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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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इसमें एक समस्या ये है कि आप संभवतः रुक नहीं पाओगे। कहानी को किसी एक स्थान पर लेकर ही अगले भाग के लिए छोड़ा जा सकता है.

जल्दी अपडेट देने में हो सकता है कि आप अब तक जिस प्रकार से कथानक को रच पाते है, उसमें कुछ कमी हो.
ऐसे महान उपन्यास को आप अपने समय से लिखें। आपके पाठक आपका साथ देंगे।

प्रिय मित्र,

दरअसल मैंने अपनी ये आत्मकथा xossip पर लिखी थी, परन्तु तब मैं नया-नया लेखक बना था तो जज्बातों को ठीक से उकेर नहीं पाता था| इसीलिए इस बार मैंने पुनः सब लिखना शुरू किया है, चूँकि इसमें अभी तक कोई भी झूठ या बनावटी बात नहीं लिखी गई है इसलिए मुझे कुछ भी नया सोचने या गढ़ने की जर्रूरत नहीं है! मुझे बस भवनाओं को ठीक से उभारना है और जहाँ तक सम्भव हो अपनी भाषा को ठीक रखना है|

मैं खुद भी एक पाठक हूँ और इंतजार करने का दुःख जानता हूँ| मैं नहीं चाहता की पाठकगण इस दुःख को महसूस करें इसलिए जल्द से जल्द अपडेट दे कर लेखनी समाप्त करना चाहता हूँ!

आपकी सलाह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :hug:
 

Rockstar_Rocky

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B-)
 

Nagaraj

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प्रिय मित्र,

दरअसल मैंने अपनी ये आत्मकथा xossip पर लिखी थी, परन्तु तब मैं नया-नया लेखक बना था तो जज्बातों को ठीक से उकेर नहीं पाता था| इसीलिए इस बार मैंने पुनः सब लिखना शुरू किया है, चूँकि इसमें अभी तक कोई भी झूठ या बनावटी बात नहीं लिखी गई है इसलिए मुझे कुछ भी नया सोचने या गढ़ने की जर्रूरत नहीं है! मुझे बस भवनाओं को ठीक से उभारना है और जहाँ तक सम्भव हो अपनी भाषा को ठीक रखना है|

मैं खुद भी एक पाठक हूँ और इंतजार करने का दुःख जानता हूँ| मैं नहीं चाहता की पाठकगण इस दुःख को महसूस करें इसलिए जल्द से जल्द अपडेट दे कर लेखनी समाप्त करना चाहता हूँ!

आपकी सलाह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :hug:
Manu bhai aapki yah complete story mai dusri site par abhi 2 din pahle hi padh chuka hoon. Lekin aapne is forum par ye kahani aur bhi jyada acchi tarah se likhi hai aur story mai bhi kafi kuch add kiya hai. Behtrin story
 

Rockstar_Rocky

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Manu bhai aapki yah complete story mai dusri site par abhi 2 din pahle hi padh chuka hoon. Lekin aapne is forum par ye kahani aur bhi jyada acchi tarah se likhi hai aur story mai bhi kafi kuch add kiya hai. Behtrin story

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
 

Rockstar_Rocky

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 12



अब तक आपने पढ़ा:


मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!



अब आगे:


अब
मरता क्या ना करता, बच्चों से फिल्म दिखाने का वादा जो किया था| मैं उठा और बच्चों को लेने चल दिया, school van से उतरते ही मुझसे लिपट गए तथा फिल्म देखने जाने का शोर मचाने लगे! मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और घर की ओर चल पड़ा, रास्ते में नेहा ने फिर से आयुष को गाँव में मेरे साथ देखि फिल्म के बारे में बताना शुरू कर दिया| हैरानी की बात ये थी की आयुष जब भी वो बातें सुनता था तो ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगता था, जैसे हर बार उसे ये बात सुनने में मजा आता हो!

घर पहुँच कर भौजी ने दोनों बच्चों को तैयार किया और उन्हें समझाने लगीं;

भौजी: बेटा बाहर है न पापा को तंग मत करना और कुछ खाने-पीने की बेकार जिद्द मत करना!

मैं कमरे में अपना पर्स लेने आया था, मैंने भौजी की बात सुन ली और उन्हें टोकते हुए बोला;

मैं: क्यों जिद्द नहीं करना? मेरे बच्चे हैं, वो जो चाहेंगे वो खाएँगे-पीयेंगे!

मेरा यूँ बच्चों के ऊपर हक़ जताना भौजी को अच्छा लगता था, लेकिन आज मेरा भौजी को टोकने का कारन कुछ और था! मैं उन्हें मेरा plan चौपट करने के लिए उलहाना देना चाह रहा था, जो की शायद भौजी समझ चुकी थीं तभी तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी!



तैयार हो कर बाप-बेटा-बेटी घर से निकले, अभी हम गली में थे जब आयुष चहकते हुए बोला;

आयुष: पापा जी आज भी हम गाडी में जाएँगे?

जिस भोलेपन से आयुष ने पुछा था मुझे उस पर प्यार आ गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया|

मैं: हाँ जी बेटा!

गाडी में घूमने के नाम से दोनों बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया| जब हम गाडी के पास पहुँचे तो इस बार दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपना बड़प्पन दिखाया और बोली;

नेहा: आयुष तू अभी आगे बैठ जा वापसी में मैं बैठ जाऊँगी!

पहले आगे बैठने की बात से आयुष खुश हो गया और फ़ट से आगे बैठ गया| हम तीनों mall पहुँचे और escalators से होते हुए theatre में घुसे| Theatre में घुसते ही दोनों बच्चों की नजर सबसे पहले food counter पर पड़ी, खाने-पीने की चीज देख कर दोनों बच्चे ललचा गए मगर मुझसे कुछ नहीं बोले| आयुष चूँकि छोटा था तो उसने हिम्मत कर के खाने के लिए कुछ माँगना चाहा, लेकिन तभी नेहा ने उसका हाथ दबा कर चुप रहने को कहा, मैंने दोनों भाई-बहन की हरकत पकड़ ली थी इसलिए मैं दोनों के सामने एक घुटना मोड़ कर बैठा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं आपका पापा हूँ, आपको अगर कुछ खाना होता है, कहीं घूमना होता है, कुछ खरीदना होता है तो मुझसे माँगना आप दोनों का हक़ है! आपकी माँग जायज है या नहीं, या फिर मैं उसे पूरा कर सकता हूँ या नहीं इसका फैसला मैं करूँगा! Okay?

ये सुन कर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई!

मैं: अब बताओ आप दोनों को क्या खाना है?

