Suraj13796
💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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सफेद नकाबपोश निश्चित रूप से बहुत ही ताकतवर और तेज व्यक्ति है, वरना दादा ठाकुर जैसा आदमी भी उसे पकड़ पाने में असफल हो जाए संभव ही नहीं है,अध्याय - 102
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सफ़ेदपोश ने झट से रिवॉल्वर को अपने सफ़ेद लबादे में ठूंसा और फिर वो वापस पलटा ही था कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कई सारे लोग बगीचे में दाखिल हो गए हैं क्योंकि ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर ढेर सारी आवाज़ें आने लगीं थी। ये महसूस करते ही सफ़ेदपोश तेज़ी से आगे की तरफ भागता चला गया और फिर अचानक ही अंधेरे में इस तरह ग़ायब हो गया जैसे उसका यहां कहीं कोई वजूद ही न हो।
अब आगे....
अगली सुबह मेरे कमरे का दरवाज़ा किसी ने ज़ोर ज़ोर से बजाया तो मेरी आंख झट से खुल गई और मैं एकदम से उछल कर उठ बैठा। दरवाज़ा बजने के साथ ही कोई आवाज़ भी दे रहा था मुझे। जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मैं आवाज़ देने वाले को पहचान गया। वो कुसुम की आवाज़ थी। सुबह सुबह उसके द्वारा इस तरह दरवाज़ा बजाए जाने से और पुकारने से मैं एकदम से हड़बड़ा गया और साथ ही किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा भी गया। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलंग से नीचे कूदा। लुंगी मेरे बदन से अलग हो गई थी इस लिए फ़ौरन ही उसे पलंग से उठा कर लपेटा और फिर तेज़ी से दरवाज़े के पास पहुंच कर दरवाज़ा खोला।
"क्या हुआ?" बाहर कुसुम के साथ कजरी को खड़े देख मैंने अपनी बहन से पूछा____"इतनी ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा क्यों पीट रही थी तू?"
"गज़ब हो गया भैया।" कुसुम ने बौखलाए हुए अंदाज़ में कहा____"पूरे गांव में हंगामा मचा हुआ है। ताऊ जी हमारे नए मुंशी जी के साथ वहीं गए हुए हैं।"
"ये क्या कह रही है तू?" मैं उसके मुख से हंगामे की बात सुन कर चौंक पड़ा____"आख़िर कैसा हंगामा मचा हुआ है गांव में?"
"अभी कुछ देर पहले ताऊ जी को हवेली के एक दरबान ने बताया कि हमारे पहले वाले मुंशी ने अपनी बहू को जान से मार डाला है।" कुसुम मानो एक ही सांस में बताती चली गई____"सुबह जब उसकी बीवी और बेटी को इस बात का पता चला तो उन दोनों की चीखें निकल गईं। उसके बाद उनकी चीखें रोने धोने में बदल गईं। आवाज़ें घर से बाहर निकलीं तो धीरे धीरे गांव के लोग चंद्रकांत के घर की तरफ दौड़ पड़े।"
कुसुम जाने क्या क्या बोले जा रही थी और इधर मेरा ज़हन जैसे एकदम कुंद सा पड़ गया था। कुसुम ने मुझे हिलाया तो मैं चौंका। मेरे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि चंद्रकांत ने अपनी ही बहू की जान ले ली...मगर क्यों?
