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Incest चाची - भतीजे के गुलछर्रे

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin updates hai… ek dum new ideas fit kar rahen hai ap story ko or rochak banane ke liye … 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

vakharia

Supreme
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Wah vakharia Bhai,

Kya mast update post ki he aapne, uttejna aur kamukta se bharpur............

Ab bahut hi jald munni ka number lagne wala he................Anurag ka daso ungli ghee me aur sar kadhayi me he...............

Keep posting Bhai
Thanks bhai :heart:
 

Ek number

Well-Known Member
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मैं जाकर उनके पास नीचे बैठ गया. उनकी आँखों में आँखें डालकर बोला "हाँ माया चाची, आप तो मेरी जान हो. आज से आप छत पर नहीं मूतेंगी." फ़िर रुक कर बोला. "इस शरबत के लिये तो मैं कब से मरा जा रहा हूँ. पर डरता था कि आप बुरा न मान जाएँ. मेरे मुंह में मूतिये माया चाची, एक बूंद नहीं छलकने दूंगा. चलिये बिस्तर पर."

चाची खिल उठीं. "सच कहते हो लल्ला? मेरे दिल की बात कह दी. मैंने भी बहुत किताबों में पढ़ा है और एक दो तस्वीरें भी देखी हैं. मन करता था कि किसी अपने प्यारे के साथ ऐसा करूँ. इसी बच्ची ने आखिर कहा कि अनुराग भैया से कहती क्यों नहीं. बड़ी बदमाश है. कहती है कि उसकी सहेली की बहन तो रोज अपने पति के मुंह में मूतती है. इन दोनों ने कई बार छुपकर देखा है."

मुन्नी ने चाची को चिढ़ाकर कहा. "अब अनुराग भैया तो मान गये, अब मारने दोगी गांड?" चाची ने हंस कर कहा. "बिलकुल, पर एक शर्त है अनुराग." मैंने धडकते दिल से पूछा "क्या शर्त है चाची? बोल कर तो देखो?"

वे सीरियस होकर बोली. "सिर्फ़ मेरा ही नहीं, इस बच्ची का भी मूत पीना पड़ेगा. इसने राह दिखायी है, इसे भी इनाम मिलना चाहिये." मुन्नी टेन्शन में मेरी ओर कुछ शरमा कर देख रही थी कि मैं क्या कहता हूँ. जवाब में मुन्नी की चूत को चूम कर मैं बोला. "यह तो ऐसा हो गया चाची कि अंधा मांगे एक आँख और मिल जाएँ दोनों. तुम्हारे बुर के शरबत के साथ इस कन्या की चूत की शराब भी मिल जाये तो क्या कहने."

दोनों खुशी से उछल पड़ीं. मैं नीचे लेट गया. "आज यहीं खुली छत पर मेरे मुंह में मूत लो चाची. कल से बिस्तर पर ही कर लेना." चाची उठ कर मेरे सिर के दोनों और पाँव जमाकर घुटनों के बल बैठ गयी. "देख लल्ला, अब रोज की बात है, दिन में भी यही होगा! मना तो नहीं करेगा." जवाब में मैंने उन्हें नीचे खींच कर उनकी बुर चूम ली. "अब करो भी चाची, प्यास लगी है." मुन्नी भी बिलकुल पास आकर बैठ गयी कि ठीक से इस क्रीडा को देख सके.

चाची ने मेरा सिर पकडकर स्थिर किया और निशाना लगाकर मेरे मुंह में मूतने लगी. उस खारे गरमागरम शरबत को मैं गटागट निगलने लगा. मुझे अपना मूत पीते देख चाची ऐसी गरमाई कि बिना रुके और जोर से मूतने लगी. मैं चुपचाप पीता रहा पर मुन्नी ही मेरे मन की बात समझ कर बोली. "क्या मौसी तुम भी? धीरे धीरे मूतो ना! आखिर भैया को भी आराम से पीने दो, स्वाद तो लगे, अभी तो बस गटागट निगले जा रहा है बेचारा."

चाची थोड़ा शरमायीम और फ़िर रुक रुक कर मूतने लगी जिससे मुंह में भरे मूत को मैं ठीक से चख सकूँ. जब तक उनका मूतना समाप्त हुआ, वे ऐसी गरम हो गई कि सीधे मेरे मुंह पर बैठ कर अपनी चूत मेरे होंठों पर रगड रगड कर एक मिनिट में स्खलित हो गयी. मुझे बोनस में शरबत के साथ शहद भी मिल गया. झड़ते हुए मेरे बाल प्यार से सहला कर बोली. "मजा आ गया लल्ला. तू नहीं समझेगा. असल में अपने किसी को अपने शरीर का रस पिलाना औरतों को बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि अपना कर्तव्य पूरा कर रही हूँ तेरी प्यास बुझा कर. मेरा बस चले तो अपने शरीर का हर रस तुझे दे दूँ."

अब मुन्नी की बारी थी. उसकी आँखें भी कामुकता से चमक रही थी. "भैया, मैं तो खड़े खड़े ही मूतूँगी, हम लड़कियां स्कूल में अक्सर ऐसे ही करती हैं, नीचे बैठा नहीं जाता, इतनी गम्दगी होती है इसलिये." और वह अपनी टाँगे फ़ैलाकर खड़ी हो गयी.

उसकी बात मान कर मैं उसकी टांगों के बीच मुंह खोल कर सिर ऊपर करके बैठ गया. उसने मेरा सिर पकडकर निशाना लगाया और रुपहली धार मेरे मुंह में गिरने लगी. मुन्नी ने बड़े प्यार से अपना मूत मुझे पिलाया. मुंह भरते ही रुक जाते थी जिससे मैं स्वाद ले सकूँ. उधर चाची पास आकर मुन्नी से लिपटकर खड़ी हो गई और उस बच्ची के चुंबन लेते हुए और उसके कच्चे उरोज दबाते हुए पास से इस अनूठे काम को देखने का मजा लेने लगी.

