोनों ने शायद स्वप्न में भी नही सोचा था कि उनके प्रेम का प्रतिफल ईश्वर उन्हें इस तरह से देगा लेकिन आख़र में दोनों एक हो ही गए, भले ही वो समाज की दृष्टि में गलत हो या अनैतिक हो। बहुत ही खूबसूरत कहानी थी भाई, एकदम दिल को छू गई....आउटस्टैंडिंग। :superb:
जी -- आपने सही पकड़ा। हम आपके हैं कौन / नदिया के पार से ही प्रेरणा मिली थी। लेकिन बाद में समाज में व्याप्त देह का लालच दिखा कर एक ट्विस्ट दे दिया।
बहुत बहुत धन्यवाद आपके व्यापक रिव्यु का 🙏🙏😊
 
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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Fir me mangalshutra se start karungi. Samajik story padhna jyada majedar rahega.

फिर तो चरित्रहीन से शुरू कीजिए। 😊
 
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Shetan

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उस दिन स्कूल से वापस आते ही गायत्री ने अम्मा को कह दिया, “अम्मा, जीजा का भाई हमसे बियाह करने को कह रहा था।”

अम्मा का मुँह खुला रह गया था, “ई का कह रही हो, फुलवा?”

“हाँ अम्मा, सच्ची।”

कुछ देर सोचने के बाद अम्मा ने कहा, “कल राजकुमार को कहना की अम्मा उनका घरै बुलाईन हैं।”

“ठीक है अम्मा।”

अगले दिन स्कूल के बाद राजकुमार जब गायत्री के घर पहुँचा, तो अम्मा ने कहा,

“हम ई का सुन रहे हैं पाहून?”

राजकुमार में आत्मविश्वास है, लेकिन बड़ों के लिए आदर और संकोच भी है। अपनी आँखें धरती पर ही गड़ाए वो बोला, “कछु गलत सुनी हैं का?”

“कछु गलत नहीं बेटा। तुम तौ देखै सुनै हो। हमरी गायत्री की सहोदर दिदिया कै देउर। गायत्री के बाबा और हमरी खातिर ऐसे बढ़ के का ख़ुसी होईहै की हमरी दुन्नो बिटियैं एक्के घर मा रहैं।”

“त फिर का चिंता है अम्मा?” राजकुमार ने उत्साहित मन से पूछा।

“चिंता कछु नाही पाहून, बस बियाह के पहले बदनामी कै डर है।”

“तो फिर बियाह काहे नहीं कर देती हैं? बाबा का भेज दीजिये घरै।” राजकुमार ने प्रस्ताव रखा।

“बात तौ तुम्हरी ठीक है पाहून, लेकिन पहिले गायत्री का मेट्रिक कै लियै दियो। अउर तुम भी बारहवीं कै लियौ। तब तक तुम दूनौ जनै की उमर भी सही हो जायेगी।”

“ठीक है अम्मा! तो बात तय रही। तब तक हम भी आपकी बेटी का हाथ नहीं पकड़ेंगे। किन्तु देखने पर त रोक नहीं है न?” राजकुमार ने ढिठाई से पूछा।

उसकी भोली बात पर अम्मा की हँसी छूट गई थी। बालपन के प्रेम में सच्चाई होती है। तब जीवन के संघर्षों का ज्ञान अनुमान नहीं होता। बस होता है तो केवल विशुद्ध प्रेम और आकर्षण।

**


वो दिन भी आ गया जब राजकुमार का मैट्रिक की परीक्षा का फार्म भरा गया था। अब शीघ्र ही उसका स्कूल आना जाना बंद होने वाला था। उसके शहर जाने की तैयारी शुरू हो गयी थी। अम्मा और बाबा की अनुमति मिलने के बाद गायत्री ने मन ही मन राजकुमार को अपना पति मान लिया था। उसने प्रत्येक सोमवार को व्रत रखना शुरू कर दिया था। अब वो प्रत्येक सोमवार को स्कूल जाने से पहले भोलेनाथ के मंदिर जाती थी।

उसके गले में सफ़ेद चन्दन को देख कर राजकुमार ने मुस्कुराते हुए पूछा था, “का मांगी हो भगवान् से?”

