• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Sanju@

Well-Known Member
4,971
19,992
158
छब्बीसवाँ अध्याय: दुखों का ग्रहण
भाग - 5


अब तक पढ़ा:


अगली सुबह घर से निकलते समय नेहा ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मुझे हिदायत देती हुई बोली;

नेहा: पापा जी, अपना ख्याल रखना| किसी अनजान आदमी से बात मत करना, मुझे कानपूर पहुँच कर फ़ोन करना, lunch में मुझे फ़ोन करना और रात को flight में बैठने से पहले फ़ोन करना और दवाई लेना मत भूलना|

नेहा को मुझे यूँ हिदायतें देता देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह मेरी बिटिया! तू तो बिलकुल मेरी तरह अपने पापा को सीखा-पढ़ा रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा और उनकी बात सुन सब हँस पड़े, संगीता भी मुस्कुराना चाह रही थी मगर उसकी ये मुस्कान घुटी हुई थी|

मैं: बेटा, सारी हिदायतें आप ही दोगे या फिर कुछ अपनी मम्मी के लिए भी छोड़ोगे?!

मैंने कुटिल मुस्कान लिए हुए संगीता की ओर देखते हुए कहा|

संगीता: बेटी ने अपनी मम्मी के मन की कह ही दी तो अब क्या मैं दुबारा सारी बातें दोहराऊँ?!

संगीता ने कुटिलता से नकली मुस्कान लिए हुए जवाब दिया| संगीता की कुटिलता देख मैं भी मुस्कुरा दिया और उसे कमरे में जाने का इशारा किया| कमरे में आ कर मैंने संगीता को अपना ख्याल रखने को कहा ओर संगीता ने भी अपना सर हाँ में हिलाते हुए संक्षेप में जवाब दिया|



अब आगे:


दोपहर
बारह बजे मैं लखनऊ पहुँचा और तभी नेहा का फ़ोन आ गया;

नेहा: पापा जी, आप कहाँ हो?

नेहा चिंतित होते हुए बोली|

मैं: बेटा, मैं अभी-अभी कानपूर पहुँचा हूँ, आपको call करने वाला ही था की आपका call आ गया|

मैंने नेहा को निश्चिन्त करते हुए झूठ कहा|

नेहा: आपने कुछ खाया? पहले कुछ खाओ और दवाई लो!

नेहा मुझे माँ की तरह हुक्म देते हुए बोली| उसका यूँ माँ बन कर मुझे हुक्म देना मुझे मजाकिया लग रहा था इसलिए मैं हँस पड़ा और बोला;

मैं: अच्छा मेरी मम्मी जी, अभी मैं कुछ खाता हूँ और दवाई लेता हूँ!

नेहा ने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था और जैसे ही मैंने उसे मम्मी जी कहा मुझे पीछे से माँ, आयुष और पिताजी के हँसने की आवाज आई| नेहा को भी मेरे उसे मम्मी जी कहने पर बड़ा मज़ा आया और वो भी ठहाका लगा कर हँसने लगी|

मैंने फ़ोन रखा और बजाए खाना खाने के सीधा गाँव के लिए निकल पड़ा| लखनऊ से गाँव पहुँचते-पहुँचते मुझे दोपहर के दो बज गए| मैं जानता था की गाँव में मेरा कोई भव्य स्वागत नहीं होगा इसलिए मैं अपने लिए पीने का पानी और खाने के लिए चॉकलेट ले कर आया था| पंचायत बैठनी थी 5 बजे और मैं 2 बजे ही घर पहुँच चूका था| मुझे घर में कोई नहीं दिखा क्योंकि बड़की अम्मा पड़ोस के गाँव में गई थीं, चन्दर अपने घर में पड़ा था, अजय भैया और बड़के दादा कहीं गए हुए थे| जब मैंने किसी को नहीं देखा तो मैं सड़क किनारे एक पेड़ के किनारे बैठ गया क्योंकि इस घर से (बड़के दादा के घर से) अब मेरा कोई नाता नहीं रह गया था| पिछलीबार जब मैं चन्दर के sign लेने गाँव आया था तब ही बड़के दादा ने हमारे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया था, इसलिए आज मुझे यहाँ पानी पूछने वाला भी कोई नहीं था| 15 मिनट बाद रसिका भाभी छप्पर की ओर निकलीं तब उन्होंने मुझे देखा मगर बिना कुछ कहे वो चली गईं, फिर अजय भैया बाहर से लौटे और मुझे बैठा देख वो भी बिना कुछ बोले बड़के दादा को बुलाने चले गए| फिर निकला चन्दर, हाथ में प्लास्टर लपेटे हुए, उसने मुझे देखा और मुझे देखते ही उसकी आँखों में खून उतर आया मगर उसमें कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई| अजय भैया, बदके दादा को मेरे आगमन के बारे में बता कर लौट आये थे और चन्दर के साथ खड़े हो कर कुछ खुसर-फुसर करने लगे| कहीं मैं उनकी खुसर-फुसर न सुन लून इसलिए चन्दर, अजय भैया को अपने साथ बड़े घर ले गया| दरअसल चन्दर इस समय अजय भैया को पढ़ा रहा था की उन्हें पंचों के सामने क्या-क्या बोलना है|



तभी वरुण फुदकता हुआ खेल कर घर लौटा, मुझे देखते ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फ़ैल गई| वो मेरे गले लगना चाहता था मगर घर में जो बातें उसने सुनी थीं उन बातों के डर से वो मेरे नजदीक नहीं आ रहा था| मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और चॉक्लेट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाई, वरुण के चेहरे की मुस्कान बड़ी हो गई थी मगर वो अब भी झिझक रहा था| उसने एक नजर अपनी मम्मी को छप्पर के नीचे बैठे देखा और उनके पास दौड़ गया, रसिका भाभी तब मुझे ही देख रहीं थीं| उन्होंने वरुण की पीठ पर हाथ रख मेरी ओर धकेला तो वरुण मुस्कुराता हुआ धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आया| उसने झुक कर मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उसे रोका और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा| वरुण अब बड़ा हो चूका था और लगभग नेहा की उम्र का हो चूका था मगर दिल से वो अब भी पहले की ही तरह बच्चा था|

वरुण: चाचू, हमका भुलाये तो नाहीं गयो?!

वरुण मुस्कुराता हुआ बोला|

मैं: नहीं बेटा, मुझे आप याद हो और ये भी याद है की आपको चॉकलेट बहुत पसंद है|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा ओर वरुण ने चॉकलेट ले ली|

वरुण: थे..थैंक्यू चाचू!

वरुण खुश होते हुए बोला| फिर उसने वो सवाल पुछा जो उसकी माँ ने उसे पढ़ाया था;

वरुण: चाची कइसन हैं? और...और...आयुष कइसन है? नेहा दीदी कइसन हैं?

मैं: सब अच्छे हैं और आपको याद करते हैं|

मैंने संक्षेप में जवाब दिया|



इतने में बड़के दादा और बड़की अम्मा साथ घर लौट आये, मुझे वरुण से बात करता देख बड़के दादा एकदम से वरुण को डाँटने लगे| मैंने आयुष को मूक इशारा किया और उसने मेरी दी हुई चॉकलेट छुपा ली तथा बड़े घर की ओर दौड़ गया| बड़के दादा ओर बड़की अम्मा ने मुझे देखा परन्तु वो खामोश खड़े रहे| बड़के दादा की आँखों में मेरे लिए गुस्सा था मगर बड़की अम्मा की आँखों में मैंने अपने लिए ममता देखीं, लेकिन वो बड़के दादा के डर के मारे खामोश थीं और मुझे अपने गले नहीं लगा पा रहीं थीं| मैं ही आगे बढ़ा और उनके (बड़के दादा और बड़की अम्मा के) पाँव छूने के लिए झुका, बड़के दादा तो एकदम से मेरी ओर पीठ कर के खड़े हो गए तथा मुझे अपने पाँव छूने नहीं दिए| जबकि बड़की अम्मा अडिग खड़ी रहीं, मैंने उनके पाँव छुए और बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद देना चाहा परन्तु बड़के दादा की मौजूदगी के कारण वो कुछ कह न पाईं| उन्होंने मुझे मूक आशीर्वाद दिया और मेरे लिए वही काफी था|

बड़के दादा: तोहार पिताजी कहाँ हैं?

बड़के दादा गुस्से में मेरी ओर पीठ किये हुए बोले|

मैं: जी मैंने उन्हें इस पंचायत के बारे में नहीं बताया|

मैंने हाथ पीछे बाँधे हुए हलीमी से जवाब दिया|

बड़के दादा: काहे?

बड़के दादा ने मेरी ओर पलटते हुए पुछा| उनके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था|

मैं: शिकायत आपको मुझ से है उनसे नहीं, तो मेरा आना जर्रुरी था उनका नहीं|

मैंने बड़े तपाक से जवाब दिया| मेरे जवाब से बड़के दादा को बहुत गुसा आया और उन्होंने गरजते हुए अजय भैया से कहा;

बड़के दादा: अजय! जाओ जाइके पंचों का बुलाये लाओ, हम चाहित है की बात आभायें हो!

अजय भैया पंचों को बुलाने के लिए साइकल से निकल गएvइधर बड़के दादा और बड़की अम्मा छप्पर के नीचे जा कर बैठ गए| मेरे लिए न तो उन्होंने पीने के लिए पानी भेजा और न ही खाने के लिए भेली (गुड़)! शुक्र है की मेरे पास पानी की बोतल थी, तो मैं उसी बोतल से पानी पीने लगा|



अगले एक घंटे में पंचायत बैठ चुकी थी, बीचों बीच दो चारपाई बिछी थीं जिनपर पंच बैठे थे| पंचों के दाएं तरफ बड़के दादा कि चारपाई थी जिस पर वो, चन्दर और अजय भैया बैठे थे| पंचों के बाईं तरफ एक चारपाई बिछी थी जिसपर मैं अकेला बैठा था| पंचों ने बड़के दादा को पहले बोलने का हक़ दिया;

पंच: पाहिले तुम कहो, फिर ई लड़िकवा (मेरा) का पक्ष सूना जाई|

बड़के दादा: ई लड़िकवा हमार चन्दर का बहुत बुरी तरह कुटिस (पीटा) है, ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! ऊपर से हमका पोलिस-थाने और वकील की धमकी देत है! तनिक पूछो ई (मैं) से की ई सब काहे किहिस? हम से एकरे कौन दुश्मनी है? हम ई (मेरा) का का बिगाडन है?

बड़के दादा मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए गुस्से से बोले| पंचों ने बड़के दादा को शांत रहने को कहा और मेरी ओर देखते हुए बोले;

पंच: बोलो मुन्ना (मैं)!

मैं: मेरी अपने बड़के दादा से कोई दुश्मनी नहीं है, न ही कभी रही है| मैं तब भी इनका आदर करता था और अब भी इनका आदर करता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से बड़के दादा की ओर देखते हुए कहा| फिर मैंने चन्दर की तरफ ऊँगली की और गुस्से से बोला;

मैं: परन्तु ये (चन्दर)...ये शक्स 2 जनवरी को मेरी पत्नी की हत्या करने के मकसद से मेरे घर में घुस आया| संगीता का गला दबा कर उसकी जान लेने के बाद ये आयुष को अपने साथ ले जाना चाहता था, वो तो क़िस्मत से मैं घर पर था और जब मैंने इसके (चन्दर के) संगीता पर गरजने की आवाज सुनी तो मैंने वही किया जो एक पति को करना चाहिए था| अगर मुझे बड़की अम्मा का ख्याल न होता क्योंकि बदक़िस्मती से ये उनका बेटा है, तो मैं इसका टेटुआ दबा कर तभी इसकी जान ले लेता!

मैंने गुस्से से दाँत पीसते हुए कहा|

मेरी बात सुन बड़के दादा सख्ते में थे! उनके चेहरे पर आये ये अस्चर्य के भाव साफ़ बता रहे थे की उन्हें सच पता ही नहीं!

बड़के दादा: ई लड़िकवा (मैं) झूठ कहत है! चन्दर अकेला दिल्ली नाहीं गवा रहा, अजयो (अजय भी) साथ गवा रहा| ई दुनो भाई (अजय भैया और चन्दर) एकरे (मेरे) हियाँ बात करे खातिर गए रहे ताकि ई (मैं) और ई के (मेरे) पिताजी हमार पोता जेका ये सभाएं जोर जबरदस्ती से दबाये हैं, ऊ हमरे पास लौट आये! लेकिन बात करेका छोड़ ई लड़िकवा (मैं) हमार बेटा (चन्दर) का बुरी तरह मारिस और ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! हमार बेटा अजय ई सब का गवाह है!

बड़के दादा ने अजय भैया को आगे करते हुए गवाह बना दिया| उनकी बात सुन कर मुझे पता चला की चन्दर ने घर आ कर उलटी कहानी सुनाई है|

मैं: अच्छा?

ये कह मैंने अजय भैया की आँखों में देखते हुए उनसे पुछा:

मैं: अजय भैया कह दीजिये की यही हुआ था? क्या आप आये थे बात करने?

मैंने भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देखा, मुझसे नजर मिला कर अजय भैया का सर शर्म से झुक गया| हमारे बीच भाइयों का रिश्ता ऐसा था की वो कभी मेरे सामने झूठ नहीं बोलते थे| जब अजय भैया सर झुका कर निरुत्तर हो गए तो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई;

मैं: देख लीजिये पंचों, ये मेरे अजय भैया कभी मुझसे झूठ नहीं बोल सकते| आप खुद ही इनसे पूछ लीजिये की आखिर हुआ क्या था, क्या ये मेरे घर बात करने चन्दर के साथ आये थे?

मैंने पंचों की तरफ देखते हुए कहा तो सभी पंचों की जिज्ञासा जाग गई और वे अजय भैया से बोले;

पंच: अजय, कहो मुन्ना? तनिको घबराओ नाहीं, जउन सच है तउन कह दिहो!

अजय भैया का सर झुका देख कर बड़के दादा को भी जिज्ञासा हो रही थी की आखिर सच क्या है, इसलिए वो भी भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देख रहे थे| आखिर कर अजय भैया ने अपना मुँह खोला और हिम्मत करते हुए सच बोलने लगे;

अजय भैया: ऊ...हम चन्दर भैया संगे मानु भैया के घरे नाहीं गयन रहन! (चन्दर) भैया हमका ननकऊ लगे छोड़ दिहिन और कहिन की हम बात करके आईथ है| फिर जब हम अस्पताल पहुँचेन तब भैया हमसे कही दिहिन की हम ई झूठ बोल देइ की हम दुनो बात करे खातिर मानु भैया घरे गयन रहन और मानु भैया उनका (चन्दर को) बिना कोई गलती के मारिस है!

अजय भैया का सच सुन चन्दर की फटी की कहीं बड़के दादा उस पर हाथ न छोड़ दें इसलिए उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| इधर बड़के दादा को अजय की बात सुन कर विश्वास ही नहीं हो रहा था की सारा दोष उनके लड़के चन्दर का है;

बड़के दादा: चलो मान लेइत है की अजय हमसे झूठ बोलिस की ई दुनो (अजय भैया और चन्दर) बात करे खातिर साथ गए रहे मगर हम ई कभौं न मानब की चन्दर कछु अइसन करिस की ई लड़िकवा (मैं) का ऊ पर (चन्दर पर) हाथ छोड़े का मौका मिला हो!

बड़के दादा ने चन्दर का पक्ष लेते हुए कहा| उनके लिए उनका अपना खून सही था मगर मैं गलत! बड़के दादा इस वक़्त मुझे धीतराष्ट्र की तरह लग रहे थे जो अपने क्रूर बुद्धि वाले पुत्र चन्दर उर्फ़ दुर्योधन का पक्ष ले रहे थे|

मैं: मैं जूठ बोल रहा हूँ? ठीक है, मेरे पास अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है इसलिए मैं भवानी माँ की कसम खाने को तैयार हूँ!

भवानी माँ हमारे गाँव की इष्ट देवी हैं, माँ इतनी दयालु हैं की उनकी शरण में आये हर भक्त की वो मदद करती हैं| कितनी ही बार जब किसी व्यक्ति पर भूत-पिश्चाच चिपक जाता है, तब वो व्यक्ति किसी भी तरह माँ तक पहुँच जाए तो उस व्यक्ति की जान बच जाती है| ये भी कहते हैं की भवानी माँ की कसम खा कर झूठ बोलने वाला कभी जिन्दा नहीं बचता| मैंने माँ के प्यार का सहारा लेते हुए बड़के दादा से कहा;

मैं: दादा, आप भी चन्दर से कहिये की अगर वो बेगुनाह है तो वो भी मेरे साथ चले और माँ की कसम खाये और कह दे की उसके बिना कुछ किये ही मैंने उसे पीटा है|

इतना कह मुझे लगा की कहीं ये शराबी (चन्दर) कसम खा कर झूठ न बोल दे इसलिए मैंने उसे थोड़ा डराते हुए कहा;

मैं: ये याद रहे चन्दर की अगर तूने जूठ बोला तो तू भी जानता है की भवानी माँ तुझे नहीं छोड़ेंगी!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा| मैं तो फ़ौरन मंदिर चल कर कसम खाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया मगर चन्दर सर झुकाये ही बैठा रहा|

बड़के दादा: चल चन्दर?!

बड़के दादा ने कई बार चन्दर को मंदिर चलने को कहा मगर वो अपनी जगह से नहीं हिला, हिलता भी कैसे मन में चोर जो था उसके!

मैं: देख लीजिये दादा! आपका अपना खून आपसे कितना जूठ बोलता है और आप उसका विश्वास कर के मुझे दोषी मान रहे हैं|

मेरी बात सुन बड़के दादा का सर शर्म से झुक गया, उस समय मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगा| अब बड़के दादा झूठे साबित हो चुके थे मगर उन्हें अब भी अपना पोता चाहिए था, वो पोता जो उनके अनुसार उनकी वंश बेल था!

बड़के दादा: ठीक है पंचों, हम मानित है की हमरे सिक्का खोटा है!

बड़के दादा को अपनी गलती मानने में बड़ी तकलीफ हुई थी|

बड़के दादा: लेकिन अब ई लड़िकवा (मैं) हियाँ आ ही गवा है तो ई से कह दिहो की ई आयुष का हमका सौंप दे, काहे से की ऊ चन्दर का खून है और ई का (मेरा) आयुष पर कउनो हक़ नाहीं!

बड़के दादा बड़े हक़ से आयुष को माँग रहे थे|

मैं: बिलकुल नहीं!

मैं छटपटाते हुए बोला| बड़के दादा ने आयुष को चन्दर का खून कहा तो मेरा खून खौल गया| मैंने फटाफट अपने बैग से संगीता के तलाक के कागज निकाले और पंचों के आगे कर दिए;

मैं: ये देखिये तलाक के कागज़|

पंचों ने कागज देखे और बोले;

पंच: ई कागज तो सही हैं! ई मा लिखा है की चन्दर आयुष की हिरासत मानु का देत है और ऊ का (चन्दर का) आयुष पर अब कउनो हक़ नाहीं!

ये सच सुन बड़के दादा के पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई!

बड़के दादा: नाहीं ई नाहीं हुई सकत! ई झूठ है! ई लड़िकवा हम सभाएं का धोका दिहिस है, तलाक के कागजों पर दतख्ते लेते समय हमसे ई बात छुपाइस है!

बड़के दादा तिलमिला कर मुझ पर आरोप लगाते हुए बोले| मैंने ये बात बड़के दादा से नहीं छुपाई थी, वो तो उस दिन जब मैं पिताजी के साथ तलाक के कागजों पर चन्दर के दस्तखत कराने आया था तब मुझे आयुष के बारे में कोई बात कहने का मौका ही नहीं मिला था| खैर इस वक़्त मैं अपनी उस गलती को मान नहीं सकता था इसलिए मैंने चन्दर के सर पर दोष मढ़ दिया;

मैं: दादा, मैंने आपसे कोई बात नहीं छुपाई| उस दिन जब मैं तलाक के कागज़ ले कर आया था तब मैंने कागज चन्दर को दिए थे उसने अगर पढ़ा नहीं तो इसमें मेरा क्या कसूर?!

मैंने एकदम से अपना पल्ला झाड़ते हुए बड़के दादा से कहा| परन्तु बड़के दादा अपनी बात पर अड़ गए;

बड़के दादा: अगर चन्दर नाहीं पढीस तभऊँ तोहार आयुष पर कउनो हक़ नाहीं बनत! ऊ चन्दर का खून है...

इतना सुनना था की मेरे अंदर का पिता बाहर आ गया और मैंने गर्व से अपनी छाती ठोंकते हुए कहा;

मैं: जी नहीं, आयुष मेरा खून है इसका (चन्दर) नहीं!

मैंने चन्दर की ओर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| मेरा ये आत्मविश्वास देख बड़के दादा सन्न रह गए और बहस करने लगे;

बड़के दादा: तू काहे झूठ पर झूठ बोलत जात है? भगवान का कउनो डर नाहीं तोहका?

बड़के दादा मुझे भगवान के नाम से डरा रहे थे पर वो सच्चाई से अनजान थे!

मैं: मैंने कुछ भी जूठ नहीं कहा, चाहे तो आप लोग मेरा और आयुष का DNA test करा लो|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| किसी को DNA Test का मतलब तो समझ नहीं आया मगर मेरा आत्मविश्वास देख सभी दहल गए थे!

मैं: आयुष मेरे और संगीता के प्यार की निशानी है!

मैंने फिर पूरे आत्मविश्वास से कहा| मेरी बात में वजन था, ये वजन कभी किसी झूठे की बात में नहीं हो सकता था इसलिए बड़के दादा को और पंचों को विश्वास हो चूका था की आयुष मेरा ही बेटा है|

बड़के दादा: अरे दादा! ई का मतबल की तू और ऊ (संगीता)... छी...छी...छी!

बड़के दादा नाक सिकोड़ कर बोले मानो उन्हें मेरी बात सुन बहुत घिन्न आ रही हो! उनकी ये प्रतिक्रिया देख मेरे भीतर गुस्से की आग भड़क उठी और मैं गुस्से से चिल्लाते हुए बोला;

मैं: बस! मैं अब और नहीं सुनूँगा! आयुष मेरे बेटा है और इस बात को कोई जुठला नहीं सकता, न ही यहाँ किसी को हक़ है की वो मेरे और संगीता के प्यार पर ऊँगली उठाये| इस सब में सारी गलती आपकी है बड़के दादा, आपने अपने बेटे की सारी हरकतें जानते-बूझते उसकी शादी संगीता से की! आपको पता था की शादी से पहले आपका बेटा जो गुल खिलाता था, शादी के बाद भी वो वही गुल खिला रहा है और आप ये सब अच्छे से जानते हो लेकिन फिर भी आपने एक ऐसी लड़की (संगीता) की जिंदगी बर्बाद कर दी जिसने आपका कभी कुछ नहीं बिगाड़ा था! कह दीजिये की आपको नहीं पता की क्यों आपका लड़का (चन्दर) आये दिन मामा के घर भाग जाता था? वहाँ जा कर ये क्या-क्या करता है, क्या ये आपको नहीं पता? कह दीजिये? जब संगीता की शादी इस दरिंदे से हुई तो उसी रात को संगीता को इसके ओछे चरित्र के बारे में पता लग गया था इसीलिए संगीता ने इसे कभी खुद को छूने नहीं दिया! अब अगर ऐसे में संगीता को मुझसे प्यार हो गया तो इसमें क्या गलत था? हमने पूरे रीति रिवाजों से शादी की इस (चन्दर) की तरह हमने कोई नाजायज़ रिश्ते नहीं बनाये! हमारा रिश्ता पूरी तरह से पाक-साफ़ है!

मैं पंचों के सामने बड़के दादा की बेइज्जती नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने सब बातों का खुलासा नहीं किया| लेकिन मैंने आज सबके सामने मेरे और संगीता के रिश्ते को पाक-साफ़ घोषित कर दिया था! उधर मेरी बातों से चन्दर की गांड सुलग चुकी थी, मैंने अपनी बातों में उसे बहुत नीचा दिखाया था, जाहिर था की चन्दर ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देनी थी| वो गुस्से से खड़ा हुआ और मुझ पर चिल्लाते हुए बोला;

चन्दर: @@@@ (अपशब्द) बहुत सुन लिहिन तोहार? एको शब्द और कहेऊ तो...

चन्दर मुझे गाली देता हुआ बोला| मैं तो पहले ही गुस्से में जल रहा था और उस पर चन्दर की इस तीखी प्रतिक्रिया ने मेरे गुस्से की आग में घी का काम किया! मैं भी गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चन्दर की आँखों में आँखें डालते हुए उसकी बात काटे हुए चिल्लाया;

मैं: ओये!

मेरा मन गाली देना का था मगर पंचों और बड़के दादा का मान रख के मैंने दाँत पीसते हुए खुद को गाली देने से रोक लिया तथा अपनी बात आगे कही;

मैं: भूल गया उस दिन मैंने कैसे तुझे पीटा था?! कितना गिड़गिड़ाया था तू मेरे सामने की मैं तुझे और न पीटूँ? तू कहे तो दुबारा, यहीं सब के सामने तुझे फिर पीटूँ? तेरा दूसरा हाथ भी तोड़ दूँ? साले तुझे भगा-भगा कर मारूँगा और यहाँ तो कोई थाना भी नहीं जहाँ तू मुझ पर case करेगा! उस दिन तो तुझे जिन्दा छोड़ दिया था और आजतक एक पल ऐसा नहीं गुजरा जब मुझे मेरे फैसले पर पछतावा न हुआ हो, लेकिन इस बार तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!

मेरी गर्जन सुन चन्दर को 2 जनवरी की उसकी हुई पिटाई याद आई और डर के मारे उसकी (चन्दर की) फ़ट गई! वो खामोश हो कर बैठ गया, उसके चेहरे से उसका डर झलक रहा था और शायद कहीं न कहीं बड़के दादा भी घबरा गए थे! पंच ये सब देख-सुन रहे थे और मेरे गुस्सैल तेवर देख कर उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा;

पंच: शांत हुई जाओ मुन्ना! ई लड़ाई-झगड़ा से कउनो हल न निकली!

मैं: आप बस इस आदमी (चन्दर) से कह दीजिये की अगर आज के बाद ये मेरे परिवार के आस-पास भी भटका तो मैं इसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|

मैंने चन्दर की ओर इशारा करते हुए दो टूक बात कही मगर बड़के दादा चन्दर की ओर से बोले;

बड़के दादा: बेटा! हम तोहका वचन देइत है की आज के बाद न हम न चन्दर...आयुष के लिए कउनो....

बड़के दादा मुझसे नजरें चुराते हुए बोले ओर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| उनकी आवाज में शर्म और मायूसी झलक रही थी और मुझे बड़के दादा के लिए बुरा लग रहा था| इधर पंचों ने जोर दे कर बड़के दादा से उनकी बात पूरी कराई;

बड़के दादा: हम वचन देइत है की आज के बाद न हम न हमरे परिवार का कउनो आदमी तोहरे परिवार के रास्ते न आई! हम सभाएँ आयुष का भूल जाबे और ऊ की हिरासत लिए खातिर कउनो दावा न करब!