चाची की धार जहाँ मोटी और धीमी थी, मुन्नी की एकदम पतली और तेज थी, पिचकारी जैसी. स्वाद दोनों का एकदम मस्त था, बुर की सौंधी खुशबू से भिना हुआ. आखिर मुन्नी का पूरा मूत पीकर मैं उठा और उसे उठा कर बिस्तर पर ले गया. वहाँ पटककर पहले उसकी बुर चूसी और फ़िर चाची पर चढ कर उन्हें चोद डाला.

चाची कहती ही रह गई. "अरे गांड नहीं मारेगा क्या, मैंने वायदा किया है तुझ से." मैंने कहा. "ऐसे सस्ते में थोड़े छोड़ूँगा चाची! आज तो झड़ झड़ कर लंड मुरझा गया है, तुम तो आराम से ले लोगी गांड में. कल दोपहर को मारूँगा, मस्त खड़ा कर के. आप को भी तो पता चले कि जब मस्त सूजा लंड गांड में जाता है तो कैसा लगता है. उस रात को खड़ा किया था, उससे भी मोटा होगा कल."

दूसरे दिन सुबह से बड़ा सस्पेंस का माहौल था. चाची और मुन्नी में रोज की तरह नौकरानी की आँख बचाकर एक दो बार चूमा चाटी हुई पर मैं अलग से मन शांत कर के बैठा था. लंड को जितना हो सकता था उतना आराम दे रहा था. मेरी ओर कनखियों से देख कर मुन्नी हंस रही थी, उसे मालूम था कि मैं क्यों चुप बैठा हूँ.

आखिर दोपहर हुई और हम हमेशा की तरह चाची के कमरे में इकठ्ठे हुए. कपड़े निकालने के बाद पहला काम मैंने यह किया कि दोनों का मूत पिया. वहीं कमरे के फ़र्श पर लेटकर और उन दोनों चुदैलो को अपने मुंह पर बिठाकर. दोनों को यह अपेक्षित नहीं था, उन्हों ने सोचा था कि कल रात वाली बात तो मौके पर वासना के अतिरेक में हो गयी थी. पर जब मैंने खुद ही उनका मूत पीने में पहल की, यह कहते हुए कि मैंने कल ही कहा था कि आज से मेरी दोनों खूबसूरत साथिने मेरे मुंह के सिवाय कही नहीं मूतेंगी, तो मुन्नी मेरे मुंह में मूतते हुए शैतानी से बोली.

"भैया, हाय पहले मालूम होता तो आपका चार पाँच गिलास शरबत बेकार नहीं जाता. मैं और मौसी सुबह से दो बार बाथरूम जा चुके हैं." चाची ने उसे हटाकर मेरे मुंह पर बैठते हुए उसे डाँट लगायी. "चुप कर शैतान, नौकरानी के आगे आखिर क्या करते? बोतल में मूत कर अनुराग लल्ला के लिये रखते?"

चाची का मूत पीने के बाद होंठ पोंछते हुए मैंने जवाब दिया. "हाँ चाची, प्लीज़, कल से चार पाँच बड़ी पेप्सी की बोतलें धो कर रख दो. जब मेरे मुंह में मूतना सम्भव न हो, तो दोनों इन बोतलो का इस्तेमाल करके उन्हें फ़्रिज़ में रख दिया करो. मैं बाद में पी लूँगा. इस अमृत की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाना चाहिये."

खैर! उसके बाद चाची और मुन्नी का बाथरूम जाना ही बंद हो गया. मेरे होते उन दोनों को कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. बोतलों की जरूरत भी नहीं पड़ी क्योंकी जब भी पिशाब लगती, वे चुपचाप मुझे कही अकेले में ले जातीं, अपने साड़ी या स्कर्ट ऊपर करती और मेरे मुंह में मूत देती. मेरा मुंह उनका यह अमृत पीने के लिये सदा हाजिर होता. मैंने कभी एक बूंद नहीं छलकायी इसलिये आराम से बिस्तर में लेटे लेटे भी यह काम दोनों कर लेती थी. मुझे भी उन दोनों चुदैलो के मूत का ऐसा चसका लगा कि आदत ही लग गयी. आज भी अपने सेक्स पार्टनर का मूत पीने में मुझे बड़ा मजा आता है.

अब तक उन दोनों मद भरी बुरों के शरबत ने मेरा लंड खड़ा कर दिया था. सोलह घंटे के आराम के बाद वह अब मस्त तन्ना रहा था. "अब देखिये चाची, अब यह इस अवस्था में है कि आप की गांड की प्यास बुझा सके." चाची थोड़ा घबरा कर उसकी ओर देख रही थी. पर नजर में बड़ी मादक प्यास भी थी. "नहीं लल्ला, अभी माफ़ करो, रात में मार लेना."

"जब फ़िर मुरझा जाये? नहीं मौसी तुमने वायदा किया था भैया से, चलो गांड मराओ." मुन्नी मेरा साथ देती हुई अपनी बुर रगड़ती हुई बोली. उसे बड़ा मजा आ रहा था. अपने लंड को और कस कर खड़ा करने का मुझे अचानक एक उपाय सूझा. आज मैं जरा दुष्ट मूड में था और यही सोच रहा था कि जितना हो सके लंड को मस्त करूँ ताकि माया चाची कुछ और जोर से बिलबिलाये गांड मराते समय. आखिर मुझे भी तो इतने दिन का हिसाब वसूलना था. बस मुझे अपने आप पर पूरा कंट्रोल रखना जरूरी था.

