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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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लेखक जी पिछले दो हफ़्तों से बीमार हैं..............उनके गले में दर्द है..............खांसी है............इसलिए वो आजकल ऑनलाइन नहीं हैं..................ये बात मुझे स्तुति से पता चली.................गले में दर्द अभी थोड़ा कम है...................मैं माँ से उनका हाल पता ले रही हूँ................जैसे ही वो ठीक होंगें मैं उन्हें फिर से यहाँ आने के लिए कहूँगी
 

king cobra

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लेखक जी पिछले दो हफ़्तों से बीमार हैं..............उनके गले में दर्द है..............खांसी है............इसलिए वो आजकल ऑनलाइन नहीं हैं..................ये बात मुझे स्तुति से पता चली.................गले में दर्द अभी थोड़ा कम है...................मैं माँ से उनका हाल पता ले रही हूँ................जैसे ही वो ठीक होंगें मैं उन्हें फिर से यहाँ आने के लिए कहूँगी
Manu bhai na aksar bimaar rahte hain unko sardi jukaam hua rahta hai kinna kamjoor hain matlab apna dhyan nahi rakhte hain theek se unko mai advise karta hun subah tahlen park ma kuch nayan sukh bhi len uske baad kadha wadha piye neem ka thoda ras piyen aur Tulsi adrak ye sab istemaal karen faltu baton par dhyan na den thoda selfish ho jayen khud ke liye aur mata ji ka dhyan rakhen :cool:
 
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Manu bhai na aksar bimaar rahte hain unko sardi jukaam hua rahta hai kinna kamjoor hain matlab apna dhyan nahi rakhte hain theek se unko mai advise karta hun subah tahlen park ma kuch nayan sukh bhi len uske baad kadha wadha piye neem ka thoda ras piyen aur Tulsi adrak ye sab istemaal karen faltu baton par dhyan na den thoda selfish ho jayen khud ke liye aur mata ji ka dhyan rakhen :cool:
ये बहुत ढीठ हैं...............इन्हें सुधारना हो तो बस एक ही शक़्स है..............वो है स्तुति..............उसके लाड में ये सब कुछ करते हैं.............
 

king cobra

Well-Known Member
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ये बहुत ढीठ हैं...............इन्हें सुधारना हो तो बस एक ही शक़्स है..............वो है स्तुति..............उसके लाड में ये सब कुछ करते हैं.............
unko ye baat samjhni hogi ki jab wo majboot rahegen tabhi kisi ko sahara de payegen fir wo chahe jo ho aur maan lo sahara na de paye to kisi ke sahare bhi na hongen kyuki ye bahut takleef ki baat hoti ek swabhimani insaan ke liye
 

Sanju@

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भाग 3
वो पूरी रात अम्मा अपने बेटे को याद कर कर रोती रहीं................वहीं मैं ये सोच रही थी की आखिर एक माँ अपने उस बेटे के जाने का दुःख क्यों मना रही हैं जिसने उनके ही सुहाग पर....................यानी अपने ही पिता पर हाथ उठाया हो!!!!!!!! अम्मा का अपने बेटे के प्रति ये मोह मुझे तब समझ में आया जब मैं माँ बनी.....................जब चन्दर मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आया था और आयुष को अपने साथ जबरदस्ती ले जाना चाहता था उस समय मुझे अम्मा का मोह समझ में आया था|



अगली सुबह हुई तो माँ ने पड़ोस के लड़कों को भाईसाहब को खोज लाने के लिए लगा दिया....................मगर पूरा गॉंव छानने के बाद भी भाईसाहब का पता नहीं लगा!!!! भाईसाहब के गॉंव छोड़ कर जाने की खबर से मेरी अम्मा टूट गई थीं.....................जबकि बप्पा को कोई फर्क ही नहीं पड़ा था| आस-पडोसी आकर भाईसाहब के बारे में पूछ रहे थे और बप्पा घर की इज्जत बचाने के लिए सभी से ये झूठ कह रहे थे की भाईसाहब की गुंडा गर्दी उन्हें बर्दश्त नहीं थी इसलिए उन्होंने भाईसाहब को घर से निकाल दिया!!!



