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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .
10,458
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258
साहूकारों ने ठाकुर साहब के परिवार के सदस्यों की हत्या की , ठाकुर साहब ने साहूकारों के परिवार के लोगों की हत्याएं की , लेकिन सजा किसी की भी न हुई।
यह एक खाप पंचायत का फैसला था और ऐसे फैसले की कोई अहमियत नही होती।
अगर यह केस अदालत मे गया तो निस्संदेह दोनो पक्षों को या तो फांसी या आजीवन कारावास सजा सुनाई गई होती।
इन लोगों ने कोई चोरी - डकैती नही की थी , कोई रेप वगैरह नही किया था , किसी की जमीन - जायदाद नही हड़प रखी थी , कोई धर्मान्तरण नही हुआ था , कोई धार्मिक उन्माद नही फैलाया था बल्कि इन लोगों ने हत्याएं की थी और वह भी कई लोगों की।
खैर , अगर इन सभी की जान बच ही गई है तो हम यही आशा करते है कि अब वो सुख शान्ति से रहेंगे और प्रेम का वातावरण समाज मे कायम करेंगे।
अब देखना यह है कि सफेदपोश कौन था ?
बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Ahsan khan786

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अध्याय - 75
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"हाहाहाहा।" पिता जी के पूछने पर मुंशी पहले तो ज़ोर से हंसा फिर बोला____"वैसे तो मैं ऐसे किसी सफ़ेदपोश के बारे में नहीं जानता और ना ही मेरा उससे कोई संबंध है लेकिन इस बात से मैं खुश ज़रूर हूं कि हमारे बाद भी अभी कोई है जो हवेली में रहने वालों से इस क़दर नफ़रत करता है कि उनकी जान तक लेने का इरादा रखता है। ख़ास कर इस वैभव सिंह की। ये तो कमाल ही हो गया, हाहाहा।"

मुंशी चंद्रकांत जिस तरीके से हंस रहा था उसे देख मेरा खून खौल उठा। गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं। जी किया कि अभी जा के उसकी गर्दन मरोड़ दूं मगर फिर किसी तरह अपने गुस्से को पी कर रह गया।



अब आगे....


मुंशी चंद्रकांत और गौरी शंकर ने जिस तरह से सफ़ेदपोश के बारे में अपनी अनभिज्ञता जताई थी उससे दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि मैं खुद भी सोच में पड़ गया था। ये तो स्पष्ट था कि सफ़ेदपोश के बारे में वो दोनों झूठ नहीं बोल रहे थे क्योंकि अब झूठ बोलने का ना तो कोई समय था और ना ही इससे उन्हें कोई फ़ायदा था। तो अब सवाल ये था कि अगर सच में उन दोनों का संबंध अथवा कोई ताल्लुक सफ़ेदपोश से नहीं है तो फिर कौन है सफ़ेदपोश? आख़िर वो कौन हो सकता है जो खुद को सफ़ेदपोश के रूप में हमारे सामने स्थापित कर चुका है और हमसे दुश्मनी रखता है?

सफ़ेदपोश एक ऐसा रहस्यमय किरदार है जो हमारे लिए गर्दन में लटकी तलवार की तरह साबित हो चुका है। अगर ये पता चल जाए कि वो कौन है तो ज़ाहिर है कि ये भी समझ में आ ही जाएगा कि वो हमें अपना दुश्मन क्यों समझता है? इतना कुछ होने के बाद लगा था कि अब सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल गया है किंतु नहीं, ऐसा लगता है जैसे सबसे बड़ी मुसीबत और ख़तरा तो वो सफ़ेदपोश ही है। समझ में नहीं आ रहा कि वो अचानक कहां से आ टपकता है और फिर कैसे गायब हो जाता है?

"यहां किसी और को भी अगर कुछ कहना है तो कह सकता है।" मंच पर बैठे महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"अगर किसी को लगता है कि उसके साथ ठाकुर साहब ने अन्याय किया है अथवा उसके साथ किसी तरह का इंसाफ़ नहीं हुआ है तो बेझिझक वो अपनी बात इस पंचायत के सामने रख सकता है।"

ठाकुर महेंद्र सिंह की ये बात सुन कर भीड़ में खड़े लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। कुछ देर बाद दो आदमी भीड़ से निकल कर बाहर आए। ये वही थे जिनकी बीवियां हवेली में काम करती थीं और कुछ दिन पहले जिनकी हत्या हो गई थी।

"प्रणाम ठाकुर साहब।" उनमें से एक ने कहा____"हम दोनों ये कहना चाहते हैं कि दादा ठाकुर की हवेली में हम दोनों की बीवियां काम करती थीं और कुछ दिनों पहले उनकी हत्या हो गई। हमारे छोटे छोटे बच्चे बिना मां के हो गए। क्या हमें ये जानने का हक़ नहीं है कि किसने उनकी हत्या की और क्यों की?"

"ठाकुर साहब आपका क्या कहना है इस बारे में?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पिता जी से पूछा।

"ये सच है कि इन दोनों की बीवियां हमारी हवेली में काम करती थीं।" पिता जी ने कहा____"कुछ समय पहले उन दोनों की आश्चर्यजनक रूप से हत्या कर दी गई थी। हमने उनकी हत्या की तहक़ीकात की तो जल्द ही हमें पता चल गया कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ? असल में वो दोनों औरतें किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा मजबूर किए जाने पर हवेली में ग़लत काम को अंजाम दे रहीं थी। हमें तो इसका पता भी न चलता किंतु कहते हैं ना कि ग़लत करने वाले के साथ ही बुरा होता है फिर चाहे वो जैसे भी हो। उन दोनों को जिसने मजबूर किया हुआ था उसने उन्हें साफ तौर पर ये समझाया हुआ था कि अगर पकड़े जाने का ज़रा सा भी अंदेशा हो तो वो अपनी जान ले लें। एक ने तो हवेली में ही ज़हर खा कर अपनी जान ले ली थी जबकि दूसरी हवेली से भाग गई थी। शायद उस वक्त उसके पास ज़हर नहीं था इस लिए पकड़े जाने के डर से वो हवेली से भाग गई। हमारे बेटे ने उसका पीछा किया किंतु लाख कोशिश के बावजूद ये उसे बचा नहीं सका। ऐसा इस लिए क्योंकि दोनों औरतों को मजबूर करने वाला वहां पहले से ही मौजूद था और उसने इसकी बीवी की हत्या कर दी। ये सब बातें हमारे छोटे भाई जगताप ने इन दोनों को बताया भी थी। कहने का मतलब ये है ठाकुर साहब कि इन दोनों की बीवियों की हत्या से हमारा कोई संबंध नहीं है बल्कि सच ये है कि उन्हें खुद ही उनके ग़लत कर्म करने की सज़ा मिल गई। हमारे लिए ये जानना ज़रूरी था कि आख़िर उन दोनों को मजबूर करने वाला वो व्यक्ति कौन हो सकता है किंतु अब हम समझ चुके हैं कि वो कौन है?"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने चौंकते हुए पूछा। इधर पिता जी की बात सुन कर भीड़ में खड़े लोग भी हैरानी से देखने लगे थे। जबकि महेंद्र सिंह जी के पूछने पर पिता जी ने गौरी शंकर की तरफ देखा। गौरी शंकर ने झट से सिर झुका लिया।

"उन दोनों औरतों की जब हत्या हो गई थी तो हमारे गांव के साहूकार मणि शंकर जी हमारी हवेली पर हमसे मिलने आए थे।" पिता जी ने कहा____"उस समय जिस तरह से उन्होंने अपना पक्ष रख कर हमसे बातें की थी उससे हमें भी यही लगा था कि यकीनन किसी और ने ही उन औरतों की कुछ इस तरह से हत्या की है कि हमारे ज़हन में उनके हत्यारे के रूप में गांव के साहूकारों का ही ख़याल आए। हमने सोचा कि हो सकता है कि वो हम दोनों परिवारों के संबंध सुधर जाने से नाराज़ हो गया होगा और हर्गिज़ नहीं चाहता होगा कि हमारा आपस में ऐसा प्रेम संबंध हो। बहरहाल दिमाग़ भले ही नहीं मान रहा था लेकिन हमने दिमाग़ की जगह दिल की सुनना ज़्यादा बेहतर समझा। आख़िर हम भी तो नहीं चाहते थे कि दोनों परिवारों के बीच एक दिन में ही बैर भाव अथवा किसी तरह का संदेह भाव पैदा हो जाए। सच तो ये है कि हमें उस दिन दिल की नहीं बल्कि दिमाग़ की ही सुननी चाहिए थी और समझ जाना चाहिए था कि साहूकारों का हमसे अपने रिश्ते सुधार लेना सिर्फ और सिर्फ एक दिखावा था। बल्कि ये कहना ज़्यादा उचित होगा कि रिश्तों को सुधार लेना उनकी योजना का एक हिस्सा था। क्यों गौरी शंकर हमने सच कह न?"

"हां।" गौरी शंकर ने हताश भाव से कहा____"मगर अब समझे तो क्या समझे ठाकुर साहब? पर शायद सच यही है कि उस समय अगर आपने दिल की सुनी तो ये आपकी नेक नीयती और उदारता की ही बात थी। यानि आप सच में यही चाहते थे कि हमारे रिश्ते ऐसे ही बेहतर बने रहें मगर हम इतने नेक और उदार नहीं थे। हमारे अंदर तो वर्षों से बदले की भावना धधक रही थी जिसके चलते हमने कभी ये सोचना गवारा ही नही किया कि बदला लेने की जगह अगर हम दोनों परिवार मिल कर एक नई शुरुआत करें तो कदाचित दोनों ही परिवारों का भविष्य बेहद सुखद हो सकता है। ख़ैर ये सच है कि हमने ही इन लोगों की औरतों को मजबूर कर के हवेली में नौकरानी के रूप में स्थापित किया था। एक का काम था वैभव को चाय में थोड़ा थोड़ा मिला कर ऐसा ज़हर देना जिसकी वजह से वैभव की मर्दानगी हर रोज़ कम होती जाए और फिर एक दिन वो पूरी तरह से नामर्द ही बन जाए। दूसरी का काम था हवेली में गुप्त रूप से आपकी ज़मीनों के कागज़ात खोज कर उन्हें हासिल करना। उन दोनों को सख़्त आदेश था कि अगर उन्हें ज़रा सा भी लगे कि उनका भेद खुल गया है अथवा उनका पकड़े जाना निश्चित है तो वो हमारे द्वारा दिए गए ज़हर को खा कर अपनी जान ले लें।"

"बस कीजिए।" सुनैना देवी रोते हुए चीख ही पड़ी____"और कितने गुनाहों का बखान करेंगे आप? यकीन नहीं होता कि इतना सब कुछ मेरे घर के मर्दों ने किया है। काश! मुझे थोड़ा सा भी इल्म हो जाता तो मैं ये सब आपको करने ही नहीं देती। हे ईश्वर! किसी इंसान की बुद्धि इतनी भ्रष्ट कैसे हो सकती है? कोई खुशी खुशी इतने बड़े बड़े पाप कैसे कर सकता है?"

"चुप हो जाइए मां।" गौरी शंकर की बेटी राधा ने दुखी भाव से अपनी मां से कहा____"ये सब सोच कर इस तरह आंसू बहाने से अब क्या होगा? कितना गर्व करते थे हम कि हमारे अपने कितने अच्छे हैं लेकिन क्या पता था कि अच्छी सूरतों के पीछे कितने बड़े शैतान छुपे हुए हैं।"

कहने के साथ ही राधा अपने पिता गौरी शंकर से मुखातिब हुई और फिर बोली____"मैंने कभी भी आप में से किसी के भी सामने कुछ बोलने की हिमाकत नहीं की पिता जी। ऐसा सिर्फ इस लिए क्योंकि ये सब आप लोगों द्वारा दिए गए अच्छे संस्कार थे। मैं आपसे सिर्फ इतना जानना चाहती हूं कि आख़िर क्या हासिल कर लिया आपने बदला ले कर? क्या इस बदले से आप अपने उस परिवार को अपार खुशियां दे पाए जो अब तक सबके साथ हंसी खुशी जी रहे थे?"

"म...मुझे माफ़ कर दे बेटी।" गौरी शंकर अपनी बेटी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, बोला____"ऊपर बैठा विधाता हमसे यही करवाना चाहता था। कहते हैं कि वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं होता। वो बड़े से बड़े नासूर बन गए ज़ख्मों को भी भर देता है मगर कदाचित वो हमारे ज़ख्म नहीं भर सका। अगर भर दिया होता तो क्या आज हम सब ऐसी हालत में होते?"

"मैं ज़्यादा तो कुछ नहीं जानती पिता जी।" राधा ने कहा____"किंतु आप लोगों से ही सुना है कि इंसान के हाथ में सिर्फ कर्म करना ही होता है। तो अब आप ही बताइए अगर इंसान के बस में सिर्फ कर्म करना था तो आपने ऐसे कर्म क्यों किए जिसकी वजह से हमारा पूरा परिवार मिट्टी में मिल गया? अपने कर्म को विधाता अथवा किस्मत का लिखा मत बताइए। विधाता आपसे ये कहने नहीं आया कि आप बदले की आग में जलिए और किसी की हत्या कर दीजिए।"

गौरी शंकर अवाक सा देखता रह गया अपनी बेटी को। कुछ कहना तो चाहा उसने लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया। उसके बगल से रूपचंद्र किसी पुतले की तरह खड़ा था।

"अब हम सबका क्या होगा पिता जी?" राधा की आंखें छलक पड़ीं____"आप लोगों ने तो बदला लेने के चक्कर में खुद को ही मिटा दिया मगर हमारा क्या? आपके घर की ये औरतें और आपकी बहू बेटियां किसके सहारे जियेंगी अब?"

राधा की बातें सुन कर और उसका रोना देख भीड़ में खड़े जाने कितने ही लोगों की आंखें नम हो गईं। मुझे खुद भी बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था। तभी मैंने देखा रूपा आगे आई और उसने राधा को अपने से छुपका लिया। राधा उससे छुपक कर और भी ज़्यादा रोने लगी। गौरी शंकर अपनी बेटी और अपने घर की बाकी औरतों को नम आंखों से देखता रहा।

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"पंच के रूप में हमने आप सबकी बातें और साथ ही दुख तकलीफ़ों को बड़े ध्यान से सुना है।" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने मैदान में खड़े समस्त जन समूह को देखते हुए ऊंचे स्वर में कहा____"ये एक ऐसा मामला है जिसका फ़ैसला करना बिल्कुल भी आसान नहीं हैं। अगर गहराई से सोचा जाए तो इस मामले का फ़ैसला किसी के लिए भी बेहतर नहीं हो सकता। माना कि कुछ लोगों को इसके फ़ैसले से आत्मिक शांति मिल सकती है लेकिन ये भी सच है कि महज आत्मिक शांति से किसी के भी परिवार के सदस्यों का जीवन बेहतर तरीके से नहीं चल सकता।"

"यहां ऐसे भी हैं जो हमारे फ़ैसले पर पक्षपात करने का आरोप भी लगा सकते हैं।" कुछ पल की ख़ामोशी के बाद महेंद्र सिंह ने पुनः कहा____"ऐसे व्यक्तियों से हमारा यही कहना है कि अगर वो चाहें तो इस मामले को हमारे देश के कानून के समक्ष रख सकते हैं और उसी कानून के द्वारा इंसाफ़ हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने से पहले ये भी अच्छी तरह सोच लें कि देश का कानून जो फ़ैसला सुनाएगा उससे किसी का भी भला नहीं हो सकेगा जबकि हमने इस मामले में ऐसा फ़ैसला करने का सोचा है जिससे सबका भला भी हो सके। क्या आप सब हमारी इस बात से सहमत हैं?"

