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[अंग्रेजी कथा "राजमाता" का हिन्दी तर्जुमा - अपडेट १ से १२ का श्रेय मूल लेखक (अज्ञात) को जाता है। अपडेट १३ के आगे की सारी लिखावट मेरी है ]


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कहानी का प्रारंभ बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार हैं भाई मजा आ गयायह कथा है सूरजगढ़ की..
सन १७६५ में स्थापित हुए इस राज्य की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। स्थापक राजा वीरप्रताप सिंह के शौर्य और अथाग प्रयत्नों से निर्माण हुई यह नगरी, कई मायनों में अपने पड़ोसी राज्यों से कोसों आगे थी। नदी के तट पर बसे होने के कारण विपुल मात्रा में जल राशि उपलब्ध थी। जमीन उपजाऊ थी और किसान महेनतकश थे इसलिए धान की कोई कमी न थी। तट से होकर समंदर के रास्ते चलते व्यापार के कारण यह राज्य समृद्ध व्यापारीओ से भरा पड़ा था। कुल मिलाकर यह एक सुखी और समर्थ राज्य था।
राजा वीरप्रताप सिंह के वंशज राजा कमलसिंह राजगद्दी पर विराजमान थे। उनकी पाँच रानियाँ थी जिसमे से मुख्य रानी पद्मिनी उनकी सबसे प्रिय रानी थी। कमलसिंह की माँ, राजमाता कौशल्यादेवी की निगरानी में राज्य का सारा कारभार चलता था। वैभवशाली जीवन और भोगविलास में व्यस्त रहते राजा कमलसिंह दरबार के दैनिक कार्यों में ज्यादा रुचि न लेते। राजमाता को हमेशा यह डर सताता की कोई पड़ोसी राजा या फिर मंत्रीगण मे से कोई, इस बात का फायदा उठाकर कहीं राज ना हड़प ले। पुत्रमोह के कारण वह कमलसिंह को कुछ कह नहीं पाती थी। उनकी चिंताओ में एक कारण और तब जुड़ गया जब पांचों रानियों में से किसी भी गोद भरने में कमलसिंह समर्थ नहीं रहे थे।
राजमाता कौशल्यादेवी यह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी की लोगों को पता चले कि महाराज (राजा) नपुंसक थे। वह चाहती तो कमलसिंह को मनाकर बाकी राजाओं की तरह किसी को गोद ले सकती थी, लेकिन उनके शासन की राजनीतिक कमज़ोरी ने उन्हें इस मानवीय विफलता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की अनुमति नहीं दे रही थी।
राजमाता को प्रथम विचार यह आया की हो सकता है की मुख्य रानी पद्मिनी ही बाँझ हो। इसलिए उनका दूसरा कदम था बाकी की रानियों के साथ कमलसिंह का वैद्यकीय मार्गदर्शन के साथ संभोग करवाकर गर्भधारण करवाने का प्रयत्न करना। हालांकि, यह करने से पहले, कमलसिंह ने अपने दूत भेजकर रानी पद्मिनी के पिता, जो एक पड़ोसी मुल्क के शक्तिशाली राजा थे, उनको इस बारे में संदेश भेजा। उस समय में, शादियाँ संबंध के लिए नहीं, राजकीय समीकरणों के लिए की जाती थी। उनकी पुत्री, जो मुख्य रानी थी, उसे छोड़कर राजा अगर दूसरी रानी के साथ संतान के लिए प्रयत्न करता तो रानी के मायके मे बताना बेहद जरूरी था। उनका विवाह ही इसलिए कराया गया था की रानी पद्मिनी की आने वाली नस्ल राज करे। ऐसी नाजुक बातों में लापरवाही बरतने से महत्वपूर्ण राजनैतिक गठबंधन अस्वस्थ हो सकते थे।
बहुत ही बढिया और मस्त अपडेट है भाई मजा आ गयामहारानी पद्मिनी को जब इस बारे में पता चला तब उन्हे विश्वास नहीं हुआ। उनका शाही बिस्तर कई काम-युद्धों का साक्षी था लेकिन वह हमेशा राजा को अपने वश में रखने मे कामयाब रही थी। महारानी मुख्य रानी के रूप में अपना पद को बरकरार रखने के लिए सभी प्रकार की यौन राजनीति में व्यस्त रहती। वह न केवल कानूनी अर्थ में बल्कि वैवाहिक अर्थ में भी सभी रानियों में मुख्य बनी रहना चाहती थी। वह चाहती थी की आने वाले समय में राजगद्दी पर उसकी संतान बैठी हो।
राजा कमलसिंह, रानी पद्मिनी की इन हरकतों से भलीभाँति वाकिफ था पर फिर भी, सच्चाई यह थी कि वह उसे गर्भवती नहीं कर सका। अपनी शारीरिक अक्षमता को स्वीकारने में उसे अपना अहंकार इजाजत नहीं दे रहा था।
इस तरफ महारानी पद्मिनी बही यह सोचती कि बिस्तर पर वह ही राजा से अधिक आक्रामक थी। उसका लिंग पतला था, लेकिन वह जानती थी कि इसका नपुंसकता से कोई लेना-देना नहीं था।
इसलिए जब राजा कमलसिंह के दूत संदेश लेकर उसके पिता के पास गए तब उसने भी एक पत्र साथ भेजा जिसमें उसने अपने पिता को बताया कि वह इस बात से सहमत थी कि कमलसिंह दूसरी रानियों के साथ अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे। उसके लिए यह विवरण देना कठिन जरूर था लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे अन्य रानियों के बढ़ते प्रभाव को स्वीकारने के लिए वह तैयार थी और इससे उसकी प्रधानता को कोई खतरा नहीं था।
यह कथा है सूरजगढ़ की..
