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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148 भाग 149 भाग 150 भाग 151 भाग 152 भाग 153 भाग 154
 
Last edited:

ChaityBabu

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भाग 156
जैसे ही उस लाल पैंटी में सोनी की बुर को छुआ उसे ऐसा प्रतीत हुए जैसे सरयू सिंह के लंड ने उसकी बुर को छू लिया। सोनी सिहर उठी…सरयू सिंह के सूखे हुए वीर्य से उसे कोई घृणा नहीं थी। अपितु सोनी उस संवेदना को महसूस कर रही थी अचानक उसके मन में ख्याल आया काश इस सूखे हुए वीर्य में अब भी इतनी ताकत होती .. सोनी अब तक गर्भवती नहीं हो पाई थी और पिछले कई वर्षों से वह हर प्रयास कर रही थी।

सोनी की उंगलियां सरयू सिंह के वीर्य से सनी उस लाल पेटी को अपनी सुनहरी गुफा की ओर धकेलने लगी…

काश की वह सूखा हुआ वीर्य उसके गर्भ में एक जीवन का सृजन कर जाता….


अब आगे…

सोनी का घाघरा अब भी उठा हुआ था। गोरी जांघों पर चमकती लाल पैंटी एक दूसरे की खूबसूरती बढ़ा रहे थे और इस खूबसूरत दृश्य का रसपान कोठरी की खिड़की से दो वासना से भरी आंखे कर रही थी। और यह आंखें थी सरयू सिंह की। सोनी ने अचानक खिड़की की तरफ देखा उसे एक साया सा दिखाई पड़ा। उसने झटपट अपना घाघरा गिरा दिया।

दरअसल, सरयू सिंह का वह बक्सा उनके लिए बेहदमहत्वपूर्ण था। उन्होंने आज तक उसकी चाबी किसी से भी साझा नहीं की थी, परंतु कजरी ने आज बिना पूछे और उनकी अनुमति लिए वह चाबी सुगना को दे दी। सरयू सिंह इससे बेहद नाराज हुए। कारण स्पष्ट था—बक्से में उनके कई राज़ दफन थे, जिन्हें वह उजागर नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कजरी को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें अपने व्यक्तित्व के उजागर होने का डर सताने लगा। यद्यपि सुगना उनके व्यक्तित्व से पूरी तरह परिचित थी, परंतु यह डर उन्हें खाए जा रहा था कि यदि उसने बक्से में सोनी की लाल पेंटी देख ली—तो यह उनके व्यक्तित्व पर प्रश्न चिन्ह होता। सरयू सिंह की व्यग्रता बढ़ती गई और आखिरकार उन्होंने आनंन फानन में सलेमपुर जाने का निर्णय ले लिया।

अपने व्यक्तित्व की अस्मिता भी बचाए रखने का एकमात्र उपाय यही था कि वह स्वयं सलेमपुर पहुंचकर सुगना को बक्सा खोलने से रोक दें। उन्होंने बस पकड़ी और सलेमपुर की तरफ निकल पड़े।

सलेमपुर के बस स्टॉप पर पहुँचकर वे तेज कदमों से अपने घर की तरफ चल पड़े।

कभी-कभी कुछ ऐसे संयोग बन जाते हैं, जो सामान्य तौर पर मुमकिन नहीं होते, पर जब यह संयोग विधाता ने स्वयं अपने हाथों से रचे हों, तो सब कुछ मुमकिन है।

इधर सोनी सरयू सिंह की कोठरी में सरयू सिंह के वीर्य से सनी उस लाल पैंटी को धारण कर रही थी उधर अपनी कोठरी की खिड़की से सरयू सिंह सोनी को देख रहे थे सोनी को यह अनुमान कतई नहीं था की ऐसा कुछ मुमकिन है। वह बेधड़क होकर उस लाल पेटी को अपनी गोरी जांघों से सरकाते हुए अपने अनावृत कूल्हों को ढक रही थी और सरयू सिंह की निगाहें सोनी के मादक जांघों और कूल्हों का जायजा ले रही थीं। उन्हें इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि उस वीर्य से सनी लाल पेंटी को सोनी आखिरकार क्यों पहन रही थी। क्या उसे रंच मात्राl भी घृणा नहीं थी ह…..हे भगवान यह क्या हो रहा था…. सरयू सिंह को यह माजरा समझ नहीं आ रहा था।

एक पल के लिए उन्हें लगा कि वह अंदर जाकर सोनी को इसी स्थिति में रंगे हाथों पकड़ ले परंतु कुछ सोच कर उन्होंने ऐसा नहीं किया अपित वह सोनी के घागरे के नीचे गिरने तक इंतजार करते रहे। जैसे ही सोनी ने बक्से का ताला बंद किया और कोठरी से बाहर निकालने की कोशिश की ठीक उसी समय वह अपनी कोठरी के दरवाजे पर साक्षात आ खड़े हुए …

सोनी न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु उसका कलेजा धक-धक करने लगा …


हे भगवान यह क्या हुआ उसने अपनी गर्दन झुकाई और बोली..

आप कब आईनि हां…?

सरयू सिंह मंत्रमुग्ध होकर सोनी की ओर देख रहे थे, परंतु सोनी की नज़रें झुकी हुई थीं। सोनी को एक अनजाना डर सता गया—कहीं सरयू चाचा ने से उसे उस अवस्था में तो नहीं देख लिया। उसने अपने दिमाग पर जोर डाला। “नहीं, नहीं, मैंने दरवाजा जरूर बंद किया था। अभी तो मैने सांकल खोली…पर खिड़की से…पर सरयू चाचा ऐसे क्यों करेंगे…? सोनी कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं थी पर सोनी ने इस बार पूरे आत्म विश्वास से कहा।


ई लीं अपन दवाई यही लेवे आइल रहनी हा..

सरयू सिंह स्वयं अपनी उत्तेजना के आधीन थे। आज कई वर्षों बाद नंगी और जवान सोनी की गदराई जांघों को देखकर उनके मुंह और लंड दोनों पर पानी आ चुका था और ऊपर से आज सोनी ने जो हरकत की थी उन्होंने सरयू सिंह की आग को और भी भड़का दिया था ।

उन्होंने हाथ बढ़ाकर सोनी से वह पीली पोटली ले ली और बरबस सोनी की उन कोमल उंगलियों को अपनी मजबूत अंगुलियों से छू लिया। सोनी चौंक गई। उसने झटपट वह पीली पोटली और चाबी उन्हें थमा दी और तेज कदमों से भागते हुए सुगना की तरफ चल पड़ी।

कुछ कदम चलने के बाद उसने पलट कर पीछे देखा और महसूस किया कि सरयू सिंह अब भी उसके नितंबों पर आंख गड़ाए खड़े थे। सोनी का कलेजा धक-धक कर रहा था, वो सुगना के समीप पहुँच गई। उसने सुगना को सरयू सिंह के आने की सूचना दी।

कुछ ही देर बाद सोनू और सुगना दोनों एक बार फिर अपने घर में उपस्थित थे। सुगना ने सरयू सिंह से प्रश्न किया,

“अरे, आप काहे आ गईं नि?”

सरयू सिंह ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया,

“अरे मुखिया जी, बुलवाले रहले, हम बतावे, भुला गईनी हैं। सोचनी की हम भी पहुंच जाई, तोहार लोग के साथ ही वापस चल आएब।”

थोड़ी देर में सब कुछ फिर से सामान्य हो गया। आँगन में पसरी चुप्पी को तोड़ते हुए सरयू सिंह बोले,

“एक कप चाय मिली का? ।”

सुगना ने बात सुनते ही पल्लू सँभाला और रसोई की ओर बढ़ गई।

“सोनी, लाली के घर से ज़रा दूध ले आ,” उसने कहा।

सोनी बिना जवाब दिए निकल पड़ी वह अब भी सहमी हुई थी। थोड़ी ही देर में चूल्हे पर चाय चढ़ गई। अदरक की खुशबू पूरे घर में फैल गई। जब चाय तैयार हो गई तो सुगना ने फिर आवाज़ दी,

“सोनी, बाबूजी को चाय दे आ।”

यह सुनते ही सोनी का कलेजा धक से रह गया। न जाने क्यों आज उसके कदम भारी हो गए। सामने सरयू सिंह थे—रौबदार, गम्भीर जिनके वीर्य से सनी लाल पैंटी उसने अब से कुछ देर पहले पहनी थी और शायद उन्होंने उसे ऐसा करते हुए देख भी लिया था। हालाँकि पास में सोनू भी बैठा था, फिर भी सोनी को अजीब-सी झिझक हो रही थी वह असहज थी।

