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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,553
354
अध्याय - 99
━━━━━━༻♥༺━━━━━━

मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।


अब आगे....



"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"

"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"

"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"

दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"

"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"

"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"

सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।

"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"

"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"

"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"

"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।

"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"

"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।

"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"

"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"

"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"

"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"

"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"

"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।

"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"

"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"

"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"

"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"

"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"

"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"

"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"

"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"

"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"

"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"

"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"

"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"

"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"

"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"

"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"

"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"

"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"

"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"

"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"

"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"

"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"

"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"

"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"

"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"

"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"

"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"

"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"

"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"

"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"

"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"

"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"

"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"

"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"

सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"

"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"

"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"

"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"

सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।



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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 100
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मैं और भाभी जीप में बैठे आगे बढ़े चले जा रहे थे। मैं धीमी गति से ही जीप चला रहा था। जब से भाभी जीप में बैठीं थी तब से वो ख़ामोश थीं और ख़यालों में खोई हुई थीं। मैं बार बार उनकी तरफ देख रहा था। वो कभी हौले से मुस्कुरा देती थीं तो कभी फिर कुछ सोचने लगती थीं। इधर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं उनसे जानना चाहता था कि आख़िर उन्होंने अनुराधा से क्या बातें की थीं?

"आख़िर कुछ तो बताइए भाभी।" जब मुझसे बिल्कुल ही न रहा गया तो मजबूर हो कर मैंने उनसे पूछा____"मैं काफी देर से देख रहा हूं कि आप जाने क्या सोच सोच कर बस मुस्कुराए जा रही हैं। मुझे भी तो कुछ बताइए। मैं जानना चाहता हूं कि आपने अनुराधा से क्या बातें की अकेले में?"

"आय हाय! देखो तो सबर ही नहीं हो रहा जनाब से।" भाभी ने एकदम से मुस्कुराते हुए मुझे छेड़ा____"वैसे क्या जानना चाहते हो तुम?"

"वही जो आपने अकेले में उससे बातें की हैं।" मैं उनके छेड़ने पर पहले तो झेंप गया था फिर मुस्कुराते हुए पूछा____"आख़िर कुछ तो बताइए। अकेले में ऐसी क्या बातें की हैं आपने?"

"अगर मैं ये कहूं कि वो सब बातें तुम्हें बताने लायक नहीं हैं तो?" भाभी ने मुस्कुराते हुए तिरछी नज़र से मुझे देखा____"तुम्हें तो पता ही होगा कि हम औरतों के बीच भी बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जिन्हें मर्दों को नहीं बताई जा सकतीं।"

"ये बहुत ग़लत बात है भाभी।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"आपको मुझे छेड़ना ही है तो बाद में छेड़ लीजिएगा लेकिन अभी बताइए ना कि आपने उससे क्या बातें की हैं? आपको अंदाज़ा भी नहीं है कि उतनी देर से सोच सोच कर मेरी क्या हालत हुई जा रही है?"

मेरी ये बात सुनते ही भाभी एकदम से खिलखिला कर हंसने लगीं। हंसने से उनके सच्चे मोतियों जैसे दांत चमकने लगे और उनकी मधुर आवाज़ फिज़ा में मीठा संगीत सा बजाने लगी। उन्हें हंसता देख मुझे बहुत अच्छा लगा। यही तो चाहता था मैं कि वो अपने सारे दुख दर्द भूल कर बस हंसती मुस्कुराती रहें।

"अच्छा एक काम करो।" फिर उन्होंने अपनी हंसी को रोकते हुए किंतु मुस्कुराते हुए ही कहा____"तुम अपनी अनुराधा से ही पूछ लेना कि हमारी आपस में क्या बातें हुईं थी?"

"बहुत ज़ालिम हैं आप, सच में।" मैंने फिर से बुरा सा मुंह बना कर कहा____"आज तक किसी लड़की अथवा औरत में इतनी हिम्मत नहीं हुई थी कि वो मुझे आपके जैसे इस तरह सताने का सोचे भी।"

"तुम ये भूल रहे हो वैभव कि मैं कौन हूं?" भाभी ने कहा____"आज तक तुम्हारे जीवन में जो भी लड़कियां अथवा औरतें आईं थी वो सब ग़ैर थीं और निम्न दर्जे की सोच रखने वाली थीं जबकि मैं तुम्हारी भाभी हूं। दादा ठाकुर की बहू हूं मैं। क्या तुम मेरी तुलना उन ग़ैर लड़कियों से कर रहे हो?"

"नहीं नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर झट से कहा____"मैं आपकी तुलना किसी से भी करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। मैंने तो ऐसा सिर्फ मज़ाक में कहा था वरना आप भी जानती हैं कि आपके प्रति मेरे मन में कितनी इज्ज़त है।"

"हां जानती हूं मैं।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"और मुझे खुशी है कि तुम मेरे प्रति ऐसे भाव रखते हो। मुझे पता है कि तुम मेरे होठों पर मुस्कुराहट लाने के लिए नए नए तरीके अपनाते हो। सच कहूं तो मुझे तुम्हारा ऐसा करना अच्छा भी लगता है। मुझे गर्व महसूस होता है कि तुम्हारे जैसा लड़का मेरा देवर ही नहीं बल्कि मेरा छोटा भाई भी है। मेरे लिए सबसे ज़्यादा खुशी की बात ये है कि तुम खुद को बदल कर एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चल रहे हो। तुम हमेशा एक अच्छे इंसान बने रहो यही मेरी तमन्ना है और इसी से मुझे खुशी महसूस होगी।"

"फ़िक्र मत कीजिए भाभी।" मैंने कहा____"मैं हमेशा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा और आपकी खुशी का ख़याल रखूंगा।"

"और अनुराधा तथा रूपा की खुशी का ख़याल कौन रखेगा?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे फिर से छेड़ा_____"मत भूलो कि अगले साल दो दो बीवियों के बीच फंस जाने वाले हो तुम। फिर मैं भी देखूंगी कि दोनों की खुशियों का कितना ख़याल रख पाते हो तुम।"

"अरे! इसमें कौन सी बड़ी बात है भाभी।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"इस मामले में तो मुझे बहुत लंबा तज़ुर्बा है। दोनों को एक साथ खुश रखने की क्षमता है मुझमें।"

"ज़्यादा उड़ो मत।" भाभी ने मुझे घूरते हुए कहा____"जिस दिन बीवियों के बीच हमेशा के लिए फंस जाओगे न तब समझ आएगा कि बाहर की औरतों को और अपनी बीवियों को खुश रखने में कितना फ़र्क होता है।"

"आप तो बेवजह ही डरा रही हैं मुझे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"ये मत भूलिए कि आपके सामने ठाकुर वैभव सिंह बैठे हैं।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" भाभी ने आंखें फैला कर मेरी तरफ देखा____"फिर तो अनुराधा से ब्याह करने के लिए तुम्हें अपनी इस भाभी की मदद की कोई ज़रूरत ही नहीं हो सकती, है ना?"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला____"आपकी मदद के बिना तो मेरी नैया पार ही नहीं हो सकती। कृपया ऐसी बातें न करें जिससे मेरी धड़कनें ही रुक जाएं।"

मेरी बात सुन कर भाभी एक बार फिर से खिलखिला कर हंस पड़ीं। इधर मैं अपना मुंह लटकाए रह गया। मेरी सारी अकड़ छू मंतर हो गई थी। उन्होंने मेरी कमज़ोर नस पर वार जो कर दिया था। ख़ैर मैं विषय को बदलने की गरज से उनसे फिर ये पूछने लगा कि उनकी अनुराधा से क्या बातें हुईं हैं लेकिन भाभी ने कुछ नहीं बताया मुझे। बस यही कहा कि मैं अगर इतना ही जानने के लिए उत्सुक हूं तो अनुराधा से ही पूछूं। भाभी मेरी हालत का पूरा लुत्फ़ उठा रहीं थी और ये बात मैं बखूबी समझता था। ख़ैर मुझे उनके न बताने से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ रहा था, अलबत्ता इस बात की खुशी थी कि इस सफ़र में भाभी खुश थीं। ऐसी ही नोक झोंक भरी बातें करते हुए हम हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होता देख रूपा पहले तो चौंकी फिर सम्हल कर बैठ गई। आज काफी समय बाद उसके बड़े भाई ने उसके कमरे में क़दम रखा था। दोनों की उमर में सिर्फ डेढ़ साल का अंतर था। हालाकि दोनों को देखने से यही लगता था जैसे दोनों ही जुड़वा हों। एक वक्त था जब दोनों भाई बहन का आपस में बड़ा ही प्रेम और लगाव था।

बचपन से ही दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। बढ़ती उम्र के साथ जैसे जैसे दोनों में समझदारी आती गई वैसे वैसे दोनों एक दूसरे का छोटा बड़ा होने के नाते आदर और सम्मान करने लगे थे। रूपा वैसे भी एक लड़की थी इस लिए उसे अपनी मर्यादा में ही रहने की नसीहतें मिलती रहती थीं किंतु रूपचंद्र के मन में हमेशा से ही अपनी छोटी बहन रूपा के लिए विशेष लगाव और स्नेह था। फिर जब रूपचंद्र को अपनी बहन रूपा का वैभव के साथ बने संबंध का पता चला तो वो रूपा से बहुत नाराज़ हुआ। एक झटके में अपनी बहन से उसका बचपन का लगाव और स्नेह जाने कहां गायब हो गया और उसकी जगह नाराज़गी के साथ साथ गुस्सा भी भरता चला गया। उसे लगता था कि उसकी बहन ने वैभव के साथ ऐसा संबंध बना कर बहुत ही नीच और गिरा हुआ कार्य किया है और साथ ही खानदान की इज्ज़त को दाग़दार किया है। उसने ये समझने की कभी कोशिश ही नहीं की थी कि उसकी बहन ने अगर ऐसा किया था तो सिर्फ अपने प्रेम को साबित करने के चलते किया था।

आज मुद्दतों बाद रूपचंद्र को अपने कमरे में दाखिल होते देख रूपा चौंकी तो थी ही किंतु एक अपराध बोझ के चलते उसने अपना सिर भी झुका लिया था। ये अलग बात है कि अपने भाई के प्रति उसके मन में भी नाराज़गी और गुस्सा विद्यमान था। उधर रूपचंद्र कमरे में दाखिल हुआ और फिर अपनी बहन की तरफ ध्यान से देखने लगा। उसने देखा रूपा उसकी तरफ देखने से कतरा रही थी। ये देख उसके दिल में एक हूक सी उठी जिसके चलते कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर वेदना के चिन्ह उभरते नज़र आए। उसने ख़ामोशी से पलट कर दरवाज़े को अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर उसी ख़ामोशी के साथ पलंग के एक कोने में सिमटी बैठी रूपा की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो उसके क़रीब पहुंच गया। कुछ पलों तक वो रूपा को निहारता रहा और फिर आहिस्ता से पलंग के किनारे बैठ गया।

"मैं जानता हूं कि तू अपने इस भाई से बहुत नाराज़ है।" फिर उसने अधीरता से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"और नाराज़ होना भी चाहिए। मैंने कभी भी तुझे समझने की कोशिश नहीं की बल्कि ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि मैंने तुझे समझने के बारे में सोचा तक नहीं। तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आज मुद्दतों बाद मुझे खुद ही ये एहसास हो रहा है कि मैंने अपनी उस बहन को कभी नहीं समझा जिसे कभी मैं बहुत प्रेम करता था और जो कभी मेरी धड़कन हुआ करती थी। मैंने हमेशा वैभव के साथ तेरे संबंध को ग़लत नज़रिए से सोचा और तेरे बारे में तरह तरह की ग़लत धारणाएं बनाता रहा। शायद यही वजह थी कि मेरे अंदर तेरे लिए नाराज़गी और गुस्सा हमेशा ही कायम रहा। जबकि मुझे समझना चाहिए था और सबसे बड़ी बात तुझ पर भरोसा करना चाहिए था। मुझे समझना चाहिए था कि जब किसी इंसान को किसी से प्रेम हो जाता है तो वो उसके लिए पूरी तरह समर्पित हो जाता है। वो अपना सब कुछ अपने प्रेम में न्यौछावर कर देता है, क्योंकि उसकी नज़र में उसका अपने आप पर कोई अधिकार ही नहीं रह जाता है। काश! इतनी सी बात मैं पहले ही समझ गया होता तो मैं तेरे बारे में कभी ग़लत न सोचता और ना ही तुझसे नाराज़ रहता। मुझे माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं तेरा गुनहगार हूं। कई दिनों से तेरे पास आ कर तुझसे माफ़ी मांगना चाहता था मगर शर्मिंदगी के चलते हिम्मत ही नहीं होती थी। आज बहुत हिम्मत जुटा कर तेरे पास आया हूं। मैं जानता हूं कि मेरी मासूम बहन का दिल बहुत बड़ा है और वो अपने इस नासमझ भाई को झट से माफ़ कर देगी।"

"भ...भैया!!" रूपचंद्र की बात ख़त्म हुई ही थी कि रूपा एकदम से रोते हुए किसी बिजली की तरह आई और रूपचंद्र के गले से लिपट गई। उसकी आंखों से मोटे मोटे आंसुओं की धारा बहने लगी थी। रूपचंद्र खुद भी अपनी आंखें छलक पड़ने से रोक न सका। उसने रूपा को अपने सीने से इस तरह छुपका लिया जैसे कोई मां अपने छोटे से बच्चे को अपने सीने से छुपका लेती है।

"आह! आज मुद्दतों बाद तुझे अपने सीने से लगा कर तेरे इस भाई को बड़ा ही सुकून मिल रहा है रूपा।" रूपचंद्र ने रुंधे गले से कहा____"इतने समय से मेरा जलता हुआ हृदय एकदम से ठंडा पड़ गया सा महसूस हो रहा है।"

"मैं भी ऐसा ही महसूस कर रही हूं भैया।" रूपा ने सिसकते हुए कहा____"आप नहीं समझ सकते कि आज आपके इस तरह मुझे अपने सीने से लगा लेने से मेरी आत्मा पर से कितना बड़ा बोझ हट गया है। ऐसा लगता है जैसे मेरे अस्तित्व का फिर से एक नया जन्म हो गया है।"

"कुछ मत कह पगली।" रूपचंद्र ने बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"देर से ही सही मगर अब मैं तेरी भावनाओं को बखूबी समझ रहा हूं। मुझे एहसास हो गया है कि तूने अब तक किस अजीयत के साथ अपने दिन रात गुज़ारे हैं लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। तेरा ये भाई तुझे वचन देता है कि अब से तुझे कोई दुख नहीं सहना पड़ेगा। तेरे रास्ते की हर रुकावट को मैं दूर करूंगा और हर पल तेरे लिए दुआ करूंगा कि तू हमेशा खुश रहे। तुझे वो मिले जिसकी तूने ख़्वाईश की है।"

"ओह! भैया।" रूपा अपने भाई की बातें सुन कर और भी ज़्यादा ज़ोरों से उससे छुपक गई। उसकी आंखें फिर से मोटे मोटे आंसू बहाने लगीं।

रूपचंद्र ने उसे खुद से अलग किया और अपने हाथों से उसके आंसू पोंछने लगा। रोने की वजह से रूपा का खूबसूरत चेहरा बुरी तरह मलिन पड़ गया था। रूपचंद्र की आंखें भी भींगी हुईं थी जिन्हें उसने साफ करने की ज़रूरत नहीं समझी बल्कि जब रूपा ने देखा तो उसने ही अपने हाथों से उसकी भींगी आंखों को पोंछा। बंद कमरे में भाई बहन के इस अनोखे प्यार और स्नेह का एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था इस वक्त।

"मुझसे वादा कर कि अब से तू आंसू नहीं बहाएगी।" रूपचंद्र ने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"तुझे जिस किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तू मुझसे कहेगी। यूं समझ ले कि अब से तेरा ये भाई तेरी खुशी के लिए कुछ भी कर जाएगा।"

"आपने इतना कह दिया मेरे लिए यही बहुत है भैया।" रूपा ने अधीरता से कहा____"मुझे अपने सबसे ज़्यादा प्यार करने वाले भैया वापस मिल गए। मेरे लिए यही सबसे बड़ी खुशी की बात है।"

"तूने मुझे माफ़ तो कर दिया है ना?" रूपचंद्र ने उसकी आंखों में देखा।

"आपने ऐसा कुछ किया ही नहीं है जिसके लिए आपको मुझसे माफ़ी मांगनी पड़े।" रूपा ने बड़ी मासूमियत से कहा____"मेरा ख़याल है कि आपने वही किया है जो हर भाई उन हालातों में करता या सोचता।"

"नहीं रूपा।" रूपचंद्र ने सहसा खेद भरे भाव से कहा____"कम से कम तेरे बारे में मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था। मैं तुझे बचपन से जानता था। हम दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। मुझे अच्छी तरह पता है कि मेरी बहन के मन में भूल से भी कभी कोई ग़लत ख़याल नहीं आ सकता था। खोट तो मेरे मन में था मेरी बहना। मन तो मेरा ही मैला हो गया था जिसकी वजह से मैंने अपनी सबसे चहेती बहन के बारे में ग़लत सोचा और इतना ही नहीं जब तुझे सबसे ज़्यादा मेरी ज़रूरत थी तब मैं तेरे साथ न हो कर तेरे खिलाफ़ हो गया था।"

"भूल जाइए भैया।" रूपा ने बड़े स्नेह से रूपचंद्र का दायां गाल सहला कर कहा____"इस दुनिया में सबसे ग़लतियां होती हैं। अगर आपसे हुई हैं तो मुझसे भी तो हुई हैं। मैंने भी तो अपने खानदान और अपने परिवार की मान मर्यादा का ख़याल नहीं रखा था।"

"छोड़ ये सब बातें।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूं। तू भी उस बुरे वक्त को भूल जा। अब तो बस खुशियां मनाने की बारी है। अरे! तेरी सबसे बड़ी ख़्वाईश पूरी होने वाली है। अगले साल हमेशा के लिए तुझे वो शख़्स मिल जाएगा जिसे तूने बेहद प्रेम किया है। चल अब इसी बात पर मुस्कुरा के तो दिखा दे मुझे।"

रूपचंद्र की ये शरारत भरी बात सुन कर रूपा एकदम से शर्मा गई और उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर मुस्कान उभर आई। लेकिन अगले ही पल उसकी वो मुस्कान गायब हो गई और उसके चेहरे पर उदासी के बादल मंडराते नज़र आए। रूपचंद्र ने भी इस बात पर गौर किया।

"क्या हुआ?" फिर उसने फिक्रमंद हो कर उससे पूछा____"अचानक तेरे चेहरे पर ये उदासी क्यों छा गई है? बता मुझे, आख़िर तेरी इस उदासी की वजह क्या है?"

