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Romance काला इश्क़! (Completed)

H E Y W I Z Z A R D

Devil 😈 calls me DAD
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दग़ा - The Twist!

update 59

दिन बीते...महीने बीते...और सब कुछ सही चल रहा था...... कम से कम मुझे तो यही लग रहा था! मेरे अकाउंट में लाख रुपये कॅश और बाकी के 4 लाख की मैंने FD करा दी थी जो अगले साल मार्च में mature होने वाली थी| इधर मैंने बैंगलोर में लोकैलिटी फाइनल कर ली थी, ऋतू के डाक्यूमेंट्स जैसे PAN Card, Aadhaar Card और Election Card सब मेरे ही एड्रेस से तैयार हो गए थे| ऋतू का बैंक अकाउंट भी खोला जा चूका था जिसके बारे में मेरे और ऋतू के आलावा किसी को कोई भनक नहीं थी| हमारे गायब होते ही सब मेरा अकाउंट चेक करते पर किसी को तो पता नहीं की ऋतू का भी कोई बैंक अकाउंट है! मुझे बस भागने से कुछ दिन पहले अपने अकाउंट से सारे पैसे निकाल कर ऋतू के बैंक में कॅश जमा करने थे| बस एक ही काम बचा था वो था ट्रैन की टिकट, जिसे मैंने पहले बुक नहीं कर सकता था| कारन ये की जिस दिन हम भागते उस दिन के चार्ट में हमारा नाम होता और सब को पता चल जाता की ये दोनों कहाँ भागे हैं| इसलिए जिस दिन भागना था उससे एक दिन पहले मुझे तत्काल टिकट लेनी थी, वो भी कुछ इस तरह की लखनऊ से वाराणसी पहुँचने के बाद आधे घंटे के अंदर ही दूसरी ट्रैन चाहिए थी जो हमें मुंबई उतारती और वहाँ से फिर आधे घंटे में दूसरी टिकट जो बैंगलोर छोड़ती! मैंने एक बैक-आप प्लान भी बना रखा था की अगर ट्रैन लेट हो गई तो हमें बस लेनी होगी| लखनऊ में कहाँ से ट्रैन पकड़नी थी वी जगह भी तय थी, स्टेशन से ट्रैन पकड़ना खतरनाक था क्योंकि सब सबसे पहले हमें ढूंढते हुए वहीँ आते| इसलिए मैंने रेलवे फाटक देख रखा था, इस फाटक पर हमेशा जाम रहता था और हरबार ट्रैन यहाँ स्लो होती और फिर करीब मिनट भर बाद ही आगे जाती थी| किसी भी हालत में कोई भी हमें ढूंढता हुआ यहाँ नहीं आ सकता था! मतलब प्लान बिलकुल सेट था और मैंने उसमें कोई भी लूपहोल नहीं छोड़ा था!!!!

खेर ये तो रही प्लान की बात, पर अब तो मेरा जन्मदिन आ ने वाला था और क्योंकि इस बार जन्मदिन वीकडे पर पड़ना था तो मैंने पहले ही छुट्टी ले ली थी| प्लान तो था की ऋतू को में एक दिन पहले ही उसके हॉस्टल से ले आऊंगा पर जब उसने बताया की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और कुछ lectures भी हैं तो मैंने उससे कहा की अगले दिन वो हाल्फ डे में इधर भाग आये|

दो तारिक आई, मेरा जन्मदिन अगले दिन था और घडी में रात के साढ़े बारह बजने को आये थे पर अभी तक ऋतू ने मुझे कॉल करके wish नहीं किया था| हर साल वो ठीक बारह बज कर एक मिनट पर मुझे काल किया करती थी पर इस बार इतनी लेट कैसे हो गई?! फिर मैंने सोचा की शायद कॉलेज से थक कर आयी होगी और सो गई होगी, कोई बात नहीं कल wish कर देगी ये सोचते हुए मैंने फ़ोन को तकिये के नीचे रख दिया और तभी मेरे फ़ोन पर बर्थडे के wish वाला मैसेज आया जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने जवाब में उसे ढेर सारी चुम्मियों वाली स्माइली के साथ थैंक यू का मैसेज भेजा पर उसके बाद वो ऑफलाइन हो गई, मैंने बात को दरगुज़र किया और मुस्कुराते हुए सो गया| सुबह से ऑफिस के सभी दोस्तों के मैसेज आने लगे थे, घर से भी फ़ोन पर बधाइयाँ आने लगी थी| ऋतू के आने तक मैं बस यही सोच रहा था की घर से भागने से पहले ये मेरा आखरी जन्मदिन होगा और फिर अगले जन्मदिन पर मैं और ऋतू एक साथ बैंगलोर में अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहे होंगे|

अरुण और सिद्धार्थ ने इस बार जर्रूर कहा था की पार्टी करते हैं पर मैंने उन्हें ये कह कर टाल दिया की अगर ऋतू को पार्टी दिए बिना तुम्हारे साथ पार्टी की तो वो नराज हो जाएगी| दोनों ने मिल कर मेरा बड़ा मजाक उड़ाया की देखो शादी से पहले ये हाल है तो शादी के बाद क्या होगा?!


