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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136
 
Last edited:

Lovely Anand

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जिन पाठकों ने इस कहानी को आखिरी तक नहीं पढ़ा है और जिन्होंने इस पर अपने कमेंट नहीं दिए हैं वह इस एपिसोड को कृपया नहीं पढ़े । न तो उन्हें यह एपिसोड समझ में आएगा और न हीं कहानी...

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…


नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

अब आगे…

सोनू ने सुगना को उसके ही सजे धजे बिस्तर पर बड़े प्यार से लिटा दिया सिरहाने रखे तकिया को उसकी पीठ के पीछे सहारा देने के लिए रख दिया और स्वयं उसके समीप बैठकरअपनी मजबूत भुजाओं को सुगना के शरीर के दोनों तरफ कर उसके हाथों को पकड़ लिया…और उस पर झुकते हुए बोला.

“आखिरकार तू मनलू ना….सब केहू के हमारा और लाली के शादी खातिर मना लेलू”

सुगना ने अपने चेहरे पर विजेता के भाव लाते हुए कहा.

“अपन सोनू के इच्छा के मान राखाल हमार धर्म भी रहे और कर्तव्य भी”

यद्यपि सुगना का चेहरा सोनू से दूर था परंतु उसने उसे चूमने की मुद्रा में उसने अपने होठों को गोल कर उसे एक फ्लाइंग किस देने की कोशिश की..


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सोनू ने सुगना के इस चुंबन को न सिर्फ स्वीकार किया अपितु स्वयं आगे झुक कर स्वयं उसके होठों को चूम लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला..

“जान तारु नू , ई ब्याह त हम खाली दहेज खाती करत बानी.”

सुगना शायद सोनू की बात समझ नहीं पाई और उसने पूछा

“ अरे तोरा के दहेज के देइ लाली के पेंशन मिलता ऊ हे तोर दहेज रही..”

सोनू के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई उसने सुगना के गालों को एक बार फिर चूमते हुए बोला..

“जौनपुर में अगुआ बनकर दहेज के वादा कईले रहलू और अब भुला गईलू “

सुगना को याद आ गया जब उसने सोनू के समक्ष लाली और उसकी शादी का प्रस्ताव रखा था…

(भाग 126 उद्धरित


सुगना को गंभीर देख सोनू ने माहौल सहज करने की सोची और मुस्कुराते हुए पूछा…

"अच्छा दीदी ई बताव दहेज में का मिली…?"

सोनू की बात सुन सुगना भी मुस्कुरा उठी …और उसने अपनी दोनों जांघें खोल दीं…और उसकी करिश्माई बुर अपने होंठ खोले सोनू का इंतजार कर रही थी।


सुगना अपना उत्तर दे चुकी थी और सोनू को जो दहेज में प्राप्त हो रहा था इस वक्त वही उसके जीवन में सर्वस्व था…जिसे देखने चूमने पूचकारने और गचागच चोदने के लिए सोनू न जाने कब से बेचैन था.. वो करिश्माई बुर उसकी आंखो के ठीक सामने थी…)

सुगना को अपनी कही बातें अक्षरशः याद आ गई.. परंतु चतुर सुगना ने कहा..

“ वो दिन तो अपन दहेज ले ही लेले रहले..अब का चाही.. बार बार दहेज थोड़े मिलेला ?”

सुगना जिस अवस्था में थी उसकी हंसी उसके कहे वाक्यांशों से मेल न खाती थी अपितु सोनू को और उकसा रही थी।

सोनू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

“जब दहेज में ओकरा के दे देलु तब उ हमार हो गईल हम जैसे चाहे वैसे ओकरा के राखब और पूजब“

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो गया और पलके बंद। वह बुर की पूजा का मतलब भलीभांति समझती थी। वह अपने हाथों से अपनी बुर को ढकने का असफल प्रयास करने लगी..


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सोनू के हाथ उसकी नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे और सुगना की उंगलियां जांघों के त्रिकोण पर उस नाइटी को और ऊपर जाने से रोक रहीं थीं।

“दीदी एक बार फिर सोच ला, दहेज मिली तबे बियाह होई ना त…..अपन सहेली(लाली)के अपन पास रखा…”

सोनू ने मुस्कुराते हुए उसी अंदाज में कहा जिस अंदाज में घर के बुजुर्ग शादी में दहेज की बात करते समय कन्या पक्ष के लोगों से करते थे।

सोनू सुगना को छेड़ रहा था और उसकी उंगलियां नाइटी पर लगातार ऊपर उठने के लिए दबाव बनाए हुए थीं।

सुगना खुश थी और एक बार फिर मुस्कुरा उठी..सोनू उसके जैसा ही हाजिर जबाब हो चुका था।

इस छेड़छाड़ में सुगना की बुर पनिया गई थी सुगना अपनी उंगलियों की मदद से अपनी नाइटी से अपनी बुर को पोछना चाह रही थी। उसे अपनी लार टपकाती बुर न तो सरयू सिंह को दिखाना पसंद था न अब सोनू को पर शायद उसके दोनों प्रेमियों को ये बेहद पसंद आता था। अपनी प्रेमिका के बुर से टपकती लार उसके अपने प्रेमी से मिलन की आतुरता का प्रतीक है और इस सुख को मैं तो सरयू सिंह छोड़ना चाहते थे और न हीं सोनू।


सोनू की नजरों ने सुगना की यह चालबाजी ताड़ ली। उसने सुगना की हथेलियों को पकड़ा और हल्के दबाव के साथ उसके कंधों के पास लाते हुए बोला.

“दीदी हमार दहेज के सामान के हांथ मत लगाव..”

