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Erotica कोमल ( Completed )

aamirhydkhan

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कमनीय कोमल

नेट पर एक कहानी पढ़ी है एक कमसिन कमनीय लड़की कोमल की और नौजवान की जो अभी जवानी की तरफ बढ़ रहा है कैसे छेड़छाड़ उत्सुकता से प्यार परवान चढ़ा और फिर पहला मिलन हुआ

कहानी मेरी नहीं है पर समयानुसार कुछ काट छांट जरूर की है

लेखक में दो नाम सामने आये mrindia और bbmast
असली लेखक के बारे में काफी प्रयास करने पर भी पता नहीं चला .. किसी ने अगर पढ़ी ही और असली लेखक के बारे में जानते हो तो अवश्य बताना उन्होंने बहुत अच्छी कहानी लिखी है
कहानी से उनका नाम जुड़ा होना चाहिए

उसे यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ आशा है पसंद आएगी


परिचय

पुरानी बात है, मैंने स्कूल से निकल कर कॉलेज में कदम रक्खा ही था, सारा माहौल उस समय रूमानी लगता था, हर लड़की खूबसूरत लगती थी, शरीर और दिमाग में मस्ती रहती थी, शरीर जैसे हर समय विस्फोट के लिए तैयार, मुठ मारने लगा था, लंड बेचैन रहता था, वैसे मैं पढाई में भी तेज था और क्लास में ऊँचे दर्जे से पास होता था, इस वजह से घर और बाहर इज्जत थी, किसी चीज के लिए घरवाले मना नहीं करते,

उसी समय गर्मी की छुट्टियां हुई और मेरे ताउजी के एक घनिष्ट मित्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ हमारे घर आये तीन चार दिनों के लिए, उन्हें पुरी जाना था और हमारे यहाँ रुके थे, बेटी अलीगढ़ के एक स्कूल में छात्रा थी और अभी अभी परीक्षा का रिजल्ट आया था जिसमे पास हो गयी थी, छुट्टियों के बाद आगे पढाई जारी रखनी थी.

उसके परिवार से हमारा बहुत पुराना सम्बन्ध था और मेहमानों जैसी कोई बात नहीं थी. उसके पिताजी भी मेरे पिताजी के दोस्त जैसे ही थे. पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे, तीन चार सालों से ताउजी व्यापार के लिए पूना रहने लगे थे. कोमल को बहुत सालों के बाद देखा था.


कहानी जारी रहेगी

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Update 11
 
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aamirhydkhan

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ओह्ह्ह क्या करते हो.. शरबत बनाने दो... मैं कुछ करूंगी तो बचोगे नहीं...." उसके बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा...

"क्या करोगी" मैंने कहा

कोमल ने चाकू उठाया बोली " यह देख रहे हो, वो काट दूंगी इससे..." और मेरे लिंग की तरफ इशारा किया

"फिर तुम्हारी इस बेचैन मुन्नी का क्या होगा... " मैंने उसकी योनी को मसलते हुए कहा,

"मेरे से ज्यादा बेचैन तो तुम हो...." कोमल ने कहा,

" अच्छा ? ...तो देख " मैंने कहा और उसपर झपटा, वो बिल्ली की सी तेजी से निकल मुझे चिढ़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों की तरफ भागी, मैं नीचे से देखता रहा,

" ... पकड़ सकता है मुझे ? " ...वो ऊपर सीढ़ियों पर खड़ी खिलखिला रही थी ..मैं हैरानी से देख रहा था... क्या जिस्म.. क्या अदा.. क्या मासूमियत..कभी बचपन में सोचा भी नहीं था की ये लड़की जवान होने पर ऐसी क़यामत बनेगी.. सच पूछिए तो उस समय मन उसे छूने का भी नहीं था, सिर्फ देखते रहने का....कभी आपने कोई हसीँ दृश्य देखा है ? आप सोचते हैं ये बिगड़ न जाए, बस देखते रहें... यही हाल मेरा था...सामने हुस्न, उम्र नादाँ, बेबाक पूर्ण नग्न, जवानी पर एक इंच कपड़ा नहीं... मुझे एक टक देखते हुए देख कोमल शर्मा गयी, उसकी हंसी बंद हो गयी और हम एक दुसरे को निहार रहे थे, वो सीढ़ियों पर ऊपर खड़ी और मैं नीचे, मैं भी पूरी तरह नग्न .. उसके गाल लाल हो गए . शर्म और लाज से....आँखें झुका कर पूछा " ..ऐसे क्यों देख रहे हो ...चलो शरबत बनाते हैं ... " कहती हुई सीढ़ियों से उतरती हुए मेरी और आने लगी,

मैं देखता रह गया उसकी मतवाली चाल, कोमल ने अच्छी लम्बाई पाई थी, शरीर की बनावट बड़ी थी, गदराया शरीर, चिकनी काया, शरीर का हर अंग तराशा हुआ, चाल में एक लचक और शरीर में भरपूर मादकता, आँखें और चेहरे पर भी सेक्स का रंग, कोई भी देखे तो इस लडकी में मौजूद गज़ब के सेक्स अपील से बच न सके , ऐसा नशीला बदन और ऐसी ख़ूबसूरती कुछ एक लड़कियों को बनाने वाले की देन होती है , उनके बदन से हर वक्त कामुकता और वासना फूट फूट पड़ती है, कोमल कुछ ऐसी ही थी,

मैं बिलकुल सामने खड़ा और वो जैसे कोई हवा से निकली परी की तरह निर्वस्त्र अपने अंगों का प्रदर्शन करती आ रही थी, गोल सुडौल स्तन, भरी भरी जांघें और बीच में सुनहरे हलके रेशों के बीच योनी, शरीर की ही तरह ही गद्देदार योनी पट जिन्होंने योनी को दोनों और से दबा कर दरवाज़े को बंद कर रक्खा था, दूर से ही मालूम पड़ रहे थे रसमलाई की तरह फूले हुए, सर से कन्धों तक लहराते काले रेशमी बाल, पहली बार पूर्ण निर्वस्त्र बदन देख रहा था, वो भी बिलकुल सामने से -- इस प्रकार मानो एक संगेमरमर मूर्ती में जान डाल दी हो. देने वाला भी कभी खूब देता है, कोमल के दाहिने उरोज के उठान पर एक काला तिल और वैसा ही उसकी बांये जांघ पर योनी के थोड़ा नीचे, गोरे चिकने शरीर पर खूब दिख रहे थे, मैं अवाक् सा खड़ा देख रहा था,

" कभी किसी लड़की को नहीं देखा क्या... ? ऐसा क्या है मेरे में . ? " कोमल ने छेड़ने के अंदाज़ में पुछा,

"देखा तो.. पर ऐसा नहीं.... "

" अच्छाआआ... ऐसा क्या है जो देख रहे हो .." कोमल मेरे नजदीक आकर बोली,

"यह है " कहते हुए उसके दोनों उरोजों को हथेलियों में दबा उसके होठों को चूम लिया... मेरा लिंग फिर से खड़ा हो रहा था और देखते देखते पूरे तनाव में आकर लम्बा खड़ा हो कोमल की योनी पर प्रहार कर रहा था, हम कुछ एक मिनट लिपटे रहे फिर कोमल ने कहा "चलो पहले तुम्हें शरबत देती हूँ फिर मुझे देख लेना जितना चाहो ..." हम किचेन में आये और कोमल और मैंने मिलकर शरबत पिया, सारे समय हम एक दुसरे से चुहलबाजी करते रहे,

... उसे हाथ पकड़ कमरे में लेकर आया और पलंग पर गिरा उसपर लोट गया...."एक चीज़ दिखाऊँ ... देखोगी " मैंने पुछा .... "क्या है " कोमल बोली,

"यह देख " मैंने कहा और उठकर ड्रोवर से कोहिनूर का पैकेट निकाला और साथ ही एक किताब जिसमें मैथुन से भरे शानदार चित्र थे, मेरे एक दोस्त ने दी थी स्वीडेन की छपी चमकीली किताब जिसमें पुरुष और इस्त्रियों के अनेक चित्र थे मैथुन करते हुए, कोमल ने ऊपर के कवर को देखते ही आश्चर्य से पुछा " ऐसी किताब..कहाँ से मिली... तुम ये सब पढ़ते हो.. ? "

"छोड दो तुम्हें नहीं देखना तो..." मैंने कहा

"नहीं नहीं, दिखाओ तो क्या है..." उसने उत्सुकता से कहा और मेरे हाथ से किताब खींच ली...