खेर मैं फ्रेश हो कर नाश्ता बना रहा था की तभी ऋतू का मैसेज आया की वो बारह बजे आएगी और मैं इस ख़ुशी में अपने फोन पर गाने लगा कर कुछ ख़ास बनाने की तैयारी करने लगा और नाचता हुआ इधर से उधर घर में घूम रहा था| साढ़े बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई, तो मैंने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला और ऋतू को प्यार से घर के अंदर आने का निमंत्रण दिया| ऋतू भी अंदर आ गई और उसने मेरे फ़ोन में बज रहे गानों को एकदम से बंद कर दिया, मैंने आगे बढ़ कर उसे गले लगाना चाहा तो उसने अपने हाथ को मेरी छाती पर रख के रोक दिया| मुझे उसका ये व्यवहार बड़ा अजीब लगा पर जब उसके चेहरे पर नजर गई तो वो बहुत सीरियस थी|

"आपसे कुछ बात करनी है|" इतना कह कर उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर बिठाते हुए कहा| वो ठीक मेरे सामने खड़ी हो गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;
ऋतू: मैंने बहुत सोचा… ह....हमारा ये....घर से भागने .....का प्लान सही नहीं!

ऋतू ने बहुत डरते-डरते कहा, पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया पर फिर मुझे एहसास हुआ की जब हम कोई खतरनाक कदम उठाते हैं तो दिल में एक डर होता है और मुझे ऋतू के इसी डर का निवारण करना होगा|

मैं: अच्छा पहले ये बता की तुझे क्यों लगता है की ये फैसला गलत है? (मैंने बहुत प्यार से पुछा|)

ऋतू: कोई स्टेबल लाइफ नहीं होगी हमारी.... दरबदर की ठोकरें खाना... और फिर हर पल डर के साये में जीना....

मैं: जान! थोड़ा स्ट्रगल है पर वो हम मिल कर एक साथ करेंगे! लाइफ में हर इंसान को थोड़ा-बहुत स्ट्रगल तो करना ही पड़ता है ना? फिर तु अकेली नहीं हो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ|

ऋतू: पर मुझसे ये स्ट्रगल नहीं होगा! एक महीने की जॉब में मेरा मन ऊब गया और मैं ही जानती हूँ की ये पार्ट टाइम जॉब मैंने कैसे किया, तो फुल टाइम जॉब कैसे करुँगी?

मैं: तुझे कोई जॉब करने की जर्रूरत नहीं है| मैंने तुम्हें जब शादी के लिए उस दिन प्रोपोज़ किया था, तब तुमसे वादा किया था की मैं तुझे पलकों पर बिठा कर रखूँगा, कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा! ये देख 4 लाख की FD और आज की डेट में मेरे पास 1 लाख रुपया कॅश में है, हमारे भागने तक अकाउंट में कम से कम 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नै जिंदगी शुरू कर सकते हैं!

मैंने ऋतू को FD की रिसीप्ट और बैंक की पास बुक दिखाई पर उसे तसल्ली अब भी नहीं हुई थी|


मैं: अच्छा ये देख, बैंगलोर में हमें किस लोकैलिटी में रखना है, वहाँ तक कैसे पहुँचना है और job ऑफर्स सब लिखे हैं इसमें|

ये कहते हुए मैंने ऋतू को अपनी डेरी दिखाई जिसमें मैंने सब कुछ फाइनल कर के रेडी कर रखा था| पर मुझे ये जानकर हैरानी हुई की ऋतू का डायरी देखने में जरा भी इंटरेस्ट नहीं था| मतलब की बात कुछ और थी और अभी तक वो बस बहाने बना रही थी|

मैं: देख ऋतू, तो कुछ छुपा रही है मुझसे| यूँ बहाने मत बना और सच-सच बता की बात क्या है? (मैंने ऋतू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामते हुए कहा|)

ऋतू की नजरें झुक गेन और उसने सच बोलने में पूरी शक्ति लगा दी;

ऋतू: मैं किसी और को चाहने लगी हूँ?

अब ये सुनते ही मेरा खून खोल गया और मैंने ऋतू के चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएँ गाल पर मारा|

मैं: कौन है वो हरामी?

मैंने गरजते हुए कहा, पर ऋतू डर के मारे सर झुकाये रोने लगी और कुछ नहीं बोली| मैंने ऋतू के दोनों कन्धों को पकड़ कर उसे झिंझोड़ा और उससे दुबारा पुछा;

मैं: बोल कौन है वो?

