सतीश : रूम तो बहोत अच्छा है. पर मै सिर्फ 1500 रूपय ही दे पाउँगा. मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है.A
Update 31
कोमल डायन की कोई कहानी सुन ने को बेक़रार थी. और वो डॉ रुस्तम को ही बेचैनी से देखे जा रही थी. मगर डॉ रुस्तम तो अपना सर घुमाकर पीछे किसी को देख रहे थे.
कोमल हैरान रहे गई की डॉ रुस्तम किसे देख रहे है. क्यों की बस मे तो सभी लगभग सो ही रहे थे. कुछ गांव के लोग और 4,5 डॉ रुस्तम की टीम मेम्बर्स थे. जिनहे लगभग कोमल पहचान ही चुकी थी.
कोमल : क्या देख रहे हो डॉ साहब. मुजे भी तो बताओ.
डॉ रुस्तम वास्तव मे सतीश को देख रहे थे. जो उनका सबसे खास कैमरामैन था.
डॉ : तुम सतीश को तो अब पहचान ही गई हो.
जब डॉ रुस्तम ने बोलते हुए सतीश से नजरें हटाई. और कोमल की तरफ देखा तो कोमल थोड़ी सी हैरान हुई. वो भी एक बार सतीश को और फिर डॉ रुस्तम की तरफ देखने लगी.
कोमल : हा ये जो आप का कैमरामैन है.
डॉ : हा बिलकुल. ये पंजाब फागवाडा का रहने वाला है. ये कैमरामैन के कोर्स के लिए दिल्ली गया था.
कोमक : क्या ये डायन का शिकार हो चूका है???
डॉ : हा. अब सुनो. सतीश के पापा नहीं है. वो बहोत छोटा था. तब ही गुजर गए थे.
उस वक्त उसकी माँ और दो बहने थी. दोनों की शादी की उम्र हो चुकी थी. एक की तो शादी पक्की भी हो चुकी थी. सतीश की माँ सरोज पर कभी किसी चुड़ैल का साया पड़ा था. जिसे अपनी दाई माँ ने ही उतरा था. इस लिए उसकी माँ सरोज दाई माँ को पहले से जानती थी.
कोमल : तो मतलब सतीश भी माँ को पहले से ही जानता था??
डॉ : नहीं. सतीश की माँ की जब नई नई शादी हुई थी. तब वो चुड़ैल की चपेट मे आई थी. मतलब की सतीश के पिता और उनके बुजुर्ग दाई माँ को बहोत पहले से मानते थे.
तब सतीश पैदा भी नहीं हुआ होगा. पर सतीश बड़ा हुआ तब तक उसके पिता, दादा दादी सब जा चुके थे. और उस वक्त सतीश दाई माँ को नहीं जानता था. सतीश का परिवार सुखी सपन्न था. उसे शुरू से ही कैमरे का बड़ा सोख था.
जब वो 19 साल का हुआ. वो कैमरामैन का कोर्स करने दिल्ली आ गया. दिल्ली आते उसने एक इंस्टिट्यूट ज्वाइन कर लिया. मगर उसके पास रहने की व्यवस्था नहीं थी. वो पहले तो कुछ दिन होटल मे रुका. फिर उसके पैसे ख़तम होने लगे तो वो pg के लिए कोई घर ढूढ़ने लगा.
कोमल : ये कब की बात होंगी??
डॉ : तक़रीबन 5 साल पहले की बात है.
कोमल : हम्म फिर??
डॉ : उसे दिल्ली सेंटर मे तो कोई घर नहीं मिला. तो वो आउटसाइड के एरिया तलाशने लगा. और पहोच गया वो भुंशी की तरफ. वो एरिया उस वक्त डेवलोप नहीं था. वहां कई खाली मैदान थे.
कुछ बने बनाए मकान तो थे. पर ज़्यादातर अंडर कंस्ट्रक्शन मे थे. आस पास कोई दुकान भी नहीं थी. सतीश घूम घूम कर थक गया. उसे एक मकान दिखा. जो बहार से तो देखने मे अंडर कंस्ट्रक्शन दिख रहा था. पर देखने से पता लग रहा था की उस मकान मे कोई रहे रहा है. सतीश ने सोचा की वही चलकर बात करनी चाहिये.
सायद कोई मकान मिल जाए. सतीश उस मकान के गेट पर पहोंचा. उस मकान का बस बहार से प्लास्ट नही हुआ था. पर वो रहने लायक था सायद. सतीश ने देखा की चारो तरफ मकान के दीवार बनी हुई है. काफ़ी बड़ा कंपउंड था. दीवारे भी कंपउंड की साढ़े चार फिट की थी. वो गेट को खोल कर अंदर आया और डोर के सामने खड़ा हो गया. उसे वो मकान बड़ा ही अजीब लग रहा था.
