Mr.Marlega
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Bahot zaberdast shaandaar lajawab update bhaiभाग १५
सुशेन सिद्धार्ट को साथ लेकर अपनी कार से अपने भाई शक्ति से मिलने निकल गया
सिद्धार्थ- सर क्या आपको सचमे लगता है के रमेश को मारने मैं ब्लू हुड वालो का हाथ है
सुशेन- कभी कभी जो हम सोचते है वो सही नहीं होता सिद्धार्थ, मैं ये नहीं कहता की मेरा भाई ऐसा नहीं कर सकता मगर मेरी चिंता का विषय शक्ति नहीं है, जितना मैं मेरे भाई को जानता हु उस हिसाब से शक्ति ने अगर रमेश को मारा होता तो वो ये काम छिपकर नहीं करता बल्कि बता कर करता, शक्ति कायर नहीं,
सिद्धार्थ-तो आपके हिसाब से ये काम ब्लू हुड का नहीं है
सुशेन-हम सिर्फ चीजों का अनुमान लगा सकते है सिद्धार्थ और मेरा यकीं करो अगर रमेश की हत्या मैं कही भी ब्लू हुड शामिल रहा तो मैं शक्ति समेत सरे ब्लू हुड को ख़तम कर दूंगा, पर फिलहाल मुझे एक और बात ने परेशां किया हुआ है
सिद्धार्थ-किस बात ने?
सुशेन-बात ऐसी है की सिर्फ रमेश ही नहीं मरा है और भी कई लोग मरे है..
सिद्धार्थ- क्या?कौन? कैसे?
सुशेन- ये कालसेना काफी बडी है सिद्धार्थ, हमारे लोग साडी दुनिया मैं मौजूद है और कालदूत की भक्ति करते है, कालसेना के मुखिया को एक शक्ति विरासत मैं मिलती है....चुकी अभी मैं इस कालसेना का मुखिया हु तो हर कालसैनिक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मेरी मानसिक तरंगो से जुडा हुआ है और मेरे जरिये भगवन कालदूत से फिर वो चाहे ब्लैक हुड हो या ब्लू हुड, कालदूत हमें इसी माध्यम से शक्तिया प्रदान करते है, पिछले कुछ दिनों मैं मैंने अपनी इन मानसिक तरंगो मैं थोड़ी कमी महसूस की है, जब मैंने इसकी छानबीन की तोमैने पाया की हमारे कई कालसैनिक दुनिया के अलग अलग कोनो मैं मरे पाए गए है, पिछले कुछ दिनों मैं हमने जितनी भी बलिया दी है उससे कई ज्यादा अपने लोगो को खोया है, कोई तो है जो सालो से छिपी हमारी कालसेना से बारे मैं जानता है और हमपर पीछे से वार कर रहा है ताकि हमें कमजोर कर सके और उसका यु छिपा होना ही मेरे लिए सबसे बडी चिंता का विषय है....
सिद्धार्थ-ये तो काफी गंभीर बात है
सुशेन-इसीलिए मैं शक्ति से मिलना चाहता हु ताकि आपसी मतभेद मिटा कर कालसेना को और भी मजबूत कर सकू.....
डिक्की मैं छुपा राघव सुशेन और सिद्धार्थ की बाते सुन रहा था, उसे सुशेन की बाते सुन कर आश्चर्य और ख़ुशी हो रही थी...आश्चर्य इस बात का की जहा उसे कालसेना और कालदूत के बारे मैं कुछ ही दिन पहले पता चला था वही इस दुनिया मैं कोई ऐसा था जो स कालसेना से मुकाबला कर रहा था और उसके लोगो को मार भी रहा था और ख़ुशी इस बात की की इस लडाई मैं वो अकेला नहीं था, उसके दादाजी की लिखी बात उसे याद आ गयी की इस लडाई मैं उसे और भी लोगो की जरुरत होगी और शायद ये वही लोग थे जिनके बारे मैं सुशेन बात कर रहा था.....
कुछ समय बाद....
शहर के बाहर एक सुनसान इलाके मैं सन्नाटे को चीरती हुयी सफ़ेद रंग और काले रंग की गाडिया आमने सामने जा खड़ी हुई, काले रंग की गाड़ी से सुशेन और सिद्धार्थ निकले और सफ़ेद रंग की गाड़ी से शक्ति जो की सिद्धार्थ की ही उम्र का था, बाहर आया, राघव अब भी गाड़ी की डिक्की मैं छिपा हुआ था, वो सुन सब सकता था पर किसी को देख नहीं सकता था,
शक्ति- बहुत दिनों बाद मिले बड़े भाई
सुशेन-तुमने ऐसा क्यों किया शक्ति? तुमने रमेश को क्यों मारा?
शक्ति(हतप्रभ होकर)- क्या? मैंने किसी को नहीं मारा!
सुशेन(क्रोध मैं)- बहुत हुआ! पहले तुम्हारे लोगो ने कब्रिस्तान मैं आखरी कुर्बानी होने नहीं दी फिर तुम्हारी वजह से मेरा एक आदमी विक्रांत पुलिस कस्टडी मैं है और अब ये क़त्ल!
शक्ति- क्या बकवास कर रहे हो भाई, तुम अच्छी तरह जानते हो शक्ति जो भी करता है डंके की चोट पर करता है ऐसे कायरो की तरह छिप कर वार नहीं करता और हा वो आखरी कुर्बानी जिसकी तुम बात कर रहे हो वो मेरा ही आदमी था...संतोष!
सुशेन-क्या?
सुशेन की तरह राघव भी इस बात से काफी हैरान हो गया था....
शक्ति-हा, दरअसल लगातार हो रहे अपहरणों और हत्याओ की वजह से पुलिस ने जगह जगह घेराबंदी कर राखी थी इसीलिए मैंने संतोष को अपने किसी जान पहचान वाले को कुर्बानी के लिए लाने कहा क्युकी उसकी मौत से इतना हल्ला भी नहीं मचता लेकिन मेरे कुछ करने से पहले ही तुम्हारे आदमी विक्रांत ने जाकर दोनों को पकड़ लिया, रोहित को तो उसने मार दिया लेकिन किस्मत से संतोष बच गया, हम कुछ करते इससे पहले ही उस इंस्पेक्टर ने उसे बचा लिया
सुशेन- पर तुमको कैसे पता चला की हमने रोहित और संतोष को कहा रखा है
शक्ति-विक्रांत की बीवी हमारे ब्लू हुड की मेम्बर है
सुशेन- या? मतलब तुम्हे नंदिनी के जरिये विक्रांत और हमारी सारी गुप्त खबरे मिलती थी
शक्ति- सारी तो नहीं लेकिन थोडा बहुत पता चल ही जाता था, जब विक्रांत का अचानक राजनगर आने का प्लान बना तभी नंदिनी ने हमको सतर्क कर दिया था, दरअसल विक्रांत और नंदिनी अपने आपसी रिश्ते के कारन बहुत परेशां थे और कई बार बात तलाक तक पहुच चुकी थी, जब तुमने विक्रांत को ब्लैक हुड मैं शमिल किया तभी मैंने नंदिनी को ब्लू हुड का सदस्य बनाया, इसके लिए मुझे ज्यादा म्हणत भी नहीं करनी पड़ी, नंदिनी जानती थी की विक्रांत ब्लैक हुड का मेम्बर है जबकि विक्रांत नंदिनी की सच्चाई के बारे मैं अनजान था, एक ही छत के निचे दो अलग अलग दलों के सदस्य रह रहे थे और जहा तक बात पुलिस की है तो तुम्हारा आदमी विक्रांत अपनी मुर्खता की वजह से पकड़ा गया है
सुशेन- लेकिन.....
