जैसे ही उस लाल पैंटी में सोनी की बुर को छुआ उसे ऐसा प्रतीत हुए जैसे सरयू सिंह के लंड ने उसकी बुर को छू लिया। सोनी सिहर उठी…सरयू सिंह के सूखे हुए वीर्य से उसे कोई घृणा नहीं थी। अपितु सोनी उस संवेदना को महसूस कर रही थी अचानक उसके मन में ख्याल आया काश इस सूखे हुए वीर्य में अब भी इतनी ताकत होती .. सोनी अब तक गर्भवती नहीं हो पाई थी और पिछले कई वर्षों से वह हर प्रयास कर रही थी।
सोनी की उंगलियां सरयू सिंह के वीर्य से सनी उस लाल पेटी को अपनी सुनहरी गुफा की ओर धकेलने लगी…
काश की वह सूखा हुआ वीर्य उसके गर्भ में एक जीवन का सृजन कर जाता….
अब आगे…
सोनी का घाघरा अब भी उठा हुआ था। गोरी जांघों पर चमकती लाल पैंटी एक दूसरे की खूबसूरती बढ़ा रहे थे और इस खूबसूरत दृश्य का रसपान कोठरी की खिड़की से दो वासना से भरी आंखे कर रही थी। और यह आंखें थी सरयू सिंह की। सोनी ने अचानक खिड़की की तरफ देखा उसे एक साया सा दिखाई पड़ा। उसने झटपट अपना घाघरा गिरा दिया।
दरअसल, सरयू सिंह का वह बक्सा उनके लिए बेहदमहत्वपूर्ण था। उन्होंने आज तक उसकी चाबी किसी से भी साझा नहीं की थी, परंतु कजरी ने आज बिना पूछे और उनकी अनुमति लिए वह चाबी सुगना को दे दी। सरयू सिंह इससे बेहद नाराज हुए। कारण स्पष्ट था—बक्से में उनके कई राज़ दफन थे, जिन्हें वह उजागर नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कजरी को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें अपने व्यक्तित्व के उजागर होने का डर सताने लगा। यद्यपि सुगना उनके व्यक्तित्व से पूरी तरह परिचित थी, परंतु यह डर उन्हें खाए जा रहा था कि यदि उसने बक्से में सोनी की लाल पेंटी देख ली—तो यह उनके व्यक्तित्व पर प्रश्न चिन्ह होता। सरयू सिंह की व्यग्रता बढ़ती गई और आखिरकार उन्होंने आनंन फानन में सलेमपुर जाने का निर्णय ले लिया।
अपने व्यक्तित्व की अस्मिता भी बचाए रखने का एकमात्र उपाय यही था कि वह स्वयं सलेमपुर पहुंचकर सुगना को बक्सा खोलने से रोक दें। उन्होंने बस पकड़ी और सलेमपुर की तरफ निकल पड़े।
सलेमपुर के बस स्टॉप पर पहुँचकर वे तेज कदमों से अपने घर की तरफ चल पड़े।
कभी-कभी कुछ ऐसे संयोग बन जाते हैं, जो सामान्य तौर पर मुमकिन नहीं होते, पर जब यह संयोग विधाता ने स्वयं अपने हाथों से रचे हों, तो सब कुछ मुमकिन है।
इधर सोनी सरयू सिंह की कोठरी में सरयू सिंह के वीर्य से सनी उस लाल पैंटी को धारण कर रही थी उधर अपनी कोठरी की खिड़की से सरयू सिंह सोनी को देख रहे थे सोनी को यह अनुमान कतई नहीं था की ऐसा कुछ मुमकिन है। वह बेधड़क होकर उस लाल पेटी को अपनी गोरी जांघों से सरकाते हुए अपने अनावृत कूल्हों को ढक रही थी और सरयू सिंह की निगाहें सोनी के मादक जांघों और कूल्हों का जायजा ले रही थीं। उन्हें इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि उस वीर्य से सनी लाल पेंटी को सोनी आखिरकार क्यों पहन रही थी। क्या उसे रंच मात्राl भी घृणा नहीं थी ह…..हे भगवान यह क्या हो रहा था…. सरयू सिंह को यह माजरा समझ नहीं आ रहा था।
एक पल के लिए उन्हें लगा कि वह अंदर जाकर सोनी को इसी स्थिति में रंगे हाथों पकड़ ले परंतु कुछ सोच कर उन्होंने ऐसा नहीं किया अपित वह सोनी के घागरे के नीचे गिरने तक इंतजार करते रहे। जैसे ही सोनी ने बक्से का ताला बंद किया और कोठरी से बाहर निकालने की कोशिश की ठीक उसी समय वह अपनी कोठरी के दरवाजे पर साक्षात आ खड़े हुए …
सोनी न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु उसका कलेजा धक-धक करने लगा …
हे भगवान यह क्या हुआ उसने अपनी गर्दन झुकाई और बोली..