सन १७६५ में स्थापित हुए इस राज्य की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। स्थापक राजा वीरप्रताप सिंह के शौर्य और अथाग प्रयत्नों से निर्माण हुई यह नगरी, कई मायनों में अपने पड़ोसी राज्यों से कोसों आगे थी। नदी के तट पर बसे होने के कारण विपुल मात्रा में जल राशि उपलब्ध थी। जमीन उपजाऊ थी और किसान महेनतकश थे इसलिए धान की कोई कमी न थी। तट से होकर समंदर के रास्ते चलते व्यापार के कारण यह राज्य समृद्ध व्यापारीओ से भरा पड़ा था। कुल मिलाकर यह एक सुखी और समर्थ राज्य था।
राजा वीरप्रताप सिंह के वंशज राजा कमलसिंह राजगद्दी पर विराजमान थे। उनकी पाँच रानियाँ थी जिसमे से मुख्य रानी पद्मिनी उनकी सबसे प्रिय रानी थी। कमलसिंह की माँ, राजमाता कौशल्यादेवी की निगरानी में राज्य का सारा कारभार चलता था। वैभवशाली जीवन और भोगविलास में व्यस्त रहते राजा कमलसिंह दरबार के दैनिक कार्यों में ज्यादा रुचि न लेते। राजमाता को हमेशा यह डर सताता की कोई पड़ोसी राजा या फिर मंत्रीगण मे से कोई, इस बात का फायदा उठाकर कहीं राज ना हड़प ले। पुत्रमोह के कारण वह कमलसिंह को कुछ कह नहीं पाती थी। उनकी चिंताओ में एक कारण और तब जुड़ गया जब पांचों रानियों में से किसी भी गोद भरने में कमलसिंह समर्थ नहीं रहे थे।
राजमाता कौशल्यादेवी यह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी की लोगों को पता चले कि महाराज (राजा) नपुंसक थे। वह चाहती तो कमलसिंह को मनाकर बाकी राजाओं की तरह किसी को गोद ले सकती थी, लेकिन उनके शासन की राजनीतिक कमज़ोरी ने उन्हें इस मानवीय विफलता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की अनुमति नहीं दे रही थी।
राजमाता को प्रथम विचार यह आया की हो सकता है की मुख्य रानी पद्मिनी ही बाँझ हो। इसलिए उनका दूसरा कदम था बाकी की रानियों के साथ कमलसिंह का वैद्यकीय मार्गदर्शन के साथ संभोग करवाकर गर्भधारण करवाने का प्रयत्न करना। हालांकि, यह करने से पहले, कमलसिंह ने अपने दूत भेजकर रानी पद्मिनी के पिता, जो एक पड़ोसी मुल्क के शक्तिशाली राजा थे, उनको इस बारे में संदेश भेजा। उस समय में, शादियाँ संबंध के लिए नहीं, राजकीय समीकरणों के लिए की जाती थी। उनकी पुत्री, जो मुख्य रानी थी, उसे छोड़कर राजा अगर दूसरी रानी के साथ संतान के लिए प्रयत्न करता तो रानी के मायके मे बताना बेहद जरूरी था। उनका विवाह ही इसलिए कराया गया था की रानी पद्मिनी की आने वाली नस्ल राज करे। ऐसी नाजुक बातों में लापरवाही बरतने से महत्वपूर्ण राजनैतिक गठबंधन अस्वस्थ हो सकते थे।
Congratulations for your new storyमहारानी पद्मिनी को जब इस बारे में पता चला तब उन्हे विश्वास नहीं हुआ। उनका शाही बिस्तर कई काम-युद्धों का साक्षी था लेकिन वह हमेशा राजा को अपने वश में रखने मे कामयाब रही थी। महारानी मुख्य रानी के रूप में अपना पद को बरकरार रखने के लिए सभी प्रकार की यौन राजनीति में व्यस्त रहती। वह न केवल कानूनी अर्थ में बल्कि वैवाहिक अर्थ में भी सभी रानियों में मुख्य बनी रहना चाहती थी। वह चाहती थी की आने वाले समय में राजगद्दी पर उसकी संतान बैठी हो।
राजा कमलसिंह, रानी पद्मिनी की इन हरकतों से भलीभाँति वाकिफ था पर फिर भी, सच्चाई यह थी कि वह उसे गर्भवती नहीं कर सका। अपनी शारीरिक अक्षमता को स्वीकारने में उसे अपना अहंकार इजाजत नहीं दे रहा था।
इस तरफ महारानी पद्मिनी बही यह सोचती कि बिस्तर पर वह ही राजा से अधिक आक्रामक थी। उसका लिंग पतला था, लेकिन वह जानती थी कि इसका नपुंसकता से कोई लेना-देना नहीं था।
इसलिए जब राजा कमलसिंह के दूत संदेश लेकर उसके पिता के पास गए तब उसने भी एक पत्र साथ भेजा जिसमें उसने अपने पिता को बताया कि वह इस बात से सहमत थी कि कमलसिंह दूसरी रानियों के साथ अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे। उसके लिए यह विवरण देना कठिन जरूर था लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे अन्य रानियों के बढ़ते प्रभाव को स्वीकारने के लिए वह तैयार थी और इससे उसकी प्रधानता को कोई खतरा नहीं था।
सराहना के लिए शुक्रिया भाईकहानी का प्रारंभ बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
शुक्रिया dostCongratulations for your new story
Kafi romanchit lgti hai story aapki
जल्द ही आएगाWaiting for long update