सुशेन कुछ बोलता तभी अचानक शक्ति का फ़ोन बजा, उसने फ़ोन उठाया लेकिन कुछ सुनने के बाद एकदम हैरान रह गया
सुशेन-क्या हुआ?
शक्ति- मेरे दो लोगो को किसी ने एक पेड़ पर फासी से तांग दिया है
सुशेन-ये सब आखिर हो क्या रहा है? हम कालसेना है हमें मारने की हिम्मत किसमे आ गयी वो भी इतना चोरी छिपे और इतनी सफाई के साथ?
शक्ति-लोगो को मारते वक़्त कभी ये ख्याल आया ही नहीं की हम भी मारे जा सकते है, हमें लगने लगा था की कालदूत के भक्त होने के कारन हम अभेद्द है लेकिन अब इस बात पर मुझे संशय होने लगा है
सुशेन-किसी भी प्रकार के संशय मैं मत रहो छोटे भाई, कालदूत के भक्त भले ही संख्या मैं कम हो लेकिन सबसे शक्तिशाली थे और सबसे शक्तिशाली रहेंगे, हमारे दल के कुछ लोग मरे गए इसका ये अर्थ नहीं की पूरी कालसेना कमजोर है, ये जो कोई भी है इसे अपने किये की भरी कीमत चुकानी पड़ेगी, हमारे बिच मतभेद हो सकते है लेकिन किसी भी बाहरी समस्या से लड़ने के लिए हमें एकजुट हो जाना चाहिए
शक्ति-सही कहा तुमने भाई, आखरी कुर्बानी कोई भी दे बस कालदूत का जागना आवश्यक है, अभी मैं चलता हु कुछ होगा तो खबर कर दूंगा
सुशेन- ठीक है
शक्ति अपनी सफ़ेद गाडी मैं बैठकर निकल गया और सुशेन भी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ा ही था की तभी अचानक उसके कानो को हवा मैं एक तेज सरसराहट की आवाज सुने दी, उसने देखा की एक तेज धार चाकू गाड़ी के पास खड़े असावधान सिद्धार्थ की ओर तेजी से बढ रहा है, सुशेन ने तुरंत अपना हाथ उठाया और telekinesis द्वारा उस चाकू को हवा मैं ही रोक दिया फिर सुशेन और सिद्धार्थ दौड़ कर उस दिशा मैं गए जहा से चाकू आया था पर वहा उन्हें कोई नहीं मिला जिसके बाद वो वापिस गाड़ी के पास आये
सुशेन-तुम ठीक हो न लड़के?
सिद्धार्थ-ज..जी,, ये चाकू मैं कुछ लगा है?
तब सुशेन का ध्यान गया की चाकू मैं एक छोटा कागज का टुकड़ा लगा हुआ है, उसने चाकू उठाकर कागज का टुकड़ा उसकी नोक से बाहर निकाला, उसपर लिखा था “दो घंटे मे हीरालाल रेस्टोरंट आ जाओ, जिसे तुम धुंध रहे हो वो मैं ही हु” ये पढ़ते ही सुशेन की आँखें क्रोध से लाल हो गयी
सिद्धार्थ-क्या हुआ?
सुशेन-उसकी इतनी हिम्मत? मेरे लोगो को मारकर मुझे ही रेस्टोरंट मैं बुलाता है
सिद्धार्थ-कौन है ये?
सुशेन-वही, ब्लैक और ब्लू हुड के लोगो का कातिल
सिद्धार्थ-मैं चलता हु आपके साथ
सुशेन-नहीं तुम वापस जाओ मैं अकेले जाऊंगा
सिद्धार्थ-लेकिन सर....
सुशेन-मैंने कहा न जाओ मुझे कुछ नहीं होगा, जाओ...
सिद्धार्थ चला गया और सुशेन गाड़ी लेकर हीरालाल रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया और उसकी के साथ राघव भी......
Lajawab update bhaiभाग १६
सुशेन ने सिद्धार्थ को रवाना कर दिया था और खुद गाडी लेकर हीरालाल रेस्टोरंट की और निकल गया और कुछ ही समय मैं वो हीरालाल रेस्टोरंट मैं था, सुशेन ने अपनी गाड़ी भीड़ भाड से दूर शांत जगह पार्क की और रेस्टोरंट मैं चला गया,
जब कुछ समय तक गाडी की कोई हलचल नहीं हुयी तो राघव ने बहार निकलने का सोचा, उसने डिक्की को हल्का सा खोलकर बाहर का जायजा लिया की कही कोई उसे देख तो नहीं रहा और जब वो पूर्ण निश्चिन्त हो गया तब वो डिक्की से निकलकर बहार आया, गाडी पहले ही भीडभाड से दूर कड़ी होने की वजह से राघव का काम आसान हो गया था और अब वो भी हीरालाल रेस्टोरंट की और जाने लगा तभी उसे उसका दोस्त सूरज वहा मिल गया
सूरज-ओए राघव
राघव-सु..सूरज तू...तू यहाँ क्या कर रहा है
सूरज-वही सवाल मुझे पूछना है, जब मैंने तुझे सुबह फ़ोन किया था तब तो तू बोल रहा था के तेरी तबियत ख़राब है और अब तू यहाँ रेस्टोरंट मैं जा रहा है, कोई लड़की वडकी पता ली क्या जो छिप कर उससे मिलने जा रहा था
राघव-अरे नहीं भाई वो...कुछ काम से आया था
सूरज-वो सब काम बादमे करियो पहले मेरे साथ चल मेरा काम ज्यादा जरुरी है
राघव-पर..भाई...वो...
