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कहानी अच्छी है या नहीं


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Well-Known Member
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अध्याय-3
शुरुवात

कहानी की शुरुवात होती है पंकज के बड़े बेटे कमल से जिनकी बड़ी चाची जो उसकी मा जैसा प्यार करती है... कमल की तीनो चाची उसे अपने बेटे जैसा प्यार करती है… कहानी का कुछ भाग कमल की जुबानी-

मेरे दादा जी रमेश चंद का घर कुछ इस तरह है आप समझ सकते है जैसा नीचे है वैसा ही ऊपर भी है
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मेरे दादा के घर मे नीचे 4 बेडरूम है, 1स्ट बेडरूम ख़ुद दादा और दादी का है, 2न्ड बेडरूम मेरे माँ और पापा का है, 3र्ड बेडरूम मुझे और मेरे छोटे भाई रमल को दिया है और 4र्थ बेडरूम मेरे बड़े चाचा पीताम्बर और चाची लेखा का है। एक किचन नीचे और एक किचन ऊपरी मंजिला में भी है घर में सबके लिए खाना एक जगह ही बनता है नीचे के किचन में फिर जिसको जैसे टाइम मिलता है आके खा लेते है। घर में नीचे स्टोर रूम भी है जहाँ कुछ पुराने सोफा और गद्दे रखे है। गर्मियों के लिए कूलर भी वही रखे रहते है।

घर के ऊपरी पहले मंजिला में भी 4 बेडरूम है, 1स्ट बेडरूम पामराज चाचा और भगवती चाची का है, उनसे लगा हुआ 2न्ड बेडरूम सबसे छोटे चाचा अनुज और चाची नेहा का है, 3र्ड बेडरूम अनिमेष और नवीन को दिया है और 4र्थ बेडरूम मे मेरे तीनो बहने पूजा, रिंकी और पिंकी को दिया है।

घर के बाहर एक बड़ा आँगन है जिसमें एक कोने में एक छोटा सा मंदिर है साथ ही दूसरे तरफ़ गाड़ियो को पार्क भी करते है। हमारे दादा जी का लिया हुआ एक 7 सीटर कार भी है जब कहीं बाहर घूमने जाना हो और खेतों के काम के लिए एक ट्रेक्टर भी है जिनको घर के पीछे रखते है एक शेड के अंदर। मेरे पापा और तीनो चाचा के पास अपना ख़ुद का बाइक भी है जिन्हें वो ड्यूटी और गाँव आने जाने के लिए इस्तेमाल करते है।

हम सभी भाई बहन कॉलेज ज्यादातर बस या ऑटो से आना जाना ही करते है कभी पापा लोग की बाइक मिल गई तो बात अलग है फिर तो मजे ही मजे।

मेरे दादाजी मुझे बहुत प्यार करते है क्योंकि परिवार में मैं उनके सबसे बड़े बेटे का बड़ा बेटा और पहला लड़का हूँ। मेरी फॅमिली मे सबसे बड़ा लड़का होने का थोड़ा फायदा तो है किसी चीज के लिए कोई रोक टोक नहीं रहता है।

मेरा और अनिमेष दाखिला गाँव के पास ही के एक कॉलेज मे किया है क्युकी हम दोनों मैथ्स वाले है मेरा छोटा भाई रमल और नवीन दोनों अलग कॉलेज में पढ़ते है वो कॉमर्स वाले है और मेरी तीनो बहने गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती है।

मेरी ज़िंदगी अच्छे से चल रही थी मैं फौज में जाने की तैयारी में लगा हुआ था जब मैंने कॉलेज के पहले साल अपनी क्लास के हिसाब से बदलाव किए तब मेरे कॉलेज मे मेरे कुछ दोस्त नंगी पिक्चर अपने मोबाइल में देख कर उनकी बाते करते है मुझे भी पिक्चर देख कर कुछ कुछ होता था पर मेरे पास मोबाइल ना होने की वजह से बस उन्हें देख कर उनकी बाते सुनकर रह जाता था।

लेकिन जैसे ही 2nd ईयर में गया और पापा को बोलकर मोबाइल लिया फिर मेरे मन में भी अलग तरह के ख्याल आने लगे जिसे मैंने अनिमेष के साथ साझा किया और हम दोनों भाई भी मोबाइल में पोर्न देखना और अकेले रहने पर लंड हिलाना शुरू कर दिए और धीरे समय बीतने के साथ ज़्यादा उम्र के औरतों की तरफ़ आकर्षण बढ़ता चला गया।

इसी तरह मुझे बाहर की औरतों के साथ साथ घर की औरतों में दिलचस्पी बड़ने लगा मुझे मेरी छोटी चाची ज़्यादा अच्छी लगने लगी मैं अक्सर उनको निहारता रहता था और वो भी मुझे अपने बेटे जैसा समझ के हस्के देखती और दुलार देती मैं उनसे क़रीबी बड़ाने के उपाय सोचने लगा जब कभी कॉलेज ना जाना हो तो अक्सर मैं उनके नज़दीक रहके उनसे बात करता और उनसे हसी मजाक भी। कभी कभी तो उनको मोबाइल में नॉनवेज जोक्स भी शेयर कर देता और वो भी कुछ ना बोल के हस देती थी।

मेरी जिंदगी की पहली घटना जिस दिन के बाद से बहुत कुछ बदल गया। ऐसे ही एक दिन जब छोटी चाची रसोई में खाना बना रही थी मैं उनके पास जाके उनसे बात करने लगा

मैं - “क्या बना रही हो चाची”

छोटी चाची - “आज शनिवार है और तुम्हारे चाचा जल्दी आने वाले है तुम्हें तो पता ही है उनका आज शाम का क्या प्लान रहता है।”

मैं - “हा चाची वही अपने दोस्त लोग के साथ बाहर जाके पीने का”

छोटी चाची - “ क्या करूँ बेटू मेरी किस्मत में ही यही लिखा है इस दुनिया में वो नहीं मिलता जिसे हम अक्सर पाना चाहते है। और तुम बताओ आज यहाँ कैसे आना हुआ पहले तो कभी नहीं आते थे”

मैं - “क्या चाची आप भी मैं पहले भी आता था पर आप ही नहीं मिली मुझसे यकीन ना हो माँ जब खेत से आए तो पूछ लेना”

छोटी चाची - “अच्छा ठीक है कर ली यकीन”

मैं - “ अच्छा चाची क्या मैं आपसे एक बात पूछ सकता हूँ?”

छोटी चाची - “ हा पूछो ना बेटू क्या ये भी कोई पूछने वाली बात है।”

मैं - “ आपके और चाचा जी में से किसकी वजह से आपके बच्चे नहीं हो रहे है।”

ये सवाल सुनके चाची मानो कही खो सी गई जैसे किसी ने उनके दुखते रग में हाथ रख दिया हो उनके आँखों से आँसू निकलने लगे।

मुझे ये देख कर अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया कि मैंने क्यों ये सवाल पूछ लिया अगले ही पल जैसे ही मैं उनसे माफ़ी मांगने वाला था चाची ने तुरंत ही मुझे जवाब दिया

छोटी चाची - “बेटू ऐसे सवाल तुम्हें नहीं पुछना चाहिए फिर भी तुम अब इतने बड़े हो चुके हो, जो मेरे तकलीफ़ के बारे में पूछ रहे हो तो तुम्हें बताने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं पर वादा करो ये बात तुम किसी और को नहीं बताओगे”

मैं - “मेरा आपसे वादा रहा मेरी प्यारी चाची ये बात मैं पक्का किसी और को नहीं बताऊंगा”

छोटी चाची - “बच्चे ना होने कि वजह तुम्हारे चाचा अनुज मिश्रा है। वो कभी भी किसी भी औरत को कभी माँ नहीं बना सकते है। बस यही वजह है से आज तक मैं बच्चे के लिए तरस रही हूँ बेटू।”

मुझे उनकी बातों पे यकीन नहीं हो रहा था पर बात ये भी सच थी की चाची क्यों मुझसे झूठ बोलेगी जब वो ख़ुद तरस रही थी। फिर मैंने उनसे बात करते हुए बोला

मैं - “तो आपने कुछ सोचा है अब आगे क्या करेंगे आप और चाचा जी”

छोटी चाची - “अब बहुत हो गया बेटू मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ और अब ज़्यादा अंदर की बाते तुम्हें नहीं पूछना चाहिए”

मैं - “माफ़ करना चाची मुझे लगा शायद मैं कोई मदद कर सकू आपका इस मामले में इस लिए मैं पूछ बैठा”

चाची ने मुझे प्यार भरी नजरों से एकटक देखा जैसे उन्हें मुझमें ऐसा कुछ दिखा हो जो उन्होंने आज से पहले कभी किसी कर में नहीं देखा हो।

उनका इस तरह से देखते रहना मुझे पहले से अलग लगा। आज से पहले उनकी आँखे इतनी नशीली नहीं देखा, जैसे किसी चीज की चाहत की उम्मीद दिखी हो।

फिर पता नहीं अचानक चाची को क्या हुआ मेरे पास आई और अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ के मेरे माथे पे एक बढ़िया सा प्यारा सा चुम्बन की
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और बोली
छोटी चाची -“बेटू तुम मेरी इस मामले में शायद कोई सहायता ना कर पाओ फिर भी कभी कोई जरूरत होगी तो मैं तुमको जरूर बताऊँगी। और एक बात जो भी बाते हमारे बीच हो रही हैं और अगर इस मामले में आगे होंगी किसी को नहीं बताना।”

मैं -“ठीक है मेरी प्यारी चाची जैसा आप कहो।”

उनके किस करते ही मेरे मन में हवस की भावना आने लगा जो पहले मैंने छोटी चाची के साथ कभी अनुभव नहीं किया था, उनके नर्म नर्म होठ जब मुझे अपने माथे पे महसूस हुआ तो मेरे रोंगटे खड़े होने के साथ साथ मेरे लंड में भी हलचल मच गया ऐसा लगा जैसे आज बिना पोर्न देखे ही लंड से पानी निकाल दु।