वह हिम्मत बटोर कर आगे बढ़ी। सिर झुकाए, दोनों हाथों से चाय का कप आगे किया। पर आज तो जैसे विधाता ने उसे सरयू सिंह के सामने परोसने का मन बना लिया था जैसे ही सोनी नीचे झुकी उसका दुपट्टा सरक कर उसके दुग्ध कलशों को नग्न कर गया जो चोली में कैद होने के बावजूद थिरक थिरक कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। उस पल उसे लगा जैसे उसकी साँसें तेज़ हो गई हों। सरयू सिंह ने कप लिया,

बहुत बढ़िया खुशबू बा…. सरयू सिंह ने अपने नथुनों में हवा भरते हुए कहा सोनी को ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह ने उसके बदन पर लगाए इत्र की खुशबू के बारे में कहा हो …

सोनी ने जल्दी से कदम पीछे खींच लिए। दिल में जाने कैसी हलचल मची थी। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह घबराहट क्यों है। उसने दुपट्टा ठीक किया और चुपचाप पीछे हट गई।

सोनू ने सरयू सिंह की हां में हां मिलाई और कहा गांव के अदरक के स्वाद और खुशबू अलग होला और सुगना दीदी के चाय तो वैसे भी सबसे अच्छा बनेला।

सुगना के भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमी उसके हाथ की बनी चाय पीते बाते करने लगे। सोनी सहमी हुई वापस आंगन में चली गई और सुगना के साथ चाय पीने लगी। पर आज जो हुआ था उसने सोनी को असहज कर दिया था l अमेरिका रिटर्न और अमीर घराने में ब्याही सोनी आज स्वयं को एक साधारण अतृप्त और वासना में लिप्त युवती की देख रही थी।

दोपहर की नींद वैसे भी हल्की होती है। सोनी की आँख खुल गई वह अपनी यादों से अपनी चेतना में वापस आ गई। अतीत की बातों ने उसके चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी थी। बाहर डाइनिंग वाले हिस्से से मालती और राजा की खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी। उसने दीवार पर टँगी घड़ी की ओर देखा—साढ़े चार बज चुके थे।

सोनी ने पहले नर्सिंग की पढ़ाई की थी और नौकरी भी की थी। परंतु विकास से शादी होने के बाद उसने यह कार्य छोड़ दिया था । परंतु अभी भी वह अपने परिवार के लिए डाक्टर ही थी। वो सबका कालाल पूरा ख्याल रखती थी।

सुगना अपनी अलग उधेड़बुन में थी सूरज की समस्या उसे चिंतित किए हुई थी।

सुगना के परिवार का अतीत वासना से भरा हुआ था स्वयं सुगना इस कृत्य में पूरी तरह संलग्न थी परंतु यह अचानक नहीं हुआ था। जब-जब सुगना अपने अतीत में झांकती उसे कभी-कभी लगता जैसे उसके साथ जो कुछ हुआ था वह विधाता ने ही रचा था वह एक निमित्त मात्र थी।


सूरज जैसा तंदुरुस्त हट्टा कट्टाऔर बेहद खूबसूरत युवा अपनी जांघों के बीच उत्तेजना ना महसूस करें यह अविश्वसनीय था पर कटु सत्य था।

सूरज ने भी कई बार अपने लिंग को सहलाया कामूक कल्पनाएं की पर पर लिंग में रंच मात्र भी संवेदना नहीं हुई। वह एक मुरझाए केले की भांति हमेशा नीचे ही लटका रहा सूरज को बखूबी अहसास था कि यह प्राकृतिक नहीं है परंतु उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। रोजी के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ रही थी पर प्यार अपनी जगह था और वासना अपनी जगह।

चुंबन में वासना का अंश ना हो तो चुंबन की प्रगाढ़ता कम हो जाती है। रोजी इसे भली भांति महसूस कर रही थी और आखिर एक दिन कॉलेज की छत पर जाने वाली सीढ़ियों पर रोजी और सूरज एक दूसरे के और समीप आ गए।

सूरज और रोजी एक बार फिर करीब आए और दोनों के बीच चुंबनों का आदान-प्रदान होने लगा। आज फिर रोजी ने महसूस किया की जो तत्परता सूरज की तरफ से दिखाई पढ़नी चाहिए उसमें निश्चित ही कुछ कमी थी। रोजी को यह मंजूर नहीं था। रोजी ने हिम्मत जुटाकर चुंबन के दौरान अपनी सुकुमार हथेलियां सूरज की जांघों के बीच लंड के ऊपर सटा दिया।

रोजी के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा सूरज का लिंग बिना उत्तेजना एवं कठोरता के सामान्य स्थिति में लटका था। लिंग की कठोरता पेंट के ऊपर से भी पहचानी जा सकती थी शायद इसीलिए रोजी नई लड़की होने के बावजूद इतनी हिम्मत जुटाइ थी परंतु वह स्वयं आश्चर्यचकित थी कि सूरज के लिंग में कोई उत्तेजना एवं कठोरता ही नहीं थी।

उधर सूरज सचेत हो गया था फिर भी उसने रोजी के हाथ को हटाने की चेष्टा नहीं कि वह उसके स्पर्श को महसूस कर अपने लिंग में तनाव की उम्मीद कर रहा था उसने एक बार फिर रोजी को अपने आलिंगन में भरकर चूमने की कोशिश की और स्वयं अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी पेंट की जिप खोल दी।

रोजी को यह थोड़ा असहज लगा परंतु उसने सूरज को रोका नहीं वह सचमुच सूरज को चाहने लगी थी। कुछ ही देर में सूरज का लिंग बाहर आ चुका था पहली बार रोजी ने किसी लड़के का लिंग अपने हाथों से छुआ..

अजब सा एहसास था पर हाय री सूरज की किस्मत।

जिस रोजी जैसी गच्च माल को देखकर अच्छे-अच्छे का लंड खड़ा हो सकता था वह स्वयं सूरज के लंड को हाथ लगा रही थी परंतु उसमें नाम मात्र की उत्तेजना नहीं थी। रोजी ने इसे एक चैलेंज के रूप में ले लिया था उसे स्वयं यह असामान्य लग रहा था उसे उम्मीद थी कि उसके स्पर्श मात्र से सूरज का लंड तनकर उसे सलामी देने लगेगा पर यहां परिस्थितिया विपरीत थी।

सूरज और सोनी की यह रासलीला ज्यादा देर नहीं चली रोजी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई सीढियों से ऊपर आ रहा है। वह सूरज से अलग हुई और छत की तरफ चली गई सूरज ने भी अपने लंड की तरफ निराशा से देखा और उसे वापस अपने अंडरवियर में कैद कर लिया सूरज की निराशा और भी गहरा गई। आज रोजी की मुलायम और संवेदनशील उंगलियां भी उसके लंड में उत्तेजना भरने में नाकाम रही थी सूरज अपनी किस्मत को कोष रहा था और विधाता से अपने लिए न्याय मांग रहा था।

उधर नियति सूरज के भविष्य के पन्ने पलट रही थी। जो जो सूरज आज अपने लिंग में उत्तेजना के लिए तड़प रहा था उसे आने वाले समय में कामुकता के नए अध्याय लिखने थे उसे वह सारे सुख भोगने थे जिसकी कल्पना परिकल्पना भी आज की स्थिति में उसके लिए करना मुमकिन नहीं था।

पर अपने भविष्य से अनजान सूरज एक बार फिर बेहद दुखी हो चुका था और अनमने मन से सीढ़ियां उतर रहा था और अपने विधाता को कोस रहा था यह स्वाभाविक भी था।

कुछ दिन और बीत गए..

कॉलेज के पुराने बरगदों की छाया में सूरज और रोज़ी की कहानी चुपचाप पनप रही थी। रोजी अब भी इस उम्मीद में थी कि सूरज के लिंग की उत्तेजना शायद उसके सहज होने पर ठीक हो जाए। दोनों एक ही कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। दिन भर किताबों और प्रैक्टिकल्स में उलझे रहने के बाद वे अक्सर साथ टहलते। सूरज और रोजी की जोड़ी देखने में बेहद खूबसूरत थी ऐसा लगता था जैसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हो। यही बात रोजी की सहेली ने उन दोनों को साथ देखकर कह दी


ओह नाइस पेयर मेड फॉर ईच अदर ….