उस मकान का डोर बंद था. पर सारी विंडोस भी बंद थी. विंडो के ऊपर के हिस्से मे. जहा शीशा लगा होता है. उसपर भी अख़बार काट कर लगाया हुआ था. मतलब की बहार का उजाला अंदर ना जा सके. सतीश ने डोर के पास डोर बेल देखि. पर कही कोई दूरबेल्ल का स्विच नहीं था. वो डोर हाथो से ही नॉक करता है. अंदर से किसी लेडी की आवाज आई.
कौन????
सतीश : जी माफ कीजियेगा. मेरा नाम सतीश है. क्या मै दो मिनट बात कर सकता हु आप से.
जी रुकिए. खोलती हु.
सतीश इंतजार करने लगा. काफ़ी देर हो गई. पर दरवाजा नहीं खुला. सतीश इधर उधर देखने लगा. उसने देखा की कम्पउंड मे कोई पेड़ पौधा नहीं है. कुछ पेड़ पौधे सुख कर मरे हुए है. जबकि कंपउंड पर कोई पक्का फर्श नहीं था. फिर भी एक भी कोई पेड़ पौधा नहीं था. वही सतीश की नजर एक मरे हुए कबूतर पर गई. जिसपर बहोत सारी चीटियों ने कब्ज़ा किया हुआ था.
सतीश उस कबूतर को बड़ी ध्यान से देखने लगा. उसने देखा की कबूतर का सर ही नहीं है. जबकि बाकि पूरा कबूतर सबूत था. तभि एकदम से डोर खुला तो सतीश ने सामने देखा. एक सुंदर जवान औरत उसके सामने खड़ी थी. खुले बाल, खुबशुरत गोरा चहेरा, उसने साड़ी पहनी हुई थी. देखने से ऐसा लग रहा था की वो शादीशुदा है. और शादी को ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ होगा.
जी कौन हो आप?? क्या चाहिये??
सतीश : जी नमस्ते. मेरा नाम सतीश है. मै यहाँ कोई घर तलाश रहा था.
औरत : पर मै किसी बिल्डर को नहीं जानती.
सतीश : जी माफ कीजिये. मै कोई घर खरीदने नहीं किराए पर लेना चाहता हु. PG पर.
सतीश बोल कर थोडा घबराते मुश्कुराया. वो औरत उसे ऊपर से निचे तक देखती है.
औरत : अकेले हो???
सतीश ने हा मे सर हिलाया.
औरत : जी अंदर आ जाओ.
उस औरत ने सतीश को अंदर आने को कहा. जब सतीश उस औरत के पीछे अंदर आया तो अंदर बस एक लैंप जल रहा था. जिस से पूरा रूम दिख रहा था. वो काफ़ी कम वोल्टेज का था. बाकि रूम मे अंधेरा ही लग रहा था. ऊपर फैन तो था. मगर बंद था. फिर भी अंदर काफ़ी शुकुन देने वाली ठंडक थी. घर अंदर से तो काफ़ी बढ़िया था. सोफा, टीवी, पोर्ट टेबलब, सब कुछ था.
जो घर बहार से अंडर कंस्ट्रक्शन लग रहा था. वो घर अंदर से बहोत ही अच्छा था. वो औरत ने सतीश को बैठने के लिए कहा. तो सतीश बैठ गया. सतीश ने आते ही देखा की उस ड्राइंग रूम से ही किचन, और बाकि दो रूम साफ नजर आ रहे थे. सायद उसमे से एक बाथरूम होगा. वो औरत सतीश के सामने खड़ी हो गई.
औरत : जाहिए क्या लेंगे आप?? ठंडा या गरम.
सतीश : जी कुछ नहीं. बस मुजे कोई घर चाहिये. PG के लिए.
औरत : ये घर ही तो है. मै आप के लिए शरबत लेकर आती हु.
वो औरत किचन मे चली गई. किचन से वो रूम साफ दिख तो रहा था. मगर सतीश नहीं देख सकता था. क्यों की उस औरत ने सतीश को जिस सोफे पर बैठाया था. उसके पीछे की तरफ किचन था. मतलब सतीश उस औरत को नहीं देख सकता था. पर वो औरत सतीश को देख सकती थी. वो औरत शरबत बनाते सतीश का मनो इंटरव्यू ले रही थी.
औरत : तो कौन कौन है तुम्हारे घर मे.
सतीश को बड़ा ही अजीब लग रहा था. उसे थोड़ा डर लगने लगा. सायद फ्लॉर्ड या चोरी का डर.
सतीश : जी... माँ है और दो बहने है.