मन पे किसका काबू होता है इस मन के उथल पुथल को बाजू में रख कर इसके बाद मैं उनको बाय बोलके वहाँ से अपने गाँव के दोस्तों से मिलने चला गया उनके साथ गप्पे लड़ाने। मेरे गाँव में ज़्यादा दोस्त नहीं है कॉलेज दूसरे गाँव में होने की वजह से सभी बाहर के ही दोस्त है कुछ पुराने दोस्त जो अब तक दोस्ती निभा रहे वही अब रह गए है बाकी गाँव के दोस्त अब ख़ास नहीं रहे जिनसे रोज़ मिलके मस्ती मजाक किया जा सके कुछ एक को छोड़ के।

घर आते शाम के 6 बज गए मुझे जोरों की मूत लगी थी तुरंत अपने कमरे के बाथरूम में ना जाके घर के पीछे में बने खुले कमरे वाले बाथरूम में जैसे उसके नज़दीक गया मैंने किसी चीज को आज इतने नजदीक से देखा था।

वह कोई और नहीं लेखा चाची थी जो वहाँ पहले से ही अपनी साड़ी गांड से ऊपर उठाए मूतने बैठी हुई थी।
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उनकी गोरी गोरी बड़ी सी गांड देख के दंग रह गया न चाहते हुए भी मैं अपने हाथों को लंड तक जाने से नहीं रोक पाया और पैंट के ऊपर से ही लन्ड को एक बार जोर से रगड़ दिया।
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उनके मुतने के आवाज ने मुझे हाथ हटाने ही नहीं दिया और कुछ देर तक यूं ही अपने हाथों से लन्ड को रगड़ता रहा। आज पहली बार किसी औरत की गांड को मैंने इतने पास से देखा था। लन्ड को रगड़ते हुए फिर कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे ख़ुद पता नहीं चला, उनकी गांड के खयालों से मैं ऐसा खोया कि लंड को पैंट के ऊपर से रगड़ता रहा जिससे मेरा लंड अपनी औक़ात में आ गया। फिर एक आवाज़ से मेरी आँख खुली और तुरंत मैने अपने लन्ड को पैंट में ही ठीक किया,

वो आवाज थी चाची के मूतने के बाद पानी डालने की थी इस डर से कि कही वो मुझे देख न ले मैं तुरंत थोड़ा दूर जाके पीछे हों गया और उनको देखता रहा वो शायद हाथो से अपनी चूत को पानी लेके धो रही थी फिर उठने के साथ ही साथ चूत को अपनी साड़ी से पोछ भी रही थी।

थोड़े देर बाद मैं ऐसे अनजान बन के आया जैसे मैंने चाची को वहाँ मूतते हुए देखा ही नहीं और लेखा चाची से कहा

मैं -“चाची आप यहाँ कैसे” उनको थोड़ा सक हुआ मेरे मूतने के तुरंत बाद ही ये अचानक यहाँ कैसे

लेखा चाची -“कुछ नहीं बेटू वो मुझे थोड़ी जोर की लगी तो मैं अंदर ना जाके यहाँ आ गई पर तुम यहाँ कैसे”

मैं - “मुझे भी आपही की तरह जोर कि लगी तो यही आ गया” और दाँत दिखा के हस दिया हीहीही…

लेखा चाची -“अच्छा ठीक है ठीक है जल्दी जल्दी जाओ नहीं तो पता चला”

ओर मुस्कुराते हुए चुपचाप वहां से धीरे धीरे जाने लगी उनके मन में कुछ चलने लगा था वो मन में सोचने लगी कहीं इसने मुझे मूतते हुए तो नहीं देखा, अगर देखा होगा तो पक्का उसने पीछे से मेरी गांड जरूर देखा होगा। उसका लंड पैंट में खड़ा हुआ सा लग रहा था मतलब उसने पक्का मुझे देखा है तभी उसका लंड ऐसा खड़ा था।

और फिर थोड़े दूर जाके कोने से जहाँ थोड़ी देर पहले मैं था अचानक रुक कर पलट कर देखने लगी
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और यहाँ मैं बिना उनको देखे की वो गई या नहीं अपने लंड को जो अपनी पूरी औक़ात में था पैंट से बाहर निकाल के मूतने लगा
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फिर अचानक मुझे लगा जैसे कोई मुझे देख रहा तो मैंने तिरछी नजर से देखा तो पाया लेखा चाची दीवाल के कोने से मुझे मूतते हुए मेरे लंड जो की 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा है को घूरे जा रही है

मेरा लंड तब से खड़ा था जबसे मैंने चाची की बड़ी गांड़ देखी थी उनका इस तरह से मेरे लंड को देखना मुझे अलग तरह का अहसास दिला रहा था मेरे लंड में तनाव बड़ने लगा मैं ना चाहते हुए अपने लंड को मूतने के बाद हिलाना शुरू कर दिया
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और वहाँ कोने से चाची आँखे फाड़े बस मेरे लंड को ही देखे जा रही थी मेरे मन में ख्याल आने लगा की मैं चाची कि गोरी गांड़ को चोद रहा हूँ।
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मेरे लंड में तनाव बहुत ज़्यादा बढ़ रहा था ये सोचकर की चाची देख रही है, उनके लिए मेरा नजरिया अब बदलने लगा था, हर बार हिलाने की गति बड़ते जा रही थी,

लेकिन मैं अपनी गति में कोई कमी नहीं कर रहा था, लंड को हिलाने में पूरा जोर लगा रहा था

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वहाँ चाची भी मुझे देख के धीरे से हाथो को अपने चूचियो के ऊपर ले जाके मसलने लगी थी, मेरी कामवासना चाची के प्रति बड़ने लगी थी मैं उनके नंगे चूचे की कल्पना करने लगा था,

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मैं तब तक हिलाता रहा जब तक मेरे लंड ने पानी नहीं छोड़ दिया और उधर चाची की तरफ़ ध्यान दिया तो वो वहाँ से मेरे झड़ने के तुरंत बाद वहाँ से चली गई।

आज का दिन दोपहर से लेके अब तक मेरे लिए एक नया अनुभव लेके आया था एक तरफ़ छोटी चाची के चूमने से लंड खड़ा होना और दूसरी तरफ़ अभी लेखा चाची की गोरी गांड देखने के बाद अपने लंड को हिला के पानी निकालना।

अब पता नहीं आगे और क्या क्या मोड़ आने वाला था मेरी जिंदगी में ये सोच कर मेरे मन में एक अजीब सा खुशी छा गया। साथ ही एक डर भी मेरे जहाँ में आने लगा की कहीं कुछ ग़लत ना हो, खैर

अपनी सोच को एक तरफ़ करने के बाद मैं भी वहाँ से तुरंत निकल के अपने रूम पे चला गया रात के इंतज़ार में जैसे कुछ हुआ हि ना हों।

कमल की ज़ुबानी आज के लिए इतना ही दोस्तो अगले अपडेट में देखेंगे की किसके साथ और क्या घटना घटा। धन्यवाद 🙏
Mast ese hi kahani ko chalaye
 

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अध्याय- 4
नए किस्सो का आरम्भ

पिछले अपडेट में आपने देखा कमल का क्या हाल हुआ जब उसकी छोटी चाची ने उसे किस किया और जब उसने लेखा चाची की गांड देख के अपने लंड को हिलाया

अब आगे

इन सब से दूर कहीं किसी खेतों में घुसने से पहले वाले रोड में जहाँ अभी फसल काटने में कुछ दिन बचे है आदमी औरत से

“कहा जा रही हो बहू ”

“कहीं नहीं बाबू जी मैं आपके पास ही आ रही थी खाना लेके”

“क्यों आज कोई बच्चे घर पे नहीं थे क्या आज सभी अपने कॉलेज निकल गए क्या”

“हा सभी बच्चे कॉलेज चले गए पर कमल था घर में मैं उसको ढूंड रही थी पर कहीं दिखा ही नहीं”

जी हा ये आदमी और औरत कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने घर के मुखिया रमेश चंद मिश्रा जी और घर की बड़ी बहू चंचल देवी है।कुछ अंश चंचल देवी की जुबानी

ससुर जी-“और बाक़ी छोटी बहुये उनमे से किसी को भेज देती तुमने क्यों आने की तकलीफ़ की नेहा को भेज देती वो तो घर पे ही होगी”

मैं -“हा मैंने भी सोचा पर आपको तो पता ही है मुझे खेत आना कितना पसंद है और वैसे भी नेहा खाना बना रही थी बच्चों के लिए, लेखा तो दुकान के निकल गई देवर जी का फ़ोन आया तो और भगवती सिलाई में व्यस्त थी इसलिए मुझे लगा कि मैं ही चली जाती हूँ क्यों किसी को परेशान करना।

ससुर जी -“हा बहू मुझे पता है तुम्हें खेत आना कितना पसंद है अब आ ही गई हो तो खाना लेके पहुँचो मचान की तरफ़ मैं आता हूँ।”

मैं - “ठीक है बाबू जी”

मैं वहाँ से सीधे खेत की तरफ़ चलने लगी जहाँ मचान बना हुआ था। मचान एक बड़े से पेड़ के बगल में बना हुआ था, जिसपे ऊपर बैठने के लिए बना था दो तरफ़ से खुला हुआ और दो तरफ़ से बंद था। खाना खाने के लिए हम मचान के नीचे की जगह तो इस्तेमाल करते है दोपहर के समय भी वहाँ हवा ठंडी ठंडी चलती है।
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वहाँ पहुँच के मैंने बाबू जी के लिए खाना निकालने लगी थी ताकि वो आए और खाना शुरू कर सके पर उससे पहले मैं प्याज को काटने के लिए कुछ लाना भूल गई थी,

तो मचान के दूसरी तरफ़ पम्प चालू बंद करने के लिए बनाये कमरे में चली गई वहाँ जाके देखने लगी कुछ मिल जाए जिससे मैं ये प्याज काट सकू पर तभी मेरी नज़र ट्यूबवेल कि तरफ़ गई जहाँ मेरे ससुर जी पैर हाथ धो रहे थे उन्होंने अपने पजामे और ऊपर के कपड़े को निकाल दिया था,
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बस चड्डी और बनयान पहन रखे थे और अच्छे से पैर हाथ धोने में व्यस्त थे अचानक मुझे उनके चड्डी में झूलता बड़ा सा कुछ दिखा मैं समझ गई वो बाबू जी का लंड है पर कुछ और सोचती उससे पहले बाबू जी वहाँ से हटने लगे उन्होंने अपने पैर हाथ धो लिये थे फिर अपने गमछे से हाथों और पैरों को पोछने लगे और उसी गमछे को पहन के वापस मचान की तरफ़ जाने लगे।