"कुछ नहीं भैया।" रूपा ने बात को टालने की गरज से कहा____"कोई ख़ास बात नहीं है।"

"तुझे बचपन से जानता हूं मैं।" रूपचंद्र ने कहा____"तेरी हर आदत से परिचित हूं मैं। इस लिए यकीन के साथ कह सकता हूं कि तेरी इस उदासी की वजह कोई मामूली बात नहीं है। तू मुझे बता सकती है रूपा। अपने इस भाई पर भरोसा रख, मैं तेरी हर परेशानी को दूर करने के लिए अपनी जान तक लगा दूंगा।"

"नहीं नहीं भैया।" रूपा ने घबरा कर झट से अपनी हथेली रूपचंद्र के मुख पर रख दी____"ऐसा कभी दुबारा मत कहिएगा। इस परिवार में अब सिर्फ आप ही तो बचे हैं, अगर आपको भी कुछ हो गया तो हम सब जीते जी मर जाएंगे। रही बात मेरी उदासी की तो आप चिंता मत कीजिए और यकीन कीजिए ये बस मामूली बात ही है। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।"

"अगर तू कहती है तो मान लेता हूं।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ली, फिर सहसा मुस्कुराते हुए बोला____"अच्छा ये बता मेरे होने वाले जीजा श्री से मिलने का मन तो नहीं कर रहा न तेरा? देख अगर ऐसा है तो तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मेरे रहते जीजा जी की तरफ जाने वाले तेरे रास्ते पर कोई रुकावट नहीं आएगी।"

"धत्त।" रूपा बुरी तरह शर्म से सिमट गई। उसे अपने भाई से ऐसी बात की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी, बोली____"ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?"

"अरे! इसमें ग़लत बात क्या है भला?" रूपचंद्र ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा____"मैं तो अपनी प्यारी बहन की खुशी वाली बात ही कर रहा हूं। एक भाई होने के नाते ये मेरा फर्ज़ है कि मैं अपनी बहन की हर खुशी का ख़याल भी रखूं और उसे खुश भी रखूं। अब क्योंकि मुझे पता है कि आज के समय में अगर मेरी बहन की मुलाक़ात उसके होने वाले पतिदेव से हो जाए तो उसे कितनी बड़ी खुशी मिल जाएगी इसी लिए तो तुझसे वैसा कहा मैंने।"

"बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा बुरी तरह शर्मा तो रही ही थी किंतु वो बौखला भी गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने भाई की बातों का वो क्या जवाब दे। हालाकि एक सच ये भी था कि अपने भाई से अपने होने वाले पतिदेव से मिलने की बात सुन कर उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी और साथ ही उसके मन का मयूर नाचने लगा था।

"हद है भई।" रूपचंद्र ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा अब। ठीक है फिर, अगर तू यही चाहती है तो यही सही। वैसे आज मैंने अपने होने वाले जीजा श्री से भी मिलने का सोचा हुआ था। सोचा था अपनी बहन की खुशी का ख़याल करते हुए उनसे तेरे मिलने का कोई बढ़िया सा जुगाड़ भी कर दूंगा मगर अब जब तेरी ही इच्छा नहीं है तो मैं उन्हें मना कर दूंगा।"

"न...न...नहीं तो।" रूपा बुरी तरह हड़बड़ा गई। बुरी तरह हकलाते हुए बोल पड़ी____"म..मेरा मतलब है कि......नहीं...आप....जाइए मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।"

रूपा लाज के चलते खुल कर जब कुछ बोल ना पाई तो अंत में बुरा सा मुंह बना कर रूपचंद्र से रूठ गई। ये देख रूपचंद्र ठहाका लगा कर हंसने लगा। पूरे कमरे में उसकी हंसी गूंजने लगी। इधर उसे यूं हंसता देख रूपा ने और भी ज़्यादा मुंह बना लिया।

"अरे! अब क्या हुआ तुझे?" रूपचंद्र ने फौरन ही अपनी हंसी रोकते हुए उससे पूछा____"इस तरह मुंह क्यों बना लिया तूने?"

"मुझे आपसे कोई बात ही नहीं करना।" रूपा ने पूर्व की भांति ही रूठे हुए लहजे से कहा____"आप बहुत ख़राब हैं।"

"अरे! भला मैंने ऐसा क्या कर दिया?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं तो तेरी भलाई की बात ही कर रहा था। अब जब तुझे ही मंज़ूर नहीं है तो मैं क्या करूं भला?"

"सब कुछ जानते समझते हुए भी आप मुझसे ऐसी बात कर रहे हैं।" रूपा ने अपनी आंखें बंद कर के मानों एक ही सांस में कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि आपको हर चीज़ का बखूबी एहसास है, फिर ये क्या है?"

"अरे! तो इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है?" रूपचंद्र ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"तुझे अगर जीजा श्री से मिलना ही है तो साफ साफ कह दे ना। मैं ख़ुद तुझे उन महापुरुष के पास ले जाऊंगा।"

"सच में बहुत ख़राब हैं आप।" रूपा का चेहरा लाजवश फिर से लाल सुर्ख पड़ गया, नज़रें झुकाए बोली____"आप ये क्यों नहीं समझते कि एक बहन अपने बड़े भाई से इस तरह की कोई बात नहीं कह सकती।"

"हां जानता हूं पागल।" रूपचंद्र ने कहा___"मैं तो बस तुझे छेड़ रहा था। तुझे इन सब बातों के लिए मुझसे शर्माने की कोई ज़रूरत नहीं है। तू मुझसे बेझिझक हो कर कुछ भी कह सकती है। मैं तो बस ये चाहता हूं कि मेरी बहन हर तरह से खुश रहे। और हां, मैं जानता हूं कि तू वैभव से मिलना चाहती है। उससे ढेर सारी बातें करना चाहती है। इसी लिए तो तुझसे कहा था मैंने कि मैं तेरी मुलाक़ात करवा दूंगा उससे।"

रूपचंद्र की बातें सुन कर रूपा बोली तो कुछ नहीं लेकिन खुशी के मारे उसके गले ज़रूर लग गई। रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए उसकी पीठ सहलाई और फिर उसे खुद से अलग कर के कहा____"फ़िक्र मत कर, जल्दी ही मैं तेरी ये इच्छा पूरी करूंगा। अब चल मुस्कुरा दे....।"

रूपा के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई और साथ ही उसके होठों पर मुस्कान भी उभर आई। ये देख रूपचंद्र ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पलंग से नीचे उतर कर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। जैसे ही वो दरवाज़ा खोल कर बाहर गया तो रूपा झट से पलंग पर से उतर कर दरवाज़े के पास पहुंची। दरवाजे को उसने फ़ौरन ही बंद किया और फिर तेज़ी से पलंग पर आ कर पीठ के बल लेट गई। छत के कुंडे पर झूलते पंखे पर निगाहें जमाए वो जाने क्या क्या सोचते हुए मुस्कुराने लगी।

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Tiger 786

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अध्याय - 49
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अब तक....

पिता जी ने जो कहा था वो मैं भी समझ रहा था लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कर कौन रहा था? आख़िर क्या दुश्मनी थी हमारी उससे? आख़िर ऐसा क्यों था कि उसने सिर्फ़ हम दोनों भाईयों को ही मौत के मुंह तक पहुंचा दिया था जबकि जगताप चाचा के बेटों पर उसने किसी तरह की भी आंच नहीं लगाई थी? ये क्या रहस्य था? क्या वो जगताप चाचा और उनके परिवार को अपना समझता था या फिर ऐसा वो जान बूझ कर रहा था ताकि हम जगताप चाचा पर ही शक करें और उनके अलावा किसी और के बारे में न सोचें? कुछ देर पिता जी और बड़े भैया इसी विषय में बातें करते रहे उसके बाद वो चले गए। उनके जाने के बाद मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर आ कर लेट गया। सोचते विचारते पता ही न चला कब आंख लग गई मेरी।

अब आगे....

सुबह हम सब नाश्ता कर रहे थे। एक लंबी आयताकार मेज के चारो तरफ नक्काशी की हुई लकड़ी की कुर्सियां रखी हुईं थी जिन पर हम सब बैठे नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते वक्त कोई बात नहीं कर सकता था किंतु मैं महसूस कर रहा था कि जगताप चाचा बार बार पिता जी की तरफ देख कर कुछ कहने की हिम्मत जुटाते और फिर बिना कुछ बोले ही सिर झुका कर थाली पर रखे परांठे को यूं ही तोड़ने का नाटक करने लगते। उधर पिता जी को भी शायद ये आभास हो गया था इस लिए वो भी कुछ पलों के अंतराल में उनकी तरफ देख लेते थे लेकिन ये संयोग अथवा इत्तेफ़ाक ही था कि इतनी देर में अब तक उन दोनों की नज़रें आपस में टकरा नहीं पाईं थी। मैंने देखा एक तरफ विभोर और अजीत भी सिर झुकाए नाश्ता करने में व्यस्त थे। उन दोनों ने अब तक सिर ही नहीं उठाया था। मैं समझ सकता था कि कल के हादसे के बाद दोनों के अंदर अब इतनी हिम्मत ही ना बची होगी कि वो हम में से किसी से नज़रें मिला सकें।

"पहले अपने मन को शांत करके नाश्ता कर लो जगताप।" तभी सहसा ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने जगताप चाचा की तरफ देखते हुए अपनी भारी आवाज़ में कहा____"उसके बाद जो भी तुम्हारे मन में हो उसे हमसे बेझिझक कह देना।"

"ज...जी बड़े भैया।" जगताप चाचा ने धीमें स्वर में किंतु सम्मान से कहा और फिर चुपचाप नाश्ता करने लगे। पिता जी कुछ पलों तक उन्हें देखते रहे उसके बाद वो भी ख़ामोशी से नाश्ता करने लगे।

आख़िर किसी तरह हम सब का नाश्ता हुआ और फिर हम सब कुर्सियों से उठे। विभोर और अजीत ऊपर अपने कमरे की तरफ जाने लगे तो जगताप चाचा ने उन्हें रोक लिया। मैं समझ गया कि कुछ तो होने वाला है। मैंने बड़े भैया की तरफ देखा तो उन्होंने भी मुझे देखा। हमने आंखों के इशारे से ही एक दूसरे से पूछा कि जगताप चाचा आख़िर क्या करने वाले हैं पर शायद इसका जवाब न उनके पास था और ना ही मेरे पास। ख़ैर पिता जी के कहने पर कुछ ही देर में हम सब बैठक में आ गए।

"हम नहीं जानते कि तुम्हारे मन में नाश्ता करते वक्त ऐसा क्या था जिसके लिए तुम कुछ ज़्यादा ही बेचैन दिख रहे थे।" पिता जी ने अपनी सिंघासननुमा कुर्सी पर बैठने के बाद कहा____"हम ज़रूर तुम्हारे मन की बात जानना चाहेंगे किंतु उससे पहले तुम ये जान लो कि हमारे भतीजों ने वैभव के साथ जो कुछ भी किया है उसके लिए हमने उन्हें माफ़ कर दिया है और यकीन मानों तुम्हारे भतीजे ने भी अपने छोटे भाइयों को माफ़ कर दिया होगा।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं बड़े भैया?" जगताप चाचा ने हैरान परेशान से लहजे में कहा____"आप ऐसा कुकर्म करने वाले मेरे कपूतों को कैसे माफ़ कर सकते हैं? मैं तो कल ही उन दोनों को उनके किए की सज़ा देना चाहता था लेकिन आपने ही मुझे रोक लिया था। मुझे रात भर ये सोच सोच कर नींद नहीं आई कि मेरी अपनी औलादों ने इतना गन्दा कुकर्म किया है। मैं रात भर ऊपर वाले से यही सवाल करता रहा कि आख़िर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी वजह से उसने मुझे ऐसा कुकर्म करने वाली औलादें प्रदान की है? ऐसी औलाद होने से तो अच्छा था कि मेरी कोई औलाद ही न होती। मैं तो शुरू से वैभव को ही अपने बेटे की तरह प्यार और स्नेह करता आया हूं और सच कहूं तो मुझे उसके जैसा भतीजा पाने पर गर्व भी है। माना कि उसने अपने जीवन में कुछ ग़लतियां की थीं लेकिन उसकी वो ग़लतियां ऐसी तो हर्गिज़ नहीं थी जिसके लिए किसी की अंतरात्मा को ही चोट लग जाए।"

"शांत हो जाओ जगताप।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारे जैसे इंसान को इस तरह भावनाओं में बहना शोभा नहीं देता। हम मानते हैं कि विभोर और अजीत ने जो किया है वो बहुत ही ग़लत है किंतु तुम भी जानते हो कि ग़लतियां हर इंसान से होती हैं। इंसान ग़लती करता है तो उस ग़लती से उसे अच्छे बुरे का सबक भी मिलता है। अगर कोई किसी तरह की ग़लती ही न करे तो भला कैसे किसी को अच्छे बुरे का ज्ञान हो पाएगा। इंसान को अपने जीवन में ग़लतियां करना भी ज़रूरी है लेकिन हां, ग़लतियों से हमें सबक सीखना चाहिए और फिर दुबारा वैसी ग़लतियां ना करने का संकल्प भी लेना चाहिए।"

"पर इन्होंने ग़लती कहां की है बड़े भैया?" जगताप चाचा ने आहत भाव से कहा____"इन्होंने तो अपराध किया है। हद दर्जे का पाप किया है इन लोगों ने और पाप करने पर माफ़ी नहीं दी जाती।"

"पाप से याद आया।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए सहसा मेरी तरफ देखा____"हमने इन दोनों के मुख से और खुद तुम्हारे मुख से ये तो सुना था कि इन लोगों ने कुसुम को मजबूर किया हुआ था। हम जानना चाहते हैं कि इन दोनों ने हमारी फूल सी कोमल बेटी को आख़िर किस तरह से मजबूर किया हुआ था? हम सब जानते हैं कि कुसुम तुम्हारी लाडली है और वो खुद भी अपने सभी भाइयों में सबसे ज़्यादा तुम्हें ही मानती हैं तो ज़ाहिर है कि वो इतनी आसानी से इस बात के लिए तैयार नहीं हुई होगी कि वो तुम्हें चाय में नामर्द बना देने वाली दवा मिला कर पिलाए। हमें यकीन है कि हमारी बच्ची मर जाना पसंद करती लेकिन वो ऐसा काम इनके कहने पर हर्गिज़ नहीं करती। इस लिए हम जानना चाहते हैं कि ऐसी कौन सी बात थी जिसकी वजह से वो मासूम इतना बड़ा अपराध करने पर मजबूर हो गई थी? ऐसी कौन सी बात थी जिसके द्वारा मजबूर हो कर वो अपने उस भाई को ही नामर्द बनाने की राह पर चल पड़ी थी जिस भाई को वो दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करती है?"

"माफ़ कीजिए पिता जी।" मैंने सहसा दृढ़ भाव से कहा____"लेकिन मैं आपको इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकता और मेरी आपसे विनती भी है कि इस बारे में आप इन दोनों से भी कुछ नहीं पूछेंगे।"

"आख़िर बात क्या है?" पिता जी के साथ साथ जगताप चाचा के भी चेहरे पर गहन हैरानी के भाव उभर आए थे____"तुम इस बारे में कुछ भी बताने से और हमारे द्वारा इनसे पूछने के लिए क्यों मना कर रहे हो?"

"सिर्फ़ इतना समझ लीजिए पिता जी कि मैं अपनी मासूम बहन को किसी की भी नज़रों से गिराना नहीं चाहता।" मैंने गंभीरता से कहा____"मैं नहीं चाहता कि उसके प्रति सबके दिल में जो प्यार और स्नेह है उसमें कमी आ जाए।"

मेरी बात सुन कर विभोर और अजीत के अलावा बाकी सब सोच में पड़ गए थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था। विभोर और अजीत ने तो जैसे शर्म से अपना चेहरा ही ज़मीन पर गाड़ लिया था।

"अगर हमारी फूल सी कोमल बेटी की प्रतिष्ठा का सवाल है।" फिर पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"तो हमें इस बारे में कुछ भी नहीं जानना और हम ये भी चाहते हैं कि कोई उससे भी इस बारे में कोई बात न करे। हम किसी भी कीमत पर अपनी बेटी के चेहरे से उसकी हंसी और उसका चुलबुलापन मिटाना नहीं चाहते। ख़ैर, हमने फ़ैसला कर लिया है कि जो कुछ भी इन दोनों ने किया है उसके लिए हम इन्हें माफ़ करते हैं और आइंदा से हम इनसे बेहतर इंसान बनने की उम्मीद करते हैं।"

"आपने भले ही इन्हें माफ़ कर दिया है बड़े भैया।" जगताप चाचा ने शख़्त भाव से कहा____"लेकिन मैं इन्हें कभी माफ़ नहीं कर सकता और ना ही इनकी शक्ल देखना चाहता हूं। मुझे माफ़ कीजिए भैया क्योंकि मैं आपके फ़ैसले के खिलाफ़ जा रहा हूं लेकिन मैं बता नहीं सकता कि इनकी वजह से मेरी अंतरात्मा को कितनी ठेस पहुंची है। मैंने फ़ैसला किया है कि अब से ये दोनों इस हवेली में ही क्या बल्कि इस गांव में ही नहीं रहेंगे।"

"तुम होश में तो हो जगताप?" पिता जी एकदम कठोर भाव से बोल पड़े थे____"ये क्या अनाप शनाप बोल रहे हो तुम?"