ठाकुर महेंद्र सिंह की इन बातों को सुन कर पूरे जन समूह में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे उनमें से किसी को भी महेंद्र सिंह जी की बातें समझ नहीं आईं थी।

"इसमें इतना सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है किसी को।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने किसी को कुछ न बोलता देख कहा____"बहुत ही सरल और साधारण सी बात है जिसे आप सबको समझने की ज़रूरत है। आप सब जानते हैं कि इस मामले से जुड़ा हर व्यक्ति गुनहगार है। इस मामले से जुड़े हर व्यक्ति ने एक दूसरे के अपनों की हत्याएं की हैं और हत्याएं करना सबसे बड़ा अपराध है जिसकी कोई माफ़ी नहीं हो सकती। अगर ये सोच कर हम फ़ैसला करें कि हर हत्यारे को मौत की सज़ा दी जाए तो क्या ये उचित होगा? एक तरफ इस गांव के साहूकार हैं जिन्होंने अपनी वर्षों पुरानी दुश्मनी के चलते ठाकुर साहब के छोटे भाई और बड़े बेटे की हत्या की और इतना ही नहीं उनके छोटे बेटे का भी जीवन बर्बदाद कर देना चाहा। बदले में ठाकुर साहब ने भी बदले के रूप में साहूकारों का संघार कर दिया। दोनों परिवारों में गुनहगार के रूप में एक तरफ गौरी शंकर और रूपचंद्र हैं तो दूसरी तरफ ठाकुर साहब। अब अगर इनके अपराधों के लिए इन्हें मौत की सज़ा सुना दी जाए तो क्या ये उचित होगा? सवाल है कि गौरी शंकर और रूपचंद्र की मौत हो जाने के बाद इनके घर परिवार की औरतों और बहू बेटियों का क्या होगा? वो सब किसके सहारे अपना जीवन बसर करेंगी? यही सवाल ठाकुर साहब के बारे में भी है कि अगर इन्हें मौत की सज़ा दी जाएगी तो हवेली में रहने वाले किसके सहारे जिएंगे? दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत हैं जिन्होंने अपनी दुश्मनी ठाकुर साहब से निकाली और इन्होंने साहूकारों के साथ मिल कर मझले ठाकुर जगताप और बड़े कुंवर अभिनव की हत्या की। हालाकि बदले में ठाकुर साहब ने इनकी अथवा इनके बेटे की हत्या नहीं की। इस हिसाब से देखा जाए तो वास्तव में ये दोनो पिता पुत्र ठाकुर साहब के अपराधी हैं और इन्होंने जो किया है उसके लिए इन्हें यकीनन मौत की सज़ा ही मिलनी चाहिए लेकिन सवाल वही है कि क्या इन्हें भी ऐसी सज़ा देना उचित होगा? आखिर इनके बाद इनके घर की औरतों का क्या होगा?"

ठाकुर महेंद्र सिंह इतना सब कहने के बाद भीड़ में खड़े लोगों की तरफ देखने लगे। इतने बड़े जन समूह में आश्चर्यजनक रूप से सन्नाटा फैला हुआ था। किसी को भी महेंद्र सिंह से ऐसी बातों की उम्मीद नहीं थी।

"पंच के रूप में बिना कोई पक्षपात किए न्याय करना हमारा फर्ज़ है।" उन्होंने फिर से कहना शुरू किया____"किंतु हमारा ये देखना भी फ़र्ज़ है कि इस सबके बाद भी किसी के लिए क्या उचित है? देखिए, जो बीत गया अथवा जो कर दिया गया वो सिर्फ दुश्मनी या बदले की भावना से किया गया। हम अच्छी तरह जानते हैं कि इतना कुछ करने के बाद भी किसी को भी सुख चैन नहीं मिला होगा बल्कि सिर्फ दुख और ज़माने भर की निंदा ही मिली है। इस लिए हम व्यक्तिगत रूप से ये चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर आप सब एक नए सिरे से शुरुआत कीजिए। किसी से बैर रख कर किसी की हत्या करने से कभी कोई खुशी हासिल नहीं हो सकती। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि आप लोगों की वजह से आपके घर परिवार के बाकी सदस्यों का जीवन नर्क के समान हो जाए। इस लिए अगर आप सबको हमारी ये बातें समझ आ रही हैं तो बेझिझक हो कर हमें बता दें। बाकी पंच के रूप में तो हमें फ़ैसला करना ही है लेकिन ये भी सच है कि उस फ़ैसले से यही होगा कि जो कुछ बचा है वो भी बर्बाद हो जाएगा।"

इस बार जन समूह में खुसुर फुसुर की आवाज़ें आनी शुरू हो गईं। साहूकार गौरी शंकर और रूपचंद्र के चेहरों पर अजीब तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। यही हाल मुंशी चंद्रकांत और उसके बेटे रघुवीर का भी था।

"ठाकुर साहब।" सहसा गौरी शंकर ने कहा____"अगर ऐसा सच में हो सकता है तो ये हमारे लिए खुशी की ही बात होगी लेकिन इसका यकीन भला हम कैसे करें कि इसके बाद हम पर या हमारे परिवार के किसी सदस्य पर ठाकुर साहब का क़हर नहीं बरपेगा?"

"मेरा भी यही कहना है ठाकुर साहब।" मुंशी चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह से कहा____"हम कैसे भरोसा करें कि हमारे द्वारा इतना कुछ किए जाने के बाद ठाकुर साहब द्वारा हम पर कभी कोई आंच नहीं आएगी? ठाकुर साहब का तो हम एक घड़ी के लिए यकीन भी कर सकते हैं किंतु हमें छोटे कुंवर पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।"

"बेशक आप लोगों का ऐसा सोचना जायज़ है चंद्रकांत।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"किंतु यही बात आप लोगों पर भी तो लागू होती है। ये तो सभी जानते हैं कि जब से दादा ठाकुर की कुर्सी पर ठाकुर प्रताप सिंह बैठे हैं तब से इनके द्वारा कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं हुआ। इन्होंने हमेशा सबकी भलाई का ही काम किया है और हर ज़रूरतमंद की हर तरह से मदद की है। ज़ाहिर है इतना कुछ होने के बाद भी आम जनता को इन पर भरोसा होगा कि इसके बाद भी इनके द्वारा आप लोगों के साथ ही नहीं बल्कि किसी के साथ भी अनिष्ट नहीं होगा। हां, आम जनता को आप लोगों पर ही भरोसा नहीं हो सकेगा क्योंकि हत्या जैसे अपराध तो आप लोगों ने ही करने शुरू किए थे। इस बारे में क्या कहेंगे आप लोग?"

ठाकुर महेंद्र सिंह की ये बातें सुन कर गौरी शंकर और चंद्रकांत कुछ न बोले। कदाचित उन दोनों को ही इस बात का एहसास हो गया था कि उनके बारे में जो कुछ महेंद्र सिंह ने कहा है वो एक कड़वा सच है। तभी सहसा जन समूह में से कुछ लोग चिल्लाने लगे। एक साथ कई लोगों के स्वर वातावरण में गूंज उठे। सबका यही कहना था कि उन्हें साहूकार गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत पर भरोसा नहीं है।

"कमाल है।" मंच पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह मुस्कुराते हुए बोल उठे____"हमने तो बस अपना अंदेशा ज़ाहिर किया था लेकिन हमारे अंदेशे की पुष्टि तो यहां मौजूद लोगों ने ही कर दी। क्या अब भी आप लोगों को लगता है कि इस तरह का सवाल आप लोगों को करना चाहिए था?"

गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत ने सिर झुका लिया। इधर महेंद्र सिंह ने पिता जी से कहा____"आपका क्या कहना है ठाकुर साहब? हमारा मतलब है कि क्या आप हमारी व्यक्तिगत राय से सहमत हैं? क्या आप भी ये समझते हैं कि सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से शुरुआत की जाए ताकि जो कुछ बचा है वो बर्बाद होने से बच जाए? अगर आप सहमत हैं और आपकी इजाज़त हो तो इस मामले का यही फ़ैसला हम सुना देते हैं।"

"हम आपकी बातों से सहमत हैं।" पिता जी ने कहा____"हम खुद भी नहीं चाहते कि किसी कठोर फ़ैसले की वजह से गौरी शंकर के परिवार की औरतें और उनकी बहू बेटियां अनाथ और बेसहारा हो जाएं। हम तो पहले भी यही चाहते थे कि दोनों परिवार प्रेम पूर्वक रहें और ऐसा हमेशा ही चाहेंगे। हां ये सच है कि हमने गुस्से में आ कर इनके भाइयों और बच्चों को मार डाला जिसका अब हमें बेहद अफ़सोस ही नहीं बल्कि बेहद दुख भी हो रहा है। हम चाहते हैं कि किसी और को उनके अपराधों की सज़ा मिले या न मिले लेकिन हमें ज़रूर मिलनी चाहिए। इतना बड़ा नर संघार करने के बाद हम कभी चैन से जी नहीं पाएंगे। अच्छा होगा कि हमें मौत की सज़ा सुना दी जाए।"

पिता जी की बात सुन कर मैं तो हैरान हुआ ही था किंतु गौरी शंकर और मुंशी चंद्रकांत भी आश्चर्य से देखने लगे थे उन्हें। कदाचित उन्हें मेरे पिता जी से ऐसा सुनने की सपने में भी उम्मीद नहीं थी।

"ऐसा नहीं हो सकता ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"अगर सज़ा मिलेगी तो फिर हर अपराधी को सज़ा मिलेगी अन्यथा किसी को भी नहीं। वैसे आपके लिए ये सज़ा जैसा ही होगा कि आप अपने गुनाहों का जीवन भर पश्चाताप करते रहें। एक और बात, आज के बाद अब आप कभी भी पंच अथवा मुखिया नहीं बन सकते।"

"हत्या जैसा अपराध करने के बाद तो हम खुद भी पंच अथवा मुखिया बने रहना पसंद नहीं करेंगे ठाकुर साहब।" पिता जी ने गंभीर भाव से कहा____"पंच अथवा मुखिया तो परमेश्वर का रूप होता है, हमारे जैसा हत्यारा नहीं हो सकता।"

उसके बाद जब सभी पक्ष राज़ी हो गए तो यही फ़ैसला किया गया कि सब कुछ भुला कर एक नए सिरे से शुरआत की जाए। ज़ाहिर है ये फ़ैसला इसी बिना पर किया गया कि इससे सभी के परिवारों का भला हो सके। पंच के रूप में ठाकुर महेन्द्र सिंह ने सभी पक्षों को ये सख़्त हिदायत दी कि अब से कोई भी एक दूसरे का बुरा नहीं करेगा अन्यथा कठोर दण्ड दिया जाएगा।

गौरी शंकर इस फ़ैसले से खुश तो हुआ लेकिन अपने भाइयों तथा बच्चों की मौत से बेहद दुखी भी था। दूसरी तरफ मुंशी चंद्रकांत सामान्य ही नज़र आया। सफ़ेदपोश के बारे में यही कहा गया कि उसे जल्द से जल्द तलाश कर के पंच के सामने हाज़िर किया जाए। हालाकि ये अब हमारा मामला था जिसे देखना हमारा ही काम था। ख़ैर इस फ़ैसले से मुझे भी खुशी हुई कि चलो एक बड़ी मुसीबत टल गई वरना इतना कुछ होने के बाद कुछ भी हो सकता था। सहसा मेरे मन में ख़याल उभरा कि _____'इस तरह का फ़ैसला शायद ही किसी काल में किसी के द्वारा किया गया होगा।'

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Nice update 👍👍👍


Waiting for next update to know who the hell is the person in a white cloth...


Now... What will happen to bhabhi ji.... Accha hoga agar. apna hero se bhabhiji ka shaadi ho jaaye ine donon ke bich ka chemistry bahut Achcha hai...
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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अध्याय - 69
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उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।


अब आगे....


उस वक्त रात के साढ़े बारह बज रहे थे जब दादा ठाकुर का काफ़िला पास के ही एक गांव माधोपुर के पास पहुंचा। गांव से कुछ दूर ही काफ़िले को रोक कर सब अपनी अपनी गाड़ियों से उतरे। कुल तीन जीपें थी। एक दादा ठाकुर की, दूसरी अर्जुन सिंह की और तीसरी मेरे नाना जी की। तीनों जीपों में आदमी सवार हो कर आए थे। किसी के हाथ में बंदूक, किसी के हाथ में पिस्तौल, किसी के हाथ में लट्ठ तो किसी के हाथ में तलवार। दादा ठाकुर के निर्देश पर सब के सब एक लंबा घेरा बना कर गांव के अंदर की तरफ उस दिशा में बढ़ चले जिधर साहूकारों के मौजूद होने की ख़बर मुखबिरों ने दादा ठाकुर को दी थी।

आधी रात के वक्त पूरे गांव में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। चारो तरफ अंधेरा तो था किंतु इतना भी नहीं कि किसी को कुछ दिखे ही न। आसमान में हल्का सा चांद था जिसकी मध्यम रोशनी धरती पर आ रही थी, ये अलग बात है कि क्षितिज पर काले बादलों की वजह से कभी कभी वो चांद छुप जाता था जिसकी वजह से उसके द्वारा आने वाली रोशनी लोप भी हो जाती थी।

"मैं अब भी आपसे यही कहूंगा ठाकुर साहब कि थोड़ा होश से काम लीजिएगा।" दादा ठाकुर के बगल से ही चल रहे अर्जुन सिंह ने धीमें स्वर में कहा____"कहीं ऐसा न हो कि आवेश और गुस्से में किए गए अपने कृत्य से बाद में आपको पछतावा हो।"

"हमें अब किसी बात का पछतावा नहीं होने वाला अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहा____"बल्कि हमें तो अब इस बात का बेहद अफ़सोस ही नहीं बल्कि दुख भी है कि हमने आज से पहले होश क्यों नहीं गंवाया था? अगर हमने इसके पहले ही पूरी सख़्ती से हर काम किया होता तो आज हमें ये दिन देखना ही नहीं पड़ता। हमारे दुश्मनों ने हमारी नरमी का फ़ायदा ही नहीं उठाया है बल्कि उसका मज़ाक भी बनाया है। इस लिए अब हमें किसी बात के लिए होश से काम नहीं लेना है बल्कि अब तो दुश्मनों के साथ वैसा ही सुलूक किया जाएगा जैसा कि उनके साथ होना चाहिए।"

"मैं आपकी बातों से इंकार नहीं कर रहा ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यही वजह है कि इस वक्त मैं यहां आपके साथ हूं। मैं तो बस ये कह रहा हूं कि कुछ भी करने से पहले एक बार आपको उन लोगों से भी पूछना चाहिए कि ऐसा उन्होंने क्यों किया है?"

"पूछने की ज़रूरत ही नहीं है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने आवेशयुक्त भाव से कहा____"हमें अच्छी तरह पता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है। तुम शायद भूल गए हो लेकिन हम नहीं भूले।"

"क्या मतलब??" अर्जुन सिंह ने उलझन पूर्ण भाव से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"मैं कुछ समझा नहीं। आप किस चीज़ की बात कर रहे हैं?"

"बहुत पुराना मामला है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारे पिता जी के ज़माने का। अगर हम ये कहें तो ग़लत न होगा कि साहूकारों का मन मुटाव हमारे पिता जी की वजह से ही शुरू हुआ था। हमने एक बार तुम्हें बताया तो था इस बारे में।"

"ओह! हां याद आया।" अर्जुन सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो क्या साहूकार लोग अभी भी उसी बात को लिए बैठे हैं?"

"कुछ ज़ख्म इंसान को कभी चैन और सुकून से नहीं बैठने देते।" दादा ठाकुर ने कहा____"पिता जी ने उस समय भले ही सब कुछ ठीक कर के मामले को रफा दफा कर दिया था मगर सच तो ये है कि वो मामला साहूकारों के लिए कभी रफा दफा हुआ ही नहीं। उस समय पिता जी के ख़ौफ के चलते भले ही साहूकारों ने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया था मगर वर्षों बाद अब उठाया है। हमें हैरत है कि ऐसा कोई क़दम उठाने में उन लोगों ने इतना समय क्यों लगाया मगर समझ सकते हैं कि हर चीज़ अपने तय वक्त पर ही होती है।"

"आपका मतलब है कि इतने सालों बाद ही उनके द्वारा ऐसा करने का वक्त आया?" अर्जुन सिंह ने बेयकीनी से दादा ठाकुर की तरफ देखा____"पर सोचने वाली बात है कि क्या उन्हें ऐसा करने के बाद अपने अंजाम की कोई परवाह न रही होगी?"

