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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

arushi_dayal

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कहानी अब एक बेहद ही रोचक मोड़ पर आ गई है। विद्यानंद क्या मोनी की चूत का भोग लगा पायेगा...सरयू और सोनी का मिलन कब होगा और क्या वो भी सरयू सिंह के बच्चे की ही मां बनेगी..सुगना का सोनू का मिलन कब तक लाली की आंखो से छुपा रहेगा और पता लगने पर उसका क्या हश्र होगा...ऐसे अनेक सवाल हैं जिसका उत्तर जानने का इंतजार रहेगा....प्यारे अपडेट के लिए धन्यवाद
 

royalroy

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बहुत ही बेहतरीन अपडेट अब देखते हैं मोनी का कौमार्य कौन भंग करेगा
 

Deepak@123

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बहोत बढिया अपडेट मोनी का पहला भोग लागायका और सोनी और सरयु जी का मिलन हो जाये सोनु को कब तक छुप छुप कर सगुना मज्जा देगी अब बढिया सा अपडेड दे दो लवली जी धनधान्य
 

ChaityBabu

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भाग 150

उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था और अगले महीने विकास और सोनी अमेरिका से बनारस आ रहे थे।

अब आगे….
बनारस में सुगना से मिलना सोनू के लिए कठिन हो रहा था। फिर भी सुगना सोनू को कभी भी खाली हाथ विदा नहीं करती थी.. और गर्दन के दाग को अक्सर जीवंत जरूर कर देती थी चाहे आकस्मिक हस्तमैथुन, त्वरित मुख मैथुन द्वारा हो या फिर कभी त्वरित संभोग द्वारा।

सुगना के पास सोनू को खुश करने के कई उपाय थे पर सबसे ज्यादा खुशी सोनू को अपने दहेज को देखने और चूमने चाटने में मिलती थी जिसके लिए एकांत आवश्यक था।
लाली को हमेशा से यह कंफ्यूजन बना रहता था की जौनपुर आने के बाद ऐसा क्या हो जाता है कि सोनू की गर्दन पर दाग उभर आता है। सोनू और सुगना के कामुक मिलन का संबंध इस दाग से था लाली इससे अनभिज्ञ थी।
पिछली बार की तरह सुगना के साथ सलेमपुर अकेले जाने दोबारा अवसर कभी प्राप्त नहीं हो रहा था…
सोनू तो सुगना को अपने घर सीतापुर ले जाने की फिराक में था परंतु उसकी मां पदमा ने अपने किसी रिश्तेदार को वहां रख छोड़ा था।
मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता स्वयं होता है।
इस बार सोनू ने अपनी चाल चल दी…
सोनू ने सरयू सिंह का ट्रांसफर बनारस के पास के एक गांव में करवा दिया…यह काम उसने गुपचुप तरीके से किया जिससे सरयू सिंह मजबूरन बनारस आ जाए। सरयू सिंह के बनारस आगमन के कई फायदे थे।
एक तो जौनपुर जाने के पश्चात घर सुगना के घर में कोई मर्द नहीं रहता था सुगना और उसकी मां अकेले रहती थी और सोनू को हमेशा एक डर लगा रहता था। सरयू सिंह की उपस्थिति से घर में एक मर्द की कमी पूरी हो जाती जो गाहे बगाहे जरूरत पड़ने पर पूरे परिवार की मदद कर सकता था। यद्यपि सोनू यह कार्य अपने किसी साथी या मनोहर से भी करा सकता था परंतु अपना अपना होता है।
सरयू सिंह के लिहाज से भी यह अच्छा था क्योंकि उन्हें अक्सर अपने या कजरी के इलाज के लिए बनारस आना पड़ता था सो उनका भी काम आसान हो जाना था।

एक हफ्ते बाद सरयू सिंह कजरी के साथ बनारस शिफ्ट हो चुके थे और अपनी नई पोस्टिंग पर ज्वाइन कर चुके थे।
गांव में उनके दरवाजे पर ताला लटक चुका था। सोनू यही नहीं रुका। अपने घर सीतापुर में रह रहे रिश्तेदार को भी उसने जौनपुर बुला लिया और एक छोटी-मोटी नौकरी लगा दी वह रिश्तेदार अब शनिवार और रविवार के दिन सोनू के घर का ख्याल रखने लगा।
वैसे भी सोनू को पता था गांव में ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे चोरी किया जा सके।
सोनू अपनी शतरंज की बिसात बिछा चुका था।
शतरंज की विसात सिर्फ सोनू ने नहीं बिछाई थी अपितू सरयू सिंह भी अपने मन की बात जो उन्होंने मनोहर को लेकर कजरी से की थी वही बात आज पदमा से कर रहे थे। कजरी सरयू सिंह और पदमा के बीच मध्यस्थ का काम कर रही थी उसने पदमा को समझाते हुए कहा
“ए बहिनी जैसे लाली के भाग्य खुल गईल ओकर दोसर बियाह हो गईल …का हमार सुगना के ना हो सकेला?
कजरी ने तो जैसे पदमा के मन की बात कह दी थी अब जब सुगना की सास ने आगे बढ़कर या बात कही थी तो पद्मा ने तुरंत ही अपनी हामी भर दी. पर उसके मन में संशय था अपने संशय को मिटाने के उद्देश्य से उसने आतुरता से कहा..
“पर सुगना तो अभी सुहागन दिया दोसर ब्याह कैसे हो सकेला ?”
अब बारी सरयू सिंह की थी
“अईसन बियाह कौन काम के ? जब पति सन्यासी बैरागी हो होकर घर से भाग गईल बा. “
सरयू सिंह की बातें कजरी को थोड़ा नागवार गुजरी आखिर कुछ भी हो रतन उसका पुत्र था परंतु बात तो सच थी। कजरी ने सरयू सिंह की बात को आगे बढ़ते हुए कहा
अब रतन के भूल जायल ही ठीक बा। उ वापस ना लौटी सुगना सिंदूर जरूर लगावत दिया पर ओकर वापस आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे।
पद्मा को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ने लगी अब जब सरयू सिंह और कजरी दोनों जो सुगना के साथ ससुर की भूमिका निभा रहे थे जब उन्होंने ही फैसला कर लिया था। पद्मा ने कजरी का हाथ पकड़ते हुए कहा
“ देखा भगवान का चाहत बाड़े पर सुगना से ब्याह के करी “
तीनों के मन में ही एक ही उत्तर था पर कहने की जहमत कजरी ने ही उठाई
“ए बहिनी तहरा मनोहर कईसन लागेले?”
पदमा की अंतरात्मा खुश हो गई
“उ तो बहुत सुंदर लाइका बाड़े पर का ऊ भी ऐसन सोचत होगें”
“यदि तारा पसंद होखे तो उनका मन छुवल जाऊ । आखिर वह भी तो अकेले ही रहले । उनका भी इ दोसर बियाह होखी। सुगना और मनोहर के जोड़ी अच्छा लगी” कजरी ने पदमा से कहा
सरयू सिंह ने भी अपनी सहमति दी और घर के तीनों बुजुर्ग एक मत होकर सुगना के लिए मनोहर को पसंद कर चुके थे। अब बारी थी मनोहर का मन जानने की।
सरयू सिंह ने बेहद चतुराई और अपने अनुभव से कहा कि “सब काम में जल्दी बाजी नइखे करेके मनोहर के धीरे-धीरे आवे जावे द लोग यदि उनका मन में ऐसा कोई बात होगी तो धीरे-धीरे पता लाग ही जाए”
पद्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा
“ हां लाली बुची मनोहर के मन छू सकेली..”
बात सच थी लाली सुगना की सहेली थी और मनोहर उसका ममेरा भाई वह बातों ही बातों में मनोहर के दूसरे विवाह और उस दौरान सुगरा का जिक्र कर मनोहर के अंतर्मन को पढ़ सकती थी।
यद्यपि अब तक लाली को ना तो कोई इसका अंदाजा था और नहीं अपने घर के वरिष्ठ सदस्यों के मन में चल रहे इस अनोखे विचार के बारे में कोई आभास।

