भाग 137
“ये अब सुगना दीदी पहनेंगी..” लाली ने वह लहंगा अपने हाथों से उठा लिया और उसे सुगना की कमर से लगा कर सोनू को दिखाते हुए पूछा.
“ अच्छा लग रहा है ना?”
सोनू क्या बोलता …उस लहंगे में सुगना की कल्पना कर उसका लंड अब खड़ा हो चुका था।
“अच्छा है…दीदी में वैसे भी सब कुछ अच्छा लगता है”
नियति ने निर्णय ले लिया था…
सुगना सोनू की पसंद का लहंगा उसके विवाह में पहनने को राजी हो गई थी…सोनू खुश था…और अब अपने विवाह का इंतजार बेसब्री से कर रहा था…
अब आगे..
उसी दोपहर में एकांत के पलों में सोनू ने सुगना को उसके कमरे में ही दबोच लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला “ सबके कपड़ा लत्ता त आ गैल एक बार हमार दहेज त देखा दा”
सुगना सोनू का इशारा पूरी तरह समझ रही थी उसका छोटा भाई सोनू जो अब शैतान हो चुका था उससे उसकी बुर देखने की मांग कर रहा था। पर घर में लाली भी थी और ऊपर से तीन-चार दिनों बाद उसका विवाह भी होने वाला था ऐसी स्थिति में सोनू के गले पर दाग लगाना सुगना को गवारा न था।
“अरे पागल हो गइल बाड़े का …तीन-चार दिन बाद ब्याह बा, गर्दन पर दाग लेकर जईबे गांव…? ” सुगना ने उसके सीने पर अपनी हथेलियो से दबाव बनाकर उससे दूर होने की कोशिश की।
सोनू सुगना के प्यार में पूरी तरह बावला हो गया था उसे कुछ भी समझ ना आ रहा था उसने सुगना को फिर से खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके गालों से अपने गाल रगड़ते हुए उसके कानों में बोला
“ दीदी अभी तीन-चार दिन बा कब तक तो दाग कम हो जाए…”
“हट, जाए दे लाली बिया..” सुगना ने सोनू को लाली की उपस्थिति की याद दिलाई…पर सोनू मानने वाला नहीं था वह अब भी जिद पर अड़ा था
“अच्छा ठीक बा बियाह भइला के बाद..” सुगना ने उसे मनाने की कोशिश की
“काहे सुहागरात तू ही मनाईबू का?”
सोनू सुगना से झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोला..वह अब भी उसे छोड़ने को तैयार न था..
बाहर लाली के कदमों की आहट सुनाई दी और सोनू की पकड़ ढीली हुई और सुगना सोनू से अलग हो गई। और मुस्कुराते हुए बोली
“अच्छा ठीक बा …. लाली छोड़ी तब नू “
सोनू मन मसोस कर रह गया…लाली पास आ चुकी थी।
शाम को सुगना ने सोनू को अपनी शेरवानी ट्राई करने के लिए कहा। सोनू सुगना की लाई शेरवानी में एकदम दूल्हे की तरह लग रहा था उस पर उसके गले में पड़ा मैरून कलर का दुपट्टा उसकी खूबसूरती को और भी निखार दे रहा था। गले में पड़ा यह दुपट्टा सोनू के उस स्थान को भी पूरी तरह ढक रहा था जहां कभी-कभी सोनू का दाग उभर आया करता था।
लाली ने यह नोटिस किया और तुरंत ही बोली..
“शेरवानी बहुत सुंदर है और दुपट्टा भी बहुत अच्छा है यदि कहीं गलती से दाग उभर भी आया तो भी उसको ढक लेगा।”
सोनू और सुगना ने एक दूसरे की तरफ देखा पर सुगना ने अपनी नज़रें नीचे झुका ली..
सोनू के मन में उम्मीद की किरण जाग उठी…
सोनू पुरी शाम सुगना के आगे पीछे घूमता रहा उसके लिए उसकी पसंद की चाट पकौड़ी और मनपसंद कुल्फी लाया बच्चों को घुमाने ले गया और उसने वह सारे कृत्य किये जिससे वह सुगना को प्रसन्न कर सकता थाआखिरकार सुगना पिघल गई उसने भी उसे निराश न किया ….
