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Horror किस्से अनहोनियों के

motaalund

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Update 31

कोमल डायन की कोई कहानी सुन ने को बेक़रार थी. और वो डॉ रुस्तम को ही बेचैनी से देखे जा रही थी. मगर डॉ रुस्तम तो अपना सर घुमाकर पीछे किसी को देख रहे थे.

कोमल हैरान रहे गई की डॉ रुस्तम किसे देख रहे है. क्यों की बस मे तो सभी लगभग सो ही रहे थे. कुछ गांव के लोग और 4,5 डॉ रुस्तम की टीम मेम्बर्स थे. जिनहे लगभग कोमल पहचान ही चुकी थी.


कोमल : क्या देख रहे हो डॉ साहब. मुजे भी तो बताओ.


डॉ रुस्तम वास्तव मे सतीश को देख रहे थे. जो उनका सबसे खास कैमरामैन था.


डॉ : तुम सतीश को तो अब पहचान ही गई हो.


जब डॉ रुस्तम ने बोलते हुए सतीश से नजरें हटाई. और कोमल की तरफ देखा तो कोमल थोड़ी सी हैरान हुई. वो भी एक बार सतीश को और फिर डॉ रुस्तम की तरफ देखने लगी.


कोमल : हा ये जो आप का कैमरामैन है.


डॉ : हा बिलकुल. ये पंजाब फागवाडा का रहने वाला है. ये कैमरामैन के कोर्स के लिए दिल्ली गया था.


कोमक : क्या ये डायन का शिकार हो चूका है???


डॉ : हा. अब सुनो. सतीश के पापा नहीं है. वो बहोत छोटा था. तब ही गुजर गए थे.

उस वक्त उसकी माँ और दो बहने थी. दोनों की शादी की उम्र हो चुकी थी. एक की तो शादी पक्की भी हो चुकी थी. सतीश की माँ सरोज पर कभी किसी चुड़ैल का साया पड़ा था. जिसे अपनी दाई माँ ने ही उतरा था. इस लिए उसकी माँ सरोज दाई माँ को पहले से जानती थी.


कोमल : तो मतलब सतीश भी माँ को पहले से ही जानता था??


डॉ : नहीं. सतीश की माँ की जब नई नई शादी हुई थी. तब वो चुड़ैल की चपेट मे आई थी. मतलब की सतीश के पिता और उनके बुजुर्ग दाई माँ को बहोत पहले से मानते थे.

तब सतीश पैदा भी नहीं हुआ होगा. पर सतीश बड़ा हुआ तब तक उसके पिता, दादा दादी सब जा चुके थे. और उस वक्त सतीश दाई माँ को नहीं जानता था. सतीश का परिवार सुखी सपन्न था. उसे शुरू से ही कैमरे का बड़ा सोख था.

जब वो 19 साल का हुआ. वो कैमरामैन का कोर्स करने दिल्ली आ गया. दिल्ली आते उसने एक इंस्टिट्यूट ज्वाइन कर लिया. मगर उसके पास रहने की व्यवस्था नहीं थी. वो पहले तो कुछ दिन होटल मे रुका. फिर उसके पैसे ख़तम होने लगे तो वो pg के लिए कोई घर ढूढ़ने लगा.


कोमल : ये कब की बात होंगी??


डॉ : तक़रीबन 5 साल पहले की बात है.


कोमल : हम्म फिर??


डॉ : उसे दिल्ली सेंटर मे तो कोई घर नहीं मिला. तो वो आउटसाइड के एरिया तलाशने लगा. और पहोच गया वो भुंशी की तरफ. वो एरिया उस वक्त डेवलोप नहीं था. वहां कई खाली मैदान थे.

कुछ बने बनाए मकान तो थे. पर ज़्यादातर अंडर कंस्ट्रक्शन मे थे. आस पास कोई दुकान भी नहीं थी. सतीश घूम घूम कर थक गया. उसे एक मकान दिखा. जो बहार से तो देखने मे अंडर कंस्ट्रक्शन दिख रहा था. पर देखने से पता लग रहा था की उस मकान मे कोई रहे रहा है. सतीश ने सोचा की वही चलकर बात करनी चाहिये.

सायद कोई मकान मिल जाए. सतीश उस मकान के गेट पर पहोंचा. उस मकान का बस बहार से प्लास्ट नही हुआ था. पर वो रहने लायक था सायद. सतीश ने देखा की चारो तरफ मकान के दीवार बनी हुई है. काफ़ी बड़ा कंपउंड था. दीवारे भी कंपउंड की साढ़े चार फिट की थी. वो गेट को खोल कर अंदर आया और डोर के सामने खड़ा हो गया. उसे वो मकान बड़ा ही अजीब लग रहा था.

उस मकान का डोर बंद था. पर सारी विंडोस भी बंद थी. विंडो के ऊपर के हिस्से मे. जहा शीशा लगा होता है. उसपर भी अख़बार काट कर लगाया हुआ था. मतलब की बहार का उजाला अंदर ना जा सके. सतीश ने डोर के पास डोर बेल देखि. पर कही कोई दूरबेल्ल का स्विच नहीं था. वो डोर हाथो से ही नॉक करता है. अंदर से किसी लेडी की आवाज आई.


कौन????


सतीश : जी माफ कीजियेगा. मेरा नाम सतीश है. क्या मै दो मिनट बात कर सकता हु आप से.


जी रुकिए. खोलती हु.


सतीश इंतजार करने लगा. काफ़ी देर हो गई. पर दरवाजा नहीं खुला. सतीश इधर उधर देखने लगा. उसने देखा की कम्पउंड मे कोई पेड़ पौधा नहीं है. कुछ पेड़ पौधे सुख कर मरे हुए है. जबकि कंपउंड पर कोई पक्का फर्श नहीं था. फिर भी एक भी कोई पेड़ पौधा नहीं था. वही सतीश की नजर एक मरे हुए कबूतर पर गई. जिसपर बहोत सारी चीटियों ने कब्ज़ा किया हुआ था.

सतीश उस कबूतर को बड़ी ध्यान से देखने लगा. उसने देखा की कबूतर का सर ही नहीं है. जबकि बाकि पूरा कबूतर सबूत था. तभि एकदम से डोर खुला तो सतीश ने सामने देखा. एक सुंदर जवान औरत उसके सामने खड़ी थी. खुले बाल, खुबशुरत गोरा चहेरा, उसने साड़ी पहनी हुई थी. देखने से ऐसा लग रहा था की वो शादीशुदा है. और शादी को ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ होगा.


जी कौन हो आप?? क्या चाहिये??


सतीश : जी नमस्ते. मेरा नाम सतीश है. मै यहाँ कोई घर तलाश रहा था.


औरत : पर मै किसी बिल्डर को नहीं जानती.


सतीश : जी माफ कीजिये. मै कोई घर खरीदने नहीं किराए पर लेना चाहता हु. PG पर.


सतीश बोल कर थोडा घबराते मुश्कुराया. वो औरत उसे ऊपर से निचे तक देखती है.


औरत : अकेले हो???


सतीश ने हा मे सर हिलाया.


औरत : जी अंदर आ जाओ.


उस औरत ने सतीश को अंदर आने को कहा. जब सतीश उस औरत के पीछे अंदर आया तो अंदर बस एक लैंप जल रहा था. जिस से पूरा रूम दिख रहा था. वो काफ़ी कम वोल्टेज का था. बाकि रूम मे अंधेरा ही लग रहा था. ऊपर फैन तो था. मगर बंद था. फिर भी अंदर काफ़ी शुकुन देने वाली ठंडक थी. घर अंदर से तो काफ़ी बढ़िया था. सोफा, टीवी, पोर्ट टेबलब, सब कुछ था.

जो घर बहार से अंडर कंस्ट्रक्शन लग रहा था. वो घर अंदर से बहोत ही अच्छा था. वो औरत ने सतीश को बैठने के लिए कहा. तो सतीश बैठ गया. सतीश ने आते ही देखा की उस ड्राइंग रूम से ही किचन, और बाकि दो रूम साफ नजर आ रहे थे. सायद उसमे से एक बाथरूम होगा. वो औरत सतीश के सामने खड़ी हो गई.


औरत : जाहिए क्या लेंगे आप?? ठंडा या गरम.


सतीश : जी कुछ नहीं. बस मुजे कोई घर चाहिये. PG के लिए.


औरत : ये घर ही तो है. मै आप के लिए शरबत लेकर आती हु.


वो औरत किचन मे चली गई. किचन से वो रूम साफ दिख तो रहा था. मगर सतीश नहीं देख सकता था. क्यों की उस औरत ने सतीश को जिस सोफे पर बैठाया था. उसके पीछे की तरफ किचन था. मतलब सतीश उस औरत को नहीं देख सकता था. पर वो औरत सतीश को देख सकती थी. वो औरत शरबत बनाते सतीश का मनो इंटरव्यू ले रही थी.


औरत : तो कौन कौन है तुम्हारे घर मे.


सतीश को बड़ा ही अजीब लग रहा था. उसे थोड़ा डर लगने लगा. सायद फ्लॉर्ड या चोरी का डर.


सतीश : जी... माँ है और दो बहने है.


औरत : ओह्ह्ह तो वो कहा है.


सतीश : जी वो... पंजाब मे. फगवादे.


औरत : ओह्ह्ह..


वो औरत सतीश के सामने ट्रे लेकर खड़ी हो गाइ. उस ट्रे मे एक ग्लास शरबत था. पर सतीश सोच रहा था. कही वो शरबत पीकर कही बेहोश ना हो जाए. वो औरत सतीश का डर समझ गई. और खिल खिलाकर हस पड़ी.


औरत : (स्माइल) अरे डरो नहीं. मेरा नाम माया है. मेरे पति दुबई मे काम करते है. वैसे यहाँ मेरे साथ मेरी सास भी रहती है. पर वो फिलहाल कुछ दिन के लिए गाजियाबाद गई है. मेरी ननंद के घर.


सतीश का थोड़ा डर निकल गया. और उसने चैन की सांस ली.


