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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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"कोई तो रोक लो" वो एक कहानी नहीं महागाथा है.......... जिसमें हर पात्र की अपनी कहानी है लेकिन वो सब कहीं किसी मोड पर एक दूसरे से जुडते जाते हैं.............. जितनी अब तक लिखी जा चुकी है उतने में ही लगभग 15-16 पात्रों की कहानियाँ लगभग सम्पूर्ण हो चुकी हैं........... और अभी पता नहीं कितने बाकी हैं...... मेंने अब तक गिनती नहीं की की उस कहानी में पात्रों की संख्या कितनी है लेकिन मेरे ख्याल से 100+ तो है ही
और Pritam.bs भाई का सबसे बड़ा कमाल ये है की हर पात्र को उन्होने अहमियत दी छोटे से छोटे, टॅक्सी वाले से लेकर बिज़नसमैन तक सबकी कहानियों को विस्तार से लिखा ......... अद्भुत और अविस्मरणीय

शुभम भाई TheBlackBlood की ही प्रसिद्ध कथा "एक नया संसार" पढ़िये...... इनकी और कहानियों को भूल जाएंगे ..... कहानी पूर्ण है..... उसका दूसरा भाग "कायाकल्प" लिखना चाहते थे शुभम भाई लेकिन कहीं कुछ रुकावट है

नीचे मेरे सिग्नेचर लिंक में जाकर हिन्दी अँग्रेजी की कुछ पूर्ण कहानियाँ पढ़ सकते हैं .... "हवेली", दिल अपना प्रीत पराई, Dreamer's Scribbings, The Cuckold Diet Challange और इनके अलावा मेरी अपनी कहानी "मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक" जिसका पहला खंड लगभग पूर्ण है सिर्फ एक समापन अध्याय लिखना है Swaraj भाई को भी पढ्ना बेहतरीन फॅमिली ड्रामा और रोमैन्स आधारित थ्रिल्लेर्स हैं उनके ..................... बहुत लेखक और कहानियाँ हैं जो चुदाई के कुएँ से निकालकर भावनाओं, रहस्य, रोमांच के समंदर में ले जाएंगे आपको
कभी मेरी इकलौती कहानी के लिए भी कुछ लिख दीजिए 😪
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अध्याय - 64
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....


जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।


✮✮✮✮

सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।


━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━


TheBlackBlood Shubham Bhai,

Sabse pehle to kahani ko restart karne ke liye aapka hardik abhinandan.........

Dono hi update behad emotional he..............Maa, Chachi Bhabhi Kusum in sabka dukh koi nahi baat sakta...............lekin samay sab zakham bhar deta he..........

Ye kaam kewal Saahukaro ke bas ka nahi he...............isme koi aur bhi shamil hoga............

Vaibhav aur Dada Thakur ka badla kese pura hoga............ye bhi ek dekhne wali baat hogi.............

Keep posting Bhai
 

Napster

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बहुत ही भावनिक अपडेट है भाई
ठाकूर परिवार पर पिछे से हमला कर बिल में छिपे साहुकारोंको बहार निकालने का जो तरीका वैभव ने सुझाया वो एकदम बराबर हैं
माँ, मेनका चाची, कुसुम और भाभी पर तो दुखों का पहाड ही तुट पडा
खासकर भाभी वो बेचारी तो पुरी तरह से तुट गयी
अब देखते हैं दादा ठाकूर और वैभव किस तरहा से सब परिस्थिती को संभालते हैं
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Riky007

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हमेशा की तरह उम्दा भाई जी, व्यथा लिखना, और ऐसे शब्दों में की समाज की एक एक सच्चाई बताई जाय। ओह सुंदर बहुत सुंदर...
 

Sanju@

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अध्याय - 64
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अब तक....


जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।


✮✮✮✮

सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।


━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
बहुत ही भावुक अपडेट है
इस हत्याकांड में साहूकार शामिल हैं लेकिन वे केवल मोहरे है इसका mastermind तो कोई और है और जिसने भी किया है वह दादा ठाकुर से 2 कदम आगे है इतना सब कुछ किया है तो उसने आगे क्या करना है ये भी सोचा होगा दादा ठाकुर और वैभव को अब ठंडे दिमाग से काम लेना होगा और अपने दुश्मन से 2 कदम आगे की सोच कर कदम बढ़ाना होगा
साहूकारों को बाहर निकालने के लिए वैभव ने जो सुझाव दिया है वह एक दम सही है देखते हैं कि साहूकार बाहर आते हैं या नही
खासकर भाभी बहुत दुखी है सारे घरवालों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है देखते हैं आगे क्या परिस्थितियां आती है
 

Sanju@

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कभी मेरी इकलौती कहानी के लिए भी कुछ लिख दीजिए 😪
अले अले रोये मत 🍭 इसको चूसता रह हम बाबा कामदेव को बोलते हैं कि तेरी कहानी के बारे में कुछ दो शब्द कहे 😆😆😆
 
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kamdev99008

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कभी मेरी इकलौती कहानी के लिए भी कुछ लिख दीजिए 😪
पूरे 5 शब्द लिख कर आया हूँ अभी ताजे-ताजे :D
 

avsji

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अध्याय - 64
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....


जाने कितनी ही देर तक मैं उनसे लिपटा रोता रहा और पिता जी मुझे खुद से छुपकाए रहे। उसके बाद मैं अलग हुआ तो अर्जुन सिंह ने मुझे एक कुर्सी पर बैठा दिया। तभी मेरे कानों में अंदर से आता रूदन सुनाई दिया। हवेली के अंदर एक बार फिर से चीखो पुकार मच गया था। मां, चाची, कुसुम के साथ अब भाभी का भी रूदन शुरू हो गया था। ये सब सुनते ही मेरा कलेजा फटने को आ गया। मेरी आंखें एक बार फिर से बरस पड़ीं थी।

अब आगे....


सारा दिन ऐसे ही मातम छाया रहा। समय के गुज़रने के साथ हवेली के अंदर मौजूद औरतों का रोना चिल्लाना तो बंद हो गया था लेकिन रह रह कर सिसकने की आवाज़ें आ ही जाती थीं। चंदनपुर से बड़े भैया अभिनव के ससुराल वाले भी आ गए थे। जिनमें वीरेंद्र के साथ चाचा ससुर बलभद्र सिंह और उनका बड़ा बेटा वीर सिंह था। ससुर जी यानी वीरभद्र सिंह को चलने फिरने में परेशानी होती थी इस लिए वो नहीं आए थे। हालाकि वो आने की ज़िद कर रहे थे लेकिन उनके छोटे भाई ने समझाया कि घर के बड़े होने के नाते उनका घर में भी रहना ज़रूरी है।

दूसरे गांव से पिता जी के जो कुछ मित्र आए थे वो बाद में आने का बोल कर चले गए थे किंतु अर्जुन सिंह पिता जी के साथ अब भी मौजूद थे। अर्जुन सिंह से पिता जी का गहरा नाता था इस लिए ऐसी परिस्थिति में वो मेरे पिता जी को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। पुलिस के आला अधिकारी कुछ समय बैठने के बाद जा चुके थे लेकिन ये भी कह गए थे कि जो कुछ भी हुआ है उसकी जांच पड़ताल करना अब पुलिस का काम है इस लिए हम में से कोई भी कानून को अपने हाथ में लेने का न सोचे।

"मालिक।" अभी हम सब सोचो में ही गुम थे कि तभी एक दरबान बैठक में आ कर अदब से बोला____"शेरा के साथ कुछ लोग आपसे मिलना चाहते हैं।"

दरबान की बात सुन कर पिता जी ने उन्हें अंदर भेजने को कहा तो दरबान सिर नवा कर चला गया। थोड़ी ही देर में शेरा और उसके साथ दो आदमी बैठक में दाखिल हुए जिनमें से एक मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भी था।

"क्या ख़बर है?" पिता जी ने सपाट लहजे में शेरा की तरफ देखते हुए पूछा।
"मालिक हमने हर जगह पता किया।" शेरा ने दबी हुई आवाज़ में कहा____"लेकिन साहूकारों में से किसी का भी कहीं कोई सुराग़ तक नहीं मिला।"

"उनके घरों में पता किया?" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"हो सकता है वो सब अपने घरों में ही चूहे की तरह बिल में घुसे बैठे हों।"