आप कब आईनि हां…?
सरयू सिंह मंत्रमुग्ध होकर सोनी की ओर देख रहे थे, परंतु सोनी की नज़रें झुकी हुई थीं। सोनी को एक अनजाना डर सता गया—कहीं सरयू चाचा ने से उसे उस अवस्था में तो नहीं देख लिया। उसने अपने दिमाग पर जोर डाला। “नहीं, नहीं, मैंने दरवाजा जरूर बंद किया था। अभी तो मैने सांकल खोली…पर खिड़की से…पर सरयू चाचा ऐसे क्यों करेंगे…? सोनी कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं थी पर सोनी ने इस बार पूरे आत्म विश्वास से कहा।
ई लीं अपन दवाई यही लेवे आइल रहनी हा..
सरयू सिंह स्वयं अपनी उत्तेजना के आधीन थे। आज कई वर्षों बाद नंगी और जवान सोनी की गदराई जांघों को देखकर उनके मुंह और लंड दोनों पर पानी आ चुका था और ऊपर से आज सोनी ने जो हरकत की थी उन्होंने सरयू सिंह की आग को और भी भड़का दिया था ।
उन्होंने हाथ बढ़ाकर सोनी से वह पीली पोटली ले ली और बरबस सोनी की उन कोमल उंगलियों को अपनी मजबूत अंगुलियों से छू लिया। सोनी चौंक गई। उसने झटपट वह पीली पोटली और चाबी उन्हें थमा दी और तेज कदमों से भागते हुए सुगना की तरफ चल पड़ी।
कुछ कदम चलने के बाद उसने पलट कर पीछे देखा और महसूस किया कि सरयू सिंह अब भी उसके नितंबों पर आंख गड़ाए खड़े थे। सोनी का कलेजा धक-धक कर रहा था, वो सुगना के समीप पहुँच गई। उसने सुगना को सरयू सिंह के आने की सूचना दी।
कुछ ही देर बाद सोनू और सुगना दोनों एक बार फिर अपने घर में उपस्थित थे। सुगना ने सरयू सिंह से प्रश्न किया,
“अरे, आप काहे आ गईं नि?”
सरयू सिंह ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया,
“अरे मुखिया जी, बुलवाले रहले, हम बतावे, भुला गईनी हैं। सोचनी की हम भी पहुंच जाई, तोहार लोग के साथ ही वापस चल आएब।”
थोड़ी देर में सब कुछ फिर से सामान्य हो गया। आँगन में पसरी चुप्पी को तोड़ते हुए सरयू सिंह बोले,
“एक कप चाय मिली का? ।”
सुगना ने बात सुनते ही पल्लू सँभाला और रसोई की ओर बढ़ गई।
“सोनी, लाली के घर से ज़रा दूध ले आ,” उसने कहा।
सोनी बिना जवाब दिए निकल पड़ी वह अब भी सहमी हुई थी। थोड़ी ही देर में चूल्हे पर चाय चढ़ गई। अदरक की खुशबू पूरे घर में फैल गई। जब चाय तैयार हो गई तो सुगना ने फिर आवाज़ दी,
“सोनी, बाबूजी को चाय दे आ।”
यह सुनते ही सोनी का कलेजा धक से रह गया। न जाने क्यों आज उसके कदम भारी हो गए। सामने सरयू सिंह थे—रौबदार, गम्भीर जिनके वीर्य से सनी लाल पैंटी उसने अब से कुछ देर पहले पहनी थी और शायद उन्होंने उसे ऐसा करते हुए देख भी लिया था। हालाँकि पास में सोनू भी बैठा था, फिर भी सोनी को अजीब-सी झिझक हो रही थी वह असहज थी।
वह हिम्मत बटोर कर आगे बढ़ी। सिर झुकाए, दोनों हाथों से चाय का कप आगे किया। पर आज तो जैसे विधाता ने उसे सरयू सिंह के सामने परोसने का मन बना लिया था जैसे ही सोनी नीचे झुकी उसका दुपट्टा सरक कर उसके दुग्ध कलशों को नग्न कर गया जो चोली में कैद होने के बावजूद थिरक थिरक कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। उस पल उसे लगा जैसे उसकी साँसें तेज़ हो गई हों। सरयू सिंह ने कप लिया,
