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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Ajay

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भाग ४


घर का सभी पुरुष वर्ग अपने अपने कामो के लिए निकल गया था अनिरुद्ध जी अपने पूजा अनुष्ठान केलिए रमन अपने ठाणे की ओर ओर राघव अपने दोस्त के साथ, अब घर में केवल सुमित्रा देवी ओर उनकी बहु श्रुति बचे थे,

राघव जिस हिसाब से अपने पिता से उखड़े स्वर मैं बात करता था उससे कोई भइये स्पष्ट अन्दाज लगा सकता था के दोनों बाप बेटे की आपस मैं जमती नहीं है, राघव ओर अनिरुद्धजी की नोक झोक घर मैं आम बात थी, केवल एक रमन ही था जिसके बोलने से वो दोनों चुप हो सकते थे रमन ही दोनों कोचुप करा सकता था ओर राघव भी कभी रमन की कोईबात नहीं टालता था, हालाँकि ऐसा भी नहीं था के राघव अपने पिता से प्यार नहीं करता था या उनके लिए उसके मन मैं कोई आदर नहीं था ये सब तो उस एक घटना की वजह से हुआ था जो शास्त्री परिवार मैं घटी थी जिसके बाद राघव का स्वाभाव ही एकदम बदल सा गया था.

अनिरुद्ध शास्त्री एक जाने मने ज्योतिष पंडित थे ओर सदैव ईश्वर की भक्ति मैं लीं रहने वाले इंसान थे वही राघव बिलकुल उल्टा था उसका तो मनो भगवन से छतीस का आकड़ा हो, उसका मानना था के जो दीखता ही नहीं उसपर विश्वास कैसे किया जाये उसके हिसाब से जो दीखता ही नहीं है वो तो है ही नहीं और बस इसी बात पे दोनों बाप बेटे मैं नोक झोक होती रहती थी .

अब ये बात तो किसी को भी अटपटी लगेगी के बाप एक विख्यात पंडित और बेटा शुद्ध नास्तिक और यही बात श्रुति को भी खटकती थी पसर उसने आज तक इस बारे मैं किसी से पूछा नहीं था घर मैं पर आज उसने इस बारे मैं सुमित्रा देवी से बात करने की ठानी

श्रुति- मम्मीजी आपसे एक बात पूछनी है (किचन मैं काम करते हुए श्रुति से सुमित्रा देवी से कहा )


सुमित्रादेवी- हा पूछो न बेटा

श्रुति- ये राघव भैया का स्वाभाव मतलब मेरी शादी को एक साल होते आया है और जितना मैंने देखा है राघव भैया किसी से ज्यादा बात नहीं करते बस अपने मैं खोये रहते है उनसे जितनी बात करो उतना ही जवाब देते है और तो और उन्हें हस्ते हुए तो मैंने कभी देखा ही नहीं है ऐसा क्यों है? और उनके और बाबूजी के बीच की ये रोज की नोकझोक इसकी क्या वजह है?

श्रुति का सवाल सुन सुमित्रादेवी मुस्कुरायी

सुमित्रादेवी- ये सवाल तुमने पहले क्यों नहीं पूछा

श्रुति- पूछना तो चाहती थी मगर पूछ नहीं पायी

सुमित्रादेवी- चलकोई बात नहीं अब पूछ ही लिया है तो तुम्हे सब बाबति हु पहले काम निपटा ले कहानी जरा लम्बी है फिर तुम्हे आराम से बताउंगी

श्रुति- ठीक है

और दोनों सास बहु अपने काम निपटने मैं लग गयी

वही दूसरी और रमन अपने पुलिस स्टेशन पहुंच गया था, उसके ऊपर मिसिंग केसेस सॉल्व करने का दबाव बढ़ता जा रहा था, अभी ३ दिन पहले ही थाने मैं एक चर्च के फादर की गुमशुदगी की रिपोर्ट आयी तह जिसके साथ ही रमन के पास पेंडिंग मिसिंग केसेस की संख्या कुल १४ हो गयी थी जो पिछले दो सालो मैं आये थे जिनमे से एक भी केस के बारे मैं रमन के पास कोई सुराग नहीं था और इन्ही बढ़ते केसेस के चलते रमन के सीनियर ऑफिसर्स भी उससे खफा चल रहे थे और उसपास जल्द से जल्द केसेस सॉल्व करने का दबाव बना रहे थे और अगर इस केस मैं भी कोई सुराग नहीं मिला तो रमन से ससपेंड होने के भी चान्सेस थे, वैसे तो रमन कि शादी को एक साल होते आया था लेकिन इन केसेस के चलते वो श्रुति के साथ भीअचे से समय नहीं बिता पाया था

रमन ने सरे केसेस को एक बार फिर शुरू से स्टडी करने का सोचा क्या पता शुरुवात से देखने पर कोई क्लू ही हाथ लग जाये, इस सब केसेस मैं एक बात जो रमन के धयान मैं आयी थी वो ये थी के इन दो सालो में राजनगर मैं जितने भी लोग गायब हुए है वो सभी किसी न किसी धार्मिक अनुष्ठान से जुड़े हुए थे और इन लोगो का आपस मैं एक दूसरे से कोई ताल्लुक नहीं था, और गायब हुए सभी लोग माध्यम वर्गीय परिवार वाले थे और कुछ ऐसे थे जो अकेले थे जिनका दुनिया मैं कोई नहीं था, किसी भी गायब शक्श के लिए फिरौती का फ़ोन नहीं आया था और रमन का ये मानना था के हो न हो ये गायब हुए लोग अब शायद इस दुनिया मैं नहीं है, उन्हें मार दिया गया है लेकिन ये सोच सोच के उसका दिमाग फटा जा रहा था के ये जो कोई भी इस घटनाओ को अंजाम दे रहा है आखिर वो चाहता क्या है, क्युकी इन सब घटनाओ के पीछे किसी बड़े गिरोह का हाथ था जिसका पता रमन को लगाना था.