सुगना निराली थी. और अपने छोटे भाई सोनू को दिलोजान से प्यारी थी। सोनू खुश था…अगली सुबह सोनू जौनपुर के लिए निकल रहा था…और अपने गर्दन पर अपनी सुगना की याद दाग के रूप में लिये जा रहा था।
सोनू का यह दाग सुगना के प्यार की निशानी बन चुका था।
लाली और सोनू का विवाह कुछ ही दिनों में होने वाला था। सुगना इस विवाह की तैयारीयो में मशगूल हो गयी। सुगना ने विवाह का कार्यक्रम बेहद संक्षिप्त तरीके से करने का फैसला किया था वैसे भी यह विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होना था उसने अपने घर सीतापुर में एक पूजा रखी जिसमें अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित किया और शाम को एक भोज का भी आयोजन किया। सारी तैयारी करने के बाद सुगना एक बार फिर बनारस में सोनू का इंतजार कर रही थी।
आखिरकार सोनू और लाली के विवाह का दिन आ गया। इस विवाह को लेकर सोनू बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं था लाली से वह जितना करीब पहले था अब भी वह उतना ही करीब रहता।
उधर सुगना और लाली में उत्साह की कमी नहीं थी। लाली तो मन ही मन बेहद प्रसन्न थी । उसने सुगना द्वारा लाया हुआ लाल जोड़ा पहना और सज धज कर तैयार हो गई। सुगना ने लाली को तैयार होने में पूरी मदद की और उसे एक खूबसूरत दुल्हन की तरह तैयार कर दिया। लाली को देखकर ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वह दो बच्चों की मां है। उम्र को मात देने की कला जितना सुगना में थी लाली उससे कम कतई न थी। उसने भी अपने शरीर की बनावट और कसावट पर भरपूर ध्यान दिया था शायद इसलिए ही वह सोनू को अब तक अपनी जांघों के बीच बांधे रखने में कामयाब रही थी चार-पांच वर्षों तक सोनू को खुश करने के बाद भी सोनू की आसक्ति उसमें कम नहीं हुई थी।
लाली यदि सोनू के लिए वासना की भूख मिटाने का खाना थी तो सुगना उसके लिए अचार से कम न थी।
सोनू ने चाहे कितना भी लाली का मालपुआ खाया हो और उसकी वासना तृप्त हो गई हो पर सुगना का मालपुआ देखते ही उसकी जीभ फिर चटकारे लेने लगती और और लंड उछलने लगता।
सुगना ने भी सोनू द्वारा गुलाबी रंग का लाया लहंगा और चोली पहना और एक बार फिर नव विवाहिताओ के जैसे तैयार हो गई। न जाने ईश्वर ने सुगना को इतना खूबसूरत क्यों बनाया था। सुगना से मिलने वाला व्यक्ति या तो उससे कोई पवित्र रिश्ता बनाता या फिर वह उसकी वासना पर अपना अधिकार जमा लेती। जितना ही वह व्यक्ति कामुक होता सुगना उससे दोगुनी कामुकता के साथ उसके दिलों दिमाग पर छा जाती। सुगना को देखने के पश्चात उसे इग्नोर करना कठिन था। सोनू द्वारा पसंद किए गए इस गुलाबी जोड़े में सुगना सचमुच कयामत ढा रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे कोई नई नवेली दुल्हन अपने छोटे भाई की शादी में जा रही हो। सुगना स्वाभाविक रूप से बेहद खूबसूरत थी ना कोई मेकअप ना कोई विशेष प्रयास पर फिर भी जब वह तैयार हो जाती तो न जाने कितनी हीरोइनो को मात दे रही होती।
लाली और सुगना दोनों ही तैयार होकर अब कोर्ट जाने की तैयारी कर रही थी। सोनू अपनी दोनों अप्सराओं को अपने समक्ष देखकर खुश था।
कोर्ट मैरिज में वैसे भी ज्यादा रिश्तेदारों की आवश्यकता ना थी। फिर भी सरयू सिंह और पदमा कोर्ट परिसर में उपलब्ध थे।
सरयू सिंह ने पदमा का मन टटोलने के लिए पूछा
“लाली तारा पसंद बड़ी नू ?”
