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Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर..

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Anish sinha

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लिखोगे तब ना तुम्हरी रूपाली दीदी के साथ ओर के भी सारे छेद खुलेंगे
 
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babasandy

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मेरी दीदी ने जीजू की पेंट के ऊपर हाथ रखकर उनका उभार टटोलने की कोशिश की.. पर मेरे जीजाजी का मुरझाया हुआ चूहा खड़ा होने का नाम नहीं ले रहा था.. खड़ा होना तो दूर की बात है ,हल्का कड़ापन भी नहीं आया उनके मरे हुए चूहे में.. दुर्घटना के बाद यह पहला अवसर था जब मेरी दीदी जीजा जी के साथ शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास कर रही थी..
मेरी रूपाली दीदी: क्या हुआ विनोद? कुछ प्रॉब्लम है क्या.. तुम मुझे ठीक से प्यार क्यों नहीं कर रहे हो.
जीजू: नहीं रूपाली.. मेरी जान.. ऐसी कोई बात नहीं है.. कर तो रहा हूं..
मेरी रूपाली दीदी ने कुछ देर और उन को चूमने का प्रयास किया.. परंतु हालात में कोई भी परिवर्तन नहीं हुए.. थक हार कर मेरी दीदी उठ कर खड़ी हो गई और जीजू की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी..
मेरी रूपाली दीदी: मैं खाना लगा देती हूं.
मेरे जीजू: ठीक है..
कमरे से बाहर निकलते ही मेरी दीदी की आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी अपनी और जीजा जी की हालत पर. उन्हें अच्छी तरह पता था कि ऐसी हालत में मेरे जीजू के लिए संभोग करना एक कठिन काम है परंतु फिर भी इस प्रकार जीवन बिताना मेरी दीदी को बेहद कठिन लग रहा था.. मेरी दीदी भगवान को दोष देना चाहती थी परंतु उन्होंने नहीं दिया.. उन्हें पता था कि सिर्फ भगवान ही उनकी मदद कर सकता है इस हालत में.. ठाकुर साहब मेरी दीदी के पीछे पड़े हुए थे... पर दीदी अच्छी तरह जानती थी कि ठाकुर साहब एक गुंडे है.. और वह उनको पसंद भी नहीं करती थी..