सबने बप्पा को बहुत समझाया की वो अपना गुस्सा थूक दें..............पर बप्पा नहीं माने| बप्पा तो कठोर थे.................मगर अम्मा बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही थीं इसलिए सभी माँ को सांत्वना देने लगे| जब भाईसाहब का गुस्सा ठंडा होगा तो वो घर लौट आएंगे.................ये कहते हुए सभी अम्मा को ढांढस बंधा रहे थे| अम्मा पहले ही कमज़ोर थीं............जब सबने उन्हें झूठ दिलासा दिया तो वो सबकी बातों में आ गईं और उम्मीद करने लगीं की उनका बेटा एक न एक दिन वापस आएगा!


दिन बीतने लगे............. हम सबके जख्म भरने लगे..........और मेरे जीवन में आया नया मोड़!!!!!



मेरी गिनी चुनी सहेलियां थीं.................उनके साथ भी मैं बस अपने घर के आंगन में खेलती थी.................मैं सबसे बड़ी थी तो मेरे ऊपर जानकी और सोनी की जिम्मेदारी थी| मैं अगर खेल कूद में लग जाती तो ये दोनों भी मेरी तरह करतीं.................इसलिए अम्मा ने मुझे घर के कामों में लगा दिया| द्वार पछोना.................लिपाई..............गोबर से कंडे बनाना.............. सिलाई...........बुनाई.............बेना बनाना आदि के कामों में अम्मा ने मुझे लगाना शुरू कर दिया| जानकी थोड़ी बड़ी हो गई थी इसलिए अम्मा ने उसे भी मेरे साथ काम में लगा दिया..................बस एक सोनी थी जो कुछ नहीं नकारती थी और हम दोनों का काम करता देख हंसती रहती थी| धीरे धीरे अम्मा ने अपनी पाकशाला में मेरी भर्ती की और मुझे खाना पकाना सिखाने लगीं|



हमारे घर के ठीक सामने चरण काका का घर था..............चरण काका बप्पा के भाई समान दोस्त थे.................और माँ उनके लिए मुँहबोली बहन थीं| उन दिनों चरण काका की भतीजी................जिसे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करते थे...............वो अपने स्कूल की छुट्टियों में गॉंव आती थी……उसका नाम था मालती.............जब मालती आती तो वो अपने साथ अपनी स्कूल की किताबें ले कर आती| उन किताबों को देख मेरा दिल मचलने लगता.............मैं किसी भँवरे की तरह उन किताबों तक खींची जाती| किताबों में बनी वो तसवीरें देख कर मेरी आँखें ख़ुशी से टिमटिमाने लगती थीं! मेरे इस दीवानेपन को समझ मालती ने मुझे पढ़ाना शुरू किया.................. पढ़ाई के प्रति मेरा ये खिंचाव............मेरी लगन...........मेरे बहुत काम आया|



उस समय हमारे गॉंव में बस एक स्कूल था जो की मेरे घर से करीब ३ किलोमीटर दूर था..................ये वही स्कूल है जहाँ नेहा ने दूसरी क्लास तक पढ़ाई की थी| उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने के बारे में कोई नहीं सोचता था.............न ही कोई सरकारी योजना लड़कियों के पढ़ाने के लिए बनाई गई थी...............और अगर बनाई भी गई होगी तो हमारे गॉंव तक नहीं पहुंची थी| तब लड़कियों के पैदा होते ही माँ बाप उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ने लगते थे...............लड़की को पढ़ाने पर कौन खर्चा करता???