"माया चाची, चलो एक काम करते हैं. आप दोनों मिलकर मेरे लंड से खेलो, चूसो, कुछ भी करो. बीस मिनिट का समय देता हूँ. अगर मुझे झड़ा लिया तो आपकी गांड बच जायेगी. नहीं तो फ़िर बिना तेल लगाये ही मारूँगा, आपको तड़पा तड़पा कर और मजा लेने के लिये. बोलो है मंजूर?"

चाची ने कुछ देर सोचा और एक शर्त अपनी भी रख दी. आखिर पक्की छिनाल जो थी. "ठीक है लल्ला, पर भले तेल न लगाना, चूसना जरूर पड़ेगी. मेरी गांड का छेद मुंह से और जीभ से गीला करना पड़ेगा, बोलो है मंजूर?" उन्हें लगा कि शायद मुझे गंदा लगे इसलिये मैं न मानूँ पर मैं तुरंत तैयार हो गया. मेरी प्यारी मतवाली चाची की गांड चूसना तो मेरे लिये मानों एक और उपहार था.

घड़ी में बीस मिनिट का अलार्म लगाया गया और फ़िर दोनों मिलकर मेरे लंड पर टूट पड़ीं. बारी बारी से चूमने और चूसने लगी. चाची बीच बीच में उसे अपने गोल मटॊल स्तनों के बीच पकड कर बेलन जैसे रगड़ने लगतीं. कभी अपने घने बालों में लपेट लेती. मुन्नी भी बड़े चाव से चाची का साथ दे रही थी.

दस मिनिट में भी जब मैं न झड़ा तो चाची थोड़ा घबराई. मुन्नी को बोली. "बेटी तू इसके मुंह पर चढ जा, इसे अपनी चूत चुसवा. मैं इसे चोदती हूँ, देखें कैसे नहीं झड़ता."

मुन्नी मेरे मुंह पर बैठ गयी और मैं जीभ डालकर उस कोमल मखमली कच्ची बुर का रस पीने लगा. उधर चाची मुझ पर चढ कर मुझे चोदने लगी.

अगले दस मिनिट मेरी परीक्षा के थे पर मैं खरा उतरा. किसी तरह अपने सुख से मचलते लंड पर काबू किये रहा. मुन्नी की चूत के रस ने और चाची की बुर के घर्षण ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि मेरा लंड घोड़े के लंड जैसा खड़ा हो गया. आखिर अलार्म बजा तो मुन्नी उठ कर खड़ी हो गयी. कई बार मेरे मुंह में झड़ कर तृप्त हो गयी थी. हंस कर चाची को बोली. "चलो मौसी तुम शर्त हार गई, अब तो गांड मराना ही पड़ेगी."

चाची भी कई बार झड़ चुकी थी. हांफते हुए लस्त होकर किसी तरह मेरे लंड को अपनी गीली बुर में से खींच कर निकाला तो लोडे की साइज़ देखकर उनकी आँखें पथरा गई. "हाय लल्ला, यह तो और मुश्टंडा हो गया. लगता है मैंने अपनी कब्र खुद बना ली, तू मार डालेगा मुझे बेटे, दया कर, चोद ले अभी, गांड बाद में मारना." पर डरने का सिर्फ़ बहाना था, उनकी आँखों में गजब की कामुकता थी. गांड चुदाने को वे भी मरी जा रही थी.

उनकी एक न मान कर मैंने उन्हें उठा कर बिस्तर पर औंधे लिटा दिया. वे बोली. "मुन्नी बिटिया, गांड तो मुझे मरवाना ही है तो ऐसा कर, तू मेरे नीचे उलटी तरफ़ से आ जा रानी. सिक्सटी नाइन करते हुए मरवाऊँगी तो दर्द थोड़ा कम हो जायेगा." मुन्नी तपाक से उनके नीचे घुस गयी. अपनी टाँगे खोलती हुई बोली. "लो चूसो मौसी" फ़िर मौसी के चूतड पकडकर उनकी बुर चाटती हुई मुझसे बोली. "अनुराग भैया, मुझे तो बिलकुल बाल्कनी की सीट मिल गयी शो देखने को. दो इंच दूर से मौसी की गांड में तुम्हारा लोडा घुसते देखूँगी."

मैं झुक कर अपनी जीभ और होंठों से चाची के नितंबों की पूजा करने लगा. जब उनके गुदा में जीभ डाली तो वे सिहर उठीं. उनकी गांड का छेद पकपकाने लगा और मेरी जीभ को पकडने लगा. गांड का सौंधा खटमिठ्ठा स्वाद लेते हुए मैंने खूब गांड चूसी और फ़िर आखिर बिस्तर पर चढकर उनके गुदा पर लंड जमाता हुआ बोला. "मुन्नी जरा हेल्प कर, अपनी हाथों से तेरी मौसी की गांड चौड़ी कर." मेरी सुपाड़ा फ़ूल कर टमाटर सा हो गया था और मौसी की गांड में उसका घुसना असंभव सा लग रहा था.

मौसी की बुर में जीभ डालकर मुन्नी ने अपनी पूरी शक्ति से उनके गोरे नितंब फ़ैलाये. मैंने कस के लंड पेला और सुपाड़ा अंदर घुसेड दिया. मौसी के मुंह से एक चीख निकल गयी. "मार डाला रे मुझे तूने बेदर्दी, फ़ाड दी मेरी." मैं हंसते हुए बोला. "नहीं चाची, ऐसे थोड़े फ़टेगी आपकी गांड, आखिर मारने के लिये ही बनाई है कामदेव ने तो फ़टेगी कैसे. हाँ, आप भी गुदा ढीला कीजिये नहीं तो दर्द होगा ही."