"उनके घरों में सिर्फ़ उनकी औरतें और लड़कियां ही हैं दादा ठाकुर।" रघुवीर ने कहा____"ना तो साहूकारों में से कोई है और ना ही उनके लड़के लोग। ऐसा लगता है जैसे वो जान बूझ कर कहीं चले गए हैं। ज़ाहिर है उन्हें इस बात का डर है कि वो सब आपके क़हर का शिकार हो जाएंगे।"

"सबके सब नामर्द हैं साले।" अर्जुन सिंह ने खीझते हुए कहा____"पीछे से वार करने वाले कायर हैं वो। अब जब सामने से भिड़ने का वक्त आया तो कुत्ते की तरह दुम दबा कर कहीं भाग गए हैं।"

"भाग कर जाएंगे कहां?" पिता जी ने गुस्से में कहते हुए शेरा की तरफ देखा____"आस पास के सभी गांवों में जा जा कर ये घोषणा कर दो कि जो कोई भी साहूकारों के बारे में हमें ख़बर देगा उसे हमारे द्वारा मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा और साथ ही ये ऐलान भी कर दो कि अगर किसी ने साहूकारों को पनाह दे कर उन्हें अपने यहां छुपाने की कोशिश की तो उसके पूरे खानदान को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"अगर आपकी इजाज़त हो तो कहूं?"
"क्या कहना चाहते हो?" पिता जी ने मेरी तरफ देखा।

"अगर साहूकारों को जल्द से जल्द पकड़ना है तो उसके लिए हमें ये सब ऐलान कराने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने संतुलित लहजे में कहा____"बल्कि हर तरफ सिर्फ इतना ही ऐलान कर देना काफी है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने खुद को हमारे हवाले नहीं किया तो उनके घर की औरतों, लड़कियों और बच्चों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" सब मेरी बातों से हैरानी पूर्वक मेरी तरफ देखने लगे थे जबकि पिता जी ने कहा____"नहीं नहीं, हम उन लोगों की बहू बेटियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं पिता जी।" मैंने जैसे समझाने वाले अंदाज़ में कहा____"मेरा इरादा ये हर्गिज़ नहीं है कि हम सच में उनके घर की औरतों या लड़कियों के साथ ग़लत ही कर देंगे। इस तरह का ऐलान करना तो बस एक बहाना होगा ताकि चूहे की तरह कहीं छुपे बैठे साहूकार लोग इस बात के डर से फ़ौरन ही बिलों से निकल कर हमारे सामने आ जाएं। इस बात का एहसास तो उन्हें भी होगा कि जो कुछ उन्होंने किया है उससे हम बेहद ही गुस्से में होंगे। उस गुस्से में पगलाए हुए हम उनके साथ या उनके घर वालों के साथ कुछ भी कर गुज़रने से पीछे नहीं हटेंगे और ना ही सही ग़लत के बारे में सोचेंगे। ये सब सोच कर यकीनन वो अपनी बहू बेटियों के लिए चिंतित हो जाएंगे और फिर वही करने पर मजबूर हो जाएंगे जो हम चाहते हैं।"

"मैं छोटे कुंवर की बातों से सहमत हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"उन कायरों को जल्द से जल्द बिलों से बाहर निकालने का यही एक तरीका बेहतर लगता है।"

"हम भी वैभव बेटा की इन बातों से सहमत हैं ठाकुर साहब।" बलभद्र सिंह ने कहा____"लेकिन एक बात और भी है, और वो ये कि क्या ज़रूरी है कि आपसे खौफ़ खा कर आपके गांव के ये साहूकार आस पास के किसी गांव में ही छुपे हुए होंगे? हमारा ख़याल है बिल्कुल नहीं। अगर उन्हें सच में ही आपसे अपनी ज़िंदगियों को सलामत रखना है तो वो कहीं छुपने से बेहतर पुलिस या कानून के संरक्षण में रहना ही ज़्यादा बेहतर समझेंगे।"

"यकीनन आपकी बातों में वजन है ठाकुर साहब।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमें भी ऐसा ही लगता है कि वो सब के सब इस वक्त कानून के संरक्षण में ही होंगे।"