बहुत बढ़िया खुशबू बा…. सरयू सिंह ने अपने नथुनों में हवा भरते हुए कहा सोनी को ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह ने उसके बदन पर लगाए इत्र की खुशबू के बारे में कहा हो …
सोनी ने जल्दी से कदम पीछे खींच लिए। दिल में जाने कैसी हलचल मची थी। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह घबराहट क्यों है। उसने दुपट्टा ठीक किया और चुपचाप पीछे हट गई।
सोनू ने सरयू सिंह की हां में हां मिलाई और कहा गांव के अदरक के स्वाद और खुशबू अलग होला और सुगना दीदी के चाय तो वैसे भी सबसे अच्छा बनेला।
सुगना के भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमी उसके हाथ की बनी चाय पीते बाते करने लगे। सोनी सहमी हुई वापस आंगन में चली गई और सुगना के साथ चाय पीने लगी। पर आज जो हुआ था उसने सोनी को असहज कर दिया था l अमेरिका रिटर्न और अमीर घराने में ब्याही सोनी आज स्वयं को एक साधारण अतृप्त और वासना में लिप्त युवती की देख रही थी।
दोपहर की नींद वैसे भी हल्की होती है। सोनी की आँख खुल गई वह अपनी यादों से अपनी चेतना में वापस आ गई। अतीत की बातों ने उसके चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी थी। बाहर डाइनिंग वाले हिस्से से मालती और राजा की खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी। उसने दीवार पर टँगी घड़ी की ओर देखा—साढ़े चार बज चुके थे।
सोनी ने पहले नर्सिंग की पढ़ाई की थी और नौकरी भी की थी। परंतु विकास से शादी होने के बाद उसने यह कार्य छोड़ दिया था । परंतु अभी भी वह अपने परिवार के लिए डाक्टर ही थी। वो सबका कालाल पूरा ख्याल रखती थी।
सुगना अपनी अलग उधेड़बुन में थी सूरज की समस्या उसे चिंतित किए हुई थी।
सुगना के परिवार का अतीत वासना से भरा हुआ था स्वयं सुगना इस कृत्य में पूरी तरह संलग्न थी परंतु यह अचानक नहीं हुआ था। जब-जब सुगना अपने अतीत में झांकती उसे कभी-कभी लगता जैसे उसके साथ जो कुछ हुआ था वह विधाता ने ही रचा था वह एक निमित्त मात्र थी।
सूरज जैसा तंदुरुस्त हट्टा कट्टाऔर बेहद खूबसूरत युवा अपनी जांघों के बीच उत्तेजना ना महसूस करें यह अविश्वसनीय था पर कटु सत्य था।
सूरज ने भी कई बार अपने लिंग को सहलाया कामूक कल्पनाएं की पर पर लिंग में रंच मात्र भी संवेदना नहीं हुई। वह एक मुरझाए केले की भांति हमेशा नीचे ही लटका रहा सूरज को बखूबी अहसास था कि यह प्राकृतिक नहीं है परंतु उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। रोजी के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ रही थी पर प्यार अपनी जगह था और वासना अपनी जगह।
चुंबन में वासना का अंश ना हो तो चुंबन की प्रगाढ़ता कम हो जाती है। रोजी इसे भली भांति महसूस कर रही थी और आखिर एक दिन कॉलेज की छत पर जाने वाली सीढ़ियों पर रोजी और सूरज एक दूसरे के और समीप आ गए।
सूरज और रोजी एक बार फिर करीब आए और दोनों के बीच चुंबनों का आदान-प्रदान होने लगा। आज फिर रोजी ने महसूस किया की जो तत्परता सूरज की तरफ से दिखाई पढ़नी चाहिए उसमें निश्चित ही कुछ कमी थी। रोजी को यह मंजूर नहीं था। रोजी ने हिम्मत जुटाकर चुंबन के दौरान अपनी सुकुमार हथेलियां सूरज की जांघों के बीच लंड के ऊपर सटा दिया।