चाची अपना दर्द कम करने को मुन्नी की चूत चूसने लगी. मुन्नी ने भी अपनी गोरी कमसिन जांघें उसके सिर के इर्द गिर्द जकड लीं. चाची का दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने लंड और पेलना शुरू किया. जब वे दर्द से कराह उठती तो मैं फ़िर रुक जाता. इस तरह आखिर मैंने जड तक लंड उनके चूतड़ों के बीच उतार ही दिया.

कुछ देर मैं मजा लेता हुआ पड़ा रहा. चाची की गांड कस के मेरे लंड को पकड़े हुए थी. मैं बस झड़ने ही वाला था. आखिर न रहकर मैने उनकी गांड मारना शुरू कर दी. अब तक सब थूक सूख जाने से मेरा लंड और उनकी गांड का छेद सूख गये थे और इसलिये लंड फ़िसल नहीं रहा था, बस फंसा हुआ था उनकी गांड में. मुझे तो इस घर्षण से बड़ा मजा आया. पर चाची बिलबिला उठीं. गांड में फंसे लोडे के आगे पीछे होने से उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी. पर मै अब इतना उत्तेजित हो गया था कि उनके सिसकने की परवाह न करके कस के दस बारा धक्के लगाये और झड़ गया.

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munn
Nice update
 

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मैं जाकर उनके पास नीचे बैठ गया. उनकी आँखों में आँखें डालकर बोला "हाँ माया चाची, आप तो मेरी जान हो. आज से आप छत पर नहीं मूतेंगी." फ़िर रुक कर बोला. "इस शरबत के लिये तो मैं कब से मरा जा रहा हूँ. पर डरता था कि आप बुरा न मान जाएँ. मेरे मुंह में मूतिये माया चाची, एक बूंद नहीं छलकने दूंगा. चलिये बिस्तर पर."

चाची खिल उठीं. "सच कहते हो लल्ला? मेरे दिल की बात कह दी. मैंने भी बहुत किताबों में पढ़ा है और एक दो तस्वीरें भी देखी हैं. मन करता था कि किसी अपने प्यारे के साथ ऐसा करूँ. इसी बच्ची ने आखिर कहा कि अनुराग भैया से कहती क्यों नहीं. बड़ी बदमाश है. कहती है कि उसकी सहेली की बहन तो रोज अपने पति के मुंह में मूतती है. इन दोनों ने कई बार छुपकर देखा है."

मुन्नी ने चाची को चिढ़ाकर कहा. "अब अनुराग भैया तो मान गये, अब मारने दोगी गांड?" चाची ने हंस कर कहा. "बिलकुल, पर एक शर्त है अनुराग." मैंने धडकते दिल से पूछा "क्या शर्त है चाची? बोल कर तो देखो?"

वे सीरियस होकर बोली. "सिर्फ़ मेरा ही नहीं, इस बच्ची का भी मूत पीना पड़ेगा. इसने राह दिखायी है, इसे भी इनाम मिलना चाहिये." मुन्नी टेन्शन में मेरी ओर कुछ शरमा कर देख रही थी कि मैं क्या कहता हूँ. जवाब में मुन्नी की चूत को चूम कर मैं बोला. "यह तो ऐसा हो गया चाची कि अंधा मांगे एक आँख और मिल जाएँ दोनों. तुम्हारे बुर के शरबत के साथ इस कन्या की चूत की शराब भी मिल जाये तो क्या कहने."

दोनों खुशी से उछल पड़ीं. मैं नीचे लेट गया. "आज यहीं खुली छत पर मेरे मुंह में मूत लो चाची. कल से बिस्तर पर ही कर लेना." चाची उठ कर मेरे सिर के दोनों और पाँव जमाकर घुटनों के बल बैठ गयी. "देख लल्ला, अब रोज की बात है, दिन में भी यही होगा! मना तो नहीं करेगा." जवाब में मैंने उन्हें नीचे खींच कर उनकी बुर चूम ली. "अब करो भी चाची, प्यास लगी है." मुन्नी भी बिलकुल पास आकर बैठ गयी कि ठीक से इस क्रीडा को देख सके.

चाची ने मेरा सिर पकडकर स्थिर किया और निशाना लगाकर मेरे मुंह में मूतने लगी. उस खारे गरमागरम शरबत को मैं गटागट निगलने लगा. मुझे अपना मूत पीते देख चाची ऐसी गरमाई कि बिना रुके और जोर से मूतने लगी. मैं चुपचाप पीता रहा पर मुन्नी ही मेरे मन की बात समझ कर बोली. "क्या मौसी तुम भी? धीरे धीरे मूतो ना! आखिर भैया को भी आराम से पीने दो, स्वाद तो लगे, अभी तो बस गटागट निगले जा रहा है बेचारा."

चाची थोड़ा शरमायीम और फ़िर रुक रुक कर मूतने लगी जिससे मुंह में भरे मूत को मैं ठीक से चख सकूँ. जब तक उनका मूतना समाप्त हुआ, वे ऐसी गरम हो गई कि सीधे मेरे मुंह पर बैठ कर अपनी चूत मेरे होंठों पर रगड रगड कर एक मिनिट में स्खलित हो गयी. मुझे बोनस में शरबत के साथ शहद भी मिल गया. झड़ते हुए मेरे बाल प्यार से सहला कर बोली. "मजा आ गया लल्ला. तू नहीं समझेगा. असल में अपने किसी को अपने शरीर का रस पिलाना औरतों को बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि अपना कर्तव्य पूरा कर रही हूँ तेरी प्यास बुझा कर. मेरा बस चले तो अपने शरीर का हर रस तुझे दे दूँ."

अब मुन्नी की बारी थी. उसकी आँखें भी कामुकता से चमक रही थी. "भैया, मैं तो खड़े खड़े ही मूतूँगी, हम लड़कियां स्कूल में अक्सर ऐसे ही करती हैं, नीचे बैठा नहीं जाता, इतनी गम्दगी होती है इसलिये." और वह अपनी टाँगे फ़ैलाकर खड़ी हो गयी.