सूरज-पर वर नहीं बैठ गाड़ी पे और चल
राघव ने सूरज को टालने की काफी कोशिश की लेकिन आखिर मैं उसे सूरज के साथ जाना पड़ा
वही दूसरी तरफ सुशेन रेस्टोरंट मैं पंहुचा वो वहा पहुचकर इधर उधर देख ही रतः था के तभी एक २०-२२ साल के लड़के ने उसकी तरफ देख्कर हाथ हिलाया, सुशेन उस तरफ गया, लड़का काला चश्मा लगाकर एक ब्राउन लंग का ब्लेजर और जीन्स पहनकर बैठा था, सुशेन को देखकर वो मुस्कुराता हुआ बोला “बडी ठण्ड है न राजनगर मैं, है न?
सुशेन को यकीन नहीं हो रहा था के इन हत्याओ के पीछे इस लड़के का हाथ हो सकता है, उसने पैनी नजरो से उसे देखते हुए पुचा “तो कालसैनिको को मारने के पीछे तुम्हारा हाथ है?”
वो लड़का बड़े हिउ निश्चिन्त भाव से बोला “हा, और हाथ नहीं उनको मारने के पीछे पूरा का पूरा मैं ही हु”
सुशेन अविश्वास से बोला “यकीन नहीं होता की एक बच्चा इतने काबिल लोगो को मार सकता है जो काले जादू और telekinesis मैं विशेषज्ञ थे”
लकड़ा फिर मुस्कुराता हुआ बोला..”दाढ़ी बढ़िया राखी है तुमने”
सुशेन को अब काफी गुस्सा आ रहा था लेकिन उस समय वहा रेस्टोरंट मैं काफी लोग थे इसीलिए सुशेन इस समय कुछ नहीं कर सकता था, उसने क्रोध से तमतमाते हुए पूछा “तुझे डर नहीं लग रहा लड़के?”
लड़के ने फिर बेफिक्री से कहा “मुझे भला क्यों डर लगेगा?”
सुशेन ने फिर अपनी मुट्ठी भींच ली थी, उसके क्रोध के कारण मेज पर रखे चाय के कप हिलने लगे थे, उसने उस लड़के को फाड़ कर खा जाने वाली नजरो से घूरते हुए जवाब दिया..”पता नहीं तुम बहुत ज्यादा हिम्मत वाले हो या बहुत ही ज्यादा बेवकूफ जो मेरे ही लोगो को मारकर मुझे यहा मिलने का न्योता दिया, अब तू इओस धरती पर ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं है, पूरी कालसेना तेरे पीछे पड़ जाएगी फिर चले वो ब्लैक हुड हो या ब्लू हुड”
उस लड़के की जगह अगर कोई और होता तो सुशेन का वो अवतार देख कर सूखे पत्ते की तरफ डर से कांपने लगता लेकिन उस लड़के पर कोई असर नहीं हो रहा था
उस लड़के से सुशेन से घूरते हुए पूछा “और मुझे मरोगे कैसे? अपने काले जादू या telekinesis से? क्युकी मुझपर दोनों ही असर नहीं करते, तुम कहो तो कोशिश करके देख लो”
सुशेन(आश्चर्य से)-तुम कौन हो??
लड़के ने जवाब दिया “मेरा नाम रूद्र है और इससे ज्यादा तुम्हे बस ये जानने की जरुरत है की तुम लोग अपने अंत के लिए तयार रहो, तुम कालसेना के लोगो का पाप का घड़ा भर गया है”
सुशेन-लेकिन क्यों? क्यों मार रहे हो तुम मेरे लोगो को?
रूद्र-हा हा हा, देखो पूछ भी कौन रहा है? उस सेना का मुखिया जो १००० वर्षो से हर तीन साल के भीतर १०० लोगो की बलि दे रहा है
सुशेन-ये...ये जानकारी तुझे कैसे मिली?
रूद्र-मैंने भी अपनी रिसर्च की है कालसेना पर, खैर जो मेरी समझ मैं नहीं आया वो ये के ऐसा क्या हुआ था १००० साल पहले जो इस कालसेना की स्थापना की गयी?
सुशेन-मैं तुमको कुछ भी नहीं बताने वाला
रूद्र-देखो तुम मुझपर यहा हमला तो वैसे भी नहीं करने वाले क्युकी ये एक सार्वजनिक जगह है और तुम लोगो की आदत है छिपकर वार करना और हमला करके भी तुम खुदको ही हानि पहुचाओगे क्युकी तुम्हारा जादू मुझपर असर नहीं करता हा पर मेरे वारो का असर तुमपर जरूर पड़ेगा और वैसे भी व्यर्थ के झगडे से अच्छा है समय का सदुपयोग किया जाये
रूद्र की बातो ने सुशेन पर जादू जैसा असर किया, वो खुद को एकदम बेबस महसूस कर रहा था, आखिर वो गहरी सास लेकर बोला
सुशेन-ठीक है, वैसे भी तुमको बताने मैं कोई हानि नहीं है, हम तो चाहते है कि ये कहानी ज्यादा से ज्यादा लोग जाने और हमारे आराध्य कालदूत की शरण मैं आये तो सुनो, आज से १००० साल पहले.......(पूर्ण कहानी विस्तृत रूप से पहले और दुसरे भाग मैं बताई गयी है) बिरजू ने समुरतल से बहार आकर ऐसे लोगो को ढूंढा जो इश्वर से असंतुष्ट और नाराज थे, उनमे ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्होंने किसी न किसी प्रकार के युद्ध मैं, महामारी के कारन या फिर किसी और वजह से अपनों को खो दिया था जिसकी वजह से इश्वर पर उनका अटूट विश्वास बुरी तरह डगमगा गया था, ऐसे लोगो को कालसेना मैं शामिल किया गया, कालसेना मैं कालदूत के भक्त सिमित संख्या मैं थे लेकिन वो ऐसे लोग थे जिनकी पहुच राजनीति, मीडिया अभिनय जैसे बड़े बड़े क्षेत्रो मैं थी, फिर शुरू हुआ बलि देने का दौर, सर्वप्रथम महात्मा बिरजू ने अपने ही पिता की बलि दी थी जो उनकी कालदूत की भक्ति के आड़े आ रहे थे, हर ३ सालो मैं कालसेना के लोग बहार निकलते और और कुर्बानी देते और फिर से गायब हो जाये और अगले तीन सालो मैं किसकी कुर्बानी देनी है इसकी प्लानिंग करते, हमारा निशाना मुख्य रूप से वो लोग रहे जो धार्मिक क्रियाओ मैं सम्मिलित रहते, कल कालसेना के लोग प्राण त्याग देते थे तब उनकी जगह उनके बच्चे ले लेते है और साथ ही नए लोग भी शामिल हो जाते है,मुखिया की म्रोत्यु के बाद सबसे काबिल लोगो मैं जंग होती है और जीतने वाले को मुखिया बनाया जाता है, अब इसे संयोग कहो या कालदूत का आशीर्वाद बिरजू के वंशजो ने हमेशा खुद को साबित करके सत्ता को अपने हाथ मैं रखा है, हमने अलग अलग देशो मैं इतनी सफाई के साथ हत्याए की थी की पुलिस प्रशासन का हमें पकड़ना नामुमकिन था, लोगो के सामने तो कालसेना कभी आई ही नहीं, दरअसल हम ही लोगो के सामने नहीं आना चाहते थे और अदृश्य रहने का काम हमने बहुत सहजता पूर्वक किया, बड़े बड़े देशो की ख़ुफ़िया एजेंसीज जैसे रॉ, CIA आदि मैं भी हमारे लोग उची पोजीशन पर थे जिन्होंने हमारे राज को बनाये रखने मैं सहायत की...