इतना सुनना था की आयुष ने फ़ौरन popcorn की ओर इशारा कर दिया और नेहा ने cold drink की ओर| मैंने दोनों को popcorn और cold drink खरीद कर दी तथा उन्हें ले कर auditorium खुलने तक बाहर बैठ गया| दोनों बच्चे बारी-बारी मुझे खिलाते और फिर खुद खाते, मैंने दोनों बच्चों को multiplex के बारे में बताना शुरू किया| एक साथ 4 अलग-अलग फिल्में 4 auditorium में चलने के नाम से दोनों बच्चे अचंभित थे और उन्हें लग रहा था की हम किसी भी auditorium में घुस कर फिल्म देख सकते हैं| मैंने उन्हें समझाया की हमने जिस फिल्म की टिकट ली है हम बस उसी auditorium में जा सकते हैं|

खैर 5 मिनट बाद मैं दोनों को ले कर auditorium में घुसा, हमारी सीट सबसे ऊपर थी तो मैंने दोनों बच्चों को सम्भल कर सीढ़ी चढ़ने को कहा| लेकिन इतना बड़ा auditorium देख कर दोनों बच्चों का ध्यान वहीं लगा हुआ था, ऊपर से screen पर advertisement चल रहे थे तो बच्चे खड़े हो कर बड़े चाव से screen देख रहे थे! मैंने दोनों को गोद में उठाया और हमारी सीट तक ले आया| हमारी सीट शुरू में ही थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, मैं बीच वाली सीट में बैठा और बच्चों को अपनी अगल-बगल वाली सीट पर बिठाया| दोनों बच्चों की नजरें screen पर टिकी थीं, बच्चों के लिए ये अनुभव नया था और मैं ख़ामोशी से उन्हें इस अनुभव का आनंद लेते हुए देख रहा था| कुछ देर बाद नेहा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी ये सिनेमा तो गाँव वाले से बहुत-बहुत अच्छा है! यहाँ AC है, मुलायम कुर्सी है, कितने सारे लोग हैं और पर्दा भी कितना साफ़ है!

नेहा की ख़ुशी उसकी बातों से झलक रही थी, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा वो गाँव देहात है, वहाँ इतनी सहूलतें नहीं हैं और न ही वहाँ कोई पैसा खर्चा करता है!

नेहा को मेरी बात कुछ-कुछ समझ आई और वो मुस्कुराते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी| इधर आयुष ने मुझे popcorn खिलाना चाहा और उधर नेहा ने मुझे cold drink पीने के लिए दी!



फिल्म शुरू हुई और दोनों बच्चे बड़े चाव से फिल्म देखने लगे, आयुष आज पहलीबार फिल्म देख रहा था तो उसके मन में बहुत सारे सवाल थे जैसे की हीरो कौन है, हीरोइन कौन है, वो दादाजी कौन हैं आदि! आयुष के बार-बार सवाल पूछने से नेहा परेशान हो रही थी इसलिए उसने चिढ़ते हुए आयुष को डाँटा;

नेहा: तू चुप-चाप फिल्म देख मैं बाद में तुझे बताऊँगी!

बहन की डाँट खा कर आयुष खामोश हो गया| मैंने आयुष को अपनी गोद में बिठाया और उसके सर को चूम कर खुसफुसाते हुए सब समझाने लगा| नेहा का ध्यान फिल्म पर था इसलिए उसे बाप-बेटे की बातों का पता नहीं चला था| फिल्म में जब गाना आया तो नेहा ने अपनी प्यारी सी आवाज में वो गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया| मैंने जब नेहा का गुनगुनाना सुना तो मुझे नेहा पर भी बहुत प्यार आया और मैने नेहा के सर पर हाथ रख दिया, नेहा ने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर खामोश हो गई! मैंने अपना हाथ नेहा के कँधे पर रखा और उसका सर अपने बाजू से टिका लिया| अब मैं कभी आयुष का सर चूमता तो कभी नेहा का! इसी तरह प्रेम से हम बाप-बेटा-बेटी ने फिल्म देखि, फिल्म खत्म हुई तो बच्चों को आज कुछ ख़ास खिलाने का मन था| मैंने आज उन्हें Al-bake का पनीर शवरमा खिलाना था, हालाँकि मैं चिकन शवरमा खाना चाहता था मगर बच्चों को non-veg नहीं खिलाना चाहता था इसलिए मैंने पनीर शवर्मा मँगाया| जब बच्चों ने शवरमा खाया तो दोनों बच्चे एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे!



खाना खा कर हम घर की ओर निकले, नेहा आगे बैठी थी और उसने रेडियो पर गाना लगा लिया| ये गाना दोनों बच्चों को आता था तो दोनों एक साथ गाना-गाने लगे, दोनों का गाना सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और मैं भी दोनों बच्चों के साथ गाने लगा! बच्चों को अपने पापा का साथ मिला तो दोनों जोश में आ गाये, फिर क्या था घर आने तक दोनों बच्चों ने गाडी में जो उधम मचाया की क्या कहूँ?!

आठ बजे मैं नेहा को पीठ पर और आयुष को गोद में ले कर दाखिल हुआ, उस समय घर में सब मौजूद थे बस एक चन्दर था जो आज नॉएडा वाली साइट पर overtime देख रहा था| दोनों बच्चों को चहकते हुए देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: अरे वाह भई! घुम्मी करके आ रहे हो सब?!

पिताजी की बात सुन दोनों बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनके पाँव छुए| मैं पिताजी के सामने बैठ गया, नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में बैठ गई| अब आयुष ने अपनी भोली सी भाषा में पिताजी को फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की;

आयुष: दादा जी….हम ने न....फिल्म देखि! उसमें न ...वो सीन था जब.....!

आयुष अपनी टूटी-फूटी भाषा में फिल्म की कहानी सुना रहा था, मुझे उसका कहानी सुनाने का ढँग बहुत मजेदार लग रहा था और मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा जो मेरी गोद में बैठी थी, वो बार-बार आयुष को टोक कर फिल्म की कहानी ठीक कर रही थी| दोनों बच्चों को इस तरह जुगलबंदी करते देख मुझे बहुत आनंद आ रहा था, इतना आनंद की मैं भौजी के मेरा plan चौपट करने वाली बात को भूल चूका था| उधर भौजी रसोई में खड़ीं खाना बनाते हुए घूंघट की आड़ से मुझे देख रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थी| वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|



कुछ पल बाद जब मैंने भौजी की ओर देखा तो उन्हें खुश देख मैं उनके मन के भाव समझ गया| उनका यूँ माँ के साथ समय बिताना और मुझे बच्चों के साथ भेज देना मेरे पल्ले पड़ चूका था| दोपहर में भौजी का मेरे साथ न जाने से जो मूड खराब हुआ था वो अब ठीक हो चूका था और अब मुझे उनपर थोड़ा-थोड़ा प्यार आने लगा था|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं, बच्चे पलंग पर बैठे आपस में खेल रहे थे और मैं बाथरूम से निकला था;

भौजी: Sorry जानू!!!

भौजी कान पकड़ते हुए किसी बच्चे की भाँती भोलेपन से बोलीं|

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा| मैं उनसे नाराज नहीं था बस उन्हें jeans-top पहने हुए न देखपाने का दर्द जताना चाहता था!

भौजी: अच्छा बाबा, कल हम पक्का फिल्म देखने चलेंगे!

भौजी मुझे मनाने के लिए प्यार दिखते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? और मैं रोज-रोज माँ को क्या बोलूँगा? कल बच्चों को फिल्म दिखाई थी और आज आपको अकेले फिल्म दिखाने ले जा रहा हूँ?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

भौजी ने मेरी बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी मेरे दिल की तड़प नहीं पढ़ पा रहीं थीं, इसलिए मैंने अपने दिल की बात उनके सामने रखते हुआ कहा|

भौजी: अभी थोड़ी देर बाद!

भौजी एकदम से बोलीं!

मैं: मजाक मत करो!?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

भौजी: सच जानू! आज आपके भैया देर से आएंगे, तो.....that means we’ve plenty of time together!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं!

मैं: ठीक है! लेकिन इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को डराते हुए कहा|

भौजी: नहीं बाबा! आज पक्का!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी को jeans-top में देखने के नाम से मेरा दिल रोमाँच से भर उठा था!