मैं भी जैसे तैसे जल्दी जल्दी वहाँ रखी हशिए से प्याज को काट के मचान के तरफ़ जाने लगी, वहाँ पहुँच के मैंने अपने ससुर जी को खाना परोसने लगी साथ ही मेरी नज़र उनके गमछे के ऊपर भी बनी हुई थी, मैं मन में सोचने लगी क्या बाबू जी का बाकी समय इतना ही बड़ा झूलता रहता है तो जब उनका खड़ा होता होगा तो कितना बड़ा होता होगा, और अपने विचारों से बाहर आते हुए खाना देने के बाद ही मैंने बाबू जी से कहा

मैं-“बाबू जी खेतों में गेहूं के अलावा उस दूर वाले खेत में क्या क्या लगाएं है मैं ज़्यादा गई नहीं हूँ वहाँ ”

ससुर जी -“बहू वहाँ तो कुछ सब्जिया लगायी है पर अभी सब सब्जी छोटे है”

मैं -“क्या क्या लगाये है बाबू जी”

ससुर जी -“ज्यादातर तो वही लगे है जो मेरी बहुओं और बच्चों को पसंद है”

मैं - “फिर तो वहाँ जाके देखना पड़ेगा बाबू जी शायद अभी मेरे काम की मतलब घर के लिए कुछ सब्ज़ी मिल जाए”

ससुर जी -“हा क्यों नहीं बस ये खाना हो जाए फिर चलता हूँ वहाँ तुमको लेके”

मैं -“ठीक है बाबू जी”

चंचल अपने ही ख्यालों में कुछ सोचते हुए नज़दीक के खेतों में वहाँ जाके गेहू को देख रही थी,
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और यहाँ उसके ससुर जी खाना खाते हुए एक नजर अपनी बड़ी बहू चंचल पे डालते है, साथ ही ये सोच उनके मन में आने लगता है की मेरी बड़ी बहुत कितनी अच्छी है खाना लेके आने के लिए कोई नही था तो ख़ुद लेके आ गई फिर अनायास उसकी नजर अपनी बहू के साड़ी के ऊपर से मटकती हिलती डोलती बड़ी सी गांड पे चली गई, हालाँकि नेहा की गांड को उसने कई बार देखा पर आज बड़ी बहू की गांड, फिर जब चंचल मुड़ी तो नजर उसके चूचो पर पड़ गई,
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रमेश चंद ने अपने दिमाग़ को झटका ये मैं क्या देख रहा हूँ पर ना चाहते हुए नज़र जा ही रही थी खाना खाते हुए उसके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने शुरू हों गये जैसे क्या मुझे इस तरह देखना चाहिए, नहीं वो मेरी बहू है, क्या हुआ बहू है तो जब नेहा का देख सकता हूँ तब अपने बाकी बहुओं का क्यों नहीं, थोड़ी देर बाद

चंचल वहाँ से अपने ससुर के पास आते हुए पूछती है,

चंचल-“ बाबू जी खाना खा लिए आपने”

रमेश चंद-“ हा बहू लो बर्तन समेट लो फिर उस खेतों की तरफ़ चलते है जहाँ से तुम्हें शायद कुछ काम की सब्ज़ी मिल जाए”

चंचल- थोड़ी सकपकाई और बोली “ठीक है बाबू जी”

रमेश चंद अपनी बहू को बर्तन समेटते हुए देख रहा था आज पहली बार इतने क़रीब से उसने चंचल की गांड और गदराए हुए बदन को गौर किया था, फिर चंचल ने कहा-“चले बाबू जी”

रमेश चंद-“हा चलो हमे इस रास्ते से होते हुए उस खेत की तरफ़ चलना है बहू” एक खेत की तरफ़ इशारा करते हुए फिर से कहता है “बहू तुम आगे चलो मैं पीछे से रास्ता बताता हूँ”

चंचल ने मन में कुछ सोच कर हँसी और रास्ते से होते हुए अपने ससुर के आगे आगे चलने लगी।

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ठीक जब चंचल अपने ससुर के लिए खाना लेके निकली उससे थोड़े देर पहले घर में चंचल पूछती है लेखा से

चंचल -“लेखा बाबू जी तो आज दोपहर खाने के लिए शायद नहीं आयेंगे उन्होंने माँ जी को बोला था खाना किसी के हाथ भेजा देना, अगर तुम कुछ काम नहीं कर रही खाली होगी तो क्या तुम चली जाओगी”

लेखा -“दीदी मैं चली तो जाऊ मुझे बाबू जी के लिए खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है पर आपके देवर जी ने मुझे अभी दुकान में बुलाया है। उनका फ़ोन आया था”

चंचल -“ठीक है कोई बात नहीं मैं ख़ुद चली जाती हूँ वैसे भी हफ़्ते भर से ज़्यादा दिन हो गए खेत गई भी नहीं हूँ।”

लेखा-“ठीक है दीदी मैं जा रही हूँ हो सकता है मैं आपसे शाम को मिलूँगी।”

चंचल-“ठीक है।”

घर से निकल के लेखा जल्दी जल्दी अपनी किराने की दुकान की तरफ चली जाती है वहाँ पहुँच के देखती है दुकान का शटर हल्का बंद है वो सोच में पड़ जाती है की मुझे बुला के उनके पति दुकान के सामने नहीं दिख रहे और शटर भी आधा बंद है तो उसे ढूँड़ने वो अंदर जाती है,

और थोड़े अंदर जाने के बाद वो देखती है उसका पति एक चेयर में बैठा मोबाइल में कुछ देख रहा है वो ये देख के गुस्सा भी हो जाती है और खुश भी फिर कुछ सोच कर अपने पति से कहती है,

लेखा -“आपको कोई और जगह नहीं मिली ये सब करने के लिए”

पीताम्बर जैसे ही ये आवाज़ सुनता है वो डर की वजह से घबरा जाता है और कहता है,

पीताम्बर-“पागल है क्या, ऐसे अचानक आके कोई डराता है भला ”

दरअसल पीताम्बर वहाँ चेयर में बैठे मोबाइल में पोर्न वीडियो चालू करके एक हाथ में लिए और दूसरे हाथ से अपने 7 इंच के लंड को हिला रहा था थोड़े ही देर हुआ था तभी लेखा ने उसे डरा दिया था।
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लेखा-“डरा नहीं रही मैं आपको बता रही हूँ और वैसे भी आपको क्या जरूरत पड़ गई अपने लंड को इस तरह से हिलाने की” फिर लेखा एक हाथ से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।

पीताम्बर-“आहह तुम्हारे छूते ही मुझे लंड में और भी कड़क महसूस होता है मुझे, मैंने इसलिए तो तुम्हें जल्दी दुकान आने को कहा था”

लेखा-“तो सीधे बोल दिए होते ना, आज तीन दिन तो वैसे भी हो गये मेरी चूत में लंड गए” फिर जोर जोर से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।

पीताम्बर-“तुम्हें तो पता है आहह आराम से मेरी जान दिक्कत मेरे लंड में नहीं मेरे पैरों में है, मैं तुम्हारे ऊपर नहीं आ सकता पर तुम मेरी गोद में बैठ के मजा तो पूरा लेती हो ना।”

लेखा-“ हा हा ठीक है और हिलाना जारी रखती है”

फिर लेखा का पति मोबाइल को बंद करके बगल में रख देता है और लेखा के चूचे को दबाते हुए उसके ब्लाउज को खोलने लगता है, यहाँ लेखा भी पीछे नहीं हट रही थी वो भी अपने पति के पैंट को ऊपर से खोलने लगी जिससे लंड और अच्छे से बाहर दिख सके

पीताम्बर-“आहह मेरी जान पता नहीं क्यों जब भी मैं तुम्हारे चूचे को दबाता हूँ लगता है पूरा दबा के खा जाऊ, इतने साल हो गए पर तुम्हारे चूचे हर बार पहले से और ज़्यादा बड़े लगते है”

और चूचों को मुह में लेके चूसने लगता है, वो एक हाथ में चूचे तो दूसरे में अपने मुह को लगा के दोनों को बदल बदल के चूसने लगता साथ ही अब लेखा को और ज़्यादा मजा आ रहा था अपने पति के द्वारा चूचे चूसने से,

लेखा-“आह और जोर के दबा दबा के चूसिए ना जी आह आह उम्म उम्म” कितना अच्छा लगता है जब आप इसे अपने मुंह से चूसते है थोड़ा जोर लगा के काटिए आहहह मां और एक हाथ से उसके लंड को और तेजी से हिलाने लगती है,

पीताम्बर-“आह मेरी जान लेखा 40 की उमर में आज भी तुम असली मजा देती हो” और एक हाथ ले जाके उसके गांड पे मार देता है।

लेखा चिहुक उठती है अपनी चूची से पति का हाथ और मुह हटा के वो नीचे बैठते हुए उसके लंड को पकड़े हुए कहती है,

लेखा-“मज़ा तो इसने भी बहुत दिया है और आज भी उसी तरह दे रहा है पर रोज लेने को तरसती हूँ।”

और धीरे धीरे लेखा का सर अपने पति के लंड की तरफ़ झुकती चली जाती है, पीताम्बर अपनी बीवी को लंड के नज़दीक जाते देख उससे रुका नही जाता और लंड को एक बार ठुमका मार देता है,

लेखा ये देखकर हस्ती है और अपने पति के आँखो में देखते हुए उसके लंड के सूपाड़े को अपने जीभ से छूने लगती है उसके पति की आह निकल जाती है,

पूरे कमरे में कामवेदना संचार होने लगती है सब चीजों से बेखबर एक पत्नी अपने पति को एक शारीरिक सुख देने जा रही थी पर उन्हें क्या पता था एक तूफ़ान थोड़े देर में यहाँ आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है कुछ दिनों में,

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दोपहर का समय कहीं शोर गुल तेज़ी से हो रहा था, हर कोई एक दूसरे से बात करने में लगे थे, कोई मोबाइल तो कोई किताबे लेके बैठा था, कुछ लड़कियां किसी के बारे में बाते कर रही थी, थोड़ी देर घर की बाते चली फिर किसी ने एक ऐसी बात कहदी जिसे सुन बाकी दोनों लड़कियां उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगी, ये सब हो रहा था गर्ल्स कॉलेज में जहाँ कैंटीन के पास ही गार्डन में बैठे ये तीनो लड़कियाँ पूजा, रिंकी और पिंकी