रूद्र-और अब १००० साल पुरे होने को है
सुशेन-हा इन तीन सालो मैं हम लोगो ने ९९ कुर्बानि दे दी है एक आखरी कुर्बानी और फिर हमारा देवता आजाद होगा समुद्र की गहराइयों से
रूद्र-अब ऐसा कुछ नहीं होगा
सुशेन-तुम हमको रोक नहीं पाओगे
रूद्र-दरअसल मैं रोक सकता हु पूरी कालसेना को रोक सकता हु, पता है मैंने तुम्हारे लोगो को कैसे मारा? उन्होंने मुझसे याचना की ताकि मैं रहम खाकर उन्हें छोड़ दू लेकिन मैंने अपने इन्हों हाथो से उनकी गर्दन की हड्डी तोड़ डाली, तुमको मैं छोड़ रहा हु क्युकी कालसेना को ख़तम करने के लिए किसी को पहले ही चुन लिया गया है मैं तो बस उसका काम आसान कर रहा हु पर ऐसा मत सोचना की मैं हर बार तुम्हे छोड़ दूंगा, अगली बार जब हम मिलेंगे तब हम दोनों मैं से कोई एक ही जिन्दा जायेगा.....
इतना कहकर रूद्र तेजी से वहा से बाहर निकल गया लेकिन सुशेन अब भी वही बैठा था, वो पहली बार डर महसूस कर रहा था, वही डर तो कालसेना की वजह से राजनगर मैं व्याप्त था
रूद्र के रेस्टोरंट से बहार जाते ही उसने अपने एक आदमी को फ़ोन किया “हा, एक २०-२२ साल का लड़का है...हा पीछा करो उसका....वो अभी हीरालाल रेस्टोरंट से बाहर निकला है काले रंग का चश्मा और ब्राउन रंग का ब्लेजर पहना है, पता करो वो कहा जाता है बस उसे तुम्हारी भनक नहीं लगनी चाहिए......
very nice update bhaiभाग १६
सुशेन ने सिद्धार्थ को रवाना कर दिया था और खुद गाडी लेकर हीरालाल रेस्टोरंट की और निकल गया और कुछ ही समय मैं वो हीरालाल रेस्टोरंट मैं था, सुशेन ने अपनी गाड़ी भीड़ भाड से दूर शांत जगह पार्क की और रेस्टोरंट मैं चला गया,
जब कुछ समय तक गाडी की कोई हलचल नहीं हुयी तो राघव ने बहार निकलने का सोचा, उसने डिक्की को हल्का सा खोलकर बाहर का जायजा लिया की कही कोई उसे देख तो नहीं रहा और जब वो पूर्ण निश्चिन्त हो गया तब वो डिक्की से निकलकर बहार आया, गाडी पहले ही भीडभाड से दूर कड़ी होने की वजह से राघव का काम आसान हो गया था और अब वो भी हीरालाल रेस्टोरंट की और जाने लगा तभी उसे उसका दोस्त सूरज वहा मिल गया
सूरज-ओए राघव
राघव-सु..सूरज तू...तू यहाँ क्या कर रहा है
सूरज-वही सवाल मुझे पूछना है, जब मैंने तुझे सुबह फ़ोन किया था तब तो तू बोल रहा था के तेरी तबियत ख़राब है और अब तू यहाँ रेस्टोरंट मैं जा रहा है, कोई लड़की वडकी पता ली क्या जो छिप कर उससे मिलने जा रहा था
राघव-अरे नहीं भाई वो...कुछ काम से आया था
सूरज-वो सब काम बादमे करियो पहले मेरे साथ चल मेरा काम ज्यादा जरुरी है
राघव-पर..भाई...वो...
सूरज-पर वर नहीं बैठ गाड़ी पे और चल
राघव ने सूरज को टालने की काफी कोशिश की लेकिन आखिर मैं उसे सूरज के साथ जाना पड़ा
वही दूसरी तरफ सुशेन रेस्टोरंट मैं पंहुचा वो वहा पहुचकर इधर उधर देख ही रतः था के तभी एक २०-२२ साल के लड़के ने उसकी तरफ देख्कर हाथ हिलाया, सुशेन उस तरफ गया, लड़का काला चश्मा लगाकर एक ब्राउन लंग का ब्लेजर और जीन्स पहनकर बैठा था, सुशेन को देखकर वो मुस्कुराता हुआ बोला “बडी ठण्ड है न राजनगर मैं, है न?
सुशेन को यकीन नहीं हो रहा था के इन हत्याओ के पीछे इस लड़के का हाथ हो सकता है, उसने पैनी नजरो से उसे देखते हुए पुचा “तो कालसैनिको को मारने के पीछे तुम्हारा हाथ है?”
वो लड़का बड़े हिउ निश्चिन्त भाव से बोला “हा, और हाथ नहीं उनको मारने के पीछे पूरा का पूरा मैं ही हु”
सुशेन अविश्वास से बोला “यकीन नहीं होता की एक बच्चा इतने काबिल लोगो को मार सकता है जो काले जादू और telekinesis मैं विशेषज्ञ थे”
लकड़ा फिर मुस्कुराता हुआ बोला..”दाढ़ी बढ़िया राखी है तुमने”
सुशेन को अब काफी गुस्सा आ रहा था लेकिन उस समय वहा रेस्टोरंट मैं काफी लोग थे इसीलिए सुशेन इस समय कुछ नहीं कर सकता था, उसने क्रोध से तमतमाते हुए पूछा “तुझे डर नहीं लग रहा लड़के?”
लड़के ने फिर बेफिक्री से कहा “मुझे भला क्यों डर लगेगा?”