दोनों हँसते हुए कैंटीन की ओर बढ़ गए। उनका प्रेम सहज था—बिना दिखावे के, बिना शोर के।

लेकिन इस सुकून के बीच एक बेचैनी भी थी। शाहिद, जो रोज़ी पर एकतरफा मोहित था, अक्सर किसी न किसी बहाने उसके सामने आ खड़ा होता।

“रोज़ी, आज तुमने मुझे पहचाना भी नहीं,” शाहिद ने एक दिन रास्ता रोकते हुए कहा।

रोज़ी ने सख़्त लहजे में जवाब दिया, “शाहिद, मैंने पहले भी कहा है—मुझे तुम्हारा यूँ बार-बार मिलना पसंद नहीं। प्लीज़ मुझे परेशान मत करो।”

शाहिद ने झुंझलाकर कहा, “इतना घमंड किस बात का है? मैं बस दोस्ती करना चाहता हूँ।”

“दोस्ती ज़बरदस्ती नहीं होती,” रोज़ी ने साफ़ शब्दों में कहा और वहाँ से हट गई।

एक दिन कॉलेज के आँगन में बात बिगड़ गई। शाहिद ने फिर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी।

रोज़ी भड़क उठी, “तुम्हें समझ क्यों नहीं आता? अपनी हद में रहो!”

उसी समय सूरज वहाँ पहुँचा।

“क्या बात है?” सूरज ने शांत स्वर में पूछा।

शाहिद तमतमाकर बोला, “तुम बीच में क्यों बोल रहे हो? तुम्हें किसी ने बुलाया?”

सूरज ने संयम से कहा, “जब कोई किसी को परेशान करे, तो बोलना पड़ता है। तुम गलत कर रहे हो।”

यह सुनते ही शाहिद का अहंकार भड़क उठा।

“ज़्यादा हीरो मत बनो,” उसने सूरज की ओर बढ़ते हुए कहा।

शाम को कॉलेज के बाहर माहौल और भयावह हो गया। शाहिद अपने दोस्तों के साथ सूरज को घेर चुका था।

“आज बहुत समझदार बन रहे थे न?” शाहिद ने व्यंग्य से कहा।

सूरज ने दृढ़ता से जवाब दिया, “अगर सच बोलना समझदारी है, तो हाँ—मैं बनूँगा।”

धक्का-मुक्की शुरू हो गई।

“छोड़ो मुझे!” सूरज ने कहा, लेकिन जवाब में मुक्के बरसने लगे। कुछ ही पलों में सूरज ज़मीन पर लड़खड़ा गया। उसके हाथ पर ज़ोर का वार पड़ा।

“आह!” सूरज के मुँह से कराह निकल गई। उसका अंगूठा बुरी तरह मुड़ गया था।

एक दोस्त बोला, “चलो, बहुत हो गया।”

शाहिद ने जाते-जाते कहा, “याद रखना, अगली बार बीच में मत पड़ना।”

थोड़ी देर बाद रोज़ी दौड़ती हुई आई।

“सूरज! ये सब क्या हुआ?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।

सूरज ने दर्द छिपाते हुए कहा, “कुछ नहीं… बस एक छोटी सी लड़ाई।”

रोज़ी ने उसका हाथ देखते ही कहा, “ये छोटी बात नहीं है! तुम्हें बहुत चोट लगी है।”

सूरज ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अगर तुम्हारी इज़्ज़त बचाने की कीमत ये चोट है, तो मुझे मंज़ूर है।”

रोज़ी की आँखों में आँसू भर आए।

“मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें तकलीफ़ हो,” उसने धीमे से कहा।

सूरज ने कहा, “प्यार में कभी-कभी दर्द भी आता है, रोज़ी। लेकिन मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा।”

उस दिन के बाद कॉलेज वही था, रास्ते वही थे, पर सूरज और रोज़ी के रिश्ते में एक नया भरोसा जुड़ गया था—जो शब्दों से नहीं, बल्कि साहस और त्याग से लिखा गया था।

सूरज को घर पहुंचते पहुंचते देर हो गई सब उसका इंतजार कर रहे थे सूरज के लटके हुए चेहरे को देखकर सुगना बेचैन हो गई वह उसकी तरफ बढ़ी…

“आ गए सूरज? आज कुछ ठीक नहीं लग रहा तुझे… चेहरा उतरा-उतरा सा क्यों है?”

सूरज:

“कुछ नहीं मां, बस थोड़ा थक गया हूँ।”

सुगना:

“थकान में आँखें ऐसे नहीं झुकतीं बेटा। कॉलेज में सब ठीक तो है ना?”

सूरज:

“हाँ… ठीक ही है।”

सुगना:

“तो फिर ये हाथ छुपा क्यों रहा है? ज़रा इधर दिखा।”

सूरज:

“अरे मां, कुछ नहीं हुआ।”

सुगना:

“कुछ नहीं हुआ तो अंगूठा इतना सूजा कैसे है? साफ दिख रहा है।”

सूरज:

“बस लग गया था, मामूली सा।”

सुगना:

“मामूली? बैठ, पहले दवा लगाती हूँ, फिर पूछूँगी।”

सुगना उठी आर सी से जाकर कच्ची हल्दी और चूने का लेप बनाकर लाई और सूरज के अंगूठे पर लपेट दिया एक सफेद कपड़े से उसने उसे चारों तरफ से बंद भी दिया सूरज का यह अंगूठा वही जादुई अंगूठा था जिसे सोनी, मोनी मालती द्वारा सहलाए जाने पर सूरज के लिंग का आकार अप्रत्याशित रूप से बढ़ता था यद्यपि इस घटना को कई वर्ष बीत चुके थे और सभी के जेहन से यह विलक्षण घटना अब निकल चुकी थी वैसे भी 12 वर्षों का समय बहुत सारी स्मृतियों को मिटा देता है सरयू सिंह की मृत्यु के बाद जब से सुगना के परिवार में वासना का अकाल पड़ा था सोनी ने भी इस बात को लगभग भूल ही दिया था और कभी यह प्रयोग दोबारा नहीं किया था सूरज के बचपन की यह खासियत बचपन की स्मृतियों के साथ ही दफन हो गई थी।

सूरज:

“मां, बस अब रहने दो… अपने आप ठीक हो जाएगा।”

सुगना:

“चुपचाप बैठ। मां से ज़्यादा अक्ल मत चला।”

सूरज:

“ठीक है…”

सुगना:

“अब बता, कॉलेज में क्या हुआ?”

सूरज:

“कुछ खास नहीं… बस थोड़ी बहस हो गई थी।”

सुगना:

“किससे?”

सूरज:

“कुछ लड़कों से।”

सुगना:

“और बहस में हाथ सूज गया?”

सूरज:

“थोड़ा धक्का लग गया था।”

सुगना:

“तू तो झगड़ा करने वाला नहीं है, फिर बात इतनी बढ़ी क्यों?”

सूरज:

“बस बात-बात में…”

सुगना:

“पूरी बात बता सूरज, आधी बात से मन और घबराता है।”

सूरज:

“मां, सच में अब सब ठीक है। ज़्यादा कुछ नहीं हुआ।”

सुगना:

“ठीक है, नहीं बताना तो मत बता… पर याद रख, मां से छुपाने की ज़रूरत नहीं होती।”

सूरज:

“मैं जानता हूँ मां।”

सुगना:

“आज हाथ से कोई काम मत करना। आराम कर।”

सूरज:

“जी मां।”

सुगना:

“और सुन, अगर कुछ मन में चल रहा हो तो दबा कर मत रखना।”

सूरज:

“…ठीक है।”

सूरज अपने कमरे में चला गया। अंगूठे का दर्द अब भी था।

शाम होते-होते सभी इस बारे में बात करने लगे।

शाम को जब यह खबर लाली के पुत्र राजू और शैतान राजा तक पहुँची, तो राजा तुरंत ही उत्साहित हो गया। उसे झगड़ा करना पसंद था।

राजा (राजू से):

“भैया, चलो… शहीद को देखकर आते हैं। इस बार उसे सबक सिखाना पड़ेगा।”

छोटे राजा ने अपने बड़े भाई राजू से शाहिद को सबक सिखाने के लिए उसका साथ मांगा।

राजू (थोड़ा गंभीर होकर):

“रुको, राजा। पहले सूरज से पूरी घटना सुनो। बिना जाने सीधे झगड़े में कूदना ठीक नहीं होता।”

दोनों सूरज के कमरे में गए। सूरज ने जो घटनाक्रम बताया, वह ज्यादा गंभीर नहीं था। सूरज के अनुरोध पर, आगे इस बात को बढ़ाने से सभी ने मना कर दिया।

धीरे-धीरे कमरे में पूरा परिवार इकट्ठा हो गया। कुछ ही देर में खूबसूरत मालती, लाली की पुत्री रीमा और सूरज की छोटी बहन मधु भी पहुँच गईं।

मधु (चिंतित होकर):

“भैया, अंगूठा अब कैसा है? अभी भी दर्द है?”