मैंने कुसुम को जाने को कहा और वापस कमरे में आ कर अपने कपड़े पहनने लगा। जल्दी ही तैयार हो कर मैं नीचे की तरफ भागा। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा कांड कर दिया है। नीचे आया तो देखा मां, चाची, भाभी, निर्मला काकी आदि सब एक जगह बैठी बातें कर रहीं थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही सब चुप हो गईं। मैं सबसे पहले गुसलखाने में गया और हाथ मुंह धो कर तथा मोटर साइकिल की चाभी ले कर बाहर निकल गया। कुछ ही देर में मैं अपनी मोटर साइकिल से चंद्रकांत के घर के पास पहुंच गया।
चंद्रकांत के घर के बाहर गांव के लोगों का हुजूम लगा था। वातावरण में औरतों के रोने धोने और चिल्लाने की आवाज़ें गूंज रहीं थी। भीड़ को चीरते हुए मैं जल्द ही चंद्रकांत के घर की चौगान में पहुंच गया जहां पर अपने नए मुंशी के साथ पिता जी और उधर गौरी शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के साथ खड़े दिखे। मैंने देखा घर के बाहर चंद्रकांत की बीवी और उसकी बेटी गला फाड़ फाड़ कर रोए जा रही थी और चंद्रकांत को जाने क्या क्या बोले जा रहीं थी। दोनों मां बेटी के कपड़े अस्त व्यस्त नज़र आ रहे थे। गांव की कुछ औरतें उन्हें सम्हालने में लगी हुईं थी। चंद्रकांत एक कोने में अपने हाथ में एक पुरानी सी तलवार लिए बैठा था। तलवार पूरी तरह खून से नहाई हुई थी। उसके चेहरे पर बड़ी ही सख़्ती के भाव मौजूद थे।
तभी चीख पुकार से गूंजते वातावरण में किसी वाहन की मध्यम आवाज़ आई तो भीड़ में खड़े लोग एक तरफ हटते चले गए। हम सबने पलट कर देखा। सड़क पर दो जीपें आ कर खड़ी हो गईं थी। आगे की जीप से ठाकुर महेंद्र सिंह उतरे, उनके साथ उनका छोटा भाई ज्ञानेंद्र और बाकी अन्य लोग। महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई के साथ आगे बढ़ते हुए जल्द ही पिता जी के पास पहुंच गए।
"ये सब क्या है ठाकुर साहब?" इधर उधर निगाह घुमाते हुए महेंद्र सिंह ने पिता जी से पूछा____"कैसे हुआ ये सब?"
"हम भी अभी कुछ देर पहले ही यहां पहुंचे हैं मित्र।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा___"यहां का दृश्य देख कर हमने चंद्रकांत से इस सबके बारे में पूछा तो इसने बड़े ही अजीब तरीके से गला फाड़ कर बताया कि अपने हाथों से इसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है।"
"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह बुरी तरह चौंके____"चंद्रकांत ने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार डाला है? कौन था इसके बेटे का हत्यारा?"
"इसकी ख़ुद की बहू रजनी।" पिता जी ने कहा____"हमारे पूछने कर तो इसने यही बताया है, बाकी सारी बातें आप खुद ही पूछ लीजिए इससे। हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा कि इसकी बहू अपने ही पति की हत्यारिन हो सकती है और इसने उसको अपने हाथों से जान से मार डाला।"
पिता जी की बातें सुन कर महेंद्र सिंह फ़ौरन कुछ बोल ना सके। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे इस सबको वो हजम करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। हैरत के भाव लिए वो चंद्रकांत की तरफ बढ़े। चंद्रकांत पहले की ही भांति अपने हाथ में खून से सनी तलवार लिए बैठा था।
"ये सब क्या है चंद्रकांत?" महेंद्र सिंह ने उसके क़रीब पहुंचते ही सख़्त भाव से उससे पूछा____"तुमने अपने हाथों से अपनी ही बहू को जान से मार डाला?"
"हां ठाकुर साहब मैंने मार डाला उसे।" चंद्रकांत ने अजीब भाव से कहा____"उसने मेरे बेटे की हत्या की थी इस लिए रात को मैंने उसे अपनी इसी तलवार से काट कर मार डाला।"
"क...क्या???" महेंद्र सिंह आश्चर्य से चीख़ ही पड़े____"तुम्हें ये कैसे पता चला कि तुम्हारी बहू ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है? आख़िर इतना बड़ा क़दम उठाने का साहस कैसे किया तुमने?"
"साहस.... हा हा हा...।" चंद्रकांत पागलों की तरह हंसा फिर अजीब भाव से बोला____"आप साहस की बात करते हैं ठाकुर साहब....अरे! जिस इंसान को पता चल जाए कि उसके इकलौते बेटे की हत्या करने वाली उसकी अपनी ही बहू है तो साहस के साथ साथ खून भी खौल उठता है। दिलो दिमाग़ में नफ़रत और गुस्से का भयंकर सैलाब आ जाता है। उस वक्त इंसान सारी दुनिया को आग लगा देने का साहस कर सकता है ठाकुर साहब। ये तो कुछ भी नहीं था मेरे लिए।"
"होश में रह कर बात करो चंद्रकांत।" महेंद्र सिंह गुस्से से गुर्राए____"तुम ये कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या तुम्हारी अपनी ही बहू ने की थी? आख़िर तुम्हें इस बात का पता कैसे चला?"
