अपडेट -- 14
आंचल अपनी नज़रे झुकायी बोलती है!
आंचल- तुम्हारी हालत क्यूं खराब होने लगी भला, वो भी मुझे देखकर?
रितेश- अब तुम इस तरह तड़पाओगी मुझे तो हालत तो खराब होगी ही ना मेरी!
आंचल को ये सुनकर बहुत खुशी हुई की रितेश मुझसे प्यार करता है....और आज वो जो इतनी सज धज के आयी थी...वो रितेश को रिझाने के लीये ही तो आयी थी...
आंचल और रितेश दोनो चुप थे की तभी वहां नीलम पानी ले कर आ जाती है.....
नीलम- ये लो रितेश भैया...पानी!
रितेश पानी का ग्लास ले कर आंचल की तरफ बढ़ा देता है।
रितेश - ये लो पी लो......दील की धड़कन शांत हो जायेगी।
आंचल ये सुनकर और ज्यादा शरम से लाल हो जाती है....और पानी का ग्लास ले लेती है.....
कुछ देर में सब चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ते है.......
सारा दीन चुनाव प्रचार करने के बाद.....रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठा था।
अजय - यार भाई, चुनाव के लीये मुझे कुछ ज्यादा ही परेशानी हो रही है.....
रितेश - कैसी परेशानी बे?
अजय - अरे यार भाई.....ये ठाकुर की पहुचं बहुत उपर तक है......चुनाव तो अपने हाथ में नही हैं समझ।
रितेश - हम्म्म......चल तू पहले ठेके पर....
अजय रितेश के साथ शराब के ठेके पर पहुचंता है....वंहा अजय ने शराब की दो बोतल खरीदी......और फीर गांव के बाहर तालाब पर बने पुलीया पर बैठ कर शराब पीने लगते है.......
रितेश और अजय बैठ कर दारु पी रहे थे.....चादं धरती पर अपना उज़ाला बीखेरी थी......और ठंढ़ी हंवाये चल रही थी.....।
रितेश - यार एक बीड़ी जला!
अजय ने एक बींड़ी अपने मुह में डालकर जैसे ही माचीस की तीली मारने को हुआ.......
रितेश- यार.....अजय इतनी रात को इस जंगल में तुझे कुछ उज़ाला ......नही दीख रहा है!
अजय बींड़ी को वापस मुहं मे से हाथ मे ले लेता है.....।
अजय - अरे भाई तू भी क्या बात कर रहा है.....इतनी रात को भला इस घने जंगल मे कौन आयेगा? जंहा सब दीन में आने से भी डरते है.....
अजय अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी की......उन्हे गोली चलने की आवाज़ सुनायी पड़ी.....।
धांय.....धांय.......धांय......
एक के बाद एक करीब तीन बार गोलीया चलने की आवाज़ ने.......रितेश और अजय के चढ़ चुके शराब के नशे भी उतर गये.....
रितेश झट से पुलीया पर से उठ कर गोलींयो की आवाज़ की तरफ भागता है...
अजय भी रितेश के पीछे भागते हुए , जंगल की तरफ नीकल देता है.....
अजय रितेश के पीछे पीछे उस जगह तक पहुचं जाता है.......
कुछ 10 कदमों से दुर वंहा लकड़ीया , जल रही थी.... और उस आग के चारो तरफ़ करीब 10 लोग जो की , अपने चेहरे पर काले कपड़े बांधे हुए थे।
रितेश एक झांड़ी के पिछे खड़ा हो कर ये सब देख कर दंग रह गया......
अजय - भाई ये सब कौन है?
रितेश - चुप .......धिरे बोल, पता करते हैं की कौन है।
थोड़ी समय बाद....उन दोनो की आंखे खुली की खुली रह गयी....
राजू जो की रज्जो का बेटा था....वो कुछ आदमीयो के साथ एक बक्सा ले कर ठाकुर के गोदाम से बाहर नीकला....दो लोग एक हवलदार को पकड़े हुए थे.....
और तभी कुछ आदमी....अँदर से एक और आदमी को पकड़ कर ले आते है....जीसे देख कर रितेश और आजय चौकं जाते है..।
वो आदमी कोई और नही दरोगा था....दरोगा के कपड़े फटे थे....और उसके चेहरे पुरे सुजे हुए थे....औल पेट गर्दन पर खुन भी लगे हुए थे।
ये नज़ारा देखकर रितेश और अजय की हालत खराब हो गयी....दोनो झांडीयो के पीछे छुपकर ये सब देख रहे थे....
तभी उस जगह एक गाड़ी आकर रुकी....
अजय(आश्चर्य से) - अब ये कौन है?
रितेश कुछ बोला नही लेकीन अपनी एक उंगली अपने होठ पर रखकर चुप रहने का इशारा कीया!
तभी दरवाज़े का गेट खुलता है....उसमे से दो आदमी उतरते है.....
रितेश और अजय ये देखकर चौक जाते है की.....गाड़ी में से उतरने वाला कोई और नही बल्की विधायक और ठाकुर था!
अजय - भाई ये तो....
रितेश - चुप....चुप रह एकदम!