ऋतू सहम गई और डरते हुए बोली;

ऋतू: र....राहुल

ये नाम सुन कर मैंने उसके कन्धों को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और सर झुका कर बैठ गया| मेरा मन मान ही नहीं रहा था की ये सब हो रहा है! तभी ऋतू ने हिम्मत बटोरी और बोली;

ऋतू: वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है और शादी करना चाहता है!

ये सुन कर मैंने ऋतू की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में वही आत्मविश्वास नजर आया जो उस दिन दिखा था जब ऋतू ने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया था| मेरी आँखों में आँसू आ गए थे क्योंकि मेरे सारे सपने चकना चूर हो चुके थे और रह-रह कर मेरे दिल में गुस्सा भरने लगा था, ऐसा गुस्सा जो कभी भी फुट सकता था| पर ऋतू इस बात से अनजान और मेरी आँखों में आँसू देख उसमें हिम्मत आने लगी थी, आज तो जैसे उसने इस रिश्ते को हमेशा से खत्म कर देने की कसम खा ली थी इसलिए वो आगे बोली; "कॉलेज ट्रिप पर हम बहुत नजदीक आ गए! उसने मुझसे ना केवल अपने प्यार का इजहार किया बल्कि मुझे शादी के लिए भी प्रोपोज़ किया! मैं उसे मना नहीं कर पाई क्योंकि वो मुझे एक स्टेबल लाइफ दे सकता है! फिर आप ये भी तो देखो की आपकी और मेरी age में कितना फासला है?!

ऋतू को एहसास नहीं हुआ की जोश-जोश में वो असली सच बोल गई जिसे सुनते ही मेरा गुस्सा फुट पड़ा और मैंने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर मारा और उसे जमीन पर धकेल दिया| मैं बहुत जोर से उस पर चिल्लाया; "ये था ना तेरा प्यार? तुझे सिर्फ ऐशों-आराम की जिंदगी जीनी थी ना? मन भर गया न तेरा मुझसे? तो साफ़-साफ़ बोल देती ये उम्र का फासला कहाँ से आगया? ये तब याद नहीं आया था जब मुझसे पहली बार अपने प्यार का इज़हार किया था तूने? Fuck बहनचोद! मैं ही चूतिया था जो तेरे चक्कर में पड़ गया|” ऋतू का बायाँ हाथ उसके गाल पर था और वो सर झुकाये वहीँ खड़ी थी, पर उसे देख कर मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| मैंने एक आखरी बार कोशिश की और अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा, उसकी आँखों में झांकते हुए कहा: "प्लीज बोल दे तू मजाक कर रही थी? प्लीज .... प्लीज .... मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ|" पर उसकी आँखों में आँसूँ बाह निकले थे और उसकी आंखें सब सच बता रहीं थी की अब तक जिस दिल पर मेरा नाम लिखा था उसे तो वो कब का अपने जिस्म से निकाल कर कचरे में डाल चुकी है| "तू...तू जानती है वो लड़का किसका बेटा है? और उसके बाप ने तेरे....." मेरे आगे कहने से पहले ही ऋतू ने हाँ में सर हिलाया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "जानती हूँ... उसके पापा ने पंचायत में मेरी माँ को मौत की सजा सुनाई थी|"

"और ये जानते हुए भी तू उससे प्यार करती है?"

"गलती मेरी माँ की थी, उसने शादीशुदा होते हुए भी किसी और से प्यार किया|" ऋतू ने सर झुकाये हुए कहा, जैसे की उसे अपनी माँ के किये पर शर्म आ रही थी|

"गलती? और जो तूने की वो क्या थी?" मेरा मतलब हम दोनों के प्यार से था|

"उसी गलती को तो सुधारना चाहती हूँ|" उसका जवाब सुनते ही मेरे तन बदन में आग लग गई और मैंने उसके गाल पर एक और तमाचा जड़ दिया| "तो ये प्यार तेरे लिए गलती था? उस टाइम तो तू मरने के लिए तैयार थी और अब तुझे वही प्यार गलती लग रहा है?" ऋतू फिर चुप हो गई थी| अब मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा था, मैं हार मानते हुए अपने घुटनों के बल आ गिरा और अपने दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ा| मेरी आँखों से खून के आँसूँ बह निकले थे; "क्यों? .... क्यों किया तूने ऐसा मेरे साथ? क्यों मुझ जैसे पत्थर दिल को प्यार करने पर मजबूर किया और जब तेरा दिल भर गया तो मुझे छोड़ दिया| मैंने मना किया था...कहा था ....पर..." मैंने फूटफूटकर रोते हुए कहा| ऋतू खड़ी होकर मेरे पास आई मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "हम अच्छे दोस्त तो रह सकते हैं?" ये सुनते ही मैंने उसका हाथ झिड़क दिया; "Fuck you and fuck your dosti! Now get the fuck out of my house! And I curse you…. I curse you that you’ll be never be happy… you’ll suffer… so bad that every day… every fucking day will be like hell for you! You’ll beg for this misery to end but it’ll get worse ….worse till everything you love is lost forever!” इतना सुन के ऋतू रोती-बिलखती हुई दरवाजा जोर से बंद कर के चली गई| उसके जाने के बाद तो जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं बची थी और मैं निढाल होकर उसी जमीन पर गिर पड़ा और रोता रहा| रह-रह कर ऋतू की सारी बातें याद आने लगी जिससे दिमाग में और गुस्सा आता और गुस्से में आ कर मैं जमीन में मुक्के मारने लगता पर मेरे दिल का दर्द बढ़ता ही जा रहा था| शाम 5 बजे तक मैं जमीन पर पड़ा हुआ यूँ ही रोता रहा, पर जब फिर भी दिल का दर्द कम नहीं हुआ तो मैं उठा और अपने दिल के दर्द को कम करने के लिए दारु लेने निकल पड़ा|