इस पुरे घटनाक्रम में एक बात हैरान करने वाली थी के इतनी गुमशुदा लोगो की रिपॉर्ट होने के बाद भी मीडिया शांत बैठा हुआ था कही किसी न्यूज़ चैनल पर या अख़बार मैं कोई भी खबर नहीं छपी थी पर इन घटनाओं का असर शहर में देखा जा सकता था लोग बगैर काम के घर से बहार नहीं निकलते थे और दुकाने भी जल्द ही बंद होने लगी थी लोगो के मन में डर था कि कल को कहिब्व ही गायब न हो जाये इसीलिए लोग ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिताना चाहते थे

रमन अपने केबिन मैं बैठा इन्ही सब बातो के बारे मैं सोच रहा था और फिर उसने अपने एक साथी को आवाज लगायी

रमन- चन्दन!

चन्दन- जय हिन्द सर ! (अंदर आते हिसालुते करते हुए चन्दन ने कहा)

रमन- उस लापता हुए फादर के बारे मैं कुछ पता चला

चन्दन - नहीं सर, जैसा हाल बाकि केसेस मैं था वैसा ही हाल है, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे है पर कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है, और अब तोये बात शहर मैं भी फैलने लगी है की लोग लापता हो रहे है जिससे शहर मैं भी डर का माहौल बन रहा है

रमन- है वो तो मैं भी देख रहा हु के शहर का माहौल कुछ बदला बदला सा है

चन्दन- सर ये बातसमझ मैं नहीं आ रही के जब शहर का माहौल बदल रहा है तो कोई भी अख़बार या न्यूज़ चैनल ये बात क्यों नहीं दिखा रहा है

रमन- चन्दन जो कोई भी ये अपहरण कर रहा है न वो जरूर कोई बड़ा आदमी है या उसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है पर इस सब के पीछे का उसका मकसद मुझे समझ नहीं आ रहा है आखिर क्या वजह हो सकती है इसके पीछे, खैर और कोई अजीब बात तुम्हारे धयान मैं आयी हो

चन्दन- नहीं सर

रमन- एक काम करो शहर मैं आने जाने वाले टूरिस्ट्स की भी लिस्ट निकालो क्या पता वह से कोई सुराग मिल जाये या हो सकता है के उन टूरिस्ट को भी कोई खतरा हो

चन्दन- ठीक है

रमन ने चन्दन को काम बता कर वहा से भेज दिया और फिर से अपने केस के बारे मैं सोचने लगा वही दूसरी तरफ अनिरुद्ध शास्त्री के घर से थोड़ी दुरी पर पुरे काले कपडे पहने एक शख्स खड़ा था, उसने अपना चेहरा ढका हुआ था और बगैर पलक झपकाए शास्त्रीजी के घर पर अपनी नजरे गड़ाए हुए था......






क्या लगता है कौन है वो शख्स ??? और ऐसी कौनसी घटना हुयी ही जिससे राघव का स्वाभाव ऐसा बन गया? जानने के लिए पढ़ते रहिये कालदूत, अगला भाग जल्द ही.......
Nice update bhai
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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nice update ..santosh ne us aadmi se achchi ladhai ki aur khudki aur rohit ki jaan bachayi ,,santosh ladhna bhi jaanta hai ..
par ye lash thikane laga nahi paye aur wo ghum ho hayi aur usike saath unko usi tarah kapde pehne huye logo ne gher liya aur behosh kar diya ..
chandan ne kuch dekha hi nahi ..
ab wo nakab wale kaha leke jayenge dono ko 🤔🤔..
par ye dono to dharmik nahi hai to inke pichhe kyu pade the wo log 🤔..

raghav ne saari baat suni aur ab dadaji ke kamre me dhyan laga raha hai lagta hai dadaji ki aatma rasta dikhane aa jayegi ..
raman sahi waqt pe jungle aa jata hai ya nahi aur kya wo un nakabwalo ka mukabla kar payega ...
 

Ajay

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भाग ५

घर के सारे काम ख़त्म करने के बाद श्रुति ने फिर से सुमित्रा देवी से अपना सवाल दोहराया और अब सुमित्रा देवी ने उसे सब बताने की ठानी



श्रुति- अब बताइए माजी राघव भैया के बारे मैं

सुमित्रादेवी- सबसे पहले तो ये बात तुम राघव से नहीं करोगी क्युकी उसे इस बात के बारे मैं पता नहीं है और मैं नहीं चाहती के उसे कभी भी पता चले पहले तुम मुझसे वडा करो ये बात तुम राघव से नहीं करोगी

श्रुति- जैसा आप चाहे माजी मैं इस बात के बारे मैं राघव भैया को पता नहीं चलने दूंगी

सुमित्रादेवी- राघव हमारा बेटा नहीं है रमण बहुत छोटा था जब राघव को उसके दादाजी यानि मेरे ससुरजी इस घर मैं लेकर आये थे जिसके बाद उनके कहने पर हमने राघव को विधिवत गोद लिया था, हमारे शहर के बहार जो प्राचीन शिव मंदिर है न वही मेरे ससुरजी रहते थे वो उस मंदिर मैं पुजारी थे और एक विद्वान् साधू

मेरी शादी को ३ साल हो गए थे और रमण भी २ साल का हो गया था पर इन ३ सालो मैं मैंने अपने ससुरजी को बहुत कम बार देखा था असल मैं वो बहुत कम घर आते थे और रमण के बाबूजी को भी उनसे खास लगाव नहीं था पर फिर भी इन्होने बाबूजी की कोई बात कभी नहीं ताली दरअसल जब हमने राघव को विधिवत गोद लिया तभी से ही उन्होंने घर मैं रहना सुरु किया,

उस समय हमारा राजनगर इतना बड़ा शहर नहीं था फिर भी महंत शिवदास के पास लोग दूर दूर से आते थे, बाबूजी मंदिर के पुजारी के साथ साथ एक सिद्ध साधू थे और उन्होंने मंदिर मैं रहते हुए कई सिद्धिय हासिल की थी, अपनी समस्याओ के समाधान के लिए दूर दूर से लोग उनके पास आते थे, बाबूजी के पास दिमाग पढने की अदभुत सिद्धि थी वो अगर किसी की आँखों मैं कुछ सेकंड्स के लिए देख लेते थे तो बता देते की उसके दिमाग मैं क्या चल रहा है और इसके साथ ही उन्हें तंत्र विद्या का भी थोडा ज्ञान था