औरत : ओह्ह्ह तो वो कहा है.
सतीश : जी वो... पंजाब मे. फगवादे.
औरत : ओह्ह्ह..
वो औरत सतीश के सामने ट्रे लेकर खड़ी हो गाइ. उस ट्रे मे एक ग्लास शरबत था. पर सतीश सोच रहा था. कही वो शरबत पीकर कही बेहोश ना हो जाए. वो औरत सतीश का डर समझ गई. और खिल खिलाकर हस पड़ी.
औरत : (स्माइल) अरे डरो नहीं. मेरा नाम माया है. मेरे पति दुबई मे काम करते है. वैसे यहाँ मेरे साथ मेरी सास भी रहती है. पर वो फिलहाल कुछ दिन के लिए गाजियाबाद गई है. मेरी ननंद के घर.
सतीश का थोड़ा डर निकल गया. और उसने चैन की सांस ली.
सतीश : ओह्ह्ह.. पर क्या आप की सासु माँ को कोई प्रॉब्लम नहीं होंगी. यहाँ वैसे कोई मेल भी नहीं है??
माया : (स्माइल) नहीं... दरसल मेरी सासु माँ ही चाहती थी की किसी स्टूडेंट को pg पर रख ले. कोई मेल होगा तो अच्छा रहेगा. तुम स्टूडेंट ही होना???
सतीश को भरोसा हो गया.
सतीश : ह हा हा. पर किराया कितना लोगे???
माया : जितना ठीक लगे उतना दे देना. आओ तुम्हे रूम दिखा दू.
सतीश ने वो शरबत से भरा ग्लास सामने टेबल पर रखा. और माया के पीछे चल दिया. उसने रूम देखा. वो बहोत बढ़िया था. एक डबल बेड था. एक बड़ा ड्रेसिंग टेबल था. जिसमे बड़ा मिरर था. अलमारी थी. कुल मिलाकर बहोत बढ़िया रूम था.
माया : कैसा लगा रूम तुम्हे???
सतीश को लगा रूम बहोत बढ़िया है तो सायद माया ज्यादा पैसे मांगेगी.
सतीश : रूम तो बहोत अच्छा है. पर मै सिर्फ 1500 रूपय ही दे पाउँगा. मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है.
माया : हम्म्म्म गर्लफ्रेंड भी होंगी. पैसे तो तुम्हे भी चाहिये होंगे. कोई बात नहीं सतीश. तुम एक हजार ही दे देना. अब आओ.
सतीश वापस अपनी जगह पर बैठा. माया ने शरबत की तरफ हिशारा किया. सतीश ने शरबत लिया. और पिने लगा. पहले उसे अजीब टेस्ट लगा. पर बाद मे उसे अच्छा लगने लगा. वो शरबत पी गया.
माया : तो ऐसा करो. शाम को ही आ जाओ. तुम नॉनवेज तो खाते होना. आज चिकन बना रही हूँ.
सतीश : (स्माइल) हा बिलकुल. तो मै चलू??
सतीश को ये एहसास ही नहीं था की वो माया की बात बड़ी आसानी से मान रहा है. वो खड़ा हुआ और जाने लगा. माया भी उसके पीछे आने लगी. घर के दरवाजे से बहार निकलते सतीश को ऐसा लगा जैसे घर का माहोल बहार के माहोल से ज्यादा बढ़िया है. जबकि जब वो आया था तो उसे घर का माहोल अजीब लग रहा था.
कोमल से रुका नहीं गया. और वो बिच मे बोल पड़ी.
कोमल : क्या वो माया डायन थी??? और और और सतीश क्या सच मे उसके हिसारो पर चलने लगा था.
डॉ रुस्तम ने लम्बी सांस ली. और हलका सा मुश्कुराए. कोमल हेरत भरी नजरों से सर घुमाकर दाई माँ को देखती है. वो भी मुश्कुराते हुए ना मे सर हिला रही थी.
दाई माँ : जा मे बिलजुलाऊ सबर ना है.
कोमल ने दए बाए नजरें घुमाई. बलबीर की भी नींद उडी हुई थी. और वो भी कहानी सुन रहा था. कोमल ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.
डॉ : तुम सिर्फ ये किस्सा सुनो. तुम्हे अपने सवालों के ज़वाब अपने आप ही मिल जाएंगे.
कोमल बेताबी से आगे सुन ने के लिए डॉ रुस्तम की तरफ देखने लगी.
माया : हम्म्म्म गर्लफ्रेंड भी होंगी. पैसे तो तुम्हे भी चाहिये होंगे. कोई बात नहीं सतीश. तुम एक हजार ही दे देना. अब आओ.
अब तो माया की माया में फंस गया...