" आआआआ ...क्या कर रही हैं ये लडकी .... कैसे इस तरह की फोटो खिंचवाती हैं.... देखो इसने कैसे पकड़ रक्खा है और क्या कर रही है.... " कोमल की आँखें बड़ी हो गयीं थी, उसने बहुत ही आश्चर्य से एक चित्र को दिखाते हुए कहा जिसमे एक इस्त्री एक पुरुष के लंड को खींचती हुई अपनी योनी में डाल रही थी. हम दोनों नंगे पलंग पर सट कर बैठे थे, कोमल एक एक पन्ना पलट रही थी और आश्चर्य और गौर से सभी फोटो देख रही थी, बीच
बीच में आँख उठा कर मुझे भी देख लेती और शर्मा जाती. उसका हाथ अनायास ही मेरे लिंग को पकड़ सहलाने लगा,

वो चित्रों को बहुत ध्यान से देखे जा रही थी और मेरे लिंग को भी हाथों में पकड़ घुमा रही थी, खींच रही थी, मेरा एक हाथ उसकी कमर के पीछे जाकर उसके बाएं स्तन को दबा रहा था और दुसरे हाथ की उँगलियों ने उसकी जांघों को सहलाना शुरू किया और फिसलता हुआ उसके योनी द्वार के पास सिल्क से मुलायम

चूत पर के बालों को सहला रहा था, कोमल का गला सूख रहा था, उसकी आवाज़ उखड़ी सी हो गयी, " बहुत मज़ा आता होगा इनको क्या ?..." उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा....कोमल की जांघों के रोंगटे खड़े हो गए थे जैसे की शरीर में झुरझुरी होने से होती है... उसकी आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखने लगे...वो उत्तेजित हो रही थी.. कामुक और नशीली अवस्था में होश खो रही थी, स्तन की घुन्डियाँ टाईट हो गयीं, मेरे शरीर में सनसनाहट होने लगी.

एक चित्र में लड़की दो पुरुषों के साथ मैथुन में लिप्त थी, देख कर कोमल हैरत में आ गयी, " अरे ... यह कैसे.. दो लड़कों से एक साथ कैसे कर सकती है .. " उसने कहा, ....दुसरे ही चित्र में में लड़की के योनी और गुदा द्वार में लड़कों का लंड एक साथ देख कर उसकी आँखें खुली रह गयीं .... कोमल ने मुझे पलंग पर गिरा दिया और मेरे ऊपर चढ़ बैठी , अपने स्तनों से मुझे दबा मेरे को चूमने लगी " तुमने किसी लडकी को किया है ऐसा"...उसने पूछा ...

क्या .. " मैंने जान कर कहा

"जो इस किताब में है... क्या कर रहे हैं तुमको नहीं मालूम ?..." कोमल बोली

" पूरा नहीं मालूम .. तुम बताओ न ? "मैंने कहा

"मुझे बुद्धू मत समझ .. तुम्हें सब मालूम है .. मेरे से सुनना चाहता है न ? " कोमल तेज लडकी थी, मेरे कहने का मकसद समझ रही थी

"जब तुम समझती हो तो बताती क्यूँ नहीं .." मैंने कहा..

" मैं नहीं बोलूंगी... मुझे शर्म आती है... तुमने किया कभी ... ?" कोमल बोली पर मैं उसके मुहं से ही सुनना चाहता था की उसकी बाकी बची झिझक भी ख़त्म हो जाये, हम लोग एक दुसरे के निजी अंगों से खेलते हुए बातें कर रहे थे, कोमल मेरे ऊपर चढ़ी हुई अपनी योनी से मुझे धीरे धीरे धक्के दे रही थी,

" जब रात को बैठक में थे तब तो तुम्हें शर्म नहीं आ रही थी ... अब क्यों...?

"उस समय रात थी ..अब शर्म आती है .." कोमल बोली,

"अच्छा मैं आँखें बंद करता हूँ... कोशिश करो ... " मैंने कहा,

" मैं पूछ रही हूँ .. तुमने कभी किसी लड़की को ऐसे किया... है... ऐसे...च.. च... चोदा.. है ...? कोमल ने झिझकते हुए कहा,

मैंने आँखें खोली " हाँ, ऐसे साफ़ बोलोगी तब तो समझूंगा... तुम्हारे मेरे बीच में अब क्या शर्म..." कोमल का चेहरा शर्म से लाल हो गया,
मैंने उसके नितम्बों को दबाते हुए कहा " आज तक तो नहीं चोदा पर आज चोदुंगा ...? "

"किसे.." वो बोली

" तुम्हें.. और किसे..."

"पर मैं तो नहीं करने वाली..जैसा इन फोटो में है ...तुमने कैसे सोचा की मैं तुमसे कुछ करवाऊंगी .." कोमल ने कहा

" ठीक है.. तो फिर हम क्यों हैं यहाँ... चलो...बाहर.." मैंने उठने का बहाना किया...

" रुको तो... मैंने उस चीज़ के लिए मना किया..प्यार करने के लिए तो नहीं... " कोमल का मन तो था पर वो खुल कर बोल नहीं रही थी, कोमल पूरी मेरे ऊपर आ आगयी और मुझे बाँहों में भर मेरे लिंग पर योनी को दबाते हुए मेरे गालों को चाटने चूमने लगी, वो जबदस्त गर्म थी,

हम दोनों एक दुसरे पर उलट पुलट होते रहे, उसकी योनी में रस भर गया था, मेरे लिंग से भी लग रहा था पानी निकल जायेगा,

मैंने उससे कहा " जल्दी कर, माँ आ जायेंगी"

" तुम क्यों घबराते हो अभी देर है .." कहते हुए कोमल ने सर घुमाकर मेरा लिंग मुहं में ले लिया जो उसको अच्छा लगता था, हम 69 की पोजिसन में थे,

अपने आप ही उसकी योनी मेरे होठों पर आ गयी और मैंने अपनी जीभ अन्दर डाल दी,

"आह आह.. आःह ... यह क्या हो रहा है ...श्श्श ... श्श्स...." उसकी वासना भरी आवाज़ सुन रहा था....

"इसको चूस ले पूरा... मत छोड़ना... इसको काट ले.....दांत से काट उसे ... " कोमल याचना कर रही थी,

....मेरे लिंग और अंडकोष को हाथों से पकड़ बड़ी ही मस्ती में चूस रही थी, लिंग की चमड़ी को खींच पीछे कर दिया, मेरा लिंग जैसे फट कर पानी फेंकने को तैयार था, और वो पूरा मुहं में डाल उसे मक्खन की तरह स्वाद ले रही थी, मैं भी उसकी योनी को काट रहा था चूस रहा था, वो कराहने की सी आवाज़ निकालने लगी, मेरे दोनों हाथ उसके नितम्बों को दबा रहे थे और उसकी योनी ने मेरे मुहं को बंद कर रक्खा था,

नितम्बों की दरार के बीच उंगली डाल उसके गुहा द्वार के बाहर उंगली घुमाने पर उसे बहुत मज़ा आ रहा था " अरे मत कर...बहुत गुदगुदी होती है वहां हाथ लगाते हो तो.." वो चिल्ला रही थी खुशी में, इससे पहले की मेरा पानी निकल आये, मैंने पलट कर उसके मुहं को अपने चुम्बन से बंद किया उसे दबाते हुए हाथ फैला कर कोहिनूर के पैकट को खोल एक रबर बाहर निकाला और कोमल को दिखाया.... शायद उसने कभी कंडोम नहीं देखा था,

"क्या है... क्या करोगे इसका..." कोमल ने हैरानी से पुछा,

"ये अपने इसको...पहना कर तुझे मज़े कराऊँगा " मैंने अपने लंड की तरफ इशारा कर दिखाया कैसे कंडोम चढ़ाते हैं, कोमल अजीब सी नजरों से देखती रही...