"माफ़ कीजिए भैया।" जगताप चाचा की आंखें छलक पड़ीं, बोले____"पर आप समझ ही नहीं सकते कि इस वक्त मेरे दिल पर क्या बीत रही है। मैंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मुझे अपनी ही औलाद की करनी की वजह से इस क़दर शर्मिंदा होना पड़ जाएगा कि मैं आपके सामने ही क्या बल्कि किसी के भी सामने सिर उठा कर खड़ा नहीं रह पाऊंगा। काश! ऐसी स्थिति आने से पहले मुझे मौत आ गई होती।"

"ज..जगताप।" पिता जी एकदम सिंहासन से उठ कर चाचा के पास आए और उनके कंधे पर हाथ रख कर अधीरता से बोले_____"क्या हो गया है तुम्हें? आख़िर इतना हताश और दुखी क्यों हो रहे हो तुम? तुम ये सोच भी कैसे सकते हो कि महज इतनी सी बात पर तुम हमारी नज़रों से गिर जाओगे? ये जो कुछ भी हुआ है उसके बारे में तुम्हें इतना कुछ सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। एक बात अच्छी तरह याद रखो कि तुम जैसा भाई पा कर हम हमेशा से गर्व करते आए हैं और तुम्हारे प्रति हमारे दिल में जो ख़ास जज़्बात हैं वो कभी नहीं मिट सकते। इस लिए ये सब बेकार की बातें सोच कर तुम खुद को हताश और दुखी मत करो। विभोर और अजीत जितना तुम्हारे बेटे हैं उतना ही वो हमारे भी बेटे हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं कि उनके अंदर वैभव के प्रति जो ईर्ष्या पैदा हुई थी उसने एक दिन नफ़रत का रूप ले लिया और फिर उस नफ़रत ने उनसे ऐसा कर्म करवा दिया था। हमें यकीन है कि अब वो ऐसी ग़लती दुबारा नहीं करेंगे, इसी लिए उनकी इस ग़लती को उनकी आख़िरी ग़लती समझ कर हमने उन्हें माफ़ कर देना बेहतर समझा।"

"आप सच में महान हैं भैया।" जगताप चाचा आंसू भरी आंखों से देखते हुए बोले____"मुझे अपनी सेवा और अपनी क्षत्रछाया से कभी दूर मत कीजिएगा। आप मेरे सब कुछ हैं। मैं मरते दम तक आपकी छाया बन कर आपके साथ रहना चाहता हूं।"

"एकदम पागल हो तुम।" पिता जी ने लरजते स्वर में कहा और जगताप चाचा को अपने गले से लगा लिया। उनकी आंखें भी नम हो गईं थी। मैं और बड़े भैया दोनों भाईयों के इस प्रेम को देख कर एक अलग ही तरह का सुखद एहसास महसूस करने लगे थे। उन्हें इस तरह एक दूसरे के गले से लगा हुआ देख मैंने बड़े भैया की तरफ देखा। उन्होंने भी मुझे बड़े ही प्रेम भाव से देखा और फिर हल्के से मुस्कुराए। जाने क्यों मेरे अंदर के जज़्बात मचल उठे और मैं एकदम से उनसे लिपट गया। उनके सीने से लगा तो बड़ा ही सुखद एहसास हुआ जिसके चलते मेरी आंखें सुकून से बंद हो गईं।


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हवेली के बाहर अचानक शोर गुल सुनाई दिया तो बैठक में बैठे हम सब चौंके। अभी मैं शोर गुल सुन कर बाहर जाने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया। पिता जी के पूछने पर उसने बताया कि गांव के कुछ लोग चेहरे पर आक्रोश लिए हाथी दरवाज़े के अंदर आ गए हैं और बार बार दादा ठाकुर से न्याय चाहिए की बातें कह रहे हैं। दरबान की बात सुन कर पिता जी एक झटके में अपने सिंहासन से उठ खड़े हुए। उसके बाद फ़ौरन ही हम सब उनके पीछे बाहर की तरफ चल दिए।

बाहर आए तो देखा सच में गांव के काफी सारे लोग हवेली के मुख्य दरवाज़े से थोड़ी दूरी पर खड़े थे। उन लोगों में शीला और रेखा के पति भी थे। उन दोनों को देख कर मैं समझ गया कि वो लोग कौन से न्याय पाने की चाहत में यहां आए हैं।

"क्या बात है? तुम सब यहां एक साथ किस लिए आए हो?" पिता जी ने उन सबकी तरफ देखते हुए थोड़ा ऊंची आवाज़ में पूछा।
"हम सब यहां आपसे न्याय मांगने आए हैं दादा ठाकुर।" उन लोगों में से उस व्यक्ति ने तेज़ आवाज़ में कहा जिसका नाम सरजू था।

"आख़िर बात क्या है?" पिता जी ने ऊंची आवाज़ में ही पूछा____"किस तरह का न्याय मांगने आए हो तुम लोग हमसे?"

"छोटे मुंह बड़ी बात होगी दादा ठाकुर।" सरजू ने सहसा अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"आज तक हम गांव वाले कभी आपके सामने इस तरह नहीं आए और ना ही कभी आपसे ज़ुबान लड़ाने की हिम्मत की है लेकिन हमारे साथ जो कुछ हुआ है उसका इंसाफ़ कौन करेगा? आप हमारे माई बाप हैं, इस लिए आपसे ही तो न्याय के लिए गुहार लगाएंगे न?"

"बिलकुल।" पिता जी ने कहा____"और ये तुम सबका अधिकार भी है। तुम सबकी तक़लीफों को सुनना और उन्हें दूर करना हमारा फर्ज़ है। इस लिए अगर तुम लोगों के साथ किसी प्रकार की नाइंसाफी हुई है तो उसके लिए तुम लोग बेझिझक हो कर इंसाफ़ की मांग कर सकते हो। ख़ैर, अब बताओ कि तुम लोगों के साथ क्या नाइंसाफी हुई है और किसने नाइंसाफी की है?"

"माफ़ कीजिए दादा ठाकुर पर नाइंसाफी तो आपके द्वारा ही की गई है।" उन लोगों में से एक कलुआ नाम के आदमी ने कहा____"हमारे घर की औरतें आपकी हवेली में काम करती हैं और फिर बेवजह ही अचानक से उनकी मौत हो जाती है। क्या हमारा ये जानने का भी हक़ नहीं है कि रेखा और शीला की इस तरह से मौत कैसे हो गई? अभी कल शाम की ही बात है, छोटे ठाकुर शीला को खोजते हुए उसके घर आए थे और उसके कुछ ही समय बाद उसकी हत्या हो गई। उसके पहले सुबह रेखा के बारे में पता चला था कि उसने ज़हर खा कर खुद खुशी कर ली थी। हम जानना चाहते हैं दादा ठाकुर कि हम ग़रीबों के घर की औरतों के साथ अचानक ये सब क्यों और कैसे हो गया? आख़िर क्यों रेखा ने खुद खुशी की और क्यों शीला की हत्या कर दी गई?"

"रेखा और शीला के साथ जो कुछ भी हुआ है।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"वो यकीनन बहुत बुरा हुआ है और हम खुद इस बात से हैरान और परेशान हैं कि उनके साथ ये अचानक से क्यों हो गया? हम इस सबके बारे में पता लगा रहे हैं। जिस किसी का भी उन दोनों की मौत में हाथ होगा उसे शख़्त से शख़्त सज़ा दी जाएगी।"

"हमें इन बातों से मत बहलाइए दादा ठाकुर।" रंगा नाम के आदमी ने पिता जी को घूरते हुए कहा____"रेखा ने आपकी हवेली में खुद खुशी की थी तो ज़ाहिर है कि हवेली में ही कुछ ऐसा हुआ होगा जिसके चलते उसे खुद खुशी कर के अपनी जान देनी पड़ी। क्या पता हवेली में किसी ने उसे ज़हर खिला कर जान से मार दिया हो और अफवाह ये उड़ा दी गई कि उसने खुद खुशी की है। इसी तरह देवधर की बीवी को खोजने आपके छोटे बेटे कुंवर आए थे और उसके कुछ ही देर बाद आपके ही बाग़ में उसकी गला रेत कर हत्या कर दी गई। ज़ाहिर है कि शीला की हत्या का मामला भी हवेली से ही जुड़ा है। हम जानना चाहते हैं दादा ठाकुर कि असलियत क्या है?"

"तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई दादा ठाकुर पर आरोप लगाने की?" जगताप चाचा एकाएक गुस्से से चीख पड़े थे। रंगा की बातें सुन कर गुस्सा तो मुझे भी बहुत ज़्यादा आ गया था किंतु मुझसे पहले जगताप चाचा बोल पड़े थे_____"क्या तुम लोग रेखा और शीला की मौत का जिम्मेदार हमें समझते हो?"

"शांत हो जाओ जगताप।" पिता जी ने बड़े धैर्य से कहा_____"इन पर इस तरह गुस्से से चिल्लाना ठीक नहीं है।"
"क्यों ठीक नहीं है बड़े भैया?" जगताप चाचा मानों बिफर ही पड़े____"इन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हम पर इस तरह से आरोप लगाने की? इनके कहने का तो यही मतलब है कि रेखा और शीला की मौत के जिम्मेदार हम ही हैं। ये साफ़ साफ़ हमें उन दोनों का हत्यारा कह रहे हैं।"

"तो क्या ग़लत कह रहे हैं ये लोग?" पिता जी ने शांत भाव से कहा____"रेखा ने हवेली में खुद खुशी की तो इसके जिम्मेदार हम हैं, इसी तरह शीला की हत्या हमारे बाग़ में हुई तो उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। दोनों का हवेली से संबंध था यानि हमसे। ये लोग अगर उन दोनों की मौत का जिम्मेदार हमें ठहरा रहे हैं तो ग़लत नहीं है। हमें इन सबको जवाब देना पड़ेगा जगताप। हमें इनको बताना पड़ेगा कि हमारी हवेली में काम करने वाली दो दो नौकरानियां अचानक से मौत का ग्रास क्यों बन गईं?"

"तो जवाब देने से इंकार कहां कर रहे हैं हम बड़े भैया?" जगताप चाचा ने कहा____"हम खुद भी तो जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों हुआ है लेकिन इसके लिए ये लोग सीधे तौर पर आप पर आरोप नहीं लगा सकते।"

"जिनके घर की औरतों की इस तरह मौत हो गई हो उनकी मनोदशा के बारे में सोचो जगताप।" पिता जी ने कहा____"ये सब दुखी हैं। इस दुख में इन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा कि ये लोग क्या कह रहे हैं? इनकी जगह पर खुद को रख कर सोचोगे तो समझ जाओगे कि ये लोग अपनी जगह ग़लत नहीं हैं।"

पिता जी जगताप चाचा को समझा रहे थे और मैं ख़ामोशी से खड़ा ये सोच रहा था कि पिता जी गांव वालों पर गुस्सा क्यों नहीं हुए? वो चाहते तो एक पल में इन लोगों की हेकड़ी निकाल देते, ये कह कर कि जिन रेखा और शीला की मौत का आरोप वो हम पर लगा रहे हैं वही रेखा और शीला हमारे दुश्मन के कहने पर हमारे खिलाफ़ जाने क्या क्या गुल खिला रहीं थी। मैं इस बात से थोड़ा हैरान था कि पिता जी इस बात को उनसे कहने की बजाय उनसे ऐसा कोमल बर्ताव कर रहे थे? मुझे लगा ज़रूर उनके ऐसा करने के पीछे कोई ना कोई ख़ास कारण होगा, पर क्या?

"हम तुम लोगों का दुख अच्छी तरह समझते हैं।" पिता जी की इस बात से मैं ख़्यालों से बाहर आया। उधर वो गांव वालों से कह रहे थे____"और हमें इस बात का भी बुरा नहीं लगा कि तुम लोग रेखा और शीला की मौत का आरोप हम पर लगा रहे हो। तुम्हारी जगह हम होते तो हम भी ऐसा ही करते। इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि उन दोनों की मौत हमारी हवेली और हमारे बाग़ पर हुई है लेकिन ऐसा क्यों और कैसे हुआ है इस बात का हम पता लगा कर ही रहेंगे। तुम लोग हमारे पास इंसाफ़ के लिए आए हो तो यकीन मानो हम ज़रूर इंसाफ़ करेंगे लेकिन उसके लिए हमें थोड़ा वक्त चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि तब तक के लिए तुम सब शांति और धैर्य से काम लोगे।"

पिता जी की ये बातें सुन कर गांव वाले आपस में कुछ खुसुर फुसुर करने लगे। कुछ देर बाद रंगा नाम के आदमी ने कहा____"ठीक है दादा ठाकुर, अगर आप हमसे थोड़ा वक्त चाहते हैं तो हमें मंजूर है और कृपया हमें माफ़ कीजिए कि हमने आपसे ऐसे तरीके से बातें की लेकिन यकीन मानिए हम में से किसी का भी इरादा आपका अपमान करने का नहीं था और ना ही कभी हो सकता है।"

रंगा की इस बात के बाद पिता जी ने सबको खुशी खुशी अपने अपने घर लौट जाने को कहा जिससे वो सब वापस चले गए। उन लोगों के चले जाने के बाद हम लोग भी वापस बैठक में आ गए। गांव वालों का इस तरह से हवेली पर आना और उन लोगों द्वारा इस तरीके से हम पर आरोप लगाते हुए बातें करना कोई मामूली बात नहीं हुई थी। ऐसा पहली बार हुआ था कि गांव के लोग बेख़ौफ हो कर हमारी हवेली पर आए थे और पूरी निडरता से हमसे ऐसी बातें की थी। ज़ाहिर है ये सब हमारे लिए काफी गंभीर बात हो गई थी।

पिता जी ने जगताप चाचा को इस मामले के बारे में पता लगाने का काम सौंपा तो वो बड़े अदब के साथ सिर नवा कर चले गए। विभोर और अजीत भी अंदर चले गए थे। अब बैठक में हम सिर्फ़ तीन लोग ही थे।

"आपने जगताप चाचा को इस मामले के बारे में पता लगाने का काम क्यों सौंपा पिता जी?" मैंने पिता जी को कुछ सोचते हुए देखा तो उनसे पूछा____"क्या आपको यकीन है कि वो इस मामले का पूरी ईमानदारी से पता लगाएंगे?"

"हम जानते हैं कि तुम दोनों के मन में इस वक्त कई सवाल होंगे।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु वक्त और हालात को देखते हुए हमारा ऐसा करना ज़रूरी था। जगताप को भी हमने इसी लिए ये काम सौंपा ताकि उसके मन में ये ख़्याल न उभरे कि हम उस पर संदेह करने लगे हैं। उसे ये काम सौंप कर हमने उसके मन में यही बात बैठाई है कि हमारी नज़र में अभी भी उसकी वही अहमियत है जो हमेशा से रही है। इससे वो खुश भी होगा और अपने काम में लगा भी रहेगा। अगर वो अपनी जगह बेकसूर है तो इस मामले में वो कुछ न कुछ तो करेगा ही और अगर वो हमारे खिलाफ़ है तब भी उसके द्वारा कुछ न कुछ करने से हमें लाभ हो सकता है। उसके लिए ज़रूरी है कि उस पर बारीकी से नज़र रखी जाए।"

"आपको क्या लगता है आज के वक्त में गांव के लोग हमारे बारे में क्या सोचते होंगे?" बड़े भैया ने पिता जी की तरफ देखते हुए थोड़ा झिझकते हुए पूछा____"अभी जिस तरह से गांव के कुछ लोगों ने हवेली में आ कर आपसे ऐसे लहजे में बातें की उससे क्या आपको नहीं लगता कि उनके अंदर से हमारे प्रति मान सम्मान और डर जैसी बात जा चुकी है?"

"हमारी सोच एवं नज़रिए में और तुम्हारी सोच तथा नज़रिए में यही तो फ़र्क है बर्खुरदार।" पिता जी ने हम दोनों को अजीब भाव से देखते हुए कहा____"तुम दोनों वो देख रहे थे जो फिलहाल मायने नहीं रखता था जबकि हम वो देख रहे थे जो उन लोगों में ख़ास नज़र आ रहा था। तुम दोनों ने शायद इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि गांव के जो लोग आए हुए थे उनमें से सिर्फ़ वही लोग ऐसी बातें कर रहे थे जो रेखा और शीला के कुछ भी नहीं लगते थे। उन लोगों के बीच रेखा का पति मंगल और शीला का पति देवधर दोनों ही मौजूद थे लेकिन उन दोनों ने एक बार भी इस मामले में हमसे कुछ भी नहीं कहा। क्या तुम लोग इस बात को समझते हो कि ऐसा क्यों हुआ होगा?"

पिता जी की बातें सुन कर तथा उनके इस सवाल पर मैं और बड़े भैया एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझने की कोशिश करने लगे। उधर पिता जी हम दोनों की तरफ कुछ देर ख़ामोशी से देखते रहे उसके बाद हल्के से मुस्कुराए।

"हर समय जोश से नहीं बल्कि होश से काम लेना चाहिए।" फिर उन्होंने जैसे हम दोनों भाईयों को समझाते हुए कहा____"जिस वक्त वो लोग उस लहजे में हमसे बातें कर रहे थे उस वक्त हमें भी बुरा लगा था और हमारा भी दिमाग़ ख़राब हुआ था। मन में एकदम से ख़्याल उभर आया था कि उन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमसे ऐसे लहजे में बात करने की लेकिन हमने अपने अंदर मचल उठे गुस्से को रोका और ठंडे दिमाग़ से काम लिया। तभी तो हमें नज़र आया कि उन लोगों के यहां आने का असल मकसद क्या था?"