सुशेन ने फिर अपनी मुट्ठी भींच ली थी, उसके क्रोध के कारण मेज पर रखे चाय के कप हिलने लगे थे, उसने उस लड़के को फाड़ कर खा जाने वाली नजरो से घूरते हुए जवाब दिया..”पता नहीं तुम बहुत ज्यादा हिम्मत वाले हो या बहुत ही ज्यादा बेवकूफ जो मेरे ही लोगो को मारकर मुझे यहा मिलने का न्योता दिया, अब तू इओस धरती पर ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं है, पूरी कालसेना तेरे पीछे पड़ जाएगी फिर चले वो ब्लैक हुड हो या ब्लू हुड”
उस लड़के की जगह अगर कोई और होता तो सुशेन का वो अवतार देख कर सूखे पत्ते की तरफ डर से कांपने लगता लेकिन उस लड़के पर कोई असर नहीं हो रहा था
उस लड़के से सुशेन से घूरते हुए पूछा “और मुझे मरोगे कैसे? अपने काले जादू या telekinesis से? क्युकी मुझपर दोनों ही असर नहीं करते, तुम कहो तो कोशिश करके देख लो”
सुशेन(आश्चर्य से)-तुम कौन हो??
लड़के ने जवाब दिया “मेरा नाम रूद्र है और इससे ज्यादा तुम्हे बस ये जानने की जरुरत है की तुम लोग अपने अंत के लिए तयार रहो, तुम कालसेना के लोगो का पाप का घड़ा भर गया है”
सुशेन-लेकिन क्यों? क्यों मार रहे हो तुम मेरे लोगो को?
रूद्र-हा हा हा, देखो पूछ भी कौन रहा है? उस सेना का मुखिया जो १००० वर्षो से हर तीन साल के भीतर १०० लोगो की बलि दे रहा है
सुशेन-ये...ये जानकारी तुझे कैसे मिली?
रूद्र-मैंने भी अपनी रिसर्च की है कालसेना पर, खैर जो मेरी समझ मैं नहीं आया वो ये के ऐसा क्या हुआ था १००० साल पहले जो इस कालसेना की स्थापना की गयी?
सुशेन-मैं तुमको कुछ भी नहीं बताने वाला
रूद्र-देखो तुम मुझपर यहा हमला तो वैसे भी नहीं करने वाले क्युकी ये एक सार्वजनिक जगह है और तुम लोगो की आदत है छिपकर वार करना और हमला करके भी तुम खुदको ही हानि पहुचाओगे क्युकी तुम्हारा जादू मुझपर असर नहीं करता हा पर मेरे वारो का असर तुमपर जरूर पड़ेगा और वैसे भी व्यर्थ के झगडे से अच्छा है समय का सदुपयोग किया जाये
रूद्र की बातो ने सुशेन पर जादू जैसा असर किया, वो खुद को एकदम बेबस महसूस कर रहा था, आखिर वो गहरी सास लेकर बोला
सुशेन-ठीक है, वैसे भी तुमको बताने मैं कोई हानि नहीं है, हम तो चाहते है कि ये कहानी ज्यादा से ज्यादा लोग जाने और हमारे आराध्य कालदूत की शरण मैं आये तो सुनो, आज से १००० साल पहले.......(पूर्ण कहानी विस्तृत रूप से पहले और दुसरे भाग मैं बताई गयी है) बिरजू ने समुरतल से बहार आकर ऐसे लोगो को ढूंढा जो इश्वर से असंतुष्ट और नाराज थे, उनमे ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्होंने किसी न किसी प्रकार के युद्ध मैं, महामारी के कारन या फिर किसी और वजह से अपनों को खो दिया था जिसकी वजह से इश्वर पर उनका अटूट विश्वास बुरी तरह डगमगा गया था, ऐसे लोगो को कालसेना मैं शामिल किया गया, कालसेना मैं कालदूत के भक्त सिमित संख्या मैं थे लेकिन वो ऐसे लोग थे जिनकी पहुच राजनीति, मीडिया अभिनय जैसे बड़े बड़े क्षेत्रो मैं थी, फिर शुरू हुआ बलि देने का दौर, सर्वप्रथम महात्मा बिरजू ने अपने ही पिता की बलि दी थी जो उनकी कालदूत की भक्ति के आड़े आ रहे थे, हर ३ सालो मैं कालसेना के लोग बहार निकलते और और कुर्बानी देते और फिर से गायब हो जाये और अगले तीन सालो मैं किसकी कुर्बानी देनी है इसकी प्लानिंग करते, हमारा निशाना मुख्य रूप से वो लोग रहे जो धार्मिक क्रियाओ मैं सम्मिलित रहते, कल कालसेना के लोग प्राण त्याग देते थे तब उनकी जगह उनके बच्चे ले लेते है और साथ ही नए लोग भी शामिल हो जाते है,मुखिया की म्रोत्यु के बाद सबसे काबिल लोगो मैं जंग होती है और जीतने वाले को मुखिया बनाया जाता है, अब इसे संयोग कहो या कालदूत का आशीर्वाद बिरजू के वंशजो ने हमेशा खुद को साबित करके सत्ता को अपने हाथ मैं रखा है, हमने अलग अलग देशो मैं इतनी सफाई के साथ हत्याए की थी की पुलिस प्रशासन का हमें पकड़ना नामुमकिन था, लोगो के सामने तो कालसेना कभी आई ही नहीं, दरअसल हम ही लोगो के सामने नहीं आना चाहते थे और अदृश्य रहने का काम हमने बहुत सहजता पूर्वक किया, बड़े बड़े देशो की ख़ुफ़िया एजेंसीज जैसे रॉ, CIA आदि मैं भी हमारे लोग उची पोजीशन पर थे जिन्होंने हमारे राज को बनाये रखने मैं सहायत की...
रूद्र-और अब १००० साल पुरे होने को है
सुशेन-हा इन तीन सालो मैं हम लोगो ने ९९ कुर्बानि दे दी है एक आखरी कुर्बानी और फिर हमारा देवता आजाद होगा समुद्र की गहराइयों से
रूद्र-अब ऐसा कुछ नहीं होगा
सुशेन-तुम हमको रोक नहीं पाओगे
रूद्र-दरअसल मैं रोक सकता हु पूरी कालसेना को रोक सकता हु, पता है मैंने तुम्हारे लोगो को कैसे मारा? उन्होंने मुझसे याचना की ताकि मैं रहम खाकर उन्हें छोड़ दू लेकिन मैंने अपने इन्हों हाथो से उनकी गर्दन की हड्डी तोड़ डाली, तुमको मैं छोड़ रहा हु क्युकी कालसेना को ख़तम करने के लिए किसी को पहले ही चुन लिया गया है मैं तो बस उसका काम आसान कर रहा हु पर ऐसा मत सोचना की मैं हर बार तुम्हे छोड़ दूंगा, अगली बार जब हम मिलेंगे तब हम दोनों मैं से कोई एक ही जिन्दा जायेगा.....