सुगना चुप थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू की छेड़छाड़ और पिछले दो तीन महीनों से संभोग सुख से वंचित सुगना स्वयं संभोग के लिए आतुर थी।

सोनू ने नाइटी पर और दबाव बढ़ाया सुगना ने कमर उठाकर उसका सहयोग किया और एक ही झटके में सुगना की नाइटी को उसकी नाभि के ऊपर तक खींच दिया..और फिर धीरे धीरे नाईटी ने सुगना का साथ छोड़ दिया। जब रानी ने स्वयं समर्पण कर दिया था तो ब्रा जैसे सुरक्षा कवचों का क्या औचित्य था।


सुगना का नग्न बदन कुंदन की भांति चमक रहा था। सुगना की बुर आज बिना बालों के चमक रही थी ..होंठों पर लार उसे और भी खूबसूरत बना रही थी..सोनू सुगना की चमकदार और बेदाग बुर को देख मोहित था। सुगना की बुर दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी अपनी कमीनीयता और आकर्षण कामयाब रखने में सफल रही थी।

सोनू को अपनी बुर की तरफ ध्यान से देखते देख सुगना ने शर्म से अपनी जांघें एक दूसरे पर चढ़ाने की कोशिश की और बुर के होंठों पर छलके रज रस की बूंदें छलककर चादर से छू गईं..पर बिस्तर पर गिरी कामरस की बूंद और सुगना के बुर के बीच एक पतले धागे से अब भी जुड़ी थी। सोनू ने अपनी उंगलियां बढ़ाई और उसे पतले धागे को अपनी उंगलियों पर ले लिया। एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सोनू की उंगलियां उसकी बुर को सहला जाएंगी परंतु सोनू ने ऐसा न किया।

अपनी उंगलियों पर लगी लार को उसने अपनी नासिका के पास लाया जैसे उसे सुगंध को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हो। सुगना सोनू का चेहरा देख रही थी और उसकी इस हरकत से न सिर्फ बेहद उत्तेजित हो रही थी अपितु उससे नज़रें मिलाने में अब खुद को असमर्थ पा रही थी।

आखिर सुगना ने करवट लेने की कोशिश की। पहले उसने करवट सोनू की तरफ पीठ करने की कोशिश परंतु जैसे ही उसे अपने मादक नितंबों और उसके बीच छुपी अपनी खूबसूरत गांड का ध्यान आया उसने तुरंत ही अपना निर्णय बदल कर अपनी चूचियां को सोनू को सोनू को तरफ कर दिया।

सोनू अब भी बिस्तर पर पड़ी नग्न सुगना की खूबसूरती निहार रहा था। उसकी आंखों में वासना के लाल डोरे धीरे धीरे अपना वर्चस्व बढ़ा रहे थे। सुगना सोनू की तरफ देखती और उसे स्वयं अपने बदन को निहारते देख शर्म से आंखें झुका लेती..

सुगना सोनू के अगले कदम का इंतजार कर रही थी परंतु सोनू उसे एक शिकारी की भांति सर से पर तक सिर्फ देखे..जा रहा था.

आखिरकार पहल सुगना को ही करनी पड़ी.

“अइसे का देखत बाड़े…पहिले देखले नइखे का?”

सोनू सुगना से मुखातिब हुआ आंखों में प्यार और वाणी में मिठास लिए उसके कंधे को सहलाते हुए बोला…

“हमार मन करेला की तहरा के हमेशा ऐसे ही देखत रहीं भगवान ताहरा के सचमुच बहुत सुंदर बनवले बाड़े…”

सुगना सोनू पर मोहित पहले से थी और उसके इस उद्गार पर कायल हो गई।

सुगना ने अपनी बांहे खोल दी और सोनू को आलिंगन का निमंत्रण दे दिया सोनू सुगना से सटता चला गया..

सपना के नंगे जिस्म ने जब सोनू के बदन को छूने की कोशिश की सोनू के कपड़े आड़े आ गए जो सुगना को कतई रास नहीं आ रहे थे.

उसने उसकी शर्ट की बटन पर अपनी उंगलियां रखते हुए बोला..

“इ कुर्ता ढेर पसंद बा का? खोलबे ना का? सुगना ने जिस अंदाज में सोनू से यह बात कही थी सोनू बखूबी समझ चुका था कि आज सुगना स्वयं आगे बढ़कर उसे अपने कपड़े उतारने को कह रही है। सोनू बेहद खुश था। सुगना आज उसके साथ संभोग करने के लिए पूरी तरह तैयार थी और तन मन से समर्पित थी।

“तू ही खोल दा ..”

सोनू ने सुगना की उंगलियों को अपनी बटन पर रखते हुए बोला..

धीरे-धीरे सुगना की उंगलियों ने शर्ट के सारे बटन खोल दिए। आगे पैंट तक पहुंचने से पहले उसकी उंगलियां रुक गई..

सोनू ने सुगना की झिझक महसूस कर ली। उसने सुगना की तरफ करवट ली उसे अपने आगोश में लेते हुए उसके होठों को चूम लिया और उसकी उंगलियां को अपने पैंट के हुक पर पहुंचा दिया…और सुगना को चूमते हुए बोला

“दीदी उ भी तहरे ह “

सुगना ने देर ना की उसके पैंट के हुक को खोलते हुए कुछ सोचने लगी…उसने मन ही सोनू की सभी इच्छाएं पूरी करने का निर्णय ले लिया. जो काम वह बनारस के होटल में अधूरा छोड़ आई थी आज वह उसे पूरा कर सोनू का उधार चुकता कर देना चाहती थी।

“ए सोनू…ते आपन आंख बंद कर ले…”

“काहे..” सोनू अपनी आंखें बंद कर सुगना के नग्न बदन को देखने का सुख होना नहीं चाहता था।

सुगना ने अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए सोनू से काहे..

“एक बार हमारा कहला से बंद कर ले कुछ देर बाद जब मन होई खोल लीहे…

पर जान ले बीच में आंख खोलबे त ते ही नुकसान में रहबे”

सुगना ने जिस कामुक का अंदाज में यह बात की थी सोनू ने तुरंत ही हामी भर दी.. सुगना की आंखों में वह वासना देख चुका था और संभोग के लिए आतुर अपनी दीदी की बात टालना उसके वश में न था।

सोनू के आंख बंद करते ही सुगना ने अपने बदन से उतरी हुई नाइटी सोनू के चेहरे पर रख दी। जैसे ही नाईटी सोनू के नथुनों से टकराई सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के दिलों दिमाग पर छाती चली गई और सोनू की पलके स्वतः ही बंद होती गई.

सोनू के दिमाग में सुगना इतनी रच बस गई थी कि वह अपनी बंद आंखों से भी सुगना की कल्पना कर लेता और अब वह इस वक्त अपनी बंद आंखों से अपनी कल्पना में नग्न सुगना को देख रहा था।

सुग़ना की उंगलियों ने सोनू के पेंट का हुक खोल दिया…

सोनू के दिल की धड़कनें तेज हो गई। पेंट का हुक और जिप खुलने के बाद सोनू सोच रहा था। अंडरवियर के भीतर से उसका तना हुआ लंड सुगना दीदी को निश्चित ही दिखाई दे रहा होगा… वह क्या सोच रही होंगी ? क्या वो उसे अंडरवियर की कैद से आजाद करने की हिम्मत जुटा पाएंगी?

