Update - 21
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दीप्ति ने धीरे से सिर हिलाया और शोभा को अपने ऊपर से हटने का इशारा दिया.
शोभा अचंभित सी जब खड़ी हुई तो दीप्ति ने उसकी अधखुली साड़ी को खींच कर उसके शरीर से अलग कर दिया.
उसके सामने खड़ी औरत के चूचें उत्तेजना के मारे पत्थर की तरह कठोर हो गये थे.
दोनों निप्पल भी बिचारी तने रह कर दुख रहे होंगे.
शोभा ने अपने बाल खोल दिये.
उसका ये रुप क्या औरत क्या मर्द, सभी को पागल करने के लिये काफ़ी था.
दीप्ति ने पेटीकोट के ऊपर से ही दोनों हथेलियों से शोभा की गांड को दबोचा.
थोङा उचक कर उसके होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसके मुहं मे अन्दर बाहर करने लगी.
"लेट जाओ, मैं तुम्हारा बदला चुकाना चाहती हूँ. मैं भी तुम्हें जी भर के प्यार करना चाहती हूं."
दीप्ति की इच्छा सुनकर शोभा टेबिल और सोफ़े के बीच में अपनी खुली हुई साड़ी को बिछा उसी पर लेट गय़ी.
"पता नहीं जितना तुम जानती हो उतना मैं कर पाऊंगी या नहीं लेकिन मुझे एक बार ट्राई करने दो" दीप्ति उसके ऊपर आती हुई बोली.
पहले की भांति दीप्ति ने फ़िर से अपने स्तनों को शोभा के चेहरे के सामने नचाकर उसे सताना शुरु कर दिया.
शोभा ने गर्दन उठा उसके स्तनों को होठों से छुने की असफ़ल कोशिश की तो दीप्ति खिलखिला कर हँस पड़ी.
पीछे सरकते हुये दीप्ति अब शोभा की जांघों पर बैठ गय़ी और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया.
दोनों हाथों से पकड़ कर पहले पेटिकोट को पैंटी की इलास्टिक तक खींचा और फ़िर पैंटी को भी पेटीकोट के साथ ही उतारने लगी.
शोभा ने तुरन्त ही कमर उठा कर दोनों वस्त्रों को अपने भारी नितम्बों से नीचे सरकाने में मदद की.
पैन्टी चूत के पास पूरी गीली हो चुकी थी तो उतरते समय चप्प की आवाज के साथ सरकी.
अब सिर्फ़ कन्धों पर झूलते खुले हुए ब्रा और ब्लाऊज के अलावा शोभा भी पूरी तरह नन्गी थी.
दीप्ति ने प्यार से शोभा की नाभी के नीचे बाल रहित चिकने त्रिकोण को निहारा.
अपने घर से निकलने से पहले शोभा ने अजय से पुनर्मिलन की क्षीण सी आस में अपनी झांटे कुमार के रेजर से साफ़ कर दी थीं.
दीप्ति के मुहं में ढेर सारी लार आने लगी.
हाय राम ये कैसी प्रतिक्रिया है?
धीरे से दीप्ति ने शोभा की एक टांग को उठा कर टेबिल पर रख दिया और दूसरी को सोफ़े पर.
दीप्ति तो उन दो उठी हुई टांगों के बीच में घुस कर उस बिचारी चूत पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी.
दीप्ति का अनुभव भले ही कम था परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति के कारण अपनी प्यारी देवरानी की चूत को जी भर के चाट सहला रही थी.
अब किसी को प्यार करने के लिये कोई कायदा कानून तो होता नहीं भाई और फ़िर ये तो खेल ही अवैध संबंधों का चल रहा था.
दीप्ति के इस जोश भरे धावे को अपनी कोमल चूत पर सहना शोभा के लिये जरा मुश्किल हो रहा था.
लेकिन दीप्ति जो जैसे जानवर हो गयी थी.
बलपूर्वक शोभा को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या चूत, क्या पेड़ू सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी.
"दीदी, जरा आराम से, प्लीज". शोभा ने याचना की.
पर दीप्ति के कान तो बन्द हो गये थे.
मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ चूत के होंठों से रस पी रही थी.
अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी शोभा पर.
पहले अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया.
फ़िर चूत के उभरे हुये होंठों को चबाया और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी लचीली जीभ को पूरा का पूरा उस गुलाबी सुरन्ग में घुसेड़ दिया.
शोभा का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था.
दीप्ति अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी चूत अगले दो दिन तक किसी से चुदने के काबिल नहीं रहेगी.
होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था.
शोभा ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया.
उधर दीप्ति भी तरक्की पर थी.
शोभा ने तो दो उन्गलियाँ अन्दर डाली थी.
दीप्ति ने एक साथ तीन उन्गलियां शोभा की नरम चूत में घुसेड़ दी.
उन्गलियों के घर्षण के कारण एक बार के लिये शोभा की चूत में जलन मच गई और उसके मुहं से जोर से आह निकली.
लेकिन दीप्ति ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना हाथ आगे पीछे करना जारी रखा.
शोभा का शरीर भी इस उन्गली चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा.
तभी दीप्ति को याद आया की कैसे छोटी ने उसकी क्लिट को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रही थी.
उसे अपनी चूत पर वो बिन्दु भी अच्छे से याद था जो अकेला ही उसके नारी शरीर को थरथराने के लिये काफ़ी था.
दीप्ति के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे शोभा कि चूत के मुहाँने को सहलाने.
थोड़ी ही देर में उसे भी शोभा की चूत के ऊपर ठीक वैसा ही मटर के दाने जैसा हिस्सा मिल गया जो अब धीरे धीरे उभर कर काफ़ी बड़ा हो गया था.
उन्गलियों से चूत चोदन जारी रख कर दीप्ति की जीभ उस छोटे से मांसपिण्ड पर सरकी.
शोभा के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी
"दीदीईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी चूत.....", "माई गॉड, आप सच में, सच में...ओह्ह्ह मां".
"क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?"
दीप्ति ने शोभा के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा देवरानी के चेहरे के सामने किया.
हरेक क्या - क्या के साथ अपनी उन्गलियां उसकी चूत में और गहरे तक मार रही थी.
"रंडी है आप दीदी, रंडीईईई...", "ओह दीदीईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे आपकी पूरी जीभ चाहिये अपनी चूत में..." शोभा मस्ती में कराही.
"और मेरी उन्गलियां? ये नहीं चाहिये तुम्हें?" एक झटके में अपना हाथ शोभा की तड़पती चूत में से खींच लिया.
शोभा ने हाथ बढ़ा दीप्ति की कलाई को थाम लिया.
"नहीं दीदी ऐसा मत करो. मुझे सब कुछ चाहिये. सब कुछ जो आप के पास है. मैं सब कुछ ले लूंगी अपने अन्दर. उससे भी ज्यादा. और ज्यादा...आह" कहते हुये शोभा ने वापिस अपनी जेठानी का हाथ अपनी उछलती चूत पर रख दिया.
दीप्ति फ़िर से पुराने तरीके से शोभा की चूत मारने और चाटने लगी.
परन्तु अब शोभा को और ज्यादा की चाह थी.
वो उठ कर बैठ गय़ी.
दीप्ति उसे बाहों में भरने के लिये बढ़ी तो शोभा ने उसे धक्का देकर नीचे लिटा दिया.
और फ़िर दीप्ति के ऊपर आते हुये शोभा ने अपनी टपकती चूत दीप्ति के मुहं के ऊपर रख दी.
शोभा के दोनों हाथ दीप्ति के सिर के पास जमीन पर टिके हुये थे और गांड हवा में उठी हुई थी.
धीरे से धड़ नीचे करते हुये शोभा ने अपनी चूत को दीप्ति के होठों पर स्थापित कर दिया.
दीप्ति ने हाथ बढ़ा शोभा की पिछली गोलाईयों को जकड़ा और सामने से भांप निकालती चूत को अपने मुहं में भर लिया.
इधर नीचे दीप्ति पूरी बेरहमी से अपनी जीभ शोभा की चूत में रगड़ रही थी और ऊपर शोभा बहुत धीरे धीरे शरीर को आगे पीछे कर के अपनी क्लिट को दीप्ति के अगले दांतों पर रगड़ा रही थी.
जबर्दस्त सामंजस्य था दोनों का.
आगे जो हुआ उसका दोनों औरतों को कोई गुमान नहीं था. ना तो दीप्ति को आज तक ऐसा आर्गैज्म आया था ना ही शोभा को.
लेकिन शोभा के उछलते चूतड़ों की बढ़ती गति और सिकुड़ते फ़ैलते चूत के होठों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि अब क्या होने वाला है.
जब शोभा की चूत की दीवारों से पानी छूटा वो जैसे अन्दर ही अन्दर पिघल गई वो.
हरेक झटके के साथ उसका पेट भिंच जाता और फ़िर जोरों से एक हल्की सुनहरी धार चूत से फ़ूट पड़ती.