जीवन एकदम सलार चल रहा था एक दिन रात को ३ बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज से हमारी नींद खुली और जब दरवाजा खोला तो हमने देखा के बहार बाबूजी है और उनकी गोद मैं राघव, उन्होंने बताया के राघव उन्हें राघव उन्हें शिवमंदिर मैं शिवलिंग के पास मिला वो मंदिर के पीछे की तरफ कोई अनुष्ठान कर रहे थे की उन्हें राघव के रोने की आवाज आई जिसके बाद उन्होंने जब मंदिर मैं जेक देखा तो शिवलिंग के पास उन्हें राघव दिखाई दिया, इसके बाद उन्होंने वाला आसपास काफी देखा लेकिन उन्हें ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने राघव को वह छोड़ा हो इसके बाद बाबूजी राघव को शिव का प्रसाद मान कर घर ले आये, उनका कहना था के भगवान् शिव की इचा से ही राघव उन्हें मिला है और अवश्य की उसके जन्म के पीछे कोई बहुत गहरा उद्देश्य है और शिव चाहते है ये राघव का पालन हमारे परिवार मैं हो इसीलिए वो राघव को घर ले आये और हमसे मांग की के हम राघव को गोद लेले और उनकी इसी बात का आदर करते हुए हमने राघव को गोद ले लिया



अब चुकी राघव पिताजी के लिए शिव का प्रसाद था इसीलिए वो भी राघव के साथ घर मैं ही आ गए वो हमेशा कहते थे के राघव कोई बहुत बड़ा काम करेगा अपने जीवन मैं और उस काम के लिए मुझे उसे तयार करना है, वो अपना सारा ज्ञान राघव पर उड़ेल देना चाहते थे,

राघव जब ३ साल का हुआ तबसे की उन्होंने राघव की शिक्षा दीक्षा आरम्भ कर दी थी और उससे मंत्रोच्चार करवाते थे, उन्होंने रमण को भी ये सब सीखने कहा पर रमण ने कभी इस और रूचि नहीं दिखाई और बाबूजी ने भी उसे कभी जबरदस्ती राघव के साथ मंत्रपाठ नहीं करवाया, राघव बचपन से मस्तीखोर और हसमुख बच्चा था और घर मैं सिर्फ बाबूजी और रमण ही थे जिनकी वो बात सुनता था, जितना प्रेम बाबूजी को राघव से था उतना किसी और से नहीं था और राघव भी अपने दादाजी से उतना ही प्रेम करता था, जब राघव १६ वर्ष का हुआ तब तक बाबूजी ने उसे कई शास्त्रों मैं निपुण बना दिया था, पर इसका असर उसकी पढाई पर हो रहा था जिससे रमण के पापा बहुत नाराज थे पर बाबूजी कहते थे जब राघव की असली परीक्षा की घडी आएगी तब उसका साथ केवल ये शास्त्र देंगे जो उन्होंने उसे पढाये थे और अब उन्होंने राघव को विविध सिद्धियों का अभ्यास सिखाना सुरु किया पर अब बाबूजी की उम्र उनका साथ नहीं दे रही थी उनकी तबियत बिगड़ने लगी और इतनी ख़राब हो गयी के उन्हें हॉस्पिटल मैं भारती करवाना पड़ा, उन्होंने हॉस्पिटल जाते हुए ही कह दिया था के वो अब वापिस नहीं आयेंगे और राघव के कहा था के वो अपनी सिद्धियों का अभ्यास जरी रखेगा, बाबूजी हॉस्पिटल मैं ३ दिन रहे और इन ३ दिनों तक राघव ने बगैर अन्न जल के महामृतुन्जय का जप किया अपने दादाजी के लिए पर जो होनी होती है वो होकर ही रहती है

बाबूजी के निर्वाण के बाद से ही राघव के स्वाभाव मैं बदलाब आ गया वो गुमसुम सा चिडचिडा हो गया किसी से ढंग से बात नहीं करता था उसके मन मैं भगवन के लिए गुस्सा भर गया था को उसके दादाजी को ठीक नहीं कर पाए, वो कहने लगा के ऐसे भगवन की पूजा करने का क्या उपयोग को अपने भक्त की प्राणरक्षा न कर पाए

हमने उसे बहुत समझाया के इस बात के लिए इश्वर को दोष देना ठीक नहीं है और तुम्हे अपने दादाजी की कही बात पूरी करनी है उनके बताये अनुष्ठान पुरे करने है पर राघव ने एक बात नहीं सुनी और तभी से इश्वर के मुद्दे पर ये दोनों बाप बेटो मैं नोकझोक होती रहती है

हमारे घर के पीछे की तरफ एक कमरा बना हुआ है जो हमेशा बंद रहता है वो बाबूजी का कमरा है उसमे उनके सरे ग्रन्थ सारी किताबे उन्हें अपनी विविध अनुष्ठानो के अनुभव सब राखी हुयी है और मुझे यकीन है के बाबूजी ने राघव को आगे क्या करने है इसके बारे मैं भी कुछ लिख रखा होगा बाबूजी की कही कोई भी बात कभी गलत साबित नहीं हुयी है पर अब लगता है राघव ही नहीं चाहता के उसके दादाजी की उसके प्रति भविष्यवाणी सही हो, उनके मरने के बाद राघव कभी उस कमरे मैं गया ही नहीं के देख सके उसके दादाजी ने उसके लिए विरासत मैं क्या छोड़ा है, बाबूजी ने कहा था के राघव के हाथो कोई महँ काम होने निश्चित है पर राघव का बर्ताव देख कर अब मुझे उनकी बातो पर संदेह होता है



बोलते बोलते सुमित्रादेवी का गला भर आया श्रुति अब तक चुप चाप सुमित्रादेवी की बात बड़े धयन से सुन रही थी, श्रीति ने तो कभी सोचा भी नहीं था के राघव को उसके सास ससुर ने गोद लिया होगा,


सुमित्रादेवी ने इशारे से श्रुति से पानी माँगा जो लेन के लिए वो किचन की तरफ जा ही रही थी के उसकी नजर दरवाजे पर पड़ी जहा राघव खड़ा था और नजाने कब से उनकी बाते सुन रहा था.......
Nice update bhai
 

Ajay

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भाग ६

शाम होते होते रोहित और संतोष राजनगर पहुच चुके थे पर वह पहुच कर उन्हें राजनगर की हवा मैं एक अजीब सा सूनापन महसूस हुआ, सर्दी और कोहरा बढ़ गया था और लोग कम हो गए थे, वो पहले वाली चहल पहल भी नहीं थी जो राजनगर मैं हुआ करती थी,

संतोष- यार कुछ कुछ अजीब सा लग रहा है.