पूजा-“रिंकी तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो जो भी तुम कह रही मैं इसपे नहीं मानती”

पिंकी-“हा दीदी मुझे भी नहीं लग रहा है ऐसा भी होता होगा”

रिंकी-“रुको तुम लोगो को मैं वो किताब ही दिखा देती हूँ जिसे मैंने आज सुबह ही कमल भैया के कमरे में रखी किताबों के बीच से उठाया था।”

और रिंकी उस किताब के पन्नो को पलटते हुए उसमे छपे कुछ तस्वीरों को दिखाने लगती है, ये वही किताब है जिसे कुछ दिन पहले कमल ने अपने कॉलेज के दोस्तों से अनिमेष को दिखाने के लिए लाया था और अपने रूम में किताबों के बीच रख के छुपाना भूल गया था,

पूजा-“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कमल भैया ऐसी किताब भी रखते होंगे देखो इसमें कितनी नंगी तस्वीरे है।”

पिंकी-“हाँ दीदी कितनी अजीब अजीब सी है देखो कैसे ये औरत अपनी वो दिखा रही है।”

पूजा और रिंकी एक साथ हसने लगती है और पूजा पिंकी से कहती है,

पूजा-“ये वो क्या होता हैं जो हमारे पास है वो भी उसी के पास है और ये औरत अपनी वो नहीं अपनी चूचे और चूत दिखा रही है”

ये बोलके फिर से पूजा और रिंकी हसने लग जाती है, उनकी ऐसी खुली बाते सुनके पिंकी को थोड़ा अजीब भी लगता है पर कहीं ना कहीं उसके शरीर में एक सनसनाहट सी होने लगती है, जैसे किसी ने उसके बदन को छू लिया हो,

रिंकी-“पर दीदी भैया को ऐसे किताबे पड़ने या देखने की जरूरत क्यों पड़ गई”

पूजा-“बिल्कुल पागल है पिंकी को छोड़ तुझे तो पता होना चाहिए की जब जवानी में किसी चीज की लत लग जाती है तो उसके लिए इंसान क्या नहीं करता है, बस इसी तरह कमल भैया क्या मुझे तो लगता है हमारे सारे भाई एक जैसे ही है और ग़लत आदतें सीख गए है”

रिंकी-“तो क्या भैया लोग वो सब भी” इतना कहके चुप हों जाती है,

पिंकी-“दी आप लोग किस बारे में बात कर रहे मुझे भी थोड़ा अच्छे से बताओ”

पूजा-“हा रिंकी तू सही कह रही है मुझे भी ऐसा ही कुछ लगता है सभी पर हमे नजर रखके देखना होगा जब वो घर पे रहते है”

रिंकी-“पर दीदी ये ग़लत नहीं होगा इस तरह उनपे नजर रखना”

पूजा-“ग़लत बात तो है पर क्या तू ये नहीं जानना चाहती की कमल भैया ये किताब अपने पास क्यूँ लाये और उसे देख के क्या करने वाले है”

रिंकी-“हा ये देखना बड़ा मजे दार होगा की वो इस किताब को देखके क्या करेंगे।”

रिंकी-“दीदी अब चलो बहुत देर से हम यहाँ बैठे है मैं तो क्लास चली बाक़ी बाते आप लोग घर पे कर लेना।”

तीनो बहने अपने अपने क्लास के तरफ़ चल पड़ती है, फिर शाम के जैसे 4 बजते है कॉलेज से ऑटो लेके अपने घर की तरफ़ निकल जाती है,

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धन्यवाद 🙏🏻 दोस्तों आज के लिए इस अपडेट में इतना ही, मिलते है अगले अपडेट में और जानेंगे की क्या होगा चंचल और उसके ससुर रमेश चंद के बीच खेतों की तरफ़, ऐसा कौनसा तूफ़ान आने वाला है लेखा और पीताम्बर के सामने जिससे उनकी ज़िंदगी बदलने वाली है और तीनो बहने मिलके ऐसा क्या करने वाली है घर पहुँच के अपने भाइयों पे नजर रखने के लिए।
Nice update
 

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अध्याय - 5
अगम्यगमन की नींव

दोपहर का समय खाना खाने के बाद वहाँ से बाबू जी और मैं हम दोनों निकले, खेतों की तरफ। मेरे हाथ में मेरे आँचल थी जिसे मैं लहराते हुए चल रही थी, वहाँ बने रास्ते थोड़े पतले थे जिससे थोड़ा संभल के चलना पड़ रहा था क़रीब पांच मिनट चलते ही सब्ज़ी वाले खेत में हम पहुँचने वाले थे, वहाँ आसपास पूरा सन्नाटा था सभी बाक़ी खेत वाले या तो अपने घर गए थे खाना खाने या खा के आराम कर रहे थे,

मैं- “बाबू जी, मुझे डर लग रहा है यहाँ तो बहुत बड़े बड़े घास भी है आसपास, आने जाने में दिक्कत नहीं होती क्या आपको”

बाबू जी- “डरो मत बहू, मैं हूँ ना आओ, मेरा हाथ पकड़ लो।”

ये कहकर उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया, उनकी सख़्त उंगलियाँ मेरे हाथ में आते ही मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा ये पहली बार था जब मैने उनका हाथ इस तरह पकड़ा था और उन्होंने मेरा, थोड़ी दूर चलते ही मुझे बाबू जी ने रास्ते में रोक दिया,

मैं-“क्या हुआ बाबूजी आपने मुझे ऐसे क्यों रोक दिया”

बाबू जी- “श्श्श्श… चुप रहना बहू मुझे लगता है आसपास कोई साँप है!”

ये सुनते ही मैं डर से कांपने लगी और मौक़ा देखकर उनके छाती से जा चिपकी, मेरी दूध जैसी बड़ी बड़ी और मुलायम चूचे उनके छाती पर दब गए, उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर रखे और धीरे-धीरे रगड़ने लगे, मुझे थोड़ा अजीब लगा की बाबू जी ने सच में सांप देखा या उन्होंने जानबूझ के ऐसा कहा,

उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया- “बहू, बस ऐसे ही शांत खड़ी खड़ी रहना मैं उसे देखता हूं”

मैं- “बाबू जी, मुझे सच में बहुत डर लग रहा है। क्या आप जल्दी से उस सांप को देख के भगा सकते ”

मेरी दबी आवाज सुनकर उन्होंने अपने हाथ मेरी गांड की तरफ़ लाने लगे, मुझे डर के साथ साथ एक अजीब घबराहट भी हो रही थी, उन्होंने हथेलियों से मेरी बड़ी और गोल-मटोल गांड को दबाने की कोशिश करने वाले थे, वो मेरे और करीब आ गए,

मैं-“ बाबूजी, आप ये क्या कर रहे हो? साँप गया कि नहीं?”

बाबूजी- “बहु लगता है साँप चला गया।”

मैं उनसे दूर हुई मुझे उनका इरादा कुछ ठीक नहीं लगा और बिना कुछ बोले खेत के अंदर घुस गई जहाँ सब्जी लगे हुए थे,

मैंने-“बाबू जी यहा तो बस कद्दू, ककड़ी, खीरा, लौकी, भिंडी, बैगन और टमाटर ही लगे है ये हमे तो पसंद है पर बच्चों को कहा पसंद है ”

बाबूजी-“बहू मैंने तो पहले ही कहा था यहां वही सब्जी लगी है जो मेरे बहुओं और बेटों को पसंद है और आजकल के बच्चे तो खाना कम नखरा ज़्यादा दिखाते है, अब तुम बताओ तुम क्या लेना चाहोगी मेरा मतलब है घर क्या लेके जाओगी”

बाबू जी बातों को मैं अच्छे से समझ रही थी उनका इशारा कहीं और था, पर मैंने भी सोच लिया अब जब बाबू जी इतने बिंदास बात कर रहे तो मैं कैसे पीछे रहती,

मैं-“मैं तो ककड़ी, खीरा और बैगन ले जाने का सोच रही हू” ये कहकर मुझे थोड़ी हसी आ गई।

बाबूजी -“अच्छा तो तुम्हें खीरा और बैगन ज़्यादा पसंद है, ठीक है खेतों में जाओ और अपनी मनपसंद साइज की तोड़ लो मतलब जो घर ले जाने के लिए सही लगे”

उनकी नजर ये कहते हुए मेरे चूचों पर थी और मेरी नजर खेतों में लगे बैगन और खीरा में थी, मैंने बाबू जी के मजे लेने के बारे में सोचा

मैं-“पर बाबूजी यहां बैगन तो छोटे है, मुझे तो बड़े, मोटे और लंबे वाले ही पसंद है जितना बड़ा और लंबा होगा उतना ज़्यादा अच्छा लगेगा”

मेरे इतना कहते ही उनका चेहरा देखने लायक हो गया उनको लगा बहु ये क्या बोल रही है और इतने आसानी से खुल के कैसे ऐसी बातें मेरे से कर सकती है,

बाबूजी-“क्या सच में बहू तुम्हें लंबे और मोटे पसंद है”

मैं-“हा बाबूजी ज़्यादा सब्जी बनेगी ना” ये बोलके मैं हसने लगी फिर कहीं जाके बाबू जी को थोड़ी राहत मिली

बाबूजी-“बहू और क्या लेना पसंद है तुम्हें”

मैं-“खीरा बाबू जी, आज बैगन छोटे है तो खीरा ही लेके जाऊंगी”

और मैं झुक के दो तीन बड़े और लंबे लंबे खीरा को तोड़ने लगती हू, पर बाबू जी की नजर मेरे गांड पर बनी हुई थी जो उनकी तरफ़ थी, उनको लगा मैं तोड़ने में व्यस्त हु तो उन्होंने चुपके से अपने एक हाथ को गमछे के ऊपर से ही अपने लंड पे ले जाके उसको मसलने लगे, मैं बस उनको तिरछी नजरों से देख रही थी लगातार उनका हाथ उनके लंड पर चलने लगा मेरी उभरी हुई गांड उनको लण्ङ मसलने पे उकसा रहा था,