"आप ये क्या कह रहे हैं पिता जी?" बड़े भैया बोल ही पड़े____"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
"पर शायद मुझे समझ आ गया है भैया।" मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए कहा____"शायद पिता जी के कहने का मतलब ये है कि गांव वालों का हवेली में आना और उनके द्वारा हमसे ऐसे लहजे में बात करने के पीछे एक ख़ास कारण है। जैसा कि पिता जी ने कहा उन लोगों में वही लोग हमसे ऐसे लहजे में बातें कर रहे थे और इंसाफ़ की मांग कर रहे थे जो रेखा और शीला के कुछ भी नहीं लगते थे जबकि रेखा और शीला दोनों के ही पति चुप थे। इसका मतलब ये हुआ कि किसी ने उनमें से कुछ लोगों को हमारे खिलाफ़ भड़काया है।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि सरजू कलुआ और रंगा तीनों ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें हमारे खिलाफ़ भड़काया गया है?" बड़े भैया ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मैंने कहा_____"बिलकुल, शायद यही सच पिता जी हमसे ज़ाहिर करना चाहते हैं।"

"हां, लेकिन ज़रूरी नहीं कि सिर्फ सरजू कलुआ और रंगा ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें हमारे खिलाफ़ भड़काया गया होगा।" पिता जी ने कहा_____"संभव है कि गांव के कुछ और लोगों को भी इसी तरह भड़काया गया हो। अभी तो फिलहाल तीन लोग ही नज़र में आए हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ये हमारे लिए निहायत ही गंभीर बात है। उन तीनों की भड़काने वाली बातों से मंगल और देवधर उस वक्त कुछ बोले नहीं थे इससे उन लोगों को अपने मकसद में आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिला था लेकिन ऐसी स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली है। अगर सच में उनका इरादा मंगल और देवधर को हमारे खिलाफ़ कर देना ही है तो वो देर सवेर अपने इस इरादे में ज़रूर सफल हो जाएंगे।"

"ये तो सच में विकट समस्या वाली बात हो गई पिता जी।" बड़े भैया गंभीरता से कह उठे____"ऐसी स्थिति में अब हमें क्या करना चाहिए?"

"हमें सरजू कलुआ और रंगा पर नज़र रखनी होगी।" पिता जी ने कहा____"वो भी कुछ इस तरीके से कि उन्हें खुद पर नज़र रखी जाने की भनक तक न लग सके। अगर वाकई में उन तीनों के इरादे नेक नहीं हैं और वो किसी के कहने पर ही ऐसा कर रहे हैं तो ज़रूर उन पर नज़र रखे जाने से हमें कुछ न कुछ फ़ायदा मिलेगा।"

"फिर तो हमें जल्द ही अपने कुछ भरोसे के आदमियों को उन पर नज़र रखने के काम पर लगा देना चाहिए पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"हमारे पास फिलहाल अपने असल दुश्मन तक पहुंचने का कोई रास्ता या सुराग़ नहीं है तो अगर इस तरह में हमारे हाथ कुछ लग जाता है तो ये बड़ी बात ही होगी।"

कुछ देर और इस संबंध में पिता जी से हमारी बातें हुईं उसके बाद हम दोनों भाई बैठक से चले गए। एक तरफ जहां मैं इस मामले से गंभीर सोच में डूब गया था वहीं दूसरी तरफ इस बात से खुश भी था कि मेरे बड़े भैया अब मेरे साथ थे और ऐसे मामले में वो भी हमारे साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे थे।


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Tiger 786

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अध्याय - 50
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अब तक....


"फिर तो हमें जल्द ही अपने कुछ भरोसे के आदमियों को उन पर नज़र रखने के काम पर लगा देना चाहिए पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"हमारे पास फिलहाल अपने असल दुश्मन तक पहुंचने का कोई रास्ता या सुराग़ नहीं है तो अगर इस तरह में हमारे हाथ कुछ लग जाता है तो ये बड़ी बात ही होगी।"

कुछ देर और इस संबंध में पिता जी से हमारी बातें हुईं उसके बाद हम दोनों भाई बैठक से चले गए। एक तरफ जहां मैं इस मामले से गंभीर सोच में डूब गया था वहीं दूसरी तरफ इस बात से खुश भी था कि मेरे बड़े भैया अब मेरे साथ थे और ऐसे मामले में वो भी हमारे साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे थे।


अब आगे....


दोपहर का खाना खाने के बाद मैं और बड़े भैया एक साथ ही ऊपर अपने अपने कमरे की तरफ चले थे। जैसे ही हम दोनों ऊपर पहुंचे तो पीछे से विभोर के पुकारने पर हम दोनों ही ठिठक कर पलटे। हमने देखा विभोर और अजीत सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर ही आ रहे थे। ये पहली बार था जब उनमें से किसी ने मुझे पुकारा था। ख़ैर जल्दी ही वो दोनों ऊपर हमारे पास आ कर खड़े हो गए। दोनों हमसे नज़रें चुरा रहे थे।

"क्या बात है?" मैंने दोनों की तरफ बारी बारी से देखते हुए सामान्य भाव से पूछा____"कोई काम है मुझसे?"
"ज...जी भैया वो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।" विभोर ने झिझकते हुए धीमें स्वर में कहा तो मैंने कहा____"जो भी कहना है बेझिझक कहो और हां, मेरे सामने तुम्हें शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं चाहता हूं कि जो बीत गया है उसे भूल जाओ और एक नए सिरे से किंतु साफ़ नीयत के साथ अपने जीवन की शुरुआत करो। ख़ैर, अब बोलो क्या कहना चाहते हो मुझसे?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" विभोर ने दुखी भाव से कहा____"मैंने आपके साथ क्या क्या बुरा नहीं किया लेकिन इसके बाद भी आप मुझसे इतने अच्छे से बात कर रहे हैं और सब कुछ भूल जाने को कह रहे हैं। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब मेरे मन में आपके प्रति ईर्ष्या का भाव पैदा हो गया था, उसके बाद तो जैसे मुझे किसी बात का होश ही नहीं रह गया था।"

"भूल जाओ वो सब बातें।" मैंने विभोर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"हर इंसान से ग़लतियां होती हैं। तुमने तो शायद पहली बार ही ऐसी ग़लती की थी जबकि मैंने तो न जाने कितनी ग़लतियां की हैं। ख़ैर अच्छी बात ये होनी चाहिए कि इंसान ऐसी ग़लतियां दुबारा न करे और कुछ ऐसा कर के दिखाए जिससे लोग उसकी वाह वाही करने लगें।"

"अब से हम दोनों ऐसा ही काम करेंगे वैभव भैया।" अजीत ने कहा____"अब से हम दोनों वही करेंगे जिससे आपका और हमारे खानदान का नाम ऊंचा हो। अब से हम किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देंगे, लेकिन उससे पहले हम अपनी बहन से माफ़ी मांगना चाहते हैं।"

"हां भैया।" विभोर ने कहा____"हमने अपनी मासूम सी बहन का बहुत दिल दुखाया है। अब जबकि हमें अपनी ग़लतियों का एहसास हुआ है तो ये भी एहसास हो रहा है कि हमने उसके साथ कितनी बड़ी ज़्यादती की है। ऊपर वाला हम जैसे भाई किसी बहन को न दे।"

"मुझे खुशी हुई कि तुम दोनों को अपनी ग़लतियों का एहसास हो गया है।" बड़े भैया ने कहा____"लेकिन सिर्फ एहसास होने बस से इंसान अच्छा नहीं बन जाता बल्कि उसके लिए उसे प्रायश्चित करना होता है और ऐसे कर्म करने पड़ते हैं जिससे कि उस इंसान की अंतरात्मा खुश हो जाए जिसका उसने दिल दुखाया होता है। ख़ैर अब तुम जाओ और कुसुम से अपने किए की माफ़ी मांग लो। वैसे मुझे यकीन है कि वो तुम दोनों को बड़ी सहजता से माफ़ कर देगी क्योंकि हमारी बहन का दिल बहुत ही विशाल है।"

बड़े भैया के ऐसा कहने पर विभोर और अजीत ने अपनी अपनी आंखों के आंसू पोंछे और कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गए। उनके जाने के बाद हम दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा उठे। मैंने कुछ सोचते हुए भैया को एक अहम काम सौंपा और खुद वापस सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला।


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मैं हवेली से निकल कर अपनी बुलेट से हाथी दरवाज़े के पास ही पहुंचा था कि मुझे मुंशी चंद्रकांत एक आदमी के साथ मिल गया। मुझे देखते ही दोनों ने सलाम किया। मैंने कई दिनों बाद आज मुंशी को देखा था जिसके चलते मेरे मन में कई सारे सवाल खड़े हो गए थे।

"आज कल तो आप इर्द का चांद हो गए हैं मुंशी जी।" मैंने मोटर साईकिल उसके क़रीब ही खड़े कर के कहा____"काफ़ी दिन से आप कहीं नज़र ही नहीं आए।"

"मैं अपने बेटे के साथ उसकी ससुराल गया हुआ था छोटे ठाकुर।" मुंशी ने अपनी खीसें निपोरते हुए कहा____"ठाकुर साहब की इजाज़त ले कर ही गया था। असल में बात ये थी कि मेरी समधन काफी बीमार थीं तो उन्हीं का हाल चाल देखने गया था। वैसे गया तो मैं एक दिन के लिए ही था क्योंकि यहां काम ही इतना था कि मुझे ज़्यादा समय तक कहीं रुकने की फुर्सत ही नहीं थी किंतु वहां से जल्दी वापस आ ही नहीं पाया। समधन ने ज़बरदस्ती रोके रखा ये कह कर कि कभी आते नहीं हैं तो कम से कम एक दो दिन तो सेवा करने का मौका मिलना ही चाहिए। बड़ी मुश्किल से वहां से छूटा तो एक दिन के लिए अपनी ससुराल चला गया। असल में कोमल बिटिया काफी समय से वहीं थी तो सोचा उसको भी घर ले आऊं। अभी घंटा भर पहले ही हम सब घर पहुंचे थे। थोड़ी देर आराम करने के बाद सीधा हवेली चला आया। डर रहा हूं कि कहीं ठाकुर साहब मेरे इस तरह अवकाश करने से नाराज़ ना हो गए हों।"

"चलिए कोई बात नहीं मुंशी जी।" मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा खुश हो गया था कि मुंशी अपनी बेटी कोमल को उसकी ननिहाल से घर ले आया है, किंतु प्रत्यक्ष में बोला_____"जाइए पिता जी हवेली में ही हैं। मैं किसी काम से बाहर जा रहा हूं।"

मुंशी से विदा ले कर मैं आगे बढ़ चला। मैं सोच रहा था कि क्या मुंशी सच बोल रहा था अथवा झूठ? क्या वो सच में इतने दिनों से अपने बेटे के साथ उसकी ससुराल में था या किसी और ही काम से गायब था? वैसे अभी तक मुंशी या उसके बेटे ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया था जिसके चलते उन दोनों बाप बेटे पर शक किया जाए किंतु हालात ऐसे थे कि किसी पर भी अब भरोसा करने लायक नहीं रह गया था।

मुंशी की बहू रजनी का रूपचंद्र से जिस्मानी संबंध था और ये मेरे लिए बड़ी ही हैरानी तथा सोचने की बात थी कि दोनों के बीच ऐसा संबंध कब और किन परिस्थितियों में बना होगा? रजनी से मेरे भी संबंध थे और रजनी से ही बस क्यों बल्कि उसकी सास प्रभा से भी थे लेकिन जाने क्यों मेरा दिल अब रजनी पर भरोसा करने से इंकार कर रहा था। क्या वो रूपचंद्र के साथ मिल कर मेरे साथ कोई खेल खेल रही थी या फिर रूपचंद्र से उसका संबंध सिर्फ़ मज़े लेने तक ही सीमित था? वैसे पहली बार जब मैंने उसे छुप कर रूपचंद्र के साथ संबंध बनाते देखा था तब वो जिस तरह से रूपचंद्र को अपनी बातों से जला रही थी उससे तो यही लगता था कि वो मन से रूपचंद्र के साथ नहीं है। रूपचंद्र से जिस्मानी संबंध बनाना ज़रूर उसकी मजबूरी ही होगी। रूपचंद्र इस मामले में कितना कमीना था ये मुझसे बेहतर भला कौन जानता था? मैं इस बारे में जितना सोच रहा था उतना ही मुझे लगता जा रहा था कि रजनी मजबूरी में ही रूपचंद्र के साथ जिस्मानी संबंध बनाए हुए होगी। हालाकि औरत का भेद तो ऊपर वाला भी नहीं जान सकता लेकिन रजनी मेरे साथ कोई खेल खेल रही थी ये बात मुझे हजम नहीं हो रही थी।

जल्दी ही मैं साहूकारों के घर के सामने पहुंच गया। सड़क के किनारे ही एक पीपल का पेड़ था जिसमें पक्का चबूतरा बना हुआ था किंतु इस वक्त वो खाली था। कड़ाके की धूप थी इस लिए दोपहर में कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता था। मैंने कुछ पल सोचा और साहूकारों के घर की तरफ बुलेट को मोड़ दी। लोहे का गेट खुला हुआ था इस लिए मैं फ़ौरन ही लंबे चौड़े लॉन से होते हुए उनके मुख्य द्वार पर पहुंच गया। बुलेट की तेज़ आवाज़ जैसे ही बंद हुई तो दरवाज़ा खुला और जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे तो बस देखता ही रह गया।

दरवाज़े के बीचों बीच दोनों पल्लों को पकड़े रूपचंद्र की बहन रूपा खड़ी थी। उसके गोरे बदन पर हल्के सुर्ख रंग का लिबास था जिसमें वो बेहद खूबसूरत दिख रही थी। चांद की तरह खिला हुआ चेहरा मुझे देखते ही हल्का गुलाबी सा पड़ गया था। कुछ पलों के लिए यूं लगा जैसे वक्त अपनी जगह पर ठहर गया हो। मैं उसे देख कर हल्के से मुस्कुराया तो जैसे उसकी तंद्रा टूटी और वो एकदम से हड़बड़ा गई। मैं उसे यूं हड़बड़ा गया देख कर हल्के से हंसा और फिर उसी की तरफ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उसके चेहरे पर एकदम से घबराहट के भाव उभर आए, तभी अंदर से किसी की आवाज़ आई।

"अगर किस्मत में ऐसे ही हर रोज़ इस चांद का दीदार होना लिख जाए।" मैंने रूपा के क़रीब पहुंचते ही किसी गए गुज़रे हुए आशिक़ों की तरह आहें भरते हुए कहा____"तो बंदा दुनिया के हर ज़ुल्मो सितम को सह कर भी हुस्न वालों की दहलीज़ पर दौड़ता हुआ आएगा। क़सम से तुम्हें देखने के बाद अब अगर मौत भी आ जाए तो ग़म न होगा।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" रूपा ने बहुत ही धीमें स्वर में किंतु शर्माते हुए कहा तो मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा_____"कोई शक है क्या?"

"कौन आया है रूपा?" अंदर से एक बार फिर किसी औरत की आवाज़ आई तो हम दोनों ही हड़बड़ा गए और मैं उससे थोड़ा दूर खड़ा हो गया।
"हवेली से कोई आया है मां।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"लगता है रास्ता भटक गया है।"

"ये तो ज़ुल्म है यार।" मैंने धीमें स्वर में कहा____"जान बूझ कर अजनबी बना दिया मुझे जबकि होना तो ये चाहिए था कि चीख चीख कर सबको बताती कि एक दीवाना आया है तुम्हारा।"

"हां, ताकि मेरे घर वाले मेरे जिस्म की बोटी बोटी कर के चील कौवों को खिला दें।" रूपा ने आंखें दिखाते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"बड़े आए एक दीवाना आया है बोलवाने वाले... हुह!"

"आज शाम को मंदिर में मिलो।" मैंने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा तो उसने आंखें सिकोड़ते हुए कहा____"क्यों...क्यों मिलूं भला?"
"अपनी देवी के दर्शन करने हैं मुझे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"और दर्शन के साथ साथ देवी की पूजा भी करनी है। उसके बाद अगर देवी मेरी पूजा से प्रसन्न हो जाए तो वो मुझे मीठा मीठा प्रसाद भी दे सकती है।"

रूपा अभी कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी अंदर से आती हुई एक औरत दिखी जिससे मैं थोड़ा और दूर खड़ा हो गया। मैंने रूपा को भी इशारा कर दिया कि उसके पीछे कोई आ रहा है। कुछ ही पलों में अंदर से आने वाली औरत रूपा के पास पहुंच गई। शायद वही उसकी मां ललिता थी। उन्हें देख कर मैंने बड़े आदर भाव से हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया जिस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया।

"बाहर क्यों खड़े हो वैभव बेटा अंदर आओ ना।" रूपा की मां ललिता देवी ने बड़े प्रेम भाव से कहा____"ये लड़की भी ना, एक भी अक्ल नहीं है इसमें। देखो तो घर आए मेहमान को अंदर आने के लिए भी नहीं कहा। जाने कब अक्ल आएगी इसे?"

"मैं मेहमान नहीं हूं काकी।" मैंने नम्र भाव से कहा____"मैं तो आपका बेटा हूं और ये घर भी तो मेरा ही है। क्या इतना जल्दी मुझे पराया कर दिया आपने?"

"अरे! नहीं नहीं बेटा।" ललिता देवी एकदम से हड़बड़ा गईं, फिर सम्हल कर बोलीं____"ऐसी तो कोई बात नहीं है। तुमने सच कहा ये तुम्हारा ही घर है और तुम मेरे बेटे ही हो। अब चलो बातें छोड़ो और अंदर आओ।"

"माफ़ करना काकी।" मैंने कहा____"अभी अंदर नहीं आऊंगा। असल में किसी काम से जा रहा था तो सोचा काका लोगों से मिल कर उनका आशीर्वाद ले लूं और सबका हाल चाल भी पूंछ लूं लेकिन लगता है कि काका लोग अंदर हैं नहीं?"

"हां तुमने सही कहा बेटा।" ललिता देवी ने कहा____"असल में घर के सभी मर्द और बच्चे हमारी जेठानी की लड़की आरती के लिए एक जगह लड़का देखने गए हुए हैं। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो रिश्ता पक्का हो जाएगा और फिर जल्दी ही ब्याह के लिए लग्न भी बन जाएगी।"

"अरे वाह! ये तो बहुत ही खुशी की बात है काकी।" मैंने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"जल्द ही इस घर में शहनाईयां बजेंगी। मैं तो कहता हूं काकी कि घर की सभी लड़कियों का ब्याह कर के जल्द से जल्द उनकी छुट्टी कर दो आप और मेरे भाईयों का ब्याह कर के नई नई बहुएं ले आओ।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" रूपा अपनी मां के सामने ही एकदम से बोल पड़ी____"हम लड़कियां क्या अपने मां बाप के लिए बोझ बनी हुई हैं जो वो जल्दी से हमारा ब्याह कर के इस घर से हमारी छुट्टी कर दें?"