सतीश : ओह्ह्ह.. पर क्या आप की सासु माँ को कोई प्रॉब्लम नहीं होंगी. यहाँ वैसे कोई मेल भी नहीं है??


माया : (स्माइल) नहीं... दरसल मेरी सासु माँ ही चाहती थी की किसी स्टूडेंट को pg पर रख ले. कोई मेल होगा तो अच्छा रहेगा. तुम स्टूडेंट ही होना???


सतीश को भरोसा हो गया.


सतीश : ह हा हा. पर किराया कितना लोगे???


माया : जितना ठीक लगे उतना दे देना. आओ तुम्हे रूम दिखा दू.


सतीश ने वो शरबत से भरा ग्लास सामने टेबल पर रखा. और माया के पीछे चल दिया. उसने रूम देखा. वो बहोत बढ़िया था. एक डबल बेड था. एक बड़ा ड्रेसिंग टेबल था. जिसमे बड़ा मिरर था. अलमारी थी. कुल मिलाकर बहोत बढ़िया रूम था.


माया : कैसा लगा रूम तुम्हे???


सतीश को लगा रूम बहोत बढ़िया है तो सायद माया ज्यादा पैसे मांगेगी.


सतीश : रूम तो बहोत अच्छा है. पर मै सिर्फ 1500 रूपय ही दे पाउँगा. मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है.


माया : हम्म्म्म गर्लफ्रेंड भी होंगी. पैसे तो तुम्हे भी चाहिये होंगे. कोई बात नहीं सतीश. तुम एक हजार ही दे देना. अब आओ.


सतीश वापस अपनी जगह पर बैठा. माया ने शरबत की तरफ हिशारा किया. सतीश ने शरबत लिया. और पिने लगा. पहले उसे अजीब टेस्ट लगा. पर बाद मे उसे अच्छा लगने लगा. वो शरबत पी गया.


माया : तो ऐसा करो. शाम को ही आ जाओ. तुम नॉनवेज तो खाते होना. आज चिकन बना रही हूँ.


सतीश : (स्माइल) हा बिलकुल. तो मै चलू??


सतीश को ये एहसास ही नहीं था की वो माया की बात बड़ी आसानी से मान रहा है. वो खड़ा हुआ और जाने लगा. माया भी उसके पीछे आने लगी. घर के दरवाजे से बहार निकलते सतीश को ऐसा लगा जैसे घर का माहोल बहार के माहोल से ज्यादा बढ़िया है. जबकि जब वो आया था तो उसे घर का माहोल अजीब लग रहा था.


कोमल से रुका नहीं गया. और वो बिच मे बोल पड़ी.


कोमल : क्या वो माया डायन थी??? और और और सतीश क्या सच मे उसके हिसारो पर चलने लगा था.


डॉ रुस्तम ने लम्बी सांस ली. और हलका सा मुश्कुराए. कोमल हेरत भरी नजरों से सर घुमाकर दाई माँ को देखती है. वो भी मुश्कुराते हुए ना मे सर हिला रही थी.


दाई माँ : जा मे बिलजुलाऊ सबर ना है.


कोमल ने दए बाए नजरें घुमाई. बलबीर की भी नींद उडी हुई थी. और वो भी कहानी सुन रहा था. कोमल ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा.


डॉ : तुम सिर्फ ये किस्सा सुनो. तुम्हे अपने सवालों के ज़वाब अपने आप ही मिल जाएंगे.


कोमल बेताबी से आगे सुन ने के लिए डॉ रुस्तम की तरफ देखने लगी.
सतीश : रूम तो बहोत अच्छा है. पर मै सिर्फ 1500 रूपय ही दे पाउँगा. मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है.


माया : हम्म्म्म गर्लफ्रेंड भी होंगी. पैसे तो तुम्हे भी चाहिये होंगे. कोई बात नहीं सतीश. तुम एक हजार ही दे देना. अब आओ.
अब तो माया की माया में फंस गया...
 
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motaalund

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Update 32


डॉ रुस्तम ने सतीश का किस्सा आगे सुनना शुरू किया. कोमल दाई माँ के कंधे पर सर रखे बड़ी ध्यान से किस्सा सुन ने लगी. दिलचस्पी बढ़ी तो बलबीर की भी नींद उड़ चुकी थी. और वो भी बड़े ध्यान से सुन रहा था. वही दाई माँ तो पहले से सायद किस्सा जानती थी. वो कोमल के लम्बे बालो को साहलाते हुए आगे सामने की तरफ देख रही थी.


डॉ : सतीश वहां से निकल गया. जब वो उस घर से निकला तब जाकर उसे ऐसा एहसास हुआ जैसे कही से आज़ाद हुआ हो. जब वो घर के डोर से निकला. और बहार वाले कंपउंड के गेट से निकल कर उसे बंद करने लगा. उसने देखा की माया गेट पर ही खड़ी उसे देखते हुए मुस्कुरा रही है. सतीश को बड़ा ही अजीब फील होने लगा.

और वो वहां से जल्दी से जल्दी निकालने लगा. वो कुछ कदम बड़ी तेज़ी से निकला. वो महल्ला पर करने के बाद उसे चैन की सांस आई. सतीश समझ ही नहीं पाया की उसके साथ हुआ क्या. उसने सोच लिआ की अब वो दोबारा वहां कभी नहीं जाएगा. और वो अपने होटल के रूम मे आ गया. उस वक्त उसकी एक गर्लफ्रेंड हुआ करती थी. परमजीत कौर. सतीश ने अपनी गर्लफ्रेंड से काफ़ी देर बात की. उसके बाद उसने अपने घर भी फोन किया.

अपनी माँ और बहेनो से बात की. पर किसी को भी उसने अपने उस अनुभव को नहीं बताया. सतीश ने सोच लिया था की वो अब वहां नहीं जाएगा. पर शाम होते ही उसे भूख लगी. और उसे चिकन खाने का मन होने लगा. सतीश खुद नहीं जानता था की वो अपना समान लेकर वहां क्यों पहोच गया. सतीश ने होटल का भी चैकउट कर दिया. पर जब वो वहां पहोच गया. और उसने उसी घर के गेट से अंदर आकर डोर नॉक किया. तब उसे एहसास हुआ की उसने क्या किया है.


कोमल : तो क्या माया डायन थी???


कोमल से रहा नहीं गया. और वो सवाल पूछ ही बैठी. डॉ रुस्तम हलका सा मुस्कुराने लगे. तब कोमल को एहसास हुआ. लेकिन कोमल के अंदर तो सवालों का बवनडर पैदा हो चूका था.


कोमल : अच्छा ठीक है. वो जो भी हो. पर सतीश को क्या हुआ?? मतलब की उसने कुछ ऐसा देख लिया था. और देख भी लिया तो जब वो वापस जाना नहीं चाहता था तो गया क्यों???


डॉ : क्यों की सतीश पर वशीकरण हो चूका था. हिप्नोटाइज.


कोमल : (बेचैन ) पर कैसे???? कैसे???? कुछ तो हुआ होगा??


इस बार दाई माँ मुस्कुराई.


दाई माँ : (स्माइल) जे वकील हते. जे ना माने. बता दे.


सतीश जब उस घर मे गया. पहले तो उसे वो घर अंदर से सुकून दे रहा था. पर बाद मे उसे वहां घुटन होने लगी. कभी कभी हमारी छठे इंद्री हमें मैसेज देने की कोसिस करती है की कुछ गलत है. सतीश को भी ऐसा ही फील हो रहा था. वो इसी लिए नहीं जा रहा था. पर माया ने जो सरबत पिलाया था. वो तंत्र मंत्र के जरिये उसके मन पर काबू किया गया था.


कोमल : (सॉक) क्या??? तंत्र मंत्र से हिप्नोटाइज??? लेकिन वो तो साइकाइट्रिकस कोई और ट्रीटमेंट से करते है ना???


डॉ : वो जो हिप्नोटाइज करते है. उस से तंत्र मंत्र का लेवल बहोत हाई है. अभी इस सब्जेक्ट पर नहीं. सतीश की स्टोरी पर फोकस करो.


कोमल : अच्छा ओके. अब आगे बताओ.


डॉ : सतीश को जब तक एहसास हुआ की वो कहा आ गया है. तब तक तो डोर खुल चूका था. और उसके सामने माया खड़ी थी.


माया : (स्माइल) अरे आ गए तुम. बिलकुल सही वक्त पर आए हो. फटाफट अपना समान रूम मे राखो. और जल्दी आ जाओ. मै खाना लगाती हूँ.


सतीश ना कहना चाहता था. पर वो होटल के रूम को छोड़ चूका था. उसने सोचा. एक दो दिन रहकर कोई बहाना बना देगा. और वो अंदर आ गया.


कोमल से रहा नहीं गया. और वो फिर बिच मे बोल पड़ी.


कोमल : मतलब उस वक्त वो हिप्नोटाइज नहीं था??? क्यों की वो समझ पा रहा था तो????


डॉ : कोई भी हर वक्त वासीभुत नहीं हो सकता. कुछ पल तो असर ख़तम या कम हो ही जाता है. लगातार वशिकृत रखने के लिए उसे क्रिया मे रखना जरुरी होता है. सतीश उस घर मे चले गया. और उसने रूम मे समान रख दिया. एक पल के लिए सतीश सोचने लगा. प्रॉब्लम तो कुछ नहीं है. घर का किराया बहोत सस्ता है. और अभी तक खाने का पैसा तो बताया नहीं है. सायद वो भी सस्ता ही होगा. कुछ दिन रहकर देखा ही जाए. की तभि माया ने उसे आवाज दी.


माया : सतीश.... सतीश.... जल्दी आओ.... मेने खाना निकल दिया है.


सतीश : जी बस अभी आया भाभी.


सतीश तुरंत ही रूम से निकल आया. वही ड्राइंग रूम. जहा दोपहर सतीश ने बैठ कर सरबत पिया था. सतीश खड़ा देख रहा था की टेबल पर रोटी,चावल, मीट रखा हुआ था.


माया : क्या हुआ. बैठो.