"कभी किसी से सेक्स किया है तुमने " मैंने पूछा

" क्या.. ? .... तुमको क्या लगता है.. मैंने तो किसी को पहले नंगा तक नहीं देखा .... तुम्हें पहली बार देख रही हूँ .. तुमने मुझे फंसा दिया ..." कोमल रूआंसी जैसी हो गयी.. .मुझे लगा मामला बिगड़ गया.. मैंने कोई जल्दबाजी नहीं करने की सोची, अभी तक तो मज़े कर रही थी अब अचानक क्या हो गया...ये लड़कियों का स्वभाव है, मैंने उसे शांत किया... उससे बातें की..

" हम तो एक दुसरे को कितना चाहते हैं... मैं मजाक कर रहा था.." वगैरह, कुछ देर तक उसे समझाता रहा. फिर याद आया मेरे पास एक दूसरी किताब भी है .. मैंने अपनी अलमीरा के नीचे से उसे निकाला ... वो एक हिंदी की किताब थी जिसमे कुछ चित्र भी थे और कहानी भी , कुछ हाथ से बनी पेंटिंग्स भी थीं . उसमे उसे दिखाया की कंडोम कैसे चढ़ाते हैं और फिर क्या करते है....

" मुझे मालूम है .. ये कंडोम है, लगा कर सेक्स करने से पेट में बच्चा नहीं होता.... .." कोमल ने मेरे लिंग को हाथ में लेकर बताया, अब में हैरान था, वो सब जानती थी, मैं तो उसे नादाँ समझ रहा था,

"इसको पहनने से तुम्हारे इसका .. वो जो निकलता है ना ... वो अन्दर नहीं जायेगा... मुझे मालूम है..लड़के लडकी का पानी अन्दर जाकर मिलते हैं तो बच्चा होता है " कोमल मेरे लंड को पकड़ते हुए बोली, अब मुझे लगा जैसे मैं ही बेवक़ूफ़ हूँ और ये तो बहुत चालाक हैl

कहानी जारी रहेगी

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खजाने की तलाश
 
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deeppreeti

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अद्भुत कहानी
ये कमनीय कलेवर कोमल कामिनी की कहानी किस प्रेमी के ह्रदय को कामुक नहीं करेगी
 

SKYESH

Well-Known Member
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waiting ...............

mast ja rahe ho....

mind-blowing...........

Excellent..........................
 

aamirhydkhan

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" किसने बताया तुम्हें .." मैंने पूछा, "हमलोग बातें करतें हैं मेरी दोस्त और हम सब .. एक दिन हम सबने एक फ्रेंड के यहाँ विडियो भी देखी थी.. उसमे इसको लगाकर हीरो हीरोइन को फक करता है " कोमल ने रबर की तरफ इशारा करके कहा, मेरा दिमाग घूम गया, कोमल इतनी नादाँ नहीं थी जितना मैं समझता था, मैं जान गया अब उसे कुछ समझाने की जरूरत नहीं, गर्म होगी तो खुद ही तैयार हो चुदवाएगी , बस उसको गर्म कर मजबूर कर दूं की खुद ही मेरे लिंग को पकड़ अन्दर घुसाने को तैयार हो जाये....लेकिन अब उसका मूड ठीक नहीं था और मैं भी ठंडा हो गया था उसकी बातें सुनकर, मैंने कोहिनूर का पैकेट और किताबें अन्दर रक्खीं और कोमल से कहा की कपड़े पहेन ले,

मैंने भी कपड़े पहने और बाहर निकल आया, अब मूड नहीं था. हम दोनों सोफे पर बैठ कुछ देर टीवी देखते रहे, कुछ देर बाद ही माँ भी आ गयीं. शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी भी आ गए, तब तक कोमल और मैं दोनों ही नोर्मल हो गए थे. रात को खाना खाकर कोमल से पूछा की बाहर मेरे साथ चलोगी तो उसने इशारे में हाँ कहा, मैंने कोमल की मम्मी से आज्ञा मांगी तो उन्होंने जाने की इज़ाज़त दे दी की जल्दी आजाना, घर में किसीको को भी बिलकुल ना ही शक था और ना कोई अंदेशा की मेरे और कोमल के बीच में क्या चल रहा है,

हम दोनों स्कूटर पर बाज़ार की ओर चल दिए, कुछ देर इधर उधर घुमते रहे, कोमल मेरे से सैट कर बैठी थी, उसके उरोजों का दवाब मेरे पीठ पर पड़ रहा था, मदमस्त बिलकुल नर्म और गुदाज़, वो भी निःसंकोच थी, मुझे समझ में आया अब वो पूरी तरह नोर्मल थी, एक जगह हम आइसक्रीम खाने रुके,
वहां पूछ ही बैठा " मेरे से गुस्सा हो..."

"नहीं तो .." कोमल ने कहा " गुस्सा होती तो तुम्हारे साथ आती क्या ..."

" फिर उस समय क्यों नहीं साथ दिया..." मैंने कहा

" किस समय... मैं तो तुम्हारे साथ ही थी... तुम्हीने अपना मूड ख़राब कर लिया और मेरा भी ..."

" अच्छा... तो एक बात बताओ... रात को आओगी.." मैंने डरते हुए पुछा कहीं वो मुझे फिर गलत न समझले

" मुझे डर लगता है... मैं कुछ नहीं करनेवाली जो तुम समझ रहे हो..." कोमल बोली

" सिर्फ एक बार.. हम सिर्फ बातें करेंगे और थोडा सा प्यार और कुछ नहीं ...रात को सब सो जांए तो मेरे कमरे में आना या बैठक में..." मैंने कहा

" नहीं...मेरे से नहीं होगा .. बहोत रिस्क है.. कोई जग जायेगा.. और तुम्हारे साथ रिक्कू (मेरा छोटा भाई) भी तो सोता है.." कोमल ने कहा..

"वो बच्चा है, उसे कुछ पता नहीं और सोता भी है घोड़े बेच कर ... तुम मत डरो..." मैंने कहा

"देखूंगी... पर मैं कुछ करने वाली नहीं हूँ .. फिर मत कहना की साथ नहीं दिया "..." कोमल ने जैसे दुबारा खुलासा किया..

"आना तो .." मैंने कहा

कोमल ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मुझे विश्वास था वो आयेगी, उसका मेरे साथ आना, उसका स्कूटर पर मुझे जोरों से पकड़ कर बैठना, अपने उरोजों को जान बूझ कर दबाना, मेरे लिंग को छूने और चूसने के लिए उसका जबरदस्त सम्मोहन और इस समय जब मैं सिर्फ उससे बातें ही कर रहा था उसकी साँसे तेज हो गयीं, और दिख रहा था की स्तन समीज के अन्दर साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, साफ़ था बातों ने ही उसे बेचैन कर दिया था...

हम कुछ ही देर मैं घर लौट आये, पूरे रस्ते कोमल ने मुझे जोरों से पकड़ रक्खा था, स्तनों से दबा मुझे मजे देती रही, और एक दो बार तो मेरे गर्दन पर चूमा भी. माँ बाबू जी और कोमल के माता पिता सबलोग बातें कर रहे थे, मैं कमरे में आकर सोने का बहाना कर लेट गया, कहीं मन नहीं लग रहा था अब सिर्फ इंतजार था, न जाने कब सब लोग अपने कमरों में चले गए, मुझे भी नींद आ गयी.. रात दो तीन बार नीदं खुली तो देखा कोमल अपने कमरे में सो रही थी....मेरी हिम्मत नहीं उसे जगाऊँ...

फिर सोचा वो खुद आयेगी..शायद नीदं आ गयी उसे...उसे भी तो मेरे जैसे ही बैचैनी होगी...कैसे मुझे स्कूटर पर चूम रही थी... मैं सोच कर हैरान था, लंड तनाव से खड़ा हो गया..... सिर्फ १५ साल की छोकरी लेकिन गरम कैसे होती है बिलकुल किसी कुतिया की तरह, यह तो दोपहर में मैं ही रुक गया वरना तो वो गर्मी में आकर मुझे अपना सब कुछ देने ही वाली थी... और अभी कहती है मैं कुछ नहीं करूंगी.. एक बार आने तो दे फिर देखता हूँ .. मैं यह ही सब उधेड़ बुन में था..आयेगी या नहीं....