अपने ही हाथों से अपने दुखते चूचों को बेदर्दी से मसल रही थी.
उधर नीचे पेट में बच्चेदानी भी अपने आप ही फ़ैल सिकुड़ रही थी.
शोभा का खुद पर से काबू खत्म ही हो गया.
उसका झड़ना रुक ही नहीं रहा था. एक एक बाद एक लगातार आती बौछारों से दीप्ति का पूरा चेहरा भीग गया.
शोभा को दिलासा देने के लिये की वो उसके नितम्बों को कस कर निचोड़ रही थी.
ढेर सारा गाढ़ा द्रव्य पी लेने के कारण दीप्ति का गला अवरुद्ध हो गया पर वो लाचार थी.
दम घुटने लगा तो जोर से मुहं से सांस ली और दुबारा से एक साथ शोभा की चूत में रुका हुआ पानी उसके गले में भर गया.
पर उसने चूत पर जीभ चलाना नहीं छोड़ा.
शोभा का बदन अभी तक उत्तेजना और आनन्द के कारण कांप रहा था.
थोड़ी देर में शोभा सुस्त हो कर दीप्ति के ऊपर ही गिर पड़ी.
इस शक्तिशाली ओर्गैज्म ने उसके शरीर से पूरी ताकत निचोड़ ली थी. शोभा की चूत अभी तक दीप्ति के चेहरे पर रस टपका रही थी.
दीप्ति को समझ में नहीं आ रहा था कि इतने पानी का वो क्या करे.
खा पीकर ही तो शुरु की थी ये प्रणय क्रीड़ा दोनों ने और अब तो शोभा के पानी से भी उसका पेट भर गया था.
उसके होठों से नकारे जाने पर वो चिकना द्रव्य दीप्ति के गालों और बालों से बहता हुआ जमीन तक आ गया और धीरे धीरे सरकते हुये उसके पैरों तक पहुंच गया.
अब दोनों ही औरते एक दूसरे के रस से लथपथ हुई पड़ी थीं.
शोभा दीप्ति के शरीर पर से उतर कर जमीन पर उसके बाजु में आ गयी और उसकी तरफ़ चेहरा कर लेट गयी.
दीप्ति ने शोभा की टांग उठा कर अपने ऊपर रखी और इस प्रकार दोनों औरतों की चूत एक दुसरे से चिपक गई.
एक दूसरे को बाहों में लिये दोनों ही काफ़ी देर तक चुपचाप पड़ी रहीं.
दोनों के जीवन में ऐसा पहले कभी ना हुआ था.
दीप्ति शोभा को सहलाते पुचकारते हुये वापिस होशोहवास में आने में मदद कर रही थी.
"आपमें और मुझमें कोई मुकाबला नहीं है दीदी." शोभा बुदबुदाई.
"जैसे अजय आपका है वैसे ही मैं भी आपकी ही हूं. आप हम दोनों को ही जैसे मर्जी चाहे प्यार कर सकती है. अगर ये सब मुझे आप से ही मिल जायेगा तो मैं किसी की तरफ़ नहीं देखूंगी" कहते हुये शोभा ने अपनी आंखें नीची कर ली.
शोभा के बोलों ने दीप्ति को भी सुधबुध दिलाई को वो दोनों इस वक्त हॉल में किस हालत में है.
कुशन, कपड़े और फ़र्नीचर, सब बिखरा पड़ा था.
इस हालत में तो दुबारा पहले की तरह कपड़े पहन पाना भी मुश्किल था.
दीप्ति ने शोभा की गांड पर थपकी दी और बोली, "छोटी, हम दोनों को अब उठ जाना चाहिये.
कोई आकर यहां ये सब देख ना ले".
"म्म्मं, नहीं", शोभा ने बच्चों की तरह मचलते हुये कहा और दीप्ति के एक मुम्मे को मुहं में भर लिया.
दीप्ति ने समझ बुझा कर उसे अपने से अलग किया.
हॉल में बिखरे पड़े अपने कपड़ों को उठा कर साड़ी को स्तनों तक लपेट लिया और ऊपर अपने कमरे की राह पकड़ी.
जाती हुई दीप्ति को पीछे से देख कर शोभा को पहली बार किसी औरत की मटकती गांड का मर्दों पर जादुई असर का अहसास हुआ.
दीप्ति ने पलट कर एक बार जमीन पर पसरी पड़ी शोभा पर भरपूर नज़र डाली और फ़िर धीमे से गुड नाईट कह ऊपर चढ़ गई.
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...to be continued