जेब में जितने पैसे थे सबकी दारु खरीद ली और घर लौट आया| जैसे ही दारु की बोतल खोलने लगा तो वो दिन याद आया जब ऋतू से वादा किया था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा| जैसे ही ऋतू की याद आई अंदर गुस्सा भरने लगा और जोश में आ कर मैंने बोतल सीधा मुँह से लगाईं और एक बड़ा घूँट भरा, जैसे ही घूँट गले से निकला तो गाला जलने लगा| पर ये जलन उस दर्द से तो कम थी जो दिल में हो रहा था| अगला घूँट भरा तो वो दिन याद आने लगा जब ऋतू से मैंने अपने दिल की बात की कही, वो हमारा रोज फ़ोन पर बात करना ... उसका बार-बार मेरी बाहों में सिमट जाना.... उसका बार-बार मुझे Kiss करना और बेकाबू हो जाना.... वो हर एक पल जो मैंने उसके साथ बिताया था उसे याद कर के मैं पूरी की पूरी बोतल गटक गया और फिर बेसुध वहीँ जमीन पर लेट गया| मुझे कोई होश-खबर नहीं थी की मैं कहाँ पड़ा हूँ, सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह के ग्यारह बजे मेरे फ़ोन की घंटी ताबड़तोड़ बजने लगी और मैं कुनमुनाता हुआ उठा और बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा लिया;

मैं: हम्म्म...

बॉस: कहाँ पर है?

मैं: ममम...

बॉस: ग्यारह बज रहे हैं! तू अभी तक घर पर पड़ा है? शर्मा जी की फाइल कौन देगा? जल्दी ऑफिस आ!