उधर विकास सोनी का खेत जोत जोत कर थक चुका था परंतु सोनी गर्भधारण करने में अक्षम रही थी जब बीज में दम नहीं था तो फसल क्या खाक उगती..
सोनी की वासना पर ग्रहण लग चुका था। सेक्स अब एक काम की भांति लगता था किसका परिणाम सिफर था। पर सोनी की सपने बदस्तूर जारी थे। सरयू सिंह उसके अवचेतन मन के सपनों के हीरो थे सोनी को यह आभास था कि हकीकत में यह संभव न था। कैसे वह नग्न होकर पितातुल्य सरयू सिंह को उसे चोदने के लिए आमंत्रित करेगी। या सरयू सिंह कैसे उसे नग्न कर उसकी गोरी जांघें फैलाएंगे और उसकी मुनिया को अपनी आंखों से देखेंगे..
आह वह पल कैसा होगा जब वह अपना तना हुआ विशाल लंड अपनी हथेलियों से मसलते हुए उसकी बुर के भग्नाशे पर रगड़ेंगे और उसे धीरे धीरे…..
आह सोनी ने महसूस किया कि आज बाद जागती आंखों से स्वप्न देखने को कशिश कर रही है…बुर में संवेदना जाग चुकी थी…सोनी इस एहसास को और महसूस करना चाहती थी…सरयू सिंह का लंड न सही उसकी जगह उसकी अंगुलियों ने बुर में अपनी हलचल बढ़ा दी. दिमाग में सरयू सिंह के साथ सोनी ने वो सारी कल्पनाएं की जो उसका चेतन मन शायद कभी न कर पाता पर वासना ग्रसित सोनी स्वतंत्र थी और उसकी सोच भी…
आखिर कर सोनी ने हांफते हुए एक सफल स्खलन को पूर्ण किया और ….अपनी नींद लेने लगी।
दिन बीत रहे थे…
उधर रतन मोनी के करीब आने की कोशिश में लगा हुआ था। माधवी यह बात जान चुकी थी और वह मोनी को अपना संरक्षण दी हुए थी वह मोनी कोर्नटन से दूर ही रखना चाहती थी। रतन ने जब में माधवी को धोखे से कूपे में अपने किसी लड़के से बेरहमी से चुदवाया तब से उनमें एक दूरी सी आ गईं थी।
मोनी धीरे धीरे पूरे आश्रम में प्रसिद्ध हो चुकी थी…अपनी सुंदरता कटावदार बदन और चमकते चेहरे की वजह से अनूठी लगती थी। उपर से इतने दिन कूपे में जाने के बावजूद उसका कौमार्य सुरक्षित था।
कूपे में धीरे धीरे रेटिंग सिस्टम भी शुरू हो चुका था..
लड़के कूपे में आई लड़की के सौन्दर्य और उसके कामुक अंगों के आधार पर अपनी रेटिंग देते। मोनी उसमें भी नंबर वन थी।
और इसी प्रकार मोनी ने अपने 11 महीने पूर्ण कर लिए।
विद्यानंद का यह अनूठा विश्वास था की स्त्री योनि को पुरुष यदि लगातार कामुकता के साथ स्पर्श चुंबन और स्पर्श करते रहे तो स्त्री को अपना काउमरीय सुरक्षित करना संभव था उसे संभोग के लालसा निश्चित ही उत्पन्न होती और वह संभोगरत हो ही जाती।
इस अनोखे कूपे का निर्माण भी शायद विद्यानंद ने अपने इसी विश्वास को मूर्त रूप देने करने के लिए बनवाया था। और वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहा था। लगभग लड़किया कूपे में जाने के बाद अपना सुरक्षित रखने में नाकामयाब रहीं थी। कोई एक महीना तो कोई दो महीना कुछ चार पांच महीने तक तक भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखने में कामयाब रहीं थीं। परंतु मोनी अनूठी थी उसने विद्यानंद की परीक्षा पास कर ली थी और 11 महीने बाद भी उसका कौमार्य सुरक्षित था।
आखिरकार विद्यानंद ने स्वयं मोर्चा संभाला। मोनी की अगली परीक्षा के लिए एक विशेष दिन निर्धारित किया गया। आश्रम में उत्सव का दिन था।
मोनी को आज के दिन होने वाली गतिविधियों का कोई भी पूर्वानुमान नहीं था बस उसे इतना पता था कि आज आश्रम में एक विशेष दिन है जिसमें उसकी अहम भूमिका है।
प्रातः काल नित्य कर्म के बाद उसे एक बार फिर कुंवारी लड़कियों के साथ उपवन भ्रमण के लिए भेज दिया गया सुबह के 10:00 बजे मोनी ने दुग्ध स्नान किया और तत्पश्चात सुगंधित इत्र और विशेष प्रकार की सुगंध से बहे कुंड में स्नान कराया गया।
मोनी का रोम रोम खिल चुका था। उसकी चमकती त्वचा और भी निखर गई थी पूरे शरीर में एक अलग किस्म की संवेदना थी त्वचा का निखार और चमक अद्भुत थी। त्वचा की कोमलता अफगान के सिल्क से भी मुलायम और कोमल थी।
मोनी को श्वेत सिल्क से बने गाउन को पहनाया गया और धीरे-धीरे मोनी आश्रम के उस विशेष कक्ष में उपस्थित हो गई।
विशेष कक्ष को करीने से सजाया गया था। राजा महाराजा के शयन कक्ष भी शायद इतने खूबसूरत नहीं होते होंगे जितना सुंदर आश्रम का यह खूबसूरत कमरा था।
बेहद खूबसूरत आलीशान पलंग पर लाल मखमली चादर बिछी हुई थी। सिरहाने पर मसलंद और तकिया करीने से सजाए गए थे। शयनकश की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग और तरह-तरह की मूर्तियों से सुसज्जित थीं। कमरे से ताजे फूलों की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह संयनकक्ष किसी बाग के अंदर निर्मित किया गया हो।
मोनी भव्यता और सुंदरता दोनों से अभिभूत थी…उसे स्वयं किसी राजमहल की रानी होने का अनुमान हो रहा था धीरे-धीरे उसकी मातहत उसे उसे वैभवशाली पलंग तक ले आई और बेहद विनम्रता से कहा आप पलंग पर बैठ जाइए थोड़ी ही देर में आगे की दिशा निर्देश दिए जाएंगे।
मोनी आश्चर्य से होने वाली घटनाक्रम को अंदाज रही थी। तभी कमरे में एक गंभीर आवाज गूंजी
देवी आप धन्य है.. आप शायद आश्रम की ऐसी पहली युवती है जिसने पिछले 11 महीनो से लगातार पुरुष प्रजाति की सेवा करने के पश्चात भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखा है। मैं आपसे काफी प्रभावित हूं। इस आश्रम के नियमों के अनुसार आपको अंतिम परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में सफल होने के पश्चात आपको भविष्य में किसी कूपे में जाने की आवश्यकता नहीं होगी परंतु यदि आप चाहे तो स्वेच्छा से अवश्य जा सकती है..
इसके अतिरिक्त आपको आश्रम में एक विशेष दर्जा प्राप्त होगा जो निश्चित ही आपके लिए सम्मान का विषय होगा।
यह परीक्षा आपके यौन संयम की ही परीक्षा है जिसमें अब तक आप सफल होती आई है। यदि आप इस परीक्षा में स्वेच्छा से भाग लेना चाहती हैं तो अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाए और अपना श्वेत वस्त्र स्वयं निकालकर पास पड़ी टेबल पर रख दें। उसी टेबल पर एक रुमाल नुमा कपड़ा रखा होगा उसे स्वयं अपनी आंखों पर बांध ले। आपकी परीक्षा लेने वाला पुरुष शायद आपसे नजरे नहीं मिल पाएगा और आपको भी उसे देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए यह नियमों के विरुद्ध होगा।
कूपे की भांति इस समय भी आपके पास लाल बटन उपलब्ध रहेगा जो की पलंग के सिरहाने रखा हुआ है आप जब चाहे उसे दबाकर उस व्यक्ति को अपनी गतिविधियां रोकने के लिए इशारा कर सकती है।
ध्यान रहे लाल बटन का प्रयोग सिर्फ तभी करना है जब पुरुष आपसे ज्यादती कर रहा हो…
मुझे विश्वास है कि आप नियम पूरी तरह समझ चुकी होगी। मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं..
वह गंभीर आवाज अचानक ही शांत हो गई. मोनी को यह आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी परंतु लाउडस्पीकर से आने की वजह से वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही थी।
मोनी ने मन ही मन इस परीक्षा में भाग लेने की ठान ली। वैसे भी वह अब तक आश्रम में विशेष सम्मान पाती आई थी उसके मन में और भी ऊपर उठने की लालसा प्रबल थी। मोनी उठकर अपना श्वेत रंग का गाउन उतरने लगी जैसे-जैसे वह गांव उसके बदन का साथ छोड़ता गया मोनी की मादक और चमकती काया नग्न होने लगी। सामने आदमकद दर्पण में अपनी खूबसूरत बदन को निहारती मोनी स्वयं अपनी सुंदरता से अभीभूत हो रही थी।
तरासे हुए उरोज, पतली गठीली कमर.. मादक और भरी-भरी जांघें और उनके जोड़ पर बरमूडा ट्रायंगल की तरह खूबसूरत त्रिकोण जिस पर कुदरत का लगाया वह अद्भुत चीरा जिसके अंदर प्रकृति का सार छुपा हुआ था। मोनी का यह रहस्य अब तक उजागर नहीं हुआ था। वह स्खलित तो कई बार हुई थी पर अपने कौमार्य को बचाने में सफल रहीं थी…
मोनी अपने पैर आगे पीछे कर अपने गदराए नितंबों को देखने का लालच नहीं रोक पा रही थी। वह पीछे पलटी और अपनी गर्दन घूमाकर दर्पण में अपने बदन के पिछले भाग को देखने लगी मोनी के नितंब बेहद आकर्षक थे वह अपनी हथेलियां से उसे छूती और उसकी कोमलता और कसाव दोनों को महसूस करती।
वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
शेष अगले भाग में..
150Ve Update ke liye Bahut Bahut Badhai..........Dhakad Update hai....... Moni always bring freshness to the Story.... Beech Beech mein lane ke liye dhanyawad
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 141

मैं मैं वापस अपनी चेतना में लौट आई अपने हाथ नीचे किया और पेटी को वापस ऊपर कर अपनी अमानत को ढक लिया। वापस नाव पर चढ़ना बेहद कठिन था अल्बर्ट को आखिर मेरी मदद करनी पड़ी मुझे नाव पर चढ़ने के लिए अल्बर्ट ने मेरे नितंबों को थाम लिया और ऊपर की तरफ धकेला .. किसी पराए मर्द का मजबूत हाथ आज पहली बार मेरे नितंबों से सट रहा था…मुझे अभी विकास का चैलेंज पूरा करना था…

कुछ होने वाला था…

क्या सोनी कामयाब रहेगी…या ये कामयाबी उसे महंगी पड़ेगी…

अब आगे..