"इंसान के सब्र का घड़ा जब भर जाता है तो उसकी नियति कुछ ऐसी ही होती है मित्र अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने कहा____"जैसे इस वक्त हम बदले की भावना में जलते हुए उन सबको ख़ाक में मिलाने के लिए उतावले हो रहे हैं उसी तरह उन लोगों की भी यही दशा रही होगी।"

अर्जुन सिंह अभी कुछ कहने ही वाला था कि दादा ठाकुर ने चुप रहने का इशारा किया और पिस्तौल लिए आगे बढ़ चले। सभी गांव में दाखिल हो चुके थे। हमेशा की तरह बिजली गुल थी इस लिए किसी भी घर में रोशनी नहीं दिख रही थी। हल्के अंधेरे में डूबे गांव के घर भूत की तरह दिख रहे थे। दादा ठाकुर की नज़र घूमते हुए एक मकान पर जा कर ठहर गई। मकान कच्चा ही था जिसके बाहर क़रीब पच्चीस तीस गज का मैदान था। उस मैदान के एक तरफ कुछ मवेशी बंधे हुए थे।

"वो रहा मकान।" दादा ठाकुर ने उंगली से इशारा करते हुए बाकी सबकी तरफ नज़र घुमाई____"तुम सब मकान को चारो तरफ से घेर लो। उनमें से कोई भी बच के निकलना नहीं चाहिए।"

अंधेरे में सभी ने सिर हिलाया और मकान की तरफ सावधानी से बढ़ चले। दादा ठाकुर के साथ में अर्जुन सिंह और मामा लोग थे जबकि बाकी हवेली के मुलाजिम लोग दूसरे छोर पर थे। उन लोगों के साथ में भैया के साले वीरेंद्र सिंह थे और जगताप चाचा का एक साला भी।

सब के सब मकान की तरफ बढ़ ही रहे थे कि तभी अंधेरे में एक तरफ से एक साया भागता हुआ उस मकान के पास पहुंचा और शोर करते हुए अंदर घुस गया। ये देख दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि बाकी लोग भी बुरी तरह चौंक पड़े। दादा ठाकुर जल्दी ही सम्हले और सबको सावधान रहने को कहा और साथ ही आने वाली स्थिति से निपटने के लिए भी।

वातावरण में एकाएक ही शोर गुल गूंज उठा और मकान के अंदर से एक एक कर के लोग बाहर की तरफ निकल कर इधर उधर भागने लगे। हल्के अंधेरे में भी दादा ठाकुर ने भागने वालों को पहचान लिया। वो सब गांव के साहूकार ही थे। उन्हें भागते देख दादा ठाकुर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्हें ये सोच कर भी गुस्सा आया कि वो सब बुजदिल और कायरों की तरह अपनी जान बचा कर भाग रहे हैं जबकि उन्हें तो दादा ठाकुर का सामना करना चाहिए था।

इससे पहले कि वो सब अंधेरे में कहीं गायब हो जाते दादा ठाकुर ने सबको उन्हें खत्म कर देने का हुकुम सुना दिया। दादा ठाकुर का हुकुम मिलते ही वातावरण में बंदूखें गरजने लगीं। अगले ही पल वातावरण इंसानी चीखों से गूंज उठा। देखते ही देखते पूरे गांव में हड़कंप मच गया। सोए हुए लोगों की नींद में खलल पड़ गया और सबके सब ख़ौफ का शिकार हो गए। इधर दादा ठाकुर के साथ साथ अर्जुन सिंह और मामा लोगों की बंदूकें गरजती रहीं। जब बंदूक से निकली गोलियों से फिज़ा में गूंजने वाली चीखें शांत पड़ गईं तो दादा ठाकुर के हुकुम पर बंदूक से गोलियां निकलनी बंद हो गईं।

जब काफी देर तक फिज़ा में गोलियां चलने की आवाज़ नहीं गूंजी तो ख़ौफ से भरे गांव के लोगों ने राहत की सांस ली और अपने अपने घरों से निकलने की जहमत उठाई। लगभग सभी घरों के अंदर कुछ ही देर में रोशनी होती नज़र आने लगी। इधर दादा ठाकुर के कहने पर सब मकान की तरफ बढ़ चले।

"सम्हल कर ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"दुश्मन अंधेरे में कहीं छुपा भी हो सकता है और वो आप पर वार भी कर सकता है।"

"यही तो हम चाहते हैं।" दादा ठाकुर आगे बढ़ते हुए बोले____"हम चाहते हैं कि हमारे जिगर के टुकड़ों को छिप कर वार करने वाले एक बार हमारे सामने आ कर वार करें। हम भी तो देखें कि वो कितने बड़े मर्द हैं और कितना बड़ा जिगर रखते हैं।"

थोड़ी ही देर में सब उस मकान के क़रीब पहुंच गए। मकान के दोनों तरफ लाशें पड़ीं थी जिनके जिस्मों से निकलता लहू कच्ची ज़मीन पर अंधेरे में भी फैलता हुआ नज़र आ रहा था।

"अंदर जा कर देखो तो ज़रा।" दादा ठाकुर ने अपने एक मुलाजिम से कहा____"कि इस घर का वो कौन सा मालिक है जिसने हमारे दुश्मनों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी?"

दादा ठाकुर के कहने पर मुलाजिम फ़ौरन ही घर के अंदर चला गया। उसके जाने के बाद दादा ठाकुर आगे बढ़े और लाशों का मुआयना करने लगे। ज़ाहिर है उनके साथ बाकी लोग भी लाशों का मुआयना करने लगे थे।

इधर कुछ ही देर में गांव के लोग भी एक एक कर के अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे। कुछ लोगों के हाथ में लालटेनें थी जिसकी रोशनी अंधेरे को दूर कर रही थी। लालटेन की रोशनी में जिसके भी चेहरे दिख रहे थे उन सबके चेहरों में दहशत के भाव थे। तभी मुलाजिम अंदर से बाहर आया। उसने एक आदमी को पकड़ रखा था। मारे ख़ौफ के उस आदमी का चेहरा पीला ज़र्द पड़ा हुआ था। उसके पीछे रोते बिलखते एक औरत भी आ गई और साथ में उसके कुछ बच्चे भी।

"मालिक ये है वो आदमी।" मुलाजिम ने दादा ठाकुर से कहा____"जिसने इन लोगों को अपने घर में पनाह देने की जुर्रत की थी।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" वो आदमी दादा ठाकुर के पैरों में ही लोट गया, रोते बिलखते हुए बोला____"लेकिन ऐसा मैंने खुद जान बूझ के नहीं किया था बल्कि ये लोग ज़बरदस्ती मेरे घर में घुसे थे और मुझे धमकी दी थी कि अगर मैंने उनके बारे में किसी को कुछ बताया तो ये लोग मेरे बच्चों को जान से मार डालेंगे।"

"कब आए थे ये लोग तुम्हारे घर में?" अर्जुन सिंह ने थोड़ी नरमी से पूछा तो उसने कहा____"कल रात को आए थे मालिक। पूरा गांव सोया पड़ा था। मेरी एक गाय शाम को घर नहीं आई थी इस लिए उसे देखने के लिए मैं घर से बाहर निकला था कि तभी ये लोग मेरे सामने आ धमके थे। बस उसके बाद मुझे वही करना पड़ा जिसके लिए इन्होंने मुझे मजबूर किया था। मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक। मैं अपने बच्चों की क़सम खा के कहता हूं कि मैंने आपसे कोई गद्दारी नहीं की है।"

"मेरा ख़याल है कि ये सच बोल रहा है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"इस सबमें यकीनन इसका कोई दोष नहीं है।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा____"हम तुम पर यकीन करते हैं। ख़ैर ज़रा अंदर से लालटेन ले कर तो आओ।"

"जी अभी लाया मालिक।" जान बची लाखों पाए वाली बात सोच कर उस आदमी ने राहत की सांस ली और फ़ौरन ही अंदर भागता हुआ गया। कुछ ही पलों में लालटेन ले कर वो दादा ठाकुर के सामने हाज़िर हो गया।

दादा ठाकुर ने उसके हाथ से लालटेन ली और उसकी रोशनी में लाशों का मुआयना करने लगे। घर से बाहर कुछ ही दूरी पर एक लाश पड़ी थी। दादा ठाकुर ने देखा वो लाश साहूकार शिव शंकर की थी। अभी दादा ठाकुर उसे देख ही रहे थे कि तभी वो आदमी ज़ोर से चिल्लाया जिसकी वजह से सब के सब चौंके और साथ ही सावधान हो कर बंदूखें तान लिए।

दादा ठाकुर ने पलट कर देखा, वो आदमी अपने एक मवेशी के पास बैठा रो रहा था। भैंस का एक बच्चा था वो जो किसी की गोली का शिकार हो गया था और अब वो ज़िंदा नहीं था। वो आदमी उसी को देख के रोए जा रहा था। उसके पीछे उसकी बीवी भी आंसू बहा रही थी। ये देख दादा ठाकुर वापस पलटे और फिर से लाशों का मुआयना करने लगे।

कुछ ही देर में सभी लाशों का मुआयना कर लिया गया। वो क़रीब आठ लाशें थीं। शिनाख्त से पता चला कि वो लाशें क्रमशः शिव शंकर, मणि शंकर, हरि शंकर तथा उनके बेटों की थी। मणि शंकर अपने दोनों बेटों के साथ स्वर्ग सिधार गया था। हरि शंकर और उसका बड़ा बेटा मानिकचंद्र स्वर्ग सिधार गए थे जबकि रूपचंद्र सिंह लाश के रूप में नहीं मिला, यानि वो ज़िंदा था और भागने में कामयाब हो गया था। शिव शंकर और उसका इकलौता बेटा गौरव सिंह मर चुके थे। इधर लाशों में गौरी शंकर तो नहीं मिला लेकिन उसके इकलौते बेटे रमन सिंह की लाश ज़रूर मिली। सभी लाशें बड़ी ही भयानक लग रहीं थी।

अभी सब लोग लाशों की तरफ ही देख रहे थे कि तभी वातावरण में धाएं की आवाज़ से गोली चली। गोली चलते ही एक इंसानी चीख फिज़ा में गूंज उठी। वो इंसानी चीख दादा ठाकुर के पास ही खड़े उनके सबसे छोटे साले अमर सिंह राणा की थी। उनके बाएं बाजू में गोली लगी थी। इधर गोली चलने की आवाज़ सुनते ही गांव में एक बार फिर से हड़कंप मच गया। जो लोग अपने अपने घरों से बाहर निकल आए थे वो सब चीखते चिल्लाते हुए अपने अपने घरों के अंदर भाग लिए। इधर मामा को गोली लगते ही सब के सब सतर्क हो गए और जिस तरफ से गोली चलने की आवाज़ आई थी उस तरफ ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे।

"तुम ठीक तो हो न अमर?" दादा ठाकुर ने अपने सबसे छोटे साले अमर को सम्हालते हुए बोले____"तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं न?"

"मैं बिल्कुल ठीक हूं जीजा जी।" अमर सिंह ने दर्द को सहते हुए कहा____"आप मेरी फ़िक्र मत कीजिए और दुश्मन को ख़त्म कीजिए।"

"वो ज़िंदा नहीं बचेगा अमर।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहने के साथ ही बाकी लोगों की तरफ देखते हुए हुकुम दिया____"सब जगह खोजो उस नामुराद को। बच के निकलना नहीं चाहिए।"

दादा ठाकुर के हुकुम पर सभी मुलाजिम फ़ौरन ही उस तरफ दौड़ पड़े जिधर से गोली चली थी। इधर दादा ठाकुर ने फ़ौरन ही अपने कंधे पर रखे गमछे को फाड़ा और उसे अमर सिंह की बाजू में बांध दिया ताकि खून ज़्यादा न बहे।

"हमारा ख़याल है कि हमें अब यहां से निकलना चाहिए जीजा श्री।" चाची के छोटे भाई अवधराज सिंह ने कहा____"हमारा जो दुश्मन यहां से निकल भागा है वो कहीं से भी छुप कर हमें नुकसान पहुंचा सकता है। मुलाजिमों को आपने उन्हें खोजने का हुकुम दे ही दिया है तो वो लोग उन्हें खोज लेंगे। हवेली चल कर अमर भाई साहब की बाजू से गोली निकालना बेहद ज़रूरी है वरना ज़हर फैल जाएगा तो और भी समस्या हो जाएगी।"

"अवधराज जी सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"यहां से अब निकलना ही हमारे लिए उचित होगा।"

"ठीक है।" दादा ठाकुर ने कहा____"मगर यहां पर पड़ी इन लाशों को भी तो यहां से हटाना पड़ेगा वरना इन लाशों को देख कर गांव वाले ख़ौफ से ही मर जाएंगे।"

"हां सही कहा आपने।" अर्जुन सिंह ने सिर हिलाया____"इन लाशों को ठिकाने लगाना भी ज़रूरी है। अगर पुलिस विभाग को पता चला तो मुसीबत हो जाएगी।"

"पुलिस विभाग को तो देर सवेर पता चल ही जाएगा।" दादा ठाकुर ने कहा___"मगर इसकी हमें कोई फ़िक्र नहीं है। हम तो ये सोच रहे हैं कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जिससे इन गांव वालों को भी समस्या ना हो और साथ ही हमारे बचे हुए दुश्मन भी हमारी पकड़ में आ जाएं।"

"ऐसा कैसे होगा भला?" अर्जुन सिंह के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।
"इन लाशों का क्रिया कर्म करने के लिए इनके घर वाले इन लाशों को लेने तो आएंगे ही।" दादा ठाकुर ने कहा____"अब ऐसा तो होगा नहीं कि मौत के ख़ौफ से वो लोग इनका अंतिम संस्कार ही नहीं करेंगे। इसी लिए हमने कहा है कि लाशों को ऐसी जगह रखा जाए जहां से इनके चाहने वालों को इन्हें ले जाने में कोई समस्या ना हो किंतु साथ ही वो आसानी से हमारी पकड़ में भी आ जाएं।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर अभी अर्जुन सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी कुछ मुलाजिम दादा ठाकुर के पास आ गए। उन्होंने बताया कि गोली चलाने वाले दुश्मन का कहीं कोई अता पता नहीं है। दादा ठाकुर ने उन्हें हुकुम दिया कि वो सब लाशों को बैलगाड़ी में लाद कर ले चलें।

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"रुक जाओ वरना गोली मार दूंगा।" अंधेरे में भागते एक साए को देख मैंने उस पर रिवॉल्वर तानते हुए कहा तो वो साया एकदम से अपनी जगह पर ठिठक गया।

एक तो अंधेरा दूसरे उसने अपने बदन पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी इस लिए उसकी परछाईं मुझे धुंधली सी ही नज़र आ रही थी। उधर मेरी बात सुनते ही वो ठिठक गया था किंतु पलट कर मेरी तरफ देखने की जहमत नहीं की उसने। मैं पूरी सतर्कता से उसकी तरफ बढ़ा तो एकदम से उसमें हलचल हुई।

"तुम्हारी ज़रा सी भी हरकत तुम्हारी मौत का सबब बन सकती है।" मैंने सख़्त भाव से उसे चेतावनी देते हुए कहा____"इस लिए अगर अपनी ज़िंदगी से बेपनाह मोहब्बत है तो अपनी जगह पर ही बिना हिले डुले खड़े रहो।"

मगर बंदे पर मेरी चेतावनी का कोई असर न हुआ। वो अपनी जगह से हिला ही नहीं बल्कि पलट कर उसने मुझ पर गोली भी चला दी। पलक झपकते ही मेरी जीवन लीला समाप्त हो सकती थी किंतु ये मेरी अच्छी किस्मत ही थी कि उसका निशाना चूक गया और गोली मेरे बाजू से निकल गई। एक पल के लिए तो मेरी रूह तक थर्रा गई थी किंतु फिर मैं ये सोच कर जल्दी से सम्हला कि कहीं इस बार उसका निशाना सही जगह पर न लग जाए और अगले ही पल मेरी लाश कच्ची ज़मीन पर पड़ी नज़र आने लगे। इससे पहले कि वो मुझ पर फिर से गोली चलाता मैंने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा दिया। वातावरण में धाएं की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही उस साए के हलक से दर्द में डूबी चीख भी।

गोली साए की जांघ में लगी थी और ये मैंने जान बूझ कर ही किया था क्योंकि मैं उसे जान से नहीं मारना चाहता था। मैं जानना चाहता था कि आख़िर वो है कौन जो रात के इस वक्त इस तरह से भागता चला जा रहा था और मेरी चेतावनी के बावजूद उसने मुझ पर गोली चला दी थी। बहरहाल, जांघ में गोली लगने से वो लहराया और ज़मीन पर गिर पड़ा। पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर अंधेरे में कहीं गिर गया था। उसने दर्द को सहते हुए ज़मीन में अपने हाथ चलाए। शायद वो अपनी पिस्तौल ढूंढ रहा था। ये देख कर मैं फ़ौरन ही उसके क़रीब पहुंचा और उसके सिर पर किसी जिन्न की तरह खड़ा हो गया।

"मुद्दत हुई पर्दानशीं की पर्दादारी देखते हुए।" मैंने शायराना अंदाज़ में कहा____"हसरत है कि अब दीदार-ए-जमाले-यार हो।"

कहने के साथ ही मैंने हाथ बढ़ा कर एक झटके में उसके सिर से शाल को उलट दिया। मेरे ऐसा करते ही उसने बड़ी तेज़ी से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। ये देख कर मैं मुस्कुराया और अगले ही पल मैंने अपना एक पैर उसकी जांघ के उस हिस्से में रख कर दबा दिया जहां पर गोली लगने से ज़ख्म बन गया था। ज़ख्म में पैर रख कर जैसे ही मैंने दबाया तो वो साया दर्द से हलक फाड़ कर चिल्ला उठा।

"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।



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अध्याय - 70
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"शायद तुमने ठीक से हमारा शेर नहीं सुना।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अगर सुना होता तो हमारी नज़रों से अपनी मोहिनी सूरत यूं नहीं छुपाते।"

कहने के साथ ही मैंने अपने पैर को फिर से उसके ज़ख्म पर दबाया तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इस बार उसके चिल्लाने से मुझे उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी। उधर वो अभी भी अपना चेहरा दूसरी तरफ किए दर्द से छटपटाए जा रहा था और मैं सोचे जा रहा था कि ये जानी पहचानी आवाज़ किसकी हो सकती है? मुझे सोचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। बिजली की तरह मेरे ज़हन में उसका नाम उभर आया और इसके साथ ही मैं चौंक भी पड़ा।



अब आगे....