रोजी के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा सूरज का लिंग बिना उत्तेजना एवं कठोरता के सामान्य स्थिति में लटका था। लिंग की कठोरता पेंट के ऊपर से भी पहचानी जा सकती थी शायद इसीलिए रोजी नई लड़की होने के बावजूद इतनी हिम्मत जुटाइ थी परंतु वह स्वयं आश्चर्यचकित थी कि सूरज के लिंग में कोई उत्तेजना एवं कठोरता ही नहीं थी।
उधर सूरज सचेत हो गया था फिर भी उसने रोजी के हाथ को हटाने की चेष्टा नहीं कि वह उसके स्पर्श को महसूस कर अपने लिंग में तनाव की उम्मीद कर रहा था उसने एक बार फिर रोजी को अपने आलिंगन में भरकर चूमने की कोशिश की और स्वयं अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी पेंट की जिप खोल दी।
रोजी को यह थोड़ा असहज लगा परंतु उसने सूरज को रोका नहीं वह सचमुच सूरज को चाहने लगी थी। कुछ ही देर में सूरज का लिंग बाहर आ चुका था पहली बार रोजी ने किसी लड़के का लिंग अपने हाथों से छुआ..
अजब सा एहसास था पर हाय री सूरज की किस्मत।
जिस रोजी जैसी गच्च माल को देखकर अच्छे-अच्छे का लंड खड़ा हो सकता था वह स्वयं सूरज के लंड को हाथ लगा रही थी परंतु उसमें नाम मात्र की उत्तेजना नहीं थी। रोजी ने इसे एक चैलेंज के रूप में ले लिया था उसे स्वयं यह असामान्य लग रहा था उसे उम्मीद थी कि उसके स्पर्श मात्र से सूरज का लंड तनकर उसे सलामी देने लगेगा पर यहां परिस्थितिया विपरीत थी।
सूरज और सोनी की यह रासलीला ज्यादा देर नहीं चली रोजी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई सीढियों से ऊपर आ रहा है। वह सूरज से अलग हुई और छत की तरफ चली गई सूरज ने भी अपने लंड की तरफ निराशा से देखा और उसे वापस अपने अंडरवियर में कैद कर लिया सूरज की निराशा और भी गहरा गई। आज रोजी की मुलायम और संवेदनशील उंगलियां भी उसके लंड में उत्तेजना भरने में नाकाम रही थी सूरज अपनी किस्मत को कोष रहा था और विधाता से अपने लिए न्याय मांग रहा था।
उधर नियति सूरज के भविष्य के पन्ने पलट रही थी। जो जो सूरज आज अपने लिंग में उत्तेजना के लिए तड़प रहा था उसे आने वाले समय में कामुकता के नए अध्याय लिखने थे उसे वह सारे सुख भोगने थे जिसकी कल्पना परिकल्पना भी आज की स्थिति में उसके लिए करना मुमकिन नहीं था।
पर अपने भविष्य से अनजान सूरज एक बार फिर बेहद दुखी हो चुका था और अनमने मन से सीढ़ियां उतर रहा था और अपने विधाता को कोस रहा था यह स्वाभाविक भी था।
कुछ दिन और बीत गए..
कॉलेज के पुराने बरगदों की छाया में सूरज और रोज़ी की कहानी चुपचाप पनप रही थी। रोजी अब भी इस उम्मीद में थी कि सूरज के लिंग की उत्तेजना शायद उसके सहज होने पर ठीक हो जाए। दोनों एक ही कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। दिन भर किताबों और प्रैक्टिकल्स में उलझे रहने के बाद वे अक्सर साथ टहलते। सूरज और रोजी की जोड़ी देखने में बेहद खूबसूरत थी ऐसा लगता था जैसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हो। यही बात रोजी की सहेली ने उन दोनों को साथ देखकर कह दी
ओह नाइस पेयर मेड फॉर ईच अदर ….