“हमको कछु कमी है का? ई तो बस तुमको पाने की खातिर हम तपस्या कर रहे हैं।” गायत्री ने लजाते हुए कहा।

“तो एमाँ कउनो झंझट थोड़े न है। बस दू साल का बात है।”

“अच्छा! तो तब तक हम का करें? किसका मुँह देख के दिन बिताएँ?”

“चिंता काहे करती हो? भगवान भोलेनाथ से हमको मांगी हो, तौ वही हमको मिलवायेंगे।” राजकुमार ने बड़ी सहजता से कह दिया।

“कैसे मिलवाएंगे, हमको समझाओ जरा?” गायत्री उसकी बात कुछ समझ न सकी।

“तुमसे मिलने हर सोमवार को हम मंदिर आएंगे।” राजकुमार ने वचन दिया।

“सच कह रहे हो?”

“वचन है हमारा। अउर फिर स्कूल आने में हमको कोई मनाही थोड़े न है। जब तुमको देखने का, या तुमसे मिलने का मन होगा तो आ जाया करेंगे। अम्मा बोली हैं की देखने पर कोई रोक नहीं है।”

“अउर जब हमारा मन होगा?” अपनी कही इस बात पर गायत्री को खुद ही लज्जा आ गई थी। उसके गाल लाल-लाल हो गए थे।



गायत्री की भाँति राजकुमार भी प्रत्येक सोमवार को भोलेनाथ के मंदिर में फल, फूल, दूब, बेलपत्र और दूध लेकर पहुँच जाता। एक दो सोमवार तक तो ठीक चला, लेकिन उसके बाद मंदिर के पंडित जी जैसे उसकी मंशा ताड़ गए।

“तुम्हारे गाँव में कौनों मंदिर नहीं है का बबुआ?” उन्होंने पूछा था।

“मंदिर तो है, बाबा। किन्तु इतनी मान्यता वाला नहीं है। और फिर हुआं देवी-दर्शन नहीं होता है।” कहते हुए राजकुमार ने पंडित जी के हाथ में एक रुपया रख कर उनका पैर छू लिया।

“आशीर्वाद है बेटा, मनोकामना पूरी होगी।” कहकर पंडित जी ने उसके सिर पर हाथ रख दिया, “लेकिन ध्यान रखना बेटा, किसी के मान सम्मान की बात है।”

उस घटना के बाद राजकुमार पुनः मंदिर नहीं गया। किन्तु कभी-कभी स्कूल अवश्य आ जाता था। छुट्टी के समय भीड़-भाड़ में पता नहीं चलता कि कौन स्कूल पास कर चुका है और कौन नहीं। गायत्री और राजकुमार दोनों एक दूसरे को जी भर कर देख लेते थे और कभी-कभी सबसे नज़रें चुरा के हँस भी लेते थे।

**


जब गायत्री ने नौवीं कक्षा पास कर ली, तो जीजा उसके विवाह की बात उठाए थे। लेकिन अम्मा-बाबा ‘मेट्रिक के बाद’ वाली बात कह कर उस बात को टाल गए थे। लेकिन अब जब उसकी मैट्रिक की परीक्षा हो गई है तो जीजा मानों ज़िद ही पकड़ लिए हैं।

उसको थोड़ा-थोड़ा सुनाई पड़ा था... जीजा कह रहे थे कि गायत्री के बच्चे से उसकी दीदी की भी गोदी भर जायेगी।

आगे सुनने के लिए वह वहाँ रुक न सकी। लज्जा तो स्त्री का पहला श्रृंगार होता है। गायत्री भी लज्जा से लाल हो गई थी। लज्जा से गड़ी हुई, अपनी गर्दन झुकाए वो घर के उस एकांत की तरफ चल दी जहाँ उसके कोमल सपने प्रतिदिन दुपहरिया के फूल की भाँति खिलते, और वो स्वयं छुई-मुई की पत्ती जैसी हो जाती - स्वयं में ही सिकुड़ी!