गांव से बाहर एक बड़े से पेड़ के पास पहुंचते ही सफ़ेदपोश ने जगन को रुकने को कहा तो जगन रुक गया। वो बुरी तरह हांफ रहा था और उसी के जैसे सफ़ेदपोश भी हांफ रहा था। यूं तो हल्के अंधेरे में जगन को उसकी कोई प्रतिक्रिया ठीक से समझ नहीं आ रही थी किंतु उसने इतना ज़रूर महसूस किया था कि सफ़ेदपोश उससे तेज़ नहीं भाग पा रहा था। बहरहाल, वो इसी बात से बेहद खुश था कि उस सफ़ेदपोश ने उसे दादा ठाकुर की क़ैद से निकाल लिया है। एक तरह से उसने उसकी जान बचा ली थी वरना वो तो अब यही समझ चुका था कि कल का दिन उसकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा।

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी जान बचा ली।" जगन ने हांफते हुए सफ़ेदपोश की तरफ देख कर कहा____"मैं जीवन भर अब आपकी गुलामी करूंगा।"

"अगर तुम ऐसा समझते हो।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"तो ये भी समझते होगे कि तुम्हें ये जो नई ज़िंदगी मिली है उस पर सबसे ज़्यादा अब हमारा अधिकार है।"

"बिल्कुल है मालिक।" जगन ने सफ़ेदपोश को मालिक शब्द से संबोधित करते हुए कहा____"आपने मेरी जान बचा कर मुझे नई ज़िंदगी दी है इस लिए मेरी इस ज़िंदगी में अब आपका ही हक़ है। अब से आप मेरे मालिक हैं और मैं आपका गुलाम जो आपके हर हुकुम का बिना सोचे समझे पालन करेगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने कहा____"अगर तुम हमारे हर हुकुम का पालन करोगे तो यकीन करो आज के बाद तुम्हारे अपने बीवी बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी हम ख़ुद लेते हैं। उन्हें अब किसी भी चीज़ का अभाव नहीं होगा।"

"आपका बहुत बहुत शुक्रिया मालिक।" जगन इस बात से बेहद खुश और बेफ़िक्र सा हो गया, बोला____"आप सच में बहुत महान हैं। मुझे हुकुम दीजिए कि अब मुझे क्या करना है?"

"तुम्हें इसी वक्त माधोपुर की तरफ जाना है।" सफ़ेदपोश ने कहा____"हमारा ख़याल है कि माधोपुर के रास्ते में ही कहीं तुम्हें वैभव सिंह मिलेगा। तुम्हारा काम उसको जान से मार डालना है। क्या तुम ये कर सकोगे?"

"मैं आपके इस हुकुम को अपनी जान दे कर भी पूरा करुंगा मालिक।" जगन वैभव का नाम सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया था किंतु अपनी घबराहट को छुपाते हुए बड़ी ही गर्मजोशी से बोला____"और अगर उसके साथ कोई और भी हुआ तो उसको भी जान से मार दूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" सफ़ेदपोश ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"हम उम्मीद करते हैं कि कल का सूरज वैभव सिंह की मौत का पैग़ाम ले कर ही उदय होगा। अगर तुम सच में उसको मारने में कामयाब हुए तो तुम्हें उपहार के रूप में मुंह मांगी मुराद मिलेगी।"

"धन्यवाद मालिक।" जगन मन ही मन गदगद होते हुए बोला।
"इसे अपने पास रखो।" सफ़ेदपोश ने अपने लिबास के अंदर से एक पिस्तौल निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसके माध्यम से तुम्हें वैभव सिंह को जान से मारने में आसानी होगी। अब तुम जाओ।"

सफ़ेदपोश से पिस्तौल ले कर जगन ने अदब से सिर झुका कर सफ़ेदपोश को सलाम किया और पलट कर तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया। कुछ ही पलों में वो अंधेरे में गायब हो गया। उसके जाने के बाद सफ़ेदपोश पलटा और वो भी उसी की तरह कुछ ही देर में अंधेरे में कहीं गायब हो गया।

✮✮✮✮

मैं चौंकने के बाद सोच में डूब ही गया था कि तभी अचानक मैं लड़खड़ा कर गिर गया। ज़मीन पर पड़े साए ने मेरा पैर पकड़ कर उछाल दिया था। मुझे उससे ऐसी हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इस लिए मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। कच्ची ज़मीन पर गिरते ही मैं बिजली की सी तेज़ी से उठ कर खड़ा हो गया। तभी मेरी नज़र साए पर पड़ी जो अपने दर्द को सहते हुए मुझे दबोचने के लिए मुझ पर झपट ही पड़ा था। इससे पहले कि वो मुझ तक पहुंचता मैंने दाएं घुटने का वार उसके जबड़े में किया तो वो दर्द से बिलबिलाते हुए एक तरफ को उलट गया।

"लगता है मरने की बहुत ही जल्दी है तुझे।" मैंने उसके पास पहुंचते ही उसकी ज़ख्म वाली जांघ पर पैर की ठोकर मारते हुए कहा तो वो एक बार फिर से दर्द से चिल्ला उठा। इधर झुक कर मैंने उसकी गर्दन को पीछे से अपने हाथ की कैंची बना कर दबोच लिया और फिर गुर्राते हुए बोला____"तेरे जैसे नामर्द ठाकुर वैभव सिंह को मारने के ख़्वाब कब से देखने लगे? वैसे मुझे शक तो था लेकिन यकीन नहीं कर पा रहा था कि तू ऐसा कुछ कर सकता है।"

"तेरे जैसे मंद बुद्धि वाले लोग सोच भी नहीं सकते वैभव सिंह।" साया दर्द में भी नफ़रत से गुर्राया____"तू तो बस दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही जानता है। ये उसी का परिणाम है कि आज तुम सब इस हाल में पहुंच गए हो।"

"मान लिया कि मुझे सिर्फ दूसरो की बहू बेटियों की इज्ज़त लूटना ही आता है।" मैंने उसी लहजे में कहा___"मगर ठाकुर वैभव सिंह उस जियाले का नाम है जो अपना हर काम डंके की चोट पर करता है। तेरे जैसे नामर्द तो छुप कर ही वार करते हैं।"

मेरी बात सुन कर साया बुरी तरह कसमसा कर रह गया। इधर मैं उसकी बेबसी को देखते हुए बोला___"ख़ैर ये तो बता क्या तेरी बीवी भी इस खेल में शामिल है?"

"नहीं।" साया ढीला पड़ते हुए बोला____"होगी भी कैसे? उसे तो तेरा मोटा लंड मिल रहा था। बुरचोदी बड़े मज़े से तुझसे चुदवाती थी। मैंने और मेरे बापू ने लोगों से सुना तो था पर यकीन नहीं था कि दादा ठाकुर का पूत मेरे ही घर की इज्ज़त को इस तरह लूट सकता है। एक दिन जब मैंने अपनी आंखों से देख लिया तो यकीन करना ही पड़ा। रजनी पर गुस्सा तो बहुत आया था मुझे, जी किया कि जान से मार दूं उसे लेकिन फिर सोचा कि क्यों न उसी के हाथों उसके यार को मरवाया जाए। मैंने एक दिन धर लिया उसे और उससे खुल कर पूछा। पहले तो साली मुकर रही थी और कह रही थी कि मैं बेवजह ही अपनी बीवी पर ऐसा घटिया आरोप लगा रहा हूं। फिर जब मैंने तबीयत से उसको कूटना शुरू किया तो जल्दी ही क़बूल कर लिया उसने। तब मैंने कहा कि अब वो वही करे जो मैं कहूं, अगर उसने ऐसा नहीं किया तो मैं उसे बेइज्ज़त कर के घर से निकाल दूंगा। उसके मायके में भी सबको बता दूंगा कि वो पूरे गांव के मर्दों का बिस्तर गरम करती है। मेरी इस धमकी से वो डर गई थी इस लिए उसने वो सब कुछ करना मंज़ूर कर लिया जो करने के लिए मैं उसे बोल रहा था।"

"अपनी बीवी के हाथों।" मैंने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा____"तू किस तरह मुझे मरवा देना चाहता था?"

"तू जब अपनी हवस मिटाने के लिए मेरे घर आता।" रघुवीर ने नफ़रत से कहा____"तो वो मेरे कहे अनुसार तेज़ धार वाले खंज़र से तेरा गला चीर देती। उसके बाद मैं तेरी लाश को सबकी नज़रों से छुपा कर कहीं दफ़ना देता।"

"वाह! बहुत खूब।" मैं उसकी बात सुन कर हल्के से मुस्कुराया, फिर बोला____"अगर तेरा यही मंसूबा था तो फिर तूने अपने इस मंसूबे को पूरा क्यों नहीं किया?"

"हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे कि ऐसा कुछ करने का मौका ही नहीं मिल सका मुझे।" रघुवीर ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा____"दूसरी बात ये भी कि उसके बाद से तू भी मेरे घर नहीं आया। मैं तो हर रोज़ तेरे आने की राह देखता था। इधर हालात कुछ ऐसे हो गए कि तू अपने बाप चाचा और भाई के साथ किसी और ही काम में उलझ गया। इसी बीच मुझे और बापू को एक और बात पता चली।"

"कौन सी बात?" मेरे माथे पर शिकन उभरी।
"मेरा मंसूबा पूरा नहीं हो पा रहा था इस लिए मैं बेहद गुस्से में था।" रघुवीर ने कहा____"और इसी गुस्से में मैंने एक दिन रजनी को फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसके मुख से अंजाने में ही कुछ ऐसा निकल गया जो मेरी कल्पनाओं में भी नहीं था।"

"क्या मतलब??" मैं पूछे बग़ैर न रह सका____"ऐसा क्या निकल गया था तेरी बीवी के मुख से?"

"शायद वो मेरे द्वारा बेमतलब कूटे जाने से गुस्से में आ गई थी।" रघुवीर ने कहा____"इसी लिए उसने गुस्से में मुझसे कहा कि मैं सिर्फ उसे ही क्यों मार रहा हूं जबकि मेरी मां के भी तो तेरे साथ उसी के जैसे संबंध हैं। रजनी के मुख से ये सुन कर मैं एकदम से सुन्न सा पड़ गया था। मुझे लगा वो मेरी मां पर झूठा इल्ज़ाम लगा रही है इस लिए मैंने गुस्से में उसे फिर से कूटना शुरू कर दिया तो उसने कहा कि अगर मुझे यकीन नहीं है तो मैं खुद जा कर अपनी मां से इस बारे में पूछ लूं।"

"तो फिर तुमने अपनी मां से पूछा?" रघुवीर एकदम से चुप हो गया तो मैंने उत्सुकतावश उससे पूछ ही लिया।

"हिम्मत तो नहीं पड़ रही थी लेकिन मेरे अंदर गुस्सा भी था इस लिए जैसे ही मां गांव से आई तो मैंने उससे पूछ लिया।" रघुवीर ने कहा____"पहले तो मां मेरे मुख से ऐसी बातें सुन कर गुस्सा होते हुए मुझ पर खूब चिल्लाई मगर जब मैंने दहाड़ते हुए उसको मारने दौड़ा तो वो डर गई। ऊपर से रजनी भी आ गई और मेरे सामने ही मां को बताने लगी कि उसे सब पता है कि कैसे वो तेरे साथ अकेले में गुलछर्रे उड़ाती है। रजनी की बात सुन कर मां से कुछ कहते ना बन पड़ा था। मैं समझ गया कि रजनी मां के बारे में सच बोल रही है। मुझे इतना ज़्यादा गुस्सा आया कि मैं मां को मारने के लिए दौड़ पड़ा उसकी तरफ मगर तभी बापू की आवाज़ सुन कर रुक गया।"

"यानि इस सबकी वजह से तेरे बाप को भी सब पता चल गया?" मैंने पूछा तो उसने कहा____"उन्हें ये सब पहले से ही पता था किंतु ये बात उनके लिए भी हैरान कर देने वाली थी कि उनकी बूढ़ी बीवी ने अपने बेटे समान लड़के से यानि तुझसे ऐसा गंदा संबंध बनाया हुआ है। उस दिन बापू का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया और फिर उनके अंदर वर्षों से जो कुछ दबा हुआ था वो सब गुस्से में निकल गया।"

"ऐसा क्या था तेरे बाप के अंदर?" मैंने भारी उत्सुकता के साथ पूछा____"जो वर्षों से दबा हुआ था?"

"उस दिन उन्हीं के मुख से मुझे पता चला कि मेरी मां का हवेली से बहुत पुराना संबंध रहा है।" रघुवीर ने कहा____"बड़े दादा ठाकुर अपने मुंशी यानि मेरे बाप की बीवी को अपनी रखैल बनाए हुए थे।"

रघुवीर के मुख से ये सुनते ही मेरे पिछवाड़े से धरती गायब हो गई। साला मुंशी की बीवी प्रभा तो छुपी रुस्तम थी। मेरे दादा जी यानी बड़े दादा ठाकुर की रखैल थी वो और उनके बाद उनके पोते यानि मेरे साथ मज़े कर रही थी। मेरा तो ये सोचते ही सिर चकराने लगा था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि क्या प्रभा के ऐसे संबंध मेरे अपने पिता से भी हो सकते हैं? इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझरी सी पैदा कर दी। मुझे अपने पिता पर यकीन तो नहीं हुआ मगर ये सब सुन कर यही लगने लगा कि कुछ भी हो सकता है।

"ये तो बड़े ही आश्चर्य की बात है।" फिर मैंने रघुवीर से कहा____"लेकिन ये समझ नहीं आया कि जब तेरे बाप को अपनी बीवी के बारे में पहले से ही सब पता था तो वो इतने वर्षों से चुप क्यों था? क्या तेरे बाप का खून इतने वर्षों में कभी नहीं खौला?"

"उस दिन गुस्से में मैंने भी बापू से यही सब कहा था।" रघुवीर ने कहा____"जवाब में बापू ने यही कहा कि वो कुछ नहीं कर सकते थे। असल में बापू का ब्याह बड़े दादा ठाकुर ने ही मां से करवाया था। जब बापू को बड़े दादा ठाकुर के साथ अपनी बीवी के संबंधों का पता चला तो वो बहुत ख़फा हुए थे मां से। पूछने पर मां ने बताया था कि बड़े दादा ठाकुर से उनके संबंध तब से हैं जब उनका बापू से ब्याह भी नहीं हुआ था। मैंने भी लोगों से ही सुना था कि बड़े दादा ठाकुर ऐसे ही ठरकी आदमी थे। उन्हें जो भी लड़की या औरत पसंद आ जाती थी उसे वो फ़ौरन ही अपने हरम में पेश करवा लेते थे। दूर दूर तक के लोगों में उनका ख़ौफ था इस लिए कोई उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ जा भी नहीं सकता था। यही वजह थी कि मेरे बापू कभी इस बारे में कुछ नहीं कर सके थे। जब बड़े दादा ठाकुर की मृत्यु हुई तब मेरे बापू ये सोच कर खुश हुए थे कि ऊपर वाले ने उनकी सुन ली और बड़े दादा ठाकुर जैसे पापी को उसके अपराध के चलते मौत मिल गई। बड़े दादा ठाकुर के बाद तेरे पिता दादा ठाकुर बन कर गद्दी पर बैठे। दादा ठाकुर के बारे में बापू बचपन से जानते थे इस लिए उन्होंने ये सोच कर कभी बदला लेने का नहीं सोचा कि वो अपने पिता के जैसे नहीं हैं। बस उसके बाद वो हमेशा शांत ही रहे और दादा ठाकुर की सेवा करते रहे मगर उस दिन जब उन्हें पता चला कि बड़े दादा ठाकुर के बाद बड़े दादा ठाकुर के पोते ने उनकी बीवी को अपनी हवस का शिकार बना लिया है तो उनके पुराने ज़ख्म फिर से ताज़ा हो गए।"

"वाह! काफी दिलचस्प कहानी है।" मैंने कहा____"मगर इस कहानी से मैं बस यही समझा हूं कि तेरा बापू एक नंबर का चूतिया और डरपोक आदमी था। बड़ी हैरत की बात है कि उसे अपनी बीवी के बारे में शुरू से सब पता था इसके बावजूद कभी उसका खून नहीं खौला। बड़े दादा ठाकुर के ख़ौफ ने उसके खून को पानी बना के रख दिया था। चलो मान लिया कि वो बड़े दादा ठाकुर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था मगर क्या वो अपनी बीवी का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता था? अरे! ऐसी बेवफ़ा बीवी को कभी भी वो ज़हर दे कर मार सकता था मगर नहीं उसने सब कुछ सह लिया और वर्षों तक कायरों का तमगा लिए घूमता रहा। ख़ैर, तो उस दिन तेरे बापू का पानी बना खून फिर से खून में तब्दील हुआ जिस दिन उसे ये पता चला कि उसकी बीवी ही नहीं बल्कि उसकी बहू भी मेरे साथ मज़े कर रही है?"

