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अध्याय - 99
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मैंने भाभी और काकी की नज़र बचा कर अनुराधा की तरफ देखा। जैसे ही हम दोनों की नज़रें मिलीं तो वो एकदम से शर्मा गई और अपनी नज़रें झुका ली। मैं उसकी यूं छुईमुई हो गई दशा को देख कर मुस्कुरा उठा और फिर ये सोच कर भाभी के पीछे चल पड़ा कि किसी दिन अकेले में तसल्ली से अपनी अनुराधा से मुलाक़ात करूंगा। कुछ ही देर में मैं भाभी को जीप में बैठाए वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा था।
अब आगे....
"ये क्या कह रहे हैं आप?" कमरे में पलंग पर दादा ठाकुर के सामने बैठी सुगंधा देवी हैरत से बोल पड़ीं____"हमारा बेटा एक ऐसे मामूली से किसान की बेटी से प्रेम करता है जिसकी कुछ महीने पहले उसके ही भाई ने हत्या कर दी थी?"
"हमारे आदमियों के द्वारा हमें उसकी ख़बर मिलती रहती थी।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने ख़्वाब में भी ये कल्पना नहीं की थी कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम भी करने लगेगा। आज गौरी शंकर से ही हमें ये सब बातें पता चली हैं।"
"अगर ये वाकई में सच है तो फिर ये काफी गंभीर बात हो गई है हमारे लिए।" सुगंधा देवी ने कहा____"हमें तो यकीन ही नहीं होता कि हमारा बेटा किसी लड़की से प्रेम कर सकता है। उसके बारे में तो अब तक हमने यही सुना था कि वो भी अपने दादा की तरह अय्याशियां करता है। ख़ैर, तो अब इस बारे में क्या सोचा है आपने और गौरी शंकर ने क्या कहा इस बारे में?"
दादा ठाकुर ने संक्षेप में सारी बातें बता दी जिसे सुन कर सुगंधा देवी ने कहा____"ठीक ही तो कह रहा था वो। भला कौन ऐसा बाप अथवा चाचा होगा जो ये जानते हुए भी अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे से करने का सोचेगा कि वो किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता है? उसका वो सब कहना पूरी तरह जायज़ है।"
"हां, और हम भी यही मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"किंतु हमने उसे वचन दिया है कि अगले साल हम उसकी भतीजी को अपनी बहू बना कर हवेली ले आएंगे। उस लड़की ने अपने प्रेम के चलते क्या कुछ नहीं किया है वैभव के लिए। हमें उसके त्याग और बलिदान का बखूबी एहसास है इस लिए हम ये हर्गिज़ नहीं चाहेंगे कि उस मासूम और नेकदिल लड़की के साथ किसी भी तरह का कोई अन्याय हो।"
"तो फिर क्या करेंगे आप?" सुगंधा देवी की धड़कनें सहसा एक अंजाने भय की वजह से तेज़ हो गईं थी, बोलीं____"देखिए कोई ऐसा क़दम मत उठाइएगा जिसके चलते हालात बेहद नाज़ुक हो जाएं। बड़ी मुश्किल से हम सब उस सदमे से उबरे हैं इस लिए ऐसा कुछ भी मत कीजिएगा, हम आपके सामने हाथ जोड़ते हैं।"
सुगंधा देवी की बातें सुन कर दादा ठाकुर कुछ बोले नहीं किंतु किसी सोच में डूबे हुए ज़रूर नज़र आए। ये देख सुगंधा देवी की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं। उनके अंदर एकदम से घबराहट भर गई थी।
"क...क्या सोच रहे हैं आप?" फिर उन्होंने दादा ठाकुर को देखते हुए बेचैन भाव से पूछा____"कोई कठोर क़दम उठाने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं ना आप? देखिए हम आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं कि ऐसा.....।"
"हम ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहे हैं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने उनकी बात को काट कर कहा____"बल्कि हम तो कुछ और ही सोचने लगे हैं।"
"क्या सोचने लगे हैं आप?" सुगंधा देवी ने मन ही मन राहत की सांस ली किंतु उत्सुकता के चलते पूछा_____"हमें भी तो बताइए कि आख़िर क्या चल रहा है आपके दिमाग़ में?"