बड़के दादा ने मायूस होते हुए अपनी बात कही, इस वक़्त चन्दर के कारण उनके सभी सपने टूट चुके थे| वहीं बड़के दादा के मुँह से ये बात सुन मुझे चैन मिल गया था, मुझे इत्मीनान हो गया था की आज के बाद चन्दर अब कभी हमें परेशान करने दिल्ली नहीं आएगा| मेरे दिल को मिले इस चैन को पंचों की आगे कही बात ने पुख्ता रूप दे दिया;

पंच: तो ई बात तय रही की आज से तोहरे (मेरे) बड़के दादा की ओर से तोहका कउनो परेशानी न हुई और न ही आयुष खातिर कउनो दावा किया जाई!

पंचों ने मेरी तरफ देखते हुए कहा| फिर उन्होंने बड़के दादा की तरफ देखा और बोले;

पंच: भविष्य में अगर चन्दर फिर कभौं अइसन हरकत करत है जे से मानु का या मानु का परिवार का कउनो हानि होत है तो हम तोहार और तोहार पूरे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर देब! और तब मानु का पूरा हक़ हुई हैं की ऊ तोहरा (बड़के दादा) और चन्दर पर कानूनी कारवाही कर सकत है और हियाँ से हम पंच भी कानूनी कारवाही कर देब!

पंचों ने अपना फैसला सुना दिया था और उनका ये फैसला सुन मैं थोड़ा सा हैरान था| दरअसल हमारे छोटे से गाँव में कोई भी कानूनी चक्करों में नहीं पड़ना चाहता था इसीलिए सारे मसले पंचायत से सुलझाये जाते थे| पंचों ने मेरे हक़ में फैसला इसलिए किया था क्योंकि मैं शहर में रहता था और मेरे पास कानूनी रूप से मदद लेने का सहारा था| खैर, अपना फैसला सुनाने के बाद पंच चलने को उठ खड़े हुए, मेरा दिल चैन की साँस ले रहा था और इसी पल मेरे मन में एक लालच पैदा हुआ, अपने लिए नहीं बल्कि अपने पिताजी के लिए| मैंने पंचों को रोका और उनके सामने अपना लालच प्रकट किया;

मैं: पंचों मैं आप सभी से कुछ पूछना चाहता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से अपनी बात शुरू करते हुए कहा|

पंच: पूछो?

सभी एक साथ बोले|

मैंने पंचों के आगे हाथ जोड़ते हुए अपनी बात शुरू की;

मैं: मैंने देखा है की आजतक माँ-बाप के किये गलत कामों की सजा उनके बच्चों को मिलती है मगर मैंने ये कभी नहीं देखा की बच्चों के किये की सजा उनके माँ-बाप को दी जाती हो! मेरे अनुसार मैंने कोई गलती नहीं की, कोई पाप नहीं किया, संगीता से प्यार किया और जायज रूप से शादी की और अगर आपको ये गलती लगती है, पाप लगता है तो ये ही सही मगर आप इसकी सजा मेरे माँ-पिताजी को क्यों दे रहे हो, उनका इस गाँव से हुक्का-पानी क्यों बंद किया गया है? अगर आपको किसी का हुक्का-पानी बंद करना है तो आप मेरा हुक्का-पानी बंद कीजिये, मैं वादा करता हूँ की न मैं, न मेरी पत्नी और न ही मेरे बच्चे इस गाँव में कदम रखेंगे! लेकिन मेरे पिताजी...वो तो इसी मिटटी से जन्में हैं और इसी मिटटी में मिलना चाहेंगे, परन्तु आपका लिया हुआ ये फैसला मेरे पिताजी के लिए कितना दुखदाई साबित हुआ है ये आप नहीं समझ पाएँगे! इस गाँव में मेरे पिताजी के पिता समान भाई हैं, माँ समान भाभी हैं कृपया उन्हें (मेरे पिताजी को) उनके इस परिवार से दूर मत कीजिये! मैं आज आपसे बस एक ही गुजारिश करना चाहता हूँ और वो ये की आप मेरे माता-पिता को गाँव आने की इजाजत दे दीजिये! ये गुजारिश मेरे पिताजी की तरफ से नहीं बल्कि मेरी, एक बेटे की तरफ से है!

एक बेटे ने अपने पिता के लिए आज पंचों के आगे हाथ जोड़े थे और ये देख कर पंच हैरान थे;

पंच: देखो मुन्ना, जब तोहरे बड़के दादा ही आपन छोट भाई (मेरे पिताजी) से कउनो रिस्ता नाहीं रखा चाहत हैं तो ई सब मा हम का कही सकित है? ई तोहार बड़के दादा की मर्जी है, लेकिन...

इतना कह पंचों ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| पंचों ने जब अपनी बात में लेकिन शब्द का इस्तेमाल किया तो मैं जान गया की कोई न कोई रास्ता जर्रूर है;

मैं: लेकिन क्या?

मैंने अधीर होते हुए बात को कुरेदते हुए पुछा|

पंच: एक रास्ता है और वो ऊ की अगर तोहरे पिताजी तोहसे सारे नाते-रिश्ते तोड़ देत हैं तो ऊ ई गाँव मा रही सकत हैं!

पंचों की ये बात मुझे बहुत चुभी, ऐसा लगा जैसे ये बात बड़के दादा के मुँह से निकली हो! ये एक बेतुकी बात थी और मुझे पंचों की इस बात का जवाब अपने अंदाज में देना था;

मैं: कोई माँ-बाप अपने ही खून से रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं? आपने अभी खुद देखा न की बड़के दादा अपने बेटे के गलत होने पर भी उसका साथ दे रहे थे, फिर मैं तो बिलकुल सही रास्ते पर हूँ तो ऐसे में भला मेरे माँ-पिताजी मेरा पक्ष क्यों नहीं लेंगे और मुझसे कैसे रिश्ता तोड़ लेंगे?

अब मैंने बड़के दादा की ओर देखा और बोला;

मैं: रही बात बड़के दादा के गुस्से की, तो किसी भी इंसान का गुस्सा उसकी उम्र से लम्बा नहीं होता|

मैंने ये बात पंचों से कही थी मगर मैं देख बड़के दादा की तरफ देख रहा था| पंचों ने मेरी पूरी बात सुनी मगर उनका मन पहले से ही बना हुआ था तो वो मेरी मदद क्यों करते? मैंने संगीता से शादी कर के इस गाँव के रीति-रिवाज पलट दिए थे इसलिए किसी को भी मेरे प्रति सहानुभूति नहीं थी| वो तो सबको सतीश जी के बनाये तलाक के कागज देख कर कानूनी दाव-पेंचों का डर था इसीलिए पंचों ने आज फैसला मेरे हक़ में किया था वरना कहीं अगर मैं आज बिना कागज-पत्तर के आया होता तो पंच मुझे जेल पहुँचा देते!

पंच: फिर हम सभाएँ कछु नाहीं कर सकित!

इतना कह पंच चले गए, मेरा भी अब इस घर में रुकने का कोई तुक नहीं बचा था इसलिए मैंने भी अपना बैग उठाया और वापस चल दिया|



चूँकि मैं गाँव आया था तो मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने ससुर जी से भी मिलता चलूँ?! उनका घर रास्ते में ही था, मुझे देखते ही पिताजी ने मुझे गले लगा लिया| मैंने उनसे पुछा की वो दिल्ली क्यों नहीं आये, तब उन्होंने बताया की संगीता ने ही उन्हें दिल्ली आने से मना कर दिया था| मुझे हैरानी हुई क्योंकि इसके बारे में संगीता ने किसी को नहीं बताया था, हम सभी को यही लग रहा था की पिताजी (मेरे ससुर जी) को कोई जर्रूरी काम आन पड़ा होगा|

मुझे ये भी पता चला की मेरी सासु माँ मुंबई गई हुईं हैं, मुझे ये जान कर हैरानी हुई की सासु माँ अकेले मुंबई क्यों गईं? मेरे ससुर जी ने मुझे बताया की अनिल ने दोनों को मुंबई घूमने बुलाया था मगर अपनी खेती-बाड़ी के काम के कारण वो (ससुर जी) जा नहीं पाए| अनिल के कॉलेज का एक दोस्त लखनऊ में रहता था और सासु माँ उसी के साथ मुंबई गईं हैं| मुझे जानकार ख़ुशी हुई की सासु माँ को अब जा कर घूमने का मौका मिल रहा है|

बहरहाल मुझे मेरे ससुर जी चिंतित दिखे, मैंने उनसे उनकी चिंता का कारण जाना तथा अपनी यथाशक्ति से उस चिंता का निवारण कर उन्हें चिंता मुक्त कर दिया|



अपने ससुर जी से विदा ले कर मैं निकला तो मुझे चौराहे पर अजय भैया, रसिका भाभी और वरुण खड़े हुए मिले| उन्हें अपना इंतजार करता देख मैं थोड़ा अचरज में पड़ गया, मुझे लगा कहीं वो मुझे वापस बुलाने तो नहीं आये?

अजय भैया: मानु भैया हमका माफ़ कर दिहो!

अजय भैया मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोले| मैंने फ़ौरन उनके दोनों हाथ अपने हाथों के बीच पकड़ लिए और बड़े प्यार से बोला;

मैं: भैया, ऐसा मत बोलो! मैं जानता हूँ की आपने जो भी किया वो अपने मन से नहीं बलिक बड़के दादा और चन्दर के दबाव में आ कर किया| आप यक़ीन मानो भैया मेरे मन में न आपके प्रति और न घर के किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई मलाल नहीं है, नफरत है तो बस उस चन्दर के लिए! अगर वो फिर कभी मेरे परिवार के आस-पास भी भटका न तो ये उसके लिए कतई अच्छा नहीं होगा! आपने नहीं जानते की उसने मेरे परिवार को कितनी क्षति पहुँचाई है, इस बार तो मैं सह गया लेकिन आगे मैं नहीं सहूंगा और उसकी जान ले लूँगा!

मैंने अपनी अंत की बात बहुत गुस्से से कही, उस वक़्त मैं ये भी भूल गया की पास ही वरुण भी खड़ा है जो मेरी बातों से थोड़ा सहम गया है|

अजय भैया: शांत हुई जाओ मानु भैया! हम पूरी कोशिश करब की भैया कभौं सहर ना आये पाएं और आपके तनिकों आस-पास न आवें! आप चिंता नाहीं करो!

अजय भैया की बात सुन मैंने अपना गुस्सा शांत किया| तभी आज सालों बाद रसिका भाभी हिम्मत कर के मुझसे बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया...हमसे रिसियाए हो?!

आज रसिका भाभी की बात करने के अंदाज में फर्क था, मुझे उनकी आवाज में वासना महसूस नहीं हुई बल्कि देवर-भाभी के रिश्ते का खट्टा-मीठा एहसास हुआ|

मैं: नहीं तो!

मैंने नक़ली मुस्कान के साथ कहा|

रसिका भाभी: हम जो भी पाप करेन ओहके लिए हमका माफ़ कर दिहो!

रसिका भाभी ने 5 साल पहले मेरे साथ sex के लिए जबरदस्ती करने की माफ़ी माँगी|

मैं: वो सब मैं भुला चूका हूँ भाभी और आप भी भूल जाओ! मैं बस आप दोनों (अजय भैया और रसिका भाभी) को एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी देखना चाहता था और आप दोनों को एक साथ देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है|

मैंने रसिका भाभी को दिल से माफ़ करते हुए कहा| अब जब मैं रसिका भाभी से बात करने लगा तो उन्होंने भी मुझसे खुल कर बात करनी शुरू कर दी;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी (संगीता) कइसन हैं?

मैं: उस दिन के हादसे काफी सहमी हुई है!

संगीता का ख्याल आते ही मुझे उसका उदास चेहरा याद आ गया|

रसिका भाभी: उनका कहो की सब भुलाये खातिर कोशिश करें, फिर आप तो उनका अच्छे से ख्याल रखत हुईहो?! बहुत जल्द सब ठीक हुई जाई!

मैं: मैं भी यही उम्मीद करता हूँ की जल्दी से सब ठीक हो जाए!

मैंने अपनी निराशा भगाते हुए कहा| फिर मैंने अजय भैया से घर के हालात ठीक करने की बात कही;

मैं: भैया, मैं तो अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश कर ही रहा हूँ, आप भी यहाँ अपनी कोशिश करो की बड़के दादा का मन बदले और हमारा पूरा परिवार एक हो जाए|

मेरी ही तरह अजय भैया भी चाहते थे की हमारा ये परिवार बिखरे न बल्कि एकजुट हो कर खड़ा रहे इसीलिए मैंने उन्हें हिम्मत बँधाई थी!

अजय भैया: हमहुँ हियाँ कोशिश करीत है, थोड़ा समय लागि लेकिन ई पूरा परिवार फिर से एक साथ बैठ के खाना खाई!

अजय भैया मुस्कुराते हुए अपने होंसले बुलंद कर बोले|

अजय भैया: वइसन भैया, अम्मा तोहका खूब याद करत ही!

अजय भैया ने बड़की अम्मा की बात कही तो मैं पिघल गया और आज कई सालों बाद अम्मा से बात करने का दिल किया;

मैं: मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ भैया! किसी दिन बड़की अम्मा से फ़ोन पर बात करवा देना|

तभी मुझे याद आया की मैं अजय भैया और रसिका भाभी के साथ संगीता के माँ बनने की ख़ुशी बाँट लेता हूँ;

मैं: अरे, एक बात तो मैं आप सब को बताना ही भूल गया, संगीता माँ बनने वाली है!

ये खबर सुन कर तीनों के चेहरे पर ख़ुशी चहकने लगी;

रसिक भाभी: का? सच कहत हो?

रसिका भाभी ख़ुशी से भरते हुए बोलीं और ठीक वैसी ही मुस्कान अजय भैया के चेहरे पर आ गई!

मैं: हाँ जी! कुछ दिनों में संगीता को pregnant हुए दो महीने हो जाएंगे|

ये सुन रसिका भाभी मुझे मेरी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: भैया, फिर तो तोहका दीदी का और ज्यादा ख्याल रखेका चाहि!

मैं: हाँ जी!

मैंने सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

अजय भैया: भैया, ई तो बड़ी ख़ुशी का बात है! हम ई खबर अम्मा का जर्रूर देब...

अजय भैया ख़ुशी से चहकते हुए बोले|

मैं: जरूर भैया और छुप कर ही सही बस एक बार मेरी उनसे (बड़की अम्मा से) बात करा देना, उनकी आवाज सुनने को मेरे कान तरस गए हैं!

मैंने बड़की अम्मा से बात करने की अपनी इच्छा दुबारा प्रकट की|

अजय भैया: बिलकुल भैया, हम अम्मा से जरूर तोहार बात कराब|

इतने में वरुण ने मेरा हाथ पकड़ मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा, आखिर मैं उसे अनदेखा कर उसके माता-पिता से बात करने में व्यस्त जो था|

मैं: ओरे, छोट साहब! आप school जाते हो न?

मैंने वरुण से बात शुरू करते हुए पुछा|

वरुण: हम्म्म!

इतना कह वरुण लड़कियों की तरह शर्माने लगा और उसे यूँ शर्माता देख हम तीनों हँस पड़े|

वरुण: चाचू...आपकी...कहानियाँ...बहुत...याद...आती...हैं!

5 साल पहले जब मैं गाँव आया था तब नेहा मुझसे हिंदी में बात करने की कोशिश में शब्दों को थोड़ा सा खींच-खींच कर बोलती थी, आज वरुण भी ठीक उसी तरह बोल रहा था| उसको यूँ हिंदी बोलने का प्रयास करते देख मुझे उस पर बहुत प्यार आया;

मैं: Awwwwwww! बेटा आप अपने मम्मी पापा के साथ दिल्ली में मेरे घर आना फिर मैं आपको रोज कहानी सुनाऊँगा, ठीक है?

मेरी बात सुन वरुण खुश हो गया, नए शहर जाने का मन किस बच्चे का नहीं करता|

वरुण: हम्म्म!

वरुण सर हाँ में हिलाते हुए बोला| उधर अजय भैया के चेहरे पर हैरत थी की इतना सब होने के बाद भी मैं उन्हें अपने घर आने का न्योता कैसे दे सकता हूँ?!

अजय भैया: लेकिन मानु भैया चाचा का काहिऐं?

मैं: भैया, पिताजी किसी से नाराज नहीं हैं! अब जब भी दिल्ली आओ तो हमारे पास ही रहना और अगर दिल करे तो हमारे साथ ही काम भी करना|

मैंने ये बात अपने दिल से कही थी, पिताजी को अब भी अजय भैया पर गुस्सा था क्योंकि उन्होंने बिना कुछ पूछे-बताये मुझ पर police case कर दिया था| लेकिन मैंने फिर भी ये बात कही क्योंकि मैं पिताजी को मना सकता था की जो भी हुआ उसमें अजय भैया का कोई दोष नहीं था| खैर, अजय भैया मेरी बात सुन भावुक हो गए, उन्हें जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की पिताजी ने उन्हें इतनी जल्दी कैसे माफ़ कर दिया?

अजय भैया: सच भैया?

मैं: मैं झूठ क्यों बोलूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ बोला| मैंने घडी देखि तो मेरी flight का समय हो रहा था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए अजय भैया से कहा;

मैं: अच्छा भैया, मैं अब चलता हूँ वरना मेरी flight छूट जायेगी!

Flight का नाम सुन वो तीनों हैरान हुए! तभी रसिका भाभी बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी का हमार याद दिहो!

अजय भैया: और चाचा-चाची का हमार प्रणाम कहेऊ!!

मैं: जी जर्रूर!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और वरुण को bye बोलते हुए लखनऊ के लिए निकल पड़ा|



लखनऊ पहुँचते-पहुँचते मुझे दो घंटे लग गए और मेरी flight छूट गई! मैं सोच ही रहा था की क्या करूँ की तभी संगीता का फ़ोन आया;

मैं: Hello!

मैंने खुश होते हुए संगीता का फ़ोन उठाया की चलो अब संगीता की आवाज सुनने को मिलेगी लेकिन कॉल नेहा ने किया था;

नेहा: Muuuuuuaaaaaaaahhhhhhhh!

नेहा ने मुझे फ़ोन पर ही बहुत बड़ी सी पप्पी दी और तब मुझे एहसास हुआ की ये फ़ोन नेहा ने किया है|

मैं: मेरे बच्चे ने मुझे इतना बड़ा 'उम्मम्मा' (पप्पी) दी?!

नेहा की फ़ोन पर मिली पप्पी ने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था| उधर नेहा फ़ोन पर ख़ुशी से खिलखिला रही थी|

नेहा: पापा जी, आपने खाना खाया? दवाई ली? और आप कितने बजे पहुँच रहे हो?

नेहा ने एक साथ अपने सारे सवाल पूछ डाले|

मैं: Sorry बेटा, मुझे थोड़ा time और लगेगा!

इतना सुनना था की नेहा नाराज हो गई;

नेहा: क्या? लेकिन पापा जी, आपने कहा था की आप रात तक आ जाओगे?! मैं आपसे बात नहीं करूँगी! कट्टी!!!

नेहा नाराज होते हुए बोली|

मैं: Awwwwwww मेरा बच्चा! बेटा मैं कल सुबह तक आ जाऊँगा...

नेहा ने इतना सुना और नाराज हो कर फ़ोन काट दिया! नेहा भी बिलकुल अपनी मम्मी पर गई थी, मैंने उसे मनाने के लिए दुबारा फ़ोन किया और उसे प्यार से समझाया| लेकिन बिटिया हमारी थोड़ी जिद्दी थी इसलिए वो नहीं मानी! परन्तु एक बात की मुझे बहुत ख़ुशी थी और वो ये की मेरे बच्चे अब पहले की तरह चहकने लगे थे और खुल कर पहले की तरह मुझसे बात करने लगे थे| एक बस संगीता थी जो अब भी खुद को अपने डर से बाँधे हुए मुझसे दूर रह रही थी! एक दिन खाना न खा कर जो मैंने संगीता को थोड़ा पिघलाया था, वही संगीता मेरे घर न रहने से वापस सख्त हो गई थी!



खैर, अब flight miss हो चुकी थी तो अब मुझे घर लौटने के लिए बस या फिर रेल यात्रा करनी थी| मैंने रेल यात्रा चुनी और तत्काल का टिकट कटा कर लखनऊ मेल से सुबह दिल्ली पहुँचा| सुबह-सुबह घर में घुसा तो नेहा सोफे पर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी, मुझे देखते ही वो अपना गुस्सा भूल मेरे गले लग गई| तभी आयुष भी आया और वो भी मेरी गोदी में चढ़ गया, पता नहीं क्यों संगीता को मेरा और बच्चों का गले मिलना पसंद नहीं आया और वो चिढ़ते हुए दोनों बच्चों को झिड़कने लगी;

संगीता: चैन नहीं है न तुम दोनों को?

बच्चे चूँकि मेरे गले लगे थे तो उन्हें अपनी मम्मी की झिड़की का कोई फर्क नहीं पड़ा! मैंने खुद उन्हें किसी बहाने से भेजा और संगीता को देखा| वही उखड़ा हुआ, उदास, मायूस, निराश चेहरा! संगीता को ऐसे देख कर तो मेरा दिल ही बैठ गया! मैंने संगीता को इशारा कर उससे अकेले में बात करनी चाही मगर संगीता मुझे सूनी आँखों से देखने लगी और फिर अपने काम में लग गई| इधर दोनों बच्चों ने मुझे फिर से घेर लिया और मुझे अपनी बातों में लगा लिया|

अभी तक किसी को नहीं पता था की मैं गाँव में पंचायत में बैठ कर लौटा हूँ और मैं भी ये राज़ बनाये रखना चाहता था| कल बच्चों का school खुल रहा था और इसलिए दोनों बच्चे आज मुझसे कुछ ज्यादा ही लाड कर रहे थे| एक तरह से बच्चों का यूँ मेरे से लाड करना ठीक ही था क्योंकि मेरा ध्यान बँटा हुआ था वरना मैं शायद इस वक़्त संगीता से इस तरह सड़ा हुआ मुँह बनाने के लिए लड़ पड़ता! वहीं मेरा दिल बार-बार कह रहा था की संगीता को अब भी चैन नहीं मिला है, उसका दिल अब भी बहुत डरा हुआ है तभी तो उसका मेरे लिए प्यार खुल कर बाहर नहीं आ पा रहा! आयुष को खो देने का उसका डर उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था! मुझे कैसे भी ये डर संगीता के ज़हन से मिटाना था मगर करूँ क्या ये समझ नहीं आ रहा था?! कोर्ट में case नहीं कर सकता था क्योंकि court में संगीता के divorce की बात खुलती और फिर बिना divorce final होने के हमारे इतनी जल्दी शादी करने से सारा मामला उल्टा पड़ जाता! Police में इसलिए नहीं जा सकता क्योंकि वहाँ भी संगीता के divorce की बात खुलती, वो तो शुक्र है की पिछलीबार SI ने कागज पूरे नहीं देखे थे वरना वो भी पैसे खाये बिना नहीं छोड़ता! अब मुझे ऐसा कुछ सोचना था जिससे कोई कानूनी पचड़ा न हो और मैं संगीता को उसके डर के जंगल से सही सलामत बाहर भी निकाल लूँ?!



मुझे एक रास्ता सूझा, जो था तो बेसर-पैर का था परन्तु उसके अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं रह गया था| वो रास्ता था भारत से बाहर नई ज़िन्दगी शुरू करना! सुनने में जितना आसान था उतना ही ये काम टेढ़ा था मगर इससे संगीता को उसके भय से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती| मैं उस वक़्त इतना हताश हो चूका था की बिना कुछ सोचे-समझे मैं बस वो करना चाहता था जिससे संगीता पहले की तरह मुझ से प्यार करने लगे, तभी तो ये ऊल-जुलूल तरकीब ढूँढी थी मैंने!

तरकीब तो मैंने ढूँढ निकाली मगर इस सब में मैं अपने माँ-पिताजी के बारे में कुछ फैसला नहीं ले पाया था! उन्हें यहाँ अकेला छोड़ने का मन नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से बात घूमा-फिरा कर पूछी| नाश्ता कर के माँ-पिताजी बैठक में बैठे थे, बच्चे अपनी पढ़ाई करने में व्यस्त थे और संगीता मुझसे छुपते हुए रसोई में घुसी हुई थी| मैंने माँ-पिताजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: पिताजी, मेरी एक college के दोस्त से बात हो रही थी| उसने बताया की वो अपने माँ-पिताजी और बीवी-बच्चों समेत विदेश में बस गया है| वहाँ उसकी अच्छी सी नौकरी है, घर है और सब एक साथ खुश रहते हैं| वो मुझे सपरिवार घूमने बुला रहा था, तो आप और माँ चलेंगे?

मैंने बात गोल घुमा कर कही जो माँ-पिताजी समझ न पाए और माँ ने जवाब देने की पहल करते हुए कहा;

माँ: बेटा ये तो अच्छी बात है की तेरा दोस्त अपने पूरे परिवार को अपने साथ विदेश ले गया, वरना आजकल के बच्चे कहाँ अपने बूढ़े माँ-बाप को इतनी तवज्जो देते हैं|रही हमारे घूमने की बात तो हम में अब इतनी ताक़त नहीं रही की बाहर देश घूमें, तुम सब जाओ!

तभी पिताजी माँ की बात में अपनी बात जोड़ते हुए बोले;

पिताजी: देख बेटा, नए देश में बसना आसान नहीं होता! फिर हम दोनों मियाँ-बीवी अब बूढ़े हो चुके हैं, नए देश में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपनाने की हम में हिम्मत नहीं!

पिताजी की बात सुन कर एक पल के लिए तो लगा जैसे पिताजी ने मेरी सारी बात समझ ली हो मगर ऐसा नहीं था| वो तो केवल नए देश में बसने पर अपनी राय दे रहे थे| माँ-पिताजी की न ने मुझे अजब दोराहे पर खड़ा कर दिया था, एक तरफ माँ-पिताजी थे तो दूसरी और संगीता को उसको डर से आजाद करने का रास्ता| मजबूरन मुझे संगीता और बच्चों को साथ ले कर कुछ सालों तक विदेश में रहने का फैसला करना पड़ा| मैं हमेशा -हमेशा के लिए अपने माँ-बाप को छोड़ कर विदेश बसने नहीं जा रहा था, ये फासला बस कुछ सालों के लिए था क्योंकि कुछ सालों में आयुष बड़ा हो जाता और फिर हम चारों वापस आ जाते| अब चूँकि आयुष के बचपने के दौरान हम विदेश में होते तो वहाँ चन्दर का आकर आयुष को हमसे अलग करना नामुमकिन था, तो इस तरह संगीता के मन से अपने बेटे को खो देने का डर हमेशा-हमेशा के लिए निकल जाता|



शुरुआत में मेरी योजना थी की यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर बाहर विदेश में बस जाओ मगर माँ-पिताजी के न करने से अब मुझे बाहर कोई नौकरी तलाशनी थी ताकि वहाँ मैं एक नई शुरुआत कर सकूँ| अब नौकरी कहीं पेड़ पर तो लगती नहीं इसलिए मैंने अपने पुराने जान-पहचानवालों के नाम याद करने शुरू कर दिए| याद करते-करते मुझे मेरे college के दिनों के एक दोस्त का नाम याद आया जो मुंबई में रहता था और एक MNC में अच्छी position पर job करता था| मैंने उसे फ़ोन मिलाया और उससे बात करते हुए मिलने की इच्छा जाहिर की, उसने मुझे मिलने के लिए बुला लिया तथा अपना पता दिया| पता मुंबई का ही था तो मैंने फटाफट मुंबई की टिकट कटाई और रात को पिताजी से मेरे मुंबई जाने की बात करने की सोची|

इधर मैंने संगीता से बात करने की अपनी कोशिश जारी रखी, लेकिन संगीता बहुत 'चालाक' थी वो कुछ न कुछ बहाना कर के मेरे नजदीक आने से बच जाती थी! दोपहर को खाने का समय हुआ तो मैंने संगीता को blackmail करने की सोची और रसोई में उससे खुसफुसाते हुए बोला;

मैं: मुझे तुमसे बात करनी है, वरना मैं खाना नहीं खाऊँगा!