सोनू अभी भी सुगना की नाइटी मैं समाहित उसके बदन की खुशबू रह रहकर महसूस कर रहा था।

तभी सोनू ने अपने अंडरवियर पर सुगना की उंगलियों को महसूस किया और धीरे-धीरे उसका अंडरवियर नीचे की तरफ आता गया। बिना कहे सोनू ने अपनी कमर को ऊंचा किया। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसे पता था उसका छोटा भी भाई अनूठा था और उसका लंड भी। जैसे ही अंडरवियर नीचे की तरफ आया सोनू का लंड उछलकर बाहर आ गया और सोनू की उत्तेजना को दर्शाते हुए थिरकने लगा। सुगना उस लंड को अपनी नजरों के सामने बेहद करीब देख कर मोहित हो गई। ऐसा नहीं था कि वह सोनू का लन्ड आज पहली बार देख रही थी पर जब भी देखा था सोनू से नजरे बचा कर देखा था..

पर आज सोनू की पलकें बंद थी। सुगना ने एक बार सोनू के चेहरे की तरफ देखा और उसके चेहरे पर पड़ी नाइटी देखकर वह निश्चित हो गई। सोनू का लंड अब भी तना हुआ था और सुगना की राह देख रहा था। ठीक वैसे ही जैसे कोई मासूम बालक अपनी मां की गोद में आना चाहता हो।

सुगना मोहित हो गई उसने क्षण भर भी देर ना की और अपनी कोमल हथेलियां से सोनू के लंड को अपने आगोश में ले लिया और बेहद प्यार से उसे सहलाने लगी। सोनू के लंड ने उछलकर और मचलकर सुगना के प्यार को स्वीकार किया। सुपाड़े पर रिस आई सोनू के वीर्य की बूंद सुगना का ध्यान खींच रही थी…लन्ड का लाल सुपाड़ा अब अभी चमड़ी के भीतर कैद था और सुगना को निहार रहा था जैसे सुगना से उसे आजाद करने की गुहार लगा रहा हो.

सुगना ने अपनी हथेली से सोनू के लंड पर दबाव बढ़ाया और उसे नीचे खींचने की कोशिश की और धीरे-धीरे सोनू के लाल सुपाडे को आजाद कर दिया। लंड का सुपड़ा फूलकर कुप्पा हो चुका था सुगना ने अपनी अपनी हथेलियों का दबाव कम कर दिया परंतु सोनू के लंड की स्किन वापस उस सुपाड़े को अपनी कैद में लेने में असफल रही।

कितना खूबसूरत लंड था सोनू का…


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सुगना बेफिक्र होकर सोनू के लंड को जी भर कर देखती रही.. सोनू के वस्ति प्रदेश से काले बालों की झुरमुट के बीच से चीड़ के पेड़ की भांति सीधे इतने हुए लन्ड ने सुगना को मंत्रमुग्ध कर दिया था। वह एकटक उसे देखे जा रही थी। कभी वह लंड की मखमली त्वचा को महसूस करती कभी उस पर चारों तरफ से दौड़ती नसों को देखती और उनमें बह रहे गरम रहे खून को अपनी उंगलियों से रोकने का प्रयास करती पर मैसेज उंगलियों से छटक कर कभी एक तरफ हट जाती कभी दूसरी तरफ। और जब कभी उसकी उंगलियां सुपाड़े को छूती लंड थिरक उठाता…और सोनू के पैर के पंजों की उंगलियां भी हलचल करने लगती। सोनू अपनी उत्तेजना के उत्कर्ष को महसूस कर रहा था।

सुपाड़े पर रिस रहा वीर्य मोती के रूप में अब छलकने को तैयार था परंतु सुगना में जैसे उसे नीचे न गिरने देने का प्रण ले लिया था। वह कुछ देर लंड को यूं ही सहलाती रही और उसे प्यार करती रही…जिसने उसके जीवन में एक बार फिर गुलाबी रंग भर दिया था और जब सुगना का स्नेह चरम पर पहुंच गया तब उसने एक बार फिर सोनू की तरफ देखकर इस बात की तस्दीक की कि अभी उसकी आंखें बंद है या नहीं और फिर अपने होठों को गोल कर अपने छोटे भाई सोनू के लंड के सुपाड़े को चूम लिया… ।

वीर्य की चमकती बूंद सुपाड़े से हट कर सुगना के होठों पर आ चुकी थी.. सुगना ने एक बार फिर सोनू की तरफ देखा और उसकी जीभ ने होठों पर लगे वीर्य को उसके अधरों और स्वदेंद्रियों पर फैला दिया।


सुगना सोनू के वीर्य की तुलना सरयू सिंह के वीर्य से करना चाहती थी। परंतु शायद वह सफल न रही..

नारियल पानी का स्वाद चाहे वह मद्रास का हो या तेलंगाना का अंतर कर पाना कठिन था..

सुगना के होठों का स्पर्श पाकर सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था। सोनू यह दृश्य अपनी आंखों से देखना चाहता था परंतु उसे पता था सब्र का फल मीठा होता है उसने अपनी पाल के बंद ही रखी। आज जो उसकी सुगना दीदी ने कर दिखाया था जिसका जिक्र और अनुरोध करने की शायद ही कभी उसकी हिम्मत पड़ती। यहां तक की बनारस कि उस रात जब उसने सुगना को मुख मैथुन का सुख दिया था तब भी वह यह बात सुगना से कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था।

सुगना महान थी…कामकला में मुखमैथुन का जो योगदान था वह सुगना बखूबी समझती थी। सरयू सिंह के मार्गदर्शन में अब वह इस कला में पूरी तरह पारंगत हो चुकी थी और उसने आज सोनू को खुश करने की ठान ली थी. बनारस की उसे रात जो सोनू कह नहीं पाया था उसे सुगना ने महसूस कर लिया था और आज जब सब कुछ सुगना की इच्छा अनुसार हो रहा था उसने अपने भाई सोनू की तमन्ना को पूरा करने का मन बना लिया था।

सोनू का लंड अभी सुगना के अगले कदम का इंतजार कर रहा था। तभी सुगना ने अपनी हथेलियां लंड से दूर की..