ये सुनकर मुझे थोड़ा होश आया पर सर दर्द से फटा जा रहा था और बॉस की जोरदार आवाज कानों में दर्द करने लगी थी, इसलिए मैंने उनका फ़ोन ऐसे ही जमीन पर रख दिया और अपनी ताक़त बटोर के उठने को हुआ तो लड़खड़ा गया| फिर मैंने दुबारा उठने की कोशिश नहीं की और फिर से सो गया| करीब 1 बजे फिर से बॉस का फ़ोन आया पर मैं ने फ़ोन नहीं उठाया और फ़ोन ही बंद कर दिया| उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था बस मुझे नशे में सोना था और ये भी होश नहीं था की मैं फर्श पर ही नींद में मूत रहा हूँ| 5 बजे आँख खुली और मैं उठा, कमर से नीचे के सारे कपडे मेरे ही मूत से गीले थे| मैं उठा और जैसे-तैसे खड़ा हुआ और बाथरूम में गया और अपने सारे कपडे उतार दिए और बाल्टी में फेंक दिए और नंगा ही कमरे में आया| अलमारी की तरफ गया और उसमें से एक कच्छा निकाला और एक बनियान निकाली और उसे पहन के किचन से वाइपर उठा के फर्श पर पड़े अपने पिशाब को बाथरूम की तरफ खींच दिया और वाइपर वहीँ पटक दिया| कमरे की खिड़कियाँ खोली और तभी याद आया की ऋतू वहीँ खड़ी हो कर बहार झाँका करती थी| फिर से मन में गुस्सा भरने लगा और शराब की दूसरी बोतल निकाली पर इससे पहले की उसे खोलता बाजु वाले अंकल ने घंटी बजाई| मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझसे अपने घर की चाभी माँगी और मेरी हालत देख कर समझ गए की मैंने बहुत पी रखी है| उनहोने कुछ नहीं कहा बस 'एन्जॉय' कहते हुए निकल गए| मैंने दरवाजा ऐसे ही भेड़ दिया पर दरवाजा लॉक नहीं हुआ| मैं आकर उसी खिड़की के सामने जमीन पर बैठ गया, पीठ दिवार से लगा कर दारु की बोतल खोली और सीधा ही उसे अपने होठों से लगाया और एक बड़ा से घूँट पी गया| आज मुझे उतनी जलन नहीं हुई जितनी कल हुई थी| पास ही फ़ोन पड़ा था उसे उठाया, फिर याद आया की सुबह बॉस ने कॉल किया था और फिर फ़ोन वापस स्विच ऑफ ही छोड़ दिया| अगला घूँट पीते ही दरवाजा खुला और मेरे ऑफिस का कॉलीग अरुण अंदर आया और मुझे जमीन पर बैठे दारु पीते देख बोला; "अबे साले! बॉस की वहाँ जली हुई है तेरी वजह से और तू यहाँ दारु पी रहा है?" मैंने उसकी तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं बस दारु का एक और घूँट पिया| "अबे दिमाग ख़राब हो गया है क्या तेरा?" उसने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा पर मैं अब भी कुछ नहीं बोल रहा था बस एक-एक घूँट कर के दारु पिए जा रहा था| अरुण मुझे बहुत अच्छे से जानता था की मैं कभी इतनी नहीं पीता, हमेशा लिमिट पि है मैंने और आज इस तरह मुझे बिना रुके पीता हुआ देख वो भी परेशान होगया| मेरे हाथ से बोतल छीन ली और बोला; "अबे रुक जा! बहनचोद पिए जा रहा है, बता तो सही क्या हुआ?" मैंने अब भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस उससे बोतल लेने लगा तो उसने बोतल नहीं दी और दूर खिड़की के पास खड़ा हो कर पूछने लगा| जब मैं कुछ नहीं बोला तो वो समझ गया की ये दिल का मामला है| इधर मैं भी ढीठ था तो मैं उठ के उससे जबरदस्ती बोतल छीन के ले आया और वापस नीचे बैठ के पीने लगा| "यार पागल मत बन! उस लड़की के चक़्कर में ऐसा मत कर! बीमार पढ़ जायेगा|"उसने फिर से मेरे हाथ से बोतल खींचनी चाही तो मैं बुदबुदाते हुए बोला: "मरूँगा तो नहीं ना?"

"पागल हो गया है तू?" उसने गुस्से से मुझे डाँटते हुए कहा| "ये सब छोड़... ये बता ... माल है तेरे पास?" मैंने अरुण से पूछा तो वो गुस्सा करने लगा| "यार है तो दे दे वरना मैं बहार से ले आता हूँ|" ये कह कर मैं उठा तो अरुण ने मुझे संभाला| वो जानता था ऐसी हालत में मैं बाहर गया तो पक्का कुछ न कुछ काण्ड हो जायेगा| "ये ले" इतना कह कर उसने मुझे एक गांजे की पुड़िया दी और मैंने उसी से सिगरेट माँगी और लग गया उसे भरने| पहला कश लेते ही मैं आँखें बंद कर के सर दिवार से लगा कर बैठ गया| "बॉस को कह दियो की मैं तुझे घर पर नहीं मिला|" मैंने आँखें बंद किये हुए ही कहा|



"अबे तेरी सटक गई है क्या? साले एक लड़की के चक्कर में आ कर कुत्ते जैसे हालत कर ली तूने अपनी! बहनचोद पूरे घर से बदबू आ रही है और तू चढ्ढी में बैठा शराब पिए जा रहा है? अबे होश में आ साले चूतिये?!" वो सब गुस्से में कहता रहा पर मेरे कान तो ये सब सुनना ही नहीं चाहते थे, वो तो बस उसी की आवाज सुन्ना चाहते थे जिसने मेरा दिल तोडा था| अगर अभी वो आ कर एक बार मुझे I love you कह दे तो मैं उसे फिरसे सीने से लगा लूँगा और उसके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, पर नहीं.... उसे तो अब कोई और प्यारा था! जब अरुण का भाषण खत्म हुआ तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और कश लेने लगा; "तू साले....छोड़ बहनचोद! अच्छा ये बता कुछ खाया तूने?" मैंने अभी भी उसकी बात का जवाब नहीं दिया और वो दिन याद किया जब वो मेरे कॉल न करने से नाराज हो जाया करती थी और मैं उसे कॉल कर के पूछता था की कुछ खाया?" ये याद करते हुए मेरी आँख से आँसूँ बह निकले, उन्हें देखते ही अरुण को मेरे दिल के दर्द का एहसास हुआ और उसने मेरे कंधे पर थपथपाया और मुझे ढांढस बँधाने लगा|मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया और बोला; "थैंक्स भाई!!!" फिर अपने आँसूँ पोछे; "अब तू घर जा, भाभी चिंता कर रही होंगी| कल मैं ऑफिस आ जाऊँगा|" उसे मेरी बात पर भरोसा हो गया पर जाते-जाते भी वो मेरे लिए खाना आर्डर कर गया|