"तो क्या हुआ पिता जी।" मैंने फिर से हस्ताक्षेप किया____"वो भले ही कानून के संरक्षण में होंगे लेकिन जब वो जानेंगे कि उनकी वजह से उनके घर की बहू बेटियां हमारे निशाने पर हैं तो वो सब मुंह के बल भागते हुए यहां आएंगे और हमसे अपने घर की औरतों को बक्श देने की भीख मांगेंगे।"

"बात तो ठीक है छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन यकीनन ऐसा ही होगा ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि तब वो कानून के संरक्षण के साथ साथ कानून का सहारा भी मागेंगे और मौजूदा हालात को देखते हुए कानून हर तरह से उनकी मदद भी करेगा।"

"तो आप ये कहना चाहते हैं कि हम ये सब सोच कर कुछ करें ही नहीं?" मैं एकदम आवेश में आ कर बोल पड़ा____"नहीं चाचा जी, ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता। उन लोगों ने मेरे चाचा और मेरे बड़े भाई की बेरहमी से हत्या की है इस लिए अब अगर उन्हें बचाने के लिए स्वयं यमराज भी आएंगे तो उन्हें मेरे क़हर से बचा नहीं पाएंगे।"

"गुस्से में होश गंवा कर कोई भी काम नहीं करना चाहिए छोटे कुंवर।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं ये नहीं कह रहा कि तुम अपनों की हत्या का बदला न लो बल्कि वो तो हम सब लेंगे और ज़रूर लेंगे लेकिन उसी तरह जिस तरह उन लोगों ने पूरी तैयारी के साथ हमारे अपनों की हत्या की है।"

"मैं ये सब कुछ नहीं जानता चाचा जी।" मैंने उसी आवेश के साथ कहा____"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैं उन सबको बद से बद्तर मौत दूंगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे किसी भी हद से क्यों न गुज़र जाना पड़े।" कहने के साथ ही मैं शेरा और रघुवीर से मुखातिब हुआ_____"तुम दोनों इसी वक्त जाओ और इस गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान कर दो कि अगर चौबीस घंटे के अंदर साहूकारों ने दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण नहीं किया तो उनके घर की बहू बेटियों के साथ बहुत ही बुरा सुलूक किया जाएगा।"

मेरी बात सुन कर शेरा और रघुवीर ने पिता जी की तरफ देखा। पिता जी ने फ़ौरन ही सिर हिला कर उन्हें हुकुम का पालन करने का इशारा कर दिया। शायद पिता जी भी अब वही चाहते थे जो कुछ करने की मैं सोच बैठा था। ख़ैर, इशारा मिलते ही दोनों बैठक से सिर नवा कर चले गए। मेरे अंदर इस वक्त ऐसी आंधी चल रही थी जो हर चीज़ को तबाह कर देने के लिए आतुर थी।


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सारा दिन मैं बैठक में ही बैठा रहा था। हवेली के अंदर जाने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन भला कब तक मैं किसी चीज़ से बचता? शेरा और रघुवीर के जाने के बाद मैं उठ कर अंदर की तरफ बढ़ चला था। अंदर की तरफ बढ़ते हुए मेरे क़दम एकदम से भारी होते जा रहे थे। मां अथवा मेनका चाची से सामना होने का मुझे उतना भय नहीं था जितना भाभी से सामना होने का भय था। मुझे शिद्दत से एहसास था कि उनके दिल पर इस वक्त क्या गुज़र रही होगी और सच तो ये था कि इस वक्त उनकी जो हालत होगी उसे देखने की मुझमें ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी।

अंदर आया तो देखा कई सारी औरतें बरामदे वाले बड़े से हाल में बैठी हुईं थी। वो सब मां चाची और भाभी को घेरे हुए थीं और साथ ही उन्हें धीरज बंधा रहीं थी। वो सब गांव की ही औरतें थी जिनमें मुंशी की बीवी प्रभा और बहू रजनी भी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां, चाची, कुसुम और भाभी का रोना फिर से शुरू हो गया। कुछ समय के लिए हवेली में जो सन्नाटा छा गया था वो उनके रोने और चिल्लाने से एकदम से दहल सा उठा। कुसुम दौड़ते हुए आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन अपनी आंखों को छलक पड़ने से रोक न सका। अपनी लाडली बहन का रोता हुआ चेहरा देखा तो मेरा कलेजा फट गया। रो रो कर कितनी बुरी हालत बना ली थी उसने। ज़ाहिर है उसके जैसा हाल सबका ही था। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और भारी क़दमों से आगे बढ़ चला। मां, चाची और भाभी की तरफ जाने की हिम्मत ही न हुई मुझमें।