रोहित- हा कुछ अजीब बात तो है, लगता नहीं की ये वही जगह है जहा हमने अपने कॉलेज के दिन गुजारे थे

संतोष- लोग भी डरे डरे से लग रहे है

रोहित और संतोष राजनगर पहुच कर अपनी पसंदीदा जगह पर खड़े होकर शहर के बदले वातावरण के बारे मैं बात कर रहे थे की तभी उनके पीछे से एक रौबीली और कड़कदार आवाज आयी “ये उनकी वजह से है “ रोहित और संतोष ने पीछे मुड़कर देखा तो इस रौबीली आवाज का मालिक इंस्पेक्टर रमण उनके पीछे खड़ा था, रमण अपने थाने से गश्त लगाने बहार आया हुआ था और जब वो इस जगह पहुच तो इन दो नए लोगो को देख कर और इनकी बातो को सुनकर वह ठिठक गया

रमण- आपलोग टूरिस्ट है क्या??

संतोष- जी नहीं, दरअसल हमने हमारी कॉलेज की पढाई यहाँ के विवेकानंद इंजीनियरिंग कॉलेज से पूरी की है, ग्रेजुएशन तक हम यही थे फिर नौकरी के सिलसिले मैं अलग अलग जगह जाना पड़ा, हमारा एक और दोस्त भी आज रत तक यहाँ आने वाला है

रमण- हम्म,फिरतो आपलोगों को पता नहीं होगा की यहाँ क्या चल रहा है ?

संतोष- जी नहीं

रमण- किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि मैं संलग्न लोग गायब हो रहे है, मुख्या रूप से बड़े बड़े पंडित मौलवी पादरी इत्यादि, काफी तहकीकात करने के बाद भी हम केवल इतना पता लगा पाए है की ये किसी एक आदमी का काम नहीं बल्कि किसी रहस्मयी संगठन का काम है.

रोहित- क्या? ये तो बहुत बड़े स्टार का मामला है फिर इस घटना का उल्लेख अखबारों मैं या कसी न्यूज़ चैनल पर्क्यु नहीं नहीं ?

रमण- ये मामला भि पेचिदा है सुरु की घटनाओ कोटो मैंने ही मीडिया की नजरो मैं आने से रोक रखा था, ये एक संवेदनशील मुद्दा है कुछ पोलिटिकल पार्टीज अपने लाभ के लिए इस बात का प्रयोग करने की कोशिश कर सकती है जिससे शायद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे इसीलिए पुलिस प्रशासन ने सोचा था के ये बात जितनी दबी रहे ठीक होगा पर लगता है मीडिया को इस मामले की भनक है और इसी के चलते उनकी चुप्पी से भी अचंभे मैं हु, अब बस उम्मीद कर सकता हु के जो भी इस के पीछे है जल्द से जल्द उसे गिरफ्तार कर सकू.

संतोष- लेकिन कोई भी धार्मिक क्रिया मैं जुड़े व्यक्ति को ही क्यों उठाना चाहेगा?

रमण- यही तो हम पता लगाने की कोशिश कर रहे है, आप लोग शहर मैं आज हि आये है आप लोगो को अपने आसपास कोई भी अजीब घटना होते दिखे तो तुरंत पुलिस से संपर्क करे, फिलहाल तो पूरा शहर आतंकित है

रोहित- जी ठीक है

रमण- देखिये ऐसा कहकर मैं आपको हतोत्साहित नहीं करना चाहता लेकिन आपने राजनगर आने के लिए शायद सही समय नहीं चुना है.

रमण से बात करने के बाद रोहित और संतोष वह से निकल गए,

रमण- चन्दन इन लोगो पर नजर रखो मुझे कुछ खटक रहा है और कोई भी गड़बड़ हो तो तुरंत मुझे फ़ोन करना

चन्दन-ठीक है सर

रमण ने चन्दन को रोहित और संतोष पर नजर रखने कह दिया और वापस पुलिस स्टेशन आ गया वही रोहित और संतोष रमण की कही बातो पर भी गाड़ी मैं बात चित कर रहे थे

संतोष- इंस्पेक्टर साहब ने काफी मदद की

रोहित-(गंभीर स्वर मैं ) हम्म

संतोष- अब तुमको क्या हुआ?

रोहित- इंस्पेक्टर की बाते सुनी न तुमने ?

संतोष- हा, लेकिन ये लोगो का अपहरण करने वाले हो कौन सकते है ?

रोहित-क्या पता? शायद आतंकवादी हो, भय का माहोल कायम करने के लिए धार्मिक कार्यो से जुड़े नमी गिरामी लोगो को उठा लिया होगा, ये जो भी लोग है बहुत चालक है, इतनी आसानी से पुलिस को चकमा देते हुए लोगो को उठाना किसी साधारण गंग के बस की बात नहीं है.

बाते करते करते ही दोनों होटल पाइनग्रोव पहुचे गाड़ी पार्क करके होटल मैं चेक इन किया

रोहित- ये होटल भी कही....शांत शांत सा लग रहा है

संतोष- हा सही कहा खैर चलो अपने अपने रूम देख लेते है

रिसेप्शन पर चेक इन करके रोहित और संतोष अपने अपने कमरों मै चले गए , संतोष ने कमरे मैं घुसते से ही अपना बैग एक साइड पटका और बहार का व्यू शिद्की के शिशे से देखने लगा, शायद ये वो राजनगर नहीं था जिसे ये लोग जानते थे, वह उन्होंने अपने कॉलेज का सबसे बेहतरीन समय गुजरा था, हर तरफ मौत सा संन्नता पसरा हुआ था और लोग घर से बहार निकलने मैं डरते थे तभी अचानक रोहित संतोष के कमरे मैं आया

रोहित- विक्रांत से बात हुई तुम्हारी

संतोष- इतनी जल्दी क्या है वो आ जायेगा तो खुद की फ़ोन करेगा.

