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Kya bat heमाना की तुम माँ हो , पर माल हो
माना की तुम माँ हो , पर माल हो
धमाल हो , कमाल हो बबाल हो
कुछ काम से जब झुकती है
ब्लाउज़ में आँखे गड़ती है
काश दिख जाए निप्पल
आँखे यही चाहती है...
मम्मे दबोचने का ख़याल हो
माना की तुम माँ हो, पर माल हो
बाजार जब जब जाती हो
गांड ऐसे मटकाती हो
सरे आम जाने कितनो का
तम्बू खड़ा कर आती हो
है क्या इन मटको का ताल है !
माना की तुम माँ हो, पर माल हो
राकेश बक्शी
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kuchh deekhe toh! sab dhanka dhanka hai...
खुली खुली गांड, उतरी पेंटी
खुली खुली गांड, उतरी पेंटी
जांघो में सारी रात जाएगी
तुमको भी कैसे नींद आएगी, हो
खुली-खुली गांड …
मस्ती भरी, गांड जो हिली
फ़ूल फूल गई, लौंडो की नली
कब पेल दे ये है खलबली
जल्दी से घोड़ी बन जाओ, ओ हो ...
खुली-खुली गांड …
-राकेश बक्षी ( २२ सितंबर २३)
भाई,
आप का दिल रखने लिख दिया- पर तस्वीर सेक्सी होनी चाहिए - ये आर्टिस्टिक ढंग की तस्वीर ही मिली?
और कुछ डिटेल में फरमाइश होनी चाहिए की किन रिश्तो के बारे में गाना होना चाहिए…