"देखिए ऐसा है कि दुनिया के कोई भी माता पिता अपनी लड़कियों से ये नहीं कहते कि उनकी लड़कियां उनके लिए बोझ हैं।" मैंने रूपा को छेड़ने के इरादे से मुस्कुराते हुए कहा____"जबकि सच तो यही होता है कि लड़कियां सच में अपने माता पिता के लिए बोझ ही होती हैं। मैं सही कह रहा हूं ना काकी?"

"हां बेटा, बहुत हद तक तुम्हारी ये बात सही है।" ललिता देवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लड़कियां उन माता पिता के लिए यकीनन बोझ जैसी ही होती हैं जो अपनी लड़कियों का ब्याह कर पाने में समर्थ नहीं होते। जिनके घर में खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं होती और अपनी जवान बेटियों के तन को ढंकने के लिए कपड़े नहीं होते। ऐसे माता पिता के लिए लड़कियां न चाहते हुए भी बोझ सी ही लगने लगती हैं।"

जाने क्यों मुझे ऐसा लगा जैसे इस मामले की बात शुरू हो जाने से माहौल थोड़ा संजीदा सा हो गया है इस लिए मैंने काकी से बाद में आने का कह कर उन्हें प्रणाम किया और उनसे विदा ले कर वापस चल पड़ा। काकी से नज़र बचा कर मैंने एक बार फिर से रूपा को आज शाम मंदिर में मिलने का इशारा कर दिया था। मुझे यकीन था रूपा मुझसे मिलने के लिए मंदिर ज़रूर आएगी।

एक बार फिर से मैं बुलेट में बैठ कर आगे बढ़ चला। मुंशी के घर के पास पहुंच कर मैंने एक नज़र उस तरफ देखा और फिर आगे बढ़ गया। काफी समय से मैं अपने नए निर्माण हो रहे मकान की तरफ नहीं जा पाया था। इस लिए मैं तेज़ रफ़्तार में उस तरफ बढ़ता चला जा रहा था। जिस तरफ मेरा मकान बन रहा था वहां पर जाने के लिए मुख्य सड़क से बाएं तरफ मुड़ना होता था। कुछ दूरी से बंजर ज़मीन शुरू हो जाती थी। पथरीली ज़मीन पर कई तरह के पेड़ पौधे भी थे। हालाकि पथरीली ज़मीन का क्षेत्रफल ज़्यादा नही था। यूं तो मुरारी काका के गांव की तरफ जाने के लिए मुख्य सड़क थी किंतु एक पगडंडी वाला रास्ता भी मुरारी के गांव की तरफ जाता था जो कि वहीं से हो कर गुज़रता था जिस तरफ मेरा नया मकान बन रहा था।

कुछ ही देर में मैं उस जगह पहुंच गया जहां पर मेरा मकान बन रहा था। मकान भुवन की निगरानी में बन रहा था इस लिए वो वहीं मौजूद था। मुझे देखते ही उसने मुझे सलाम किया और मकान के कार्य के बारे में सब कुछ बताने लगा।

"शहर से जिन लोगों को बुलाया था वो अपना काम कर रहे हैं ना?" मैंने भुवन की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"हां छोटे ठाकुर, आपके कहे अनुसार वो लोग रात में बड़ी सावधानी से अपना काम कर रहे हैं और इस बात का पता मेरे और आपके अलावा किसी और को बिल्कुल भी नहीं है। यहां तक कि यहां के इन मजदूरों और मिस्त्रियों को भी इस बात का आभास नहीं हुआ कि इसी मकान के नीचे गुप्त रूप से कोई तहखाना भी बनाया जा रहा है।"

"किसी को इस बात का आभास होना भी नहीं चाहिए भुवन।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"यहां तक कि दादा ठाकुर तथा जगताप चाचा को भी नहीं। यूं समझो कि इस बात को तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए अपने सीने में ही राज़ बना के दफ़न कर लेना है।"

"जी मैं समझ गया छोटे ठाकुर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैं अपना सिर कटा दूंगा लेकिन इस बारे में किसी को भी पता नहीं लगने दूंगा।"
"बहुत बढ़िया।" मैंने भुवन के कंधे को अपने हाथ से थपथपाते हुए कहा____"ख़ैर, और भी कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना चाहिए मुझे?"

"पिछले एक हफ्ते से तो हवेली का कोई भी सदस्य इस तरफ नहीं आया है।" भुवन ने कहा____"लेकिन दो दिन पहले आपके दो मित्र यहां आए थे और यहां के बारे में पूछ रहे थे। ये भी पूछा कि आप आज कल कहां गायब रहते हैं?"

"मेरे तो दो ही मित्र ऐसे हैं जो बचपन से मेरे साथ रहे हैं।" मैंने भुवन की तरफ देखते हुए किंतु सोचने वाले भाव से कहा____"चेतन और सुनील। क्या यही दोनों आए थे यहां?"
"हां हां छोटे ठाकुर।" भुवन एकदम से बोल पड़ा____"दोनों एक दूसरे का यही नाम ले रहे थे।"

भुवन से मैंने कुछ देर और बात की उसके बाद उसे सतर्क रहने का बोल कर मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैं सोच रहा था कि चेतन और सुनील यहां किस लिए आए होंगे और मेरे बारे में क्यों पूछ रहे थे? अगर उन्हें मुझसे मिलना ही था तो वो सीधा हवेली ही आ सकते थे। उन दोनों का तो हमेशा से ही हवेली में आना जाना रहा है। हालाकि इधर जब मुझे तड़ीपार कर दिया गया था तब वो कभी मुझसे मिलने इस जगह पर नहीं आए थे। ख़ैर मुझे याद आया कि मैंने उन दोनों को जासूसी करने का काम सौंपा था किंतु तब से ले कर अब तक में वो दोनों मुझसे मिले ही नहीं थे। दोनों मेरे बचपन के मित्र थे और हमने साथ में जाने क्या क्या कांड किए थे लेकिन अब हमारे बीच वैसा जुड़ाव नहीं रह गया था। एकदम से मुझे लगने लगा कि कहीं वो दोनों भी किसी फ़िराक में तो नहीं हैं? काफी दिनों से मेरी उन दोनों से मुलाक़ात नहीं हुई थी। मैं तो ख़ैर क‌ई सारे झमेलों में फंसा हुआ था लेकिन वो भला किस झमेले में फंसे हुए थे कि एक बार भी मुझसे मिलने हवेली नहीं आए। ये सब सोचते सोचते मुझे आभास होने लगा कि दाल में कुछ तो काला ज़रूर है। दोनों की गांड तोड़नी पड़ेगी अब, तभी सच सामने आएगा।

सोचते विचारते मैं मुरारी काका के घर पहुंच गया। बुलेट का इंजन बंद कर के जैसे ही मैं दरवाज़े के पास आया तो दरवाज़ा खुला। आज का दिन कदाचित बहुत ही बढ़िया था। उधर साहूकार के घर का दरवाज़ा जब खुला था तो एक खूबसूरत चेहरा नज़र आया था और अब मुरारी के घर का दरवाज़ा खुला तो अनुराधा की हल्की सांवली सूरत नज़र आ गई। एक ऐसी सूरत जिसमें दुनिया जहान की मासूमियत, भोलापन और सादगी कूट कूट कर भरी हुई थी। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक ख़ास तरह की चमक के साथ साथ हल्की शर्म की लाली भी उभर आई थी।

"कैसी हो ठकुराईन?" मैंने मुस्कुराते हुए उसे छेड़ने के इरादे से धीमी आवाज़ में कहा तो वो एकदम शर्म से सिमट गई। गुलाबी होठों पर थिरक रही मुस्कान पलक झपकते ही गहरी पड़ गई। उसने बड़ी मुश्किल से नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर धीमें स्वर में कहा____"आप क्यों बार बार मुझे ठकुराईन कहते हैं?"

"क्यों न कहूं?" मैंने उसे और छेड़ा____"आख़िर तुम हो तो ठकुराईन ही। अगर तुम्हें मेरे द्वारा ठकुराईन कहने पर ज़रा सा भी एतराज़ होता तो तुम्हारे होठों पर इस तरह मुस्कान न उभर आती।"

"तो क्या चाहते हैं आप कि मैं आपके द्वारा ठकुराईन कहने पर आप पर गुस्सा हुआ करूं?" अनुराधा ने अपनी मुस्कान को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा था।

"क्यों नहीं।" मैंने उसकी गहरी आंखों में देखा____"तुम्हें मुझ पर गुस्सा होने का पूरा हक़ है। तुम मेरी डंडे से पिटाई भी कर सकती हो।"

"धत्त! ये क्या कह रहे हैं आप?" अनुराधा मेरी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, फिर शर्माते हुए बोली____"मैं भला कैसे आपकी पिटाई कर सकती हूं?"
"क्यों नहीं कर सकती?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें पूरा हक़ है मेरी पिटाई करने का।"

"न जी न।" अनुराधा शरमा कर दरवाज़े से एक तरफ हट गई, फिर अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए बोली____"मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती।"
"काकी नहीं है क्या अंदर?" मैंने अंदर आंगन की तरफ नज़र डालते हुए पूछा तो अनुराधा ने ना में सिर हिला दिया।

मैं ये जान कर बेहद खुश हुआ कि सरोज काकी घर में नहीं है। वो दरवाज़े से हट गई थी, ज़ाहिर है वो चाहती थी कि मैं घर के अंदर आऊं वरना वो शुरू में ही मुझे बता देती और अपने बर्ताव से ये भी ज़ाहिर कर देती कि उसकी मां के न होने पर मैं अंदर न आऊं। ख़ैर, मैं अंदर आया तो अनुराधा ने बिना कुछ कहे दरवाज़ा बंद कर दिया।

"अच्छा तो इसी लिए तुम इतना बेझिझक हो कर मुझसे बातें कर रही थी।" मैंने आंगन के पार बरामदे में रखी खटिया पर बैठते हुए कहा____"और मुझ अकेले लड़के को छेड़ रही थी। आने दो काकी को, मैं काकी को बताऊंगा कि कैसे तुम मुझ मासूम को अकेला देख कर मुझे छेड़ रही थी।"

"हाय राम! कितना झूठ बोलते हैं आप।" अनुराधा बुरी तरह चकित हो कर बोली____"मैंने कब छेड़ा आपको और ये क्या कहा आपने कि आप मासूम हैं? भला कहां से मासूम लगते हैं आप?"

"बोलती रहो।" मैं मन ही मन हंसते हुए बोला____"सब कुछ बताऊंगा काकी को। ये भी कि तुम मुझे मासूम मानने से साफ़ इंकार कर रही थी।"

"अगर आप ऐसी बातें करेंगे तो मैं आपसे कोई बात नहीं करूंगी।" अनुराधा के चेहरे पर इस बार मैंने घबराहट के भाव देखे। शायद वो मेरी इस बात को सच मान बैठी थी कि मैं काकी को सब कुछ बता दूंगा।

"कमाल है।" मैंने उसके मासूम से चेहरे पर छा गई घबराहट को देखते हुए कहा____"कैसी ठकुराईन हो तुम जो मेरी इतनी सी बात पर इस क़दर घबरा गई?"

"मैं कोई ठकुराईन वकुराईन नहीं हूं समझे आप?" अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"और हां अब मुझे आपसे कोई बात नहीं करना। आप जाइए यहां से, वैसे भी अगर मां आ गई और उसने मुझे आपके साथ यूं अकेले में देख लिया तो मेरी ख़ैर नहीं होगी।"

"ओह! तो मेरी अनुराधा रूठ गई है मुझसे?" जाने कैसे मेरे मुख से मेरी अनुराधा निकल गया, जिसका आभास होते ही मेरी धड़कनें एकदम से तेज़ हो गईं और मैं अनुराधा की तरफ देखने लगा। यही हाल अनुराधा का भी हुआ था। वो आंखें फाड़े मेरी तरफ देखने लगी थी, किंतु जल्दी ही सम्हली और फिर बोली____"ये क्या कह रहे हैं आप? मैं आपकी अनुराधा कैसे हो गई?"

"पता नहीं कैसे मेरे मुख से निकल गया?" मैंने अपनी घबराहट को दबाने का प्रयास करते हुए कहा____"वैसे क्या तुम्हें मेरी अनुराधा कह देने पर एतराज़ है?"

"हां बिलकुल एतराज़ है मुझे।" अनुराधा के चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे____"मैं सिर्फ़ अपने माता पिता की अनुराधा हूं किसी और की नहीं। अगर आप ये समझते हैं कि आप बाकी लड़कियों की तरह मुझे भी अपने जाल में फंसा लेंगे तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है छोटे ठाकुर।"

मैं अनुराधा के चेहरे पर मौजूद भावों को देख कर एकदम से हैरान रह गया था। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि वो मेरी इस बात से इस हद तक बिदक जाएगी। मुझे समझ न आया कि जो अनुराधा मुझे देखते ही शर्माने और मुस्कुराने लगती थी वो मेरी इतनी सी बात से इस तरह कैसे बर्ताव कर सकती थी? वैसे सच कहूं तो हैरान मैं खुद भी अपने आप पर हुआ था कि यूं अचानक से कैसे मेरे मुख से मेरी अनुराधा जैसा संबोधन निकल गया था मगर अब जब निकल ही गया था तो मैं भला क्या ही कर सकता था?

"अब जल्दी से कोई डंडा खोज कर लाओ।" फिर मैंने बात को एक अलग ही दिशा में मोड़ने की गरज से कहा____"और उस डंडे से मेरी पिटाई करना शुरू कर दो।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" अनुराधा मेरी बात सुन कर मानो उलझ गई तो मैंने उसे समझाते हुए कहा____"सही तो कह रहा हूं मैं। कुछ देर पहले मैंने तुमसे कहा था ना कि अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें मेरी पिटाई करने का पूरा हक़ है। अब क्योंकि मैंने ग़लती की है तो इसके लिए तुम्हें डंडे से मेरी पिटाई करनी चाहिए।"

"बातें मत बनाइए।" अनुराधा ने कहा____"सब समझती हूं मैं। अगर आपके मन में मेरे प्रति यही सब है तो चले जाइए यहां से। अनुराधा वो लड़की हर्गिज़ नहीं है जो आपके जाल में फंस जाएगी। हम ग़रीब ज़रूर हैं छोटे ठाकुर लेकिन अपनी जान से भी ज्यादा हमें अपनी इज्ज़त प्यारी है।"

"तो फिर ये भी जान लो अनुराधा कि तुम्हारी इज्ज़त मुझे भी खुद अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी है।" अनुराधा की बातें सुन कर जाने क्यों मेरे दिल में एक टीस सी उभर आई थी, बोला____"मैं खुद मिट्टी में मिल जाना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हारी इज्ज़त पर किसी भी कीमत पर दाग़ नहीं लगा सकता और ना ही किसी के द्वारा लगने दे सकता हूं। मैं जानता हूं कि मेरा चरित्र ही ऐसा है कि किसी को भी मेरी किसी सच्चाई पर यकीन नही हो सकता लेकिन एक बात तुम अच्छी तरह समझ लो अनुराधा कि मैं चाहे सारी दुनिया को दाग़दार कर दूं लेकिन तुम पर दाग़ लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूं कि तुम वो लड़की हो जिसने मेरे मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और मुझे खुशी है कि तुमने मेरा कायाकल्प कर दिया है। तुमसे हसी मज़ाक करता हूं तो एक अलग ही तरह का एहसास होता है। मेरे मन में अगर ग़लती से भी तुम्हारे प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो मैं अपने आपको कोसने लगता हूं। ख़ैर, मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं देना चाहता। अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

मैं ये सब बोलने के बाद एक झटके से चारपाई से उठा और अनुराधा की तरफ देखे बिना ही तेज़ कदमों के द्वारा आंगन से होते हुए घर से बाहर निकल गया। इस वक्त मेरे अंदर एक आंधी सी चल रही थी। दिल में सागर की लहरों की तरह जज़्बात मानों बेकाबू हो कर हिलोरे मार रहे थे। मैं अपनी बुलेट पर बैठा और उसे स्टार्ट कर तेज़ी से आगे बढ़ गया। जैसे जैसे अनुराधा का घर पीछे छूटता जा रहा था वैसे वैसे मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरा एक खूबसूरत संसार मुझसे बहुत दूर होता जा रहा है। दिलो दिमाग़ पर मचलते तूफान को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मैं आगे बढ़ा चला जा रहा था।

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।


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Bohot badiya update
 

Tiger 786

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अध्याय - 51
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अब तक....

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।

अब आगे.....


कुसुम अपने कमरे में पलंग पर लेटी बार बार अपनी आंखें बंद कर के सोने का प्रयास कर रही थी किंतु हर बार बंद पलकों में कुछ ऐसे दृश्य और कुछ ऐसी बातें उभर आतीं कि वो झट से अपनी आंखें खोल देने पर बिवस हो जाती थी। ऐसा सिर्फ़ आज ही नहीं हो रहा था बल्कि ऐसा तो उसके साथ जाने कब से हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से दिन में कभी भी आसानी से उसकी आंख नहीं लगती थी और यही हाल रातों का भी था। पिछले कुछ महीनों से वो जो करने पर मजबूर थी उसकी वजह से वो अंदर ही अंदर बेहद दुखी थी और उस सबकी वजह से उसे एक पल के लिए भी शांति नहीं मिलती थी।

दो दिन पहले तक उसे सिर्फ़ इसी बात का दुख असहनीय पीड़ा देता था कि उसका जो भाई उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है वो उसी को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिलाने पर मजबूर है। हर वक्त उसके ज़हन में बस एक ही ख़्याल आता था कि वो ये जो कुछ भी कर रही है वो निहायत ही ग़लत है। माना कि वो अपनी इज्ज़त और मर्यादा को छुपाने के लिए वो सब कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसे यही लगता था कि उसके इतने अच्छे भाई का जीवन उसके अपने जीवन और उसकी अपनी इज्ज़त मर्यादा से कहीं ज़्यादा अनमोल है। वो अक्सर ये सोच कर अकेले में रोती थी कि वैभव भैया उस पर कितना भरोसा करते हैं, यानि अगर वो चाय में ज़हर मिला कर भी उन्हें पीने को देगी तो वो खुशी से पी लेंगे।अपने भाई के साथ वो हर रोज़ कितना बड़ा विश्वासघात करती है। ये ऐसी बातें थीं जिन्हें सोच सोच कर कुसुम तकिए में अपना मुंह छुपाए घंटों रोती रहती और अपने भाई से अपने किए की माफ़ियां मांगती रहती। कभी कभी उसके मन में एकदम से ख़्याल उभर आता कि अपने भाई से इतना बड़ा विश्वासघात करने के बाद अब उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस ख़्याल के चलते कई बार उसने खुदकुशी करने का मन बनाया लेकिन फिर ये सोच कर वो खुदकुशी भी नहीं कर पाई कि अगर उसने ऐसा किया तो उसका भाई उसे कभी माफ़ नहीं करेगा। उसके यूं मर जाने पर उसके भाई को बहुत दुख होगा और वो भला कैसे ये चाह सकती है कि उसकी वजह से उसके वैभव भैया को ज़रा सा भी कोई दुख हो?