उनका मुझे वासना की नजरों देखना एक नए अनुभव का अहसास करा रहा था और साथ ही अच्छा भी लग रहा था पर कहीं ना कहीं मुझे डर भी लग रहा था अपने पिता समान ससुर जी के साथ ये सब करना सही नहीं है पर यहां मेरे दिल पर दिमाग हावी हो रहा था और कहीं ना कहीं मुझे भी ये नया अनुभव अच्छा लगने लगा था शरीर में हर तरफ एक नए तरंग उत्पन्न हो रही थी, तुरंत खीरा तोड़ने के बाद

मैं-“बाबू जी लो मैंने मनपसंद साइज के खीरा ले लिए”

तुरंत अपने हाथ को लंड से हटा के हकलाते हुए बोले -“हा हा ठीक है बहू और कुछ चाहिए तो नहीं”

मैं-“जी नहीं बाबूजी आज के लिए इतना हो जाएगा अब हमे चलना चाहिए मुझे घर भी जाना है”

बाबूजी-“ठीक है बहू जैसा तुम्हें ठीक लगे”

और खेत से बाहर आकर मैं उनके आगे आगे चलने लगी, चलते चलते मन में उनके लंड को मसलना याद आने लगा कैसे अपनी बहू की गांड को देख के रगड़ रहे थे मेरी चूत ये सोच के गीली होने लगी और पेशाब लगने लगी, मैं जल्दी जल्दी चलने लगी और मचान पहुंचने के बाद

मैं- “बाबूजी, मैं थोड़ा ट्यूबवेल की तरफ़ जाके आती हु”
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वहां पहुंच के थोड़े बगल में मैंने अपनी साड़ी उठाई और चड्डी को नीचे करके गांड खोल के मूतने बैठ गई, मुझे पूरा यकीन था बाबू जी मुझे देखने जरूर आयेंगे और हुआ भी वही जहा से मैंने बाबू जी को पैर हाथ धोते देखा था वही से बाबू जी भी मुझे देखने लगे। यहां से रमेश चंद जी ख़ुद बताने वाले है,
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पहली बार किसी और की खुली गांड वो भी मेरे अपनी बड़ी बहू के देख के मुझे से रहा नहीं गया और मैंने अपने लंड को गमछा हटा के चड्डी से थोड़ी बाहर निकाल के हिलाने लग जाता हूँ मेरी नजरो के सामने आज एक ऐसी गांड थी जिसके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था बड़ी बड़ी गोल गोल बिल्कुल दूध समान गोरी गांड मेरे आंखों के सामने थी ये सोचकर ही मेरा 8 इंच का लंड फूलने लगा उसमे तनाव बढ़ता ही जा रहा था हर एक पल एक कसावट सी मेरे लंड में महसूस होती जा रही थीं,

लंड पर मेरा हाथ तेजी से चल रहे थे फिर अचानक से मेरे पैर और आंड अकड़ने लगा मेरा लंड रॉड की तरह खड़ा हो गया मेरे लण्ड में उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी मेरी बहू की गांड में पता नही कैसा नशा था की मैं अपना हाथ अपने लण्ड से हटा ही नही रहा था जैसे मेरा हाथ लण्ड से चिपक गया था मुझमें सुरूर चढ़ने लगा ना चाहते हुए मेरे मुंह से निकल गया "आहहह बहू तुम्हारी गांड कितनी बड़ी है जी कर रहा अभी वहां आके मैं अपना लंड तुम्हारी गांड में डाल दु उफ्फफ उम्मम्मम और जोर जोर से तुम्हारी गांड का बाजा बजा दु,

बहू के वापस आने से पहले मुझे जल्दी ही अपना पानी निकालना था मैं और तेजी से अपना लंड हिलाना शुरू कर दिया मुझे अपनी बहू का नंगा जिस्म दिखने लगा था मैं मन में सोचने लगा मैं बहू की गांड मार रहा हूँ

मेरा लंड अब फूलने लगा "आआह्न्श्ह उम्मम्म बहू एक बार तुम्हारी गांड मिल जाए" और एक तेज पानी की धार मेरे लंड ने छोड़ दिया मैं हाफते हुए अपनी सासों को स्थिर करने लगा था और सामने देखा तो बहू वहाँ नहीं थी मैं डर गया और जल्दी से अपने लंड को अंदर रखके कपड़े ठीक करके बाहर आ आया तो बहू बाहर ही खड़ी थीं जिसने मुझे देखते ही पूछा, “बाबू जी आप अंदर क्या कर रहे थे मैं आपको बाहर देख रही थी”

मैं-“कुछ भी तो नहीं बहू मैं तो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था यही”

बड़ी बहू चंचल-“ठीक है बाबू जी अब मुझे चलना चाहिए काफ़ी टाइम हों गये मुझे आए, जल्दी आइएगा घर पे आपका इंतज़ार करूँगी।”

बड़ी बहू बर्तन के साथ सब्जी लेके घर के लिए रवाना हों गई और जाते हुए मेरे मन में कुछ सवाल छोड़ गई, फिर मैं मचान के ऊपर जाके आराम करने लगा,
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दोपहर का समय बाहर थोड़ी ठंडी के साथ गर्मी गाँव के किराने की दुकान में जहाँ आधा शटर लगा हुआ था एक पत्नी अपने पति को कामोत्तेजना से लिप्त शारीरिक सुख देने जा रही थी पर उन्हें क्या पता था एक तूफ़ान थोड़े देर में यहाँ आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है वो आ चुका था,

लेखा अब अपने पति के लंड को पूरे जोश के साथ मुँह में लेके उसे पूरा मजा दे रही थी, लेखा की आँखे बता रही थी कितनी हवस उसके जिस्म में आ चुकी थी लाल आँखो से अपने पति को देखते हुए उसे पूरा मजे देना चाह रही थी,

उसके पति का मुंह से बस आह्ह्ह उहहहह्ह निकल रहा था उसने लेखा के बालों को अपने हाथों से पकड़ रखा था और उसके द्वारा अपने लंड चूसने का पूरा आनंद ले रहा रहा था, लेखा ने लंड को मुँह से निकाला और जल्दी से खड़ी होकर अपने हाथों से साड़ी और साया को उठाके उसने अपने चड्डी को टांगों से उतार फेका जो दरवाजे के पास जा गिरा, फिर सीधे अपने पति की तरफ़ पीठ करके उसके लंड पर बैठने लगी और उसके मुँह से एक आह्ह्ह निकल जाती है वो धीरे धीरे लंड पर सरकने लगती है,

लेखा की चूत अब अपने पति की लंड को अंदर निगलने लगती है धीरे से दोनों की आवाजे सिसकियों में बदलने लगी थी लेखा थोड़े थोड़े देर में ऊपर नीचे होके चूत को लंड के लायक़ बना रही थी जब लेखा को चूत में आराम लगने लगा तो अपनी गति में वृद्धि करने लगी, इस गति को वह इतनी बड़ा चुकी थी कि उसकी और उसके पति की सिसकारियाँ अब ज़ोर ज़ोर से आने लगी थी वो लगातार लंड पे उछल रही थी, पीताम्बर ने अपने एक हाथ से उसके चूचे को दबाया और दूसरे हाथ से एक जोरदार तमाचा लेखा की गांड पे मार दिया लेखा पूरी तरह से तिलमिला गई पर उसने उछलना बंद नहीं किया,

हवस और चूदाई में खोए दोनों पति पत्नी को ये पता नहीं था कोई शख़्स उन्हें दरवाजे से निहार रहा है उनके काम क्रीड़ा का वो पूरा मज़े ले रहा है उसके एक हाथ में लेखा की चड्डी थी जो चूत की जगह पे पूरी गीली थी चूत रस से, और उसका दूसरा हाथ उसके पैंट के बाहर निकले हुए लंड पे था, वो एक बार आँखे बंद चड्डी को अपने नाक से सूंघता फिर अपने लंड को हिलाता और दूसरी बार सामने होते चूदाई को देख के फिर लंड को और तेज़ी से मसलते हुए हिलाता जा रहा था, क्योंकि नजारा और आती आवाजे ही कुछ ऐसी थी,

लेखा तो बस चूदाई के मजे ले रही साथ ही अपने हाथों से ख़ुद के चूचे भी दबा रही थी, अचानक रुक कर वो अपने पति के तरफ़ देखते हुए फिर से उसके लंड पर बैठ जाती है उसका पति अपने दोनों हाथों से उसके जांघो को पकड़ कर अब लेखा को उछालने लगता है, लेखा मजे में अपने पति के होठों को खोल कर उसे चूसने लगती है,

“उम्मम्म ओह्होह्हों और तेजी से उछालिये ना जी बहुत मजा आ रहा है” लेखा से होठों को अलग करते हुए कहा

“आहाहाहाहाहाहा कर ही तो रहा हूँ मेरी जान इतनी बड़ी गांड है पकड़ के हिलाने का मजा ही कुछ और है” पीताम्बर गांड को पकड़ के हिलाते हुए कहा

सामने दरवाज़े के पास खड़ा शख्स भी लंड को हिलाने में कोई कमी नहीं कर रहा था पर कही न कही एक डर उसके जहन में भी था,

अचानक एक तेज हवा चली और पर्दे के पीछे खड़ा शख़्स को सामने ले आया, साथ ही तेज हवा ने लेखा के बालों को उसके सामने ले आया और जब हाथों से बाल ठीक करने ही लगी थी, उसकी नजर अचानक दरवाज़े के पास खड़े शख्स से मिली और उस शख्स की नजर लेखा से मिली, दोनों को कुछ देर तक तो समझ नहीं आया क्या करके फिर वो शख़्स तेजी से दरवाज़े के पीछे छुप गया,

लेखा को जैसे इस अचानक हुए घटना ने बड़ी ही दुविधा में डाल दिया और उसकी चूत ने एक झनझनाट के साथ बहुत ही जबरदस्त तरीके से झड़ने लगी जैसे आज से पहले कभी ना हुआ हो, साथ में पीताम्बर भी झड़ गया जो उसके चूत की कसावट को और ज़्यादा देर नहीं सह पाया, लेखा जल्दी से अलग होकर अपने कपड़े ठीक करने लगी और अपने पति को भी बोली जल्दी कपड़े ठीक करने,

अब तक वो शख़्स लेखा की चड्डी को बगल में छोड़ ख़ुद को बिना रोके झड़ चुका था और जल्दी से अपने कपड़ो को ठीक कर शटर के बाहर धीरे से जाके खड़ा हो गया और कुछ सोच कर बिना अंदर देखे जैसे ही जाने लगा,

