अपडेट ३०
(बलदेव के घर मेंन फार्महाउस में)
बलदेव सुबह ७ बजे उठा और नाहा धो कर जंगल वाले फार्महाउस पे चला गया. उसने तय कर लिया था की वो उस फार्महाउस कोई साफ सफाई और मरम्मत करवाएगा और काम खत्म हुआ तोह वहा से देवगढ़ वाले रस्ते के गेराज पे चला जायेगा.
८ बजे जयश्री की आंख खुली पर अभी भी थोड़ा हैंगओवर था. बेड पर सोते सोते ही वो अपने प्यारे पापा के प्यार के बारे में सोचने लगी. कल रात उसके पापा ने उसके ऊपर के मन के द्वार खोल दिए थे अब निचे के द्वार खोलने बाकि थे. उसने देखा की उसका नेकलेस टेबल पे रखा था, बलदेव ने जाते जाते वो नेकलेस हलके से निकाल कर टेबल पे रख दिया था. उसको अपने पापा का रात वाला प्यार से शर्म आने लगी वो शरमाई और हलके से मुस्कुराई. उसने देखा की वो बेड पर सिर्फ जीन्स और पैंटी में सोयी हुए है और चद्दर खिसकी हुई थी और वो ऊपर से पूरी ओपन थी. तभी उसके कमरे का दरवाजा खुला और सतीश एक ट्रे लेकर अंदर आते हुई दिखा. वो चाय ले कर आया था. तभी जयश्री ने अपने छाती चद्दर से ढक दी ताकि उसका पति सतीश उसको ऐसे न देखे. हाला के सतीश दिन के उजाले में अपनी बीवी की कड़क बॉल्स देखना चाहता था. कल रत उसने देखा पर अँधेरे में उसके शेप ही दिखाई दे रहे थे बस.
सतीश- उठो जयश्री.. चाय तैयार है
जयश्री- तुमको समझता नहीं की कल रात अपनी बीवी ने दो बॉटल गटक ली है तोह अपनी बीवी को चाय कैसे पिलाये! हैंगओवर हुआ है तोह काम से काम निम्बू पानी तोह ले आना था न! निकम्मे हो निक्कमे ही रहोगे.
सतीश- माफ़ करना जयश्री! वो तुमको चाय पसंद है न इसलिए चाय लाया था.
जयश्री बेड पर रेल के बैठ जाती है अपने छाती पर चद्दर ओढ़े.
जयश्री- जाओ निम्बू पानी ले कर आओ वो भी थोड़ा ठंडा सा.
सतीश- जी लेके आता हूँ
सतीश चला गया वापस किचन में. जयश्री बेड से उठी और उसको कोई कुर्ता नहीं मिला उसने अपना जीन्स निकाला, बाद में देखा की उसकी पैंटी में कल रात का पानी अब सुख गया था.. उसको सोच कर लज्जाइ.. उसकी पैंटी के सामने वाले भाग पर एकदम गाढ़ा धब्बा सा दाग पढ़ गया था.. उसने अपनी पैंटी भी निकली और जीन्स के साथ टेबल पर फेक दी. उसने बाजु में पड़ा उसका स्टॉल उठाया और छाती से लेकर जांघो तक खुद को स्टॉल से ढक दिया और बालकनी में चली गयी. उसने देखा की उसके पापा की गाड़ी नहीं दिख रही है और समझ गयी की उसके पापा कही चले गए है.. मौसम काफी अच्छा था. वो वही पे कुर्सी पर बैठ गयी और टिया-पोय पर अपने पेअर फैला दिए..
थोड़ी देर में सतीश निम्बू पानी लेके आया. उसने जयश्री को निम्बू पानी दे दिया. निम्बूपानी देते हुए उसकी नजर बाजु के टेबल पे गयी, और वो देख कर हैरान हो गया.. उसने शायद पहेली बार अपनी बीवी की पैंटी उसके पानी से सराबोर होते हुए देखि थी. उसके पानी का बहाव देख कर ही वो समझ गया की उसके ससुर ने उसकी बीवी को कितना खुश किया होगा कल रात को..
जयश्री- सुनिए, पापा कहा है?
सतीश- पता नहीं वो बता के नहीं गए, बस इतना कहा की मै तुम्हारा ध्यान रखु यहाँ..
जयश्री के चेहरे पर स्माइल थी.. जयश्री को अच्छे मूड में देख कर सतीश को लगा की वो अपनी बात उस से पूछ ले.
सतीश- एक बात पुछु!
जयश्री ने इशारे में ही हाँ कह दिया. और निम्बू पानी का सिप लगाने लगी.
सतीश- मेरे आते ही तुमने अपने बदन को ढक लिया, क्यों?
जयश्री (उपहास में हस्ते हुए)- तुमसे मतलब !
सतीश- मुझ से! मुझे क्या मतलब! तुम मेरी बी..