एक समय था जब पूरी हवेली में कुसुम की हंसी और उसकी शरारतें गूंजती थीं। कोई कितना ही उदास क्यों न हो लेकिन कुसुम का सामना होते ही उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान उभर आती थी। विभोर उमर में उससे बड़ा था लेकिन अजीत छोटा था इसके बावजूद वो दोनों भाई उसे सताते रहते थे लेकिन सिर्फ़ वैभव का प्यार और स्नेह ही उसे इतना काफ़ी लगता था जिसकी वजह से वो कभी किसी भी बात पर अपने होठों की मुस्कान और शरारतें करना नहीं छोड़ती थी। वो जानती थी कि वैभव उसका वो भाई है जो उसके लिए दुनिया के कोने कोने से खुशियां खोज कर ला सकता है और ऐसा होता भी था। हवेली में वैभव के रहते किसी की मजाल नहीं होती थी कि कोई कुसुम से ऊंची आवाज़ में बात कर ले। वैभव के रहते कुसुम खुद एक शेरनी बन जाती थी। उसे ऐसा लगने लगता था जैसे हवेली में अब सिर्फ़ उसी का राज हो गया है। अपने बाप की भी ना सुनने वाला वैभव उसकी हर बात सुनता था और उसकी हर ख़्वाइश को पूरा करता था, फिर उसके लिए चाहे उसे खुद दादा ठाकुर से ही क्यों न टकरा जाना पड़े। ये सब देख कर जगताप अक्सर कहता था कि जिस दिन उसकी बेटी ब्याह होने के बाद हवेली से चली जाएगी तब क्या होगा वैभव का? कैसे रह पाएगा वो अपनी लाडली बहन कुसुम के बिना और खुद कुसुम कैसे अपने ससुराल में रह पाएगी अपने वैभव भैया के बिना?

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" जाने किस दृश्य को देख कर सहसा कुसुम की आंखों से आसूं छलक पड़े और वो रूंधे गले से किंतु धीमें स्वर में बोल पड़ी_____"आपकी इस बहन में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो आपके सामने अपनी मजबूरी का सच बता सके। मैं जानती हूं कि आपको शायद बहुत कुछ पता चल गया है लेकिन इसके बावजूद आपने मुझसे कोई गिला शिकवा नहीं किया। उस दिन आप मुझसे जिनके लिए सज़ा मिलने की बात कह रहे थे न, मैं तभी समझ गई थी कि शायद आपको सब पता चल गया है। मैं जानती हूं कि आप उन लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना चाहते थे जिन्होंने आपकी बहन का दिल दुखाया है लेकिन भला मैं ये कैसे ऐसा चाह सकती थी? वो भी तो मेरे भाई ही हैं। भला कैसे कोई बहन अपने भाइयों को सबके सामने इस तरह से जलील होते या सज़ा पाते देख सकती थी? उन्होंने मेरा दिल दुखाया, मेरी आत्मा तक को छलनी किया, इसके बावजूद मैं उन्हें माफ़ कर देना चाहती हूं। मैं उनकी तरह नहीं हूं और मुझे यकीन है कि आप भी मुझसे ऐसी ही उम्मीद करते होंगे।"

पलंग पर तकिए में अपना मुंह छुपाए कुसुम रोते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। रोने से उसकी आंखें सुर्ख पड़ गईं थी और गोरा चेहरा भी। दोपहर में जब सब लोग खाना खा रहे थे तो कुसुम खाना परोसने के लिए रसोई से बाहर नहीं आई थी। अपने से उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी कि वो अपने उस भाई का सामना करे जो भाई उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करता है। एक दो बार वैभव के कमरे में उसे जाना पड़ा था लेकिन वो भी उसकी मजबूरी ही थी।

"शीला ने आपको सब कुछ बता दिया होगा न?" कुसुम के जहन में सहसा बिजली सी कौंधी तो वो बेहद दुखी भाव से बड़बड़ाई____"वो सब भी ना जो मैं किसी भी कीमत पर आपको जानने नहीं देना चाहती थी? आप सोच रहे होंगे न कि आपकी बहन कितनी गंदी है और उसके मन में कैसे कैसे गंदे विचार हैं? नहीं नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत सोचिएगा भैया। आपकी बहन गंदी नहीं है। वो तो उस दिन मेरी सखियां खेल खेल में पता नहीं वो सब क्या करने लगीं थी। सब उनका ही दोष है भैया, मेरा यकीन कीजिए। मुझे नहीं पता था कि वो इतनी गन्दी हैं वरना मैं उनके साथ कोई खेल ही नहीं खेलती।"

कुसुम की आंखें लगातार आंसू बहाए जा रहीं थी। वो खुद से ही बड़बड़ा रही थी किंतु उसे एहसास यही हो रहा था मानों वो अपने भैया वैभव को ही ये सब बता रही हो जिसके चलते उसे बेहद शर्म भी आ रही थी।

"आप अपनी इस बहन से नाराज़ मत होना भैया।" कुसुम के दिल में सहसा एक हूक सी उठी जिसके चलते वो एकदम से फफक कर रो पड़ी____"और ना ही अपनी इस बहन के बारे में ग़लत सोचना। मैं आपकी वही छोटी और मासूम बहन हूं जिसे आप अपनी जान समझते हैं। बस एक बार अपनी इस बहन को माफ़ कर दीजिए न।"

अभी कुसुम ये सब बड़बड़ाते हुए रो ही रही थी कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई जिसके चलते वो बुरी तरह हड़बड़ा गई। पलंग पर झट से वो उठ कर बैठ गई और जल्दी जल्दी अपने आंसू पोंछने लगी। चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए थे। धड़कते दिल से वो कमरे के दरवाज़े को घूरने लगी थी। तभी दस्तक फिर से हुई और साथ ही बाहर से विभोर ने आवाज़ भी दी जिसे सुन कर कुसुम के चेहरे का मानों रंग ही उड़ गया। उससे जवाब में कुछ बोलते न बन पड़ा। बाहर से विभोर ने उसे आवाज़ दे कर दरवाज़ा खोलने के लिए कहा था। कुसुम की सांसें जैसे कुछ पलों के लिए रुक ही गईं थी लेकिन फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और अपने दुपट्टे से जल्दी जल्दी अपने हुलिए को ठीक किया। तत्पश्चात वो पलंग से नीचे उतरी और फिर जा कर उसने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर अपने दोनों भाईयों को खड़े देख उसके चेहरे पर सहसा एक अजीब सी शख़्ती उभर आई।

"हम दोनों तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं कुसुम।" विभोर ने अपनी नज़रें झुका कर दुखी भाव से कहा____"हम जानते हैं कि हमने तुझसे जो काम करवा के अपराध किया है उसके लिए हमें कोई माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए फिर भी अपने गुनाहों के लिए तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं।"

विभोर की ये बातें सुन कर कुसुम को मानों बिजली की तरह झटका लगा। वो हैरत से आंखें फाड़े अपने बड़े भाई विभोर को देखने लगी थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके अपने भाई किसी दिन उससे माफ़ी भी मांग सकते हैं।

"हां दीदी।" विभोर के थोड़ा पीछे खड़ा अजीत भी अपने बड़े भाई के जैसे बोल पड़ा____"हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं। वैभव भैया से ईर्ष्या करने के चलते पता नहीं हम क्या क्या कर बैठे जिसका कभी हमें आभास ही नहीं हुआ। ईर्ष्या और नफ़रत में अंधे हो कर हमने अपनी ही बहन को ऐसे काम के लिए मजबूर किया जो हर तरह से ग़लत था। हमें तो भाई कहलाने का भी हक़ नहीं रहा दीदी। हो सके तो हमें माफ़ कर दीजिए।"

कुसुम को एकदम से ऐसा लगा जैसे वो खुली आंखों से अचानक ही सपना देखने लगी है। उसने तेज़ी से अपने सिर को झटका। उसके लिए अपने भाइयों द्वारा कही गई ये सब बातें किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। उसकी आंखों के सामने क़रीब दो क़दम की दूरी पर उसके दोनों भाई खड़े थे जिनके सिर अपराध बोध के चलते झुके हुए थे। कुसुम को समझ न आया कि वो उन दोनों की बातों पर क्या प्रतिक्रिया दे अथवा क्या जवाब दे?

"माफ़ी मुझसे नहीं।" फिर उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और सपाट लहजे में कहा____"बल्कि उस इंसान से मांगिए जिनके साथ आप दोनों ने मुझसे बुरा करवाया है।"

"वैभव भैया से हमने माफ़ी मांग ली है और उन्होंने हम दोनों को माफ़ भी कर दिया है।" विभोर ने इस बार संजीदा भाव से कहा____"वो बहुत अच्छे हैं, उनका दिल बहुत विशाल है।"

"आपको पता है दीदी।" अजीत ने कहा____"पिता जी तो हमें जान से ही मार देना चाहते थे लेकिन ताऊ जी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उसके बाद ताऊ जी ने भी हमें उस सबके लिए माफ़ कर दिया। हमने भी अब प्रण कर लिया है कि अब से हम दोनों ऐसा काम करेंगे जो हमारे साथ साथ हमारे समूचे खानदान के लिए बेहतर हो।"

"हमें सच में अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है कुसुम।" कुसुम को कुछ न बोलता देख विभोर ने गंभीरता से कहा____"और अपने आपसे घृणा हो रही है। मन करता है किसी सूखे कुएं में कूद कर अपनी जान दे दें।"

"अगर वैभव भैया ने आप दोनों को माफ़ कर दिया है तो समझ लीजिए कि मैंने भी माफ़ कर दिया।" कुसुम ने पहले जैसे ही सपाट लहजे में कहा____"अब आप दोनों जाइए यहां से।"

"तेरा चेहरा और लहजा बता रहा है कि तूने दिल से हमें माफ़ नहीं किया है।" विभोर ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"बस एक बार माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं समझ सकता हूं कि जो कुछ हमने तुझसे करवाया है वो सब भूलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए।"

"मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती।" कुसुम ने इस बार थोड़ा कठोरता से कहा____"ऊपर वाले से बस यही विनती करती हूं कि वो आप दोनों को सद्बुद्धि दे ताकि आज के बाद कभी आप दोनों के मन में ऐसा कुछ भी करने का ख़्याल न आए।"

कहते हुए कुसुम की आंखें अनायास ही छलक पड़ीं। विभोर और अजीत ने उसकी बातें सुन कर एक बार फिर से अपना सिर झुका लिया। कुछ पल दोनों खड़े रहे उसके बाद दोनों ने हाथ जोड़ कर फिर से कुसुम से माफ़ी मांगी और फिर चुप चाप चले गए। उनके जाते ही कुसुम ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद वो भाग कर पलंग पर आई और पहले की ही भांति तकिए में अपना चेहरा छुपा कर सिसकने लगी।

"आपने इतना कुछ हो जाने के बाद भी मेरी बात का मान रखा।" वो फिर से बड़बड़ा उठी____"आप सच में मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मैं आपकी गंदी बहन हूं।"

कहने के साथ ही कुसुम की आंखें एक बार फिर से बरसने लगीं। कमरे में उसके सिसकने की धीमी आवाज़ें गूंजने लगीं थी। इस बार उसे अपने जज़्बातों को सम्हालना भारी मुश्किल लग रहा था।

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"तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" मैंने बुलेट को उन दोनों के पास ही रोक कर कहा____"मैंने मना किया था न कि यूं खुले में कहीं मत घूमना?"

"माफ़ कीजिए छोटे ठाकुर।" उनमें से एक ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम दोनों तो शाम के अंधेरे में ही आपके पास हवेली आते लेकिन जब हमने देखा कि आप इस तरफ ही आ रहे हैं तो हम दोनों भी आपके पीछे आ गए। दूसरी बात ये भी थी कि आपको एक ज़रूरी बात बतानी थी। हमने सोचा कि अंधेरा होने की प्रतीक्षा क्यों करें? जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे तो एक एक बात का पता जल्दी से लगना ज़रूरी है न छोटे ठाकुर।"

"अरे! तुम दोनों की जान से बढ़ कर कोई भी चीज़ ज़रूरी नहीं है।" मैंने उस आदमी से कहा____"मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि मेरी वजह से तुम दोनों पर ज़रा भी कोई आंच आए। ख़ैर, बताओ क्या ख़बर लाए हो?"

मेरे पूछने पर दोनों ने सबसे पहले इधर उधर निगाह घुमाई और फिर ख़बर के बारे में बताना शुरू कर दिया। सारी बातें सुनने के बाद मैं सोच में पड़ गया। अंदेशा तो मुझे था लेकिन ऐसा भी कुछ होगा इसकी ज़रा भी कल्पना नहीं की थी मैंने। ख़ैर, मैंने पैंट की जेब से कुछ पैसे निकाले और उन दोनों को पकड़ाया और ये भी कहा कि अपना ख़्याल सबसे पहले रखें।

एक बार फिर से मेरी बुलेट कच्ची पगडंडी पर दौड़ने लगी। ज़हन में बार बार उन दोनों आदमियों की बातें ही गूंज रहीं थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। ख़ैर, जल्दी ही मैं अपने गांव की आबादी में दाखिल हो गया। सबसे पहले मुंशी चंद्रकांत का ही मकान पड़ता था। मैं जैसे ही मुंशी के घर के सामने आया तो देखा मुंशी की बीवी प्रभा अपने घर के दरवाज़े के बाहर खड़ी गांव की किसी औरत से बातें कर रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दूसरी औरत से नज़र बचा कर हल्के से मुस्कुराई। मेरा फिलहाल उसके घर जाने का कोई इरादा नहीं था इस लिए उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से ही देते हुए मैं आगे निकल गया।

साहूकारों के सामने से होते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली पहुंच गया। बुलेट को एक तरफ खड़ी कर के मैं हवेली के अंदर दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के साथ कुछ लोग बैठे हुए थे जिन्हें मैं पहचानता नहीं था। ज़ाहिर है वो लोग मेरे गांव के नहीं थे। मैंने कुछ पल रुक कर पिता जी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे अंदर जाने का इशारा किया। मैं फ़ौरन ही अंदर चला आया। अंदर आया तो मां से मुलाक़ात हो गई।

"अच्छा हुआ कि तू आ गया।" मां ने कहा____"मैं तेरी ही राह देख रही थी।"
"क्या हुआ मां?" मैं ने फिक्रमंदी से पूछा____"कोई बात हो गई है क्या?"

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मां ने सामान्य भाव से कहा____"असल में तेरी भाभी के मायके से एक संदेशा आया है। तेरी भाभी के भाई को वर्षों बाद संतान के रूप में एक बेटा हुआ है इस लिए उन्होंने संदेशा भेजा है कि हम उनकी बहन को कुछ दिन के लिए वहां भेज दें।"

"ये तो बड़ी खुशी की बात है मां।" मैं कुछ सोच कर मन ही मन खुश हो गया था किंतु प्रत्यक्ष में सामान्य सी खुशी ज़ाहिर करते हुए बोला____"साले साहब को पहली संतान के रूप में बेटा हुआ है तो ज़ाहिर है धूम धड़ाका तो करेंगे ही लेकिन भाभी को लेने वो खुद भी तो आ सकते थे?"

"अब अकेला आदमी क्या क्या करे?" मां ने कहा____"तुझे पता ही है कि तेरी भाभी का एक भाई उसके ब्याह के पहले ही कहीं चला गया था जो कि आज तक लौट कर नहीं आया। समधी जी तो घुटने के बात के चलते ज़्यादा चल फिर नहीं पाते। घर का सारा कार्यभार बेचारे वीरेंद्र के ही कंधों पर है। इसी लिए संदेशा भेजवाया है और तेरे पिता जी से विनती भी की है कि हम ही उनकी बहन रागिनी को वहां पहुंचा दें।"

"तो पिता जी ने क्या कहा?" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा।
"मुझसे कह रहे थे कि तू भेज आएगा अपनी भाभी को।" मां ने कहा____"और साथ में कुछ आदमियों को भी ले जाना। उनका कहना है कि ऐसे वक्त में काम का बोझ ज़्यादा हो जाता है तो मदद के लिए कुछ लोगों का वहां होना बेहद ज़रूरी है।"

"वो सब तो ठीक है मां।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन भाभी को ले कर बड़े भैया भी तो जा सकते हैं, मैं ही क्यों?"
"वो तेरी तरह ढीठ और बेशर्म नहीं है।" मां ने आंखें दिखाते हुए कहा____"आज तक क्या कभी वो उसे अपने साथ ले कर गया है जो अब जाएगा? उसे अपनी बीवी को अपने साथ लाने ले जाने में शर्म आती है और ऐसा होना भी चाहिए। इस लिए तू ही अपनी भाभी को ले कर जाएगा।"

रागिनी भाभी के साथ उनके मायके जाने की बात से में एकदम खुश हो गया था। एक पल में जाने कितने ही खूबसूरत चेहरे आंखों के सामने उजागर हो गए थे लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर मायूस हो गया कि आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें मेरा वहां जाना बिलकुल भी ठीक नहीं है।

"ठीक है मां।" मैंने बुझे मन से कहा___"मैं कल सुबह भाभी को उनके मायके भेज कर वापस आ जाऊंगा।"
"कल नहीं, आज और अभी जाना है तुझे।" मां ने ये कह कर मानों मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा_____"और उसे वहां भेज कर वापस नहीं आ जाना है बल्कि वहां रह कर वीरेंद्र के कामों में उनका हाथ भी बंटाना है। जिस दिन बच्चे का नाम करण होगा उस दिन तेरे पिता जी भी यहां से जाएंगे।"

मां की बातें सुन कर मानो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। कोई और वक्त होता तो यकीनन मैं उनकी इन बातों से बेहद खुश हो गया होता लेकिन आज के वक्त में जो हालात थे उनकी वजह से मेरा इस तरह यहां से चले जाना बिलकुल भी उचित नहीं था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि पिता जी भला ऐसा हुकुम कैसे दे सकते थे? क्या उन्हें हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं था?