चलो भई आज रात का सीन तो पक्का हो गया था, अब मुझे सीन के लिए झूठ बोलने की तैयारी करनी थी| मैंने दिषु को फोन किया और उसे बड़े उत्साह से अपना प्लान समझा दिया, मेरा उत्साह सुन दिषु बस हँसे जा रहा था! वहीं भौजी ने जब मेरी planning सुनी तो वो भी मुस्कुराने लगीं!

मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को सुलाने लगा, आज की धमाचौकड़ी के बाद बच्चे थक गए थे इसलिए उन्हें सुलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था| बच्चों को सुला कर मैं माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगा, जैसे ही घडी में दस बजे दिषु ने मेरा फ़ोन खड़का दिया| मैंने माँ के पास बैठे-बैठे ही फ़ोन उठा लिया और माँ सुन लें इतनी तेज आवाज में उससे बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

दिषु: भाई तेरी मदद चाहिए!

मैंने पहले ही फ़ोन की आवाज तेज कर दी थी, जिससे जब मैं दिषु से बात करूँ तो माँ उसकी बात सुन लें और उनके मन में कोई शक न रहे|

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है?

मेरी बात सुन माँ हैरान हो गई, उन्होंने टी.वी. की आवाज बंद की और मेरी बातें ध्यान से सुनने लगीं|

दिषु: यार मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसकी मोटर साइकिल disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है, तू फटाफट trauma center पहुँच!

दिषु की बात सुन मैंने घबराने की बेजोड़ acting की और बोला;

मैं: मैं अभी आ रहा हूँ!

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|

जारी रहेगा भाग - 13 में...
 

Akki ❸❸❸

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Manu bhai aapki yah complete story mai dusri site par abhi 2 din pahle hi padh chuka hoon. Lekin aapne is forum par ye kahani aur bhi jyada acchi tarah se likhi hai aur story mai bhi kafi kuch add kiya hai. Behtrin story
:banghead:
Aur hum yha update waiting likhte h..
Gotta go :flybye:
 

Akki ❸❸❸

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 12



अब तक आपने पढ़ा:


मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!



अब आगे:


अब
मरता क्या ना करता, बच्चों से फिल्म दिखाने का वादा जो किया था| मैं उठा और बच्चों को लेने चल दिया, school van से उतरते ही मुझसे लिपट गए तथा फिल्म देखने जाने का शोर मचाने लगे! मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और घर की ओर चल पड़ा, रास्ते में नेहा ने फिर से आयुष को गाँव में मेरे साथ देखि फिल्म के बारे में बताना शुरू कर दिया| हैरानी की बात ये थी की आयुष जब भी वो बातें सुनता था तो ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगता था, जैसे हर बार उसे ये बात सुनने में मजा आता हो!

घर पहुँच कर भौजी ने दोनों बच्चों को तैयार किया और उन्हें समझाने लगीं;

भौजी: बेटा बाहर है न पापा को तंग मत करना और कुछ खाने-पीने की बेकार जिद्द मत करना!

मैं कमरे में अपना पर्स लेने आया था, मैंने भौजी की बात सुन ली और उन्हें टोकते हुए बोला;

मैं: क्यों जिद्द नहीं करना? मेरे बच्चे हैं, वो जो चाहेंगे वो खाएँगे-पीयेंगे!

मेरा यूँ बच्चों के ऊपर हक़ जताना भौजी को अच्छा लगता था, लेकिन आज मेरा भौजी को टोकने का कारन कुछ और था! मैं उन्हें मेरा plan चौपट करने के लिए उलहाना देना चाह रहा था, जो की शायद भौजी समझ चुकी थीं तभी तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी!



तैयार हो कर बाप-बेटा-बेटी घर से निकले, अभी हम गली में थे जब आयुष चहकते हुए बोला;

आयुष: पापा जी आज भी हम गाडी में जाएँगे?

जिस भोलेपन से आयुष ने पुछा था मुझे उस पर प्यार आ गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया|

मैं: हाँ जी बेटा!

गाडी में घूमने के नाम से दोनों बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया| जब हम गाडी के पास पहुँचे तो इस बार दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपना बड़प्पन दिखाया और बोली;

नेहा: आयुष तू अभी आगे बैठ जा वापसी में मैं बैठ जाऊँगी!

पहले आगे बैठने की बात से आयुष खुश हो गया और फ़ट से आगे बैठ गया| हम तीनों mall पहुँचे और escalators से होते हुए theatre में घुसे| Theatre में घुसते ही दोनों बच्चों की नजर सबसे पहले food counter पर पड़ी, खाने-पीने की चीज देख कर दोनों बच्चे ललचा गए मगर मुझसे कुछ नहीं बोले| आयुष चूँकि छोटा था तो उसने हिम्मत कर के खाने के लिए कुछ माँगना चाहा, लेकिन तभी नेहा ने उसका हाथ दबा कर चुप रहने को कहा, मैंने दोनों भाई-बहन की हरकत पकड़ ली थी इसलिए मैं दोनों के सामने एक घुटना मोड़ कर बैठा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं आपका पापा हूँ, आपको अगर कुछ खाना होता है, कहीं घूमना होता है, कुछ खरीदना होता है तो मुझसे माँगना आप दोनों का हक़ है! आपकी माँग जायज है या नहीं, या फिर मैं उसे पूरा कर सकता हूँ या नहीं इसका फैसला मैं करूँगा! Okay?

ये सुन कर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई!

मैं: अब बताओ आप दोनों को क्या खाना है?

इतना सुनना था की आयुष ने फ़ौरन popcorn की ओर इशारा कर दिया और नेहा ने cold drink की ओर| मैंने दोनों को popcorn और cold drink खरीद कर दी तथा उन्हें ले कर auditorium खुलने तक बाहर बैठ गया| दोनों बच्चे बारी-बारी मुझे खिलाते और फिर खुद खाते, मैंने दोनों बच्चों को multiplex के बारे में बताना शुरू किया| एक साथ 4 अलग-अलग फिल्में 4 auditorium में चलने के नाम से दोनों बच्चे अचंभित थे और उन्हें लग रहा था की हम किसी भी auditorium में घुस कर फिल्म देख सकते हैं| मैंने उन्हें समझाया की हमने जिस फिल्म की टिकट ली है हम बस उसी auditorium में जा सकते हैं|

खैर 5 मिनट बाद मैं दोनों को ले कर auditorium में घुसा, हमारी सीट सबसे ऊपर थी तो मैंने दोनों बच्चों को सम्भल कर सीढ़ी चढ़ने को कहा| लेकिन इतना बड़ा auditorium देख कर दोनों बच्चों का ध्यान वहीं लगा हुआ था, ऊपर से screen पर advertisement चल रहे थे तो बच्चे खड़े हो कर बड़े चाव से screen देख रहे थे! मैंने दोनों को गोद में उठाया और हमारी सीट तक ले आया| हमारी सीट शुरू में ही थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, मैं बीच वाली सीट में बैठा और बच्चों को अपनी अगल-बगल वाली सीट पर बिठाया| दोनों बच्चों की नजरें screen पर टिकी थीं, बच्चों के लिए ये अनुभव नया था और मैं ख़ामोशी से उन्हें इस अनुभव का आनंद लेते हुए देख रहा था| कुछ देर बाद नेहा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी ये सिनेमा तो गाँव वाले से बहुत-बहुत अच्छा है! यहाँ AC है, मुलायम कुर्सी है, कितने सारे लोग हैं और पर्दा भी कितना साफ़ है!

नेहा की ख़ुशी उसकी बातों से झलक रही थी, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा वो गाँव देहात है, वहाँ इतनी सहूलतें नहीं हैं और न ही वहाँ कोई पैसा खर्चा करता है!

