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Non-Erotic आज रहब यही आँगन [Completed]

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Lutgaya

Well-Known Member
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दिल को छू लेने वाली इस प्यारी कहानी के लिए धन्यवाद
अंजलि जी की अन्य कहानियां भी पोस्ट करें
 

Kachhap

Renbow
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बॉस, और अखिलेश जैसा आदमी की तरह सोच हो तो हमारा समाज सुधार सकता है आप की कहानी बहुत पसंद आयी बहुत बढ़िया कहानी है ! बात सही है इसमें गायत्री का क्या दोष है लेकिन कहानी का अंत बहुत सुखद हुआ
 

Qaatil

Embrace The Magic Within
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“अरे! भैया, आप आ गए ! ये क्या बात हुई ! मैं तो सोने की बालियाँ लूंगी नाग में! हाँ! कैसी सुन्दर सी भाभी लाए हैं! एकदम फूल सी.. एकदम परी! और कितनी गुणी! आज का सारा खाना उन्होंने ही पकाया है। बहुत कम बोलती हैं, लेकिन कितना मीठा बोलती हैं! मेरा तो जानेका मन ही नहीं हो रहा है.. लेकिन मैं कबाब में हड्डी नहीं बनूंगी! आप लोग बात कीजिए, खाना खाइए, मैं आती हूँ शाम को। कुछ मंगाना है बाज़ार से तो फोन कर लीजिएगा!”

कामवाली बाई बिना किसी रोक टोक दनादन बोलती चली जा रही थी । उसकी हर बात अखिलेश के ह्रदय को बींधती जा रही थी !

‘मैं सचमुच कितना स्वार्थी हूँ! सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा। और मैं कितना बड़ा नीच भी हूँ जो एक लड़की पर हाथ उठाया, उसको गन्दी गन्दी गालियाँ दीं.. उस लड़की को, जो मेरी शरण में आई थी, जिसकी सुरक्षा करना, ख़याल रखना, मेरा धार्मिक उत्तरदायित्व है। हे प्रभु, मुझे क्षमा करें! अब ऐसी गलती नहीं होगी। मेरे पाप का जो दंड आप देना चाहें, मुझे मंज़ूर है। लेकिन इस लड़की को खुश रखे! बहुत दुखिया है बेचारी!”

अखिलेश की आँखों से आँसू झरने लगे। गायत्री सर झुकाए खड़ी थी, और अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी। अचानक ही उसने अखिलेश का हाथ और सर अपने पॉंव पर महसूस किया। अपने पति को ऐसा कलंकित काम करते देख कर वो घबरा गई और बोली,

“अरे! आप यह क्या कर रहे हैं!”

अखिलेश को लगा कि जैसे घुंघरुओं की मीठी झंकार बज गई हो.. ऐसी रसीली और खनकदार आवाज़!

“माफ़ कर दो मुझे! मैं तुम्हारा अपराधी हूँ! मैं पापी हूँ।”

“नहीं नहीं! आप मेरे पैर मत पकिड़ए। आपने कुछ भी गलत नहीं किया,! अम्मा और बाउजी ने ही जबरदस्ती कर दी। मेरे
पैर पकड़ कर आप मुझे और दंड न दीजिए। मैं आपकी दासी बन कर एक कोने में रह लूंगी।”

“नहीं! दासी नहीं! पत्नी दासी नहीं होती। पत्नी अर्द्धांगिनी होती है। मेरा सब कुछ अब से तुम्हारा है। तुम इस घर की स्वामिनी हो।”

“जी?” क्या कह रहे हैं, ये?

“हाँ! तुमको जैसा ठीक लगे, वैसे यह घर चलाओ..”

“लेकिन..”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं.. ये पति के रूप में मेरा तुमको पहला और अंतिम आदेश है। बस !”

गायत्री भाव विभोर हो गई। उसको समझ नहीं आया कि क्या कहे! गाला रूँध गया।

“अपना नाम बताओगी ?”

“जी, गायत्री!”

“और मैं अखिलेश हूँ।” उसने हाथ आगे बढ़ाया, “नाईस टू मीट यू!”

“जी?” गायत्री का हाथ भी उसका बढ़ा हुआ हाथ मिलाने के लिए स्वतः ही बढ़ गया।

“तुमसे मिल कर अच्छा लगा मुझे!”

गायत्री मुस्कुराई। अखिलेश की इस एक बात से उसके ह्रदय का सारा बोझ जैसे उतर गया।

“उम्मीद है कि तुम मेरे साथ साथ बूढ़ी होना पसंद करोगी!”