लेटा लेटा सोच रहा था...कल की ही तरह रात के २.३० बज गए... फिर ३ लगा अब वो नहीं आयेगी, तभी कुछ आवाज़ सी आयी, लगा कोई धीमे क़दमों से बाथरूम की ओर गया, शायद कोमल ही हो ऐसा मन सोच रहा था.. मैं सांस थामे लेटा रहा.... कुछ मिनटों बाद ही देखा अँधेरे में एक साया कमरे के दरवाज़े पर खड़ा था और मुड मुड कर बाहर की ओर देख रहा था.. फिर धीरे से सरक के अन्दर आया, ये कोमल ही थी... मैं जान कर चुप चाप आँखें हल्की खोल कर पड़ा रहा, अँधेरे में उसे मालूम नहीं की मैं उसकी हरकतें देख पा रहा हूँ,

कोमल ने नाईट ड्रेस की बजाय एक छोटा फ़्रोक पेहेन रक्खा था, मेरे पलंग के नजदीक आकर खड़ी हुई, उसकी जांघें बिलकुल मेरे से सट कर लगी थीं, कुछ देर वो देखती रही फिर बैठ गयी पलंग के किनारे और हाथ बढ़ा उसने मेरे गालों को छुआ, अँधेरे सन्नाटे में मैं उसकी तेज और भारी साँसों को नजदीक से सुन रहा था, मुझे सोता देख उसने मेरा हाथ उठा कर अपनी गोद में रक्खा और अपने हाथों से मेरे सीने को सहलाती हुए अपने हाथ मेरी जांघों तक ले आयी, मेरा लिंग अब बर्दास्त नहीं कर सकता था और बिलकुल कठोर हो उछालें लगा रहा था, मैंने थोडा सा जांघों को अलग किया,

कोमल कुछ देर तक मेरी जांघों को सहलाती रही, उसकी अंगुलिया कई बार मेरे अंडकोष को छु रही थी, वो शायद मेरी प्रतिक्रिया का इन्तेजार कर रही थी पर मैंने भी सोचा था की आज तुम्हारे मन की बात जान कर ही रहूँगा, मैं यूं ही पड़ा रहा...कोमल आगे सरकी और अपनी योनी से मेरे हाथ को छूने लगी,

मेरे हाथों को कोमल की योनी का गुदाज़ भाग महसूस हो रहा था, मेरे लिए इस स्थिती को सहन करना मुश्किल था, जैसे स्वाभाविक नींद में हुआ हो इस प्रकार मैंने थोड़ा करवट लिया और आगे सरक गया अब मेरा हाथ बिलकुल उसकी फ़्रोक के ऊपर उसकी योनी को दबा रहा था, उसने फ़्रोक को खींचा, मेरा हाथ अब उसकी नग्न योनी को छु रहा था जो गीली हो रक्खी थी , उसने पैंटी नहीं पहनी थी,

अंडकोष से उसने हाथ बढ़ा अब लिंग को थाम लिया और उसे मरोड़ने लगी, अब उसे शायद लगा मैं नाटक कर रह हूँ, वो झुक कर कान में फुसफुसाई " बहुत हुआ...अब उठो भी ... मैं आ गयी हूँ बोलो क्या चाहते हो..."

मैं यही चाहता था सुनना, मैंने उसे खींच उसके होठों को काट लिया " तू बहुत बनती है... अब तेरी चुदाई करूंगा..."

"यहीं करोगे क्या ... चलो बाहर.." कोमल ने दबी आवाज़ में जवाब दिया

हम धीरे से उठ बाहर आये, कमरे में ही मैंने कोमल की फ़्रोक खोल गिरा दी और वो एकदम नंगी ही कमरे से बैठक तक आयी, पूरे घर में घुप अँधेरा था, सिवाय बैठक के जहाँ खिड़की से आते सिर्फ एक हलके उजाले का आभास भर था, उसने भी मेरे हाफ पैंट के बटन खोल लिंग को खींच बाहर किया .....हम कुछ देर तक एक दुसरे के बदन को महसूस करते रहे.. तनाव बढ़ता जा रहा था, तभी कुछ याद आया, कोमल को बैठक में छोड़ मैं कमरे में आया और तकिये के नीचे रात को रक्खे कोहिनूर के पैकेट को ले वापस बैठक में आया

" कहाँ गए थे.." कोमल ने पुछा,

"यूं ही.. "

"झूठ, तुम कंडोम का पैकट लेने गए थे ना...सच बोलो .. " कोमल बोली, चोरी पकड़ा गयी,

"हाँ..."

" इतनी आसानी से नहीं मिलेगा तुम्हें...." कोमल बोल उठी, लेकिन वो आग में झुलस रही थी,

"देखेंगे..." मैंने कहा और हम लिपट पड़े.....
 
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aamirhydkhan

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सन्नाटा था, सभी गहरी नींद में से सो रहे थे एर्कोंडिसन की ठंढक में , मैं और कोमल आग में झुलस रहे थे, हम सोफे पर एक दुसरे को चूम चाट रहे थे बेखबर, कोमल नंगी मेरे आगोश में थी, मैंने भी पैंट उतार दिया था, हम दोनों एक सोफे पर ऊपर नीचे पड़े महसूस कर रहे थे एक दुसरे के निजी अंगों से खेलते हुए प्यार करते हुए उत्तेजना के शिखर पर थे, कोमल की सांसें तेज थीं,

उसके स्तन सांसों के साथ हिलते हुए एक समां बना रहे थे, हल्की रोशनी में कोमल का शरीर गज़ब का सेक्सी लग रहा था, कोमल को लिंग से खेलना बहुत अच्छा लगता था, वो बार बार मेरे लिंग को पकड़ उसे खींचती, मोड़ती और मुहं में लेकर चूस लेती, कोमल के स्पर्श और मस्तियों से लिंग से जैसे पानी फूट पड़ने को तैयार था, हम 69 की अवस्था में हो गए, वो मुझे चूस रही थी, मैंने उसके नितम्बों को हाथों से घेर अपनी जीभ को उसकी योनी में पूरा घुसेड दिया, योनी की दीवार को चूसने और काटने का मज़ा ही बेमिसाल था, मुझे कोमल की कराहने की धीमी आवाज़ सुन रही थी,

"आह आह्ह... और करो और करो..." वो मुझसे फुसफुसाते हुए सी आवाज़ में कह रही थी और साथ ही मेरे लंड और अन्डकोशों को सहलाते हुए अपनी जीभ से गीला करने लगी, कभी उन्हें चूसती, कभी खींचती , कभी दांतों से काट लेती, धीरे धीरे वो आपे से बाहर हो रही थी, उसने मुझे नाखून से नोचना शुरू कर दिया, मेरे जांघों को काट लिया और अपने नितम्बों को हिला हिला कर अपनी योनी को मेरे मुहं पर जोर से दबाने लगी, योनी को मेरे मुहं पर मारने लगी और अब गालियाँ भी दे रही थी, बार बार मुझे गुंडा और कुत्ता कह रही थी,

"तुमने मुझे क्या समझा... मैं तुमसे कुछ करवाऊंगी ? ...." कोमल के मुहं से पहली बार इस तरह की बात सुन मैं हैरान था,

"तुम घूमना मेरे पीछे..तुम्हें रुलाऊंगी .. मुझे क्या कर सकते हो देखती हूँ.... " वो बकने लगी आवेश में, जैसे मुझे कुछ करने के लिए जोश दिला रही हो,

उसके शब्द मुझे गर्म कर रहे थे और सम्भोग के लिए उत्तेजित भी कर रहे थे, मन कर रहा था उसके बदन को रगड़ कर ठंडा कर दूं,

"क्या करूंगा ? तुम बताओ.. ? " मैंने छेड़ते हुए पुछा जान कर,

"वही..जो तुम सोच रहे हो... इसको अन्दर घुसाना चाहते हो न ..सच बताओ. .? कोमल ने लंड को सहलाते हुए कहा, अब वो खुल कर बोलने लगी थी, उसकी झिझक कम हो गयी थी,

" हाँ.. घुसाना है... देखता हूँ कैसे बचती हो...? " मैंने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया,

" मुझे डर लगता है..... " कोमल के लिए अब बर्दास्त करना मुश्किल था, वो मेरे लंड से खेलते हुए अपने नितम्बो को जोर जोर से आगे पीछे कर रही थे, उसकी योनी रस से सरोबर चिकनी हो गयी और वो कराह रही थी जैसे दर्द हो रहा हो...कोमल ने अपनी पोजीसन बदली और पलट कर मेरी ओर मुहं कर मुझे चूमने लगी, वो तैयार थी पूरी तरह अपने आपको न्योछावर करने, मेरा लंड उसके योनी को दबा रहा था,

" मैं तुझे चोदना चाहता हूँ, तू तैयार है देने को..." मैंने अब उसे प्यार करते हुए खुल कर पुछा

".. कुछ हो जायेगा तो........." कोमल ने कुछ चिंता से कहा , हम दोनों के बीच में जैसे कोई दीवार थी शर्म की वो खत्म हो गयी, कोमल को मजा आ रहा था, हम दोनों उत्तेजित हो रहे थे, मैंने तो सोचा भी नहीं था लेकिन कोमल तो जैसे खुल कर बातें करने के लिए बेताब ही थी,

" कुछ नहीं होगा... तुम कुछ मत सोचो ...हम तो प्यार कर रहे हैं और क्या.." मैंने कोमल को समझाते हुए उसके डर को मिटाने की कोशिश की...