अगली सुबह उठा और सबसे पहले माल फूँका! फिर मुँह धोया और अपनी लाश को ढोता हुआ ऑफिस आया| मुझे देखते ही बॉस ने इतना सुनाया की पूछो मत पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया| जवाब देता भी कैसे गांजे के नशे से मेरा होश गायब था और मैं बस सर झुकाये सब सुनने का दिखावा कर रहा था| जब उसका गुस्सा हो गया तो वो अपने केबिन में चला गया और मैं अपने टेबल पर आ कर बैठ गया| अरुण मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मैंने सर उठाया तो मेरी आँखों की लाली देख कर वो समझ गया की मैंने गांजा पी रखा है और वो हँस दिया, उसे हँसता देख मेरी भी हँसी निकल गई| खेर इसी तरह दिन निकलने लगे, रोज बॉस की गालियाँ सुनना और फिर घर आकर दारु पीना और सो जाना| हर शुक्रवार घर से फ़ोन आता की मैं ऋतू को ले कर घर आ जाऊँ पर मैं कोई न कोई बहाना बना के बात टाल देता|

पूरा एक महीना निकल गया और अब हालातों ने मुझे एक मुश्किल दोराहे पर ला कर खड़ा कर दिया| फ़ोन बजा जब देखा तो पिताजी का नंबर था और उन्होंने मुझे और ऋतू को कल घर बुलाया था| ऋतू की शादी के लिए मंत्री साहब के लड़के का रिश्ता आया था| ये सुन कर खून तो बहुत उबला पर मैं कुछ कह नहीं सका| "आप ऋतू.............रितिका के हॉस्टल फोन कर दो वो मुझे कॉल कर लेगी|" इतना कह कर मैंने कॉल काट दिया| मैं ऑफिस की छत पर चला गया और सिगरेट जला कर फूँकता रहा और ये सोचता रहा की कल कैसे उस बेवफा की शक्ल बर्दाश्त करूँगा! रात को रितिका का कॉल आया और उसका नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश होते ही गुस्सा बाहर आ गया| पर मुझे अपना गुस्सा थोड़ा काबू करना था; "कल सुबह दस बजे बस स्टैंड|" इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया| उस रात 2 बजे तक मैं पीता रहा और मन ही मन उसे कोसता रहा और सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली| सुबह 10:30 बजे रितिका के धड़ाधड़ कॉल आये तब नींद खुली पर आँखें अब भी नहीं खुल रही थी|मैंने बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा दिया; "आप कहाँ हो?" ये जानी पहचानी आवाज सुन कर आँख खुली और याद आया की मुझे तो दस बजे बस स्टैंड पहुँचना था| "आ रहा हूँ!" इतना कह कर मैंने फोन काटा और बिना मुँह धोये ही निकल गया| बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई और जिस्म से ही दारु की तेज महक आ रही थी| जब मैं बस स्टैंड पहुँचा तो मुझे ऋतू इंतजार करती हुई दिखी, आज पूरे एक महीने बाद देख रहा था और मन में जिस प्यार को मैं दफना चूका था वो अब उभर आया था| मैंने जेब से फ्लास्क निकला और दारु का एक घूँट पिया और फिर रितिका की तरफ चलने लगा| रितिका की नजर जब मुझ पर पड़ी तो वो आँखें फाड़े बस मुझे ही देखे जा रही थी| आज तक उसने मुझे जब भी देखा था तो clean shaven और well dressed देखा था और आज मुझे इस कदर देख उसका अचरज करना लाजमी था| उसके पास आ कर मैं रुका और जेब में हाथ डाल कर सिगरेट निकाली और जला कर उसका धुआँ उसके मुँह पर फूँका! वो थोड़ा खांसते हुए बोली; "आपने तो कसम खाई थी की आप कभी दारु और सिगरेट को हाथ नहीं लगाओगे?"

"तुमने भी तो कसम खाई थी की मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी?! But here we are!" ये कह कर मैंने उसे ताना मारा और फिर नजरें इधर-उधर घुमाने लगा| मैं टिकट काउंटर पर पहुँचा तो पता चला की आखरी बस जा चुकी है जो शायद रितिका भी जानती थी| बस एक लेडीज स्पेशल बस थी जो अभी आने वाली थी, मैंने मन ही मन सोचा की इसे अकेले ही भेज देता हूँ| इसलिए मैं टहलता हुआ वापस उसके पास आया; "लेडीज स्पेशल बस आने वाली है, उसमें चली जा! मैं घर फोन कर देता हूँ कोई आ कर ले जाएगा|"

"अकेले...पर ...मैं तो...." वो नजरें झुकाये डरते हुए बोलने लगी|

"तो बुला ले अपने 'राहुल' को! वो छोड़ देगा तुझे गाँव|" मेरा फिर से ताना सुन कर वो चुप हो गई और तभी मुझे लालू नजर आया| ये लालू उन्ही कल्लू भैया का छोटा भाई था और वो मुझे अच्छे से जानता था| उसने मुझे देखते ही हाथ दिखा कर रुकने को कहा और मेरे पास ही बाइक दौड़ाता हुआ आ गया|

लालू: अरे साब! आप यहाँ कैसे?