"हां।" रघुवीर ने जैसे क़बूल किया____"हम दोनों बाप बेटे इस सबसे बहुत दुखी थे। ये कैसी अजीब बात थी कि हम दोनों बाप बेटे की बीवियां तेरे साथ संबंध बनाए हुए थीं और हम नामर्द से बन गए थे। उसी दिन मैंने और बापू ने मिल कर ये फ़ैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए इसका बदला हम ले कर रहेंगे।"

अभी मैं रघुवीर की बात सुन कर उससे कुछ कहने ही वाला था कि तभी एक तरफ से अजीब सी आवाज़ हुई जिसे सुन कर मैं चौंक पड़ा। पलट कर मैंने दूर दूर तक अंधेरे में नज़र दौड़ाई मगर अंधेरे में कुछ समझ नहीं आया। मैंने गौर किया कि आवाज़ स्वाभाविक रूप से नहीं हुई थी। मैं एकदम से सतर्क हो गया। वैसे भी इस समय हालात अच्छे नहीं थे। मैंने रघुवीर को छोड़ा और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी कनपटी के खास हिस्से पर कर दिया। रघुवीर के मुख से घुटी घुटी सी चीख निकली और अगले कुछ ही पलों में वो अपने होश खोता चला गया। उसके बेहोश होते ही मैंने उसके जिस्म को उठा कर अपने कंधे पर डाला और अंधेरे में एक तरफ को बढ़ता चला गया।

✮✮✮✮

कुसुम अपनी भाभी के बिस्तर पर गहरी नींद में सो ही रही थी कि तभी किसी के द्वारा ज़ोर ज़ोर से हिलाए जाने पर उसकी आंख खुल गई। वो हड़बड़ा कर उठी और फिर बदहवास हालत में उसने इधर उधर देखा तो जल्दी ही उसकी नज़र अपने एकदम पास झुकी रागिनी पर पड़ी।

"भ...भाभी आप?" कुसुम एकदम से चौंकते हुए बोली____"क्या हुआ, आप इस तरह खड़ी क्यों हैं? सोई नहीं आप?"

"नींद ही नहीं आ रही थी मुझे।" रागिनी ने बुझे मन से कहा____"इस लिए तुम्हें सोता देख मैं कमरे से बाहर चली गई थी। बाहर गई तो मेरे मन में वैभव का ख़याल आ गया। वो पहले भी बहुत देर तक मेरे पास ही सिरहाने पर बैठा हुआ था। उसे भी नींद नहीं आ रही थी। मैंने उसे आराम करने के लिए भेजा था तो सोचा देखूं वो आराम कर रहा है या अभी भी जाग रहा है? जब मैं उसके कमरे में पहुंची तो देखा वहां उसके कमरे में बिस्तर पर विभोर सो रहा था जबकि वैभव नहीं था?"

"क...क्या???" कुसुम अपनी भाभी की बात सुन कर बुरी तरह चौंकी____"ये क्या कह रही हैं आप? वैभव भैया अपने कमरे में नहीं थे?"

"हां कुसुम।" रागिनी ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"वो अपने कमरे में नहीं था। अब तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वो हवेली से चला गया है, शायद मेरी शर्त पूरी करने।"

"श...शर्त...पूरी करने???" कुसुम का जैसे दिमाग़ ही चकरा गया____"ये सब आप क्या कह रही हैं भाभी? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"

रागिनी ने संक्षेप में कुसुम को वो बातें बता दी जो उसकी और वैभव के बीच हुईं थी। सारी बातें सुन का कुसुम के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं।

"अब क्या होगा भाभी?" कुसुम घबराए हुए भाव से बोली____"कहीं वैभव भैया सच में ही न आपकी शर्त पूरी करने चले गए हों मगर उन्हें रात के इस वक्त हवेली से बाहर नहीं जाना चाहिए था।"

"यही तो मैं भी सोच रही हूं कुसुम।" रागिनी ने चिंतित और परेशान भाव से कहा____"उसे मेरी शर्त को पूरा करने के लिए इस तरह का पागलपन नहीं दिखाना चाहिए था। अगर उसे कुछ हो गया तो उसकी ज़िम्मेदार मैं ही तो होऊंगी। अगर हवेली में किसी को इस बारे में पता चला तो कोई भी मुझे माफ़ नहीं करेगा। कोई क्या मैं ख़ुद अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगी।"

कहने के साथ ही रागिनी की आंखें छलक पड़ीं। ये देख कुसुम झट से उठी और रागिनी को बिस्तर पर बैठा कर उसे दिलासा देने लगी।

"शांत हो जाइए भाभी।" फिर उसने कहा____"वैभव भैया को कुछ नहीं होगा। भगवान इतना भी बेरहम नहीं हो सकता कि वो हम सबको एक ही दिन में इतना सारा दुख दे दे।"

"कौन भगवान? कैसा भगवान कुसुम?" रागिनी ने हताश भाव से कहा____"नहीं, कहीं कोई भगवान नहीं है। सब झूठ है। ये सब लोगों का फैलाया हुआ अंधविश्वास है। अगर सच में कहीं भगवान होता तो अपने होने का कोई तो सबूत देता। जब से मैंने होश सम्हाला है तब से उसकी पूजा आराधना करती आई हूं मगर क्या किया भगवान ने? नहीं कुसुम, सच तो यही है कि इस दुनिया में भगवान जैसा कुछ है ही नहीं। आज मैं भी एक वादा करती हूं कि अगर इस भगवान ने वैभव के साथ कुछ भी बुरा किया तो मैं अपने हाथों से हवेली में मौजूद भगवान की हर मूर्ति को उठा कर हवेली से बाहर फेंक दूंगी।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" रागिनी की बातें सुन कर कुसुम के समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, बोली____"आपकी ज़ुबान पर इतनी कठोर बातें ज़रा भी अच्छी नहीं लगती। यकीन कीजिए वैभव भैया के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा। अब चलिए आराम कीजिए आप।"

कुसुम ने ज़ोर दे कर रागिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद किनारे पर बैठी जाने किन ख़यालों में खो गई। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन कमरे के अंदर मौजूद दो इंसानों के अंदर जैसे कोई आंधी सी चल रही थी।



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Sahukaro ko ek sath marna chahiye tha na ki aise murkhon ki tarah :sigh:
Kher budhaau sathiya gaya he to kya he expect kare
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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अध्याय - 71
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"ऐसा मत कहिए भाभी।" रागिनी की बातें सुन कर कुसुम के समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई, बोली____"आपकी ज़ुबान पर इतनी कठोर बातें ज़रा भी अच्छी नहीं लगती। यकीन कीजिए वैभव भैया के साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा। अब चलिए आराम कीजिए आप।"

कुसुम ने ज़ोर दे कर रागिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद किनारे पर बैठी जाने किन ख़यालों में खो गई। पूरी हवेली में सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन कमरे के अंदर मौजूद दो इंसानों के अंदर जैसे कोई आंधी सी चल रही थी।

अब आगे....


जगन हल्के अंधेरे में बढ़ता ही चला जा रहा था। आसमान में काले बादल न होते तो कदाचित इतना अंधेरा न होता क्योंकि थोड़ा सा ही सही मगर आसमान में चांद ज़रूर था जिसकी रोशनी अंधेरे को दूर कर देती थी। कुछ देर पहले उसने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी। गोली चलने की आवाज़ से वो डर तो गया था लेकिन सफ़ेदपोश के हुकुम का पालन करना उसके लिए हर कीमत पर अनिवार्य था। जिस तरफ उसने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी उसी तरफ वो बढ़ चला था। अभी कुछ ही देर पहले उसे ऐसा लगा था जैसे कुछ दूरी पर दो लोग बातें कर रहे हैं। रात के सन्नाटे में उसे आवाज़ें साफ सुनाई दी थीं इस लिए वो तेज़ी से उस तरफ बढ़ता चला गया था मगर फिर अचानक से आवाज़ें आनी बंद हो गईं।

आसमान में मौजूद चांद के वजूद से थोड़ी देर के लिए बादल हटे तो रोशनी में उसने दो सायों को देखा। इसके पहले वो क़दम दर क़दम चल रहा था किंतु अब उसने दौड़ लगा दी थी। उसके हाथ में पिस्तौल थी इस लिए उसे किसी का डर नहीं लग रहा था। जल्दी ही वो उन सायों के क़रीब पहुंच गया और अगले ही पल वो ये देख कर चौंका कि वो असल में एक ही साया था। जगन ने स्पष्ट देखा कि साया अपनी पीठ पर कोई भारी चीज़ को ले रखा था और बड़े तेज़ क़दमों से आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। ये देख जगन और भी तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ने लगा। अचानक ही अंधेरा हो गया, जाहिर है काले बादलों ने फिर से थोड़े से चमकते चांद को ढंक लिया था।

जगन दौड़ते दौड़ते बुरी तरह हांफने लगा था। जैसे ही अंधेरा हुआ तो उसे वो साया दिखना बंद हो गया। इसके बावजूद वो आगे बढ़ता रहा। कुछ ही देर में उसे आस पास कई सारे पेड़ नज़र आने लगे। उसने एक जगह रुक कर इधर उधर निगाह दौड़ाई मगर वो साया उसे कहीं नज़र न आया। जगन एकदम से बेचैन और परेशान हो गया। हाथ में पिस्तौल लिए अभी वो परेशानी की हालत में इधर उधर देख ही रहा था कि अचानक वो एक तरफ हुई आहट से बुरी तरह चौंका। मारे घबराहट के उसने एकदम से उस तरफ हाथ कर के गोली चला दी। गोली चलने की तेज़ आवाज़ से फिज़ा गूंज उठी और खुद जगन भी बुरी तरह खौफ़जदा हो गया। उधर गोली चलने पर आवाज़ तो हुई मगर उसके अलावा कोई प्रतिक्रिया ना हुई। ये देख वो और भी परेशान हो गया।

जगन अपनी समझ में बेहद चौकन्ना था जबकि असल में वो घबराहट की वजह से घूम घूम कर इधर उधर नज़रें दौड़ा रहा था। इतना तो वो समझ गया था कि वो साया यहीं कहीं है। उसे डर भी था कि कहीं वो उसे कोई नुकसान न पहुंचा दे किंतु फिर वो ये सोच कर खुद को तसल्ली दे लेता था कि उसके पास पिस्तौल है। अभी वो ये सोच ही रहा था कि तभी एक तरफ से गोली चलने की तेज़ आवाज़ गूंजी और इसके साथ ही उसके हलक से दर्द भरी चीख वातावरण में गूंज उठी। गोली उसकी कलाई में लगी थी जिससे उसके हाथ से पिस्तौल छूट कर कच्ची ज़मीन पर ही कहीं छिटक कर गिर गई थी। वो दर्द से बुरी तरह चिल्लाने लगा था।

"मादरचोद कौन है जिसने मुझे गोली मार दी?" वो दर्द में गुस्सा हो कर चिल्लाया___"सामने आ हरामजादे।"

"ये तो कमाल ही हो गया जगन काका।" जगन की आवाज़ सुन कर मैं बड़ा हैरान हुआ था। मेरी समझ में तो वो हवेली के बाहर वाले एक कमरे में क़ैद था। बहरहाल मैं एक पेड़ से बाहर निकल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला____"बल्कि कमाल ही नहीं, ये तो चमत्कार ही हो गया। तुम तो हवेली के एक कमरे में क़ैद थे न, फिर यहां कैसे टपक पड़े?"

मुझे एकदम से अपने सामने आ गया देख जगन की नानी ही नहीं बल्कि उसका पूरा का पूरा खानदान ही मर गया। वो अपनी कलाई को थामें दर्द से कराह रहा था। मैं एकदम से किसी जिन्न की तरह उसके सामने आ कर खड़ा हो गया।

"तुमने जवाब नहीं दिया काका?" मैंने क़रीब से उसकी आंखों में देखते हुए पूछा____"हवेली से बाहर कैसे निकले और यहां कैसे टपक पड़े?"

"व...व....वो मैं।" जगन बुरी तरह हकलाया, उससे आगे कुछ बोला ना गया।
"अभी तो बड़ा गला फाड़ कर गाली दे रहे थे तुम।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"अब क्या हुआ?"

मेरी बात सुन कर जगन मुझसे नज़रें चुराने लगा। उसका जिस्म जूड़ी के मरीज़ की तरह कांपने लगा था। उधर उसकी कलाई में जहां पर गोली लगी थी वहां से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था।

"मादरचोद बोल वरना इस बार तेरी गांड़ में गोली मारूंगा।" उसे कुछ न बोलता देख मैं गुस्से से दहाड़ उठा____"हवेली के कमरे से बाहर कैसे निकला तू और यहां कैसे पहुंचा?"

"म...म...माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" जगन एकदम से मेरे पैरों में गिर पड़ा, फिर गिड़गिड़ाते हुए बोला___"बहुत बड़ी ग़लती हो गई मुझसे।"

"मैंने जो पूछा उसका जवाब दे बेटीचोद।" मैंने गुस्से में उसको एक लात मारी तो वो पीछे उलट गया। फिर किसी तरह वो सम्हल कर उठा और बोला____"मुझको सफ़ेदपोश ने हवेली के कमरे से बाहर निकाला है छोटे ठाकुर और यहां भी मैं उसके ही कहने पर आया हूं।"

"स..सफ़ेदपोश???" मैं जगन के मुख से ये सुन कर बुरी तरह चकरा गया, फिर बोला____"वो वहां कैसे पहुंचा? सब कुछ बता मुझे।"

"म..मुझे कुछ नहीं पता छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"मैं तो उस कमरे में ही क़ैद था। अचानक ही दरवाज़ा खुला तो मैं ये देख कर घबरा गया कि हाथ में मशाल लिए सफ़ेदपोश कैसे आ गया? उसने अपनी अजीब सी आवाज़ में मुझे कमरे से बाहर निकल कर अपने साथ चलने को कहा तो मैं चल पड़ा। आख़िर अपनी जान मुझे भी तो प्यारी थी छोटे ठाकुर। सुबह दादा ठाकुर मुझे मौत की सज़ा देने वाले थे। जब सफ़ेदपोश ने मुझे अपने साथ चलने को कहा तो मैं समझ गया कि वो मुझे बचाने आया है। बस, यही सोच कर मैं उसके साथ वहां से निकल आया।"

"तो यहां उसी ने भेजा है तुझे?" मैं अभी भी ये सोच कर हैरान था कि सफ़ेदपोश हवेली में इतने दरबानों की मौजूदगी में जगन को निकाल ले गया था, बोला____"तुझे कैसे पता कि मैं यहां मिलूंगा तुझे?"

"मुझे नहीं पता छोटे ठाकुर।" जगन ने कहा____"वो तो सफ़ेदपोश ने मुझसे कहा कि आप मुझे यहीं कहीं मिल सकते हैं।"

कहने के साथ ही जगन ने सारी बात मुझे बता दी। मैं ये जान कर चौंका कि सफ़ेदपोश ने जगन को मुझे जान से मारने के लिए भेजा था। मेरे लिए ये बड़े ही हैरत की बात थी कि सफ़ेदपोश को इतना कुछ कैसे पता रहता है? आख़िर है कौन ये सफ़ेदपोश? क्या दुश्मनी है इसकी हमसे?

"उस दिन तो तुझे बड़ा अपने किए पर पछतावा हो रह था।" मैंने गुस्से से बोला____"और अब फिर से वही कर्म करने चल पड़ा है जिसके लिए तू दादा ठाकुर से रहम की भीख मांग रहा था। पर शायद तेरा कसूर नहीं है जगन काका। असल में तेरी किस्मत में मेरे हाथों मरना ही लिखा था। तभी तो घूम फिर कर तू इस तरीके से मेरे सामने आ गया। तुझ जैसे इंसान को अब जीने का कोई हक़ नहीं है।"

"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" जगन ने रोते हुए मेरे पैर पकड़ लिए, बोला____"सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया था। तुम कहो तो मैं उसे ही जान से मार दूं?"