मैंने प्यार से संगीता को हड़काते हुए कहा| ये सुन संगीता दंग रह गई और मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगी, मुझे लगा वो कुछ कहेगी मगर उसने फिर से सर झुकाया और अपने काम में लग गई| मैं भी वापस कमरे में आ आकर बैठ गया और संगीता का इंतज़ार करने लगा की कब वो आये और मैं उससे बात कर सकूँ| लेकिन संगीता बहुत 'चंट' निकली उसने दोनों बच्चों को खाने की थाली ले कर मेरे पास भेज दिया| दोनों बच्चों ने थाली एक साथ पकड़ी हुई थी, ये मनमोहक दृश्य देख मैं पिघलने लगा| थाली बिस्तर पर रख दोनों बच्चों ने अपने छोटे-छोटे हाथों से एक-एक कौर उठाया और मेरे मुँह के आगे ले आये| अब इस वक़्त मैं बच्चों को मना करने की हालत में नहीं था, बच्चों की मासूमियत के आगे मैंने अपने घुटने टेक दिए और अपना मुँह खोल दिया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर मुझे खाना खिलाना शुरू किया, मैंने उन्हें खाना खिलाना चाहा तो दोनों ने मना कर दिया और बोले की वो खाना अपने दादा-दादी जी के साथ खाएंगे! बच्चों के भोलेपन को देख मैं मोहित हो गया और उनके हाथ से खाना खा लिया|



रात होने तक संगीता मुझसे बचती फिर रही थी, कभी माँ के साथ बैठ कर उन्हें बातों में लगा लेती तो कभी सोने का नाटक करने लगती| शुरू-शुरू में तो मैं इसे संगीता का बचकाना खेल समझ रहा था मगर अब मेरे लिए ये खेल सह पाना मसुहकिल हो रहा था| रात को खाने के समय मैंने पिताजी से मुंबई जाने की बात कही मगर एक झूठ के रूप में;

मैं: पिताजी एक project के सिलसिले में मुझे कल मुंबई जाना है|

मेरे मुंबई जाने की बात सुन कर सभी हैरान थे सिवाए संगीता के, उसे तो जैसे मेरे कहीं आने-जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| दोनों बच्चे मुँह बाए मुझे देख रहे थे, माँ खाते हुए रुक चुकीं थीं और पिताजी की जुबान पर सवाल था;

पिताजी: बेटा, अभी तो तू आया है और कल फिर जा रहा है? देख बेटा तेरा घर रहना जरूरी है!

पिताजी मुझे समझाते हुए बोले| इतने में माँ बोल पड़ीं;

माँ: बेटा, इतनी भगा-दौड़ी अच्छी नहीं! कुछ दिन सब्र कर, सब कुछ ठीक-ठाक होने दे फिर चला जाइयो!

माँ ने भी मुझे प्यार से समझाया|

मैं: माँ, कबतक अपनी रोज़ी से मुँह मोड़ कर बैठूँगा!

मैंने संगीता की ओर देखते हुए उसे taunt मारा| यही taunt कुछ दिन पहले संगीता ने मुझे मारा था| संगीता ने मुझे देखा और शर्म के मारे उसकी नजरें नीची हो गईं| माँ-पिताजी भी आगे कुछ नहीं बोले, शायद वो मेरे और संगीता के रिश्तों के बीच पैदा हो रहे तनाव से रूबरू हो रहे थे| खैर, माँ-पिताजी तो चुप हो गए मगर बच्चों को चैन नहीं था, दोनों बच्चे खाना छोड़कर मेरे इर्द-गिर्द खड़े हो गए| मैंने दोनों के सर पर हाथ फेरा और दोनों को बहलाने लगा;

मैं: बेटा, मैं बस एक दिन के लिए जा रहा हूँ, कल रात पक्का मैं घर वापस आ जाऊँगा और आप दोनों को प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा|

बच्चे मासूम होते हैं इसलिए दोनों मेरे कहानी के दिए हुए प्रलोभन से संतुष्ट हो गए और फिर से चहकने लगे|



खाना खाने के बाद पिताजी तो सीधा सोने चले गए, इधर कल बच्चों का स्कूल था इसलिए दोनों बच्चों ने मेरे साथ सोने की जिद्द पकड़ ली| इस मौके का फायदा उठा कर संगीता ने अपनी चालाकी दिखाई और मुझसे नजर बचाते हुए माँ के साथ टी.वी. देखने बैठ गई| बच्चों को कहानी सूना कर मैंने संगीता का काफी इंतजार किया मगर वो जानती थी की कल सफर के कारण मैं थका हुआ हूँ इसलिए वो जानबूझ कर माँ के साथ देर तक टी.वी. देखती रही ताकि मैं थकावट के मारे सो जाऊँ| हुआ भी वही जो संगीता चाहती थी, बच्चों की उपस्थिति और थकावट के कारण मेरी आंख बंद हो गई और मैं सो गया, उसके बाद संगीता कब सोने के लिए आई मुझे कुछ खबर नहीं रही|

अगली सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली और मैंने दोनों बच्चों को पप्पी करते हुए उठाया| नेहा तो झट से उठ गई मगर आयुष मेरी गोदी में कुनमुनाता रहा, बड़ी मेहनत से मैंने आयुष को लाड-प्यार कर के जगाया और स्कूल के लिए तैयार किया| एक बस मेरे बच्चे ही तो थे जिनके कारण मेरा दिल खुश रहता था वरना संगीता का उखड़ा हुआ चेहरा देख मुझ में तो जैसे जान ही नहीं बची थी! बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर मैं उन्हें खुद स्कूल छोड़ने चल पड़ा, रास्ते में मुझे van वाले भैया मिले तो मैंने उन्हें कुछ दिनों के लिए बच्चों को लाने-लेजाने के लिए मना कर दिया| स्कूल पहुँच कर मैंने principal madam से सारी बात कही और उन्होंने मेरे सामने ही चौकीदार को बुलाया, फिर मैंने चौकीदार को अपने पूरे परिवार अर्थात मेरी, माँ की, पिताजी की और संगीता की तस्वीर दिखाई ताकि चौकीदार हम चारों के आलावा किसी और के साथ बच्चों को जाने न दे| बच्चों को भी मैंने principal madam के सामने समझाया;

मैं: बेटा, अपनी मम्मी, मेरे या आपके दादा-दादी जी के अलावा आप किसी के साथ कहीं मत जाना! कोई अगर ये भी कहे की मैंने किसी को भेजा है तब भी आप किसी के साथ नहीं जाओगे| Okay?

मेरी बात बच्चों ने इत्मीनान से सुनी और गर्दन हाँ में हिलाई| उनके छोटे से मस्तिष्क में कई सवाल थे मगर ये सवाल उन्होंने फिलहाल मुझसे नहीं पूछे बल्कि घर लौट कर उन्होंने ये सवाल अपनी दादी जी से पूछे| माँ ने उन्हें प्यार से बात समझा दी की ये एहतियात सभी माँ-बाप को बरतनी होती है ताकि बच्चे कहीं गुम न हो जाएँ| बच्चों ने अपनी दादी जी की बात अपने पल्ले बाँध ली और कभी किसी अनजान आदमी के साथ कहीं नहीं गए|



बहरहाल बच्चों को स्कूल छोड़ मैं सीधा airport निकल पड़ा और flight पकड़ कर मुंबई पहुँचा| मैं सीधा अपने दोस्त से मिला और उसने मुझे आश्वासन दिया की वो मुझे दुबई में एक posting दिलवा देगा, अब उसे चाहिए थे मेरे, संगीता और बच्चों के passport ताकि वो कागजी कारवाही शुरू कर सके| मेरा passport तो तैयार था क्योंकि 18 साल का होते ही मैंने passport बनवा लिया था, वो बात और है की आजतक कभी देश से बाहर जाने का मौका नहीं मिला! खैर, संगीता और बच्चों के passport अभी बने नहीं थे| मैंने तीनों के passport बनाने का समय लिया और एयरपोर्ट की ओर निकलने लगा| तभी मुझे याद आया की जब मुंबई आया हूँ तो अनिल और माँ (मेरी सासु माँ) से मिल लेता हूँ| मैंने अनिल को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए मैंने सुमन को फ़ोन किया और उसने मुझे आखिर अनिल और माँ से मिलवाया| सब से मिल कर मैं घर के लिए निकला और flight पकड़ कर दिल्ली पहुँचा| घर पहुँचते-पहुँचते मुझे देर हो गई थी मगर सब अभी भी जाग रहे थे| मुझे देखते ही आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी टाँगो से लिपट गया मगर नेहा हाथ बाँधे हुए, अपना निचला होंठ फुला कर मुझे प्यार भरे गुस्से से देख रही थी! आयुष के सर को चूम कर मैं दोनों घुटने टेक कर खड़ा हुआ और नेहा की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथ खोलकर उसे गले लगने का निमंत्रण दिया तब जा कर नेहा पिघली तथा मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी| मैंने नेहा को बाहों में कसते हुए उसे बहुत पुचकारा, तब जा कर वो चुप हुई|

माँ: बेटा, तेरा फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए नेहा बहुत परेशान हो गई थी| वो तो तेरे पिताजी जब शाम को घर लौटे तब उन्होंने बताया की तूने उन्हें फ़ोन कर के बताया था की तू ठीक-ठाक है| तूने नेहा को फ़ोन कर बात नहीं की इसीलिए नेहा तुझसे नाराज हो गई थी!

माँ से नेहा की नाराजगी का कारण जान मैं थोड़ा हैरान हुआ;

मैं: लेकिन माँ मैंने संगीता के नंबर पर कॉल किया था मगर उसका फ़ोन बंद था, इसीलिए मैंने उसे मैसेज भी किया था की मैं ठीक-ठाक पहुँच गया हूँ|

ये सुनते ही नेहा गुस्से से अपनी मम्मी को घूरने लगी, नेहा आज इतना गुस्सा थी मानो वो आज अपनी मम्मी पर चिल्ला ही पड़े! वहीं माँ-पिताजी भी दंग थे की भला ये घर में हो क्या रहा है? उधर संगीता शर्म के मारे अपना सर झुकाये हुए खड़ी थी| संगीता को नेहा से डाँट न पड़े इसके लिए मैंने नेहा को फिर से अपने गले लगाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा ऐसे परेशान नहीं हुआ करते! मैं कभी कहीं काम में फँस जाऊँ और आपका फ़ोन न उठा पाऊँ या मेरा नंबर न मिले तो आपको चिंता नहीं करनी, बल्कि पूरे घर का ख्याल रखना है| इस घर में एक आप ही तो सबसे समझदार हो, बहादुर हो तो आपको सब का ध्यान रखना होगा न?

मैंने नेहा को बहलाते हुए कहा, तब कहीं जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ|



संगीता ने अपने ही बेटी के डर के मारे मेरे लिए खाना परोसा, दोनों बच्चों ने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना शुरू किया| जब मैंने उन्हें खिलाना चाहा तो नेहा ने बताया की;

नेहा: हम सब ने खाना खा लिया और दादी जी ने मुझे तथा आयुष को खाना खिलाया था|

तभी माँ बीच में मुझसे बोलीं;

माँ: तेरी लाड़ली नेहा गुस्से में खाना नहीं खा रही थी, वो तो तेरे पिताजी ने तो समझाया तब जा कर मानी वो|

माँ की बात सुन मैं मुस्कुराया और नेहा और आयुष को समझाने लगा;

मैं: बेटा, गुस्सा कभी खाने पर नहीं निकालते, क्योंकि अगर आप खाना नहीं खाओगे तो जल्दी-जल्दी बड़े कैसे होओगे?

नेहा ने अपने कान पकड़ कर मुझे "sorry" कहा और फिर मुझे मुस्कुराते हुए खाना खिलाने लगी| अब पिताजी ने मुझसे मुंबई के बारे में पुछा तो मैंने थकावट का बहाना करते हुए बात टाल दी| रात को मैंने संगीता से कोई बात नहीं की और दोनों बच्चों को खुद से लपेटे हुए सो गया|



अगले दिन बच्चों को स्कूल छोड़कर घर लौटा और अपना laptop ले कर संगीता तथा बच्चों के passport का online form भरने लगा| Form जमा करने के बाद अब समय था सारे राज़ पर से पर्दा उठाने का, मैंने माँ-पिताजी और संगीता को अपने सामने बिठाया तथा पंचायत से ले कर मेरे दुबई जा कर बसने की सारी बात बताई| माँ, पिताजी और संगीता ने मेरी सारी बात सुनी और सब मेरी बात सुन कर सख्ते में थे! किसी को मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाने की उम्मीद नहीं थी इसलिए सब आँखें फाड़े मुझे देख रहे थे! मिनट भर की चुप्पी के बाद पिताजी ने ही बात शुरू की;

पिताजी: बेटा, तूने हमें पंचायत के बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? और तू अकेला क्यों गया था जबकि मेरा तेरे साथ जाना जरूरी था!

पिताजी ने मुझे भोयें सिकोड़ कर देखते हुए पुछा| अब देखा जाए तो उनका चिंतित होना जायज था, वो नहीं चाहते थे की मैं पंचायत में अकेला पडूँ|

मैं: पिताजी, पहले ही मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफें उठानी पड़ रही हैं, फिर वहाँ पंचायत में आपको घसीट कर मैं आपकी मट्टी-पलीत नहीं करवाना चाहता था| मैंने पंचों के सामने अच्छे से अपनी बात रखी और उन्होंने फैसला भी हमारे हक़ में सुनाया, अब चन्दर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता वरना वो सीधा जेल जाएगा|

पिताजी की तकलीफों से मेरा तातपर्य था की जो उन्हें मेरे कारण बड़के दादा द्वारा घर निकाला मिला था, ऐसे में मैं पंचायत में उनके ऊपर फिर से कीचड़ कैसे उछलने देता?!

पिताजी: बेटा ऐसा नहीं बोलते! तेरे कारण मुझे कोई तकलीफ उठानी नहीं पड़ी, तू मेरा बेटा है और तेरा फैसला मेरा फैसला है! ये तो मेरे भाई साहब का गुस्सा है जो जब शांत होगा उन्हें मेरी याद अवश्य आएगी|

पिताजी मुझे प्यार से समझाते हुए बोले|

पिताजी: खैर, इस बार मैं तुझे माफ़ कर देता हूँ, लेकिन फिर कभी तूने हमसे झूठ बोला या हमसे कोई बात छुपाई तो तुझे कूट-पीट कर ठीक कर दूँगा!

पिताजी ने मुझे बात न बताने के लिए मजाकिया ढंग से हड़काया ताकि उनकी बात सुन मैं हँस पडूँ मगर मेरे चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई| अब माँ-पिताजी दोनों गंभीर हो गए और मेरे दुबई में कुछ सालों के लिए बसने को ले कर मेरे लिए फैसले का समर्थन करने लगे;

पिताजी; बेटा, तू बहुत जिम्मेदार हो गया है और जो तूने बहु का डर मिटाने के लिए दुबई जा कर रहने के फैसले का हम समर्थन करते हैं, बल्कि ये तो अच्छा है की इसी बहाने तू खुद अपनी गृहस्ती बसा लेगा|

माँ ने भी पिताजी की बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहा;

माँ: तेरे पिताजी ठीक कह रहे हैं बेटा, बहु को खुश रखना तेरी जिम्मेदारी है| एक तू है जो इस परिवार को सँभाल सकता है, ख़ास कर बहु को जो इस वक़्त मानसिक तनाव से गुजर रही है|

माँ-पिताजी की इच्छा मुझे अपने से दूर एक पराये देश में भेजने की कतई नहीं थी मगर फिर भी वो संगीता की ख़ुशी के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी ख़ुशी-ख़ुशी दे रहे थे|

मैं: जी माँ!

मैंने सर हिलाते हुए बात को खत्म किया|



उधर संगीता जो अभी तक ख़ामोशी से सबकी बात सुन रही थी उसके भीतर गुस्से का ज्वालामुखी उबलने लगा था और उसके इस गुस्से का करण क्या था ये अभी पता चलने वाला था;

संगीता: मैं कुछ बोलूँ?

संगीता मुझे गुस्से से घूरते हुए अपने दाँत पीसते हुए बोली|

माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!

माँ-पिताजी ने संगीता का गुस्सा नहीं देखा था, उन्हें लगा की संगीता अपनी कोई राय देना चाहती है इसलिए उन्होंने बड़े प्यार से संगीता को अपनी बात रखने को कहा| लेकिन संगीता ने अपने भीतर उबल रहे गुस्से के लावा को मेरे ऊपर उड़ेल दिया;

संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के आपके साथ रहूँगी? ये फैसला लेने से पहले आपने मुझसे पुछा? कोई सलाह-मशवरा किया? बस थोप दिया अपना फैसला मेरे माथे!

संगीता गुस्से से चिल्लाते हुए बोली| कोई और दिन होता तो शायद मैं संगीता को प्यार से समझता मगर आजकल मेरा दिमाग बहुत गर्म था, ऊपर से जिस तरह संगीता मुझ पर बरस पड़ी थी उससे मेरे दिमाग का fuse उड़ गया और मैं भी उस पर गुस्से से बरस पड़ा;

मैं: हाँ, नहीं पुछा मैंने तुमसे कुछ क्योंकि मुझसे तुम्हें इस तरह डरा-डरा नहीं देखा जाता! चौबीसों घंटे तुम्हें बस एक ही डर सताता रहता है की चन्दर आयुष को ले जाएगा! बीते कुछ दिनों से जितना तुम अंदर ही अंदर कितना तड़प रही हो, तुम्हें क्या लगता है की मैं तुम्हारी तड़प महसूस नहीं करता? तुम्हारे इस डर ने तुम्हारे चेहरे से हँसी छीन ली, यहाँ तक की हमारे घर से खुशियाँ छीन ली! अरे मैं तुम्हारे मुँह से प्यार भरे चंद बोल सुनने को तरस गया! जिस संगीता से मैंने प्यार किया, जिसे मैं बियाह के अपने घर लाया था वो तो जैसे बची ही नहीं?! जो मेरे सामने रह गई उसके भीतर तो जैसे मेरे लिए प्यार ही नहीं है, अगर प्यार है भी तो वो उस प्यार को बाहर नहीं आने देती!

उस रात को तुम्ही आई थी न मुझे छत पर ठंड में ठिठुरता हुआ खुद को सज़ा देता हुआ देखने? मुझे काँपते हुए देख तुम्हारे मन में ज़रा सी भी दया नहीं आई की तुम्हारा पति ठंड में काँप रहा है, ये नहीं की कम से कम उसे गले लगा कर उसके अंदर से ग्लानि मिटा दो?! मैं पूछता हूँ की बीते कुछ दिनों में कितने दिन तुमने मुझसे प्यार से बात की? बोलो है कोई जवाब?

मेरा गुस्सा देख संगीता सहम गई थी, अब उसे और गुस्से करने का मन नहीं था इसलिए मैंने अपनी बात को विराम देते हुए कहा;

मैं: तुम्हारे इसी डर को भगाने के लिए मैं ये सब कर रहा हूँ!

संगीता अब टूट कर रोने लगी थी, इसलिए नहीं की मैंने उसे डाँटा था बल्कि इसलिए की उसे आज अपने पति की तड़प महसूस हुई थी! संगीता को रोता हुआ देख मेरा दिल पसीजा और मेरी आँखें भी छलछला गईं| जब संगीता ने मेरी आँखों में आँसूँ देखे तो उसने जैसे-तैसे खुद को सँभाला और बोली;

संगीता: आप...आप सही कहते हो की...मैं घबराई हुई हूँ! लेकिन मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ की अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ! इन पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको जो भी दुःख पहुँचाया, आपको तड़पाया उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ और वादा करती हूँ की मैं अब नहीं डरूँगी! अब जब पंचायत में सब बात साफ़ हो ही चुकी है तो मुझे भी अब सँभलना होगा, लेकिन please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो?!

संगीता गिड़गिड़ाते हुए बोली और एक बार फिर फफक कर रो पड़ी| माँ ने तुरंत संगीता को अपने सीने से लगाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराने लगी|

माँ: ठीक है बहु, तुझे नहीं जाना तो न जा, कोई जबरदस्ती थोड़े ही है!

माँ ने संगीता को बहलाते हुए कहा| अब माँ सिर्फ संगीता की तरफदारी करे ये तो हो नहीं सकता था इसीलिए माँ संगीता को मेरा पक्ष समझाते हुए बोलीं;

माँ: बेटा, मानु तुझे दुखी नहीं देख सकता इसलिए वो दुबई जाने की कह रहा था| तू जानती है न तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो मानु कितना तड़प उठता है, तो तुझे वो यूँ तड़पता हुआ कैसे देखता? तेरी तबियत ठीक रहे, तेरे होने वाले बच्चे पर कोई बुरा असर न हो इसी के लिए मानु इतना चिंतित है!

संगीता ने माँ की बात चुपचाप सुनी और अपना रोना रोका|

मैं: ठीक है...कोई कहीं नहीं जा रहा!

मैं गहरी साँस छोड़ते हुए बोला और अपने कमरे में लौट आया, laptop table पर रखा तथा कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा हो गया| भले ही संगीता आज फफक कर रोइ थी मगर मैंने उसके भीतर कोई बदलाव नहीं देखा था, उसका दिल जैसे मेरे लिए धड़कता ही नहीं था! मैं कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा यही सोच रहा था की तभी संगीता पीछे से कमरे में दाखिल हुई और घबराते हुए बोली;

संगीता: मैं...मैं जानती हूँ की आप मुझसे कितना प्यार करते हो, लेकिन आपने ये सोच भी कैसे लिया की मैं अपने परिवार से अलग रह के खुश रहूँगी? मैं ये कतई नहीं चाहती की मेरे कारण आप माँ-पिताजी से दूर हों और हमारे बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हों!

संगीता सर झुकाये हुए बोली, आज उसकी बातों में बेरुखी खुल कर नजर आई| उसकी ये बेरुखी देख मैं खुद को रोक न सका और संगीता पर बरस पड़ा;

मैं: जानना चाहती हो न की क्यों मैं तुम्हें सब से दूर ले जाना चाहता था? तो सुनो, मैं बहुत खुदगर्ज़ इंसान हूँ! इतना खुदगर्ज़ की मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं, अब इसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा मैं करूँगा! नहीं देखा जाता मुझसे तुम्हें यूँ घुटते हुए, तुम्हें समझा-समझा के थक गया की कम से कम हमारे होने वाले बच्चे के लिए उस हादसे को भूलने की कोशिश करो मगर तुम कोशिश ही नहीं करना चाहती! हर पल अपने उसी डर को, की वो (चन्दर) फिर से लौट कर आएगा, को अपने सीने से लगाए बैठी हो! अब अगर हम इस देश में रहेंगे ही नहीं तो वो (चन्दर) आएगा कैसे?!

मैं कोई पागल नहीं हूँ जो मैंने ऐसे ही इतनी बड़ी बात सोच ली, मैंने पहले माँ-पिताजी से बात की थी और तब ये फैसला लिया| मैं यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर उन्हें (माँ-पिताजी को) हमारे साथ चलने को कहा मगर माँ-पिताजी ने कहा की उनमें अब वो शक्ति नहीं की वो गैर मुल्क में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपना सकें| तुम्हारे लिए वो इतना बड़ा त्याग करने को राज़ी हुए ताकि तुम और हमारी आने वाली संतान को अच्छा भविष्य मिले!

मेरे गुस्से से भरी बातें सुन संगीता को बहुत ग्लानि हुई| फिर भी उसने मुझे आश्वस्त करने के लिए झूठे मुँह कहा;

संगीता: मुझे...थोड़ा समय लगेगा!

संगीता सर झुकाये हुए बोली| उसका ये आश्वासन बिल्कुल खोखला था, उसकी बात में कोई वजन नहीं था और साफ़ पता चलता था की वो बदलना ही नहीं चाहती! संगीता का ये रवैय्या देख मैं झुंझुला उठा और उस पर फिर बरस पड़ा;

मैं: और कितना समय चाहिए तुम्हें? अरे कम से कम मेरे लिए न सही तो हमारे बच्चों के लिए ही मुस्कुराओ, कुछ नहीं तो झूठ-मुठ का ही मुस्कुरा दो!

मैं इस वक़्त इतना हताश था की मैं संगीता की नक़ली मुस्कान देखने के लिए भी तैयार था! उधर संगीता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं!

मैं: इस घर में हर शक़्स तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने को तरस रहा है|

ये कहते हुए मैंने संगीता को सभी के नाम गिनाने शुरू कर दिए;

मैं: पहले हैं पिताजी, जिन्होंने तुम्हारा कन्यादान किया! क्या बीतती होगी उन पर जब वो तुम्हें यूँ बुझा हुआ देखते होंगे? क्या वो नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी सामान बहु खुश रहे?

दूसरी हैं माँ, तुम बहु हो उनकी और माँ बनने वाली हो कैसा लगता होगा माँ को तुम्हारा ये लटका हुआ चेहरा देख कर?

तीसरा है हमारा बेटा आयुष, उस छोटे से बच्चे ने इस उम्र में वो सब देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था| पिछले कई दिनों से मैं उसका और नेहा का मन बहलाने में लगा हूँ लेकिन अपनी माँ के चेहरे पर उदासी देख के कौन सा बच्चा खुश होता है?

चौथी है हमारी बेटी नेहा, हमारे घर की जान, जिसने इस कठिन समय में आयुष को जिस तरह संभाला है उसकी तारीफ करने के लिए मेरे पास लव्ज़ नहीं हैं| कम से कम उसके लिए ही मुस्कुराओ!

इतने लोग तुम्हारी हँसी की दुआ कर रहे हैं तो तुम्हें और क्या चाहिए?

मैंने जानबूझ कर अपना नाम नहीं गिनाया था क्योंकि मुझे लग रहा था की संगीता के दिल में शायद अब मेरे लिए कोई जगह नहीं रही!