सूरज (मुस्कुराते हुए):

“ठीक है, मधु। बस थोड़ा सा दर्द है, चिंता मत करो।”

मालती और रीमा ने पास आकर देखा। सूरज उन दोनों से छोटा था उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरा उसके हाथों को सहलाया पर जादुई अंगूठा हल्दी चूने में लिपटा अभी सूरज की बहनों की पहुंच से दूर था।

राजू और राजा थोड़ा पीछे खड़े होकर यह सब देख रहे थे।

राजा (थोड़ा शरारत भरे अंदाज़ में):

“भैया, अगली बार कुछ हुआ तो साले शाहिद को छोड़ेंगी नहीं।”

राजू (मुस्कुराते हुए):

“हाँ, पर समझदारी से। कोई झगड़ा नहीं।”

सूरज ने हल्की मुस्कान दी और कहा,

“देखो, समझदारी और धैर्य ही सबसे बड़ी ताकत है। अब सब शांत रहो।”

मालती और रीमा ने मुस्कुराते हुए सूरज की ओर देखा। और प्यार से बोला…

इतना प्यारा तो है सूरज कोई कैसे इससे लड़ सकता है।

कमरे में हल्की हँसी फैल गई। हवेली की यह शाम, बहनों, सूरज और पूरे परिवार के साथ, अचानक और खुशनुमा, सुरक्षित और प्यार भरी लगने लगी। पूरा परिवार एक था पर छोटी डॉक्टरनी सोनी किसी काम से अपने पति विकास के साथ बाहर गई हुई थी।

हवेली की एक सामान्य सुबह…

सुगना अब अपनी अधेड़ अवस्था में पहुँच चुकी थी, पर कुदरत ने उसे जिस खूबसूरत बदन, चमकती त्वचा और मासूम चेहरे से नवाज़ा था, वह आज भी जस का तस था। उम्र का असर दिखाई देता था, पर आज भी सुगना एक प्रभावशाली महिला थी।

सरयू सिंह की मृत्यु के बाद सोनी ने हवेली की जिम्मेदारी धीरे-धीरे संभाल ली। सुगना, न जाने क्यों, सफ़ेद वस्त्र पहनना शुरू कर दिया था। अक्सर वह सफ़ेद साड़ी में दिखाई पड़ती—विधवा के रूप में नहीं, पर रंग में सादगी अवश्य थी। कह सकते हैं, यह सादगी अब सुगना का अपना “ड्रेस कोड” बन चुकी थी।

सुबह-सुबह सुगना हवेली के एक बड़े हाल में योगा क्लास चलाया करती थी। इन क्लासों का कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं था; यह बस लोगों से जुड़ने और उनके साथ स्वस्थ जीवन साझा करने का एक साधन था। कई महिलाएं और लड़कियां उसकी योगा क्लास में नियमित रूप से आती थीं। हल्की सुनहरी धूप जब हाल में आती, तो पूरा माहौल और भी खुशनुमा हो जाता।

सुगना को योगा करते हुए देख कर ऐसा लगता ही नहीं था कि वह वही सुगना है, जो दिन में साड़ी पहने हवेली में एक अधेड़ महिला के रूप में दिखाई पड़ती है। योग के दौरान वह आधुनिक और चुस्त कपड़ों में दिखाई देती, जिससे उसके शरीर की फिटनेस और खूबसूरती स्वाभाविक रूप से दिखने लगती।

सुगना अपनी युवावस्था में जितनी सुंदर थी, आज भी उतनी ही सुंदर थी। अगर आप वर्तमान में श्वेता तिवारी को जानते हैं, तो उसकी फिटनेस की तुलना सुगना की फिटनेस से की जा सकती है। कुल मिलाकर, सुगना अब भी बेहद आकर्षक थी, पर उसने अपनी इच्छाओं और वासना पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था।

सोनू के साथ जो रंगरलिया उसने मनाई थी, अब वह उन्हें याद भी नहीं करना चाहती थी। पिछले कई वर्षों से उसने सोनू से दूरी बनाए रखी थी। सोनू भी यह बात भली-भांति जानता था कि अब वह दिन लौटकर नहीं आएंगे। पर सोनू और सुगना में प्यार और सम्मान अब भी था।

सरयू सिंह की मृत्यु के बाद सुगना की वासना पर जो ग्रहण लगा था, वह अब तक कायम रहा। सोनू अपनी उम्मीदें छोड़ चुका था, और सुगना अपने नए व्यक्तित्व और रूप के साथ हवेली में सोनू के साथ रह रही थी।

सूरज के अंगूठे की चोट का आज दूसरा दिन था। हल्दी-चूने के लेप ने निश्चित ही फायदा किया था और सूजन कुछ कम हो गई थी। सुगना ने आज भी नया लेप बनाकर सूरज के अंगूठे पर लगा दिया।

शाम होते-होते सोनी और विकास भी हवेली आ चुके थे। सूरज सबका दुलारा था। उसके हाथ में सफेद पट्टी देखकर सोनी दौड़ती हुई उसके पास आई। उसने सूरज के हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा,

“सूरज, यह क्या हुआ?”

“कुछ नहीं मौसी, बस थोड़ी-सी चोट लग गई थी,” सूरज ने मुस्कराकर कहा।

तभी रसोईघर से सुगना बाहर आई और बोली,

“अरे , कॉलेज में कुछ बदमाश बच्चों से इसकी लड़ाई हो गई थी, तभी हाथ में चोट लग गई।”

सूरज के अंगूठे को ध्यान से देखते हुए सोनी ने पूछा,

“दीदी, आपने इसमें क्या लगाया है?”

“कुछ नहीं, बस हल्दी-चूने का लेप लगाया है। कल से सूजन कम हो रही है। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगा,” सुगना ने विश्वास से कहा।

“दीदी, मेरे पास सूजन की एक अच्छी दवा है। अगर लगा दें तो जल्दी आराम मिल जाएगा,” सोनी ने कहा।

प्राकृतिक उपचारों पर सुगना का भरोसा अब भी अडिग था। उसने हल्के स्वर में कहा,

“अच्छा ठीक है, पहले फ्रेश हो जा। रात में सोते समय लगा देना।”

सोनी ने सुगना की बात मान ली।

अचानक वह उठी और अपने साथ लाई थैली से एक सुंदर-सी जींस और टी-शर्ट निकालकर सूरज को देते हुए बोली,

“हैप्पी बर्थडे टू यू, सूरज!”

सूरज खुशी से खिल उठा। । नीली जींस और सफेद टी-शर्ट सचमुच बहुत खूबसूरत थी। उसने सोनी के हाथ चूमे, फिर झुककर अपने बाएँ हाथ से उनके पैर छुए और खुशी-खुशी बोला,

“थैंक यू, मौसी।पर मौसी मेरा जन्मदिन तो कल है।”

“कोई बात नहीं आज यह रख ले कल एक और खूबसूरत उपहार दूंगी”

एक और खूबसूरत उपहार सोनी ने यह बात बिना सोचे समझे कही थी पर नियति ने उसके शब्द पकड़ लिए और उसके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान दौड़ गई….

कुछ होने वाला था सूरज की किस्मत पलटने वाली थी…उसकी मायूसी खुशी में बदलने वाली थी…
Suraj Aur Rozi ke beech....... Shap ke Alawa Shahid Doosra Villain....... Shandar Buildup
 
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Once again super duper update Aanand bhai. Aapki Sugna se pyar ho gya hai lagta mujhe.aisa lagta hai Sugna ek kirdar nahi koi aisi jevit sundri hai jo aaspass kahi hai.
 

Lovely Anand

Love is life
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Once again super duper update Aanand bhai. Aapki Sugna se pyar ho gya hai lagta mujhe.aisa lagta hai Sugna ek kirdar nahi koi aisi jevit sundri hai jo aaspass kahi h

ये आपके कहानी से जुड़ाव का प्रतीक है
 

Lovely Anand

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भाग 157

“हैप्पी बर्थडे टू यू, सूरज!”

सूरज खुशी से खिल उठा। । नीली जींस और सफेद टी-शर्ट सचमुच बहुत खूबसूरत थी। उसने सोनी के हाथ चूमे, फिर झुककर अपने बाएँ हाथ से उनके पैर छुए और खुशी-खुशी बोला,

“थैंक यू, मौसी।पर मौसी मेरा जन्मदिन तो कल है।”

“कोई बात नहीं आज यह रख ले कल एक और खूबसूरत उपहार दूंगी”

एक और खूबसूरत उपहार सोनी ने यह बात बिना सोचे समझे कही थी पर नियति ने उसके शब्द पकड़ लिए और उसके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान दौड़ गई….

कुछ होने वाला था सूरज की किस्मत पलटने वाली थी…उसकी मायूसी खुशी में बदलने वाली थी…

अब आगे..