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मेरी रूपाली दीदी घर के खर्चों के बारे में सोच रही थी.. कैसे वह अगले महीने के घर के खर्चों का इंतजाम कर पाएगी.. मेरे और सोनिया के स्कूल की फीस, दवा दारू का खर्च जीजा जी का, घर का किराया, घर का राशन.. एक फूटी कौड़ी नहीं थी अभी उनके पास.. मैं भी भली-भांति इस इस बात से अनभिज्ञ था, पर दीदी से बात करने कि मुझ में कभी हिम्मत नहीं हुई, और भला मैं कर भी क्या सकता था..
मेरी रूपाली दीदी ने नौकरी ढूंढने का भी खूब प्रयास किया परंतु कहीं भी नौकरी नहीं मिली उनको.. मेरी दीदी को भगवान पर पूरा भरोसा था.. वह ऐसा मानती थी कि भगवान उनको और उनके परिवार को कभी भी भूखा नहीं सोने देगा.. एक बात तो तय है दोस्तों कि मेरी बहन मेरे जीजाजी से बेहद प्यार करती थी.. सारी मुसीबत वह मुस्कुराते हुए झेल रही थी.. इस बात की भनक भी नहीं होने देती थी वह जीजा जी को..
इसी प्रकार 2 दिन और गुजर गया. अब मेरी दीदी के बैंक अकाउंट में भी एक पैसा नहीं बचा हुआ था.. वाह बेहद परेशान थे.. दूसरी तरफ फीस नहीं जमा करने के कारण सोनिया के स्कूल से भी नोटिस आया था की अगर फीस जमा नहीं किए तो आपके बच्चे को स्कूल से निकाल दिया जाएगा.. नोटिस मेरे स्कूल से भी मैं आया था.. पर मैंने उस नोटिस को मेरी दीदी से छुपा लिया था..
सोनिया: मम्मी मेरी फीस भर दो ना..
मेरी रूपाली दीदी: हां बेटा आपकी फीस पर दी जाएगी.
सोनिया: राखी मैडम बोल रही थी कि तुम्हारे मम्मी पापा के पास तो पैसा ही नहीं है कल से स्कूल मत आना.
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ऐसी कोई बात नहीं.. कल आपकी फीस भर दी जाएगी...
सोनिया: ठीक है मम्मी मैं बाहर खेलने जा रही हूं.
दीदी... मेरे स्कूल की फीस भी जमा नहीं हुई है.. मैंने घबराते हुए दीदी को बताया..
मेरी दीदी: हां सैंडी.. भाई मैं अच्छी तरह जानती हूं.. तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.. मैं सब ठीक कर दूंगी..
मैं भी बाहर अपने दोस्तों के साथ खेलने निकल गया..
मेरी रूपाली दीदी बाथरूम के अंदर घुस गई और फूट-फूट कर रोने लगी.. वह अपने परिवार के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही थी.. क्या ठाकुर रणवीर सिंह ही एकमात्र रास्ता बचे हुए थे? एक 6 फुट लंबे चौड़े तगड़े मर्द को.. उस सांवले रंग के गुंडे को.. कैसे खेलने दे सकती थी अपने नाजुक बदन के साथ मेरी बहन... मेरी दीदी सोच सोच कर परेशान हो रही थी और रो रही थी..
लेकिन आप कोई चारा नहीं बचा था मेरी बहन के पास.
उन्होंने मन ही मन सोचा कि अब ठाकुर साहब से बात करनी ही पड़ेगी और उनसे कुछ पैसों की मदद मांगनी होगी... शायद ठाकुर साहब का हृदय परिवर्तन हो जाए.. ठाकुर साहब से मदद मांगने के अलावा अब मेरी रुपाली दीदी के पास कोई रास्ता नहीं था..
अगले दिन सोनिया को स्कूल छोड़ने के बाद मेरी रूपाली दीदी वापस लौट रही थी तो रास्ते में ठाकुर साहब हमेशा की तरह खड़े थे.. मेरी दीदी ने उनकी तरफ देखा. कई दिनों के बाद दोनों की आंखें चार हो गई थी.. मेरी बहन बहुत गंभीर दिख रही थी.. वह ठाकुर साहब के पास
गई घबराते हुए..
दीदी: क्या आप मेरे घर आ सकते है.
ठाकुर साहब: जी बिल्कुल कब आ जाऊं?
मेरी दीदी: थोड़ी देर बाद आ सकते हैं क्या.
ठाकुर साहब: ठीक है मैं आधे घंटे में आता हूं..
मेरी रूपाली दीदी ने घर आकर अपने घर के बचे कामकाज निपटाए.. ठीक आधे घंटे के बाद हमारे घर के दरवाजे की घंटी बजी.. अपनी तेज धड़कनों के साथ मेरी रूपाली दीदी ने घर का दरवाजा खोल ठाकुर साहब का अंदर आने के लिए स्वागत किया.. उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी.. दिखावे के लिए ठाकुर साहब ने मेरे जीजू से मुलाकात की और मुझे भी आने वाले एग्जाम के लिए शुभकामनाएं दी.. मैं ठाकुर साहब से मिलकर बेहद खुश हुआ.. वह मुझे काफी गंभीर और अच्छे इंसान प्रतीत हो रहे थे.. मुझे उनकी नियत का अंदाजा था इसीलिए मैं उनसे डरा हुआ था.. चाय पीने के बाद ठाकुर साहब जाने के लिए दरवाजे पर बाहर खड़े थे तो थे उसी वक्त मेरे रुपाली दीदी ने उनको रोक लिया..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब प्लीज आप मुझको ₹2000 दे दीजिए.. मैं आपको अगले महीने लौटा दूंगी.. अगर कहीं मेरी नौकरी लग गई तो.
ठाकुर साहब: रुपाली जी आपने इतनी कोशिश तो की.. आपकी नौकरी तो कहीं नहीं लगी.. बताइए..
मेरी रूपाली दीदी: मुझे थोड़ा उधार दे दीजिए ठाकुर साहब.. बड़ी मेहरबानी होगी आपकी.. वरना मेरी बेटी सोनिया स्कूल से निकाल दी जाएगी.. और मेरा छोटा भाई भी..
ठाकुर साहब: मैंने तो आपको पहले भी बोला था रुपाली जी.. बस आधे घंटे की बात है.. पैसे आपको मिल जाएंगे.
मेरे रूपाली दीदी: क्या एक बेसहारा औरत का आप इस तरह से फायदा उठाएंगे साहब.. हमारे परिवार पर कुछ तो रहम कीजिए.