मैं जानती थी की मुझे कभी भी स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाएगा...........और अगर कहीं बप्पा को पता चला की मैं पढ़ना चाहती हूँ तो वो मुझे कूटेंगे अलग से इसलिए मैं और मालती चोरी छुपे पढ़ाई करते थे| हमार घर के पीछे एक खेत था जहाँ पर गूलर का पेड़ लगा था.............दोपहर को खाना खाने के बाद खेत सूनसान होता था इसलिए मैं और मालती पेड़ की छॉंव तले खटिया डाल कर बैठ जाते| मालती मुझे हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर बोलना सिखाती और मेरा हाथ पकड़ कर लिखना सिखाती| उन अक्षरों को बोलने और लिखने का सुख जादुई था............वो ख़ुशी ऐसी होती थी की लगता था की मानो मुझ में कोई शक्ति आ गई हो...........ऐसी शक्ति जिससे मैं किसी को भी हरा सकती हूँ| चंद अक्षरों को सीख कर ही मैं खुद को विद्वान समझने लगी थी...............ऐसा लगता था मानो मैं जनपदों की क्ष्रेणी से ऊपर उठ चुकी हूँ!!!





जैसा की हमारे लेखक साहब कहते हैं की हर अच्छी चीज कभी न कभी खत्म हो ही जाती है.............. वही मेरे साथ हुआ जब चरण काका ने हम दोनों को पढ़ते हुए देख लिया!!!!!





"हम नाहीं जानत रहन हमार मुन्नी पढ़े म इतना होसियार है!!!!" चरण काका मेरे सर पर हाथ रखते हुए बोले| चरण काका ने जब मेरी पढ़ाई की तारीफ की तो मालती फौरन बोली की कैसे मैं पढ़ने में बहुत तेज़ हूँ....................आज पहलीबार अपनी इस तारीफ को सुन कर मैं गदगद हो गई थी और ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी!!!!!!! मेरी पढ़ाई की तरफ लग्न देखते हुए चरण काका बोले की वो बप्पा से बात करेंगे................ये सुन कर मुझे लगा की मुझे भी स्कूल जाने को मिलेगा.................नतीजन मैंने स्कूल जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी|



मैंने ये नहीं सोचा की बप्पा मुझे पढ़ने देने के लिए कभी हाँ नहीं कहेंगे!





शाम के समय हम सब आंगन में बैठे थे..............बप्पा खेत से लौटे थे इसलिए वो सौथा रहे थे.............की तभी चरण काका आ पहुंचे| उन्होंने बप्पा को बताया की मैं मालती के साथ छुप कर पढ़ाई कर रही थी..................और मैं पढ़ाई में कितनी तेज़ हूँ की बिना स्कूल जाए ही मैंने आधी अंग्रजी वर्णमाला सीख ली है| बप्पा को मेरी ये उपलब्धि सुन कर ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई...............उन्होंने इस बात को कोई तवज्जो दी ही नहीं और चरण काका से दूसरी बात करने लगे| जब आप लायक हो और आपके मा बाप इसकी कोई ख़ुशी न मनाएं तो जो चिढ़ मन में पैदा होती है.................वही चिढ़ मुझे हो रही थी| लग रहा था मानो मैं गलत घर में पैदा हो गई............मुझे तो मालती के घर में पैदा होना चाहिए था...............जहाँ उसके मा बाप कम से कम उसे पढ़ा तो रहे थे!!!



दोपहर को जो मैंने स्कूल जाने के सपने सजाये थे वो सारे टूट कर चकना चूर हो गए थे.............तब लग रहा था की अगर मेरे भाईसाहब होते तो वो बप्पा से लड़ कर मुझे स्कूल भेजते.............या फिर कम से कम वो मुझे अपने साथ ले जाते तो मैं स्कूल में पढ़ तो लेती!!!!! मुझे अपने भाईसाहब के यूँ स्वार्थी होने और मुझे अकेला छोड़ कर जाने पर गुस्सा आने लगा था................और मैं मन ही मन अपने भाईसाहब को कोस रही थी की क्यों वो मुझे अपने साथ नहीं ले कर गए| मैंने तब ये नहीं सोचा की भाईसाहब घर से अकेले निकले हैं.............पता नहीं वो कहाँ रह रहे होंगे........क्या खाते होंगें............कहाँ सोते होंगें............कैसे अपना अकेला गुज़ारा करते होंगें??????