सतीश ने माया को देखा. वो खुबशुरत तो थी ही. उसने नाईटी पहनी हुई थी. माया उसे देख कर मुश्कुराई.


माया : (कातिल मुस्कान) क्या हुआ. बैठो.


सतीश ने माया से तुरंत नजर हटा ली. वो सोफे पर बैठ गया. मगर उसने नजर ऊपर कर के बिलकुल भी माया की तरफ नहीं देखा. सतीश उस वक्त एक लड़की के साथ रिलेशनशिप मे था. वो भी फागवाडा की ही थी. परमजीत कौर. वो उसके साथ कोई धोखा कोई चीटिंग नहीं करना चाहता था. और माया को वो रूप जैसे उसे उकसाने वाला था. माया उसे रीझाने की जैसे कोसिस कर रही हो. खुद उसे परोसने लगी.


माया : लगता है किसी लड़की से प्यार करते हो.


सतीश को झटका लगा. और उसने तुरंत अपना सर ऊपर किया. माया शरारती सी मुश्कान से हस रही थी. माया के बोलने का अंदाज़ बहोत कामुख था.


माया : क्या नाम है उसका???


सतीश बहोत धीरे से बोला.


सतीश : जी जी वो परम. परमजीत.


सतीश बोलने मे हिचक रहा था. माया भी उसके साथ ही बैठ गई. और दोनों ने खाना खाया. कुछ ही पलों मे जैसे सतीश भूल ही गया हो. और खाते हुए वो माया से हस हस कर बाते भी करने लगा. खाना ख़तम कर के उसने हाथ धोए. पानी पिया. और वो अपने रूम मे आ गया. तब जाकर उसे एहसास हुआ की वो भूल कैसे सकता है.

माया ने उसके घर के बारे मे पूछा. उसकी गर्लफ्रेंड के बारे मे पूछा. और जो चीजे नहीं बतानी थी. वो सब भी सतीश उसे बताते गया. सतीश बेड पर लेटा. और यही सब सोचते हुए वो सो गया. उस रात उसे अपनी गर्लफ्रेंड परमजीत से फोन पर बात करनी थी.

सतीश वो भी भूल गया. और सो गया. सतीश को बहोत गहेरी नींद आई. पर गहेरी नींद मे भी उसे ऐसा एहसास होने लगा की जैसे कोई उसके पास आकर लेटा हुआ है. कोई उसके बदन को सहेला रहा है. कोई उसके बालो को उसकी कान की लावो को सहेला रहा है. सतीश अपनी आंखे खोलना चाहता था. पर उसे इतनी ज्यादा गहेरी नींद आ रही थी की उसे सब सपना सा लगा.

वो अपनी आंखे खोल ही नहीं पाया. जब वो सुबह उठा तो उसे बड़ा अजीब लग रहा था. वो खड़ा हुआ और बाथरूम मे चले गया. माया उस से एकदम नार्मल बात कर रही थी. वो नास्ता कर के अपनी ट्रेनिंग के लिए ऑफिस के लिए निकल गया. जब वो डोर से बहार निकला तो उसने देखा की कुछ मांस के टुकड़े डोर के बहार पड़े हुए थे. सतीश उन्हें हैरानी से देखने लगा.


पर जब उसे एहसास हुआ की माया डोर पर ही उसके पीछे खड़ी है. सतीश चुप चाप निकल गया. जब सतीश उस घर से कुछ दुरी पर आया तो उसे एहसास हुआ. वो क्या कर रहा है. वो बहोत चीजों को भूल रहा है. और बहोत चीजे जो वो नहीं करना चाहता. वो सब वो कर रहा है. लेकिन फिर भी उसे ये एहसास नहीं हुआ की वो माया की हर बात बड़ी आसानी से मान रहा है.
वशीकरण का प्रभाव आता जाता रहता है...
दिमाग पर असर डाल कर बातों को भूलना..
खतरनाक स्थिति की ओर अग्रसर...
 
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Update 33

डॉ रुस्तम सतीश की कहानी लगातार सुनते रहे. जिसे कोमल बलबीर और दाई माँ सुन रही थी.


डॉ : सतीश को जब एहसास हुआ. वो तुरंत आगे निकल गया. उसने कंपउंड का गेट खोला और बहार निकल कर चलते गया. जैसे उसके मन मे कोई डर हो. वो पीछे मुड़कर एक बार भी नहीं देखता. जब वो घर से थोड़ा दूर पहोंचा. तब जाकर उसने चैन की सांस ली.


कोमल : लेकिन उसे डर किस चीज का लग रहा था. जब की अब तक उसने कुछ ऐसा देखा तक नहीं था.


डॉ : ये तो वो खुद भी नहीं जानता था. लेकिन हमारे अंदर जो इन्द्रिया होती है.

वो बिना कुछ देखे भी कभी कभी आने वाली मुसीबत के लिए आगाह करती है. दूर जाकर सतीश को भी कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था. माया के बिना कुछ किए भी सतीश को उस से डर लगने लगा था. पर दूर पहोचने पर उसने किसी चीज पर गोर किया तो वो था जो डोर के पास पड़ा वो मांस का टुकड़ा. वो किस चीज का था.

ना कोई पक्षी की उस पर नजर पड़ रही थी. ना उसपर मखिया भीन भीना रही थी. और ना ही उसपर चीटिया थी. सतीश जैसे तैसे जल्दी से जल्दी अपने ऑफिस पहोच गया. वहां उसका लेक्चर था. वो लेक्चर एटेंट करता है. ब्रेक हुआ तब उसने अपना मोबइल देखा. वो हैरान रहे गया. परमजीत के लगभग 100 से ज्यादा मिस्स्कॉल थे. सिर्फ उसके ही नहीं घर से भी कई सारे मिस्स्कॉल थे.

सतीश अपनी माँ बहेनो से परमजीत को मिलवा चूका था. और उसकी माँ बहने परमजीत को पसंद भी करती थी. उनकी तरफ से परमजीत के लिए हा थी. सतीश ने तुरंत परमजीत को कॉल बैक किया. सामने से परमजीत ने कॉल पिक किया. और सतीश को वो खरी खोटी सुनाई. जो की उसे सब शादी के बाद सुन नी चाहिये थी.


परमजीत : हेलो क्या तुम ठीक हो??? क्या हो गया. क्यों कॉल नहीं एटेंट किया???


सतीश : अरे मे जल्दी सो गया था.


परमजीत : (गुस्सा) अच्छा... जल्दी सो गए थे. तो उस से पहले एक मैसेज तो कर देते. और सुबह. तुम सुबह तो फोन उठा सकते थे ना. पता है माँ कितना परेशान है. मै परेशान हूँ. तुम्हारी दोनों बहने परेशान है. और तुम हो की अब फोन कर रहे हो.


सतीश : मुजे माफ कर दो परम. दुबारा ऐसा नहीं होगा. मै अब हर चीज का खयाल रखूँगा. और प्लीज माँ से कहना की मै शाम को कॉल करूँगा. वो परेशान ना हो.


परमजीत का गुस्सा शांत हो गया. उसे सतीश की फिकर थी. सतीश ठीक है. ये जानकर ही वो खुश थी.


परमजीत : क्या हुआ तुम pg के लिए मकान देखने गए थे?? क्या तुम उसी मकान मे जाओगे??? या फिर कोई और मकान तालाशोंगे???


सतीश जब पहेली बार माया से मिला. वो मकान देखा तब उसने अपनी माँ और परमजीत को माया और उसके मकान के बारे मे बता दिया था. पर उसने ये नहीं बताया की वो उसी मकान मे रहने भी चले गया.


सतीश : अरे मेने तो कल शाम को ही वहां सिफ्ट कर लिया. माया भाभी बहोत कम किराया जो ले रही है.


परमजीत को ये अच्छा नहीं लगा. उसे जलन होने लगी.


परमजीत : हा हा किराया भी क्यों लेगी. पति दूर विदेश मे है. सास घर मे नहीं है. कही डोरे तो नहीं डाल रही तुम पर.


सतीश : अरे नहीं नहीं. वो तो बहोत अच्छी है. दरसल वो दिल्ली के आउटर मे रह रही है. इसी लिए उन्हें डर लगता है. और उनकी सास भी कल परसो तक आ ही जाएगी. सरीफ इंसान देख कर मुझपे भरोसा जताया है.


परमजीत : हम्म्म्म.. शाम को वीडियो कॉल करना. मै भी तो देखु. केसी है वो.


सतीश समझ गया की परमजीत को थोड़ी जलन हो रही है. वो हस पड़ा. पर उसे ये नहीं पता था की जिस माया से उसे डर लगने लगा था. उसी माया की वो अपनी गर्लफ्रेंड से सिफारिस कर रहा था की वो बहोत अच्छी है.


सतीश : अच्छा चलो फोन रखता हूँ. रात को कॉल करूँगा.


सतीश ने कॉल कट कर दिया. वो खुश क्यों है. ये उसे खुद भी नहीं पता था. वो दिन भर की ट्रेनिंग पूरी कर के शाम होते वापस वही चल दिया. सतीश वापस वही माया के घर पहोंचा. वो भूल गया की उसे सुबह के वक्त माया से डर लग रहा था. सतीश माया से बहोत अच्छी तरह से बात कर रहा था. हाथ मुँह धोकर वो माया के साथ खाना खाने बैठ गया. जब माया ने बर्तन का ढक्कन हटाया तो उसमे बकरे के मीट की खुश्बू थी.


सतीश : (स्माइल) अरे वाह. बकरा...


माया खिल खिलाकर हसने लगी. और उसे मीट परोस देती है. साथ मे रोटी और चावल था. सतीश बड़ी चाव से खाना खा रहा था. माया भी उसके साथ ही खा रही थी. पर वो सिर्फ मीट मीट खा रही थी. सतीश ने माया पर ध्यान ही नहीं दिया. माया सतीश से सवाल करने लगी. माया जो भी पूछती. वो सब सतीश सच सच बता रहा था.