सोनू एक पल के लिए सहम गया उसे यह अवरोध अपेक्षित न था।

सुगना ने बिना देर किए सोनू के पैंट तथा अंडरवियर को पूरी तरह बाहर निकाल दिया। उसने सोनू की बनियान और शर्ट को निकालने के लिए भी सोनू को निर्देशित किया और कुछ ही देर में सोनू भी सुगना की ही भांति पूरी तरह नग्न बिस्तर पर था।


इस बार सोनू ने बिना कहें स्वयं ही सुगना की नाइटी को अपने चेहरे पर रख लिया। इस दौरान सुगना ने सोनू से नजरे न मिलाई और वज्रासन में बैठी सुगना अपनी जांघों के बीच झांकती रही…

चंद क्षणों पश्चात सुगना ने एक बार फिर सोनू के लंड को अपने हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी…अपनी उत्तेजित बुर को भूलकर सुगना का सारा ध्यान सोनू के लंड पर था। सुगना अपने हृदय गति को नियंत्रित करने लगी वह जो करने जा रही थी वह उचित था या अनुचित पर सुगना यह बात बखूबी जानती थी कि मुखमैथुन प्यार की पराकाष्ठा है और वह अपने भाई सोनू को इससे वंचित नहीं रखना चाहती थी। जैसे सोनू और सुगना में टेलीपैथी थी। सुगना के मन में आए असमंजस को सोनू ताड़ गया था


वह अचानक सोनू बोल पड़ा…

“दीदी रहे दे…”

सोनू को लग रहा था कि उसकी सुगना दीदी झिझक रही है…सुगना ने कोई उत्तर ना दिया अपितु अपने गोल होठों को सोनू के लैंड के सुपाड़े से सटा दिया और अपने होठों के बीच लेकर उसे चूमने लगी….

सोनू का उत्साह और आनंद सातवें आसमान पर पहुंच गया। आज सुगना जो कर रही थी वह उसकी कल्पना में आवश्य था परंतु वह हकीकत में संभव हो पाएगा यह लगभग असंभव जैसा था। उत्तेजना अपनी सारी मर्यादाएं का पार कर चुकी थी।

सुगना भी सोनू को अपने प्रेमी के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर चुकी थी सुगना ने जैसे ही लंड के सुपाड़े को अपने मुंह के अंदर पूरी तरह लिया सोनू मचलने लगा।


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इस एहसास मात्र से कि उसकी चहेती और सम्मानित सुगना दीदी ने आखिर उसकी इच्छा का मान रखते हुए उसके लंड को अपने मुंह में ले लिया है सोनू उत्तेजना उफनने लगी। सुगना ने फूल से कोमल गुलाबी अधरों के बीच अपने लंड को महसूस कर सोनू बेहद खुश था। इस अवस्था में अपनी दीदी सुगना को देखना चाहता था परंतु सुगना के निर्देश को न मानने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

सुगना सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने होठों के बीच लेकर चुभलाती रही कभी अपनी जीभ का प्रयोग कर सुपाड़े के उसे भाग को सहलाती रही जहां सारी उत्तेजना की ग्रंथियां एकत्रित होती है।

लंड को आज के पोर्न स्टार की तरहपूरी तरह अपने मुंह में भर पाना ना सुगना को तब आता था और न अब। सुगना जैसी कामुक युवती के होंठों और जीभ का कमाल ही सोनू के लिए भारी पड़ गया।

सोनू के होंठ कांप रहे थे..वह बार बार कुछ बुदबुदा रहा था… हां …..हां ….दीदी हां… बस ऐसे ही.. हां और जोर से जोर से …हां .हां..


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सुगना अपनी उंगलियों से सोनू के लंड और अंडकोषों को प्यार से सहलाती रही। सोनू से और बर्दाश्त में न हुआ उसे अपने आजाद हाथों का ध्यान आया और वह अपनी हथेली से सुगना के सर पर रख कर उसको अपने लंड को और भी अंदर लेने के लिए प्रेरित करने लगा।

सुगना अब समझ चुकी थी की सोनू के स्खलन का वक्त आ चुका है वरना उसका छोटा भाई सोनू उसके सर को अपने लंड पर झुकने की हिम्मत नहीं करता।

सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि स्खलन के वक्त पुरुष स्त्री में सिर्फ और सिर्फ वैश्या का रूप देखता है ..

सुगना को कुछ पलों के लिए सोनू की उत्तेजना को सहन करना था। सुगना ने अपना अंतिम अस्त्र चलाया उसने अपनी दांतों और जीभ का प्रयोग सोनू के लंड करके सोनू ने अंडकोषों को अपना मुंह खोलने पर विवश कर दिया। सुगना सतर्क थी। वीर्य की धार सुपाड़े तक पहुंचते तक सुगना सुपाड़े को जोर जोर से चूसती रही और जब तक सुगना के होंठ लंड से दूरी बना पाते वीर्य की एक तेज धार सुगना के होंठों से टकराई ।

सोनू ने अपना लंड अपने हाथों में पकड़ने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक लिया.. सुगना ने सोनू के लंड को पड़कर उसके वीर्य की धार को स्वयं दिशा दी। सुगना को यह भली भांति ज्ञात था की सोनू के वीर्य का सही स्थान कहां था…

वीर्य की आखिरी बूंद निचोड़ लेने के पश्चात सुगना ने एक बार फिर लंड के सुपाड़े को चूमा और बेहद प्यार से उसे सोनू की जांघों पर सुला दिया..

सुगना को अपनी बुर का ध्यान आया जो मुंह फुला कर अपनी बारी का इंतजार कर रही थी और अपनी उत्तेजना का उत्सर्जन अपने होठों से बहती लार से कर रही थी। सुगना ने बुर की लार को अपने हाथों से पोछना चाहा परंतु उसके हाथ स्वयं सोनू के वीर्य से सने थे।

सुगना बिस्तर के सिरहाने की तरफ गई और सोनू के चेहरे से अपनी नाइटी हटा ली..अपने हांथ पोंछे और सोनू के बगल में पीठ के बल लेट गई। इससे पहले कि वह नाइटी से अपनी बुर पोंछ पाती सोनू ने आंखें खोल दी थी और सुगना की तरफ देखा सुगना सोनू से आंखें मिला पानी की हिम्मत नहीं छुपा पाए और इस नाइटी से वापस अपने चेहरे को ढक लिया…

सोनू सुगना के नग्न बदन को देखता रह गया…

उसका वीर्य .सुगना के गाल, गर्दन, चूचियों नाभि और जांघों पर पड़ा चमक रहा था…निश्चित ही सुगना के सोनू के वीर्य स्खलन के दौरान उसकी दिशा को सोनू की मनोदशा के अनुकूल ही रास्ता दिखाया था..

सुगना सच में महान थी और अपने प्रेमी के अंतरमन को बखूबी समझती थी..

सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी। सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


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नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।

शेष अगले भाग में
..


कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। और प्रतिक्रिया देते वक्त ध्यान से इस मैसेज को कोट मत कीजिएगा। इस भाग का लिंक सिर्फ उन्हीं पाठकों को दिया गया है जिन्होंने पिछले भाग पर प्रतिक्रिया दी थी..
मुुस्कुराते रहिए...ध्यान रखिएगा।
 
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Lovely Anand

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लावलीजी यदि संभव हो तो कहानी में gif का प्रयोग कीजिये । जिससे चित्रण यथार्थ जैसा प्रीतीत हो
आप यथार्थ वाले pic ya gif bhejiye मैं अवश्य लगा दूंगा
 

Lovely Anand

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Very good update ab sugna didi ki jabardast pelai hoga
छी छी कितना गंदी बात करती है आप
औरत का परपुरुष से लज्जा करना प्राकृतिक है और ये संस्कार भी है परन्तु एक अनुभवी और कामक्रीङा मे पारंगत कामातुर स्त्री हर समय एक तगड़े दमदार पुरुष के ही स्वप्न देखती है
जो अपने बलशाली बाहुपाश मे जकड़ के ऐसे ठाप मारे की औरत का अंग अंग ही नहीं अपितु नस नस भी ढीली हो जाये
बात तो सही कही आपने...
How to get after 118?
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Kammy sidhu

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भाग 118

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..


सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

अब आगे

बेहद खूबसूरत नाइटी पहने सुगना धीरे-धीरे पलंग की तरह बढ़ रही थी। लाख पोछने के बावजूद शरीर पर चिपकी पानी की बूंदे नाइटी को जगह जगह से गीला कर चुकी थीं। सुगना ने बिस्तर पर रखा हुआ अपना शाल ओढ़ा और धीरे धीरे सोनू के करीब आकर बिस्तर पर बैठ गई।

सुगना ने धीमे स्वर में पुकारा

" ए सोनू…." परंतु सोनू ने कोई प्रतिक्रिया ना दी। सोनू पूरी नींद में था पर सुगना स्वयं विरोधाभास में थी। वह सोनू को जगाना कतई नहीं चाहती थी परंतु उसकी निद्रा की गंभीरता की जांच अवश्य करना चाहती थी।

सुगना ने उसे अपने हाथों को छूकर उसने चेतना में लाने की कोशिश की परंतु वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा कारगर थी सोनू अवचेतन अवस्था में जा चुका था। आखिरकार सुगना ने अपनी आंखें बंद की अपने इष्ट को याद किया और फिर अपने छोटे भाई सोनू के उस प्रतिबंधित क्षेत्र पर हाथ लगा दिया जो बड़ी बहन के लिए सर्वथा वर्जित था। धोती को फैलाते ही सोनू का मजबूत लंड अंडरवियर के पीछे से दिखाई पड़ने लगा।

सुगना के हाथ कांप रहे थे। उसने अपनी सांसो को अपने सीने में रोककर रखा और बाएं हाथ की उंगली से अंडर वियर की इलास्टिक पकड़कर नीचे कर दी।

सोनू का खूबसूरत लंड जो अभी सुसुप्त अवस्था में था छोटी मधु के हाथ जैसा कोमल था वह सुगना की निगाहों के सामने आ गया अपने छोटे भाई का लंड अपनी आंखों के सामने देखकर सुगना ने अपनी पलकें झुकाना चाहा परंतु सुगना की आंखों ने उस खूबसूरत दृश्य से अपनी नजरें हटाने से मना कर दिया। सुगना एक टक उस खूबसूरत लंड को देखती रह गई जो ठीक अपने मालिक की तरह नींद में सोया हुआ था।

सुगना सोनू के जननांगों के पास कोई भी बाल न देखकर हैरान थी। तो क्या सोनू ने आजकल में ही इन बालों की सफाई की थी? क्या सोनू स्वयं इसका इंतजार कर रहा था? या फिर फिर सोनू ने इसे अपनी आदत में शामिल कर लिया था?

सुगना एक पल के लिए घबरा गई पर फिर उसने हिम्मत जुटाई और अपने दाएं हाथ से पकड़ कर उस खूबसूरत लंड को बाहर निकाल लिया। अंडर वियर की इलास्टिक ने सोनू के अंडकोषों का सहारा ले लिया और लंड को ढकने की कोशिश त्याग दी।

आगे क्या करना था सुगना को पता था। यह सुगना के लिए भी आश्चर्य का विषय था की दवा से लगभग अपनी चेतना खोने के वावजूद भी सोनू के अधोभाग में उत्तेजना अब भी कायम थी जो सुगना के हाथ लगाते ही सोनू का लंड धीरे धीरे तनता चला गया।

नियति मुस्कुरा रही थी। काश सोनू अपनी बहन का यह प्यार देख पाता जिसने उसकी मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी विचारों और आदर्शों को ताक पर रखकर आखिरकार उसका लंड अपने हाथ में ले लिया था। जैसे-जैसे सुगना सोनू के लंड को सहलाती गई वह कोबरा की तरह अपना फन उठाने लगा। अपनी मेहनत को रंग लाते देख सुगना और भी तन्मयता से अपने कार्य में लग गई।

सोनू का पूरी तरह तना हुआ लंड देख सुगना मंत्रमुग्ध हो गई। युवा लंड की ताजगी और खूबसूरती देखने लायक थी। ऐसा न था कि सुगना ने यह पहली बार देखा था इसके पहले भी वह हैंडपंप पर और लाली की नंगी बुर में आगे पीछे होते सोनू का लंड देख चुकी थी परंतु आज अपनी नंगी आंखों से अपने अपने छोटे भाई सोनू के लंड को अपने हाथों में लिए उसे जी भरकर निहार रही थी।

जैसे ही सुगना ने लंड के अग्रभाग की चमड़ी को नीचे किया सोनू का फूला हुआ लाल सुपाड़ा अनावृत हो गया। सोनू के खूबसूरत लंड ने सुगना को सरयू सिंह को याद करने पर विवश कर दिया। वह उन दोनों की तुलना करने लगी और अंततः सोनू विजई रहा। सुगना के सहलाए जाने से लंड अपना आकार और बढ़ा रहा था पर अंडकोष सिकुड़ रहे थे और सुगना सोनू के लंड को हौले हौले स्खलन के लिए तैयार कर रही थी।

स्खलन आवश्यक था परंतु सुगना सोनू के लंड से कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना चाहती थी। उसे डॉक्टर की हिदायत याद थी कि सोनू को अधिक से अधिक संभोग करना था। सुनना यह पाप करने को तो राजी ना थी परंतु अपने भाई को स्खलित करना उसकी अनिवार्य प्राथमिकता थी। सुगना धीरे धीरे लंड को सहलाती पर बिना किसी स्नेहक के उसके हाथ सोनू के लंड पर घूमने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। सोनू के सुपाड़े से रिस रही लार ही एकमात्र सहारा थी।