"आपको याद है कुछ दिनों पहले हम कुल गुरु से मिलने गए थे?" दादा ठाकुर ने सुगंधा देवी की तरफ देखा।
"हां हां हमें अच्छी तरह याद है।" सुगंधा देवी ने झट से सिर हिलाते हुए कहा____"किंतु आपने हमारे पूछने पर भी हमें कुछ नहीं बताया था। आख़िर बात क्या है? अचानक से कुल गुरु से मिलने वाली बात का ज़िक्र क्यों करने लगे आप?"
"हम सबके साथ जो कुछ भी हुआ है उसके चलते हम सबकी दशा बेहद ही ख़राब हो गई थी।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर कहा____"सच कहें तो अपने छोटे भाई और बेटे की मौत के बाद हमें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे खुद को सम्हालें और अपने साथ साथ बाकी सबको भी। रातों को नींद नहीं आती थी। ऐसे ही एक रात हमें कुल गुरु का ख़याल आया। हमें एहसास हुआ कि ऐसी परिस्थिति में कुल गुरु ही हमें कोई रास्ता दिखा सकते हैं। उसके बाद हम अगली सुबह उनसे मिलने चले गए। गुरु जी के आश्रम में जब हम उनसे मिले और उन्हें सब कुछ बताया तो उन्हें भी बहुत तकलीफ़ हुई। जब वो अपने सभी शिष्यों से फारिग हुए तो वो हमें अपने निजी कक्ष में ले गए। वहां पर उन्होंने हमें बताया कि हमारे खानदान में ऐसा होना पहले से ही निर्धारित था।"
"ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी खुद को बोलने से रोक न सकीं।
"हमने भी उनसे यही कहा था।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि शुरू में हमारे बड़े बेटे पर संकट था किंतु उसे बचाया जाना भी निर्धारित था, ये अलग बात है कि उस समय ऐसे हालात थे कि वो चाह कर भी कुछ न बता सके थे। बाद में जब उन्हें पता चला था कि हमने अपने बेटे को बचा लिया है तो उन्हें इस बात से खुशी हुई थी।"
"अगर उन्हें इतना ही कुछ पता था तो उन्होंने जगताप और हमारे बेटे की हत्या होने से रोकने के बारे में क्यों नहीं बताया था?" सुगंधा देवी ने सहसा नाराज़गी वाले भाव से कहा____"क्या इसके लिए भी वो कुछ करने में असमर्थ थे?"
"असमर्थ नहीं थे लेकिन उस समय वो अपने आश्रम में थे ही नहीं।" दादा ठाकुर ने कहा____"नियति के खेल बड़े ही अजीब होते हैं सुगंधा। होनी को कोई नहीं टाल सकता, खुद विधि का विधान बनाने वाला विधाता भी नहीं। उस समय कुल गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ अपने गुरु भाई से मिलने चले गए थे। उनके गुरु भाई अपना पार्थिव शरीर त्याग कर समाधि लेने वाले थे। अतः उनकी अंतिम घड़ी में वो उनसे मिलने गए थे। यही वजह थी कि वो यहां के हालातों से पूरी तरह बेख़बर थे। नियति का खेल ऐसे ही चलता है। होनी जब होती है तो वो सबसे पहले ऐसा चक्रव्यूह रच देती है कि कोई भी इंसान उसके चक्रव्यूह को भेद कर उसके मार्ग में अवरोध पैदा नहीं कर सकता। यही हमारे साथ हुआ है।"
"तो आप कुल गुरु से यही सब जानने गए थे?" सुगंधा देवी ने पूछा____"या कोई और भी वजह थी उनसे मिलने की?"