माया ज्यादातर सतीश से परमजीत के बारे मे ही पूछ रही थी. सतीश ने दोपहर ट्रेनिंग पर जो परमजीत से बात करी थी. वो सब भी सतीश ने माया को बता दिया. पर खाना खाने के बाद हाथ धोते वक्त माया ने एक सवाल पूछा. और जैसे सतीश को उसी वक्त होश आया हो.


माया : क्या तुम्हारी परमजीत बहोत सुंदर है क्या?? ऐसा क्या है जो तुम उसके बिना रहे नहीं पाते?? उसे फोन करना जरुरी है क्या??


सतीश एकदम से रुक गया. जैसे उसमे हिम्मत आ गाइ हो.


सतीश : देखो भाभी जी. आपने मुजे बहोत कम पेसो मे रहने के लिए यह मकान दिया. इसके लिए मै आप का बहोत शुक्र गुजार हूँ. पर इसका मतलब यह नहीं की आप मेरी प्रसनल जिंदगी मे दखल दे.


बोलकर सतीश अपने रूम मे घुस गया. सतीश सोच ही रहा था की तभि उसके फोन पर कॉल आया. रिंग आते ही उसने फोन की तरफ देखा. वो कॉल परमजीत का था. और वो वीडियो कॉल था. सतीश ने तुरंत ही कॉल पिक किया. वो स्पीकर पर कर के बात करने लगा. परमजीत और सतीश दोनों एक दूसरे को देख सकते थे.


परमजीत : (स्माइल ) हा तो जनाब कहा है तुम्हारी भाभी. हमें भी तो दिखाओ.


बाते करते परमजीत माया को देखने की बात कर रही थी की तभि उसने देखा की सतीश के पीछे साइड मे कोई आकर खड़ा हो गया. परमजीत का तो मनो एकदम से चहेरा ही फीका पड़ गया. एकदम से उसके होश ही उड़ गए. उसकी एकदम से स्माइल चली गई.


परमजीत : (घबराहट) सतीश पीछे देखो. सतीश...


सतीश तुरंत ही पीछे देखता है. माया खड़ी मुस्कुरा रही थी. वो हॉट नाईटी मे खड़ी थी. जिसमे से उसका जोबन बहार झलक रहा था. पर सतीश को जैसे कोई फर्क ना पड़ा हो. वो स्माइल करता है.


सतीश : अरे आओ भाभी. तुम्हे परम से मिलवाता हु. ये देखो परम. जिस से मै शादी करने वाला हु.


माया ने स्क्रीन पर परमजीत को देखा. और स्माइल देते हुए बस हा मे गर्दन हिलाई.


स्टोरी के बिच कोमल रहे नहीं पाई. और वो बोल पड़ी.


कोमल : पर परमजीत को गुस्सा आना चाहिये था. वो घबरा क्यों गई. क्या वो माया को पहले से जानती थी. या कही देखा होगा???


डॉ : नहीं..... क्यों की जो परमजीत को दिख रहा था. वो सतीश को नहीं दिख रहा था. और जो सतीश देख रहा था. वो परमजीत को नहीं दिख रहा था.


कोमल : और वो क्या था.


डॉ : पराजित ने देखा की सतीश के पीछे एक काले कपड़ो मे एक बुढ़िया आकर खड़ी है. जिसके चहेरे पर मक्कीया भीन भीना रही है. जिसका चहेरा बहोत गन्दा सड़ा हुआ है.



ये सुन ने के बाद सारे स्तब्ध रहे गए. दो मिनट तक कोई कुछ बोल ही नहीं पाया.
वशीकरण का मोबाइल पर कोई प्रभाव नहीं..
इसलिए परमजीत को असलियत दिखाई दे गई....
 
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कहानी पर बहुत दिनों बाद आपको देखकर प्रसन्नता हुई..
कोमल : (धीमी आवाज) मै तुम्हारे बच्चे की माँ बन ने वाली हु.
बेचारे बलवीर की तो बिना घुसाए हीं फाड़ दी...

पंचतंत्र इसका बेहतरीन उदाहरण है..
किस्से के साथ पिरो कर ज्ञान...
बहोत बहोत धन्यवाद.

बोलकुल सही कहा. पुरखो को और पिरो को ऊपर वाले और हमारे बिच मीडिया होता है. इनसे मांगी गई दुआ सीधा ऊपर वाले तक पहोचती है.
 
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सतीश : रूम तो बहोत अच्छा है. पर मै सिर्फ 1500 रूपय ही दे पाउँगा. मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं है.


माया : हम्म्म्म गर्लफ्रेंड भी होंगी. पैसे तो तुम्हे भी चाहिये होंगे. कोई बात नहीं सतीश. तुम एक हजार ही दे देना. अब आओ.

अब तो माया की माया में फंस गया...
डायन का जाल.
वशीकरण का प्रभाव आता जाता रहता है...
दिमाग पर असर डाल कर बातों को भूलना..
खतरनाक स्थिति की ओर अग्रसर...
लोगो ने वशीकरण के जरिये लोगो से नजाने क्या क्या करवा दिया. वैसे यह बहोत ख़तरनाक होता है.
वशीकरण का मोबाइल पर कोई प्रभाव नहीं..
इसलिए परमजीत को असलियत दिखाई दे गई....
हमेशा वशीकरण मे ज्यादा डीप उतरने वाले की आंखे कमजोर ही मिलेगी.
 
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Update 34


डॉ रुस्तम का ज़वाब सुन ने के बाद कोमल और बलबीर के तो मनो होश ही उड़ गए. डॉ रुस्तम ने बताया की जो सतीश माया को देख रहा है. परमजीत कुछ और ही दिख रही है. सतीश को तो माया खुबशुरत और जवान दिखाई दे रही है. मगर परमजीत को माया स्क्रीन पर बहोत ही गन्दी और घिनौनी दिख रही है. बुढ़िया दिख रही थी. ये जान ने के बाद कोमल के अंदर और ज्यादा सवाल पैदा होने लगे. कोमल अपने आप को रोक नहीं पाई.


कोमल : पर ऐसा कैसे हो सकता है. और कोनसी माया असली है.


इस बार दाई माँ बिच मे बोलती है.


दाई माँ : लाली तूने बलबीर ने जे कहानी सुनाई. वा पे धान(ध्यान) ना दियो का. दीपू के पीछे वा डायन हती. या भी वाई हते.


दाई माँ बताना चाहती थी की बलबीर ने जो किस्सा सुनाया था. गांव का लड़का दीपू. जिसकी बीवी के रूप मे कोई और रहे रही थी. वो डायन थी. और ये भी डायन ही है.


कोमल : लेकिन माँ आपने ही बताया था की डायन इंसान ही होती है. तो एक साथ दो अलग अलग लोगो को अलग अलग रूप मे कैसे दिख रही थी???


इस बार दाई माँ हस पड़ी. लेकिन बात को सही से डॉ रुस्तम समझाते है.


डॉ : क्यों की इस लिए. डायन इन्शान ही होती है. पर वो इतना ज्यादा शैतान को पूजती है. उसे बली देती है तो उसे शक्तियां मिल जाती है. वो बूढी थी. फिर भी लोगो को जवान खूबसूरत दिख रही थी. लेकिन वो आईने को धोखा नहीं दे सकती. कैमरा उसके असली चहेरे को दिखा देता है. इसी लिए परमजीत को उसका असली चहेरा दिख गया. जिसका पता खुद माया को भी नहीं था.

क्यों की चुड़ैले खुद का पूरा सच नहीं जानती. हा वो उसके लिए बात करने वाले और जानकारी जुटाने वालों का पता बहोत जल्दी लगा लेती है. यहाँ परमजीत ने तुरंत ही सतीश से बात करते जब माया का रूप देखा तो उसे कुछ गड़बड़ लगी. और उसने तुरंत ही स्क्र्रीनशॉट खिंच लिया. कॉल तो कट हो गया. पर परमजीत उस स्क्रीनशॉट को कई देर तक देखने लगी.


कोमल : क्या परमजीत को पता चल गया. तो सतीश का क्या हुआ?? उस रात. मतलब की....


कोमल की बेचैनी पर डॉ रुस्तम थोड़ा मुश्कुराए.


डॉ : फोन कट होते सतीश ने माया की तरफ देखा. माया भी उसे बिना पाल्ख जबकाए उसे ही देख रही थी.


माया : परमजीत अच्छी नहीं है. तुम दूर रहो उस से. ज्यादा बाते मत करो.


हैरानी की बात यह थी की सतीश ने हा मे सर हिलाया. उसकी हा सुनते माया मुस्कुराई.


माया : ठीक है. अब तुम सो जाओ.


माया का बोलना और सतीश तुरंत ही बेड पर लेट गया. उसने लाइट भी बंद नहीं की. माया वहां से चली गई. बहोत जल्द सतीश को नींद आ गई. और वो बहोत गहेरी नींद मे सो गया. पर सोने के बाद उसे अपने बदन पर कुछ हरकत महसूस होने लगी. वो उत्तेजित हो रहा था. लेकिन उसका शरीर मनो बेजान हो. आधी रात वो पूरी ताकत लगाकर अपनी आंखे खोलने की कोसिस करने लगा. लेकिन उसकी आंखे ही नहीं खुल रही थी.

सतीश एक बार कामयाब हुआ. उसने पूरा जोर लगाया. पर जब उसकी आंखे खुली तो उसने देखा और वो हैरान रहे गया. माया बिना पलख जबकाए उसे ही देख रही थी. वो उसके बगल मे उसकी तरफ ही करवट लिए लेती हुई थी. पर उस से भी ज्यादा हैरानी की बात यह थी की माया को उसने निर्वस्त्र देखा. मतलब की नगना अवस्था मे. सतीश अपनी आंखे ज्यादा वक्त तक नहीं खुली रख पाया. और वो वापस गहेरी नींद मे सो गया.

मगर एक और हैरानी की बात यह थी की जब वो सुबह उठा. वो बिलकुल ठीक था. मतलब जैसे सोते वक्त उसने कपडे पहने थे. बिलकुल वैसे ही. सतीश यह देख कर वो हैरान था. सतीश हैरान रहे गया. वो कुछ बोला नहीं. उसके मन मे कई सवाल थे. उसने सुबह उठकर देखा तो उसमे परमजीत और उसकी माँ के कई सारे मिसकॉल थे.