‘जीजा ठीकै तो कह रहे हैं!’ उसने सोचा, ‘जब उसको पहला बच्चा होगा, तो वो उसको दीदी की गोद में डाल देगी।’

एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘माई मरे, मौसी जिये’। मौसी का प्रेम माता समान ही तो होता है। मौसी यदि वास्तव में मौसी हो, तो वो माता से भी बढ़कर होती है।

‘उ बच्चा हमसे कम भाग्यसाली न होगा। दो-दो माँएँ! कितना भाग्य! दीदी उसकी माँ भी होगी, मौसी भी और चाची भी!’

गायत्री के चेहरे पर संतोष के साथ-साथ प्रसन्नता के भी भाव उभर गए थे।

उस रात गायत्री ने बहुत सुन्दर सपना भी देखा। उसने देखा कि उसके बगीचे के आम के सभी वृक्ष बौरा गए हैं और उसकी संतानें सभी उन वृक्षों के नीचे खेल रहे हैं। सपने में अत्यधिक प्रसन्नता होने से उसकी नींद टूट गई और फिर नींद नहीं आई।

‘हे प्रभु, कछु ऐसा उपाय रहता कि हम आपन दिदिया के लगे पहुँच जाई!’ उसने अपने इष्टों से विनती करी।

**
Fulva matlab gayatri ki kam umar thodi bachpane se bhari na samaz. Or shadi ki bat par sharamanaa. Ek ajib sa romanch peda karta he. Amezing. Samajik kahani ek hi ghar dusri beti ka byah. Or chhoti se bacho ki aas. Aur jyada kahani jan ne ki ichhae badha raha he.
Me aage badhungi.
 
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Shetan

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उसके विवाह में अब बस एक ही सप्ताह बचा हुआ था, किन्तु उसकी बड़ी बहन अब तक नहीं आई थी।

“अम्मा दिदिया कब आएगी? उसके बिना सब खुसी आधी आधी लग रही है।”

“आ जइहैं फुलवा। एक दू दिन मा आ जइहैं। ओका त दूनौं तरफ क देखें क परी ना।”

“हाँ अम्मा।”

गायत्री ने देखा कि आज अम्मा को रोटियाँ बेलने में बहुत जतन लगाना पड़ रहा था। उनकी आँखों से आँसू अनवरत गिर रहे थे। जैसे अपना ही मन बहलाने को, उनका विवाह गीत गुनगुनाना जारी रहा,

काहे को मोरे बाबा छत्रछाहों काहे कैं नेतवा ओहार ... काहे को मोरे बाबा सुरजू अलोपों गोरा बदन रहि जाय
आजू कै रोजे बाबा तोहरी मडैइया कालही सुघर बार के साथ ... काचहि दुधवा पियायो मोरी बेटी दहिया खियायो सढीयार


अम्मा की गुनगुनाने की भीगी आवाज़ मानों गायत्री को भी भिगो रही थी।

“हमरै बियाह से तुम और बाबा बहुत दुखी हौ न,” गायत्री ने बहुत लाड़ से कहा, “महिना में पन्दरह दिन हम इहै रहेंगे अम्मा, कहे देते हैं।”

“बिटिया के बिदाई से नैहर से ओके नाता खतम थोड़ै न होता है फुलवा।”

अम्मा ने मुस्कुराते हुए उसके गाल को छुआ। उस गरम छुवन में जैसे उनकी सारी ममता समाई हुई थी। गायत्री का मन थोड़ा हल्का हुआ।

“अच्छा, तो फिर फूफू काहे नाही आई हैं? उनसे झगड़ा की हो का?”