उसकी बात मान कर मैं उसकी टांगों के बीच मुंह खोल कर सिर ऊपर करके बैठ गया. उसने मेरा सिर पकडकर निशाना लगाया और रुपहली धार मेरे मुंह में गिरने लगी. मुन्नी ने बड़े प्यार से अपना मूत मुझे पिलाया. मुंह भरते ही रुक जाते थी जिससे मैं स्वाद ले सकूँ. उधर चाची पास आकर मुन्नी से लिपटकर खड़ी हो गई और उस बच्ची के चुंबन लेते हुए और उसके कच्चे उरोज दबाते हुए पास से इस अनूठे काम को देखने का मजा लेने लगी.

चाची की धार जहाँ मोटी और धीमी थी, मुन्नी की एकदम पतली और तेज थी, पिचकारी जैसी. स्वाद दोनों का एकदम मस्त था, बुर की सौंधी खुशबू से भिना हुआ. आखिर मुन्नी का पूरा मूत पीकर मैं उठा और उसे उठा कर बिस्तर पर ले गया. वहाँ पटककर पहले उसकी बुर चूसी और फ़िर चाची पर चढ कर उन्हें चोद डाला.

चाची कहती ही रह गई. "अरे गांड नहीं मारेगा क्या, मैंने वायदा किया है तुझ से." मैंने कहा. "ऐसे सस्ते में थोड़े छोड़ूँगा चाची! आज तो झड़ झड़ कर लंड मुरझा गया है, तुम तो आराम से ले लोगी गांड में. कल दोपहर को मारूँगा, मस्त खड़ा कर के. आप को भी तो पता चले कि जब मस्त सूजा लंड गांड में जाता है तो कैसा लगता है. उस रात को खड़ा किया था, उससे भी मोटा होगा कल."

दूसरे दिन सुबह से बड़ा सस्पेंस का माहौल था. चाची और मुन्नी में रोज की तरह नौकरानी की आँख बचाकर एक दो बार चूमा चाटी हुई पर मैं अलग से मन शांत कर के बैठा था. लंड को जितना हो सकता था उतना आराम दे रहा था. मेरी ओर कनखियों से देख कर मुन्नी हंस रही थी, उसे मालूम था कि मैं क्यों चुप बैठा हूँ.

आखिर दोपहर हुई और हम हमेशा की तरह चाची के कमरे में इकठ्ठे हुए. कपड़े निकालने के बाद पहला काम मैंने यह किया कि दोनों का मूत पिया. वहीं कमरे के फ़र्श पर लेटकर और उन दोनों चुदैलो को अपने मुंह पर बिठाकर. दोनों को यह अपेक्षित नहीं था, उन्हों ने सोचा था कि कल रात वाली बात तो मौके पर वासना के अतिरेक में हो गयी थी. पर जब मैंने खुद ही उनका मूत पीने में पहल की, यह कहते हुए कि मैंने कल ही कहा था कि आज से मेरी दोनों खूबसूरत साथिने मेरे मुंह के सिवाय कही नहीं मूतेंगी, तो मुन्नी मेरे मुंह में मूतते हुए शैतानी से बोली.

"भैया, हाय पहले मालूम होता तो आपका चार पाँच गिलास शरबत बेकार नहीं जाता. मैं और मौसी सुबह से दो बार बाथरूम जा चुके हैं." चाची ने उसे हटाकर मेरे मुंह पर बैठते हुए उसे डाँट लगायी. "चुप कर शैतान, नौकरानी के आगे आखिर क्या करते? बोतल में मूत कर अनुराग लल्ला के लिये रखते?"

चाची का मूत पीने के बाद होंठ पोंछते हुए मैंने जवाब दिया. "हाँ चाची, प्लीज़, कल से चार पाँच बड़ी पेप्सी की बोतलें धो कर रख दो. जब मेरे मुंह में मूतना सम्भव न हो, तो दोनों इन बोतलो का इस्तेमाल करके उन्हें फ़्रिज़ में रख दिया करो. मैं बाद में पी लूँगा. इस अमृत की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाना चाहिये."

खैर! उसके बाद चाची और मुन्नी का बाथरूम जाना ही बंद हो गया. मेरे होते उन दोनों को कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. बोतलों की जरूरत भी नहीं पड़ी क्योंकी जब भी पिशाब लगती, वे चुपचाप मुझे कही अकेले में ले जातीं, अपने साड़ी या स्कर्ट ऊपर करती और मेरे मुंह में मूत देती. मेरा मुंह उनका यह अमृत पीने के लिये सदा हाजिर होता. मैंने कभी एक बूंद नहीं छलकायी इसलिये आराम से बिस्तर में लेटे लेटे भी यह काम दोनों कर लेती थी. मुझे भी उन दोनों चुदैलो के मूत का ऐसा चसका लगा कि आदत ही लग गयी. आज भी अपने सेक्स पार्टनर का मूत पीने में मुझे बड़ा मजा आता है.

अब तक उन दोनों मद भरी बुरों के शरबत ने मेरा लंड खड़ा कर दिया था. सोलह घंटे के आराम के बाद वह अब मस्त तन्ना रहा था. "अब देखिये चाची, अब यह इस अवस्था में है कि आप की गांड की प्यास बुझा सके." चाची थोड़ा घबरा कर उसकी ओर देख रही थी. पर नजर में बड़ी मादक प्यास भी थी. "नहीं लल्ला, अभी माफ़ करो, रात में मार लेना."