युवाओं में जन्मदिन का उत्साह देखने लायक होता है। सूरज भी इससे अछूता नहीं था। अंगूठे की चोट की पीड़ा को भुलाकर वह सोनी द्वारा लाए गए कपड़ों को उत्साह से अपने बदन पर पहनकर देखने लगा। अंगूठे की पीड़ा इसमें आड़े आ रही थी पर उत्साह कायम था। कपड़े न केवल बेहद खूबसूरत थे, बल्कि उनकी चमक से अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वे महंगे भी होंगे। सोनी का यह स्नेह सूरज के चेहरे पर मुस्कान ले आया। सच तो यह था कि केवल सोनी ही नहीं, घर का हर सदस्य सूरज को बेहद प्यार करता था। वह घर का सबसे होनहार बेटा था और कुछ ही समय में डॉक्टर बनने वाला था। डॉक्टर बनना पूरे परिवार के लिए सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि गर्व और सम्मान की बात थी।

उधर शाहिद जिसने सूरज पर हाथ उठाया था पूरे परिवार के लिए अब एक तरह का विलेन बन चुका था। लेकिन राजा, जो उम्र में सूरज से छोटा जरूर था, उसने शाहिद से बदला लेने की ठान ली थी। उसका बदमाशी में अंदाज़ ऐसा था जैसे वह खुद गैंग ऑफ़ वासेपुर के नवाजुद्दीन सिद्दीकी की तरह किसी बड़े खेल का हिस्सा हो।

इस बीच, सूरज अपने आने वाले कल अपने जन्म दिन के बारे में सोच रहा था। कल उसे समय निकालकर रोज़ी से भी मिलना था। एक तरफ वह अपनी मर्दानगी पर लगे सवालों को लेकर झिझक महसूस करता था, लेकिन अब धीरे-धीरे वह रोज़ी के लिए कुछ खास महसूस करने लगा था।

घर में सभी कल सूरज के जन्मदिन की तैयारियों के बारे में बात कर रहे थे। सुगना, हमेशा की तरह, सूरज के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाने में व्यस्त थी, और पूरा परिवार बड़े उत्साह और आनंद के साथ इसका इंतजार कर रहा था। सूरज परिवार के लिए सिर्फ एक बेटा ही नहीं, बल्कि घर की खुशी और ऊर्जा का केंद्र भी था।

कल शाम को, घर में एक पारिवारिक पार्टी होने वाली थी। कुछ मेहमान भी इसमें शरीक होने वाले थे। पूरे घर में खुशियों की हलचल थी—हँसी, बातचीत और व्यंजनों की खुशबू से माहौल भर गया था। सूरज अपने कमरे में बैठा थोड़ी-सी घबराहट और उत्साह के मिश्रित भाव के साथ सोच रहा था कि कल का दिन कितना खास होने वाला है।

डिनर के बाद हॉल में हल्की पीली रोशनी फैली हुई थी। टीवी बंद था, मगर घर में अपनापन और हँसी तैर रही थी। सूरज सोफ़े पर सबके बीच बैठा था। उसका जादुई अंगूठा कपड़े के पीछे हल्दी के लेप में लिपटा हुआ, जैसे चुपचाप अपनी ऊर्जा वापस बुला रहा हो। सूरज न जाने क्या सोच कर मुस्कुरा रहा था।

मालती की नज़र सीधे सूरज पर टिक गई।

मालती:

“सूरज, क्या हुआ क्यों मुस्कुरा रहे हो”

सूरज:

(हल्की हँसी के साथ)

“कुछ नहीं दीदी, बस थकान है।”

मालती ने भौंहें उठाईं।

मालती:

“थकान से आदमी मुस्कुराता है क्या?”

सामने कुर्सी पर बैठे विकास (जो सभी युवाओं का मौसा था ) ने गला साफ़ किया और मुस्कुराते हुए बोला—

“अरे मालती, छोड़ो उसे। ये उम्र ही ऐसी होती है वैसे भी कल उसका जन्मदिन है कुछ सपने संजो रहा होगा।”

सूरज ने राहत की साँस ली, मगर वो ज़्यादा देर की नहीं थी।

“ आप ही बताइए… क्या आपको भी नहीं लग रहा कि इसमें कुछ चल रहा है?” मालती ने राजू की तरफ देखते हुए कहा। राजू और मालती के बीच खिचड़ी पक रही थी अपितु यह कहा जाए कि पक चुकी थी पर इसका अंदाजा परिवार में किसी को नहीं था।

राजू:

(हँसते हुए)

“लग तो रहा है। आँखों में चमक है और होठों पर मुस्कुराहट। ये सब बिना वजह नहीं आता।”

सूरज झेंप गया।

सूरज:

“राजू भैया, आप भी दीदी की तरफ़ हो गए।”

राजू:

“मैं किसी की तरफ़ नहीं हूँ , बस ज़िंदगी की तरफ़ हूँ। जब दिल किसी को पसंद करने लगे, तो आदमी थोड़ा बदल ही जाता है।”

हॉल में हल्की हँसी गूंज गई।

छोटा भाई राजा चुटकी ले बैठा—

“मतलब पक्का कुछ है!”

मालती ने मौका नहीं छोड़ा।

“तो नाम तो बता दो कम से कम।”

सूरज कुछ पल चुप रहा। फिर बोला—

सूरज:

“अभी नाम लेने का वक्त नहीं आया है।”

सूरज ने रीमा की तरफ देखा। रीमा लाली की पुत्री थी और वह सूरज को मन ही मनपसंद करती थी यद्यपि सूरज उस उम्र में थोड़ा छोटा था परंतु फिर भी वह सूरज को चाहती थी।

सुगना रसोई से आवाज़ देती हैं—

“अब बस करो तुम लोग। कल उसका जन्मदिन है। उसे तंग मत करो।

मालती मुस्कुरा कर पीछे हट गई।

अब हाई कमान का आर्डर आ चुका है कोई सूरज भैया को छेड़ेगा नहीं। छोटी मधु ने खड़े होकर सबको नसीहत दी और सबको अंताक्षरी खेलने के लिए आमंत्रित कर लिया।

सूरज ने हल्की मुस्कान के साथ अपने लिपटे हुए अंगूठे को देखा उसे बार-बार ही महसूस हो रहा था कि कल उसकी दिनचर्या में इस अंगूठे का कितना अहम रोल था। आज पेंट पहनते समय उसे काफी दिक्कत हुई थी और कल तो दिन भर उसे इस दर्द के साथ ही रहना था।

रात के 11:00 बज चुके थे। सोनी सुगना भी बच्चों के साथ बातें कर रहे थे। कुछ लोग अभी भी उत्साह में थे, कुछ जम्हाईया ले रहे थे पर इस सजी हुई महफ़िल से हटने को कोई तैयार नहीं था। और जाए भी कैसे? सबका प्रिय सूरज, बस एक घंटे बाद, अपने जन्मदिन की शुरुआत करने वाला था। सभी उसे “हैप्पी बर्थडे” कहने का इंतजार कर रहे थे।

बातचीत कभी सोनी और विकास की अमेरिका यात्रा पर जाती, युवाओं के अमेरिका को लेकर उत्साह स्वाभाविक रूप से था। कभी सुगना और लाली सलेमपुर और सीतापुर की पुरानी यादों में खो जाती, और कभी बच्चे सरयू सिंह की अकाल मृत्यु के बारे में जानना चाहते। पर हमेशा की तरह, सुगना ऐसे सवालों को टाल देती। कभी-कभी वह दुखी भी हो जाती और सभी को यह एहसास दिलाती कि कुछ बातें ना पूछना ही बेहतर है।

लोग जितना सूरज से प्यार करते थे, उससे ज्यादा सुगना का सम्मान। यद्यपि यह हवेली सोनी और विकास की थी, लेकिन घर में सबसे अधिक सम्मान सुगना का ही था। वह घर की मालकिन तो न थी पर मुखिया अवश्य थी। सुगना की बात सभी के लिए मान्य थी, और क्यों नहीं—वह सबका उतना ही ख्याल रखती थी, चाहे वह सूरज हो या परिवार का सबसे दुष्ट बेटा, राजा। राजा भी जानता था कि वह गलत है, पर सुगना के प्यार की वजह से वह भी सहज और शांत महसूस करता था।

महफ़िल में हँसी, यादें और बातचीत का सिलसिला चलता रहा। हर कोई, चाहे बड़ा हो या छोटा, अपने अपने अनुभवों और भावनाओं में खोया था। लेकिन सबके दिलों में एक बात तय थी सूरज सबका प्यारा था और अपनी मां सुगना की जान था।