"क्या हुआ, कहां खो गया?" मां ने मुझे हकीक़त की दुनिया में लाते हुए कहा____"जा, जा के जल्दी से तैयार हो जा। तब तक मैं देखती हूं कि रागिनी तैयार हुई कि नहीं।"

मैं भारी क़दमों से चलते हुए ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। साला ये क्या चुटियापा हो गया था? मुझे ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि पिता जी मुझे भाभी के मायके में रहने का कैसे कह सकते थे? सहसा मुझे याद आया कि आज जिन दो आदमियों से मैं मिला था उन्होंने मुझे कैसी ख़बर दी थी और अब मैं उस ख़बर के चलते क्या क़दम उठाने वाला था लेकिन अब मेरे यहां से यूं अचानक चले जाने पर सब गड़बड़ हो जाएगा।

मैं अपने कमरे के पास पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खुला हुआ था। ज़ाहिर है कोई मेरे कमरे में मौजूद था। ख़ैर, में कमरे में दाखिल हुआ तो देखा बड़े भैया बैठे हुए थे। मुझे देखते ही वो हल्के से मुस्कुराए और मुझे पलंग पर अपने पास ही बैठने का इशारा किया।

"तेरे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि तू अंदर से काफी परेशान है।" बड़े भैया ने कहा____"शायद तुझे मां के द्वारा पता चल चुका है कि तुझे अपनी भाभी को ले कर उसके मायके जाना है।"

"भाभी को उनके मायके ले कर जाने की बात से मैं परेशान नहीं हूं भैया।" मैंने धीर गंभीर भाव से कहा____"बल्कि इस बात से परेशान हो गया हूं कि मुझे वहां पर एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक रुकना होगा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि हालात ऐसे हर्गिज़ नहीं हैं कि मैं इतने दिनों तक कहीं रुक सकूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि पिता जी ने मां से ऐसा क्यों कहा? क्या उन्हें वक्त और हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं है?"

"हमें अच्छी तरह वक्त और हालात की गंभीरता का एहसास है बर्खुरदार।" दरवाज़े से अचानक आई पिता जी की भारी आवाज़ को सुन कर हम दोनों भाई चौंके और पिता जी को देख कर खड़े हो गए, जबकि पिता जी हमारे क़रीब आते हुए बोले____"हमें अच्छी तरह पता है कि ऐसे वक्त में हमें क्या करना चाहिए।"

मैं और बड़े भैया उनकी बातें सुन कर कुछ न बोले। उधर वो पलंग पर आ कर बैठ गए और हमें भी बैठने का इशारा किया। हम दोनों के बैठ जाने के बाद वो बोले____"सबसे पहली बात तो ये कि हालात चाहे जैसे भी हों लेकिन हमें सभी से अपने रिश्ते सही तरीके से निभाना चाहिए। तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है क्योंकि वहां जो कार्यक्रम होने वाला है उसकी व्यवस्था करना अकेले वीरेंद्र के बस का नहीं है। दस साल बाद वीरेंद्र को ऊपर वाले की दया से संतान के रूप में पहले पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। ज़ाहिर है ये उसके लिए बहुत बड़ी खुशी की बात है और वो अपनी इस खुशी को बड़े उल्लास के साथ मनाना चाहता है और ये हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम उसकी खुशी को किसी भी तरह से फीका न पड़ने दें। यकीन मानो अगर यहां हालात ऐसे न होते तो हम सब आज ही वहां जाते। ख़ैर, तुम्हें यहां की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यहां के जो हालात हैं उन पर हमारी पैनी नज़र है और बड़े से बड़े ख़तरे का सामना करने के लिए हम हर तरह से तैयार हैं।"

"ठीक है पिता जी।" मैं भला अब क्या कहता____"आप कहते हैं तो ऐसा ही करूंगा मैं। ख़ैर, आज मुझे मेरे दो ख़ास आदमियों के द्वारा कुछ खास बातें पता चली हैं।"
"कैसी बातें?" पिता जी के साथ साथ बड़े भैया के भी माथे पर बल पड़ गया था।

"जगन पर किया गया हमारा शक एकदम सही साबित हुआ।" मैंने ख़ास भाव से कहा____"वो एक नंबर का कमीना इंसान निकला।"
"साफ़ साफ़ बताओ।" पिता जी के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभर आए थे____"क्या पता चला है तुम्हें उसके बारे में?"

"मुझे पक्का यकीन तो नहीं था।" मैंने कहा____"लेकिन तांत्रिक की हत्या हो जाने के बाद से संदेह होने लगा था उस पर। उस रात जब हमने आपस में इस सबके बारे में विचार विमर्श किया था तो दूसरे दिन ही मैंने उसकी निगरानी में अपने दो ख़ास आदमियों को लगा दिया था। आज उन्हीं दो आदमियों ने मुझे उससे संबंधित ख़बर दी है। उन दोनों आदमियों के अनुसार पिछली रात जगन साहूकारों के बगीचे में एक ऐसे रहस्यमय आदमी से मिला जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और चेहरा भी सफ़ेद नक़ाब से ढंका हुआ था।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


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Superb update
 
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Thanks all
यह सब क्या है ? कम से कम सभी रीडर्स के कमेन्ट पर सिर्फ एक शब्द" थैंक्स " भी तो कह सकते थे । जब से वापस आए है और अपडेट देना शुरू किए है तब से आपका रीडर्स के प्रति रवैया बहुत अधिक उदासीन रहा है । आते है और अपडेट देकर खिसक जाते है । कौन क्या रिव्यू दे रहा है , कौन क्या बोल रहा है उससे आपको मतलब ही नही। :mad:
अगर आपकी पर्सनल लाइफ मे फिर से कोई प्रॉब्लम हो तो आप फिर से इस स्टोरी को एकाध साल के लिए प्राइवेट सेक्शन मे डाल सकते है । हम इंतजार कर लेंगे।
 

Tiger 786

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अध्याय - 52
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अब तक....

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


अब आगे.....

"जगन के अलावा और कौन था वहां?" बड़े भैया ने उत्सुकता पूर्ण भाव से पूछा। पिता जी के चेहरे पर भी जानने की वही उत्सुकता दिख रही थी।

"सुनील और चेतन।" मैंने बारी बारी से पिता जी और बड़े भैया की तरफ देखते हुए कहा____"मेरे वही दोस्त जो बचपन से ही हर काम में मेरे साथ रहे हैं और मेरे ही टुकड़ों पर पलते भी रहे हैं।"

"य...ये क्या कह रहा है तू??" पिता जी तो चौंके ही थे किंतु बड़े भैया तो उछल ही पड़े थे, बोले____"ए..ऐसा कैसे हो सकता है वैभव? मेरा मतलब है कि वो दोनों तेरे साथ कोई विश्वासघात कैसे कर सकते हैं?"

"इतना हैरान मत होइए भैया।" मैंने कहा____"पिछले कुछ समय से अपने और पराए लोगों ने जो कुछ भी हमारे साथ किया है वो क्या ऐसा नहीं था जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी?"

"ये सब छोड़ो।" पिता जी ने कहा____"और मुख्य बात बताओ। तुम्हारे उन दो ख़बरियों ने इस बारे में क्या क्या जानकारी दी है तुम्हें?"

"वो दोनों जगन पर नज़र रखे हुए थे।" मैंने गहरी सांस लेकर कहा____"कल शाम भी वो जगन के पीछे पीछे ही बड़ी सावधानी से हमारे बाग़ तक पहुंचे थे। अंधेरा हो गया था लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वो दोनों कुछ ही दूरी पर पेड़ों के पास खड़े उन लोगों को देख नहीं सकते थे। उनके अनुसार, जगन जब वहां पहुंचा तो सुनील और चेतन पहले से ही वहां मौजूद थे। उन तीनों की आपस में क्या बातें हो रहीं थी ये वो दोनों सुन नहीं पा रहे थे। ख़ैर, कुछ ही देर बाद उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ से एक ऐसा रहस्यमई आदमी आया जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और उसका चेहरा सफ़ेद नक़ाब से ढका हुआ था। वो सफ़ेदपोश उन तीनों से कुछ कह रहा था जिसे वो तीनों ख़ामोशी से सुन रहे थे। क़रीब पंद्रह मिनट तक वो सफ़ेदपोश उनके बीच रहा और फिर वो जिस तरह आया था वैसे ही चला भी गया। मेरे दोनों आदमी इतना तो समझ ही चुके थे कि जगन के साथ साथ सुनील और चेतन भी महज मोहरे ही हैं जबकि असली खेल खेलने वाला तो वो सफ़ेदपोश था। इस लिए दोनों बड़ी होशियारी और सावधानी के साथ उस सफ़ेदपोश के पीछे लग गए मगर उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा। दोनों ने बताया कि उन्होंने उस सफ़ेदपोश को काफ़ी खोजा मगर वो तो जैसे किसी जादू की तरह ग़ायब ही हो गया था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" बड़े भैया गहरी सांस ले कर बोले____"जो व्यक्ति अंधेरे में भी अपने सफ़ेद लिबास के चलते बखूबी दिखाई दे रहा था वो दो आदमियों की आंखों के सामने से बड़े ही चमत्कारिक ढंग से ग़ायब हो गया, यकीन नहीं होता। ख़ैर, सबसे ज़्यादा हैरानी की बात तो ये है कि तेरे अपने बचपन के दोस्त भी उस सफ़ेदपोश आदमी से मिले हुए हैं। आख़िर वो दोनों किसी ऐसे रहस्यमई आदमी के हाथ की कठपुतली कैसे बन सकते हैं जो उसके अपने दोस्त और उसके पूरे खानदान का शत्रु बना हुआ हो?"

"मैं खुद नहीं समझ पा रहा भैया कि वो दोनों उस सफ़ेदपोश आदमी से क्यों मिले हुए हैं?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"जब से मुझे इस बारे में अपने उन दो ख़बरियों से पता चला है तभी से इस सबके बारे में सोच सोच कर परेशान हूं। जगन का तो समझ में आता है कि वो कई कारणों से उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे सकता है लेकिन मेरे अपने बचपन के दोस्त भी ऐसा करेंगे इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।"

"कोई तो ऐसी वजह ज़रूर होगी।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"जिसके चलते तुम्हारे वो दोनों दोस्त उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे रहे हैं। संभव है कि वो दोनों ऐसा किसी मजबूरी के चलते कर रहे हों। इंसान कोई भी काम दो सूरतों में ही करता है, या तो ख़ुशी से या फिर किसी मज़बूरी से। ये तो पक्की बात है कि उनकी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है तो ज़ाहिर है उनका उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ देते हुए तुम्हारे खिलाफ़ कुछ भी करना मजबूरी ही हो सकती है। अब हमें बड़ी होशियारी और सतर्कता से उनसे मिलना होगा और इस सबके बारे में पूछना होगा।"

"ये काम मैं ही बेहतर तरीके से कर सकता था।" मैंने पिता जी की तरफ संजीदगी से देखते हुए कहा____"लेकिन अब ये संभव ही नहीं हो सकेगा क्योंकि आपके हुकुम पर मुझे आज और अभी भाभी को लेकर चंदनपुर जाना होगा।"

"हां हम समझते हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन रागिनी बहू को ले कर तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है। रही बात तुम्हारे उन दोनों दोस्तों से इस बारे में मिल कर पूंछतांछ करने की तो उसकी फ़िक्र मत करो तुम। हम अपने तरीके से इस बारे में पता कर लेंगे।"

"आज मैंने ये पता करने की कोशिश की कि उस दिन हवेली में ऐसा कौन व्यक्ति रहा होगा जिसने रेखा को ज़हर खाने पर मज़बूर किया होगा?" बड़े भैया ने कहा____"मैंने अपने तरीके से हवेली की लगभग हर नौकरानी से पूछताछ की और साथ ही हवेली के बाहर सुरक्षा में लगे आदमियों से भी पूछा लेकिन हैरानी की बात है कि इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं है।"

"हमें तो इस बारे में कुछ और ही समझ में आ रहा है।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"हो सकता है कि हमारा सोचना ग़लत भी हो किंतु रेखा के मामले में हम जैसा सोच रहे हैं शायद वैसा न हो। कहने का मतलब ये कि ज़रूरी नहीं कि उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला उस समय हवेली में ही रहा हो बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उसे पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। हवेली की दो नौकरानियों के अलावा बाकी सभी नौकरानियां सुबह सुबह ही अपने अपने घरों से हवेली में काम करने आती हैं और फिर दिन ढले ही यहां से अपने घर जाती हैं। रेखा और शीला दोनों ही नई नौकरानियां थी और वो दोनों सुबह यहां आने के बाद शाम को ही अपने अपने घर जाती थीं। ख़ैर, हमारे कहने का मतलब ये है कि अगर उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला हवेली में उस वक्त नहीं था अथवा हमारी पूछताछ पर ऐसे किसी व्यक्ति का पता नहीं चल सका है तो संभव है कि रेखा को पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। जिस तरह के हालात बने हुए थे उस स्थिति में उसके आका ने पहले ही उसे ये निर्देश दे दिया होगा कि अगर उसे अपने पकड़े जाने का ज़रा भी अंदेशा हो तो वो फ़ौरन ही ज़हर खा कर अपनी जान दे दे। उस दिन सुबह जिस तरह से हम सब लाव लश्कर ले कर चलने वाले थे उस सबको रेखा ने शायद अपनी आंखों से देखा होगा। उसे लगा होगा कि हमें उसके और उसके आका के बारे में पता चल गया है। वो इस बात से बुरी तरह घबरा गई होगी और फिर अपने आका के निर्देश के अनुसार उसने फ़ौरन ही खुदकुशी करने का इरादा बना लिया होगा।"

"हां शायद ऐसा ही हुआ होगा।" बड़े भैया ने सिर हिलाते हुए कहा____"तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि रेखा उस दिन हमारे लाव लश्कर को देख कर ग़लतफहमी का शिकार हो गई थी और उसी के चलते उसने ज़हर खा कर अपनी जान दे दी, मूर्ख औरत।"

"ये सिर्फ़ एक संभावना है।" पिता जी ने कहा____"जो कि ग़लत भी हो सकती है। हमें इस बारे में सिर्फ़ संभावना नहीं करनी है बल्कि सच का पता लगाना है। आज सुबह गांव वालों से हमने कहा भी है कि हम रेखा और शीला दोनों की ही मौत का पता लगाएंगे।"

"कैसे पता लगाएंगे पिता जी?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि उन दोनों की मौत का असल सच क्या है। आप गांव वालों को वो सच इस लिए नहीं बताना चाहते क्योंकि उससे दुश्मन को हमारी मंशा का पता चल जाएगा लेकिन इसके चलते आज जो एक नई बात हुई है उस पर शायद आप ध्यान ही नहीं देना चाहते। हमारे इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि गांव के कुछ लोग हमारे प्रति अपने अंदर गुस्सा और घृणा के भाव लिए हमारी चौखट तक चले आए। मैंने अपनी आंखों से देखा था पिता जी कि उनमें से किसी की भी आंखों में हमारे प्रति लेश मात्र भी दहशत नहीं थी। उस वक्त जिस तरह से आप उनसे बात कर रहे थे उससे मुझे ऐसा आभास हो रहा था जैसे आप उनके ऐसे मुजरिम हैं जिनसे वो जैसे चाहें गरजते हुए बात कर सकते हैं। माफ़ कीजिए पिता जी लेकिन अगर आपकी जगह मैं होता तो उसी वक्त उन सबको उनकी औकात दिखा देता। एक पल भी नहीं लगता उन्हें आपके क़दमों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए अपनी अपनी जान की भीख मांगने में।"

"हम में और तुम में यही अंतर बर्खुरदार।" पिता जी ने कहा____"हम गांव और समाज के लोगों के अंदर अपने प्रति डर अथवा ख़ौफ नहीं डालना चाहते हैं बल्कि उनके अंदर अपने प्रति इज्ज़त और सम्मान की ऐसी भावना डालना चाहते हैं जिसकी वजह से वो हर परिस्थिति में हमारा आदर करें और हमारे लिए खुशी खुशी अपना बलिदान देने के लिए भी तैयार रहें। तुम में हमें हमेशा हमारे पिता श्री यानि बड़े दादा ठाकुर की छवि दिखती है। वही गुरूर, वही गुस्सा, वही मनमौजीपन और वैसी ही फितरत जिसके तहत हर किसी को तुच्छ समझना और हर किसी को बेवजह ही अपने गुस्से के द्वारा ख़ाक में मिला देना। तुम हमेशा उन्हीं के जैसा बर्ताव करते आए हो। तुम सिर्फ़ यही चाहते हो कि गांव और समाज के लोगों के अंदर तुम्हारा वैसा ही ख़ौफ हो जैसा उनका होता था। हमें समझ में नहीं आता कि ऐसी सोच रखने वाला इंसान ये क्यों नहीं समझता कि ऐसा करने से लोग उससे डरते भले ही हैं लेकिन उसके प्रति उनके दिल में सच्चा प्रेम भाव कभी नहीं रहता। उसके द्वारा बेरहमी दिखाने से लोग भले ही उससे रहम की भीख मांगें लेकिन अंदर ही अंदर वो हमेशा उसे बददुआ ही देते हैं।"

"मैं ये मानता हूं पिता जी कि मैंने हमेशा अपनी मर्ज़ी से ही अपना हर काम किया है।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ये भी मानता हूं कि मैंने हमेशा वही किया है जिसके चलते आपका नाम ख़राब हुआ है लेकिन बड़े दादा ठाकुर की तरह मैंने कभी किसी मजलूम को नहीं सताया और ना ही किसी के अंदर कभी ख़ौफ भरने का सोचा है। मैं नहीं जानता कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं बड़े दादा ठाकुर के जैसी सोच रखता हूं या उनके जैसा ही बर्ताव करता हूं।"

"मैं वैभव की बातों से सहमत हूं पिता जी।" बड़े भैया ने झिझकते हुए कहा____"वो थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का ज़रूर है लेकिन मैंने भी देखा है कि अपने गुस्से के चलते इसने किसी के साथ ऐसा कुछ भी बुरा नहीं किया है जैसा कि बड़े दादा ठाकुर करते थे।"

बड़े भैया ने पहली बार पिता जी के सामने मेरा पक्ष लिया था और ये देख कर मुझे बेहद खुशी हुई थी। पिता जी उनकी बात सुन कर कुछ देर तक ख़ामोशी से उनकी तरफ देखते रहे। मैंने देखा उनके होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान एक पल के लिए उभरी थी और फिर फ़ौरन ही ग़ायब भी हो गई थी।

"वैसे मैं ये सोच रहा हूं कि क्या जगन ने ही अपने बड़े भाई मुरारी की हत्या की होगी?" मैंने एकदम से छा गई ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"सोचा जाए तो उसके पास अपने भाई की हत्या करने की काफ़ी माकूल वजह है। यानि अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़प लेना। मेरा ख़्याल है कि ऐसी मानसिकता उसके अंदर पहले से ही रही होगी किंतु इतना बड़ा क़दम उठाने से वो डरता रहा होगा लेकिन जब उसे सफ़ेदपोश आदमी का बेहतर सहयोग प्राप्त हुआ तो उसने अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने में देरी नहीं की।"

"हमें भी ऐसा ही लगता है।" पिता जी ने कहा____"उस सफ़ेदपोश को शायद जगन के मंसूबों का पता रहा होगा तभी उसने उसे पूरा सहयोग करने का प्रलोभन दिया होगा। उसने जगन को ये भी कहा होगा कि उसके द्वारा मुरारी की हत्या कर देने से उस पर कभी कोई आंच नहीं आएगी। जगन को भला इसके बेहतर मौका और इसके सिवा क्या चाहिए था।"

"यहां पर सवाल ये उठता है कि क्या जगन के ज़हन में।" बड़े भैया ने कहा____"ये ख़्याल नहीं आया होगा कि जो रहस्यमय व्यक्ति उसका इस तरह से साथ देने का दावा कर रहा है वो उस सबके लिए एक दिन उसे फंसा भी सकता है? जगन अपने ही भाई की हत्या किसी ऐसे व्यक्ति के भरोसे कैसे कर देने का सोच सकता है जिसके बारे में वो ख़ुद ही न जानता हो?"