"आपने मेरे बेटे के हत्यारे का पता लगाने का मुझे आश्वासन दिया था ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने कहा____"मगर इतने दिन गुज़र जाने के बाद भी आप मेरे बेटे के हत्यारे का पता नहीं लगा सके और मैं हर रोज़ हर पल अपने बेटे की मौत के ग़म में झुलसता रहा। शायद मेरा ये दुख ऊपर वाले से देखा नहीं गया। तभी तो उसने एक ऐसे फ़रिश्ते को मेरे पास भेज दिया जिसने एक पल में मुझे मेरे बेटे के हत्यारे का पता ही नहीं बल्कि उसका नाम ही बता दिया।"
"क...क्या मतलब??" चंद्रकांत की इस बात को सुन कर महेंद्र सिंह के साथ साथ पिता जी और हम सब भी बुरी तरह चकरा गए। उधर महेंद्र सिंह ने पूछा____"किस फ़रिश्ते की बात कर रहे हो तुम और क्या बताया उसने तुम्हें?"
"नहीं....हर्गिज़ नहीं।" चंद्रकांत ने सख़्ती से अपने जबड़े भींच लिए, बोला____"मैं किसी को भी उस नेक फ़रिश्ते के बारे में नहीं बताऊंगा। उसने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उसने मेरे बेटे के हत्यारे के बारे में बता कर मुझे अपने अंदर की आग को ठंडा करने का अनोखा मौका दिया है।"
महेंद्र सिंह ही नहीं बल्कि वहां मौजूद लगभग हर कोई चंद्रकांत की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गया था। ज़हन में बस एक ही ख़्याल उभरा कि शायद चंद्रकांत पागल हो गया है। जाने कैसी अजीब बातें कर रहा था वो। दूसरी तरफ उसकी बीवी और बेटी सिर पटक पटक कर रोए जा रहीं थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी फैली हुई थी।
"हमारा ख़याल है कि इस वक्त चंद्रकांत की मानसिक अवस्था बिल्कुल भी ठीक नहीं है मित्र।" पिता जी ने महेंद्र सिंह के क़रीब आ कर गंभीरता से कहा____"इस लिए इस वक्त इससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा नहीं है। जब इसका दिमाग़ थोड़ा शांत हो जाएगा तभी इससे इस सबके बारे में पूछताछ करना उचित होगा।"
"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"इस वक्त ये सचमुच बहुत ही अजीब बातें कर रहा है और इसका बर्ताव भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है। ख़ैर, आपका क्या विचार है अब? हमारा मतलब है कि चंद्रकांत ने अपनी बहू की हत्या कर दी है और ये बहुत बड़ा अपराध है। अतः इस अपराध के लिए क्या आप इसे सज़ा देने का सुझाव देना चाहेंगे?"
"जब तक इस मामले के बारे में ठीक से कुछ पता नहीं चलता।" पिता जी ने कहा____"तब तक इस बारे में किसी भी तरह का फ़ैसला लेना सही नहीं होगा। हमारा सुझाव यही है कि कुछ समय के लिए चंद्रकांत को उसके इस अपराध के लिए सज़ा देने का ख़याल सोचना ही नहीं चाहिए। किन्तु हां, तब तक हमें ये जानने और समझने का प्रयास ज़रूर करना चाहिए कि चंद्रकांत को आख़िर ये किसने बताया कि उसके बेटे का हत्यारा खुद उसकी ही बहू है?"
"बड़ी हैरत की बात है कि चंद्रकांत ने इतना बड़ा और संगीन क़दम उठा लिया।" महेंद्र सिंह ने कहा____"उसे देख कर यही लगता है कि जैसे उस पर पागलपन सवार है। इतना ही नहीं ऐसा भी प्रतीत होता है जैसे उसे इस बात की बेहद खुशी है कि उसने अपने बेटे के हत्यारे को जान से मार कर अपने बेटे की हत्या का बदला ले लिया है।"
"उसके इकलौते बेटे की हत्या हुई थी मित्र।" पिता जी ने कहा____"उसके बेटे को भी अभी कोई औलाद नहीं हुई थी। ज़ाहिर है रघुवीर की मौत के बाद चंद्रकांत की वंशबेल भी आगे नहीं बढ़ सकती है। ये ऐसी बातें हैं जिन्हें सोच सोच कर कोई भी इंसान चंद्रकांत जैसी मानसिकता में पहुंच सकता है। ख़ैर, चंद्रकांत के अनुसार उसे किसी फ़रिश्ते ने उसके बेटे के हत्यारे के बारे में बताया कि हत्यारा खुद उसकी ही बहू है। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये सच है तो फिर चंद्रकांत की बहू ने अपने ही पति की हत्या किस वजह से की होगी? हालाकि हमें तो कहीं से भी ये नहीं लगता कि रजनी ने ऐसा किया होगा लेकिन मौजूदा परिस्थिति में उसकी मौत के बाद इस सवाल का उठना जायज़ ही है। चंद्रकांत ने भी तो अपनी बहू की जान लेने से पहले उससे ये पूछा होगा कि उसने अपने पति की हत्या क्यों की थी?"