जयश्री- नहीं.. ये मत कहना, बीवी कहने का हक़ उसे होता है जो खुद पति होने का हक़ निभा सके..
सतीश ने सर निचे किया उसने भी अब एक निम्बू पानी का गिलास बनाया और पिने लगा..
सतीश- पर पहल भी मैंने देखा है न! अब अचानक से क्या हुआ..
जयश्री- तुमको पता है क्या हुआ..
सतीश- पर अब मेरा मूड है देखने का तोह कभी कबार तोह दिखा ही सकती हो!
जयश्री (उपहास में)- और क्या ही कर लोगे देख कर..
सतीश को समझ नहीं आ रहा था की क्या बोले, दरसल कल रात जब उसके ससुर जी उसकी जवान बीवी को प्यार कर रहे थे तब उसको अपनी बीवी के जिस्म को देखने की चाहत हुई.. ऐसा उसे कभी नहीं हुआ था..
सतीश- बस देखना चाहता हूँ.. एक बार..
जयश्री वैसे ही गिलास लेकर कमरे में गयी सतीश भी पीछे पीछे गया..
जयश्री- तुमने मुझ से शादी की है तोह थोड़ी बोहोत तोह बीवी हूँ ही तुम्हारी, मना तोह नहीं कर सकती.. पर एक शर्त है ..
जयश्री टेबल से सट कर खड़ी हुई थी.. उसने गिलास टेबल पे रखा
सतीश- कैसी शर्त?
जयश्री- की तुम मेरे पास आओगे नहीं..
सतीश- क्या ही फर्क पड़ता है यार तुम मेरी बीवी हो और तुमसे प्यार करना चाहता हूँ..
जयश्री- बीवी! माय फुट..
जयश्री ने टेबल से वो नेकलेस उठाया और सतीश को दिखते हुए
जयश्री- ये देखा, ये किसने गिफ्ट किया है पता है ना तुम्हे! तुम्हारी औ## है ऐसा गिफ्ट देने की! जिंदगी भर नल्ले थे और नल्ले ही रहोगे समझे! बड़े आये बीवी बनाने वाले!
जयश्री- बात सिर्फ गेहेनो की नहीं है.. बात है प्यार जताने की.. पापा सिर्फ प्यार जताते नहीं बल्कि वो मुझ से प्यार भी करते है.. वो उनकी असली ताकत है सतीश.. मुझे फर्क नहीं पड़ता की वो मुझे गहने दे या नहीं दे.. मै इतना जानती हु की मै उनके लिए बोहोत खाँस हु.. और इसका साबुत तुम शायद देख चुके हो.. वो देखो.. यह कर सकते है पापा.. ये उनकी ताकत है.. अभी तोह उन्होंने मेरे साथ कुछ किया भी नहीं तोह मेरी यह हालत है..
जयश्री ने अपने पति का ध्यान अपनी रात वाली भीगी हुए पैंटी की तरफ कर दिया..
जयश्री- और मुझे अधनंगी क्यों देखना चाहते हो.. तुमने तोह देखि होगी न कई लॉज में वो औरते ऊपर से बिना कपड़ो की तोह अब मुझे क्यों बोल रहे हो दिखाने को?
सतीश चुप था.
जयश्री- यही फर्क तुम में और पापा में.. वो लॉज पे अपना दर्द बाटने जाते थे और तुम सिर्फ अपनी भूक मिटाने.. प्यार करने का सवाल ही नहीं आता..
कमरे में सन्नाटा था..
जयश्री- खैर.. तुम कर लो जो करना है मै तुमको मना तोह नहीं कर सकती दिखाने के लिए..
जयश्री ने स्टॉल को अपने छाती से थोड़ा ढीला किया और वैसे ही निचे सरकाते सरकाते अपने कमर और पैरो को ढक दिया और ऊपर से पूरी तरह से खुली थी
उसकी जवानी किसी तराशी हुए नक्शी जैसी थी, पुष्ट और कड़क. उसके ऊपर के साइड वाले आर्म्स थोड़े से गदराये हुए थे जो उसकी जवानी को और भी संगीन बना रहे थे. उसकी कमर ने काफी अच्छा शेप लिया था और. एक बात उसे बिलकुल अलग दिख रही थी की जयश्री के यौवन का निखार और बढ़ा था. वो और भी मादक दिख रही थी. उसके त्वचा काफी फ्रेश और चिकनी लग रही थी. उसकी सुंदरता में अब कम से कम ३ गुना बढ़ोतरी हुए थी और ये तब भी नहीं था जब वो थोड़े सयम के लिए रुद्रप्रताप के साथ रत हुए थी. उसका कारन वो पक्का तोह नहीं जानता था पर एक बात तोह है की उसकी जवानी में निखार का कारन उसके ससुर याने जयश्री के पापा खुद होंगे. हं ये उसके पिता के ही छुअन का नतीजा है जो उसकी मादकता और निखार किसी नशीले तपते जवानी में बदल गया था. उसे अब कोई ताज्जुब नहीं हुआ की उसका ससुर खुद उसकी बेटी के प्यार की जाल में कैसा फंस गया. जयश्री ने कोई जल्दबाज़ी नहीं की, उसने आराम से के हाथ पीछे टेबल पे टिका के दूसरे हाथ से निम्बू शरबत पिने लगी. वो उसे अच्छे से दिखाना चाहती थी क्यों की वो बार बार फिर से उस दिखाने की गुजारिश न करे. उसको उस रूप में देख कर सतीश सुधबुध खो गया.. उसके दो टांगो की बिच की मूंगफल्ली में थोड़ी जान आयी थी.. और उसके जिस्म को छूने के लिए अनजाने में एक कदम आगे बढ़ाया.. तभी..