दोनों हँसते हुए कैंटीन की ओर बढ़ गए। उनका प्रेम सहज था—बिना दिखावे के, बिना शोर के।
लेकिन इस सुकून के बीच एक बेचैनी भी थी। शाहिद, जो रोज़ी पर एकतरफा मोहित था, अक्सर किसी न किसी बहाने उसके सामने आ खड़ा होता।
“रोज़ी, आज तुमने मुझे पहचाना भी नहीं,” शाहिद ने एक दिन रास्ता रोकते हुए कहा।
रोज़ी ने सख़्त लहजे में जवाब दिया, “शाहिद, मैंने पहले भी कहा है—मुझे तुम्हारा यूँ बार-बार मिलना पसंद नहीं। प्लीज़ मुझे परेशान मत करो।”
शाहिद ने झुंझलाकर कहा, “इतना घमंड किस बात का है? मैं बस दोस्ती करना चाहता हूँ।”
“दोस्ती ज़बरदस्ती नहीं होती,” रोज़ी ने साफ़ शब्दों में कहा और वहाँ से हट गई।
एक दिन कॉलेज के आँगन में बात बिगड़ गई। शाहिद ने फिर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी।
रोज़ी भड़क उठी, “तुम्हें समझ क्यों नहीं आता? अपनी हद में रहो!”
उसी समय सूरज वहाँ पहुँचा।
“क्या बात है?” सूरज ने शांत स्वर में पूछा।
शाहिद तमतमाकर बोला, “तुम बीच में क्यों बोल रहे हो? तुम्हें किसी ने बुलाया?”
सूरज ने संयम से कहा, “जब कोई किसी को परेशान करे, तो बोलना पड़ता है। तुम गलत कर रहे हो।”
यह सुनते ही शाहिद का अहंकार भड़क उठा।
“ज़्यादा हीरो मत बनो,” उसने सूरज की ओर बढ़ते हुए कहा।
शाम को कॉलेज के बाहर माहौल और भयावह हो गया। शाहिद अपने दोस्तों के साथ सूरज को घेर चुका था।
“आज बहुत समझदार बन रहे थे न?” शाहिद ने व्यंग्य से कहा।
सूरज ने दृढ़ता से जवाब दिया, “अगर सच बोलना समझदारी है, तो हाँ—मैं बनूँगा।”
धक्का-मुक्की शुरू हो गई।
“छोड़ो मुझे!” सूरज ने कहा, लेकिन जवाब में मुक्के बरसने लगे। कुछ ही पलों में सूरज ज़मीन पर लड़खड़ा गया। उसके हाथ पर ज़ोर का वार पड़ा।
“आह!” सूरज के मुँह से कराह निकल गई। उसका अंगूठा बुरी तरह मुड़ गया था।
एक दोस्त बोला, “चलो, बहुत हो गया।”
शाहिद ने जाते-जाते कहा, “याद रखना, अगली बार बीच में मत पड़ना।”
थोड़ी देर बाद रोज़ी दौड़ती हुई आई।
“सूरज! ये सब क्या हुआ?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
सूरज ने दर्द छिपाते हुए कहा, “कुछ नहीं… बस एक छोटी सी लड़ाई।”
रोज़ी ने उसका हाथ देखते ही कहा, “ये छोटी बात नहीं है! तुम्हें बहुत चोट लगी है।”
सूरज ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अगर तुम्हारी इज़्ज़त बचाने की कीमत ये चोट है, तो मुझे मंज़ूर है।”
रोज़ी की आँखों में आँसू भर आए।
“मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें तकलीफ़ हो,” उसने धीमे से कहा।
सूरज ने कहा, “प्यार में कभी-कभी दर्द भी आता है, रोज़ी। लेकिन मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा।”
उस दिन के बाद कॉलेज वही था, रास्ते वही थे, पर सूरज और रोज़ी के रिश्ते में एक नया भरोसा जुड़ गया था—जो शब्दों से नहीं, बल्कि साहस और त्याग से लिखा गया था।
सूरज को घर पहुंचते पहुंचते देर हो गई सब उसका इंतजार कर रहे थे सूरज के लटके हुए चेहरे को देखकर सुगना बेचैन हो गई वह उसकी तरफ बढ़ी…
“आ गए सूरज? आज कुछ ठीक नहीं लग रहा तुझे… चेहरा उतरा-उतरा सा क्यों है?”