मेरे गदराए हुए कूल्हों को थाम कर अल्बर्ट भी आनंदित था। उंगलियों की हरकत जब तक मैं महसूस कर पाती तभी समुद्र की एक तेज लहर आयी।

अचानक आयी इस लहर ने हम दोनों को असंतुलित कर दिया। मैं पूरी तरह उसके आलिंगन में आ गई। मुझे सहारा देने के लिए उसने मुझे अपने आप से चिपका लिया। एक पल के लिए मुझे लगा जैसे किसी काले साए ने मुझे अपने आगोश में ले लिया। अल्बर्ट की हथेलियां मेरी पीठ और नितंबों पर थी वह उनसे मुझे सहारा दिए हुए था। उसके विशालकाय लिंग का एहसास मुझे अपने जांघों पर हो रहा था। वह मुझसे कद काठी में काफी बड़ा था और मैं सामान्य कद काठी की। अल्बर्ट ने अपने हाथ वापस पानी में डाल कर हिलाने लगा ताकि वह हम दोनों को पानी के ऊपर तैरता रख सके। उसके अचानक मेरी पीठ पर से हाथ हटाने से मैं पानी में नीचे जाने लगी।


डूबते को तिनके का सहारा

मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर उस दिव्य हथियार को पकड़ लिया जो बरमूडा के अंदर एक खूंटे की भांति तना था।


मैं उस का सहारा लेकर ऊपर आने की कोशिश की इस दौरान मैंने उसके लिंग का अंदाज लगा लिया। इस छोटी सी घटना ने अल्बर्ट के मन में भी उम्मीद जगा दी होगी। वह बेहद खुश दिखाई दे रहा था। न जाने उसके मन में हिम्मत कहां से आई उसने एक बार फिर अपनी हथेलियां का सपोर्ट हटा लिया और मैं फिर पानी में जाने लगी। पर इस बार मै सचेत थी मैंने अल्बर्ट के गले में अपनी गोरी बाहें डाल दीं। मेरी चूची अल्बर्ट के ठुड्ढी के पास थी।

हम दोनों की अठखेलियां कुछ देर यूं ही चली।

मैंने मुस्कुराते हुए अल्बर्ट से वापस वोट पर चलने को कहा मैं अब थक चुकी थी। उसने मुझे मेरे पैरों से पकड़ कर ऊपर उठा लिया। उसके वोट पर जाने वाली सीढ़ी थोड़ी ऊंची थी। अल्बर्ट के दोनों हाथ मेरी जांघों के निचले हिस्से पर थे तथा उसका चेहरा मेरे पेट से टकरा रहा था। उसके मोटे मोटे होंठ मेरी बुरके बिल्कुल समीप थे।


यद्यपि मैं जानती थी कि मेरा और अल्बर्ट का मेल असंभव है हम दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने थे। वह अलग था और मैं अलग। परंतु जिस सहजता से वह मुझे पेश आ रहा था मुझे बेहद अच्छा लग रहा था।

मैंने बोट की सीढ़ी पकड़ ली और धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगी। और अपने गदराए हुए कूल्हे उसकी आंखों के सामने परोस दिए। क्या मंजर रहा होगा वह भी पीछे पीछे ऊपर आ गया। मैने पलट कर देखा उसने झट से अपनी पलके झुका लीं।

बरमूडा के अंदर उसका लिंग अब और भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। बरमूडा गीला होने से वो उसके शरीर से चिपक गया था। वो उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था परंतु उसकी मर्दानगी छुपने लायक नहीं थी।


हम दोनों वोट पर आ चुके थे मेरी नग्नता का दर्शन अब वोट पर बैठा दूसरा आदमी भी कर रहा था। मैंने अपनी जालीदार नाइटी पहनने की कोशिश नहीं की। अल्बर्ट ने वोट से लाकर एक साफ और सुंदर तोलिया मुझे अपना शरीर पोछने के लिए दिया। वह पूरी व्यवस्था करके आया था। थोड़ा आराम करते हुए मैं आईलैंड के आने का इंतजार कर रही थी।

तभी मैंने देखा वह दूसरा आदमी रेड वाइन की बोतल और गिलास लिए हुए हमारे पास आ गया उसने भी बड़े आदर से मुझे कहा "मैम यू आर सो ब्यूटीफुल आर यू इन बॉलीवुड?"

मैं उसकी बात से बहुत खुश हो गई.

अल्बर्ट ने कहा

"ही इज माय फ्रेंड माइकल"

मैंने रेड वाइन की बोतल ले ली और अपने हाथों से उसे तीन गिलासों में डाल दिया.


माइकल मेरे हाथों से रेड वाइन का ग्लास पकड़ते हुए बहुत खुश था। कभी कभी मैं सोचने लगती कि यदि अल्बर्ट और माइकल दोनों के मन में पाप होता तो मेरा क्या होता। यदि वह अपनी दरिंदगी पर आते तो मेरी दुर्गति करने के लिए एक ही काफी था और यहां तो दो दो थे। पर अभी तक मुझे उनके व्यवहार मे सिर्फ और सिर्फ सौम्यता नजर आ रही थी। उनमें उत्तेजना तो अवश्य थी पर उन्होंने उसे नियंत्रित किया हुआ था।

यही बात मुझे सर्वाधिक पसंद है। मुझे लगता है की स्त्रियों को ही कामुकता की कमान संभालनी चाहिए और पुरुषों को उनकी इच्छा अनुसार ही उनका साथ देना चाहिए और उनकी पूर्ण सहमति से सहवास करना चाहिए.

मैं रेड वाइन पीते हुए और समुंद्र की ओर देखते हुए यह बातें सोच रही थी और वह दोनों मेरी नग्नता का जी भर कर आनंद ले रहे थे। रेड वाइन का ग्लास खत्म हो चुका था और मैं हलके सुरूर में आ चुकी थी।


बोट आइलैंड के बिल्कुल समीप आ चुकी थी. मैं और अल्बर्ट उतरकर किनारे पर आ गए माइकल ने भी वोट को किनारे पर बांध दिया और वोट पर से आवश्यक सामग्री लेकर हमारे साथ आईलैंड को देखने निकल पड़ा.

हम तीनों आईलैंड की खूबसूरती का आनंद लेते हुए अंदर की तरफ चल पड़े ऊपर वाले ने आईलैंड बेहद खूबसूरती से बनाया था वहां पूरी तरह हरियाली थी अलग प्रकार के पेड़ थे और छोटी-छोटी पहाड़िया थीं. अद्भुत दृश्य था मैं प्रकृति के द्वारा बनाई खूबसूरत जगह पर धूप का आनंद ले रही थी. प्रकृति के दो अनमोल नगीने मेरे साथ में थे मैं मन ही मन सोच रही थी की प्रकृति किस किस तरह के जीव बनाती है निश्चय हैं उसकी इन खूबसूरत कलाकृतियों में कोई न कोई बात रहती है जिससे हम सभी का उनमें आकर्षण बना रहता है।

एक अनोखी बात थी। बीच पर काफी कम लोग दिखाई पड़ रहे थे उनमें अक्सर मेरी उम्र की ही कई सारी युवतियां थी और सभी के साथ माइकल और अल्बर्ट जैसे लोग थे।

अधिकतर युवतियों बेहद उत्तेजक बिकनी में थी और कई टॉपलेस होकर घूम रही थी।

एक अंग्रेजन तो पूरी तरह नंगी थी और दो काले सायों के बीच मिस फिक्र होकर चल रही थी उनसे हंस कर बातें कर रही थी यह देखकर मुझे भी साहस आ रहा था। यह कैसा अनोखा द्वीप था। सभी युवतियां यहां अकेली ही आई थी। क्या वह भी मेरे जैसी हिम्मतवाली थी या यह कोई अनोखा द्वीप था और इसके नियम भी अनोखे थे।

मैं इस रहस्य को समझने में पूरी तरह नाकाम थी। कुछ भी देर बाद एक और भी युवती जो मुझे कल होटल के रेस्टोरेंट में मिली थी वह भी दो मुस्टंड नीग्रो के साथ इस बीच पर टहल रही थी।

मेरा आत्मविश्वास अब पूरी तरह बढ़ चुका था इतना तो अवश्य था कि मैं यहां अकेली नही थी।

मैं इस खूबसूरत आईलैंड पर आकर अपने आप को खुशकिस्मत महसूस कर रही थी काश विकास मेरे साथ होता। कुछ ही देर में हम थक चुके थे. दोपहर के लगभग 1:00 बज रहे होंगे.


मुझे भूख लग आई थी मैंने अल्बर्ट से कहा वह बोला

"यस मैम आई हैव समथिंग फॉर यू"

माइकल और अल्बर्ट ने अपने साथ लाए सामान से एक चादर निकाली. हमने वही चादर बिछाकर खाना खाया अल्बर्ट और माइकल ने आईलैंड पर आने की पूरी तैयारी की थी चादर निकालते समय बैग से कंडोम के पैकेट भी निकल कर गिर गया एक बार के लिए मेरी रूह कांप गई.

ऐसा लगा जैसे इसी चादर पर मेरा योनि मर्दन होने वाला था। पर अल्बर्ट ने अपनी नज़रें झुकाए हुए ही उस पैकेट को पकड़ा और वापस बाग में डाल दिया। मेरे मन का डर अल्बर्ट और माइकल की सौम्यता ने दबा रखा था.

कुछ ही देर में हम तीनों खाना खा रहे थे मैंने थोड़ा सा ही खाना खाया क्योंकि वह समुद्री फूड था अंत में माइकल ने एक सुंदर स्वीट डिश निकाली यह कॉन्टिनेंटल डिश थी जो मुझे बेहद पसंद थी. मैंने उसे खाया और मैं तृप्त हो गई.

मुझे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि अल्बर्ट को मेरी पसंद की स्वीट डिश का पता कैसे चला। मैं जब अल्बर्ट से पूछा तो वो बोला..