की सुइयाँ धीरे-धीरे बारह बजने को तैयार थीं। कुछ सेकंड पहले ही बच्चों का उत्साह शिखर पर था। सभी उठकर एक साथ “10… 9… 8… 7…” चिल्लाने लगे। आवाज़ धीरे-धीरे तेज़ होती गई और आखिरकार

“हैप्पी बर्थडे टू यू,

हैप्पी बर्थडे टू यू”

की गूंज के साथ सभी ने सूरज को बारी-बारी से गले लगाया।

छोटी मधु ने बड़े भाई के पैर छुए। छोटा राजा भागकर फ्रिज से बड़ा-सा केक निकाल लाया और थोड़ी ही देर में सूरज ने उस खूबसूरत केक को काटा। हमेशा की तरह केक पर पहला हक उसकी माँ का था। सुगना ने बेहद प्यार से सूरज के माथे को चूमा। दूसरा केक उसने अपनी सोनी मौसी को खिलाया और फिर धीरे-धीरे सभी बड़ों को बारी-बारी से केक खिलाया। सबसे आख़िर में उसने अपनी छोटी बहन मधु को केक खिलाया।

नियति मुस्कुराते हुए सूरज और मधु दोनों को साथ देख रही थी। उन्हें साथ देखकर नियति एक बार फिर विधाता को याद कर रही थी, जिन्होंने उनके भाग्य में न जाने क्यों वह लिख दिया था, जो निश्चित ही एक पाप था।

बहरहाल, धीरे-धीरे सूरज के जन्मदिन का यह छोटा-सा सेलिब्रेशन समाप्त हुआ और सब अपने-अपने कमरों में जाने लगे। सुगना, सोनी और सूरज अब सूरज के कमरे में आ चुके थे। सुगना और सोनी ने सूरज को बहुत प्यार किया और उसे ढेर सारी शुभकामनाएँ दीं। सुगना के ज़ेहन में अब भी सूरज की शारीरिक कमी का ख्याल घूम जाता था, और वह दुखी हो जाती थीं। आज सूरज 21 वर्ष का हो चुका था।

कुछ देर और बातचीत करने के बाद सुगना और सोनी दोनों ने एक बार फिर सूरज को शुभकामनाएँ दीं, उसके माथे पर हाथ फेरा और अपने-अपने कमरों की ओर चल पड़ीं।

अभी सुगना और सोनी हाल में ही पहुँची थीं कि सूरज ने अंदर अपने लिहाफ़ को ऊपर खींचने की कोशिश की और गलती से अपने चोटिल अंगूठे का सहारा ले लिया। सूरज के मुँह से एक हल्की-सी कराह निकल गई।

सुगना और सोनी वापस सूरज के कमरे में आ गईं। सूरज उनके आने का कारण समझ गया। उसने गर्दन बाहर निकालकर कहा,

“अरे, कोई बात नहीं। अंगूठा लिहाफ़ से टकरा गया था।”

सोनी को अचानक अपनी उस दवा की याद आ गई, जो सूरज के अंगूठे पर लगानी थी। उसने कहा,

“दीदी, आप जाकर सो जाइए। मैं सूरज के अंगूठे पर वह दवा लगा दूँगी। मुझे विश्वास है इससे दर्द में ज़रूर राहत मिलेगी।”

सुगना ने भी साथ रुकने की बात कही, तो सोनी बोली,

“दीदी, आप पूरी तरह थक चुकी हैं। रसोई में इतने पकवान बनाना कोई आसान काम नहीं होता। आपको आराम करना चाहिए, दवा मैं लगा दूँगी।”

सोनी ने सुगना के कंधे थामकर उसे धीरे-धीरे उसके कमरे की ओर भेज दिया। सुगना और सोनी का आपसी स्नेह इस उम्र तक भी बना हुआ था।

कुछ देर बाद सोनी दवा लेकर सूरज के कमरे में पहुँची।

नियति, सोनी और सूरज को एक साथ देखकर मुस्कुरा रही थी। सोनी ने अपने शुरुआती दिनों में नर्स के रूप में काम किया था, इसलिए उसे चिकित्सा का कुछ ज्ञान था। आज नर्स सोनी, डॉक्टर बनकर सूरज के अंगूठे पर मलहम लगाने आई थी।

जैसे ही सोनी ने सूरज के अंगूठे की पट्टी हटाई, चूने और हल्दी का सूखा लेप भी पट्टी के साथ निकल आया। हल्दी का थोड़ा-सा अंश अब भी अंगूठे पर लगा था। सोनी ने अपनी कोमल उँगलियों से उसे धीरे-धीरे साफ़ किया।

सूरज को एक अजीब-सी अनुभूति हुई, जैसे अंगूठे में हल्का-सा करंट दौड़ गया हो। सोनी ने अपनी उँगलियों पर मलहम निकाला और सूरज के अंगूठे पर लगा दिया। जैसे ही उसने अंगूठे को अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच लेकर हल्के से सहलाया, सूरज के पूरे शरीर में फिर एक सिहरन-सी दौड़ गई।

अचानक सूरज ने महसूस किया कि उसके लिंग में हलचल हो रही।

लिंग की रक्त कोशिकाओ में रक्त प्रवाह अचानक तेज हो गया था सूरज के लिंग में अचानक तनाव आना शुरू हो गया था सूरज आश्चर्यचकित था। जैसे-जैसे सोनी सूरज के अंगूठे को सहलाए जा रही थी वैसे वैसे सूरज के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था यह तनाव सुखद था। लिंग में तनाव आना वैसे भी सुखद अनुभूति देता है। सूरज ने सोनी से नजर बचाकर अपना दूसरा हाथ लिहाफ के अंदर ले जाकर इस आश्चर्य को महसूस करना चाहा।

सूरज का लंड तनकर खड़ा हो चुका था। सूरज के लिंग में आशातीत वृद्धि हुई थी और शायद इसी कारण सूरज को अपना हाथ लिहाफ के अंदर ले जाना पड़ा था।

सोनी ने सूरज के हाथों की हलचल उसकी जांघों के बीच देख ली लिहाफ सूरज की इस हरकत को छुपा पाने में नाकाम रहा था।

सोने की उंगलियां रुक गई और सूरज ने सोने की आंखों को अपनी कमर की तरफ देखते हुए देख लिया।

सूरज झेंप गया परंतु उसने स्थिति संभाली और बोला…मौसी यह कौन सा मलहम है

सोनी ने अपने दूसरे हाथ से मलहम का डिब्बा सूरज की ओर दिखाई परंतु अब भी वह चिंतित थी बचपन में सूरज के अंगूठे को सहलाए जाने से होने वाली प्रतिक्रिया उसे याद आ रही थी हे भगवान …कहीं वह सच तो नहीं। सोनी का कलेजा धक-धक करने लगा उसे एक अनजाना डर सताने लगा उसके हाथ रुक गए सूरज ने फिर एक बार उसका ध्यान अपनी और खींचा।

“मौसी यह अंगूठे के पीछे ज्यादा मलहम लगा है इसे फैला दीजिए।”

सोनी ने अनमने ढंग से उसे मलहम को चारों तरफ बराबरी से लगा दिया और सूरज के लिंग का तनाव और आकार को और भी ज्यादा बढ़ा दिया।

लिंग के तनाव का असर सूरज के चेहरे पर भी दिखाई पड़ने लगा उसका मासूम चेहरा वासना से तमतमा उठा था। सोनी को पक्का यकीन हो गया की निश्चित ही बचपन की वह घटना आज दोबारा रिपीट हो चुकी है उसने सूरज का हाथ छोड़ दिया और हड़बड़ी में वहां से उठते हुए बोली..