रोहित- अरे तुमको यार नहीं क्या उसके परिवार का फार्महाउस है यहाँ पर, हम लोग तो कॉलेज होटल मैं रहते थे उसका घर था, जितनी जल्दी वो आ जायेगा हाही शिफ्ट हो जायेंगे वैसे भ ये तेल थोडा महंगा है.

संतोष-(मुस्कुराते हुए) लगता हा इंस्पेक्टर ने तुमको अपनी कहानी से डरा दिया है

रोहित-क्या!! नहीं नहीं उसकी बातो से इसका कोई लेना देना नहीं है

संतोष- ठीक है मेरे बहादुर भाई आ होटल बालकनी से राजनगर कि सुन्दरता देखे , इतने समय बाद यहाँ आना का मौका मिला है

रोहित और संतोष बालकनी मैं कहते थे की तभी उनने देखा के होटल से थोड़ी दुरी पर एक तरफ एक सुनसान इलाका थ जहा छोटी छोटी तोड़ी झाडिया उगी हुयी थी वह खड़ा एक रहस्यमयी व्यक्ति जिसने काले रंग का चोगा रहना हुआ था और चेहरा भी नकाब से ढक रखा था लगातार उनके फ्लोर की तरफ घूरे जा रहा था

रोहित- ये कौन है?और हमारी तरफ क्यों देख रहा है

संतोष- मुझे कैसे पता होगा

रोहित-पहनने ओढने के ढंग से कोई सामान्य व्यक्ति तो नै लगता

संतोष-होगा कोई पागल हमें क्या करना है आओ केलकर कुछ खाने के लिए ऑर्डर करते है

होटल मैं कहना का करोहित आर संतोष होटल के बहार टहलने के लिए निकल गये, रोहित के दिमाग मैं अभी भी उस रहस्यमयी व्यक्ति की अजीब सी वेशभूषा का ख्याल रह रहकर आ रहा था, दोनों दोस्त बाते करते हुए होटल से दूर सुनसान जंगल के इलाके की तरफ निकल आये थे

रोहित- ये होटल शहर से थोड़ी दूर है यहाँ तो जंगले झाड सब है

संतोष- सोचो इतने साल राजनगर मैं रहने के बाद भी हमें इस जगह का पता नहीं था

रोहित- राजनगर काफी बड़ी जगह है संतो तुम हर आदमी से राजनगर का पूरा नक्षा जानने की उम्मीद नहीं कर सकते

तभी संतोष का फ़ोन बज उठा

संतोष- अरे विक्रांत का फ़ोन है

संतोष ने फ़ोन उठा लिया

संतोष- हेल्लो बिक्रांत! कहा तक पहुचे भाई

विक्रांत(फोनेपर)- बस अभी निकला हु जल्द ही मिलते है

संतोष- ठीक है तो तुम यहाँ पहुच कर हमें होटल पाइनग्रोव से पिक कर लेना

विक्रांत- ठीक है पहुच कर बात करता हु

और फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया

रोहित- क्या बोला

संतोष- आ रहा है मैंने बता दिया के हमें कहा से पिक करना है

रोहित-सही है ......


तभी अचानक पास के झाड मैं दोनों को कुछ हलचल महसूस हुयी दोनों ने मुड़कर देखा तो बुरी तरह चौक गए क्युकी एक सात फूट का व्यक्ति चिंघाड़ मार कर भरी सी कुल्हाड़ी लेकर उनकी तरफ दौड़ा आ रहा था..........
Nice update bhai
 

Ajay

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भाग ७



वो सात फूट लम्बा आदमी भागते हुए रोहित और संतोष के पास पंहुचा और उसने रोहित और संतोष पर अपनी कुल्हाड़ी से वार करने की कोशिश तो दोनों ने उसका वार बचा लिया फिर उसने संतोष की तरफ वार किया लेकिन संतोष ने असाधारण फुर्ती दिखाते हुए उसका वार नाकाम कर दिया और उसके हाथ पर लात मार कर उसके हाथ से कुल्हाड़ी निचे गिरा दी औरन सिर्फ कुल्हाड़ी गिराई बल्कि उस आदमी की छाती मैं लात मार कर उसे कुछ फूट पीछे धकेल दिया, फिर वो व्यक्ति रोहित की तरफ मुड़ा और उसे गर्दन से पकड़ कर उठा लिया

रोहित- स...संतोष कुछ कर..!

संतोष-चिंता मत करो मैं कुछ करता हु

संतोष गठीले शारीर का मालिक था लेकिन वो भी जोर लगाकर वो भरी कुल्हाड़ी नहीं उठा पा रहा था पर कुछ कोशिशो बाद उसने ताकत का एक एक कतरा लगा कर वो कुल्हाड़ी उठाई और उस लम्बे व्यक्ति की गार्डन पर जोरदार वार किया,

‘खच्च’ की आवाज उस सुनसान जंगल मैं गूंज उठी, कुल्हाड़ी उस आदमी के कंधे से होते हुए गर्दन के पार निकल गयी, हमला करने वाली की पकड़ रोहित की गर्दन पर ढीली पड़ गयी और उसका उसका निर्जीव शारीर धरती पर धराशायी हो गया. ये पूरा घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ के रोहित और संतोष बिलकुल समझ नहीं पाए के आखिर ये सब था क्या .

रोहित(खस्ते हुए) – उफ़ ये कौन था?? और हमें मरना क्यों चाहता था??

संतोष हाथ मैं कुल्हाड़ी और चेहरे पर खून लिए स्तब्ध खड़ा था

संतोष-म...म..मैंने एक आदमी का खून कर दिया! उसे मार दिया!!!!

रोहित(संतोष को झंझोड़कर)- संतोष मेरि बात सुन..तूने जो कुछ भी किया है आत्मरक्षा के लिए किया है जिसमे कुछ गलत नहीं है...समझ रहा है न तू...

संतोष-तो क्या हमें पुलिस को बता देना चाहिए....

रोहित(कुछ सोचते हुए)- नहीं....देखो ये समझदारी की बात नहीं होगी उल्टा हम भी फस सकते है

संतोष-तो फिर क्या करे??

रोहित- एक काम करते है इसके शारीर को यही पास के जंगल मैं गाड देते है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा वैसे भी यहाँ हम दोनों और इस अनजान हमलावर के अलावा इस सुनसान जंगली इलाके मैं कोई नहीं है जिसने हमें देखो हो

संतोष-क्या ये उस समूह का हिस्सा हो सकता है जिसकी बात उस इंस्पेक्टर रमण ने की थी?? जिसकी वजह से लोग लापता हो रहे है??