अचानक सुगना को अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ निश्चित थी यह उत्तेजना का परिणाम था सुगना ने अपनी बुर को थपकियां देकर शांत रहने को कहा परंतु बुर ने प्रतिउत्तर में सुगना की उंगलियों को चिपचिपा कर दिया। जैसे ही सुगना को अपनी उंगलियों पर चिपचिपा पन महसूस हुआ उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उंगलियां स्वतः सोनू के लंड पर चली गईं।

सुगना के हाथ बड़ी खूबसूरती से सोनू के लंड पर फिसलने लगे। जब एक बार यह प्रयोग सफल रहा तो सुगना आगे बढ़ गई। जब जब चिपचिपापन कम महसूस होता वह अपनी बुर से सोनू के लिए उड़ेला प्यार अपनी उंगलियों पर ले आती और सोनू के लंड को प्यार से सहलाने लगती।

कभी कभी सुगना को लगता की वह अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाकर सोनू को शीघ्र स्खलित कर दे पर सोनू के आपरेशन की बात याद कर उसकी उंगलियां अपना दबाव घटा देती। वह कतई अपने अवचेतन भाई के उस अंग को गलती से भी चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी…जिसे उसके कारण ही आपरेशन जैसी यातना झेलनी पड़ी हो…पर जिस प्यार और आत्मीयता की दरकार सोनू के लंड को थी वह सुगना की जांघों के बीच लार टपकाए स्वयं इंतजार कर रही थी पर उसकी मालकिन सुगना अब भी तैयार न थी।

सुगना का प्यार अपने चरम पर था बस रूप अलग था।

प्यार का यह खेल ज्यादा देर न चल पाया। जैसे ही सुगना ने सोनू के लंड के पिछले भाग को अपने अंगूठे से हल्के हल्के कुरेदा सोनू के अंडकोशों में जबरदस्त संकुचन हुआ और सोनू ने लंड ने सुगना के हथेलियों से बाहर आने की कोशिश की पर सुगना ने उसे घेर लिया और एक बार फिर उसके सुपाड़े को हौले से मसल दिया… आखिरकार वीर्य धारा फूट पड़ी…

जब तक सुगना संभलती वीर्य की धार ने छत की ऊंचाई नापने की कोशिश की…और सुगना का नहाना व्यर्थ हो गया। सोनू के वीर्य की 2 - 3 लंबी धार उसके बदन पर आकर गिरी। कुछ बूंदों को नाइटी ने आड़े आकर सुगना के बदन से मिलने से रोक लिया पर कुछ सुगना के बदन को चूमने में कामयाब हो गईं। सोनू के वीर्य की वो भाग्यशाली बूंदे उसकी बहन के गर्दन से होते हुए उसकी चूचियों तक जाने लगीं।

सुगना ने अपने हाथों से उन बहती बूंदों का मार्ग अवरुद्ध किया जो सरयू सिंह के वीर्य की तरह उसकी चुचियों को चूमना चाहती थीं…सुगना मुस्कुराने लगी। अवचेतन सोनू के वीर्य की इस शरारत ने सुगना के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी। उसने बड़े प्यार से सोनू लंड को एक मीठी सी चपत लगाई…

नितांत एकांत, जागृत वासना और सोनू के प्रति प्यार ने सुगना के मन के किसी कोने में उस प्यारे और प्रेम युद्ध में हार चुके लंड को चूमने की इच्छा जाग्रत कर दी जिसे सुगना ने छल से हरा दिया था। पर सोनू उसका भाई था…अपने भाई का लंड चूमना….?


सुगना के मन में वासना और आदर्शों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। आज सुगना का प्रयोग सफल रहा था वो सोनू को स्खलित करने में कामयाब हो गई थी। अपने सफलता की खुशी में उसे स्वयं द्वारा किया गया क्रियाकलाप स्वाभाविक तौर पर स्वीकार्य लग रहा था।

सुगना ने अपनी वासना पर विजय पाई और सोनू के लंड को वापस अंडरवियर में कैद कर दिया।

सुगना खुश थी वह उसकी धोती ठीक कर दूसरी पलंग के दूसरी तरफ जाकर मधु के बगल में लेट गई। सुगना ने मन ही मन वैद्य जी की पत्नी का शुक्रिया अदा किया और अपने इष्ट से क्षमा मांगकर सोने की कोशिश करने लगी। उसकी निगोड़ी बुर अब भी मुंह बाये सुगना का ध्यान खींच रही थी परंतु सुगना अपना कर्तव्य निर्वहन कर संतुष्ट थी… नियति चीख चीख कर सुगना को उसकी अद्भुत बुर को जीवंत रखने के लिए उसे हस्तमैथुन को उकसा रही थी परंतु उसका यह प्रयास असफल हो रहा था और…. नियति का सबसे वीर सिपाही सोनू अभी गहरी निद्रा में सोया हुआ था….

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उधर सलेमपुर में सरयू सिंह की आंखों से नींद गायब थी। बनारस से वापस आने के बाद उनके सोनी के करीब आने की संभावनाओं पर विराम लग गया था। सरयू सिंह की वासना को कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था वह भटक रही थी।

आखिरकार वह वास्तविकता से कल्पना की दुनिया में खोते चले गए और अपनी कल्पना को यथासंभव मूर्त रूप देने के लिए वह बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए।

रात को अपने एकांत में टीवी चला कर खूबसूरत हीरोइनों को निहारना और उनके तराशे हुए बदन की कल्पना कर अपनी वासना को जागृत करना। वह अधनंगी हीरोइनों को निहारते और अपने मजबूत और खूबसूरत लंड को हाथों में पकड़ कर बड़े प्यार से सहलाते और बॉलीवुड की तात्कालिक खूबसूरत कन्याओं को अपने दिमाग में रखते हुए लंड को मसल मसल कर स्खलित कर लेते। आज भी वह जीनत अमान को देखते हुए अपने लंड को सहला रहे थे तभी कजरी दूध लेकर अंदर आ गई।

सरयू सिंह ने झटपट अपने खड़े लंड को धोती के अंदर किया पर उस मजबूत लंड को छुपा ना असंभव था। कजरी ने सरयू सिंह की हरकत ताड़ ली और बोली

" ई उमर में भी ई कुल करें में मन लागत बा?"

"काहे मरद और घोड़ा कभी बूढ़ा होला का" सरयू सिंह ने अपनी मर्दानगी का दंभ भरते हुए कहा..