खैर, संगीता ने मेरी पूरी बात सर झुका कर सुनी और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, बिना कोई शब्द कहे वो चुपचाप मुझे पानी पीठ दिखा कर कमरे से बाहर चली गई! मुझे ऐसा लगा की जैसे संगीता पर मेरी कही बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा तभी तो वो बिना कुछ कहे चली गई! आज जिंदगी में पहलीबार संगीता ने मेरी इस कदर तौहीन की थी! मुझे अपनी ये बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई और मेरे भीतर गुस्सा फूटने लगा| एकबार को तो मन किया की संगीता को रोकूँ और कठोररटा पूर्वक उससे जवाब माँगूँ लेकिन मेरे कदम आगे ही नहीं बढे! अब गुस्सा कहीं न कहीं तो निकालना था तो मैं जल्दी से तैयार हुआ और बिना कुछ खाये-पीये site पर निकल गया| माँ-पिताजी ने पीछे से मुझे रोकने के लिए बहुत आवाजें दी मगर मैंने उनकी आवाजें अनसुनी कर दी और चलते-चलते जोर से चिल्लाया;

मैं: Late हो रहा हूँ|

मेरा दिल नहीं कर रहा था की मैं घर पर रुकूँ और संगीता का वही मायूस चेहरा देखूँ| गाडी भगाते हुए मैं नॉएडा पहुँचा मगर काम में एक पल के लिए भी मन न लगा| बार-बार नजरें mobile पर जा रही थीं, दिल कहता था की संगीता मुझे जरूर फ़ोन करेगी लेकिन, कोई फ़ोन नहीं आया!

उधर घर पर माँ-पिताजी पति-पत्नी की ये कहा-सुनी सुन कर हैरान थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की वो किस का समर्थन करें और किसे गलत कहें?! अपनी इस उलझन में वो शांत रहे और उम्मीद करने लगे की हम मियाँ-बीवी ही बात कर के बात सुलझा लें|

इधर अपना दिल बहलाने के लिए मैंने एक दर्द भरा गाना चला दिया; 'भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ, मोहब्बत हो गई जिनकी वो दीवाने कहाँ जाएँ?!' इस गाने को सुनते हुए मेरे दिल में टीस उठी, इस टीस ने मुझे कुछ महसूस करवाया! इंसान के भीतर जो दुःख-दर्द होता है उसे बाहर निकालना पड़ता है| कुछ लोग दूसरों से बात कर के अपना दुःख-दर्द बाँट लेते हैं मगर यहाँ संगीता अपने इस दुःख को अपने सीने से लगाए बैठी थी और उसका ये दुःख डर बन कर संगीता का गला घोंटें जा रहा है| अगर मुझे संगीता को हँसाना-बुलाना था तो पहले मुझे उसके भीतर का दुःख बाहर निकालना था| मैंने प्यार से कोशिश कर ली थी, समझा-बुझा कर कोशिश कर ली थी, बच्चों का वास्ता दे कर भी कोशिश कर ली थी अरे और तो और मैंने गुस्से से कोशिश कर ली थी मगर कोई फायदा नहीं हुआ था|



उन दिनों में ही मैंने ये कहानी लिखना शुरू किया था, मैं अपना दुःख दर्द इन्हीं अल्फ़ाज़ों में लिख कर समेट लिया करता था, तभी मैंने सोचा की क्यों न मैं संगीता से भी उसका दुःख-दर्द लिखने को कहूँ? शब्दों का सहारा ले कर संगीता अपने दुःख को व्यक्त कर अपने डर से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाती और उसके मन पर से ये भार उतर जाता| यही बात सोचते हुए मैं नरम पड़ने लगा और एक बार फिर उम्मीद करने लगा की मैं संगीता को अब भी सँभाल सकता हूँ, बस उसे एक बार अपना दुख लिखने के लिए मना लूँ|



रात को ग्यारह बजे जब मैं घर पहुँचा तो सब लोग खाना खा कर लेट चुके थे| आयुष अपने दादा-दादी जी के पास सोया था, एक बस नेहा और संगीता ही जाग रहे थे| मेरी बिटिया नेहा, मेरा इंतजार करते हुए अभी तक जाग रही थी और उसी ने मेरे आने पर दरवाजा खोला था|

मैं: मेरा बच्चा सोया नहीं?

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

नेहा: पापा जी, कल मेरा class test है तो मैं जाग कर उसी की पढ़ाई कर रही थी|

नेहा का भोलेपन से भरा जवाब सुन मैं मुस्कुराया, मेरी बेटी पढ़ाई को ले कर बहुत गंभीर थी| लेकिन उसकी बात में आज एक प्यारा सा झूठ छुपा हुआ था!

मैं: बेटा, आपने खाना खाया?

मेरे सवाल पूछते ही नेहा ने तुरंत अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और बोली;

नेहा: हाँ जी!

मैं: और आपकी मम्मी ने?

मेरे इस सवाल पर नेहा खी-खी कर बोली;

नेहा: दादी जी ने मम्मी को जबरदस्ती खिलाया! ही..ही..ही...ही!!!

नेहा का जवाब सुन मेरे चेहरे पर भी शरारती मुस्कान आ गई क्योंकि मैं कल्पना करने लगा था की माँ ने कैसे जबरदस्ती से संगीता को खाना खिलाया होगा! हालात कुछ भी हो बचपना भरपूर था मुझ में!

मैंने नेहा को गोदी लिया और अपने कमरे में आ गया| कमरे की light चालु थी और संगीता पलंग पर बैठी हुई आयुष की कमीज में बटन टाँक रही थी| ऐसा नहीं था की वो सो रही थी मगर जब मैंने अभी दरवाजा खटखटाया तो उसने जानबूझ कर नेहा को दरवाजा खोलने भेजा था ताकि कहीं मैं उससे कोई सवाल न पूछने लगूँ| खैर, मुझे देखते ही संगीता उठ खड़ी हुई और बिना मुझे कुछ कहे मेरी बगल से होती हुई रसोई में चली गई| आज सुबह जो मैंने दुबई जा कर बसने की बात कही थी उसी बात के कारण संगीता का मेरे प्रति व्यवहार अब भी उखड़ा हुआ था| संगीता का ये रूखा व्यवहार देख मुझे गुस्सा तो बहुत आया मगर मैं फिर भी अपना गुस्सा पी गया, मैंने नेहा को गोदी से उतारा और वो अपनी पढ़ाई करने लगी| फिर मैं dining टेबल पर खाना खाने के लिए बैठ गया, सुबह से बस एक कप चाय पी थी और इस समय पेट में चूहे कूद रहे थे!



आम तौर पर जब मैं देर रात घर आता था तो संगीता मेरे पास बैठ के खाना परोसती थी और जब तक मैं खा नहीं लेता था वो वहीं बैठ के मुझसे बातें किया करती थी| लेकिन, पिछले कछ दिनों से संगीता एकदम से उखड़ चुकी थी, संगीता की इस बेरुखी का जिम्मेदार चन्दर को मानते हुए मेरा उस आदमी पर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| आज भी संगीता मुझे खाना परोस कर हमारे कमरे में जाने लगी तो मैंने उसे रोकते हुए कहा;

मैं: सुनो?

संगीता मेरी ओर पीठ किये हुए ही रुक गई|

मैं: I need to talk to you.

मैंने संगीता से बात शुरू करते हुए कहा तो वो सर झुकाये हुए मुड़ी और मेरे सामने कुर्सी खींच कर बैठ गई|

मैं: I need you to write how you felt that day...

इतना सुनना था की संगीता अस्चर्य से मुझे आँखें बड़ी कर देखने लगी| उसकी हैरानी जायज भी थी, जहाँ संगीता मुझसे बात नहीं कर रही थी ऐसे में वो लिखती कहाँ से?!

मैं: अपने दर्द को लिखोगी तो तुम्हारा मन हलका होगा!

संगीता ने फिर सर झुका लिया और बिना अपनी कोई प्रतक्रिया दिए वो उठ कर चली गई| मैं जानता था की संगीता नहीं लिखने वाली और जिस तरह का सलूक संगीता मेरे साथ कर रही थी उससे मेरा खाना खाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी| मैंने खाना ढक कर रखा और मैं भी कमरे में लौट आया, कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था, lights बंद थीं मगर नेहा table lamp जला कर अभी भी पढ़ रही थी|

मैं: बेटा रात के बारह बज रहे हैं और आप अभी तक पढ़ रहे हो? आपका board का paper थोड़े ही है जो आप इतनी देर तक जाग कर पढ़ रहे हो?! चलो सो जाओ!

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो नेहा मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: जी पापा!

फिर उसने अपनी किताब बंद की और अपने दोनों हाथ खोलते हुए मुझे गोदी लेने को कहा| नेहा को गोदी ले कर मैं लेट गया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा आप इतनी देर तक जाग कर मेरा ही इंतजार कर रहे थे न?

मेरा सवाल सुन नेहा प्यार से मुस्कुराई और सर हाँ में हिलाने लगी| मैंने नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया, मेरी बिटिया मुझे इतना प्यार करती थी की मेरे बिना उसके छोटे से दिल को चैन नहीं मिलता था, ऊपर से आज उसने मुझे site पर phone भी नहीं किया था इसीलिए वो मेरे घर लौटने तक अपने class test का बहाना कर के जाग रही थी|



नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए मैंने उसे तो सुला दिया मगर मैं सो ना पाया| एक तो पेट खाली था और दूसरा संगीता की बेरुखी मुझे शूल की तरह चुभ रही थी! सुबह ठीक पाँच बजे मैं उठा और नेहा को सोता हुआ छोड़ के नहाने चला गया, जब मैं नहा कर बाहर निकला तो देखा की संगीता उठ चुकी है मगर उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी क़ायम था| मेरे पास कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा था, हाँ एक गुस्सा जर्रूर भीतर छुपा था मगर उसे बाहर निकाल कर मैं बात और बिगाड़ना नहीं चाहता था| किसी इंसान के पीछे लाठी- भाला ले कर पड़ जाओ की तू हँस-बोल तो एक समय बाद वो इंसान भी बिदक जाता है, यही सोच कर मैंने संगीता के पीछे पड़ना बंद कर दिया| सोचा कुछ समय बाद वो समान्य हो जाएगी और तब तक मैं भी उसके साथ ये 'चुप रहने वाले खेल' खेलता हूँ!

बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग dining table पर बैठे चाय पी रहे थे मगर कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था| माँ और पिताजी हम दोनों मियाँ-बीवी के चेहरे अच्छे से पढ़ पा रहे थे और हम दोनों के बीच पैदा हुए तनाव को महसूस कर परेशान थे| आखिर माँ ने ही बात शुरू कर घर में मौजूद चुप्पी भंग की;

माँ: बेटा, तू रात को कब आया?

मैं: जी करीब साढ़े ग्यारह बजे|

मैंने बिना माँ की तरफ देखे हुए जवाब दिया|

पिताजी: ओ यार, तू इतनी देर रात तक बाहर न रहा कर यहाँ सब परेशान हो जाते हैं|

पिताजी थोड़ा मजाकिया ढंग से बोले ताकि मैं हँस पडूँ मगर मेरी नजरें अखबार में घुसी हुईं थीं|

मैं: पिताजी काम ज्यादा है आजकल, project deadline से पहले निपट जाए तो नया काम उठाएं|

ये कहते हुए मैंने अखबार का पन्ना पलटा और वो पन्ना देखने लगा जिसमें नौकरी और tenders छपे होते हैं| मैं इतनी देर से माँ-पिताजी से नजर चुरा रहा था ताकि उनके पूछे सवालों का सही जवाब न दूँ क्योंकि अगर मैं सच बता देता की मैं घर पर संगीता के उखड़ेपन के कारण नहीं रहता तो उन्हें (माँ-पिताजी को) बहुत दुःख होता| वहीं पिताजी ने जब मुझे अखबार में घुसे हुए देखा तो उन्होंने मेरे हाथ से अखबार छीन लिया और बोले;

पिताजी: अब इसमें (अखबार में) क्या तू नौकरी का इश्तेहार पढ़ रहा है?

जैसे ही पिताजी ने नौकरी की बात कही तो संगीता की जान हलक में आ गई, उसे लगा की मेरे सर से बाहर देश में बसने का भूत नहीं उतरा है और मैं बाहर देश में कोई नौकरी ढूँढ रहा हूँ!

मैं: नहीं पिताजी, ये देखिये अखबार मैं एक tender निकला है बस उसी को पढ़ रहा था|

मैंने पिताजी को अखबार में छापा वो tender दिखाते हुए कहा| अब जा कर संगीता के दिल को राहत मिली!

पिताजी: बेटा, क्या जर्रूरत है बेकार का पंगा लेने की? हमारा काम अच्छा चल रहा है कोई जररुररत नहीं सरकारी tender उठाने की!

पिताजी मना करते हुए बोले|

मैं: पिताजी, फायदे का सौदा है|

मैंने tender को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया था ताकि मैं पिताजी के सवालों से बच सकूँ, मगर माँ के आगे मेरी सारी होशियारी धरी की धरी रह गई;

माँ: अच्छा बस, अब और काम-धाम की बात नहीं होगी!

माँ बीच में बोलीं और उनकी बात सुन हम बाप-बेटा खामोश हो गए| अब माँ ने संगीता को बड़े प्यार से कहा;

माँ: बहु, तू ऐसा कर आज नाश्ते में पोहा बना मानु को बहुत पसंद है|

माँ ने बड़ी होशियारी से मुझे और संगीता को नजदीक लाना शुरू कर दिया था| अब माँ से बेहतर कौन जाने की पति के दिल का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है| लेकिन संगीता, मुझे कल कही मेरी बातों के लिए माफ़ करने को तैयार नहीं थी, वो अपने उदास मुखड़े से बोली;

संगीता: जी माँ|

संगीता का वो ग़मगीन चेहरा देख कर मेरी भूख फिर मर गई थी!



सच कहूँ तो संगीता के कारण घर का जो माहोल था वो देख मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं घर एक पल भी ठहरूँ इसलिए मैं उठा और फटाफट तैयार हो कर बाहर आया| पोहा लघभग बन ही चूका था, मुझे तैयार देख माँ जिद्द करने लगीं की मैं नाश्ता कर के जाऊँ, परन्तु संगीता ने मुझे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा| ऐसा लगता था मानो मेरे घर रुकने से संगीता को अजीब सा लग रहा है और वो चाहती ही नहीं की मैं घर रुकूँ| मेरा भी मन अब घर रुकने का नहीं था इसलिए मैंने अपने दूसरे फ़ोन से पहले फ़ोन पर नंबर मिलाया और झूठमूठ की बात करते हुए घर से निकल गया|

Site पहुँच कर मैंने कामकाज संभाला ही था की की ठीक घंटे भर बाद पिताजी site पर आ पहुँचे और मुझे अकेले एक तरफ ले जा कर समझाने लगे;

पिताजी: बेटा, तुम दोनों (मुझे और संगीता) को क्या हो गया है? आखिर तूने ऐसा क्या कह दिया बहु को की न वो हँसती है न कुछ बोलती है और तो और तुम दोनों तो आपस में बात तक नहीं करते|

मैं: जी मैंने उसे कुछ नहीं कहा|

मैंने पिताजी से नजरें चुराते हुए झूठ बोला, अगर उन्हें कहता की मेरे डाँटने और दुबई जाने की बात के कारण संगीता मुझसे बात नहीं कर रही तो पिताजी मुझे झाड़ देते|

पिताजी: फिर क्या हुआ है? तू तो बहु से बहुत प्यार करता था न फिर उसे ऐसे खामोश कैसे देख सकता है तू?

पिताजी बात को कुरेदते हुए बोले|

मैं: मैं उस पागल से (संगीता से) अब भी प्यार करता हूँ...

मैंने जोश में आते हुए कहा, तभी पिताजी ने मेरी बात काट दी;

पिताजी: फिर संगीता इस कदर मायूस क्यों है? तू जानता है न वो माँ बनने वाली है?

पिताजी थोड़ा गुस्से से बोले|

मैं: जानता हूँ पिताजी और इसीलिए मैंने उसे (संगीता को) बहुत समझाया मगर वो समझना ही नहीं चाहती, अभी तक उस हादसे को अपने सीने से लगाए बैठी है!

मैंने चिढ़ते हुए कहा| मुझे चिढ हो रही थी क्योंकि पिताजी बिना मेरी कोई गलती के मुझसे सवाल-जवाब कर रहे थे|

पिताजी: देख बेटा, तू संगीता से प्यार से और आराम से बात कर, चाहे तो तुम दोनों कुछ दिन के लिए कहीं बाहर चले जाओ, बच्चों को हम यहाँ सँभाल लेंगे...

पिताजी नरमी से मुझे समझाते हुए बोले| उन्हें मेरे चिढने का कारण समझ आ रहा था|

मैं: वो (संगीता) नहीं मानेगी|

मैंने झुंझलाते हुए कहा क्योंकि मैं जानता था की संगीता बाहर जा क्र भी यूँ ही मायूस रहने वाली है और तब मैं उस पर फिर बरस पड़ता| जहाँ एक तरफ माँ-पिताजी मेरे और संगीता के बीच रिश्तों को सुलझाने में लगे थे वहीं हम दोनों मियाँ-बीवी अपनी-अपनी अकड़ पर अड़े थे!

पिताजी: वो सब मैं नहीं जानता, अगर तू उसे कहीं बाहर नहीं ले के गया तो मैं और तेरी माँ तुझसे बात नहीं करेंगे!

पिताजी गुस्से से मुझे डाँटते हुए बोले|

मैं: पिताजी, आप दोनों (माँ-पिताजी) संगीता को भी तो समझाओ| वो मेरी तरफ एक कदम बढ़ाएगी तो मैं दस बढ़ाऊँगा| उसे (संगीता को) कहो की कम से कम मुझसे ढंग से बात तो किया करे?

मैंने आखिर अपना दुखड़ा पिताजी के सामने रो ही दिया|

पिताजी: बेटा हम बहु को भी समझा रहे हैं, लेकिन तू अपनी इस अकड़ पर काबू रख और खबरदार जो बहु को ये अकड़ दिखाई तो...

पिताजी मुझे हड़काते हुए बोले| कमाल की बात थी, माँ-बाप मेरे और वो मुझे ही 'हूल' दे रहे थे! लेकिन, शायद मैं ही गलत था!



बहरहाल, पिताजी तो मुझे 'हूल' रुपी 'हल' दे कर चले गए और इधर मैं सोच में पड़ गया की आखिर मेरी गलती कहाँ थी? करीब दो घंटे बाद मेरे फ़ोन पर email का notification आया, मैंने email खोल कर देखा तो पाया की ये email संगीता ने किया है| Email में संगीता का नाम देख कर मुझे थोड़ी हैरानी हुई, फिर मैंने email खोला तो उसमें एक word file की attachment थी| ये attachment देख कर मेरा दिल बैठने लगा, मुझे लगा कहीं संगीता ने मुझे तलाक का notice तो नहीं भेज दिया?! घबराते हुए मैंने वो attachment download किया और जब file open हुई तो मैंने पाया की संगीता ने मेरी बात मानते हुए अपने दर्द को शब्दों के रूप में ब्यान किया था| मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी की संगीता मेरी बात मान कर अपना दर्द लिख कर मुझे भेजेगी! पहले तो मैंने चैन की साँस ली की कम से कम संगीता ने तलाक का notice तो नहीं भेजा था और फिर गौर से संगीता के लिखे शब्दों को पढ़ने लगा|

(संगीता ने जो मुझे अपना दर्द लिख कर भेजा था उसे मैंने पहले ही लिख दिया है|)



संगीता के लेख में भले ही शब्द टूटे-फूटे थे मगर उनमें छिपा संगीता की पीड़ा मुझे अब जा कर महसूस हुई थी| अभी तक मैंने बस संगीता के दुःख को ऊपर से महसूस किया था मगर उसके लिखे शब्दों को पढ़ कर मुझे उसके अंदरूनी दर्द का एहसास हुआ था| पूरा एक घंटा ले कर मैंने संगीता का सारा लेख पढ़ा और अब मेरा हाल बुरा था! मैंने एक माँ के दर्द को महसूस किया, एक पत्नी के डर को महसूस किया, एक बहु के दुःख को महसूस किया और इतने दर्द को महसूस कर मेरी आत्मा कचोटने लगी! मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की संगीता अपने भीतर इतना दुःख समेटे हुए है! मैं तो आजतक केवल संगीता के दुःख-दर्द को महसूस कर रहा था, वहीं संगीता तो अपने इस दुःख-दर्द से घिरी बैठी थी! मैं अपनी पत्नी को इस तरह दुःख में सड़ते हुए नहीं देख सकता था इसलिए मैंने निस्चय किया की मैं संगीता को कैसे भी उसके दर्द से बाहर निकाल कर रहूँगा|

संतोष को काम समझा कर मैं घर के लिए निकल पड़ा, रास्ते भर मैं बस संगीता के लेख को याद कर-कर के मायूस होता जा रहा था और मेरी आँखें नम हो चली थीं| घर पहुँचते-पहुँचते पौने दो हो गए थे, पिताजी बच्चों को घर छोड़ कर गुड़गाँव वाली site पर निकल गए थे और माँ पड़ोस में गई हुईं थीं| गाडी parking में खड़ी कर मैं दनदनाता हुआ घर में घुसा, मैंने सोच लिया था की आज मैं संगीता को प्यार से समझाऊँगा मगर जब नजर संगीता के मायूस चेहरे पर पड़ी तो सारी हिम्मत जवाब दे गई! तभी आयुष दौड़ता हुआ मेरी ओर आया ओर मेरी टांगों से लिपट गया| मैंने आयुष को गोदी में उठाया और उसने अपनी स्कूल की बातें बतानी शुरू कर दी| आयुष को गोद लिए हुए मैं अपने कमरे में आया, आयुष अपनी पटर-पटर करने में व्यस्त था परन्तु मेरा ध्यान आयुष की बातों में नहीं था| मैंने आयुष को गोद से उतारा और उसे खेलने जाने को बोला, तभी संगीता एक गिलास में पानी ले कर आ गई| मैंने पानी का गिलास उठाया और हिम्मत जुटाते हुए बोला;

मैं: मैंने तुम्हारा लेख पढ़ा!

मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा और तभी हम दोनों मियाँ-बीवी की आँखें मिलीं|

मैं: तुम क्यों इतना दर्द अपने दिल में समेटे हुए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारे दिल में ज़रा सी भी जगह नहीं?

मैंने भावुक होते हुए संगीता से सवाल पुछा| मेरी कोशिश थी की संगीता कुछ बोले ताकि मैं आगे बढ़ाते हुए उसे समझा सकूँ| वहीं संगीता की आँखों से उसका दर्द झलकने लगा था, उसके होंठ कुछ कहने के लिए कँपकँपाने लगे थे मगर संगीता खुद को कुछ भी कहने से रोक रही थी, वो जानती थी की अगर उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला तो वो टूट जायेगी! मैं संगीता के जज्बात समझ पा रहा था इसलिए मैंने भी उस पर कोई दबाव नहीं डाला और उठ कर बाहर बैठक में बैठ गया तथा संगीता की मनोदशा को महसूस कर मायूसी की दलदल में उतरने लगा|



घर में शान्ति पसरी हुई थी, नेहा नहा रही थी, आयुष अपने कमरे में खेल रहा था और संगीता हमारे कमरे में बैठी कुछ सोचने में व्यस्त थी| माँ घर लौट आईं थीं और नहाने चली गईं थीं, खाना तैयार था बस माँ के नहा कर आते ही परोसा जाना था|

जब से ये काण्ड हुआ था तभी से मैं अपनी सेहत के प्रति पूरी तरह से लापरवाह हो चूका था| मुंबई से आने के बाद जो मेरी संगीता से कहा-सुनी हुई थी उसके बाद से मैंने खाना-पीना छोड़ रखा था, अब जब खाना नहीं खा रहा था तो जाहिर था की मैंने अपनी BP की दवाइयाँ भी बंद कर रखी थीं| एक बस नेहा थी जो मुझे दवाई लेने के बारे में कभी-कभी याद दिलाती रहती थी मगर मैं उस छोटी सी बच्ची के साथ झूठ बोल कर छल किये जाए रहा था, हरबार मैं उसका ध्यान भटका देता और अपने लाड-प्यार से उसे बाँध लिया करता था| लेकिन आज मुझे तथा मेरे परिवार को मेरी इस लापरवाही का फल भुगतना था!



मैं आँखें बंद किये हुए, सोफे पर बैठा हुआ संगीता के लेख में लिखे हुए शब्दों को पुनः याद कर रहा था| वो दर्द भरे शब्द मेरे दिल में सुई के समान चुभे जा रहे थे और ये चुभन मेरी जान लिए जा रही थी| 2 तरीक को जब चन्दर मेरे घर में घुस आया था, उस दिन का एक-एक दृश्य मेरी आँखों के आगे घूम रहा था| आज मैं उन दृश्यों को संगीता की नजरों से देख रहा था और खुद को संगीता की जगह रख कर उसकी (संगीता की) पीड़ा को महसूस कर रहा था| चन्दर ने जिस प्रकार संगीता की गर्दन दबोच रखी थी उसे याद कर के मेरा खून गुस्से के मारे उबलने लगा था! मेरे भीतर गुस्सा पूरे उफान पर था, मेरी पत्नी को इस कदर मानसिक रूप से तोड़ने के लिए मैं चन्दर की जान लेना चाहता था| इसी गुस्से में बौखलाया हुआ मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ, लेकिन अगले ही पल मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया तथा मैं चक्कर खा कर धम्म से नीचे गिर पड़ा और फिर मुझे कुछ होश नहीं रहा की आगे क्या हुआ?!


जारी रहेगा भाग - 6 में...
Super update manu bhai

Amazing update
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Aakash.

sᴡᴇᴇᴛ ᴀs ғᴜᴄᴋ
Staff member
Sr. Moderator
44,228
157,150
304
I like to see Neha taking care of her father, this work used to do earlier by Bhabhi but the situation according to which Neha took care of it means that she has become sensible now.
Every time I try to forget that village peoples and the story revolves around it, Badke Dada and his thoughts, what should I say, I have said many times before. By the way, I am happy with what happened in the panchayat because now Chander and his family will not interfere and the fear in the Bhabhi will also go away, I used to think so, but it did not happen. Well everything else was good.
Because of Chander today there is a distance between Manu and Bhabhi, Now let us see how the withered flowers bloom.
As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story.

Thank You...
🖤🖤🖤
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

kill_l

New Member
54
226
48
आप दोनों का आपस में प्यार, गुस्सा, एक दूसरे की तड़प महसूस करना। कभी कभी जलन होती है की इतना प्यार !!! संगीता जी लौट आइये, किसी भी तरह से अपने डर को हटाइये, कही ऐसा न हो कि मानु ही टूट जाए।

बहुत ही बढ़िया अपडेट, लेकिन फिर से रुला गया।
 

Ashurocket

एक औसत भारतीय गृहस्थ।
426
1,820
123
प्रिय मित्रों,

Update post करने में हुई देरी के लिए क्षमा चाहूँगा|
आशा करता हूँ की आज की ये 14685 words की update आपको पसंद आएगी|
जैसा की आप सभी जानते हैं की कल से बनवरात्रे शुरू हो रहे हैं तो ऐसे में मेरी और आपकी मुलाक़ात अब नवरात्रों के बाद ही होगी| परन्तु चिंता मत कीजिये, इन दिनों में मैं लिखने का काम जारी रखूँगा और कोशिश करूँगा की 22 अप्रैल को आप सभी को एक और mega update दूँ|
जय माता दी! 🙏

प्रिय Rockstar_Rocky मानू,

कहानी के अंदर _ मानू के लिए शीघ्र स्वास्थ लाभ की शुभ कामनाएं।

कहानी के बाहर _ विक्रम संवत २०७८ नववर्ष एवम चैत्र प्रतिपदा की हार्दिक शुभकामनाए।

अंत में इतना ही _ लगे रहो बहादुरों।

आशु।
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

sunoanuj

Well-Known Member
3,658
9,660
159
Bahut hee bhawnapurn update the .. pyar ki gahrai kya hoti hai is update me tha pati patni ki understanding bhi or ek bavuk insaan ka sajeev chitran bhi ..