रोहित-क्या पता? फ़िलहाल तो इसे उठाओ ताकि जंगल मैं इसको गाड़ा जा सके

संतोष को भी रोहित की बात सही लगी, रोहित और संतोष ने सम्लावर को उठाया और जंगल मैं ले जाने लगे, जंगल भी उस समय बड़ा शांत था, चिडियों के चहचहाने की भी आवाज नहीं आ रही थी

संतोष-ह्म्फ़!! बड़ा भरी है कम्भख्त

रोहित-हा सो तो है अच एक बात बताओ तुम इतना अच्छा लड़ना कब सीखे?

संतोष-वो...वो यहाँ से जाने के बाद करते की ट्रेनिंग ली थी कुछ समय के लिए

रोहित-और तुमने इतनी भरी कुल्हाड़ी भी उठा ली ये तो वाकई काबिले तारीफ था

संतोष-आ..हा....हा...धन्यवाद पर ये भैसा बहुत भरी है

रोहित-हा सो तो है

रोहित को संतोष का जवाब सुन कर लगा की वो बस उसे टालने के प्रयास कर रहा है लेकिन उसे इस विषय मैं सोचने का ज्यादा मौका नहीं मिला क्युकी उसी वक़्त उस शांत जंगल मैं उन दोनों को अपने अलावा किसी और की हलकी चहलकदमी कि अवाज आयी, रोहित ने संतोष की तरफ देखा तो संतोष उसका इशारा समझ गया, उन्होंने लाश वही पर छोड़ दी फिर दोनों उस आवाज की दिशा मैं बढे लेकिन वहा उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया फिर वो जब वापिस लाश लेने आये तो वह से लाश भी गायब थी और इस घटना से वो बुरी तरफ घबरा गए

संतोष(हैरान होकर)- लाश कहा गयी? इतने भरी आदमी की लाश इतनी जल्दी कौन गायब कर सकता है ?

रोहित-एक बात तो साफ़ है कोई हमें मरने का प्रयास कर रहा है और हो न हो ये वही संगठन है जिसके बारे मैं इंस्पेक्टर साहब बता रहे थे

संतोष-तुम कंपनी मैं काम करते हो और मैं बैंक मैं, इंस्पेक्टर के कहे अनुसार ये उन लोप्गो को गायब करते है जो किसी धर्मिल कार्य मैं संलग्न हो जबकि हमलोग तो साधारण नौकरी करते है हमें भला कोई क्यों मरना चाहेगा?

रोहित-दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा इस वक़्त इससे पहले की कोई और जानलेवा हमला हो चलो होटल लौट चले

संतोष- लेकिन वो लाश

रोहित-लाश को भूल जाओ यार यहाँ थोड़ी देर और रुके तो शायद हम ही लाश बन जायेंगे

संतोष-ठीक है

संतोष और रोहित दोनों होटल जाने के लिए लौट ही रहे थे कि न जाने कहा से काले नकाब और काले चोगे वाले लोग जंगल से निकल कर आये और उन्हें चारो तरफ से घेर लिया, रोहित और संतोष दोनों की ही धड़कने तेज हो उठी

रोहित(घबराकर)-ये...ये तो वैसी ही वेशभूषा वाले लोग है जैसी उस व्यक्ति ने पहनी थी जो हमको बालकनी से घूर रहा था उस लम्बे पहलवान की वेशभूषा भी ऐसी ही थी, अब शक की कोई गुंजाईश नहीं है के ये वही लोग है जो इतने दिनों से यहाँ राजनगर मैं आतंक मचाये हुए है

अचानक ही दो चार लोग तेजी से रोहित और संतोष की तरफ बढ़कर आये और उन्हें पकड़ लिया, उनके हाथो मैं जैसे कोई अमानवीय शक्ति थी जिसकी वजह से दोनों मैं से कोई भी छुट नहीं पा रहा था फिर उन्ही मैं से एक व्यक्ति ने सफ़ेद रुमाल पर क्लोरोफार्म डालकर उन्हें सुंघा दिया, अब उन दोनों के लिए अपने होश कायम रखना मुश्किल था, दो मिनट के अंदर ही उनकी आँखें बोझिल हो गयी और वो बेहोशी के समुन्दर मैं धुब्ते चले गए......

रमण के कहे अनुरस चन्दन रोहित और संतोष पर नजर बनाये हुए थे उसने इन्हें जंगल की तरफ जाते देखा था और कही इतनी शक न हो इसिलिओये इनके पीछे नहीं आया था जब जब काफी समय बीतने के बाद भी रोहित और संतोष जंगल से लौट कर नहीं आये तो चन्दन को थोडा अजीब लगा और उसने इस बात की जानकारी तुरंत रमण को दी

वही दूसरी तरफ शास्त्री सदन मैं सुमित्रादेवी अपनी बहु के पूछने पर उसे राघव के बारे मैं बता रही थी कि कैसी राघव उनका बीटा नहीं है बल्कि उन्होंने अपने ससुर के कहने पे उसे गोद लिया था और कैसे उनके सरुर के कहा था के राघव के हाथ से कोई महान काम होने वह है जिसे उनकी बहु श्रुति सुन रही और जब सुमित्रादेवी की बात ख़तम हुयी तब उनका और श्रुति का ध्यान दरवाजे के पास खड़े राघव पर गया जिसने उनकी सारी बाते सुन ली थी,

सुमित्रादेवी कभी नहीं चाहती थी के राघव को इस बात का कभी पता चले के उन्होंने उसे गोद लिया था, उन्होंने बचपन से ही राघव और रमण मैं कभी कोई भेदभाव नहीं किया था बल्कि राघव तो उनके लिए रमण से भी ज्यादा लाडला था और जब उन्होंने देखा ये राघव को इस बारे मैं पता चल गया है तो उनका मन घबरा रहा था ये सोच सोच कर की अब पता नहीं राघव क्या कहेगा या उसे कैसा लगेगा

राघव की आँखें पनिया गयी थी उसे समझ नहीं आ रहा था के किस बात का दुःख मनाये, वो अनिरुद्ध शास्त्री और सुमित्रादेवी का बेटा नहीं है इस बात का या अपने दादाजी की इच्छा पूर्ण न कर सकने का