“ मोस्ट ऑफ द इंडियन विमेन लाइक दिस”


मैं अभी भी अपनी बिकनी में ही थी वह दोनों मेरी नग्नता के आदि हो चुके थे. मैं भी अपने आप को सहज महसूस कर रही थी.

मेरा पेट भर चुका था सुनहरी धूप में बैठे बैठे मुझे नींद आने लगी . अल्बर्ट ने हवा से फूलने वाला तकिया निकाला और अपने बड़े-बड़े फेफड़ों से तीन-चार फूक में ही उसे फुला दिया और मुझसे कहा


"मैम, यू कैन टेक रेस्ट"

मेरा इतना आदर और सत्कार उन दोनों द्वारा किया जा रहा था जो एक तरफ मुझे सहज भी कर रहा था पर दूसरी तरफ कही न कहीं मेरे मन में डर भी था. फिर भी मैं वह तकिया लेकर करवट लेकर सो गयी. उसी दौरान अल्बर्ट के एक बात कही

" मैम, इफ यू डोंट माइंड वी कैन गिव यू रिलैक्सिंग फुट मसाज"


मैं वास्तव में थकी हुई थी और मेरे कोमल पैर दर्द भी कर रहे थे. मुझे अंततः अल्बर्ट का वीर्य दोहन करना ही था मैंने उसे अनुमति दे दी. कुछ ही देर में अल्बर्ट मेरे पैरों को दबा रहा था उसकी हथेलियां मेरे पैरों को घुटनों तक दबा रही थी वह उसके ऊपर नहीं आ रहा था शायद उसे अपनी मर्यादा मालूम थी. माइकल ने भी मेरे हाथों को दबाना शुरू किया था.

उन दोनों के इस तरह मसाज करने से मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था मुझे पता था उन दोनों को भी मेरे कोमल शरीर को छूने में निश्चय ही आनंद आ रहा होगा. मुझे कब झपकी लग गई मुझे याद भी नहीं। अल्बर्ट के हाथ मेरी जांघों तक पहुंच चुके थे। कुछ देर तक तो मैं उसके अनोखे स्पर्श का आनंद लेती रही पर मन में डर अब भी कायम था। उधर माइकल की उंगलियां मेरे कंधों तक पहुंच चुकी थी। यदि मैं उन्हें नहीं रोकती तो शायद उनकी उंगलियां मेरी बुर और चूचियों को सहला रही होती।


मैंने अपनी पलकें खोल दीं. वह दोनों झेंप गए .. काले काले होठों के बीच से मोती जैसे दांत दिखाई पड़ने लगे उन दोनों के ही लिंग पूरी तरह तने हुए थे। मैंने मन ही मन यह सोच लिया। मेरे लिए अल्बर्ट और माइकल दोनों एक जैसे ही थे दोनों का व्यवहार अनूठा था मैं सोच लिया यदि संभव हुआ तो मैं दोनों का ही वीर्य दोहन करूंगी.

"मैम, आर यू कंफर्टेबल नाउ"


मैंने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया. मेरी अंगड़ाई से मेरे स्तनों का उभार एक बार और उनकी निगाहों में आ चुका था. मैंने उन दोनों को ढेर सारा थैंक्यू बोला खासकर उनके उस रिलैक्सिंग मसाज के लिए. अब मुझे अपने असली उद्देश्य को पूरा करना था.

मैंने अल्बर्ट से कहा

"आई वांट टू गो वॉशरूम"

वह दोनों हंसने लगे अल्बर्ट ने कहा

"मैम, यह प्राकृतिक द्वीप है आपको यहां यह कार्य प्राकृतिक तरीके से ही करना होगा हां आप हमसे दूर जाकर किसी पेड़ का सहारा ले सकती हैं."

हम बीच की जिस जगह पर थे वहां से हरियाली कुछ दूर थी मेरी वहां अकेले जाने की हिम्मत नहीं थी. मैंने अल्बर्ट को कहा अपने साथ चलने के लिए कहा वह मेरे साथ चल पड़ा.

मैं रास्ते में अपने अगले स्टेप के बारे में सोच रही थी अल्बर्ट थोड़ा दूर खड़ा था और मैं बाथरूम करने के लिए झाड़ी की ओट का सहारा लेकर अपनी पैंटी पहले नीचे की फिर कुछ सोचकर मैने उसे बाहर निकाल दिया। मेरा दिल धक धक करने लगा अल्बर्ट पास ही खड़ा था मैं पेड़ की ओट में थी पर उसके करीब थी।

आखिर मैं नीचे बैठ चुकी थी। इस मूत्र विसर्जन में अद्भुत आनंद आ रहा था. बहती हुई हवा मेरी नंगी बुरको सहला रही थी यह सिहरन एक अद्भुत सुख दे रही थी. मैं कई वर्षों बाद बाहर खुले में मूत्र विसर्जन कर रही थी और शायद इस तरह से खुले में नग्न होकर पहली बार।


मैंने मूत्र को काफी देर से रोका हुआ था। एक बार जब मूत्र विसर्जन शुरू हुआ उसकी धार अद्भुत रूप से तेज थी। मूत्र की धार निकलते हुए वैसे भी अवरुद्ध सीटी की आवाज निकाल रही थी । मूत्र की धार तेज थी वह लगभग मेरे शरीर से एक हाथ दूर गिर रही थी। वहीं पास में कुछ छोटे कीड़े मकोड़े चल रहे थे मेरे न चाहते हुए भी वह उससे भीगते हुए तितर-बितर हो रहे थे। मुझे भी अब उन्हें भीगोने में मजा आने लगा था। मैं अपनी कमर को ऊपर नीचे कर अपनी मूत्र की धार से उन पर निशाना लगाती। मेरी इस प्रक्रिया में मेरे कोमल नितंब कभी ऊपर उठते कभी नीचे। अचानक मुझे ध्यान आया अल्बर्ट पीछे ही खड़ा है। वह क्या सोच रहा होगा? मैं शर्म के मारे लाल हो गयी अपनी मैंम का यह रूप उसने शायद सोचा भी नहीं होगा। पर जो गलती होनी थी वह हो चुकी थी।

मैंने यह अनुभव अपनी युवावस्था में कभी महसूस नहीं किया था. . जब मैं उठ कर खड़ी हुई तभी मैंने निर्णय लिया कि यदि अभी नहीं तो कभी नहीं.मैंने अपनी लाल बिकिनी अपने हाथ में ली. मैं उसी अवस्था में बाहर आ गयी. अल्बर्ट मुझे इस तरह नग्न देखकर आश्चर्यचकित था.


वाह अपनी बड़ी बड़ी आंखें फाड़े मुझे देख रहा था वह मेरे बिल्कुल करीब आ चुका था. मुझे ऐसा लग रहा था कि वह कभी भी अपने सब्र का बांध तोड़ कर मुझे अपनी आगोश में भर लेगा. मेरा डर एक बार फिर उफान पर था. मैं झुक कर अपनी बिकनी दोबारा पहनने लगी. अल्बर्ट ने घुटनों के बल बैठ कर मुझसे कहा

"मैम, इफ यू डोंट माइंड प्लीज बी लाइक दिस. आई हैव नेवर सीन सच ए ब्यूटीफुल लेडी इन माई लाइफ. वी विल नॉट टच यू. यू आर द मोस्ट ब्यूटीफुल वूमेन आई हैव एवर सीन"

तारीफ हर सुंदरी को पसंद आती है मैं भी इससे अछूती नहीं थी. मैं उसकी इस अदा की कायल हो गयी. मैंने कहा

"ओके..ओके.. बट प्लीज डोंट टच मी"

उसने अपने दोनों कान पकड़ लिए और सर झुकाए हुए बोला..

विल टच यू ओनली व्हेन यू विश ..

वो मेरी नंगी बुर को छोड़ मेरी चूचियों को देख रहा था। मैं उसका इरादा समझ गई…

मैंने अपनी बिकनी के दूसरे भाग की तरफ इशारा किया जिसने मेरे खूबसूरत स्तनों को थोड़ा बहुत ढक कर रखा था. और मुस्कुराते हुए बोली


यू वांट मी टू रिमूव दिस?

उसने एक बार फिर खीसें निपोर दीं

"मैम, सो नाइस आफ यू"

मैंने अंततः बिकिनी का वह भाग भी हटा दिया और मैं पूरी तरह नग्न हो गयी. इस बीच पर पूरी तरह नग्न होने वाली में पहली युवती नहीं थी। इस तरह अल्बर्ट के सामने नग्न होकर मैंने अपनी हिम्मत की नई मिसाल पेश की थी. पर अल्बर्ट को देखकर लगता नहीं था कि वह उग्र होकर मेरे साथ कोई जबर्दस्ती करेगा. अल्बर्ट बड़ी बड़ी आंखों से मेरी नग्नता का आनंद ले रहा था. मेरे हाथ में मेरी बिकिनी थी अल्बर्ट में हाथ बढ़ाकर वह बिकनी मुझसे ले ली और अपनी बरमूडा की जेब में डाल दिया.

हम दोनों वापस माइकल की तरफ आने लगे अल्बर्ट को यह उम्मीद नहीं थी कि मैं इस तरह माइकल की तरफ चल पड़ूँगी.

मैंने यह जान लिया था कि वह दोनों दोस्त एक ही थे रास्ते में मैंने अल्बर्ट से पूछा

"आर यू सेटिस्फाइड नाउ?"


"यस मैम, यू आर वेरी ब्यूटीफुल लाइक दिस आईलैंड. ऑल नेचुरल."