ठाकुर गाड़ी से नीचे उतर कर दरोगा के नज़दीक जाता है....दरोगा अपने घुटने पर बैठा था और दो आदमी....दरोगा के हाथ पकड़े हुए थे!
ठाकुर दरोगा के पास बैठते हुए-
ठाकुर - अरे....दरोगा साहब आप इस हालत मे ....ओ हो....सच बताउं दरोगा साहब.....आपको इस हालत में देखकर अच्छा नही लग रहा!
ठाकुर की बात सुनकर ......दरोगा ने अपने गर्दन को धीरे धीरे कराहते हुए उठाया और फीर बोला-
दरोगा - क्यूं....गांड फट गयी क्या तेरी ठाकुर?
दरोगा की बात पर ठाकुर को गुस्सा आया और जोर का थप्पड़ दरोगा के गाल पर ज़ड़ दीया!
ठाकुर - अबे....कुत्ते मौत के मुह में खड़ा है...और मुझे डरा रहा है! साले।
ये सुनकर दरोगा हंसने लगता है.....और बोला-
दरोगा - अबे तू क्या मुझे डरायेगा.....साले मादरचोद!
ठाकुर का गुस्सा आसमान पर पहुचं गया....
ठाकुर अपने बगल में खड़ा एक आदमी से बंदुक छीनते हुए दरोगा के कनपटी पर सटा कर गोली चला देता है....
ठाकुर - साले, मुझे गाली देता है....
दरोगा वहीं जमीन पर गीर जाता है....
ये खौफनाक मजंर देख कर अजय कांपने लगता है....रितेश को भी पसीने आने लगते है...
ठाकुर - मेरे काम में जो टांग लड़ायेगा वो जान से जायेगा....सुनो रे! लाश को ठीकाने लगा दो!
और इतना बोलकर ठाकुर विधायक के साथ गाड़ी में बैठ जाता है....और गाड़ी वंहा से नीकल जाती है।
थोड़ी देर बाद धिरे से अजय और रितेश भी वंहा से नीकल कर गांव के पुलीया पर आ जाते है...
रितेश ने अजय को देखा ....तो एकदम डरा हुआ था....चांद के रौशनी में रितेश अजय का चेहरा साफ देख सकता था!
रितेश - क्या हुआ?
अजय - भाई गलत पंगा ले लीया! ये ठाकुर तो बहुत खतरनाक आदमी नीकला...इसने तो दरोगा को ही मार दीया....
ये सुनकर रितेश हंसने लगा.....
अजय - अरे भाई यंहा गांड फटी पड़ी है...और तू हंस रहा है।
रितेश - अबे साले....मैं तो ठाकुर के बरबादी पर हंस रहा हूं।
अजय - ठाकुर की बरबादी.... वो कैसे?
रीतेश - तू एक काम कर...अभी घर जा...कल मुझे बनवारी के ठेले पर मील!
अजय - लेकीन!
रीतेश - अभी जा....बहुत रात हो गयी है!
अजय - ठीक है!
और फीर रितेश और अजय अपने अपने घर की ओर नीकल जाते है।
रितेश जैसे ही घर पहुचंता है....वो बाहर खाट पर बैठ जाता है....आज के हादसे ने उसे परेशानी में डाल दीया था.....।
वो अपना दोनो हाथ सर पर रखे हुए था....और कुछ सोच रहा था.....की तभी कजरी वंहा आ जाती है।
कजरी जब रितेश को देखती है तो वो हैरान हो जाती है।
कजरी (मन में ) - आज इसे क्या हो गया..? ऐसे सर पर हाथ रख कर क्यूं बैठा है, कहीं कीसी परेशानी में तो नही हैँ। क्या करुं पुछु की नही.....पुछ ही लेती हू....नाराज हूं तो क्या हुआ है तो मेरा बेटा ही ना!
कजरी - क्या हुआ.....ऐसे क्यूं बैठा है?
ये आवाज़ सुनकर रितेश ने अपनी नज़रे उठा कर अपनी मां की तरफ देखता है।
कजरी का चेहरा देखते ही मानो रितेश अपनी सारी परेशानीया भूल जाता है.।
रितेश खाट पर से उठ कर खड़ा हो जाता है....और कजरी को बांहो में भर लेता है।
कजरी(छुड़ाते हुए) - छोड़ मुझे....छोड़ !
रितेश कजरी को अपनी बांहो में और कसते हुए बोला-
रितेश - मैं भला अपनी दुल्हन को क्यूं छोड़ूं?
कजरी - अरे....मैं तेरी दुल्हन थोड़ी हूं...मैने तुझसे क्या शादी की है....जो तू मुझे अपनी दुल्हन समझ रहा है?
रितेश - तो क्या शादी करने पर ही दुल्हन बनती है..।
कजरी - और नही तो क्या? लेकीन तू मुझसे शादी करने का खयाल भी मत लाना....क्यूकीं मै तेरी मां हूं।
रितेश - बस ...बस यही बात की तू मेरी मां है....और मैं तुझसे प्यार करता हूं इसीलीये मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं।
कजरी - ये प्यार नही हवस है....हवह!