राघव बस आँखों मैं पानी लिए सुमित्रादेवी को देख रहा था और फिर वो वह से निकल गया और जाते जाते अपनी माँ से ये कह गया के उसे कुछ समय अकेला रहना है

राघव को वह से ऐसे जाता देख सुमित्रादेवी की भी आँखें झलक आयी,

राघव वह से निकल कर सीधा अपने दादाजी के कमरे मैं आया, अपने दादाजी की मृत्यु के बाद वो पहली बार इस कमरे मैं आया था, यही वो जगह थी जहा उसके दादाजी उसे अभ्यास कराते थे, फिलहाल सुमित्रादेवी की कही बाते सुनने के बाद राघव का दिमाग फटा जा रहा था एक साथ कई ख्याल दिमाग मैं घूम रहे थे तभी उसकी नजर अपने दादाजी की तस्वीर पर पड़ी और उसके मन मैं ख्याल आया की अब वही राह दिखायेंगे जिन्होंने उसे इस घर मैं आया है और राघव अपने दादाजी की तस्वीर के सामने धयान की मुद्रा मैं बैठ गया, राघव ने आज कही समय बाद धयान लगाया था या हु कहे उसके दादाजी के जाने के बाद शायद पहली बार और जब राघव धयान्स्त होता तो उसे समय का भान नहीं रहता था

धयान करने से राघव का दिमाग शांत होने लगा और उसके दिमाग मैं एक सफ़ेद रौशनी कौंध उठी और उसके मानसिक पटल पर एक छवि उभरने लगी............
Nice update bhai
 

mashish

BHARAT
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भाग ७



वो सात फूट लम्बा आदमी भागते हुए रोहित और संतोष के पास पंहुचा और उसने रोहित और संतोष पर अपनी कुल्हाड़ी से वार करने की कोशिश तो दोनों ने उसका वार बचा लिया फिर उसने संतोष की तरफ वार किया लेकिन संतोष ने असाधारण फुर्ती दिखाते हुए उसका वार नाकाम कर दिया और उसके हाथ पर लात मार कर उसके हाथ से कुल्हाड़ी निचे गिरा दी औरन सिर्फ कुल्हाड़ी गिराई बल्कि उस आदमी की छाती मैं लात मार कर उसे कुछ फूट पीछे धकेल दिया, फिर वो व्यक्ति रोहित की तरफ मुड़ा और उसे गर्दन से पकड़ कर उठा लिया

रोहित- स...संतोष कुछ कर..!

संतोष-चिंता मत करो मैं कुछ करता हु

संतोष गठीले शारीर का मालिक था लेकिन वो भी जोर लगाकर वो भरी कुल्हाड़ी नहीं उठा पा रहा था पर कुछ कोशिशो बाद उसने ताकत का एक एक कतरा लगा कर वो कुल्हाड़ी उठाई और उस लम्बे व्यक्ति की गार्डन पर जोरदार वार किया,

‘खच्च’ की आवाज उस सुनसान जंगल मैं गूंज उठी, कुल्हाड़ी उस आदमी के कंधे से होते हुए गर्दन के पार निकल गयी, हमला करने वाली की पकड़ रोहित की गर्दन पर ढीली पड़ गयी और उसका उसका निर्जीव शारीर धरती पर धराशायी हो गया. ये पूरा घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ के रोहित और संतोष बिलकुल समझ नहीं पाए के आखिर ये सब था क्या .

रोहित(खस्ते हुए) – उफ़ ये कौन था?? और हमें मरना क्यों चाहता था??

संतोष हाथ मैं कुल्हाड़ी और चेहरे पर खून लिए स्तब्ध खड़ा था

संतोष-म...म..मैंने एक आदमी का खून कर दिया! उसे मार दिया!!!!

रोहित(संतोष को झंझोड़कर)- संतोष मेरि बात सुन..तूने जो कुछ भी किया है आत्मरक्षा के लिए किया है जिसमे कुछ गलत नहीं है...समझ रहा है न तू...

संतोष-तो क्या हमें पुलिस को बता देना चाहिए....

रोहित(कुछ सोचते हुए)- नहीं....देखो ये समझदारी की बात नहीं होगी उल्टा हम भी फस सकते है

संतोष-तो फिर क्या करे??

रोहित- एक काम करते है इसके शारीर को यही पास के जंगल मैं गाड देते है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा वैसे भी यहाँ हम दोनों और इस अनजान हमलावर के अलावा इस सुनसान जंगली इलाके मैं कोई नहीं है जिसने हमें देखो हो

संतोष-क्या ये उस समूह का हिस्सा हो सकता है जिसकी बात उस इंस्पेक्टर रमण ने की थी?? जिसकी वजह से लोग लापता हो रहे है??

रोहित-क्या पता? फ़िलहाल तो इसे उठाओ ताकि जंगल मैं इसको गाड़ा जा सके

संतोष को भी रोहित की बात सही लगी, रोहित और संतोष ने सम्लावर को उठाया और जंगल मैं ले जाने लगे, जंगल भी उस समय बड़ा शांत था, चिडियों के चहचहाने की भी आवाज नहीं आ रही थी

संतोष-ह्म्फ़!! बड़ा भरी है कम्भख्त

रोहित-हा सो तो है अच एक बात बताओ तुम इतना अच्छा लड़ना कब सीखे?

संतोष-वो...वो यहाँ से जाने के बाद करते की ट्रेनिंग ली थी कुछ समय के लिए

रोहित-और तुमने इतनी भरी कुल्हाड़ी भी उठा ली ये तो वाकई काबिले तारीफ था

संतोष-आ..हा....हा...धन्यवाद पर ये भैसा बहुत भरी है

रोहित-हा सो तो है

रोहित को संतोष का जवाब सुन कर लगा की वो बस उसे टालने के प्रयास कर रहा है लेकिन उसे इस विषय मैं सोचने का ज्यादा मौका नहीं मिला क्युकी उसी वक़्त उस शांत जंगल मैं उन दोनों को अपने अलावा किसी और की हलकी चहलकदमी कि अवाज आयी, रोहित ने संतोष की तरफ देखा तो संतोष उसका इशारा समझ गया, उन्होंने लाश वही पर छोड़ दी फिर दोनों उस आवाज की दिशा मैं बढे लेकिन वहा उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया फिर वो जब वापिस लाश लेने आये तो वह से लाश भी गायब थी और इस घटना से वो बुरी तरफ घबरा गए

संतोष(हैरान होकर)- लाश कहा गयी? इतने भरी आदमी की लाश इतनी जल्दी कौन गायब कर सकता है ?