"ठीक है... पर दर्द मत करना.... " कोमल बोली....हम दोनों बेखबर मस्त थे, मैं उसके स्तनों को चूस रहा था और उसकी योनी में अंगुली सटा पुत्तियों को खींच रहा था जो गीली हो गयी और मेरे पुरी अंगुली को ही अन्दर लेने को तैयार थीं, कोमल मेरे होठों को काट रही थी, उसकी हालत जैसे किसी शराबी की सी हो गयी, बेसुध, बेखबर....

"तेरे इससे कितना रस निकल रहा है... .बहुत अजीब लग रहा है... मेरी सुसु को जोरों से अंगुली से रगड़.... ....." कोमल बोली,

"बुद्धू... अब इसको सुसु मत बोल... " अब मैंने को कोमल के साथ खुले शब्दों को प्रयोग करने का मन किया जिससे वो और ज्यादा उत्तेजित हो और मुझे भी अच्छा लग रहा था...

"तो क्या बोलूँ..." उसने धीमे से हँसते हुए पुछा.....

" अब ये सिर्फ सुसु करने के लिए नहीं है... इसमें मैं अभी कुछ करने वाला हूँ.... यह अब बड़ी हो गयी इसको बूर कहते है.... मालूम है.." मैंने उसे दबाते हुए और कान में फुसफुसा कर कहा,

" तुम गुंडे हो....मुझे मालूम है... पर नहीं बोलूंगी...." वो हंस रही थी...

"एक बार बोल तो....सिर्फ एक बार..." मैंने छेड़ते हुए कहा..

"अच्छा तुम्हारे वाले को क्या कहते है...... लंड ...है ना ? कोमल हँसने लगी, मैं हैरान... कितनी आसानी से उसने कह दिया...

"तुम्हें मालूम है....." मैंने आश्चर्य से कहा...

"तो क्या... नहीं मालूम होगा...इतनी भी अनजान नहीं हूँ जितना समझते हो ..."

"कहाँ से जाना ये सब..." मैंने उत्सुकता से पुछा तो बोली " पीछे बताऊंगी.. अभी तो मस्ती करने दे...." और मेरे ऊपर चढ़ बैठी.

हमारी प्यास बढ़ रही थी, कोमल मेरे ऊपर लेटी थी, मेरा लंड उसकी योनी से सटा अन्दर जाने को बेताब सा था, तभी कोमल ने अपने हाथ से लंड को पकड़ योनी के मुहं पर लगाया....

" इसको ..अन्दर... कर न...." वो बोली जैसे याचना कर रही थी, उसका गला सूखा था और आवाज़ उखड़ी हुए निकल रही थी...

"रुक.. एक मिनट...." मैंने कोहिनूर पाकेट हाथ में लेकर खोला और एक कोंडोम निकाला, कोमल ने मेरे हाथों से छीन लिया और बड़े गौर से उसे अँधेरे में ही देखने लगी...

" इसे कैसे यूज करोगे ..."

"बताता हूँ " कहकर मैंने उसे इशारो में समझाया , मैंने और कोमल ने मिलकर कोंडोम को लंड पर चढ़ाया और खोल दिया....कोमल को आश्चर्य हो रहा था.. उसने लंड को सहलाया...

"वाह... अब ये सेफ (safe) हो गया न...." उसने तसल्ली के लिए पुछा....

"हाँ अब जो चाहें करो... मैंने उसे पयर करते हुए कहा...वो निश्चिंत दिखी....

कोमल ने लंड को पकड योनी के पास लगाया, वो बेताब थी लंड को लेने के लिए .. हम दोनों अब रोक नहीं पा रहे थे... मैंने भी सोचा अब वो बिलकुल गर्म है...

"कोमल... एक बात बताऊँ ... जब लंड अन्दर जायेगा तो तुम्हें एक बार दर्द होगा लेकिन थोड़ी देर में दर्द ख़तम हो जायेगा और बहुत मज़ा आएगा.. तुम घबराना नहीं..." मैंने जान बूझ कर उसे खून निकलने की बात नहीं बताई...वो डर जाती...मुझे भी पूरी तरह मालूम नहीं था..ये सब सुना सुनाया था...और कुछ सेक्स की किताबों में पढ़ा था सो कह दिया... .

" मुझे कुछ कुछ मालूम है.. पर ज्यादा दर्द मत करना....अब अन्दर तो डाल " कोमल की सांसे तेज चल रही थी.. मेरी भी... हम दोनों पहली बार सम्भोग की दुनिया में जा रहे थे... .और दोनों ही अनाड़ी थे...सच पूछिए तो मुझे भी बहुत डर लग रहा था....
 

aamirhydkhan

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मैंने बाँहों में भर कोमल को पलट नीचे दबाया और ऊपर चढ़ लिंग को उसकी योनी पर दबा अन्दर घुसेड़ा पहले धीरे से और ..योनी बिलकुल सरोबार थी रस से.... फिर भी लिंग को अन्दर जाने में जैसे कोई रुकावट लगी, कोमल की योनी टाईट थी, वो फुसफसाने लगी "धीरे कर.. धीरे धीरे ..."..... लेकिन मुझे चैन कहाँ ...भरपूर प्रहार से लिंग अन्दर जा घुसा ." उई उई..आ आ आ.... करती हुए उसकी कराहने की आवाज़ निकली, मैंने उसके मुहं को हाथों से दबाया डर लग रहा था कहीं जोरों से चिल्ला नहीं बैठे और लिंग के धक्के जारी रक्खे, " आह ...आह....आआ..." वो अब कराह रही थी और मुझे कभी अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी..और कभी मेरी कमर पकड़ मेरे धक्को के साथ जैसे लय मिलाते हुए नितम्ब उठाकर धक्के दे रही थी....

कुछ ही देर में सिसकारी की आवाज़ धीमी हो गयी और उसने मुझे चूमते हुए जोरों से पकड़ साथ देना शुरू कर दिया.... अब उसकी आवाज़ में एक आनंद था...उसकी योनी रस से भरपूर मेरे लिंग को पूरा निगल रही थी. यूं तो योनी टाईट थी लेकिन उसने फ़ैल कर लिंग को अन्दर समा लिया और अब लिंग योनी रस के कारण स्वाभाविक रूप से योनी को घर्षण करता हुआ धक्के लगा रहा था, कोमल भी उन धक्कों का जवाब देने लगी... उसने जांघें उठा मेरे चूतड़ों को लपेट लिया और हाथों को पीठ पर दबा अपने अपने नितम्ब उठाते हुए हौले हौले मेरे हर धक्के का जवाब दे रही थी.. बहार अभी भी अँधेरा था.. हम एक दुसरे में गुंथे पड़े थे, कोमल अत्यंत गर्म हो गयी थी, उसने मुझे गालों पर काट लिया और पीठ को नाखूनों से खरोंच डाला,