उसके गले से एक मीठी हंसी छूट गई, ‘कैसी मजािकया बात करते हैं ये!’

“आप खाना खा लीजिए।”

“आपके साथ !”

“मैं आपके खाने के बाद...”

“आपके साथ !”

“जी!”

“और एक बात.. मेरे सामने भी आप घूंघट काढ़ के रहेंगी?”

“जी?”

“मुझे आपको देखना है।“

“मैं तो आपकी ही हूँ...”

“तो फिर?”

“मेरा घूंघट तो खुद मैं भी नहीं हटा सकती। ये काम सिर्फ आप कर सकते हैं।”

अखिलेश ने बढ़ कर गायत्री का घूंघट हटा दिया। ऐसी रूपवती लड़की को देख कर उसको चक्कर आते आते बचा।

‘कैसी किस्मत!’

“खाना खा लें? आपने तो कल से कुछ खाया भी नहीं।”

‘मतलब उन्होंने ध्यान दिया है’ गायत्री ने सोचा।

“आप बैठिए, मैं परोस देती हूँ।”

******************************************************************

खाने के बाद कमरे में जा कर देखा तो ऐसी सुन्दर व्यवस्था देख कर वो अचंभित रह गया ! उसे उम्मीद ही नहीं थी कि उसके पास जितने सामान थे, उससे घर को इतना सुन्दर सजाया जा सकता है।

“मेरी छुट्टी है, दो तीन हफ़्ते की!” अखिलेश ने अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए कहा, “हनीमून के लिए ! हनीमून जानती हो किसको कहते हैं?”

“जी नहीं!”

“इधर आओ ।“

गायत्री छोटे छोटे डग भरती अखिलेश के पास आ गई। अखिलेश ने गायत्री को अपने आलिंगन में भर कर उसका गाल चूम लिया। फिर होंठ। फिर गर्दन। फिर धीरे धीरे उसकी ब्लाउज के बटन खोलते हुए उसने कहा,

“अभी जो हम करने वाले हैं, उसको कहते हैं!”

जो कोमल भावनाएँ गायत्री ने कभी जवान होते हुए अपने मन में जन्मी थीं, वही भावनाएँ उसके मन में पुनः जागृत होने लगीं। पुरुष का स्पर्श कैसा होता है, उसकी तो वह बस कल्पना ही कर सकती थी, लेकिन उसके पति का स्पर्श इतना प्रेम भरा,इतना कोमल, इतना आश्वस्त करने वाला लगा, कि उसने तुरंत ही के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया। जब उसने अपने पति का चेहरा अपने स्तनों के बीच पहली बार महसूस किया, तो उसने मन ही मन सोचा, ‘अब सब ठीक होय जाई..’

(समाप्त)
Shandar ❤️❤️❤️❤️
 

Nagaraj

Member
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बहुत सुंदर कहानी दिल को झकझोर दिया। आपकीं संयोग का सुहाग भी बहुत ही अच्छी लगी। वास्तव मे कहानी ऐसी ही होनी चाहिए जो साथ साथ कुछ प्रेरणा भी दें।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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दिल को छू लेने वाली इस प्यारी कहानी के लिए धन्यवाद
अंजलि जी की अन्य कहानियां भी पोस्ट करें
Bahut bahut dhanyavaad! :)
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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बॉस, और अखिलेश जैसा आदमी की तरह सोच हो तो हमारा समाज सुधार सकता है आप की कहानी बहुत पसंद आयी बहुत बढ़िया कहानी है ! बात सही है इसमें गायत्री का क्या दोष है लेकिन कहानी का अंत बहुत सुखद हुआ

जी बिलकुल! ऐसी सोच हो जाए, तो क्या नहीं हो सकता देश में!
जिस घटना को देख कर अंजलि ने यह कहानी बनाई थी, वो बहुत दुःख-भरी थी.
इसलिए उसने इस कहानी को एक सुखद अंत दिया।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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बहुत सुंदर कहानी दिल को झकझोर दिया। आपकीं संयोग का सुहाग भी बहुत ही अच्छी लगी। वास्तव मे कहानी ऐसी ही होनी चाहिए जो साथ साथ कुछ प्रेरणा भी दें।
जी - बहुत बहुत धन्यवाद!
हमारी कोशिश तो यही रहती है, कि मनोरंजन के साथ अगर एक दो प्रेरणाएँ मिल जाएँ तो बढ़िया!
बचपन में माँ कहानी सुनाने के बाद हमेशा पूछती थीं, "तो बेटा, इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?" :)
 
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