बड़े से आंगन से होते हुए जब मैं दूसरी तरफ के बरामदे में आया तो देखा विभोर और अजीत अजीब अवस्था में अकेले ही बैठे थे। दोनों की आंखें किसी अनंत शून्य को घूरे जा रहीं थी। आंखों से बहे आंसू उनके गालों पर सूख गए थे और अपनी परत छोड़ चुके थे। मेरे आने की आहट से उनका ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने मेरी तरफ देखा। फिर एकाएक ही ऐसा लगा जैसे उन दोनों पर एक बार फिर से बिजली सी गिर पड़ी हो। वो तेज़ी से उठे और भैया कहते हुए मुझसे लिपट गए। मेरा हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि ऊपर वाले ने किस बेदर्दी से उनके सिर से पिता का साया छीन लिया है। मुझसे लिपट कर वो दोनों बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला और उन्हें शांत करने की कोशिश की। मुझे समझ में नहीं आया कि आख़िर किन शब्दों से उन दोनों को धीरज बंधाऊं और उन्हें समझाने का प्रयास करुं?

"हम अनाथ हो गए भैया।" अजीत ने रोते हुए कहा____"अब किसके सहारे जिएंगे हम?"
"ऐसा मत कह छोटे।" मैंने लरजते स्वर में उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा____"धीरज रख। हम सब तेरे ही तो हैं। वैसे सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे कि आज मैं खुद भी अनाथ हो गया हूं। जगताप चाचा मुझे तुम लोगों से भी ज़्यादा प्यार करते थे। जब वो मुझे 'मेरा शेर' कहते थे तो मेरे अंदर अपार खुशी भर जाती थी। अब कौन मुझे 'मेरा शेर' कहेगा छोटे?"

कहां मैं उन दोनों को शांत करने की कोशिश कर रहा था और कहां अब मैं खुद ही फफक कर रो पड़ा था। मुझे रोता देख वो दोनों और भी जोरों से रोने लगे। हम तीनों का रोना सुन कर उधर बरामदे में बैठी मां, चाची, कुसुम और भाभी फिर से रोने लगीं। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला, फिर विभोर और अजीत को भी शांत किया। दोनों को अपने साथ ही ले कर ऊपर अपने कमरे में आ गया। वो दोनों अब मेरी ज़िम्मेदारी बन चुके थे। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाहता था कि वो अब खुद को दीन हीन समझें।

दोनों को कमरे में ला कर मैंने उन्हें पलंग पर लेटा दिया और खुद किनारे पर बैठ कर दोनों के सिर पर बारी बारी से हाथ फेरने लगा। इस वक्त वो दोनों मुझे छोटे से बच्चे प्रतीत हो रहे थे। दिलो दिमाग़ में तो हलचल मची हुई थी लेकिन इस वक्त उस हलचल को काबू में रखना ज़रूरी था। काफी देर तक मैं उन्हें प्यार से दुलारता रहा। कुछ ही देर में वो सो गए। उन्हें गहरी नींद सो गया देख मैं आहिस्ता से उठा और कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को ढुलका कर मैं नीचे जाने के लिए आगे बढ़ चला। अभी मैं थोड़ी ही दूर आया था कि मेरी नज़र भाभी और कुसुम पर पड़ी। वो दोनों सीढ़ियों से ऊपर आ कर अपने कमरों की तरफ मुड़ गईं थी। भाभी को देखते ही मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं मेरा उनसे सामना न हो जाए। हालाकि मैं जानता था कि इस वक्त उन्हें थोड़ा सा ही सही लेकिन मेरा सहारा चाहिए था किंतु मुझमें हिम्मत नहीं थी उनका सामना करने की।

मैं तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा और जैसे ही बाएं तरफ जाने वाले गलियारे के पास पहुंचा तो अनायास ही मेरी नज़र उस तरफ चली गई। भाभी अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ीं थी। शायद उन्होंने पहले ही मुझे देख लिया था और मेरे आने का इंतज़ार कर रहीं थी। जैसे ही मेरी नज़र उनसे मिली तो मेरा पूरा वजूद कांप गया।