इतना कहकर रूद्र तेजी से वहा से बाहर निकल गया लेकिन सुशेन अब भी वही बैठा था, वो पहली बार डर महसूस कर रहा था, वही डर तो कालसेना की वजह से राजनगर मैं व्याप्त था
रूद्र के रेस्टोरंट से बहार जाते ही उसने अपने एक आदमी को फ़ोन किया “हा, एक २०-२२ साल का लड़का है...हा पीछा करो उसका....वो अभी हीरालाल रेस्टोरंट से बाहर निकला है काले रंग का चश्मा और ब्राउन रंग का ब्लेजर पहना है, पता करो वो कहा जाता है बस उसे तुम्हारी भनक नहीं लगनी चाहिए......
I lob period drama fantasy... Lekin lagta hai ye ghatna kalyug tak aayegi... Waise 1000 saal ke badle 999 saal hota to calculation me sahi hota Adrishi bhai... 33300 logon ki bali 999 saal me ye 1 sal me 100 ko devide karenge to 33.33 aayega fir ye decimal wala insan kahan se dhundh payenge...भाग 1
आज से करीब १०००-१२०० वर्ष पूर्व (देखो वैसे मुझे घंटा आईडिया नहीं है के १००० साल पहले क्या माहौल था लोगो का रेहन सेहन कैसा था बोलीभाषा क्या हुआ करती थी इसीलिए जहा तक दिमाग के घोड़े दौड़ रहे थे उतना लिख रहा हु )
हिन्द महासागर
इस वक़्त हिन्द महासागर मैं कुछ ३-४ नावे चल रही थी, देखते ही पता चलता था के मुछवारो की नाव है जो वह मछली पकड़ने का अपना काम कर रहे थे, वैसे तो नाव एकदूसरे से ज्यादा दूर नहीं थी पर उन्होंने अपने बीच पर्याप्त अंतर बनाया हुआ था,
ये कुछ जवान लड़के थे जो पैसा कमाने और मछली पकड़ने की होड़ मैं आज समुन्दर मैं कुछ ज्यादा ही दूर निकल आये थे, सागर के इस और शायद ही कोई आता था क्युकी इस भाग मैं अक्सर समुद्र की लहरें उफान पर रहती थी इसीलिए ये लड़के यहां तो गए थे पर अब घबरा रहे थे पर आये है तो बगैर मछली पकडे जा नहीं सकते थे इसीलिए जल्दी जल्दी काम निपटा के लौटना चाहते थे
पर जब मछलिया जाल मैं फसेंगी तभो तो कुछ होगा न अब उसमे जितना समय लगता है उतना तो लगेगा ही
"हम तो पहले ही बोले थे यहाँ नहीं आते है यहाँ अक्सर तूफान उठते रहते है हमारा तो जी घबरा रहा है" उनमे से एक लड़का दूसरी नाव वाले से बोला, हवा काफी तेज चल रही थी तो वो चिल्ला के बोल रहा था
"ए चुप बिरजू साले को पैसा भी कामना है और जोखिम भी नहीं लेना है " दूसरे लड़के ने उसे चुप कराया
"बिरजू सही कह रहा है पवन मेरे दादा भी कहते है के सगर का ये भाग खतरनाक है उन्होंने तो ये भी बताया था के ये इलाका ही शापित है" तीसरा बाँदा भी अब बातचीत मैं शामिल हो गया
"इसीलिए तो मैं कह रहा हु के जितनी मछलिया मिल गयी है लेके के चलते है मुझे मौसम के आसार भी ठीक नहीं लग रहे " बिरजू ने कहा
बिरजू की बात के पवन कुछ बोलना छह रहा था के "अरे जाने दे से पवन ये बिरजू और संजय तो फट्टू है सालो को दिख नहीं रहा के यहाँ कितनी मछलिया जाल मैं फास सकती है कमाई ही कमाई होगी और अगर कोई बड़ी मछली फांसी तो राजाजी को भेट कर देंगे हो सकता है कुछ इनाम मिल गए " ये पाण्डु था चौथा बंदा
"सही बोल रहा है तू पाण्डु " पवन
वो लोग वापिस अपने काम मैं जुट गए , देखते देखते दोपहर हो गयी और अब तक उन चारो ने काफी मछलिया पकड़ ली थी और अब वापिस जाने मैं जुट गए थे
"बापू काफी खुश होगा इतनी मछलिया देख के " बिरजू ख़ुशी से बोला
"हमने तो पहले ही कहा था इस और आने अब तो रोज यही आएंगे मछली पकड़ने " पाण्डु बोल पड़ा
तभी मौसम मैं बदलाव आने सुरु हो गए, धीरे धीरे मौसम बिगड़ने लगा और इस प्रकार के मौसम मैं नाव चलना मुश्कुल हो रहा था, हवा की गति भी अचानक से काफी तीव्र हो गयी थी, वो चारो नाविक लड़के परेशानी की हालत मैं थे के इस तूफ़ान से कैसे बचे, किनारा अब भी काफी दूर था , तभी उन्हें समुद्र के बीच से कही से हवा का बवंडर अपनी और आता दिखा जिसकी तेज गति से पानी भी १३-१४ फुट तक ऊपर उठ रहा था, वो चारो घबरा गए और मन ही मन भगवन को याद करने लगे
देखते ही देखते उस बवंडर ने उनकी नावों को अपनी चपेट मैं ले लिया पर इसके पहले ही वो चारो पनि मैं कूद चुके थे,
वैसे तो वो तैरना जानते थे पर इस तूफ़ान मैं उफनती सागर की लेहरो मैं तैरना आसान काम नहीं था, कभी मुश्किल से थोड़ा ही तेरे थे के उस बवंडर से उन्हें अपने अधीन कर लिया और वे चारो सागर की गहराइयो मैं गोता लगाने लगे
बिरजू उन सब मैं सबसे अच्छा तैराक था इसीलिए वो थोड़े लम्बे समय तक तैरता रहा जबकि उसके बाकि साथी तो पहले ही सागर की गहराइयो मैं खो चुके थे
धीरे धीरे बिरजू के सीने पे पानी का दबाव पड़ने लगा और वो भी डूबने लगा उसकी आँखें बंद होने लगी थी......