Manu ke bahut bahut shubhkamnaen jaldi swasth ke liye ...

Nutan varsh or navratri ki bahut bahut shubhkamnaen aap sabko ...

Sirf is update ke liye hee aaj aaya tha is forum par ... ab navratri ke baad milte hai

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👌👌👌👌
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Thunderstorm

Member
139
746
109
छब्बीसवाँ अध्याय: दुखों का ग्रहण
भाग - 5


अब तक पढ़ा:


अगली सुबह घर से निकलते समय नेहा ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थामा और मुझे हिदायत देती हुई बोली;

नेहा: पापा जी, अपना ख्याल रखना| किसी अनजान आदमी से बात मत करना, मुझे कानपूर पहुँच कर फ़ोन करना, lunch में मुझे फ़ोन करना और रात को flight में बैठने से पहले फ़ोन करना और दवाई लेना मत भूलना|

नेहा को मुझे यूँ हिदायतें देता देख माँ मुस्कुराते हुए बोलीं;

माँ: अरे वाह मेरी बिटिया! तू तो बिलकुल मेरी तरह अपने पापा को सीखा-पढ़ा रही है!

माँ ने हँसते हुए कहा और उनकी बात सुन सब हँस पड़े, संगीता भी मुस्कुराना चाह रही थी मगर उसकी ये मुस्कान घुटी हुई थी|

मैं: बेटा, सारी हिदायतें आप ही दोगे या फिर कुछ अपनी मम्मी के लिए भी छोड़ोगे?!

मैंने कुटिल मुस्कान लिए हुए संगीता की ओर देखते हुए कहा|

संगीता: बेटी ने अपनी मम्मी के मन की कह ही दी तो अब क्या मैं दुबारा सारी बातें दोहराऊँ?!

संगीता ने कुटिलता से नकली मुस्कान लिए हुए जवाब दिया| संगीता की कुटिलता देख मैं भी मुस्कुरा दिया और उसे कमरे में जाने का इशारा किया| कमरे में आ कर मैंने संगीता को अपना ख्याल रखने को कहा ओर संगीता ने भी अपना सर हाँ में हिलाते हुए संक्षेप में जवाब दिया|



अब आगे:


दोपहर
बारह बजे मैं लखनऊ पहुँचा और तभी नेहा का फ़ोन आ गया;

नेहा: पापा जी, आप कहाँ हो?

नेहा चिंतित होते हुए बोली|

मैं: बेटा, मैं अभी-अभी कानपूर पहुँचा हूँ, आपको call करने वाला ही था की आपका call आ गया|

मैंने नेहा को निश्चिन्त करते हुए झूठ कहा|

नेहा: आपने कुछ खाया? पहले कुछ खाओ और दवाई लो!

नेहा मुझे माँ की तरह हुक्म देते हुए बोली| उसका यूँ माँ बन कर मुझे हुक्म देना मुझे मजाकिया लग रहा था इसलिए मैं हँस पड़ा और बोला;

मैं: अच्छा मेरी मम्मी जी, अभी मैं कुछ खाता हूँ और दवाई लेता हूँ!

नेहा ने फ़ोन स्पीकर पर कर रखा था और जैसे ही मैंने उसे मम्मी जी कहा मुझे पीछे से माँ, आयुष और पिताजी के हँसने की आवाज आई| नेहा को भी मेरे उसे मम्मी जी कहने पर बड़ा मज़ा आया और वो भी ठहाका लगा कर हँसने लगी|

मैंने फ़ोन रखा और बजाए खाना खाने के सीधा गाँव के लिए निकल पड़ा| लखनऊ से गाँव पहुँचते-पहुँचते मुझे दोपहर के दो बज गए| मैं जानता था की गाँव में मेरा कोई भव्य स्वागत नहीं होगा इसलिए मैं अपने लिए पीने का पानी और खाने के लिए चॉकलेट ले कर आया था| पंचायत बैठनी थी 5 बजे और मैं 2 बजे ही घर पहुँच चूका था| मुझे घर में कोई नहीं दिखा क्योंकि बड़की अम्मा पड़ोस के गाँव में गई थीं, चन्दर अपने घर में पड़ा था, अजय भैया और बड़के दादा कहीं गए हुए थे| जब मैंने किसी को नहीं देखा तो मैं सड़क किनारे एक पेड़ के किनारे बैठ गया क्योंकि इस घर से (बड़के दादा के घर से) अब मेरा कोई नाता नहीं रह गया था| पिछलीबार जब मैं चन्दर के sign लेने गाँव आया था तब ही बड़के दादा ने हमारे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया था, इसलिए आज मुझे यहाँ पानी पूछने वाला भी कोई नहीं था| 15 मिनट बाद रसिका भाभी छप्पर की ओर निकलीं तब उन्होंने मुझे देखा मगर बिना कुछ कहे वो चली गईं, फिर अजय भैया बाहर से लौटे और मुझे बैठा देख वो भी बिना कुछ बोले बड़के दादा को बुलाने चले गए| फिर निकला चन्दर, हाथ में प्लास्टर लपेटे हुए, उसने मुझे देखा और मुझे देखते ही उसकी आँखों में खून उतर आया मगर उसमें कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई| अजय भैया, बदके दादा को मेरे आगमन के बारे में बता कर लौट आये थे और चन्दर के साथ खड़े हो कर कुछ खुसर-फुसर करने लगे| कहीं मैं उनकी खुसर-फुसर न सुन लून इसलिए चन्दर, अजय भैया को अपने साथ बड़े घर ले गया| दरअसल चन्दर इस समय अजय भैया को पढ़ा रहा था की उन्हें पंचों के सामने क्या-क्या बोलना है|



तभी वरुण फुदकता हुआ खेल कर घर लौटा, मुझे देखते ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फ़ैल गई| वो मेरे गले लगना चाहता था मगर घर में जो बातें उसने सुनी थीं उन बातों के डर से वो मेरे नजदीक नहीं आ रहा था| मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और चॉक्लेट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाई, वरुण के चेहरे की मुस्कान बड़ी हो गई थी मगर वो अब भी झिझक रहा था| उसने एक नजर अपनी मम्मी को छप्पर के नीचे बैठे देखा और उनके पास दौड़ गया, रसिका भाभी तब मुझे ही देख रहीं थीं| उन्होंने वरुण की पीठ पर हाथ रख मेरी ओर धकेला तो वरुण मुस्कुराता हुआ धीरे-धीरे चल कर मेरे पास आया| उसने झुक कर मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उसे रोका और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा| वरुण अब बड़ा हो चूका था और लगभग नेहा की उम्र का हो चूका था मगर दिल से वो अब भी पहले की ही तरह बच्चा था|

वरुण: चाचू, हमका भुलाये तो नाहीं गयो?!

वरुण मुस्कुराता हुआ बोला|

मैं: नहीं बेटा, मुझे आप याद हो और ये भी याद है की आपको चॉकलेट बहुत पसंद है|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा ओर वरुण ने चॉकलेट ले ली|

वरुण: थे..थैंक्यू चाचू!

वरुण खुश होते हुए बोला| फिर उसने वो सवाल पुछा जो उसकी माँ ने उसे पढ़ाया था;

वरुण: चाची कइसन हैं? और...और...आयुष कइसन है? नेहा दीदी कइसन हैं?

मैं: सब अच्छे हैं और आपको याद करते हैं|

मैंने संक्षेप में जवाब दिया|



इतने में बड़के दादा और बड़की अम्मा साथ घर लौट आये, मुझे वरुण से बात करता देख बड़के दादा एकदम से वरुण को डाँटने लगे| मैंने आयुष को मूक इशारा किया और उसने मेरी दी हुई चॉकलेट छुपा ली तथा बड़े घर की ओर दौड़ गया| बड़के दादा ओर बड़की अम्मा ने मुझे देखा परन्तु वो खामोश खड़े रहे| बड़के दादा की आँखों में मेरे लिए गुस्सा था मगर बड़की अम्मा की आँखों में मैंने अपने लिए ममता देखीं, लेकिन वो बड़के दादा के डर के मारे खामोश थीं और मुझे अपने गले नहीं लगा पा रहीं थीं| मैं ही आगे बढ़ा और उनके (बड़के दादा और बड़की अम्मा के) पाँव छूने के लिए झुका, बड़के दादा तो एकदम से मेरी ओर पीठ कर के खड़े हो गए तथा मुझे अपने पाँव छूने नहीं दिए| जबकि बड़की अम्मा अडिग खड़ी रहीं, मैंने उनके पाँव छुए और बड़की अम्मा ने मेरे सर पर हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद देना चाहा परन्तु बड़के दादा की मौजूदगी के कारण वो कुछ कह न पाईं| उन्होंने मुझे मूक आशीर्वाद दिया और मेरे लिए वही काफी था|

बड़के दादा: तोहार पिताजी कहाँ हैं?

बड़के दादा गुस्से में मेरी ओर पीठ किये हुए बोले|

मैं: जी मैंने उन्हें इस पंचायत के बारे में नहीं बताया|

मैंने हाथ पीछे बाँधे हुए हलीमी से जवाब दिया|

बड़के दादा: काहे?

बड़के दादा ने मेरी ओर पलटते हुए पुछा| उनके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था|

मैं: शिकायत आपको मुझ से है उनसे नहीं, तो मेरा आना जर्रुरी था उनका नहीं|

मैंने बड़े तपाक से जवाब दिया| मेरे जवाब से बड़के दादा को बहुत गुसा आया और उन्होंने गरजते हुए अजय भैया से कहा;

बड़के दादा: अजय! जाओ जाइके पंचों का बुलाये लाओ, हम चाहित है की बात आभायें हो!

अजय भैया पंचों को बुलाने के लिए साइकल से निकल गएvइधर बड़के दादा और बड़की अम्मा छप्पर के नीचे जा कर बैठ गए| मेरे लिए न तो उन्होंने पीने के लिए पानी भेजा और न ही खाने के लिए भेली (गुड़)! शुक्र है की मेरे पास पानी की बोतल थी, तो मैं उसी बोतल से पानी पीने लगा|



अगले एक घंटे में पंचायत बैठ चुकी थी, बीचों बीच दो चारपाई बिछी थीं जिनपर पंच बैठे थे| पंचों के दाएं तरफ बड़के दादा कि चारपाई थी जिस पर वो, चन्दर और अजय भैया बैठे थे| पंचों के बाईं तरफ एक चारपाई बिछी थी जिसपर मैं अकेला बैठा था| पंचों ने बड़के दादा को पहले बोलने का हक़ दिया;

पंच: पाहिले तुम कहो, फिर ई लड़िकवा (मेरा) का पक्ष सूना जाई|

बड़के दादा: ई लड़िकवा हमार चन्दर का बहुत बुरी तरह कुटिस (पीटा) है, ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! ऊपर से हमका पोलिस-थाने और वकील की धमकी देत है! तनिक पूछो ई (मैं) से की ई सब काहे किहिस? हम से एकरे कौन दुश्मनी है? हम ई (मेरा) का का बिगाडन है?

बड़के दादा मेरी ओर ऊँगली से इशारा करते हुए गुस्से से बोले| पंचों ने बड़के दादा को शांत रहने को कहा और मेरी ओर देखते हुए बोले;

पंच: बोलो मुन्ना (मैं)!

मैं: मेरी अपने बड़के दादा से कोई दुश्मनी नहीं है, न ही कभी रही है| मैं तब भी इनका आदर करता था और अब भी इनका आदर करता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से बड़के दादा की ओर देखते हुए कहा| फिर मैंने चन्दर की तरफ ऊँगली की और गुस्से से बोला;

मैं: परन्तु ये (चन्दर)...ये शक्स 2 जनवरी को मेरी पत्नी की हत्या करने के मकसद से मेरे घर में घुस आया| संगीता का गला दबा कर उसकी जान लेने के बाद ये आयुष को अपने साथ ले जाना चाहता था, वो तो क़िस्मत से मैं घर पर था और जब मैंने इसके (चन्दर के) संगीता पर गरजने की आवाज सुनी तो मैंने वही किया जो एक पति को करना चाहिए था| अगर मुझे बड़की अम्मा का ख्याल न होता क्योंकि बदक़िस्मती से ये उनका बेटा है, तो मैं इसका टेटुआ दबा कर तभी इसकी जान ले लेता!

मैंने गुस्से से दाँत पीसते हुए कहा|

मेरी बात सुन बड़के दादा सख्ते में थे! उनके चेहरे पर आये ये अस्चर्य के भाव साफ़ बता रहे थे की उन्हें सच पता ही नहीं!

बड़के दादा: ई लड़िकवा (मैं) झूठ कहत है! चन्दर अकेला दिल्ली नाहीं गवा रहा, अजयो (अजय भी) साथ गवा रहा| ई दुनो भाई (अजय भैया और चन्दर) एकरे (मेरे) हियाँ बात करे खातिर गए रहे ताकि ई (मैं) और ई के (मेरे) पिताजी हमार पोता जेका ये सभाएं जोर जबरदस्ती से दबाये हैं, ऊ हमरे पास लौट आये! लेकिन बात करेका छोड़ ई लड़िकवा (मैं) हमार बेटा (चन्दर) का बुरी तरह मारिस और ओकरा हाथ तोड़ दिहिस! हमार बेटा अजय ई सब का गवाह है!

बड़के दादा ने अजय भैया को आगे करते हुए गवाह बना दिया| उनकी बात सुन कर मुझे पता चला की चन्दर ने घर आ कर उलटी कहानी सुनाई है|

मैं: अच्छा?

ये कह मैंने अजय भैया की आँखों में देखते हुए उनसे पुछा:

मैं: अजय भैया कह दीजिये की यही हुआ था? क्या आप आये थे बात करने?

मैंने भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देखा, मुझसे नजर मिला कर अजय भैया का सर शर्म से झुक गया| हमारे बीच भाइयों का रिश्ता ऐसा था की वो कभी मेरे सामने झूठ नहीं बोलते थे| जब अजय भैया सर झुका कर निरुत्तर हो गए तो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई;

मैं: देख लीजिये पंचों, ये मेरे अजय भैया कभी मुझसे झूठ नहीं बोल सकते| आप खुद ही इनसे पूछ लीजिये की आखिर हुआ क्या था, क्या ये मेरे घर बात करने चन्दर के साथ आये थे?

मैंने पंचों की तरफ देखते हुए कहा तो सभी पंचों की जिज्ञासा जाग गई और वे अजय भैया से बोले;

पंच: अजय, कहो मुन्ना? तनिको घबराओ नाहीं, जउन सच है तउन कह दिहो!

अजय भैया का सर झुका देख कर बड़के दादा को भी जिज्ञासा हो रही थी की आखिर सच क्या है, इसलिए वो भी भोयें सिकोड़ कर अजय भैया को देख रहे थे| आखिर कर अजय भैया ने अपना मुँह खोला और हिम्मत करते हुए सच बोलने लगे;

अजय भैया: ऊ...हम चन्दर भैया संगे मानु भैया के घरे नाहीं गयन रहन! (चन्दर) भैया हमका ननकऊ लगे छोड़ दिहिन और कहिन की हम बात करके आईथ है| फिर जब हम अस्पताल पहुँचेन तब भैया हमसे कही दिहिन की हम ई झूठ बोल देइ की हम दुनो बात करे खातिर मानु भैया घरे गयन रहन और मानु भैया उनका (चन्दर को) बिना कोई गलती के मारिस है!

अजय भैया का सच सुन चन्दर की फटी की कहीं बड़के दादा उस पर हाथ न छोड़ दें इसलिए उसने अपना सर शर्म से झुका लिया| इधर बड़के दादा को अजय की बात सुन कर विश्वास ही नहीं हो रहा था की सारा दोष उनके लड़के चन्दर का है;

बड़के दादा: चलो मान लेइत है की अजय हमसे झूठ बोलिस की ई दुनो (अजय भैया और चन्दर) बात करे खातिर साथ गए रहे मगर हम ई कभौं न मानब की चन्दर कछु अइसन करिस की ई लड़िकवा (मैं) का ऊ पर (चन्दर पर) हाथ छोड़े का मौका मिला हो!

बड़के दादा ने चन्दर का पक्ष लेते हुए कहा| उनके लिए उनका अपना खून सही था मगर मैं गलत! बड़के दादा इस वक़्त मुझे धीतराष्ट्र की तरह लग रहे थे जो अपने क्रूर बुद्धि वाले पुत्र चन्दर उर्फ़ दुर्योधन का पक्ष ले रहे थे|

मैं: मैं जूठ बोल रहा हूँ? ठीक है, मेरे पास अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है इसलिए मैं भवानी माँ की कसम खाने को तैयार हूँ!

भवानी माँ हमारे गाँव की इष्ट देवी हैं, माँ इतनी दयालु हैं की उनकी शरण में आये हर भक्त की वो मदद करती हैं| कितनी ही बार जब किसी व्यक्ति पर भूत-पिश्चाच चिपक जाता है, तब वो व्यक्ति किसी भी तरह माँ तक पहुँच जाए तो उस व्यक्ति की जान बच जाती है| ये भी कहते हैं की भवानी माँ की कसम खा कर झूठ बोलने वाला कभी जिन्दा नहीं बचता| मैंने माँ के प्यार का सहारा लेते हुए बड़के दादा से कहा;

मैं: दादा, आप भी चन्दर से कहिये की अगर वो बेगुनाह है तो वो भी मेरे साथ चले और माँ की कसम खाये और कह दे की उसके बिना कुछ किये ही मैंने उसे पीटा है|

इतना कह मुझे लगा की कहीं ये शराबी (चन्दर) कसम खा कर झूठ न बोल दे इसलिए मैंने उसे थोड़ा डराते हुए कहा;

मैं: ये याद रहे चन्दर की अगर तूने जूठ बोला तो तू भी जानता है की भवानी माँ तुझे नहीं छोड़ेंगी!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा| मैं तो फ़ौरन मंदिर चल कर कसम खाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया मगर चन्दर सर झुकाये ही बैठा रहा|

बड़के दादा: चल चन्दर?!

बड़के दादा ने कई बार चन्दर को मंदिर चलने को कहा मगर वो अपनी जगह से नहीं हिला, हिलता भी कैसे मन में चोर जो था उसके!

मैं: देख लीजिये दादा! आपका अपना खून आपसे कितना जूठ बोलता है और आप उसका विश्वास कर के मुझे दोषी मान रहे हैं|

मेरी बात सुन बड़के दादा का सर शर्म से झुक गया, उस समय मुझे उनके लिए बहुत बुरा लगा| अब बड़के दादा झूठे साबित हो चुके थे मगर उन्हें अब भी अपना पोता चाहिए था, वो पोता जो उनके अनुसार उनकी वंश बेल था!

बड़के दादा: ठीक है पंचों, हम मानित है की हमरे सिक्का खोटा है!

बड़के दादा को अपनी गलती मानने में बड़ी तकलीफ हुई थी|

बड़के दादा: लेकिन अब ई लड़िकवा (मैं) हियाँ आ ही गवा है तो ई से कह दिहो की ई आयुष का हमका सौंप दे, काहे से की ऊ चन्दर का खून है और ई का (मेरा) आयुष पर कउनो हक़ नाहीं!

बड़के दादा बड़े हक़ से आयुष को माँग रहे थे|

मैं: बिलकुल नहीं!

मैं छटपटाते हुए बोला| बड़के दादा ने आयुष को चन्दर का खून कहा तो मेरा खून खौल गया| मैंने फटाफट अपने बैग से संगीता के तलाक के कागज निकाले और पंचों के आगे कर दिए;

मैं: ये देखिये तलाक के कागज़|

पंचों ने कागज देखे और बोले;

पंच: ई कागज तो सही हैं! ई मा लिखा है की चन्दर आयुष की हिरासत मानु का देत है और ऊ का (चन्दर का) आयुष पर अब कउनो हक़ नाहीं!

ये सच सुन बड़के दादा के पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई!

बड़के दादा: नाहीं ई नाहीं हुई सकत! ई झूठ है! ई लड़िकवा हम सभाएं का धोका दिहिस है, तलाक के कागजों पर दतख्ते लेते समय हमसे ई बात छुपाइस है!

बड़के दादा तिलमिला कर मुझ पर आरोप लगाते हुए बोले| मैंने ये बात बड़के दादा से नहीं छुपाई थी, वो तो उस दिन जब मैं पिताजी के साथ तलाक के कागजों पर चन्दर के दस्तखत कराने आया था तब मुझे आयुष के बारे में कोई बात कहने का मौका ही नहीं मिला था| खैर इस वक़्त मैं अपनी उस गलती को मान नहीं सकता था इसलिए मैंने चन्दर के सर पर दोष मढ़ दिया;

मैं: दादा, मैंने आपसे कोई बात नहीं छुपाई| उस दिन जब मैं तलाक के कागज़ ले कर आया था तब मैंने कागज चन्दर को दिए थे उसने अगर पढ़ा नहीं तो इसमें मेरा क्या कसूर?!

मैंने एकदम से अपना पल्ला झाड़ते हुए बड़के दादा से कहा| परन्तु बड़के दादा अपनी बात पर अड़ गए;

बड़के दादा: अगर चन्दर नाहीं पढीस तभऊँ तोहार आयुष पर कउनो हक़ नाहीं बनत! ऊ चन्दर का खून है...

इतना सुनना था की मेरे अंदर का पिता बाहर आ गया और मैंने गर्व से अपनी छाती ठोंकते हुए कहा;

मैं: जी नहीं, आयुष मेरा खून है इसका (चन्दर) नहीं!

मैंने चन्दर की ओर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| मेरा ये आत्मविश्वास देख बड़के दादा सन्न रह गए और बहस करने लगे;

बड़के दादा: तू काहे झूठ पर झूठ बोलत जात है? भगवान का कउनो डर नाहीं तोहका?

बड़के दादा मुझे भगवान के नाम से डरा रहे थे पर वो सच्चाई से अनजान थे!

मैं: मैंने कुछ भी जूठ नहीं कहा, चाहे तो आप लोग मेरा और आयुष का DNA test करा लो|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| किसी को DNA Test का मतलब तो समझ नहीं आया मगर मेरा आत्मविश्वास देख सभी दहल गए थे!

मैं: आयुष मेरे और संगीता के प्यार की निशानी है!

मैंने फिर पूरे आत्मविश्वास से कहा| मेरी बात में वजन था, ये वजन कभी किसी झूठे की बात में नहीं हो सकता था इसलिए बड़के दादा को और पंचों को विश्वास हो चूका था की आयुष मेरा ही बेटा है|

बड़के दादा: अरे दादा! ई का मतबल की तू और ऊ (संगीता)... छी...छी...छी!

बड़के दादा नाक सिकोड़ कर बोले मानो उन्हें मेरी बात सुन बहुत घिन्न आ रही हो! उनकी ये प्रतिक्रिया देख मेरे भीतर गुस्से की आग भड़क उठी और मैं गुस्से से चिल्लाते हुए बोला;

मैं: बस! मैं अब और नहीं सुनूँगा! आयुष मेरे बेटा है और इस बात को कोई जुठला नहीं सकता, न ही यहाँ किसी को हक़ है की वो मेरे और संगीता के प्यार पर ऊँगली उठाये| इस सब में सारी गलती आपकी है बड़के दादा, आपने अपने बेटे की सारी हरकतें जानते-बूझते उसकी शादी संगीता से की! आपको पता था की शादी से पहले आपका बेटा जो गुल खिलाता था, शादी के बाद भी वो वही गुल खिला रहा है और आप ये सब अच्छे से जानते हो लेकिन फिर भी आपने एक ऐसी लड़की (संगीता) की जिंदगी बर्बाद कर दी जिसने आपका कभी कुछ नहीं बिगाड़ा था! कह दीजिये की आपको नहीं पता की क्यों आपका लड़का (चन्दर) आये दिन मामा के घर भाग जाता था? वहाँ जा कर ये क्या-क्या करता है, क्या ये आपको नहीं पता? कह दीजिये? जब संगीता की शादी इस दरिंदे से हुई तो उसी रात को संगीता को इसके ओछे चरित्र के बारे में पता लग गया था इसीलिए संगीता ने इसे कभी खुद को छूने नहीं दिया! अब अगर ऐसे में संगीता को मुझसे प्यार हो गया तो इसमें क्या गलत था? हमने पूरे रीति रिवाजों से शादी की इस (चन्दर) की तरह हमने कोई नाजायज़ रिश्ते नहीं बनाये! हमारा रिश्ता पूरी तरह से पाक-साफ़ है!

मैं पंचों के सामने बड़के दादा की बेइज्जती नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने सब बातों का खुलासा नहीं किया| लेकिन मैंने आज सबके सामने मेरे और संगीता के रिश्ते को पाक-साफ़ घोषित कर दिया था! उधर मेरी बातों से चन्दर की गांड सुलग चुकी थी, मैंने अपनी बातों में उसे बहुत नीचा दिखाया था, जाहिर था की चन्दर ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देनी थी| वो गुस्से से खड़ा हुआ और मुझ पर चिल्लाते हुए बोला;

चन्दर: @@@@ (अपशब्द) बहुत सुन लिहिन तोहार? एको शब्द और कहेऊ तो...

चन्दर मुझे गाली देता हुआ बोला| मैं तो पहले ही गुस्से में जल रहा था और उस पर चन्दर की इस तीखी प्रतिक्रिया ने मेरे गुस्से की आग में घी का काम किया! मैं भी गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चन्दर की आँखों में आँखें डालते हुए उसकी बात काटे हुए चिल्लाया;

मैं: ओये!

मेरा मन गाली देना का था मगर पंचों और बड़के दादा का मान रख के मैंने दाँत पीसते हुए खुद को गाली देने से रोक लिया तथा अपनी बात आगे कही;

मैं: भूल गया उस दिन मैंने कैसे तुझे पीटा था?! कितना गिड़गिड़ाया था तू मेरे सामने की मैं तुझे और न पीटूँ? तू कहे तो दुबारा, यहीं सब के सामने तुझे फिर पीटूँ? तेरा दूसरा हाथ भी तोड़ दूँ? साले तुझे भगा-भगा कर मारूँगा और यहाँ तो कोई थाना भी नहीं जहाँ तू मुझ पर case करेगा! उस दिन तो तुझे जिन्दा छोड़ दिया था और आजतक एक पल ऐसा नहीं गुजरा जब मुझे मेरे फैसले पर पछतावा न हुआ हो, लेकिन इस बार तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा!

मेरी गर्जन सुन चन्दर को 2 जनवरी की उसकी हुई पिटाई याद आई और डर के मारे उसकी (चन्दर की) फ़ट गई! वो खामोश हो कर बैठ गया, उसके चेहरे से उसका डर झलक रहा था और शायद कहीं न कहीं बड़के दादा भी घबरा गए थे! पंच ये सब देख-सुन रहे थे और मेरे गुस्सैल तेवर देख कर उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा;

पंच: शांत हुई जाओ मुन्ना! ई लड़ाई-झगड़ा से कउनो हल न निकली!