लेखा ने उसे बाहर ही रोकना चाहा पर वो शख्स चलता रहा लेखा उसे आवाज लगाती हुई उसके पीछे चलने लगी और अंत में आख़िरकार उस शख़्स को रुकना ही पड़ा,

क्यों कि लेखा ने जिसे रोका था वो कोई और नहीं उसका ख़ुद का अपना बड़ा बेटा अनिमेष ही था जिसने कुछ देर पहले अपनी माँ को उसके पिताजी जी से चूदाई करते हुए देखा था,

कुछ एक घंटे पहले जब अनिमेष कॉलेज में था उसने कमल को फ़ोन लगा के,

अनिमेष-“भाई आज तू, चल बोलके आया क्यों नहीं साला आज तो मुझे भी कॉलेज में बोर लग रहा है”

कमल-“हा भाई निकल ही रहा था पर फिर मन नहीं किया तो घर पे ही रुक गया, तू कब तक आयेगा जल्दी आना तुझे कुछ दिखाना है” कमल ने वही किताब दिखाने की बात कर रहा है जिसे उसकी चचेरी बहन रिंकी ने आज सुबह जब वो नहाने गया था उठा ली, जिसके बारे में अब तक कमल को कोई भनक नहीं थी,

अनिमेष-“निकलता हूँ भाई मैं भी आज ज़्यादा कोई क्लास भी नहीं लगा है”

कमल-“ठीक है जल्दी घर आ जा फिर मिलते है और सुन आते समय चाचा जी के दुकान से कुछ पीने का भी ले आना यार”

अनिमेष-“ठीक है ले आऊंगा बाय”

बस फिर क्या अनिमेष बस स्टॉप में उतर के जैसे ही अपने पिताजी के दुकान के पास कोल्डड्रिंक लेने पहुँचा तो देखता है शटर आधा बंद है फिर भी बिना आवाज लगाये अंदर चला जाता है और अंदर जाते ही उसे वही नजारा दिखता है, उसकी माँ उसके पापा के लंड पे बैठ रही है धीरे से, इसके आगे का आपको तो पता ही है,

लेखा-“अनी रुक तुझे मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है क्या”? उसका बड़ा बेटा अब भी शांत था कुछ भी समझ नहीं आ रहा था वो क्या जवाब दे उसे डर लग रहा था कहीं उसकी माँ उसके बारे में सबको बता दी तो उसके पिता जी उसका क्या हाल करेंगे, वो पेड़ के छाव के नीचे खड़ा डर से काँपने लगा था,

“मैं कुछ पूछ रही अनी तु जवाब क्यों नहीं दे रहा” लेखा ने फिर से उसको हिलाते हुए उससे सवाल पूछा। अनिमेष को कुछ समझ नहीं आ रहा था सबकुछ उसके सामने अँधेरा अँधेरा लग रहा था, फिर अनिमेष ने कहा-“माँ मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई माफ़ करना, और रोने लगता है”।

लेखा जो अब तक उसे ग़ुस्से से आवाज़ लगाती आई थी अपने बेटे के रोने से थोड़ी नम पड़ जाती है और उससे कहती है-“बेटा जो भी तुमने देखा वो ग़लत था, तुम्हे हमे ऐसी स्थिति में देखना नहीं चाहिए और अगर देख भी लिया तो वहाँ से चले जाते”

अनिमेष ने रोते हुए कहा-“ माफ करना माँ मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था ये सब मैंने जानबूझ के नहीं किया है”

लेखा अपने बेटे को गले से लगा के शांत कराते हुए कहती है-“मैं समझ सकती हूँ अनी तूने ऐसा जानबूझ के नहीं किया पर बेटा जब तुमने देख लिया गलती से तो वहाँ से निकल जाते लेकिन तुमने तो” और लेखा के मन में उसके बेटे का लंड जो की 7.5 इंच लंबा था सामने आ जाता है जब उसकी नज़रे मिली थी उस समय उसके बेटे का हाथ उसके लंड पे था,

अनिमेष को कुछ कहना सूझ नहीं रहा वो बस अपनी माँ के गले लगे रोए जा रहा था और रोते हुए कहता है-“प्लीज माँ मुझे माफ़ कर दो फिर कभी ऐसी गलती मुझ से नहीं होगा”

लेखा परिस्थिति को समझती है क्युकी उसके बेटे का देखना तो ग़लत था पर जानबूझ के वहाँ आके देखना उसके बेटे का कोई इरादा नहीं था, उसको अपने से अलग करते हुए कहती है-“इस बार मैं तुम्हें छोड़ रही हूँ अनी फिर कभी ऐसा तुमने कुछ किया तो मैं तुम्हारे पापा को बताने से पीछे नहीं हटूँगी”।

अनिमेष रोना बंद करते हुए सुकून की सांस लेता है और अपनी माँ से कहता है-“पक्का माँ अगली बार ऐसा कुछ नहीं होगा”

फिर दोनों माँ बेटे घर की तरफ़ एक साथ चलने लगते है फिर अचानक अनिमेष अपनी माँ से बोलता है-“पर माँ इसमें गलती आप लोगों की भी है आप लोगों को चू… मेरा मतलब आप लोग जो कर रहे थे वो शटर बंद करके करना चाहिए था”,

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल से हड़बड़ा जाती है और अपने बेटे को धीरे से मारते हुए कहती है -“अनी तुझे मार खाना है क्या तुझे कुछ शरम भी है अपनी माँ से कौन ऐसे बात करता है नालायक” और उसके पीठ पे मारने लगती है,

अनिमेष-“माफ करना माँ मुझे लगा तो मैंने कह दिया और ग़लत क्या कहा सही तो कहा मैंने”

लेखा शांत होके चलते हुए कहती है-“हा थी गलती तो क्या तू अपनी माँ को बताएगा उसकी गलती नालायक रुक आने दे अब पक्का बताऊँगी तेरे पापा को तेरी हरकत”

अनिमेष की फिर से फट के चार हो जाता है-“प्लीज माँ अब कुछ नहीं कहूँगा, आप पापा को कुछ मत बताना”

लेखा अपनी हसी को अंदर ही दबा के उससे कहती है-“आज तूने कुछ ज़्यादा ही मस्ती कर लिया चल अब शाम के 4 बज गए घर जाके चाय पीना है मुझे, फिर दोनों माँ बेटे घर की तरफ़ चल पड़ते है,
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घर में शाम के 5 बज चुके थे तीनो बहने कॉलेज से आ चुकी थी चारों देवरानी और जेठानी भी घर पे थी पर उनके पतियों को आने में अभी समय था, जो जैसे आते गए एक एक करके लेखा ने सबको चाय पिलाती रही उसको चाय बाटते हुए उसका बड़ा बेटा आज अजीब नज़रों से देख रहा था जैसे उसकी माँ को उससे कुछ चाहिए हो। उसका गदराया गोरा बदन, मोटी कसी गांड और बड़े बड़े चूचे जिनको आज को मन भरके देख चुका था, उसका बड़ा बेटा अनीमेष आज अपनी माँ की तरफ़ आकर्षित हो रहा था ना चाहते हुए वो अपनी नज़र बार बार अपनी माँ पे ही ले जा रहा था और वहाँ लेखा अपने बेटे को ममता की नज़र से देख मुस्कुरा देती थी, सबको चाय पिला के थक के वो फ्रेश होने और मूतने अपने कमरे में ना जाके सीधे घर के पीछे बने खुले हुए बाथरूम में चली जाती है,

और ये वही समय था जब कमल जो शाम को घूमके वापस आने के बाद सीधे ऊपर ना जाके पीछे की तरफ़ मुतने चला गया जहाँ उसकी मुलाक़ात सबसे बड़ी चाची लेखा से हुई,

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, सभी ने एक एक करके रात खाना खाया,
खाने के खाने के समय और उस रात सभी कमरों में क्या घटा ये जानने के लिए हमे अगले भाग की ओर जाना होगा, आज के लिए इतना ही मिलते है अगले भाग में धन्यवाद🙏

माफ़ करना दोस्तों अपडेट आने में लेट हुआ क्युकी मुझे नहीं पता था यहाँ सेव ड्राफ्ट करने पर बस १ दिन ही रहता है मेरा 40% अपडेट चला गया था और मुझे फिर से लिखना पड़ा।
Bhout hi badhiya update
 

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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏
Behtreen update
 

Ajju Landwalia

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अध्याय 6
सोचने वाली रात

रात होते ही सभी एक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, एक एक करके रात के खाने के लिए जिसको जैसे समय मिल रहा था आते जा रहे थे,

सबसे पहले घर की बड़ी बहू चंचल और लेखा ने खाना अपने सास और ससुर, चंचल के पति पंकज, कमल, अनिमेष और रिंकी को दिए, दोनों बहुए खाना बड़े मन से परोस रही थी जिसको जितना चाहिए उतना सभी तो देने लगी और खाते समय,

पंकज -“बाबू जी खेत के काम में कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना आपको”

रमेश चंद-“अरे नहीं बेटा अभी तो फसल तैयार भी होने वाले है और इस समय क्या दिक्कत होगी भला”

पंकज -“आप को कोई मदद चाहिए हो तो बताइयेगा”

शामली देवी -“बेटा मैं क्या कह रही थी अभी घर पर सब ठीक है और मौसम भी सही है तो क्यों ना सभी लोग कही घूम आए”

पीताम्बर -“सही कह रही हो माँ फसल कटने शुरू हो उससे पहले घूम आना चाहिए”

पंकज -“जैसा आप लोगो को ठीक लगे पर मुझे कंपनी से छुट्टी शायद ना मिले तो आप लोग चले जाना”

रमेश चंद-“अभी पहले खाना खाओ कल शाम को सोच लेना ये सब”

और अपनी बड़ी बहू चंचल को देखने लगे जो अपने ससुर को देख मुस्कुरा रही थी और इशारे से पूछी जैसे कुछ चाहिए क्या, और उसके ससुर ने ना में अपना सर हिलाया

जहाँ अभी ससुर और बहू नजरे मिला रहे थे वही लेखा पर भी दो लोगो की नजर थी एक कमल और दूसरा उसका ख़ुद का बेटा अनिमेष और लेखा की नजर दोनों में रह रह के जा रही थी, पर कमल और अनिमेष को पता नहीं था उनकी नजरों को कोई पढ़ रही थी