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ठाकुर साहब: आप खुद ही बेसहारा बनना चाह रही हो. मैं तो आप को सहारा देने के लिए अपने सारे काम धंधे छोड़कर आया.. अगले चुनाव की मीटिंग के लिए मुझे जाना था.. पर मैं हाजिर हो गया आपके बस एक बार बुलाने पर.
मेरी रूपाली दीदी: आप ऐसा क्यों चाहते हैं.. मैं दो बच्चों की मां हूं.. उमर में भी मैं आप से 20 साल छोटी हूं..
ठाकुर साहब: देखो रूपाली.. मेरा समय बहुत कीमती है.. अगर तुमको इसी तरह से समय बर्बाद करने के लिए मुझे बुलाना था.. तो फिर कुछ नहीं हो सकता... मैं चाहता तो तुम्हें कभी भी उठा कर अपनी कार में ले जा सकता था.. पर मैंने ऐसा नहीं किया.. क्योंकि मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं... मैं नीचे जा रहा हूं और अगले 10 मिनट तक इंतजार करूंगा.. चौकीदार से मैंने ऊपर वाले कमरे की चाबी ले ली है.. अगर तुम्हें मंजूर हो तो खिड़की से ही सारा कर देना..
ठाकुर साहब मेरी दीदी की तरफ देखे बिना वहां से निकल गए..