"काहे भुला गईनी का बनारस में का भईल रहे?"

सरयू सिंह को बनारस की वह सुबह याद आ गई जब रेडिएंट होटल में मनोरमा के कमरे में अपनी प्यारी सुगना को चोदते और विकृत वासना के आधीन होकर दूसरे कसे हुए दूसरे छेद का उद्घाटन कर अपनी कोमल बहु सुगना को गचागच चोदते रूप देते हुए अपनी हृदय गति पर काबू न कर पाए और बेहोश हो गए थे।

यद्यपि यह बात वह सब से छुपा ले गए थे पर कजरी और सुगना बेहद अंतरंग थे। सुगना ने सारी बातें कजरी से साझा कर ली थी।

सुगना का ध्यान आते ही सरयू सिंह चुप हो गए।

कजरी ने अपनी बात पर एक बार फिर जोर देते हुए कहा

" अब ई सब छोड़ दीं और पूजा पाठ में मन लगाई "

"हमरा खातिर ई भी एगो पूजा ह….तोहार पुजाई एहि से भईल रहे भुला गईलू … कितना खुश रहत रहलु ऐही घोड़ा के सवारी करके और अब इकरा के अकेले छोड़ देले बाडु"। सरयू सिंह ने अपने तने हुए लंड को कजरी को दिखाते हुए कहा।

कजरी ने अपनी पलके झुका ली उसे बखूबी पता था कि उसके और उसकी बहु सुगना के जीवन में खुशियां भरने वाला यही खूबसूरत लंड था फिर भी उसने बात बदलते हुए कहा …

"काल तनी सीतापुर चल जईती …छोटकी डॉक्टरनी आईल बिया। हम गुड़ के लड्डू बनावले बानी ओकरा के दे अईती बहुत पसंद करेले।

सोनी का नाम आते ही सरयू सिंह चैतन्य हो गए। अपनी खुशी को काबू में करते हुए सरयू सिंह ने कहा ठीक बा चल जाएब…कजरी दूध रखकर चली गई….और एक बार फिर सरयू सिंह सोनी को याद करने लगे…

सोनी सरयू सिंह के दिमाग में घूमने लगी। सोनी के बारे में सोचते ही उनकी सारी इंद्रियां जाग उठती। सोनी की खूबसूरत और कोमल त्वचा को अपनी हथेलियों से छूने की कल्पना मात्र से तन बदन सिहर जाता। जैसे-जैसे उनके दिमाग में सोनी की मादक काया घूमती गई सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ती गई।

कजरी के आने से जो कार्य अधूरा छूटा था आज फिर सोनी अनजाने में ही उसे अंजाम पर पहुंचाने में लग गई। हथेलियां अपने कार्य में लग गई और सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करने लगीं।

उधर सोनू स्खलित हो चुका था इधर सरयू सिंह भी स्खलित होने को तैयार थे।

पदमा की युवा पुत्रियां सुगना सोनी और मोनी रूप लावण्य से भरी काया में मादकता लिए आने वाले प्रेमसमर में लिए तैयार हो रही थीं।

अगली सुबह सरयू सिंह ने नया धोती कुर्ता निकाला नए-नए लक्स साबुन से पूरे बदन को साफ किया इत्र लगाया और उसकी भीनी भीनी खुशबू संजोए तैयार होकर कजरी द्वारा दिया लड्डू अपने झोले में रख सीतापुर की तरफ निकल पड़े….

सलेमपुर से सीतापुर का सफर न जाने सरयू सिंह ने कितनी बार तय किया था परंतु जो सफर उन्होंने कुंवारी सुगना के साथ किया था वह अभी भी उन्हें गुदगुदा जाता था। सुगना उनकी अपनी पुत्री है यह जानने के बाद आए वैचारिक परिवर्तन के बावजूद जैसे ही वह बरगद का पेड़ उन्हें दिखाई पड़ता उनका तन बदन सिहर उठता कैसे बारिश के सुहाने मौसम में उन्होंने अपनी प्यारी सुगना को अपनी गोद में बैठाया था और धीरे धीरे उसकी गोरी और कुंवारी जांघो के बीच अपना लंड रगड़ते हुए स्खलित हो गए थे।

वासना के झोंके ने उनके लंड में फिर तनाव भर दिया…सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ सोनी को ध्यान में लाया और उनके कदमों की जांच स्वतः ही तेज होती गई और कुछ ही मिनटों बाद सरयू सिंह पदमा के दरवाजे पर आ पहुंचे…

घर के बाहर दालान के सामने एक सुंदरी अपने घागरे को घुटने तक लपेटे ऊकड़ू बैठी हुई थी उसके हाथ गोबर से सने हुए थे। वह गोबर और भूसा को आपस में मिलाकर आटे जैसे गूथ रही थी और उसके बड़े बड़े गोल लड्डू बनाकर अपने पंजे पर लेती और उसे आगे बढ़कर दीवाल पर तेजी पटक कर चिपका देती उंगलियों के निशान उस गोबर की रोटी नुमा आकृति पर स्पष्ट स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते …

सरयू सिंह मंत्र मुक्त होकर उस खूबसूरत तरुणी को देख रहे थे। घुटनों से नीचे उसका बेहद खूबसूरत और गोरा पैर चमक रहा था। बाकी सारा शरीर घाघरा और चोली से ढका हुआ था। चोली और छाघरे के बीच से उसकी दूधिया कमर की झलक कभी-कभी दिखाई पड़ जाती। घाघरे में कैद जांघें और भरे भरे नितंब देख सरयू सिंह का लंड हरकत में आ गया।

सरयू सिंह का लंड सुंदर युवती देखते ही अपने अस्तित्व का एहसास सरयू सिंह को करा जाता था। सरयू सिंह ने अपनी लंगोट पर हाथ फेर कर उसे शांत रहने का निर्देश दिया यद्यपि उन्हें यह बात पता थी कि इन मामलों में वह उनका दिशा निर्देश कभी भी नहीं मानता था। सरजू सिंह मंत्रमुग्ध होकर तरुणी को देखे जा रहे थे…

अचानक दरवाजे पर किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. उस सुंदरी ने दरवाजे की तरफ देखा और सरयू सिंह की आंख उससे तरूणी से जा मिली..