नेहा को मेरी बात कुछ-कुछ समझ आई और वो मुस्कुराते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी| इधर आयुष ने मुझे popcorn खिलाना चाहा और उधर नेहा ने मुझे cold drink पीने के लिए दी!



फिल्म शुरू हुई और दोनों बच्चे बड़े चाव से फिल्म देखने लगे, आयुष आज पहलीबार फिल्म देख रहा था तो उसके मन में बहुत सारे सवाल थे जैसे की हीरो कौन है, हीरोइन कौन है, वो दादाजी कौन हैं आदि! आयुष के बार-बार सवाल पूछने से नेहा परेशान हो रही थी इसलिए उसने चिढ़ते हुए आयुष को डाँटा;

नेहा: तू चुप-चाप फिल्म देख मैं बाद में तुझे बताऊँगी!

बहन की डाँट खा कर आयुष खामोश हो गया| मैंने आयुष को अपनी गोद में बिठाया और उसके सर को चूम कर खुसफुसाते हुए सब समझाने लगा| नेहा का ध्यान फिल्म पर था इसलिए उसे बाप-बेटे की बातों का पता नहीं चला था| फिल्म में जब गाना आया तो नेहा ने अपनी प्यारी सी आवाज में वो गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया| मैंने जब नेहा का गुनगुनाना सुना तो मुझे नेहा पर भी बहुत प्यार आया और मैने नेहा के सर पर हाथ रख दिया, नेहा ने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर खामोश हो गई! मैंने अपना हाथ नेहा के कँधे पर रखा और उसका सर अपने बाजू से टिका लिया| अब मैं कभी आयुष का सर चूमता तो कभी नेहा का! इसी तरह प्रेम से हम बाप-बेटा-बेटी ने फिल्म देखि, फिल्म खत्म हुई तो बच्चों को आज कुछ ख़ास खिलाने का मन था| मैंने आज उन्हें Al-bake का पनीर शवरमा खिलाना था, हालाँकि मैं चिकन शवरमा खाना चाहता था मगर बच्चों को non-veg नहीं खिलाना चाहता था इसलिए मैंने पनीर शवर्मा मँगाया| जब बच्चों ने शवरमा खाया तो दोनों बच्चे एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे!



खाना खा कर हम घर की ओर निकले, नेहा आगे बैठी थी और उसने रेडियो पर गाना लगा लिया| ये गाना दोनों बच्चों को आता था तो दोनों एक साथ गाना-गाने लगे, दोनों का गाना सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और मैं भी दोनों बच्चों के साथ गाने लगा! बच्चों को अपने पापा का साथ मिला तो दोनों जोश में आ गाये, फिर क्या था घर आने तक दोनों बच्चों ने गाडी में जो उधम मचाया की क्या कहूँ?!

आठ बजे मैं नेहा को पीठ पर और आयुष को गोद में ले कर दाखिल हुआ, उस समय घर में सब मौजूद थे बस एक चन्दर था जो आज नॉएडा वाली साइट पर overtime देख रहा था| दोनों बच्चों को चहकते हुए देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: अरे वाह भई! घुम्मी करके आ रहे हो सब?!

पिताजी की बात सुन दोनों बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनके पाँव छुए| मैं पिताजी के सामने बैठ गया, नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में बैठ गई| अब आयुष ने अपनी भोली सी भाषा में पिताजी को फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की;

आयुष: दादा जी….हम ने न....फिल्म देखि! उसमें न ...वो सीन था जब.....!

आयुष अपनी टूटी-फूटी भाषा में फिल्म की कहानी सुना रहा था, मुझे उसका कहानी सुनाने का ढँग बहुत मजेदार लग रहा था और मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा जो मेरी गोद में बैठी थी, वो बार-बार आयुष को टोक कर फिल्म की कहानी ठीक कर रही थी| दोनों बच्चों को इस तरह जुगलबंदी करते देख मुझे बहुत आनंद आ रहा था, इतना आनंद की मैं भौजी के मेरा plan चौपट करने वाली बात को भूल चूका था| उधर भौजी रसोई में खड़ीं खाना बनाते हुए घूंघट की आड़ से मुझे देख रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थी| वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|



कुछ पल बाद जब मैंने भौजी की ओर देखा तो उन्हें खुश देख मैं उनके मन के भाव समझ गया| उनका यूँ माँ के साथ समय बिताना और मुझे बच्चों के साथ भेज देना मेरे पल्ले पड़ चूका था| दोपहर में भौजी का मेरे साथ न जाने से जो मूड खराब हुआ था वो अब ठीक हो चूका था और अब मुझे उनपर थोड़ा-थोड़ा प्यार आने लगा था|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं, बच्चे पलंग पर बैठे आपस में खेल रहे थे और मैं बाथरूम से निकला था;

भौजी: Sorry जानू!!!

भौजी कान पकड़ते हुए किसी बच्चे की भाँती भोलेपन से बोलीं|

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा| मैं उनसे नाराज नहीं था बस उन्हें jeans-top पहने हुए न देखपाने का दर्द जताना चाहता था!

भौजी: अच्छा बाबा, कल हम पक्का फिल्म देखने चलेंगे!

भौजी मुझे मनाने के लिए प्यार दिखते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? और मैं रोज-रोज माँ को क्या बोलूँगा? कल बच्चों को फिल्म दिखाई थी और आज आपको अकेले फिल्म दिखाने ले जा रहा हूँ?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

भौजी ने मेरी बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी मेरे दिल की तड़प नहीं पढ़ पा रहीं थीं, इसलिए मैंने अपने दिल की बात उनके सामने रखते हुआ कहा|

भौजी: अभी थोड़ी देर बाद!

भौजी एकदम से बोलीं!

मैं: मजाक मत करो!?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

भौजी: सच जानू! आज आपके भैया देर से आएंगे, तो.....that means we’ve plenty of time together!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं!

मैं: ठीक है! लेकिन इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को डराते हुए कहा|

भौजी: नहीं बाबा! आज पक्का!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी को jeans-top में देखने के नाम से मेरा दिल रोमाँच से भर उठा था!



चलो भई आज रात का सीन तो पक्का हो गया था, अब मुझे सीन के लिए झूठ बोलने की तैयारी करनी थी| मैंने दिषु को फोन किया और उसे बड़े उत्साह से अपना प्लान समझा दिया, मेरा उत्साह सुन दिषु बस हँसे जा रहा था! वहीं भौजी ने जब मेरी planning सुनी तो वो भी मुस्कुराने लगीं!

मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को सुलाने लगा, आज की धमाचौकड़ी के बाद बच्चे थक गए थे इसलिए उन्हें सुलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था| बच्चों को सुला कर मैं माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगा, जैसे ही घडी में दस बजे दिषु ने मेरा फ़ोन खड़का दिया| मैंने माँ के पास बैठे-बैठे ही फ़ोन उठा लिया और माँ सुन लें इतनी तेज आवाज में उससे बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

दिषु: भाई तेरी मदद चाहिए!

मैंने पहले ही फ़ोन की आवाज तेज कर दी थी, जिससे जब मैं दिषु से बात करूँ तो माँ उसकी बात सुन लें और उनके मन में कोई शक न रहे|

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है?

मेरी बात सुन माँ हैरान हो गई, उन्होंने टी.वी. की आवाज बंद की और मेरी बातें ध्यान से सुनने लगीं|

दिषु: यार मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसकी मोटर साइकिल disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है, तू फटाफट trauma center पहुँच!