चांद की मानिंद चमकने वाला चेहरा इस वक्त किसी उजड़े हुए गुलशन का पर्याय बना दिखाई दे रहा था। आंखें रो रो कर लाल सुर्ख पड़ गईं थी। चेहरा आंसुओं से तर बतर था। मांग का सिंदूर उनके पूरे माथे पर फैला हुआ था। कमान की तरह दिखने वाली भौंहों के बीच चमकने वाली बिंदी अपनी जगह से ग़ायब थी। बाल बिखरे हुए और गले का मंगलसूत्र नदारद। मेरी नज़र फिसलती हुई उनकी गोरी गोरी कलाईयों पर पड़ी तो देखा कांच की एक भी चूड़ियां नहीं थी उनमें। कलाईयों में जगह जगह ज़ख़्म थे जहां से खून रिसा हुआ नज़र आया। ये सब देख कर मेरी रूह कांप गई। अपनी भाभी का ये रूप देख कर मुझसे बर्दास्त न हुआ। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और आंखों से आंसू बह चले।

"तुमने तो कहा था कि अब कभी मेरी जिंदगी में कोई दुख नहीं आएगा।" भाभी ने रूंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये भी कि मेरी आंखें अब कभी आंसू नहीं बहाएंगी तो फिर ये सब क्या है वैभव? आख़िर क्यों तुम्हारा कहा गया सब कुछ झूठ में बदल गया?"

इसके आगे भाभी से कुछ भी न बोला गया और वो फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे अपनी जगह पर खड़े ना रहा गया तो मैं भाग कर उनके पास पहुंचा और उन्हें पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। उनकी पीड़ा और उनके दर्द का मुझे बखूबी एहसास था। मुझे अच्छी तरह समझ आ रहा था कि इस वक्त उनके दिल पर किस बेदर्दी के साथ वज्रपात हो रहा था।

मैंने उन्हें अपने सीने से क्या छुपकाया वो तो और भी जोरों से रोने लगीं। काश! मेरे अख़्तियार में होता तो पलक झपकते ही उनके हर दुख दर्द को दूर कर देता मगर हाय रे नसीब, कुछ भी तो नहीं था मेरे बस में। पहली बार मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बेबस और लाचार सिर्फ मैं ही हूं।

"मत रोइए भाभी।" मैंने दुखी भाव से उन्हें चुप कराने की कोशिश की____"मुझे आपकी तकलीफ़ का बखूबी एहसास है। मैं जानता हूं कि ऊपर वाले ने आपको ऐसा दुख दे दिया है जो ताउम्र आपको चैन से जीने नहीं देगा।"

"अब जीने की ख़्वाहिश ही कहां है वैभव?" भाभी ने रोते हुए कहा____"ऐसी ज़िंदगी जीने से बेहतर है कि अब मौत आ जाए मुझे।"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने उन्हें और ज़ोर से छुपका लिया, फिर बोला____"जीने मरने की बातें मत कीजिए। मैं जानता हूं कि ऐसे दुख के साथ ज़िंदगी जीना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि खुद की जान ही ले ली जाए। आप कभी भी ऐसे ख़याल अपने ज़हन में मत लाइएगा, आपको मेरी क़सम है।"

"ऊपर वाले की तरह तुम भी बहुत ज़ालिम हो वैभव।" भाभी ने सिसकते हुए कहा____"अपनी क़सम में बांध कर मुझे ऐसी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हो जिसमें दुख और तकलीफ़ के सिवा कुछ भी नहीं है।"

"मैं आपकी ज़िंदगी में दुख और तकलीफ़ को कभी आने नहीं दूंगा भाभी।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आपकी तरफ आने वाले हर दुख दर्द को पहले मेरा सामना करना पड़ेगा। मैं दुनिया के कोने कोने से ढूंढ कर आपके लिए खुशियां लाऊंगा भाभी।"