मेरे साथ चलने की वजह से वह मुझे ध्यान से नहीं देख पा रहा था. कुछ ही देर में हम माइकल के पास आ चुके थे मुझे नग्न देखकर माइकल की आंखें फटी रह गई थीं. एक बार फिर मैं वापस में चादर पर बैठ चुकी थी. मैंने स्वयं को वज्रासन में व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरी बुरके होंठ मेरी जांघों के बीच छूप गए थे पर मेरे दोनों नग्न स्तन उन दोनों विशालकाय पुरुषों को खुला निमंत्रण दे रहे थे.

उन्होंने मुझे फिर से एक बार रेड वाइन ऑफर की मैंने ग्लास ले लिया वह दोनों मेरी नग्नता का आनंद ले रहे थे. अचानक मैंने अल्बर्ट से कहा..

"मैं यहां पर पूर्णतया नग्न हूं और आप दोनों कपड़े पहने हुए यह उचित नहीं" वह दोनों मुस्कुराने लगे उन्होंने एक ही झटके में अपने बरमूडा को अपने शरीर से अलग कर दिया. मेरे सामने दो काले साए अपने विशालकाय लिंग जो अब पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में थे के साथ खड़े थे.

मैं उन दोनों को देखकर अपने आप को एक दूसरी दुनिया में महसूस कर रही थी. कभी-कभी मुझे लगता कि जैसे मैं एक स्वप्नलोक में आ गयी हूँ जिसमें हम तीनों के अलावा कोई नहीं था.

मैं पूरी तरह नग्न थी और वह दोनों भी. उनके लिंग बेहद आकर्षक थे और पूरी तरह काले थे. लिंग का अगला भाग हल्का मशरूम के जैसे लाल था लिंग के ऊपर की चमड़ी स्वता ही पीछे हो गई थी. बड़े नींबू के आकार के उनके सुपारे अपने रंग को शरीर के रंग से अलग किए हुए थे. उनके अंडकोष छोटे ही थे परंतु उनमें गजब का तनाव था. दोनों की उम्र 20 -22 वर्ष के आसपास रही होगी ऐसे उत्तेजक और जवान नवयुवक मैंने आज तक नहीं देखे थे.

भगवान ने उनके चेहरे को छोड़कर बाकी हर जगह सुंदरता भर भर के प्रधान की थी।

उनकी उत्तेजना और असीम काम शक्ति अद्भुत थी. मुझ जैसी कोमलंगी निश्चय ही इनके लिए नहीं बनी थी पर जिस तरह सफेद छोटा रसगुल्ला छोटे -बड़े सभी लोगों की प्यास बुझाता है मेरी सुंदरता इन दोनों के लिए एक उसी तरह थी.


उनके लिंग में आई उत्तेजना में निश्चय ही मेरा योगदान था. वह दोनों इस तरह मेरे सामने खड़े थे मुझे देखकर हंसी भी आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने शारीरिक सौष्ठव का प्रदर्शन मेरे सामने कर रहे थे. मैं उठ खड़ी हुई मैंने कहा

"आप दोनों बेहद सुंदर हैं एंड योर …. "


मेरे जुबान से लन्ड शब्द नहीं निकला पर मेरी निगाहों ने उनके लंड की तरफ इशारा कर दिया।

“मैंम वुड यू लाइक तो टच इट”


यह सुनहरा अवसर था मेरे हाथ आगे बढ़े और उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई मैंने अल्बर्ट और माइकल में भेद नहीं किया और कुछ ही पलों में मेरे दोनों हाथों में दो अद्भुत लंड थे जिसकी हूबहू कल्पना तो मैं नहीं की थी तुरंत यह सरयू सिंह के लंड से मिलते-जुलते थे।

वह दोनों खुश हो गए मैंने अपने दोनों हाथों से उन दोनों के लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश की। मैं सफल तो नहीं हुई परंतु उनके लंड में अचानक एक उछाल आया ऐसा लगा जैसे मैं किसी जिंदा कोबरे को पकड़ लिया हो। मेरी रूह कांप रही थी. मेरे सीने की धड़कन तेज थी.

मुझे लगता है लिंग का आकार मेरी कलाई से लेकर कोहनी तक था लिंग की मोटाई भी कमोबेश वैसी ही थी.

मैं उनके लिंग को छू रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसका पचीस प्रतिशत भाग ही हथेलियों में पकड़ पा रही थी. बाकी का भाग अभी भी खुला हुआ था. मैंने उनके लिंग को ऊपर से नीचे तक सहलाया. वह दोनों आनंद में अपनी आंखें ऊपर किये आकाश की तरफ देख रहे थे.

अद्भुत उत्तेजक माहौल में मेरी बुरभी अपना प्रेम रस अपने होठों तक ले आयी थी. अचानक अल्बर्ट की नजर उस पर पड़ गई वह मुस्कुराते हुए बोला

"मैम, आपको अच्छा लगा?

मैंने कहा

"यस यू बोथ आर मैग्नीफिसेंट"


माइकल ने इस पर हिम्मत जुटाकर कहा "क्या हम आपको दोबारा छू सकते हैं?"

मैं भी अब पूरी तरह उत्तेजित हो चली थी मैं जिस उद्देश्य के लिए वीरान टापू पर आई थी वह पूरा होने वाला था. मैंने सर हिलाकर माइकल को अपनी सहमति दे दी जिसे अल्बर्ट ने भी देख लिया. वह दोनों मेरे समीप आ चुके थे और मेरे कंधे और पीठ को सहला रहे थे शायद उन्हें मेरी अनमोल अमानतों को छूने के लिए नीचे झुकना पड़ रहा था। अल्बर्ट ने मेरे कंधों को पड़कर ऊपर उठाना चाहा और मैं खड़ी हो गई। उन दोनों काले सायों ने मुझे घेर लिया।

वह दोनों मेरी पीठ को सहलाना शुरू कर चुके थे मेरा हाथ अभी भी उन दोनों के लिंग को सहला रहा था. उत्तेजना बढ़ रही थी. कुछ ही देर में उन्होंने उनकी हथेलियां मेरे नितंबों तक आ गयीं. मैंने मना नहीं किया वह उन्हें प्यार से सहला रहे थे मैं चाहती थी कि वह उन्हें थोड़ा और तेजी से दबाए पर शायद वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे.

मैंने स्वयं उनके लिंग को और तेजी से सहलाया जिससे उन्हें अद्भुत उत्तेजना हुयी इस उत्तेजना में उन्होंने मेरे नितंबों को तेजी से पकड़ लिया. उनकी बड़ी-बड़ी हथेलियों मेरे नितंबों को पूरी तरह अपने आगोश में ले चुकीं थीं. उनकी उंगलियां मेरे नितंबों के बीच की दरार में कभी-कभी मेरी को भी छू रहीं थी.

तभी अल्बर्ट का हाथ ने सामने से आकर मेरी बुर को घेर लिया। बर से रस रही लार को सहारा मिला और वह माइकल की उंगलियों को भिगो गई। उसने अपना हाथ हटाया और मेरे चेहरे के सामने से लाते हुए अपनी नासिक पर ले गया और उसे सूंघते हुए बोला..

“मैम यू स्मेल सो नाइस…”

मैं स्वयं बेहद उत्तेजित महसूस कर रही थी। अल्बर्ट की इस हरकत में मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर दिया था।

तभी अल्बर्ट में अपनी रस से भीगी उंगलियां माइकल के नथुनों से सटा दी और उससे अपनी भाषा में कुछ बोला..

उन दोनों को अनजान भाषा में बात करते हुए देखकर मैं डर गई और इंटरफेयर किया

“व्हाट यू पीपल आर टॉकिंग”

सॉरी मैंम .. यू स्मैल सो नाइस.. वी कुड नॉट कंट्रोल अप्रेसिंग यू..

एक बार फिर अल्बर्ट की उंगलियां मेरी बुर पर थी.. मेरा ध्यान उनके लैंड से हटकर अपनी उत्तेजना पर केंद्रित हो रहा था मैं आई थी यहां कुछ और करने पर हो कुछ और रहा था। माइकल की उंगलियों को अपनी बुर पर फिसलते हुए महसूस कर मुझे मन ही मन या ख्याल आ रहा था कि अल्बर्ट अपनी उंगली मेरी बुरके अंदर प्रवेश करा दे उनकी उंगलियां एक सामान्य किशोर के लिंग जितनी मोटी थी पर उन्होंने यह नहीं किया. मैं स्वयं आगे बढ़कर उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती थी. यह उनकी उत्तेजना को और भड़का सकता था और संभव था कि वह संभोग के लिए मुझ पर दबाव बनाने लगते.

मुझे बहुत संभाल कर चलना था. अचानक मेरे दिमाग में एक ख्याल आया. वहां पास में एक पेड़ की ठूंठ पड़ी थी जिसका ऊपरी भाग समतल था. मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि मैं उस पर खड़ी हो जाओ तो मेरी बुर इनके लिंग के उचाई तक आ जाएगी.

मैं अल्बर्ट और माइकल के लिंग को पकड़े हुए उधर चल पड़ी. मैंने अगल-बगल निगाह दौड़ाई.. कुछ ही दूर पर कई सारे जोड़े कामुक गतिविधियों में लिप्त थे. अब लगभग यह द्वीप एक नग्न द्वीप में तब्दील हो चुका था। मेरा ध्यान बाई तरफ गया…कुछ दूर पर मेरे अल्बर्ट की तरह ही दिखने वाला एक नीग्रो एक अंग्रेजन को चोद रहा था..

मैं अपनी फटी हुई आंखों से एक लाइव ब्लू फिल्म देख रही थी अल्बर्ट और माइकल मेरे आगे बढ़ने का इंतजार कर रहे थे मुझे आश्चर्य से इनका मुख घटनाओं को देखते हुए अल्बर्ट ने कहा

मैं यहां पर यह सामान्य बात है यह द्वीप इसीलिए अनोखा है। यहां पर लगभग सभी लोग इसीलिए आते हैं। यह सब लोग आपके ही होटल में रह रहें हैं।

मुझे अब सहज महसूस हो रहा था। मैं अपने मिशन पर आगे बढ़ चुकी थी


वह दोनों भी आज्ञाकारी बच्चों की तरह मेरे साथ साथ वहां तक आ गए. मैं लकड़ी के ठूंठ पर खड़ी हो गई और अल्बर्ट को अपने पीछे आने के लिए कहा.