"ये ऐसा मामला है ठाकुर साहब जिसने हमें एकदम से अवाक सा कर दिया है।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"हमें लगता है कि किसी ने भी ऐसा होने की कल्पना नहीं की रही होगी। ख़ैर ऊपर वाले की लीला वही जाने किंतु इस मामले में एक दो नहीं बल्कि ढेर सारे सवाल खड़े हो गए हैं। हम लोग चंद्रकांत की ऐसी मानसिकता के लिए उसे समय देने का सुझाव दे रहे थे जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि ख़ुद हम लोगों को भी समय चाहिए। कमबख़्त ज़हन ने काम ही करना बंद कर दिया है।"
"सबका यही हाल है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हमें लगता है कि इस बारे में ठंडे दिमाग़ से ही कुछ सोचा जा सकेगा। फिलहाल हमें ये सोचना है कि इस वक्त क्या करना चाहिए?"
"अभी तो चंद्रकांत की बहू के मृत शरीर को शमशान में ले जा कर उसका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।" महेंद्र सिंह ने कहा____"ज़ाहिर है उसका अंतिम संस्कार अब चंद्रकांत ही करेगा। लाश जब तक यहां रहेगी तब तक घर की औरतों का रोना धोना लगा ही रहेगा। इस लिए बेहतर यही है कि लाश को यहां से शमशान भेजने की व्यवस्था की जाए।"
पिता जी भी महेंद्र सिंह की इस बात से सहमत थे इस लिए भीड़ में खड़े गांव वालों को बताया गया कि अभी फिलहाल अंतिम संस्कार की क्रिया की जाएगी, उसके बाद ही इस मामले में कोई फ़ैसला किया जाएगा। पिता जी के कहने पर गांव के कुछ लोग और कुछ औरतें चंद्रकांत के घर के अंदर गए। कुछ ही देर में लकड़ी की खाट पर रजनी की लाश को लिए कुछ लोग बाहर आ गए। महेंद्र सिंह के साथ पिता जी ने भी आगे बढ़ कर रजनी की लाश का मुआयना किया। उनके पीछे गौरी शंकर भी था। इधर मैं और रूपचन्द्र भी रजनी की लाश को देखने की उत्सुकता से आगे बढ़ चले थे।
रजनी की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर एकदम से रूह थर्रा गई। बड़ी ही वीभत्स नज़र आ रही थी वो। चंद्रकांत ने वाकई में उसकी बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। रजनी के पेट और सीने में बड़े गहरे ज़ख्म थे जहां से खून बहा था। उसके हाथों पर भी तलवार के गहरे चीरे लगे हुए थे और फिर सबसे भयानक था उसके गले का दृश्य। आधे से ज़्यादा गला कटा हुआ था। दूर से ही उसकी गर्दन एक तरफ को लुढ़की हुई नज़र आ रही थी। चेहरे पर दर्द और दहशत के भाव थे।
रजनी की भयानक लाश देख कर उबकाई सी आने लगी थी। रूपचंद्र जल्दी ही पीछे हट गया था। इधर गांव के लोग लाश को देखने के लिए मानों पागल हुए जा रहे थे किंतु हमारे आदमियों की वजह से कोई चंद्रकांत की चौगान के अंदर नहीं आ पा रहा था। कुछ देर बाद पिता जी और महेंद्र सिंह लाश से दूर हो गए। महेंद्र सिंह ने उन लोगों को इशारे से लाश को शमशान ले जाने को कह दिया।
क़रीब एक घंटे बाद शमशान में चंद्रकांत अपनी बहू की चिता को आग दे रहा था। पहले तो वो इसके लिए मान ही नहीं रहा था किंतु जब महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से समझाया तो उसे ये सब करना ही पड़ा। रजनी के मायके वाले भी आ गए थे जो रजनी की इस तरह हुई मौत से दहाड़ें मार कर रोए थे।