खैर.............मैंने स्कूल जाने की उम्मीद छोड़ दी थी और अपने घर के कामों में लग गई थी| अगले दिन दोपहर को खाने के बाद मालती मुझे बुलाने आई................मैं जानती थी की वो मुझे पढ़ने के लिए बुलाने आई है मगर मेरा मन अब पढ़ने का नहीं था इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया| मालती ने हार न मानते हुए मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर खेत में ले आई...................मुझे हिम्मत देने के लिए मालती बोली की मुझे पढ़ाई करना नहीं छोड़ना चाहिए| वो मुझे हिम्मत दे रही थी ताकि मैं अपने बप्पा से खुद पढ़ने देने की बात करूँ...............वो नहीं जानती थी की मेरे बप्पा कितने सख्त स्वभाव के हैं.............वो मुझे स्कूल में पढ़ने तो नहीं देते.............अलबत्ता मेरे कान पर एक धर जर्रूर देते!!!!! बप्पा के डर के मारे मैं बस न में सर हिलाये जा रही थी.................मुझ में ज़रा सी भी हिम्मत नहीं थी की मैं अपने बप्पा का सामना करूँ!!!!



उसी दिन शाम के समय चरण काका ने मुझे अपने पास बुलाया..............बप्पा थक कर पहुडे थे की तभी चरण काका ने मेरे पढ़ने की बात छेड़ी| मुझे लगा था की बप्पा इस बार भी इस बात पर गौर नहीं करेंगे..................पर इस बार बप्पा उठ कर बैठे और चरण काका से बोले "का करी ई का पढ़ाये के? आखिर करे का तो एकरा ब्याह है!............. और पइसवा कहाँ है हमरे लगे जो ई का पढ़ाई?...............फिर हमार दुइ ठो बच्चा और हैं..........कल को ऊ दुनो कईहैं की बप्पा हमहुँ स्कूल जाब तो हम कइसन तीनो बच्चा का पढ़ाब?" बप्पा की आवाज़ में एक गरीब पिता होने का दर्द था............अगर मेरे बप्पा के पास खूब सारा पैसा होता तो वो एक बार को मुझे पढ़ने भी देते............लेकिन तीन बच्चों...........और वो भी लड़कियों को पढ़ाना............उनकी शादी के लिए दहेज़ जोड़ना आसान बात नहीं थी!!!!!



"कउनो जर्रूरत नाहीं............का करी ई पढ़ी लिखी के??? चुपए घरे रही के काम धाम सीखो!!!" अम्मा अचानक से परकट होते हुए बोली| बप्पा की बातें सुन कर मुझे सच्चाई का पता चला था और मैं अब खुद भी नहीं चाहती थी की मैं पढूं इसलिए मैं सर झुका कर खामोश खड़ी थी……………..पर चरण काका मेरा मुरझाया हुआ चेहरा देख बोले................."हमार मुन्नी बहुत प्रतिभसाली है...........ओकरा का पढ़ाये खतिर हम दुनो जन मेहनत करब................अगर कल को जानकी और सोनी पढ़ा चाहियें तो उनका पढ़ाये खतिर हम दुनो जन और मेहनत करब...........आखिर माँ बाप केह का लिए जीयत हैं????? केह का लिए इतना मेहनत करत हैं???" मेरी पढ़ाई को ले कर घर में खिंचा तानी शुरू हो गई थी......................और आखिर में जीत पढ़ाई की हुई!!! गाँव में कोई लड़की स्कूल नहीं जाती थी..............ऐसे में सब लड़कों के बीच मैं अकेली कैसे पढ़ती???? तो ये तय हुआ की मैं अम्बाला में अपनी मौसी के घर रह कर पढूंगी..............वहां मेरी मौसेरी बहन भी रहती थी तो उसी के साथ मैं स्कूल जा सकती थी|
Awesome update
मां का संतान के प्रति मोह कभी खत्म नहीं होता चाहे संतान कैसी भी हो आपको मां की परेशानी का कारण जब समझ में आया तब चंदर वाली घटना आप के साथ हुई
शिक्षा का मोह आपको बचपन से ही रहा है भाईसाहब के ना होने से मालती से आपने बिना स्कूल गए शिक्षा ग्रहण की।
ग्रामीण परिवेश में पहले लड़कियों को स्कूल गरीबी आस पास स्कूल का ना होना समाज की रूढ़िवादी सोच आदि कई कारण थे।गरीब परिवारों में पढ़ाई पर पैसे खर्च करने की बजाय पैसे कमाकर अपने परिवार का गुजर बसर में सहायता करने पर जोर देते थे पिताजी अपनी माली हालत के कारण अपने बच्चो को नही पढ़ा पा रहे थे लेकिन चरण काका के प्रयास से आपको पढ़ाने के लिए आपके पिताजी मान गए हैं
 