अब सो जाओ एक बार फिर हैप्पी बर्थडे टू यू

सोनी ने धड़कते हुए कलेजे के बावजूद अपने होठों पर मुस्कुराहट लाई और सूरज के कमरे से बाहर निकल गई जाते समय उसने दरवाजा बंद कर दिया।

सोनी को बचपन की बातें पूरी तरह याद आ चुकी थी इस तनाव का निदान क्या था उसे यह भी याद आ चुका था। क्या उसे अपने होंठ सूरज के…. हे भगवान नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। जितना ही वह इस बारे में सोचती उतना ही उसका दिल घबराने लगता। अपने मन में घबराहट और तेज धड़कनों के साथ सोनी बिस्तर पर आ चुकी थी पर दिमाग में वही बातें घूम रही थी।

उधर अपनी मौसी सोनी के जाने के बाद सूरज बिस्तर पर से उठा उसने दरवाजा लॉक किया और वापस बिस्तर पर आकर अपने लंड को आजाद कर दिया। लंड अंडरवियर से बाहर आते ही उछलकर खड़ा हो गया।

सूरज अपने खड़े लंड को देखकरआश्चर्यचकित था। इतना सुंदर लंड तो उसने पोर्न वेबसाइट पर भी नहीं देखा था। लगभग 2 इंच व्यास और आठ इंच लंबी कद काठी का वह लंड एक खूबसूरत सुपड़ा लिए हुए था। जो उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहा था। लंड पर तनीहुई उभरी नसें यह साबित कर रही थी की यह न सिर्फ कसरत्ती है अपितु कसरत करने के लिए ही बना है।

सूरज ने अपने हाथ से उसे सहलाने की कोशिश की यह अनुभूति अनुपम थी विशिष्ट थी। आज पहली बार अपने जीवन में वह अपने खड़े लंड को सहला रहा था। सूरज आनंद के सागर में गोते लगाने लगा। किसी युवा द्वारा अपने लंड को सहलाना स्वतः ही उत्तेजना और कल्पनाओं को जन्म देता है।

सूरज को अपने लंड को सहलाने बेहद मजा आ रहा था और हो भी क्यों ना सूरज की कल्पनाएं परवान चढ़ने लगी उसे रोजी का ध्यान आया…

उसने अपना मोबाइल उठाया ..

रोजी का मैसेज मोबाइल पर आया हुआ था

हैप्पी बर्थडे माय लव…

सूरज ने उसे थैंक यू नोट भेजा। वह चाहता तो था कि अपने खड़े लंड को एक बार रोजी को दिखाएं और अपनी मर्दानगी साबित करे पर यह संभव नहीं था। फिर भी उसने अपने मोबाइल से अपने खड़े लंड की फोटो ली और उसे अपने मोबाइल में छुपा लिया।

रोजी सुबह-सुबह के लिए रोज पार्क में जाती थी वह पार्क सूरज की हवेली से ज्यादा दूर नहीं था अचानक सूरज के दिमाग में कुछ आया और उसने रोजी को एक बार फिर मैसेज किया।

कल जॉगिंग के लिए जाओगी क्या?

उधर रोजी अब तक सो चुकी थी जवाब आने की उम्मीद नहीं थी सूरज ने मोबाइल किनारे रख दिया और अपनी जांघों के बीच खिले हुए फूल को अपनी हथेली से पड़कर एक बार फिर निहारने लगा।

सूरज अपने लंड को बड़े प्रेम से सहला रहा था कभी वह उसके ऊपर उभर रही सांप जैसी नसों को छूता कभी उसके सुपाड़े के पीछे उस अति संवेदनशील जगहों को। हर बार उसके शरीर में एक सुखद अनुभूति होती जैसे-जैसे सूरज अपने लंड को सहलाता गया वासना अपने आयाम बढ़ाती गई वह बार-बार रोजी को नग्न और नग्न करने की कोशिश करता परंतु यह कठिन था दरअसल इसके पूर्व सूरज ने कभी भी अपनी वासना को फलीभूत नहीं किया था।

वैसे भी जब लंड में तनाव ही ना हो तो कामुक कल्पनाओं का क्या फायदा। पर आज स्थितियां अलग थीं

सूरज ने अपनी वासना के तूफान को और हवा दी लंड सूरज की हथेलियों द्वारा मसला जा रहा था…उत्तेजना ने उत्कर्ष प्राप्त किया और सूरज के लंड से वीर्य की धार फूट पड़ी आह…..मौ…सी………..

सूरज का लंड लगातार वीर्य उगलता रहा और सूरज के लिहाफ पर उसके छींटे गिरते रहे…

सूरज के लिए हस्तमैथुन का यह पहला अनुभव था जितना सुख उसने आज महसूस किया था यह अनोखा था अद्भुत था सूरज को उसके जन्मदिन का उपहार मिल चुका था…

सूरज कुछ देर उसी स्थिति में रहा अपने लंड का यह रूप उसके लिए अनोखा था वह मर्दानगी से भरा हुआ था। सूरज का स्वाभिमान आज अपने चरम पर था अब तक उसने अपने लंड में तनाव न आने को लेकर जितनी चिंता की थी एक पल में ही वह सब खुशियों में बदल गया था।

सूरज ने अपने लंड की तरफ देखा वह अब भी वैसे ही तना हुआ था। सूरज ने अब तक जो पढ़ाई की थी या जो समझा था उसके अनुसार वीर्य स्खलन के बाद लंड को वापस सामान्य स्थिति में आ जाना चाहिए था परंतु लंड का तनाव यथावत था।

सूरज ने उसे वापस अंडरवियर में कैद करने की कोशिश की परंतु यह कठिन था। सूरज को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है उसने इधर-उधर ध्यान भटकाया पर स्थिति जस की तस थी। लंड का तनाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सूरज तने हुए लंड के साथ सूरज अब असहज महसूस करने लगा।

पर इन खुशियों को साझा करने वाला कोई भी ना था उसे अचानक रोजी का ध्यान आया। उसने मोबाइल उठाया पर रोजी का कोई मैसेज नहीं था।

सूरज ने एक बार फिर अपने इतने हुए लंड को अपना हाथों से सहलाना शुरू किया और कुछ ही देर की मेहनत के पश्चात एक बार फिर वीर्य स्खलन करने में कामयाब रहा परंतु जिस उद्देश्य के लिए यह किया गया था उसमें आनंद कम और लिंग का तनाव घटना प्राथमिकता थी। पर दुर्भाग्य दोबारा वीर्य स्खलन होने के बावजूद लिंग का तनाव कम न हुआ।

सूरज पूरी तरह थक चुका था लगातार दो बार हस्तमैथुन कर उसका शरीर शिथिल पड़ चुका था परंतु लिंग वैसे ही तनाव हुआ था सूरज की धड़कनें बढ़ी हुई थी उसने लिहाफ अपने बदन पर डाला और अपना ध्यान उसे तने हुए लिंग से हटाने की कोशिश की पर शायद यह संभव नहीं था जब लिंग में तनाव चरम पर होता है मनुष्य को और कुछ नहीं सोचता है आप अपना ध्यान चाह कर भी नहीं हटा सकते यही स्थिति सूरज की थी रात के दो बज चुके थे और सूरज अब भी अपनी खुशियों से जूझ रहा था। थकावट से कभी उसकी आंखें नींद से बोझिल होती परंतु उसके लंड का तनाव उसे सोने नहीं दे रहा था।

सुबह के 5:00 बज चुके थे अचानक मोबाइल पर ट्रिंग की आवाज हुई। सूरज ने मोबाइल उठाया यह रोजी का ही मैसेज था

हां आ रही हूं क्यों पूछ रहे हो

मैं भी आ रहा हूं सूरज ने रिप्लाई किया

अरे वह तो बर्थडे बॉय से सुबह-सुबह ही मुलाकात होगी चलो मैं तैयार होकर आता हूं सी यू

रोजी का मैसेज स्पष्ट था दोबारा रिप्लाई करने की जरूरत नहीं थी सूरज भी बिस्तर से उठा उसकी आंखें नींद पूरी नहीं होने की वजह से लाल थी पर लंड अभी उसी तरह तना हुआ था।

सूरज ने बड़ी मुश्किल से अपनी नित्य कर्म निपटा ए तने हुए लंड की वजह से उसे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है वह तैयार हुआ बड़ी मुश्किल से लैंड को अपने पेट में कैद करने की कोशिश की पर उसका आकार और तनाव छुपाने लायक नहीं था सूरज ने सबसे ढीली डाली शर्ट पहनी और उसके ऊपर एक आवरण सा दे दिया।

एक तरफ सूरज के मन में खुशी थी कि उसके लंड में आज पहली बार तनाव आया था पर लगातार तनाव ने उसके मन में चिंता की लकीरें डाल दी थी।

सूरज ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और कुछ ही देर में रोजी के पास पार्क में पहुंच गया रोजी उसका इंतजार कर रही थी रोजी ने उसे एक खूबसूरत सा फूल दिया और बोला

Happy b day to you ..हमेशा इस फूल की तरह ही हंसते मुस्कुराते रहना

सूरज ने अपनी बाहें खोल दी और रोजी सूरज से सटती चली गई। सूरज की मजबूत बाहों ने रोजी को अपने आगोश में ले लिया दोनों प्रेमिका एक दूसरे से बेहद करीब आ गए। सूरज ने अपने हाथ से रोजी की कमर को सहारा देकर अपनी ओर खींचा और पहली बार रोजी ने अपने नाभि के नीचे एक तने और कठोर अंग को महसूस किया यह निश्चित ही सूरज का तनाव हुआ था। रोजी सहम गई उसने सर उठाकर सूरज के चेहरे की तरफ देखा सूरज ने पहले तो उसके माथे को चुम्मा और धीरे-धीरे उसके होंठ रोजी के होठों से सट गए।