"जैसा कि हमने आपको बताया कि जिस तरह के हालातों में हम सब थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"उससे निकलने का हमें कुल गुरु ही कोई रास्ता दिखा सकते थे। अतः जब हम उनसे अपनी हालत के बारे में बताया तो उन्होंने हमें तरह तरह की दार्शनिक बातों के द्वारा समझाया जिसके चलते यकीनन हमें बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या अब आगे भी ऐसा कोई संकट हम सबके जीवन में आएगा तो उन्होंने हमें कुछ ऐसी बातें बताई जिन्हें सुन कर हम अवाक् रह गए थे।"
"ऐसा क्या बताया था उन्होंने आपसे?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई।
"उन्होंने बताया कि इस तरह का संकट तो फिलहाल अब नहीं आएगा लेकिन आगे चल कर एक ऐसा समय भी आएगा जिसके चलते हम काफी विचलित हो सकते हैं।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"और अगर हमने विचलित हो कर कोई कठोर क़दम उठाया तो उसके नतीजे हम में से किसी के लिए भी ठीक नहीं होंगे।"
"आप क्या कह रहे हैं हमें कुछ समझ नहीं आ रहा।" सुगंधा देवी ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"कृपया साफ साफ बताइए कि आख़िर कुल गुरु ने किस बारे में आपसे ये सब कहा था?"
"हमारे बेटे वैभव के बारे में।" दादा ठाकुर ने स्पष्ट भाव से कहा_____"गुरु जी ने स्पष्ट रूप से हमें बताया था कि हमारे बेटे वैभव के जीवन में दो ऐसी औरतों का योग है जो आने वाले समय में उसकी पत्नियां बनेंगी।"
"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी आश्चर्य से आंखें फैला कर बोलीं____"ऐसा कैसे हो सकता है भला?"
"ऐसा कैसे हो सकता है नहीं बल्कि ऐसा होने लगा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"वर्तमान में ऐसा ही तो हो रहा है। जहां एक तरफ हमने अपने बेटे का ब्याह हरि शंकर की बेटी रूपा से तय किया है तो वहीं दूसरी तरफ हमें पता चलता है कि हमारा बेटा किसी दूसरी लड़की से प्रेम भी करता है। ज़ाहिर है कि जब वो उस लड़की से प्रेम करता है तो उसने उसको अपनी जीवन संगिनी बनाने के बारे में भी सोच रखा होगा। अब अगर हमने उसके प्रेम संबंध को मंजूरी दे कर उस लड़की से उसका ब्याह न किया तो यकीनन हमारा बेटा हमारे इस कार्य से नाखुश हो जाएगा और संभव है कि वो कोई ऐसा रास्ता अख़्तियार कर ले जिसके बारे में हम अभी सोच भी नहीं सकते।"
"ये तो सच में बड़ी गंभीर बात हो गई है।" सुगंधा देवी ने चकित भाव से कहा____"यानि कुल गुरु का कहना सच हो रहा है।"
"अगर गौरी शंकर की बातें सच हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"और हमारा बेटा वाकई में मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो यकीनन गुरु जी का कहना सच हो रहा है।"
"तो फिर अब आप क्या करेंगे?" सुगंधा देवी ने संदिग्ध भाव से दादा ठाकुर को देखते हुए पूछा____"क्या आप हमारे बेटे के प्रेम को मंजूरी दे कर गुरु जी की बात मानेंगे या फिर कोई कठोर क़दम उठाएंगे?"
"आपके क्या विचार हैं इस बारे में?" दादा ठाकुर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल करते हुए पूछा____"क्या आपको अपने बेटे के जीवन में उसकी दो दो पत्नियां होने पर कोई एतराज़ है या फिर आप ऐसा खुशी खुशी मंज़ूर कर लेंगी?"