कुछ समय बाद बिरजू की आँखें खुली तो उसने अपने आप को सागर की गहराइयो मैं आया पर आश्चर्य उसे सास लेने मैं कोई कठनाई नहीं हो रही थी पर जब उसने सामने देखा तो उसके होश उड़ गए थे
उसके सामने विशालकाय ३० फुट ऊचा कोई व्यक्ति जंजीरो से बंधा हुआ था, सबसे भयावह और अजीब बात ये थी के उसका सर आम इंसानो जैसा न होकर सर्प के सामान था और उसके पीठ पर ड्रैगन जैसे पंख लगे हुए थे, उस अजीबोगरीब चीज़ को देख के बिरजू की डर से हालत ख़राब हो रही थी तभी उसके कानो मैं कही से आवाज गुंजी
"मनुष्य"
बिरजू एकदम से घबरा गया
"घबराओ नहीं मनुष्य मैं कालदूत हु और मैं तुम्हे कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा"
"तुम क्या हो और मुझसे कैसे बात कर पा रहे हो "
"मैं कालदूत हु मनुष्य ये मेरे लिए मुश्किल नहीं है मैं तुम्हारी मानसिक तरंगों से जुड़ा हु और मैं तुम्हे कुछ नहीं करूँगा मैं तो खुद लाखो वर्ष से समुद्रतल की गहराइयो मैं कैद हु, देवताओ ने मुझे कैद किया था"
"पर मैं यहाँ कैसे आया " बिरजू
"क्युकी मैं तुम्हे यहाँ लाया हु, मुझे मुक्त होने के लिए तुम्हारी आवश्यकता है तुम्हे हर तीन सालो मैं १०० लोगो की बलि देनी होगी वो भी निरंतर १००० वर्षो तक ताकि मैं मुक्त हो पाउ बदले मैं मैं तुम्हे असीम शक्ति प्रदान करूँगा, आज से मै ही तुम्हारा भगवान हु, तुम जो ये पानी के भीतर भी सास ले पा रहे हो ये मेरी ही कृपा है अब जाओ और हमारी मुक्ति का प्रबंध करो "
कालदूत की बातो का बिरजू पर जादू हो गया और वो उसके सामने नतमस्तक हो गया तभी वहा एक किताब प्रगट हुयी
"उठो वत्स और ये किताब को यह हमारा तुम्हारे लिए प्रसाद है जिसमे वो विधि लिखी है जिससे तुम हमें अपने भगवान हो मुक्त करा पाओगे और इसी किताब की सहायता से तुम्हे और भी कई साडी सिद्धिया प्राप्त होगी "
बिरजू ने वो किताब ली
“पर 1000 वर्ष मैं जीवित कैसे रह सकता हु प्रभु”
“यही किताब उसमे सहायक होगी वत्स और हमारी शरण में आते ही तुम्हारी आयु साधारण मनुष्य से अधिक हो गयी है पर तुम्हे यह कार्य जारी रखने के लिए संगठन बनाना होगा हमारे और भक्त बनाने होंगे अब जाओ हम सदैव तुमसे जुड़े रहेंगे”
"महान भगवान कालदूत की जय" और इतना बोलते साथ ही बिरजू की आँखें बंद हो गयी और जब खुली तब उसने अपने आप को किनारे पे पाया,
पहले तो उसे यकीं नहीं हुआ की ये क्या हुआ पर जब उसकी नजर अपने हाथ मैं राखी किताब पे पड़ी तब उसे यकीन हो गया की जो हुआ वो सत्य था और वो लग गया अपने स्वामी को मुक्त करने की मोहिम मैं........
Je dusre update me to varsh 2017 aa gayaभाग २
समय रात के 11 बजे
अमावस की वो एक बेहद ही काली और भयान रात थी हर तरफ निर्जीव शांति फैली हुई थी सिवाय जंगल के.....
जंगल के बीचों बीच एक हवन कुंड जल रहा था और उसके इर्द गिर्द 5 लोग काले कपडे पहन कर कुछ मंत्रोच्चारण कर रहे थे और उस हवन कुंड के ठीक सामने एक पेड़ पर एक व्यक्ति अधमरी हालत मैं जंजीरो से बंधा हुआ था
यहा इन पांचों लोगो का मंत्रोच्चारण सुरु था, उन सभी के चेहरे ढके हुए थे और आँखें लाल होकर देहक रही थी तभी उनलोगों ने हवन मैं आहुतियां देना सुरु किया और जोर जोर से मंत्रोच्चारण करते हुए आहुतियां देने लगे,
उनलोगों की आवाजें उस जंगल की शांति की भंग कर रही थी वातारवण ऐसा हो रखा था मानो किसी ने संसार से सारि ख़ुशी चूस ली हो
जैसे ही उन लोगो ने अपनी आखरी आहुति पूरी की वहा उन पांचो मैं से एक व्यक्ति की अट्टहास भरी हँसी की आवाज गूंगी
"आखिर को क्षण आ ही गया, मेरे मालिक की मुक्ति अब ज्यादा दूर नहीं"
वो शख्स अपनी जगह से उठा और उसी हवन कुंड से जलती हुयी एक लकड़ी उठायी और उस पेड़ से बंधे इंसान के पास गया और अपने चेहरे से नकाब हटाया
"न.... नहीं.....म... मुझे... म...मत..मारो....मैं ...मैं तुम्हारा बाप हु...." उस अधमरे इंसान ने बोलने की कोशिश की
"जो मेरे भगवान को नहीं मानता वो मेरा बाप नहीं हो सकता आप बहुत खुशनसीब है के आपको महान भगवन कालदूत की मुक्ति के लिए योगदान देने का अवसर मिला है" और इतना बोलने के साथ ही उस आदमी ने अपने हाथ मैं पड़की वो जलती हुई लकड़ी उस आदमी को लगाई. उन लोगो ने पहले ही इस इंसान पर मिटटी का तेल छिड़का होने की वजह से उस इंसान का शरीर जलने लगा. उसकी चीखे पुरे जंगल में गूंज उठी
वो पांचो वहा उस जलते हुए शख्स को देख कर खुश हो रहे थे... आग ने जिस पेड़ पे वो इंसान बंधा हुआ था उसे भी अपनी चपेट में ले लिया था और अब आग की लपटें ऊँची ऊँची उठ रही थी....
थोड़े समय बाद वह केवल रख बची थी और उस जल हुए शारीर के अंश...
"महान भगवान कालदूत अपने भक्त बिरजू के हाथो पहली आहुति स्वीकार करे" और इतना बोलते साथ ही बिरजू ने वहा राख बने अपने पिता के शरीर के कुछ अंश उठाये और उस हवन कुंड मैं डाल दिए.
बिरजू और कालदूत की भेंट हुए आज दो माह हो गए थे और कालदूत ने मनो बिरजू पर सम्मोहन कर दिया था. बिरजू उसका निस्सीम भक्त बन गया था और उसे ही अपना देवता मानता था... और साथ ही उस किताब की पूजा करता था जो उसे कालदूत ने दी थी...
वो किताब खुद कालदूत ने लिखी थी जो उसके जीवन के अनुभवो पर आधारित थी जिसमे उसके देवताओ से लड़ने की कई कहानियां थी और ये भी लिखा था के पापी देवताओ ने कैसे उसे छल से समुद्रतल की गहराइयों में कैद किया था जिससे मुक्ति पाने के लिए कालदूत को आत्माओ की शक्ति की आवश्यक्ता थी... उस किताब मैं काले जादू से सम्बंधित कई सिद्धिया और उसे प्राप्त करने की विधि के बारे में विस्तृत जानकारी थी जिसकी कोई भी सामान्य मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता....