पदमा आज भी सरयू सिंह से नजरे नहीं मिलती थी और अब भी घुंघट रखती थी पूरा नहीं तो कम से कम एक चौथाई ही सही। उसने सर झुकाए झुकाए ही कहा
“अब जब सोनू के पसंद बाड़ी त हमरो पसंद बाड़ी “
वैसे भी लाली धीरे-धीरे सोनू की मां पदमा का मन जीत चुकी थी। लाली ने हमेशा पद्मा का ख्याल रखा था बाकी घर में ऐसा कोई नहीं था जो अब लाली का विरोध करता था या जिसे लाली स्वीकार्य नहीं थी। वैसे भी जब उसे सुगना का साथ मिल चुका था सब स्वतःउसकी तरफ आ चुके थे।
कोर्ट मैरिज की फॉर्मेलिटी कंप्लीट करने के बाद सोनू और लाली पति पत्नी हो चुके थे सुगना ने उन्हें बधाइयां दी…
सोनू और लाली दोनों ने उसके चरण छूने की कोशिश की। लाली ने शायद यह सोचकर ही सुगना के चरण छूने की कोशिश की क्योंकि वह सोनू की बड़ी बहन थी। सुगना ने सोनू को तो नहीं रोका पर लाली को बीच में ही रोक कर अपने गले लगा लिया और फिर सोनू के सर पर हाथ फिराकर बोली..
“लाली और ओकरा परिवार के के पूरा ध्यान दिहा और एक दूसरा के हमेशा खुश रखीह “
सोनू हाजिर जवाब था उसने सुगना का हाथ पकड़ते हुए कहा
“ दीदी तू भी एही परिवार के हिस्सा हऊ हम तहरों के बहुत खुश राख़ब”
“अच्छा चल ढेर बकबक मत कर हमरा पुराना मंदिर भी जाए के बा तोरा ब्याह के मन्नत मंगले बानी”
पदमा पास ही खड़ी थी उसने कहा
“ बेटा कहीं देर मत हो जाए”
“ना मा चिंता मत कर हो जाए” सुगना ने अपनी मां पदमा को आश्वस्त किया।
सोनू आगे पूरे परिवार को सीतापुर पहुंचने की प्लानिंग करने लगा उसके पास जो शासकीय गाड़ी थी शायद उसने पूरा परिवार आना संभव नहीं था।
घर पहुंच कर सब लोग अब सीतापुर जाने की तैयारी कर रहे थे। अब तक सोनू अपनी रणनीति बना चुका था।
कुछ ही देर बाद सभी सोनू की शासकीय गाड़ी में बैठकर सीतापुर जाने की तैयारी करने लगे। यह निर्धारित किया गया की सोनू सुगना और उसके दोनों बच्चे दूसरी ट्रिप में सीतापुर पहुंचेंगे। लाली भी सोनू के साथ रुकना चाहती थी परंतु सोनू की मां पदमा ने कहा
“लाली वहां सीतापुर में तोहरा पूजा पाठ में लगे के बा तू चला “
अपनी सास की बात काट पाना लाली के बस में न था l। वह चुपचाप गाड़ी में बैठ गई सुगना के दोनों बच्चे भी कजरी और सरयू सिंह से बेहद लगाव रखते थे वह दोनों भी सीतापुर जाने की जिद करने लगे और आखिरकार सरयू सिंह ने उन्हें भीअपने साथ ले लिया।
आखिरकार घर के सभी लोग सीतापुर के लिए निकल चुके थे और अब तय कार्यक्रम के अनुसार सोनू को सुगना को लेकर मंदिर जाना था तब तक सोनू की गाड़ी सभी परिवारजनों को सीतापुर छोड़कर वापस आ जाती और उसके बाद सोनू और सुगना इस गाड़ी से वापस सीतापुर चले जाते।
सोनू अब तक अपनी शेरवानी उतार चुका था परंतु सुगना ने अपना खूबसूरत लहंगा और चोली पहना हुआ था।
सुगना ने झटपट अपना पूजा का सामान लिया और सोनू से बोली
“चल हम तैयार बानी “
सोनू ने पड़ोस के किसी मित्र से मोटरसाइकिल उधार पर ली और अपनी बहन सुगना को पीछे बैठा कर पुराने मंदिर की तरफ निकल पड़ा।
सोनू कई दिनों बाद अपनी बहन सुगना को मोटरसाइकिल पर बैठाकर पुराने मंदिर की तरफ जा रहा था।