मैं: आप बस इस आदमी (चन्दर) से कह दीजिये की अगर आज के बाद ये मेरे परिवार के आस-पास भी भटका तो मैं इसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|

मैंने चन्दर की ओर इशारा करते हुए दो टूक बात कही मगर बड़के दादा चन्दर की ओर से बोले;

बड़के दादा: बेटा! हम तोहका वचन देइत है की आज के बाद न हम न चन्दर...आयुष के लिए कउनो....

बड़के दादा मुझसे नजरें चुराते हुए बोले ओर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| उनकी आवाज में शर्म और मायूसी झलक रही थी और मुझे बड़के दादा के लिए बुरा लग रहा था| इधर पंचों ने जोर दे कर बड़के दादा से उनकी बात पूरी कराई;

बड़के दादा: हम वचन देइत है की आज के बाद न हम न हमरे परिवार का कउनो आदमी तोहरे परिवार के रास्ते न आई! हम सभाएँ आयुष का भूल जाबे और ऊ की हिरासत लिए खातिर कउनो दावा न करब!

बड़के दादा ने मायूस होते हुए अपनी बात कही, इस वक़्त चन्दर के कारण उनके सभी सपने टूट चुके थे| वहीं बड़के दादा के मुँह से ये बात सुन मुझे चैन मिल गया था, मुझे इत्मीनान हो गया था की आज के बाद चन्दर अब कभी हमें परेशान करने दिल्ली नहीं आएगा| मेरे दिल को मिले इस चैन को पंचों की आगे कही बात ने पुख्ता रूप दे दिया;

पंच: तो ई बात तय रही की आज से तोहरे (मेरे) बड़के दादा की ओर से तोहका कउनो परेशानी न हुई और न ही आयुष खातिर कउनो दावा किया जाई!

पंचों ने मेरी तरफ देखते हुए कहा| फिर उन्होंने बड़के दादा की तरफ देखा और बोले;

पंच: भविष्य में अगर चन्दर फिर कभौं अइसन हरकत करत है जे से मानु का या मानु का परिवार का कउनो हानि होत है तो हम तोहार और तोहार पूरे परिवार का हुक्का-पानी बंद कर देब! और तब मानु का पूरा हक़ हुई हैं की ऊ तोहरा (बड़के दादा) और चन्दर पर कानूनी कारवाही कर सकत है और हियाँ से हम पंच भी कानूनी कारवाही कर देब!

पंचों ने अपना फैसला सुना दिया था और उनका ये फैसला सुन मैं थोड़ा सा हैरान था| दरअसल हमारे छोटे से गाँव में कोई भी कानूनी चक्करों में नहीं पड़ना चाहता था इसीलिए सारे मसले पंचायत से सुलझाये जाते थे| पंचों ने मेरे हक़ में फैसला इसलिए किया था क्योंकि मैं शहर में रहता था और मेरे पास कानूनी रूप से मदद लेने का सहारा था| खैर, अपना फैसला सुनाने के बाद पंच चलने को उठ खड़े हुए, मेरा दिल चैन की साँस ले रहा था और इसी पल मेरे मन में एक लालच पैदा हुआ, अपने लिए नहीं बल्कि अपने पिताजी के लिए| मैंने पंचों को रोका और उनके सामने अपना लालच प्रकट किया;

मैं: पंचों मैं आप सभी से कुछ पूछना चाहता हूँ|

मैंने बड़ी हलीमी से अपनी बात शुरू करते हुए कहा|

पंच: पूछो?

सभी एक साथ बोले|

मैंने पंचों के आगे हाथ जोड़ते हुए अपनी बात शुरू की;

मैं: मैंने देखा है की आजतक माँ-बाप के किये गलत कामों की सजा उनके बच्चों को मिलती है मगर मैंने ये कभी नहीं देखा की बच्चों के किये की सजा उनके माँ-बाप को दी जाती हो! मेरे अनुसार मैंने कोई गलती नहीं की, कोई पाप नहीं किया, संगीता से प्यार किया और जायज रूप से शादी की और अगर आपको ये गलती लगती है, पाप लगता है तो ये ही सही मगर आप इसकी सजा मेरे माँ-पिताजी को क्यों दे रहे हो, उनका इस गाँव से हुक्का-पानी क्यों बंद किया गया है? अगर आपको किसी का हुक्का-पानी बंद करना है तो आप मेरा हुक्का-पानी बंद कीजिये, मैं वादा करता हूँ की न मैं, न मेरी पत्नी और न ही मेरे बच्चे इस गाँव में कदम रखेंगे! लेकिन मेरे पिताजी...वो तो इसी मिटटी से जन्में हैं और इसी मिटटी में मिलना चाहेंगे, परन्तु आपका लिया हुआ ये फैसला मेरे पिताजी के लिए कितना दुखदाई साबित हुआ है ये आप नहीं समझ पाएँगे! इस गाँव में मेरे पिताजी के पिता समान भाई हैं, माँ समान भाभी हैं कृपया उन्हें (मेरे पिताजी को) उनके इस परिवार से दूर मत कीजिये! मैं आज आपसे बस एक ही गुजारिश करना चाहता हूँ और वो ये की आप मेरे माता-पिता को गाँव आने की इजाजत दे दीजिये! ये गुजारिश मेरे पिताजी की तरफ से नहीं बल्कि मेरी, एक बेटे की तरफ से है!

एक बेटे ने अपने पिता के लिए आज पंचों के आगे हाथ जोड़े थे और ये देख कर पंच हैरान थे;

पंच: देखो मुन्ना, जब तोहरे बड़के दादा ही आपन छोट भाई (मेरे पिताजी) से कउनो रिस्ता नाहीं रखा चाहत हैं तो ई सब मा हम का कही सकित है? ई तोहार बड़के दादा की मर्जी है, लेकिन...

इतना कह पंचों ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी| पंचों ने जब अपनी बात में लेकिन शब्द का इस्तेमाल किया तो मैं जान गया की कोई न कोई रास्ता जर्रूर है;

मैं: लेकिन क्या?

मैंने अधीर होते हुए बात को कुरेदते हुए पुछा|

पंच: एक रास्ता है और वो ऊ की अगर तोहरे पिताजी तोहसे सारे नाते-रिश्ते तोड़ देत हैं तो ऊ ई गाँव मा रही सकत हैं!

पंचों की ये बात मुझे बहुत चुभी, ऐसा लगा जैसे ये बात बड़के दादा के मुँह से निकली हो! ये एक बेतुकी बात थी और मुझे पंचों की इस बात का जवाब अपने अंदाज में देना था;

मैं: कोई माँ-बाप अपने ही खून से रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं? आपने अभी खुद देखा न की बड़के दादा अपने बेटे के गलत होने पर भी उसका साथ दे रहे थे, फिर मैं तो बिलकुल सही रास्ते पर हूँ तो ऐसे में भला मेरे माँ-पिताजी मेरा पक्ष क्यों नहीं लेंगे और मुझसे कैसे रिश्ता तोड़ लेंगे?

अब मैंने बड़के दादा की ओर देखा और बोला;

मैं: रही बात बड़के दादा के गुस्से की, तो किसी भी इंसान का गुस्सा उसकी उम्र से लम्बा नहीं होता|

मैंने ये बात पंचों से कही थी मगर मैं देख बड़के दादा की तरफ देख रहा था| पंचों ने मेरी पूरी बात सुनी मगर उनका मन पहले से ही बना हुआ था तो वो मेरी मदद क्यों करते? मैंने संगीता से शादी कर के इस गाँव के रीति-रिवाज पलट दिए थे इसलिए किसी को भी मेरे प्रति सहानुभूति नहीं थी| वो तो सबको सतीश जी के बनाये तलाक के कागज देख कर कानूनी दाव-पेंचों का डर था इसीलिए पंचों ने आज फैसला मेरे हक़ में किया था वरना कहीं अगर मैं आज बिना कागज-पत्तर के आया होता तो पंच मुझे जेल पहुँचा देते!

पंच: फिर हम सभाएँ कछु नाहीं कर सकित!

इतना कह पंच चले गए, मेरा भी अब इस घर में रुकने का कोई तुक नहीं बचा था इसलिए मैंने भी अपना बैग उठाया और वापस चल दिया|



चूँकि मैं गाँव आया था तो मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने ससुर जी से भी मिलता चलूँ?! उनका घर रास्ते में ही था, मुझे देखते ही पिताजी ने मुझे गले लगा लिया| मैंने उनसे पुछा की वो दिल्ली क्यों नहीं आये, तब उन्होंने बताया की संगीता ने ही उन्हें दिल्ली आने से मना कर दिया था| मुझे हैरानी हुई क्योंकि इसके बारे में संगीता ने किसी को नहीं बताया था, हम सभी को यही लग रहा था की पिताजी (मेरे ससुर जी) को कोई जर्रूरी काम आन पड़ा होगा|

मुझे ये भी पता चला की मेरी सासु माँ मुंबई गई हुईं हैं, मुझे ये जान कर हैरानी हुई की सासु माँ अकेले मुंबई क्यों गईं? मेरे ससुर जी ने मुझे बताया की अनिल ने दोनों को मुंबई घूमने बुलाया था मगर अपनी खेती-बाड़ी के काम के कारण वो (ससुर जी) जा नहीं पाए| अनिल के कॉलेज का एक दोस्त लखनऊ में रहता था और सासु माँ उसी के साथ मुंबई गईं हैं| मुझे जानकार ख़ुशी हुई की सासु माँ को अब जा कर घूमने का मौका मिल रहा है|

बहरहाल मुझे मेरे ससुर जी चिंतित दिखे, मैंने उनसे उनकी चिंता का कारण जाना तथा अपनी यथाशक्ति से उस चिंता का निवारण कर उन्हें चिंता मुक्त कर दिया|



अपने ससुर जी से विदा ले कर मैं निकला तो मुझे चौराहे पर अजय भैया, रसिका भाभी और वरुण खड़े हुए मिले| उन्हें अपना इंतजार करता देख मैं थोड़ा अचरज में पड़ गया, मुझे लगा कहीं वो मुझे वापस बुलाने तो नहीं आये?

अजय भैया: मानु भैया हमका माफ़ कर दिहो!

अजय भैया मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोले| मैंने फ़ौरन उनके दोनों हाथ अपने हाथों के बीच पकड़ लिए और बड़े प्यार से बोला;

मैं: भैया, ऐसा मत बोलो! मैं जानता हूँ की आपने जो भी किया वो अपने मन से नहीं बलिक बड़के दादा और चन्दर के दबाव में आ कर किया| आप यक़ीन मानो भैया मेरे मन में न आपके प्रति और न घर के किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई मलाल नहीं है, नफरत है तो बस उस चन्दर के लिए! अगर वो फिर कभी मेरे परिवार के आस-पास भी भटका न तो ये उसके लिए कतई अच्छा नहीं होगा! आपने नहीं जानते की उसने मेरे परिवार को कितनी क्षति पहुँचाई है, इस बार तो मैं सह गया लेकिन आगे मैं नहीं सहूंगा और उसकी जान ले लूँगा!

मैंने अपनी अंत की बात बहुत गुस्से से कही, उस वक़्त मैं ये भी भूल गया की पास ही वरुण भी खड़ा है जो मेरी बातों से थोड़ा सहम गया है|

अजय भैया: शांत हुई जाओ मानु भैया! हम पूरी कोशिश करब की भैया कभौं सहर ना आये पाएं और आपके तनिकों आस-पास न आवें! आप चिंता नाहीं करो!

अजय भैया की बात सुन मैंने अपना गुस्सा शांत किया| तभी आज सालों बाद रसिका भाभी हिम्मत कर के मुझसे बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया...हमसे रिसियाए हो?!

आज रसिका भाभी की बात करने के अंदाज में फर्क था, मुझे उनकी आवाज में वासना महसूस नहीं हुई बल्कि देवर-भाभी के रिश्ते का खट्टा-मीठा एहसास हुआ|

मैं: नहीं तो!

मैंने नक़ली मुस्कान के साथ कहा|

रसिका भाभी: हम जो भी पाप करेन ओहके लिए हमका माफ़ कर दिहो!

रसिका भाभी ने 5 साल पहले मेरे साथ sex के लिए जबरदस्ती करने की माफ़ी माँगी|

मैं: वो सब मैं भुला चूका हूँ भाभी और आप भी भूल जाओ! मैं बस आप दोनों (अजय भैया और रसिका भाभी) को एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी देखना चाहता था और आप दोनों को एक साथ देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है|

मैंने रसिका भाभी को दिल से माफ़ करते हुए कहा| अब जब मैं रसिका भाभी से बात करने लगा तो उन्होंने भी मुझसे खुल कर बात करनी शुरू कर दी;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी (संगीता) कइसन हैं?

मैं: उस दिन के हादसे काफी सहमी हुई है!

संगीता का ख्याल आते ही मुझे उसका उदास चेहरा याद आ गया|

रसिका भाभी: उनका कहो की सब भुलाये खातिर कोशिश करें, फिर आप तो उनका अच्छे से ख्याल रखत हुईहो?! बहुत जल्द सब ठीक हुई जाई!

मैं: मैं भी यही उम्मीद करता हूँ की जल्दी से सब ठीक हो जाए!

मैंने अपनी निराशा भगाते हुए कहा| फिर मैंने अजय भैया से घर के हालात ठीक करने की बात कही;

मैं: भैया, मैं तो अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश कर ही रहा हूँ, आप भी यहाँ अपनी कोशिश करो की बड़के दादा का मन बदले और हमारा पूरा परिवार एक हो जाए|

मेरी ही तरह अजय भैया भी चाहते थे की हमारा ये परिवार बिखरे न बल्कि एकजुट हो कर खड़ा रहे इसीलिए मैंने उन्हें हिम्मत बँधाई थी!

अजय भैया: हमहुँ हियाँ कोशिश करीत है, थोड़ा समय लागि लेकिन ई पूरा परिवार फिर से एक साथ बैठ के खाना खाई!

अजय भैया मुस्कुराते हुए अपने होंसले बुलंद कर बोले|

अजय भैया: वइसन भैया, अम्मा तोहका खूब याद करत ही!

अजय भैया ने बड़की अम्मा की बात कही तो मैं पिघल गया और आज कई सालों बाद अम्मा से बात करने का दिल किया;

मैं: मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ भैया! किसी दिन बड़की अम्मा से फ़ोन पर बात करवा देना|

तभी मुझे याद आया की मैं अजय भैया और रसिका भाभी के साथ संगीता के माँ बनने की ख़ुशी बाँट लेता हूँ;

मैं: अरे, एक बात तो मैं आप सब को बताना ही भूल गया, संगीता माँ बनने वाली है!

ये खबर सुन कर तीनों के चेहरे पर ख़ुशी चहकने लगी;

रसिक भाभी: का? सच कहत हो?

रसिका भाभी ख़ुशी से भरते हुए बोलीं और ठीक वैसी ही मुस्कान अजय भैया के चेहरे पर आ गई!

मैं: हाँ जी! कुछ दिनों में संगीता को pregnant हुए दो महीने हो जाएंगे|

ये सुन रसिका भाभी मुझे मेरी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए बोलीं;

रसिका भाभी: भैया, फिर तो तोहका दीदी का और ज्यादा ख्याल रखेका चाहि!

मैं: हाँ जी!

मैंने सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

अजय भैया: भैया, ई तो बड़ी ख़ुशी का बात है! हम ई खबर अम्मा का जर्रूर देब...

अजय भैया ख़ुशी से चहकते हुए बोले|

मैं: जरूर भैया और छुप कर ही सही बस एक बार मेरी उनसे (बड़की अम्मा से) बात करा देना, उनकी आवाज सुनने को मेरे कान तरस गए हैं!

मैंने बड़की अम्मा से बात करने की अपनी इच्छा दुबारा प्रकट की|

अजय भैया: बिलकुल भैया, हम अम्मा से जरूर तोहार बात कराब|

इतने में वरुण ने मेरा हाथ पकड़ मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा, आखिर मैं उसे अनदेखा कर उसके माता-पिता से बात करने में व्यस्त जो था|

मैं: ओरे, छोट साहब! आप school जाते हो न?

मैंने वरुण से बात शुरू करते हुए पुछा|

वरुण: हम्म्म!

इतना कह वरुण लड़कियों की तरह शर्माने लगा और उसे यूँ शर्माता देख हम तीनों हँस पड़े|

वरुण: चाचू...आपकी...कहानियाँ...बहुत...याद...आती...हैं!

5 साल पहले जब मैं गाँव आया था तब नेहा मुझसे हिंदी में बात करने की कोशिश में शब्दों को थोड़ा सा खींच-खींच कर बोलती थी, आज वरुण भी ठीक उसी तरह बोल रहा था| उसको यूँ हिंदी बोलने का प्रयास करते देख मुझे उस पर बहुत प्यार आया;

मैं: Awwwwwww! बेटा आप अपने मम्मी पापा के साथ दिल्ली में मेरे घर आना फिर मैं आपको रोज कहानी सुनाऊँगा, ठीक है?

मेरी बात सुन वरुण खुश हो गया, नए शहर जाने का मन किस बच्चे का नहीं करता|

वरुण: हम्म्म!

वरुण सर हाँ में हिलाते हुए बोला| उधर अजय भैया के चेहरे पर हैरत थी की इतना सब होने के बाद भी मैं उन्हें अपने घर आने का न्योता कैसे दे सकता हूँ?!

अजय भैया: लेकिन मानु भैया चाचा का काहिऐं?

मैं: भैया, पिताजी किसी से नाराज नहीं हैं! अब जब भी दिल्ली आओ तो हमारे पास ही रहना और अगर दिल करे तो हमारे साथ ही काम भी करना|

मैंने ये बात अपने दिल से कही थी, पिताजी को अब भी अजय भैया पर गुस्सा था क्योंकि उन्होंने बिना कुछ पूछे-बताये मुझ पर police case कर दिया था| लेकिन मैंने फिर भी ये बात कही क्योंकि मैं पिताजी को मना सकता था की जो भी हुआ उसमें अजय भैया का कोई दोष नहीं था| खैर, अजय भैया मेरी बात सुन भावुक हो गए, उन्हें जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की पिताजी ने उन्हें इतनी जल्दी कैसे माफ़ कर दिया?

अजय भैया: सच भैया?

मैं: मैं झूठ क्यों बोलूँगा!

मैंने मुस्कुराते हुए झूठ बोला| मैंने घडी देखि तो मेरी flight का समय हो रहा था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए अजय भैया से कहा;

मैं: अच्छा भैया, मैं अब चलता हूँ वरना मेरी flight छूट जायेगी!

Flight का नाम सुन वो तीनों हैरान हुए! तभी रसिका भाभी बोलीं;

रसिका भाभी: मानु भैया, दीदी का हमार याद दिहो!

अजय भैया: और चाचा-चाची का हमार प्रणाम कहेऊ!!

मैं: जी जर्रूर!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और वरुण को bye बोलते हुए लखनऊ के लिए निकल पड़ा|



लखनऊ पहुँचते-पहुँचते मुझे दो घंटे लग गए और मेरी flight छूट गई! मैं सोच ही रहा था की क्या करूँ की तभी संगीता का फ़ोन आया;

मैं: Hello!

मैंने खुश होते हुए संगीता का फ़ोन उठाया की चलो अब संगीता की आवाज सुनने को मिलेगी लेकिन कॉल नेहा ने किया था;

नेहा: Muuuuuuaaaaaaaahhhhhhhh!

नेहा ने मुझे फ़ोन पर ही बहुत बड़ी सी पप्पी दी और तब मुझे एहसास हुआ की ये फ़ोन नेहा ने किया है|

मैं: मेरे बच्चे ने मुझे इतना बड़ा 'उम्मम्मा' (पप्पी) दी?!

नेहा की फ़ोन पर मिली पप्पी ने मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था| उधर नेहा फ़ोन पर ख़ुशी से खिलखिला रही थी|

नेहा: पापा जी, आपने खाना खाया? दवाई ली? और आप कितने बजे पहुँच रहे हो?

नेहा ने एक साथ अपने सारे सवाल पूछ डाले|

मैं: Sorry बेटा, मुझे थोड़ा time और लगेगा!

इतना सुनना था की नेहा नाराज हो गई;

नेहा: क्या? लेकिन पापा जी, आपने कहा था की आप रात तक आ जाओगे?! मैं आपसे बात नहीं करूँगी! कट्टी!!!

नेहा नाराज होते हुए बोली|

मैं: Awwwwwww मेरा बच्चा! बेटा मैं कल सुबह तक आ जाऊँगा...

नेहा ने इतना सुना और नाराज हो कर फ़ोन काट दिया! नेहा भी बिलकुल अपनी मम्मी पर गई थी, मैंने उसे मनाने के लिए दुबारा फ़ोन किया और उसे प्यार से समझाया| लेकिन बिटिया हमारी थोड़ी जिद्दी थी इसलिए वो नहीं मानी! परन्तु एक बात की मुझे बहुत ख़ुशी थी और वो ये की मेरे बच्चे अब पहले की तरह चहकने लगे थे और खुल कर पहले की तरह मुझसे बात करने लगे थे| एक बस संगीता थी जो अब भी खुद को अपने डर से बाँधे हुए मुझसे दूर रह रही थी! एक दिन खाना न खा कर जो मैंने संगीता को थोड़ा पिघलाया था, वही संगीता मेरे घर न रहने से वापस सख्त हो गई थी!



खैर, अब flight miss हो चुकी थी तो अब मुझे घर लौटने के लिए बस या फिर रेल यात्रा करनी थी| मैंने रेल यात्रा चुनी और तत्काल का टिकट कटा कर लखनऊ मेल से सुबह दिल्ली पहुँचा| सुबह-सुबह घर में घुसा तो नेहा सोफे पर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी, मुझे देखते ही वो अपना गुस्सा भूल मेरे गले लग गई| तभी आयुष भी आया और वो भी मेरी गोदी में चढ़ गया, पता नहीं क्यों संगीता को मेरा और बच्चों का गले मिलना पसंद नहीं आया और वो चिढ़ते हुए दोनों बच्चों को झिड़कने लगी;

संगीता: चैन नहीं है न तुम दोनों को?

बच्चे चूँकि मेरे गले लगे थे तो उन्हें अपनी मम्मी की झिड़की का कोई फर्क नहीं पड़ा! मैंने खुद उन्हें किसी बहाने से भेजा और संगीता को देखा| वही उखड़ा हुआ, उदास, मायूस, निराश चेहरा! संगीता को ऐसे देख कर तो मेरा दिल ही बैठ गया! मैंने संगीता को इशारा कर उससे अकेले में बात करनी चाही मगर संगीता मुझे सूनी आँखों से देखने लगी और फिर अपने काम में लग गई| इधर दोनों बच्चों ने मुझे फिर से घेर लिया और मुझे अपनी बातों में लगा लिया|

अभी तक किसी को नहीं पता था की मैं गाँव में पंचायत में बैठ कर लौटा हूँ और मैं भी ये राज़ बनाये रखना चाहता था| कल बच्चों का school खुल रहा था और इसलिए दोनों बच्चे आज मुझसे कुछ ज्यादा ही लाड कर रहे थे| एक तरह से बच्चों का यूँ मेरे से लाड करना ठीक ही था क्योंकि मेरा ध्यान बँटा हुआ था वरना मैं शायद इस वक़्त संगीता से इस तरह सड़ा हुआ मुँह बनाने के लिए लड़ पड़ता! वहीं मेरा दिल बार-बार कह रहा था की संगीता को अब भी चैन नहीं मिला है, उसका दिल अब भी बहुत डरा हुआ है तभी तो उसका मेरे लिए प्यार खुल कर बाहर नहीं आ पा रहा! आयुष को खो देने का उसका डर उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था! मुझे कैसे भी ये डर संगीता के ज़हन से मिटाना था मगर करूँ क्या ये समझ नहीं आ रहा था?! कोर्ट में case नहीं कर सकता था क्योंकि court में संगीता के divorce की बात खुलती और फिर बिना divorce final होने के हमारे इतनी जल्दी शादी करने से सारा मामला उल्टा पड़ जाता! Police में इसलिए नहीं जा सकता क्योंकि वहाँ भी संगीता के divorce की बात खुलती, वो तो शुक्र है की पिछलीबार SI ने कागज पूरे नहीं देखे थे वरना वो भी पैसे खाये बिना नहीं छोड़ता! अब मुझे ऐसा कुछ सोचना था जिससे कोई कानूनी पचड़ा न हो और मैं संगीता को उसके डर के जंगल से सही सलामत बाहर भी निकाल लूँ?!



मुझे एक रास्ता सूझा, जो था तो बेसर-पैर का था परन्तु उसके अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं रह गया था| वो रास्ता था भारत से बाहर नई ज़िन्दगी शुरू करना! सुनने में जितना आसान था उतना ही ये काम टेढ़ा था मगर इससे संगीता को उसके भय से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती| मैं उस वक़्त इतना हताश हो चूका था की बिना कुछ सोचे-समझे मैं बस वो करना चाहता था जिससे संगीता पहले की तरह मुझ से प्यार करने लगे, तभी तो ये ऊल-जुलूल तरकीब ढूँढी थी मैंने!

तरकीब तो मैंने ढूँढ निकाली मगर इस सब में मैं अपने माँ-पिताजी के बारे में कुछ फैसला नहीं ले पाया था! उन्हें यहाँ अकेला छोड़ने का मन नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से बात घूमा-फिरा कर पूछी| नाश्ता कर के माँ-पिताजी बैठक में बैठे थे, बच्चे अपनी पढ़ाई करने में व्यस्त थे और संगीता मुझसे छुपते हुए रसोई में घुसी हुई थी| मैंने माँ-पिताजी से बात शुरू करते हुए कहा;

मैं: पिताजी, मेरी एक college के दोस्त से बात हो रही थी| उसने बताया की वो अपने माँ-पिताजी और बीवी-बच्चों समेत विदेश में बस गया है| वहाँ उसकी अच्छी सी नौकरी है, घर है और सब एक साथ खुश रहते हैं| वो मुझे सपरिवार घूमने बुला रहा था, तो आप और माँ चलेंगे?

मैंने बात गोल घुमा कर कही जो माँ-पिताजी समझ न पाए और माँ ने जवाब देने की पहल करते हुए कहा;

माँ: बेटा ये तो अच्छी बात है की तेरा दोस्त अपने पूरे परिवार को अपने साथ विदेश ले गया, वरना आजकल के बच्चे कहाँ अपने बूढ़े माँ-बाप को इतनी तवज्जो देते हैं|रही हमारे घूमने की बात तो हम में अब इतनी ताक़त नहीं रही की बाहर देश घूमें, तुम सब जाओ!

तभी पिताजी माँ की बात में अपनी बात जोड़ते हुए बोले;

पिताजी: देख बेटा, नए देश में बसना आसान नहीं होता! फिर हम दोनों मियाँ-बीवी अब बूढ़े हो चुके हैं, नए देश में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपनाने की हम में हिम्मत नहीं!