"अगर आप वाकई में हमारे विचारों के आधार पर ही फ़ैसला लेना चाहते हैं।" सुगंधा देवी ने संतुलित लहजे से कहा____"तो हमारे विचार यही हैं कि हमारा बेटा जो करना चाहता है उसे आप करने दें। अगर उसके भाग्य में दो दो पत्नियां ही लिखी हैं तो यही सही। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस हवेली में रहने वालों के जीवन में अब कभी कोई दुख या संकट न आए बल्कि हर कोई खुशी से जिए। आपने हरि शंकर की बेटी से वैभव का रिश्ता तय कर दिया है तो बेशक उसका ब्याह उससे कीजिए लेकिन अगर हमारा बेटा मुरारी की बेटी से भी ब्याह करना चाहेगा तो आप उसकी भी खुशी खुशी मंजूरी दे दीजिएगा।"
"अगर आप भी यही चाहती हैं तो ठीक है फिर।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"सच कहें तो हम भी सबको खुश ही देखना चाहते हैं। मुरारी की बेटी से हमारे बेटे की ब्याह के बारे में लोग क्या सोचेंगे इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि उस लड़की के प्रेम में पड़ कर हमारा बेटा रूपा के साथ किसी तरह का अन्याय अथवा पक्षपात न करे। हमें अक्सर वो रात याद आती है जब वो लड़की अपनी भाभी के साथ हमसे मिलने आई थी और हमें ये बताया था कि हमारे बेटे को कुछ लोग अगली सुबह जान से मारने के लिए चंदनपुर जाने वाले हैं। उस समय हमें उसकी वो बातें सुन कर थोड़ा अजीब तो ज़रूर लगा था लेकिन ये नहीं समझ पाए थे कि आख़िर उस लड़की को रात के वक्त हवेली आ कर हमें वो सब बताने की क्या ज़रूरत थी? आज जबकि हम सब कुछ जानते हैं तो यही सोचते हैं कि ऐसा उसने सिर्फ अपने प्रेम के चलते ही किया था। प्रेम करने वाला भला ये कैसे चाह सकता है कि कोई उसके चाहने वाले को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा दे?"
"सही कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"सच में वो लड़की हमारे बेटे से बहुत प्रेम करती है। हमें आश्चर्य होता है कि इतना प्रेम करने वाली लड़की से हमारे बेटे को प्रेम कैसे न हुआ और हुआ भी तो ऐसी लड़की से जो एक मामूली से किसान की बेटी है। आख़िर उस लड़की में उसने ऐसा क्या देखा होगा जिसके चलते वो उसे प्रेम करने लगा?"
"इस बारे में हमें क्योंकि कोई जानकारी नहीं है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम यही कह सकते कि उसने उसमें ऐसा क्या देखा होगा? जबकि गहराई से सोचें तो हमें एहसास होगा कि उस लड़की में कोई तो ऐसी बात यकीनन रही होगी जिसके चलते वैभव जैसे लड़के को उससे प्रेम हो गया? उसके जैसे चरित्र वाला लड़का अगर किसी लड़की से प्रेम कर बैठा है तो ये कोई मामूली बात नहीं है ठकुराईन। हमें पूरा यकीन है कि उस लड़की में कोई तो ख़ास बात ज़रूर होगी।"
"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उसमें कौन सी ख़ास बात है।" सुगंधा देवी ने जैसे पहलू बदला_____"किंतु अब ये सोचने का विषय है कि गौरी शंकर इस सबके बाद क्या चाहता है?"
"इस संसार में किसी के चाहने से कहां कुछ होता है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हर इंसान को समझौता ही करना पड़ता है और फिर उस समझौते के साथ जीवन जीना पड़ता है। गौरी शंकर को अपनी भतीजी के प्रेम के साथ साथ हमारे बेटे के प्रेम को भी गहराई से समझना होगा। उसे समझना होगा कि पत्नी के रूप में उसकी भतीजी हमारे बेटे के साथ तभी खुश रह पाएगी जब उसकी तरह हमारे बेटे को भी उसका प्रेम मिल जाए। बाकी ऊपर वाले ने किसी के लिए क्या सोच रखा है ये तो वही जानता है।"
"ये सब तो ठीक है लेकिन सबकी खुशियों के बीच आप एक शख़्स की खुशियों को भूल रहे हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"आप हमारी बहू को भूल रहे हैं ठाकुर साहब। उस अभागन की खुशियों को भूल रहे हैं जिसका ईश्वर ने जीवन भर दुख में डूबे रहने का ही नसीब बना दिया है। क्या उसे देख कर आपके कलेजे में शूल नहीं चुभते?"
"चुभते हैं सुगंधा और बहुत ज़ोरों से चुभते हैं।" दादा ठाकुर ने संजीदा भाव से कहा____"जब भी उसे विधवा के लिबास में किसी मुरझाए हुए फूल की तरह देखते हैं तो बड़ी तकलीफ़ होती है हमें। हमारा बस चले तो पलक झपकते ही दुनिया भर की खुशियां उसके दामन में भर दें लेकिन क्या करें? कुछ भी तो हमारे हाथ में नहीं है।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" सुगंधा देवी ने कहा____"क्या कुल गुरु से आपने हमारी बहू के बारे में कुछ नहीं पूछा?"