मैं: बस गाँव जा रहा था, पर बस निकल गई|

लालू: अरे तो क्या हुआ साब, ये रही बस मैं भी उसी रास्ते जा रहा हूँ|


लालू एक प्राइवेट बस का कंडक्टर था और अपने भाई की ही तरह मेरी बहुत इज्जत करता था| रितिका ने हम दोनों की सारी बातें सुन ली थी और वो थोड़ा हैरान भी थी की मैं कैसे लालू को जानता था| मैंने उसे बैठने का इशारा किया और खुद बाहर ही रुक गया और दूकान से एक परफ्यूम की बोतल ली और एक काला चस्मा| घर पर कोई नहीं जानता था की मैं दारु पीता हूँ और इस हालत में घर जाता तो काण्ड होना तय था| मैंने परफूम अच्छे से लगाया और लालू से माल माँगा उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी भरी हुई सिगरेट मुझे दे दी और बदले में मैंने उसे पैसे दे दिए| बस के पीछे खड़ा मैं चुप-चाप सिगरेट पीता रहा और जब बस भर गई तो मैं बस में चढ़ गया|ऋतू खिडक़ीवाली सीट पर बैठी थी और उसकी साथ वाली सीट खाली थी पर मैं वहाँ नहीं बैठा बल्कि लास्ट वाली सीट पर पहुँच गया जो अभी भी खाली थी| मैंने उस पर पाँव पसार के लेट गया और सोने लगा| गांजे ने दिमाग तो पहले ही सन्न कर दिया था| एक बजा होगा और मुझे मूत आ रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया| बस रुकने वाली थी और मैं ने उठ कर देखा तो अब भी ऋतू के बगल वाली सीट खाली ही थी| इतने में एक लड़का जो मेरे दाईं तरफ बैठा था वो उठा और जा कर रितिका के साथ बैठ गया और उसके साथ बदसलूकी करने लगा| वो जानबूझ कर उससे चिपक कर बैठा था और जबरदस्ती उससे बात करने लगा| रितिका उसके साथ बहुत uncomfortable थी और बार-बार उससे कह रही थी की; "मुझे आपसे बात नहीं करनी!" पर वो हरामी बाज़ ही नहीं आ रहा था|

मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उस लड़के की गद्दी पर जोरदार थप्पड़ मारा| मेरा थप्पड़ लगते ही वो पलट के मुझे देखने लगा, मैंने ऊँगली के इशारे से उसे उठने को कहा: "निकल बहनचोद!" मैंने गरजते हुए कहा और ये सुनते ही लालू पीछे की तरफ देखने लगा और उसे समझते देर न लगी की माजरा क्या है| उसने एक कंटाप उस लड़के के मारा और लात मार के बस से उतार दिया और चिल्लाता हुआ बोला; "भोसड़ी के दुबारा अगर दिख गया न तो गंडिया काट डालब!" ऋतू की आँखें भर आईं थीं और उसने मेरी तरफ देखा और 'थैंक यू' कहना चाहा पर मैंने उससे नजर ऐसे फेर ली जैसे की वो यहाँ थी ही नहीं! मैं आगे चला गया और कंडक्टर के बाजू वाली सीट पर बैठ गया| नशे का झोंका आ रहा था और मुझे नींद आ रही थी तो मैं बैठे-बैठे ही सोने लगा| दस मिनट बाद बस रुकी और मैं मूत कर आ गया और वापिस पीछे की सीट पर लेट गया| जब हमारा बस स्टैंड आया तो लालू मुझे जगाने आया और वापस जाते समय रितिका से माफ़ी माँगने लगा; "दीदी...वो माफ़ करना आपको उस हरामी की वजह से तकलीफ हुई|" रितिका ये सुन के सन्न रह गई और मेरी तरफ देखने लगी पर मैंने कुछ नहीं कहा और बस से नीचे उतर आया| बस स्टैंड से हम दोनों गज भर की दूरी पर चल रहे थे, मैंने जेब से फ्लास्क निकला और शराब पीने लगा| मन में बहुत दुःख था और घर जाने से मैं कतरा रहा था| दरअसल मैं रितिका का रिश्ता अपने सामने होते हुए नहीं देखना चाहता था और इसीलिए जब घर दूर से नजर आने लगा तो मैंने रितिका से अकेले जाने को कहा| "आप घर नहीं...." वो बस इतना ही बोल पाई की में बोल पड़ा; "घर में बोल दिओ कल मेरा ऑफिस था इसलिए मैं यहीं से चला गया|" इतना कह कर मैं पलट कर वापस बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा| रितिका मेरे दर्द को महसूस कर रही थी पर उसने कहा कुछ नहीं और चुप-चाप सर झुकाये घर चली गई| मैं बस स्टैंड पहुँचा और वहाँ बैठा बस का इंतजार करने लगा, अगली बस आने में आधा घंटा था तो मैं वहीँ लेट गया और कैसे भी कर के अपने दर्द को कम करने की सोचने लगा| रितिका की शादी में मैं खुद को कैसे सम्भालूंगा बस यही सोच रहा था की बस आ गई और मैं फिर से सबसे पीछे वाली सीट पकड़ के लेट गया| तभी घर से फ़ोन आया और पिताजी चिल्लाने लगे की मैं घर क्यों नहीं आया, मैंने फ़ोन उठा कर सीट पर दूसरी तरफ रख दिया और खुद खिड़की की से बाहर देखने लगा| जब मैंने फ़ोन देखा तो कॉल काट चूका था पर इसका मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैंने फिर से जेब से फ्लास्क निकाली और आखरी घूँट पिया और शहर आने का इंतजार करने लगा| सात बजे हम शहर पहुँचे और उतारते ही पेट में दारु की ललक जाग गई| ठेके से दारु ली और एक सब्जी वाले से ककड़ी ली और घर आ गया और पीने लगा| आज रितिका की शक्ल देख कर कोफ़्त हो रही थी पर मुझे मेरी समस्या का अब तक कोई रास्ता नहीं मिला था| जमाने से तो विश्वास उठ चूका था मेरा, मेरा दिमाग कह रहा था की सब के सब मतलबी हैं यहाँ! सब मुझसे कुछ न कुछ चाहते थे, मोहिनी पढ़ना चाहती थी तो राखी ऑफिस के काम में मेरी हेल्प और तो और अनु मैडम ने भी मेरे जरिये अपना डाइवोर्स ले लिया था| ये डाइवोर्स Final वाली बात मुझे अरुण ने ही बताई थी और अब ये सब बातें मुझे कचोटने लगी थीं| क्या मैं इस दुनिया में सिर्फ दूसरों के लिए जीने आया हूँ? क्या मुझे मेरी ख़ुशी का कोई हक़ नहीं? क्या माँगा था मैंने जो भगवान से दिया न गया? बस एक रितिका का प्यार ही तो माँगा था और उसने भी मुझे धोका दे दिया! ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख से आँसू बहने लगे और मैं अपनी आँख से बहे हर एक कतरे के बदले शराब को अपने जिस्म में उतारता चला गया| कब नींद आई मुझे कुछ होश नहीं था, आँख तब खुली जब सुबह का अलार्म तेजी से बज उठा|

Ritu ki maa bhi chhinal thi to beti kaise pichhe hat sakti bo bhi chhinal nikli yeh to hona hi tha jaisi maa waisi beti maine yeh 5 din pehle padhna suru kiya hai yeh story bohut hi pehle complete ho chuka hai par iss update mai bohut dukh hua Bhai Manu keliye mujhe to pehle hi laga tha age aisa kuch hoga uss randi ki haaw bhaaw dekh kar
 
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manish9048

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ये कहानी मैने सिर्फ एक दिन में ही पूरी पढ़ ली।
ऋतु और मानू की प्रेम कहानी जो आपने लिखी है शायद वो मुझे लंबे वक्त तक याद रहे।
धन्यवाद आपका की ऐसी कहानी लिखी जो मेरी सोच से परे निकली और वो ऋतु और मानू का करवाचौथ में एक दूसरे का साथ देना, ऐसा प्रेम मानू ने अनु से भी कभी नहीं किया। बस ईश्वर से दुआ करूंगा कि ये कहानी कभी हकीकत ना बने, ये एक काल्पनिक कहानी है।
 
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ऋतु और मानू की प्रेम कहानी जो आपने लिखी है शायद वो मुझे लंबे वक्त तक याद रहे।
धन्यवाद आपका की ऐसी कहानी लिखी जो मेरी सोच से परे निकली और वो ऋतु और मानू का करवाचौथ में एक दूसरे का साथ देना, ऐसा प्रेम मानू ने अनु से भी कभी नहीं किया। बस ईश्वर से दुआ करूंगा कि ये कहानी कभी हकीकत ना बने, ये एक काल्पनिक कहानी है।

ये कहानी पूर्णतः सत्य नहीं है परन्तु 'ऋतू' का किरदार मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बने एक ख़ास शक़्स पर आधारित है| यदि आप इस बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो मेरी आप बीती; "एक अनोखा बंधन" अवश्य पढ़ें|
 
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