सूरज:
“कुछ नहीं मां, बस थोड़ा थक गया हूँ।”
सुगना:
“थकान में आँखें ऐसे नहीं झुकतीं बेटा। कॉलेज में सब ठीक तो है ना?”
सूरज:
“हाँ… ठीक ही है।”
सुगना:
“तो फिर ये हाथ छुपा क्यों रहा है? ज़रा इधर दिखा।”
सूरज:
“अरे मां, कुछ नहीं हुआ।”
सुगना:
“कुछ नहीं हुआ तो अंगूठा इतना सूजा कैसे है? साफ दिख रहा है।”
सूरज:
“बस लग गया था, मामूली सा।”
सुगना:
“मामूली? बैठ, पहले दवा लगाती हूँ, फिर पूछूँगी।”
सुगना उठी आर सी से जाकर कच्ची हल्दी और चूने का लेप बनाकर लाई और सूरज के अंगूठे पर लपेट दिया एक सफेद कपड़े से उसने उसे चारों तरफ से बंद भी दिया सूरज का यह अंगूठा वही जादुई अंगूठा था जिसे सोनी, मोनी मालती द्वारा सहलाए जाने पर सूरज के लिंग का आकार अप्रत्याशित रूप से बढ़ता था यद्यपि इस घटना को कई वर्ष बीत चुके थे और सभी के जेहन से यह विलक्षण घटना अब निकल चुकी थी वैसे भी 12 वर्षों का समय बहुत सारी स्मृतियों को मिटा देता है सरयू सिंह की मृत्यु के बाद जब से सुगना के परिवार में वासना का अकाल पड़ा था सोनी ने भी इस बात को लगभग भूल ही दिया था और कभी यह प्रयोग दोबारा नहीं किया था सूरज के बचपन की यह खासियत बचपन की स्मृतियों के साथ ही दफन हो गई थी।
सूरज:
“मां, बस अब रहने दो… अपने आप ठीक हो जाएगा।”
सुगना:
“चुपचाप बैठ। मां से ज़्यादा अक्ल मत चला।”
सूरज:
“ठीक है…”
सुगना:
“अब बता, कॉलेज में क्या हुआ?”
सूरज:
“कुछ खास नहीं… बस थोड़ी बहस हो गई थी।”
सुगना:
“किससे?”
सूरज:
“कुछ लड़कों से।”
सुगना:
“और बहस में हाथ सूज गया?”
सूरज:
“थोड़ा धक्का लग गया था।”
सुगना:
“तू तो झगड़ा करने वाला नहीं है, फिर बात इतनी बढ़ी क्यों?”
सूरज:
“बस बात-बात में…”
सुगना:
“पूरी बात बता सूरज, आधी बात से मन और घबराता है।”
सूरज:
“मां, सच में अब सब ठीक है। ज़्यादा कुछ नहीं हुआ।”
सुगना:
“ठीक है, नहीं बताना तो मत बता… पर याद रख, मां से छुपाने की ज़रूरत नहीं होती।”
सूरज:
“मैं जानता हूँ मां।”
सुगना:
“आज हाथ से कोई काम मत करना। आराम कर।”
सूरज:
“जी मां।”
सुगना:
“और सुन, अगर कुछ मन में चल रहा हो तो दबा कर मत रखना।”
सूरज:
“…ठीक है।”
सूरज अपने कमरे में चला गया। अंगूठे का दर्द अब भी था।
शाम होते-होते सभी इस बारे में बात करने लगे।
शाम को जब यह खबर लाली के पुत्र राजू और शैतान राजा तक पहुँची, तो राजा तुरंत ही उत्साहित हो गया। उसे झगड़ा करना पसंद था।
राजा (राजू से):
“भैया, चलो… शहीद को देखकर आते हैं। इस बार उसे सबक सिखाना पड़ेगा।”
छोटे राजा ने अपने बड़े भाई राजू से शाहिद को सबक सिखाने के लिए उसका साथ मांगा।
राजू (थोड़ा गंभीर होकर):
“रुको, राजा। पहले सूरज से पूरी घटना सुनो। बिना जाने सीधे झगड़े में कूदना ठीक नहीं होता।”
दोनों सूरज के कमरे में गए। सूरज ने जो घटनाक्रम बताया, वह ज्यादा गंभीर नहीं था। सूरज के अनुरोध पर, आगे इस बात को बढ़ाने से सभी ने मना कर दिया।
धीरे-धीरे कमरे में पूरा परिवार इकट्ठा हो गया। कुछ ही देर में खूबसूरत मालती, लाली की पुत्री रीमा और सूरज की छोटी बहन मधु भी पहुँच गईं।
मधु (चिंतित होकर):
“भैया, अंगूठा अब कैसा है? अभी भी दर्द है?”