इधर चंद्रकान्त के चेहरे पर आश्चर्यजनक रूप से कोई दुख के भाव नहीं थे, बल्कि उसका चेहरा पत्थर की तरह सख़्त ही नज़र आ रहा था। सारा गांव चंद्रकांत के खेतों पर मौजूद था। चंद्रकांत की बीवी प्रभा और बेटी कोमल ढेर सारी औरतों से घिरी बैठी थीं। दोनों के चेहरे दुख और संताप से डूबे हुए थे।
रजनी का दाह संस्कार कर दिया गया। लोग धीरे धीरे वहां से जाने लगे। बाकी की क्रियाओं के लिए चंद्रकांत के कुछ चाहने वाले उसके साथ थे। महेंद्र सिंह के कहने पर पिता जी ने अपने कुछ आदमियों को गुप्त रूप से चंद्रकांत और उसके घर पर नज़र रखने के लिए लगा दिया था।
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पिता जी के आग्रह पर महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ हवेली आ गए थे। रूपचंद्र तो अपने घर चला गया था किंतु गौरी शंकर पिता जी के पीछे पीछे हमारी हवेली ही आ गया था। रजनी के अंतिम संस्कार के बाद जब हम सब हवेली पहुंचे थे तो लगभग दोपहर हो गई थी। अतः पिता जी के आदेश पर सबके लिए भोजन की जल्द ही व्यवस्था की गई। भोजन बनने के बाद सब लोगों ने साथ में ही भोजन किया और फिर सब बैठक में आ गए।
"क्या लगता है ठाकुर साहब आपको?" बैठक में एक कुर्सी पर बैठे महेंद्र सिंह ने पिता जी से मुखातिब हो कर कहा____"चंद्रकांत जिसे फ़रिश्ता बता रहा था वो कौन हो सकता है? इतना ही नहीं उसे कैसे पता था कि चंद्रकांत के बेटे का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उसकी बहू ही है?"
"इस बारे में तो बेहतर तरीके से चंद्रकांत ही बता सकता है मित्र।" पिता जी ने कहा____"मगर हम तो यही कहेंगे कि इस मामले में कोई न कोई भारी लोचा ज़रूर है।"
"कैसा लोचा?" महेंद्र सिंह के साथ साथ सभी के चेहरों पर चौंकने के भाव उभर आए, जबकि महेंद्र सिंह ने आगे कहा____"बात कुछ समझ नहीं आई आपकी?"
"पक्के तौर पर तो हम भी कुछ कह नहीं सकते मित्र।" पिता जी ने कहा____"किंतु जाने क्यों हमें ऐसा आभास हो रहा है कि चंद्रकांत ने कदाचित बहुत बड़ी ग़लतफहमी के चलते अपनी बहू को मार डाला है।"
"यानि आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता बता रहा था उसने उसको ग़लत जानकारी दी?" महेंद्र सिंह ने हैरत से देखते हुए कहा____"और चंद्रकांत क्योंकि अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाने के लिए पगलाया हुआ था इस लिए उसने उसके द्वारा पता चलते ही बिना कुछ सोचे समझे अपनी बहू को मार डाला?"
"बिल्कुल, हमें यही आभास हो रहा है।" पिता जी ने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा____"और अगर ये सच है तो यकीन मानिए किसी अज्ञात व्यक्ति ने बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से चंद्रकांत के हाथों उसकी अपनी ही बहू की हत्या करवा दी है। आश्चर्य की बात ये भी कि चंद्रकांत को इस बात का लेश मात्र भी एहसास नहीं हो सका।"
"आख़िर किसने ऐसा गज़बनाक कांड चंद्रकांत के हाथों करवाया हो सकता है?" गौरी शंकर सवाल करने से खुद को रोक न सका____"और भला चंद्रकांत के अंदर ये कैसा पागलपन सवार था कि उसने एक अज्ञात व्यक्ति के कहने पर ये मान लिया कि उसकी बहू ने अपने ही पति की हत्या की है?"