शहर की भीडभाड़ से बाहर निकल कर मोटरसाइकिल ने अपनी रफ्तार पकड़ ली। शुरुआत में सुगना को मोटरसाइकिल पर बैलेंस कायम रखने में परेशानी महसूस कर रही थी परंतु धीरे-धीरे वह सहज हो गई कुछ ही देर बाद मोटरसाइकिल बनारस की सड़कों पर तेजी से पुराने मंदिर की तरफ दौड़ रही थी। सोनू भी पूरे उत्साह में था।
सोनू को पुरानी बातें याद आने लगी जब वह पहली बार लाली को भी इस मंदिर में लाया था…उसे वह घटनाक्रम धीरे-धीरे याद आने लगा। पीछे बैठी सुगना पहले तो डर रही थी पर अब हवा के थपेड़ों का आनंद ले रही थी उसके बाल हवा में लहरा रहे थे वह बार-बार सोनू से धीरे चलने का अनुरोध कर रही थी परंतु सोनू डर और रोमांच का अंतर महसूस कर पा रहा था।। वह सुगना के कहने पर मोटरसाइकिल धीरे जरूर करता परंतु जल्द ही रफ्तार को कायम कर सुगना को रोमांचित कर देता।
सुगना अपने कोमल हाथ बढ़ाकर उसके पेट को तेजी से पकड़े हुए थी और अपनी चूचियां उसकी पीठ से सटाएं हुए थी। सोनू को यह अनुभूति बेहद पसंद आ रही थी।
एक हाथ में पूजा की टोकरी और दूसरे हाथ से सोनू को पकड़े सुगना अब मंदिर पहुंच चुकी थी।
सुगना और सोनू ने विधिवत पूजा की आज सोनू के लिए भी विशेष दिन था पूजा पाठ में विश्वास कम रखने वाला सोनू भी आज पूरे मन से पूजा कर रहा था पंडित ने दक्षिणा ली और पूजा का सिंदूर सुगना की पूजा की थाली में रख दिया…और बोला..
भगवान तुम दोनों पति-पत्नी को हमेशा खुश रखे।
सोनू मुस्कुरा रहा था सुगना के चेहरे पर हंसी के भाव थे। सुगना ने पंडित से बहस करना उचित नहीं समझा वह चुपचाप सोनू के साथ बाहर आ गई।
सुगना ने सोनू और लाली के सुखद वैवाहिक जीवन की कामना की और अपने पूरे परिवार के लिए खुशियां मांगी।
सोनू समझदार था उसने सिर्फ और सिर्फ अपने ईष्ट से सुगना को ही मांग लिया उसे पता था उसके इस जीवन में रंग भरने वाली सुगना यदि उसके साथ है तो उसके जीवन में सारे सुख और खुशियां स्वयं ही आ जाएंगी।
सुगना की मन्नत पूरी हो चुकी थी और अब सोनू की बारी थी। वापस आते समय मोटरसाइकिल पर बैठी सुगना से सोनू ने कहा..
“ए सोनू तू भी मेरे से हिंदी में बात किया कर”
“काहे दीदी ?”
“जबसे सोनी अमेरिका गई है फिर हम लोग का हिंदी बोलने का आदत छूट रहा है ते मदद करबे तो हिंदी सीखे में आसानी होई “
सुगना की हिंदी को परिमार्जित होने में अभी समय था।
“ठीक है मैडम जी जैसी आपकी आज्ञा मैं भी अब आपसे हिंदी में ही बात करूंगा” सोनू हंसते हुए बोला।
सुगना को मैडम शब्द कुछ अटपटा सा लगा पर उसने उस पर कोई रिएक्शन नहीं दी पर बात को बदलते हुए कहा
“लाली भी ए मंदिर में अक्सर आवत रहली”
“अरे अभी अभी तो हिंदी में बात हो रही थी फिर भोजपुरी चालू हो गइल “
सुगना झेंप गई पर उसने अपना प्रश्न और आसान करते हुए पूछा..
“तू लाली के भी बिकास के फटफटिया पर बैठा के ले आएल रहला ना? “
सोनू को वह दिन याद आ चुका था जब वह लाली को विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर इसी मंदिर में लाया था और पहली बार उसने लाली की बुर के दर्शन भी किए थे।
“तोहरा कैसे मालूम लाली बतावले रहली का?”