सूरज (मुस्कुराते हुए):
“ठीक है, मधु। बस थोड़ा सा दर्द है, चिंता मत करो।”
मालती और रीमा ने पास आकर देखा। सूरज उन दोनों से छोटा था उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरा उसके हाथों को सहलाया पर जादुई अंगूठा हल्दी चूने में लिपटा अभी सूरज की बहनों की पहुंच से दूर था।
राजू और राजा थोड़ा पीछे खड़े होकर यह सब देख रहे थे।
राजा (थोड़ा शरारत भरे अंदाज़ में):
“भैया, अगली बार कुछ हुआ तो साले शाहिद को छोड़ेंगी नहीं।”
राजू (मुस्कुराते हुए):
“हाँ, पर समझदारी से। कोई झगड़ा नहीं।”
सूरज ने हल्की मुस्कान दी और कहा,
“देखो, समझदारी और धैर्य ही सबसे बड़ी ताकत है। अब सब शांत रहो।”
मालती और रीमा ने मुस्कुराते हुए सूरज की ओर देखा। और प्यार से बोला…
इतना प्यारा तो है सूरज कोई कैसे इससे लड़ सकता है।
कमरे में हल्की हँसी फैल गई। हवेली की यह शाम, बहनों, सूरज और पूरे परिवार के साथ, अचानक और खुशनुमा, सुरक्षित और प्यार भरी लगने लगी। पूरा परिवार एक था पर छोटी डॉक्टरनी सोनी किसी काम से अपने पति विकास के साथ बाहर गई हुई थी।
हवेली की एक सामान्य सुबह…
सुगना अब अपनी अधेड़ अवस्था में पहुँच चुकी थी, पर कुदरत ने उसे जिस खूबसूरत बदन, चमकती त्वचा और मासूम चेहरे से नवाज़ा था, वह आज भी जस का तस था। उम्र का असर दिखाई देता था, पर आज भी सुगना एक प्रभावशाली महिला थी।
सरयू सिंह की मृत्यु के बाद सोनी ने हवेली की जिम्मेदारी धीरे-धीरे संभाल ली। सुगना, न जाने क्यों, सफ़ेद वस्त्र पहनना शुरू कर दिया था। अक्सर वह सफ़ेद साड़ी में दिखाई पड़ती—विधवा के रूप में नहीं, पर रंग में सादगी अवश्य थी। कह सकते हैं, यह सादगी अब सुगना का अपना “ड्रेस कोड” बन चुकी थी।
सुबह-सुबह सुगना हवेली के एक बड़े हाल में योगा क्लास चलाया करती थी। इन क्लासों का कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं था; यह बस लोगों से जुड़ने और उनके साथ स्वस्थ जीवन साझा करने का एक साधन था। कई महिलाएं और लड़कियां उसकी योगा क्लास में नियमित रूप से आती थीं। हल्की सुनहरी धूप जब हाल में आती, तो पूरा माहौल और भी खुशनुमा हो जाता।
सुगना को योगा करते हुए देख कर ऐसा लगता ही नहीं था कि वह वही सुगना है, जो दिन में साड़ी पहने हवेली में एक अधेड़ महिला के रूप में दिखाई पड़ती है। योग के दौरान वह आधुनिक और चुस्त कपड़ों में दिखाई देती, जिससे उसके शरीर की फिटनेस और खूबसूरती स्वाभाविक रूप से दिखने लगती।
सुगना अपनी युवावस्था में जितनी सुंदर थी, आज भी उतनी ही सुंदर थी। अगर आप वर्तमान में श्वेता तिवारी को जानते हैं, तो उसकी फिटनेस की तुलना सुगना की फिटनेस से की जा सकती है। कुल मिलाकर, सुगना अब भी बेहद आकर्षक थी, पर उसने अपनी इच्छाओं और वासना पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था।