चुंबनों की प्रगाढ़ता बढ़ती गई और रोजी की मन में कुछ हलचल होने लगी। अचानक रोजी ने अपना हाथ नीचे किया और सूरज के लंड में आए इस तनाव को महसूस करने की कोशिश की। रोजी की कोमल हथेलियां सूरज के लंड को पेट के ऊपर से ही महसूस कर रही थी। लंड का आकार और तनाव दोनों ही रोजी को आश्चर्यचकित कर रहा था। वह एक तरफ शर्मा भी रही थी दूसरी तरफ इस तनाव को देखकर खुश भी हो रही थी। सूरज की मर्दानगी को लेकर जो प्रश्न उसके अंतर्मन में पिछले कुछ दिनों से उठ रहे थे वह सब अचानक ही शांत हो गए थे। सूरज एक पूर्ण मर्द की भांति उसके समक्ष उपस्थित था रोजी ने सूरज के चुंबनों का प्रति उत्तर और भी आत्मीयता से देना शुरू कर दिया तथा अपनी हथेली से उसके लंड को दबाकर और सहलाकर उसका जायजा लेने की कोशिश की सूरज ने उसका हाथ पकड़ लिया और उससे अलग होते हुए बोला

अरे यह पब्लिक प्लेस है कंट्रोल करो…

दोनों मुस्कुराने लगे सूरज ने अपने शर्ट ठीक की और दोनों पार्क में तरह-तरह की बातें करते हुए घूमने लगे परंतु आज खुशियों का दिन था सूरज के लिंग के तनाव ने न सिर्फ सूरज को शहीद कर दिया था बल्कि अब रोगी के मन में भी तंगी फूटने लगी थी सूरज जैसे मर्द को अपनी जिंदगी में पाकर वह बेहद प्रसन्न थी बेहद खुश थी…

आज कॉलेज आओगे क्या ? रोजी ने पूछा

नहीं आज तो मुश्किल है आज बर्थडे मना लेते हैं

सूरज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। सुबह के 6:30 बज चुके थे जॉगिंग का टाइम पूरा हो चुका था अब बिछड़ने का वक्त था। बिछड़ते वक़्त सूरज और रोजी एक बार फिर आलिंगन बद्ध हुए। सूरज मैं एक बार फिर रोजी को चूमने की कोशिश की रोजी ने उसे निराश ना किया इस बार उसने फिर सूरज के लंड पर हाथ लगाने की कोशिश की और उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा लंड पूरी तरह तना हुआ था…

रोजी को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह तुरंत ही कैसे खड़ा हो गया था.. वह तुरंत सूरत से अलग हुई और बोली..

आज तो छोटे मियां पूरे जोश में दिखाई पड़ रहे हैं उसकी आंखों ने नीचे झुक कर सूरज को उसकी बात पूरी तरह समझा दी.. सूरज मुस्कुरा कर रह गया.

उसे सूरज की स्थिति का ज्ञान नहीं था यह तनाव अब सूरज के मानसिक तनाव का कारण बन चुका था।

सूरज वापस घर आ चुका था अभी भी घर में सब सो ही रहे थे सिर्फ सुगना और सोनी जगे हुए थे और हवेली के खूबसूरत हाल में चाय पी रहे थे। सूरज को अंदर आते देख सुगना खुश हो गई। सुगना ने सूरज को अपने पास बुलाया और बगल में बैठा लिया। सूरज सकुचा रहा था उसने अपनी शर्ट ठीक की बने हुए लंड को यथासंभव छुपाने की कोशिश की पर सामने बैठी अपनी मौसी से छुपा पाने में नाकाम रहा। सोनी की यह बेहद असहज लगा ऐसा लग रहा था जैसे सूरज में अपनी पेट में कोई बड़ा खीरा छुपाया हुआ हो…

आ बैठ …अरे इतनी सुबह-सुबह कहां चले गए थे…

सुगना ने सूरज के माथे पर प्यार से हाथ फिरते हुए कहा

कुछ नहीं थोड़ा टहलने का मन कर रहा था बाहर ही घूम रहा था।

यह तेरी आंखें लाल क्यों है नींद नहीं आई क्या? सुगना ने सूरज की आंखों में लाल डोरे देखते हुए कहा…

सूरत हड़बड़ा गया यह लाल डोरे कुछ तो अनिद्रा की वजह से और कुछ सूरज के तने हुए लंड की वजह से भी..

कुछ नहीं मां सब ठीक है मुझे भी चाय पीनी है सूरज ने बात टालते हुए कहा

ठीक है मैं लेकर आती हूं।

सुगना रसोई में चाय लेने चली गई इधर सोनी ने सूरज को असहज देखकर अपने सोफे से उठकर सूरज के पास आ गई और उसकी हाथों को अपने हथेली में लेकर सहलाते हुए बोली।

क्या हुआ बर्थडे बॉय आज टेंशन में क्यों है?

कुछ नहीं मौसी सब ठीक है बस थोड़ा नींद डिस्टर्ब हुई थी..

सूरज ने बात टालने की कोशिश की..

क्यों क्या हो गया? …सोनी ने सूरज की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा।

सूरज ने कुछ नहीं कहा अपनी गर्दन झुका ली

मुझे कुछ नहीं बोलना..

तभी सोनी ने सूरज के टूटे हुए अंगूठे को अपनी कोमल उंगलियों से सहलाते हुए पूछा

और अंगूठे का दर्द कैसा है?

सोने की अंगूठा सहलाए जाने से सूरज के लंड में एक और तेज करंट दौड़ी और उसके लंड का तनाव और आकार और भी बढ़ गया…

सूरज के मुंह से कराह निकल गई…

सूरज ने अपना अंगूठा सोनी के हाथ से खींच लिया और बोला

मौसी अब बस..

यह कराह अंगूठे के दर्द की वजह से नहीं थी अपितु लंड में आए बेहद तनाव की वजह से थी।

सूरज ने अपना हाथ नीचे किया और तनाव से फट रहे लंड को अपने पैंट में और जगह देने की कोशिश की।

सूरज के शर्ट का आवरण हटते ही सोनी ने सूरज के पेट के अंदर आए उसे अप्रत्याशित उभार को देख लिया जो कतई सामान्य नहीं था। उसका आकार यह निश्चित तौर पर बता रहा था कि यह सूरज का लिंग है। लिंग… पर इतना बड़ा? सूरज तो अभी नया-नया युवा था। यह उभार अप्रत्याशित था सोनी घबरा गई। सोने के चेहरे पर हवाईया उड़ने लगी।

इतनी सुबह-सुबह अपनी मां और मौसी के पास बैठे सूरज के लंड में इतना तनाव आना अप्रत्याशित था।

अचानक उसे बचपन की वह घटना पूरी तरह याद आ गई जब वह बचपन में सूरज के अंगूठे को मजाक मजाक में सहलाया करती थी और…. फिर …. जैसे-जैसे सोनी को वह घटना याद आती गई सोने के चेहरे पर शिकन आते गई

हे भगवान मुझसे यह क्या हो गया…

सूरज अब और असहज हो चुका था वह अपने रूम में जाने के लिए उठा। तभी सुगना चाय लेकर आ चुकी थी

अरे बैठ पहले चाय पी ले.. फिर जाना..

सूरज से अपने लंड का तनाव और सहा नहीं जा रहा था फिर भी उसने अपनी मां की बात मान ली और बड़ी मुश्किल से बैठकर अपने बने हुए लंड को छुपाते हुए जल्दी जल्दी चाय पीने लगा।

उधर सोनी का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे अब यकीन हो चला था कि सूरज के लिंग में आया हुआ तनाव निश्चित ही उसके अंगूठे सहलाए जाने के कारण हुआ था।

सोनी मन ही मन सोच रही थी पर तब तो सूरज एक बालक था अब तो तने हुए लिंग को शिथिल करने का उपाय सर्वविदित था। क्या सूरज को हस्तमैथुन के बारे में नहीं मालूम था? क्या सूरज ने इस तनाव को कम करने के लिए हस्तमैथुन नहीं किया होगा…

प्रश्न जटिल था सूरज की असहज स्थिति देखकर सोनी स्वयं परेशान हो गई थी इस प्रश्न का उत्तर जानना जरूरी था। सूरज के लिंग का तनाव कम करने का उपाय सोनी को बखूबी याद था पर ……

हे भगवान…. यह असंभव था….

पुत्र समान जवान सूरज का लंड ……चूमना……सोनी की रूह कांप उठी…अनिष्ट की आशंका से सोनी के माथे पर पसीने की बूंद चालक आई…थी…


अगला एपिसोड डायरेक्ट मैसेज पर उपलब्ध होगा..


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