सरयू सिंह को यकीन नहीं ना हुआ कि वह गोबर पाथ रही लड़की छोटी डॉक्टरनी सोनी थी.. शहर की पढ़ी लिखी और आधुनिक वेशभूषा में रहने वाली सोनी आज पारंपरिक वेशभूषा में अपनी मां का हाथ बटा रही थी।

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और अपने कदम बढ़ाते हुए सोनी के पास आने लगे। सोनी में भी गोबर पाथने का कार्य छोड़ दिया और बाल्टी में रखे गंदे हो चुके पानी से अपने हाथ साफ किए और उठकर खड़ी हो गई।

चेहरे और गर्दन पर पसीने की बूंदें उसे और खूबसूरत बना रही थी गालों पर लटकती लट …आह….सरयू सिंह सोनी की खूबसूरती में खो गए पर यह नयनाभिराम दृश्य कुछ पलों के लिए ही था। सोनी आगे बढ़ी और उसने सरयू सिंह के चरण छुए और अगले ही पल भागती हुई घर के अंदर प्रवेश कर गई…. पर इन कुछ ही पलों में सरयू सिंह ने सोनी के घाघरे में छुपे उन गोल नितंबों को हिलते हुए देख लिया और उनका लंगोट एक बार फिर छोटा पड़ने लगा…

"मां सरयू चाचा आईल बाडे "

पदमा रसोई में खाना बना रही थी वह उठकर बाहर आई …

पदमा के सर पर पड़े आंचल ने उसके गाल ढक रखे थे। सरयू सिंह पदमा को देख रहे थे। उनके मन में हमेशा से एक अलग किस्म का प्यार था। सुगना उनकी ममेरी बहन थी पर उस कामुक मिलन ने उन्हे और करीब ला दिया था। यह जानने के बाद की सुगना अद्भुत प्यार से जन्मी है यह प्यार और भी बढ़ गया था।

सरयू सिंह कुछ पलों के लिए खो से गए। पद्मा ने दीवाल का सहारा लेकर खड़ी की गई चारपाई को नीचे बिछाया और सरयू सिंह से बैठने के लिए कहा अब तक सोनी अंदर से बतासे और लोटे में पानी लेकर आ गई थी। बताशा देते समय सोनी की चोली थोड़ा ढीली हुई और विकास की जी तोड़ मेहनत से उन्नत हुई चूचियां ने सरयू सिंह का ध्यान खींचने में कामयाबी हासिल कर ली। जैसे ही सोनी ने सरयू सिंह की निगाहों को अपने बदन में छेद करते हुए महसूस किया उसने झटपट अपनी चोली ठीक की… जिसे पास खड़ी पद्मा ने भी देख लिया।

सरयू सिंह ने अपनी निगाहों पर नियंत्रण किया और सोनी के हाथ से बतासा लेकर "खबर खबर" की आवाज के साथ खाने लगे और लोटे से गटागट पानी पीने लगे…

सरयू सिंह ने अपने झोले से कजरी द्वारा बनाया लड्डू बाहर निकाला और सोनी को देते हुए बोले

"कजरी तोहरा खातिर भेजले बाडी"। उन पीले सुनहरे लड्डुओं को देखकर सोनी खुश हो गई और सोनी ने उसमें से लड्डू निकाल कर तुरंत ही खाने के लिए अपना खूबसूरत मुंह खोल दिया..सोनी के चमकते दांत और गोल होठों को देखकर सरयू सिंह फिर वासना में खो गए लड्डू की जगह उन्हें अपने लंड का सुपाड़ा सोनी के मुंह में जाता हुआ महसूस हुआ।

न जाने सरयू सिंह को क्या हो गया था? मादक सोनी को इस ग्रामीण वेशभूषा और उसकी अल्हड़ता देखकर वह सुधबुध को बैठे थे। पद्मा ने सरयू सिंह को सोनी की तरफ देखते पकड़ लिया था उसे अभी यह तो एहसास न था कि सरयू सिंह के मन में सोनी के प्रति वासना जाग चुकी है परंतु इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि युवा और अल्हड़ लड़कियों को दूसरों से सुरक्षित दूरी बनाए रखनी चाहिए चाहे वह कितना भी करीबी क्यों ना हो। उसने सोनी को डाटा ..

"अरे एहीजे लड्डू खाए लगले जो भीतर बैठ के आराम से खो और चाचा जी खातिर चाय बना ले आऊ"

सरयू सिंह और पदमा इधर उधर की बातें करने लगे धीरे-धीरे जैसे गांव वालों को खबर लगी की पटवारी साहब सीतापुर आए हैं पदमा के घर के सामने लोगों का हुजूम लगने लगा। सोनी को पता था चाय की मात्रा सिर्फ सरयू सिंह के लिए नहीं गांव के और सम्मानित लोगों के लिए भी बनानी थी। कुछ ही देर में पदमा का सुना पड़ा घर गुलजार हो गया था।



उधर जौनपुर में ….बीती रात सुगना ने जो सफलता प्राप्त की थी उसकी संतुष्ट सुगना के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। सूर्य की कोमल किरणों ने जैसे ही सुगना की पलकों को छुआ सुगना अपनी नींद से बाहर आई और मुस्कुराते हुए अगड़ाई ली। करवट लेकर वह बगल में लेटे हुए सोनू को देख कर मुस्कुरा उठी। बीती रात उसने जो किया था एक बार वह सारे दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम गए और नजरें सोनू के अधोभाग भाग पर चली गई जहां सोनू का लंड अभी अपनी उपस्थिति महसूस करा रहा था।

सुगना धीरे धीरे बिस्तर से उठी और मुस्कुराते हुए गुसल खाने में प्रवेश कर गई। नित्यकर्म के पश्चात वह गुनगुनाते हुए रसोई में गई वह हाथों में चाय की प्याली लिए एक बार फिर कमरे में उपस्थित थी।

शायद सोनू अपनी नींद पूरी कर चुका था या सुगना के कदमों की आहट कुछ ज्यादा ही तेज थी सोनू की पलकें खुली और अपनी अप्सरा को अपने आंखों के सामने चाय का प्याला लिए देखकर सोनू खुश हो गया। रात में सुगना द्वारा दी गई उस दवा का असर भी अब शायद खत्म हो गया था।

वह बिस्तर पर उठकर बैठ गया उसे यह एहसास न था की बीती रात क्या हुआ है परंतु सुगना को संतुष्ट और खुश देख कर उसे शक हुआ..

"दीदी का बात का बड़ा खुश लागत बाडू?"

"कुछ ना तोर जौनपुर की हवा ठीक लागत बा"

कई बार सामने वाले की मन की बातें आप समझ नहीं पाते… वही हाल सोनू का था। सुगना ने यह बात बस यूं ही कह दी थी वैसे भी अपनी खुशी का राज बताना उचित न था।

सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

शेष अगले भाग में

Wah bhai maja aa gaya too much romantic update bro and continue story
 
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