पिताजी की बात सुन कर एक पल के लिए तो लगा जैसे पिताजी ने मेरी सारी बात समझ ली हो मगर ऐसा नहीं था| वो तो केवल नए देश में बसने पर अपनी राय दे रहे थे| माँ-पिताजी की न ने मुझे अजब दोराहे पर खड़ा कर दिया था, एक तरफ माँ-पिताजी थे तो दूसरी और संगीता को उसको डर से आजाद करने का रास्ता| मजबूरन मुझे संगीता और बच्चों को साथ ले कर कुछ सालों तक विदेश में रहने का फैसला करना पड़ा| मैं हमेशा -हमेशा के लिए अपने माँ-बाप को छोड़ कर विदेश बसने नहीं जा रहा था, ये फासला बस कुछ सालों के लिए था क्योंकि कुछ सालों में आयुष बड़ा हो जाता और फिर हम चारों वापस आ जाते| अब चूँकि आयुष के बचपने के दौरान हम विदेश में होते तो वहाँ चन्दर का आकर आयुष को हमसे अलग करना नामुमकिन था, तो इस तरह संगीता के मन से अपने बेटे को खो देने का डर हमेशा-हमेशा के लिए निकल जाता|



शुरुआत में मेरी योजना थी की यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर बाहर विदेश में बस जाओ मगर माँ-पिताजी के न करने से अब मुझे बाहर कोई नौकरी तलाशनी थी ताकि वहाँ मैं एक नई शुरुआत कर सकूँ| अब नौकरी कहीं पेड़ पर तो लगती नहीं इसलिए मैंने अपने पुराने जान-पहचानवालों के नाम याद करने शुरू कर दिए| याद करते-करते मुझे मेरे college के दिनों के एक दोस्त का नाम याद आया जो मुंबई में रहता था और एक MNC में अच्छी position पर job करता था| मैंने उसे फ़ोन मिलाया और उससे बात करते हुए मिलने की इच्छा जाहिर की, उसने मुझे मिलने के लिए बुला लिया तथा अपना पता दिया| पता मुंबई का ही था तो मैंने फटाफट मुंबई की टिकट कटाई और रात को पिताजी से मेरे मुंबई जाने की बात करने की सोची|

इधर मैंने संगीता से बात करने की अपनी कोशिश जारी रखी, लेकिन संगीता बहुत 'चालाक' थी वो कुछ न कुछ बहाना कर के मेरे नजदीक आने से बच जाती थी! दोपहर को खाने का समय हुआ तो मैंने संगीता को blackmail करने की सोची और रसोई में उससे खुसफुसाते हुए बोला;

मैं: मुझे तुमसे बात करनी है, वरना मैं खाना नहीं खाऊँगा!

मैंने प्यार से संगीता को हड़काते हुए कहा| ये सुन संगीता दंग रह गई और मुझे आँखें बड़ी कर के देखने लगी, मुझे लगा वो कुछ कहेगी मगर उसने फिर से सर झुकाया और अपने काम में लग गई| मैं भी वापस कमरे में आ आकर बैठ गया और संगीता का इंतज़ार करने लगा की कब वो आये और मैं उससे बात कर सकूँ| लेकिन संगीता बहुत 'चंट' निकली उसने दोनों बच्चों को खाने की थाली ले कर मेरे पास भेज दिया| दोनों बच्चों ने थाली एक साथ पकड़ी हुई थी, ये मनमोहक दृश्य देख मैं पिघलने लगा| थाली बिस्तर पर रख दोनों बच्चों ने अपने छोटे-छोटे हाथों से एक-एक कौर उठाया और मेरे मुँह के आगे ले आये| अब इस वक़्त मैं बच्चों को मना करने की हालत में नहीं था, बच्चों की मासूमियत के आगे मैंने अपने घुटने टेक दिए और अपना मुँह खोल दिया| दोनों बच्चों ने एक-एक कर मुझे खाना खिलाना शुरू किया, मैंने उन्हें खाना खिलाना चाहा तो दोनों ने मना कर दिया और बोले की वो खाना अपने दादा-दादी जी के साथ खाएंगे! बच्चों के भोलेपन को देख मैं मोहित हो गया और उनके हाथ से खाना खा लिया|



रात होने तक संगीता मुझसे बचती फिर रही थी, कभी माँ के साथ बैठ कर उन्हें बातों में लगा लेती तो कभी सोने का नाटक करने लगती| शुरू-शुरू में तो मैं इसे संगीता का बचकाना खेल समझ रहा था मगर अब मेरे लिए ये खेल सह पाना मसुहकिल हो रहा था| रात को खाने के समय मैंने पिताजी से मुंबई जाने की बात कही मगर एक झूठ के रूप में;

मैं: पिताजी एक project के सिलसिले में मुझे कल मुंबई जाना है|

मेरे मुंबई जाने की बात सुन कर सभी हैरान थे सिवाए संगीता के, उसे तो जैसे मेरे कहीं आने-जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| दोनों बच्चे मुँह बाए मुझे देख रहे थे, माँ खाते हुए रुक चुकीं थीं और पिताजी की जुबान पर सवाल था;

पिताजी: बेटा, अभी तो तू आया है और कल फिर जा रहा है? देख बेटा तेरा घर रहना जरूरी है!

पिताजी मुझे समझाते हुए बोले| इतने में माँ बोल पड़ीं;

माँ: बेटा, इतनी भगा-दौड़ी अच्छी नहीं! कुछ दिन सब्र कर, सब कुछ ठीक-ठाक होने दे फिर चला जाइयो!

माँ ने भी मुझे प्यार से समझाया|

मैं: माँ, कबतक अपनी रोज़ी से मुँह मोड़ कर बैठूँगा!

मैंने संगीता की ओर देखते हुए उसे taunt मारा| यही taunt कुछ दिन पहले संगीता ने मुझे मारा था| संगीता ने मुझे देखा और शर्म के मारे उसकी नजरें नीची हो गईं| माँ-पिताजी भी आगे कुछ नहीं बोले, शायद वो मेरे और संगीता के रिश्तों के बीच पैदा हो रहे तनाव से रूबरू हो रहे थे| खैर, माँ-पिताजी तो चुप हो गए मगर बच्चों को चैन नहीं था, दोनों बच्चे खाना छोड़कर मेरे इर्द-गिर्द खड़े हो गए| मैंने दोनों के सर पर हाथ फेरा और दोनों को बहलाने लगा;

मैं: बेटा, मैं बस एक दिन के लिए जा रहा हूँ, कल रात पक्का मैं घर वापस आ जाऊँगा और आप दोनों को प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा|

बच्चे मासूम होते हैं इसलिए दोनों मेरे कहानी के दिए हुए प्रलोभन से संतुष्ट हो गए और फिर से चहकने लगे|



खाना खाने के बाद पिताजी तो सीधा सोने चले गए, इधर कल बच्चों का स्कूल था इसलिए दोनों बच्चों ने मेरे साथ सोने की जिद्द पकड़ ली| इस मौके का फायदा उठा कर संगीता ने अपनी चालाकी दिखाई और मुझसे नजर बचाते हुए माँ के साथ टी.वी. देखने बैठ गई| बच्चों को कहानी सूना कर मैंने संगीता का काफी इंतजार किया मगर वो जानती थी की कल सफर के कारण मैं थका हुआ हूँ इसलिए वो जानबूझ कर माँ के साथ देर तक टी.वी. देखती रही ताकि मैं थकावट के मारे सो जाऊँ| हुआ भी वही जो संगीता चाहती थी, बच्चों की उपस्थिति और थकावट के कारण मेरी आंख बंद हो गई और मैं सो गया, उसके बाद संगीता कब सोने के लिए आई मुझे कुछ खबर नहीं रही|

अगली सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली और मैंने दोनों बच्चों को पप्पी करते हुए उठाया| नेहा तो झट से उठ गई मगर आयुष मेरी गोदी में कुनमुनाता रहा, बड़ी मेहनत से मैंने आयुष को लाड-प्यार कर के जगाया और स्कूल के लिए तैयार किया| एक बस मेरे बच्चे ही तो थे जिनके कारण मेरा दिल खुश रहता था वरना संगीता का उखड़ा हुआ चेहरा देख मुझ में तो जैसे जान ही नहीं बची थी! बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर मैं उन्हें खुद स्कूल छोड़ने चल पड़ा, रास्ते में मुझे van वाले भैया मिले तो मैंने उन्हें कुछ दिनों के लिए बच्चों को लाने-लेजाने के लिए मना कर दिया| स्कूल पहुँच कर मैंने principal madam से सारी बात कही और उन्होंने मेरे सामने ही चौकीदार को बुलाया, फिर मैंने चौकीदार को अपने पूरे परिवार अर्थात मेरी, माँ की, पिताजी की और संगीता की तस्वीर दिखाई ताकि चौकीदार हम चारों के आलावा किसी और के साथ बच्चों को जाने न दे| बच्चों को भी मैंने principal madam के सामने समझाया;

मैं: बेटा, अपनी मम्मी, मेरे या आपके दादा-दादी जी के अलावा आप किसी के साथ कहीं मत जाना! कोई अगर ये भी कहे की मैंने किसी को भेजा है तब भी आप किसी के साथ नहीं जाओगे| Okay?

मेरी बात बच्चों ने इत्मीनान से सुनी और गर्दन हाँ में हिलाई| उनके छोटे से मस्तिष्क में कई सवाल थे मगर ये सवाल उन्होंने फिलहाल मुझसे नहीं पूछे बल्कि घर लौट कर उन्होंने ये सवाल अपनी दादी जी से पूछे| माँ ने उन्हें प्यार से बात समझा दी की ये एहतियात सभी माँ-बाप को बरतनी होती है ताकि बच्चे कहीं गुम न हो जाएँ| बच्चों ने अपनी दादी जी की बात अपने पल्ले बाँध ली और कभी किसी अनजान आदमी के साथ कहीं नहीं गए|



बहरहाल बच्चों को स्कूल छोड़ मैं सीधा airport निकल पड़ा और flight पकड़ कर मुंबई पहुँचा| मैं सीधा अपने दोस्त से मिला और उसने मुझे आश्वासन दिया की वो मुझे दुबई में एक posting दिलवा देगा, अब उसे चाहिए थे मेरे, संगीता और बच्चों के passport ताकि वो कागजी कारवाही शुरू कर सके| मेरा passport तो तैयार था क्योंकि 18 साल का होते ही मैंने passport बनवा लिया था, वो बात और है की आजतक कभी देश से बाहर जाने का मौका नहीं मिला! खैर, संगीता और बच्चों के passport अभी बने नहीं थे| मैंने तीनों के passport बनाने का समय लिया और एयरपोर्ट की ओर निकलने लगा| तभी मुझे याद आया की जब मुंबई आया हूँ तो अनिल और माँ (मेरी सासु माँ) से मिल लेता हूँ| मैंने अनिल को फ़ोन मिलाया तो उसका फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए मैंने सुमन को फ़ोन किया और उसने मुझे आखिर अनिल और माँ से मिलवाया| सब से मिल कर मैं घर के लिए निकला और flight पकड़ कर दिल्ली पहुँचा| घर पहुँचते-पहुँचते मुझे देर हो गई थी मगर सब अभी भी जाग रहे थे| मुझे देखते ही आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी टाँगो से लिपट गया मगर नेहा हाथ बाँधे हुए, अपना निचला होंठ फुला कर मुझे प्यार भरे गुस्से से देख रही थी! आयुष के सर को चूम कर मैं दोनों घुटने टेक कर खड़ा हुआ और नेहा की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथ खोलकर उसे गले लगने का निमंत्रण दिया तब जा कर नेहा पिघली तथा मेरे सीने से लग कर सुबकने लगी| मैंने नेहा को बाहों में कसते हुए उसे बहुत पुचकारा, तब जा कर वो चुप हुई|

माँ: बेटा, तेरा फ़ोन नहीं मिल रहा था इसलिए नेहा बहुत परेशान हो गई थी| वो तो तेरे पिताजी जब शाम को घर लौटे तब उन्होंने बताया की तूने उन्हें फ़ोन कर के बताया था की तू ठीक-ठाक है| तूने नेहा को फ़ोन कर बात नहीं की इसीलिए नेहा तुझसे नाराज हो गई थी!

माँ से नेहा की नाराजगी का कारण जान मैं थोड़ा हैरान हुआ;

मैं: लेकिन माँ मैंने संगीता के नंबर पर कॉल किया था मगर उसका फ़ोन बंद था, इसीलिए मैंने उसे मैसेज भी किया था की मैं ठीक-ठाक पहुँच गया हूँ|

ये सुनते ही नेहा गुस्से से अपनी मम्मी को घूरने लगी, नेहा आज इतना गुस्सा थी मानो वो आज अपनी मम्मी पर चिल्ला ही पड़े! वहीं माँ-पिताजी भी दंग थे की भला ये घर में हो क्या रहा है? उधर संगीता शर्म के मारे अपना सर झुकाये हुए खड़ी थी| संगीता को नेहा से डाँट न पड़े इसके लिए मैंने नेहा को फिर से अपने गले लगाया और उसके मस्तक को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा ऐसे परेशान नहीं हुआ करते! मैं कभी कहीं काम में फँस जाऊँ और आपका फ़ोन न उठा पाऊँ या मेरा नंबर न मिले तो आपको चिंता नहीं करनी, बल्कि पूरे घर का ख्याल रखना है| इस घर में एक आप ही तो सबसे समझदार हो, बहादुर हो तो आपको सब का ध्यान रखना होगा न?

मैंने नेहा को बहलाते हुए कहा, तब कहीं जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ|



संगीता ने अपने ही बेटी के डर के मारे मेरे लिए खाना परोसा, दोनों बच्चों ने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना शुरू किया| जब मैंने उन्हें खिलाना चाहा तो नेहा ने बताया की;

नेहा: हम सब ने खाना खा लिया और दादी जी ने मुझे तथा आयुष को खाना खिलाया था|

तभी माँ बीच में मुझसे बोलीं;

माँ: तेरी लाड़ली नेहा गुस्से में खाना नहीं खा रही थी, वो तो तेरे पिताजी ने तो समझाया तब जा कर मानी वो|

माँ की बात सुन मैं मुस्कुराया और नेहा और आयुष को समझाने लगा;

मैं: बेटा, गुस्सा कभी खाने पर नहीं निकालते, क्योंकि अगर आप खाना नहीं खाओगे तो जल्दी-जल्दी बड़े कैसे होओगे?

नेहा ने अपने कान पकड़ कर मुझे "sorry" कहा और फिर मुझे मुस्कुराते हुए खाना खिलाने लगी| अब पिताजी ने मुझसे मुंबई के बारे में पुछा तो मैंने थकावट का बहाना करते हुए बात टाल दी| रात को मैंने संगीता से कोई बात नहीं की और दोनों बच्चों को खुद से लपेटे हुए सो गया|



अगले दिन बच्चों को स्कूल छोड़कर घर लौटा और अपना laptop ले कर संगीता तथा बच्चों के passport का online form भरने लगा| Form जमा करने के बाद अब समय था सारे राज़ पर से पर्दा उठाने का, मैंने माँ-पिताजी और संगीता को अपने सामने बिठाया तथा पंचायत से ले कर मेरे दुबई जा कर बसने की सारी बात बताई| माँ, पिताजी और संगीता ने मेरी सारी बात सुनी और सब मेरी बात सुन कर सख्ते में थे! किसी को मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाने की उम्मीद नहीं थी इसलिए सब आँखें फाड़े मुझे देख रहे थे! मिनट भर की चुप्पी के बाद पिताजी ने ही बात शुरू की;

पिताजी: बेटा, तूने हमें पंचायत के बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? और तू अकेला क्यों गया था जबकि मेरा तेरे साथ जाना जरूरी था!

पिताजी ने मुझे भोयें सिकोड़ कर देखते हुए पुछा| अब देखा जाए तो उनका चिंतित होना जायज था, वो नहीं चाहते थे की मैं पंचायत में अकेला पडूँ|

मैं: पिताजी, पहले ही मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफें उठानी पड़ रही हैं, फिर वहाँ पंचायत में आपको घसीट कर मैं आपकी मट्टी-पलीत नहीं करवाना चाहता था| मैंने पंचों के सामने अच्छे से अपनी बात रखी और उन्होंने फैसला भी हमारे हक़ में सुनाया, अब चन्दर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता वरना वो सीधा जेल जाएगा|

पिताजी की तकलीफों से मेरा तातपर्य था की जो उन्हें मेरे कारण बड़के दादा द्वारा घर निकाला मिला था, ऐसे में मैं पंचायत में उनके ऊपर फिर से कीचड़ कैसे उछलने देता?!

पिताजी: बेटा ऐसा नहीं बोलते! तेरे कारण मुझे कोई तकलीफ उठानी नहीं पड़ी, तू मेरा बेटा है और तेरा फैसला मेरा फैसला है! ये तो मेरे भाई साहब का गुस्सा है जो जब शांत होगा उन्हें मेरी याद अवश्य आएगी|

पिताजी मुझे प्यार से समझाते हुए बोले|

पिताजी: खैर, इस बार मैं तुझे माफ़ कर देता हूँ, लेकिन फिर कभी तूने हमसे झूठ बोला या हमसे कोई बात छुपाई तो तुझे कूट-पीट कर ठीक कर दूँगा!

पिताजी ने मुझे बात न बताने के लिए मजाकिया ढंग से हड़काया ताकि उनकी बात सुन मैं हँस पडूँ मगर मेरे चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं आई| अब माँ-पिताजी दोनों गंभीर हो गए और मेरे दुबई में कुछ सालों के लिए बसने को ले कर मेरे लिए फैसले का समर्थन करने लगे;

पिताजी; बेटा, तू बहुत जिम्मेदार हो गया है और जो तूने बहु का डर मिटाने के लिए दुबई जा कर रहने के फैसले का हम समर्थन करते हैं, बल्कि ये तो अच्छा है की इसी बहाने तू खुद अपनी गृहस्ती बसा लेगा|

माँ ने भी पिताजी की बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहा;

माँ: तेरे पिताजी ठीक कह रहे हैं बेटा, बहु को खुश रखना तेरी जिम्मेदारी है| एक तू है जो इस परिवार को सँभाल सकता है, ख़ास कर बहु को जो इस वक़्त मानसिक तनाव से गुजर रही है|

माँ-पिताजी की इच्छा मुझे अपने से दूर एक पराये देश में भेजने की कतई नहीं थी मगर फिर भी वो संगीता की ख़ुशी के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी ख़ुशी-ख़ुशी दे रहे थे|

मैं: जी माँ!

मैंने सर हिलाते हुए बात को खत्म किया|



उधर संगीता जो अभी तक ख़ामोशी से सबकी बात सुन रही थी उसके भीतर गुस्से का ज्वालामुखी उबलने लगा था और उसके इस गुस्से का करण क्या था ये अभी पता चलने वाला था;

संगीता: मैं कुछ बोलूँ?

संगीता मुझे गुस्से से घूरते हुए अपने दाँत पीसते हुए बोली|

माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!

माँ-पिताजी ने संगीता का गुस्सा नहीं देखा था, उन्हें लगा की संगीता अपनी कोई राय देना चाहती है इसलिए उन्होंने बड़े प्यार से संगीता को अपनी बात रखने को कहा| लेकिन संगीता ने अपने भीतर उबल रहे गुस्से के लावा को मेरे ऊपर उड़ेल दिया;

संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के आपके साथ रहूँगी? ये फैसला लेने से पहले आपने मुझसे पुछा? कोई सलाह-मशवरा किया? बस थोप दिया अपना फैसला मेरे माथे!

संगीता गुस्से से चिल्लाते हुए बोली| कोई और दिन होता तो शायद मैं संगीता को प्यार से समझता मगर आजकल मेरा दिमाग बहुत गर्म था, ऊपर से जिस तरह संगीता मुझ पर बरस पड़ी थी उससे मेरे दिमाग का fuse उड़ गया और मैं भी उस पर गुस्से से बरस पड़ा;

मैं: हाँ, नहीं पुछा मैंने तुमसे कुछ क्योंकि मुझसे तुम्हें इस तरह डरा-डरा नहीं देखा जाता! चौबीसों घंटे तुम्हें बस एक ही डर सताता रहता है की चन्दर आयुष को ले जाएगा! बीते कुछ दिनों से जितना तुम अंदर ही अंदर कितना तड़प रही हो, तुम्हें क्या लगता है की मैं तुम्हारी तड़प महसूस नहीं करता? तुम्हारे इस डर ने तुम्हारे चेहरे से हँसी छीन ली, यहाँ तक की हमारे घर से खुशियाँ छीन ली! अरे मैं तुम्हारे मुँह से प्यार भरे चंद बोल सुनने को तरस गया! जिस संगीता से मैंने प्यार किया, जिसे मैं बियाह के अपने घर लाया था वो तो जैसे बची ही नहीं?! जो मेरे सामने रह गई उसके भीतर तो जैसे मेरे लिए प्यार ही नहीं है, अगर प्यार है भी तो वो उस प्यार को बाहर नहीं आने देती!

उस रात को तुम्ही आई थी न मुझे छत पर ठंड में ठिठुरता हुआ खुद को सज़ा देता हुआ देखने? मुझे काँपते हुए देख तुम्हारे मन में ज़रा सी भी दया नहीं आई की तुम्हारा पति ठंड में काँप रहा है, ये नहीं की कम से कम उसे गले लगा कर उसके अंदर से ग्लानि मिटा दो?! मैं पूछता हूँ की बीते कुछ दिनों में कितने दिन तुमने मुझसे प्यार से बात की? बोलो है कोई जवाब?

मेरा गुस्सा देख संगीता सहम गई थी, अब उसे और गुस्से करने का मन नहीं था इसलिए मैंने अपनी बात को विराम देते हुए कहा;

मैं: तुम्हारे इसी डर को भगाने के लिए मैं ये सब कर रहा हूँ!

संगीता अब टूट कर रोने लगी थी, इसलिए नहीं की मैंने उसे डाँटा था बल्कि इसलिए की उसे आज अपने पति की तड़प महसूस हुई थी! संगीता को रोता हुआ देख मेरा दिल पसीजा और मेरी आँखें भी छलछला गईं| जब संगीता ने मेरी आँखों में आँसूँ देखे तो उसने जैसे-तैसे खुद को सँभाला और बोली;

संगीता: आप...आप सही कहते हो की...मैं घबराई हुई हूँ! लेकिन मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ की अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ! इन पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको जो भी दुःख पहुँचाया, आपको तड़पाया उसके लिए मैं आपसे माफ़ी माँगती हूँ और वादा करती हूँ की मैं अब नहीं डरूँगी! अब जब पंचायत में सब बात साफ़ हो ही चुकी है तो मुझे भी अब सँभलना होगा, लेकिन please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो?!

संगीता गिड़गिड़ाते हुए बोली और एक बार फिर फफक कर रो पड़ी| माँ ने तुरंत संगीता को अपने सीने से लगाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराने लगी|

माँ: ठीक है बहु, तुझे नहीं जाना तो न जा, कोई जबरदस्ती थोड़े ही है!

माँ ने संगीता को बहलाते हुए कहा| अब माँ सिर्फ संगीता की तरफदारी करे ये तो हो नहीं सकता था इसीलिए माँ संगीता को मेरा पक्ष समझाते हुए बोलीं;

माँ: बेटा, मानु तुझे दुखी नहीं देख सकता इसलिए वो दुबई जाने की कह रहा था| तू जानती है न तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो मानु कितना तड़प उठता है, तो तुझे वो यूँ तड़पता हुआ कैसे देखता? तेरी तबियत ठीक रहे, तेरे होने वाले बच्चे पर कोई बुरा असर न हो इसी के लिए मानु इतना चिंतित है!

संगीता ने माँ की बात चुपचाप सुनी और अपना रोना रोका|

मैं: ठीक है...कोई कहीं नहीं जा रहा!

मैं गहरी साँस छोड़ते हुए बोला और अपने कमरे में लौट आया, laptop table पर रखा तथा कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा हो गया| भले ही संगीता आज फफक कर रोइ थी मगर मैंने उसके भीतर कोई बदलाव नहीं देखा था, उसका दिल जैसे मेरे लिए धड़कता ही नहीं था! मैं कुर्सी का सहारा ले कर खड़ा यही सोच रहा था की तभी संगीता पीछे से कमरे में दाखिल हुई और घबराते हुए बोली;

संगीता: मैं...मैं जानती हूँ की आप मुझसे कितना प्यार करते हो, लेकिन आपने ये सोच भी कैसे लिया की मैं अपने परिवार से अलग रह के खुश रहूँगी? मैं ये कतई नहीं चाहती की मेरे कारण आप माँ-पिताजी से दूर हों और हमारे बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हों!

संगीता सर झुकाये हुए बोली, आज उसकी बातों में बेरुखी खुल कर नजर आई| उसकी ये बेरुखी देख मैं खुद को रोक न सका और संगीता पर बरस पड़ा;

मैं: जानना चाहती हो न की क्यों मैं तुम्हें सब से दूर ले जाना चाहता था? तो सुनो, मैं बहुत खुदगर्ज़ इंसान हूँ! इतना खुदगर्ज़ की मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं, अब इसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा मैं करूँगा! नहीं देखा जाता मुझसे तुम्हें यूँ घुटते हुए, तुम्हें समझा-समझा के थक गया की कम से कम हमारे होने वाले बच्चे के लिए उस हादसे को भूलने की कोशिश करो मगर तुम कोशिश ही नहीं करना चाहती! हर पल अपने उसी डर को, की वो (चन्दर) फिर से लौट कर आएगा, को अपने सीने से लगाए बैठी हो! अब अगर हम इस देश में रहेंगे ही नहीं तो वो (चन्दर) आएगा कैसे?!

मैं कोई पागल नहीं हूँ जो मैंने ऐसे ही इतनी बड़ी बात सोच ली, मैंने पहले माँ-पिताजी से बात की थी और तब ये फैसला लिया| मैं यहाँ सब कुछ बेच-बाच कर उन्हें (माँ-पिताजी को) हमारे साथ चलने को कहा मगर माँ-पिताजी ने कहा की उनमें अब वो शक्ति नहीं की वो गैर मुल्क में जा कर वहाँ के तौर-तरीके अपना सकें| तुम्हारे लिए वो इतना बड़ा त्याग करने को राज़ी हुए ताकि तुम और हमारी आने वाली संतान को अच्छा भविष्य मिले!

मेरे गुस्से से भरी बातें सुन संगीता को बहुत ग्लानि हुई| फिर भी उसने मुझे आश्वस्त करने के लिए झूठे मुँह कहा;

संगीता: मुझे...थोड़ा समय लगेगा!

संगीता सर झुकाये हुए बोली| उसका ये आश्वासन बिल्कुल खोखला था, उसकी बात में कोई वजन नहीं था और साफ़ पता चलता था की वो बदलना ही नहीं चाहती! संगीता का ये रवैय्या देख मैं झुंझुला उठा और उस पर फिर बरस पड़ा;

मैं: और कितना समय चाहिए तुम्हें? अरे कम से कम मेरे लिए न सही तो हमारे बच्चों के लिए ही मुस्कुराओ, कुछ नहीं तो झूठ-मुठ का ही मुस्कुरा दो!

मैं इस वक़्त इतना हताश था की मैं संगीता की नक़ली मुस्कान देखने के लिए भी तैयार था! उधर संगीता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं!

मैं: इस घर में हर शक़्स तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने को तरस रहा है|

ये कहते हुए मैंने संगीता को सभी के नाम गिनाने शुरू कर दिए;

मैं: पहले हैं पिताजी, जिन्होंने तुम्हारा कन्यादान किया! क्या बीतती होगी उन पर जब वो तुम्हें यूँ बुझा हुआ देखते होंगे? क्या वो नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी सामान बहु खुश रहे?