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मेरी रूपाली दीदी अब बड़ी गंभीरता के साथ सोचने लगी थी.. उनके सारे रास्ते बंद हो चुके हैं ठाकुर साहब के अलावा.. इस मोहल्ले में इतनी सारी औरतें हैं परंतु सिर्फ मैं ही क्यों? मेरी बहन सोच रही थी... उन्होंने खिड़की का पर्दा हटा के नीचे की ओर देखा... ठाकुर साहब टकटकी लगाए हुए खिड़की तरफ ही देख रहे थे.. मेरी बहन ने अपना मन बना लिया था..
बड़ी तेजी से मेरी रूपाली दीदी अपने कमरे में गई और उन्होंने अपनी साड़ी बदल ली.. ठीक 10 मिनट के बाद मेरी दीदी ने खिड़की खोली और ठाकुर साहब को अपनी आंखों से ऊपर आने का इशारा किया.. ठाकुर साहब बेहद खुश और उत्तेजित हो गय.. वह बड़ी तेजी से ऊपर हमारे घर की तरफ आ गए.. दरवाजा खुला था, सामने मेरी रूपाली दीदी खड़ी थी.
मेरी रूपाली दीदी को देखकर ठाकुर साहब का मुंह खुला का खुला रह गया.. मेरी रूपाली दीदी ने एक लाल रंग की सूती साड़ी पहन रखी थी और काले रंग की चोली... मेरी बहन अंदर ब्रेजियर भी नहीं पहनी हुई थी. मेरी दीदी ने मन ही मन ठान लिया था कि जल्दी से जल्दी ठाकुर साहब को निपटा दूंगी.. इसीलिए उन्होंने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी.
मेरी रूपाली दीदी: सिर्फ 30 मिनट?
ठाकुर साहब: हां बिल्कुल
मेरी दीदी: अगर किसी ने देख लिया तो.
ठाकुर साहब: कोई नहीं देखेगा . मैंने सारा इंतजाम कर रखा है..
मेरे जीजू अंदर कमरे से: कौन है रूपाली.
मेरी दीदी: शर्म आंटी बुला रही है.. मैं थोड़ी देर बाद आती हूं..
जीजा जी: ठीक है रुपाली.. बाहर से दरवाजा बंद कर देना..
मेरी दीदी ने दरवाजा बंद किया और बड़ी तेजी से छत की तरफ निकल गई.. पीछे पीछे ठाकुर साहब... उन्होंने छत पर जाकर एक छोटे से बने हुए कमरे का दरवाजा खोल दिया. दोनों अंदर घुस गय.. मेरी रूपाली दीदी कमरे की हालत देख कर भ्रमित हो रही थी की ठाकुर साहब पता नहीं किस जगह पर करना चाह रहे हैं.. मेरी बहन परेशान और तकलीफ में लग रही थी..
यह स्टोर रूम था.. इसमें कुछ पुरानी सड़ी गली हुई चीजें पढ़ी हुई थी.. अंधेरे में मेरी रुपाली दीदी खड़ी थी.. ठाकुर साहब ने एक नाइट बल्ब जला अंदर थोड़ी बहुत रोशनी करने की कोशिश की... मेरी बहन कमरे के अंदर खड़ी हुई पसीने से लथपथ थरथरआ रही थी.. डरी हुई थी.. ठाकुर साहब ने दरवाजे की कुंडी बंद की... यह एक बेहद छोटा सा कमरा था.. इस कमरे में लकड़ी का सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था.. मेरी बहन ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि कभी इस कमरे में आएगी..
ठाकुर साहब नीचे जमीन पर बैठ गय.. उन्होंने अपनी दोनों मजबूत टांगे दोनों तरफ फैला मेरी बहन को आमंत्रित किया..
ठाकुर साहब: आओ रूपाली. बैठो मेरी गोद में..
मेरे रूपाली दीदी ठाकुर साहब के नजदीक आ गई थी.. ठाकुर साहब ने मेरी बहन की कलाई पकड़ कर अपनी तरफ खींचा...
मेरी रूपाली दीदी घबराते हुए ठाकुर साहब के बगल में बैठ गई..
ठाकुर साहब: रूपाली: तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत मैंने आज तक नहीं देखी..
मेरी रूपाली दीदी: ठाकुर साहब.. जल्दी कीजिए.. मेरी बेटी सो रही है.. अगर जग गई तो परेशानी हो जाएगी..
ठाकुर साहब ने अपना पर्स निकाला.. 500 के चार नोट निकालकर उन्होंने मेरी रूपाली दीदी के हाथ में रख दिया.. मेरी दीदी, जो अपना छोटा सा पर्स पहले से ही लेकर आई थी उन्होंने रख लिया अंदर.. बेहद शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था मेरी दीदी को... माफ कर देना विनोद.. बस आपके लिए ही कर रही हूं मैं.. मेरी दीदी मन ही मन खुद को सांत्वना दे रही थी..
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को अपनी गोद में बैठने का इशारा किया.. मेरी रूपाली दीदी समझ नहीं पाई ठाकुर साहब का इशारा.. वह चुपचाप ठाकुर साहब की तरफ देख रही थी.. ठाकुर साहब ने हाथ पकड़ कर मेरी बहन को अपनी तरफ खींचा..
ठाकुर साहब: रुपाली जी.. अपनी दोनों टांगे फैला दो और मेरे ऊपर बैठ जाओ.. यहां इधर इसके ऊपर..
ठाकुर साहब के लिए मेरी रूपाली दीदी के मन में बड़ी नफरत थी इसके बावजूद भी मेरी दीदी उनके ऊपर सवार हो गई थी...
कपड़े के ऊपर से ही सही पर मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के लंड पर चढ़कर बैठी हुई थी..
…हाँ..हाँ…हाँ…’ रूपाली.. ठाकुर साहब के मुंह से कामुक चीत्कार सुनकर मेरी दीदी भी हैरान हो गई..
मेरी रूपाली दीदी ने महसूस किया कि कैसे उनकी दोनों टांगों की जोड़ों के बीच का तापमान बढ़ने लगा है... ठाकुर साहब भी अपनी टांगों के बीच बैठी हुई औरत की गर्मी का एहसास पाकर निहाल हो गए थे.. उन्होंने मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने से हटा दिया.. क्या खूबसूरत और मादक नजारा था.. मेरी बहन ने तो अपनी आंखें बंद कर ली थी,
पर ठाकुर साहब सब कुछ देख रहे थे..



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