"जब फ़िर मुरझा जाये? नहीं मौसी तुमने वायदा किया था भैया से, चलो गांड मराओ." मुन्नी मेरा साथ देती हुई अपनी बुर रगड़ती हुई बोली. उसे बड़ा मजा आ रहा था. अपने लंड को और कस कर खड़ा करने का मुझे अचानक एक उपाय सूझा. आज मैं जरा दुष्ट मूड में था और यही सोच रहा था कि जितना हो सके लंड को मस्त करूँ ताकि माया चाची कुछ और जोर से बिलबिलाये गांड मराते समय. आखिर मुझे भी तो इतने दिन का हिसाब वसूलना था. बस मुझे अपने आप पर पूरा कंट्रोल रखना जरूरी था.

"माया चाची, चलो एक काम करते हैं. आप दोनों मिलकर मेरे लंड से खेलो, चूसो, कुछ भी करो. बीस मिनिट का समय देता हूँ. अगर मुझे झड़ा लिया तो आपकी गांड बच जायेगी. नहीं तो फ़िर बिना तेल लगाये ही मारूँगा, आपको तड़पा तड़पा कर और मजा लेने के लिये. बोलो है मंजूर?"

चाची ने कुछ देर सोचा और एक शर्त अपनी भी रख दी. आखिर पक्की छिनाल जो थी. "ठीक है लल्ला, पर भले तेल न लगाना, चूसना जरूर पड़ेगी. मेरी गांड का छेद मुंह से और जीभ से गीला करना पड़ेगा, बोलो है मंजूर?" उन्हें लगा कि शायद मुझे गंदा लगे इसलिये मैं न मानूँ पर मैं तुरंत तैयार हो गया. मेरी प्यारी मतवाली चाची की गांड चूसना तो मेरे लिये मानों एक और उपहार था.

घड़ी में बीस मिनिट का अलार्म लगाया गया और फ़िर दोनों मिलकर मेरे लंड पर टूट पड़ीं. बारी बारी से चूमने और चूसने लगी. चाची बीच बीच में उसे अपने गोल मटॊल स्तनों के बीच पकड कर बेलन जैसे रगड़ने लगतीं. कभी अपने घने बालों में लपेट लेती. मुन्नी भी बड़े चाव से चाची का साथ दे रही थी.

दस मिनिट में भी जब मैं न झड़ा तो चाची थोड़ा घबराई. मुन्नी को बोली. "बेटी तू इसके मुंह पर चढ जा, इसे अपनी चूत चुसवा. मैं इसे चोदती हूँ, देखें कैसे नहीं झड़ता."

मुन्नी मेरे मुंह पर बैठ गयी और मैं जीभ डालकर उस कोमल मखमली कच्ची बुर का रस पीने लगा. उधर चाची मुझ पर चढ कर मुझे चोदने लगी.

अगले दस मिनिट मेरी परीक्षा के थे पर मैं खरा उतरा. किसी तरह अपने सुख से मचलते लंड पर काबू किये रहा. मुन्नी की चूत के रस ने और चाची की बुर के घर्षण ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि मेरा लंड घोड़े के लंड जैसा खड़ा हो गया. आखिर अलार्म बजा तो मुन्नी उठ कर खड़ी हो गयी. कई बार मेरे मुंह में झड़ कर तृप्त हो गयी थी. हंस कर चाची को बोली. "चलो मौसी तुम शर्त हार गई, अब तो गांड मराना ही पड़ेगी."

चाची भी कई बार झड़ चुकी थी. हांफते हुए लस्त होकर किसी तरह मेरे लंड को अपनी गीली बुर में से खींच कर निकाला तो लोडे की साइज़ देखकर उनकी आँखें पथरा गई. "हाय लल्ला, यह तो और मुश्टंडा हो गया. लगता है मैंने अपनी कब्र खुद बना ली, तू मार डालेगा मुझे बेटे, दया कर, चोद ले अभी, गांड बाद में मारना." पर डरने का सिर्फ़ बहाना था, उनकी आँखों में गजब की कामुकता थी. गांड चुदाने को वे भी मरी जा रही थी.

उनकी एक न मान कर मैंने उन्हें उठा कर बिस्तर पर औंधे लिटा दिया. वे बोली. "मुन्नी बिटिया, गांड तो मुझे मरवाना ही है तो ऐसा कर, तू मेरे नीचे उलटी तरफ़ से आ जा रानी. सिक्सटी नाइन करते हुए मरवाऊँगी तो दर्द थोड़ा कम हो जायेगा." मुन्नी तपाक से उनके नीचे घुस गयी. अपनी टाँगे खोलती हुई बोली. "लो चूसो मौसी" फ़िर मौसी के चूतड पकडकर उनकी बुर चाटती हुई मुझसे बोली. "अनुराग भैया, मुझे तो बिलकुल बाल्कनी की सीट मिल गयी शो देखने को. दो इंच दूर से मौसी की गांड में तुम्हारा लोडा घुसते देखूँगी."

मैं झुक कर अपनी जीभ और होंठों से चाची के नितंबों की पूजा करने लगा. जब उनके गुदा में जीभ डाली तो वे सिहर उठीं. उनकी गांड का छेद पकपकाने लगा और मेरी जीभ को पकडने लगा. गांड का सौंधा खटमिठ्ठा स्वाद लेते हुए मैंने खूब गांड चूसी और फ़िर आखिर बिस्तर पर चढकर उनके गुदा पर लंड जमाता हुआ बोला. "मुन्नी जरा हेल्प कर, अपनी हाथों से तेरी मौसी की गांड चौड़ी कर." मेरी सुपाड़ा फ़ूल कर टमाटर सा हो गया था और मौसी की गांड में उसका घुसना असंभव सा लग रहा था.