"तेरे जैसे लतखोर जो बात बात पर नामर्दों की तरह पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगते हैं।" मैंने रिवॉल्वर को उसके माथे पर लगाते हुए कहा____"वो सफ़ेदपोश जैसे शातिर इंसान का क्या ही उखाड़ लेंगे। तूने निर्दोष मुरारी काका की हत्या कर के उसके परिवार को अनाथ कर दिया है इस लिए अब तू भी उन्हीं के पास जा। शायद वो ही तुझे माफ़ कर दें.....अलविदा।"

कहने के साथ ही मैंने ट्रिगर दबा दिया। फिज़ा में गोली चलने की आवाज़ गूंजी और साथ ही जगन की जीवन लीला समाप्त हो गई। उसकी लाश को वहीं छोड़ मैं पलटा और उस तरफ चल पड़ा जिधर मैंने रघुवीर को रखा था। कुछ ही पलों में मैं उस पेड़ के पीछे पहुंच गया मगर अगले ही पल मैं ये देख कर चौंका कि वहां से रघुवीर गायब है। मैंने तो उसे बेहोश कर दिया था, फिर वो होश में कैसे आया? मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से ये सवाल तांडव सा करने लगा।

अंधेरे में मैं उसे खोजने लगा। रघुवीर का मिलना मेरे लिए बहुत ज़रूरी था। अगर वो हाथ से निकल गया तो बहुत बड़ी मुसीबत का सबब बन सकता था वो। इधर उधर खोजते हुए मैं सोचने लगा कि आख़िर कहां गया होगा वो? क्या सच में उसे होश आ गया रहा होगा या कोई और ही ले गया उसे? किसी और का सोचते ही मैं एकदम से परेशान हो गया। तभी बादलों ने चांद को आज़ाद किया तो थोड़ी रोशनी फैली जिससे दूर मुझे एक साया नज़र आया। उसे देख मैं तेज़ी से उस तरफ दौड़ पड़ा। कुछ ही देर में मैं उसके क़रीब पहुंच गया।

रघुवीर को मैंने उसकी जांघ पर गोली मारी थी इस लिए वो लंगड़ा कर चल रहा था। दर्द की वजह से वो ज़्यादा तेज़ नहीं चल पा रहा था। पीछे से किसी के आने की आहट सुन वो बुरी तरह उछल पड़ा और लड़खड़ा कर वहीं गिर गया।

"आज तो चमत्कार ही चमत्कार देखने को मिल रहे हैं भाई।" उसके सामने पहुंचते ही मैं बोला____"पहले जगन का हवेली के कमरे से बाहर आना ही नहीं बल्कि यहां मुझ तक पहुंच भी जाना और दूसरा तेरा होश में आ जाना। कमाल ही हो गया न? बहरहाल ये तो बता, तू इतना जल्दी होश में कैसे आया?"

"गोली चलने की आवाज़ से होश आया मुझे।" रघुवीर बोला____"जब मैंने देखा कि तुम जगन से बातें करने में व्यस्त हो तो मैं चुपके से खिसक गया।"

"बड़ा बेवफ़ा है यार तू।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अपने दुश्मन को अकेला ही छोड़ कर चला जा रहा था?"

रघुवीर मेरी बात सुन कर कुछ न बोला। बस कसमसा कर रह गया था। उसकी कसमसाहट पर मेरी मुस्कान और भी गहरी हो गई मगर फिर अचानक ही मुझे उसके किए गए कर्म याद आ गए जिसके चलते मेरे अंदर उसके प्रति गुस्सा उभर आया।

"आगे की कहानी सुनने के लिए ना तो अभी वक्त है और ना ही ये कोई माकूल जगह है।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"इस लिए तुझे एक बार फिर से बेहोशी की गहरी नींद में जाना होगा।"

इससे पहले कि रघुवीर मेरी बात सुन कर कुछ कर पाता मैंने बिजली की सी तेज़ी से रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी कनपटी पर कर दिया। वातावरण में उसकी घुटी घुटी सी चीख गूंजी और इसके साथ ही वो बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया।

✮✮✮✮

"छ...छोटे कुंवर आप यहां??" भुवन ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो बाहर अंधेरे में मुझे देख कर चौंकते हुए बोल पड़ा था____"ऐसे हालात में आपको इस तरह कहीं नहीं घूमना चाहिए।"

"हां मुझे पता है।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"अच्छा ये बताओ कि तुम अपने घर क्यों नहीं गए? बाकी लोग तो थे ही यहां पर।"

"आपने ही तो कहा था कि मैं मुरारी के घर वालों की सुरक्षा व्यवस्था का ख़याल रखूं।" भुवन ने कहा____"आज कल जिस तरह के हालात हैं उससे मैं नावाकिफ नहीं हूं। यही सोच कर मैं पिछले कुछ दिनों से रात में भी यहीं रुकता हूं और एक दो बार मुरारी के घर का चक्कर भी लगा आता हूं।"

"ये सब तो ठीक है भुवन।" मैं भुवन के इस काम से और उसकी ईमानदारी से मन ही मन बेहद प्रभावित हुआ, बोला____"लेकिन तुम्हें ख़ुद का भी तो ख़याल रखना चाहिए। आख़िर हालात तो तुम्हारे लिए भी ठीक नहीं हैं। मेरे दुश्मनों को भी पता ही होगा कि तुम मेरे आदमी हो और मेरे कहने पर कुछ भी कर सकते हो। ऐसे में वो तुम्हारी जान के भी दुश्मन बन जाएंगे।"

"मैं किसी बात से नहीं डरता छोटे कुंवर।" भुवन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ख़ास कर किसी होनी या अनहोनी से तो बिल्कुल भी नहीं। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि जीवन में जिसके साथ जो भी होना लिखा है उसे कोई चाह कर भी मिटा नहीं सकता। ख़ैर आप बताइए इस वक्त मेरे लिए क्या हुकुम है?"

"कोई ख़ास बात नहीं है।" मैंने कहा____"बस एक दुश्मन मेरे हाथ लगा है तो मैं चाहता हूं कि आज रात भर के लिए उसे यहां पर रख दूं। कल दिन में मैं उसे ले जाऊंगा यहां से।"

"जैसी आपकी इच्छा।" भुवन ने कहा____"वैसे कौन है वो?"
"रघुवीर सिंह।" मैंने कहा____"मुंशी चंद्रकांत का बेटा।"

"क...क्या???" भुवन उछल ही पड़ा, बोला____"तो क्या वो भी इस सब में शामिल है? हे भगवान! ये सब क्या हो रहा है?"

"ज़्यादा मत सोचो।" मैंने कहा____"उसको यहां पर बाकी लोगों की नज़रों से छुपा कर ही रखना है। मैं नहीं चाहता कि बेवजह कोई तमाशा हो जाए और बाकी लोग घबरा जाएं।"

मेरी बात सुन कर भुवन ने सिर हिलाया और फिर मेरे कहने पर उसने रघुवीर को उठा कर मेरे नए बन रहे मकान के उस हिस्से में ले जा कर बंद कर दिया जिसे बाकी लोगों से छुपा कर बनवाया था मैंने। उसके बाद मैं और भुवन बाहर आ गए।

"क्या अब आप हवेली जा रहे हैं?" भुवन ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए पूछा तो मैंने कहा____"हां, हवेली जाना ज़रूरी है। वैसे भी पिता जी और बाकी लोग बाहर गए हुए हैं तो ऐसे में मेरा हवेली में रहना ज़रूरी है।"

"पर मैं रात के इस वक्त आपको अकेले नहीं जाने दूंगा।" भुवन ने चिंतित भाव से कहा____"मैं भी आपके साथ चलूंगा।"

"अरे! तुम मेरी फ़िक्र मत करो यार।" मैंने कहा____"मुझे किसी से कोई ख़तरा नहीं है और अगर है भी तो कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"

"अगर बात दिन की होती तो कोई बात नहीं थी छोटे कुंवर।" भुवन ने कहा____"मगर ये रात का वक्त है। आसमान में बादल छाए हुए हैं जिसकी वजह से अंधेरा भी है। ऐसे में दुश्मन कहीं भी घात लगाए बैठा हो सकता है। इस लिए मेरी बात मानिए इस वक्त अकेले मत जाइए।"

"यहां भी तुम्हारे लिए रहना ज़रूरी है।" मैंने कहा____"दुश्मन कहीं भी घात लगाए बैठा हो सकता है। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता कि रघुवीर के साथ कोई अनहोनी हो जाए। उससे अभी बहुत कुछ जानना बाकी है।"

"उसकी आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए छोटे कुंवर।" भुवन ने पूरे आत्म विश्वास के साथ कहा____"उस तक कोई नहीं पहुंच पाएगा। मैं जानता हूं कि आपका हवेली में जाना ज़रूरी है इस लिए मैं आपको रोकूंगा नहीं किंतु अकेले जाने भी नहीं दूंगा। भगवान के लिए मेरी बात मान जाइए।"

"अच्छा ठीक है।" भुवन के ज़ोर देने पर आख़िर मुझे मानना ही पड़ा____"तुम भी चलो मेरे साथ किंतु किसी और को भी साथ ले लो वरना वापसी में तुम अकेले हो जाओगे। मैं भी तो नहीं चाहता कि तुम्हें कुछ हो जाए।"

भुवन मेरी बात मान गया। वो अंदर गया और एक आदमी को जगा कर ले आया। भुवन के कहने पर उस आदमी ने पानी से अपना चेहरा धोया ताकि उसका आलस और नींद दूर हो जाए। उसके बाद भुवन मोटर साईकिल ले कर चल पड़ा। उसने मोटर साइकिल को स्टार्ट नहीं किया था बल्कि उसे पैदल ही ठेलते हुए ले चला। मेरे पूछने पर उसने बताया कि ऐसा वो सावधानी के तौर पर कर रहा है। मुझे उसकी समझदारी पर बड़ा फक्र हुआ। क़रीब आधा किलो मीटर पैदल आने के बाद उसने मुझे मोटर साइकिल पर बैठाया और फिर मेरे पीछे एक दूसरा आदमी बैठा। उसके बाद भुवन ने मोटर साइकिल को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।

भुवन मेरा सबसे वफ़ादार आदमी था। वो मेरे लिए खुशी से अपनी जान दे सकता था। एक साल पहले मैंने उस पर एक उपकार किया था। उसकी बीवी बहुत ज़्यादा बीमार थी और वो उस वक्त शहर में उसका इलाज़ करवा रहा था। डॉक्टर के अनुसार उसकी बीवी को कोई ऐसी बीमारी थी जिसके लिए ज़्यादा रूपये लगने थे। भुवन के पास जो भी पैसा था वो पहले ही उसकी बीवी के इलाज़ में ख़र्च हो गया था। ये एक इत्तेफ़ाक ही था कि उसी समय मैं अपने दोस्त सुनील के साथ उस अस्पताल में गया हुआ था। भुवन की नज़र जब मुझ पर पड़ी तो वो दौड़ते हुए मेरे पास आया और मुझसे अपनी बीवी के इलाज़ के लिए पैसे मांगने लगा। मैं भुवन को जानता था क्योंकि वो हमारी ही ज़मीनों पर काम किया करता था। वो जिस तरह से रो रो कर पैसे के लिए मुझसे मिन्नतें कर रहा था उसे देख मैंने फ़ौरन ही उसे नोटों की एक गड्डी थमा दी थी और कहा था कि अगर और पैसों की ज़रूरत पड़े तो वो बेझिझक मुझसे मांग ले। बस, इतना ही उपकार किया था मैंने उसके ऊपर और कमबख़्त उसी उपकार के लिए उसने ख़ुद को मेरा कर्ज़दार मान लिया था। बाद में मैंने उसको बोला भी था कि उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए पर वो नहीं माना और बोला कि अब से वो मेरे लिए कुछ भी करेगा।

कुछ ही देर में भुवन की मोटर साईकिल हवेली पहुंच गई। रास्ते में कहीं कोई परेशानी जैसी बात नहीं हुई थी। मैं जब नीचे उतर कर हवेली के मुख्य दरवाज़े की तरफ जाने लगा तो भुवन जल्दी से मेरे पीछे आया और मुझे रुकने को बोला।

"एक बात कहना चाहता हूं आपसे।" भुवन ने भारी झिझक के साथ कहा____"मैं जानता हूं कि उसके लिए ये समय सही नहीं है फिर भी कहना चाहता हूं।"

"कोई बात नहीं भुवन।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा___"तुम बेझिझक कहो, क्या कहना चाहते हो?"

"मुझे लगता है कि मुरारी की बेटी अनुराधा के मन में आपके लिए प्रेम जैसी भावना है।" भुवन ने झिझकते हुए कहा___"मैं जानता हूं कि वो अभी नादान और नासमझ है और आपसे उसका कोई मेल भी नहीं है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप उसे किसी भ्रम में मत रखिएगा। उस मासूम को मैंने दिल से अपनी छोटी बहन मान लिया है। अगर उसे किसी तरह की दुख तकलीफ़ हुई तो मुझे भी होगी। इस लिए....।"

"फ़िक्र मत करो भुवन।" मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा____"तुमसे कहीं ज़्यादा मुझे उसके दुख तकलीफ़ की फ़िक्र है। अगर नहीं होती तो तुम्हें उसकी और उसके परिवार की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी न देता।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद छोटे कुंवर।" भुवन ने खुश हो कर कहा____"अच्छा अब मैं चलता हूं, नमस्कार।"

उसके जाने के बाद मैं भी आगे बढ़ चला। ज़हन में भुवन की ही बातें गूंज रहीं थी। ख़ैर, मुख्य द्वार पर मौजूद दरबानों ने मुझे देखते ही दरवाज़ा खोल दिया। मैं अंदर दाखिल हो कर जैसे ही बैठक के पास पहुंचा तो नाना जी और भैया के चाचा ससुर मुझे देखते ही खड़े हो गए।

"आ गया मेरा बच्चा।" नाना जी ने नम आंखों से देखते हुए मुझसे कहा____"बिना किसी को बताए कहां चले गए थे तुम? तुम्हें पता है हम सब यहां कितना घबरा गए थे?"

"चिंता मत कीजिए नाना जी।" मैंने कहा____"मैं ठीक हूं और जहां भी गया था कुछ न कुछ कर के ही आया हूं।"

"क...क्या मतलब??" नाना जी के साथ साथ बाकी लोग भी चौंके____"ऐसा क्या कर के आए हो तुम और तुम्हारे पिता जी लोग मिले क्या तुम्हें?"

उनके पूछने पर मैंने उन्हें आराम करने को कहा और इस बारे में कल बात करने का बोल कर अंदर चला गया। असल में मैं किसी को इस वक्त परेशान नहीं करना चाहता था। ये अलग बात है कि वो फिर भी परेशान ही नज़र आए थे। इधर मैं दो बातें सोचते हुए अंदर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। एक ये कि कल का दिन नरसिंहपुर के लिए कैसा होगा और दूसरी ये कि भुवन ने अनुराधा के संबंध में जो कुछ कहा था क्या वो सच था?



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Continue.....

अध्याय - 72
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उनके पूछने पर मैंने उन्हें आराम करने को कहा और इस बारे में कल बात करने का बोल कर अंदर चला गया। असल में मैं किसी को इस वक्त परेशान नहीं करना चाहता था। ये अलग बात है कि वो फिर भी परेशान ही नज़र आए थे। इधर मैं दो बातें सोचते हुए अंदर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। एक ये कि कल का दिन नरसिंहपुर के लिए कैसा होगा और दूसरी ये कि भुवन ने अनुराधा के संबंध में जो कुछ कहा था क्या वो सच था?


अब आगे....


पता नहीं रात का वो कौन सा पहर था किंतु मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी। मैं अपने कमरे में बिस्तर पर विभोर के बगल से लेटा हुआ था। विभोर गहरी नींद में था। तभी गहन सन्नाटे में कहीं दूर से उठता शोर सुनाई दिया। मेरे कान एकदम से उस शोर को ध्यान से सुनने के लिए मानों खड़े हो गए। जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि वो शोर असल में कुछ लोगों के रोने धोने का है। मुझे समझते देर न लगी कि पिता जी जिस काम से इतने लोगों के साथ गए थे वो काम कर आए हैं। ये उसी का नतीजा था कि इतने वक्त बाद ये रोने धोने का शोर ख़ामोश वातावरण में गूंजने लगा था। अचानक ही मेरे ज़हन में कुछ सवाल उभर आए और उनके साथ ही कुछ ख़याल भी जिन्होंने मुझे थोड़ा विचलित सा कर दिया।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। रात के इस वक्त किसी दस्तक से मैं एकदम से सतर्क हो गया। बिस्तर से मैं बहुत ही सावधानी से उतरा और दबे पांव दरवाज़े के पास पहुंचा। कुंडी खोल कर जब मैंने दरवाज़ा खोला तो बाहर पिता जी को खड़े पाया।

"बैठक में आओ।" पिता जी ने सपाट लहजे में कहा____"कुछ बात करनी है तुमसे।"
"जी ठीक है।" मैंने कहा तो वो पलट कर चल दिए।

कुछ ही देर में मैं बैठक में पहुंच गया जहां पर बाकी सब लोग भी बैठे हुए थे। हवेली में जो लोग सो रहे थे वो जाग चुके थे, सिवाय अजीत और विभोर के।

"हमारी इजाज़त के बिना।" पिता जी ने सख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और बिना किसी को बताए आख़िर तुम हवेली से बाहर क्यों गए थे?"