"क्या आप ऐसा सोच सकती हैं कि हम उनसे अपनी बहू के बारे में पूछना भूल सकते थे?" दादा ठाकुर ने कहा____"नहीं सुगंधा, वो हमारी बहू ही नहीं बल्कि हमारी बेटी भी है। हमारी शान है, हमारा गुरूर है वो। कुल गुरु से हमने उसके बारे में भी पूछा था। जवाब में उन्होंने जो कुछ हमसे कहा उससे हम स्तब्ध रह गए थे।"
"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने एकाएक व्याकुल भाव भाव से पूछा____"ऐसा क्या कहा था गुरु जी ने आपसे?"
"पहले तो उन्होंने हमसे बहुत ही सरल शब्दों में पूछा था कि क्या हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमेशा खुश रहे और हमेशा हमारे साथ ही रहे?" दादा ठाकुर ने कहा_____"जवाब में जब हमने हां कहा तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें।"
"क...क्या????" सुगंधा देवी उछल ही पड़ीं। फिर किसी तरह खुद को सम्हाल कर बोलीं____"य..ये क्या कह रहे हैं आप?"
"आपकी तरह हम भी उनकी बात सुन कर उछल पड़े थे।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमने भी उनसे यही कहा था कि ये क्या कह रहे हैं वो? जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी बहू सुहागन के रूप में तभी तो हमेशा हमारे साथ रह सकती है जब हम उसका ब्याह अपने बेटे वैभव से कर दें। अन्यथा अगर हम उसे फिर से सुहागन बनाने का सोच कर किसी दूसरे से उसका ब्याह करेंगे तो ऐसे में वो भला कैसे हमारे साथ हमारी बहू के रूप में रह सकती है?"
"हां ये तो सच कहा था उन्होंने।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस छोड़ते हुए सिर हिलाया____"वाकई में सुहागन के रूप में हमारी बहू हमारे पास तभी तो रह सकती है जब उसका ब्याह हमारे ही बेटे से हो। बड़ी अजीब बात है, ऐसा तो हमने सोचा ही नहीं था।"
"हमने भी कहां सोचा था सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"गुरु जी की बातों से ही हमारे अकल के पर्दे छंटे थे। काफी देर तक हम उनके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में बैठे रह गए थे। फिर जब किसी तरह हमारी हालत सामान्य हुई तो हमने गुरु जी से पूछा कि क्या ऐसा संभव है तो उन्होंने कहा बिल्कुल संभव है लेकिन इसके लिए हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।"
"हमारा तो ये सब सुन के सिर ही चकराने लगा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने अपना माथा सहलाते हुए कहा____"तो क्या इसी लिए गुरु जी ने कहा था कि हमारे बेटे के जीवन में दो औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी?"
"हां शायद इसी लिए।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"उस दिन से हम अक्सर इस बारे में सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या वास्तव में हमें ऐसा करना चाहिए या नहीं?"
"क्या मतलब है आपका?" सुगंधा देवी ने हैरत से देखते हुए कहा____"क्या आप भाग्य बदल देने का सोच रहे हैं?"