"पहले भी तुमने ऐसे ही झूठे दिलासे दिए थे मुझे।" भाभी की आंखें छलक पड़ीं, मेरी तरफ देखते हुए करुण भाव से बोलीं____"और अब फिर से वैसा ही झूठा दिलासा दे रहे हो। मैं कोई बच्ची नहीं हूं वैभव जिसे तुम ऐसी बातों से बहला देना चाहते हो। सच तो ये है कि अब दुनिया में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं रहा जिससे मुझे खुशी मिल सकेगी। एक औरत के जीवन में उसके पति के बिना कहीं कोई खुशी नहीं होती। पति के बिना दुनिया की अपार दौलत, बेपनाह ऐशो आराम कुछ भी मायने नहीं रखता। औरत का पति चाहे कितना ही ग़रीब और लाचार क्यों न हो लेकिन औरत को कहीं न कहीं इस बात की खुशी तो रहती है कि वो सुहागन है। वो ऐसी अभागन और विधवा तो नहीं है जिसके लिए उसे हर रोज़ दुनिया वालों की ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी जो बातें किसी नश्तर की तरह उसके दिल को ही नहीं बल्कि उसकी अंतरात्मा तक को छलनी कर देंगी।"

भाभी की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने एक ऐसा सच कहा था जिसे कोई झुठला नहीं सकता था। सच ही तो था कि एक औरत अपने पति के रहने पर ही सच्चे दिल से खुश रह सकती है।

"मैं ये सब समझता हूं भाभी।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन इस सबके बावजूद इंसान को अपने दुख दर्द को जज़्ब कर के आगे बढ़ना ही होता है और अपनों की खुशी के लिए खुश रहने का दिखावा करना ही पड़ता है।"

"नहीं, अब मुझमें ऐसी हिम्मत नहीं है।" भाभी एक बार फिर से रो पड़ीं____"और ना ही ऐसी कोई ख़्वाइश है। अब तो बस यही मन करता है कि मौत आ जाए और मैं जल्दी से तुम्हारे भैया के पास पहुंच जाऊं।"

"भगवान के लिए भाभी ऐसा मत कहिए।" मैंने घबरा कर उनके हाथ थाम लिए, फिर कहा____"आपको मेरी क़सम है, आप मरने वाली बातें मत कीजिएगा कभी। क्या भैया ही आपके लिए सब कुछ थे? क्या आपके लिए हम में से कोई मायने नहीं रखता? क्या आपके दिल में हमारे लिए कुछ नहीं है?"

"मैं क्या करूं वैभव?" भाभी फफक कर रो पड़ीं____"मैंने कभी अपनी ज़िंदगी में किसी का बुरा नहीं चाहा। सच्चे मन से हमेशा ऊपर वाले की पूजा आराधना की है इसके बावजूद उस विधाता ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। क्या उस विधाता को मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आया?"

भाभी कहने के साथ ही फूट फूट कर रो पड़ीं। मुझसे उनका यूं रोना देखा नहीं जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे शांत करूं और किस तरह से उन्हें समझाऊं? उनके मुख से मरने की बातें सुन कर मैं अंदर से बुरी तरह घबरा भी गया था। मैं समझ सकता था कि जो दुख तकलीफ़ उन्हें मिली थी उससे उनकी अंतरात्मा तक दुखी हो चुकी है जिसके चलते वो अब जीने मरने की बातें करने लगीं हैं। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सच में उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठा लिया तो क्या होगा? ये सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी।

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।


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पुनः -- मार्मिक चित्रण!

क्रिया की प्रतिक्रिया सही नहीं लग रही है।
क्या पता, साहूकारों का इसमें कोई रोल ही न हो, और बिना वजह, गेहूँ में घुन की तरह पिसने वाले हों वो लोग!

भाभी की दशा समझ सकते हैं सभी लोग - इसीलिए क़यास यह भी लग रहे हैं कि उनका दूसरा विवाह संभव है क्या!
बहुत जल्दी है यह - लेकिन सम्भावना तो होती ही है। निकट भविष्य में हो सकता है।

लेकिन जैसा उनके बारे में पढ़ कर लगता है, वो किसी खून-ख़राबे का समर्थन नहीं कर सकती। ऐसे में समुचित न्याय की आवश्यकता है।
ख़ैर, देखते हैं आगे क्या होता है! रोचक कहानी है मित्र! अपना समय ले कर लिखते रहें!
आपके पाठक हैं हम - हमेशा साथ रहेंगे! :)
 
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