“झगड़ा नाही कियन हन बिटिया। तुमरे बियाहै से पहिले तुमरी फूफू आ जाईहें।”

“न जाने कैसा बियाह है हमारा। केहू का कौनो खुसी ही न है। बस अब पाँच दिन के बादै बियाह है, लेकिन न तो दीदी आई है, अउर न ही फूफू।”

“दूनौ जनी आ जहियैं बिटिया, एक दू दिने मा। आपन मन काहे छोटा कर रही हो? अब देखौ न, फसल का समय है। त घर से निकरै मा दिक्कत तौ होतै है।”

“फिर आगै कै तारीख काहे नाही निकरवायौ? ई हड़बड़ी कौन बात कै?”

“जल्दी त पाहून किये रहे बिटिया।” कह कर अम्मा पुनः गीत गाने लगी।

एकहू गुनहिया न लाइयु मोरी बेटी चल्यु परदेसिया के साथ ... काहे कै मोरे बाबा दुधवा पियायो दहिया खियायो सढीयार
जानत रह्यो बेटी पर घर जइहें गोरा बदन रहि जाय ... इहै दुधवा बाबा भैया कैं पीऔत्यों जेनि तोहरे दल कै सिंगार


“हड़बड़ी कै बियाह, कनपटी मा सेंदुर” गायत्री बड़बड़ाई।

उसके विवाह की तैयारी वैसी नहीं चल रहा थी जैसी दीदी के विवाह के समय हुई थी। घर से न तो कोई फूफू को न्योता देने गया, और न ही घर की रंगाई पोताई हुई। उसकी दृष्टि बचा कर अम्मा बाबा गुप-चुप कुछ बतियाते रहते। जैसे ही उसको निकट आता देखते, वो चुप्पी साध लेते। दोनों का मुँह भी दिन भर लटका रहता है। शादी जैसी प्रसन्नता कुछ दिखती ही नहीं! उसको कुछ गड़बड़ लग रहा था, सो एक दिन वो दबे पाँव अम्मा बाबा की सारी बातें सुन ली।

जीजा ने बाबा को धमकाया था कि यदि गायत्री को उनके साथ नहीं ब्याह दिया, तो वो बड़की दीदी यहीं छोड़ जायेंगे।

यह बात सुन कर गायत्री के तो होश ही उड़ गए। अब उसको समझ आया कि क्यों अम्मा बाबा का मुँह उतरा हुआ रहता है। क्यों दीदी अभी तक घर नहीं आई थी। क्यों फूफू घर आने में कतरा रही थीं। क्यों घर में प्रसन्नता नहीं थी। विवाह कहाँ था यह? यह तो आजीवन कारावास था! दण्ड था! किस बात का, यह तो प्रभु ही बताएँगे!

**

आज सोमवार था। उसके विवाह से पहले का अंतिम सोमवार। फल, फूल, बेलपत्र और दूध लेकर वो मंदिर जाने लगी तो अम्मा ने उसको रोक दिया।

“हल्दी का बाद घरै के बाहर जाना सुभ नाही है बिटिया।” उन्होंने उसको समझाया।

“अम्मा हम त मंदिर जा रहे है। एमा का सुभ अउर का असुभ?”

“सब बड़े बुजुर्ग इहे कहत रहे बिटिया।” उसको रोकने का सहस अम्मा में नहीं बचा था।

“दू साल से हम भोलेनाथ की सेवा कर रहे हैं अम्मा। आज जब उ हमरी झोली भर दिए हैं तो का हम उनकी पूजा प्रार्थना छोड़ दें?”