"बात तर्क़ संगत है।" पिता जी ने कहा____"यकीनन वो इतना बड़ा जोख़िम किसी अज्ञात व्यक्ति के भरोसे नहीं उठा सकता था लेकिन संभव है कि भाई के ज़मीन जायदाद के लालच ने उसके ज़हन को कुछ सोचने ही न दिया हो। ये भी हो सकता है कि उस सफ़ेदपोश ने उसे अपनी तरफ से थोड़ा बहुत धन का लालच भी दिया हो।"

"बेशक ऐसा हो सकता है।" बड़े भैया ने कहा____"पर सवाल है किस लिए? उसे भला जगन द्वारा उसके ही भाई की हत्या करा देने से क्या लाभ हो सकता था?"

"क्या ये लाभ जैसी बात नहीं थी कि मुरारी की हत्या हो जाने के बाद उसका इल्ज़ाम तुम्हारे छोटे भाई के ऊपर लग गया था?" पिता जी ने जैसे बड़े भैया को याद दिलाते हुए कहा_____"उस सफ़ेदपोश का ये सब करवाने का सिर्फ़ एक ही मकसद था____हम सबका नाम ख़राब करना। दूर दूर तक इस बात को फैला देना कि जो दादा ठाकुर आस पास के दस गांवों का फैसला करता है उसका अपना ही बेटा किसी ग़रीब व्यक्ति की इस तरह से हत्या भी करता फिरता है। अगर वाकई में जगन ने ही अपने भाई की हत्या की है तो समझ लो कि उस सफ़ेदपोश ने एक तरह से एक तीर से दो शिकार किए थे। एक तरफ जगन का फ़ायदा हुआ और दूसरी तरफ ख़ुद उस सफ़ेदपोश का फ़ायदा हुआ।"

"अगर ये सब संभावनाएं सच हुईं तो समझिए मुरारी की हत्या का रहस्य सुलझ गया।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन अब मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि वो सफ़ेदपोश आदमी मेरे दोस्तों के द्वारा अपना कौन सा उल्लू सीधा करना चाहता है?"

"वो दोनों तुम्हारे दोस्त हैं।" पिता जी ने कहा____"और उन्हें तुम्हारे हर क्रिया कलाप के बारे में बेहतर तरीके से पता है। संभव है कि वो सफ़ेदपोश आदमी उनके द्वारा इसी संबंध में अपना कोई काम करवा रहा हो।"

"मामला गंभीर है पिता जी।" मैंने चिंतित भाव से कहा____"सुनील और चेतन से इस बारे में पूछताछ करना बेहद ज़रूरी है।"
"जल्दबाजी में उठाया गया क़दम नुकसानदेय भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"इस लिए बेहतर है कि हम पहले उन दोनों पर गुप्त रूप से नज़र रखवाएं। हम नहीं चाहते कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उनकी जान को कोई ख़तरा हो जाए।"

पिता जी की बात सुन कर अभी मैं कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और बाहर से मां की आवाज़ आई। वो मुझे डांटते हुए कह रहीं थी कि मैं अभी तक तैयार हो कर क्यों नहीं आया? मां की ये बात पिता जी और बड़े भैया ने भी सुनी। इस लिए पिता जी पलंग से नीचे उतर गए और मुझसे कहा कि मैं भाभी को साथ ले कर चंदनपुर जाऊं और यहां के बारे में कोई फ़िक्र न करूं।

पिता जी और बड़े भैया दोनों ही कमरे से चले गए तो मैं फ़ौरन ही अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहनने लगा। इस बीच कमरे में मेरे कुछ कपड़ों को एक थैले में डालते हुए मां जाने क्या क्या सुनाए जा रहीं थी मुझे। ख़ैर कुछ ही देर में मैं थैला लिए उनके साथ ही कमरे से बाहर निकला।

रागिनी भाभी तैयार हो कर नीचे ही मेरा इंतज़ार कर रहीं थी। मेरे आते ही भाभी ने अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और फिर चल पड़ीं। एक थैला उनका भी था इस लिए मैं उनका और अपना थैला लिए बाहर आया। बाहर अभिनव भैया ने जीप को मुख्य दरवाज़े के सामने लगा दिया था। पिता जी ने मुझे कुछ ज़रूरी दिशा निर्देश दिए उसके बाद मैंने उनका आशीर्वाद ले कर जीप में अपना और भाभी का थैला रखा। बड़े भैया जीप से उतर आए थे। भाभी चुपचाप जा कर जीप में बैठ गईं। मैंने बड़े भैया के भी पैर छुए तो उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया और मुझे अपना ख़्याल रखने के लिए कहा।

कुछ ही देर में मैं भाभी को लिए जीप से निकल पड़ा। हमारे साथ कुछ आदमियों को भी जाना था इस लिए एक दूसरी जीप में वो लोग भी हमारे पीछे चल पड़े थे। वो सब दिखने में भले ही सामान्य नज़र आ रहे थे लेकिन मैं बखूबी जानता था कि वो सब हर तरह के ख़तरे से निपटने के लिए तैयार थे। रागिनी भाभी मेरे बगल से ही बैठी हुईं थी। उनके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी की चमक दिख रही थी। ये पहला अवसर था जब मैं भाभी को ले कर कहीं जा रहा था और वो मेरे साथ जीप में अकेली थीं। सुर्ख साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रहीं थी। मैं चुपके से उनकी नज़र बचा कर उन्हें देखने पर मानों मजबूर हो जाता था।


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मुझे हवेली से निकले क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि जगताप चाचा हवेली में दाखिल हुए। जगताप चाचा को पिता जी ने रेखा और शीला के हत्यारे का पता लगाने का काम सौंपा था और साथ ही इस बात का भी कि सरजू कलुआ और रंगा सुबह जिस सुर में बात कर रहे थे उसके पीछे की असल वजह क्या थी। पिता जी बैठक में ही बड़े भैया के साथ बैठे हुए थे और हालातों के बारे में अपनी कुछ रणनीति बना रहे थे। जगताप चाचा आए तो वो भी उनके पास ही बैठक में रखी एक कुर्सी पर बैठ गए।

"तुम्हारे चेहरे के भाव ज़ाहिर कर रहे हैं कि हमने जो काम तुम्हें सौंपा था वो काम तुमने बखूबी कर लिया है।" पिता जी ने जगताप चाचा की तरफ देखते हुए कहा_____"ख़ैर हम तुमसे सब कुछ जानने के लिए उत्सुक हैं।"

"आपने सही अंदाज़ा लगाया भैया।" जगताप चाचा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मुझे कामयाबी तो मिली है लेकिन पूरी तरह से नहीं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" पिता जी के माथे पर सहसा सिलवटें उभर आईं____"पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिली है से क्या मतलब है तुम्हारा?"

"बात दरअसल ये है भैया कि आपके हुकुम पर मैं इस सबका पता लगाने के लिए गया।" जगताप चाचा ने लंबी सांस लेते हुए कहा____"सबसे पहले तो मैं रेखा और शीला के पतियों से मिला और उनसे इस सबके बारे में विस्तार से बातें की और ये भी कहा कि क्या उन्हें लगता है कि उनकी बीवियों को हम बेवजह ही मौत घाट उतार देंगे? उन्हें समझाने के लिए और उनको संतुष्ट करने के लिए मुझे उन दोनों को सच बताना पड़ा भैया। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां असल में हमारे किसी दुश्मन के इशारे पर काम कर रहीं थी और जब हमें इस बात का पता चला तो हम बस उनसे बात करना चाहते थे लेकिन उससे पहले ही उन दोनों की मौत हो गई। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां किसी अज्ञात आदमी के द्वारा इस हद तक मज़बूर कर दी गईं थी कि वो दोनों उसके इशारे पर कुछ भी कर सकती थीं। मेरे द्वारा सच बताए जाने पर शीला और रेखा के पति बुरी तरह चकित हो गए थे। मैंने उन्हें समझाया कि इस बारे में उन्हें हमने सबके सामने इसी लिए नहीं बताया था क्योंकि इससे हमारे दुश्मन को भी पता लग जाता। जबकि हम तो ये चाहते हैं कि हमारा दुश्मन भ्रम में ही रहे और हम किसी तरह जाल बिछा कर उसे पकड़ लें। फिर मैंने उनसे सरजू कलुआ और रंगा के बारे में पूछा कि क्या वो तीनों उसके यहां आए थे तो दोनों ने बताया कि पिछली रात वो तीनों घंटों उनके यहां बैठे रहे थे और इस घटना के बारे में जाने क्या क्या उनके दिमाग़ में भरते जा रहे थे। मैंने उन्हें समझाया कि उन तीनों की बातों में न फंसे क्योंकि वो तीनों भी हमारे दुश्मन के आदमी हो सकते हैं। आख़िर मेरे समझाने बुझाने पर देवधर और मंगल मान भी गए और उन्हें सच का पता भी चल गया।"

"चलो ये तो अच्छा हुआ।" पिता जी ने कहा____"उसके बाद फिर क्या तुम उन तीनों से भी मिले?"
"उनसे मिलता तो ज़रूरी ही था भैया।" जगताप चाचा ने कहा____"आख़िर उन्हीं से तो ये पता चलता कि सुबह उतने सारे लोगों में से सिर्फ़ उन तीनों को ही ऐसी कौन सी खुजली हो रही थी जिसके चलते वो हमसे ऊंचे स्वर में बात करने की हिमाकत किए थे?"

"ह्म्म्म।" पिता जी ने हल्के से हुंकार भरी____"तो क्या पता चला इस बारे में उनसे?"
"अपने साथ यहां से दो आदमियों को ले कर गया था मैं।" जगताप चाचा ने कहना शुरू किया____"ऐसा इस लिए क्योंकि मुझे पूरा अंदेशा था कि वो लोग आसानी से मिलेंगे नहीं और अगर मिले भी तो आसानी से हाथ नहीं आएंगे। मैं सरजू के घर गया और अपने दोनों आदमियों को अलग अलग कलुआ और रंगा के घर भेजा। उन्हें हुकुम था कि वो उन दोनों को हर हाल में उन्हें ले कर सरजू के घर आएं और फिर ऐसा ही हुआ। तीनों जब मेरे सामने इकट्ठा हुए तो तीनों ही एकदम से घबरा गए थे। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि मैं और मेरे आदमियों ने किस लिए उन तीनों को इकट्ठा किया है। ख़ैर, उसके बाद मैंने तीनों से पूछताछ शुरू की। शुरू में तो वो तीनों इधर उधर की ही हांकते रहे लेकिन जब तीनों की कुटाई हुई तो जल्दी ही रट्टू तोते की तरह सब कुछ बताना शुरू कर दिया। उनके अनुसार, दो दिन पहले उन्हें सफ़ेद लिबास पहने एक रहस्यमई आदमी रात के अंधेरे में मिला था। उस सफ़ेदपोश आदमी के साथ दो लोग और थे जिनका चेहरा अंधेरे में नज़र नहीं आ रहा था। उस सफ़ेदपोश ने ही उन्हें बताया था कि कैसे उन तीनों को गांव वालों को इकट्ठा करना है और फिर कैसे शीला और रेखा की मौत के बारे में हवेली जा कर दादा ठाकुर के सामने पूरी निडरता से सवाल जवाब करना है। सफ़ेदपोश ने उन तीनों को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके कहे अनुसार ऐसा नहीं किया तो वो उसके परिवार वालों को जान से मार देगा। कहने का मतलब ये कि सरजू कलुआ और रंगा ने वो सब उस सफ़ेदपोश आदमी के मज़बूर करने पर किया था।"

"हमें लगा ही था कि उन तीनों के ऐसे ब्यौहार के पीछे ज़रूर ऐसी ही कोई बात होगी।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ख़ैर, तुमने बताया कि सफ़ेदपोश ने उन तीनों को ऐसा करने के लिए दो दिन पहले कहा था, यानि जिस दिन रेखा और शीला की मौत हुई थी। ज़ाहिर है उस सफ़ेदपोश ने इस मामले को बड़ी होशियारी से हमारे खिलाफ़ एक हथियार के रूप में स्तेमाल किया है। एक बार फिर से उसने वही हथकंडा अपनाया है यानि हमें और हमारी शाख को धूल में मिलाने वाला हथकंडा। यही हथकंडा उसने मुरारी की हत्या के समय अपनाया था, वैभव के सिर मुरारी की हत्या का आरोप लगवा कर।"

"हमें ये तो पता चल गया पिता जी कि सरजू कलुआ और रंगा के उस ब्यौहार की वजह क्या थी।" अभिनव भैया ने कहा____"लेकिन इस सबके बाद भी अगर हम ये कहें कि कोई फ़ायदा नहीं हुआ है तो ग़लत न होगा। हमारा दुश्मन इतना शातिर है कि वो अपने खिलाफ़ ऐसा कोई भी सुराग़ नहीं छोड़ रहा जिसके चलते हम उस तक पहुंच सकें। वो अपने फ़ायदे के लिए जिस किसी को भी मोहरा बनाता है उसे पकड़ लेने के बाद भी हमें कोई फ़ायदा नहीं होता।"

"इसकी वजह ये है कि वो अपने हर प्यादे से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो वो भी समझता है कि उसका कोई न कोई प्यादा देर सवेर हमारे हाथ लगेगा ही और तब हम उसके उस प्यादे से उसके बारे में पता करने की पूरी कोशिश करेंगे। ज़ाहिर है अगर उसके प्यादे को उसके बारे में पता होगा तो हमें उसी प्यादे से उसके बारे में सब कुछ जान लेने में देर नहीं लगेगी। यही सब सोच कर वो हमेशा अपने प्यादों से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।"

"फिर तो हमारे लिए उस तक पहुंच पाना लगभग असम्भव बात ही है भैया।" जगताप चाचा ने गहरी सांस ले कर कहा____"वो हमेशा हमसे दो क्या बल्कि चार क़दम आगे की सोच कर चलता है और हमें हर बार नाकामी का ही स्वाद चखना पड़ता है।"

"किसी भी इंसान के सितारे हमेशा गर्दिश में नहीं रहते जगताप।" पिता जी ने हल्की मुस्कान में कहा____एक दिन हर इंसान का बुरा वक्त आता है। हमें यकीन है कि उस सफ़ेदपोश का भी बुरा वक्त जल्द ही आएगा।"

कुछ देर और इस संबंध में भी बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम पर चले गए। दादा ठाकुर अकेले ही बैठक में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर कई तरह के विचारों का आवा गमन चालू था। सहसा जाने क्या सोच कर वो मुस्कुराए और फिर उठ कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गए।


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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 99
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मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।


अब आगे....



"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"

"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"

"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"

दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"

"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"

"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"

सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।

"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"

"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"

"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"

"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।

"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"

"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।

"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"

"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"

"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"

"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"

"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"

"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।

"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"

"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"

"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"

"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"

"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"

"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"

"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"

"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"

"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"

"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"

"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"

"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"

"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"

"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"

"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"

"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"

"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"

"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"

"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"

"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"

"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"

"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"

"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"

"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"

"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"

"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"

"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"

"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"

"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"

"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"

"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"

"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"

"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"

"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"

"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"

सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"

"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"

"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"

"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"

सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।




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Honi Ko koi nahin taal Sakta, yah baat kah kar kulguru ne spasht kar Diya ki vibhav ke nasib me 1 nahi 2 biwiyon ka youg hai.
रागिनी के विषय में भी कहदिया की उसकी और आपकी भलाई इसी में है उसकी शादी वैभव से करा दे।
Dada thakur और सुगंधा देवी आखिर मान ही लिया के दो से भले तीन
 
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