दिषु की बात सुन मैंने घबराने की बेजोड़ acting की और बोला;

मैं: मैं अभी आ रहा हूँ!

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|


जारी रहेगा भाग - 13 में...
:reading:
 

Akki ❸❸❸

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 12



अब तक आपने पढ़ा:


मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!



अब आगे:


अब
मरता क्या ना करता, बच्चों से फिल्म दिखाने का वादा जो किया था| मैं उठा और बच्चों को लेने चल दिया, school van से उतरते ही मुझसे लिपट गए तथा फिल्म देखने जाने का शोर मचाने लगे! मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और घर की ओर चल पड़ा, रास्ते में नेहा ने फिर से आयुष को गाँव में मेरे साथ देखि फिल्म के बारे में बताना शुरू कर दिया| हैरानी की बात ये थी की आयुष जब भी वो बातें सुनता था तो ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगता था, जैसे हर बार उसे ये बात सुनने में मजा आता हो!

घर पहुँच कर भौजी ने दोनों बच्चों को तैयार किया और उन्हें समझाने लगीं;

भौजी: बेटा बाहर है न पापा को तंग मत करना और कुछ खाने-पीने की बेकार जिद्द मत करना!

मैं कमरे में अपना पर्स लेने आया था, मैंने भौजी की बात सुन ली और उन्हें टोकते हुए बोला;

मैं: क्यों जिद्द नहीं करना? मेरे बच्चे हैं, वो जो चाहेंगे वो खाएँगे-पीयेंगे!

मेरा यूँ बच्चों के ऊपर हक़ जताना भौजी को अच्छा लगता था, लेकिन आज मेरा भौजी को टोकने का कारन कुछ और था! मैं उन्हें मेरा plan चौपट करने के लिए उलहाना देना चाह रहा था, जो की शायद भौजी समझ चुकी थीं तभी तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी!



तैयार हो कर बाप-बेटा-बेटी घर से निकले, अभी हम गली में थे जब आयुष चहकते हुए बोला;

आयुष: पापा जी आज भी हम गाडी में जाएँगे?

जिस भोलेपन से आयुष ने पुछा था मुझे उस पर प्यार आ गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया|

मैं: हाँ जी बेटा!

गाडी में घूमने के नाम से दोनों बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया| जब हम गाडी के पास पहुँचे तो इस बार दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपना बड़प्पन दिखाया और बोली;

नेहा: आयुष तू अभी आगे बैठ जा वापसी में मैं बैठ जाऊँगी!

पहले आगे बैठने की बात से आयुष खुश हो गया और फ़ट से आगे बैठ गया| हम तीनों mall पहुँचे और escalators से होते हुए theatre में घुसे| Theatre में घुसते ही दोनों बच्चों की नजर सबसे पहले food counter पर पड़ी, खाने-पीने की चीज देख कर दोनों बच्चे ललचा गए मगर मुझसे कुछ नहीं बोले| आयुष चूँकि छोटा था तो उसने हिम्मत कर के खाने के लिए कुछ माँगना चाहा, लेकिन तभी नेहा ने उसका हाथ दबा कर चुप रहने को कहा, मैंने दोनों भाई-बहन की हरकत पकड़ ली थी इसलिए मैं दोनों के सामने एक घुटना मोड़ कर बैठा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं आपका पापा हूँ, आपको अगर कुछ खाना होता है, कहीं घूमना होता है, कुछ खरीदना होता है तो मुझसे माँगना आप दोनों का हक़ है! आपकी माँग जायज है या नहीं, या फिर मैं उसे पूरा कर सकता हूँ या नहीं इसका फैसला मैं करूँगा! Okay?

ये सुन कर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई!

मैं: अब बताओ आप दोनों को क्या खाना है?

इतना सुनना था की आयुष ने फ़ौरन popcorn की ओर इशारा कर दिया और नेहा ने cold drink की ओर| मैंने दोनों को popcorn और cold drink खरीद कर दी तथा उन्हें ले कर auditorium खुलने तक बाहर बैठ गया| दोनों बच्चे बारी-बारी मुझे खिलाते और फिर खुद खाते, मैंने दोनों बच्चों को multiplex के बारे में बताना शुरू किया| एक साथ 4 अलग-अलग फिल्में 4 auditorium में चलने के नाम से दोनों बच्चे अचंभित थे और उन्हें लग रहा था की हम किसी भी auditorium में घुस कर फिल्म देख सकते हैं| मैंने उन्हें समझाया की हमने जिस फिल्म की टिकट ली है हम बस उसी auditorium में जा सकते हैं|

खैर 5 मिनट बाद मैं दोनों को ले कर auditorium में घुसा, हमारी सीट सबसे ऊपर थी तो मैंने दोनों बच्चों को सम्भल कर सीढ़ी चढ़ने को कहा| लेकिन इतना बड़ा auditorium देख कर दोनों बच्चों का ध्यान वहीं लगा हुआ था, ऊपर से screen पर advertisement चल रहे थे तो बच्चे खड़े हो कर बड़े चाव से screen देख रहे थे! मैंने दोनों को गोद में उठाया और हमारी सीट तक ले आया| हमारी सीट शुरू में ही थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, मैं बीच वाली सीट में बैठा और बच्चों को अपनी अगल-बगल वाली सीट पर बिठाया| दोनों बच्चों की नजरें screen पर टिकी थीं, बच्चों के लिए ये अनुभव नया था और मैं ख़ामोशी से उन्हें इस अनुभव का आनंद लेते हुए देख रहा था| कुछ देर बाद नेहा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी ये सिनेमा तो गाँव वाले से बहुत-बहुत अच्छा है! यहाँ AC है, मुलायम कुर्सी है, कितने सारे लोग हैं और पर्दा भी कितना साफ़ है!

नेहा की ख़ुशी उसकी बातों से झलक रही थी, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा वो गाँव देहात है, वहाँ इतनी सहूलतें नहीं हैं और न ही वहाँ कोई पैसा खर्चा करता है!

नेहा को मेरी बात कुछ-कुछ समझ आई और वो मुस्कुराते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी| इधर आयुष ने मुझे popcorn खिलाना चाहा और उधर नेहा ने मुझे cold drink पीने के लिए दी!



फिल्म शुरू हुई और दोनों बच्चे बड़े चाव से फिल्म देखने लगे, आयुष आज पहलीबार फिल्म देख रहा था तो उसके मन में बहुत सारे सवाल थे जैसे की हीरो कौन है, हीरोइन कौन है, वो दादाजी कौन हैं आदि! आयुष के बार-बार सवाल पूछने से नेहा परेशान हो रही थी इसलिए उसने चिढ़ते हुए आयुष को डाँटा;

नेहा: तू चुप-चाप फिल्म देख मैं बाद में तुझे बताऊँगी!

बहन की डाँट खा कर आयुष खामोश हो गया| मैंने आयुष को अपनी गोद में बिठाया और उसके सर को चूम कर खुसफुसाते हुए सब समझाने लगा| नेहा का ध्यान फिल्म पर था इसलिए उसे बाप-बेटे की बातों का पता नहीं चला था| फिल्म में जब गाना आया तो नेहा ने अपनी प्यारी सी आवाज में वो गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया| मैंने जब नेहा का गुनगुनाना सुना तो मुझे नेहा पर भी बहुत प्यार आया और मैने नेहा के सर पर हाथ रख दिया, नेहा ने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर खामोश हो गई! मैंने अपना हाथ नेहा के कँधे पर रखा और उसका सर अपने बाजू से टिका लिया| अब मैं कभी आयुष का सर चूमता तो कभी नेहा का! इसी तरह प्रेम से हम बाप-बेटा-बेटी ने फिल्म देखि, फिल्म खत्म हुई तो बच्चों को आज कुछ ख़ास खिलाने का मन था| मैंने आज उन्हें Al-bake का पनीर शवरमा खिलाना था, हालाँकि मैं चिकन शवरमा खाना चाहता था मगर बच्चों को non-veg नहीं खिलाना चाहता था इसलिए मैंने पनीर शवर्मा मँगाया| जब बच्चों ने शवरमा खाया तो दोनों बच्चे एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे!