उसकी सांसें जैसे थक कर भारी हो गयीं , मेरी हालत भी ऐसी ही थी, हमें होश नहीं था, कोमल के स्तनों को चूस डाला और घुंडियों को खींच कई बार काट डाला, वो कराहने लगती लेकिन मुझे रोकती नहीं और मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा और धक्के लगाने का इशारा करती, कोमल बहुत ही कामुक थी ये तो मैं पहले ही समझ गया था लेकिन सम्भोग में भी इतना ही खुल कर मजे से साथ देगी मैने नहीं सोचा था, हम पसीने पसीने थे और पूरी तरह नग्न, कुछ ही क्षणों में जैसे लिंग से लावा फूट कर बहने लगा, मैं कोमल पर निढाल सा पड़ गया, उसने भी मुझे जोरों से बाँहों में दबा लिया, शरीर के रोम रोम में रोमांच था, जैसे नसों से कुछ बहता हुआ एक जोर की उत्तेजना के साथ लिंग से निकल पड़ा हो, ऐसा आनदं कभी पहले महसूस नहीं किया था, किसीने जैसे शरीर को तोड़ दिया हो, जैसे की सारी थकावट दूर हो गयी और शरीर हल्का हो कर उड़ने लगा हो,

हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे, सांसें धीमें हुईं और लिंग सिकुड़ ठंडा हो गया मैंने योनी से बाहर खींचा, कोमल आँखें बंद किये निढ़ाल पडी थी, मैंने ध्यान से देखा कोंडोम वीर्य से भरा था, ऐसा लगा जैसे कोमल की जांघों पर कुछ धब्बे लगे हुए थे, मुझे लगा कौमार्य का स्राव होगा मैंने सावधानी बरती थी की सोफे पर तौलिया बिछा दिया था, कोमल ने पूछा " खून है क्या ....? दर्द हो रहा है ..." मैंने इशारे से हाँ कहा, वो बोली "तुम्हारा कहाँ है... अन्दर तो नहीं गया न.." मैंने कहा "डर मत.. कुछ नहीं होगा, ....मैं आता हूँ..." कह कर मैं बाथरूम में गया और कोंडोम को फ्लश कर दिया, कोंडोम पर खून के धब्बे थे जिन्हें देख मुझे एक अजीब एहसास हुआ, लगा की मैं क्या कर बैठा, अनायास ही कोमल के लिए मन में प्यार और एक सुरक्षा की भावना आयी जैसे वो मेरी हो, मैं कुछ देर यूं ही सोचता रहा, बाहर आया तो देखा कोमल ने कपड़े पहन लिए थे और सोफे पर बैठी थी, मैंने पैंट पहना और उसके पास बैठ गया, वो उदास थी, चेहरा उतरा हुआ बिलकुल रोने जैसा,

"क्या हुआ..." मैंने पुछा , वो बिना कुछ जवाब दिए उठी और मुझे कंधे पर धक्का देते हुए अपने कमरे में चली गयी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्या हुआ, अभी तो बिलकुल ठीक थी और इतनी देर तक तो मस्ती से सम्भोग में लिप्त थी और अब क्या हुआ अचानक. मैंने सोफे को ठीक ठाक किया, तौलिया उठाया और कमरे में आकर सोने की कोशिश कर रहा था. अब तक दिन निकलने लगा था, हल्का उजाला हो गया था, मैं सोच रहा था ये अचानक कोमल को क्या हो गया, कुछ देर पहले मेरे उसके बीच जो हुआ उसपर विश्वास नहीं हो रहा था, ये तो किस्मत थी की कोई भी घर में इस दौरान जगा नहीं, हम दोनों ही कुछ ऐसा खो गए थे की होश नहीं था किसीने देखा लिया होता तो हम दोनों ही मारे जाते और कोमल का क्या होता, यही सब सोचते सोचते नींद लग गयी.

सुबह उठा तो बहुत देर हो गयी थी, बाबूजी और कोमल के पिताजी बाहर जा चुके थे, माँ और कोमल की मम्मी बाहर के आहाते में थे , कोमल कहीं दिखी नहीं, अपने कमरे में भी नहीं, किसीसे पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, मैं बाथरूम में गया, रात को जो तौलिया इस्तेमाल किया था उसपर कुछ हल्के लाल धब्बे लगे थे उनको गर्म पानी से धो कर बाकी कपड़ों के साथ धोने में डाल दिया, बहुत डर भी लग रहा था की किसी को कुछ भनक न लग जाए. मैं स्नान कर आया तो माँ किचेन में थी, पुछा " क्या बात है.. आज इतनी देर सोते रहे , नाश्ता कर ले" ,

मुझसे रहा नहीं गया ' कोमल कहाँ है... " मैंने पुछा, " उसकी तबियत ठीक नहीं... शायद बुखार है... बाबूजी के साथ डाक्टर के यहाँ गयी है." यह सुन मुझे काटो तो खून नहीं... ये क्या हुआ... उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं... कहीं डॉ को पता चल गया तो... लेकिन ऐअसा कुछ हुआ नहीं... कुछ देर में कोमल वापस आयी, वो काफी कमजोर और उदास लग रही थी, डॉ ने बताया कुछ नहीं है और सिर्फ थोड़ी थकावट है ... आराम करो तीन दिन सब ठीक हो जाएगा...कोमल बिना मुझसे नजरें मिलाये अपने कमरे में चली गयी, माँ और उसकी मम्मी भी गयीं और उसे आराम करने की हिदायत दी..." तुम कोमल के पास बैठो.. उसका मन लगेगा...उसे दवा दे देना और बातें करना" कहती हुई उसकी मम्मी ने मुझे उसके पास भेज दिया, मैं कोमल के बिस्तर पर उसके नजदीक बैठ उसके हाथों को सहला रहा था की कोमल बोल पड़ी
" मैंने बहुत गलत किया कल रात, किसी लड़की को शादी से पहले ऐसा नहीं करना चाहिए..."

"कोई गलती नहीं हुई... हमने जो भी किया सच्चे मन से किया.. कोई पाप नहीं था" मैंने कहा, मैं उसे काफी देर तक समझाता रहा, "जो हो गया उसमे में दुखी न हो कर जिन्दगी जीने का सुख लेना चाहिए .." इस प्रकार की कई बातें कर के किसी तरह उसके मन को हल्का किया, मैंने देखा बातें करते करते उसने अपना मुहं मेरी गोद में छिपा लिया था और सुबक रही थी, थोड़ी देर में उसका रोना बंद हो गया, " किसी से कभी बताओगे तो नहीं..." कोमल ने कहा, "तुम पागल हो क्या..., मैं क्यूं बताऊँगा...मैंने दिल से तुमको प्यार किया है..." मैंने कहा, कोमल को कुछ सांत्वना हुई,

"चलो, उठो और तैयार हो जाओ.. हमलोग बाहर बगीचे में बैठते हैं.. माँ और आंटी किचेन में थे, हम बहार आ गए.... " मुझे वहां दर्द हो रहा है... कुछ हो तो नहीं जाएगा " कोमल ने पुछा उसकी आँखों में चिंता थी, " कुछ नहीं... थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा... दर्द ज्यादा है क्या.." मैंने पुछा तो उसके चेहरे पर इतनी देर बाद पहली बार मुस्कराहट देखी

" नहीं.. हल्का हल्का... जैसे कोई दाँतों से काट रहा हो....."

" कौन काट रहा है..." मैंने पुछा तो कोमल ने मुस्कुराकर दिया पर कुछ कहा नहीं. उसे काफी समझाया और सांत्वना दी. मुझे लगा की अब उसके मन की अवस्था ठीक हो रही थी और मुझसे शिकायत करके उसने अपने मन का बोझ हल्का कर लिया था... मैं उसका ध्यान रात की बातों से हटाकर उसकी उदासी को दूर करना चाहता था. कोमल की तबियत शाम तक कुछ ठीक लगने लगी, बुखार अब नहीं था, उनको २ दिन और रुकना था और फिर पुरी के लिए जाने वाले थे, वहां १ हफ्ते रुक कर सीधा अलीगढ़ वापस लौटने का कार्यक्रम था.

शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी घर आये तो किसी ठेके के बारे में बातें कर रहे थे जो कलकत्ते से २ घंटे पर था बिजली के नए बन रहे कारखाने में. कोमल के पिताजी उसमे इच्छुक थे और सुबह कम्पनी ऑफिस में किसीसे मिलने गए थे. बातों ये मालूम हुआ की पुरी से लौटते हुए वो पुनः हमारे घर पर रुकेंगे, शायद एक या दो दिन. मुझे सुन कर खुशी का अंदाजा नहीं रहा, लगा जैसे भगवान मेरी बातें सुन रहा था और मुझ पर मेहेरबान था. रात तक कोमल का मूड कुछ कुछ ठीक हो गया था, मैं उससे ज्यादा बातें नहीं कर रहा था और सोच रहा था की उसे खुद ही महसूस हो की जो कुछ हुआ उसमे किसीकी गलती नहीं थी और ये सब स्वाभाविक था, उसके मन से किसी तरह की गलती करने की भावना दूर हो जाये.