एक बार फिर कोमल से रहा नहीं गया. और वो बिच मे बोल ही पड़ी.


कोमल : तो क्या कही परमजीत को मालूम पड़ गया क्या??? मतलब... मवतलब की आप ने सतीश के साथ क्या हुआ वो बताया. पर परमजीत ने वो विडोकाल का स्क्रीनशॉट खींचा था. तो सायद....


डॉ रुस्तम हस पड़े. कोमल कभी दाई माँ को देखती है तो कभी डॉ रुस्तम को.


डॉ : (स्माइल) उसके बाद हमारी दाई माँ हेना. उन्होंने एंट्री ली.


दाई माँ का नाम सुनते ही कोमल उनकी गॉद से उठी. और घूम कर हैरानी से दाई माँ की तरफ देखती है.


कोमल : (सॉक) माँ.... आप????


दाई माँ : (स्माइल) री बावरी.... वाए बोलन तो दे. (उसे बोलने तो दे.


कोमल ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा. उन्होंने आगे बोलना शुरू किया.


डॉ : उस दिन सतीश को डर लग रहा था. और वो कुछ नहीं बोला.

उसने नाश्ता तक नहीं किया. जल्दी जल्दी तैयार होकर वो ऑफिस के लिए जाने लगा. जब वो जा रहा था. वो डोर से निकला और कंपउंड का गेट खोलता है तो बहार उसे एक काले बकरे का सर पड़ा दिखाई दिया. कंपउंड गेट के बहार पक्का पर टुटा हुआ रोड था. और रोड पर सतीश ने बकरे का कटा हुआ सर देखा. उस बकरे की पिली कंचे जैसी आंखे खुली हुई. लेकिन वो हैरानी की बात यह की खुले हुए मांस पर एक भी मक्खी नहीं थी.

सतीश को फिर कुछ आभास हुआ. वो पीछे मुड़कर देखता है. माया घर का डोर आधा खुला किए वही खड़ी थी. और सतीश को ही बिना पलख झबकाए सतीश को ही देख रही थी. सतीश एकदम से डर गया. और वहां से वो तुरंत ही चल पड़ा. वो बहोत जल्द ऑफिस पहोच गया. उसे डर भी लग रहा था. मगर वो परमजीत या अपनी माँ को कॉल कर ही नहीं पा रहा था.

वही परमजीत रात से ही परेशान थी. वो रात बार बार उसी फोटो को बार बार देख रही थी. माया का वो घिनोना चहेरा उसे परेशान किया हुआ था. वो सोच रही थी की सतीश एक बुढ़िया जिसका चहेरा इतना गन्दा है. उसे भाभी भाभी बोल रहा है. और उसने परमजीत को माया एक जवान औरत है यह बताया था. सुबह होते ही परमजीत सतीश के घर उसकी माँ के पास पहोच गई. और सारी बात बताई. उसकी माँ सरोज वैसे तो उत्तराखंड की थी.

कभी उसपर एक चुड़ैल का साया पड़ा था. तब उसे दाई माँ ने बचाया था. सतीश की माँ सरोज यह जानती थी की दाई माँ उत्तराखंड के एक पहाड़ी गांव मे रहकर कोई सिद्धी हासिल कर रही है. सरोज परमजीत को लेकर बस पकड़ कर उसी सुबह उत्तराखंड के लिए निकल गई. वो शाम तक वहां पहोच गए. जहा दाई माँ थी. उस वक्त दाई माँ एक झोपड़ी के अंदर ध्यान मे बैठी हुई थी. मगर जैसे ही सरोज वहां पहोची. उन्होंने अपनी आंखे खोल ली.

सरोज और दाई माँ दोनों ही लम्बे वक्त के बाद मिल रहे थे. इस से पहले जब सरोज पर चुड़ैल का साया पड़ा था. वो जवान लड़की थी. वही दाई माँ सम्पूर्ण जवान वैरागी औरत थी. लेकिन अब दोनों ही बूढी हो चुकी थी. वैसे शादी के बाद भी सरोज समय समय पर दाई माँ से मिल लेती थी. क्यों की सरोज पर बहोत लम्बे समय तक नकारात्मकता रही थी. लेकिन उसका भी लम्बा वक्त बीत चूका था. सरोज के अंदर आते ही दाई माँ ने आंखे खोली.


दाई माँ : का हेगो छोरी. बलाय दिन बात आई तू???
(क्या हो गया लड़की. बहोत दिनों बाद आई तू???)


सरोज बहोत घबराई हुई थी. वो तुरंत दाई माँ के सामने घुटनो पर बैठ गई.


सरोज : सायद मेरा बेटा कोई मुसीबत मे है. आप कुछ बताइये ना.


सरोज के पीछे पीछे परमजीत भी अंदर आई. और सरोज के बोलने के बाद उसने अपने मोबाइल मे वो फोटो निकल कर दाई माँ को दिखाया. दाई माँ वैसे तो फोटो मे माया का चहेरा देख कर ही समझ गई. मगर फिर भी वो थोड़ा ध्यान मे गई. कुछ कोड़ियों को बिखेर कर कुछ बड़ बड़ाने लगी.


दाई : कए दीना से है वा ज्याके साथ??? (कितने दिनों से है वो इसके साथ???)


परमजीत : जी जी तीन दिन से.


दाई माँ : फिर तो बला देर हे गई. जी तो डायन हते. और जे आज रात तेरे छोरा को खून पिबेगी. (फिर तो बहोत देर हो गई. ये तो डायन है. ये तो आज रात ही तेरे बेटे का खून पिएगी.)


यह सुनकर सरोज एकदम से रो पड़ी.


दाई माँ : री रोवे मत. फोन लगा तेरे बेटा को. और तू जे मत बताइये की तू जान गई है. बस जे कहे दे की सोए ते पहले अपनों दो बून्द खून निचे जमीन पर डार दे.
(रो मत. फोन लगा तेरे बेटे को. और तू यह मत बताना की तू उस डायन के बारे मे जान गई है. बस यह कहे दे अपने बेटे से की वो अपना दो बून्द खून सोने से पहले फर्श पर गिरा दे.)


सुनते ही परमजीत ने बिलकुल भी देर नहीं की. और तुरंत ही सतीश को कॉल लगा दिया. और स्पीकर पर कर दिया. रिंग बज रही थी. लेकिन सतीश फोन ही नहीं उठा रहा था. वही सतीश भी पूरा दिन का परेशान वापस वही शाम होते माया के ही घर जा रहा था. वो गहेरी सोच मे डूबा हुआ था. उसके फोन पर रिंग बज रही थी. पर फिर भी वो जैसे गहेरी सोच मे डूबा हुआ था. उसके बाजु मे बैठे एक पेसेंजर ने सतीश को जगाया.


पेसेंजर : भाई साहब. आप का फोन बज रहा है. उठाइये.


सतीश : ओह्ह्ह हा हा...


सतीश जैसे होश मे आया. उसने देखा की उसके मोबाइल पर परमजीत का कॉल आ रहा है. वो कुछ मिनट तो सोचता रहा. पर फिर उसने फोन एटेंट कर लिया.


सतीश : हा परम. मै थोड़ा....


सरोज : अरे मै बोल रही बेटा. तुम्हारी माँ.


सतीश : ओहहह माँ आप. माँ सॉरी वो मै काम की वजह से ज्यादा थक गया था. पर परम को मेने बता दिया था की वो आप को बता दे की मै ठीक हु.


सरोज को यह अच्छा लगा की उसका बेटा उसकी परवाह करता है. और वो अपनी प्रॉब्लमस अपनी माँ से छुपा रहा है. ताकि माँ परेशान ना हो.


सरोज : हा बेटा कोई बात नहीं. वो बेटा वो अपनी डिंम्पी का रिस्ता नहीं मिल रहा था तो मेने वो बूढ़ी अम्मा से बात की थी ना.


वो बूढी अम्मा सतीश के फागवाडा वाले घर से थोड़े दूर पर रहती थी. वो कोई जादू टोना वाली नहीं थी. पर घरेलु नुसको के बारे मे बताती रहती थी. कुछ छोटे मोटे टोटके. जिसे सतीश अंधश्रद्धा मानता था.


सतीश : माँ आप भी ना. क्या आप इन पुरानी बेकार की बातो को सुनती हो.


सरोज रिक्वेस्ट करने लगी. हलाकि वो जुठ ही कहे रही थी.


सरोज : अरे बेटा झूठ सच का क्या पता. बस तू अपनी माँ के लिए बात मान ले. देख अपनी डिम्पी के लिए रिस्ता मिल गया ना. क्या पता उसी ने बताया इसी लिए हुआ हो.


डिम्पी सतीश की बड़ी बहन थी. सतीश टोटको को तो नहीं मानता था. पर अपनी माँ के कहने पर वो मान गया.


सतीश : हा बोलो. क्या करना है अब???


सरोज : बेटा सोने से पहले तू कमरा बंद कर लेना. और यह बात किसी को बताना मत. बोलने से बता रही थी की गड़बड़ हो जाएगी.


सतीश : (परेशान) हा बाबा हा नहीं बताऊंगा. मै पागल हु क्या. किसी को पता चली तो और मेरा मज़ाक बन जाएगा.


सरोज : बेटा बस तू मेरे लिए कर ले.


सतीश : (चिल्लाकर,परेशान) हा माँ हा. करने को तियार तो हु. तुम पूरा बताओ ना.


सरोज : अपने हाथ से अपना दो बून्द खून वही कमरे मे जमीन पर गिरा देना. और फिर सीधा सो जाना.


यह सुनकर सतीश ने माथा पिटा. पर सतीश कभी अपनी माँ की बात नहीं टालता था.


सतीश : अच्छा ठीक है. रखो अब मै पहोचने वाला हु..


सरोज : अच्छा ठीक है. बाकि मै कल बताउंगी.


सतीश ने फोन काट दिया. वही दाई माँ ने सरोज और परमजीत को हिदायत दी.