अल्बर्ट मेरे पीछे आ चुका था. मैंने उसके लिंग को अपनी दोनों जांघों के बीच से निकालते हुए सामने ला दिया और स्वयं अपना भार अल्बर्ट के सीने पर दे दिया. मेरी पीठ उसके सीने से सटी हुई थी मेरे नितंब की जांघों उसे छू रहे थे उसका लिंग मेरी बुरसे सटा हुआ सामने की तरफ मेरी हथेलियों में था.


मैं अपनी इच्छा से उसके लिंग को सहला रही थी. सुपारे पर हाथ फिराते समय उसका लिंग उछल जाता और मेरी बुरके होठों को थपथपा देता. उत्तेजना मुझ में पूरी तरह भर चुकी थी बुरका प्रेम रस उसके लिंग को भिगो रहा था.

माइकल मेरे ठीक सामने था। मैं अल्बर्ट और माइकल के बीच में सैंडविच बनी हुई थी। माइकल का लैंड मेरी नाभि से टकरा रहा था। मैं एक हाथ से माइकल के लंड के सुपाड़े को सहला रही थी और दूसरे हाथ से अल्बर्ट के लंड को अपनी बुर पर रगड़ भी रही थी और हथेलियां से उसके सुपाड़े को मसल रही थी। माइकल मेरी दोनों चूचियों को हल्के-हल्के सहला रहा था। बीच-बीच में वह शायद अपनी उत्तेजना पर काबू नहीं रख पाता और चूचियों को जोर से मसल देता..

अल्बर्ट की उंगलियां भी मेरी मदद करने को आ पहुंची थी। वह स्वयं अपने लंड को मेरी बुर पर रगड़ रहा था और अपनी उंगलियों से मेरी भगनासा को छू रहा था..


चिपचिपा प्रेम रस उसके लिंग को सहलाने में मेरी मदद कर रहा था मेरी आंखें बंद हो रही थी. कुछ ही देर में माइकल और अल्बर्ट ने अपनी स्थितियां बदल लीं।

मैंने माइकल को भी उसी तरह अपनी बुरके संपर्क में ला दिया था. मेरे लिए वह दोनों एक ही थे अद्भुत विशालकाय और एक मजबूत लिंग के स्वामी जिनका मुझे बीर्य दोहन करना था.

कुछ ही देर में उन दोनों के लिंग में अद्भुत कठोरता महसूस होने लगी। ऐसा नहीं था की लार सिर्फ मेरी बुर से बह रही थी उनके लंड से भी वीर्य रिस रिस कर बाहर आ रहा था..

किसकी उंगलियां कहां से प्रेम रस चुरा रही थी यह कहना कठिन था पर दोनों के लंड मेरी हथेली में फिसल रहे थे..

माइकल का लंड मेरी बुर पर रगड़ रहा था…एक पल के लिए मुझे लगा जैसे मैं स्वयं भी उसे अंग्रेजन में की भांति यहीं पर चुद जाऊं….

इस विचार मात्र ने मेरी उत्तेजना को चरम पर पहुंचा दिया। अपने पति से विश्वासघात ना ना यह पाप…मैं नहीं करूंगी..

अल्बर्ट की उंगलियां लगातार मेरे भागना से को शहला रही थी। आखिर उन्होंने ही तो मुझे वीर्य दोहन के लिए भेजा है अब जब मैं पराए मर्द का लंड पकड़ ही लिया है तो उसे…आह अपनी बुर…में…..आह….

मेरा ध्यान भटक रहा था मैं यहां उनका वीर्य दोहन करने आई थी और खुद स्खलन की कगार पर पहुंच गई थी..

मेरा बदन कांप रहा था…. अचानक मेरे सामने खड़ा माइकल नीचे झुका और मेरी चूचियों के ठीक सामने अपने होठों को रखते हुए मेरी तरफ देखा जैसे मुझे अनुमति मांग रहा हो…

मैं उत्तेजना की पराकाष्ठा पर थी मना कर पाना मेरे बस में नहीं था मैंने अपने होंठ अपने दांतों में भींच रखे थे..

मैंने सहमति में अपनी पलके झुका दी और मेरी आधी चूंची अल्बर्ट के मुंह में थी..

इधर उसने मेरी चूची चुसनी शुरू की और उधर मेरी बुर ने रसदार छोड़ दी मैं मदहोश होने लगी मेरे हाथ रुक गए और मैं इस स्खलन के परमानंद में खो गई। कुछ देर तक उन्होंने मेरे शरीर के साथ क्या किया मुझे इसका अंदाजा भी नहीं लगा पर इतना अवश्य था मैं तृप्त थी और इस अद्भुत सुख के लिए उनके शुक्रगुजार थी।

वापस अपनी चेतना में आने के बाद मैंने खुद को नियंत्रित किया और उस ठूंठ पर से उतर कर वापस रेत पर आ गई मैं घुटनों के बल बैठ चुकी थी..

मेरी तेज चलती हुई सांसों को देखकर माइकल ने बड़े अदब से पूछा..

मैंम वुड यू लाइक टू टेक वॉटर

मैंने उसकी नम्रता को दिल से सलाम किया कि इस उत्तेजक घड़ी में भी वह अपना संयम बनाए हुए था और अपनी मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं रख रहा था मैंने अपने हाथ आगे बढ़ाएं और वापस उन दोनों के लंड को पकड़ते हुए बोला


“लेट मी फिनिश एंड रिटर्न यू द फेवर”

मैं अपने छोटे-छोटे कोमल हाथों से उन्हें आगे पीछे कर रही थी मेरे हाथ दुखने लगे थे वह दोनों मेरे गालों को सहना रहे थे. वह दोनों आसमान की तरफ देख रहे थे।

अचानक अल्बर्ट और माइकल ने अपने हाथों को मेरी मदद के लिए ला दिया उनकी बड़ी-बड़ी हथेलियां उनके लिंग के अनुसार ही थी और उसके लिए सर्वथा उपयुक्त थी मैं अपनी कोमल हथेलियों से उनके सुपारे को मसलने लगी अचानक अल्बर्ट के लिंग से निकली वीर्य धारा मेरे गालों पर पड़ी। जब तक मैं अपने आप को संभाल पाती तब तक माइकल का स्खलन भी प्रारंभ हो गया।

मैं अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढकी हुई थी और वह दोनों अपने वीर्य की धार से मुझे भिगो रहे थे उनके मुख से एक अजीब सी बुदबुदाने गदगुदाने की आवाज आ रही थी जिसमें कभी-कभी मैम शब्द सुनाई पड़ रहा था मुझे पता था वह अपनी कल्पनाओं में मेरा योनि मर्दन कर रहे थे पर यह उनकी कल्पना थी जिस पर उनका हक था और उनके हक पर मुझे कोई आपत्ति नहीं थी.

मैंने उनकी उत्तेजना शांत होने का इंतजार किया वीर्य वर्षा रुक जाने के पश्चात मैंने चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और उठ खड़ी हुयी. वीर्य की कुछ बूंदे मेरे स्तनों से होती हुई मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंच चुकी थी जो मेरी योनि के होठों को स्पर्श कर रहीं थीं. मेरी बुर से स्खलित हुआ प्रेम रस उन अद्भुत मर्दों की वीर्य से मिल रहा था।

अंततः मैंने विकास के चैलेंज को पूरा कर दिया था। मैं विकास के पास जल्द से जल्द पहुंचना चाहती थी और उनसे अपनी विजय की सूचना देकर उनका प्यार और प्रोत्साहन पाना चाहती थी।

वह दोनों संतुष्ट दिखाई पड़ रहे थे. अल्बर्ट और माइकल ने मेरे स्तनों पर लगे हुए वीर्य को अपनी हथेलियों से पोछना चाहा। जितना ही उन्होंने इसे पोछा उतना ही वह फैलता गया। वैसे मुझे इसकी आदत पड़ चुकी थी विकास की यह पसंदीदा आदत थी.

मैं उठ खड़ी हुई।

तभी माइकल और अल्बर्ट दोनों घुटनों के बल आकर मुझसे क्षमा मांगने लगे..


"मैम आई एम सॉरी वी कुड नॉट कंट्रोल"

मैंने उनके सर पर हाथ रख दिया और उनके बालों को सहला दिया मेरी इस क्रिया से उनकी आत्मग्लानि कम हुई और उन दोनों ने अपना चेहरा मेरी नग्न जांघों से सटा दिया उनके होठों से निकलने वाली गर्म सांसे मेरी बुर पर महसूस हुई।

"इट्स ओके, इट्स ओके नो प्रॉब्लम"


वह दोनों खुश हो गए काले चेहरों के पीछे से उनके सुंदर और सफेद दात स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे।

माइकल भागकर तोलिया ले आया पर तब तक मेरे शरीर पर लगा हुआ वीर्य लगभग सूख चुका था। वीर्य की लकीरें मेरे पेट और स्तनों पर साफ दिखाई पड़ रही थीं। मैंने माइकल से तौलिया ले लिया और अपनी कमर के चारों तरफ लपेट लिया। मेरी नग्नता ने अपना कार्य कर लिया था हम तीनों रेत पर पड़ी हुई चादर की तरफ चल पड़े।

अल्बर्ट ने मेरी बिकनी अपनी बरमूडा से निकाली और बिकनी का निचला भाग अपने हाथों में पकड़ कर रेत पर पर बैठ गया जैसे वह मुझे इसे पहनाने में मदद करना चाह रहा था। मैंने तोलिया गिरा दिया और अपने पैरों को बारी-बारी से बिकनी के अंदर डाल दिया। अल्बर्ट की उंगलियां उसे खींचती हुई मेरी कमर तक ले आयी। इस दौरान मेरी जांघों पर एक बार फिर अल्बर्ट की हथेलियों का स्पर्श महसूस हुआ। एक पल के लिए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे अल्बर्ट के अंगूठे ने मेरी बुरके मुकुट (भगनासा) को छू लिया था मैं सिहर गयी थी।

पैंटी से मेरी बुर को ढकते हुए अल्बर्ट ने मेरी आंखों में देखते हुए बोला..