“बतावले तो और भी कुछ रहली…” सुगना ने सोनू को छेड़ा
सोनू सुगना का चेहरा देखना चाह रहा था पर यह संभव नहीं था सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा …
“बताव ना लाली तोहर से का बतावले रहली”
“अच्छा चल जाए दे छोड़ दे कुछ खाए पिए के लेले अब भूख लग गैल बा”
“ठीक बा अगला चौराहा पर ले लेब लेकिन एक बार बता त द”
“ओकर चीजुइया एहीजे देखले रहल नू”
सोनू खुश हो रहा था सुगना खुल रही थी।
“कौन चिजुइया दीदी”
“मारब फालतू बात करब त “ सुगना ने बड़ी बहन के अंदाज में सोनू से कहा।
सोनू बार-बार आग्रह करता रहा सुगना टालती रही पर जब सोनू अधीर हो उठा सुगना ने कहा
“अरे उहे जवन तू हमरा से दहेज में लेले बाड़े “
सोनू ने फिर कहा
“ का ? साफ साफ बोला ना दीदी”
सुगना ने सोनू के माथे पर चपत लगाई और जोर से बोली “ललिया के पुआ…”
सुगना से जीतना मुश्किल था..
सोनू ने मोटरसाइकिल के ब्रेक लगा दिए…सुगना एक पल के लिए लड़खड़ा गई उसने सोनू को मजबूती से पकड़ लिया और सोनू की पीठ पर अपनी मदमस्त चूचियों को सटा दिया। उसका मनपसंद होटल आ चुका था सोनू और सुगना दोनों खुश थे।
सोनू और सुगना ने खाना खाया और दोनों घर पर वापस आ गए सोनू की शासकीय गाड़ी को आने में अभी वक्त था और यह वक्त सोनू के लिए बेहद कीमती था।
सोनू सुगना के साथ एकांत में हो और वह उसके आगे पीछे ना घूमें ऐसा संभव नहीं था। सोनू और सुगना के बीच की दूरी सिर्फ और सिर्फ उसके परिवार और समाज की वजह से थी वरना सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे उनकी जोड़ी बेहद खूबसूरत थी एक ही कोख से जन्म लिए दो नायाब नमूने मौका मिलते ही एक हो जाने के लिए तत्पर रहते। दोनों के बीच का चुंबकीय आकर्षण अनोखा था। सुगना भी अब अपना प्रतिरोध त्याग चुकी थी मिलन का सुख उसे भी अब रास आ रहा था।
सोनू के हाव-भाव और आंखों में ललक देखकर सुगना उसकी मंशा समझ गई थी।अब तक सुगना को भी यह अंदाजा हो चला था कि आज उसे खूबसूरत गुलाबी लहंगे का हक अदा करना था जिसे सोनू अपनी होने वाली पत्नी के लिए लाया था परंतु घटनाक्रम कुछ ऐसा बना था कि यह लहंगा सुगना के खाते में आ गया था।
सुगना ने भी सोनू को खुश करने की ठान ली। इधर सोनू अपना कुछ सामान रखने लाली के कमरे में गया उधर सुगना ने अपने बिस्तर पर नई चादर बिछाकर खुद को तैयार किया और एक नई दुल्हन की तरह बिस्तर पर बैठ गई…
सोनू झटपट अपना बैग पैक कर बाहर हाल में आया और सुगना को ढूंढने लगा.