वो रिंकी थी जो खाने के साथ साथ अपने दोनों भाइयो की नजरो को अच्छे से परख रही थी जिसे देख वो अचंभित थी की कैसे कमल अपनी चाची और अनिमेष अपनी माँ को बार बार देख देख मुस्कुरा रहे थे और वहाँ से लेखा भी उनको देख मुस्कुरा रही थीं रिंकी को सक हुआ, कुछ अजीब है आज इनके बीच क्या ये सब पहले भी हुआ करता था इन्ही सब खयालों में खोए रिंकी खाना खाने लगी,

इनके खाने के बाद बाकी बचे लोग भी एक एक करके सभी ने खाना खाया और अपने अपने रूम में चले गए।

लगभग रात के १० बजे देखते है किनके रूम में क्या हो रहा है एक जरूरी बात आजकल कमल और अनिमेष कमल के ही कमरे में सो रहे है और रमल अनिमेष के कमरे में नवीन के साथ ऊपर वाले मंजिल में,

पहले कमरे में जहा रमेश जी अपने पत्नी शामली देवी से कहते है- “क्या हुआ तुम्हें आजकल यहां मन नहीं लग रहा जो घूमने जाने का मन बना रही”

जिसके जवाब देते हुए उसकी पत्नी ने कहा- “कहा से मन लगेगा कुछ लोगो को आजकल खेत से फुरसत जो नहीं मिल रही” रमेश जी को खेत का नाम सुनते ही अचानक आज दोपहर हुए अपने बहू के साथ की घटना याद आ गई जिससे उसके लंड में हल्का हलचल हुआ,

रमेश जी ने कहा- “हा तो तुम ही खेत आ जाती वहा बहुत जगह है मन लगाने को”

और ये बोलते ही हसने लगा, जिसके कहने का मतलब उसकी पत्नी अच्छे से समझ रही थी,

“मन तो घर में भी लग सकता है पर कहा लगायेंगे हम तो पुराने लगने लगे ना” शामली देवी ने रमेश जी पे तंज कसते हुए कहा और बिस्तर में लेटे दूसरे तरफ़ मुड़ गई,

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जिसे देख रमेश जी उनके पास आते हुए कहने लगे- “अब तुमने कहा है तो लो अभी यही मन लगा देते है”

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ये कहते हुए अपने हल्की खड़े लंड को जो पजामे में थी अपनी पत्नी के पीछे जाके साड़ी में बंद गांड से लगाते हुए अपने हाथों को कमर से होते हुए पेट पे ले जाके घूमाने लगे, और उसके कान के नजदीक आके कहने लगे- “रही बात पुराने की वो तो मुझे अच्छे से पता है की आज भी तुम कितनी दम रखती को किसी की हालत पस्त करने में"
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वही बगल के कमरे में बात कुछ आगे बढ़ चुकी थी चंचल अपने पति से चुद रही थी। वो पूरी तरह से बिस्तर पर नंगी थी और उसके पति का लंड जल्दी जल्दी उसकी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था। उसके पति तो बिलकुल चूत के पुजारी है। बिना चूत मारे उनका काम ही नही चलता है। इसलिए आज जैसे ही चंचल अपने सारे काम निपटा के बिस्तर में आई तो पंकज उस पर टूट पड़े थे और उसको बजाने लगा।

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चंचल- “आआआअह्हह्हह…… ईईईईईईई…. ओह्ह्ह्हह्ह…. अई. अई..अई…..अई..मम्मी….” की आवाज निकालने लगी क्यूंकि वो चुद रही थी और बहुत अधिक उत्तेजना में आ गई थी। चंचल ने अपने दोनों हाथो से अपने पति पंकज को पकड़ लिया था उसके नाखूनों की नक्काशी पंकज की पीठ में दिखने लगी थी,

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पंकज चंचल के नंगे चिकने, कामुक और बेहद सेक्सी बदन पर लेटा हुआ साथ ही उसके चूची को भी चूस रहा था और दूसरे हाथ से चूची को दबाते हुए चंचल की चूत को जल्दी जल्दी ठोंक रहा था चंचल को बड़ा मजा आ रहा था,

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आज दोपहर जब से वो खेत से वापस आई थी उसकी चूत गीली ही थी उसके ससुर जी की बातों से कहीं ना कहीं उसकी चूत का ये हाल हुआ था,

हर दिन की तरह आज भी उसकी चूत को उसका लंड उसे मिल रहा था और उसकी आँखे चुदाई के नशे से बंद हुई जा रही थी। उसके पति का लौड़ा उसकी चूत में जल्दी जल्दी किसी ट्रेन की तरह सरक रहा था और चंचल की चूत बजा रहा था।

कुछ देर बाद पंकज और जल्दी जल्दी पेलने लगा

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चंचल- “……मम्मी…मम्मी…..सी सी सी सी.. हा हा हा …..ऊऊऊ ….ऊँ. .ऊँ…ऊँ…उनहूँ उनहूँ..” की कामुक आवाजें निकालने लगी। पति का ८” लंड उसकी चूत को बहुत जल्दी जल्दी चोद रहा था और उसके गुलाबी भोसड़े को फाड़ रहा था। चंचल को बहुत मजा आ रहा था।

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पंकज के अचानक से तेज तेज झटके से चंचल की रसीली चूत में पानी भर के आने लगे और चंचल हवस की आग में ठंडी होने लगी। चंचल ने अपनी चिकनी टांगों को पंकज की कमर में गोल गोल लपेट दिया और उसको कसकर पकड़ अपने सीने से चिपका लिया था। पंकज अपनी पत्नी चंचल की चूत को कमर मटका मटकाकर बजा रहे थे और उसकी चूत को अपने मोटे लौड़े से फाड़ रहे थे।

हवस की माँग में चंचल ज़्यादा देर सह ना सही और उसकी चूत ने आत्मसमर्पण कर दिया उसने अपने पैरों और हाथों को तब तक बाँधे रखा जब तक उसकी चूत ने पानी का एक एक कतरा बहा ना दिया और पंकज के लंड को निचोड़ ना दिया।

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अनिमेष -“भाई अब बता भी दे क्या दिखाने वाला था मुझे”

कमल -“यार वही तो देख रहा हूँ पता नहीं कहा रख दिया मैंने”

अनिमेष -“आप बताओ तो सही है क्या! पता चले तो मैं भी खोजता हूँ”

कमल डर के साथ सोच में खोया हुआ “आख़िर गया तो गया कहा, कहीं किसी के हाथ लग गया फिर तो मेरी खैर नहीं” फिर अनिमेष से कहता है -“यार अनी वो एक किताब थी जिसमें कुछ नंगी तस्वीरें थी जिसे मैं कॉलेज से ख़ास तुझे दिखाने के लिए अपने दोस्तों से माँग के लाया था पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने”

अनिमेष -“भाई क्या बात कर रहा है वैसी किताब तू यहाँ लेके आया था और अब कहीं रख के भूल गया वाह मेरे भाई साहब, अगर घर के किसी भी सदस्य ने वो गलती से भी देख लिया ना तो हम दोनों की खैर नहीं है”

कमल -“तू बकचोदी बंद कर और मेरे साथ खोज थोड़ा”

दोनों भाई मिलके उस किताब को बहुत ढूँढे पर उनके कहीं नहीं मिली, मिलेगी भी कहा से क्यों की उस किताब को रिंकी ने चुपके से ले लिया था। दोनों भाई थक हार के बिस्तर पर लेट जाते है और आगे का सोच के डरने लगते है तभी कमल के मोबाइल में कुछ मेसेज आता है जो कॉलेज ग्रुप का था जिसमे किसी लड़के ने एक अश्लील वीडियो भेजा था और कमल खोल के देखता है जिसे अनिमेष ने भी देख लिया,

अनिमेष -“तेरे ही मजे है साले मेरे दोस्त कुछ नहीं भेजते”

और दोनों मिलके वो वीडियो देखने लगते है जिसमे एक कम उम्र का लड़का एक अधिक उम्र की गदराई हुई बड़ी सी चूची और गांड वाली औरत को पीछे से चोद रहा होता है जिसको देख कर दोनों भाई के मन में ख्याल आने लगते है,

अनिमेष मन में- “इस औरत का शरीर तो बिल्कुल माँ के समान लग रही है बिल्कुल वैसी ही गोरी गोरी बड़ी और मोटी गांड”

कमल मन में- “यार इसकी गांड तो बिल्कुल रेखा चाची के जैसे ही है बिल्कुल आज ही की तरह”

और दोनों भाई इशारों में कुछ बोल कर एक साथ अपने पेंट और चड्डी को अपने टाँगों से सरका देते है ताकि आराम से वो दोनों वीडियो देखते हुए अपने लंड मुठिया सके,

कमल - “आह अनी देख रहा क्या गांड है इसकी, बिल्कुल....” और चुप हो जाता है

अनिमेष -“हाँ आह देख रहा भाई गोल गोल बड़ी गांड, आपको किसी के जैसे दिख रही क्या जो बिल्कुल बोलके चुप हो गए”

कमल हाथो से लंड को मसलते हुए -“लग तो रहा यार पर कह नहीं सकता बस उसे याद करके हिला सकता हूँ”

अनिमेष थोड़ा ज़ोर से अपने लंड पे जोर लगाते हुए -“अब बोल भी दो भाई इतने दिन से तो सब बता रहे फिर आज क्यों नहीं कह रहे”

कमल -“तू नहीं समझेगा अनी रहने दे फिर कभी बताऊंगा बस ये समझ ले इस औरत की गांड किसी आसपास रहने वाली के जैसी है”

अनिमेष मन में सोचता है कहीं ये भी वही तो नहीं सोच रहा जो मैं सोच रहा, मैं तो अपनी माँ के बारे में सोच रहा कहीं ये भी घर के किसी औरत के बारे में तो नहीं सोच रहा,

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ये ख्याल आते ही एक तेज फ़व्वारा उसके लंड से निकल पड़ा और शांत होके बिस्तर में पस्त पड़ गया,

वही कमल भी अपनी चाची रेखा की गांड के बारे में सोच के अपने हाथो तो लंड पे तेजी से चलाने लगा, उसने देखा अनिमेष ने धार छोड़ दिया पर वो अभी भी हिलाये जा रहा रहा था उसे उसकी चाची नंगी नजर आने लगी थी,