मौसी की बुर में जीभ डालकर मुन्नी ने अपनी पूरी शक्ति से उनके गोरे नितंब फ़ैलाये. मैंने कस के लंड पेला और सुपाड़ा अंदर घुसेड दिया. मौसी के मुंह से एक चीख निकल गयी. "मार डाला रे मुझे तूने बेदर्दी, फ़ाड दी मेरी." मैं हंसते हुए बोला. "नहीं चाची, ऐसे थोड़े फ़टेगी आपकी गांड, आखिर मारने के लिये ही बनाई है कामदेव ने तो फ़टेगी कैसे. हाँ, आप भी गुदा ढीला कीजिये नहीं तो दर्द होगा ही."

चाची अपना दर्द कम करने को मुन्नी की चूत चूसने लगी. मुन्नी ने भी अपनी गोरी कमसिन जांघें उसके सिर के इर्द गिर्द जकड लीं. चाची का दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने लंड और पेलना शुरू किया. जब वे दर्द से कराह उठती तो मैं फ़िर रुक जाता. इस तरह आखिर मैंने जड तक लंड उनके चूतड़ों के बीच उतार ही दिया.

कुछ देर मैं मजा लेता हुआ पड़ा रहा. चाची की गांड कस के मेरे लंड को पकड़े हुए थी. मैं बस झड़ने ही वाला था. आखिर न रहकर मैने उनकी गांड मारना शुरू कर दी. अब तक सब थूक सूख जाने से मेरा लंड और उनकी गांड का छेद सूख गये थे और इसलिये लंड फ़िसल नहीं रहा था, बस फंसा हुआ था उनकी गांड में. मुझे तो इस घर्षण से बड़ा मजा आया. पर चाची बिलबिला उठीं. गांड में फंसे लोडे के आगे पीछे होने से उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी. पर मै अब इतना उत्तेजित हो गया था कि उनके सिसकने की परवाह न करके कस के दस बारा धक्के लगाये और झड़ गया.

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चाची भी अब वासना से हांफ रही थी और अपने हाथों से उसके पूरे नंगे बदन को सहला रही थी. उन सेब जैसे उरोजों को चाची ने प्यार से रगड़ा और फ़िर खींच कर मुन्नी की पेन्टी उतार दी. "मेरी रानी बिटिया, जरा अपना खजाना तो दिखा अपनी इस प्यासी मौसी को." मुन्नी थोड़ी शरमाई पर उसने अपना गुप्तांग छुपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

बिलकुल चिकनी बचकानी चूत थी उसकी. एकदम गोरी चिट्टी और मैदे के गोले सी फ़ूली फ़ूली. बाल भी नहीं के बराबर थे, बस कुछ रेशमी काले रोएँ भर थे. चाची तो उस पर टूट पड़ी और उसे चूमने लगी. अपनी टाँगे आपस में रगड़ती हुई मुन्नी को बोली "छोटी, अब तो नहीं रहा जाता री, मेरी चूत में तो आग लगी है आग, तेरी यह कमसिन जवानी देख कर."

मुन्नी उठ कर चाची के पास बैठ गयी. अपने एक हाथ से चाची की जांघें सहलाते हुई दूसरा हाथ उसने उनके बीच डाल दिया. थोड़ा शरमा कर बोली "मौसी, जरा चूत खोलो, मैं मुठ्ठ मार देती हूँ." चाची टाँगे फ़ैलाती हुई हंस कर बोली. "देख बित्ते भर की बच्ची अपनी मौसी को मुठ्ठ मारने चली है. मारी है क्या कभी किसी की मुठ्ठ तूने?" मुन्नी ने अपनी दो उँगलियाँ चाची की बुर में डालते हुए कहा. "हाँ मौसी, मुझे अपनी सहेली आशा के साथ कर कर के आदत हो गई है."

लगता है कि छोकरी को काफ़ी अनुभव था क्योंकी दो ही मिनिट में चाची सिसकने लगी. मुझ पर झल्ला कर बोली. "तू क्यों चुपचाप पड़ा है रे मूरख, मार मेरी गांड" मैं अब तक यह सब चुपचाप देख रहा था, चाची के गुदा में आधा घुसा हुआ लंड भी कस कर खड़ा हो गया था. मैंने तुरंत उसे फ़िर पूरा अंदर डाला और करवट पर लेटे लेटे पीछे से उनकी गांड मारने लगा.

पाँच मिनिट में चाची ने एक हल्की सी हुंकार भरी और झड़ गई. "मुन्नी रानी, तू तो माहिर है री इस कला में, तेरी फ़्रेम्ड आशा ने खूब सिखाया है तुझे." मुन्नी अपनी उँगलियाँ चाटने लगी. "मौसी, तुम्हारी चूत चुसूँ? बहुत अच्छा लगता है मुझे चूत चूसना. पर अब तक सिर्फ़ आशा की चूसी है. किसी बड़ी जवान औरत की नहीं चूसी. यहाँ आई ही इसलिये हूँ कि तुम्हारी चूत चाटने का मौका मिले." बड़ी सहजता से उसने कहा जैसे मिठाई खाने की बात चल रही हो.

"अरी तो चूस ना, इतनी बह रही है, आधा कटोरी पानी तो आराम से पा जायेगी." चाची ने टाँगे फ़ैला कर कहा. मुन्नी पास आकर अपनी मौसी की गांड में अंदर बाहर होता मेरा लंड देखती हुई बोली. "दो मिनिट मौसी, जरा तेरी गांड मराई तो ठीक से देखूँ." वह बड़ी बड़ी आँखें कर के चाची के गुदा में घुसता निकलता मेरी सूजा हुआ मोटा ताजा लंड देख रही थी. "हाय कितना बड़ा है अनुराग भैया का लंड! दर्द नहीं होता मौसी?"