Sanju@

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सही कहा.................उन दिनों हालत ऐसे थे..............आज भी कई लोग अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाते क्योंकि उनके हालत ठीक नहीं होते..............पैसे के तौर पर.............वैसे भाईसाहब................इस अपडेट पर तो आपने फट से रिव्यु दे दिया.................पिछली अपडेट का क्या?????? :girlmad:
:bat1::bat1::bat1: ye to hona hi chahiye kamdev bhai ke liye pahle Wale update ke liye review nahi diya uske liye
 
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:bat1::bat1::bat1: ye to hona hi chahiye kamdev bhai ke liye pahle Wale update ke liye review nahi diya uske liye
रिव्यु तो बह्तों ने नहीं दिया अभी तक :verysad: .............अब सबका नाम तो लिख नहीं सकती नहीं :verysad: ..................पर मुझे क्या :dazed: ...............अपडेट तो तभी आएगी जब सबका रिव्यु आएगा........... :flex:
 
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king cobra

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रिव्यु तो बह्तों ने नहीं दिया अभी तक :verysad: .............अब सबका नाम तो लिख नहीं सकती नहीं :verysad: ..................पर मुझे क्या :dazed: ...............अपडेट तो तभी आएगी जब सबका रिव्यु आएगा........... :flex:
matlab hum sabke kiye ki saza bhugtegen :?: update do hum to hain na jinko aana ho aayegen meko bulaya tha aapne kya :?:
 
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Awesome update,
आपने अपने बालमन में अपने भाई साहब के प्रति एक छवि बना ली। जिसके कारण आपको अपनी माताजी के परेशनी का कारण समझ नही आया , एक माँ के लिए अपनी संतान चाहे जैसी भी हो उसके लिए मोह खत्म नही होता, एक माँ की मजबूरी रहती है कि संतान मोह हमेशा पतिव्रता नारी के आगे हार जाती है,
शिक्षा के प्रति मोह आपके मन मे बचपन से रहा और मालती से आपने बिना स्कूल जाए शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की।
एक गरीब परिवार में लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान बहुत कम दिया जाता है, और गावो में तो वैसे भी शिक्षा पर ध्यान नही दिया जाता था पहले , आपके पिताजी अपनी माली हालत के कारण अपने बच्चों को नही पढा पा रहे थे, एक गरीब परिवारिक माहौल का आपने बहुत सटीक वर्णन किया है,
चरण काका के प्रयास से अब आपके जीवन का नया अध्याय शुरू हो रहा है स्कूल में पढ़ाई के रूप में।
बहुत प्यारा रिव्यु रेखा रानी जी...........आपने सही कहा है की नारी के जीवन में एक न एक बार परीक्षा होती ही है.............जब उसे अपने पति और संतान के बीच चुनना पड़ता है| पर मैं आपकी एक बात से सहमत नहीं..............क्या हमेशा एक नारी को अपने पति को चुनना चाहिए?????? भले ही वो गलत हो और उसका बेटा सही???? मेरी दूसरी माँ.............यानी हमारे लेखक जी की माता जी ने अपने पति के बजाए अपने बेटे का साथ दिया..........क्योंकि वो जानती थीं की उनका बेटा सही है और पति गलत| क्या यह चुनाव गलत था??? क्या माँ को अपने पति को चुनना चाहिए था???? और अपने बेटे को अकेला छोड़ देना चाहिए था??? आपके जवाब की प्रतीक्षा में!!!!!!!!!!
 
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