"बात में काफी दम है।" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"यकीनन ये हैरतअंगेज बात है। जिसने भी चंद्रकांत के हाथों ये सब करवाया है वो कोई मामूली इंसान नहीं हो सकता।"
"बात तो ठीक है आपकी।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस वक्त हम सब इस मामले में सिर्फ अपने अपने कयास ही लगा रहे हैं। सच का पता तो चंद्रकांत से पूछताछ करने पर ही चलेगा। हो सकता है कि जिस बात को हम सब हजम नहीं कर पा रहे हैं वास्तव में वही सच हों।"
"क्या आप ये कहना चाहते हैं कि चंद्रकांत के बेटे की हत्या उसकी बहू ने ही की रही होगी?" महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"और जब चंद्रकांत को किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा इसका पता चला तो उसने गुस्से में आ बबूला हो कर अपनी बहू को मार डाला?"
"बेशक ऐसा भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"हमारे मामले के बाद आपको भी इस बात का पता हो ही गया है कि चंद्रकांत की बीवी और उसकी बहू का चरित्र कैसा था। बेशक उनके साथ हमारे बेटे का नाम जुड़ा था लेकिन सोचने वाली बात है कि ऐसी चरित्र की औरतों का संबंध क्या सिर्फ एक दो ही मर्दों तक सीमित रहा होगा?"
"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पूछा।
"हम सिर्फ चरित्र के आधार पर किसी चीज़ की संभावना पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं।" पिता जी ने संतुलित भाव से कहा____"हो सकता है कि रघुवीर की बीवी का कोई ऐसा राज़ रहा हो जिसका रघुवीर के सामने फ़ाश हो जाने का रजनी को डर रहा हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि किसी ऐसे व्यक्ति ने रजनी को अपने ही पति की हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया जो रघुवीर का दुश्मन था। उस व्यक्ति को रजनी के नाजायज़ संबंधों का पता रहा होगा जिसके आधार पर उसने रजनी को अपने ही पति की हत्या कर देने पर मजबूर कर दिया होगा।"
"पता नहीं क्या सही है और क्या झूठ।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस ली____"पिछले कुछ महीनों में हमने इस गांव में जो कुछ देखा और सुना है उससे हम वाकई में चकित रह गए हैं। इससे पहले हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि आपके इस गांव में तथा आपके राज में ये सब देखने सुनने को मिलेगा। उस मामले से अभी पूरी तरह निपट भी नहीं पाए थे कि अब ये कांड हो गया यहां। समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर ये सब कब बंद होगा?"
"इस धरती में जब तक लोग रहेंगे तब तक कुछ न कुछ होता ही रहेगा मित्र।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर, हमारा ख़याल है कि अब हमें चंद्रकांत के यहां चलना चाहिए। ये जानना बहुत ही ज़रूरी है कि चंद्रकांत जिसे अपना फ़रिश्ता कह रहा था वो कौन है और उसने चंद्रकांत से ये क्यों कहा कि उसके बेटे की हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि उसकी ही बहू है? एक बात और, हमें पूरा यकीन है कि इतनी बड़ी बात को चंद्रकांत ने इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर लिया होगा। यकीनन अज्ञात व्यक्ति ने उसे कुछ ऐसा बताया रहा होगा जिसके चलते चंद्रकांत ने ये मान लिया होगा कि हां उसकी बहू ने ही उसके बेटे की हत्या की है।"
"सही कह रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह ने सिर हिलाते हुए कहा____"अब हमें भी आभास होने लगा है कि ये मामला उतना सीधा नहीं है जितना नज़र आ रहा है। यकीनन कोई बड़ी बात है। ख़ैर चलिए चंद्रकांत के घर चलते हैं।"
कहने के साथ ही महेंद्र सिंह कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। उनके उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में एक एक कर के सब बैठक से निकल कर हवेली से बाहर की तरह बढ़ गए। सबके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा। मुझे भी ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि आख़िर ये सब हुआ कैसे और वो कौन है जिसे चंद्रकांत ने अपना फ़रिश्ता कहा था?
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सबसे जरूरी चीज है उद्देश्य, यदि ये पता चल जाए कि सफेद नकाबपोश का उद्देश्य क्या है ये सब करने के पीछे तो बहुत हद तक साफ हो जाएगा की ये व्यक्ति कौन है।
शानदार अपडेट भाई, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में