सुगना के कमरे का दरवाजा खोलते ही सोनू की आंखें आश्चर्य से फैल गई। सुगना वज्रासन की मुद्रा में बैठी थी परंतु उसके नितंब उसके एड़ी पर नहीं थे अपितु.. दाहिनी तरफ बिस्तर पर बड़े सलीके से रखे हुए थे. उसकी मदमस्त गोरी जांघें गुलाबी लहंगे के नीचे छुपी तो जरूर थी परंतु उनके मादक जाकर को छुपा पाना असंभव था।
लहंगे के साथ आया दुपट्टा सुगना ने ओढ़ रखी था और घूंघट कर रखा था. सुगना की खूबसूरती को छुपा पाना उसे झीने घुंघट के बस का न था उल्टे उसने सुगना की सुंदरता और भी निखार दी थी।
तरह-तरह के रत्न जड़ित गुलाबी चोली ने सुगना की चूचियों को और भी गोल कर दिया था.. जो चोली से छलक छलक कर मानो अपनी मुक्ति की गुहार लगा रही थीं। सुगना का घाघरा बिस्तर पर करीने से फैल कर एक वृताकार आकर ले चुका था। बीच में सुगना किसी सुंदर मूर्ति की भांति बैठी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे कोई सुंदर नवयौवना सुहाग की सेज पर बैठे अपने पति का इंतजार कर रही हो।
अपने निचले होंठों को दांतों में दबाए सुगना अपनी पलकें झुकाए हुए थी और उसकी खूबसूरत पलकें उसकी आंखों की दरार को आवरण दिए हुए थी सुगना बिस्तर पर न जाने क्या देखे जा रही थी और सोनू सुगना को एक टक देखे जा रहा था । सुगना ने यह क्यों किया था यह तो वही जाने पर सोनू की आंखों के सामने उसकी कल्पना मूर्त रूप ले रही थी।
कुछ देर कमरे में मौन की स्थिति रही.. और फिर वासना का वो भूचाल आया जो सुगना और सोनू के जहां में एक अमित छाप छोड़ गया। यह मिलन उन दोनों के जेहन में ऐसी याद छोड़ गया जिसे वह जीवन भर याद कर रोमांचित हो सकते थे।
सोनू ने सुगना को इस रूप में पाने के लिए न जाने ईश्वर से कितनी मिन्नतें की होगी कितनी दुआएं मांगी होगी उसके बावजूद सोनू को शायद ही कभी यकीन होगा कि यह दिन उसके जीवन में आ सकता है जब सुगना स्वयं सुहागरात के लिए सज धज कर एक दुल्हन की भांति सोनू का इंतजार कर रही हो और मिलन में बिना किसी बंधन या पूर्वाग्रह के पूरी तरह समर्पित हो।
आज का दिन दोनों के लिए महत्वपूर्ण था आज सोनू ने सुगना को दिया वचन निभाया था और सुगना आज स्वयं को पूरी तरह सोनू को समर्पित कर देना चाहती थी.
आज सुगना ने सोनू को प्रसन्न करने के लिए अपनी कामकला जो उसमें सरयू सिंह के साथ सीखी थी उसका परिष्कृत रूप सोनू के समक्ष प्रस्तुत किया था और सोनू बाग बाग हो गया था।
सुगना ने काम कला और कामसूत्र के न जाने कितने आसन सोनू के साथ प्रयोग किए और सोनू को मालामाल कर दिया। सोनू के लिए यह आनंद की पराकाष्ठा थी।
यदि आज स्खलन के समय ईश्वर उसे एक तरफ जीवन और दूसरी तरफ इस स्खलन में से एक चुनने को कहते तो शायद सोनू अपने जीवन का परित्याग कर देता परंतु सुगना की कंपकपाती बुर में स्खलन का आनंद वह कतई नहीं त्यागता। सोनू और सुगना दोनों हाफ रहे थे.. वासना का भूचाल खत्म हो चुका था। अचानक सोनू का ध्यान सुगना की मांग की तरफ गया सोनू के ललाट पर मंदिर में सुगना द्वारा लगाया गया सिंदूर मिलन के समय चुम्मा चाटी के दौरान सुगना की मांग में लग गया था।
“सोनू ने सुगना को चूमते हुए बोला”
“दीदी उठ के शीशा में देख ना?
“का देखी? “
“एक बार उठा त”
सुगना अब भी आराम करना चाह रही थी वह पूरी तरह थक चुकी थी फिर भी सोनू के कहने पर उठकर उसने खुद को शीशे में देखा माथे पर सिंदूर देखकर वह सोनू की तरफ पलटी।
“अरे पागल ई का कईले?