“ठीक है बिटिया, जाओ। हो आओ। लेकिन जल्दी वापस आए जायो।” कहकर अम्मा पुनः रोने लगी।

अब वो अपनी फुलवा को क्या बताएँ कि भोलेबाबा ने उसके साथ कैसा अन्याय किया है।

मंदिर में गायत्री को राजकुमार कहीं नहीं दिखा। लेकिन वह जानती है भोले बाबा उसके साथ अन्याय नहीं कर सकते। उसने सबसे पहले पूरे मन से पूजा पाठ किया। जब वो पूजा कर्म से निवृत्त हुई तो उसने दृष्टि उठा कर देखा, तो राजकुमार अब भी नहीं आया था। अपनी दृष्टि इधर उधर फिरा कर गायत्री उधर मंदिर में ही बैठ गई। उसके साथ आई उसकी सहेली का भी मुँह उतर गया था। नैराश्य और बेचैनी उसके अंदर खौलते पानी की तरह उबल रही थी।

उसने अपनी सहेली से पूछा, “तुमने खबर भिजवाई थी ना?”'

“भेजवाए तो थे” सहेली ने डरते डरते कहा। गायत्री के दुःख से वो भी कोई कम दुखी नहीं थी।

अचानक ही दूर से राजकुमार आता हुआ दिखाई दिया तो गायत्री ने जोर से अपनी सहेली का हाथ पकड़ लिया था। नैराश्य में सम्बल मिला। डूबते को तिनके का सहारा मिला। बहुत देर तक गायत्री अपने राजकुमार के साथ बतियाती रही और फिर घर लौट आई।

**


आज गायत्री का विवाह होना था। उसकी दीदी अभी भी नहीं आई थी। हाँ, उसकी फूफू आ गई थी। सबके चेहरे ऐसे उतरे हुए थे जैसे उसके विवाह में नहीं बल्कि उसके श्राद्ध में आए हुए हों! न कोई किसी से कुछ कह रहा था, न कोई किसी को कुछ बता रहा था। शाम को बारात उसके दरवाज़े पर आ गई। गाना बाजा ऐसा जैसे मरने में होता है। गायत्री ने देखने की चेष्टा करी, लेकिन उसको राजकुमार कहीं नहीं दिखा।

विवाह के बाद रातों-रात विदा कर दिया गया था गायत्री को, जैसे उसका विवाह न किया गया था, बल्कि कोई पाप कर्म किया गया था।

जब वो ससुराल पहुँची तो उसकी दीदी ने उसकी आरती उतारी। दीदी का चेहरा तो हँस रहा था, लेकिन उसकी आँखें रो रही थीं। घर भर की प्यारी दुलारी को किसके और किस पाप का दण्ड मिला था, इसका उत्तर किसी के पास नहीं था। आरती के बाद दीदी उसको गुड़हल और कनेर के पुष्पों की माला से सजी धजी कोठरी में पहुँचा कर, पल्ला सटा कर किसी दूसरी कोठरी में चली गई थी। गायत्री को अपने दुर्भाग्य का सामना करने अकेला छोड़ कर।

गायत्री अपने दूल्हे का इंतज़ार करने लगी।

कोई दो घंटे बाद, सस्ते नशे में चूर उसका जीजा जोर से दरवाजा खोल कर कोठरी में घुसा था, लेकिन कोठरी के अंदर का दृश्य देखकर वो उलटे पैर भागा।

कोठरी में सुहाग सेज पर गायत्री और उसका राजकुमार पूर्ण नग्न हो कर, एक दूसरे के आलिंगन में गुत्थम-गुत्था हो कर बेसुध सो रहे थे। वो अपनी साली को ब्याह तो लाया, लेकिन उसको अपने राजकुमार का होने से रोक नहीं सका।



समाप्त!
Ekdam se sock me dal diya. Kyo ki ekdam se mayush kar ke hasi dila di. Vese papi jija ke sath thik hi huaa. Najar to uski pahele se khoti thi. Ab tak padhe in 3 update me muje charitrahin to Gayatri ki bajay jija hi laga. Kalank se jyada kalakit soch jo jija me thi. Last line me hi maza la diya.
 
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Shetan

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What samapt??? The end???? Yaar maza aa raha tha. Jija ko or saja dene ka dekhne ko man hone laga tha.
 
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