जयश्री- ख़बरदार.. एक कदम भी आगे बढ़ाया तोह .. तुमको पता है अगर पापा को पता चला तोह उसका अंजाम क्या होगा.. तुम सोच भी नहीं सकते.. सोचो की अगर उन्हें पता चला की तुमने जबरदस्ती उनकी प्यारी बेटी को हाथ लगाया.. तोह ..
सतीश डर गया.. वो पीछे हैट गया थोड़ा..
जयश्री- शुक्र मनाओ की इसका दीदार तुम दिन के उजाले में कर रहे हो.. इसका दीदार तोह अब तक मैंने पापा को भी दिन के उजाले में नहीं कराया..
सतीश मान गया ये बात तोह सही है, की आज भी वो अपनी बीवी की जवानी देख सकता है वो भी दिन के उजाले में.. और वो अपनी नुन्नी को पैंट के ऊपर से हाथ लगाने लगा..
जयश्री- यहाँ नहीं, यहाँ अपने मूंगफली के साथ नहीं खेलना.. अपने कमरे में जा कर उसका क्या करना है करो.. यहाँ कुछ नहीं करोगे..
सतीश- तुम्हे देखते हुए कम से कम एक बार.. तोह..
जयश्री- नहीं, बिलकुल नहीं..
अब जयश्री ने निम्बू सरबत गटक लिया
जयश्री (उपहास में बोरिंग सा फेस दिखा कर) - हो गया! देख कर! अब फूटो यहाँ से
सतीश वह नजदीक जाके गिलास लेने गया और नजदीक से अपने बीवी के अधनग्न ऊपर के शरीर का दीदार करने लगा.. जयश्री खामोश थी.. उसको पता था की अब सतीश की हिम्मत कभी नहीं होगी उसको छूने की..
सतीश ने गिलास ट्रे में रखा और निकलने वाला था..
जयश्री- और सुनो आज से मेरे कमरे में कोई नहीं आएगा.. तुम्हारे और पापा के इलावा.. सुभाष को बोल दो.. मै नहीं चाहती की सबको पता चले मेरे और पापा के बारे में.. तुम ही अब मेरे कमरे की साफ़ सफाई करोगे.. तुम मेरे कपडे भी धोओगे. वो सुभाष नहीं धोएगा..
और यह कहते ही जयश्री ने अपनी पैंटी उठा के सतीश के मुँह पे मार दी और अपनी जीन्स उसके हाथ पे फेंक दी.. जैसे ही जयश्री की पैंटी उसके मुँह पर पड़ी उसको एक तेज सी स्मेल आई जो जयश्री के प्यार का बहाव था.. वो उसके लिए अपनी बीवी का उसके पिता के प्रति प्रेम का चिन्ह था.. उसने नाखुशी में उसके मुँह के ऊपर की उसकी पैंटी हाथ में ले कर सब बास्केट में डाल कर जाने ही वाला था की..
जयश्री- और सुनो.. पापा को बोलना की यहाँ एक 'बार फ्रिज' मंगाए, और हं अच्छे क्वालिटी की बीयर्स का इंतजाम करो, मुझे सभी ब्रांड्स के बीयर्स यहाँ चाहिए गैलरी के बहार के साइड में.. समझे..
सतीश को कोई ताज्जुब नहीं हुव.. जैसा बाप वैसी बेटी आग दोनों शराब की रंगीनियत में खोने जा रहे थे.. ऊपर के कमरे में बाप का शराब का अड्डा था अब बेटी भी निचे अपने कमरे में बियर का अड्डा बनानेवाली थी..
सतीश- अरे मै मंगवा लूंगा न आज श्याम तक, अपने पापा को क्यों तकलीफ देती हो.. उस में क्या ही खर्चा.. तुम फ़िक्र मत करो मै मंगवा दूंगा आज
जयश्री- हं पर मै तुमको पैसे लोटा दूंगी.. मुझे तुम्हारी फुटी कोड़ी भी नहीं चाहिए..
सतीश नाराज हो गया..
जयश्री- अब जाओ, मेरे नाश्ते का इंतजाम करो, मै १ घंटे में जिम से वापिस आती हूँ..