खाना खा कर हम घर की ओर निकले, नेहा आगे बैठी थी और उसने रेडियो पर गाना लगा लिया| ये गाना दोनों बच्चों को आता था तो दोनों एक साथ गाना-गाने लगे, दोनों का गाना सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और मैं भी दोनों बच्चों के साथ गाने लगा! बच्चों को अपने पापा का साथ मिला तो दोनों जोश में आ गाये, फिर क्या था घर आने तक दोनों बच्चों ने गाडी में जो उधम मचाया की क्या कहूँ?!

आठ बजे मैं नेहा को पीठ पर और आयुष को गोद में ले कर दाखिल हुआ, उस समय घर में सब मौजूद थे बस एक चन्दर था जो आज नॉएडा वाली साइट पर overtime देख रहा था| दोनों बच्चों को चहकते हुए देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: अरे वाह भई! घुम्मी करके आ रहे हो सब?!

पिताजी की बात सुन दोनों बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनके पाँव छुए| मैं पिताजी के सामने बैठ गया, नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में बैठ गई| अब आयुष ने अपनी भोली सी भाषा में पिताजी को फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की;

आयुष: दादा जी….हम ने न....फिल्म देखि! उसमें न ...वो सीन था जब.....!

आयुष अपनी टूटी-फूटी भाषा में फिल्म की कहानी सुना रहा था, मुझे उसका कहानी सुनाने का ढँग बहुत मजेदार लग रहा था और मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा जो मेरी गोद में बैठी थी, वो बार-बार आयुष को टोक कर फिल्म की कहानी ठीक कर रही थी| दोनों बच्चों को इस तरह जुगलबंदी करते देख मुझे बहुत आनंद आ रहा था, इतना आनंद की मैं भौजी के मेरा plan चौपट करने वाली बात को भूल चूका था| उधर भौजी रसोई में खड़ीं खाना बनाते हुए घूंघट की आड़ से मुझे देख रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थी| वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|



कुछ पल बाद जब मैंने भौजी की ओर देखा तो उन्हें खुश देख मैं उनके मन के भाव समझ गया| उनका यूँ माँ के साथ समय बिताना और मुझे बच्चों के साथ भेज देना मेरे पल्ले पड़ चूका था| दोपहर में भौजी का मेरे साथ न जाने से जो मूड खराब हुआ था वो अब ठीक हो चूका था और अब मुझे उनपर थोड़ा-थोड़ा प्यार आने लगा था|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं, बच्चे पलंग पर बैठे आपस में खेल रहे थे और मैं बाथरूम से निकला था;

भौजी: Sorry जानू!!!

भौजी कान पकड़ते हुए किसी बच्चे की भाँती भोलेपन से बोलीं|

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा| मैं उनसे नाराज नहीं था बस उन्हें jeans-top पहने हुए न देखपाने का दर्द जताना चाहता था!

भौजी: अच्छा बाबा, कल हम पक्का फिल्म देखने चलेंगे!

भौजी मुझे मनाने के लिए प्यार दिखते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? और मैं रोज-रोज माँ को क्या बोलूँगा? कल बच्चों को फिल्म दिखाई थी और आज आपको अकेले फिल्म दिखाने ले जा रहा हूँ?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

भौजी ने मेरी बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी मेरे दिल की तड़प नहीं पढ़ पा रहीं थीं, इसलिए मैंने अपने दिल की बात उनके सामने रखते हुआ कहा|

भौजी: अभी थोड़ी देर बाद!

भौजी एकदम से बोलीं!

मैं: मजाक मत करो!?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

भौजी: सच जानू! आज आपके भैया देर से आएंगे, तो.....that means we’ve plenty of time together!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं!

मैं: ठीक है! लेकिन इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को डराते हुए कहा|

भौजी: नहीं बाबा! आज पक्का!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी को jeans-top में देखने के नाम से मेरा दिल रोमाँच से भर उठा था!



चलो भई आज रात का सीन तो पक्का हो गया था, अब मुझे सीन के लिए झूठ बोलने की तैयारी करनी थी| मैंने दिषु को फोन किया और उसे बड़े उत्साह से अपना प्लान समझा दिया, मेरा उत्साह सुन दिषु बस हँसे जा रहा था! वहीं भौजी ने जब मेरी planning सुनी तो वो भी मुस्कुराने लगीं!

मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को सुलाने लगा, आज की धमाचौकड़ी के बाद बच्चे थक गए थे इसलिए उन्हें सुलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था| बच्चों को सुला कर मैं माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगा, जैसे ही घडी में दस बजे दिषु ने मेरा फ़ोन खड़का दिया| मैंने माँ के पास बैठे-बैठे ही फ़ोन उठा लिया और माँ सुन लें इतनी तेज आवाज में उससे बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

दिषु: भाई तेरी मदद चाहिए!

मैंने पहले ही फ़ोन की आवाज तेज कर दी थी, जिससे जब मैं दिषु से बात करूँ तो माँ उसकी बात सुन लें और उनके मन में कोई शक न रहे|

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है?

मेरी बात सुन माँ हैरान हो गई, उन्होंने टी.वी. की आवाज बंद की और मेरी बातें ध्यान से सुनने लगीं|

दिषु: यार मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसकी मोटर साइकिल disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है, तू फटाफट trauma center पहुँच!

दिषु की बात सुन मैंने घबराने की बेजोड़ acting की और बोला;

मैं: मैं अभी आ रहा हूँ!

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|


जारी रहेगा भाग - 13 में...
Bdiya update gurujii :love:

Ayush, neha ki masti :love2:

वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|
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ABHISHEK TRIPATHI

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 12



अब तक आपने पढ़ा:


मैं भी मौका पा कर माँ के साथ हो लिया और फिर से भौजी को घूर कर देखने लगा ताकि वो फिल्म देखने के लिए तैयार हो जाएँ, मगर भौजी माँ की ख़ुशी चाहतीं थीं इसलिए वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुईं;

भौजी: नहीं माँ, आज तो आप और मैं साडी ही खरीदेंगे|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं| माँ को साडी खरीदने के लिए साथी मिल गया था इसलिए उन्होंने दुबारा भौजी को फिल्म देखने जाने के लिए नहीं कहा और इधर मेरे मूड की 'लग' चुकी थी!



अब आगे:


अब
मरता क्या ना करता, बच्चों से फिल्म दिखाने का वादा जो किया था| मैं उठा और बच्चों को लेने चल दिया, school van से उतरते ही मुझसे लिपट गए तथा फिल्म देखने जाने का शोर मचाने लगे! मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और घर की ओर चल पड़ा, रास्ते में नेहा ने फिर से आयुष को गाँव में मेरे साथ देखि फिल्म के बारे में बताना शुरू कर दिया| हैरानी की बात ये थी की आयुष जब भी वो बातें सुनता था तो ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगता था, जैसे हर बार उसे ये बात सुनने में मजा आता हो!