दाई माँ : ज्या को मुजे कागज को फोटू दओ. और याद रखियो. तेरे बेटा ते कछु डायन की बात मत कर दीजो. बरना बे डायन को पता लग जाएगो.
( इस फोटो का मुजे कागज से बना फोटो दो. और याद रखना तेरे बेटे से उस डायन की कोई बात मत करना. नई तो उस डायन को पता चल जाएगा.)


सारा काम परमजीत ने बहोत अच्छे से कर दिया. सरोज और परमजीत रात होने के कारन वही दाई माँ के पास ही रुक गए. पर सुबह होते ही परमजीत ने उस स्क्र्रीनशॉट का प्रिंट फोटो निकलवा लिया.
 

Shetan

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Update 35


डॉ रुस्तम से सुनी अब तक की कहानी से कोमल एक बार फिर बेचैन हो गई. क्यों की डॉ रुस्तम ने एक तरफ का पूरा किस्सा सुनाया. जिसमे परमजीत और सतीश की माँ सरोज ने किन किन मुसीबत का सामना किया वो बताया. लेकिन कोमल बेचैन उस रात सतीश का हाल जान ने को बेताब हो रही थी. मगर डॉ रुस्तम ने उसे बिच मे बोलने का मौका नहीं दिया. क्यों की वो आगे का किस्सा सुनाने लगे. जो की सतीश के बारे मे ही था.


डॉ : सतीश जब शाम घर आया वो अपनी प्रॉब्लम को भूल चूका था. क्यों की उसके माइंड मे एक नई प्रॉब्लम ने जन्म ले लिया था. वो डोर नॉक करते यही सोच रहा था की माँ कब इन अंधश्रद्धांलू बातो को छोड़ेगी. की तभि एकदम से डोर खुला. और सामने माया का खूबसूरत चहेरा स्माइल करते नजर आया.


माया : ओह्ह आ गए तुम.


सायद उस वक्त सतीश पर माया के जादू का असर नहीं हो रहा था. वो अंदर आ गया. माया ने तुरंत डोर क्लोज कर दिया. भले ही सतीश पर माया के वसीकारण का असर ना हो रहा हो. पर उसे वो भी याद नहीं आ रहा था की बीते दो दिन से उसके साथ क्या क्या हो रहा है. सतीश माया से ज्यादा बाते नहीं कर रहा था. पर माया उसे बार बार पूछने की कोसिस जरूर कर रही थी.

उसने उस दिन भी चिकन ही बनाया था. सतीश फ्रेश होकर डिनर करने लगा. माया ने एक चीज नोट की की सतीश चिकन देख कर एक्साइड नहीं हुआ.


माया : कैसा था आज का दिन.


सतीश : ठीक ही था. मै आज ज्यादा थक गया हु. मुजे सोना है.


बोल कर सतीश अपने रूम मे आ गया. सतीश के दिमाग़ मे तो अपनी माँ के बताए कुछ रिचुअल्स ही घूम रहे थे. अपने हाथ से खून फर्श पर गिरना. वो रूम बंद कर के अपना बेग उठाता है. और बेड पर आके बैठ गया. उसने अपने बैग से एक कटर निकला. जो की सिर्फ वो वायर वगेरा छीन ने के लिए इस्तमाल करता था.

सतीश ने अपने हाथ के पंजे पर एक कट मारा. और एक पतली सी धार खून की टपकने लगी. उसका काम तो सिर्फ 2 बून्द से ही चल जाता. पर उसने उस से ज्यादा ही गिरा दिया. और तभि एकदम से डोर खुला. और माया अंदर आ गई. वो कुछ बोलने ही वाली थी की उसकी नजर सतीश के हाथ से टपकते खून पर ही रूक गई. वो लगातार उस खून को देखने लगी.


सतीश : जी भाभी जी???


माया सतीश के फर्श पर पड़े खून को बहोत प्यासी नजरों से देख रही थी. सतीश ने फिर माया को आवाज दी.


माया : भाभी.....


माया का एकदम से ध्यान टुटा और वो वापस रूम से बहार चली गई. सतीश सोच मे पड़ गया की माया को हुआ क्या. पर वो भी उसके पीछे नहीं गया. और डोर बंद कर के सो गया. इस बार पिछले दो दिन जैसे सतीश को गहेरी नींद नहीं आई थी. तक़रीबन रात के 2 बजे उसकी नींद खुली. उसे किसी के सिसकने की आवाज आने लगी. सतीश उठाकर बैठ गया. उसने जो देखा वो बहोत ही डरावना नजारा था. कोई औरत बिलकुल नंगी अपने दोनों हाथ पाऊ के बल पर जानवरो के जैसे निचे फर्श पर झूकी हुई है.

और वो झूक कर सतीश ने जो खून फर्श पर गिराया था. वो वही खून चाट रही थी. सतीश हैरान रहे गया. वो उस औरत को पहचान गया. वो माया ही थी. सतीश एकदम से डर गया. और चुप चाप बिना आवाज किए लेट गया. वो देख रहा था की काफ़ी देर तक माया सतीश का फर्श पर गिरा हुआ खून चाटती रही. पर जब वो खड़ी हुई तो सतीश ने एकदम से अपनी आंखे बंद कर ली.

वो सोने का नाटक करने लगा. माया उस रूम से चली गई. जब वो चली गई तब जाकर सतीश ने अपनी आंखे खोली. सतीश घबरा गया. उसे समझ ही नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है. उसके बाद सतीश को नींद नहीं आई. सुबह सतीश जल्दी उठकर ही तैयार होने लगा. माया ने उसके सामने नाश्ता रख दिया. पर सतीश ने खाने से मना कर दिया.


सतीश : नहीं भाभी. मुजे भूख नहीं है.


माया सतीश को गौर से देखने लगी.


माया : अच्छा ठीक है. चाय तो पी लो.


सतीश ने चाय का कप उठाया और पिने लगा. लेकिन चाय पिने के बाद वो सब भूल गया. वो माया से हस हस कर बाते करने लगा. और ख़ुशी खुशी ऑफिस के लिए निकल गया. इस बार जब वो डोर से बहार निकला तो डोर के पास उसे चिकेन का सर मिला.

पर सतीश ने उसे ऐसे नजर अंदाज़ कर लिया जैसे की सब नार्मल बात हो. वो ऑफिस के लिए निकल गया. बड़ी हैरानी की बात थी की रात हुई घटना अपनी आँखों के सामने देखने के बाद भी सतीश उस से पूरी तरह से घुल मिल गया था. जब सतीश कंपउंड का गेट खोल कर जाने लगा तो माया ने सतीश को आवाज दी.


माया : सतीश...


सतीश तुरंत ही रुक गया. और पलट कर माया को देखता है.


माया : (स्माइल) आज हमें बहार जाना है. मेरे दोस्त की पार्टी है.


सतीश : ठीक है. मै शाम को जल्दी वापस आ जाऊंगा.


बोल कर सतीश चल पड़ा. सतीश ऑफिस भी पहोच गया. मगर रात जो उसने घटना देखि. वो उसे याद तक नहीं आ रही थी.


ये सुनकर कोमल एकदम सॉक हो गई. और वो बोले बिना फिर नहीं रहे पाई.


कोमल : (सॉक) पर क्यों?? उसे ये सब कैसे याद नहीं रहा??? कैसे???


डॉ : क्यों की जब भी सतीश कुछ भी माया का दिया हुआ खाता. वो उसकी चपेट मे आता जा रहा था. रात सतीश ने कुछ नहीं खाया. इसी लिए वो वो सब देख पाया. जो उसके साथ पहले से हो रहा था.


कोमल : मतलब क्या माया रोज उसका खून पी रही थी???


डॉ : नहीं. खून पिने के डायानो के नियम होते है. वो दो दिनों तक अपने शिकार के साथ सम्भोग करती है. और तीसरे दिन खून पीती है. चौथे दिन वो दूसरी डायानो को भोग का न्योता देती है.


कोमल : मतलब की जो शाम किसी की पार्टी मे जाना है. वो दूसरी डायानो को सतीश का भोग देने वाली थी???


डॉ : बिलकुल. दूसरी चुड़ैले भी सतीश को भोगेगी. उसका खून पिएगी. अमूमन शिकार चौथे दिन ही दम तोड़ मर जाते है. नहीं तो फिर छठे दिन खुद चुड़ैल अपने शिकार को मार देती है.


कोमल : तो दाई माँ ने फिर सतीश को कैसे बचाया???


डॉ : बताता हु. सतीश तो ऑफिस के लिए निकल गया. पर वहां सरोज और परमजीत रात दाई माँ के पास ही रुक गए थे. जब वो सुबह सो कर उठे तब उन्होंने देखा की दाई माँ अब भी उसी अवस्था मे ध्यान मे बैठी हुई है. वो दोनों दाई माँ के पास गए.


दाई माँ : आज वा दूसरी डायन को दावत देगी. तेरो बेटा खतरे मे हते.


यह सुनकर सरोज और परमजीत हक्के बक्के रहे गए.


सरोज : (घबराहट) कुछ करो ना माई. मेरे बेटे को कैसे भी बचाओ.


परमजीत : क्या हम शाम होने से पहले सतीश की ऑफिस मे पहोच जाए तो???


दाई माँ : ज्याते का हेगो. सतीश को मै बषिकारण(वशीकरण) तो मिटा दऊँगी. मगर बे डायन हते. वाने सतीश को खून चखो हते. बे काउ पहोच जावेगी.
(उस से क्या होगा. मै उसका वशीकरण तो मिटा दूंगी. मगर उसने सतीश का खून चखा हुआ है. वो कही भी पहोच जाएगी)


परमजीत : तो अब?? अब क्या करें???


दाई माँ : कारणों का है. चलो दिल्ही.