"सीधी सी बात है ठकुराईन कि अगर हम अपनी बहू को एक सुहागन के रूप में हमेशा खुश देखना चाहते हैं तो हमें उसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।" दादा ठाकुर ने कहा____"रागिनी जैसी बहू अथवा बेटी हमें शायद ही कहीं मिले इस लिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसी बहू हमेशा इस हवेली की शान ही बनी रहे तो हमें किसी तरह से उसका ब्याह वैभव से करवाना ही होगा।"
"लेकिन क्या ऐसा संभव है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से देखा____"हमारा मतलब है कि क्या हमारी बहू अपने देवर से ब्याह करने के लिए राज़ी होगी? वो तो वैभव को अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती है और हमारा बेटा भी तो उसकी बहुत इज्ज़त करता है। माना कि वो बुरे चरित्र का लड़का रहा है लेकिन हमें पूरा यकीन है कि उसने भूल कर भी अपनी भाभी के बारे में कभी ग़लत ख़याल अपने मन में नहीं लाया होगा। दूसरी बात, आप ही ने बताया कि वो मुरारी की लड़की से प्रेम करता है तो ऐसे में वो कैसे अपनी भाभी से ब्याह करने वाली बात को मंजूरी देगा? नहीं नहीं, हमें नहीं लगता कि ऐसा संभव होगा? एक पल के लिए मान लेते हैं कि हमारा बेटा इसके लिए राज़ी भी हो जाएगा लेकिन रागिनी...?? नहीं, वो कभी ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होगी। वैसे भी, गुरु जी ने दो ही औरतों को पत्नी के रूप में उसके जीवन में आने की बात कही थी तो वो दो औरतें वही हैं, यानि रूपा और मुरारी की वो लड़की।"
"आपने तो बिना कोशिश किए ही फ़ैसला कर लिया कि वो राज़ी नहीं होगी।" दादा ठाकुर ने कहा____"जबकि आपको बहाने से ही सही लेकिन उसके मन की टोह लेनी चाहिए और रही गुरु जी की कही ये बात कि दो ही औरतें उसकी पत्नी के रूप में आएंगी तो ये ज़रूरी नहीं है। हमारा मतलब है कि रागिनी बहू का ब्याह वैभव से कर देने के बात भी तो उन्होंने कुछ सोच कर ही कही होगी।"
"ये सब तो ठीक है लेकिन बहू के मन की टोह लेने की बात क्यों कह रहे हैं आप? क्या आपको उसके चरित्र पर संदेह है?" सुगंधा देवी ने बेयकीनी से कहा____"जबकि हमें तो अपनी बहू के चरित्र पर हद से ज़्यादा भरोसा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारी बहू उत्तम चरित्र वाली महिला है।"
"आप भी हद करती हैं ठकुराईन।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"आपने ये कैसे सोच लिया कि हमें अपनी बहू के चरित्र पर संदेह है? एक बात आप जान लीजिए कि अगर कोई गर्म तवे पर बैठ कर भी कहेगा कि हमारी बहू का चरित्र निम्न दर्जे का है तो हम उस पर यकीन नहीं करेंगे। बल्कि ऐसा कहने वाले को फ़ौरन ही मौत के घाट उतार देंगे। टोह लेने से हमारा मतलब सिर्फ यही था कि उसके मन में अपने देवर के प्रति अगर छोटे भाई वाली ही भावना है तो वो कितनी प्रबल है? हालाकि एक सच ये भी है कि किसी को छोटा भाई मान लेने से वो सचमुच का छोटा भाई नहीं बन जाता। वैभव सबसे पहले उसका देवर है और देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ऐसी बात नहीं है जो न्यायोचित अथवा तर्कसंगत न हो।"
"हम मान लेते हैं कि आपकी बातें अपनी जगह सही हैं।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन ये तो आप भी समझते ही होंगे कि हमारे बेटे वैभव से रागिनी बहू का ब्याह होना अथवा करवाना लगभग नामुमकिन बात है। एक तो रागिनी खुद इसके लिए राज़ी नहीं होगी दूसरे उसके अपने माता पिता भी इस रिश्ते के लिए मंजूरी नहीं दे सकते हैं।"
"हां, हम समझते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ले कर सिर हिलाया____"लेकिन हम ये भी समझते हैं कि अगर हमें अपनी बहू का जीवन खुशियों से भरा हुआ देखना है तो उसके लिए ऐसा करना ही बेहतर होगा। ऐसा होना नामुमकिन ज़रूर है लेकिन हमें किसी भी तरह से अब इसे मुमकिन बनाना होगा। वैभव के जीवन में दो की जगह अगर तीन तीन पत्नियां हो जाएंगी तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा।"
"हमारे मन में एक और विचार उभर रहा है ठाकुर साहब।" सुगंधा देवी ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हम ये जो कुछ अपनी बहू के लिए करना चाहते हैं उसमें यकीनन हमें उसकी खुशियों का ही ख़याल है किंतु ये भी सच है कि इसमें हमारा भी तो अपना स्वार्थ है।"
"य...ये क्या कह रही हैं आप?" दादा ठाकुर के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"इसमें भला हमारा क्या स्वार्थ है?"