रात मैंने पुछा तो उसने बताया की अब दर्द नहीं के बराबर है. सच पुछा जाये तो मुझे लगा वाकई दर्द कभी इतना था ही नहीं बल्की उसके मन में गलती किये जाने की भावना ज्यादा थी. खैर जो भी हो, उसका मूड ठीक हो रहा था ये खुशी की बात थी. उस रात मैं उसके बगल में बैठा था ड्राइंग हॉल में और सबसे नजरें बचा कर उसके हाथों पर हाथ रक्खा तो उसने भी धीरे से मेरे हाथों को दबा दिया और मेरी और देखा. मैं अपने कमरे में सोने गया लेकिन नींद नहीं थी आँखों में. बार बार कोमल का मासूम चेहरा और उसके मादक बदन की याद आ रही थी.

रहा नहीं गया तो कोमल के कमरे की तरफ गया, वो अपने माता-पिता के कमरे में सो रही थी. जगाने की हिम्मत नहीं हुई. उसने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी, पैजामा और बिना बाँहों की ढ़ीली और खुली हुई सी कमीज़. मैं देखता रह गया. फिर से शरीर गर्म हो गया इस नज़ारे को देख. मैं खिड़की के पीछे से देख रहा था, अन्दर स्याह अँधेरा तो नहीं था लेकिन रोशनी काफी कम थी और सिर्फ कोमल के अंगों का प्रतिरूप ही मालूम पड़ रहा था, उसके वक्षस्थल के उभारों का आभाष हो रहा था, मैं कितनी देर खड़ा रहा मालूम नहीं, मैं अनायास ही अपने लिंग को सहलाने लगा और कल रात के अनुभव को याद करते हुए लिंग तन कर टाईट हो गया ,

कुछ देर बाद रहा नहीं गया और बेचैनी में कभी बैठक में जाता कभी कोमल के कमरे की खिड़की पर आ खड़ा उसे निहारता. रहा नहीं गया तो अपना पैंट खोल अर्धनग्न अवस्था में लिंग से खेलने लगा उसे शांत करने के लिए. इसी बीच देखा कोमल अपने बिस्तर पर नहीं थी, किसी समय जब में बैठक में था वो बाथरूम गयी होगी और उसने अँधेरे में मुझे देखा नहीं होगा, मैं बैठक में सोफे पर नग्न बैठा उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था,

मेरा लिंग तनी अवस्था में विकराल खड़ा था जो मैं उसे दिखाना चाहता था, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और अँधेरे में कोमल की छाया दालान में आती दिखी , उसे बताने के लिए मैंने क्षणिक रोशनी बैठक के बल्ब को जलाया, मुझे वहां देख मेरी और आकर उसने फुसफुसाते हुए पुछा
"क्या कर रहे हो यहाँ इतनी रात..?"

"नींद नहीं आ रही" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ सोफे पर नजदीक बैठाया और उसके गालों को चूम लिया. वो थोड़ा सकपकाई और अपने को छुड़ाती हुई बोली" मेरा मन नहीं है..."

"बस एक बार...यह रह नहीं पा रहा.. " कहते हुए अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा दिया.

"एक बार इसको प्यार करले..." मैंने कोमल से कहा..उसके दोनो हाथों को पकड़ मैंने अपने लिंग और अंडकोष पर रख दिए, वो सर झुकाकर उनको मालिश करने लगी, उसके कंधे पकड़ उसे नजदीक खींचा और उसके गालों पर होठ रख चूमने लगा,
"छोड़ दो.. मन नहीं है.. तू मानेगा नहीं जबतक तेरा कुछ हो नहीं जाता ... मैं जानती हूँ .." कोमल बोली
"तो फिर कर दे न ..तू जानती है तो...' मैं कहा, कोमल ने लिंग को अपनी मुट्ठी में थाम ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और दुसरे हाथ से अंडकोष को सहलाती रही, उसे मालूम था मुझे किन चीज़ों से उत्तेजना बढ़ती है, मैं रोक नहीं पा रहा था अपने को, मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए,
 
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aamirhydkhan

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मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए, स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी जांघों को महसूस कर रहा था, गुदाज़ और मांसल, मेरे हाथ कभी उसकी जांघों को सहला रहे थे कभी उसकी कमर को, कब हाथ कोमल की योनी के पास पहुँच गया अनायास मालूम नहीं, मैंने सोचा कोमल विरोध करेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और अपनी मुट्ठी में मेरे लिंग को घेर अपने हाथों से मैथुन करती रही बिना कुछ कहे चुपचाप. बिलकुल अँधेरा था सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ आ रही थी,

कोमल के नर्म स्पर्श से शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी, लिंग से पानी बाहर आने को तैयार, मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलने लगी "आह्ह्ह..आःह्ह्ह...धीरे धीरे खींच इसे..बहुत मस्ती आ रही है.... मत छोड़.. करती रह..निकलनेवाला है बस ...." मैं बडबडा रहा था और साथ ही कोमल की चूचियों के बीच मुहं को डाल उसकी बदन की खुशबु में होश खो रहा था, इसी बीच जैसे शरीर में कोई तीव्र झुरझुराहट सी हुई और लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी, " आह ...आः......aaaaahhhhhh" करता हुआ मैं निढ़ाल सा कोमल पर पड़ गया, कोमल ने लिंग को सहलाना जारी रक्खा और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए लंड से पूरा वीर्य निकाल दिया, उसकी मुट्ठी लसलसे वीर्य से सरोबर हो गयी,

मैंने चेहरा उठा कर देखा , कोमल जैसे बिना किसी भावना के मुझे देखते हुए मेरे पैंट पर अपने हाथों को पोंछा और अपनी कमीज़ के बटन बंद करते हुए उठकर चली गयी कमरे में...उत्तेजना का ज्वर उतर गया अब तक, मैं भी कमरे मैं आकर सो गया, जब वासना पूर्ती से मन शांत होता है तो नींद भी अच्छी आती है, सुबह उठा, आज कोमल और उसका परिवार पुरी जाने वाले थे, शाम को ट्रेन थी, दिन भर उसने मुझे ठीक से देखा भी नहीं, एक दो बार रोक कर उससे बात करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ, समझ में नहीं आ रहा था ऐसा अजीब व्यवहार वो क्यों कर रही थी, शाम को हमलोग उनको छोड़ने स्टेशन गए, फर्स्ट क्लास का डब्बा था, कोमल का परिवार नीचे प्लेटफोर्म पर पिताजी और मां के साथ खड़ा था, मौका देख मैं कोमल के पास अन्दर गया, उसने मुझे बिना भाव के देखा, मुझसे रहा नहीं गया और उसके चेहरे को पकड़ जोरों से चूम लिया

" ऐसा व्यवहार करोगी तो मर जाऊँगा.... फिर मेरा मुहं भी नहीं देखोगी..." मैं कुछ गुस्से और कुछ अपनी मन की बेचैनी में बोल पड़ा....कोमल उसी तरह चुप सी देखती रही, " तुम जा रही हो... तुम्हारे अलावा कुछ सोच नहीं सकता... " कहता हुआ उसे बाँहों में भर लिया, "नीचे जाओ... कोई देख लेगा..." इतनी देर बाद कोमल के मुहं से कुछ सुना... उसकी आँखों में एक फिर एक बार प्यार दिखा और करुणा के भाव भी...मैं डब्बे से बाहर निकलने लगा तो उसने मेरी बाँहों को पकड़ लिया और एक क्षण के लिए अपना सर मेरे सीने से लगा दिया ... लगा जैसे अभी भी उसके मन में मेरे लिया कुछ था .. ट्रेन के जाने का समय हुआ...कोमल दरवाज़े पर नहीं आयी....