“इट लुक लाइक ए हेवन एंड स्मेल लाइक नेक्टर योर हसबैंड इस वेरी लकी”


मेरा ध्यान अपनी बुर पर था तभी मैंने माइकल के हाथों को अपने स्तनों पर महसूस किया वह मुझे बिकनी का उपरी भाग पहना रहा था। उन दोनों का यह प्रेम देखकर मैं मन ही मन उनकी सौम्यता की कायल हो गई थी।

उन दोनों में अद्भुत समानता थी दोनों ही अपनी उत्तेजना को काबू में रखना जानते थे जो मुझे पुरुषों में सर्वाधिक प्रिय है। उन्होंने आज मेरी नग्नता का जी भर कर आनंद लिया था शायद यह उनसे ज्यादा मेरी जरूरत थी। मुझे भी आज उनके लिंग का जो दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ था यह मेरे लिए यादगार था।

हम तीनों वापस अपने होटल की तरफ चल पड़े थे इस वीरान टापू पर इन दो पुरुषों का वीर्य स्खलन मेरे जीवन की अद्भुत रोमांचक घटना थी। मैं विकास से मिलने के लिए बेकरार थी। मैं उनसे अपनी इस विषय पर निश्चय ही कोई अद्भुत उपहार चाहती थी।

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी और इस तरह सकुशल लौटने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी। अल्बर्ट और माइकल मेरे पसंदीदा हो चुके थे इन्होंने मुझे आज खुश कर दिया था। कुछ देर बाद होटल की खूबसूरत बिल्डिंग दिखाई देने लगी।

मेरी अधीरता बढ़ती जा रही थी शाम के 5:00 बज रहे थे काश विकास वहां पर होते। बोट के किनारे लगते ही मैं बीच पर उतर गयी। अचानक विकास दिखाई पड़े मैं उनकी तरफ भागी ठीक उसी प्रकार से जिस तरह से जेल से छूटा हुआ कोई कैदी अपने परिवार जनों को देखकर दौड़ता है।

उन दोनों ने मेरे साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया था पर विकास को देखकर मैं बिना उनका शुक्रिया अदा किये ही उनकी तरफ भाग गयी थी। कुछ ही देर में वह दोनों मेरी जालीदार टॉप को हाथों में लिए मेरे पास आये और बोले

"मैम यू हैव लेफ्ट योरटॉप"


मैंने विकास से उन दोनों का परिचय कराया और कहा

"अल्बर्ट और माइकल इन दोनों लोगों ने मुझे एक खूबसूरत टापू दिखाया और कई सारे प्राकृतिक नजारे भी ये बहुत अच्छे हैं" वह दोनों मुस्कुरा रहे थे.


विकास ने उन्हें थैंक्यू कहा और वह दोनों रेस्टोरेंट की तरफ चल पड़े। मैं और विकास एक बार फिर समंदर की लहरों के बीच में आ गए। विकास मेरी और प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहा था। पर मैं कुछ नहीं बोल रही थी। समुद्र के अंदर जाते हैं विकास ने मेरे स्तनों को छुआ उन्हें अपने हाथ पर चिपचिपाहट का एहसास हुआ वाह तुरंत ही समझ गए।

उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों के बीच भर लिया और बेहद प्यार से चूमने लगे कुछ देर के लिए उन्होंने अपने होंठ अलग किया और बोला.

. ब्रेव सोनी यू वोंन द चैलेंज..


उन्होंने स्वयं अपने वीर्य से न जाने मुझे कितनी बार भिगोया था और नहाते समय उसे अपने ही हाथों से साफ किया था उन्हें अंदाज लग गया था कि मैं जीत चुकी थी।वह बेहद खुश थे।

समुद्र में बिकास के साथ अठखेलियां करके मैं तरोताजा हो गई थी मुझे पता था विकास मेरे अद्भुत कार्य के लिए मुझे होटल ले जाकर कसकर चोदने लिए तैयार थे और मैं भी इसका इंतजार कर रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे।

मैंने विकास से पूछा..

अरे आपका चैलेंज मैने पूरा किया मेरा इनाम कहां है..

“कल मिलेगा बराबर मिलेगा…” विकास मुस्कुरा रहे थे…

शेष अगले भाग में..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है सोनी ब्ल्यू फिल्म में मोटा लंबा लण्ङ देखकर उसे देखने और लेने की इच्छा हो गई थी विकाश ने उसकी ये इच्छा पूरी कर दी आज उसने अल्बर्ट और माइकल के साथ खूब मजे किए
 

Sanju@

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उधर दक्षिण अफ्रीका मैं सोनी और विकास न जाने किस धुन में थे सोनी ने उन दोनों नीग्रो का वीर्य दोहन कर अपनी कामुकता में एक नई ऊंचाई प्राप्त की थी और उसकी दिशा तेजी से वासना में लिप्त युवती की तरह बढ़ रही थी। कुछ समय के लिए सोनी और विकास को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और लिए वापस लिए चलते हैं जौनपुर में जहां सुगना अपने बच्चों और अपनी मां पदमा के साथ रह रही थी।

शनिवार का दिन था सोनू आज अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ जौनपुर से बनारस आने वाला था। सुगना और उसके बच्चे भी अपने मांमा से मिलने के लिए बेहद लालायित थे।

सुगना और सोनू के मिलन में काफी समय बीत चुका था सोनू का चेहरा चमक रहा था और गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू का चरित्र बेदाग था।

पर यह सच नहीं था। सोनू का दिल तो अक्सर सुगना में ही खोया रहता था कमोबेश यही हाल सुगना का भी था। पर अपनी मर्यादाओं का जितना निर्वहन सुगना करती थी शायद सोनू में यह धीरज नहीं था वह मौका पाते ही सुगना को अपनी बाहों में भर लेने की कोशिश करता पर सुगना समय देखकर ही उसके करीब आती वरना वह उचित और सुरक्षित दूरी बनाए रखती थी।

जौनपुर में लाली और सोनू अपना अपना सामान पैक कर रहे थे तभी लाली ने कहा..

“ए सोनू जैसे हमार भाग्य खुल गईल का वैसे सुगना के भी दोसर शादी ना हो सकेला”

एक पल के लिए सोनू को लगा जैसे लाली की सलाह उचित थी परंतु सुगना को खोने के एहसास मात्र से सोनू की रूह कांप उठी वह तपाक से बोला

“अरे सुगना दीदी तो अभी सुहागन बिया जीजा घर छोड़कर भागल बाड़े पर जिंदा बाड़े ऐसे में दोसर शादी?

लाली निरुतर थी।

कुछ घंटे के सफर के बाद सोनू अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ बनारस आ चुका था।


यह एक संयोग ही था कि उसी समय सलेमपुर से सरयू सिंह और कजरी भी बनारस सुगना के घर आ पहुंचे थे।

सुगना ने सरयू सिंह और कजरी के चरण छुए और उन दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया। दोनों ने निर्विकार भाव से सुगना को खुश रहने का आशीर्वाद दिया उन्हें इस बात का इल्म न था कि उनका आशीर्वाद किस प्रकार फलीभूत होगा पर नियती ने सुगना के जीवन में खुशियां बिखरने का मन बना लिया था।

आज सुगना का पूरा परिवार उसके साथ था। सिर्फ उसकी दोनों बहनें उसे दूर थी पर अपनी अपनी जगह आनंद में थी। और उसका भगोड़ा पति रतन भी उसकी छोटी बहन मोनी के बुर में मगन मस्त था।

बातों ही बातों में पता चला की सरयू सिंह कजरी को उसके कंधे में उठे दर्द का इलाज करने के लिए बनारस आए थे। परंतु डॉक्टर ने उन्हें कुछ चेकअप कराने के लिए सोमवार तक रुकने का निर्देश दिया था।और आखिरकार दोनों सुगना के घर आ पहुंचे थे।

पूरा परिवार एक साथ बैठे पुराने दिनों को याद कर रहा था। सरयू सिंह को अब अपने पुराने दिनों से कोई सरोकार न था। कजरी और पदमा अब उनके लिए बेमानी हो चली थी। वैसे भी जिसने सुगना को भोग लिया हो उसे कोई और स्त्री पसंद आए यह कठिन था। परंतु जब से सरयू सिंह को यह बात ज्ञात हुई थी कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तब से उनके विचार सुगना के प्रति पूरी तरह बदल चुके थे।

सोनू बार-बार सुगना की तरफ देख रहा था जैसे उसकी आंखों में अपने प्रति आकर्षक और प्यार देखना चाह रहा हो। मन ही मन वह अपने विधाता से सुगना के साथ एकांत मांग रहा था परंतु यहां ठीक उसके उलट पूरा परिवार सुगना के घर में इकट्ठा हो चुका था।

इस भरे पूरे परिवार के बीच सुगना के साथ एकांत खोजना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत हो रहा था तभी कजरी ने कहा…

“ए सुगना कॉल सलेमपुर चल जाइबे का?”