"इतना तो आप भी समझते हैं न कि रागिनी बहू हम सबकी नज़र में एक बहुत ही गुणवान स्त्री है जिसके चलते हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं।" सुगंधा देवी ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"अब क्योंकि वो विधवा हो चुकी है इस लिए हम उसकी खुशियों के लिए फिर से उसका ब्याह कर देना चाहते हैं।"
"आख़िर आपके कहने का मतलब क्या है ठकुराईन?" दादा ठाकुर न चाहते हुए भी बीच में बोल पड़े____"हम उसे खुश देखना चाहते हैं तभी तो फिर से उसका ब्याह का करवा देना चाहते हैं।"
"बिल्कुल, लेकिन उसका ब्याह अपने बेटे से ही क्यों करवा देना चाहते हैं हम?" सुगंधा देवी ने जैसे तर्क़ किया____"क्या इसका एक मतलब ये नहीं है कि ऐसा हम अपने स्वार्थ के चलते ही करना चाहते हैं? ऐसा भी तो हो सकता है कि जब वो दुबारा अपने ब्याह होने की बात सुने तो उसके मन में कहीं और किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने की चाहत पैदा हो जाए। क्या ज़रूरी है कि वो फिर से उसी घर में बहू बन कर रहने की बात सोचे जिस घर में उसके पहले पति की ढेर सारी यादें मौजूद हों और इतना ही नहीं जिसे भरी जवानी में विधवा हो जाने का दुख सहन करना पड़ गया हो?"
सुगंधा देवी की ऐसी बातें सुन कर दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। स्तब्ध से वो अपनी धर्म पत्नी के चेहरे की तरफ देखते रह गए। चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।
"क्या हुआ? क्या सोचने लगे आप?" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख सुगंधा देवी ने कहा____"क्या हमने कुछ ग़लत कहा आपसे?"
"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने जल्दी ही खुद को सम्हाला____"आपके जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सच कहा है और आपकी बातें तर्कसंगत भी हैं। हमने तो इस तरीके से सोचा ही नहीं था। हमें खुशी के साथ साथ हैरानी भी हो रही है कि आपने इस तरीके से सोचा और हमारे सामने अपनी बात रखी। वाकई में ये भी सोचने वाली बात है कि अगर हमारी बहू को इस बारे में पता चला तो उसके मन में कहीं दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से भी विवाह करने का ख़याल आ सकता है।"
"और अगर ऐसा हुआ।" सुगंधा देवी ने कहा____"तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आप ऐसा होने देंगे?"
"क्यों नहीं होने देंगे हम?" दादा ठाकुर ने झट से कहा____"हम अपनी बहू को खुश देखना चाहते हैं इस लिए अगर उसे दूसरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करने से ही खुशी प्राप्त होगी तो हम यकीनन उसकी खुशी के लिए उसे ऐसा करने देंगे। हां, इस बात का हमें दुख ज़रूर होगा कि हमने अपनी इतनी संस्कारवान सुशील और अच्छे चरित्र वाली बहू को खो दिया। वैसे हमें पूरा यकीन है कि हमारी बहू हमसे रिश्ता तोड़ कर कहीं नहीं जाएगी। वो भी तो समझती ही होगी कि हम सब उसे कितना स्नेह करते हैं और हम उसे इस हवेली की शान समझते हैं। क्या इतना जल्दी वो हमारा प्यार और स्नेह भुला कर हमें छोड़ कर चली जाएगी?"
"सही कह रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली____"हमें भी इस बात का भरोसा है कि हमारी बहू हमारे प्रेम और स्नेह को ठुकरा कर कहीं नहीं जाएगी। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। सब कुछ समय पर छोड़ दीजिए और ऊपर वाले से दुआ कीजिए कि सब कुछ अच्छा ही हो।"
सुगंधा देवी की इस बात पर दादा ठाकुर ने सिर हिलाया और फिर उन्होंने पलंग पर पूरी तरह लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ पलों तक उनके चेहरे की तरफ देखते रहने के बाद सुगंधा देवी भी पलंग के एक छोर पर लेट गईं। दोनों ने ही अपनी अपनी आंखें बंद कर ली थीं किंतु ज़हन में विचारों का मंथन चालू था।
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