परमजीत, सरोज और दाई माँ सुबह सुबह ही बस पकड़ कर दिल्ही के लिए निकल गए. वो लोग दोपहर 3 बजे तक दिल्ही पहोच गए. परमजीत पढ़ी लिखी थी. उसने काम जल्दी संभाल लिया. जल्दी एक छोटी मोटी होटल मे कमरा ले लिया. वो तीनो वही रुक गए.
 

komaalrani

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Update 33

डॉ रुस्तम सतीश की कहानी लगातार सुनते रहे. जिसे कोमल बलबीर और दाई माँ सुन रही थी.


डॉ : सतीश को जब एहसास हुआ. वो तुरंत आगे निकल गया. उसने कंपउंड का गेट खोला और बहार निकल कर चलते गया. जैसे उसके मन मे कोई डर हो. वो पीछे मुड़कर एक बार भी नहीं देखता. जब वो घर से थोड़ा दूर पहोंचा. तब जाकर उसने चैन की सांस ली.


कोमल : लेकिन उसे डर किस चीज का लग रहा था. जब की अब तक उसने कुछ ऐसा देखा तक नहीं था.


डॉ : ये तो वो खुद भी नहीं जानता था. लेकिन हमारे अंदर जो इन्द्रिया होती है.

वो बिना कुछ देखे भी कभी कभी आने वाली मुसीबत के लिए आगाह करती है. दूर जाकर सतीश को भी कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था. माया के बिना कुछ किए भी सतीश को उस से डर लगने लगा था. पर दूर पहोचने पर उसने किसी चीज पर गोर किया तो वो था जो डोर के पास पड़ा वो मांस का टुकड़ा. वो किस चीज का था.

ना कोई पक्षी की उस पर नजर पड़ रही थी. ना उसपर मखिया भीन भीना रही थी. और ना ही उसपर चीटिया थी. सतीश जैसे तैसे जल्दी से जल्दी अपने ऑफिस पहोच गया. वहां उसका लेक्चर था. वो लेक्चर एटेंट करता है. ब्रेक हुआ तब उसने अपना मोबइल देखा. वो हैरान रहे गया. परमजीत के लगभग 100 से ज्यादा मिस्स्कॉल थे. सिर्फ उसके ही नहीं घर से भी कई सारे मिस्स्कॉल थे.

सतीश अपनी माँ बहेनो से परमजीत को मिलवा चूका था. और उसकी माँ बहने परमजीत को पसंद भी करती थी. उनकी तरफ से परमजीत के लिए हा थी. सतीश ने तुरंत परमजीत को कॉल बैक किया. सामने से परमजीत ने कॉल पिक किया. और सतीश को वो खरी खोटी सुनाई. जो की उसे सब शादी के बाद सुन नी चाहिये थी.


परमजीत : हेलो क्या तुम ठीक हो??? क्या हो गया. क्यों कॉल नहीं एटेंट किया???


सतीश : अरे मे जल्दी सो गया था.


परमजीत : (गुस्सा) अच्छा... जल्दी सो गए थे. तो उस से पहले एक मैसेज तो कर देते. और सुबह. तुम सुबह तो फोन उठा सकते थे ना. पता है माँ कितना परेशान है. मै परेशान हूँ. तुम्हारी दोनों बहने परेशान है. और तुम हो की अब फोन कर रहे हो.


सतीश : मुजे माफ कर दो परम. दुबारा ऐसा नहीं होगा. मै अब हर चीज का खयाल रखूँगा. और प्लीज माँ से कहना की मै शाम को कॉल करूँगा. वो परेशान ना हो.


परमजीत का गुस्सा शांत हो गया. उसे सतीश की फिकर थी. सतीश ठीक है. ये जानकर ही वो खुश थी.


परमजीत : क्या हुआ तुम pg के लिए मकान देखने गए थे?? क्या तुम उसी मकान मे जाओगे??? या फिर कोई और मकान तालाशोंगे???


सतीश जब पहेली बार माया से मिला. वो मकान देखा तब उसने अपनी माँ और परमजीत को माया और उसके मकान के बारे मे बता दिया था. पर उसने ये नहीं बताया की वो उसी मकान मे रहने भी चले गया.


सतीश : अरे मेने तो कल शाम को ही वहां सिफ्ट कर लिया. माया भाभी बहोत कम किराया जो ले रही है.


परमजीत को ये अच्छा नहीं लगा. उसे जलन होने लगी.


परमजीत : हा हा किराया भी क्यों लेगी. पति दूर विदेश मे है. सास घर मे नहीं है. कही डोरे तो नहीं डाल रही तुम पर.


सतीश : अरे नहीं नहीं. वो तो बहोत अच्छी है. दरसल वो दिल्ली के आउटर मे रह रही है. इसी लिए उन्हें डर लगता है. और उनकी सास भी कल परसो तक आ ही जाएगी. सरीफ इंसान देख कर मुझपे भरोसा जताया है.


परमजीत : हम्म्म्म.. शाम को वीडियो कॉल करना. मै भी तो देखु. केसी है वो.


सतीश समझ गया की परमजीत को थोड़ी जलन हो रही है. वो हस पड़ा. पर उसे ये नहीं पता था की जिस माया से उसे डर लगने लगा था. उसी माया की वो अपनी गर्लफ्रेंड से सिफारिस कर रहा था की वो बहोत अच्छी है.


सतीश : अच्छा चलो फोन रखता हूँ. रात को कॉल करूँगा.


सतीश ने कॉल कट कर दिया. वो खुश क्यों है. ये उसे खुद भी नहीं पता था. वो दिन भर की ट्रेनिंग पूरी कर के शाम होते वापस वही चल दिया. सतीश वापस वही माया के घर पहोंचा. वो भूल गया की उसे सुबह के वक्त माया से डर लग रहा था. सतीश माया से बहोत अच्छी तरह से बात कर रहा था. हाथ मुँह धोकर वो माया के साथ खाना खाने बैठ गया. जब माया ने बर्तन का ढक्कन हटाया तो उसमे बकरे के मीट की खुश्बू थी.


सतीश : (स्माइल) अरे वाह. बकरा...


माया खिल खिलाकर हसने लगी. और उसे मीट परोस देती है. साथ मे रोटी और चावल था. सतीश बड़ी चाव से खाना खा रहा था. माया भी उसके साथ ही खा रही थी. पर वो सिर्फ मीट मीट खा रही थी. सतीश ने माया पर ध्यान ही नहीं दिया. माया सतीश से सवाल करने लगी. माया जो भी पूछती. वो सब सतीश सच सच बता रहा था.

माया ज्यादातर सतीश से परमजीत के बारे मे ही पूछ रही थी. सतीश ने दोपहर ट्रेनिंग पर जो परमजीत से बात करी थी. वो सब भी सतीश ने माया को बता दिया. पर खाना खाने के बाद हाथ धोते वक्त माया ने एक सवाल पूछा. और जैसे सतीश को उसी वक्त होश आया हो.


माया : क्या तुम्हारी परमजीत बहोत सुंदर है क्या?? ऐसा क्या है जो तुम उसके बिना रहे नहीं पाते?? उसे फोन करना जरुरी है क्या??


सतीश एकदम से रुक गया. जैसे उसमे हिम्मत आ गाइ हो.


सतीश : देखो भाभी जी. आपने मुजे बहोत कम पेसो मे रहने के लिए यह मकान दिया. इसके लिए मै आप का बहोत शुक्र गुजार हूँ. पर इसका मतलब यह नहीं की आप मेरी प्रसनल जिंदगी मे दखल दे.


बोलकर सतीश अपने रूम मे घुस गया. सतीश सोच ही रहा था की तभि उसके फोन पर कॉल आया. रिंग आते ही उसने फोन की तरफ देखा. वो कॉल परमजीत का था. और वो वीडियो कॉल था. सतीश ने तुरंत ही कॉल पिक किया. वो स्पीकर पर कर के बात करने लगा. परमजीत और सतीश दोनों एक दूसरे को देख सकते थे.


परमजीत : (स्माइल ) हा तो जनाब कहा है तुम्हारी भाभी. हमें भी तो दिखाओ.


बाते करते परमजीत माया को देखने की बात कर रही थी की तभि उसने देखा की सतीश के पीछे साइड मे कोई आकर खड़ा हो गया. परमजीत का तो मनो एकदम से चहेरा ही फीका पड़ गया. एकदम से उसके होश ही उड़ गए. उसकी एकदम से स्माइल चली गई.


परमजीत : (घबराहट) सतीश पीछे देखो. सतीश...


सतीश तुरंत ही पीछे देखता है. माया खड़ी मुस्कुरा रही थी. वो हॉट नाईटी मे खड़ी थी. जिसमे से उसका जोबन बहार झलक रहा था. पर सतीश को जैसे कोई फर्क ना पड़ा हो. वो स्माइल करता है.


सतीश : अरे आओ भाभी. तुम्हे परम से मिलवाता हु. ये देखो परम. जिस से मै शादी करने वाला हु.


माया ने स्क्रीन पर परमजीत को देखा. और स्माइल देते हुए बस हा मे गर्दन हिलाई.


स्टोरी के बिच कोमल रहे नहीं पाई. और वो बोल पड़ी.


कोमल : पर परमजीत को गुस्सा आना चाहिये था. वो घबरा क्यों गई. क्या वो माया को पहले से जानती थी. या कही देखा होगा???


डॉ : नहीं..... क्यों की जो परमजीत को दिख रहा था. वो सतीश को नहीं दिख रहा था. और जो सतीश देख रहा था. वो परमजीत को नहीं दिख रहा था.


कोमल : और वो क्या था.


डॉ : पराजित ने देखा की सतीश के पीछे एक काले कपड़ो मे एक बुढ़िया आकर खड़ी है. जिसके चहेरे पर मक्कीया भीन भीना रही है. जिसका चहेरा बहोत गन्दा सड़ा हुआ है.