घर पहुँच कर भौजी ने दोनों बच्चों को तैयार किया और उन्हें समझाने लगीं;

भौजी: बेटा बाहर है न पापा को तंग मत करना और कुछ खाने-पीने की बेकार जिद्द मत करना!

मैं कमरे में अपना पर्स लेने आया था, मैंने भौजी की बात सुन ली और उन्हें टोकते हुए बोला;

मैं: क्यों जिद्द नहीं करना? मेरे बच्चे हैं, वो जो चाहेंगे वो खाएँगे-पीयेंगे!

मेरा यूँ बच्चों के ऊपर हक़ जताना भौजी को अच्छा लगता था, लेकिन आज मेरा भौजी को टोकने का कारन कुछ और था! मैं उन्हें मेरा plan चौपट करने के लिए उलहाना देना चाह रहा था, जो की शायद भौजी समझ चुकी थीं तभी तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी!



तैयार हो कर बाप-बेटा-बेटी घर से निकले, अभी हम गली में थे जब आयुष चहकते हुए बोला;

आयुष: पापा जी आज भी हम गाडी में जाएँगे?

जिस भोलेपन से आयुष ने पुछा था मुझे उस पर प्यार आ गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया|

मैं: हाँ जी बेटा!

गाडी में घूमने के नाम से दोनों बच्चों ने शोर मचाना शुरू कर दिया| जब हम गाडी के पास पहुँचे तो इस बार दोनों बच्चों ने आगे बैठने के लिए लड़ाई नहीं की बल्कि नेहा ने बड़ी बहन बनते हुए अपना बड़प्पन दिखाया और बोली;

नेहा: आयुष तू अभी आगे बैठ जा वापसी में मैं बैठ जाऊँगी!

पहले आगे बैठने की बात से आयुष खुश हो गया और फ़ट से आगे बैठ गया| हम तीनों mall पहुँचे और escalators से होते हुए theatre में घुसे| Theatre में घुसते ही दोनों बच्चों की नजर सबसे पहले food counter पर पड़ी, खाने-पीने की चीज देख कर दोनों बच्चे ललचा गए मगर मुझसे कुछ नहीं बोले| आयुष चूँकि छोटा था तो उसने हिम्मत कर के खाने के लिए कुछ माँगना चाहा, लेकिन तभी नेहा ने उसका हाथ दबा कर चुप रहने को कहा, मैंने दोनों भाई-बहन की हरकत पकड़ ली थी इसलिए मैं दोनों के सामने एक घुटना मोड़ कर बैठा और उन्हें समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं आपका पापा हूँ, आपको अगर कुछ खाना होता है, कहीं घूमना होता है, कुछ खरीदना होता है तो मुझसे माँगना आप दोनों का हक़ है! आपकी माँग जायज है या नहीं, या फिर मैं उसे पूरा कर सकता हूँ या नहीं इसका फैसला मैं करूँगा! Okay?

ये सुन कर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई!

मैं: अब बताओ आप दोनों को क्या खाना है?

इतना सुनना था की आयुष ने फ़ौरन popcorn की ओर इशारा कर दिया और नेहा ने cold drink की ओर| मैंने दोनों को popcorn और cold drink खरीद कर दी तथा उन्हें ले कर auditorium खुलने तक बाहर बैठ गया| दोनों बच्चे बारी-बारी मुझे खिलाते और फिर खुद खाते, मैंने दोनों बच्चों को multiplex के बारे में बताना शुरू किया| एक साथ 4 अलग-अलग फिल्में 4 auditorium में चलने के नाम से दोनों बच्चे अचंभित थे और उन्हें लग रहा था की हम किसी भी auditorium में घुस कर फिल्म देख सकते हैं| मैंने उन्हें समझाया की हमने जिस फिल्म की टिकट ली है हम बस उसी auditorium में जा सकते हैं|

खैर 5 मिनट बाद मैं दोनों को ले कर auditorium में घुसा, हमारी सीट सबसे ऊपर थी तो मैंने दोनों बच्चों को सम्भल कर सीढ़ी चढ़ने को कहा| लेकिन इतना बड़ा auditorium देख कर दोनों बच्चों का ध्यान वहीं लगा हुआ था, ऊपर से screen पर advertisement चल रहे थे तो बच्चे खड़े हो कर बड़े चाव से screen देख रहे थे! मैंने दोनों को गोद में उठाया और हमारी सीट तक ले आया| हमारी सीट शुरू में ही थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, मैं बीच वाली सीट में बैठा और बच्चों को अपनी अगल-बगल वाली सीट पर बिठाया| दोनों बच्चों की नजरें screen पर टिकी थीं, बच्चों के लिए ये अनुभव नया था और मैं ख़ामोशी से उन्हें इस अनुभव का आनंद लेते हुए देख रहा था| कुछ देर बाद नेहा मुस्कुराते हुए मुझसे बोली;

नेहा: पापा जी ये सिनेमा तो गाँव वाले से बहुत-बहुत अच्छा है! यहाँ AC है, मुलायम कुर्सी है, कितने सारे लोग हैं और पर्दा भी कितना साफ़ है!

नेहा की ख़ुशी उसकी बातों से झलक रही थी, मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोला;

मैं: बेटा वो गाँव देहात है, वहाँ इतनी सहूलतें नहीं हैं और न ही वहाँ कोई पैसा खर्चा करता है!

नेहा को मेरी बात कुछ-कुछ समझ आई और वो मुस्कुराते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी| इधर आयुष ने मुझे popcorn खिलाना चाहा और उधर नेहा ने मुझे cold drink पीने के लिए दी!



फिल्म शुरू हुई और दोनों बच्चे बड़े चाव से फिल्म देखने लगे, आयुष आज पहलीबार फिल्म देख रहा था तो उसके मन में बहुत सारे सवाल थे जैसे की हीरो कौन है, हीरोइन कौन है, वो दादाजी कौन हैं आदि! आयुष के बार-बार सवाल पूछने से नेहा परेशान हो रही थी इसलिए उसने चिढ़ते हुए आयुष को डाँटा;

नेहा: तू चुप-चाप फिल्म देख मैं बाद में तुझे बताऊँगी!

बहन की डाँट खा कर आयुष खामोश हो गया| मैंने आयुष को अपनी गोद में बिठाया और उसके सर को चूम कर खुसफुसाते हुए सब समझाने लगा| नेहा का ध्यान फिल्म पर था इसलिए उसे बाप-बेटे की बातों का पता नहीं चला था| फिल्म में जब गाना आया तो नेहा ने अपनी प्यारी सी आवाज में वो गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया| मैंने जब नेहा का गुनगुनाना सुना तो मुझे नेहा पर भी बहुत प्यार आया और मैने नेहा के सर पर हाथ रख दिया, नेहा ने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर खामोश हो गई! मैंने अपना हाथ नेहा के कँधे पर रखा और उसका सर अपने बाजू से टिका लिया| अब मैं कभी आयुष का सर चूमता तो कभी नेहा का! इसी तरह प्रेम से हम बाप-बेटा-बेटी ने फिल्म देखि, फिल्म खत्म हुई तो बच्चों को आज कुछ ख़ास खिलाने का मन था| मैंने आज उन्हें Al-bake का पनीर शवरमा खिलाना था, हालाँकि मैं चिकन शवरमा खाना चाहता था मगर बच्चों को non-veg नहीं खिलाना चाहता था इसलिए मैंने पनीर शवर्मा मँगाया| जब बच्चों ने शवरमा खाया तो दोनों बच्चे एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगे!