"आप यहां थे नहीं इस लिए आपसे इजाज़त ले नहीं सका।" मैंने बेख़ौफ भाव से कहा____"और यहां किसी को बताता तो कोई मुझे बाहर जाने ही नहीं देता। अब क्योंकि मेरे लिए बाहर जाना ज़रूरी था इस लिए चला गया।"

"वैभव।" नाना जी ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"ये क्या तरीका है अपने पिता से बात करने का?"
"आप ही बताइए नाना जी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"कि ये सब बताने के लिए मुझे कौन सा तरीका अपनाना चाहिए था?"

"हमें तो ख़बर मिली थी कि तुम पहले से काफी बदल गए हो।" नाना जी ने उसी नाराज़गी से कहा____"लेकिन तुम तो अभी भी वैसे ही हो। ख़ैर क्या कह सकते हैं हम।"

"आख़िर कब तुम अपनी मनमानियां करना बंद करोगे?" पिता जी ने गुस्से से कहा____"क्या चाहते हो तुम? हम सबको ज़िंदा मार देना चाहते हो?"

"शांत हो जाइए ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"ये समय इन सब बातों का नहीं है।"
"अरे! कैसे नहीं है अर्जुन सिंह?" पिता जी ने कहा____"हम अपने दो जिगर के टुकड़ों को खो चुके हैं और ये जिस तरीके से यहां से बिना किसी को बताए चला गया था अगर इसे कुछ हो जाता तो? क्या फिर हम ज़िंदा रह पाते?"

"मैं समझता हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने पिता जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"किंतु ये अच्छी बात है न कि वैभव के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ। हम उम्मीद करते हैं कि अब से ये ऐसा नहीं करेगा।" कहने के साथ ही अर्जुन सिंह मुझसे मुखातिब हुए____"हम ठीक कह रहे हैं न वैभव बेटा?"

"जी चाचा जी।" मैंने सिर झुकाते हुए कहा____"और मैं माफ़ी चाहता हूं आप सबसे अपने बर्ताव के लिए। मैं जानता हूं कि मुझे इस तरह बाहर नहीं जाना चाहिए था किंतु उस वक्त मेरी भी मानसिक अवस्था ऐसी थी कि मुझे कुछ और सूझा ही नहीं। जब मुझे पता चला कि मेरे पिता जी रात के वक्त आप सबको ले कर चले गए हैं तो मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया था कि कहीं आप में से किसी के साथ कुछ हो न जाए। मैं अपने चाचा और बड़े भैया को खो चुका हूं चाचा जी, और अब मैं अपने पिता जी को नहीं खोना चाहता। मेरे अकेले चले जाने पर तो इन्होंने कह दिया कि मुझे कुछ हो जाता तो क्या होता लेकिन क्या आप में से किसी ने ये सोचा कि अगर मेरे पिता जी को कुछ हो जाता तो हम सबका क्या होता?"

मेरी ये बात सुन कर किसी के मुख से कोई अल्फाज़ न निकला। बात छोटे मुंह से भले ही निकली थी लेकिन थी बड़ी।

"आप सब तो मुझसे बड़े हैं।" मैंने सबको ख़ामोश देख कहा____"फिर भी किसी ने ये नहीं सोचा कि रात के वक्त इस तरह से हुजूम ले कर निकल पड़ना भला कौन सी समझदारी की बात थी? हमारा समय बहुत ख़राब चल रहा है चाचा जी। हमें नहीं पता कि हमारा कौन कौन दुश्मन है और कहां कहां से हम पर घात लगाए बैठा है? जगताप चाचा और बड़े भैया तो दिन के समय ढेर सारे आदमियों के साथ निकले थे इसके बावजूद दुश्मनों ने उन सबकी हत्या कर दी। जब दिन के समय वो लोग अपना बचाव नहीं कर पाए तो क्या रात के वक्त आप लोग अपना बचाव कर पाते?"

"पर हमारे साथ कुछ हुआ तो नहीं वैभव।" अर्जुन सिंह ने ये कहा तो मैंने कहा____"कुछ हुआ नहीं तो इसका एक ही मतलब है चाचा जी कि आप सबकी किस्मत अच्छी थी। हालाकि अमर मामा जी को गोली तो लग ही गई न। अगर वही गोली पिता जी के सीने में लग जाती तो क्या होता? समय जब ख़राब होता है तो कुछ भी अच्छा नहीं होता। मैं आपसे पूछता हूं कि अगर आप सब यही काफ़िला दिन में ले कर जाते तो क्या बिगड़ जाता? क्या हमारा दुश्मन रात में ही कहीं भाग जाता और आप लोग उसे पकड़ नहीं पाते?"

"शायद तुम सही कह रहे हो वैभव।" अर्जुन सिंह ने गहरी सांस ले कर कहा____"रात के वक्त हमारा यहां से जाना वाकई में सही फ़ैसला नहीं था। ख़ैर छोड़ो, जो हुआ सो हुआ। अच्छी बात यही हुई कि हमने अपने दुश्मन को नेस्तनाबूत कर दिया है।"

"क...क्या सच में??" मैं उनकी बात सुनते ही हैरानी से बोल पड़ा____"कौंन लोग थे वो?"
"और कौन हो सकते हैं?" अर्जुन सिंह ने कहा____"वही थे तुम्हारे गांव के साले वो साहूकार लोग। सबके सब मारे गए, बस दो ही लोग बच गए।"

"बहुत जल्द उनको भी मौत नसीब हो जाएगी अर्जुन सिंह।" पिता जी ने सहसा सर्द लहजे में कहा____"बच कर जाएंगे कहां?"

"जो लोग मुझे मारने के लिए चंदनपुर गए थे।" मैंने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"उनमें से एक को पकड़ा था मैंने। उसने मुझे बताया था कि उन लोगों को मुझे जान से मारने के लिए साहूकार गौरी शंकर ने भेजा था।"

"और ये तुम अब बता रहे हो हमें?" पिता जी ने मुझे घूरते हुए कहा____"इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो तुम?"

"बताने का समय ही कहां मिला था पिता जी।" मैंने कहा____"मैं तो चंदनपुर से तब आया जब जगताप चाचा और बड़े भैया की दुश्मनों ने हत्या कर दी थी।"

"गौरी शंकर और वो हरि शंकर का बेटा रूपचंद्र बच गए हैं।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर कोई बात नहीं, जल्द ही उनका भी किस्सा ख़त्म हो जाएगा।"

"क्या उन दोनों को भी जान से मार देना सही होगा?" नाना जी ने कहा____"हमारा ख़याल है कि उन्हें कोई दूसरी सज़ा दे कर जीवित ही छोड़ देना चाहिए। वैसे भी उनके घर की बहू बेटियों को सहारा देने के लिए उनके घर में किसी न किसी मर्द का होना आवश्यक है।"

"उनके घर की बहू बेटियों को शायद पता चल गया है कि उनके घर के मर्द अब नहीं रहे।" मामा जी ने कहा____"ये रोने धोने का शोर शायद वहीं से आ रहा है?"

"हां हो सकता है।" अर्जुन सिंह ने कहा।
"वैसे मुझे भी कुछ ऐसा पता चला है।" मैंने कहा____"जिसकी आप लोग शायद कल्पना भी नहीं कर सकते।"

"क...क्या पता चला है तुम्हें?" पिता जी ने मेरी तरफ उत्सुकता से देखा।
"हमारे दुश्मनों की सूची में सिर्फ साहूकार लोग ही नहीं हैं पिता जी।" मैंने कहा____"बल्कि आपका मुंशी चंद्रकांत और उसका बेटा रघुवीर भी है।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" पिता जी के साथ साथ सभी के चेहरों पर आश्चर्य उभर आया।
"यही सच है पिता जी।" मैंने कहा____"मुंशी और उसका बेटा रघुवीर दोनों ही हमारे दुश्मन बने हुए हैं।"

"पर तुम्हें ये सब कैसे पता चला?" अर्जुन सिंह ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए पूछा।

"जब मैं यहां से आपके पीछे गया था।" मैंने कहा____"तो रास्ते में मुझे एक साया भागता हुआ अंधेरे में नज़र आया। मैंने उस पर रिवॉल्वर तान कर जब उसे रुकने को कहा तो उल्टा उसने मुझ पर ही गोली चला दी। वो तो अच्छा हुआ कि गोली मुझे नहीं लगी मगर फिर मैंने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया। आख़िर वो मेरी पकड़ में आ ही गया और तब मैंने जाना कि वो असल में मुंशी का बेटा रघुवीर है।"

"वो दोनो बाप बेटे।" अर्जुन सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"भला किस वजह से ऐसी दुश्मनी रखे हो सकते हैं?"
"बड़े दादा ठाकुर जी की वजह से।" मैंने कुछ सोचते हुए पिता जी की तरफ देखा____"शायद आप समझ गए होंगे पिता जी।"

"हैरत की बात है।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"अगर वो दोनों हमारे स्वर्गीय पिता जी की वजह से हमसे दुश्मनी रखे हुए हैं तो उन्होंने अपनी दुश्मनी के चलते हमारे साथ कुछ भी बुरा करने के लिए इतना समय क्यों लिया? हमें आशंका तो थी लेकिन यकीन नहीं कर पा रहे थे। ऐसा इस लिए क्योंकि हमने कभी भी ऐसा महसूस नहीं किया कि चंद्रकांत के मन में हमारे प्रति कोई बैर भाव है।"

"कुछ लोग अपने अंदर के भावों को छुपाए रखने में बहुत ही कुशल होते हैं ठाकुर साहब।" मामा अवधराज जी ने कहा____"जब तक वो ख़ुद नहीं चाहते तब तक किसी को उनके अंदर की बातों का पता ही नहीं चल सकता।"

"हम्म सही कह रहे हैं आप।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ख़ैर रात काफी हो गई है। आप सभी को अब आराम से सो जाना चाहिए। इस बारे में बाकी बातें कल पंचायत में होंगी।"

पिता जी के कहने पर सभी ने सहमति में अपना अपना सिर हिलाया और फिर पिता जी के उठते ही बाकी सब भी उठ गए। कुछ ही देर में बैठक कक्ष खाली हो गया। इधर मैं भी ऊपर अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेट गया।

✮✮✮✮

अगले दिन।
हवेली के विशाल मैदान में लोगों की अच्छी खासी भीड़ थी। वातावरण में लोगों का शोर गूंज रहा था।। भीड़ में साहूकारों के घरों की बहू बेटियां भी मौजूद थीं जो दुख में डूबी आंसू बहा रहीं थी। लगभग पूरा गांव ही हवेली के उस बड़े से मैदान में इकट्ठा हो गया था। एक तरफ ऊंचा मंच बना हुआ था जिसमें कई सारी कुर्सियां रखी हुई थीं और उन सबके बीच में एक बड़ी सी कुर्सी थी जिसमें दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मंच में रखी बाकी कुर्सियों में नाना जी, मामा जी, भैया के साले, और अर्जुन सिंह बैठे हुए थे। मंच के सामने लोगों की भीड़ थी और भीड़ के आगे साहूकारों के घरों की बहू बेटियां खड़ी हुई थीं। मंच के सामने ही एक तरफ मुंशी चंद्रकांत और उसका बेटा खड़ा हुआ था। दोनों ही बाप बेटों के सिर झुके हुए थे। उनके दूसरी तरफ मैं खड़ा हुआ था। सुरक्षा का ख़याल रखते हुए हर जगह क‌ई संख्या में हमारे आदमी हाथों में बंदूक लिए खड़े थे और साथ ही पूरी तरह सतर्क भी थे।

भीड़ में ही आगे तरफ मुरारी और जगन के घरों से उनकी बीवियां और बच्चे थे। अपनी मां और छोटे भाई अनूप के साथ अनुराधा भी आई हुई थी जिनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भुवन के कंधों पर थी। वो ख़ुद भी उनके पास ही खड़ा था। ऐसे संवेदनशील वक्त में ना चाहते हुए भी मेरी नज़र अनुराधा की तरफ बारहा चली जाती थी और हर बार मैं ये देख कर विचलित सा हो जाता था कि उसकी नज़रें मुझ पर ही जमी होती थीं। मेरा ख़याल था कि वो पहली बार ही हवेली आई थी। बहरहाल, सरोज के बगल से जगन की बीवी गोमती और उसके सभी बच्चे खड़े हुए थे। गोमती और उसकी बेटियों की आंखों में आसूं थे।

वातावरण में एक अजीब सी सनसनी फैली हुई थी। तभी हवेली के हाथी दरवाज़े से दो जीपें अंदर आईं और एक तरफ आ कर रुक गईं। उन दो जीपों से कुछ लोग नीचे उतरे और भीड़ को चीरते हुए मंच की तरफ आ गए। उन्हें देखते ही मंच पर अपनी कुर्सी में बैठे मेरे पिता जी उठ कर खड़े हो गए।

"नमस्कार ठाकुर साहब।" आए हुए एक प्रभावशाली व्यक्ति ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा तो पिता जी ने भी जवाब में उनका अभिवादन किया। कुछ मुलाजिमों ने फ़ौरन ही पिता जी के इशारे पर कुछ और कुर्सियां ला कर मंच पर रख दी। मेरे पिता जी के आग्रह पर वो सब बैठ गए।

"पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ है।" दादा ठाकुर ने अपनी कुर्सी से खड़े हो कर अपनी भारी आवाज़ में कहा____"और पिछली रात जो कुछ हुआ है उससे दूर दूर तक के गांव वालों को पता चल चुका है कि वो सब कुछ हमसे ताल्लुक रखता है। यूं तो आस पास के कई सारे गावों के मामलों के फ़ैसले हम ही करते आए हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ है उसका फ़ैसला आज हम ख़ुद नहीं करेंगे। ऐसा इस लिए क्योंकि हम नहीं चाहते कि कोई भी व्यक्ति हमारे फ़ैसले को ग़लत माने या उस पर अपनी ग़लत धारणा बना ले, या फिर ये समझ ले कि हमने अपनी ताक़त और पहुंच का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है। इस लिए हमने सुंदरगढ़ से ठाकुर महेंद्र सिंह जी को यहां आमंत्रित किया है। हम यहां पर मौजूद हर ब्यक्ति से यही कहना चाहते हैं कि ठाकुर महेंद्र सिंह जी हर पक्ष के लोगों की बातें सुनेंगे और फिर उसके बारे में अपना निष्पक्ष फ़ैसला सुनाएंगे। हम लोगों के सामने ये वचन देते हैं कि अगर इस मामले में हम गुनहगार अथवा अपराधी क़रार दिए गए तो फ़ैसले के अनुसार जो भी सज़ा हमें दी जाएगी उसे हम तहे दिल से स्वीकार करेंगे। अब हम आप सभी से जानना चाहते हैं कि क्या आप सब हमारी इस सोच और बातों से सहमत हैं?"