बिरजू जैसे जैसे उस किताब को पढता गया वैसे वैसे कालदूत के प्रति उसकी भक्ति भी बढ़ रही थी, वो मानने लगा था के सृष्टि का उद्धार केवल कालदूत ही कर सकता है, उसने जंगल मैं कालदूत का मंदिर भी बनाया था जहा अभी अभी उसने अपने पिता की बलि दी थी
इंसान जब भी कोई नयी चीज़ करता है तो वो उसकी सुरवात अपने परिवार से करता है बिरजू ने भी वैसा ही किया, उसके परिवार मैं उसके पिता के अलावा कोई नहीं था उसने अपने पिता को कालदूत के बारे मैं बताया और कालदूत की शरण मैं आने के लिए समझाया लेकिन उसके पिता ने उसकी पागलो मैं गिनती की और ईश्वर की राह चलने की सहल दी और यही से.... जब बिरजू के पिता बटुकेश्वर ने कालदूत की भक्ति से इंकार कर दिया बिरजू के मन मैं उनके प्रति नफरत के भाव बनने लगे.......
जिस दिन बिरजू समुद्र के तूफ़ान से बच कर आ गया था और उसके तीनो साथिओ मरे गए थे तब उसने अपने गाओ वालो को भी कालदूत के बारेमे बताया पर उस समय किसीने उसकी बातो पर यकीं नहीं किया सिवाय ४ लोगो को छोड़ के जिनके मन मैं कालदूत को लेकर कुतूहल जगा था....धीरे धीरे १ महीने का समय व्यतीत हुआ, बिरजू उस किताब का अध्यन करके कई सारी सिद्धिया प्राप्त कर चूका था और कालदूत का भक्त तो वो पहले ही बन चूका था और अब अपने स्वामी को मुक्त करना चाहता था लेकिन ये काम आसान नहीं था और ये उसके अकेले के बस का भी नहीं था उसे लोगो की जरुरत थी जो उसी की तरह कालदूत के भक्त हो.....
बिरजू ने ऐसे लोगो को ढूंढ़ना सुरु किया जिनके मन मैं ईश्वर के प्रति गुस्सा हो, जिन्होंने अपनी कोई अतिमुल्यवान चीज़ खोई हो और उसका जिम्मेवार ईश्वर को मानते हो और जब उसने ऐसे लोगो की खोज की तो पाया के इनके सबसे अग्रणी वही ४ थे जिनके मन मैं कालदूत को लेकर कुतूहल जगा था.....
बिरजू ने धीरे धीरे उनसे दोस्ती बनायीं, उन्हें कालदूत के बारेमें बताया, और ये भी बताया के कैसे महान कालदूत को देवताओ ने कैद किया था, बढ़ते समयके साथ साथ वो चारो भी बिरजू के साथ कालदूत की भक्ति करने लगे और इन सब क्रियाओ मैं बिरजू अपने पिता से दूर होता गया क्युकी उसके पिता बार बार उसे समझने की कोशिश करते,
इस पुरे घटनाक्रम मैं कालदूत बिरजू के दिमाग से जुड़ा हुआ था और समय समय पर सपनो के जरिये उसे निर्देश भी देता था और जैसे ही बिरजू के अलावा वो चारो भी कालदूत की भक्ति करने लगे तो कालदूत उनके सपनो मैं भी आ गया और इन पांचो को बताया के उसकी भक्ति करने से वो उन्हें कई प्रकार की सिद्धिया देगा न की उनके भगवान् की तरह उन्हें दुःख और गरीबी देगा.....कालदूत की बाते उसके भक्तो पर सम्मोहन की तरह काम करती थी......बिरजू को अपने पिता की बलि देने के लिए भी कालदूत ने ही आदेश दिए थे जिसे बिरजू ने पूरा किया......
"आज ये पहली बलि है हमारे भगवन कालदूत की मुक्ति के लिए लेकिन अंतिम नहीं, जब मेरी भेट कालदूत से हुयी थी उन्होंने कहा था के हमें हर 3 वर्षो मैं १०० बलिया देनी होगी वो भी निरंतर १००० वर्ष तक तब हम हमारे स्वामी को उस समुद्रतल से मुक्त कर पाएंगे साथियो हमारा असली काम अब सुरु हुआ है, बोलो महान भगवान कालदूत की..!" बिरजू बोला जिसके पीछे सब एकसाथ चिल्लाये "जय !!"
उसके बाद इनलोगो ने अपना संगठन मजबूत करने पर जोर दिया और उसे नाम दिया 'कालसेना' समय के साथ साथ इनकी विचारधारा से कई लोग जुड़े और कालसेना का हिस्सा बने, बलि के लिए ये लोग मुख्यत्व उनलोगो को निशाना बनाते जो किसी भी धार्मिक कार्य से जुड़े होते जिससे ये लोगो को यकीन दिला सके के इनका ईश्वर इन्हे बचाने नहीं आएगा बल्कि कालदूत की शरण मैं आने से इनके दुःख दूर होंगे,
कालसेना छिप कर काम करती थी और बलि का तरीका वही था जिससे इन्होने पहली बलि दी थी, कालसेना की विचारधारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे प्रसारित होती रही और हर ३ वर्षो मैं १०० बलिया कालदूत को निरंतर मिलती रही,
आज कालसेना से कई लोग जुड़े थे और कालदूत की भक्ति कर उसे मुक्त करना चाहते थे, ये एक काफी बड़ा संगठन था जिसका मुखिया आज भी बीरजु का परिवार था बिरजू के मरने के बाद ये हक़ उसके बेटे को मिला लेकिन उसके बाद कालसेना का मुखिया बनने के लिए संगठन मैं द्वन्द होता और जो श्रेष्ठ होता उसे कालसेना के मुखिया का पद मिलता जिसमे हमेशा से ही बिरजू के परिवार का बोल बाला रहा
कालसेना बड़ा संगठन था लेकिन छिपा हुआ था और इनके लोग हर क्षेत्र मैं मौजूद थे व्यवसाय से लेकर राजनीति और मीडिया तक मैं इनकी पहुंच थी जो इनका भेद छिपा रखने मैं मदद करती थी, कालसेना का मानना था के जिस दिन इनके भगवान कालदूत मुक्त होंगे उसी दिन ये भी दुनिया के समक्ष आएंगे...और फिर दुनिया पर राज करेंगे और अब काल सेना अपने लक्ष के काफी करीब थी आने वाले 3 वर्षो मैं १०० बलि देने से उनकी १००० वर्षो की तपस्या सफल होने वाली थी जिसमे से वो २० बलियो का प्रबंद कर चुके थे बस इंतज़ार कर रहे थे सही अवसर का...........