रोहित-एक बात तो साफ़ है कोई हमें मरने का प्रयास कर रहा है और हो न हो ये वही संगठन है जिसके बारे मैं इंस्पेक्टर साहब बता रहे थे

संतोष-तुम कंपनी मैं काम करते हो और मैं बैंक मैं, इंस्पेक्टर के कहे अनुसार ये उन लोप्गो को गायब करते है जो किसी धर्मिल कार्य मैं संलग्न हो जबकि हमलोग तो साधारण नौकरी करते है हमें भला कोई क्यों मरना चाहेगा?

रोहित-दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा इस वक़्त इससे पहले की कोई और जानलेवा हमला हो चलो होटल लौट चले

संतोष- लेकिन वो लाश

रोहित-लाश को भूल जाओ यार यहाँ थोड़ी देर और रुके तो शायद हम ही लाश बन जायेंगे

संतोष-ठीक है

संतोष और रोहित दोनों होटल जाने के लिए लौट ही रहे थे कि न जाने कहा से काले नकाब और काले चोगे वाले लोग जंगल से निकल कर आये और उन्हें चारो तरफ से घेर लिया, रोहित और संतोष दोनों की ही धड़कने तेज हो उठी

रोहित(घबराकर)-ये...ये तो वैसी ही वेशभूषा वाले लोग है जैसी उस व्यक्ति ने पहनी थी जो हमको बालकनी से घूर रहा था उस लम्बे पहलवान की वेशभूषा भी ऐसी ही थी, अब शक की कोई गुंजाईश नहीं है के ये वही लोग है जो इतने दिनों से यहाँ राजनगर मैं आतंक मचाये हुए है

अचानक ही दो चार लोग तेजी से रोहित और संतोष की तरफ बढ़कर आये और उन्हें पकड़ लिया, उनके हाथो मैं जैसे कोई अमानवीय शक्ति थी जिसकी वजह से दोनों मैं से कोई भी छुट नहीं पा रहा था फिर उन्ही मैं से एक व्यक्ति ने सफ़ेद रुमाल पर क्लोरोफार्म डालकर उन्हें सुंघा दिया, अब उन दोनों के लिए अपने होश कायम रखना मुश्किल था, दो मिनट के अंदर ही उनकी आँखें बोझिल हो गयी और वो बेहोशी के समुन्दर मैं धुब्ते चले गए......

रमण के कहे अनुरस चन्दन रोहित और संतोष पर नजर बनाये हुए थे उसने इन्हें जंगल की तरफ जाते देखा था और कही इतनी शक न हो इसिलिओये इनके पीछे नहीं आया था जब जब काफी समय बीतने के बाद भी रोहित और संतोष जंगल से लौट कर नहीं आये तो चन्दन को थोडा अजीब लगा और उसने इस बात की जानकारी तुरंत रमण को दी

वही दूसरी तरफ शास्त्री सदन मैं सुमित्रादेवी अपनी बहु के पूछने पर उसे राघव के बारे मैं बता रही थी कि कैसी राघव उनका बीटा नहीं है बल्कि उन्होंने अपने ससुर के कहने पे उसे गोद लिया था और कैसे उनके सरुर के कहा था के राघव के हाथ से कोई महान काम होने वह है जिसे उनकी बहु श्रुति सुन रही और जब सुमित्रादेवी की बात ख़तम हुयी तब उनका और श्रुति का ध्यान दरवाजे के पास खड़े राघव पर गया जिसने उनकी सारी बाते सुन ली थी,

सुमित्रादेवी कभी नहीं चाहती थी के राघव को इस बात का कभी पता चले के उन्होंने उसे गोद लिया था, उन्होंने बचपन से ही राघव और रमण मैं कभी कोई भेदभाव नहीं किया था बल्कि राघव तो उनके लिए रमण से भी ज्यादा लाडला था और जब उन्होंने देखा ये राघव को इस बारे मैं पता चल गया है तो उनका मन घबरा रहा था ये सोच सोच कर की अब पता नहीं राघव क्या कहेगा या उसे कैसा लगेगा

राघव की आँखें पनिया गयी थी उसे समझ नहीं आ रहा था के किस बात का दुःख मनाये, वो अनिरुद्ध शास्त्री और सुमित्रादेवी का बेटा नहीं है इस बात का या अपने दादाजी की इच्छा पूर्ण न कर सकने का

राघव बस आँखों मैं पानी लिए सुमित्रादेवी को देख रहा था और फिर वो वह से निकल गया और जाते जाते अपनी माँ से ये कह गया के उसे कुछ समय अकेला रहना है

राघव को वह से ऐसे जाता देख सुमित्रादेवी की भी आँखें झलक आयी,

राघव वह से निकल कर सीधा अपने दादाजी के कमरे मैं आया, अपने दादाजी की मृत्यु के बाद वो पहली बार इस कमरे मैं आया था, यही वो जगह थी जहा उसके दादाजी उसे अभ्यास कराते थे, फिलहाल सुमित्रादेवी की कही बाते सुनने के बाद राघव का दिमाग फटा जा रहा था एक साथ कई ख्याल दिमाग मैं घूम रहे थे तभी उसकी नजर अपने दादाजी की तस्वीर पर पड़ी और उसके मन मैं ख्याल आया की अब वही राह दिखायेंगे जिन्होंने उसे इस घर मैं आया है और राघव अपने दादाजी की तस्वीर के सामने धयान की मुद्रा मैं बैठ गया, राघव ने आज कही समय बाद धयान लगाया था या हु कहे उसके दादाजी के जाने के बाद शायद पहली बार और जब राघव धयान्स्त होता तो उसे समय का भान नहीं रहता था

धयान करने से राघव का दिमाग शांत होने लगा और उसके दिमाग मैं एक सफ़ेद रौशनी कौंध उठी और उसके मानसिक पटल पर एक छवि उभरने लगी............
awesome update
 
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