"अरी होता है पर मजा भी आ रहा है. तू चल यहाँ आ और मेरी बुर में मुंह डाल. कल देख लेना लंड के कारनामे, वे तो दिन भर होते रहते है हमारे यहाँ." कहकर ताव में आयी माया चाची ने अपनी भांजी को पकड कर उसका सिर अपनी जांघों में दबा लिया और उसके मुंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. चाटने और चूमने की आवाज़ें आने लगी और मैं समझ गया कि वह कन्या अपनी मौसी की बुर का प्रसाद पा रही है. मेरा गांड मारना और तीव्र हो गया.

चाची फ़िर झड़ीं और ढीली हो गई. मुन्नी ने चाट चाट कर उनकी बुर साफ़ की और मुंह पोंछती हुई उठ कर बैठ गयी. "बहुत गाढ़ा रस है मौसी, चिपचिपा भी है, आशा का तो पतला है." "अरे जवान होगी तो तुम लोगों का भी शहद हो जायेगा." चाची उसके मम्मे सहलाती हुई बोली. मुन्नी अब काफ़ी जोश में थी. उसकी सांसें जोर से चल रही थी और खुद की ही बुर में वह उंगली कर रही थी.

"अरे मेरी रानी, मुठ्ठ क्यों मारती है. आ मैं चूस दूँ, आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी लाडली का स्वाद." चाची बोली. अब तक मैं पागल सा हो गया था. कसमसा कर बोला. "चाची, प्लीज़, अब जरा ठीक से चढ कर गांड मारने दीजिये ना, बहुत मजा आ रहा है."

मुझे पुचकार कर वे बोली. "ठीक है लल्ला, बहुत मेहनत की है, ले मजा कर. मुन्नी बेटी, चल मेरे सामने आकर बैठ और टाँगे फ़ैला." मुन्नी की गोरी टाँगे खोलकर चाची ने उसे अपने सामने तकिये पर बैठा लिया. फ़िर उसके सामने पट लेटकर वह उस गुड़िया की कुंवारी चूत चूसने लगी. मुन्नी तो खुशी से करीब करीब रो पड़ी. "मौसी ऽ ई, कितना अच्छा चूसती हो तुम, हाय, मैं मर गयी."

उधर मैं झट से चाची पर चढ गया और उनका शरीर अपनी बाँहों में भरकर उनके उरोज दबाता हुआ हचक हचक कर गांड मारने लगा. मुन्नी ठीक मेरे सामने थी. उसका चुंबन लेने की बहुत इच्छा हो रही थी. चाची समझ गई. "अरे सामने माल है बेटे, मुंह मार ले, चुंबन ले उसका. पर आज और कुछ नहीं करना उसके साथ." मैंने तुरंत झुक कर उसके होंठों पर होंठ रख दिये. क्या मीठा रसीला चुंबन था, एकदम अनछुआ. मुन्नी ने भी मेरे चुंबन का जवाब दिया. हम बेतहाशा चूमा चाटी करने लगे.

अब मैं झड़ने को आ गया था. आव देखा न ताव, झुककर उस किशोरी के कच्चे स्तन चूम लिये और फ़िर एक किसमिस के दाने जैसा निप्पल मुंह मे लेकर चूसने लगा. मुन्नी सिहर उठी और मेरा मुंह कस कर अपनी छाती पर दबा लिया. अब मैंने पूरे जोर से चाची की गांड मारना शुरू कर दिया. खाट ऐसे चरमराने लगी जैसे टूट ही जायेगी. चाची ने भी नीचे से ही मुन्नी की चूत चूसते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा. "अरे जरा धीरे, खटिया तोड़ेगा क्या."

पर मैं पूरे जोर से लंड पेलता रहा. तभी मुन्नी एक चीख के साथ अपनी मौसी के मुंह में झड़ गयी. मैंने भी उसका निप्पल हल्के से काट खाया और जोर से स्खलित हो गया. उधर शायद चाची भी अपनी चूत में खुद ही उंगली कर के मुठ्ठ मार रही थी. वह भी उसी समय झड़ीं. यह सामूहिक स्खलन ऐसा था कि किसी को उसके बाद होश न रहा. सब लस्त पड़े उस स्वर्गिक आनंद का उपभोग लेने लगे.

मैं तो इतना थक गया था कि लुढक कर लंड चाची के गुदा में से खींचा और ढेर हो गया. कब सो गया पता ही नहीं चला. हाँ शायद वे दो चुदैलें उसके बाद भी संभोग करती रही क्योंकी रात को आधी नींद में भी मुझे हंसने खिलखिलने और चूमा चाटी की आवाज़ें आती रही.

दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. मुन्नी बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टाँगे और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आँखें दिखा कर हमें डाम्टा पर वे भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का यानि मैं और एक लड़की यानि मुन्नी उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतेज़ाम था उनके लिये.

आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. मुन्नी तो जाकर चाची की बाँहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगी. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफ़े पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी मुन्नी के चुंबन लेती कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगी. हमें भी उन्हों ने नंगे होने का आदेश दिया.

मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर मुन्नी होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थी. उनके ब्रा और पेन्टी में लिपटे मांसल बदन को देखकर मुन्नी पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.

चाची उसके पास गई और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर मुन्नी एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिम्पल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस बच्ची से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघें.

चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पेन्टी उतार फेंकी. बोली. "मुन्नी बिटिया, तू नयी है इसलिये यहाँ बैठकर हमारा खेल देख. अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." मुन्नी को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आई और हमारी रति लीला आरम्भ हो गयी.

हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर मुन्नी सिसकियाँ भरती हुई अपनी ही छातियाँ दबाने लगी और पेन्टी पर से चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टाँगे हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.

पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो मुन्नी ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियाँ दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.

जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थी. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोली. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊँ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का."


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Kamsin kunwari chut ka majaa hi alag hota hai. Mujhe kuchh aisi chut ka majaa mila tha jab maine naya naya job join kiya tha.
 
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