सोनू के साथ जो रंगरलिया उसने मनाई थी, अब वह उन्हें याद भी नहीं करना चाहती थी। पिछले कई वर्षों से उसने सोनू से दूरी बनाए रखी थी। सोनू भी यह बात भली-भांति जानता था कि अब वह दिन लौटकर नहीं आएंगे। पर सोनू और सुगना में प्यार और सम्मान अब भी था।
सरयू सिंह की मृत्यु के बाद सुगना की वासना पर जो ग्रहण लगा था, वह अब तक कायम रहा। सोनू अपनी उम्मीदें छोड़ चुका था, और सुगना अपने नए व्यक्तित्व और रूप के साथ हवेली में सोनू के साथ रह रही थी।
सूरज के अंगूठे की चोट का आज दूसरा दिन था। हल्दी-चूने के लेप ने निश्चित ही फायदा किया था और सूजन कुछ कम हो गई थी। सुगना ने आज भी नया लेप बनाकर सूरज के अंगूठे पर लगा दिया।
शाम होते-होते सोनी और विकास भी हवेली आ चुके थे। सूरज सबका दुलारा था। उसके हाथ में सफेद पट्टी देखकर सोनी दौड़ती हुई उसके पास आई। उसने सूरज के हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा,
“सूरज, यह क्या हुआ?”
“कुछ नहीं मौसी, बस थोड़ी-सी चोट लग गई थी,” सूरज ने मुस्कराकर कहा।
तभी रसोईघर से सुगना बाहर आई और बोली,
“अरे , कॉलेज में कुछ बदमाश बच्चों से इसकी लड़ाई हो गई थी, तभी हाथ में चोट लग गई।”
सूरज के अंगूठे को ध्यान से देखते हुए सोनी ने पूछा,
“दीदी, आपने इसमें क्या लगाया है?”
“कुछ नहीं, बस हल्दी-चूने का लेप लगाया है। कल से सूजन कम हो रही है। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगा,” सुगना ने विश्वास से कहा।
“दीदी, मेरे पास सूजन की एक अच्छी दवा है। अगर लगा दें तो जल्दी आराम मिल जाएगा,” सोनी ने कहा।
प्राकृतिक उपचारों पर सुगना का भरोसा अब भी अडिग था। उसने हल्के स्वर में कहा,
“अच्छा ठीक है, पहले फ्रेश हो जा। रात में सोते समय लगा देना।”
सोनी ने सुगना की बात मान ली।
अचानक वह उठी और अपने साथ लाई थैली से एक सुंदर-सी जींस और टी-शर्ट निकालकर सूरज को देते हुए बोली,
“हैप्पी बर्थडे टू यू, सूरज!”
सूरज खुशी से खिल उठा। । नीली जींस और सफेद टी-शर्ट सचमुच बहुत खूबसूरत थी। उसने सोनी के हाथ चूमे, फिर झुककर अपने बाएँ हाथ से उनके पैर छुए और खुशी-खुशी बोला,
“थैंक यू, मौसी।पर मौसी मेरा जन्मदिन तो कल है।”
“कोई बात नहीं आज यह रख ले कल एक और खूबसूरत उपहार दूंगी”
एक और खूबसूरत उपहार सोनी ने यह बात बिना सोचे समझे कही थी पर नियति ने उसके शब्द पकड़ लिए और उसके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान दौड़ गई….
कुछ होने वाला था सूरज की किस्मत पलटने वाली थी…उसकी मायूसी खुशी में बदलने वाली थी…