खाना खा कर हम घर की ओर निकले, नेहा आगे बैठी थी और उसने रेडियो पर गाना लगा लिया| ये गाना दोनों बच्चों को आता था तो दोनों एक साथ गाना-गाने लगे, दोनों का गाना सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और मैं भी दोनों बच्चों के साथ गाने लगा! बच्चों को अपने पापा का साथ मिला तो दोनों जोश में आ गाये, फिर क्या था घर आने तक दोनों बच्चों ने गाडी में जो उधम मचाया की क्या कहूँ?!

आठ बजे मैं नेहा को पीठ पर और आयुष को गोद में ले कर दाखिल हुआ, उस समय घर में सब मौजूद थे बस एक चन्दर था जो आज नॉएडा वाली साइट पर overtime देख रहा था| दोनों बच्चों को चहकते हुए देख पिताजी मुस्कुराते हुए बोले;

पिताजी: अरे वाह भई! घुम्मी करके आ रहे हो सब?!

पिताजी की बात सुन दोनों बच्चे दौड़ कर उनके पास गए और उनके पाँव छुए| मैं पिताजी के सामने बैठ गया, नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी गोदी में बैठ गई| अब आयुष ने अपनी भोली सी भाषा में पिताजी को फिल्म की कहानी सुनानी शुरू की;

आयुष: दादा जी….हम ने न....फिल्म देखि! उसमें न ...वो सीन था जब.....!

आयुष अपनी टूटी-फूटी भाषा में फिल्म की कहानी सुना रहा था, मुझे उसका कहानी सुनाने का ढँग बहुत मजेदार लग रहा था और मैं बड़े प्यार से उसे कहानी सुनाते हुए देख रहा था| नेहा जो मेरी गोद में बैठी थी, वो बार-बार आयुष को टोक कर फिल्म की कहानी ठीक कर रही थी| दोनों बच्चों को इस तरह जुगलबंदी करते देख मुझे बहुत आनंद आ रहा था, इतना आनंद की मैं भौजी के मेरा plan चौपट करने वाली बात को भूल चूका था| उधर भौजी रसोई में खड़ीं खाना बनाते हुए घूंघट की आड़ से मुझे देख रहीं थीं और मुस्कुरा रहीं थी| वो अपने फिल्म देखने न जा पाने से बिलकुल दुखी नहीं थीं, बल्कि मुझे बच्चों के साथ भेज कर उन्हें बड़ा गर्व महसूस हो रहा था|



कुछ पल बाद जब मैंने भौजी की ओर देखा तो उन्हें खुश देख मैं उनके मन के भाव समझ गया| उनका यूँ माँ के साथ समय बिताना और मुझे बच्चों के साथ भेज देना मेरे पल्ले पड़ चूका था| दोपहर में भौजी का मेरे साथ न जाने से जो मूड खराब हुआ था वो अब ठीक हो चूका था और अब मुझे उनपर थोड़ा-थोड़ा प्यार आने लगा था|

रात के खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं, बच्चे पलंग पर बैठे आपस में खेल रहे थे और मैं बाथरूम से निकला था;

भौजी: Sorry जानू!!!

भौजी कान पकड़ते हुए किसी बच्चे की भाँती भोलेपन से बोलीं|

मैं: अब आपको सब को खुश रखना है तो रखो खुश!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा| मैं उनसे नाराज नहीं था बस उन्हें jeans-top पहने हुए न देखपाने का दर्द जताना चाहता था!

भौजी: अच्छा बाबा, कल हम पक्का फिल्म देखने चलेंगे!

भौजी मुझे मनाने के लिए प्यार दिखते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा? और मैं रोज-रोज माँ को क्या बोलूँगा? कल बच्चों को फिल्म दिखाई थी और आज आपको अकेले फिल्म दिखाने ले जा रहा हूँ?

मैंने भौजी से शिकायत करते हुए कहा|

भौजी: तो फिर कभी चलेंगे|

भौजी ने मेरी बात को हलके में लेते हुए कहा|

मैं: और वो कपडे कब पहनके दिखाओगे?

भौजी मेरे दिल की तड़प नहीं पढ़ पा रहीं थीं, इसलिए मैंने अपने दिल की बात उनके सामने रखते हुआ कहा|

भौजी: अभी थोड़ी देर बाद!

भौजी एकदम से बोलीं!

मैं: मजाक मत करो!?

मैंने भौजी को थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

भौजी: सच जानू! आज आपके भैया देर से आएंगे, तो.....that means we’ve plenty of time together!

भौजी मुझे आँख मारते हुए बोलीं!

मैं: ठीक है! लेकिन इस बार आपने कुछ किया ना तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा!

मैंने भौजी को डराते हुए कहा|

भौजी: नहीं बाबा! आज पक्का!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| भौजी को jeans-top में देखने के नाम से मेरा दिल रोमाँच से भर उठा था!



चलो भई आज रात का सीन तो पक्का हो गया था, अब मुझे सीन के लिए झूठ बोलने की तैयारी करनी थी| मैंने दिषु को फोन किया और उसे बड़े उत्साह से अपना प्लान समझा दिया, मेरा उत्साह सुन दिषु बस हँसे जा रहा था! वहीं भौजी ने जब मेरी planning सुनी तो वो भी मुस्कुराने लगीं!

मैंने जल्दी से भौजी को उनके घर भेज दिया और बच्चों को सुलाने लगा, आज की धमाचौकड़ी के बाद बच्चे थक गए थे इसलिए उन्हें सुलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था| बच्चों को सुला कर मैं माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगा, जैसे ही घडी में दस बजे दिषु ने मेरा फ़ोन खड़का दिया| मैंने माँ के पास बैठे-बैठे ही फ़ोन उठा लिया और माँ सुन लें इतनी तेज आवाज में उससे बात करने लगा;

मैं: हेल्लो?!

दिषु: भाई तेरी मदद चाहिए!

मैंने पहले ही फ़ोन की आवाज तेज कर दी थी, जिससे जब मैं दिषु से बात करूँ तो माँ उसकी बात सुन लें और उनके मन में कोई शक न रहे|

मैं: क्या हुआ? तू घबराया हुआ क्यों है?

मेरी बात सुन माँ हैरान हो गई, उन्होंने टी.वी. की आवाज बंद की और मेरी बातें ध्यान से सुनने लगीं|

दिषु: यार मेरे चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, उसकी मोटर साइकिल disbalance हो गई और उसके पाँव में चोट आई है, तू फटाफट trauma center पहुँच!

दिषु की बात सुन मैंने घबराने की बेजोड़ acting की और बोला;

मैं: मैं अभी आ रहा हूँ!

मैंने फ़ोन काटा और माँ की तसल्ली के लिए उन्हें एक बार फिर सारी बात बता दी| बहाना जबरदस्त था और माँ ने जाने से बिलकुल मना नहीं किया, मैं जिस हालत में था उसी हालत में गाडी की चाभी ले कर निकल गया| कपडे बदलने लगता तो हो सकता था की माँ पिताजी को बात बता दें, मैंने गाडी निकाली तथा कुछ दूरी पर underground parking में खड़ी की ताकि अगर पिताजी बाहर निकलें तो गाडी खड़ी देख कर शक न करें| Parking से निकल कर मैं भागता हुआ भौजी के घर पहुँचा और बेसब्र होते हुए दरवाजा खटखटाने लगा|


जारी रहेगा भाग - 13 में...
Khoobsurat update..bhai💥
 
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