मैंने खिड़की से देख उसे हाथ हिलाया, उसने भी धीरे से हाथ उठा कर जवाब दिया......कोमल के जाने के बाद मुझे सब कुछ इतना उदास लगने लगा, माँ और पिताजी को भी उनका कुछ दिनों रहना अच्छा लगा सब का मन लगा हुआ था. कोमल के पिताजी का फ़ोन आया वो सब ठीक पुरी पहुँच गए थे. मैं याद कर रहा था की कब वो वापस आयें की तीन दिन बाद दोपहर को फ़ोन की घंटी बजी, मैंने फ़ोन उठा कर पुछा तो उस तरफ कोमल थी, मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं, "कैसी हो..." मैंने पुछा तो कोमल ने कहा " तुमसे ही बात करनी थी.... तुम इस समय मिलोगे इसलिए फ़ोन किया.." "क्या बात है..." मैंने कुछ चिंता से पूछा तो वो धीमे से हंसती हुई बोली " घबराओ मत...तुम्हें बताना था..मैं मेंस में हूँ...." " हे भगवन...

क्या तुम इसलिए इतनी चिंतित थी... मैं तो घबरा रहा था तुम्हें क्या हो गया है... तुमने दो दिन मुझे ठीक से देखा भी नहीं.." मैं बोले जा रहा था मैंने फ़ोन पर फुसफुसाते हुए कहा "मुझे मालूम था कुछ नहीं होगा... मैंने सब सावधानी रक्खी थीं ... तुमने बताया क्यूँ नहीं की इसलिए तुम इतनी परेशां हो...." मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ, कोमल बहुत खुश थी और उसने बहुत कुछ कहा जैसे " मुझे बहुत डर लग रहा था...अब सब ठीक है....हमलोग यहाँ बहुत मजे कर रहे हैं... मैंने कल समुद्र में नहाया ... बाबूजी मंदिर में हैं.....मेंस में हूँ....तुमको ये बताना था इसलिए फ़ोन किया...तुम्हारी याद आ रही है.... .हम फिर आ रहे हैं... जल्दी मिलेंगे ...." वगैरह वगैरह....

फ़ोन पर उसकी खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था और वो इतनी उदास क्यूँ थी ये भी समझ में आया..लड़की थी उसे गर्भ ठहर जाने का डर था जो उसे चिंतित कर रहा था, वो डर अब दूर हो गया...इसलिए इतना चहक रही थी फ़ोन पर.... उसकी याद मुझे सता रही थी.. तीन दिनों से उसका बदन मेरी आँखों के सामने आ आ कर मुझे जैसे झिझकोर जाता था.. इन तीन दिनों में रोज ही हस्तमैथुन कर बैठता.. ऐसा पहले नहीं था, .. रात को बिस्तर पर उलट पुलट होता रहता..

बेचैनी इतनी बढ़ गयी की देर रात उठ कर बाहर बैठक में आकर अँधेरे में बैठा रहता और कोमल के बारे में ही सोचता रहता... उसकी गज़ब की जवानी और शरीर की याद बदन में खून गरम कर देती तो वहीं हाथों से अपने आप को शांत करता.... उसकी फ़ोन पर मीठी चहकती आवाज़ ने पागल बना दिया था, इतनी दीवानगी तो जब वो सामने थी तब भी नहीं थी, अब आँखों से ओझल होने पर उसकी हर अदा और उसके शरीर का एक एक पोर जैसे मुझे याद आ रहा था, उसके स्पर्श को महसूस कर रहा था हर वक्त उसकी गैरमौजूदगी में,

उस रात बिस्तर पर उसे याद करते हुए दो बार वीर्यस्खलन कर बैठा अपने हाथों से, जब रहा नहीं गया तो गद्दे पर उल्टा लेटे पैंट को नीचे सरका लंड का घर्षण करते हुए इतना वीर्य निकल पड़ा की शरीर एक बार लगा जैसे तनाव मुक्त हो गया, छोटा भाई सो रहा था लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था और लगभग नंगा होकर ठंडी हवा से शांती प्राप्त करने की कोशिश करता हुआ कोमल के नजदीक होने की तमन्ना करता रहा,

दो तीन दिन बाद ही अलीगढ से दो तकनीकी लोग आये जो कोमल के पिताजी के यहाँ काम करते थे और नए ठेके की जानकारी करने आये थे... उनको पिताजी ने होटल में ठहराया ... घर में एक हलचल का वातावरण सा था, पिताजी भी शायद इस मिलनेवाले ठेके में शामिल थे .. ...इस बीच कोमल से बात नहीं हो सकी लेकिन माँ पिताजी की बात होती थी.. एक दिन पिताजी ने कहा कल वो लोग आयेंगे और मुझे लेने उन्हें स्टेशन जाना था .. गाडी सुबह सुबह ५-६ बजे आती थी ...ड्राईवर और मैं स्टेशन गए ...कोमल से मिलने को मन व्याकुल था....

उसे ट्रेन से उतरते देख दिल की धड़कन तेज हो गयी जैसे पहली बार देख रहा होऊँ. उनींदी आँखें...चेहरे पर सुबह की अलसाई सी निस्फिक्रता और शांती, अभी भी याद है सफ़ेद ढीली कमीज़ और पैजामा, लेकिन वक्ष का लुभावना उभार स्पष्ट उस ढीली कमीज़ में भी दिख रहा था,....कोमल ने आँखें मिलाई एक हल्की मुस्कराहट आयी उसके चेहरे पर जो सिर्फ मैं ही देख पाया....घर आये तो माँ और पिताजी सभी इंतज़ार कर रहे थे... सब अपने अपने काम में लग गए.. मैं बार बार कोमल से बात करने की फ़िराक में था लेकिन मौका ही नहीं मिला...मेरे छोटे भाई के तो उस दिन मजे हो गए...कोमल ने उसे कई बार चूमा और उसके साथ लिपट गयी मुझे दिखाते हुए....

मैंने देखा वो और उसकी मम्मी माँ के साथ बातों में लग गए और पुरी से लाया सामान दिखा रहे थे ... जैसे मुझे चिढ़ा रही थी इशारा करने पर भी नहीं आयी...... वो तकनीकी लोग भी कुछ देर में आ गए और पिताजी और कोमल के पिताजी उनके साथ बातों में लग गए.. थोड़ी देर में सभी बिजली कारखाने के लिए रवाना हुए तो मालूम हुआ की रात देर तक लौटेंगे..कोमल के इस व्यवहार से मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मैं सोच में था की कैसे कोमल से मिलूँ...रहा नहीं गया और मौका तब मिला जब वो दोपहर में नहाने गयी...
"कौन.." दरवाज़े पर दस्तक करने पर कोमल ने पुछा..."खोलो...मैं हूँ..." मैंने कहा..

"पागल मत बनो... जाओ...कोई देख लेगा...."

"कोई नहीं है....मैं बात नहीं करूंगा..दरवाज़ा खोलो .. " मैंने जिद की तो कोमल ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल बाहर झाँका इसी समय मैंने दरवाज़े पर दबाव डाला और अन्दर जा घुसा और सिटकनी बंद की...

"तुम को क्या हुआ है... कोईभी देख लेगा तुम्हें अन्दर .." कोमल ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा

"कोई नहीं है.... माँ और तुम्हारी मम्मी ऊपर कमरे में हैं...उन्हें कुछ मालूम नहीं...घर में कोई नहीं है..." मैंने कहा तो कोमल कुछ निश्चिंत सी हुई... फिर भी मैं अन्दर से डर तो रहा ही था लेकिन मन में जो तूफ़ान था मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार था...रहा नहीं गया तो बाँहों में उसके गदराये बदन को भर कर जी भर पहले तो चूमा और फिर उसकी ओर देखा, एक काली चोली और छोटी सी पैंटी में उसका बदन दमक रहा था पानी की बूंदों से , भरी जांघें, उन्नत वक्ष और लम्बे ऊंचे शरीर का उठान जैसे मतवाला कर गया, होश काबू में नहीं रहे, मैंने उसके गालों को काट खाया......" सी सीई ... आह......क्या करते हो..." कहते हुए कोमल जैसे कराह उठी ,

" बाहर जाओ... मैं आती हूँ.... शाम को मिलेंगे..टंकी के पीछे ..." कहते हुए कोमल ने दरवाज़ा खोल मुझे बाहर धकेल दिया.


*********************समाप्त **************************
 
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