दूसरी हैं माँ, तुम बहु हो उनकी और माँ बनने वाली हो कैसा लगता होगा माँ को तुम्हारा ये लटका हुआ चेहरा देख कर?

तीसरा है हमारा बेटा आयुष, उस छोटे से बच्चे ने इस उम्र में वो सब देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था| पिछले कई दिनों से मैं उसका और नेहा का मन बहलाने में लगा हूँ लेकिन अपनी माँ के चेहरे पर उदासी देख के कौन सा बच्चा खुश होता है?

चौथी है हमारी बेटी नेहा, हमारे घर की जान, जिसने इस कठिन समय में आयुष को जिस तरह संभाला है उसकी तारीफ करने के लिए मेरे पास लव्ज़ नहीं हैं| कम से कम उसके लिए ही मुस्कुराओ!

इतने लोग तुम्हारी हँसी की दुआ कर रहे हैं तो तुम्हें और क्या चाहिए?

मैंने जानबूझ कर अपना नाम नहीं गिनाया था क्योंकि मुझे लग रहा था की संगीता के दिल में शायद अब मेरे लिए कोई जगह नहीं रही!

खैर, संगीता ने मेरी पूरी बात सर झुका कर सुनी और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, बिना कोई शब्द कहे वो चुपचाप मुझे पानी पीठ दिखा कर कमरे से बाहर चली गई! मुझे ऐसा लगा की जैसे संगीता पर मेरी कही बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा तभी तो वो बिना कुछ कहे चली गई! आज जिंदगी में पहलीबार संगीता ने मेरी इस कदर तौहीन की थी! मुझे अपनी ये बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई और मेरे भीतर गुस्सा फूटने लगा| एकबार को तो मन किया की संगीता को रोकूँ और कठोररटा पूर्वक उससे जवाब माँगूँ लेकिन मेरे कदम आगे ही नहीं बढे! अब गुस्सा कहीं न कहीं तो निकालना था तो मैं जल्दी से तैयार हुआ और बिना कुछ खाये-पीये site पर निकल गया| माँ-पिताजी ने पीछे से मुझे रोकने के लिए बहुत आवाजें दी मगर मैंने उनकी आवाजें अनसुनी कर दी और चलते-चलते जोर से चिल्लाया;

मैं: Late हो रहा हूँ|

मेरा दिल नहीं कर रहा था की मैं घर पर रुकूँ और संगीता का वही मायूस चेहरा देखूँ| गाडी भगाते हुए मैं नॉएडा पहुँचा मगर काम में एक पल के लिए भी मन न लगा| बार-बार नजरें mobile पर जा रही थीं, दिल कहता था की संगीता मुझे जरूर फ़ोन करेगी लेकिन, कोई फ़ोन नहीं आया!

उधर घर पर माँ-पिताजी पति-पत्नी की ये कहा-सुनी सुन कर हैरान थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की वो किस का समर्थन करें और किसे गलत कहें?! अपनी इस उलझन में वो शांत रहे और उम्मीद करने लगे की हम मियाँ-बीवी ही बात कर के बात सुलझा लें|

इधर अपना दिल बहलाने के लिए मैंने एक दर्द भरा गाना चला दिया; 'भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ, मोहब्बत हो गई जिनकी वो दीवाने कहाँ जाएँ?!' इस गाने को सुनते हुए मेरे दिल में टीस उठी, इस टीस ने मुझे कुछ महसूस करवाया! इंसान के भीतर जो दुःख-दर्द होता है उसे बाहर निकालना पड़ता है| कुछ लोग दूसरों से बात कर के अपना दुःख-दर्द बाँट लेते हैं मगर यहाँ संगीता अपने इस दुःख को अपने सीने से लगाए बैठी थी और उसका ये दुःख डर बन कर संगीता का गला घोंटें जा रहा है| अगर मुझे संगीता को हँसाना-बुलाना था तो पहले मुझे उसके भीतर का दुःख बाहर निकालना था| मैंने प्यार से कोशिश कर ली थी, समझा-बुझा कर कोशिश कर ली थी, बच्चों का वास्ता दे कर भी कोशिश कर ली थी अरे और तो और मैंने गुस्से से कोशिश कर ली थी मगर कोई फायदा नहीं हुआ था|



उन दिनों में ही मैंने ये कहानी लिखना शुरू किया था, मैं अपना दुःख दर्द इन्हीं अल्फ़ाज़ों में लिख कर समेट लिया करता था, तभी मैंने सोचा की क्यों न मैं संगीता से भी उसका दुःख-दर्द लिखने को कहूँ? शब्दों का सहारा ले कर संगीता अपने दुःख को व्यक्त कर अपने डर से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाती और उसके मन पर से ये भार उतर जाता| यही बात सोचते हुए मैं नरम पड़ने लगा और एक बार फिर उम्मीद करने लगा की मैं संगीता को अब भी सँभाल सकता हूँ, बस उसे एक बार अपना दुख लिखने के लिए मना लूँ|



रात को ग्यारह बजे जब मैं घर पहुँचा तो सब लोग खाना खा कर लेट चुके थे| आयुष अपने दादा-दादी जी के पास सोया था, एक बस नेहा और संगीता ही जाग रहे थे| मेरी बिटिया नेहा, मेरा इंतजार करते हुए अभी तक जाग रही थी और उसी ने मेरे आने पर दरवाजा खोला था|

मैं: मेरा बच्चा सोया नहीं?

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा|

नेहा: पापा जी, कल मेरा class test है तो मैं जाग कर उसी की पढ़ाई कर रही थी|

नेहा का भोलेपन से भरा जवाब सुन मैं मुस्कुराया, मेरी बेटी पढ़ाई को ले कर बहुत गंभीर थी| लेकिन उसकी बात में आज एक प्यारा सा झूठ छुपा हुआ था!

मैं: बेटा, आपने खाना खाया?

मेरे सवाल पूछते ही नेहा ने तुरंत अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और बोली;

नेहा: हाँ जी!

मैं: और आपकी मम्मी ने?

मेरे इस सवाल पर नेहा खी-खी कर बोली;

नेहा: दादी जी ने मम्मी को जबरदस्ती खिलाया! ही..ही..ही...ही!!!

नेहा का जवाब सुन मेरे चेहरे पर भी शरारती मुस्कान आ गई क्योंकि मैं कल्पना करने लगा था की माँ ने कैसे जबरदस्ती से संगीता को खाना खिलाया होगा! हालात कुछ भी हो बचपना भरपूर था मुझ में!

मैंने नेहा को गोदी लिया और अपने कमरे में आ गया| कमरे की light चालु थी और संगीता पलंग पर बैठी हुई आयुष की कमीज में बटन टाँक रही थी| ऐसा नहीं था की वो सो रही थी मगर जब मैंने अभी दरवाजा खटखटाया तो उसने जानबूझ कर नेहा को दरवाजा खोलने भेजा था ताकि कहीं मैं उससे कोई सवाल न पूछने लगूँ| खैर, मुझे देखते ही संगीता उठ खड़ी हुई और बिना मुझे कुछ कहे मेरी बगल से होती हुई रसोई में चली गई| आज सुबह जो मैंने दुबई जा कर बसने की बात कही थी उसी बात के कारण संगीता का मेरे प्रति व्यवहार अब भी उखड़ा हुआ था| संगीता का ये रूखा व्यवहार देख मुझे गुस्सा तो बहुत आया मगर मैं फिर भी अपना गुस्सा पी गया, मैंने नेहा को गोदी से उतारा और वो अपनी पढ़ाई करने लगी| फिर मैं dining टेबल पर खाना खाने के लिए बैठ गया, सुबह से बस एक कप चाय पी थी और इस समय पेट में चूहे कूद रहे थे!



आम तौर पर जब मैं देर रात घर आता था तो संगीता मेरे पास बैठ के खाना परोसती थी और जब तक मैं खा नहीं लेता था वो वहीं बैठ के मुझसे बातें किया करती थी| लेकिन, पिछले कछ दिनों से संगीता एकदम से उखड़ चुकी थी, संगीता की इस बेरुखी का जिम्मेदार चन्दर को मानते हुए मेरा उस आदमी पर गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| आज भी संगीता मुझे खाना परोस कर हमारे कमरे में जाने लगी तो मैंने उसे रोकते हुए कहा;

मैं: सुनो?

संगीता मेरी ओर पीठ किये हुए ही रुक गई|

मैं: I need to talk to you.

मैंने संगीता से बात शुरू करते हुए कहा तो वो सर झुकाये हुए मुड़ी और मेरे सामने कुर्सी खींच कर बैठ गई|

मैं: I need you to write how you felt that day...

इतना सुनना था की संगीता अस्चर्य से मुझे आँखें बड़ी कर देखने लगी| उसकी हैरानी जायज भी थी, जहाँ संगीता मुझसे बात नहीं कर रही थी ऐसे में वो लिखती कहाँ से?!

मैं: अपने दर्द को लिखोगी तो तुम्हारा मन हलका होगा!

संगीता ने फिर सर झुका लिया और बिना अपनी कोई प्रतक्रिया दिए वो उठ कर चली गई| मैं जानता था की संगीता नहीं लिखने वाली और जिस तरह का सलूक संगीता मेरे साथ कर रही थी उससे मेरा खाना खाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी| मैंने खाना ढक कर रखा और मैं भी कमरे में लौट आया, कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था, lights बंद थीं मगर नेहा table lamp जला कर अभी भी पढ़ रही थी|

मैं: बेटा रात के बारह बज रहे हैं और आप अभी तक पढ़ रहे हो? आपका board का paper थोड़े ही है जो आप इतनी देर तक जाग कर पढ़ रहे हो?! चलो सो जाओ!

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा तो नेहा मुस्कुराते हुए बोली;

नेहा: जी पापा!

फिर उसने अपनी किताब बंद की और अपने दोनों हाथ खोलते हुए मुझे गोदी लेने को कहा| नेहा को गोदी ले कर मैं लेट गया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: बेटा आप इतनी देर तक जाग कर मेरा ही इंतजार कर रहे थे न?

मेरा सवाल सुन नेहा प्यार से मुस्कुराई और सर हाँ में हिलाने लगी| मैंने नेहा को कस कर अपने सीने से लगा लिया, मेरी बिटिया मुझे इतना प्यार करती थी की मेरे बिना उसके छोटे से दिल को चैन नहीं मिलता था, ऊपर से आज उसने मुझे site पर phone भी नहीं किया था इसीलिए वो मेरे घर लौटने तक अपने class test का बहाना कर के जाग रही थी|



नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए मैंने उसे तो सुला दिया मगर मैं सो ना पाया| एक तो पेट खाली था और दूसरा संगीता की बेरुखी मुझे शूल की तरह चुभ रही थी! सुबह ठीक पाँच बजे मैं उठा और नेहा को सोता हुआ छोड़ के नहाने चला गया, जब मैं नहा कर बाहर निकला तो देखा की संगीता उठ चुकी है मगर उसके चेहरे पर मेरे लिए गुस्सा अब भी क़ायम था| मेरे पास कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा था, हाँ एक गुस्सा जर्रूर भीतर छुपा था मगर उसे बाहर निकाल कर मैं बात और बिगाड़ना नहीं चाहता था| किसी इंसान के पीछे लाठी- भाला ले कर पड़ जाओ की तू हँस-बोल तो एक समय बाद वो इंसान भी बिदक जाता है, यही सोच कर मैंने संगीता के पीछे पड़ना बंद कर दिया| सोचा कुछ समय बाद वो समान्य हो जाएगी और तब तक मैं भी उसके साथ ये 'चुप रहने वाले खेल' खेलता हूँ!

बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग dining table पर बैठे चाय पी रहे थे मगर कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था| माँ और पिताजी हम दोनों मियाँ-बीवी के चेहरे अच्छे से पढ़ पा रहे थे और हम दोनों के बीच पैदा हुए तनाव को महसूस कर परेशान थे| आखिर माँ ने ही बात शुरू कर घर में मौजूद चुप्पी भंग की;

माँ: बेटा, तू रात को कब आया?

मैं: जी करीब साढ़े ग्यारह बजे|

मैंने बिना माँ की तरफ देखे हुए जवाब दिया|

पिताजी: ओ यार, तू इतनी देर रात तक बाहर न रहा कर यहाँ सब परेशान हो जाते हैं|

पिताजी थोड़ा मजाकिया ढंग से बोले ताकि मैं हँस पडूँ मगर मेरी नजरें अखबार में घुसी हुईं थीं|

मैं: पिताजी काम ज्यादा है आजकल, project deadline से पहले निपट जाए तो नया काम उठाएं|

ये कहते हुए मैंने अखबार का पन्ना पलटा और वो पन्ना देखने लगा जिसमें नौकरी और tenders छपे होते हैं| मैं इतनी देर से माँ-पिताजी से नजर चुरा रहा था ताकि उनके पूछे सवालों का सही जवाब न दूँ क्योंकि अगर मैं सच बता देता की मैं घर पर संगीता के उखड़ेपन के कारण नहीं रहता तो उन्हें (माँ-पिताजी को) बहुत दुःख होता| वहीं पिताजी ने जब मुझे अखबार में घुसे हुए देखा तो उन्होंने मेरे हाथ से अखबार छीन लिया और बोले;

पिताजी: अब इसमें (अखबार में) क्या तू नौकरी का इश्तेहार पढ़ रहा है?

जैसे ही पिताजी ने नौकरी की बात कही तो संगीता की जान हलक में आ गई, उसे लगा की मेरे सर से बाहर देश में बसने का भूत नहीं उतरा है और मैं बाहर देश में कोई नौकरी ढूँढ रहा हूँ!

मैं: नहीं पिताजी, ये देखिये अखबार मैं एक tender निकला है बस उसी को पढ़ रहा था|

मैंने पिताजी को अखबार में छापा वो tender दिखाते हुए कहा| अब जा कर संगीता के दिल को राहत मिली!

पिताजी: बेटा, क्या जर्रूरत है बेकार का पंगा लेने की? हमारा काम अच्छा चल रहा है कोई जररुररत नहीं सरकारी tender उठाने की!

पिताजी मना करते हुए बोले|

मैं: पिताजी, फायदे का सौदा है|

मैंने tender को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया था ताकि मैं पिताजी के सवालों से बच सकूँ, मगर माँ के आगे मेरी सारी होशियारी धरी की धरी रह गई;

माँ: अच्छा बस, अब और काम-धाम की बात नहीं होगी!

माँ बीच में बोलीं और उनकी बात सुन हम बाप-बेटा खामोश हो गए| अब माँ ने संगीता को बड़े प्यार से कहा;

माँ: बहु, तू ऐसा कर आज नाश्ते में पोहा बना मानु को बहुत पसंद है|

माँ ने बड़ी होशियारी से मुझे और संगीता को नजदीक लाना शुरू कर दिया था| अब माँ से बेहतर कौन जाने की पति के दिल का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है| लेकिन संगीता, मुझे कल कही मेरी बातों के लिए माफ़ करने को तैयार नहीं थी, वो अपने उदास मुखड़े से बोली;

संगीता: जी माँ|

संगीता का वो ग़मगीन चेहरा देख कर मेरी भूख फिर मर गई थी!



सच कहूँ तो संगीता के कारण घर का जो माहोल था वो देख मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं घर एक पल भी ठहरूँ इसलिए मैं उठा और फटाफट तैयार हो कर बाहर आया| पोहा लघभग बन ही चूका था, मुझे तैयार देख माँ जिद्द करने लगीं की मैं नाश्ता कर के जाऊँ, परन्तु संगीता ने मुझे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा| ऐसा लगता था मानो मेरे घर रुकने से संगीता को अजीब सा लग रहा है और वो चाहती ही नहीं की मैं घर रुकूँ| मेरा भी मन अब घर रुकने का नहीं था इसलिए मैंने अपने दूसरे फ़ोन से पहले फ़ोन पर नंबर मिलाया और झूठमूठ की बात करते हुए घर से निकल गया|

Site पहुँच कर मैंने कामकाज संभाला ही था की की ठीक घंटे भर बाद पिताजी site पर आ पहुँचे और मुझे अकेले एक तरफ ले जा कर समझाने लगे;

पिताजी: बेटा, तुम दोनों (मुझे और संगीता) को क्या हो गया है? आखिर तूने ऐसा क्या कह दिया बहु को की न वो हँसती है न कुछ बोलती है और तो और तुम दोनों तो आपस में बात तक नहीं करते|

मैं: जी मैंने उसे कुछ नहीं कहा|

मैंने पिताजी से नजरें चुराते हुए झूठ बोला, अगर उन्हें कहता की मेरे डाँटने और दुबई जाने की बात के कारण संगीता मुझसे बात नहीं कर रही तो पिताजी मुझे झाड़ देते|

पिताजी: फिर क्या हुआ है? तू तो बहु से बहुत प्यार करता था न फिर उसे ऐसे खामोश कैसे देख सकता है तू?

पिताजी बात को कुरेदते हुए बोले|

मैं: मैं उस पागल से (संगीता से) अब भी प्यार करता हूँ...

मैंने जोश में आते हुए कहा, तभी पिताजी ने मेरी बात काट दी;

पिताजी: फिर संगीता इस कदर मायूस क्यों है? तू जानता है न वो माँ बनने वाली है?

पिताजी थोड़ा गुस्से से बोले|

मैं: जानता हूँ पिताजी और इसीलिए मैंने उसे (संगीता को) बहुत समझाया मगर वो समझना ही नहीं चाहती, अभी तक उस हादसे को अपने सीने से लगाए बैठी है!

मैंने चिढ़ते हुए कहा| मुझे चिढ हो रही थी क्योंकि पिताजी बिना मेरी कोई गलती के मुझसे सवाल-जवाब कर रहे थे|

पिताजी: देख बेटा, तू संगीता से प्यार से और आराम से बात कर, चाहे तो तुम दोनों कुछ दिन के लिए कहीं बाहर चले जाओ, बच्चों को हम यहाँ सँभाल लेंगे...

पिताजी नरमी से मुझे समझाते हुए बोले| उन्हें मेरे चिढने का कारण समझ आ रहा था|

मैं: वो (संगीता) नहीं मानेगी|

मैंने झुंझलाते हुए कहा क्योंकि मैं जानता था की संगीता बाहर जा क्र भी यूँ ही मायूस रहने वाली है और तब मैं उस पर फिर बरस पड़ता| जहाँ एक तरफ माँ-पिताजी मेरे और संगीता के बीच रिश्तों को सुलझाने में लगे थे वहीं हम दोनों मियाँ-बीवी अपनी-अपनी अकड़ पर अड़े थे!

पिताजी: वो सब मैं नहीं जानता, अगर तू उसे कहीं बाहर नहीं ले के गया तो मैं और तेरी माँ तुझसे बात नहीं करेंगे!

पिताजी गुस्से से मुझे डाँटते हुए बोले|

मैं: पिताजी, आप दोनों (माँ-पिताजी) संगीता को भी तो समझाओ| वो मेरी तरफ एक कदम बढ़ाएगी तो मैं दस बढ़ाऊँगा| उसे (संगीता को) कहो की कम से कम मुझसे ढंग से बात तो किया करे?

मैंने आखिर अपना दुखड़ा पिताजी के सामने रो ही दिया|

पिताजी: बेटा हम बहु को भी समझा रहे हैं, लेकिन तू अपनी इस अकड़ पर काबू रख और खबरदार जो बहु को ये अकड़ दिखाई तो...

पिताजी मुझे हड़काते हुए बोले| कमाल की बात थी, माँ-बाप मेरे और वो मुझे ही 'हूल' दे रहे थे! लेकिन, शायद मैं ही गलत था!



बहरहाल, पिताजी तो मुझे 'हूल' रुपी 'हल' दे कर चले गए और इधर मैं सोच में पड़ गया की आखिर मेरी गलती कहाँ थी? करीब दो घंटे बाद मेरे फ़ोन पर email का notification आया, मैंने email खोल कर देखा तो पाया की ये email संगीता ने किया है| Email में संगीता का नाम देख कर मुझे थोड़ी हैरानी हुई, फिर मैंने email खोला तो उसमें एक word file की attachment थी| ये attachment देख कर मेरा दिल बैठने लगा, मुझे लगा कहीं संगीता ने मुझे तलाक का notice तो नहीं भेज दिया?! घबराते हुए मैंने वो attachment download किया और जब file open हुई तो मैंने पाया की संगीता ने मेरी बात मानते हुए अपने दर्द को शब्दों के रूप में ब्यान किया था| मैंने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी की संगीता मेरी बात मान कर अपना दर्द लिख कर मुझे भेजेगी! पहले तो मैंने चैन की साँस ली की कम से कम संगीता ने तलाक का notice तो नहीं भेजा था और फिर गौर से संगीता के लिखे शब्दों को पढ़ने लगा|

(संगीता ने जो मुझे अपना दर्द लिख कर भेजा था उसे मैंने पहले ही लिख दिया है|)



संगीता के लेख में भले ही शब्द टूटे-फूटे थे मगर उनमें छिपा संगीता की पीड़ा मुझे अब जा कर महसूस हुई थी| अभी तक मैंने बस संगीता के दुःख को ऊपर से महसूस किया था मगर उसके लिखे शब्दों को पढ़ कर मुझे उसके अंदरूनी दर्द का एहसास हुआ था| पूरा एक घंटा ले कर मैंने संगीता का सारा लेख पढ़ा और अब मेरा हाल बुरा था! मैंने एक माँ के दर्द को महसूस किया, एक पत्नी के डर को महसूस किया, एक बहु के दुःख को महसूस किया और इतने दर्द को महसूस कर मेरी आत्मा कचोटने लगी! मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की संगीता अपने भीतर इतना दुःख समेटे हुए है! मैं तो आजतक केवल संगीता के दुःख-दर्द को महसूस कर रहा था, वहीं संगीता तो अपने इस दुःख-दर्द से घिरी बैठी थी! मैं अपनी पत्नी को इस तरह दुःख में सड़ते हुए नहीं देख सकता था इसलिए मैंने निस्चय किया की मैं संगीता को कैसे भी उसके दर्द से बाहर निकाल कर रहूँगा|

संतोष को काम समझा कर मैं घर के लिए निकल पड़ा, रास्ते भर मैं बस संगीता के लेख को याद कर-कर के मायूस होता जा रहा था और मेरी आँखें नम हो चली थीं| घर पहुँचते-पहुँचते पौने दो हो गए थे, पिताजी बच्चों को घर छोड़ कर गुड़गाँव वाली site पर निकल गए थे और माँ पड़ोस में गई हुईं थीं| गाडी parking में खड़ी कर मैं दनदनाता हुआ घर में घुसा, मैंने सोच लिया था की आज मैं संगीता को प्यार से समझाऊँगा मगर जब नजर संगीता के मायूस चेहरे पर पड़ी तो सारी हिम्मत जवाब दे गई! तभी आयुष दौड़ता हुआ मेरी ओर आया ओर मेरी टांगों से लिपट गया| मैंने आयुष को गोदी में उठाया और उसने अपनी स्कूल की बातें बतानी शुरू कर दी| आयुष को गोद लिए हुए मैं अपने कमरे में आया, आयुष अपनी पटर-पटर करने में व्यस्त था परन्तु मेरा ध्यान आयुष की बातों में नहीं था| मैंने आयुष को गोद से उतारा और उसे खेलने जाने को बोला, तभी संगीता एक गिलास में पानी ले कर आ गई| मैंने पानी का गिलास उठाया और हिम्मत जुटाते हुए बोला;

मैं: मैंने तुम्हारा लेख पढ़ा!

मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा और तभी हम दोनों मियाँ-बीवी की आँखें मिलीं|

मैं: तुम क्यों इतना दर्द अपने दिल में समेटे हुए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारे दिल में ज़रा सी भी जगह नहीं?

मैंने भावुक होते हुए संगीता से सवाल पुछा| मेरी कोशिश थी की संगीता कुछ बोले ताकि मैं आगे बढ़ाते हुए उसे समझा सकूँ| वहीं संगीता की आँखों से उसका दर्द झलकने लगा था, उसके होंठ कुछ कहने के लिए कँपकँपाने लगे थे मगर संगीता खुद को कुछ भी कहने से रोक रही थी, वो जानती थी की अगर उसने कुछ कहने के लिए मुँह खोला तो वो टूट जायेगी! मैं संगीता के जज्बात समझ पा रहा था इसलिए मैंने भी उस पर कोई दबाव नहीं डाला और उठ कर बाहर बैठक में बैठ गया तथा संगीता की मनोदशा को महसूस कर मायूसी की दलदल में उतरने लगा|



घर में शान्ति पसरी हुई थी, नेहा नहा रही थी, आयुष अपने कमरे में खेल रहा था और संगीता हमारे कमरे में बैठी कुछ सोचने में व्यस्त थी| माँ घर लौट आईं थीं और नहाने चली गईं थीं, खाना तैयार था बस माँ के नहा कर आते ही परोसा जाना था|

जब से ये काण्ड हुआ था तभी से मैं अपनी सेहत के प्रति पूरी तरह से लापरवाह हो चूका था| मुंबई से आने के बाद जो मेरी संगीता से कहा-सुनी हुई थी उसके बाद से मैंने खाना-पीना छोड़ रखा था, अब जब खाना नहीं खा रहा था तो जाहिर था की मैंने अपनी BP की दवाइयाँ भी बंद कर रखी थीं| एक बस नेहा थी जो मुझे दवाई लेने के बारे में कभी-कभी याद दिलाती रहती थी मगर मैं उस छोटी सी बच्ची के साथ झूठ बोल कर छल किये जाए रहा था, हरबार मैं उसका ध्यान भटका देता और अपने लाड-प्यार से उसे बाँध लिया करता था| लेकिन आज मुझे तथा मेरे परिवार को मेरी इस लापरवाही का फल भुगतना था!



मैं आँखें बंद किये हुए, सोफे पर बैठा हुआ संगीता के लेख में लिखे हुए शब्दों को पुनः याद कर रहा था| वो दर्द भरे शब्द मेरे दिल में सुई के समान चुभे जा रहे थे और ये चुभन मेरी जान लिए जा रही थी| 2 तरीक को जब चन्दर मेरे घर में घुस आया था, उस दिन का एक-एक दृश्य मेरी आँखों के आगे घूम रहा था| आज मैं उन दृश्यों को संगीता की नजरों से देख रहा था और खुद को संगीता की जगह रख कर उसकी (संगीता की) पीड़ा को महसूस कर रहा था| चन्दर ने जिस प्रकार संगीता की गर्दन दबोच रखी थी उसे याद कर के मेरा खून गुस्से के मारे उबलने लगा था! मेरे भीतर गुस्सा पूरे उफान पर था, मेरी पत्नी को इस कदर मानसिक रूप से तोड़ने के लिए मैं चन्दर की जान लेना चाहता था| इसी गुस्से में बौखलाया हुआ मैं एकदम से उठ खड़ा हुआ, लेकिन अगले ही पल मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया तथा मैं चक्कर खा कर धम्म से नीचे गिर पड़ा और फिर मुझे कुछ होश नहीं रहा की आगे क्या हुआ?!


जारी रहेगा भाग - 6 में...
अरे भैया काउ कही तोहरे तारीफ खातिर, एकदम जबरदस्त, अउर उहुमें अपने गाँव घरे के बोली के तड़का। का कही बस एतना कहब की एहि अनमोल कहानी कम संस्मरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। :hug:
 
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,872
31,109
304
xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Top