“हम कहां कुछ करनी हां.. का जाने ई कैसे भईल “
सुगना और सोनू दोनों निरुत्तर थे परंतु जो हुआ था वह स्पष्ट था सोनू का सिंदूर सुगना की मांग में स्वत ही आ गया था। सुगना को भली भांति यह ज्ञात था कि यह सिंदूर सोनू ने जानबूझकर उसकी मांग में नहीं लगाया है अपितु यह संयोग उनके मिलन के दौरान अकस्मात रूप से हुआ है।
ऐसा नहीं था कि सुगना अपनी मांग में सिंदूर नहीं लगाती थी। वह अपनी मांग में सिर्फ अपने आप को विधवा नहीं दिखाने के लिए सिंदूर लगाया करती थी क्योंकि रतन अभी जीवित था। वैसे भी उसे सुहागन की तरह रहना और सजना पसंद था। परंतु आज उसकी मांग में जो सिंदूर लगा था वह अलग था अनूठा था।
सोनू और सुगना अब भी दोनों पूरी तरह नग्न एक दूसरे के समक्ष खड़े थे सुगना ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद की ईश्वर को अपने मन में याद किया और बाहें फैला कर सोनू को अपने आगोश में ले लिया और अपने सर को सोनू के कंधे से सटा दिया। सुगना का यह समर्पण अनूठा था।
दोनों के नग्न शरीर एक दूसरे से चिपकते चले गए। सोनू ने जो वीर्य सुगना की चुचियों और पेट पर गिराया था उसकी शीतलता और चिपचिपाहट अब सोनू ने भी महसूस की। वो कुछ पलों तक सुगना को अपने आगोश में लिया रहा फिर उसके गालों को चूमते हुए बोला
“दीदी चल नहा लिहल जाओ बहुत देर हो गइल बा गाड़ी भी आवते होई “
सोनू और सुगना में अब कोई भेद न था दोनों एक साथ ही गुशलखाने की तरफ चल पड़े और एक साथ स्नान का आनंद उठाने लगे यह आनंद धीरे धीरे कामांनंद में तब्दील हो गया, पहल किसने की यह तो नियति भी नहीं देख पाई पर दोनों प्रेमी युगल एक बार फिर एक दूसरे के कामांगो पर रजरस चढ़ाने में कामयाब रहे।
आज सोनू के विवाह का दिन था आखिरकार सोनू ने अपनी सुहागरात दिन में ही मना ली वैसे भी जब विवाह दिन में हुआ था तो सुहागरात के लिए रात का इंतजार क्यों?
पर हाय री सोनू की किस्मत…इधर उसका दिल बाग बाग हो गया था उधर गर्दन का दाग बढ़कर उसके पाप की गवाही देने लगा। आज दाग अपने विकराल रूप में था ऐसा लग रहा था अंदर के लहू को दाग की त्वचा अब काबू में रखने में सक्षम न थी लहू रिस रिस कर बाहर आने को तैयार था। सुगना और सोनू वासना में यदि और डूबे रहते तो निश्चित ही वह दाग एक जख्म का रूप लेकर फूट पड़ता।
सुगना अपने ईश्वर से सोनू का यह दाग हटाने का अनुनय विनय करती रही पर उसे भी पता था शायद ईश्वर उसकी यह बात न पहले मानते आए थे और न हीं अब मानने को तैयार थे।
अब प्रायश्चित करने से कोई फायदा न था। सोनू को इस दाग को अपने साथ लिए ही अपने गांव जाना था। सोनू को अब इस दाग की लगभग आदत सी हो चली थी पर आज दाग का यह रूप उसे भी डरा रहा था।
सोनू की कार को वापस आने में अप्रत्याशित देरी हो रही थी। सोनू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था तो उसने सुगना के साथ मिले समय का भरपूर सदुपयोग किया था. पर सुगना चिंतित थी। दूल्हा उसके साथ था और सीतापुर में दूल्हे का इंतजार था।
सुगना के कहने पर सोनू ने एक बार फिर अपनी शेरवानी पहन ली और गले में शेरवानी के साथ आया दुपट्टा डालकर सुगना के साथ आज यह दुपट्टा जो लड़कियों का यौवन ढकने के काम आता था आज सोनू की आबरू ढकने का काम कर रहा था। सोनू और सुगना अपने गांव सीतापुर की ओर चल पड़े..
सोनू पूरी तरह तृप्त थका हुआ अपने गंतव्य की तरह जा रहा था। उसे अब और किसी सुहागरात का इंतजार न था उसकी सारी तमन्नाएं पूरी हो चुकी थी। उधर सुगना कार की खिड़कियों से लहलते धान के खेतों को देख रही थी। अपने माथे पर लगे सिंदूर के बारे में सोचते सोचते वह न जाने कब उसकी आंख लग गई और वह मन ही मां अपने विचारों में उलझने लगी…
क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?
क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?
सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।
अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…
शेष अगले भाग में…