ये सुन ने के बाद सारे स्तब्ध रहे गए. दो मिनट तक कोई कुछ बोल ही नहीं पाया.
दोनों ही अपडेट बहुत अच्छे थे। अब कहानी में गति आ गयी है। तेजी से बढ़ती कहानी में भी आप इतना अच्छा घटनाओं का पात्रों का चित्र खींचती है की क्या कहना , लगता है सब कुछ सामने हो रहा है।

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बहुत बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए।
 
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komaalrani

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Update 35


डॉ रुस्तम से सुनी अब तक की कहानी से कोमल एक बार फिर बेचैन हो गई. क्यों की डॉ रुस्तम ने एक तरफ का पूरा किस्सा सुनाया. जिसमे परमजीत और सतीश की माँ सरोज ने किन किन मुसीबत का सामना किया वो बताया. लेकिन कोमल बेचैन उस रात सतीश का हाल जान ने को बेताब हो रही थी. मगर डॉ रुस्तम ने उसे बिच मे बोलने का मौका नहीं दिया. क्यों की वो आगे का किस्सा सुनाने लगे. जो की सतीश के बारे मे ही था.


डॉ : सतीश जब शाम घर आया वो अपनी प्रॉब्लम को भूल चूका था. क्यों की उसके माइंड मे एक नई प्रॉब्लम ने जन्म ले लिया था. वो डोर नॉक करते यही सोच रहा था की माँ कब इन अंधश्रद्धांलू बातो को छोड़ेगी. की तभि एकदम से डोर खुला. और सामने माया का खूबसूरत चहेरा स्माइल करते नजर आया.


माया : ओह्ह आ गए तुम.


सायद उस वक्त सतीश पर माया के जादू का असर नहीं हो रहा था. वो अंदर आ गया. माया ने तुरंत डोर क्लोज कर दिया. भले ही सतीश पर माया के वसीकारण का असर ना हो रहा हो. पर उसे वो भी याद नहीं आ रहा था की बीते दो दिन से उसके साथ क्या क्या हो रहा है. सतीश माया से ज्यादा बाते नहीं कर रहा था. पर माया उसे बार बार पूछने की कोसिस जरूर कर रही थी.

उसने उस दिन भी चिकन ही बनाया था. सतीश फ्रेश होकर डिनर करने लगा. माया ने एक चीज नोट की की सतीश चिकन देख कर एक्साइड नहीं हुआ.


माया : कैसा था आज का दिन.


सतीश : ठीक ही था. मै आज ज्यादा थक गया हु. मुजे सोना है.


बोल कर सतीश अपने रूम मे आ गया. सतीश के दिमाग़ मे तो अपनी माँ के बताए कुछ रिचुअल्स ही घूम रहे थे. अपने हाथ से खून फर्श पर गिरना. वो रूम बंद कर के अपना बेग उठाता है. और बेड पर आके बैठ गया. उसने अपने बैग से एक कटर निकला. जो की सिर्फ वो वायर वगेरा छीन ने के लिए इस्तमाल करता था.

सतीश ने अपने हाथ के पंजे पर एक कट मारा. और एक पतली सी धार खून की टपकने लगी. उसका काम तो सिर्फ 2 बून्द से ही चल जाता. पर उसने उस से ज्यादा ही गिरा दिया. और तभि एकदम से डोर खुला. और माया अंदर आ गई. वो कुछ बोलने ही वाली थी की उसकी नजर सतीश के हाथ से टपकते खून पर ही रूक गई. वो लगातार उस खून को देखने लगी.


सतीश : जी भाभी जी???


माया सतीश के फर्श पर पड़े खून को बहोत प्यासी नजरों से देख रही थी. सतीश ने फिर माया को आवाज दी.


माया : भाभी.....


माया का एकदम से ध्यान टुटा और वो वापस रूम से बहार चली गई. सतीश सोच मे पड़ गया की माया को हुआ क्या. पर वो भी उसके पीछे नहीं गया. और डोर बंद कर के सो गया. इस बार पिछले दो दिन जैसे सतीश को गहेरी नींद नहीं आई थी. तक़रीबन रात के 2 बजे उसकी नींद खुली. उसे किसी के सिसकने की आवाज आने लगी. सतीश उठाकर बैठ गया. उसने जो देखा वो बहोत ही डरावना नजारा था. कोई औरत बिलकुल नंगी अपने दोनों हाथ पाऊ के बल पर जानवरो के जैसे निचे फर्श पर झूकी हुई है.

और वो झूक कर सतीश ने जो खून फर्श पर गिराया था. वो वही खून चाट रही थी. सतीश हैरान रहे गया. वो उस औरत को पहचान गया. वो माया ही थी. सतीश एकदम से डर गया. और चुप चाप बिना आवाज किए लेट गया. वो देख रहा था की काफ़ी देर तक माया सतीश का फर्श पर गिरा हुआ खून चाटती रही. पर जब वो खड़ी हुई तो सतीश ने एकदम से अपनी आंखे बंद कर ली.

वो सोने का नाटक करने लगा. माया उस रूम से चली गई. जब वो चली गई तब जाकर सतीश ने अपनी आंखे खोली. सतीश घबरा गया. उसे समझ ही नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है. उसके बाद सतीश को नींद नहीं आई. सुबह सतीश जल्दी उठकर ही तैयार होने लगा. माया ने उसके सामने नाश्ता रख दिया. पर सतीश ने खाने से मना कर दिया.


सतीश : नहीं भाभी. मुजे भूख नहीं है.


माया सतीश को गौर से देखने लगी.


माया : अच्छा ठीक है. चाय तो पी लो.


सतीश ने चाय का कप उठाया और पिने लगा. लेकिन चाय पिने के बाद वो सब भूल गया. वो माया से हस हस कर बाते करने लगा. और ख़ुशी खुशी ऑफिस के लिए निकल गया. इस बार जब वो डोर से बहार निकला तो डोर के पास उसे चिकेन का सर मिला.

पर सतीश ने उसे ऐसे नजर अंदाज़ कर लिया जैसे की सब नार्मल बात हो. वो ऑफिस के लिए निकल गया. बड़ी हैरानी की बात थी की रात हुई घटना अपनी आँखों के सामने देखने के बाद भी सतीश उस से पूरी तरह से घुल मिल गया था. जब सतीश कंपउंड का गेट खोल कर जाने लगा तो माया ने सतीश को आवाज दी.


माया : सतीश...


सतीश तुरंत ही रुक गया. और पलट कर माया को देखता है.


माया : (स्माइल) आज हमें बहार जाना है. मेरे दोस्त की पार्टी है.


सतीश : ठीक है. मै शाम को जल्दी वापस आ जाऊंगा.


बोल कर सतीश चल पड़ा. सतीश ऑफिस भी पहोच गया. मगर रात जो उसने घटना देखि. वो उसे याद तक नहीं आ रही थी.


ये सुनकर कोमल एकदम सॉक हो गई. और वो बोले बिना फिर नहीं रहे पाई.


कोमल : (सॉक) पर क्यों?? उसे ये सब कैसे याद नहीं रहा??? कैसे???


डॉ : क्यों की जब भी सतीश कुछ भी माया का दिया हुआ खाता. वो उसकी चपेट मे आता जा रहा था. रात सतीश ने कुछ नहीं खाया. इसी लिए वो वो सब देख पाया. जो उसके साथ पहले से हो रहा था.


कोमल : मतलब क्या माया रोज उसका खून पी रही थी???


डॉ : नहीं. खून पिने के डायानो के नियम होते है. वो दो दिनों तक अपने शिकार के साथ सम्भोग करती है. और तीसरे दिन खून पीती है. चौथे दिन वो दूसरी डायानो को भोग का न्योता देती है.


कोमल : मतलब की जो शाम किसी की पार्टी मे जाना है. वो दूसरी डायानो को सतीश का भोग देने वाली थी???


डॉ : बिलकुल. दूसरी चुड़ैले भी सतीश को भोगेगी. उसका खून पिएगी. अमूमन शिकार चौथे दिन ही दम तोड़ मर जाते है. नहीं तो फिर छठे दिन खुद चुड़ैल अपने शिकार को मार देती है.


कोमल : तो दाई माँ ने फिर सतीश को कैसे बचाया???


डॉ : बताता हु. सतीश तो ऑफिस के लिए निकल गया. पर वहां सरोज और परमजीत रात दाई माँ के पास ही रुक गए थे. जब वो सुबह सो कर उठे तब उन्होंने देखा की दाई माँ अब भी उसी अवस्था मे ध्यान मे बैठी हुई है. वो दोनों दाई माँ के पास गए.


दाई माँ : आज वा दूसरी डायन को दावत देगी. तेरो बेटा खतरे मे हते.


यह सुनकर सरोज और परमजीत हक्के बक्के रहे गए.


सरोज : (घबराहट) कुछ करो ना माई. मेरे बेटे को कैसे भी बचाओ.


परमजीत : क्या हम शाम होने से पहले सतीश की ऑफिस मे पहोच जाए तो???


दाई माँ : ज्याते का हेगो. सतीश को मै बषिकारण(वशीकरण) तो मिटा दऊँगी. मगर बे डायन हते. वाने सतीश को खून चखो हते. बे काउ पहोच जावेगी.
(उस से क्या होगा. मै उसका वशीकरण तो मिटा दूंगी. मगर उसने सतीश का खून चखा हुआ है. वो कही भी पहोच जाएगी)


परमजीत : तो अब?? अब क्या करें???


दाई माँ : कारणों का है. चलो दिल्ही.


परमजीत, सरोज और दाई माँ सुबह सुबह ही बस पकड़ कर दिल्ही के लिए निकल गए. वो लोग दोपहर 3 बजे तक दिल्ही पहोच गए. परमजीत पढ़ी लिखी थी. उसने काम जल्दी संभाल लिया. जल्दी एक छोटी मोटी होटल मे कमरा ले लिया. वो तीनो वही रुक गए.
कहानी में मानवीय पक्ष, सस्पेंस, थ्रिल सब कुछ है। पढ़ने वालो को अंत तक बाँध कर रखती है, दाई माँ का चरित्र तो शुरू से ही जबरदस्त रहा है और लोक भाषा का इस्तेमाल उसे और जमीन के नजदीक ले जाता है । और जिस तरह आप पाठको को छोड़ती हैं, हम सब इन्तजार करेंगे की डायन का आखिरी मुकाबला कैसे हुआ।

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एक बार फिर आभार, इस उत्कृष्ट लेखन के लिए।
 
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