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उसकी कल्पनाओं का सीमा बढ़ रहा था, रेखा के साथ साथ उसे नेहा भी नंगी नजर आने लगी थी, दोनों के जिस्मों से खेलने की बात सोच कर ही उसके लण्ङ में अकड़न बढ़ती जा रही थी,
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लेखा अपने सारे काम से निवृत्त होकर अपने कमरे में बिस्तर ठीक कर रही थी जहा पीताम्बर उससे कहता है-“क्या हुआ लेखा दुकान से वापस आया हूँ, तब से देख रहा हूँ तू कुछ सोच में डूबी हो, कुछ हुआ है क्या”

लेखा हड़बड़ाते हुए-“नहीं तो मैं कहाँ कुछ सोच रही हूँ, आपको ऐसा क्यों लग रहा है”

पीताम्बर-“दो बार मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नहीं दिया”

लेखा-“क्या पूछे फिर से पूछ लो”

पीताम्बर-“यही की तुम दोपहर में दुकान से जल्दी जल्दी क्यों निकल आई, मैं तुम्हें रुकने के लिए बोलता, तुम उससे पहले ही निकल पड़ी और तुमने खाने का डब्बा भी छोड़ आई”

लेखा अचानक हुए ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार थी-“हा वो दीदी ने आज कुछ काम बताया था वो करना भूल गई थीं उसे ही पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी निकल आई”

पीताम्बर-“फिर हुआ काम” कहते हुए अपने कपड़े बदलने लगा

लेखा-“हा सब हो गया” कहकर वह भी अपनी साड़ी निकालने लगी, साड़ी निकालने के बाद नाइटी पहनने बाथरूम में चली गई,

वहाँ पहुँचते ही उसने अपनी ब्रा और चड्डी को निकालने लगी फिर उसे अपने और अनिमेष की बाते याद आने लगी थीं और ख्याल आने लगे की “क्या अनी ने आज सब कुछ शुरू से देखा होगा या आख़िर में आया होगा, वो तो आज मुझे पूरी नंगी देख अपना लंड भी हिला रहा था, कितना बड़ा लग रहा था उसका लंड, थोड़ा बड़ा था उसके पापा से और मोटा भी”

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और अपने हाथों को ना जाने क्यों बड़े बड़े चुचियों पे ले जाने लगती है, “आह अनी तूने तो आज फिर से मेरे ये चूची देख लिया बेटा” “हे भगवान मैं ये क्यो सोच रही और मेरे हाथ क्यों अपने आप चुचियो पे चल रहे” फिर धीरे से हाथ को चूत की तरफ़ ले जाने लगती है “नहीं ये सही नहीं है वो मेरा बेटा है” और फिर पैर हाथ को पानी से धोके कपड़े से पोछने के बाद अपनी नाइटी पहन कर बाथरूम बाहर से बाहर आ जाती है,

जहाँ अपने पति को बिस्तर में लेटे देख बल्ब को बुझा देती है और उसके बगल में जाके लेट जाती है, वो छत की तरफ़ देख अपने पति से कहती है-“सो गए क्या”

पीताम्बर-“थकान से नींद आ रही है तुम्हें नींद नहीं आ रही क्या”

लेखा-“कुछ नहीं आप सो जाइये मुझे थोड़े देर में आ जाएगी”

लेखा फिर से आज दिनभर की घटना को याद करने लग जाती है की कैसे आज उसने अपने पति के अलावा दो और अलग लंड देखे जो उसके पति से थोड़े बड़े और मोटे थे, दोपहर में अनी का लंड और शाम को कमल का, जवान लंड को याद करके लेखा की चूत फिर से पानीयने लगी थी,

उसे कुछ करने की इच्छा हो रही थी पर ये सोच के की वो उनके अपने परिवार के है और उनके लिए ग़लत सोचना सही नहीं है ख़ासकर जब वो दोनों घर के बेटे हो।

लेखा डर भी रही थी अपने बेटे के लिए उसका इस तरह किसी की चुदाई देखने का मतलब था की अब वो ये सब में दिलचस्पी लेने लगेगा और अब वो किसी की चुदाई के लिए उसे अपनी तरफ़ करने लगेगा, ये उम्र ही ऐसी है जोश पूरा अपने चरम पर होता है और जहाँ हवस की बात आती है इंसान कुछ भी कर जाता है, कहीं वो किसी के साथ ग़लत ना कर दे,

लेखा मन में -“क्या मुझे उससे इस बारे में बात करनी चाहिए, क्या ये सही रहेगा” बहुत सोच विचार कर अपनी दिमाग़ में कुछ सोचने के बाद-“हा बिल्कुल वो मेरा बेटा है और मैं नहीं चाहती वो किसी ग़लत दिशा में जाए, मुझे किसी दिन समय निकाल के उससे बात करनी ही होगी” इन्हीं सब ख्यालों में खोई लेखा भी अपने पति से चिपक के साथ में सो जाती है,
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ऊपर कमरे में तीनो बहने खाने के बाद थोड़ी पढ़ाई करी और सोने से पहले गप्पे मार रही थी की तभी,

पूजा -“पिंकी आज पानी का बॉटल नहीं भरी क्या”

पिंकी -“माफ करना दी मैं अभी लेके आती हूँ”

रिंकी कुछ सोच के -“तू रुक मैं लेके आती हूँ” और पानी के दोनों बॉटल लेके बाहर आ जाती है,

जहाँ उसे उसके छोटे चाचा के कमरे में आ रही आवाज़ सुनाई देती है जिससे उसे पता चल जाता है लगभग रोज़ की तरह आज भी उनके बीच कुछ बातों को लेके बहस हो रही थी और मन में सोचती हुई आगे बड़ती है आज चाचू फिर पीके आए है पता नहीं कब सब ठीक होगा,

रसोई में पहुँच कर फ्रिज खोल के देखती है पर वहाँ तो आज सभी ने पानी ले लिया था और कहती है -“ ओहो क्या मुसीबत है मतलब अब नीचे जाना ही पड़ेगा” और अचानक मन में एक ख्याल आता है क्यों ना कमल और अनिमेष को देखा जाए रात १०:३० में क्या कर रहे है और तेजी से नीचे जाने लगती है,

जहाँ बरामदे का लाइट बंद हो चुका था हल्की रोशनी वाली बल्ब जल चुकी थी रसोई में पानी की बॉटल को रख देती है,
और चुपके से कमल के कमरे के बाहर पहुँच कर जहाँ अभी भी उसके कमरे की लाइट जल रही थी आवाज सुनना चाह रही थी पर उसे आवाज से कुछ ख़ास समझ नही आया और उसकी दोनों भाई को देखने की ललक बड़ रही थी,

वो किसी तरह खिड़की को खिसका के अंदर का नजारा देखना चाह रही थी और उसको सफलता भी मिल गई पर रिंकी को क्या पता ये वही समय था जब उसकी आँखो के सामने वो नजारा दिखा की अनिमेष ने लंड से अपना पानी निकाला और बिस्तर में ही बगल में पस्त पड़ गया, पर कमल अभी भी हिलाए जा रहा था,

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रिंकी सामने का नजारा देख के हक्की बक्की हुई और मन में कुछ सोचने लगी कि "क्या उसने सही किया यहाँ आके"

वो लगातार बस कमल को लंड हिलाते देख रही थी उसके ८” के लंड पर अपने भाई के हाथो को हिलते देख उसके शरीर में एक अजीब सी एठन सी उठ रही थी जिसे सिर्फ वही अहसास कर सकती थी,

वो डर भी रही थी जिसकी वजह से बार बार बरामदे में भी देख रही थी कि कही कोई उसे ऐसा करते देख न ले,

रिंकी की चूत में हलचल मचनी शुरू हो चुकी थी, हालांकि रिंकी ने कई लंड यहाँ वहाँ देखे थे पर ये पहली बार था जब आज रिंकी ने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को इस तरह देखा था,

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वो ना चाहते हुए अपने एक हाथ से चूचे को अनुप्रेषित करने लग गई और धीरे से दूसरे हाथ को लेगिस के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगी,

अब रिंकी को अपने भाई की आवाज भी थोड़ी सुनाई दे रही थी, “ओह क्या गांड है यार बिल्कुल आज जैसे मैने देखा था वैसी ही, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ही गांड मार रहा हूँ काश इस लड़के की जगह मैं होता"

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रिंकी उसकी बातों को सुन बड़ी अचंभित थी कि आज कमल ने किसकी खुली गांड देख ली, क्या वो घर की ही बात कर रहा या बाहर किसी और की,

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यहाँ रिंकी सोच ही रही थी की वहाँ कमल ने अपने लंड से पानी निकाल दिया, जिसके बाद वो भी पस्त पड़ गया और ऐसे बेड में लेता रहा,

अब रिंकी धीरे से वहाँ से निकल रसोई से पानी लेके अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी जहाँ पहुँचते ही पूजा ने उससे कहा-“कहा रह गई थी इतने देर मैं तुझे ऊपर भी देखी पर तू कहीं नहीं मिली”

रिंकी-“दी ऊपर वाले फ्रिज में पानी नहीं था तो नीचे लेने चली गई थी”

फिर तीनो बहने सोने की तैयारी में लग जाते है, पर रिंकी की नींद तो गायब थी वो सोच रही थी अभी जो उसने देखना क्या उसे पूजा दी और पिंकी को बताना चाहिए, क्या मुझे सच में बताना चाहिए की आज मैंने कमल भैया को मुठ मारते देखा और बहुत सी बातों को मन में सोचते हुए वो भी कब नींद की आगोश में चली गई उसे ख़ुद पता नहीं चला,

मित्रों आज के लिए इतना ही जैसा कि आपने देखा रात होते ही सभी कही का कही, किसी न किसी के ख्यालों में खोने लगे थे,

अब कल का नया दिन सभी को कहा लेके जाएगा कौन आगे बढ़ेगा कौन पीछे हटेगा ये सब देखना दिलचस्प होगा।

मिलते है अगले अध्याय में तब तक के लिए धन्यवाद 🙏

Bahut hi umda update he insotter Bro,

Ab parivar me dheere dheere incest sex ka khumar chhane laga he..........

Keep rocking Bro
 
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