रितेश गुस्से में आकर......अपनी मां को जोर का तमाचा मारता है...
तप्पड़ पड़ने से कजरी की गाल लाल हो जाती है....उसकी आंखो में आशुं आ जाते है।
जीसे देखकर रितेश को अपने आप पर गुस्सा आता है....वो प्यार से अपनी मां के चेहरे को अपने दोनो हथेलीयों में पकड़ अपनी उगंलीयो से कजरी के आखों से आंशु पोछते हुए बोला-
रितेश - ये हवस नही है मां, मैं सच में तुझसे प्यार करता हूं....अगर मुझे अपनी हवस ही मिटानी होती तो तूझे ये तो पता है की रज्जो हैं....और रज्जो ही क्यूं बल्की मैं कीसी से भी शादी कर लेता!
कजरी अपने गोरे खुबसुरत मासुम चेहरे को अपने बेटे के हथेलीयो में डाले अपनी कारी,कजरारी आंखो से रितेश को देखते हुए सोचा....
कजरी - बात तो ठीक है...अगर ये हवस होता तो सच में रज्जो तो हाथ धो के....हाथ क्या पुरा नहा धो के पड़ी है....तो क्या सच में वो सीर्फ मुझे अपनी!
कजरी - तो तू क्या चाहता है?
रितेश - यही की तू मेरी दुल्हन बन के मेरे साथ रह...
कजरी - उससे क्या हो जायेगा? अगर मैं तेरी दुल्हन बन भी जाती हूं तो तेरे मेरे बीच एक पती पत्नी का वो रिश्ता ....
'कजरी आगे बोलने ही वाली थी की'
रितेश - जीस्मानी संबध यही ना....नही बनाना मुझे ये संबध...बस तू मेरी दुल्हन बन कर रह...इससे मेरे मन को शातीं मीलेगी बस!
कजरी कुछ सोचती है और फीर बोली-
कजरी - ठीक है तू मुझे अपनी दुल्हन ही बनाना चाहता है ना , तो ठीक है...मैं तुझसे शादी करने के लीये तैयार हूं। लेकीन मैं तेरी एक पूरी दुल्हन कभी नही बन पांउगी....और ना ही तू इसकी कोशीश करना!
रितेश की आंखो में ऐसी चमक पहले शायद कभी नही आयी होगी....वो इतना खुश हो जाता है की मारे खुशी के उसने कजरी के गालो को चूम लेता है।
लेकीन तभी उसे अपनी गलती का एहसास होता है-
रितेश - अरे...अरे...गलती हो गयी!
कजरी - नही जाने दे तू...तू अपनी बात पर टीक नही सकता....मैं तुझसे शादी नही कर सकती!
रितेश ने सोचा अरे यार ये क्या हो गया सब कुछ ठीक हो गया था , ये क्या कर दीया मैने....और गुस्से में ही अपने आप को दो तीन थप्पड़ जड़ देता है।
ये देख कजरी को हंसी आ जाती है....वो अपने होठो पर एक दो उंगलीया रख कर थोड़ा मुस्कुरा देती है....कजरी को मुस्कुराता देख रितेश को चैन मीलता है।
रितेश(हकलाते हुए) - म...म...मां गलती हो गयी ...अब से आगे कभी नही छुउगां...सच में।
कजरी - पक्का आगे से नही होगा?
रीतेश - पक्का नही होगा।
कजरी - तो फीर ठीक है....कल जा कर मंदीर में शादी कर लेगें।
रितेश - कल नही मेरी दुल्हन!
कजरी - ऐ खबरदार! अभी मैं तेरी दुल्हन नही बनी हूं...एक बार पहले मुझे अपनी दुल्हन बना ले , फीर जीतना चाहें उतना बोल लेना मुझे दुल्हन!
रितेश - अच्छा ठीक है...मां।
कजरी - और ये बता कल क्यूं नही करना चाहता तू शादी?
ये सुनकर रितेश थोड़ा शरारती हो कर बोला-
रितेश - ओ....हो बड़ी उतावली हो रही हो शादी के लीये मां...
कजरी - अच्छा......। जा नही करती मै शादी।
रितेश - अरे....अरे मां मज़ाक कर रहा था...कल इस लीये शादी नही कर सकता क्यूकीं कपड़े खरीदने है....अब मेरी होने वाली दुल्हन अगर दुल्हन के जोड़े में ना सजे तो फीर वो मेरी दुल्हन कैसे लगेगी।
कजरी - वो अच्छा....लेकीन पैसे कहां है कपड़े खरीदने के लीये?
रितेश - अरे क्या है मां...तू पैस की चींता मत कर....लेकीन मैने ऐसी बात बोली तू थोड़ा शरमायी भी नही...कभी , कभी मौके पर शरमा भी दीया कर....मेरे दील पर बीजलीया गीरं जायेगी।
कजरी - अच्छा ठीक है.....शरमाउगीं , अब चल और खाना खा ले....सुबह से कुछ नही खाया है तूने!
और फीर कजरी हंसते हुए रसोयी घर की तरफ चली जाती है-
रितेश कजरी को जाते हुए देख कर बोला....यार ये औरत मुझे पागल कर देगी!