दादा ठाकुर के ऐसा कहते ही विशाल मैदान में मौजूद जनसमूह ने एक साथ चिल्ला कर कहा कि हां हां हमें मंज़ूर है। जनसमूह में से ज़्यादातर ऐसी आवाज़ें भी सुनाई दीं जिनमें ये कहा गया कि दादा ठाकुर हमें आपकी सत्यता और निष्ठा पर पूरा भरोसा है इस लिए आप ख़ुद ही इस मामले का फ़ैसला कीजिए। ख़ैर दादा ठाकुर ने ऐसी आवाज़ों को सुन कर इतना ही कहा कि फिलहाल वो ख़ुद एक मुजरिम की श्रेणी में हैं इस लिए इस मामले में फ़ैसला करने का हक़ वो ख़ुद नहीं रखते।

इतना कह कर पिता जी ने ठाकुर महेन्द्र सिंह जी को अपनी कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया तो वो थोड़े संकोच के साथ आए और बैठ ग‌ए। उनके बैठने के बाद पिता जी मंच से नीचे उतर आए। ये देख कर लोग हाय तौबा करने लगे जिन्हें देख पिता जी ने सबको शांत रहने को कहा।

"इस मामले से जुड़े सभी लोग सामने आ जाएं।" पिता जी की कुर्सी पर बैठे ठाकुर महेंद्र सिंह ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"और एक एक कर के अपना पक्ष रखें।"

महेंद्र सिंह जी की बात सुन कर साहूकारों के घरों की औरतें थोड़ा आगे आ गईं। उनको देख जहां सरोज और गोमती भी आगे आ गईं वहीं मुंशी और उसका बेटा भी दो क़दम आगे आ गया।

"ठाकुर साहब।" मणि शंकर की बीवी फूलवती देवी ने दुखी भाव से कहा____"सबसे ज़्यादा बुरा हमारे साथ हुआ है। हमारे घर के मर्दों और बच्चों को रात के अंधेरे में गोलियों से भून दिया दादा ठाकुर ने। अब आप ही बताइए कि हमारा क्या होगा? हम सब तो विधवा हुईं ही हमारे साथ हमारी जो बहुएं थी वो भी विधवा हो गईं। इतना ही नहीं हमारी बेटियां अनाथ हो गईं। हम अकेली औरतें भला इस दुख से कैसे उबर सकेंगी और कैसे अपने साथ साथ अपनी अविवाहित बेटियों के जीवन का फ़ैसला कर पाएंगी?"

"ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"इस बारे में आप क्या कहना चाहते हैं? इतना ही नहीं, इनके घरों के मर्द और बच्चों की इस तरह से हुई हत्या के लिए क्या आप खुद को कसूरवार मानते हैं?"

"बेशक कसूरवार मानते हैं।" पिता जी ने बेबाक लहजे में सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि वो सब अपनी मौत के लिए ख़ुद ही ज़िम्मेदार थे। उन्हें अपने किए गए कर्मों का फल मिला है।"

"कैसे?" महेंद्र सिंह ने सवालिया भाव से उन्हें देखते हुए पूछा____"इस मामले में क्या आप सबको खुल कर तथा विस्तार से बताएंगे कि उन्हें उनके कौन से कर्मों का फल दिया है आपने?"

"उन्होंने हमारे छोटे भाई जगताप और हमारे बड़े बेटे अभिनव सिंह के साथ जाने कितने ही लोगों की हत्या की थी।" पिता जी ने कहा____"इतना ही नहीं उन्होंने हमारे छोटे बेटे वैभव को भी जान से मारने की कोशिश की थी जिसके लिए वो चंदनपुर तक पहुंच गए थे।"

"क्या आपके पास।" महेंद्र सिंह ने पूछा____"इन बातों को साबित करने के लिए कोई ठोस प्रमाण है?"

"बिल्कुल है।" पिता जी ने मुंशी चंद्रकांत और उसके बेटे रघुवीर की तरफ इशारा करते हुए कहा____"ये दोनों पिता पुत्र खुद हमारी बात का प्रमाण देंगे। ये दोनों खुद इस बात को साबित करेंगे। अगर ये कहा जाए तो बिल्कुल भी ग़लत न होगा कि ये दोनों खुद भी साहूकारों के साथ मिले हुए थे और गहरी साज़िश रच कर हमारे जिगर के टुकड़ों की हत्या की।"

पिता जी की इस बात को सुनते ही जहां भीड़ में खड़े लोगों में खुसुर फुसुर होने लगी वहीं फूलवती और उसके घरों की बाकी बहू बेटियां हैरत से उन्हें देखने लगीं थी।

"ठाकुर साहब ने जो कुछ कहा।" महेंद्र सिंह ने मुंशी की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या वो सच है? क्या आप दोनों क़बूल करते हैं कि आप दोनों साहूकारों से मिले हुए थे और उनके साथ मिल कर ही मझले ठाकुर जगताप सिंह और बड़े कुंवर अभिनव सिंह की हत्या की थी?"

"हां हां यही सच है ठाकुर साहब।" मुंशी हताश भाव से जैसे चीख ही पड़ा____"हम दोनों बाप बेटों ने साहूकारों के साथ मिल कर ही वो सब किया है लेकिन यकीन मानिए मुझे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है। अगर मेरा बस चले तो मैं इस हवेली में रहने वाले हर व्यक्ति को जान से मार डालूं। ख़ास कर इस लड़के को जिसका नाम वैभव सिंह है?"

"हम तुम्हारा इशारा अच्छी तरह समझ रहे हैं चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"लेकिन तुम्हें भी ये अच्छी तरह पता है कि ताली हमेशा दोनों हाथों से ही बजती है। कसूर सिर्फ एक हाथ का नहीं होता।"

"कहना बहुत आसान होता है ठाकुर साहब।" मुंशी चंद्रकांत ने फीकी सी मुस्कान होठों पर सजा कर कहा____"और सुनने में भी बड़ा अच्छा लगता है लेकिन असल ज़िंदगी में जब किसी के साथ ऐसी कोई बात होती है तो यकीन मानिए बहुत तकलीफ़ होती है। धीरे धीरे वो तकलीफ़ ऐसी हो जाती है कि नासूर ही बन जाती है। एक पल के लिए भी वो इंसान को चैन से जीने नहीं देती।"

"चलो मान लिया हमने।" पिता जी ने कहा____"मान लिया हमने कि बेहद तकलीफ़ होती है लेकिन जिसने तुम्हें तकलीफ़ दी थी सज़ा भी सिर्फ उसी को देनी चाहिए थी ना। हमारे भाई जगताप और बेटे अभिनव का क्या कसूर था जिसके लिए तुमने साहूकारों के साथ मिल कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया?"

"आपने भी सुना ही होगा ठाकुर साहब।" मुंशी चंद्रकांत ने कहा____"कि गेंहू के साथ हमेशा घुन भी पिस जाता है। मझले ठाकुर और बड़े कुंवर की मौत घुन की तरह पिस जाने जैसी ही थी।"

"हम इस मामले से संबंधित सारी बातें विस्तार से जानना चाहते हैं।" महेंद्र सिंह जी ने ऊंची आवाज़ में मुंशी की तरफ देखते हुए कहा____"इस लिए सबके सामने थोड़ा ऊंची आवाज़ में बताओ कि जो कुछ भी आप दोनों पिता पुत्र ने किया है उसे कैसे और किस किस के सहयोग से अंजाम दिया है?"

"असल में ये रंजिश और ये दुश्मनी बहुत पुरानी है ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने गहरी सांस लेने के बाद कहा____"बड़े दादा ठाकुर के समय की रंजिश है ये। उन्होंने जो कुछ किया था उसका बदला उनके ज़िंदा रहते कोई भी होता तो लेने का सोच ही नहीं सकता था। मैं भी नहीं सोच सका, बस अंदर ही अंदर घुटता रहा। कुछ सालों बाद वो अचानक से बीमार पड़ गए और फिर ऐसा बीमार पड़े कि शहर के बड़े से बड़े चिकित्सक भी उनका इलाज़ नहीं कर पाए। अंततः बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई। उनकी ऐसी मृत्यु हो जाने के बारे में कोई कुछ भी सोचे लेकिन मैं तो यही समझता आया हूं कि उन्हें अपने पाप कर्मों की ही सज़ा इस तरह से मिल गई थी। बहरहाल, जिनसे मैं बदला लेना चाहता था वो ईश्वर के घर पहुंच गया था। मैंने भी ये सोच कर खुद को समझा लिया था कि चलो कोई बात नहीं। उसके बाद ठाकुर प्रताप सिंह जी ने दादा ठाकुर की गद्दी सम्हाल ली। शुकर था कि ये अपने पिता के जैसे नहीं थे। मैं खुद भी इन्हें बचपन से जानता था। ख़ैर उसके बाद आगे चल कर इनके द्वारा कभी कुछ भी बुरा अथवा ग़लत नहीं हुआ तो मैंने सोचा काश! इस दुनिया का हर इंसान इनके जैसा ही हो जाए। कहने का मतलब ये कि जब इनके द्वारा किसी के साथ बुरा नहीं हुआ तो मैं भी सब कुछ भुला कर पूरी ईमानदारी से हवेली की सेवा में लग गया था। वक्त गुज़रता रहा, फिर एक दिन मुझे पता चला कि वर्षों पुराना किस्सा फिर से दोहराया जा रहा है और वो किस्सा पुराने वाले किस्से से भी कहीं ज़्यादा बढ़ चढ़ कर दोहराया जा रहा है। जिन ज़ख्मों को मैंने किसी तरह मरहम लगा कर दिल में ही कहीं दफ़न कर दिया था वो ज़ख्म गड़े हुए मुर्दे की मानिंद दिल की कब्र से निकल आए। पहले बड़े दादा ठाकुर थे इस लिए उनके ख़ौफ के चलते मैं कुछ न कर सका था लेकिन इस बार मैं ख़ुद ही किसी तरह से ख़ुद को समझाना नहीं चाहता था। सोच लिया कि अब चाहे जो हो जाए लेकिन उस इंसान का नामो निशान मिटा कर ही रहूंगा जिसने बड़े दादा ठाकुर का किस्सा दोहराने की हिमाकत ही नहीं की बल्कि पाप किया है।"

"गुस्से में इंसान बहुत कुछ सोच लेता है लेकिन जब दिमाग़ थोड़ा शांत होता है तो वैसा कर लेना आसान नहीं लगता।" सांस लेने के बाद मुंशी ने फिर से बोलना शुरू किया____"यही हाल हम दोनों बाप बेटे का था। वैभव सिंह दादा ठाकुर का बेटा था जोकि पूरा का पूरा अपने दादा पर गया था। वही ग़ुस्सा, वही अंदाज़ और वही हवसीपन। छोटी सी उमर में ही दूर दूर तक उसके नाम का डंका ही नहीं बज रहा था बल्कि उसका ख़ौफ भी फैल रहा था। मैंने गुप्त रूप से पता किया तो पाया कि इसकी पहुंच भी कम नहीं है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इसके इशारे पर कुछ भी कर गुज़रने को तैयार हैं। हम दोनों चिंता में पड़ गए कि आख़िर अब करें तो करें क्या? अचानक ही मुझे साहूकारों का ख़याल आया और बस मैंने उनसे मिल जाने का मन बना लिया।"

"उनसे कैसे मिल ग‌ए तुम?" पिता जी ने पूछा____"क्या तुम्हें पहले से पता था कि वो हमारे खिलाफ़ ग़लत करने का इरादा रखते हैं?"

"बिल्कुल पता था ठाकुर साहब।" मुंशी चंद्रकांत ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"सच तो ये है कि वो बहुत पहले से मुझे अपनी तरफ मिलाने की पहल कर रहे थे। वो तो मैं ही उनकी बात नहीं मान रहा था क्योंकि मैं आपसे गद्दारी करने का ख़याल भी ज़हन में नहीं लाता था। यही वजह थी कि साहूकारों से मेरी हमेशा अनबन ही रहती थी मगर मैं ये कल्पना भी नहीं कर सकता था कि एक दिन मुझे उन्हीं साहूकारों से मदद लेनी पड़ जाएगी। बहरहाल, ये तो जग ज़ाहिर बात है कि इंसान किसी के सामने तभी झुकता है जब या तो वो झुकने के लिए मजबूर हो या फिर उसे उसकी कोई ज़रूरत हो। मैं भी खुशी से झुक गया लेकिन इसके लिए पहल मैं ख़ुद नहीं करना चाहता था। असल में मैं चाहता था कि हमेशा की तरह साहूकार एक बार फिर से मेरे पास अपना इरादा ले कर आएं। मैं नहीं चाहता था कि वो ये समझने लगें कि मैं उनके बिना कुछ कर ही नहीं सकता। ख़ैर, काफी लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ा मुझे। एक दिन मणि शंकर से अचानक ही मुलाक़ात हो गई। पहले तो हमेशा की तरह औपचारिक बातें ही हुईं। उसके बाद उसने फिर से अपना इरादा मेरे सामने ज़ाहिर कर दिया और साथ ही प्रलोभन भी दिया कि इस सबके बाद वो और मैं मिल कर एक नए युग की शुरुआत करेंगे। थोड़ी ना नुकुर के बाद आख़िर मैं मान ही गया।"

"साहूकार लोग तुमसे क्या चाहते थे?" चंद्रकांत सांस लेने के लिए रुका तो पिता जी ने पूछा।

"सबसे पहले तो यही कि आपके और उनके बीच के संबंध बेहतर हो जाएं और दोनों परिवार पूरी सहजता के साथ एक दूसरे के यहां आने जाने लगें।" चंद्रकांत ने कहा____"संबंध सुधार लेने का एक कारण ये भी था कि मणि शंकर अपने भतीजे रूपचंद्र के लिए आपकी भतीजी कुसुम का हाथ मांगना चाहता था। उसने मुझे बताया था कि कुसुम के साथ रूपचंद्र का ब्याह कर के वो इससे बहुत कुछ लाभ लेना चाहता था।"

"किस तरह का लाभ?" पिता जी पूछे बगैर न रह सके।
"इस मामले में ठीक से कुछ नहीं बताया था उसने।" चंद्रकांत ने कहा____"दूसरी वजह थी आपके दोनों बेटों को बदनाम कर देना। ज़ाहिर है इसके लिए वो कोई भी हथकंडा अपना सकता था। तीसरी वजह थी ज़मीनों के कागज़ात जोकि मेरे द्वारा चाहता था वो।"

"ज़मीनों के कागज़ात क्यों चाहिए थे उसे?" पिता जी के चेहरे पर हैरानी उभर आई थी।
"ज़ाहिर है आपकी ज़मीनों को हथिया लेना चाहते थे वो।" मुंशी ने कहा____"हालाकि ये इतना आसान नहीं था लेकिन उसके अपने तरीके थे शायद। वैसे भी उसका असल मकसद तो यही था आपके पूरे खानदान को मिटाना। जब आपके खानदान में कोई बचता ही नहीं तो लावारिश ज़मीन को कब्ज़ा लेने में ज़्यादा समस्या नहीं हो सकती थी।"

"ख़ैर।" पिता जी ने गहरी सांस ली____"उसके बाद तुम दोनों ने मिल कर क्या क्या किया?"
"उसका और मेरा क्योंकि एक ही मकसद था इस लिए मैंने उसे ये बताया ही नहीं कि असल में मेरी आपसे या आपके परिवार के किसी सदस्य से क्या दुश्मनी है?" मुंशी ने कहा____"सिर्फ़ इतना ही कहा कि बदले में ज़मीन का कुछ हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए।"


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Kahani ke andar bhi kahaniyan he :reading:
Munshi ki kahani ek tarah se sab na sahi par kafi kuchh keh rhi he.
Par hume naqabeaale ka yaani Gaurishankar ka intezar he.
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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romanchak update ..gaurishankar ne sahi kaha ki wo ab jyada bachke bhag nahi sakte ,kabhi na kabhi dada thakur ke aadmi unko dhund hi lenge .jab insan kamjor ho jaaye tab usko apne pariwar ki chinta satane lagti hai aur yahi gaurishankar ke saath hua ,ab sirf 2 log hi bache hai jo mukabla nahi kar sakte aur rupchand ko sahukaro ka vansh aage badhane ke liye jinda bhi rehna hai ,ghar ki aurto ka bhi khayal rakhna hai yahi sab sochkar surrender kar diya shera ke saamne .

waise gauri shankar ke mooh se sach sunkar sahukaro ki aurto ka haal kharab hona hi tha .
eklauti behan ke saath huye atyachar ka badla lene ke liye itne saal intejar kiya jabki dada thakur apne baap ke bure karmo ki maafi bhi maang chuke the sahukaro se .

gauri shankar ka kehna hai ki dada thakur ne narsanhar karke galat kiya par mujhe lagta hai wo apne bete aur bhai ke maut ka badla le rahe the ..
aawesh ,dard me insan sab bhul jata hai .
par sahukaro ne to sab planning karne ke baad kiya jo unki galti jyada badi hai .

ab ye ek aur dhamaka ki safed posh ko koi nahi jaanta 🤔. ab ye kaun hai aur kya dushmani hai thakuro se pata nahi par munshi jyada hi khush ho gaya ye jaankar ki koi teesra bhi hai jo abhi bhi thakuro ko khatm karna chahta hai .
Sahukaro ke bare me itna hi kaha ja sakta hai ki jaisi karni waisi bharni....
Jis Insan ne apne pita ke gunaah ke liye varsho pahle maafi maangi thi wo ye kaise bardast kar leta ki iske bavjood koi unke pariwar ke kisi sadasya ko is tarah maar kar jeewit rah jaye?? Agar unhone kuch galat kiya hota to ek baar wo khud ko samjha bhi sakte the....well jo hona tha ho gaya..

Safedposh filhal ek mystery jaisa hai...samay aane par uska bhi pata chalega..
Munshi chup nahi baithega abhi...
 
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