काहे का बात बा? सुगना ने आश्चर्य से पूछा

“मुखिया के बेटी के गहना हमरा बक्सा में रखल बा…काल ओकरा के देवल जरूरी बा.. हम त काल ना जा सकब यही से कहत बानी”

सुगना के बोलने से पहले सोनू बोल उठा

“चाची तू चिंता मत कर हम सुगना दीदी के लेकर चल जाएब और काम करके वापस आ जाएब”

“हां ईहे ठीक रही गाड़ी से जयीहें लोग तो टाइम भी कम लागी। “

सरयू सिंह ने अपना विचार रख रख कर इस बात पर मोहर लगा दी।

तभी लाली बोल उठी..

“हमरो के लेले चला हम भी अपना मां बाबूजी से भेंट कर लेब”

अचानक सोनू को सारा खेल खराब होता हुआ दिखने लगा परंतु लाली ने जो बात कही थी उसे आसानी से कटपना कठिन था तभी सुगना ने कहा

“ते बाद में चल जईहे बच्चा सबके भी देख के परी मां अकेले का का करी”

बात सच थी कजरी की बाहों में दर्द था और सुगना की मां पदमा इन सभी बच्चों को संभालने और सबका ख्याल रखने में अकेले अक्षम थी। सुगना की बात सुनकर लाली चुप हो गई उसकी बात टालने का साहस उसमें कतई नहीं था।

सोनू तो जैसे कल्पना लोक में विचरण करने लगा सुगना के साथ एकांत वह भी सलेमपुर में और सुगना के अपने घर में।

सुगना का वह कमरा …वह सुगना की सुहाग का पलंग वह दीपावली की रात जब उसने पहली बार सुगना के साथ उसके प्रतिरोध के बावजूद काम आनंद लिया था।

उसे अद्भुत और अलौकिक अनुभूति को याद कर सोनू का लंड तुरंत ही खड़ा हो गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। वह अपने विचारों में खोया हुआ था तभी सुगना ने बोला..

“ए सोनू तोर जाए के मन नईखे का ? कोनो बात ना हम बस से चल जाएब”

सोनू ने सुगना की आंखों में शरारत देख ली…

“ठीक बा काल 10 बजे चलेके..”

सोनू अपनी अपनी खुशी को छुपाने में नाकामयाब था शायद इसीलिए वह सुगना से नजरे नहीं मिल रहा था उसने वहां से उठ जाना ही उचित समझा और बच्चों को लेकर बाहर आइसक्रीम खिलाने चला गया।


सुगना खुश थी उसने मन ही मन सोनू के गर्दन पर दाग लगाने की ठान ली थी…
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सोनी नीग्रो के साथ मस्ती करके बहुत खुश हैं जैसा ब्लू फिल्म में होता है वैसे ही सोनी ने उनका वीर्य दोहन कर दिया
नियति ने सोनू और सुगना को बहुत दिनों बाद एक मौका दे दिया है सुगना और सोनू दोनों ही बहुत खुश हैं
 

Sanju@

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भाग 142

सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे।

सोनू ने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठ कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी की बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशाए नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी है.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“ दीदी एक बात बता उस दिन जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

सुगना को यह उम्मीद नहीं थी उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वह दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उसे काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।

प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी।

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यहां बात बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो में ओ ही में घासीट लीहले”

आशय

तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।

आईये अब उधर दक्षिण अफ्रीका में सोनी और विकास का हाल-चाल ले लेते हैं वह भी विकास की जुबानी​


(मैं विकास)

खाना खाने के पश्चात मैं और सोनीटहलते हुए होटल के शॉपिंग एरिया में आ गए थे

मैंने सोनीके लिए कुछ उपहार खरीदे वही पास में एक मसाज सेंटर था। सोनीअपने लिए कुछ छोटे-मोटे सामान खरीद रही थी तब तक मैं उस मसाज सेंटर में चला गया। यह मसाज सेंटर अद्भुत था मैंने रिसेप्शनिस्ट से वहां मिल रही सुविधाओं के बारे में जानना चाहा उसने मुझे ब्राउज़र दे दिया और कहा सर इसमें सभी प्रकार की सुविधाएं हैं आप अपनी इच्छा अनुसार जो सुविधा चाहिए वह पसंद कर सकते हैं। यह सारी बातें उसने धाराप्रवाह अंग्रेजी में समझायीं।

मैं ब्राउज़र लेकर वापस आ गया। सोनीबहुत खुश थी मैं उसे एक लिंगरी शॉप में ले गया मैंने सोनीके लिए कई सारे लिंगरी सेट खरीदें। वहां मिलने वाली ब्रा और पेंटी बहुत ही खूबसूरत थी। और उनमें एक अलग किस्म की कामुकता थी। सोनीउसे देखकर शरमा रही थी। पता नहीं सोनीमें ऐसी कौन सी खासियत थी कि ऐसे अद्भुत कामुक कार्य करने के बाद भी वह उसी सादगी और सौम्यता से मेरी प्यारी बन जाती और छोटी-छोटी बातों पर उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता सुगना की कुछ खूबियां सोनी में भी आ गईं थीं

हम सब कुछ देर बाद होटल वापस आ चुके थे।

रात में मैं और सोनीअल्बर्ट के बारे में बातें कर रहे थे सोनीअल्बर्ट के लिंग के बारे में मुझसे खुलकर बात कर रही वह अपनी कोहनी से हाथ की कलाई को दिखाते हुए बोली विकास उसका लिंग इतना बड़ा और एकदम काला था।

मैं उसकी बात सुनकर हंस रहा था सोनीके कोमल हाथों मैं मैं उसके लिंग की कल्पना से ही अत्यंत उत्तेजित हो उठा। सोनीमेरे ऊपर आ चुकी थी और अपनी कमर को धीरे धीरे हिला रही मैं उसके स्तनों को अपने सीने में सटाए हुए उसे चूम रहा था।

उसके कोमल नितंबों पर हाथ फेरते हुए मुझे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी। आज सोनीने जो किया था वह शाबाशी की हकदार थी मैं उसके नितंबों पर हल्के हाथों से थपथपा कर उसके अदम्य साहस की तारीफ कर रहा था और वह मेरी तरफ देख कर कामुकता भरी निगाहों से मुस्कुरा रही थी।

अचानक मैंने उससे कहा

"सोनीयदि अल्बर्ट का काला लिंग तुम्हारी बुरमें होता तो?"

वह मुस्कुराई और बोली

"यह बुर तब आपके किसी काम की नहीं रहती"

मैंने उसे फिर छेड़ा अरे यह सोनी जिम्नास्ट की बुरहै… उंगली और अंगूठे को एक जैसा ही पकड़ती है।.

मेरी इन उत्तेजक बातों से सोनीकी कमर तेजी से हिलने लगी थी ऐसा लग रहा था जैसे वह भी इस कल्पना से ही उत्तेजित हो रही थी। मैंने उससे फिर कहा

" एक बार कल्पना करो कि यह अल्बर्ट का काला लिंग है" वह शरमा गई उसमें मेरे गालों पर चिकोटी काटी उसकी कमर अभी भी तेजी से चल रही थी। उसने आंखें बंद कर ली अचानक मैंने उसकी कमर में अद्भुत तेजी दिखी चेहरा तमतमाता हुआ लाल हो चुका था।

मेरी सोनी स्खलित हो रही थी मैने भी अपना योगदान देकर उसके स्खलन को और उत्तेजना प्रदान की और स्वयं भी स्खलित हो गया। मैंने उसके चेहरे पर ऐसी उत्तेजना आज के पहले कभी नहीं देखी थी उसकी बुर ने आज जी भर कर प्रेम रस छोड़ा था मैं उसकी उत्तेजना से स्वयं विस्मित था। मेरे हाथ उसके नितंबों को सहला रहे थे और वह निढाल होकर मेरे सीने पर गिर चुकी थी।

मैंने मन ही मन सोच लिया था हो ना हो यह अल्बर्ट के लिंग की कल्पना मात्र का परिणाम था। हम दोनों संभोग के पश्चात मेरे द्वारा लाए गए मसाज पार्लर का ब्राउज़र पड़ने लगी मैंने सोनीकी तरफ एक बार फिर देखा और बोला चलो ना कल ट्राई करते हैं फिर यह मौका कहां मिलेगा वह शर्मा रही थी पर अंत में उसने मुझसे चिपकते हुए बोला ठीक है पर आप वही रहेंगे तभी और जरूरत पड़ने पर मेरी मदद करेंगे। मैं यह रिस्क अकेले नहीं ले पाऊंगी मैंने भी इस अद्भुत मिलन के लिए अपनी सहमति दे दी। मैं भी मन ही मन इस उत्तेजक संभोग को देखना चाहता था।

ऐसा अद्भुत दृश्य मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था और कल यह मेरी आंखों के सामने घटित होने वाला था। सोनीभी एक अद्भुत आनंद में डूबने वाली थी वह उसके लिए आनंद होता या कष्ट यह समय की बात थी। पर मेरी वहां उपस्थिति ही काफी थी मेरी सोनीको कोई कष्ट पहुंचाया यह असंभव था।

अगले एपिसोड में आप क्या पढ़ना चाहेंगे
1 सोनू और सुगना का मिलन
Ya
2 सोनी का अद्भुत मसाज
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सोनू और सुगना के बीच कुछ ऐसे प्रश्नों का जिक्र हुआ जिसका उत्तर न सुगना दे सकती थी और ना ही सोनू इसलिए दोनों ने उन प्रश्नों को टालना ही जरूरी समझा
विकाश लगता है सोनी को नीग्रो से चुदवाकर ही मानेगा और सोनी की भी ये ही इच्छा है
 
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